Book Title: Ketlik Prakirna Laghu Rachano Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ केटीक प्रकीर्ण लघु-रचनाओ जुदां जुदां छूटां पानांमांथी मळी आवेली चारेक नानी रचनाओ अहीं आपी छे. तेनो परिचय आ प्रमाणे छे : १. सं. विजयशीलचन्द्रसूरि प्रथम, पांच पद्यमय, संस्कृत तीर्थंकरस्तवन छे. तेनो प्रारंभ जोतां 'तोटक' छंद समजाय छे. जो के सर्वत्र तेनो निर्वाह थतो नथी जणातो. एटले तोटक छंदानुकारी गेय गीत होवानुं मानी शकाय पांचमुं पद्य हरिगीत छन्दमां छे. कृति शुद्धप्राय छे. कर्ता अज्ञात छे; नामनिर्देश कळातो नथी, छेल्ली पंक्तिमां आवतो 'राजहंस' शब्द कर्ताना नामनुं सूचन करतो हशे ? 'ऋषभादि' 'वीर' पर्यन्त २४ जिननी नामो - पूर्वक स्तवना आमां थई छे. आ-- पण २४ जिननां नामोवाळु संस्कृत स्तवन छे- ४ पद्येोनुं आ पद्यो प्रातः काले मांगलिक पाठरूपे बोलवा - सांभळवानी अभिलाषाथी रचायुं हशे, तेम तेमां दरेक श्लोकने प्रांते आवता 'मम सुप्रभातं' शब्दोथी लागे छे. वसन्ततिलका छंद छे. कर्ता अज्ञात छे. अशुद्ध रचना छे, तेथी यथाशक्य सुधारीने आनी साथे ज फरी आ स्तवन आपेल छे. 'अमृतधुन' नामक त्रीजी रचना भाषामां छे. गेय छे. कर्ता अज्ञात छे. एक २० मी सदीनी प्रतिना छेडे आ जोवा मळतां ते यथावत् उतारी अत्रे आपी छे. रचना संवत् नो अंदाज आवतो नथी. रचनाना शब्दो वांचतां आ कोई रोगादि उपद्रवो शमाववा माटे रचाएली मंत्र-तंत्रमय रचना के 'छंद' होवानुं प्रतीत थाय छे. भाषा तथा पदच्छेद, अर्थ वगेरे समजवानुं दुष्कर होवाथी जेम छे तेमज छापी छे. कोई जाणकार आ विशे प्रकाश पाडी शके. 'अमृतधुन' एवं नाम पण भयजनक स्थितिथी बचावनार बाबत होवानुं समजावे छे. खास कोनी स्तुति हशे ते स्पष्टता नती थती, छतां बीजी कडीमां 'चंडका' शब्द छे ते 'चंडिका' नो संकेत करतो जणाय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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