Book Title: Kavyamala
Author(s): Durgaprasad Pandit, Kashinath Pandurang Parab
Publisher: Nirnaysagar Press
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________________ 1 अङ्कः] . कर्णसुन्दरी / तल्लावण्यरसंस्य शेषममला सा शारदी कौमुदी * तनिर्मितिमानसूत्रमपि तच्चापं मनोजन्मनः // 26 // अपि च / / मजन्तीव दृशः कुरङ्गकदृशो लीलाविलासोर्मिषु भ्रूलेखा सृजतीव विभ्रमशतैः कामाय दामावलिम् / लावण्यामृतनिर्झरः स्नपयतीवाङ्गानि किं चाधर स्तारां सिञ्चति पद्मरागकिरणोत्सेकैरिवैकावलीम् // 27 // अपि च / त्रिवलिवलितलीलालोलवेणीकलापं किमपि रसविभूतेस्तिर्यगाकेकराक्षम् / कलितकुटिलकण्ठं दर्शनोत्कण्ठयास्या लिखितमिव ममान्तस्तन्मुखं मन्मथेन // 28 // विदूषकः-भो, किं वि पुच्छामि / (क) राजा-(तदवधीरणेन i) विधत्ते निःसेकं सहजरमणीयस्तरुणिमा _ वपुर्वली चित्रैः कवचयति लीलाकिसलयैः / विलासव्यापारः किमपि कमलस्थो नयनयो... रनङ्गं तन्व्यङ्ग्यास्त्रिभुवनजिगीषू रचयति // 29 // विदूषकः-भो, का एसा लीलावणप्पवेसे पिअवअस्सेण दिहा ।(ख) राज़ा- . ध्यानान्ते विधिना प्रणम्य चरणौ चन्द्रार्धमौलेरहं ___ कैश्चिज्जप्यपदैः प्रदक्षिणायितुं यावत्समभ्युद्यतः / (क) भोः, किमपि पृच्छामि। (ख) भोः, कैषा लीलावनप्रवेशे प्रियवयस्येन दृष्टा / 1 'अपि च' इत्यादर्श नास्ति. .
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