Book Title: Mahatma Gandhi ka Shiksha Darshan
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Z_Ashtdashi_012049.pdf

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Page 1
________________ महात्मा गांधी का शिक्षा-दर्शन डॉ. विजय कुमार एक कुशल राजनीतिज्ञ, समाजसुधारक और आचारशास्त्री थे। अध्यापक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ वे वर्तमान के उन विद्वानों में से नहीं थे जिन्होंने नई विचारधाराओं को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया, बल्कि उनका सम्पूर्ण जीवन ही उनके चिन्तन का मूर्त रूप था। यद्यपि गाँधीजी ने कोई नवीन तत्वज्ञान प्रणीली नहीं दी जैसा कि यथार्थवाद, विज्ञानवाद आदि, बल्कि पुराने तत्वों को नया अर्थ देकर व्यावहारिक स्तर पर एक नये जीवन मार्ग (Way of Life) को प्रशस्त किया। गाँधी द्वारा भारतीय सामाजिक इतिहास में दिए गए अवदान को भुलाया नहीं जा सकता है। भारतीय जीवन दर्शन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें गाँधी ने अपना चिन्तन प्रस्तुत न किया हो। प्रस्तुत पत्र में हम गांधी द्वारा भारतीय शिक्षाव्यवस्था में किए गए अवदान को प्रस्तुत करेंगे। शैक्षिक विचार : बुनियादी शिक्षा गांधी ने जो शिक्ष-व्यवस्था समाज को प्रदान की उसे हम बुनियादी शिक्षा के नाम से जानते हैं। सामान्य एवं राजनीतिक उत्थान के लिए गांधी शिक्षा का नवसंस्कार चाहते थे, यही कारण है कि उन्होंने बुनियादी शिक्षा को प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि जिस प्रकार किसी इमारत के निर्माण में नींव की मजबूती अपेक्षित है, उसी प्रकार राष्ट्र की भविष्य रचना के लिए बच्चों का शैक्षिक स्तर का सुदृढ़ होना आवश्यक है। गांधी ने प्रत्येक व्यक्ति, समाज या सम्प्रदाय का अपना जीवन साक्षरता या लिखने-पढ़ने को शिक्षा नहीं माना। उन्होंने कहा कि दर्शन होता है, जीवन दर्शन से तात्पर्य है जीवन से सम्बन्धित साक्षरता न तो शिक्षा का अन्त है और न ही शिक्षा का प्रारम्भ। विभिन्न समस्याओं व उलझनों के विषय में किसी निष्कर्ष पर यह तो एक साधन है, जिसके द्वारा स्त्री-पुरुष को शिक्षित किया पहुँचना तथा उसके अनुसार जीवन-यापन करना। जब वही जाता है। वस्तुत: शिक्षा तो वह है जो बालक और मनुष्य के व्यक्ति या समाज अपने जीवन-दर्शन के अनुरूप अपने भावी शरीर मन और आत्मा में निहित सर्वोत्तम को बाहर प्रकट करे। समाज को ढ़ालना चाहता है और अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के दूसरी भाषा में हम कह सकते हैं कि सच्ची शिक्षा वह है जो लिए जिस प्रक्रिया को अपनाता है, वही उसका शिक्षा-दर्शन बालकों की आत्मिक, बौद्धिक और शारीरिक क्षमताओं को होता है। उनके बाहर प्रकट करे और उत्तेजित करे। शिक्षा का विषय सम्पूर्ण मानव जीवन है, क्योंकि शिक्षा शिक्षा और जीवन एक दूसरे के पर्याय हैं। दोनों में एक सामाजिक प्रक्रिया है और उसका सम्बन्ध मानव के सम्पूर्ण घनिष्ठ सम्बन्ध है, तभी तो गांधी ने कहा कि शिक्षा वही जो जीवन से होता है। जीवन को समुन्नत बनाने के लिए शिक्षा और जीवनपयोगी हो। जो शिक्षा जीवन में काम न आए वह शिक्षा दर्शन दोनों की आवश्यकता होती है। समाज और व्यक्ति की व्यर्थ है। गांधी ने वर्तमान में प्रचलित शिक्षा को संकीर्ण और उन्नति तब होती है जब सिद्धान्त व्यवहार में उतरता है। लेकिन वास्तविकताओं से कोसों दूर बताया और कहा कि आधुनिक समस्या उठ खड़ी होती है कि सिद्धान्त को व्यवहार में कैसे शिक्षा व्यक्ति और समाज दोनों की ही आवश्यकताओं की पूर्ति उतारा जाए? यह काम शिक्षा के द्वारा होता है, गाँधी ने भी करने में असमर्थ है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को ऐसी शिक्षा देनी समाज को समुन्नत करने के लिए एक शिक्षा-पद्धति प्रदान की चाहिये जो उसकी भौतिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकताओं की जिसे बुनियादी शिक्षा के नाम से जाना जाता है। पूर्ति कर सके। यही कारण है कि गांधी ने शिक्षा को हस्तकौशल गाँधी का जीवन अपने आप में एक नवयुगीन दर्शन है। से जोडने पर बल दिया। किसी हस्तकर्म के साथ शिक्षण को गाँधी किसी हाड़-माँस के पुतले का नाम नहीं बल्कि एक चिन्तन, जोड देने से विद्यार्थी शरीर से समर्थ, बद्धि से सजग और एक दृष्टि का नाम है जिसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे आत्मविश्वास से परिपूर्ण होता है। आदर्श शिक्षा-पद्धति को ० अष्टदशी / 1770 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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