Book Title: Karmasiddhanta ki Upayogita
Author(s): Devendramuni Shastri
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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Page 5
________________ इसके अतिरिक्त डॉ. ए.बी. शिवाजी लिखते हैं -"मसीही धर्म में कर्म के साथ ही अनुग्रह का बहुत अधिक महत्व है, क्योंकि उद्धार अनुग्रह के ही कारण है। यदि ईश्वर अनुग्रह न करे तो कर्म व्यर्थ है।" बाईबिल में लिखा है -"जो मुझ से 'हे प्रभु हे प्रभु' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेगा, क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन् परमेश्वर का दान है, और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे।” “....तो उसने (अनुग्रह करके) हमारा उद्धार किया, और यह धर्म के कार्यों के कारण नहीं, जो हमने आप (स्वयं) किए, पर अपनी दया के अनुसार नये जन्म के स्नान, और पवित्र आत्मा (का अनुग्रह) हमें नया बनाने के द्वारा हुआ।" १२ उपर्युक्त मन्तव्य से यह स्पष्ट है कि ईश्वर कर्तृत्ववादी मसीही धर्म में नैतिक-अनैतिक कर्मों (आचरणों) का उतना महत्व नहीं, जितना ईसामसीह (प्रभु) पर विश्वास और उसका अनुग्रह प्राप्त करने का है। ईसामसीह का विश्वास और अनुग्रह प्राप्त करके जिन्दगी भर अशुभ (पाप) कर्म करने वाला डाकू भी पवित्र जीवन जीवी ईसामसीह के साथ स्वर्गलोक में स्थान पा सकता है, इसके विपरीत शभकर्म करने वाला अय्यूब नामक धर्मी व्यक्ति परमेश्वर या ईसामसीह (प्रभु) का विश्वास और अनुग्रह न पा कर विपत्ति और दुःख उठाना है। ११ विश्वास और अनुग्रह पर जोर, अनैतिकता से बचने पर नहीं यही कारण है कि हत्या, दंगा, अन्याय, अनीति, अत्याचार, व्यभिचार, ठगी, फूट, ईर्ष्या, युद्ध, कलह आदि अनैतिक एवं पाप कर्म करने वाला व्यक्ति यह समझ कर कि ईश्वर या ईसामसीह पर विश्वास और उनका अनुग्रह प्राप्त करने मात्र से पापकर्म का कोई भी कटुफल नहीं मिलेगा, घड़ल्ले से ये अनैतिक पाप कर्म करता रहता है। ईसाई धर्म में पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की मान्यता न होने से पापी मनुष्य यह भी समझता है कि पूर्वजन्म के कर्मों का कोई उत्तरदायित्व नहीं है, और न ही पूर्वजन्म के कर्मों को भोगना है, साथ ही इस जन्म में किये हुए पापकर्म का फल भी अगले जन्म (पुनर्जन्म) में नहीं मिलेगा। अतः जितना जो कुछ हिंसादि पापकर्म किया जा सके, करलो और आनन्द से जीओ। यद्यपि बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट और न्यु टेस्टामेंट में दस-दस आज्ञाएँ (कमाण्डमेंट्स) ईसामसीह की अंकित हैं, १४ परन्तु उन्हें मानकर और बार-बार पढ़-सुन कर भी ईश्वीय विश्वास और अनुग्रह प्राप्त कर लेने के चक्कर में लोग अनैतिक कर्म करने से नहीं चूकते। १२. (क) जिनवाली कर्मसिद्धान्त में प्रकाशित मसीही धर्म में कर्म की मान्यता लेख से पृ. २०८ (ख) मत्ती ७:२१ (ग) तीतुस ३:५ १३. (क) जिनवाणी कर्मसिद्धान्त विशेषांक में प्रकाशित 'मसीही धर्म में कर्म की मान्यता' से पृ. २०७ (ख) लूका २३:३९-४३ (ग) देखे, अय्यूब १२२ १४. देखे बाईबिल के गिरिप्रवचन ओल्ड टेस्टामेंट तथा न्यूटेस्टामेंट। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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