Book Title: Mahatma Gandhi ka Shiksha Darshan
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Z_Ashtdashi_012049.pdf

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________________ सन्दर्भ : 1. हरिजन, 6-4-1940 2. रचनात्मक कार्यक्रम, पृ०-८ रचनात्मक कार्यक्रम, पृ०-८ हरिजन, 8-5-1937 हरिजन, 8-5-1937 यंग इंडिया 1-9-1921 हरिजन, 9-7-1938 हरिजन, 31-12-1938 हरिजन, 31-7-1937 हरिजन, 18-9-1937 10. हरिजन, 11-12-1947 11. महात्मा गांधी का संदेश, सम्पा०-यू०एस० मोहन राव, गै० वि० सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय भारत सरकार, 2-101969, पृ०-१६ इसके साथ ही गांधी ने जन-शिक्षा, प्रौढ़-शिक्षा, स्त्री- शिक्षा, धर्म-शिक्षा पर अपने विचार व्यक्त किये हैं, जन-शिक्षा ही ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति और समाज दोनों का ही विकास संभव है। उनका मानना था कि ग्रामीण एवं शहरी दोनों के बीच समायोजन होना चाहिये। ग्रामवासियों को लिखना-पढ़ना ही नहीं सिखावें वरन् उन्हें उचित व्यवहार करने एवं स्वतंत्र विचार रखने की शिक्षा देनी चाहिये जिससे उनमें अपनी क्षमता को जानने और समझने का अवसर मिले। जहाँ तक प्रौढ़-शिक्षा की बात है कि गांधी उसके पक्षधर रहे हैं। उनकी दृष्टि में प्रौढ़ शिक्षा साधारण शिक्षा नहीं है जैसा कि लोग उसके बारे में सोचते हैं, बल्कि प्रौढ़ शिक्षा अभिभावकों की शिक्षा है जिससे वे अपने बच्चों के निर्माण में पर्याप्त भूमिका निभा सकें। प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से गांधी निरक्षरता को दूर कर भारतीय नागरिक को सुखी देखना चाहते थे। यही कारण है कि गांधी ने प्रौढ़-शिक्ष के पाठ्यक्रम में उद्योग, व्यवसाय, सफाई, स्वास्थ्य, समाजकल्याण के साथ-साथ बौद्धिक, सामाजिक विकास, भावात्मक एकीकरण एवं संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाली क्रियाओं को भी महत्व दिया है। गांधी ने स्त्री को ईश्वर की श्रेष्ठ रचना माना है। उन्होंने कहा कि स्त्रियों को आधुनिक शृंगारिकता का परित्याग करके प्राचीन आदर्शों को स्थापित करना चाहिये। उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा। जिसे हम घर की दासी समझते हैं वस्तुत: वह हमारी अर्धांगिनी है। उसे भी शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार है। आवश्यकता है उनकी आन्तरिक शक्ति को जागरूक करने की। स्त्री जब अपनी आन्तरिक शक्ति को पहचान जायेंगी तब उन्हें कोई झुका नहीं सकेगा। स्त्री शिक्षा के अन्तर्गत गांधी ने घरेलू ज्ञान के साथ-साथ बालकों की शिक्षा एवं सेवाभाव को प्राथमिकता दी है। गांधी ने यह माना है कि धर्म-शिक्षा के द्वारा * साम्प्रदायिकता का अन्त हो सकता है। क्योंकि धर्म हमें रूढ़िवादिता एवं अन्धविश्वास नहीं वरन् प्रेम, न्याय आदि सिखाता है। उन्होंने स्पष्ट तौर पर यह एलान किया है कि यदि भारत को अपना आध्यात्मिक दिवालियापन घोषित नहीं करना है तो उसे नवयुवकों के लिए भौतिक शिक्षा या सांसारिक शिक्षा के समान धार्मिक शिक्षा को भी आवश्यक करना होगा। 0 अष्टदशी / 1800 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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