Book Title: Mahavira Smruti Granth Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain, Others
Publisher: Mahavir Jain Society Agra

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Page 11
________________ -जन-जीवनके भगवानसत्य-अहिंसाके.पथदर्शक, जय जन-जीवनके भगवान । आज वंदनाके स्वर लेकर, करें तुम्हारा हम आह्वान ।। राष्ट्र-राष्ट्र हिंसक बनकर अब सर्वनाशके हेतु वने; एक तुम्हारेही इंगितपर, विश्व-शतिका सेतु बने । धधक रहा है घरका आगन लपटे झपट रहीं विकराल । यौत्रन जरा भेद नहीं जाने, मृत्यु दे रही निर्भय ताल । नारीका सौन्दर्य शाप वन, आज दे रहा पाप महान् । कौन-किसीकी लज्जा रखले, कौन अभयताका दे दान ! तुम्ही एक थे सच्चे स्वामी, सच्चे सेवक जन जनके। आज अंधेरी काल रात्रिमें, तुम्हीं दीप हो मन मनके ।। गाधी सा अनुगामी तेरा, ईसा जैसा शिष्य पुनीत; प्राण गंवाकर भी जिनने, मंतिम सासो तक गाये गीत ॥ तने भेदभावकी उठती, दीवारोंको गिरा दिया । ऊँच-नीचका मेद हटाकर, दानवताको हिला दिया ।। " करुणा-शान्ति विश्वकी रक्षक," कहकर मंत्र बताया एक । जन जनको स्वातन्त्र्य दिलाकर, रखली मानवताकी टेक ॥ सुलगाती हैं आज शक्तियों, महानाशकी ज्वालाएं । किंतु तुम्हारी शक्ति महाप्रभु, मिटा रही भव बाधाएं ।। आज तुम्हारी स्मृति लेकर हम, सोच रहे हैं विधि तत्काल । कैसे हिंसाकी हिंसा कर, मेटें भव भवके जंजाल ॥ तुम न हुए होते तो स्वामी, मानव दानव बन जाता । तुम न हुए होते तो स्वामी, विश्व नही बन जाता ॥ आज तुम्हारेही कारण तो जीवन जीवन कहलाता !. आज तुम्हाराही प्रकाश, तम भरे मार्ग है दिखलाता ॥ मानवता लौटेगी फिरसे, महावीर स्वामी आओ। वसुधाको कुटुम्ब कर डालो, अपनी करुणा वरसाओ ।। कविवर " मुकुल

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