Book Title: Kandmul Bhakshya Bhakshya Mimansa
Author(s): Amarmuni
Publisher: Z_Pragna_se_Dharm_ki_Samiksha_Part_02_003409_HR.pdf

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Page 9
________________ जार भी एक फल विशेष ही प्रमाणित करती है। यदि आलू मूल में सचमुच ही कन्द होता, तो टमाटर के साथ फल के रूप में कैसे विकास प्राप्त करता? आलू आदि-कन्दमूल के खाने के संबंध में मेरा कोई भी व्यक्तिगत आग्रह नहीं है। मैं नहीं कहता कि खाना ही चाहिए। जो साधक अपनी इच्छा का निरोध कर कन्द-मूल या शाक-सब्जी आदि को त्याग करते हैं, मैं उनका अनुमोदन करता हूँ। प्रस्तुत चर्चा पर से मैं केवल एक ही बात स्पष्ट करना चाहता हूँ कि जो भी विधि या निषेध हो, वह प्रामाणिक हो, शास्त्रीय आधार पर हो। अपनी कल्पित मान्यता के आधार पर, शास्त्र-द्वारा प्रमाणित मौलिक सत्य का अपलाप करना और पारस्परिक निन्दा के वितण्डावाद में उलझना ठीक नहीं है। कन्दमूल भक्ष्याभक्ष्य मीमांसा 169 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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