Book Title: Mahabharat Samhita Part 02
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
View full book text ________________ 5. 8. 14] उद्योगपर्व [5.9.1 स तथा शल्यमामय पुनरायात्स्वकं पुरम् / तेजोवधश्च ते कार्यः सौतेरस्मज्जयावहः / शल्यो जगाम कौन्तेयानाख्यातुं कर्म तस्य तत् // 14 अकर्तव्यमपि ह्येतत्कर्तुमर्हसि मातुल // 27 उपप्लव्यं स गत्वा तु स्कन्धावारं प्रविश्य च।। शल्य उवाच / पाण्डवानथ तान्सर्वाऽशल्यस्तत्र ददर्श ह // 15 शृणु पाण्डव भद्रं ते यद्भवीषि दुरात्मनः / समेत्य तु महाबाहुः शल्यः पाण्डुसुतैस्तदा।। तेजोवधनिमित्तं मां सूतपुत्रस्य संयुगे // 28 पाद्यमयं च गां चैव प्रत्यगृह्णाद्यथाविधि // 16 / अहं तस्य भविष्यामि संग्रामे सारथिध्रुवम् / ततः कुशलपूर्वं स मद्रराजोऽरिसूदनः / वासुदेवेन हि समं नित्यं मां स हि मन्यते // 29 प्रीत्या परमया युक्तः समाश्लिष्य युधिष्ठिरम् // 17 तस्याहं कुरुशार्दूल प्रतीपमहितं वचः / तथा भीमार्जुनौ हृष्टौ स्वस्रीयौ च यमावुभौ / ध्रुवं संकथयिष्यामि योद्धुकामस्य संयुगे // 30 आसने चोपविष्टस्तु शल्यः पार्थमुवाच ह // 18 यथा स हृतदर्पश्च हृततेजाश्च पाण्डव / कुशलं राजशार्दूल कञ्चित्ते कुरुनन्दन / भविष्यति सुखं हन्तुं सत्यमेतद्ब्रवीमि ते // 31 अरण्यवासाद्दिष्ट्यासि विमुक्तो जयतां वर // 19 एवमेतत्करिष्यामि यथा तात त्वमात्थ माम् / सुदुष्करं कृतं राजन्निर्जने वसता वने / यच्चान्यदपि शक्ष्यामि तत्करिष्यामि ते प्रियम्॥३२ भ्रातृभिः सह राजेन्द्र कृष्णया चानया सह // 20 यच्च दुःखं त्वया प्राप्तं द्यूते वै कृष्णया सह / अज्ञातवासं घोरं च वसता दुष्करं कृतम् / परुषाणि च वाक्यानि सूतपुत्रकृतानि वै // 33 दुःखमेव कुतः सौख्यं राज्यभ्रष्टस्य भारत // 21 जटासुरात्परिक्लेशः कीचकाच्च महाद्युते / दुःखस्यैतस्य महतो धार्तराष्ट्रकृतस्य वै / द्रौपद्याधिगतं सर्वं दमयन्त्या यथाशुभम् // 34 अवाप्स्यसि सुखं राजन्हत्वा शत्रून्परंतप // 22 विदितं ते महाराज लोकतत्त्वं नराधिप / सर्वं दुःखमिदं वीर सुखोदकं भविष्यति / * तस्माल्लोभकृतं किंचित्तव तात न विद्यते // 23 नात्र मन्युस्त्वया कार्यो विधिर्हि बलवत्तरः // 35 ततोऽस्याकथयद्राजा दुर्योधनसमागमम् / दुःखानि हि महात्मानः प्राप्नुवन्ति युधिष्ठिर / तञ्च शुश्रूषितं सर्वं वरदानं च भारत // 24 देवैरपि हि दुःखानि प्राप्तानि जगतीपते // 36 युधिष्ठिर उवाच / इन्द्रेण श्रूयते राजन्सभार्येण महात्मना / सुकृतं ते कृतं राजन्प्रहृष्टेनान्तरात्मना। अनुभूतं महद्दुःखं देवराजेन भारत // 37 दुर्योधनस्य यद्वीर त्वया वाचा प्रतिश्रुतम् / इति श्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि एकं त्विच्छामि भद्रं ते क्रियमाणं महीपते // 25 ___ अष्टमोऽध्यायः॥८॥ भवानिह महाराज वासुदेवसमो युधि / कर्णार्जुनाभ्यां संप्राप्ते द्वैरथे राजसत्तम। , युधिष्ठिर उवाच / कर्णस्य भवता कार्य सारथ्यं नात्र संशयः // 26 / कथमिन्द्रेण राजेन्द्र सभार्येण महात्मना / वत्र पाल्योऽर्जुनो राजन्यदि मत्प्रियमिच्छसि। / दुःखं प्राप्तं परं घोरमेतदिच्छामि वेदितुम् // 1 - 885 --
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