Book Title: Kanhadde Prabandh Sanskrutik Drushti Se
Author(s): Bhogilal J Sandesara
Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf

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Page 7
________________ राजकवि पद्मनाभ ‘कान्हड़दे प्रबन्ध' के प्रारम्भमें सामन्तसिंहका केवल नामोल्लेख करके कान्हड़देवका चरित्र ही वर्णन कर देता है। कान्हड़देव, पृथ्वीराज एवं हम्मीरको श्रेणीका वीर योद्धा, नेतृत्व शक्ति सम्पन्न था और उसकी स्मृति साहित्यमें उसके पितासे भी विशेष रूपसे सुरक्षित है। सामन्तसिंहका देहान्त सं० १३६२ या १३६३ (ई० सं० १३०६ या १३०७) में हुआ था। अर्थात् पाटन और सोमनाथके पतनके पश्चात् शीघ्र ही मुस्लिम सैन्य और जालौरके चोहानोंके प्रथम युद्धमें वह विद्यमान था। किन्तु, इस सम्बन्धमें पद्मनाभ मौन ही है। काव्यके प्रारम्भमें कान्हड़देवका उल्लेख सामन्तसिंहके पुत्रके रूपमें इतना ही किया है जालहुरउ जगि जाणीइ, सामन्तसी सुत जेउ तास तणा गुण वर्णवू, कीरति कान्हडदेउ 'कान्हड़देप्रबन्ध'के कथनानुसार जालौर का पतन सं० १३६८ (खंड १ कड़ी ५) (ई० सं० १३१२) में हुआ था और इस अंतिम युद्धमें कान्हड़देव वीरगतिको प्राप्त हो गया। राजस्थानके चौहान राजा-जालौर, नाडोल, सपादलक्ष और चन्द्रावतीके शासक गुजरातके माण्डलिक थे। इसमें जालौर और चन्द्रावतीके साथ पाटणका सम्बन्ध सर्वोत्तम था। सं० १३४८ में फिरोज खिलजीने जालौरके राज्यपर आक्रमण किया और दक्षिणकी ओर ठेठ सांचोर तक वह आ पहुँचा। तब सारंगदेव वाघेलाने जालौरके चौहाणोंकी सहायताकर मुल्लिम सेनाको वापस खदेड़ दिया था। ('विविधतीर्थ कल्प', पृ० ३०) इसके कुछ वर्षोंके पश्चात् अलाउद्दीनका आक्रमण हुआ था। पारस्परिक सहायताके इस सम्बन्धके कारण भी कान्हड़देवने अलाउद्दीनकी सेनाको मार्ग देनेसे इन्कार किया होगा। गुजरातके राजाने माधव ब्राह्मणका जब तिरस्कार किया तभी उस घटनामेंसे विग्रह हुआ इस आशयका उल्लेख 'कान्हड़देप्रबन्ध'के प्रथम खण्डकी तेरहवीं कड़ीके उत्तरार्द्ध में हम पहले देख चुके हैं। इसके बाद २५-२६ वीं कड़ीमें अलाउद्दीनके दरबारमें कर्ण वाघेलाके व्यवहारके सम्बन्धमें फरियाद करते समय माधव महेताके मुखके निम्न शब्द पद्मनाभने रखे हैं पहिलु राइ हूँ अवगण्यउ, माहर उ बंधव कैसव हण्यउ तेह धरणी धरि राखि राइ, एवड्ड रोस न सहिण उजाइ । कर्णने मंत्रीकी पत्नीका अपहरणकर लेने की अनुश्रति सही रूपये प्राचीन होना चाहिये किन्तु इसका विधिवत् वर्णन करनेवाले लेखकोंमें पद्मनाभ अग्रगण्य है। इस अनुश्रुतिको विश्वनीयताके सम्बन्धमें इतिहास शोधकोंमें मतभेद है। हम, यहां इस चर्चा में नहीं उतरते हैं। किन्तु इतना तो निश्चित है कि कर्ण और माधवके मध्य वैमनस्य होनेका कारण मात्र कर्णके राज्यारंभके समान ही पुराना था और बादमें पीछेसे इस सम्बन्धमें अन्य कारण सम्मिलित हो गये होंगे। संस्कृतके 'नैषधीय चरित' महाकाव्य परको चण्डू पंडित द्वारा की गई सुप्रसिद्ध टीका सं० १३५३ में धोलकामें की गई थी। सारंगदेवका देहान्त भी इसी वर्ष में हुआ था। सारंगदेवके शासनकालका यह अन्तिम वर्ष और कर्णके शासनकालका प्रथम वर्ष था। चण्डू पण्डितने प्रस्तुत काव्यके आठवें सर्गके ५९ में श्लोककी टीकामें लिखा है-“वर्तमान महामात्य माधवदेवने उदयराजको गद्दीपर बिठानेका प्रयत्न करते समय महाराज श्रीकर्णदेवकी भूमिमें सर्वत्र लूट-खसोट चलनेसे द्वराज्यके कारणसे लोगोंमें विरक्ति उत्पन्न हो गई (यथा-इदानीं महामात्य श्री माधवदेवेन श्री उदयराजे राजनि कर्तुमारब्धे सति महाराजश्रीकर्णदेवस्य भूमौ सर्वत्र सर्वजनानां वित्तेऽपह्रियमाणे द्वैराज्यात लोके विरक्तिरजनि।) इसका यह अभिप्राय हुआ कि माधव मंत्री ऐसा नहीं चाहते थे कि कर्ण राज-गहीपर २८ भाषा और साहित्य : २१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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