Book Title: Lonkashahka Sankshipta Parichay
Author(s): Punamchandra, Ratanlal Doshi
Publisher: Punamchandra, Ratanlal Doshi

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Page 5
________________ की परीक्षा नहीं हो तभी तक कांच का टुकड़ा भी रत्न गिना जाता है, पर जब असली और सच्चे रत्न की परीक्षा हो नाती है तब कोई भी समझदार कांच के टुकड़े को फेंकते देर नहीं करता / ठीक इसी प्रकार जनता ने आपके उपदेशों को सुना, सुनकर मनन किया, परस्पर शंका समाधान किया परीक्षा हो चुकने पर प्रभु वीर के सत्य, शिव, और सुन्दर सिद्धांत को अपनाया, पाखंड और अन्धश्रद्धा के बंधन से मुक्ति प्राप्त की / एक नहीं सैकड़ों, हजारों नहीं, किन्तु लाखों मुमुतुओं ने भगवान महावीर के मुक्तिदायक सिद्धांत को अपनाया, सैकड़ों वर्षों से फैले हुए अन्धकार को इस महान् धर्म क्रांतिकार लोकमान्य लोकाशाह ने लाखों हृदयों से विलीन कर दिया / मूर्तिपूजा की जड़ खोखली होगई / यदि यह परम पुनीत श्रान्मा अधिक समय तक इस वसुन्धरा पर स्थिर रहती तो सम्भव है कि-निह्नव मत की तरह यह जड़पूजा मत भी सदा के लिये नष्ट हो जाता, किन्तु काल की विचित्र गति से यह महान् युगसृष्टा वृद्धावस्था के प्रातः काल ही में स्वर्गवासी बन गये, जिससे पाखंड की दृढ़ भित्ति बिलकुल धराशायी नहीं हो सकी। श्रीमान् के शानबल और श्रात्मबल की जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है, इसी श्रात्मबल का प्रभाव है कि एक ही उपदेश से मूर्तिपूजकों के तीर्थयात्रा के लिये निकले हुए वि. शाल संघ मी एकदम जड़पूजा को छोड़ कर सच्चे धर्मभक्त बन गये / क्या यह श्रीमान् के आत्मबल का ज्वलन्त प्रमाण नहीं है ? यद्यपि स्वार्थप्रिय जड़ोपासक महानुभावों ने इस नर नाहर की, सभ्यता छोड़कर भर पेट निन्दा की

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