Book Title: Khartargaccha ke Sahitya Sarjak Shravakgan Author(s): Agarchand Nahta Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf View full book textPage 5
________________ जिन स्तवनों और विहरमान बोसो की रचना को। इन्होंने भक्ति को ओर दिखाई देता है। राजा शिवप्रसाद सितारे अपनी रचना में श्रोजिनहर्षसूरि के प्रसाद से रचे जाने का हिंद को लड़को गोमती बोबी जैनधर्म की अच्छी जानकार उल्लेख किया है। थी। यहखानदान खरतरगच्छोय हैं / २०वीं शताब्दी में नाथनगर में श्री अमरचन्द जी स्वयं ग्रन्थ रचना करने के अतिरिक्त खरतरगच्छ के बोथरा खरतरगच्छ के कट्टर अनुयायी और सुकवि थे। इनके बहुत से श्रावकों ने विद्वान यतिमुनियों से अनुरोध कर रचित दो चौवीसियां प्रकाशित हो चुकी है। ये पहले अनेकों रचनाए करवायी थी। उनसब का विवरण तेरापंथी थे श्रोजिनयश:सूरिजी महाराज के अजोमगंज देखने से खरतर गच्छीय श्रावकों के साहित्य प्रेम का अच्छा पधारने पर अनेक वादविवाद के पश्चात् ये खरतरगच्छा- परिचय मिल जाता है। नुयायो मन्दिर-मार्गी बने। खरतरगच्छ को आचरणाओं ज्ञानभंडारों को स्थापना और अभिवृद्धि में तो श्रावक आदि के विषय में आपका गहरा अध्ययन व चिन्तन था। समाज का महत्वपूर्ण योग रहा है। हजारों प्रतियां श्रीमद् देवचन्द्रजी की रचनाए आपको अत्यन्त प्रिय थी। उन्होंने प्रचुर द्रव्य व्यय कर लिखवायी। कविजनों को उपर्युक्त खरतर गच्छ के श्रावक कवियों के अतिरिक्त समय समय पर पुरष्कार आदि देकर प्रोत्साहित किया। कतिपय छोटे मोटे और भी अनेक कवि हुए हैं जिनके कई श्रावक अच्छे विद्वान थे, पर साहित्य निर्माण का उन्हें जिनभद्रसूरि गीत आदि रचनाएं हमारे अवलोकन में आई सुयोग प्राप्त नहीं हुआ। विद्वानों का सत्संग, स्वाध्याय प्रेम पर और कई खरतरगच्छीय कवियों की उन्हें बहुत रुचिकर रहा है। समय समय पर विद्वान मुनियों रचनाएं प्राप्त होगी। बीसवीं शताब्दी में तो हिन्दी गद्य- सेउन्होने गम्भीर विषयों पर प्रश्न उपस्थित कर उनसे समापद्य लेखक, कई कवि हो गए हैं जिनमें से राजा शिवप्रसाद धान किया जिसका उल्लेख कई प्रश्नोत्तर ग्रन्थों में पाया सितारेहिंद बहुत ही प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। खरतर गच्छीय यति जाता है / रायचन्द जी ने इनके खानदान के राजा डालचन्द के लिये खरतर गच्छ को कई संस्थाओं ने विद्वान बनाने की सं० 1838 में कल्पसूत्र का पद्यानुवाद किया था। उन्होंने योजना बनाई थी पर खेद है कि वह योजना सफल नहीं विचित्र मालिका और अवयदी शकुनावलो को रचना की। हो पायी / आज भी इस बात की बड़ी आवश्यकता राजाशिवप्रसाद सितारे हिन्द' के बहत से ग्रन्थ प्रकाशित प्रतीत होती है कि उचित व्यवस्था करके उध्वस्तरीय हो चुके हैं उनको दादी रत्नकुंवरि बोबी लखनऊ के राजा अध्ययन कर जिज्ञासु विद्यार्थियों को विद्वान बनाने का पूर्ण वच्छराज नाहटा की पुत्री थी। उसने सं० 1844 में माघ प्रयत्न किया जाय / खरतरगच्छ के साहित्य के संपादन बदि 5 को प्रेमरलनामक हिन्दी काव्य बनाया। कवियित्री प्रकाशन, नवीन साहित्य निर्माण में विद्वान श्रावकों की रत्नकवरि बढ़त बड़ी पंडिता थी और उसका झकाव कृष्ण- अत्यन्त आवश्यकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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