Book Title: Mahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Author(s): Udaybhanu Sinh
Publisher: Lakhnou Vishva Vidyalaya

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Page 12
________________ पर उनका प्रभाव विशिष्ट नहीं है वहा पर भी उस दिखाने का बरबस प्रयास इस ग्रन्थ म नहीं किया गया है उस युग क महान् साहित्यकारो म मा कुछ मौलिकता थी और उन्हे उसका श्रेय मिलना ही चाहिए । डा. श्रीकृष्ण लाल के उपयुक्त ग्रन्थ में उस काल के हिन्दी-प्रचार, सामयिक साहित्य और आलोचना की पद्धतियों आदि की भी कुछ विशेष विवेचना नही की गई थी। इस दृष्टि से भी स्वतंत्र गवेपणा और विवेचन की अपेक्षा थी। उमकी पूर्ति का प्रयास भी प्रस्तुत ग्रन्थ में किया गया है। सुना है कि राजपूताना विश्वविद्यालय में द्विवेदी जी की कविता पर कोई प्रबन्ध दाखिल हुआ है । वह बाद की कृति है । उसकी चर्चा आगामी श्रावृत्ति में ही हो सकेगी। __ग्रन्थ से संयुक्त शुद्धिपन्न संक्षिप्त है। टाइप की अपूर्णता के कारण मराठी के 'किरकोल' श्रादि शब्द अपने शुद्धरूप में नहीं छप सके । 'ब' और 'घ', 'ए' और 'ये', अनुस्वार और चन्द्रबिन्दु, विरामचिह्न, पंचमवर्ण, संयोजक चिह्न, शिरोरेखा आदि की अशुद्धियाँ बहुत हैं। वे भ्रामक नहीं हैं अतएव उनका समावेश अनावश्यक समझा गया । जिन महानुभावो ने इस ग्रन्थ के प्रणयन में अमूल्य सहायता देकर लेखक को कृतकृत्य किया है उन सब का वह हृदय से ग्राभारी है। उदयभानु सिंह

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