Book Title: Madhyakalin Maru Gurjar Chitrakala ke Prachin Praman
Author(s): Umakant P Shah
Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf

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Page 1
________________ मध्यकालीन मारु-गुर्जर चित्रकलाके प्राचीन प्रमाण डॉ० उमाकान्त प्रेमानन्द शाह मध्यकालीन पश्चिमभारतीय चित्रकला हमें लघु-चित्र (miriature paintings ) रूपमें, विशेषतः हस्तलिखित जैन ग्रन्थोंमें, मिलती है। उस कलाको पश्चिमभारतीय चित्रकला, अपभ्रंश शैली, गुजराती चित्रकला आदि नामोंसे भिन्न-भिन्न विद्वानोंने पेश की है। किन्तु, ज्यादा करके वह पश्चिमभारतीय चित्रकला नामसे पहचानी गई है । वह कला मुख्यतः राजस्थान और गुजरातके जैन भंडारोंमें और राजस्थान और गुजरातमें लिखी हुई प्रतियोंमें मिलती है इसलिए मैं उसको मध्यकालीन मारु-गुर्जर चित्रकला नामसे पहचानना पसंद करता हूँ। यह शब्द प्रयोग, जहाँ तक मुझे याद है, कवि श्री उमाशंकर जोशीने गुजराती और राजस्थानीका मूल स्रोतरूप भाषा, जिसको टेसिटोरीने Old Western Rajasthari कही है, उसके लिए प्रयुक्त किया था। वास्तवमें प्राचीन और मध्ययुगमें गुजरात राजस्थानका भाषाकीय. कलाविषयक और अन्य सांस्कृतिक ऐक्य रहा था। इसलिए भी मारु-गुर्जर शब्द प्रयोग ज्यादा वास्तविक लगता है। ___ इस चित्रशैलीके विषयमें बहुत लिखा.गया है। डॉ० कुमार स्वामी, डॉ० ब्राउन, डॉ० मजमुंदार, श्री०ओ०सी० गांगुली, डॉ. मोतीचन्द्र, डॉ. बॅरेट, डॉ. सिलने, श्रीकार्ल खंडालावाला आदि विद्वानोंके संशोधन आदिके परिणामरूप यह बात स्पष्ट हुई थी कि इस शैलीके जो उपलब्ध लघुचित्र हैं उनमेंसे सबसे प्राचीन है संवत् ११५७ ( ई०स० ११०० ) में भृगुकच्छमें लिखित विशीथचूणिकी ताडपत्रीय प्रति जिसमें पत्रोंके बीचमें कमलआदिके सुशोभन हैं। एक दो गोलाकृति सुशोभनों के बीच में पशु (हाथी), नरनारी आदि भी हैं। किन्तु, ई०स० ११२७ वि०सं० ११८४ में लिखित ज्ञाता और दूसरे अंगसूत्रोंकी ताडपत्रीय प्रति (खंभात के शान्तिनाथ जैन भंडारमें सुरक्षित ) में दो चित्र मिले हैं जिनसे इस कलाका विशेष परिचय होता है। इसमें प्रथम चित्र तीर्थंकर भगवान्का है और दूसरा सरस्वती या श्रुतदेवता का। . करीब इसी समयके भित्तिचित्र उत्तरप्रदेशके ललितपुर जिलेके मदनपुर में विष्णुमंदिरके मंडपमें मिले हैं। वह मंदिर मदन वर्माके राज्यकालमें ई०स० ११३० से ११६५ के बीच बना। चित्र भी करीब इसी समयके आसपास बने होंगे। इन चित्रोंमें पंचतंत्रकी कथाके चित्र हैं।४ चित्रों में यहो मारु-गुर्जर चित्रकलाकी विशेषतायें उपलब्ध होती हैं । इलोराको कलासमन्दिरगहाके भित्तिचित्रोंमें मध्यके स्तरमें गरुडोपरिस्थित विष्णुके चित्रमें लम्बा नोक १. देखो, मोतीचन्द्र, जैन मिनिएचर पेइन्टीन्गझ् फ्रॉम वेस्टर्न इन्डिया, ( अमदाबाद, १९४९ ), पृ० २८ २९, चित्र नं० १४ । २. वही, चित्र नं. १५ । ३. वही, चित्र नं० १६, पृ० २८ । ४. स्टेला कामरिश, ए पेइन्टेड सीलिंग, जर्नल ऑफ ये इण्डीअन सोसायटी ऑफ ओरिएन्टल आर्ट, वॉल्युम, ७. पृ० १७६ और चित्रप्लेट । इतिहास और पुरातत्त्व : ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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