Book Title: Mahavir ka Anekant evam Syadwada Darshan Author(s): Tulsi Acharya Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 2
________________ का माध्यम बन जाता है। इस ज्ञान-पद्धति में द्रव्य और धर्म की अभिता का बोध बना रहता है। यह प्रण णात्मक अनेकान्त है । द्रव्य और धर्म या पर्याय सर्वथा अभिन नहीं है। उनकी अभिन्नता एक अपेक्षा या एक दृष्टिकोण से सिद्ध है। इस अपेक्षा के सूत्र को ध्यान में रखकर धर्मी और धर्म की अभिन्नता को स्वीकार करने वाली ज्ञान-पद्धति का नाम अनेकान्त है। एकान्त ज्ञान से हम धर्मी और धर्म की अभिन्नता को स्वीकार नहीं कर सकते । धर्मी एक द्रव्य है और धर्म उसमें होने वाले पर्याय हैं, वे दोनों अभिन्न नहीं हो सकते । अनन्त धर्मात्मक द्रव्य का किसी एक धर्म के माध्यम से प्रतिपादन करना स्याद्वाद ( या प्रमाण वाक्य ) हैं । ज्ञान पद्धति अनेकान्त है और प्रतिपादन पद्धति स्याद्वाद । अनेकान्त के दो रूप हैं - प्रमाण और नय । प्रतिपादन की दो पद्धतियाँ हैं- समग्र द्रव्य के प्रतिपादन का नाम स्याद्वाद हैं और एक धर्म के प्रतिपादन का नाम नय । वस्तु के जितने धर्म होते हैं, उतने ही नय होते हैं । जितने नय होते हैं, उतने ही वचन के प्रकार हो सकते हैं । किन्तु कहा उतना ही जाता है, जितना कालमान होता है ।' अनेकान्त का पहला फलित है अनाग्रह, सत्य के प्रति पादन की अक्षमता का बोध । सब लोगों में सत्य ( या द्रव्य) के समग्र रूप को जानने की क्षमता नहीं होती । हम इस बात को छोड़ भी दें सत्य को जानने का अधिकार सब को है, सब उसे जान सकते हैं, यह मान कर चलें। फिर भी हम इस तथ्य को अस्वीकार नहीं T 1. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा ४५० उवकोसवसुतगाणी वि जाणमाणो वि तेऽभिलप्पे वि तरित सव्वे वोत्तुंग पहुप्पति जेण कालो से ॥ न कर सकते कि सत्य के समग्र रूप को कहने की क्षमता किसी में भी नही होती । इसलिए सत्य की सारी व्याख्या नय के आधार पर होती है । हम अखण्ड को खण्ड रूप में जानते हैं और खण्ड रूप में ही उसका प्रतिपादन करते हैं। अतः किसी खण्ड को जानकर उसे अखण्ड कहने का आग्रह हमें नहीं करना चाहिए । खण्ड का आग्रह न बने, इसीलिए भगवान महावीर ने सापेक्ष दृष्टि का सूत्र किया। सोना पीना है, यह सोने का एक धर्म है। उसमें और भी अनेक धर्म है। यह प्रत्यक्ष देखते हुए भी हमें नहीं कहना चाहिए कि सोना पीला ही है। पीला रंग व्यक्त है, इसलिए हमें सोना पीला दिखाई देता है। अपक्त में जाने और क्या-क्या है ? उसके सूक्ष्म रूप में प्रवेश किए बिना केवल स्थूल रूप के आधार पर हम कैसे कह सकते हैं कि सोना पीला ही है । क्या इससे व्यवहार का अतिक्रमण नहीं होगा ? सोना जब प्रत्यक्षतः पीला दिखाई दे रहा है, हरा काला दिखाई नहीं दे रहा है, तब हमें क्यों नहीं कहता चाहिए कि सोना पीला ही है । व्यक्त पर्याय में सोना पीला ही है, यह हम कह सकते हैं, किन्तु त्रैकालिक और अव्यक्त पर्यायों को दृष्टि में रखते हुए हम नहीं कह सकते कि सोना पीला ही है । इसलिए सोना पीला ही है, यह निरूपण सापेक्ष हो सकता है, निरपेक्ष नहीं । सोने में विद्यमान अनेक धर्मों को दृष्टि में रखते हुए भी हम यह कह सकते हैं कि सोना पीला ही है । शब्द का प्रयोग यह सूचित करता है कि सोने का पीला होना संदिग्ध नहीं है। कुछ लोग मानते हैं कि स्वाद्वाद संदेहवाद है किन्तु यह वास्तविकता नहीं है। संदेह अज्ञान की दशा में होता - इह तानुत्कृष्ट तो जाननोऽभिलाप्यानपि सर्वान् ( न ) भाषते अनन्तत्वात्, परिमितत्वाच्चायुषः, क्रमवर्तिनीत्वाद् वाच इति ॥ Jain Education International ८० For Private & Personal Use Only 1 www.jainelibrary.orgPage Navigation
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