Book Title: Mahatma Gandhi ka Shiksha Darshan Author(s): Vijay Kumar Publisher: Z_Ashtdashi_012049.pdf View full book textPage 3
________________ कर सकता है। शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिये जिससे बुनियादी तालीम चूँकि लाखों करोड़ों विद्यार्थी ग्रहण करेंगे बालक में विचार-विमर्श करने, विषयों को सुव्यवस्थित रूप से तथा अपने को हिन्दुस्तान का नागरिक समझेंगे, इसलिए उन्हें समझने, बोलने एवं लिखने की क्षमता विकसित हो सके। नाप- एक अन्तर प्रान्तीय भाषा नागरी या उर्दू भाषा का ज्ञान होना तौल एवं मात्रा के ज्ञान से छात्रों में तर्क-शक्ति का विकास होता चाहिये, क्योंकि दोनों भाषाएँ हिन्दुस्तानी लिखी जाने वाली हो है। अत: गणित की शिक्षा का सम्बन्ध भी हस्तशिल्प के साथ सकती हैं। इसलिए दोनों लिपियाँ अच्छी तरह से लिखनी आनी होना चाहिये। चाहिये।१० इसके अन्तर्गत इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र से विद्यार्थी जीवन : सम्बन्धित प्रमुख घटनाओं के अध्ययन पर भी बल दिया गया है गांधी ने समाज के प्रति विद्यार्थियों के कुछ कर्तव्य जिसका उद्देश्य बालकों में भौगोलिक वातावरण के लगाव, निर्धारित किये हैं जो इस प्रकार हैंमातृभूमि के प्रति प्रेम का भाव एवं नागरिक कर्तव्यों के बोध से १. किसी भी दलबन्दी या राजनीति से दूर रहना, बालकों में मानवीय गुणों का विकास होगा। २. हड़ताल में सामिल नहीं होना चाहिये। _ गाँधी ने प्रकृति अध्ययन, वनस्पतिशास्त्र, जीवविज्ञान, रसायनशास्त्र, शरीर विज्ञान, स्वास्थ्यविज्ञान, नक्षत्र विज्ञान एवं सेवा की खातिर शास्त्रीय तरीके से सूत कातना चाहिये। महान वैज्ञानिकों एवं अन्वेषकों की कथाएँ आदि को भी बुनियादी ४. अपने ओढ़ने-पहनने के लिए सर्वदा खादी का प्रयोग शिक्षा में सम्मिलित किया है। इन विषयों का उद्देश्य प्रकृति को करना चाहिये। समझना, अवलोकन तथा प्रयोग की क्षमता का विकास एवं ५. वन्दे मातरम् बोलने या राष्ट्रीय झण्डे को फहराने के प्राकृतिक घटनाओं के सिद्धान्तों को समझना है। इसके लिए किसी पर दबाव नहीं देना चाहिये। अतिरिक्त कला, संगीत, गृहविज्ञान, शारीरिक शिक्षा आदि की तिरंगे झण्डे को जीवन में उतार कर साम्प्रदायिकता को शिक्षा पर भी गांधी ने बल दिया है। जीवन में घर न करने दें। गांधी के अनुसार सच्ची शिक्षा बालक के मस्तिष्क, दुःखी पड़ोसियों की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहना। आत्मा और शरीर की शक्तियों का समुचित ढंग से विकास करती है। बालक के व्यक्तित्व का शारीरिक, मानसिक, विद्यार्थी जो कुछ भी नया सीखे उसे समाज के लोगों को भावात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास इस प्रकार होना बताये। चाहिये कि उसके व्यक्तित्व का सामंजस्यपूर्ण विकास हो सके। अपने जीवन को निर्मल और संयमी बनायें। कोई भी गांधी शरीर मस्तिष्क और आत्मा तीनों में सामंजस्यपूर्ण विकास कार्य लुक-छिप कर न करें, जो भी करें, निर्मल मन से की बातें करते हैं। उनके अनुसार शारीरकि प्रशिक्षण के बिना खुल्लम-खुल्ला करें। मानसिक प्रशिक्षण व्यर्थ है। १० अपने साथ पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के प्रति सोहार्दपूर्ण पूरी शिक्षा स्वावलम्बी होनी चाहिये। इसमें आखिरी दर्जे व्यवहार रखें। तक हाथ का पूरा-पूरा उपयोग होना चाहिये। यानी विद्यार्थी अपने सारांश रूप में देखा जाए तो गांधी की सम्पूर्ण शिक्षा का हाथों से कोई न कोई उद्योग धंधा करे। मूलाधार सत्य और अहिंसा है जिसके आधार पर आत्म-विकास सारी तालीम विद्यार्थियों को उनकी प्रान्तीय भाषा में दी करना है। उन्होंने जीवन के सभी क्षेत्रों में आग्रहरहित होकर सत्य जानी चाहिये, जिससे उनमें विचार-विमर्श करने, विषयों को के संधान के लिए अध्ययन, शोध एवं प्रयोग की आवश्यकता सुव्यवस्थित रूप से समझने, बोलने एवं लिखने की क्षमता पर बल दिया। यही कारण है कि गांधी का सम्पूर्ण जीवन आदर्शों विकसित हो सके। का प्रयोग रहा। गांधी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि विद्यार्थी देश बुनियादी शिक्षा में साम्प्रदायिक, धार्मिक शिक्षा के लिए के प्रति अपने कर्तव्य को समझे। अपने आचरण में पवित्रता कोई जगह नहीं है। लेकिन नैतिक तालीम से कोई समझौता नहीं लाएं। अनुशासन में रहें। चाहे जैसी भी परिस्थिति हो झूठ न होगा। यह तालीम बच्चे लें या बड़े, औरत ले या मर्द, विद्यार्थियों बोलें। किसी बात को छिपाएँ नहीं, अपने अध्यापकों तथा बड़ों पर के घरों में पहुँचेंगी। भरोसा करके उन्हें हर एक बात सच-सच बतलाएं, किसी के प्रति दुर्भावना न रखें। किसी के पीठ पीछे उसकी बुराई न करें। सबसे बड़ी बात यह है कि वे स्वयं अपने प्रति सच्चे बनें रहे।११ 0 अष्टदशी / 1790 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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