Book Title: Madhyakalin Rajasthan me Jain Dharma Author(s): Rajesh Jain Mrs Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 9
________________ धारा देखने को मिलती है। दिल्ली में केन्द्रीय मुस्लिम शासन की स्थापना से, शासन-शक्ति के आधार पर मुस्लिम मत में धर्मान्तरण, अन्य धर्मावलम्बियों का उत्पीड़न, विध्वंस आदि प्रारम्भ हुये । केन्द्र के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी मुस्लिम सत्ता के केन्द्र विकसित हुये। कई नगर व बस्तियाँ खाली हो गईं। राजस्थान में राजपूतों की छोटी-छोटी रियासतें बनने लगीं। सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व धार्मिक क्षेत्र में परिवर्तन की बाढ़ आ गई। यद्यपि जैनमत को पूर्ववत् राजपूत राजाओं का उदार संरक्षण मिलता रहा और इस काल में भी इसके जन प्रभाव में कमी नहीं हुई , किन्तु असंख्य जैन मंदिर व मूर्तियाँ, मुस्लिम-विध्वंस की बाढ़ में ध्वस्त हो गये । जैन चिन्तन पर कुछ क्षेत्रों में मुस्लिम प्रभाव पड़ा। जैन शास्त्रों का पुनः अध्ययन कर मुस्लिम दर्शन से सामंजस्य रखने वाला नया अमूर्तिपूजक दर्शन श्वेताम्बर सम्प्रदाय में लोंकापंथ व दिगम्बर सम्प्रदाय में तारण पंथ के नाम से अस्तित्व में आया। यही नहीं मुस्लिम शासन का अस्तित्व में रहना इन पंथों के लिये इतना अनुकूल सिद्ध हुआ कि उत्तर मध्यकाल में तो ये जैन धर्म की पृथक् रूप से प्रमुख धारा ही बन गये। मुगल सम्राट अकबर के काल में जैन धर्म के प्रभाव में कुछ बढ़ोत्तरी हुई । अकबर एक उदार-चेता और धर्म-सहिष्णु मुगल शासक था। हीरविजय सूरि और जिनचन्द्र आदि जैनाचार्यों से प्रभावित होकर, उसने उन्हें क्रमशः "जगद्गुरु" और "युगप्रधान" की उपाधियाँ दी थीं । जैन दर्शन के प्रभाव से उसने कई अमारि घोषणाएँ करवाई व स्वयं निरामिष होकर आखेट आदि हिंसक कृत्य, अपने जीवन के पश्चात्वर्ती काल में त्याग दिये थे। भविष्यदृष्टा जैन सन्तों ने मुस्लिम विध्वंस के प्रहारों को देखते हुये, इस काल में मौलिक साहित्य सृजन की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के प्रतिलिपिकरण और शास्त्र-भण्डारों के निर्माण पर जोर दिया। इस काल में मूल ग्रन्थों पर अनेक भाष्य, टीकाएँ व प्रतिलिपियाँ तैयार हुई तथा कई स्थानों पर ग्रन्थ भण्डार स्थापित किये गये । १३वीं से १६वीं शताब्दी तक राजस्थान से जैन धर्म के स्वरूप में हमें कई उतार-चढ़ाव देखने को मिलते है। १७वीं शताब्दी से ही अकबर की मृत्यु के बाद कट्टरपंथी मुस्लिम हावी होने लगे । जहाँगीर अपने पूर्ववर्ती शासनकाल में तो जैन मत के प्रति उदार था, किन्तु बाद में गुजरात में, उसने भी जैन मतावलम्बियों के प्रति उत्पीड़न का रुख प्रदर्शित किया । औरंगजेब ने अकबर की धर्म सहिष्णुता का डट कर बदला लिया और अपने काल में असंख्य जैन प्रतिमानों को ध्वस्त किया, जिसमें राजस्थान के भी कई जैन मंदिर व प्रतिमाएँ थीं। उत्तर मध्यकाल में जैन मत में और नये पंथ विकसित होते रहे और अधिकांश महत्त्वपूर्ण साहित्य ग्रन्थागारों में सुरक्षित रख दिये गये।। राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में जैन धर्म विषयक विपुल सामग्रो अभिलेखों, साहित्य, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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