Book Title: Maha pundit Todarmal
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ यद्यपि सरस्वती माँ के वरद पुत्र का जीवन आध्यात्मिक साधनाओं से ओतप्रोत है, तथापि साहित्यिक व सामाजिक क्षेत्र में भी उनका प्रदेय कम नहीं है । आचार्यकल्प पंडित टोडरमलजी उन दार्शनिक साहित्यकारों एवं क्रान्तिकारियों में से हैं जिन्होंने आध्यात्मिक क्षेत्र में आई हुई विकृतियों का सार्थक व समर्थ खण्डन ही नहीं किया. वरन् उन्हें जड़ से उखाड़ फेंका। उन्होंने तत्कालीन प्रचलित साहित्य भाषा ब्रज में दार्शनिक विषयों का विवेचक ऐसा गद्य प्रस्तुत किया जो उनके पूर्व विरल है। पंडितजी का समय ईस्वी का अठारहवीं सदी का मध्यकाल है । वह संक्रान्तिकालीन युग था । उस समय राजनीति में अस्थिरता सम्प्रदायों में तनाव साहित्य में श्रृंगार, धर्म के क्षेत्र में रूढ़िवाद, आर्थिक जीवन में विषमता एवं सामाजिक जीवन में आडंबर, ये सब अपनी चरम सीमा पर थे। उन सब से पडितजी को संघर्ष करना था जो उन्होंने डटकर किया और प्राणों की बाजी लगाकर किया । पंडित टोडरमलजी गम्भीर प्रकृति के आध्यात्मिक महापुरुष थे । वे स्वभाव से सरल, संसार से उदास, धुन के धनी, निराभिमानी, विवेकी अध्ययनशील, प्रतिमावान बाह्याडंबर विरोधी, दृढ श्रद्धावी क्रान्तिकारी सिद्धान्तों की कीमत पर कमी न झुकनेवाले आत्मानुभवी, लोकप्रिय प्रवचनकार, सिद्धान्त ग्रन्थों के सफल टीकाकार एवं परोपकारी महामानव थे । वे विनम्र श्रद्धानी विद्वान एवं सरल स्वभावी थे वे प्रामाणिक महापुरुष थे। तत्कालीन आध्यात्मिक । समाज में तत्वज्ञान संबंधी प्रकरणों में उनके कथन प्रमाण के तौर पर प्रस्तुत किए जाते थे। वे लोकप्रिय आध्या त्मिक प्रवक्ता थे। धार्मिक उत्सवों में जनता की अधिक 3. इन्द्रध्वज विधान महोत्सव पत्रिका । Jain Education International से-अधिक उपस्थिति के लिए उनके नाम का प्रयोग आकर्षण के रूप में किया जाता था। गृहस्थ होने पर भी उनकी वृत्ति साठा की प्रतीक थी। पंडितजी के पिता का नाम जोगीदासजी एवं माता का नाम रम्भादेवी था। वे जाति से खण्डेलवाल थे और गोत्र था गोदीका, जिसे भौंसा व बड़जात्या भी कहते हैं। उनके वंशज ढोलाका भी कहलाते थे। वे दिवादित थे पर उनकी व समुराल पक्षवालों का कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता। उनके दो पुत्र थे- हरीचन्द्र और गुमानीराम गुमानीराम भी उनके समान उ कोटि के विद्वान और प्रभावक आध्यात्मिक प्रवक्ता थे । उनके पास बड़े-बड़े विद्वान भी तत्व का रहस्य समझने आते थे। पंडित देवीदास गोधा ने "सिद्धान्तसार संग्रह टीका प्रशस्ति" में इसका स्पष्ट उल्लेख किया है । पंडित टोडरमलजी की मृत्यु के उपरान्त वे पंडितजी द्वारा संचालित धार्मिक क्रान्ति के सूत्रधार रहे। उनके -नाम से एक पंध भी चला जो 'गुमान पंथ' के नाम से जाना जाता है । पंडित टोडरमलजी की सामान्य शिक्षा जयपुर की एक आध्यात्मिक ( तेरापंथ शैली में हुई, जिसका वाद में उन्होंने सफल संचालन भी किया। उनके पूर्व वादा बंशीधर जी उक्त शैली के संचालक थे। पंडित टोडरमलजी गूढ तत्वों के तो स्वतंबुद्ध ज्ञाता थे। 'नब्बिसार' व "क्षपणासार" की संदृष्टियों आरम्भ करते हुए वे लिखते हैं "शास्त्रविलिरुया नाहीं और बताने वाला मिल्या नाहीं"। संस्कृत, प्राकृत और हिन्दी के अतिरिक्त उन्हें कन्नड़ भाषा का भी ज्ञान था। मूल ग्रंथों को वे कन्नड़ लिपि में पढ़-लिख सकते थे । कन्नड़ भाषा और लिपि का ज्ञान एवं अभ्यास भी उन्होंने स्वयं किया । वे कन्नड़ २६६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6