Book Title: Mahavrato Ka Bhag Darshan Author(s): Amarmuni Publisher: Z_Panna_Sammikkhaye_Dhammam_Part_01_003408_HR.pdf View full book textPage 6
________________ ४. चउत्थो भंगो पुण सुनो। चतुर्थ भंग है--न द्रव्य से असत्य, और न भाव से असत्य । यह भंग हिंसा के पूर्वोक्त चतुर्थ भंग के समान शून्य भंग है। क्योंकि इस प्रकार के उभयनिषेधात्मक असत्य की जीवन में कोई स्थिति ही नहीं होती है । स्तेय-अस्तेय से सम्बन्धित चतुर्भगी : १. अरसठुस्स साहुगो कहिं वि श्रणगुण्णवेऊन तणाइ गेव्हम्रो दव्वप्रो अविन्नदाणं, णो भावप्रो । राग-द्वेष के भाव से मुक्त मुनि, किसी प्रयोजन विशेष से कहीं पर, बिना किसी की आज्ञा के जो तृणादि वस्तु ग्रहण कर लेता है, वह द्रव्य से तो प्रदत्तादान अर्थात स्तेय है, किन्तु भाव से नहीं, क्योंकि यहाँ शान्तचेत्ता मुनि के अन्तर्मन में चौर्य-वृत्ति - जैसा कोई भाव नहीं है। व्यवहार सूत्र में यही बात, परिस्थिति विशेष में प्रदत्त - वसत्ति के ग्रहण -प्रसंग में भी निर्दिष्ट है । श्वास- उच्छवास आदि की सहज क्रियानों में वायुकाय आदि को ग्रहण करते समय भी यही प्रथम भंग, सर्वारंभ परित्यागी मुनि को हिंसा और अदत्तादान के दोष से मुक्त रखता है । २. हरामि त्ति अवभुज्जयस्त तवसंपतीए भावप्रो, न दव्वो । चोरी करने के भाव से कोई किसी की बस्तु चुराने को उद्यत अर्थात तैयार तो है, परन्तु किसी कारण से चुरा नहीं पाता है, यह भाव से प्रदत्तादान है, किन्तु द्रव्य से नहीं । भले ही चोरी न की हो, पर मन में चोरी की वृत्ति होने से प्रदत्तादान का यह भावरूप द्वितीय भंग कर्म-बन्ध का हेतु है । ३. एवं चेव संपत्तीए भावम्रो दव्वम्रो वि । अदत्तादान का तीसरा भंग है--' द्रव्य से भी प्रदत्तादान और भाव से भी ।' व्यक्ति चोरी करने का विचार भी रखता है, और भावानुसार चोरी कर भी लेता है। यह तृतीय भंग अदत्तादान सम्बन्धी कर्म-बन्ध का हेतु है । ४. चरिमभंगो पुण सुन्नो । चतुर्थ भंग का रूप है न द्रव्य से प्रदत्तादान और न भाव से ।' यह पूर्वोक्त चतुर्थ भंगों के समान शून्य है । ऐसा कौन-सा अदत्तादान है, जो न द्रव्य से हो और न भाव से ? कोई भी नहीं । ब्रह्म ब्रह्म से सम्बन्धित चतुर्भगी : १. अरत - बुट्टाए इत्थियाए बला परिभुंजमाणीए दव्बो मेहुणं नो भावन । 1 शीलवती किसी स्त्री का यदि कोई दुष्ट अत्याचारी बलात्कार के द्वारा, शीलभंग करता है, तो यह नारी का केवल द्रव्य से मैथुन - अब्रह्मचर्य है, भाव से नहीं । यह पन्ना समिक्ee धम्मं २५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9