Book Title: Lonkashahka Sankshipta Parichay Author(s): Punamchandra, Ratanlal Doshi Publisher: Punamchandra, Ratanlal Doshi View full book textPage 6
________________ है, किन्तु निष्पक्ष सुश जनता के हृदय में इस महापुरुष के प्रति पूर्ण श्रादर है / इतिहास इस अलौकिक पुरुष को सुधारक मानते हैं / यही क्यों ? हमारे मूर्तिपूजक बन्धुओं की प्रसिद्ध और जवाबदार संस्था 'जैनधर्म प्रसारक सभा भावनगर' ने प्रोफेसर हेलमुटग्लाजेनाप के जर्मन ग्रन्थ 'जैनिज्म' का भावान्तर प्रकाशित किया है उसमें भी श्रीमान् को सुधारक माना है, और सारे संघ को अपना अनुयायी बनाने की ऐतिहासिक सत्य घटना को भी स्वीकार किया है, देखिये वहां का अवतरण-- शत्रजयनी जात्रा करीने एक संघ अमदाबाद थइने जतो हतो तेने एणे पोताना मतनो करी नाख्यो” (जैन धर्म पृ० 72) ऐसे महान् आत्मबली वीर की द्वेषवश व्यर्थ निन्दा करने वाले सचमुच दया के ही पात्र हैं। हम यहां संक्षिप्त परिचय देते हैं / अतएव अधिक वि. चार यहां नहीं कर सकते / किन्तु इतना ही बताना आवश्यक समझते हैं कि-- श्रीमान् लोकाशाह ने, जैन धर्म को अवनत करने में प्रधान कारण, शिथिलाचार वर्द्धक, पाखण्ड और अन्ध वि. श्वास की जननी, भद्र जनता को उल्लू बनाकर स्वार्थ पोषण में सहायक ऐसी जैनधर्म विरुद्ध मूर्तिपूजा का सर्व प्रथम बहिष्कार कर दिया, जो कि जैन संस्कृति एवं प्रागम श्राज्ञा की घातक थी. यह बहिष्कार न्याय संगत और धर्म सम्मत था, और था प्रौढ़ अभ्यास एवं प्रबल अनुभव का पुनीत फल / क्योंकि मूर्तिपूजा धर्म कर्म की घातक होकर मानवPage Navigation
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