Book Title: Khartargaccha ke Sahitya Sarjak Shravakgan
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf

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Page 3
________________ 1 १७१ 1 नाम से प्रकाशित करवा दिया है । स्व० मुनि कान्तिसागरजी ने इनके एक अन्य ग्रन्थ भूगर्भप्रकाश ( श्लोक ५१) का उल्लेख किया है पर हमें अभी तक कहीं से प्राप्त नहीं हो सका है । चौदहवीं शताब्दी के श्रावक कवि समधर रचित नेमि नाथ फागु गा० १४ का प्रकाशित हो चुका है । पन्द्रहवीं शताब्दी के जिनोदयसूरि के श्रावक विद्धणु की ज्ञानपंचमी चौपई सं० १४२१ भा० शु० ११ गुरु को रची गई । कवि विद्धणु ठक्कुर माहेल के पुत्र थे, इसकी प्रति पाटण के संघ भंडार में उपलब्ध है । खरतरगच्छ के महान् संस्कृत विद्वान श्रावक कवि मण्डन मांडवगढ में रहते थे और आचार्य श्रीजिनभद्रसूरिजी के परम भक्त थे । इन्होंने ठक्कुर फेरू की भांति इतने अधिक विषयों पर संस्कृत ग्रन्थ बनाये हैं जितने और किसी श्रावक के प्राप्त नहीं है । मंत्री मंडन श्रीमाल वाहड़ के पुत्र थे इनके जीवनी के संबन्ध में इनके आश्रित महेश्वर कवि ने "काव्य मनोहर" नामक काव्य रचा है। मुनि जिनविजयजी ने विज्ञप्ति - त्रिवेणी में मंत्री मंडन संबन्धी अच्छा प्रकाश डाला है। वे लिखते हैं- "ये श्रीमाल जाति के सोनिगिरा वंश के थे। इनका वंश बड़ा गौरवपूर्ण व प्रतिष्ठावान् था । मंत्री मंडन और धनदराज के पितामह का नाम 'भंझण' था । मंडण बाहड़ का छोटा पुत्र था व धनदराज देहड़ का एक मात्र पुत्र था इन दोनों चचेरे भाइयों पर लक्ष्मीदेवी की जैसी प्रसन्न दृष्टि थी वैसे सरस्वती देवी की पूर्ण कृपा थी अर्थात् ये दोनों भाई श्रीमान् होकर विद्वान भी वैसे ही उच्चकोटि के थे ।” "मंडन ने व्याकरण, काव्य, साहित्य, अलंकार और संगीत आदि भिन्न-भिन्न विषयों पर मंडन शब्दाङ्कित अनेक ग्रंथ लिखे हैं । इनमें से 8 ग्रंथ तो पाटन के बाड़ी पार्श्वनाथ भंडार में सं० १५०४ लिखित उपलब्ध हैं: जो ये हैं-१ काव्यमंडल ( कौरव पांडव विषयक ) २ चम्पूमंडन Jain Education International ( द्रौपदी विषयक ) ३ कादम्बरी मंडन ( कादम्बरी कां सार ) ४ शृंगार मंडन ५ अलंकार मंडन ६ संगीत मंडन ७ उपसर्ग मंडन ८ सारस्वत मंडन ( सारस्वत व्याकरण पर विस्तृत विवेचन ) 8 चंद्रविजय प्रबन्ध ।" इनमें से कई ग्रंथ तो मंडन ग्रंथावली के नाम से दो भागों में "हेमचंद्र सूरि ग्रंथमाला " पाटण से प्रकाशित हो चुके हैं । "मंडन की तरह धनराज या धनद भी बड़ा अच्छा विद्वान था । इसने 'धनद त्रिशती' नामक ग्रंथ भर्तृहरि की तरह शतकत्रयीका अनुकरण करने वाला लिखा है । यह काव्यत्रय निर्णयसागर प्रेस काव्यमाला १३ वे गुच्छक में छप चुका है। इन ग्रंथों में इनका पाण्डित्य और कवित्व अच्छी तरह प्रगट हो रहा है । मंडन का वंश और कुटुम्ब खरतरगच्छ का अनुयायी था । इन भ्राताओं ने जो उच्च कोटि का शिक्षण प्राप्त किया था वह इसी गच्छ के साधुओं की कृपा का फल था । इस समय इस गच्छ के नेता जिनभद्रसूरि थे इस लिये उनपर इनका अनुराग व सद्भाव स्वभावतः ही अधिक था। इन दोनों भाइयों ने अपने अपने ग्रंथों में इन आचार्य की भूरि भूरि प्रशंसा की है। इनने जिन भद्रसूरि के उपदेश से एक विशाल सिद्धान्त कोष लिखाया था । वह ज्ञानभंडार मांडवगढ का विध्वंश होने से विखर गया पर उसकी कई प्रतियां अन्यत्र कई ज्ञानभंडारों में प्राप्त है । प्रगट - प्रभावी श्री जिनकुशलसूरिजी के दिव्याष्टक, जिसकी रचना जिनपद्मसूरिजी ने की थी, पर घरणीघर की अवचूरि प्राप्त है पर कवि का विशेष परिचय और समय की निश्चित जानकारी नहीं मिल सकी । सोलहवीं शताब्दी के श्रावक कवि लक्ष्मीसेन वीरदास के पौत्र एवं हमीर के पुत्र थे । उन्होंने केवल सोलह वर्ष की आयु में जिन वल्लभसूरि के संघपट्टक जैसे कठिन काव्य की वृत्ति सं० १५११ के श्राबण में बनाई । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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