Book Title: Kavyamala
Author(s): Durgaprasad Pandit, Kashinath Pandurang Parab
Publisher: Nirnaysagar Press
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________________ 1 अङ्कः] कर्णसुन्दरी। किमु विततनितम्बाभोगसंवाहवेग- स्खलनमुखरचञ्चत्काञ्चयः संचरन्ति / / 17 // (अग्रतो विलोक्य / सविस्मयम् / ) तुलाकोटिक्वाणप्रणयिभिरवाप्तैरिव गते विलासे शिष्यत्वं भवनकलहंसैरनुगता / सुधामुग्धैरङ्गैः शशिन इव गर्भाद्विगलिता कुरङ्गाक्षी केयं तिलकयति लीलावनभुवम् // 18 // (पुनरवलोक्य / ) उच्चक्षुपञ्जरचकोरकचळमाण पूर्णेन्दुसुन्दरतराननचन्द्रिकेयम् / देव्याः कथं परिजनप्रमदाजनेन नीतैव मन्दिरममन्दकुतुहलायाः // 19 / / (विचिन्त्य / ) एताः काश्चन निश्चलालकलताश्चिन्तातिरेकश्रम स्विद्यद्गालतटा यदम्बरतले भ्राम्यन्ति वामभ्रवः / श्रीचालुक्यकुलोद्वहे कलयति व्यक्षोपचर्यामिह खस्ता काचन लिङ्गलङ्घनवशात्तद्वेद्मि विद्याधरी // 20 // (सचमत्कारम् / ) सत्यस्वप्नः सांप्रतममात्यः / तेनैवंविधेन व्यतिकरण मां प्रति भर्तुश्चक्रवर्तित्वमभिहितमासीत् / तत्परिजनमुखेन जानीते निपुणा कथंचन मनाग्देवी न सीता यथा वारंवारमसौ तथा नरपतेः संदर्शनीया मया / अन्योन्यं हृदये तयोः स्टहयतो वेऽतिभूमि गते पर्याप्तः कुसुमायुधः स भगवान्पारावताराय नः / / 21 / तद्वनु / सांप्रतमेव लीलोद्याने भवनवलभौ रत्नवातायनेषु ___ क्रीडासौधे तदनु मदनोद्यानशालासु बालाम् / 1. आदर्शपुस्तके 'संवाह-' इत्यस्य संबाध-' इति शोधनं कृतमस्ति.
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