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४. पेटाकृति पूर्णता : प्रत पूर्णता की तरह ही यहाँ पेटाकृति के पत्रों की भौतिकरूप से उपलब्धि के आधार से पूर्णता सूचित की गई हैं.
५. पेटाकृति पूर्णता विशेष (पू.वि.) पेटाकृति के पृष्ठों में यदि कोई न्यूनता हो तो वह कमी आदि, मध्य या अंत किस भाग में है, यह संकेत यहाँ दिया गया है. ध्यानार्ह : आदि, मध्य या अंत में कौन से पृष्ठ कम हैं, उसकी यथार्थ सूचना प्रत माहिती की पृष्ठ सूचना के अंतर्गत दी गई है. संलग्न तत् तत् पेटांक में उपलब्ध कृति परिवार का यदि एकसमान अंश अनुपलब्ध हो, तो यथाशक्य उसका स्पष्ट उल्लेख भी यहीं पर किया गया है. किंतु पेटांक से यदि एकाधिक कृति संलग्न हो और प्रत्येक की पूर्णता भिन्न हो, तो तत् तत् कृति की पूर्णता अवधि का उल्लेख तत् तत् कृति के साथ स्वतंत्र रूप से किया गया है.
६. पेटाकृति प्रतिलेखन संवत्, ७. पेटाकृति प्रतिलेखन स्थल (ले. स्थ), ८. पेटाकृति प्रतिलेखक आदि, ९. पेटाकृति प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु.), १०. पेटाकृति प्रतिलेखन श्लोक (प्र.ले. श्लो.) - पेटाकृतिगत इतनी सूचनाएँ, हस्तप्रत स्तर की ही तरह यहाँ पर भी पेटाकृति हेतु मिन्नरूप से प्रत में यथोपलब्ध दी गई हैं.
११. पेटाकृति विशेष : (पे.वि.) पेटाकृति के अन्य उल्लेखनीय तथ्यों का यहाँ समावेश किया गया है. जैसे पेटाकृति के प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गिनकर कुल गाथाएँ लिखी है या यह कृति प्रत में एकाधिक बार लिखी गई है. इत्यादि.
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कृति माहिती स्तर
प्रत व पेटाकृति स्तर के नाम में उल्लिखित कृतियों की अपेक्षित सूचना इस स्तर पर दी गई है.
१. कृति नाम : कृति का प्रस्थापित / बहुप्रचलित नाम ही यहाँ देने का नियम रखा है, अतः यह नाम उपर दिए गए प्रत या पेटाकृति स्तर के नाम से बहुधा भिन्न होगा. प्रत/पेटाकृति स्तर पर प्रत में उपलब्ध नामों को प्रायः ज्यों का त्यों दे दिया गया है. किसी भी कृति के इन वैविध्यतापूर्ण नामों का भी अपना एक अलग महत्व होता है. यदि पेटाकृति नाम और कृति नाम समान हो तो कृति माहिती स्तर पर कृतिनाम नहीं दिया गया है. कृतिनाम के अंत में star " हो, तो वह कृति विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर समान कृतियों के समुच्चयरूप या फुटकर कृति रूप में जाननी चाहिए. ऐसा बहुधा टबार्थ व श्लोकसंग्रह हेतु हुआ है.
२. कृति स्वरूप : सामान्यतः कृति के टीका, टबार्थ आदि स्वरूप, कृतिनाम में ही उल्लिखित होते हैं, परंतु हिस्सा, संक्षेप, संबद्ध व प्रक्रिया इन चार स्वरूपों में क्वचित् ऐसा नहीं हो पाता. अतः इन चार स्वरूपों का उल्लेख कृतिनाम के बाद अलग से भी किया गया है. खंड ६ से 'प्रक्रिया' का भी उल्लेख यहाँ शामिल किया गया है.
३. कर्ता नाम : कृति के एक या अधिक 'सहकर्ता', 'अनुपूर्तिकर्ता' आदि के नाम यहाँ यथोपलब्ध दिए गए है. कृति में कर्ता का नाम अनेक रूपों में मिलता है. यथा उपा. यशोविजयजी हेतु यश, जश नाम भी प्रयुक्त मिलते है. ऐसे में तय होने पर कर्ता का मुख्य नाम ही यहाँ पर दिया गया है.
कृति व विद्वान के एकाधिक अपरनाम यद्यपि कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं, फिर भी इस सूची में उनकी उपयोगिता अत्यल्प होने से व कद की मर्यादा होने से यहाँ नहीं दिए गए हैं..
४. कृति भाषा : कृति की एक या अधिक भाषा. ५. कृति का गद्य, पद्य आदि प्रकार, ६. कृति रचना संवत
७. (आदि :) प्रत में उपलब्ध कृति का प्रथम व क्वचित्, द्वितीय आदि वाक्य, ८. ( अंति :) प्रत में उपलब्ध कृति का प्रथम व क्वचित्, द्वितीय अंतिम वाक्य.
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आदि, अंतिमवाक्य में अक्सर (१) व (२) इस तरह के क्रमांकपूर्वक दो-दो आदि / अंतिम वाक्य मिलेंगे. ऐसा एक ही कृति हेतु विभिन्न प्रतों में सामान्य या विशेष फर्क के साथ मिलनेवाले अनेक आदि / अंतिमवाक्यों की वज़ह से उत्पन्न होने वाले भ्रम को यथासंभव दूर करने के लिए किया गया है. टबार्थ, बालावबोध व स्तवन आदि देशी भाषाओं की कृतियों में ऐसा प्रचुरता से प्राप्त होता है. प्राकृत, संस्कृत भाषाबद्ध पाक्षिकसूत्र, उपदेशमाला जैसी कृतियों में भी प्रथम गाथा में फर्क पाया जाता है. आदि: कोलम में यदि प्रत में कृति जहाँ से प्रारंभ होती है, वह पृष्ठ न हो, तो यहाँ पर
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