Book Title: Mahavira Vachanamruta
Author(s): Dhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
Publisher: Jain Sahitya Prakashan Mandir

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Page 448
________________ अभिभूय कायेण परि० अमणुन्नसमुप्पाय कक्करभोई य अयसीपुप्फसकासा अरई गण्ड विसूइया अरस विरस वावि अरूविणो जीववणा अलोए पहिया सिद्धा अलोलभिक्खू न अलोलय मुहाजीवी अलोले न रसे गिद्धे अवउज्झिय मित्त० अवसोहिय कटगा० अवि पापरिक्खेव असइ वोसट्ठचत्तदेहे असच्चामोस सच्च च असणं पाणग वावि असण सयण जाण असुरा नाग-सुव्वणा असख्य जीविय मा असंसत्तं पलोइजा अस्सि च लोए अदु [ ४२३ ] २५२ २६३ ३६७ ३७८ ३१५ २४५ २४ २१ २५३ ३४६ २४६ ३१६ ३१७ २७४ २५२ १३८ २४० ३६७ ४५ ३०७ २३५ ५३ अह अट्ठहिं ठाणेहिं अह कोइ म इच्छिज्जा अह चोद्दसहि ठाणेहिं अह जे सवुडे भिक्खू अह त पवेज्ज बज्भ अह पहरसहि ठाणेह अह पचहि ठाणेहिं अह सारही विचिते अहसेऽणुतप्पई पच्छा अहावरा तसा पाणा अहिअप्पा हियप्पन्नाणे अहिंस सच्च च अतेगग च अहीणपचेदियत्त अहे वय कोण अहो जिणेहिं असावज्जा अंगपच्चगसठाण अतमुहुत्तमि गए अधिया पुत्तिया चेव आ आउक्वय चेव अ० आणानिद्द सकरे ( इगिया० ) आणानिद्देसकरे ( पडणीए ) २७५ २४४ २७३ ४०३ २६१ २७२ २७५ २८८ १५६ १२५ २६१ ११७ ३१३ ३३५ २४३ १६१ ३८५ ४० १६८ २७२ २७३

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