Book Title: Laghuprabandhsangrah
Author(s): Jayant P Thaker
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 294
________________ Jain Education International 123 बेनाड परिवसंति महिलाण पयोहरे लच्छी मुहु देखी मिलिमि २ करइ मूकन्नेन हाइ यो मे गर्भस्थितस्याऽपि राति रइ न कोइ सा रायाण दंतिदंते लहूअ उलगइ धम्म करि वर्षाकाले पयोराशिः वसगा विणु सूरिया विविरो लह [इ] अज वृत्तिं कल्पितवान् पयः शिवोऽप्यरूपी सजिनोऽवताः शेषवृत्तिविधानाय सद्धिं कार्यसहसा अहियं संधारइ सहू कोइ सरइ न एकू कज्ज स वेत्ति विश्वं न हि तस्य वेत्ता सुहाण खग्गि-अग्गे सूअ निश्चंत काई सो कहि करिस्य कज किम हउं जाउं दिणु जाइ २४.१६ ३६.९ २६.७ २१.८ २९.६ २६.४ ३१.६ २१.१७ २४.२० २६.५ २५.२० २९.७ २४.१२ २९.८ २४.१५ २६.६ २५.१८ २४.११ ३१.८ २१.१८ २१.१३ २१.१० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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