Book Title: Kaushik Ek Aprasiddha Vaiyakaran
Author(s): Nilanjana Shah
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 9
________________ अनुसंधान - १७•211 के आ धातुसूत्रमां शिजि साथे पिजिनो पाठ थवो जोईए. अव्यक्त शब्द ए अर्थमां पिजि धातु कोई पण धातुपाठमां मळतो नथी. ग. बा. पल्सुलेनो आ संदभां एवो मत छे के आ धातु प्रमाणमां सहेज पाछळथी उमेरायेलो हशे के गभ नेम पण एनी साथे ज्यारे ए उमेरायो त्यारे एनो अर्थ संकळायेलो न हतो. " जान्त होवाथी तेने शिजि जोडे मूकीने कोईए एनो अर्थ अव्यक्त शब्द कर्यो, तो तेना पछीना धातु पद सम्पर्के साथे एने सांकळीने अन्यए सम्पर्के के सम्पर्चने अर्थ कर्यो तो केटलाके पिंगलः पिंगलकः जेवा शब्दोनो मूळ धातु कल्पीने एनो अर्थ 'वर्ण' कर्यो, अने अमुक वैयाकरणोए पिञ्जुल: (घासनो पूळो) साधे एनो मेळ बेसाडीने तेनो अर्थ 'अवयव' पण कर्यो. बोपदेवना कवि. (पृ. २८) मां पिजनो अर्थ वर्णपूजयोः एम मळे छे, जेनुं एक पाठांतर वर्णकूजयोः मळे छे अने कूजनो अर्थ अव्यक्त शब्द ज थाय छे. कौशिक अने काश्यप पिजिनो अर्थ 'अव्यक्त शब्द' करे छे, जेनुं वर्तमानकाळनं रूप पिंक्ते थाय छे. गुजराती भाषामा रू ने पिंजवुं, रूनुं पिंजण वगैरे शब्दो वपराय छे अने तेमनो आ पिज धातु साथै संबंध कदाच दर्शावी शकाय. (पृ. १८० ) - पुचि इति कौशिक: १९. पृची सम्पर्क I क्षीत. पृङ्कते । माधावृमां (पृ. ३३६ ) मां अदादि गणना आ धातुसूत्रना संदर्भमां सायणे नोंध्युं छे के इदित्तृतीयान्तः इति कौशिकः । एटले अर्थ एवो थयो के कौशिक पृचीने बदले पूजि पाठ आपे छे. क्षीतमां आ बाबत कोई चर्चा नथी, पण सायणे स्पष्ट कयुं छे के सम्पृचादि सूत्र ( ३. २. १४२) मां काशिकावृत्ति' मां स्पष्ट लख्युं छे के 'पृची सम्पर्के' इति रुधादिर्गृह्यते न त्वदादिः । तेथी पृची ए स्वरूप बराबर छे, वळी उणादिवृत्तिमां पर्जन्यः शब्दनी व्युत्पत्ति 'अर्जेः पर्ज वा' ए धातुथी अन्यः प्रत्यय लगाडीने करवामां आवी छे (उणादिवृत्तिमां पर्जन्य: ३-८-६ सूत्र ज छे ने सिद्धांतकौमुदीमां पृषु सेचने परथी तेनी व्युत्पत्ति करवामां आवी छे). आ उपरांत शाकटायन पण पृचै सम्पर्चने । सूत्र आपे छे. तेथी पृची ज बराबर छे अने पूजि ए धातुनुं स्वरूप अयुक्त छे तेम सायण दलील करे छे धाप्र (पृ. ७९ ) मां अने काशकृत्स्त्र (पृ. १२६ ) मां पूजी छे, कवि. मां पृची (पृ. १७) अने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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