Book Title: Mahabharat Samhita Part 01
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 26
________________ 1. 2. 156] महाभारते [1. 2. 181 मोहजं नाशयामास हेतुभिर्मोक्षदर्शनैः // 156 सारथ्ये विनियोगश्च मद्रराजस्य धीमतः। शिखण्डिनं पुरस्कृत्य यत्र पार्थो महाधनुः / आख्यातं यत्र पौराणं त्रिपुरस्य निपातनम् // 169 विनिम्नन्निशितैर्बाणै रथाद्भीष्ममपातयत् // 157 प्रयाणे परुषश्चात्र संवादः कर्णशल्ययोः / षष्ठमेतन्महापर्व भारते परिकीर्तितम् / हंसकाकीयमाख्यानमत्रैवाक्षेपसंहितम् // 170 अध्यायानां शतं प्रोक्तं सप्तदश तथापरे // 158 अन्योन्यं प्रति च क्रोधो युधिष्ठिरकिरीटिनोः / पञ्च श्लोकसहस्राणि संख्ययाष्टौ शतानि च / द्वैरथे यत्र पार्थेन हतः कर्णो महारथः॥ 171 श्लोकाश्च चतुराशीतिः पर्वण्यस्मिन्प्रकीर्तिताः / अष्टमं पर्व निर्दिष्टमेतद्भारतचिन्तकैः / व्यासेन वेदविदुषा संख्याता भीष्मपर्वणि // 159 एकोनसप्ततिः प्रोक्ता अध्यायाः कर्णपर्वणि / द्रोणपर्व ततश्चित्रं बहुवृत्तान्तमुच्यते / चत्वार्येव सहस्राणि नव श्लोकशतानि च // 172 यत्र संशप्तकाः पार्थमपनिन्यू रणाजिरात् // 160 अतः परं विचित्रार्थ शल्यपर्व प्रकीर्तितम् / भगदत्तो महाराजो यत्र शक्रसमो युधि / हतप्रवीरे सैन्ये तु नेता मद्रेश्वरोऽभवत् // 173 सुप्रतीकेन नागेन सह शस्तः किरीटिना // 161 वृत्तानि रथयुद्धानि कीर्त्यन्ते यत्र भागशः / यत्राभिमन्युं बहवो जघ्नुर्लोकमहारथाः / विनाशः कुरुमुख्यानां शल्यपर्वणि कीर्त्यते // 174 जयद्रथमुखा बालं शूरमप्राप्तयौवनम् / / 162 शल्यस्य निधनं चात्र धर्मराजान्महारथात् / हतेऽभिमन्यौ क्रुद्वेन यत्र पार्थेन संयुगे। गदायुद्धं तु तुमुलमत्रैव परिकीर्तितम / अक्षौहिणीः सप्त हत्वा हतो राजा जयद्रथः / सरस्वत्याश्च तीर्थानां पुण्यता परिकीर्तिता / / 175 संशप्तकावशेषं च कृतं निःशेषमाहवे // 163 नवमं पर्व निर्दिष्टमेतदद्भुतमर्थवत् / अलम्बुसः श्रुतायुश्च जलसंधश्च वीर्यवान् / एकोनषष्टिरध्यायास्तत्र संख्याविशारदैः॥ 176 सौमदत्तिर्विराटश्च द्रुपदश्च महारथः / संख्याता बहुवृत्तान्ताः श्लोकाग्रं चात्र शस्यते / घटोत्कचादयश्चान्ये निहता द्रोणपर्वणि // 164 त्रीणि श्लोकसहस्राणि द्वे शते विंशतिस्तथा / अश्वत्थामापि चात्रैव द्रोणे युधि निपातिते / मुनिना संप्रणीतानि कौरवाणां यशोभृताम् // 177 असं प्रादुश्चकारोग्रं नारायणममर्षितः // 165 अतः परं प्रवक्ष्यामि सौप्तिकं पर्व दारुणम् / सप्तमं भारते पर्व महदेतदुदाहृतम् / भग्नोरं यत्र राजानं दुर्योधनममर्पणम् // 178 अत्र ते पृथिवीपालाः प्रायशो निधनं गताः / व्यपयातेषु पार्थेषु त्रयस्तेऽभ्याययू रथाः / द्रोणपर्वणि ये शूरा निर्दिष्टाः पुरुषर्षभाः // 166 कृतवर्मा कृपो द्रौणिः सायाह्ने रुधिरोक्षिताः // 179 अध्यायानां शतं प्रोक्तमध्यायाः सप्ततिस्तथा / प्रतिजज्ञे दृढक्रोधो द्रौणियंत्र महारथः / अष्टौ श्लोकसहस्राणि तथा नव शतानि च / / 167 अहत्वा सर्वपाञ्चालान्धृष्टद्युम्नपुरोगमान / श्लोका नव तथैवात्र संख्यातास्तत्त्वदर्शिना / पाण्डवांश्च सहामात्यान्न विमोक्ष्यामि दंशनम् 180 पाराशर्येण मुनिना संचिन्त्य द्रोणपर्वणि / / 168 / प्रसुप्तान्निशि विश्वस्तान्यत्र ते पुरुषर्षभाः / कर्णपर्व प्रोच्यते परमाद्भुतम् / पाञ्चालान्सपरीवाराञ्जन्नुद्रौणिपुरोगमाः // 181 - 16 -

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