Book Title: Lekhratnakar Paddhati Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ फेब्रुअरी २०११ लेखरत्नाकरपद्धतिः ७ सं. विजयशीलचन्द्रसूरि : कोईक ग्रन्थभण्डारनी एक पत्रनी प्रति परथी थयेल आ सम्पादन छे. ते प्रतिनो परिचय तेमां आ प्रमाणे जोवा मळे छे : “पत्रलेखरत्नाकर पद्धति हेमचन्द्रसूरिकृत्, पत्र १ (लेखिनीकल्प) नं. २७९३". हेमचन्द्रसूरिनुं नाम वांचीए एटले स्हेजे कलिकालसर्वज्ञनी कृति होवानी सम्भावना जागे. परन्तु कृति वांचता ज समजाई जाय के आ हेमचन्द्रसूरि कोईक बीजा ज होई शके. कृतिनो पाठ अत्यन्त अशुद्ध छे. प्रतिपादन शिथिल अने त्रूटक जेवुं छे. कोई सामान्य लेखकनी कृति होय तेवो वहेम पडे छे. तेवा लेखके माहात्म्य वधारवा ‘हेमचन्द्र' शब्द जोडी दीधो होय तो ते पण बनवाजोग छे. हेमचन्द्राचार्यना समयमां थयेल एक अन्य हेमचन्द्रसूरि हता, पण तेमनी पण भाषा तथा रचना आवी तो न ज सम्भवे. ‘लेखपद्धति:' नामे ग्रन्थ, वर्षो पूर्वे, गायकवाड्झ ऑरिएन्टल सिरिजबरोडाथी प्रकाशित छे. तेमां गुप्तयुगथी लईने १७ - १८ मा शतक सुधीना गाळामां विविध राजसत्ताओना शासनमां - काळमां पत्रलेखो केवी रीते लखाता, तेना घणा नमूना प्रगट थया छे, गद्यात्मक तेमज पद्यात्मक. संस्कृतमां तेमज भाषामां. एटले आ लेखपद्धतिनी कोई विशेषता छे माटे प्रकट करवामां आवे छे एवुं नथी. फक्त आनी साथे हेमचन्द्रसूरि एवं नाम जोडायुं छे, तेथी थता भ्रमनुं निराकरण करवाना आशयथी ज अत्रे आपेल छे. प्रति अनुमानतः १७मा शतकमां लखायेली जणाय छे. १३ मा श्लोकमां ‘प्रीतिपोत्कार' (प्रीतिथी पोकार) तथा 'शिलाम' (सलाम) ए बे शब्दो आवे छे ते मुस्लिम असर होवा प्रत्ये आपणुं खास ध्यान खेंचे छे. २३ पद्योनो ‘लेखरत्नाकर' छे, अने अन्ते लखायेला २ श्लोक ते 'लेखिनीकल्प' होय तेम जणाय छे.Page Navigation
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