Book Title: Laghutattvasphota
Author(s): Amrutchandracharya, Padmanabh S Jaini, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 301
________________ 252 शाश्वत शिववर्त्म शान्ति (देव) 16 448 शून्य शीतल (देव) 10 शील 126 शुद्ध श्रामण्य श्रुत श्रेणि सयम सङकोच सङ क्रम सङग्रह 128, 135, 182, 208, 209, 210 सङ्घटित सञ्चय सत्ता संवित् 46, 606, -- रस 176 संवृत संवेदन संश्लेष संसार संस्कृत संहित संहृत सङ कर सङकीर्णरस Jain Education International श्रेयःप्रभु (देव) 11 श्लिष्टावभास 218 षट् 319, 402, 441, 442, 449, 501, 559, 568, 576, 583, 596, – आशय 186, - उपयोग 55, 56, – एकबोध 60; - दर्शन 477; – नय 226; – महस् 619; - स्वभाव 622 10, 415, 49, 499, 509, 533, 550; - ता 452, 485, 496, 523 605, 615 59, 60; -ज्ञान 618 604 – प्रवेश 62 -कारकीमय 265; - जीव 203; - जीवनिकाय 203; - स्थानस्थ 566 53, 59, 66, 156, 157, 162, 207, 603, 607; -रस 623 172, 311, 397, 399, 523, 524, 542, 543, 544, 556, 558, 605, — विकाश 626 153 618, 619, 623, 624, 625 537 151 215; - पर्यय 71 192 357 310 387, 452, 537 176 सत्त्व सत्य सदसत् सदोऽन्तः सनातन सन्तति सन्तान समकाल समता समदृक् समय समानता समामृत समाहार 52, 376, 391, 399, 541, 545, 554, 561, 571, 572 समरस 621 समस्तशून्यता 496 समुच्चय समुच्छलत् समुदाय सर्व सविकल्प सस्पन्द सहकारिन् सहज 610 67 477 17 18, 479 104, 105, 106, 107, 108, 116, 117, 119, 189, 289, 393, 474 343; - रस 343 452 424 100 331, 466 378, 493 For Private & Personal Use Only 183, 480 303, 313 54, 357 610 514, 515 160, 198 429, 531 615 232, 302, 336, 362, 394, 430 - आत्मक 15, गत 371; -ज्ञ 279; --मय 75; - सर 246 27 612 311 211, 301, 314, 315, 384, 396, 451, 454, 455, 456, 470, 537, 538, 603, 605; —कलन 561; — व्याप्ति 556 www.jainelibrary.org

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