Book Title: Kayotsarga Kaya se Asangta
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

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Page 3
________________ 217 115.17 नवम्बर 20067 । जिनवाणी । से भिन्न इनका स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। इसलिये देहान्त होते ही इनका भी अन्त हो जाता है। श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसना, स्पर्शन इन्द्रियाँ एवं मन जब अपने विषयों में प्रवृत्ति करते हैं, तब इनका वस्तुओं से अर्थात् संसार से सम्बन्ध होता है। इस प्रकार शरीर का इन्द्रिय तथा वस्तुओं से एवं संसार से संबंध स्थापित होता है। अतः शरीर, इन्द्रियाँ, मन तथा इनकी विषय-वस्तुएँ एवं संसार, इन सबमें जातीय एकता है। ये सब एक ही जाति 'पुद्गल' के रूप में हैं। पुद्गल उसे कहते हैं जिसमें जल के बुबुदे की तरह उत्पत्ति और विनाश हो, जो क्षणभंगुर हो। विनाशी होने से देह से सम्बन्धित इन्द्रियाँ, मन, विषय एवं संसार की समस्त दृश्यमान वस्तुएँ नश्वर, परिवर्तनशील, अनित्य, अध्रुव, क्षणभंगुर हैं और एक ही जाति की हैं। इनका परस्पर में घनिष्ठ संबंध है। इनमें जातीय एकता है, प्रवृत्ति की भिन्नता है; परन्तु देह में निवास करने वाली आत्मा जो इन सबके परिवर्तनशील रूप व नश्वरता की ज्ञाता है, वह अपरिवर्तनशील, अविनाशी, ध्रुव व नित्य है। इस प्रकार शरीर और संसार के समस्त पदार्थ विनाशी होने से अविनाशी आत्मा से भिन्न स्वभाव वाले होते हैं। इन पदार्थों की अधीनता पराधीनता है। आत्मा देह से दो प्रकार का सम्बन्ध स्थापित करती है - अभेद भाव का तथा भेदभाव का। मेरी देह है. मेरी इन्द्रियाँ हैं ऐसा ममता रूप सम्बन्ध स्वीकार करना भेदभाव का संबंध है। मैं देह हूँ, देह का अस्तित्व ही मेरा अस्तित्व है। देह में ऐसा अहंभाव. अहंकार, अभिमान होना अभेदभाव का सम्बन्ध है। 'मैं' (अहन्ता) अभेद भाव के सम्बन्ध का और मेरापन' (ममता) भेदभाव के सम्बन्ध का द्योतक है। देह या शरीर संसार की जाति का होने से संसार का ही अंग है। अंग अंगी से अभिन्न होता है। अतः देह से सम्बन्ध स्थापित करते ही संसार से सम्बन्ध हो जाता है। यह नियम है कि जिससे संबंध हो जाता है उससे जुड़ाव हो जाता है। जुड़ाव होना. अर्थात् किसी से जुड़ना ही उससे बन्धना है। सम्बन्ध शब्द बना ही 'बन्ध' शब्द से है। इन्द्रियाँ देह की अंग हैं। अतः देह से सम्बन्ध होने से इन्द्रियों से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इन्द्रियों का कार्य शब्द, रूप आदि विषयों में प्रवृत्ति व कर्म करना है। विषयों का संबंध वस्तु से है और वस्तुओं का सम्बन्ध संसार से है। इस प्रकार देह का इन्द्रियों से, इन्द्रियों का विषयों से, विषयों का वस्तुओं से और वस्तुओं का संसार से सम्बन्ध स्थापित होता है। अतः देह से सम्बन्ध स्थापित करना समस्त संबंधों का एवं समस्त बन्धनों का कारण है। बन्धन-मुक्त होने के लिए सम्बन्ध-मुक्त होना आवश्यक है। संबंध-मुक्त होने के लिए देह से सम्बन्ध विच्छेद करना आवश्यक है। देह (काया) से सम्बन्ध विच्छेद होना कायोत्सर्ग है। काया का इन्द्रियों से अंग-अंगी संबंध है। अतः कायोत्सर्ग से इन्द्रियों से और उनके विषयों से सम्बन्ध-विच्छेद हो जाता है जिससे विषयासक्ति (कषाय) से और विषयों से सम्बन्ध-विच्छेद हो जाता है। विषयासक्ति से रहित होने पर कर्तृत्व व भोक्तृत्व भाव का अन्त हो जाता है। जिससे कर्मबन्धन का कार्य बन्द हो जाता है और कर्मोदय का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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