Book Title: Mahavir ka Anekant evam Syadwada Darshan Author(s): Tulsi Acharya Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 3
________________ है। हम जानते हैं कि सोना पीला है, किन्तु साथ-साथ है। केवल प्रमाण को माननेवाले ताकिक इसीलिए यह भी जानते हैं कि वह केवल पीला ही नहीं है, कुछ एकान्तवादी हैं कि वे नय को नहीं मानते । अनेकान्त और भी है। सापेक्षता की दृष्टि से हम कहते हैं सोना का मूल आधार नय है । द्रव्य के अनन्त धर्मों या पर्यायों पीला है। सोना पीला है, यह कहना सदिग्ध नहीं है, को अनन्त दृष्टिकोणों से देखे बिना एकान्तिक आग्रह से व्यक्त पर्याय की दृष्टि से यह असंदिग्ध है, इसलिए मुक्ति नहीं मिल सकती। द्रव्य के अनन्त धर्मों में यदि म्याद्वाद की भाषा में हम कहते हैं कि सोना पीला ही अपेक्षा सूत्र न हो तो वे एक-दूसरे के प्रतिपक्ष में खड़े हो जाते हैं। नित्यता-अनित्यता के प्रतिपक्ष में खड़ी है अनेकान्त में नय का स्थान प्रधान रहा है। और अनित्यता नित्यता के प्रतिपक्ष में। यह आमनेआगमसाहित्य में प्रमाण की अपेक्षा नय का अधिक। सामने खड़ी होने वाली सैनिक मनोवत्ति को नय दृष्टि व्यापक प्रयोग मिलता है। न्यायशास्त्र के विकास के द्वारा ही टाला जा सकता है। के साथ प्रमाण की चर्चा प्रारम्भ होती है। प्राचीन साहित्य में पांच ज्ञान उपलब्ध होते हैं । उनमें द्रव्याथिक नय ध्र व अंश का निरूपण करता है, मति, अवधि, मन : पर्यव और केवल-ये चार ज्ञान इसलिए उसके मतानुसार द्रव्य नित्य है । पर्यायार्थिक श्रत ज्ञान स्वार्थ और परार्थ दोनों नय परिवर्तन अंश का निरूपण करता है, इसलिए होता है । नय श्रत ज्ञान के विकल्प हैं। अन्य दार्शनिक उसके मतानुसार पर्याय अनित्य है। यदि द्रव्य नित्य प्रमाण को मानते थे पर नय का सिद्धान्त किसी भी और पर्याय अनित्य हो तो वे एक-दूसरे के प्रतिपक्ष में दर्शन में निरूपित नहीं है। प्रमाण की चर्चा के प्रधान खड़े हो सकते हैं । पर द्रव्याथिक नय इस अपेक्षा को होने पर यह प्रश्न उठा कि नय प्रमाण है या अप्रमाण? नहीं भूलता कि पर्याय के बिना द्रव्य का कोई अस्तित्व यदि अप्रमाण है तो उससे कोई अर्थसिद्धि नहीं हो नहीं है और पर्यायाथिक नय इस बात को नहीं भूलता सकती। यदि वह प्रमाण है तो फिर प्रमाण और नय कि द्रव्य के बिना पर्याय का कोई अस्तित्व नहीं है। तब एक ही हो जाते हैं, दो नहीं रहते। जैन ताकिकों ने नित्यता और अनित्यता सापेक्ष हो जाती है। द्रव्य और इसका समाधान प्रमाण और नय के स्वरूप को ध्यान में पर्याय सर्वथा भिन्न नहीं हैं, इसलिए नित्य और अनित्य रखते हुए दिया। उन्होंने कहा-ज्ञानात्मक नयन भी सर्वथा भिन्न नहीं हैं । वे दोनों परस्पर सापेक्ष हैं। अप्रमाण है और न प्रमाण । वह प्रमाण का एक अंश सापेक्षता के मूल सूत्र ये हैहै। धर्मी में प्रवृत्त होनेवाला ज्ञान जैसे प्रमाण होता है, वैसे ही धर्म (एक पर्याय) में प्रवृत्त ज्ञान नय होता 1 द्रव्य अनन्त धर्मात्मक है। 1. प्रमाणनयतत्वालोकालंकार ७७१४ श्रु तार्थाशांश एवेह योऽभिप्रायः प्रवर्तते । इतरांशाप्रतिक्षेपी स नयः सुव्यवस्थितः ।। तत्वार्यश्लोकवातिक, प० १२३, श्लोक २१ नाप्रमाणं प्रमाणं वा नयो ज्ञानात्मको मतः । स्यात्प्रमाणेकदेशस्तु सर्वथाप्यविरोधतः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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