Book Title: Kiratarjuniyam Author(s): Mardi Mahakavi, Virendrakumar Sharma Publisher: Jamuna Pathak Varanasi View full book textPage 4
________________ भूमिका भारवि का जीवन वृत्त-संस्कृत कवियों की यह विशेषता रही है कि उन्होंने अपने निजी जीवन के विषय में नहीं लिखा। भारवि भी इसके अपवाद नहीं हैं। उनके जीवन के विषय मे हम उनके एकमात्र ग्रन्थ किरातार्जुनीय से कुछ नहीं जान सको। उन्होंने अपने ग्रन्थ में अपने माता-पिता, आचार्य, आश्रयदाता, निवासस्थान इत्यादि के विषय में कुछ नहीं लिखा है। अवन्तिसुन्दरीकथा के अनुसार भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश में आनन्दपुर नामक स्थान है । वहाँ पर कौशिक वंश के ब्राह्मण निवास करते थे। बाद में इन लोगों ने नासिक्य देश में स्थित अचलपुर में निवास किया। इसी वंश में नारायणत्वामी से दामोदर की उत्पत्ति हुई। यही दामोदर बाद में भारवि नाम से प्रसिद्ध हुए। चालुक्य वंश के राजा विष्णुवर्धन से भारवि की मित्रता थी। बाद में इनकी मित्रता राजा दुर्विनीत से हो गई। तत्पश्चात् इन्हें पल्लवराज विष्णु का आश्रय प्राप्त हुआ। भारवि के तीन पुत्र थे। इनके मध्यम पुत्र-मनोरथ के चार पुत्र थे। इनमें एक वीरदत्त था, जिसका विवाह गौरी नामक कन्या के साथ हुआ। इन्हीं वीरदत्त और गौरी के पुत्र महाकवि दण्डी हुए। कहा जाता है कि दण्डी के वंशज अब हरिद्वार, वाराणसी और ग्वालियर में बसे हुए हैं। वारागसी में ब्रह्मघाट पर एक विशाल भवन (दाण्डे भवन) है, जिसमें दण्डी के वंशज रहते हैं। इससे ज्ञात होता है कि भारवि दण्डी के प्रपितामह थे । किरातार्जुनीय में शिव की प्रशंसा अनेक स्थानों में की गई है। विष्णु का उल्लेख बहुत कम हुआ है। १८वें सर्ग के अन्त की ओर शिव के प्रति अर्जुन की प्रार्थना जिस तत्परता से वर्णित है उससे ज्ञात होता है कि कवि अपने इष्ट देव के प्रति अपने भावों को प्रकट कर रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि भारवि परम शैव थे, जब कि माघ बैष्णव थे।Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 126