Book Title: Mahabharat Samhita Part 02
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 22
________________ 5. 10. 47] महाभारते [5. 12. 1 दिवि देवर्षयश्चापि देवराजविनाकृताः। वादित्राणि च सर्वाणि गीतं च मधुरस्वरम् // 11 न च स्म कश्चिद्देवानां राज्याय कुरुते मनः // 47 विश्वावसु रदश्च गन्धर्वाप्सरसां गणाः। इति श्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि ऋतवः षट् च देवेन्द्रं मूर्तिमन्त उपस्थिताः / दशमोऽध्यायः // 10 // मारुतः सुरभिर्वाति मनोज्ञः सुखशीतलः // 12 एवं हि क्रीडतस्तस्य नहुषस्य महात्मनः / शल्य उवाच / संप्राप्ता दर्शनं देवी शक्रस्य महिषी प्रिया // 13 ऋषयोऽथाब्रुवन्सर्वे देवाश्च त्रिदशेश्वराः / / स तां संदृश्य दुष्टात्मा प्राह सर्वान्सभासदः / अयं वै नहुषः श्रीमान्देवराज्येऽभिषिच्यताम् / इन्द्रस्य महिषी देवी कस्मान्मां नोपतिष्ठति // 14 ते गत्वाथाब्रुवन्सर्वे राजा नो भव पार्थिव // 1 अहमिन्द्रोऽस्मि देवानां लोकानां च तथेश्वरः / स तानुवाच नहुषो देवानृषिगणांस्तथा। आगच्छतु शची मह्यं क्षिप्रमद्य निवेशनम् // 15 पितृभिः सहितान्राजन्परीप्सन्हितमात्मनः // 2 तच्छ्रुत्वा दुर्मना देवी बृहस्पतिमुवाच ह / दुर्बलोऽहं न मे शक्तिर्भवतां परिपालने / रक्ष मां नहुषाद्ब्रह्मस्तवास्मि शरणं गता // 16 बलवाञ्जायते राजा बलं शक्रे हि नित्यदा // 3 सर्वलक्षणसंपन्नां ब्रह्मस्त्वं मां प्रभाषसे। तमब्रुवन्पुनः सर्वे देवाः सर्षिपुरोगमाः / देवराजस्य दयितामत्यन्तसुखभागिनीम् // 17 अस्माकं तपसा युक्तः पाहि राज्यं त्रिविष्टपे // 4 अवैधव्येन संयुक्तामेकपत्नी पतिव्रताम् / . परस्परभयं घोरमस्माकं हि न संशयः / उक्तवानसि मां पूर्वमृतां तां कुरु वै गिरम् // 18 अभिषिच्यस्व राजेन्द्र भव राजा त्रिविष्टपे // 5 नोक्तपूर्वं च भगवन्मृषा ते किंचिदीश्वर / देवदानवयक्षाणामृषीणां रक्षसां तथा / तस्मादेतद्भवेत्सत्यं त्वयोक्तं द्विजसत्तम // 19 पितृगन्धर्वभूतानां चक्षुर्विषयवर्तिनाम् / बृहस्पतिरथोवाच इन्द्राणी भयमोहिताम् / तेज आदास्यसे पश्यन्बलवांश्च भविष्यसि // 6 यदुक्तासि मया देवि सत्यं तद्भविता ध्रुवम् // 20 धर्म पुरस्कृत्य सदा सर्वलोकाधिपो भव / / द्रक्ष्यसे देवराजानमिन्द्रं शीघ्रमिहागतम् / ब्रह्मर्षीश्चापि देवांश्च गोपायस्व त्रिविष्टपे // 7 न भेतव्यं च नहुषात्सत्यमेतद्रवीमि ते / सुदुर्लभं वरं लब्ध्वा प्राप्य राज्यं त्रिविष्टपे / समानयिष्ये शक्रेण नचिराद्भवतीमहम् // 21 धर्मात्मा सततं भूत्वा कामात्मा समपद्यत // 8 अथ शुश्राव नहुष इन्द्राणीं शरणं गताम् / देवोद्यानेषु सर्वेषु नन्दनोपवनेषु च / बृहस्पतेरङ्गिरसश्चक्रोध स नृपस्तदा // 22 कैलासे हिमवत्पृष्ठे मन्दरे श्वेतपर्वते / इति श्रीमहाभारते उद्योगपर्वणि सह्ये महेन्द्रे मलये समुद्रेषु सरित्सु च // 9 एकादशोऽध्यायः // 11 // अप्सरोभिः परिवृतो देवकन्यासमावृतः / 12 नहुषो देवराजः सन्क्रीडन्बहुविधं तदा // 10 शल्य उवाच / शृण्वन्दिव्या बहुविधाः कथाः श्रुतिमनोहराः। क्रुद्धं तु नहुषं ज्ञात्वा देवाः सर्षिपुरोगमाः / -890 -

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