Book Title: Mahavir ka Anekant evam Syadwada Darshan Author(s): Tulsi Acharya Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 4
________________ 6 2 द्रव्य में ध्रौव्य और परिवर्तनीय दोनों धर्म होते हैं। उन्हें कभी पृथक नहीं किया जा सकता। हम एक क्षण में द्रव्य के एक ही धर्म का प्रतिपादन कर सकते हैं। 3 . प्रौव्य और परिवर्तनीय धर्म अभिवक्त होते हए भी अपने-अपने स्वभाव में रहते हैं, इसलिए द्रध्य की नित्यता और अनित्यता में कोई निरोध नहीं है। 7 धर्मों की निरपेक्षता मानने से विरोध की प्रतीति होती है। सापेक्षता से विरोध का परिहार हो जाता है। अस्तित्व और नास्तित्व भी सापेक्ष हैं। वे एकदूसरे के विरोधी नहीं हैं। इन सूत्रों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि अनेकान्त और स्याद्वाद का जितना दार्शनिक मूल्य है, उतना ही आध्यात्मिक और अहिंसात्मक मल्य है। 5 हम द्रव्य को एक धर्म के माध्यम से जानते हैं, समग्र द्रव्य को नहीं जान सकते / 2 Jain Education International www.jainelibrary.org | For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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