Book Title: Kalpsutra me Bhadrabahu Prayukta Yag Shabda Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ 107 गण -परंपरामें प्रचलित है, और उसका मुख्य अर्थ है यज्ञ" । यज्ञ का तात्पर्य - स्मार्त्त उन विविध यज्ञोंसे हो सकता है जो कि ब्राह्मणीय कर्मकाण्डमें वर्णित हैं । किन्तु कल्पसूत्र स्वयं जैन आगमग्रंथ है और फिर एक जैन धर श्रमणने उसकी रचना की है, तो उसमें यज्ञार्थक 'याग' शब्दका प्रयोग ला कैसे हो सकता है ? | यह स्वयंस्पष्ट है कि याग शब्दका ऐसा प्रयोग ग्रंथकार महर्षिके ब्राह्मणसंस्कारों को ही उजागर करता है । किन्तु उनके दिमागमें इस शब्द प्रयोग के समय 'याग' का तात्पर्य 'यज्ञ' परक नहीं है, यह भी उतना ही स्पष्ट है । फिर भाग' जैसे ब्राह्मण-परंपरामें रूढ शब्दको जैन परंपरामें प्रयुक्त करना, यह उनके अधिकारमण्डित सामर्थ्यका भी द्योतक बन जाता है । 1 विवरणकारों के अनुसार ‘याग' शब्द यहां 'पूजा' के अर्थ में प्रयोजित है भगवान महावीरके पिता तेईसवें तीर्थंकर श्रीपार्श्वनाथकी परंपरामें श्रावक थे, ह बात तो शास्त्रसिद्ध है । और उन्होंने अपने यहां पुत्रजन्म हुआ, इस निमित्त को कर अनेकविध पूजाएं की व करवाई थी । उसी पूजाके अर्थमें यहां 'याग' द प्रयुक्त है; अन्य अर्थका यहां अवसर ही नही है । " कोश भी 'याग' के इस अर्थको समर्थित करता है, अतः 'याग' को जार्थक माननेमें आपत्ति भी नहीं होगी । यद्यपि यहां एक प्रश्न हो सकता है : उक्त सूत्रमें कर्त्ताने 'जाए य दाए य ए य दलमाणे य दवावेमाणे य' ऐसा लिखा है। वहां क्रिया है देनेकी व लानेकी, जिसका अनुबंध 'दाय' व 'भाग' इन दोनों के साथ तो ठीक ढंगसे हो ता है। किन्तु 'याग' के साथ 'दलमाणे य दवावेमाणे य' का संबन्ध किस यह हो पाएगा ? | 'याग' तो करने कराने की चीज है, 'देने दिलाने' की नहीं । यद इसी प्रश्नको महत्त्व देकर आ. देवेन्द्रमुनि शास्त्रीने अपनी व्याख्यामें" रंगका अर्थ 'पूजा सामग्रियां' कर दिया है, जो कि 'दी जा सकती है' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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