Book Title: Mahavir Vitrag Vyaktitva Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf View full book textPage 2
________________ तब कोई मां उसे वस्त्र तो पहिनाने की सोचे जन्म के समय आये थे और जिनका प्रयोग नहीं पाया था तो क्या वे वस्त्र २०-२५ वर्षीय युवक को आ पायेंगे ? नहीं आने पर वस्त्र लाने वालों को भला-बुरा कहे तो यह उसकी ही मूर्खता मानी जायेगी, वस्त्र लाने वालों की नहीं । उसी प्रकार महावीर के वर्द्धमान, वीर, अतिवीर आदि नाम उन्हें उस समय दिये गये थे जब वे नित्य बढ़ रहे थे, सन्मति (मति - ज्ञान ) थे, बालक थे, राजकुमार थे। उन्हीं घटनाओं और नामों को लेकर तीर्थंकर भगवान महावीर को समझना चाहें तो यह हमारी बुद्धि की ही कमी होगी, न कि लिखने वाले आचार्यो की । वे नाम वीरता की चर्चाएं यथासमय सार्थक थीं । दर्शन-दिग्दर्शन तीर्थंकर महावीर के विराट व्यक्तित्व को समझने के लिए हमें उन्हें विरागी - वीतरागी दृष्टिकोण से देखना होगा। वे धर्मक्षेत्र के वीर, अतिवीर और महावीर थे : युद्धक्षेत्र के नहीं। युद्धक्षेत्र और धर्मक्षेत्र में बहुत बड़ा अन्तर है । युद्धक्षेत्र में शत्रु का नाश किया जाता है ओर धर्मक्षेत्र में शत्रुता का । युद्धक्षेत्र में पर को जीता जाता है और धर्मक्षेत्र में स्वयं को । युद्धक्षेत्र में पर को मारा जाता है और धर्मक्षेत्र में अपने विकारों को । महावीर की वीरता में दौड़-धूप नहीं, उछल-कूद नहीं, मारकाट नहीं, हाहाकार नहीं; अनन्त शांति है। उनके व्यक्तित्व में वैभव की नहीं, वीतराग-विज्ञान की विराटता है। जब-जब यह कहा जाता है कि महावीर का जीवन घटना प्रधान नहीं है, तब उसका आशय यही होता है कि दुर्घटना प्रधान नहीं है; क्योंकि तीर्थकर के जीवन में आवश्यक शुभ घटनाएं तो पंचकल्याणक ही हैं। वे तो महावीर के जीवन में घटी ही थीं। दुर्घटनाएं घटना कोई अच्छी बात तो है नहीं कि जिनके घंटे बिना जीवन ही न रहे और एक बात यह भी तो है कि दुर्घटनाएं या तो पाप के उदय से घटती हैं या पाप भाव के कारण । जिनके जीवन में न पाप का उदय हो और न पाप भाव हो, तो फिर दुर्घटनाएं कैसे घटेंगी ? अनिष्ट संयोग पाप के उदय के बिना सम्भव नहीं है तथा वैभव और भोगों में उलझाव पाप के सदभाव में घटने वाली घटनाओं में शादी एक ऐसी दुर्घटना है, जिसके घट जाने पर दुर्घटनाओं का कभी न समाप्त होने वाला सिलसिला आरंभ हो जाता है सौभाग्य से महावीर के जीवन में यह दुर्घटना न घट सकी। (दिगम्बर मान्यता) एक कारण यह भी है कि उनका जीवन घटना- प्रधान नहीं है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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