Book Title: Karm Swarup Prastuti
Author(s): Rameshmuni
Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf

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Page 7
________________ चतुर्ष खण्ड | 20 मेरे सम्बन्ध में वेदव्यास के उद्गार जिस प्रकार बछड़ा हजारों गायों के बीच में भी अपनी मां को ढंढ लेता है, उसी प्रकार पहले के किये हुए कर्म भी कर्ता को ढूंढ लेते हैं।' महात्मा गौतम-बुद्ध ने भी. कहीं कहीं मेरी पुष्टि की है "हे भिक्षुनो ! इक्यानवे कल्प में मेरे द्वारा एक पुरुष की हत्या हुई थी, उसी कर्मविपाक के कारण मेरे पांवों में कांटे चुभे हैं / अब मैं अधिक विस्तार की ओर न जाकर सार के रूप में यही कहूँगा कि-कम से कम मानवों को अन्याय, अनीति, अत्याचार, अनाचार, भ्रष्टाचार, विश्वासघात, धोखाधड़ी, मार-काट एवं हिंसा-हत्या इत्यादि अशुभ कर्मों से बचना चाहिए। सेवा, उपकार, नीति, न्याय-ईमानदारी, सत्यपरायणता, अहिंसा, तपाराधना, जपसाधना इत्यादि शुभ और शुद्ध करणी से अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है और पात्मा निर्मल भी। "कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः।" जब सम्पूर्ण मेरा (कर्म का) रिश्ता प्रात्मा से अलग हो जाता है तब मेरे (कर्म के) प्राधीन रही हुई वह प्रात्मा निष्कलंक-निष्कर्मी होकर सिद्ध-बुद्ध की श्रेणी में पहुँच जाती है। ___आपके प्रति मेरी मंगलकामना है। आपका भविष्य शुभ कर्मों से समृद्धिशाली बने / आप धर्माराधना में दत्तचित्त हों ताकि आवागमन के चक्र से मुक्ति पा सके और मुझे भी विराम-पाराम मिल सके / सुज्ञेषु किं बहुना ! D 1. यथा धेनुसहस्रेषु वत्सो विदति मातरम् / एवं पूर्वकृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति / / 2. इत एकनवतेः कल्पे, शक्त्या में पुरुषो हतः / तेन कर्मविपाकेन, पादे विद्धोऽस्मि भिक्षवः॥ -बौद्ध ग्रंथ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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