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काव्यप्रकाश 'जैसलमेर ग्रन्थोद्धार विभाग' खोला गया है और उसके द्वारा जैसलमेर के जैन ग्रन्थभंडार में प्राप्त राष्ट्रीय महत्व के सभी ग्रन्थों की माइक्रोफिल्म एवं फोटो स्टेट कोपी आदि बनवा कर, उन्हें 'राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर' में सुरक्षित रखने का आयोजन हो रहा है ।
सन् १९४३ में हमने जैसलमेर में, ऊपर सूचित जिन अनेकानेक ग्रन्थों की प्रकाशन करने की दृष्टि से प्रतिलिपियां करवाई थीं, उनमें से कई ग्रन्थों के प्रकाशन का कार्य, उक्त रूपसे सिंघी जैन ग्रन्थमाला के अतिरिक्त, इस राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला द्वारा भी करने का हमने उपक्रम किया और यथासाधन कई ग्रन्थरन इस माला में भी मुद्रित होने के निमित्त प्रेसों में दिये गये। उन्हीं ग्रन्थरत्नों में से यह एक प्रस्तुत ग्रन्थरत्न 'काव्यप्रकाशसङ्केत' है जो आज इस रूप में विद्वानों के करकमल में उपस्थित हो रहा है।
संस्कृत साहित्य के इस सुप्रसिद्ध एवं सुप्रतिष्ठित काव्यशास्त्र का सम्पादन-कार्य हमने अपने बहुश्रुत विद्वान् मित्र श्रीयुत रसिकलाल छो० परीख को समर्पित किया जो इस विषय के बहुत ही मर्मज्ञ एवं गभीराध्ययनशील, प्राध्यापक हैं। बहुत वर्षों पहले इनने इसी विषय के एक असाधारण महत्त्व के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ हेमचन्द्राचार्यकृत काव्यानुशासन का संपादन किया था; जो विद्वानों और विद्यार्थीवर्गके लिये बहुत ही अभ्यसनीय पाट्यग्रन्थ सा बना हुआ है । अहमदाबाद की सुप्रसिद्ध गुजरात विद्यासभा जैसी बहुविध कार्यकारिणी संस्था के मुख्य कार्यवाहक नियामक (डायरेक्टर) होने के साथ, गुजरात युनिवर्सिटी की विविध प्रवृत्तियों के एक प्रमुख सदस्य रहने के कारण, इनको समयका बहुत संकोच होने पर भी, हमारी प्रेरणा के वशीभूत हो कर, इसके संपादन - कार्य में इनने जो असाधारण परिश्रम उठाया है तदर्थ हम इनके प्रति अपना हार्दिक कृतज्ञभाव प्रकट करना चाहते हैं।
महाकवि मम्मट के काव्यप्रकाश की ख्याति और व्यापकता संस्कृत - साहित्य के अध्ययन - क्षेत्र में सुविश्रुत है। इस पर अनेक विद्वानोंने अनेक व्याख्याएं की हैं और उनमें से अनेक व्याख्याएं प्रसिद्ध भी हो चुकी हैं। प्रस्तुत प्रकाशन द्वारा जो व्याख्या प्रसिद्ध हो रही है, वह अभी तक प्रायः विद्वद्वर्ग में अज्ञात सी है । क्यों कि इस की उपलब्धि अभी तक अन्यत्र कहीं नहीं हुई है। जैसलमेर के ग्रन्थभंडार में ही इस की एकमात्र संपूर्ण और सुलिखित प्राचीन ताडपत्रीय प्रति विद्यमान है। इस दृष्टि से इस का प्रकाशन एक महत्त्व का कार्य समझे जाने योग्य है। दूसरा महत्त्व इस का यह है कि काव्यप्रकाश के अनेकानेक व्याख्यानों में इस का स्थान सर्वप्रथम नहीं तो द्वितीय तो अवश्य ही है। काव्यप्रकाश पर