Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 6
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 432
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २६१३७. स्तवनवीसी व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १० - ४ (१ से ४) = ६, कुल पे. २, ले. स्थल. पाली, प्रले. पंडित, नयविजय पठ, श्राव, दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११.५, १०x२८-३३ ). १. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. ५अ १० आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जश इम बोले रे, स्तवन- २०, ( पू. वि. स्तवन-१ से ८ नहीं है. ) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १०आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह -, सं., प्रा., पद्य, आदि: ( - ); अंति: (-). २६१४४. (#) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १८६५, कार्तिक शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. बांता, प्रले. मु. तिलोकहंस; पठ. मु. दीपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५x११.५, १४४३२-३५ ). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ: अंति: जैनं जयति शासनं, (प्रतिपूर्ण, पू. वि. मात्र कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.) २६१४५. (+) संबोधसत्तरी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८०४ माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, रोझडा, प्रले. पं. सकलरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, ७X३७-३८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरु; अंतिः सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा - ७२. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तीन; अंति: पामइ इहां संदेह नही. २६१४६. (*) नववाडि सज्झाय व गृहबिंब लक्षण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११.५, १४-१५X३०-३२). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १अ - ७अ, संपूर्ण. मु. पद्म, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि अनंत चोविसी जिन नमः अंतिः पद्म कहे ए सज्झाय रे. २. पे नाम, गृहविंव लक्षण, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथातः संप्रवक्ष्यामि; अंति: चारित्रे० नमः स्वाहा. २६१४७. रत्नचूड चौपाई व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६९, माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, ले. स्थल. तारापुर, प्रले. मु. नित्यलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५.५४११.५, १५४३८-४७). १. पे. नाम. रत्नचूड चौपाई, पृ. १आ-२०अ, संपूर्ण. मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: स्वस्ति श्रीसोभा; अंति: संपद लील कल्याणो रे, ढाल - २४. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २०आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, सं., प्रा., पद्य, आदि: (); अंति: (-). २६१५०. तपफल व षट्आरास्वरूप वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८, कुल पे. २, दे., (२५x१२, १०x२२-२४). १. पे. नाम. तपफल, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भगवती शास्त्रोक्तं; अंतिः तपनो उद्यम करवो. २. पे. नाम. षट् आरास्वरूप कथक, पृ. ३अ -८आ, संपूर्ण. ४११ महावीरजिन स्तवन- छट्टाआरानुं, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाए नमी; अंतिः देवीदास०] संघमंगल करो, ढाल ५, गाथा - ६४. For Private And Personal Use Only २६१५१. शाश्वता जिनप्रासाद जिनपडिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२५.५x१२, ८-१०x२२-२७), शाश्वतजिन स्तवन, मु. माणिकविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: वीर जिणेसर पाय नमी; अंतिः माणिकविमल संपति घणी, दाल-७, गाथा- ८५.

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