Book Title: Kyo hai Atikraman ka Atank
Author(s): Shankarlal Mehta
Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf

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Page 4
________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ दिया है। बलात्कार और नारी उत्पीड़न की घटनाएं प्रायः रोज ही घटित होती हैं । कामांध व्यक्ति संबंधों की सीमाएं लांघ रहा है। जहां नारी को सुरक्षा / संरक्षण मिलना चाहिए, वहीं वह असुरक्षित हो तो कहां जाएगी? संबंधों का अतिक्रमण भयावह है। ___ व्यक्तिगत स्वामित्व की व्यवस्था और मन की असीम लालसा ने व्यक्ति की संग्रहवृत्ति को बढ़ाया है। लोकतंत्र में उपलब्धियों और उत्पादनों का समुचित बंटवारा होना चाहिए। सबको लाभ पहुंचना चाहिए। वैसा होता नहीं। 'सब कुछ मेरे हिस्से में आ जाए, सात पीढ़ी तक बेफिक्र हो जाऊं' - इस भावना ने परिग्रह को बढ़ावा दिया है। वही हिंसा का मूल कारण है। अभाव ग्रस्त को अन्य का वैभव खटकता है। उपयुक्त विभाजन के अभाव में विषमता बढ़ती है। विषमता कुछ गलत रास्तों पर ले जाती हैं। प्रशासन में राजनीति और पक्ष बल के आधार पर आरक्षण से नौकरियों में अतिक्रमण हो रहा है। योग्यता को नकारा जाता है। पढ़ने तक के अवसर नहीं मिलते। अवजरों का समुचित बंटवारा नहीं होता, चाहे उसे उचित ठहराने का कितना ही प्रयास क्यों न हो। त्याग-तपस्या कई अभावों की स्थितियों का समाधान प्रस्तुत करती है। देश के सामने जब अनाज के अभाव की स्थिति आई तब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने सोमवार को एक समय भोजन त्यागने का आह्वान किया। खाद्य सामग्री के उपयोग में अतिक्रमण न हो। स्वाद लोलुपता न हो। श्रावक के प्रतिक्रमण की ये पंक्तियां प्रेरक हैं - 'खाद्य संयम, वस्त्र संयम, वस्तु का संयम सधे। भोग या उपभोग का संयम सफलता से बढ़े ।।' हर कहीं भीड़ है। कठिन हो रही है यात्राएं। आरक्षण की व्यवस्थाएं भी कई प्रकार के अतिक्रमणों के कारण आम आदमी को लाभ नहीं पहुंचा पाती हैं। अत्यन्त आवश्यकता की परिधि में लाने से यातायात भी संतुलित हो सकता है। इस प्रकार क्षेत्र में समस्या के मूल में अतिक्रमण की प्रवृत्ति ही है। जबकि भारत की संस्कृति प्रतिक्रमण की है। स्व संशोधन से स्वयं का दोषदर्शन होता रहे। शाम को दिवस भर के क्रिया कलापों की समीक्षा हो। स्वयं से स्वयं की आलोचना हो। कितना अतिक्रमण हुआ? कहां प्रतिक्रिया से अनुचित कार्य हुआ ? प्रमाद और अज्ञानवश भी Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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