Book Title: Karm Swarup Prastuti Author(s): Rameshmuni Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 5
________________ चतुर्थ खण्ड | १८ कोई भिखारी बनकर फिरता है तो कोई दातार। कोई अच्छे काम करने के इच्छुक हैं तो कोई बुरे कार्यों के रसिक । कोई जन-जन के प्रादरणीय बने हुए हैं तो कोई जन-जन के कोप के भाजन बने हुए हैं। कोई सुबुद्धि सुगुणी हैं तो कोई दुर्बुद्धि-दुर्गुणी हैं। कोई धर्मात्मा तो कोई अधर्मात्मा है । कोई हिंसक है तो कोई अहिंसक है। कोई सदाचारी तो कोई दुराचारी । इस प्रकार सभी प्राणी रात-दिन अच्छे अथवा बुरे कर्म करने में लगे हुए हैं। कोई संसारी आत्माएँ काययोग से तो कोई वाकशक्ति से और कोई मनोयोग से कर्मोपार्जन कर रहे हैं। यह सब क्या ईश्वर प्रेरित हैं ? कृत कर्म कदापि निष्फल नहीं जाते हैं । फलस्वादन करवाकर ही छुटेंगे। तो शुभाशुभ विपाक का अधिकार उसी ईश्वर पर रहा न? क्योंकि-"ईश्वर के बिना इच्छा के एक पत्ता भी नहीं हिलता है।" यह मान्यता ईश्वरवादियों की है। मतलब यही कि-वह ईश्वर सृष्टि के समस्त देहधारियों के कर्म-विपाक का जिम्मेदार है। इस तरह वह ईश्वर सारी दुनिया के कर्मों के गुरुतर भार से कितना भारी होगा? इससे तो ईश्वर कर्जदार हो गया, फिर वह कर्म-कर्ज से मुक्त कैसे होगा? क्योंकि संसारी प्राणी सतत कर्म करने में लगे हुए हैं । विपाक भी इसीलिए ईश्वर पर मंडरायेगा। कुछ समझ में नहीं पाता, यह कैसा सिद्धान्त है कि कर्म करते जायें संसारी प्रात्माएँ और फल भोक्ता हो ईश्वर, चोरी करे मानव और दण्ड भोगे ईश्वर ! दरअसल ईश्वर कर्तव्य-सिद्धान्त प्रबुद्ध मनीषी के मानव धरातल पर खरा नहीं उतरता, यह सृष्टि अनादि काल से रही है और अनन्त काल तक रहेगी। इसे न किसी ने बनाया और न ही कोई इसके अस्तित्व को मिटा पायेगा। सभी प्राणी अपने अपने किये कर्मों का फल स्वयं भी भोगते हैं अर्थात देहधारी मन-वचन-काया में जैसा जैसा क्रियाकलाप करेगा उसे मैं (कर्म) वैसा वैसा फल देता रहूँगा। - भगवान् महावीर ने मेरे मत का यथातथ्य समर्थन किया है कर्म से ही समग्र उपाधियाँ-विकृतियाँ पैदा होती है- सभी प्राणी अपने कृत कमों के फल-भोगने में स्वाधीन हैं। और नाना योनियों में कर्मों के कारण भ्रमण करते हैं।' जैसा किया हा कर्म वैसा ही उसका भोग मिलता है । आत्मा अकेला ही अपने किये हए दुःख भोगता है।४ अतीत में जैसा भी कुछ कर्म किया गया है, भविष्य में वह उसी रूप में उपस्थित होता है । और भी सुनिये एक बीमार है, उसके सम्बन्ध में विविध विचारधारायें उठ खड़ी होती हैं । डॉक्टर कहेगा--तुम्हारे शरीर में वात-पित्त-कफ का जोर बढ़ गया है। नैमित्तिक-ज्योतिषी कहेगातुम्हारी नाम राशि पर क्रूर ग्रह का प्रकोप है, इसी कारण तुम्हें परेशानी उठानी पड़ रही है। ग्रहशांति करवाना आवश्यक है। मंत्रवेत्ता कहेगा-बीमारी कुछ नहीं है, अमुक प्रेतात्मा १. कम्मुणा उवाही जायइ - प्राचा. सू. १।३।१ । २. सव्वे सयकम्मकप्पिया -सूत्र. सू. १।२।६।१८ । ३. जहा कडं कम्म तहासि भारे -सूत्र. सू. १।५।१।२६ । ४. एगो सयं पच्चणुहोइ दुक्खं -सूत्र. सू. १।५।२।२२ । ५. जं जारिसं पुव्वमकासि कम्म, -सूत्र सु. ११५॥२।२३ । तमेव आगच्छति संपराए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 3 4 5 6 7