Book Title: Kayotsarga Kaya se Asangta Author(s): Kanhaiyalal Lodha Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf View full book textPage 4
________________ 218 / जिनवाणी ||15,17 नवम्बर 2006] प्रभाव बलहीन हो जाता है। अर्थात् कर्म का व्युत्सर्ग हो जाता है। भोगासक्ति या कषाय का विच्छेद (क्षीण होना) कषाय-व्युत्सर्ग है। संसार से सम्बन्ध-विच्छेद होना संसार-व्युत्सर्ग है। आशय यह है कि कायोत्सर्ग से, देहाभिमान रहित होने से शरीर, संसार, कषाय व कर्म का व्युत्सर्ग हो जाता है। अर्थात् इनके बन्धनों से मुक्ति मिल जाती है। कर्तृत्वभाव से की गई प्रवृत्ति श्रमयुक्त होती है। श्रम काया के आश्रय के बिना, पराधीन हुए बिना नहीं हो सकता। काया के आश्रित तथा पराधीन रहते हुए काया से असंग होना सम्भव नहीं है। काया से असंग हुए बिना कायोत्सर्ग नहीं है। कायोत्सर्ग के बिना अर्थात् काया से जुड़े रहते जन्म-मरण, रोग-शोक, अभाव, तनाव, हीनभाव, द्वन्द्व आदि दुःखों से मुक्ति कदापि सम्भव नहीं है। अतः समस्त श्रमसाध्य प्रयत्नों एवं क्रियाओं या प्रवृत्तियों से रहित होने पर कायोत्सर्ग होता है। कायोत्सर्ग से ही निवार्ण प्राप्त होता है एवं सर्व दुःखों से मुक्ति होती है। -82/141, मानसरोवर, जयपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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