Book Title: Mahabharat Samhita Part 01
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
View full book text ________________ 1. 1. 196] महाभारते [1. 2. 12 अव्यक्तादि परं यच्च स एव परिगीयते // 196 प्रसह्य वित्ताहरणं न कल्कयत्तद्यतिवरा युक्ता ध्यानयोगबलान्विताः / स्तान्येव भावोपहतानि कल्कः // 210 प्रतिबिम्बमिवादर्श पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम् // 197 इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि प्रयमोऽध्यायः // 1 // श्रद्दधानः सदोद्युक्तः सत्यधर्मपरायणः / समाप्तमनुक्रमणीपर्व // आसेवन्निममध्यायं नरः पापात्प्रमुच्यते // 198 अनुक्रमणिमध्यायं भारतस्येममादितः। ऋषय ऊचुः। आस्तिकः सततं शृण्वन्न कृच्छ्रेष्ववसीदति॥ 199 / समन्तपञ्चकमिति यदुक्तं सूतनन्दन / उभे संध्ये जपन्किंचित्सद्यो मुच्येत किल्बिषात् / एतत्सर्वं यथान्यायं श्रोतुमिच्छामहे वयम् / / 1 अनुक्रमण्या यावत्स्यादहा रात्र्या च संचितम्॥२०० सूत उवाच / भारतस्य वपुर्खेतत्सत्यं चामृतमेव च। शुश्रूषा यदि वो विप्रा ब्रुवतश्च कथाः शुभाः / नवनीतं यथा दध्नो द्विपदा ब्राह्मणो यथा // 201 समन्तपञ्चकाख्यं च श्रोतुमर्हथ सत्तमाः॥२ हदानामुदधिः श्रेष्ठो गौर्वरिष्ठा चतुष्पदाम् / त्रेताद्वापरयोः संधौ रामः शस्त्रभृतां वरः / यथैतानि वरिष्ठानि तथा भारतमुच्यते // 202 असकृत्पार्थिवं क्षत्रं जघानामर्षचोदितः // 3 यश्चैनं श्रावयेच्छ्राद्धे ब्राह्मणान्पादमन्ततः। स सर्वं क्षत्रमुत्साद्य स्ववीर्येणानलद्युतिः / अक्षय्यमन्नपानं तत्पिति॒स्तस्योपतिष्ठति // 203 समन्तपञ्चके पञ्च चकार रुधिरहदान् // 4 इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपद्व्हयेत् / स तेषु रुधिराम्भःसु ह्रदेषु क्रोधमूर्छितः।। बिभेत्यल्पश्रुताद्वेदो मामयं प्रतरिष्यति // 204 पितृन्सतर्पयामास रुधिरेणेति नः श्रुतम् // 5 काणं वेदमिमं विद्वाञ्श्रावयित्वार्थमश्नुते। अथ कादयोऽभ्येत्य पितरो ब्राह्मणर्षभम् / भ्रूणहत्याकृतं चापि पापं जह्यान्न संशयः / / 205 तं क्षमस्वेति सिषिधुस्ततः स विरराम ह // 6 य इमं शुचिरध्यायं पठेत्पर्वणि पर्वणि / तेषां समीपे यो देशो ह्रदानां रुधिराम्भसाम् / अधीतं भारतं तेन कृत्स्नं स्यादिति मे मतिः॥२०६ समन्तपञ्चकमिति पुण्यं तत्परिकीर्तितम् // 7 यश्चेमं शृणुयान्नित्यमाएं श्रद्धासमन्वितः। येन लिङ्गेन यो देशो युक्तः समुपलक्ष्यते। स दीर्घमायुः कीर्ति च स्वर्गतिं चाप्नुयान्नरः // 207 तेनैव नाम्ना तं देशं वाच्यमाहर्मनीषिणः // 8 चत्वार एकतो वेदा भारतं चैकमेकतः / अन्तरे चैव संप्राप्ते कलिद्वापरयोरभूत् / समागतैः सुरर्षिभिस्तुलामारोपितं पुरा / समन्तपञ्चके युद्धं कुरुपाण्डवसेनयोः // 9 महत्त्वे च गुरुत्वे च ध्रियमाणं ततोऽधिकम् / / 208 तस्मिन्परमधर्मिष्ठे देशे भूदोषवर्जिते। महत्त्वाद्भारवत्त्वाच महाभारतमुच्यते।। अष्टादश समाजग्मुरक्षौहिण्यो युयुत्सया // 10 निरुक्तमस्य यो वेद सर्वपापैः प्रमुच्यते // 209 / एवं नामाभिनिवृत्तं तस्य देशस्य वै द्विजाः / तपो न कल्कोऽध्ययनं न कल्कः पुण्यश्च रमणीयश्च स देशो वः प्रकीर्तितः // 11 स्वाभाविको वेदविधिर्न कल्कः / तदेतत्कथितं सर्वं मया वो मुनिसत्तमाः / - 10 -
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