Book Title: Kalpsutra me Bhadrabahu Prayukta Yag Shabda
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 1
________________ कल्पसूत्रमें भद्रबाहु-प्रयुक्त 'याग' शब्द -विजयशीलचन्द्रस आर्य भद्रबाहुस्वामी भगवान महावीरकी शिष्य-परंपरामें षष्ठ पट्टधर । एवं अन्तिम श्रुतकेवली भी । श्वेताम्बर-परंपरा-मान्य आगमग्रन्थ श्रीकल्पसू में उनको आर्य यशोभद्रके शिष्य प्राचीनगोत्रीय आर्य भद्रबाहुके नामसे पहच गए हैं। जैन श्रमणसंधके प्रधान श्रुतधरपुरुष होनेके अधिकारसे उन्होने बहुत सा आगमिक ग्रंथरचनाएं की है, जिसमें एक है दसासुअक्खंध सूत्र । छेदसूत्र रूपसे प्रसिद्ध इस आगमग्रंथका आठवाँ अध्ययन है कल्पसूत्र । इस कल्पसूत्र स्वयं श्रीभद्रबाहुस्वामीने श्रीमहावीरस्वामी-प्रमुख तीर्थंकर चरित्र, स्थविरावल तथा सामाचारी - इन तीन विभागोंमें बांट दिया है। यह समूचा कल्पस श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघकी परंपरामें, कई शतियों से, प्रतिवर्ष, पर्युषणा प के पिछले पांच दिनोमें, सर्वत्र एवं जाहिरमें पढ़ा जाता है। साधुगण इस सार्थ-सटीक वाचन करता है और उपस्थित शेष सर्व संघ श्रवण करता है। चूंकि श्रीभद्रबाहु जन्मना ब्राह्मण थे और कर्मणा जैन श्रमण थे, अतः दोनों परंपराओंको संकेतित व संकलित करनेवाला एक विलक्षण शब्द प्रयो उन्होने कल्पसूत्रमें किया है, जो उनके जैसे समर्थ श्रुतधर ही कर सकते थे। व शब्द है - 'याग'। सूत्र इस प्रकार है : ___ "तए णं से सिद्धत्थे राया दसाहियाए ठिइपडियाते वट्टमाणीए सइए। साहस्सिए य सयसाहस्सिए य जाए य दाए य भाए य दलमाणे य दवावेमाणे य" प्रसंग ऐसा है कि वर्धमानस्वामीके जन्म होने के पश्चात् उनके पिता राई सिद्धार्थ दशदिवसीय स्थितिपतिता अर्थात् कुलमर्यादा पालते हैं। उसी | सर्वप्रथम वे शतिक, साहस्त्रिक व शतसाहस्रिक 'याग' कर रहे हैं व करवा हैं। यहां 'याग' का तात्पर्य क्या हो सकता है ? । वैसे 'याग' शब्द सिह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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