Book Title: Krambaddha Paryaya Nirdeshika Author(s): Abhaykumar Jain Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 2
________________ क्रमबद्धपर्याय और पुरुषार्थ - अज्ञानी कहते हैं कि इस क्रमबद्धपर्याय को मानें तो पुरुषार्थ उड़ जाता है; किन्तु ऐसा नहीं है। इस क्रमबद्धपर्याय का निर्णय करने से कद्बुद्धि का मिथ्याभिमान उड़ जाता है और निरन्तर ज्ञायकपने का सच्चा पुरुषार्थहोता है। ज्ञानस्वभाव का पुरुषार्थन करे उसकेक्रमबद्धपर्याय का निर्णय भी सच्चा नहीं है। ज्ञानस्वभाव के पुरुषार्थ द्वारा क्रमबद्धपर्याय का निर्णय भी सच्चा नहीं है। ज्ञानस्वभाव के पुरुषार्थ द्वारा क्रमबद्धपर्याय का निर्णय करके जहाँ पर्याय स्वसन्मुख हुई, वहाँ एक समय में उस पर्याय में पाँचों समवाय आ जाते हैं। ...पुरुषार्थ, स्वभाव, काल, नियत और कर्म का अभाव - यह पाँचों समवाय एकसमय की पर्याय में आ जाते हैं। ज्ञायकस्वभाव के आश्रय से पुरुषार्थ होता है, तथापि पर्याय का क्रम नहीं टूटता। देखो, यह वस्तुस्थिति! पुरुषार्थ भी नहीं उड़ता और क्रम भी नहीं टूटता। ज्ञायकस्वभाव के आश्रय से सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्रादि का पुरुषार्थ होता है और वैसी निर्मल दशाएँ होती जाती हैं; तथापि पर्याय की क्रमबद्धता नहीं टूटती। - पूज्यश्रीकानजी स्वामी : ज्ञानस्वभाव-ज्ञेयस्वभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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