Book Title: Kyo hai Atikraman ka Atank Author(s): Shankarlal Mehta Publisher: Z_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf View full book textPage 1
________________ । दर्शन-दिग्दर्शन क्यो है अतिक्रमण का आतंक ? - - शंकरलाल मेहता अतिक्रमण आज की एक विकराल समस्या है। कई समाचार इससे संबंधित ध्यान में आते हैं। अतिक्रमण हटाने के लिए बड़े-बड़े अभियान चलाए जाते हैं। निर्मित स्थलों को तोड़ा तक जाता है। कहीं संघर्ष होते हैं। सत्तापक्ष के लोग भी अतिक्रमण में सहयोगी बनते हैं। अतिक्रमण से सामूहिक हितों में बाधाएं आती हैं। सड़के सिकुड़ती हैं । पाद-पथिकों की पटरियां तो नदारह सी हो जाती हैं। सार्वजनिक शिक्षण संस्थाएं, उद्दान अथवा अन्य स्थल चपेट में आते हैं। कहीं अनधिकृत धार्मिक स्थल बन जाते हैं। कब्रगाहों में बस जाते हैं लोग। श्मशान भूमि तक लपेट में आती हैं। रेल पटरियों के पास जितनी भूमि सुरक्षा और विकास की दृष्टि से खुली रहनी चाहिए, नहीं रह पाती। कहीं तो पटरी से सटे हैं मकान। रेल के गुजरने पर वे धड़कते हैं। सरकारी आवास अनधिकृत रोक लिए जाते हैं। भूमि और आवास गलत आवंटित होते हैं। न्यायिक हस्तक्षेप होते हैं उन्हें निरस्त करने हेतु। अतिक्रमण आकाश में भी होता है। ऊपर की मंजिलें गलत विस्तार पा जाती हैं। सरकारी स्थलों का ही अतिक्रमण नहीं होता,लोग एक दूसरे की जमीन पर पांव फैलाने का प्रयास करते हैं। औरों के हिस्से का पानी अपने खेत की ओर मोड़ते हैं। झुठे नामांतरण भी हो जाते हैं। कहीं सरकार सड़कों, बांधों अथवा अन्य निर्माण कार्यों के लिए स्थलों और जमीन का अधिग्रहण करती है। उचित मूल्य अथवा विकल्प न मिले तो वह अनधिकृत अतिक्रमण ही होता है। रेल यात्रा में जब कोई पांव पसारता है तो दूसरे यात्री को सिकुड़ना पड़ता है। मलवा डालकर समुद्र तक को पीछे ठेला जाता है। भवन बन जाते अतिक्रमण केवल भूमि, स्थल और आवासों तक ही सीमित नहीं है। उसका 208888888 88886988888 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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