Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 6
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.६) KAILASA SRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol-1.1.6) यह उमाण डि ब्रह्मगावादयांगांमु वदरिसीमिवमा वादमञ्ज गरावति॥। गानामा डिडि आचार्य श्री मगावमहावीर ससागरमा कोबा तीथ MO For Private And Personal Use Only माका, मादरना गाराश्रीयादी AMST Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.६) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र,कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची ले आशीर्वाद व प्रेरणा 6 आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५३४ ० वि.सं. २०६४ ० ई. २००८ For Private And Personal use only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संपादक पं. मनोज र. जैन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ६ Acārya Shri Kailāsasāgarasūri Smṛti Granthasūcī - Ratna 6 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.६ Kailāsa śrutasāgara Granthasūci : 1.1.6 खंड संयोजक शैलेष प्र. महेता सह संपादन संजय र. झा नवीन वि. जैन आशिष आर. शाह www.kobatirth.org कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग केतन दी. शाह For Private And Personal Use Only Editor Pt. Manoj R. Jain Volume Co-ordinator Shailesh P. Maheta Co-Editors Sanjay R. Jha Navin V. Jain Ashish R. Shah Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Computer Programming Ketan D. Shah Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ६ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिरे विभाग देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृतसूची - १ : हस्तप्रत सूची वर्ग खंड - ६ - १ : जैन साहित्य आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Devarddhigani Kṣamāśramaṇa Hastaprata Bhāṇḍāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I : Manuscripts' Catalogue Class - I : Jain Literature Volume - 6 Blessings & Inspirations Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Published by Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, India 2008 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairthorg Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 6 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.6 Preserved in Dēvarddhigani kşamāśramana Hastaprata Bhāņdāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir © Copy rights : Reserved by Publisher Vir Samvat 2534, Vikram Samvat 2064, A.D. 2008 O Edition : First ० प्रकाशन सौजन्यः श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर O Available at: Shruta Sarita Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth o Published by : Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382009. INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249 Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir@kobatirth.org o Price: Rs. 750/ Printed by: Shri Bijal Graphics, Ahmedabad. Tel. No. 22112392 (M) 9327014619, 9376125757 O ISBN 81-89177-00-1 (Set) 81-89177-10-9 (Vol.6) For Private And Personal use only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी www.kobatirth.org गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ।। अर्हम् नमः ।। मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; उस जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखने वाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार आदि श्रमण संहति का भी मैं ऋण स्वीकृति पूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्रायः हुआ. इन सब कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत-से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर, सर्वप्रथम सन् १९७४ में, अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान, ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके, उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से, कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रहीत करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी आधुनिक साधनों का इस ज्ञानमंदिर में सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का भगीरथ कार्य हमारे मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने जिस समर्पित भाव से किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर मुनि श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता. मुनि श्री नयपद्मसागरजी आदि मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सभी की भी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को अंतिम रूप दिया है वह अपने आप में अनूठा व इतिहास सर्जक है. श्री मनोजभाई जैन, श्री संजयकुमार झा, श्री शैलेषभाई, श्री नवीनभाई, श्री आशिषभाई आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई एवं सभी सहयोगी कार्यकरों को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के ट्रस्टी श्री गिरीशभाई, श्री किरीटभाई कोबावाला एवं कारोबारी सदस्य श्री मोहितभाई आदि सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थ के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर एवं समस्त ट्रस्टीगण के प्रति भी धन्यवाद देता बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार की कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची के खंड ६ व ७ प्रकाशित होने जा रहे हैं, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर का विद्वद्वर्ग इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होगा. संस्था अपने विकास पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. पभसागर सरि For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir * सादर समर्पण * कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के कर कमलों में... जिनकी बदौलत यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही. For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra नाकोडा पार्श्वनाथ www.kobatirth.org सौजन्य Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only नाकोडा भैरवनाथ श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के षष्ठ व सप्तम खंडों को श्री नाकोडाजी तीर्थ की पावन धरा पर परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की शुभ निश्रा में चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, वह भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रखरखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. यद्यपि प्रस्तुत ग्रंथसूची के मूल आधार पूज्य मुनिश्री ही है, तथापि खण्ड ५ के बाद पूज्यश्री ने अपनी निस्पृहता का परिचय देते हुए सूचीकर्ता के रूप में स्वयं का नाम न छापने का आदेश किया है. हमारी आकंठ इच्छा होने के बावजूद भी हम पूज्यश्री के आदेश के आगे विवश है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सुझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य मुनिराज श्री अजयसागरजी तथा यहाँ के पंडितजनों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य मुनिराज श्री नयपद्मसागरजी का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है. मुनिश्री ने हस्तप्रतों आदि के प्रारंभिक अनेक कार्यों में अपना उल्लासभरा सहयोग तो दिया ही है परंतु अब वे जिनशासन के विशिष्ट शासनप्रभावक के रूप में उभर कर संस्था व ज्ञानमंदिर को जो सहयोग दिला रहे हैं उसकी वजह से ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिला है. संस्था सभी की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. नौ पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकरों के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या इसी तरह के अन्य अनुदान को न लेकर मात्र समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियों हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार - धन्यवाद दिया जाता है. खास कर शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी - अहमदाबाद की ओर से सूचीकरण के इस भगीरथ कार्य एवं ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों हेतु ज्ञानद्रव्य में से जो निरंतर योगदान मिलता रहा है, उसने हमेशा हमारी चेतना को विकस्वर रखा है. श्री प्लेजेंट पेलेस जैनसंघ, मुंबई, श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ, मुंबई, श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार, अमदावाद एवं श्री प्रेमलभाई कापडीआ, मुंबई की ओर से मिले योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. सभी के हम सदैव ऋणी रहेंगे. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य के इस षष्ठ खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर व तीर्थ के ट्रस्टीगण के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है, आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस षष्ठ रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट कोबातीर्थ, गांधीनगर !!! For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में कैलासश्रुतसागर ग्रंथसूची के षष्ठ व सप्तम रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. विशेष खुशी की बात है कि संस्था द्वारा अपनाए गए श्रेष्ठता की ओर निरंतर सुधार व विकास के अभिगम से प्रेरित होकर खण्ड ३ के प्रकाशन के बाद चतुर्थ व पंचम खंड में सूचनाओं की प्रस्तुति में अनेक सुधार किये गये थे. इसी सिलसिले को जारी रखते हुए अध्येताओं की सुविधा के लिए, छटे खंड से प्रत, पेटांक व कृति यदि किसी तरह अपूर्ण हो तो उस अपूर्णता को और ज्यादा स्पष्ट रूप से बताने वाली पृष्ठों की उपलब्धता सूचक सूचनाएँ भी दी गई है. ताकि उपयोगिता का निर्णय सुगम हो सकें. आशा है यह नई प्रस्तुति विशेष उपयोगी सिद्ध होगी. वर्तमान कार्य के परिणाम स्वरूप प्राकृत, संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल व व्याख्या साहित्य की छोटी-बड़ी कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही है. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक महत्व के विद्वानों की कृतियाँ भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं, ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. खंड ७ के ह. प्र. क्रमांक २८३०१ से एक से चार पत्रों की लघु प्रतें प्रारंभ होती है. सामान्यतः ऐसी प्रतें कम महत्त्व की समझकर जत्थे में बांधकर उपेक्षणीय सी रख दी जाती है. लेकिन खंड ७ के परिशिष्ट को देखने से पता चलेगा कि आश्चर्यजनक रूप से ऐसी प्रतों में से भी प्रचूरमात्रा में अप्रकाशित लघु कृतियाँ प्राप्त हुई है. इन लघु प्रतों का वर्गीकरण से लगाकर सूचीकरण तक का सारा कार्य बडा कष्टसाध्य होता है, लेकिन उसका यह सुंदर परिणाम बड़ा ही संतोष दे रहा है. उत्तराध्ययनसूत्र व कल्पसूत्र आदि आगमों की अनेक टीकाएँ व प्राकृत, संस्कृत भाषा के अनेक प्रकरण, कुलक व चरित्र आदि प्रकार के ग्रंथ अप्रकाशित प्रतीत हुए हैं. इसी तरह श्री ज्ञानसारजी रचित अनेक नई कृतियों के साथ एक पदसंग्रह जो कि आनंदघन पदसंग्रह, चिदानंदबहोत्तरी की याद दिलाता है, उसकी भी एक अप्रकाशित प्रति प्राप्त हुई हैं. साथ ही पू. हरिभद्रसूरि, सिद्धसेनदिवाकरसूरि, उपा. यशोविजयजी, उपा. सकलचंद्रजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, कविराज दीपविजयजी, जिनहर्ष आदि की भी छोटी-बड़ी रचनाओं का भी प्रायः सर्वप्रथम पता चला है. इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सब का विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएं पृष्ठ vi एवं प्रयुक्त संकेतों का स्पष्टीकरण पृष्ठ xii पर मुद्रित है. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत बड़ा महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित, द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री इस तरह छ: भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इस में प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री - इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकृत कर दिया गया है. समग्र कार्य दौरान पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक मुनिराज श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व प्रोत्साहन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे है, यह जान कर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; हमें हमारा श्रम सार्थक प्रतीत होता है. प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु श्री संजयभाई सोमाभाई गुर्जर तथा ग्रंथालय विभाग के श्री दिलावरसिंह प्रह्लादजी विहोल एवं श्री परबतभाई ठाकोर आदि सभी सहकार्यकरों को त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्रस्तुति के लिए हम त्रिविध मिच्छा मि दुक्कडं देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रही भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, जिससे अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा इस परियोजना के तहत सूचीपत्र में मुख्य तीन विभाग किए गए हैं. १ हस्तप्रत माहिती. २ कृति माहिती. ३ विद्वान-व्यक्ति माहिती. यद्यपि कम्प्यूटर में सभी तरह की सूचनाएँ विस्तृत रूप से भरी जाती हैं एवं आगे भी उनमें परिष्कार, विस्तार जारी रखने की योजना है, तथापि प्रत्येक सूचीपत्र विभाग में मात्र तत्-तत् विभाग की सूचनाएँ शक्य विस्तार से देकर, अन्य विभागों की संबद्ध सूचनाओं को आवश्यक हद तक संक्षेप में ही दिया जाएगा. इन संक्षिप्त सूचनाओं की विस्तृत माहिती के लिए संबद्ध विभाग के सूचीपत्र की अपेक्षा रहेगी. उपयोगिता एवं अनुकूलता के अनुसार उपरोक्त तीनों विभागों के सूचीपत्रों के क्रमशः प्रकाशन का आयोजन है. यहाँ पर सूची प्रकाशन रूपरेखा की मूल अवधारणा में हुए परिवर्तनों, परिवर्द्धनों के साथ संक्षिप्त ढांचा ही दिया गया है, विस्तारपूर्वक जानने हेतु कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य खंड १.१.१ में पृष्ठ २२ से २४ देखें. १. हस्तप्रत विभाग इस विभाग की महत्तम उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए, हस्तप्रतगत कृति की धर्म आदि प्रधानता के अनुसार निम्न वर्ग किए गए हैं. ये सूचियाँ यथोपलब्ध प्रत क्रमांक के अनुक्रम से होंगी. १.१ जैन कृति वाली प्रतें, १.२ धर्मेतर साहित्यिक आदि कृति वाली प्रतें, १.३ वैदिक कृति वाली प्रतें, १.४ शेष धर्मों की ___ कृति वाली प्रतें. इनमें प्रथम, हस्तप्रत केन्द्रित - इस सूची में सूचनाएँ तीन स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर : इस स्तर पर प्रत सम्बन्धी उपलब्ध सूचनाएँ उपयोगिता एवं सूची पुस्तक के कद की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए विविध अनुच्छेदों में शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. (२) पेटाकृति माहिती स्तर : इस द्वितीय स्तर पर यदि प्रत में क्रमशः स्वतंत्र पृष्ठों पर एकाधिक कृतियाँ मिलती हों तो उन पेटाकृतियों के नाम, पृष्ठांक, पूर्णता आदि सूचनाएँ यथायोग्य दी गई हैं. खंड ४ से यह स्तर व्यक्तरूप से अलग किया गया है. (३) कृति माहिती स्तर : इस तृतीय स्तर पर प्रत में रही कृतियों का निर्णय करने हेतु आवश्यक लघुतम सूचनाएँ ही दी गई हैं. पुस्तक के कद को मर्यादित रखने के लिए भी यह आवश्यक था. कृति की शक्यतम विस्तृत माहिती द्वितीय कृति विभाग वाली सूची में दिए जाने का आयोजन है. प्रत्येक खंड में तत्-तत् खंड में आए कृति परिवारों का, मूल कृति के अकारादि क्रम से, तत्-तत् कृति हेतु तत्तत् खण्डगत प्रतों के क्रमांकों के साथ (१) संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषा की कृतियों हेतु एवं (२) मारुगुर्जर आदि देशी भाषा की कृतियों हेतु - इस तरह दो परिशिष्ट दिए गए हैं. १.५ हस्तप्रत विभाग के परिशिष्ट : इस वर्ग में हस्तप्रत विभागीय विविध परिशिष्टों का समावेश किया जाएगा. १.५.१ प्रत, पेटाकृति व कृति लेखनगत विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिकाओं का संग्रह., १.५.२ प्रतिलेखन वर्ष से प्रत क्रमांक. १.५.३ प्रतिलेखन स्थल से प्रत क्रमांक, १.५.४ विद्वान/व्यक्ति (प्रतिलेखक आदि) नाम से प्रत क्रमांक. १.५.५ प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक संग्रह - श्लोकक्रमांक से, १.५.६ प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक संग्रह - अकारादिक्रम से. २. कृति विभाग इस विभाग के तहत कृति को केन्द्र में रखकर उससे संबद्ध अनेकविध सूचनाएँ निम्नोक्त प्रकार से आएँगी. २.१ कृति पर से प्रत माहिती : यद्यपि खंड १.१.२ के प्रकाशन से प्रत्येक खंड के अंत में उस-उस खंड की कृतियों का यह परिशिष्ट संक्षिप्त रूप से दिया जा रहा है, तथापि सभी खंडों की कृतियों को अपनी महत्तम विस्तृत सूचनाओं के साथ संकलित रूप में देखने की सुविधा के लिए, प्रतानुसार कृति माहिती के सभी खंड छप जाने के बाद निम्नोक्त प्रकार से अलग से भी प्रकाशित करने का आयोजन है. २.१.१.१ जैन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश भाषाओं की - स्थिर कृतियाँ, २.१.१.२ जैन मारूगुर्जर, गुजराती, राजस्थानी For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir इत्यादि देशी भाषाओं की - स्थिर कृतियाँ, २.१.१.३ जैन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश - फुटकर कृतियाँ, २.१.१.४ जैन मारूगुर्जर आदि देशी भाषा - फुटकर कृतियाँ, २.१.२.१ से ४ धर्मेतर शेष - उपरोक्त चारों प्रकार की स्थिर व फुटकर कृतियाँ, २.१.३.१ से ४ वैदिक - इसी तरह की चारों प्रकार की कृतियाँ एवं २.१.४.१ से ४ अन्य धर्म - चारों प्रकार की कृतियाँ. २.२ आदिवाक्य से कृति माहिती, २.३ अंतिमवाक्य से कृति माहिती, २.४ विद्वान नाम से कृति माहिती, २.५ रचना वर्ष से कृति माहिती, २.६ रचना स्थल से कृति माहिती, २.७ भाषा से कृति माहिती, २.८ विषय विभाग से कृति माहिती. ३. विद्वान/व्यक्ति व गच्छ माहिती विभाग इस विभाग में कृति व हस्तप्रतों से संबंधित विद्वान/व्यक्तियों एवं गच्छों की विविध प्रकार से सूचनाएँ देने का आयोजन ३.१ विद्वान/व्यक्ति माहिती : यह वर्ग विद्वान/व्यक्तियों से संबद्ध विस्तृत माहिती का होगा व विद्वान नाम/ उपनाम के अकारादि क्रम से यह सूची होगी. यह सूची अनेक उपवर्गों में विभक्त होगी.. ३.१.१ जैन साधुओं की सूची, ३.१.२ जैन साध्वियों की सूची, ३.१.३ जैन श्रावकों की सूची, ३.१.४ जैन श्राविकाओं की सूची, ३.१.५ शेष विद्वान/व्यक्तियों की सूची. ३.२ विद्वान शिष्य/संतति माहिती, ३.३ विद्वान शिष्य परम्परा वंशवृक्ष. ३.४ विद्वान-गच्छ माहिती वर्ग : गच्छ को केन्द्र में रखते हुए निम्नोक्त वर्गों की सूचियाँ बनेंगी. ३.४.१ गच्छ माहिती, ३.४.२ गच्छ शाखा-प्रशाखा वंशवृक्ष, ३.४.३ गच्छानुसार विद्वान माहिती. सूची प्रकाशन की यह एक संभावित संक्षिप्त रूपरेखा है. अनुभवों, उपयोगिता एवं व्यावहारिक मर्यादाओं के आधार पर इसमें यथासमय योग्य परिवर्तन भी किया जाएगा. प्रस्तुत हस्तप्रत सूचीगत सूचनाओं का स्पष्टीकरण जैन हस्तप्रतों का समावेश करनेवाली हस्तप्रत आधारित इस सूची में सूचनाएँ तीन स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर (२) पेटाकृति माहिती स्तर. (३) प्रत व पेटाकृतिगत कृति माहिती स्तर. पूर्व खंडों की तुलना में तृतीय खंड से सूचनाओं में काफी बढ़ोत्तरी की गई है एवं सूचनाओं के क्रम में भी पर्याप्त फेरफार किया गया है. 'पेटाकृति माहिती स्तर' बढ़ाया जाना यहाँ उल्लेखनीय है. यद्यपि मुख्यतः क्रम में फेरफार हुआ है, तथापि खंड १.१.१ के पृष्ठ ३३ से ३८ पर दी गई इन सूचनाओं का परिचय विस्ताररुचि वालों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा. यहाँ पर मात्र संक्षिप्त रूप से व पंचम खंड के प्रकाशन के समय परिवर्तित व परिवर्द्धित सूचनाओं का ही परिचय दिया गया है. प्रत माहिती स्तर इस स्तर पर प्रत सम्बन्धी उपलब्ध सूचनाएँ विविध अनुच्छेदों में निम्नोक्त क्रम से शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. कम्प्यूटर पर ये सूचनाएँ और भी विस्तार से उपलब्ध हैं. १. प्रत क्रमांक : प्रत्येक प्रत का यह स्वतंत्र क्रमांक है. ग्रंथसूची के इस विभाग में मात्र जैन कृतियोंवाली प्रतों का ही समावेश होने से व बीच-बीच में जैनेतर आदि अन्य वर्गों की प्रतें भी अनुक्रम में होने से; वे क्रमांक यहाँ नहीं मिलेंगे. यह क्रमांक अनुच्छेद-Paragraph की बायीं ओर बाहर निकला हुआ स्थूल अक्षरों - Bold type में छपा है. २. प्रत महत्तादि सूचक चिह्न : अध्येताओं को प्रत की उपयोगिता तय करने में सुगमता रहें एतदर्थ प्रत की महत्ता का, स्तर बताने के लिए क्रमांक के बाद कोष्ठक के अंदर इस तरह (+), (-), (#) चिह्न दिए गये हैं. २.१. प्रत संशोधित होने, टिप्पणक आदि से युक्त होने व कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित होने पर प्रत की महत्ता को बताने के लिए प्रत क्रमांक के बाद (+) का चिह्न लगाया गया है. इस चिह्न के न होने का मतलब यह नहीं होता कि प्रत शुद्ध नहीं है या अल्प महत्व की ही है. सूची से संबंधित इन विशेषताओं का उल्लेख 'प्र.वि.' के तहत प्राप्त होगा. For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २.२ प्रत दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ वाली होने पर प्रत क्रमांक के बाद का चिह्न लगाया गया है. इनका उल्लेख 'प्र.वि.' में प्राप्त होगा. २.३ कट, फट जाने आदि के कारण हुई प्रत व पाठ की विविध अवदशाओं की जानकारी कराने के लिए प्रत क्रमांक के अंत में (#) का चिह्न लगाया गया है. सूची में इनका उल्लेख 'दशा वि.' के तहत प्राप्त होगा. ३. प्रतनाम : यह नाम प्रत में रही कृति/कृतियों की प्रत में उपलब्धि तथा कृति/कृतियों के प्रत में उपलब्ध नाम के आधार से बना कर दिया गया है. यथा- बारसासूत्र, आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति व टीका, कल्पसूत्र सह टबार्थ व पट्टावली, गजसुकुमाल रास व स्तवन संग्रह, स्तवन संग्रह, जीवविचार, कर्मग्रंथ आदि प्रकरण सह टीका... इत्यादि. प्रत माहिती स्तर व पेटाकृति माहिती स्तर में दिए गए नामों से सम्बन्धित विस्तृत विवरण प्रथम खंड के पृष्ठ ३३-३४ पर देखें. ४. पूर्णता - हस्तप्रत की उपयोगिता तय करने में सुविधा रहे, तदर्थ स्पष्टता लाने की बात को ध्यान में रखते हुए, हस्तप्रत प्रतिलेखक द्वारा संपूर्ण-अपूर्ण जिस किसी अंश में लिखी गई कृति के पत्रों की भौतिकरूप से उपलब्धता मात्र को दर्शाने वाली पूर्णता संबंधी सूचना निम्न प्रकार से वर्गीकृत करके दी गई है. १. संपूर्ण : जितने भी लिखे गये थे, सभी पत्र उपलब्ध. २. पूर्ण : मात्र एक देश से अत्यल्प अपूर्ण प्रतों को अपूर्ण न कह कर 'पूर्ण' संज्ञा दी गई है. ३. अपूर्ण : प्रत के आदि/अंत या/एवं मध्य का एक बड़ा अंश अनुपलब्ध हो. ४. त्रुटक : बीच-बीच के अनेक पत्र अनुपलब्ध हों. यदि प्रत 'संपूर्ण' नहीं है तो उसकी विशेष सूचना 'पृष्ठ माहिती' - 'पृ.' के तहत एवं पूर्णता विशेष - 'पू. वि' के तहत दी गई है. इसके अलावा पेटाकृति स्तर के पू. वि एवं कृतिस्तर के पू. वि' के तहत भी उपयोगी सूचना मिल सकती है. ५. प्रतिलेखन संवत् : प्रत में प्रतिलेखक द्वारा दिया गया विक्रम, शक आदि संवत् उपलब्ध हो तो वही वास्तविक रूप से दिया गया है, अन्यथा लेखन शैली, अक्षरों की लाक्षणिकता आदि के आधार पर विक्रम संवत् के अनुमानित शतक का उल्लेख किया गया है. इसके बाद प्रत में यथोपलब्ध वर्षसंख्या वाचक सांकेतिक शब्द - जो कि 'अंकानां वामतो गतिः' नियम से पढ़े जाते हैं - दिए गए हैं. तत्-पश्चात् वर्ष के संबंध में यदि कोई बात विचारणीय अथवा शंकास्पद लगी हो तो तत् सूचक '?' प्रश्नार्थ दिया गया है. उसके बाद मासनाम, अधिकमास संकेत, पक्ष, तिथि, अधिक तिथि संकेत व वार यथोपलब्ध क्रमशः दिए गए हैं. क्वचित् यथोपलब्ध वर्ष की एक अवधि भी दी गई है कि इन वर्षों के बीच यह प्रत लिखी गई है. ६. प्रत दशा प्रकार ('प्र. दशा') : श्रेष्ठ, मध्यम, जीर्ण. दशा सम्बन्धी विशेष माहिती अनुच्छेद १४, 'दशा वि.' के अंतर्गत दी गई है. ७. पृष्ठ माहिती (पृ.) : प्रत के प्रथम व अंतिम उपलब्ध पृष्ठांक, घटते-बढ़ते पृष्ठ का योग तथा पृष्ठांक एवं कुल उपलब्ध पृष्ठ, इतनी सूचनाएँ यहाँ दी गई हैं. यथा - १ से ५०-४ (५, ७, १५, २७) = ४६, ५ से ६०-३ (३*, १७, १८) = ५३; ५ से ६०-३ (३*, १७, २८) + २ (४, ३५) = ५५. यहाँ अंक पर * का चिह्न पत्रांक लेखन में हुई स्खलना के कारण अवास्तविक घटते पत्र का सूचक है एवं '-' व '+' के चिह्न घटते व दुहराए हुए बढ़ते पत्र के सूचक है. ८. कुल पेटाकृति : प्रत में यदि पेटाकृतियाँ हो तो उनका कुल योग यहाँ दिया गया है. ९. पूर्णता विशेष (पू.वि.) : प्रत प्रारंभ से अंत तक में भौतिकरूप से पत्र किसी कारण से अनुपलब्ध हो तो, यहाँ मात्र अंतिम भाग नहीं है, उसकी स्पष्टता दी गई है. इसके अतिरिक्त घटते पत्रों के विषय में 'पृ.' के तहत दी गई विद्यमान पत्रों की सूचना से पता चल ही जाता है. अतः उन घटते पत्रों का उल्लेख नहीं किया गया है. जिस प्रत की सूचना में पेटाकृतियों की सूचना नहीं है, ऐसी प्रत संपूर्ण नहीं होने पर, उस में यदि कृति का मूलांश व टीका आदि शाखांश समानरूप से उपलब्ध/अनुपलब्ध हो, तो उसका भी यथाशक्य स्पष्टतापूर्वक यहाँ उल्लेख किया गया है. यथाकल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध. प्रत में तीनों कृतियों हेतु समानरूप से कल्पसूत्र व्याख्यान ३ से ५ नहीं है, तो इसका उल्लेख यहाँ किया गया है. इसी प्रकार अन्य अनुपलब्ध अंशों की स्पष्टता यहाँ दी गई है. किंतु, मूल व टीका आदि शाखांश प्रत्येक की उपलब्धि/अनुपलब्धि भिन्न-भिन्न हो तो उनकी प्रत्येक की पूर्णता सूचना नीचे कृति की सूचना Vij For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir के साथ दी गई है. पेटा अंकों से सूचित पेटा कृतियों की पूर्णता का यह विवरण पेटा अंकों वाले स्तर पर दिया गया है. १०. प्रतिलेखन स्थल माहिति (ले.स्थल) : जिन एक या अधिक स्थलों पर प्रत-लेखन कार्य हुआ हो, उनका उल्लेख यहाँ दिया गया हैं. ११. प्रतिलेखक आदि : प्रत की प्रतिलिपि लिखने-लिखवानेवाले विद्वान या लहिया आदि के नाम गुरू, गच्छ माहिती के साथ यहाँ दिए गए हैं. उपदेशेन, क्रीत, गच्छाधिपति, पठनार्थे, प्रतिलेखक, राज्यकाल, लिखापितं, विक्रीत, व्याख्याने पठित, व्याख्याने श्रुत, समर्पित इत्यादि प्रकार से विद्वान/व्यक्तियों का उल्लेख प्रतिलेखन पुष्पिका के अनुसार यहाँ दिया गया हैं. १२. प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु.) : प्रत में प्रतिलेखन पुष्पिका (प्रतिलेखक सम्बन्धी विस्तृत परंपरा आदि का उल्लेख) की उपलब्धि की मात्रा के संकेत यहाँ दिए गए हैं. जैसे - प्रतिलेखन पुष्पिका अंतर्गत १ से लेकर ३ विद्वानों तक की सूचनाएँ प्रत में प्राप्त होती हैं तो सामान्य दिया गया है, ४ से लेकर ५ तक मिल रहे विद्वानों की सूचनाओं हेतु मध्यम तथा ६ से ७ विद्वानों हेतु विस्तृत एवं ७ से ज्यादा विद्वानों हेतु अतिविस्तृत प्रतिलेखन पुष्पिका प्रकार दिया गया हैं. १३. प्रतविशेष (प्र.वि.): प्रत सम्बन्धी शेष उल्लेखनीय अन्य मुद्दों एवं प्रतगत कृति सम्बन्धी, परन्तु, सम्भवतः उसी प्रत में उपलब्ध हो ऐसी उल्लेखनीय बातों का समावेश यहाँ किया गया है. प्रत क्रमांक के साथ (+) (-) द्वारा सूचित प्रत विशेषताओं का उल्लेख भी यहाँ होगा. १४. दशा विशेष (दशा.वि.) : प्रत क्रमांक के साथ (#) द्वारा सूचित प्रत की जीर्ण दशा व उसकी मात्रा आदि सम्बन्धी स्पष्टता यहाँ पर दी गई हैं. १५. प्रतिलेखन श्लोक (प्र.ले.श्लो.) : प्रत के अंत में प्रतिलेखक द्वारा दिए जानेवाले हृदयोद्गार-श्लोकादि के संकेत अपने श्लोक क्रमांक के साथ यहाँ दिए गए हैं. यह श्लोक क्रमांक ज्ञानमंदिर में संगृहीत इस तरह के श्लोकों की सूची में से दिया गया है. यह सूची भविष्य में योग्य खंड में प्रकाशित की जाएगी. १६. लिपि माहिती : प्रत जैन देवनागरी, देवनागरी आदि जिस लिपि में लिखी गई है, उसका उल्लेख यहाँ किया गया हैं. १७. प्रत प्रकार : सामान्यतः कागज की बिना बंधे - छुट्टे पत्रों वाली प्रतों से भिन्न, किसी भी पदार्थ पर लिखी गई गुटका, गोल व गडी प्रकार की प्रत होगी, तो उसका उल्लेख यहाँ आएगा. अन्यथा 'प्रत सर्वसामान्य कागज के बिन बंधे पत्रों की है' यह समझ लिया जाना चाहिए. १८. लंबाई, चौड़ाई : प्रत की लघुत्तम व महत्तम लंबाई-चौड़ाई आधे सेंटीमीटर के अंतर की शुद्धि के साथ यहाँ दी गई हैं. १९. पंक्ति-अक्षर : पृष्ठगत पंक्ति व पंक्तिगत अक्षरों को अंदाजन गिन कर लघुतम व महत्तम रूप से दिया गया है. इसके आधार से कुल अक्षरों को ३२ से भाग दे कर अंदाजित ग्रंथ मान निकाला जा सकता है. पेटाकृति माहिती स्तर जिन प्रतों में पेटाकृतियाँ होंगी, उन्हीं प्रतों हेतु यह स्तर होगा. इस स्तर पर निम्न सूचनाएँ दी गई है. १. पेटांक : प्रतगत पेटाकृति का क्रमांक. २. पेटाकृति नाम : (पे.नाम) प्रतनाम की ही तरह यहाँ पर भी कृति का प्रत में सूचित नाम दिया गया है. मूल यदि टीका, टबार्थ आदि युक्त हो तो प्रतनाम की तरह नियमानुसार 'सह' के साथ यह नाम दिया गया है. बहुधा कृति का मुख्य प्रस्थापित नाम यहाँ दिए गए नाम से भिन्न होता है. यह नाम स्थूल-Bold अक्षरों में दिया गया है. ३. पेटाकृति पृष्ठ : (पृ.) पेटाकृति का आदि अंत पृष्ठ क्रमांक यहाँ दिए गए है. viii For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पेटाकृति पूर्णता : प्रत पूर्णता की तरह ही यहाँ पेटाकृति के पत्रों की भौतिकरूप से उपलब्धि के आधार से पूर्णता सूचित की गई हैं. ५. पेटाकृति पूर्णता विशेष (पू.वि.) पेटाकृति के पृष्ठों में यदि कोई न्यूनता हो तो वह कमी आदि, मध्य या अंत किस भाग में है, यह संकेत यहाँ दिया गया है. ध्यानार्ह : आदि, मध्य या अंत में कौन से पृष्ठ कम हैं, उसकी यथार्थ सूचना प्रत माहिती की पृष्ठ सूचना के अंतर्गत दी गई है. संलग्न तत् तत् पेटांक में उपलब्ध कृति परिवार का यदि एकसमान अंश अनुपलब्ध हो, तो यथाशक्य उसका स्पष्ट उल्लेख भी यहीं पर किया गया है. किंतु पेटांक से यदि एकाधिक कृति संलग्न हो और प्रत्येक की पूर्णता भिन्न हो, तो तत् तत् कृति की पूर्णता अवधि का उल्लेख तत् तत् कृति के साथ स्वतंत्र रूप से किया गया है. ६. पेटाकृति प्रतिलेखन संवत्, ७. पेटाकृति प्रतिलेखन स्थल (ले. स्थ), ८. पेटाकृति प्रतिलेखक आदि, ९. पेटाकृति प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु.), १०. पेटाकृति प्रतिलेखन श्लोक (प्र.ले. श्लो.) - पेटाकृतिगत इतनी सूचनाएँ, हस्तप्रत स्तर की ही तरह यहाँ पर भी पेटाकृति हेतु मिन्नरूप से प्रत में यथोपलब्ध दी गई हैं. ११. पेटाकृति विशेष : (पे.वि.) पेटाकृति के अन्य उल्लेखनीय तथ्यों का यहाँ समावेश किया गया है. जैसे पेटाकृति के प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गिनकर कुल गाथाएँ लिखी है या यह कृति प्रत में एकाधिक बार लिखी गई है. इत्यादि. - कृति माहिती स्तर प्रत व पेटाकृति स्तर के नाम में उल्लिखित कृतियों की अपेक्षित सूचना इस स्तर पर दी गई है. १. कृति नाम : कृति का प्रस्थापित / बहुप्रचलित नाम ही यहाँ देने का नियम रखा है, अतः यह नाम उपर दिए गए प्रत या पेटाकृति स्तर के नाम से बहुधा भिन्न होगा. प्रत/पेटाकृति स्तर पर प्रत में उपलब्ध नामों को प्रायः ज्यों का त्यों दे दिया गया है. किसी भी कृति के इन वैविध्यतापूर्ण नामों का भी अपना एक अलग महत्व होता है. यदि पेटाकृति नाम और कृति नाम समान हो तो कृति माहिती स्तर पर कृतिनाम नहीं दिया गया है. कृतिनाम के अंत में star " हो, तो वह कृति विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर समान कृतियों के समुच्चयरूप या फुटकर कृति रूप में जाननी चाहिए. ऐसा बहुधा टबार्थ व श्लोकसंग्रह हेतु हुआ है. २. कृति स्वरूप : सामान्यतः कृति के टीका, टबार्थ आदि स्वरूप, कृतिनाम में ही उल्लिखित होते हैं, परंतु हिस्सा, संक्षेप, संबद्ध व प्रक्रिया इन चार स्वरूपों में क्वचित् ऐसा नहीं हो पाता. अतः इन चार स्वरूपों का उल्लेख कृतिनाम के बाद अलग से भी किया गया है. खंड ६ से 'प्रक्रिया' का भी उल्लेख यहाँ शामिल किया गया है. ३. कर्ता नाम : कृति के एक या अधिक 'सहकर्ता', 'अनुपूर्तिकर्ता' आदि के नाम यहाँ यथोपलब्ध दिए गए है. कृति में कर्ता का नाम अनेक रूपों में मिलता है. यथा उपा. यशोविजयजी हेतु यश, जश नाम भी प्रयुक्त मिलते है. ऐसे में तय होने पर कर्ता का मुख्य नाम ही यहाँ पर दिया गया है. कृति व विद्वान के एकाधिक अपरनाम यद्यपि कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं, फिर भी इस सूची में उनकी उपयोगिता अत्यल्प होने से व कद की मर्यादा होने से यहाँ नहीं दिए गए हैं.. ४. कृति भाषा : कृति की एक या अधिक भाषा. ५. कृति का गद्य, पद्य आदि प्रकार, ६. कृति रचना संवत ७. (आदि :) प्रत में उपलब्ध कृति का प्रथम व क्वचित्, द्वितीय आदि वाक्य, ८. ( अंति :) प्रत में उपलब्ध कृति का प्रथम व क्वचित्, द्वितीय अंतिम वाक्य. For Private And Personal Use Only आदि, अंतिमवाक्य में अक्सर (१) व (२) इस तरह के क्रमांकपूर्वक दो-दो आदि / अंतिम वाक्य मिलेंगे. ऐसा एक ही कृति हेतु विभिन्न प्रतों में सामान्य या विशेष फर्क के साथ मिलनेवाले अनेक आदि / अंतिमवाक्यों की वज़ह से उत्पन्न होने वाले भ्रम को यथासंभव दूर करने के लिए किया गया है. टबार्थ, बालावबोध व स्तवन आदि देशी भाषाओं की कृतियों में ऐसा प्रचुरता से प्राप्त होता है. प्राकृत, संस्कृत भाषाबद्ध पाक्षिकसूत्र, उपदेशमाला जैसी कृतियों में भी प्रथम गाथा में फर्क पाया जाता है. आदि: कोलम में यदि प्रत में कृति जहाँ से प्रारंभ होती है, वह पृष्ठ न हो, तो यहाँ पर ix Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आदि वाक्य की जगह (-) दिया गया है. यही बात अंतिमवाक्य के लिए भी लागू होती है. किसी कारण से अक्षर पढ़े नहीं जा रहे हो, तो ऐसे में (अपठनीय) दिया गया है. ९. कृति परिमाण : कृति के प्रत में उपलब्ध अध्याय-ढाल-खंड आदि, गाथा/श्लोक आदि तथा ग्रंथाग्र की यथायोग्य सूचना यहाँ दी गई है. कई बार एक ही कृति हेतु विविध प्रतों के परिमाण में, अनेक कारणों से न्यूनाधिकता मिलती है, जो कि प्रचलित कृति परिमाण से भिन्न भी हुआ करती है. यदि यह भेद ज्यादा बड़ा हो, तो विभिन्न परिमाणों वाली एकाधिक समान कृतियों की स्वतंत्र प्रविष्टि दी गई है. यथा - बृहत् व लघु ऋषिमंडल स्तोत्र. १०. कृति पूर्णता : कृति की प्रतगत पूर्णता को यहाँ दिया गया है. इन पूर्णताओं को निम्नोक्त प्रकार से वर्गीकृत कर के दिया गया है. १. संपूर्ण : पूरी तरह से संपूर्ण कृतिमाहिती, २. पूर्ण : मात्र एक देश से अत्यल्प, अपूर्ण कृतिमाहिती को अपूर्ण न कह कर 'पूर्ण' संज्ञा दी गई है, ३. प्रतिपूर्ण : प्रतिलेखक द्वारा कृति खास अध्याय आदि अंश मात्र ही लिखा गया हो और उतना संपूर्ण हो, ४. अपूर्ण : कृति के आदि/अंत या एवं मध्य का एक बड़ा अंश अनुपलब्ध हो. ५. त्रुटक : बीच-बीच के अनेक पत्र अनुपलब्ध हों. ६. प्रतिअपूर्ण : प्रतिलेखक ने कृति का कोई खास अध्याय आदि अंश मात्र ही लिखा हो और उसमें भी पत्र अनुपलब्ध हो. प्रत व पेटांक की पूर्णता (जिनका आधार मात्र पृष्ठों की उपलब्धि/अनुपलब्धि पर होता है) से कृति की यह पूर्णता भिन्न हो सकती है. यथा - प्रत में संपूर्ण दिया गया हो लेकिन कृति का एक अंश ही प्रतिलेखक को लिखना इष्ट होने की वजह से मात्र उतना ही अंश लिखा हो तो कृति स्तर पर 'प्रतिपूर्ण' का उल्लेख मिलेगा. क्वचित् प्रत/पेटाकृति स्तर पर पूर्णता में 'संपूर्ण' न हो, तो भी कृति स्तर पर यह 'संपूर्ण' हो सकती है. यथा - अंत के ही एक-दो पृष्ठ न हो, ऐसी प्रत में मूल संपूर्ण हो सकता है एवं टीका का अंत भाग न होने की वजह से टीका 'संपूर्ण' नहीं होगी. इस तरह कृति स्तर पर भी पूर्णता की अपनी स्वतंत्र उपयोगिता है. खंड ६ से प्रत, पेटाकृति व कृतिमाहिती स्तर पर पूर्णता संबंधी सूचनाओं को इस तरह और स्पष्टरूप देते हुए शामिल किया गया है. कृतिगत प्रतिलेखन पुष्पिका इसके बाद कृति से जुड़ी प्रतगत प्रतिलेखन पुष्पिका की निम्नोक्त सूचनाएँ ( ) ब्रेकेट में दी गई है. कृपया यहाँ दिए गए वर्ष व स्थल आदि को कृति की रचना प्रशस्ति मानने की भूल न करें. रचना प्रशस्ति से इनकी भिन्नता बताने के लिए ही इन्हें ब्रेकेट में दिया गया है. ११. कृति प्रतिलेखन संवत, १२. कृति पूर्णता विशेष (पू.वि.), प्रत/पेटांक के साथ एकाधिक कृतियाँ संलग्न हो व उनकी पूर्णता परस्पर भिन्न हो, तो उनमें प्रत्येक में, कितने अंश की पूर्णता है, या कृति प्रतिलेखक द्वारा ही अपूर्ण इत्यादि सूचना यहाँ दी गई है. देखें - 'प्रत पूर्णता विशेष' एवं 'पेटाकृति पूर्णता विशेष.' १३. कृति प्रतिलेखन स्थल (ले.स्थल.), १४. कृति प्रतिलेखक आदि, १५. कृति प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु.), १६. कृति प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक (प्र.पु.श्लो.), १७. कृति प्रतिलेखन विशेष (वि.) - कृति स्तरगत प्रतिलेखन संबंधी इतनी सूचनाएँ प्रत व पेटाकृति स्तर की ही तरह तत् तत् कृति हेतु अलग से उपलब्ध होने पर यहाँ पर, दी गई हैं. कई बार ऐसा पाया गया है कि मूल व टबार्थ दोनों की प्रतिलेखन पुष्पिका भिन्न होती है. खास कर ऐसे संयोगों में ही यहाँ पर ये सूचनाएँ मिलेंगी. For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अनुक्रमणिका मंगलकामना : समर्पण ............................... =: प्रकाशकीय ............................................................... = ८ प्राक्कथन .. ................v-vi ... ... ......... vi-x .....xi कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा ...................... प्रस्तुत हस्तप्रत सूचीगत सूचनाओं का स्पष्टीकरण ............... अनुक्रमणिका .. प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत ............ ..................xii-xifi हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य ....... ......................xiv हस्तप्रत सूची ................. ...............१-४७४ परिशिष्टः कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या.. .. ........४७५-४७७ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ ... ...............४७८-५२५ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ ... .....५२६-५९० प्रस्तुत खंड ६ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. ० प्रत क्रमांक - २१००१ से २६९९०. ० इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से २७०८ प्रतों का समावेश इस खंड में हुआ है. 0 समाविष्ट प्रतों में कुल ३१६६ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. ० इन परिवारों की कुल ३८६० कृतियों का समावेश हुआ है. ० सूची में उपरोक्त कृतियों कुल ६७९१ बार आई हैं. For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (-) (+) # (#) ($) अप. अंति: उपा...... ऋ ******... क. कुं...... कुल ग्रं. कुल पे. क्रीत. को. प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत • कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. - कृति / प्रत / पेटांक नाम के बीच का, की, प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में . - हैं. कर्ता कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति गा. गु. गुटका www.kobatirth.org: शुद्धप्राय टिप्पण युक्त • विशेष पाठ, - - ......... के, इत्यादि विभक्ति सुचक. हैं. कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में उर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक, अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (-).............आदिवाक्य अनुपलब्ध. . अपभ्रंश (कृति भाषा ) अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ.... आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदि: आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप. प्रत प्रतिलेखन उपदेशक (प्र. ले. पु. विद्वान) उपाध्याय (विद्वान स्वरूप ) दुर्वाच्य अवाच्य, अशुद्ध पाठ सूचक, प्रत की महत्ता सूचक इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती द्वारा लिखित रचना के समीपवर्ती काल में लिखित संशोधित - " , अंक युक्त, पदच्छेद संधि सूचक वचन विभक्ति क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. • कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र. वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती है. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये ऋषि (विद्वान स्वरूप) ....... कवि (विद्वान स्वरूप ) .. कुंडली (कृति स्वरूप ) .. मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्व ग्रंथाग्र परिमाण प्रत व पेटाकृति विशेष में. कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) .. कोष्टक (कृति स्वरूप ) ग. गणि ( विद्वान स्वरूप ) गड़ी, .. गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य............. गद्यबद्ध (कृति प्रकार ) .. गाथा (कृति परिमाण) .. गुजराती (कृति भाषा ) ......... बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत यथा - अन्वय दर्शक xii Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - For Private And Personal Use Only - Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir गृही. .......... गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने | वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) गोल...........गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) ग्रं. .............. ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) जै..............जैन कृति (कृति परिशिष्ट) जै.क. ...... जैन कवि (विद्वान स्वरूप) जैदे............जैन देवनागरी (प्रत लिपि) ते..............जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) दत्त............ आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) दि............ जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) देना............देवनागरी (प्रत लिपि) पं. .............पंजाबी (कृति भाषा) पं. .......... पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) पठ............. पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) प+ग ..........पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) पद्य............पद्यबद्ध (कृति प्रकार) पा........... पाठक (विद्वान स्वरूप) पु. हिं.........पुरानी हिंदी (कृति भाषा) पू. वि.......... पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व कृतिमाहिती स्तर) ............ कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि.' 'श.' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. ..पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर) पे. नाम........पेटाकृति नाम पे. वि.......... पेटाकृति विशेष पै. .............पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) प्र. वि.......... प्रत विशेष. प्रले............ प्रतिलेखक, लहिया, Scribe (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की - (प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) ('सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धता सूचक.) प्र.ले.श्लो..... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) प्रा. ............प्राकृत (कृति भाषा) प्रे. ............. प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) बौ. ........... .बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) म. .............मराठी (कृति भाषा) महा...........महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा) मा.............मागधी प्राकृत (कृति भाषा) मा. गु..........मारुगुर्जर (कृति भाषा) मु. .......... मुनि (विद्वान स्वरूप) मु..............मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) मूपू. ...........जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) यं...............यंत्र (कृति स्वरूप) रा........... राजा (विद्वान स्वरूप) रा..............राजस्थानी (कृति भाषा) राज्यकाल ... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. राज्ये........... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो. लिख.......... प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वा........... वाचक (विद्वान स्वरूप) ..............वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी'. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष) वि. ......... विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्रे. ले. पु., कृति रचना वर्ष) विक्र........... विक्रेता - प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) व्याप........... व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान) वै............. ...वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) श...............शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र. ले. पु.) श्राव. ....... श्रावक (विद्वान स्वरूप) श्रावि......... श्राविका (विद्वान स्वरूप) श्रु.............. श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान) .............जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) .............संस्कृत (कृति भाषा) सम............. समर्पक. ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) सा.......... साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) स्था............जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) हिं. ............हिंदी (कृति भाषा) xiii For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अहमदाबाद अहमदाबाद मुंबई मुंबई tu मुंबई मुंबई हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर ४. शेठश्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, वालकेश्वर ५. श्री प्लेजेंट पेलेस जैनसंघ ६. श्री गोवालिया टेंक जैनसंघ ७. श्री प्रेमलभाई कापडीआ ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट १३. श्री सांताक्रुज तपागच्छ जैन संघ १४. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसीएशन इन नॉर्थ अमेरिका, "जैना" ह. डॉ. प्रेम गडा १५. श्री एम. जे. फाउन्डेशन १६. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई अमेरिका अहमदाबाद मुंबई मुंबई मुंबई अमेरिका मुंबई मुंबई हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. श्री आंबावाडी श्वे. मू. पू. जैनसंघ २. श्री श्वेतांबर मू. पू. जैनसंघ ३. श्री वल्लभनगर जैन श्वे. मू. पू. संघ ४. श्री विश्वनंदिकर जैनसंघ अहमदाबाद वल्लभविद्यानगर इन्दौर अहमदाबाद आप सभी धर्मप्रेमी श्रीसंघों तथा महानुभावों की उदार दानशीलता के कारण ही हस्तलिखित ग्रंथों के संरक्षण व संवर्द्धन की आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबातीर्थ की प्रस्तुत परियोजना सफलता पूर्वक प्रगति के सोपान पर अग्रसर है अन्यथा, यह कार्य इतना सरल नहीं था. xiv For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org ॥ श्री महावीराय नमः ॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति - कैलास - सुबोध - कल्याण- पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१००१. () उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, अन्य. श्राव. मांगीलाल, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., (२५.५X१०.५, ६५३४ ). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्याय- १०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चउथा० तेणे; अंति: अनुगार जी छइ तिमज छइ. २१००२. वैरागसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२५.५X१०.५, ४-५X३१-४०). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, श्लोक - १०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स० चार गतिरूप संसार; अंति: अजरामर पद पां. २१००३. (+) उपदेशमाला प्रकरण, पूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २६ - १ (१७) = २५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६x१०.५, १३४३३-३५ ). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः सोहिवव्वं पयत्तेण, गाथा - ५४३, ( पू. वि. गाथा ३९ से ६० तक नहीं है.) २१००७. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२६, आश्विन कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले. स्थल. लोलीयाणा, प्रले. मु. रीडा ऋषि; पठ. सा. नामलदे; दत्त. ऋ. लालजी; गृही. मु. शवजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१०.५, ११X३०-३५ ). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि जगह जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाई नामाई, गाथा - ७००. २१००९ वैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १७७७, वैशाख कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. सा. सुखा (गुरु सा. रूपाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०.५, १०-११X३३-४०). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, श्लोक-१०४. १ For Private And Personal Use Only २१०१०. संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७४१०.५, ९३३ - ४० ). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोयगुरुं; अंतिः सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा - ७६. २१०१२. आचारांगसूत्र सह बालावबोध- प्रथम श्रुतस्कंध, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२३ - १ ( २ ) = १२२, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे., (२६X१०.५, ३-९X२३- ४१). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. आचारांगसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं अंतिः (-), प्रतिअपूर्ण. २१०१३. उपदेशमाला, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैवे., (२६x१०.५, १०- १२४३०-४१). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति (-), (पू. वि. गाथा ५४३ तक है.) २१०१५. (+#) कर्मग्रंथ १ से ६, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८ - ६ ( ४,७,१५ से १८)=२२, कुल पे. ६, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैदे., ( २६४१०.५, ९x३३-३६). १. पे नाम, कर्मविपाक कर्मग्रंथ, पृ. १अ ५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६१, (पू. वि. गाथा - ३६ से ४९ तक नहीं है. ) Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. कर्मस्तव द्वितीय कर्मग्रंथ, पृ. ५आ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से २९ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम. बंधसामित्त, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण. ___ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२४. ४. पे. नाम. षडशीति चतुर्थ कर्मग्रंथ, पृ. १०अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७४ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. शतक सूत्र, पृ. १९अ-२२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००, (पू.वि. गाथा-४८ अपूर्ण तक नहीं हैं.) ६. पे. नाम. सत्तरी सूत्र, पृ. २२आ-२८अ, संपूर्ण. षष्ठ प्राचीन कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नउईउ, गाथा-९३. २१०१६. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १७२७, कार्तिक कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. झुंवा, जैदे., (२६४१०.५, १४-१५४४५-५०). पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: यत्सत्यं त्रिषु लोके; अंति: सत्योपाशक केवली, श्लोक-१८९. २१०१७. (+) भाष्यत्रय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. काश्मीरपुर, प्रले. मु. तेजपाल पंडित (गुरु मु. ईश्वरदास पंडित), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-पंचपाठ.,प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२६४११, ४-१०४३८-४४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: वंदि० वंदनीयान् सर्व; अंति: (१)सोमसुंदरसूरिपादैः, (२)पच्चक्खाणम० सुगमा. २१०१८. नवस्मरण, लघुशांति व पार्श्वनाथ चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०.५, १४-१७४४२-४४). १.पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैन जयति शासनम्, श्लोक-१७+२. २.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: (-), (पू.वि. नवकार, उवसग्गहरं स्तोत्र व __ कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है व बृहत्शांति स्तोत्र अपूर्ण है.) ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ चैत्यवंदन, पृ. ७अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पूर्व पेटांक के बीच में ही लिखी गई है. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २१०१९. (+) कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३-१६४४४-४८). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., महावीरस्वामी के उपसर्ग तक है., वि. बालावबोध में कहीं-कहीं संस्कृत भाषा का भी प्रयोग किया गया २१०२०. नेमीश्वर रागमाला, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदे., (२६४११, ११४३६-३७). नेमीश्वर रागमाला, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: (-); अंति: मेरु कहइ मंगल करो, ढाल-२८, गाथा-५९, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं है.) For Private And Personal use only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २१०२२. सूयगडांगसूत्र सह बालावबोध-प्रथम श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३८, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ७४५६). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य सद्गुरुन्, (२)एक दर्शनी इम कहइ; __ अंति: (-),ग्रं. ४२८५अक्ष२२, प्रतिपूर्ण. २१०२३. (+) संग्रहणीसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६९७, आषाढ़ शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले.स्थल. जालउरनगर, पठ. उपा. विमलसुंदर; पं. रत्नसुंदर (गुरु गच्छाधिपति लक्ष्मीचंद्रसूरि, पूर्णिमागच्छ); मु. राजसुंदर (पूनमगच्छ); मु. सुगुणसुंदर (पूर्णिमागच्छ); मु. जीवराज (पूर्णिमागच्छ); मु. देवराज (पूर्णिमागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ८४३४-३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७८. बृहत्संग्रहणी-छाया, सं., पद्य, आदि: नत्वा अर्हदादीन् ए; अंति: जयति तावदित्यवधार्यः. २१०२५. जंबूस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५४, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. सरीयारी, प्रले. मु. थानचंद ऋषि; मु. टेकचंद ऋषि; श्राव. पेमचंद वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४४०-४४). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सप्रभावं जिनं नत्वा; अंति: भवंति भविनां सदा. २१०२६. (+) ताजिकसार की वृत्ति व ज्योतिष संग्रह, पूर्ण, वि. १७६०, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ११, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ४२-१(१)=४१, कुल पे. २, ले.स्थल. मुकंददुर्ग, प्रले. मु. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१५९) अक्षरमात्रापदस्वरहीनं, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १३४३२-३८). १. पे. नाम. ताजिकसार की वृत्ति, पृ. २अ-४१अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७७, आदि: (-); अंति: रचिता तनुताच्चिरं, (पू.वि. प्रारंभिक पाठ नहीं है.) २. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २१०२८. (#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., द्वितीयव्रत कथा अपूर्ण तक है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १७-१८४५७-६७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं; अंति: (-). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हओ कहीनई; अंति: (-). २१०२९. (+) दानाधिकारे शालिभद्रधन्नानो रास, संपूर्ण, वि. १८२७, माघ कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. मु. अमृतविजय पंडित (गुरु पं. राजविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, १३-१५४४३-४५). शालिभद्रमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: मनवंछित ___फल लहिस्यैजी, ढाल-२९. २१०३१. दशवेकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. ४८, ले.स्थल. वोरावड, प्रले. मु. पेमराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३१३१,प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, ६४३६-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: भविआण विबोहणट्ठाए, अध्ययन-१०, चूलिका २, ग्रं. ७२१, (वि. १८५५, श्रावण शुक्ल, ६, गुरुवार, वि. प्रथम प्रहर में प्रतिलेखन कार्य पूरा होने का उल्लेख है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म केवली भगवंतनो; अंति: प्रतिबोधवानै अर्थे, ग्रं. २४१०, (वि. १८५५, आश्विन कृष्ण, १३, रविवार) For Private And Personal use only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१०३३. रत्नसारकुमार चउपई, पूर्ण, वि. १६१९, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, प्रले. आ. हंसभुवनसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १८-१९४५८-६३). रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५८२, आदि: (-); अंति: आणी बुद्धि प्रकाश रे, __ गाथा-३०४, (पू.वि. गाथा-२१ तक नहीं है.) । २१०३४.(+) भोज चरित्र, संपूर्ण, वि. १७६२, भाद्रपद कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले.स्थल. रोहिणी, प्रले. पं. अमीचंद (गुरु पं. सोमदत्त); दत्त. पं. चंदैजी; गृही. पं. नथमल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. बाद में लिखी गयी प्रतिलेखन पुष्पिका इस प्रकार मिलती है-"आ परत पाचंदैजी पानथमलनै दीधी इणरै वदलै पाछी चोपइ मंगलकलसरी लिख दीवी छ। सलीणामध्ये सं.१८५१ का.सुद.१५"., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १७X४५-५२). भोजराजा चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, आदि: अश्वसेनं जिनं नत्वा; अंति: कौतुकं मानवसंस्थितः, प्रस्ताव-५. २१०३६. (+) भक्तामर स्तोत्र व अजितशांतिजिन स्तव सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्रले. मु. मानसागर (गुरु ग. जीतसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यह प्रति टीका के रचना समीपवर्ति काल में लिखी होने की संभावना है., पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४१०.५, ५-१०४२५-३१). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४, ग्रं. ७७. भक्तामर स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६८३, आदि: नत्वा वृषोपदेष्टार; अंति: आश्रयिष्यते इति भावः. २. पे. नाम. अजितशांतिजिन स्तवन सह वृत्ति, पृ. ७आ-१३अ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: अजिअसंति जिणनाहस्स, गाथा-४२. अजितशांति स्तव-वृत्ति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणिपत्य जिनवरे; अंति: शांतिजिनं स्तविदधे. २१०३७. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-१(१)=१५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११, १५४५४). __बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१०३८.(+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, गायत्रीमंत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३, कुल पे. ३, प्रले. मु. मेघा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ९x४५-५०). १. पे. नाम. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३३अ, संपूर्ण. राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं आमलकप्प; अंति: पासस्स सीस्सं तिबेमि, सूत्र-१७५. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिसी काल तिसी समे; अंति: कुमारनो इत्यब्रवीम्. २. पे. नाम. गायत्रीमंत्र संग्रह, पृ. ३३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ भुर्भुवः स्वः ॐ तत; अंति: सवित् जिनाय स्वाहा. ३. पे. नाम. श्लोक, पृ. ३३आ, संपूर्ण. जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. २१०३९. आउरपच्चक्खाण पइन्नं, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. मु. तेजा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ९४३९). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणम्, गाथा-८१. २१०४०. (+) अणुत्तरोववाईदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, अन्य. मु. धर्मसी ऋषि (गुरु मु. सिद्धराजजी ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ९४३३-३५). For Private And Personal use only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० नवमस्स; अति: जहा धम्मकहा यव्वा, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. २१०४१. (+) सारस्वत प्रक्रिया सह चंद्रकीर्तिटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १९४४५-५१). सारस्वत प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मान; अंति: (-). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याणपद; अंति: (-). २१०४२. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ५४३८-४१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४१. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: कालइ अनंतगुणा छइ. २१०४३. गुणस्थान प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९०२, आश्विन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. पं. ज्ञानचंद्र; अन्य. पं. तेज (गुरु पं. फतेंद्रसागर); मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११, १५४५०-६०). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३७. गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: अर्हत्पदं हृदि; अंति: प्रकटित इत्यर्थः. २१०४४. उत्तराध्ययनसूत्र की सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, जैदे., (२५४११, ११-१५४३३-४०). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्तधरीजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-२३ की सज्झाय तक लिखा है.) २१०४५. (+) श्रावक प्रतिक्रमण सह टबार्थव श्लोक, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, ले.स्थल. तोलीयासर, प्रले. पं. दानवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४४०-४४). १. पे. नाम. श्रावक प्रतिक्रमण सह टबार्थ, पृ. १आ-१९अ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: वंदामि जिणे ___ चउवीस, ग्रं. २२०, (वि. १८५४, आषाढ़ शुक्ल, ११) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार अरिहंत; अंति: चउवीस जिनेंद्र प्रतइ, ग्रं. ६००, (वि. १८५४, श्रावण शुक्ल, १४, रविवार) २.पे. नाम. श्लोक, पृ. १९अ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. २१०५०.(+) श्रावकदिनकृत्य, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३४४५-४८). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंति: मिच्छामिह दुक्कडंवि, श्लोक-३४०. २१०५१. संबोधसत्तरीसह वृत्ति व पुद्गलपरावर्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १३४४५-४८). १. पे. नाम. संबोधसत्तरी सह वृत्ति, पृ. १आ-१९अ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-७५. संबोधसप्ततिका-वृत्ति, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा तं श्रीमहावीर; अंति: कृता संबोधसप्ततेः. For Private And Personal use only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पुद्गलपरावर्त स्तोत्र, पृ. १९आ, संपूर्ण, प्रले. मु. सौभाग्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. आ. अभयदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतराग भगवंस्तव; अंति: श्रेयःश्रियं प्रापय, श्लोक-११. २१०५२. (+) सप्तस्मरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, पू.वि. उवसग्गहरं स्तोत्र नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४३३-४०). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनाथ जिता जिण सघल; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २१०५३. धर्मसारे मृगावती चरित, संपूर्ण, वि. १६४४, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्रले. मु. महिपाल (गुरु वा. गोपाल, मलधारीगच्छ); विक्र. मु. गुणविजय; क्रीत. कनयालाल बुधीलाल लैया; सम. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अन्त में इस प्रत हेतु "मुनि रत्नविजयजी तरफथी वीरबाइ पाठशालाने भेंट" का उल्लेख मिलता है., जैदे., (२७४११, १६-२०४४८-५१). मृगावती चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., गद्य, आदि: जयंति वर्धमानस्य; अंति: सुचिरमस्तु कंठे सतां, अध्याय-५. २१०५४. (+) आचारांगसूत्र-श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, अन्य. मु. काहानजी मांडण ऋषि; ऋ. हाथीजी; मु. सिद्धराज ऋषि; धर्मसी; मु. जसराज ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, ११४३४-३९). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २१०५५. (#) संथारा पइन्नं सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, अन्य. मु. कल्याणभवान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११,३-८x२२-२६). संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमोक्कार जिणवर; अंति: सुहसंकमणं सया दिंतु, गाथा-१२२. संस्तारक प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमः शमितनिश्शेषकर्म, (२)इहां सघलाइ शास्त्रना; अंति: रूप प्रीति दान देउ. २१०५६. क्षेत्रसमास सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६०४, वैशाख, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११, १०-१२४३५-३८). लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभस्सण; अंति: सुत्ता नायव्वो, अध्याय-५, गाथा-१०४. लघुक्षेत्रसमास की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नत्त्वा प्रणम्य सहज; अंति: समासाद् ज्ञातव्य इति, ग्रं. ६००. २१०५७. इलाकुमर चोपई व वासपूज्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८१, पौष कृष्ण, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. जावरनगर, पठ. मु. नगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११, १६-१८४३६-३८). १. पे. नाम. इलाकुमर चोपड़, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा; अति: भावतणा गुण एहवा जाणी, ढाल-१६. २. पे. नाम. वासपूज्य स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: मो मन लागो वासपूज्य; अंति: जिन वर्द्धमान जिनेसर, गाथा-७. २१०५८. श्रेणिक रास व सीमंधरस्वामी वीनती, संपूर्ण, वि. १६८६, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६.५४११.५, १५-१६४३८-४४). १. पे. नाम. श्रेणिक रास, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण, ले.स्थल. खंभायति. For Private And Personal use only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ श्रेणिकराजा रास, मु. भीमजी, मा.गु., पद्य, वि. १६२१, आदि: गौतमनि सिर नामीय; अंति: साधु सहूनि चरणे नमुं, खंड-३. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी वीनती, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण. सीमंधरस्वामी स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणा कीधा; अंति: रे भरि आणंद पूरि तो, गाथा-४९. २१०६०. (+) पाक्षिकसूत्र व क्षामणक विधि, संपूर्ण, वि. १७२२, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, पठ. मु. प्रमोदचंद्र (गुरु ग. सुखचंद्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३९-४३). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-११अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: (१)जेसिं सुयसायरे भत्ति, (२)मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. क्षामणक विधि, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.. पाक्षिकखामणा, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. २१०६१. (+) सीलोपदेशमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६७८, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. राटद्रह, प्रले. मु. हीरराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १५४३४-४२). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबभआरि नेमिकुमार; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, कथा-४३, गाथा-११६. २१०६३. नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-२१(५ से १०,१५ से २९)=१२, जैदे., (२६.५४११, १०-११४२८-३६). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाइं नामाई. २१०६४. यतिप्रतिक्रमणसूत्र की अर्थनिर्णयकौमुदी वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदे., (२६.५४११, १९-२५४६३-७७). पगाम सज्झायसूत्र-अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदिः (-); अंति: (१)निर्णयकौमुदी, (२)सर्वमनवद्यम्. २१०६५. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४११, १५४३५-३८). शोभन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. २१०६६. सूयगडांगसूत्र-श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, अन्य. मु. कल्याणभवान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४०-४३). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २१०६७. चैत्यवंदन व गुरुवंदन भाष्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदे., (२६४११, ४४३३-३८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनतं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २१०६८. (+) इकवीसठाण प्रकरण व मुहपत्ति पडिलेहण गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ६४३९-४१). १. पे. नाम. इक्कवीसठाण प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: अवसेस साहारणा भणिया, गाथा-७०. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, आदि: केहा विमानेथी चव्या; अंति: (१)संशोध्य वाच्यम्, (२)शेष बोल समुचइ कह्या. २. पे. नाम. मुहपत्ति पडिलेहण गाथा सह टबार्थ, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. जैन गाथा , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. जैन गाथा का टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१०६९. नलदवदंती चौपई, संपूर्ण, वि. १७४९, भाद्रपद कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३०, प्रले. बालकृष्ण (गुरु मु. धर्मदास ऋषि); पठ. मु. वारसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १४-१६x४६-५०). नलदमयंतीरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: चतुर माणस चित्त वसी, खंड-६, ढाल ३९. २१०७०. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-५(३ से ५,११ से १२)=११, पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १५४४५-४९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय चूलिका गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) २१०७२. केसीवचनात् परदेसी प्रतिबोध रास, संपूर्ण, वि. १७०१, कार्तिक शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. सूर्यपुर, प्रले. मु. जितसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १९-२०४५५-६२). केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: पामे शिवसुख सार, ढाल-४१, गाथा-५८६, ग्रं. ९००. २१०७३. (+) वीरजिन उपसर्ग विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, अन्य. मु. कान्हाजी मांडण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १२-१३४३४-४१). महावीरजिन उपसर्ग विवरण, सं., गद्य, आदि: भगवान् मार्गशीर्ष; अंति: मकार्षीद भगवान्. २१०७४. सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, कार्तिक शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. लोटोती, प्रले. मु. सुजाण (गुरु मु. नरसिंघ ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११, ५४४४-४५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अति: स जानाति जनाग्रतः, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: केहवो छै नखद्युतिभरः; अंति: आगै जाणै उपदेश द्यइ. २१०७५. वईराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११, ११४४२-४६). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, श्लोक-१०३. २१०७६. (+) चतुर्विंशतिजिनानां स्तुतिः, संपूर्ण, वि. १६४४, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. तालध्वजपुर, प्रले. ग. जयसागर; पठ. मु. पद्महर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-क्रियापद संकेत., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३७-४०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. २१०७७. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, अन्य. ऋ. वेलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १४-१७४५२-६३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६.. २१०७८. (+) तीर्थमाला सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १५-१७X५४-६०). तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहमूरि, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंतं भगवंतं; अंति: मुणिविंद थुय महिया, गाथा-१११. तीर्थमाला स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अर्हतं पूजायोग्य; अंति: महिताः सत्कृताश्च. २१०७९. (+#) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. शवसी ऋषि (गुरु मु. नारायणजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ५४३९-४३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन जे त्रणि; अंति: ते माहिथी उद्धर्यो. For Private And Personal use only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २१०८१. (+) मेघदूत की शिष्यहिता टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १९-२४४४७-५०). मेघदत-शिष्यहितैषिणी टीका, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरं धराधीर; अंति: निशोकत्वादानंदितमनसौ. २१०८२. प्रतिक्रमणसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदे., (२७४११, १५-१७X४८-५३). विधिपक्षश्रावकसामाचारी, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजीराउलिपुरवरनायक; अंति: दाहिणभावं च णं जणइयइ. २१०८३. (+) प्रवचनसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. वीरमगाम, अन्य. मु. मोतीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४११, १८-२०४६१-६८). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: नंदउ बहु पढिजतो, श्लोक-१६१६, ग्रं. २०००. २१०८४. मणिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १५०८, श्रावण कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२७४११.५, १५-१७४५०-५६). मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदि: नमिऊण महावीरं चउ; अंति: ता नंदओ मणिवई चरियं, गाथा-६४२, ग्रं.८०३. २१०८५. (-) नरगवेलि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७७११, ११४४०-४३). नरकवेलि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: देवदया पर नमीय; अंति: हुं वांछु गुणठाण, गाथा-१३५. २१०८६. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४२-५१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: कहणायवि आलणा संघे, अध्ययन-१०, चूलिका २, गाथा-७००. २१०८७. योगरत्नाकर-अध्याय ७, संपूर्ण, वि. १९७०, आश्विन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ६७, ले.स्थल. गोधरा, प्रले. मु. राजेंद्रसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., जैदे., (२७४११.५, १४-१५४४९-५४). योगरत्नाकर, वा. नयनशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. चिकित्साकथन सप्तम अध्याय है.) २१०८८. भगवतीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., शतक-१ उद्देश-१ तक है., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४३३-३८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: (-). भगवतीसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१०९०. (+) कर्मग्रंथ १ से ४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ५-६x२३-३१). १. पे. नाम. कर्मविपाक कर्मग्रंथ, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरी हिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीर तीर्थंकरनइ; अंति: कहिउ देवेंद्रसूरिइं. २. पे. नाम. कर्मस्तव कर्मग्रंथ, पृ. १०आ-१७अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: तथा प्रकारे स्तवू; अंति: पण वांदु ते वीरने. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ, पृ. १७अ-२२आ, संपूर्ण. . For Private And Personal use only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधविधान हेतु मिथ्या; अंति: सांभली गुरु समीपे. ४. पे. नाम. षडशीति कर्मग्रंथ, पृ. २२आ-३४आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-९०. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीने जिनने जीव; अंति: कहिउ देविंद्रसूरि. २१०९१. जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७६४, आश्विन कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(५)=६, पू.वि. गाथा ३३ से ४१ तक नहीं है., जैदे., (२५.५४११, ५-७४३०-३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: महावीर चोवीसमां; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३२ तक ही टबार्थ उपलब्ध है.) २१०९४. प्रथम कर्मविपाक सूत्रम्, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५४१२, ५४३०-३८). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरी हिं, गाथा-६१. २१०९५. (+) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९०५, कार्तिक शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १३१-१(३)=१३०, ले.स्थल. सरवाड, प्रले. मु. अभचंद (गुरु मु. पाहडमल), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १-७४३५-४७). चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरि० जयति नवणलिण; अंति: सोक्खुप्पाए सया पाए, प्राभृत-२०, ग्रं. २१००. चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टीका का टबार्थ#, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां अविघ्नपणे इष्ट; अंति: नही अ० अवनीत नै देवउ, ग्रं. ९४००. २१०९७. (+) सूक्ति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे.. (२५.५४११.५, ९४२४-२६). सूक्ति संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्मतः सकलमंगलावली; अंति: (-). २१०९८. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २८-१(२६*)=२७, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. सा. पुण्यश्रीजी; पठ. सा. सौभाग्यश्रीजी (गुरु सा. पुण्यश्रीजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १०४२८-३१). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो जीवतत्त्व बीजो; अंति: अजीव ते मिश्र कहिइ. २१०९९. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१२, १०४३०-३५). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: सर्वे दोषाद्विमुंचति, श्लोक-८२, ग्रं. ८४. २११०१. सिद्धपंचाशिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३९ तक है., जैदे., (२५.५४१२, १-३४२३-३१). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: (-). सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धं क० आपणो अर्थ; अंति: (-). २११०२. विपाकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्रुतस्कंध २ अध्ययन १० अपूर्ण तक है., जैदे., (२६४१२, ७-८४४०-४६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-). विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणई कालई चउथा; अंति: (-). For Private And Personal use only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २११०३. (+) अणुत्तरोववाइदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३४-३९). ___ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: जहा धम्मकहा __णेयव्वा, अध्याय-३३, ग्रं. २००. २११०४. (+) साधुवंदना व सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, अन्य. मु. सुंदरजी संघ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१२, ११४२६-३०). १. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: सिंघ साथिहिं संथुआ, ढाल-७, गाथा-८७. २. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बैंस ईक्ष्यागइ राजीओ; अंति: वीनती सफल करिज्योजी, गाथा-६. २११०५. साधुश्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, नंदीसूत्र मंगलिकपाठ, नवस्मरण व मुहपत्ति के ५० बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ५, ले.स्थल. नार्दपूरी, प्रले. पंन्या. कल्याणविजय; पठ. मु. नेमचंद (गुरु पंन्या. कल्याणविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १४-१५४३१-३८). १. पे. नाम. साधुश्रावक प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं. २. पे. नाम. नंदीसूत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जग जीवजोणी; अंति: जए भदं दमसंघसूरस्स, गाथा-१०. ३. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. ५अ-१६आ, संपूर्ण. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, स्मरण-९. ४. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. नवस्मरण के बीच में यह कृति लिखी गई है. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. ५. पे. नाम. मुहपत्ति ५० बोल, पृ. १६आ, संपूर्ण, वि. १८८६, फाल्गुन शुक्ल, ८, ले.स्थल. वागरा, प्रले. मु. गुलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व; अंति: ए छकायनी जेणा करु. २११०६. अंतगडदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. दीवबंदर, प्रले. मु. शिवजी ऋषि (गुरु ऋ. हाथी), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४१२, १३-१४४३४-४३). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, ग्रं. ८००. २११०७. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. नरसिंघ ऋषि; पठ. सा. रामबाई आर्या; सा. कमलादे आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १२-१३४३६-३८). साधुवंदना, मु. श्रीधर, मा.गु., पद्य, आदि: पढम नाह सिरी रिसह; अंति: कहइ जयभर जयकरी, गाथा-१६५. २११०८. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८५६, आश्विन कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदे., (२६४११.५, ११-१३४३९-४३). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: तणा साध्य देवाधिदेवो. २११०९. बारभावना स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६.५४१२, ११४२६-३०). १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल कुल कमलना हंस; अंति: सकल मुनि चित्ति आणो, ढाल-१४. २१११०. आणंदसंधि, संपूर्ण, वि. १८९६, आषाढ़ कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मथेन शिवचंद; अन्य. सा. कीस्तुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १९४५४-६०). For Private And Personal use only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आनंदश्रावक संधि, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल-१५. २११११. उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ९, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५४१२, १०४२२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २१११२. दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन १ से ४, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५४१२, १२४२५-३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २१११६. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७४१२, १८४४३-४६). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: जैन जयति शासनं. २१११७. योगसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९५, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५४११, ५४४२). योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., पद्य, आदि: णिम्मलझाणपरिट्ठया; अंति: कया दोहा इक्कमणेण, गाथा-१०८. योगसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निर्मल ध्यानने विषइ; अंति: नाम छंद सहित कीधा. २१११९. वसुधारा स्तोत्र सह विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४११, ११४३७-३८). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं ऋषि; अंति: अखूटा भवति. २११२०. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७३, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. सूर्यपूर, प्रले. पं. खेमविजय (गुरु ग. विनयविजय, आनंदसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीअभीनंदन प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११.५, ९-१०४२७-२८). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २११२१. रूपसेन रास, संपूर्ण, वि. १७९४, माघ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले.स्थल. दीवबंदर, प्रले. मु. कर्मसी नेमचंद ऋषि (गुरु मु. लक्ष्मीचंद ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११.५, १४-१६x४२-४४). रूपसेन रास, मु. ज्ञानमुर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९४, आदि: तीर्थंकर त्रेवीसमो; अंति: ज्ञानमुरति० कमला वास, ढाल-५७, गाथा-१२९६, ग्रं. १८५६. २११२२. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, पठ. सा. कीकाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, ११४३७-४०). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, श्लोक-५४४. २११२३. आर्यवसुधारा धारिणी, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. पं. धर्मचंद्र; पठ. मु. गुमानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ९-१०४२६-२७). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. २११२४. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६४११.५, ११-१३४२७-४२). साधवंदना, म. श्रीधर, मा.ग., पद्य, आदि: पढम नाह सिरी रिसह; अंति: करो मुज मंगलमाल तो, गाथा-१६०, २११२५. औपदेशिक श्लोक सह विवरण व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १०४२८-३०). १. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक सह विवरण, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक, सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरु; अंति: वृक्षस्य फलान्यमूनि, श्लोक-१. औपदेशिक श्लोक-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागदेव परम; अंति: उत्तम श्रेय पामे. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, पृ. ४अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: (-). २११२६. (+) श्रीपाल चरित्रं सिद्धचक्रमाहात्म्ययुतम्, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-१(१६*)=२५, प्र.वि. श्रीरिषभ प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १०-११४३५-४०). For Private And Personal use only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल चरित्र, आ. लब्धिसागरसूरि, सं., पद्य, वि. १५५७, आदि: स्वस्ति श्रीवर्धमानो; अंतिः सेव्यतामर्थिताप्तये, व्याख्यान ९ लोक- ५०८. - २११२८. भवसदंत चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९४ वैशाख शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्रले. वा. पुरुषोत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३७). भवसदंत चौपाई, मु. रायमल ब्रह्म, मा.गु., पद्य, वि. १६३३, आदि: श्रीस्वामीचंद्रप्रभ; अंतिः रोग सोग न व्यापे काल, गाथा - ९२४. २११२९. शीलविषये सुरसुंदरीसती चउपी, संपूर्ण, वि. १९०५ आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदे., (२५.५X११.५, १०-११X३०). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनउ सलहियइ; अंति: आनंद लील उमंगेजी, अध्याय- ४, ढाल ४०, गाथा - ६१३, ग्रं. ९००. " २११३०. उत्तराध्ययनसूत्र की कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०५ ४७(१ से २,४८ से ८८, १०९ से १०४ ) = ५८, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६X१३, १३x४१). उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २११३१. प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले. स्थल. देवास, प्रले. ऋषि (गुरु मु. नरोत्तमजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १५X३२). १३ २११३९. विवेकमंजरी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५.५x१२, १५-१६x४१-४५). For Private And Personal Use Only प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: अरिहंत सिद्धिने आयरि; अंति: छोडो संसारनो पासो रे, ढाल - २५, ग्रं. ७००. " सूत्र - २१. २११३३. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३४, वैशाख शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल मेदनीपुर, प्रले. मु. . रायचंद ( गुरु मु. रायचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२६४१२, ४x२९-३० ). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, पगाम सज्झायसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः इहां प्रतिक्रमण; अंति: छेहडइ मंगल जाणिवड, २११३४. (+) पुन्यसार चतुष्पदिका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३ (१ से ३) ५, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४६४९). - पुण्यसार चौपाई, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९७९, आदि: (-); अंति: लहे अंत संसारनो, ढाल ५१, (पू.वि. ढाल १५ तक नहीं है.) २११३६. (*) विवेकविलास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३३ - १ (३०) ३२, पू. वि. उल्लास २ गाथा ४ से १२ तक नही है व उल्लास-२ की गाथा - १२१ तक लिखा है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., .दे., (२५x१२, ११- १४X३०-३७). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस; अंति (-), पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. विवेकविलास- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: एको एक परमात्मानइ; अंति: (-), पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २११३७. श्रीपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४५, आषाढ कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले. स्थल नालनील, प्रले. मु. मंगलसेन; पठ. सा. सोनाजी (गुरु सा. चंदरावलजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसंतजी., जैवे. (२४.५x१२, १५-१७४३२-४२). श्रीपाल चौपाई, मु. परमल्ल, मा.गु., पद्य, वि. १९३०, आदि: श्रीशांतिनाथ सिमरु; अंति: सायसुं वरतै मंगल चार, खंड-४. २११३८. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९२०, चैत्र कृष्ण, ४, जीर्ण, पृ. १४, ले. स्थल. जोधपुर, प्रले. पूनमचंद बोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x१२, १८४३९-५२ ). " नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति से तं नंदी सम्मत्ता, मु. काशीरामजी Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विवेकमंजरी, किसनलाल, मा.गु., पद्य, आदि: नमो देव अरिहंतजी; अंति: पूरन ग्रंथ उदार, गाथा - २४०. २११४३. (+) मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६.५x११.५, १५x५२ - ६० ). मुनिपति चरित्र, प्रा., पद्य, आदि मणिवइ रायरिसी विय जल; अंतिः सजाउभयेणं परमं गाथा - १२५८. २११४४. आगमसारोद्धार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८७२, पौष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ७३, ले. स्थल. अजमेर, जैदे., कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२६x१२, ८x२९ - ३२). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि अनादि मिध्यात्वी अंतिः तिथि सफल फली मन आस. २११४५. अंजनासुंदरी रास व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२९, ज्येष्ठ शुरू, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले. स्थल. तोस्याम, जैवे. (२५.५४११.५, २१४४९-५४). - 9 १. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह *, मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. अंजनासुंदरी रास, पृ. १अ - ८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पहिलइनइ कडावइ हो पाय; अंतिः भार्या जगतनी मात तो, गाथा - १५७. २११४६. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८२४ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १२६ - १२१ (१ से १२१ ) =५, ले. स्थल. कालंधरी, प्रले. मु. विनयविजय (गुरु मु. सुंदरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. बालावबोध बार्थ के रुप मे दिया हुआ है. श्रीमाहावीरजी प्रसादात्, जैवे. (२४.५x१२, ५X३२-३९). " श्रावकषडावश्यक सूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: इअ समत्तं मएगांहिअं. आवश्यक सूत्र- तपागच्छीय श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का बालावबोध, मु. ,जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७५१, आदि (-); अंतिः लिलेखार्कपूरे मुदेति. २११४७. नाममाला का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०७, ज्येष्ठ कृष्ण, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. बिनोली, प्रले. मु. सोभागचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५x११.५, १८४३९-४५). नाममाला भाषा, आव, बनारसीदास, मा.गु., पद्म, वि. १६१७, आदिः ॐकार परनाम कर भनु; अंतिः परमानंद विलास, गाथा - १७५. " २११४९. क्षेत्रसमास का संक्षेपविचार, पूर्ण, वि. १८९२ माघ कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १६ - १ (१) = १५, ले. स्थल सीरोही, प्रले. सा. रूपा; पठ. श्राव, पेमचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जीवे. (२५.५x१२, १३४५९-६६ ). बृहत्क्षेत्रसमास - विचार, मा.गु., गद्य, वि. १५३-१९पू, आदि: ( - ); अंति: शास्त्री जाणवो. २११५०. (+) अणुत्तरोववाईदशांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७४, कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. जीइंद, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि (गुरु मु. हरजीमल ऋषि); पठ. सा. पनाजी आर्या, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मल्लिजी प्रसादेण., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२६.५४१२, ७x४७-४८). 19 अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः तहा णेयव्वं, अध्याय ३३, ग्रं. १९२, (वि. १८७४, वेदऋषसिधचंद्रमा, कार्तिक शुक्ल, २) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणे काल चोथा; अंति: कथा त० तिम ने० जाणवा, (वि. १८७४, कार्तिक शुक्ल, १४) For Private And Personal Use Only २११५१. सूयगडांगसूत्र सह टवार्थ- द्वितीय श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६०, जैदे., (२५.५X१२, ४-७५६-६५ ). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति विहरति ति बेमि, प्रतिपूर्ण सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: स्कंध संपूर्ण थयो, प्रतिपूर्ण. २११५२. सातनय विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-२(२ से ३ ) =५, जैदे., (२५X११, १६x४५-४८). 9 नयचक्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अनुजोगद्वार सूत्रे; अंति: तीवारइ पुद्गल कहइ. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २११५४. क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८४२, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. पलिकानगर, प्रले. पं. रत्नराज (गुरु पं. धनराज, बृहत्खरतरगच्छ ); पठ. मु. गुलाबचंद मु. हर्षचंद (गुरु पं. रत्नराज, बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीजिनकुसलसूरिजी प्रसादात्., जैदे., (२५X११.५, ११x२६-२९). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंतिः कुसलरंगमयं पसिद्धं, अधिकार - ६, गाथा - २६५. २११५६. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८४ पौष कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. २३, ले. स्थल विक्रमपुर, प्रले. पं. जसराजजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११.५, १२X३७ - ४१). .जैदे., नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: से तं नंदी सम्मत्ता. २११५८. मंगलकलस चतुपदी व आषाढभूति चौपाई, अपूर्ण, वि. १८४७, माघ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, (२५X११.५, १३ - १५X४४-५१). १. पे, नाम, मंगलकलश चौपाई, पृ. १आ-१५आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: पास जिनेसर पय कमल; अंति: आदरिज्यो गुणवंत, ढाल - २१. २. पे. नाम. आषाढभूति चौपाई, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आषाढाभूति चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: सासणनायक सुखकरू वांद; अंति: (-), ( पू.वि. ढाल - १, गाथा - १ तक है . ) २११५९. (#) सूयगडांगसूत्र सह बालावबोध-द्वितीय श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, प्र. वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, ५-१४४३१-३९ ). " सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र- बालावबोध, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंतिः छउ इत्यादि पूर्ववत्, प्रतिपूर्ण २११६०. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, प्रले. सा. रतना; पठ. सा. रंभा आर्या (गुरु सा. रतना ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x११, १५-१६४३३-३६). " नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाई नामाई, गाथा - ७००. २११६२. अंबडपरिव्राजक कथानक व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८२५, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३३, कुल पे. २, ले. स्थल. वृद्धमानपुर, प्रले. पं. नवनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., प्र. ले. लो. (२९४) अज्ञानदोषान्मतिविभ्रमाद्वा, (३५९) अक्षरमात्रापदस्वरहीनं, (७५२ ) जब लग मेरु थिर रहि, (७५३) भणि गुणि जे सांभलि, (७५४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, जैदे., ( २६११.५, १६ - १७४४२-४५), १. पे. नाम. अंबड परिव्राजक कथानक, पृ. १आ - ३३अ, संपूर्ण. अंबड चरित्र, पं. अमरसुंदर, सं., गद्य, आदि: पांतु वः श्रीमहावीर; अंति: जन्मनि फलं, ग्रं. १३००. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३३अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह -, सं., पद्य, आदि: ( - ); अंति: ( - ), श्लोक - १. २११६४. (+) स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५x११.५, १५- १७४४७-४९). स्थविरावली, सं., गद्य, आदि: अथैतेषां पंचाना; अंतिः काले मलयगच्छेपि भवति. २११६५. (*) नवकार चौपाई, अपूर्ण, वि. १७९०, माघ शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २८-५ (१ से ५ ) -२३, ले. स्थल, आनंदपुर, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैदे., ( २६४११.५, १५-१६४५० -५१), नमस्कार महामंत्र चौपाई, मु. जिनलब्धि, मा.गु., पद्य, वि. १९७८५, आदि (-); अंति: दोलति तियां धाय थे, ( पू.वि. ढाल - ७ गाथा - ७ तक नहीं है. ) For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २११६८. (#) विचार संग्रह सह सूचि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, अन्य. आ. भुवनसुंदरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पत्र पर अंकित २५ संख्यात्मक विचारसंग्रह की सूचि खंभात भंडार मे सिद्धान्तग्रंथ ढूंढने के क्रम में प्राप्त होने का उल्लेख मिलता है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १९-२०४८२-८७). विचार संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ननु चतुर्दश्या; अंति: दुद्धेहिं गीएहिं, संपूर्ण. २११६९. अध्यात्मगीता, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४११, १०-१२४३३-३७). अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमियै विश्वहित; अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४८. २११७०. (+) स्तुतिचौवीसी सह टीका, संपूर्ण, वि. १६५६, कार्तिक कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. नयसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, ९-१०४२६-२९). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीधनपालपंडितबंधवेन; अंति: भव्यलोकमवेति संबंधः. २११७१. (+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(५,८)=१०, पठ. नाथा; अन्य. वृजभूषण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३-१४४३३-३४). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २११७३. न्यायसूत्र, प्रमाणप्रमेय स्वरूप, न्यायसूत्र की वृत्ति व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९५४, वेदानंगबाणग्रहविधुसंवत्सरे, चैत्र शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे. ४, ले.स्थल. जयशीलमेरु पत्तन, प्रले. श्राव. कन्हैयालाल पृथुक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ८००, जैदे., (२६.५४११.५, १२-१३४३८-४४). १.पे. नाम. न्यायप्रवेश सूत्र, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. न्यायप्रवेशसूत्र, दिङ्नाग, सं., गद्य, आदि: साधनं दूषणं चैव; अंति: सान्यत्र सुविचारिता. २. पे. नाम. प्रमाणप्रमेय स्वरुप, पृ. ४अ-८आ, संपूर्ण.. सं., गद्य, आदि: सर्वदर्शनेषु प्रमाण; अंति: स्वरुपं समाप्तमिति. ३. पे. नाम. न्यायप्रवेशसूत्र वृत्ति, पृ. ८आ-२६अ, संपूर्ण.. न्यायप्रवेशसूत्र-शिष्यहिता वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सम्यग्ज्ञानस्य; अंति: भव्यो जनस्तेन, ग्रं. ५९७. ४. पे. नाम. सामान्य श्लोक संग्रह, पृ. २६आ, संपूर्ण. अजैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. २११७४. रात्रिभोजन चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९२, चैत्र शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. मूलत्रांण, प्रले. पं. सुखरत्नजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४४४-४७). रात्रिभोजन चौपाई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वर्धमान जिनवर तणा; अंति: अतिचयत सुचंगा हो, ढाल-२६. २११७८. संवादसुंदर, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२७४११, १३-१४४५०-५७). संवादसुंदर, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीसोमसुंदरगुणं; अंति: भवति मेदुरमंडश्रीः. २११७९. लघुजातक सह टीका, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्र.वि. कुल ग्रं. ९००, जैदे., (२४.५४११,१७-२१४४२-५३). लघुजातक, वराहमिहिर, सं., पद्य, आदि: यस्योदयास्तसमये सुरम; अंति: नष्टजातकसिद्धये, अध्याय-१३. लघुजातक-अवचूरि, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, वि. १७१५, आदि: यस्येति यस्य सूर्य; अंति: कृपापरैः शोधनीयेयां. २११८०. मणिपति किंचिकश्रेष्ठि चुपई, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ५५, जैदे., (२५.५४११, ९४२९). मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५०, आदि: गोयम गणहर गोयम गणहर; अंति: मुणिवरनई कोप अपार, ढाल-२७, गाथा-५९६. For Private And Personal use only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २११८२. लिंगानुशासन सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, ८४३७-३८). हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंगं कटणथपभमयर; अंति: शासनानि लिंगानाम्, अध्याय-८, श्लोक-१३९. हैमलिंगानुशासन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमः सर्वविदेकादयोदंत; अंति: कानीपालं इत्यादि. २११८३. (+) जीवानुशासन सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६७१, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ४२+३(४,९,१२)=४५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४११, १४-१५४४७-५९). जीवानुशासन, आ. देवसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११६२, आदि: निम्महियरायरोसं वीर; अंति: बासट्ठी सूरनवमीए, गाथा-३२३. जीवानुशासन-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवसूरि, सं., गद्य, आदि: अल्पश्रुतमतिसम्मत; अंति: सिद्धांतपारगैः, ग्रं. २२००. २११८४. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २१४५९-६२). चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद; अंति: भवतीति गाथार्थः. २११८५. (+) दंडकशतं, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पठ. सा. इंद्राजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १४४३५). २४ दंडकशतक, मु. जयमल्ल, प्रा., पद्य, वि. १६२९, आदि: नमिऊण वद्धमाणं अमरिं; अंति: रईयं चउवीसदंडसयं, गाथा-१०४. २११८६. (+) कर्मग्रंथ १ से६, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, १७४५६-५९). १. पे. नाम. कर्मविपाक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधसामित्तं, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीतिकं, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५. पे. नाम. शतकसूत्र, पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ६. पे. नाम. सत्तरी, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. सत्तरी कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: पूरेऊणं परिकहंतु, गाथा-९०. २११८८. जंबूकुमार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४७-४८). जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: प्रणमी पासजिणंदना; अंति: दिन कोडि कल्याण छै, ढाल-३५, गाथा-६०८. २११९०. (+) गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, पठ. श्रावि. विजलदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा कृति की रचना प्रशस्ति वाली गाथाएँ नहीं लिखी गयी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, ९४२८). For Private And Personal use only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: जाणउ वरष तणउ ते नाम, गाथा-११०. २११९१. (+) भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १६६८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक नहीं है., प्रले. ग. उत्तमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १५४४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४, ग्रं. ७७. भक्तामर स्तोत्र-टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मीः , ग्रं. ५५८अक्षर२८. २११९२. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है., जैदे., (२४४१२,४४३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४, ग्रं. ७७. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: करी प्रगट जणाव्यउ. २११९४. (#) सतरभेद पूजा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ९४३७-४७). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखकज वासिनी; अंति: सुरपति थुणिओ, ढाल-१७. २११९५. (+) आलोचना तपोदान टिप्पनक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १७X४८-५६). आलोयणा तपोदान संग्रह-खरतरगच्छीय, आ. भुवनरत्नसूरि, प्रा.,सं., प+ग., वि. १५वी, आदि: नामंलिवियावत्ती दाणं; अंति: (१)वाच्यमानं सफलं भवतु, (२)सोलसआलोयणारिक्खा, ग्रं. २८०. क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६४३६-४४) बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभस्सण; अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, अध्याय-५.. २११९७. पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकखामणासूत्र, अपूर्ण, वि. १९५०, पौष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १७-३(१ से ३)=१४, कुल पे. २, ले.स्थल. सरसपूर, प्रले. मु. मोतीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११४२६-३०). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ४आ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिकखामणा सूत्र, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, सूत्र-४. २११९८. वसुदेव रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(११)=१४, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., जैदे., ___ (२६.५४११, १५४३८-४६). वसुदेव रास, मु. हर्षकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५५७, आदि: सकल मनोरथ सिद्धि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५६ तक है. (अंतिम कुछेक गाथाएँ नहीं है)) २११९९. (#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ- अध्ययन १ से ४, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-३(२ से ४)=१०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४३५-४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: संयोगथी मुकाण्या घर; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २१२०१. सम्यक्त्व सत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११, ७X४१-४५). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दसणसुद्धिपयास; अंति: दसणसुद्धि धुवं लहह, गाथा-७०. सम्यक्त्वसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक निर्मलाईनइ; अंति: निश्चई हुइ लहइ. २१२०३. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६४११.५, ३७-४४४२२-२६). For Private And Personal use only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१२०४. जंबूद्वीपनो विचार, संपूर्ण, वि. १८७१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. मु. नायकविजय (गुरु मु. केशरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आदिनाथजी प्रसादात्. खुसाल नाणावटीजी की प्रत पर से लिखी गयी प्रति., जैदे., (२६४११, १२-१४४३७-४२). बृहत्क्षेत्रसमास-संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपमाहे छ; अति: शास्त्रथी जाणवौ. २१२०५. (+#) श्रीपाल नरेंद्र कथा श्रीसिद्धचक्रमाहात्म्ययुता, संपूर्ण, वि. १६६९, श्रावण शुक्ल, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५८, ले.स्थल. अर्गलपुर, प्रले. भगवानदास ठाकोर; लिख. सा. तारा; पठ. सा. लीला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३८-३९). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: वाइजता कहा एसा, गाथा-१३४१, ग्रं. १६७४. २१२०६. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ-श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ४४३०). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छकाय सरुप जाणइ; अंति: (-), ग्रं. ३०००, प्रतिपूर्ण. २१२०७. (+) षडावश्यकं सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४११, ६x४०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतं, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत प्रति; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम कुछेक भाग का टबार्थ नहीं लिखा है.) २१२०९. (+) सूक्तिशती, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३०-४३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तिमुक्तावलीं, श्लोक-९८. २१२१०. अवयंतीसुकमाल चौपई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५४११, ११४२५-२८). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: संतहरख सुख पावै रे, ढाल-१३. २१२१३. (+) चारप्रत्येकबुद्ध रास - खंड १ से ३, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४४-४९). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २१२१४. (+) गौतमअष्टक, जैनधार्मिक श्लोक, भाष्यत्रय व महावीर स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-३(१ से ३)=९, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १२४४०-४२). १. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. ४अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ३. पे. नाम. भाष्यत्रय, पृ. ४आ-११अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्ख अणाबाह, भाष्य-३. ४. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: सत्तुमित्तेसु वा वि, गाथा-२०. २१२१५. आगमसारोद्धार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९६, ज्येष्ठ अधिकमास, १० अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. ६०, ले.स्थल. लस्कर, प्रले. पं. निहालचंद (गुरु आ. कीर्तिसागरसूरि, उकेशगच्छ); पठ. श्राव. सदाराम फोफलीया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १०४२५-२८).. आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव; अंति: (१)सफल फली मन आस, (२)ते समकिति जाणवो. २१२१६. (+) जंबूस्वामी चतुप्पदी, संपूर्ण, वि. १७०७, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४२, ले.स्थल. उदयपुर, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४११, १५४४७-५३). जंबूस्वामी रास, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७०५, आदि: जोति पुरातन मन धरइ; अंति: नवनवी साता सही, अधिकार-४ढाल५५, गाथा-१३५३. २१२१७. (+) कार्तिकशुक्लपंचम्यां वरदत्तगुणमंजर्या कथानकं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६४११, ९४३०-३५). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे. श्लोक-१५२. २१२१८. जंबूपृच्छा व गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १५४४७-५३). १. पे. नाम. जंबूपृच्छा, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल पदारथ सर्वदा; अंति: वीरजीमुनि सुखकारी, ढाल-१३. २. पे. नाम. गौतमपृच्छा चोपाई, पृ. ९अ-१२आ, संपूर्ण. गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: मन जे जिनवचने वसिउ, गाथा-१२४. २१२१९. (+) षष्टिशतंसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ५-६४३६-३९). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जाणंतु जंतु सिवं, __ श्लोक-१६१. षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत देव सुसाध; अंति: शिव अनंत सुख लहउ. २१२२४. कर्मग्रंथ १ से ३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११, २-४४२३-२९). १. पे. नाम. कर्मविपाक सूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१७अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६२. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेव प्रतई; अंति: श्रीदेवेंद्रसूरिइं. २. पे. नाम. कर्मस्तवनं द्वितीय सह टबार्थ, पृ. १७अ-२५आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तथा प्रकारइंस्तुति; अंति: ते महावीर प्रतइ. ३. पे. नाम. कर्मग्रंथ बंधस्तव तृतीय, पृ. २५आ-३१आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउ, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधना कारण सत्तावन्न; अंति: वर्णन कर्यो छइ. २१२२६. (+) सौभाग्यपंचमी चतुःष्पदी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदे., (२६४११, १३४४२-४३). For Private And Personal use only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २१ सौभाग्यपंचमीपर्व चतुःपदी, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: जिनवर चउवीसे नमी; अंति: श्रीसंघनै जयकार, ढाल-२७, ग्रं. ३८६. २१२२७. (+) वाग्भट्टालंकार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. कहीं-कहीं कठिन पदो का टिप्पण भी दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, ११४३७-४३). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: (-), (पू.वि. पंचम परिच्छेद के श्लोक-२३ अपूर्ण तक है.) २१२२९. लघुदंडक, संपूर्ण, वि. १८३१, आश्विन कृष्ण, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. भोजराज (गुरु मु. नथुमल); पठ. सा. राजाजी (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १६४५३-५९). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण; अंति: नही गति नही अजोगी. २१२३०. (+) पांचबोल, पूर्ण, वि. १७११, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, ले.स्थल. आगरा, प्रले. मु. जगमाल (गुरु मु. जीवाजी ऋषि); पठ. सा. कोडा आर्या (गुरु सा. जीवाजी आर्या), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१२५) अदृष्टदोषान् मतिविभ्रमाद्वा , जैदे., (२६४११, ११४३५-४३). बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २१२३१. १४ गुणठाणे २५ द्वार व लेश्या उपरि ११ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, २१-२२४४३-५१). १. पे. नाम. १४ गुणठाणे नामादि २५ द्वार विचार, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण.. १४ गुणस्थानक २५ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार लक्षणद्वार; अंति: वनस्पति आश्री छे. २. पे. नाम. लेश्या उपरि नामादि ११ द्वार विचार, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीम छपुरुष गाम मारवा; अंति: लेश्या साथे जाये. २१२३४. (+) दसवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७८२, पौष कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ९४३४-३७). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन-१०, चूलिका २. २१२३५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१-१३(१ से २,७ से ८,१७,१९,२७ से २९,३१ से ३३,४९)=३८, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्रथम अध्ययन गाथा-१४ अपूर्ण से सोलह अध्ययन गाथा-४ अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ४-५४३८-४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१२३६. (+) अष्टाह्निकामहोत्सव ग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५१, फाल्गुन कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३६, पू.वि. पत्रांकहीन अस्तव्यस्त पत्र, प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं है., ले.स्थल. ढुकरवाड, प्रले. मु. प्रवीणकुशल (गुरु मु. राजकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. शातिनाथजी सत्यं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ६४३३-३७). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: (-); अंति: करगामिनी भवति. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: परंपरा हाथे आवती होइ. २१२३७. उपदेशमाला सह टीका व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १५४५५-५७). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: (-). उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: हेयोपादेयार्थोपदेश; अंति: (-). उपदेशमाला-कथा, आ. वर्धमानसूरि, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-). २१२३९. गोतमसांमी रो रास व गोतमाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ११-१२x२३-२६). For Private And Personal use only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, १. पे. नाम. गोतमसांमी रो रास, पृ. १अ ७अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-४७. २. पे. नाम. गोतमाष्टक, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी गौतम प्रणमी; अंति: उदय प्रगट्यो निधान, गाथा - ८. २१२४०. आणंद री संधि, संपूर्ण, वि. १७५३, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ११, ले. स्थल. बिकानेर, प्रले. ग. दोलत हंस (गुरु ग. खिमाहंस); लिख. श्रावि. साहिबजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११.५, १४-१६४३२ - ३७ ) . आनंदधावक संधि, पा. श्रीसार, मा.गु., पच, वि. १६८४, आदि वर्द्धमानजिनवर चरण; अंतिः पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल - १५, गाथा - २५१, ग्रं. ३३०. २१२४१. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६५, वैशाख शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल, रायपुर, राज्यकाल रा. सवाइसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अन्त में " मारवाडमध्ये विग्र परजाने मोटो उपसर्गाः सवाइसिंघनै मिरखा मार्यो दगासु" का उल्लेख मिलता है., जैदे., (२५.५x११, १५X३७-४१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंतिः मोक्षं प्रपद्यते, लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः एष अहं क० ए हुं; अंतिः मंदिरनी कथानक जाणवु. २१२४२. (*) नंदीसूत्र, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३८- २ (१,३४ ) = ३६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५x११, १०-११X३१). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: वीसमणुन्नाई नामाई, गाथा- ७००. २१२४३. आनंदसंधि, अपूर्ण, वि. १७४७, आश्विन शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२ - ३ ( २, ४, ८ ) - ९, ले. स्थल. नागपूर, राज्यकाल रा. इंद्रसिंह; पठ. श्रावि. सिंदूरदे; प्रले. मु. श्रीवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका पद्यमय है., जैदे., (२६११.५, १३x४१-४२). आनंदश्रावक संधि, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल - १५, गाथा - २५०. २१२४५. जंबूगुणरत्नमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३+१ (७) = ३४, दे., (२५.५x११.५, १०x४१-४८). जंबूगुणमाला, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: सासणपत वृद्धमाननो; अंति: वो था कल्याण ए, ढाल - ३५. २१२४८. श्रावकनो आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९६५ श्रावण शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३१-१ (११) - ३०, ले. स्थल. सीरदार, प्रले. गणेश लछीराम माहात्मा (खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११, १ - ५x२२-२५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: संपत्ताणं णमो जिणाणं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - स्थानकवासी का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीअनुयोगद्वारमध्ये, (२) इ० इच्छाकारेण जो; अंति: (१) इच्छित पचक्खाण करवो, (२) नियम नित्य चितारवा २१२४९. कूर्मापुत्र कथा, श्लोक व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्रले. मु. श्रीकर्ण ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. २५०, जैदे., (२५.५४११.५ १६ १७४०-४५ ). १. पे. नाम. कुम्मापुत्त चरिअं, पृ. १अ - ६अ, संपूर्ण. मु. जिनमाणिक्य उपा. अनन्तहंस, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण वद्धमाणं असुर; अंतिः वाइअं तं चिरं जयड, गाथा - १९६. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. विविध विचार संग्रह, गु., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-). २१२५१. जीवविचार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८५२, आश्विन शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल. जेशलमेरु, प्रले. पं. रामचंद्र (गुरु पं. पुन्यराज, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११.५, १३x४०-४२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुदाओ सुवसमुद्दाओ, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण-सुबोधिनी टीका, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८५०, आदि: ध्यात्वा जैनं महः ; अंतिः वृत्तिकाम्. २१२५२, (+) अंतगंडदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२६)x११.५, १४X३९-४०). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय - ९२, ग्रं. ८७५. २१२५३. भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., ( २६.५X११, ७३४-३९). २३ भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३५, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, लोक-१७३. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती सबंधी यो मह; अंति: सूरि इसो नामे आचार्य. २१२५४. चतुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५X११, १३X३३ - ३६). चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदात्; अंतिः चतुर्मासिकव्याख्याम् " २१२५५. प्रियंकरनृप कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., ( २६४११, १९-२१४४८-५३). प्रियंकरनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, प्रा., सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: वंशाब्जश्रीकरो हंसो; अंति: (-). २१२५६. साधुवंदना, पार्श्वजिन स्तवन व नेमराजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७५८, चैत्र शुक्र १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, ले. स्थल, दीव, जैदे., ( २६.५x११, १६-१९२७ - ३४ ). १. पे. नाम, साधुवंदना, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, प्रले, मु खीमजी ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि); पठ. मु. वेलजी ऋषि (गुरु ऋ. नानजी), प्र.ले.पु. सामान्य, मु. श्रीधर, मा.गु., पद्य, आदि: पहम नाह सिरी रिसह; अंति: कहइ जयभर जयकरी. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. जीराऊला पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: महानंद कल्याणवली; अंतिः श्रीपासजी रंगि गायो, गाथा - ११. ३. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर सारी बालकुंआरी अंतिः मनोरथ फलीया, गाथा - ५. २१२५७. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १७९५, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. दीव, प्र. वि. प्रत की लिखावट से सं. २०वी का होता है. उल्लिखित वर्ष १७९५ पर से यह प्रत लिखी जाने की संभावना है., दे., ( २६x११, ११-१२X३७-३९). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्म, आदि: रिसहजिण पमुह चडवीस; अंतिः मन आणंद संधुण्या, ढाल ७. २१२५८. साधुवंदना व प्रमाद सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६८७ - १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२७x११, For Private And Personal Use Only १४-१५X४३-४५). १. पे नाम, साधुवंदना, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण वि. १६८७, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, शुक्रवार, ले. स्थल, सादडि, प्रले. मु. चेतन ऋषि (गुरु मु. ठाकुरजी ऋषि); पठ. श्राव. नेता दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं. आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चडवीस; अंतिः मनि आदि संस्तव्या, डाल- ७. २. पे. नाम. प्रमाद सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण, वि. १८वी, पे. वि. पेटांक १ के बाद की लिपि है. Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पच, आदि: दस दृष्टांते दोहिलो; अंतिः परिहरी पांच प्रमाद, गाथा-१२, २१२५९. साधारणजिन जन्ममहोत्सव, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, अन्य, मु. कल्याणभवान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x११.५, १३X२७-३३), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारण जिन जन्ममहोत्सव, मा.गु., गद्य, आदि: अत्रांतरे प्रथम छपन; अंति: छिटा करी थापा सह. २१२६१. (+) अगडदत्त कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें., जैवे. (२६x११.५, १३x४२-४५), अगडदत्त चरियं, ग. देवेंद्र, प्रा., पद्य, ई. ११वी, आदि: अत्थि जए सुपसिद्धं; अंति: परिपालणुज्जओ त्ति, गाथा - ३२३. २१२६५. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, दे., ( २५X११, १२X३०-३७). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंति: गणोयं सत्यापास केवली. २१२६६. (०) वारभावना, संपूर्ण वि. १७१०, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. पं. रविवर्द्धन; पठ. श्रावि, लछीबाई; श्रावि. प्रेमबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ९X३३-३७). १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल कुल कमलना हंस; अंति: ध्यानि स आणे, डाल- १४. २१२६७. नेमिसंवाद चौवीसचोक, संपूर्ण, वि. १८७०, वैशाख कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११, ११४३१-३९). नेमगोपी संवाद- चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंतिः तस सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. २१२६८. चेतन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९१४ वैशाख शुक्ल, २, रविवार श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल दीणीव, प्रले. दुनीचंद साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X११, १६×३८-३९). चेतन चरित्र, क. चितानंद, मा.गु., पद्य, वि. १७८२, आदि: प्रथम जगत जिनराज सकल; अंति: काय चितानंद आनंदमै, ढाल १६. २१२६९. मदनराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वे., ( २६.५x११, १७४३९-५३). मदननरेश्वर चौपाई, मु. दामोदर, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि आदि जिणेसर अतुलबल; अंति: (-), ( पू. वि. गाथा - ५१० तक है. ) २१२७३. (+) श्रावकप्रतिक्रमण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६X११, ५- १५X३२ - ३५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: तिखुत्तो आयाहिणं; अंति: तस्स मिच्छामि दु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इ० पोतानी इच्छाई; अंति: गरहुं गुरुशाखै आलोउ. 2 २१२७४. सिद्धांतचंद्रिका की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ४१, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२५.५x११, १६x४५ - ५२ ) . सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंति: (-). २१२७५. विनोद नंदवत्रीसी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., ( २६११, १२३८-४३). नंदयत्रीसी चौपाई, मु. सिंहकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १५६०, आदि आगम वेद पुराण जाणंति; अंतिः कुल० नव नव होइ संपदा, गाथा- १५४. २१२७६. (+) जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले. स्थल. तिमरी, प्रले. मु. गुमानचंद ऋषि (बृहदाचार्यगच्छ); पठ. मु. मौजीराम ऋषि (गुरु मु. गुमानचंद ऋषि, बृहदाचार्यगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६X११, ६x४१-४३). - For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम, जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुयसमुदाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवननइ विषइ दीपसमान; अंति: रुपीया समुद्र हुती. २. पे नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिकाय, गाथा ४७, (वि. १८६४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, रविवार) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध, (वि. १८६४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११) २१२७८. (+) विचार संग्रह सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६- २ ( ३ से ४) २४, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा - १७० तक है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x१०.५, ६-७X३६-४३). सिद्धांत विचार गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि; कंचणगिरी पव्वयसुचित; अंतिः (-). सिद्धांतविचार गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कंचनगिरि पर्वतनइ; अंति: (-). २१२७९. सिंदूर प्रकरण, पूर्ण, वि. १७८३, चैत्र कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ११ - १ ( ५ ) = १०, ले. स्थल. जोधपुर, अन्य. देवराज पंचोली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत मे बीजक है., प्र.ले. श्लो. (४७२) पोथीउ प्रति पेह, (५९३) पाथी उत्तम पेखिया, जैदे., (२६.५X१०.५, १०-१३X३१-३४). सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक १००, (पू.वि. श्लोक-३८ अपूर्ण से श्लोक - ४८ अपूर्ण तक नहीं है.) २९२८०. विवध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., ( २६x१०.५, १४-१६x४०-४७). विविधविचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: अयंसां भंते जीवे; अंति: (-). २१२८१. द्रव्य संग्रह सह बालावबोध, श्लोक आध्यात्मिक गीत व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. ४, जैदे., (२५X११, २०-२२X४२-४४). १. पे नाम. द्रव्य संग्रह सह वालावबोध, पृ. १अ १८अ संपूर्ण, द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: जीवमजीवं दव्वं जिणवर; अंति: मुणिणा भणिय जं, अधिकार-३, गाथा - ५८. द्रव्य संग्रह - बालावबोध, मु. रामचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वचंद्रसूरि अंतिः द्रव्यसंग्रहः. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १८आ, संपूर्ण. जैन श्लोक *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत पृ. १८आ, संपूर्ण. 9 मु. लब्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि; जबलगे विषय घटा न घटी; अंति; लब्धिविजय० वेलि कटि, गाथा-५, ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १८आ, संपूर्ण. २५ मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: मिल जाज्यो रे साहिब, अंतिः ध्याने० सूख चिनमे गाथा - ५. २१२८३. आदिजिन सलोको, शांतिजिन स्तवन, पच्चक्खाणसूत्र व खामणा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८५९ शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ४, ले. स्थल. सूरतबिदर, प्रले. मु. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १०- ११४३०-३३). १. पे. नाम. आदिजिन सलोको, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती माता द्यो; अंति: भणतां आवे संपति कोडी, गाथा - ५१. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ- ९अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिणेसर केसर, अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल - ६. ३. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ९अ १० आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उगए सुरे नमुकारसिय; अंति: गारेणं बोसिरामि, ४. पे. नाम. खामणा सज्झाय, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं अरिहंतने; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) २१२८७. कल्पसूत्र सह प्रवचन व गुरावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, ११×३५-३८). 2 १. पे. नाम. गुरावली, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. गुर्वावली खरतरगच्छीय, सं., पद्म, आदिः नमः श्रीवर्धमानाय अंतिः श्रीगौतमः स्तान्मुदे, श्लोक-१३. २. पे. नाम. कल्पसूत्र सह प्रवचन, पृ. २अ १२आ, संपूर्ण, पू. वि. महावीरस्वामी के द्वितीय भव के प्रारंभ तक लिखा है. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: वंदामि भद्दवाहु अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. व्याख्यान+कथा में पाठभेद ज्यादा है.) २१२८८. इग्यारअंग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. देवहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६x११, ११x२५-३३). ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि : आचारांग वडु कह्यं; अंति: रही रे की सुपाय, स्वाध्याय - ११. २१२९०. अध्यात्ममतपरीक्षा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७७९, चैत्र शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले. स्थल. शेषपुर, प्रले. मु. महिमासागर (गुरु वा. मुक्तिसागर, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले. श्लो. (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२६.५x११.५, १५४४२ - ४४). अध्यात्ममतपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय पासजिणिंद अंतिः तं गीयत्था विसेसविऊ, गाथा - १८४. अध्यात्ममतपरीक्षा- बालावबोध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि सर्व कल्याणसिद्धिने; अंतिः (१) तत्पर थका शोधो, (२) यशोविजय० ख्यातवान्, २१२९१. (+) सूक्तावली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३ - ४ (७ से १० ) = १९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५X११, १७ - १९x४८ - ५५ ) . सूक्तावली संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: नास्त्यहिंसा समो; अंतिः जुं विधातानाथ करहइ, गाथा - ५६१, ( पू. वि. गाथा - ९ से १३३ नहीं है. ) २१२९२. लुंकाप्रश्न चर्चा, संपूर्ण, वि. १७०३, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. शकंदरपुर, प्रले. पं. मानविजय गणि (गुरु पं. देवविजय गणि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५. ५X११, १५X४०-४५). लुकाप्रश्न चर्चा, मा.गु., गद्य, आदिः उत्सूत्र घणाई बोलई; अंतिः सदहइ तु समकित कहीड़. २१२९३. प्रतिमा उच्चारविधि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५X११, ११x४१). प्रतिमा उच्चारविधि, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताण० अहं; अंति: अन्न० नोच्चार्यंते. २१२९५. विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७४९, वैशाख कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल भटनेरकोट, प्रले. मु. लाभचंद्र ( गुरु ग. शिवचंद्र ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत मे ग्रंथसूची दी हूइ है., जैदे., ( २६x११, १५ - १८५५-५६). विधि संग्रह, मु. शिवनिधान, प्रा., मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीहर्षसार सद्गुरु; अंति: एसा पुण देह पणवीसा. २१२९६. (+) आलोयणा विधि, तीर्थकरबल विचार व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x११, १४-१७४३७-४० ). " १. पे नाम, आलोयण विधि, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम मुहूर्तं; अंति: सहस्र सज्झाइं उपवास. २. पे. नाम. तीर्थंकरबल विचार, पृ. ५आ, संपूर्ण. जिनबल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १२ पुरुषोनो बल १; अंति: टिची आंगुलीनुं बल. ३. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. जैन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५. २१२९७. (#) हंसराजवच्छराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४४४-५१). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२६ गाथा-१९ तक हैं.) २१२९८. अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, ११-१२४३७-४१). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः, ___ अंति: (-), (पू.वि. कांड-३ श्लोक-४६५ तक है.) २१३००. सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८६३, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. पं. वसतो (आचार्यांयागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, १०-११४२८-३२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. २१३०१. हेतुगर्भितप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १६०७, चैत्र शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.ले.श्लो. (७५५) यादृशं पुस्तके लिखितं, जैदे., (२६.५४११.५, १६-१८४५३-५५). प्रतिक्रमणगर्भहेतु, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, वि. १५०६, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: तश्चिरन्नंदतात. २१३०२. चित्रसंभूति प्रतिबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, प्रले. पं. विजेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४३६-३८). चित्रसंभूति प्रबंध, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: आदिपुरुष जगि आदिगुरु; अंति: सफल करइ __ अवतार, खंड-३. २१३०३. वरदत्तगुणमंजरी कथानक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४११, ११४३९-४१). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५२. २१३०४. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ-प्रदेशीराजा प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ६४३५-४५). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २१३०६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५१, आषाढ़ शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. सा. फत्ता (गुरु सा. जसवंत महासती), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम ४ गाथाएँ नियुक्तिकार ने महात्म्य के रुप मे की हुई है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (३०४) हीनाक्षरं पदभ्रष्ट, (४५९) मंगलं लेखकस्यापि, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७५६) तेलाद्रक्षे जलाद्रक्षेत्, जैदे., (२६४११.५, २१-२२४७४-७८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (१)त्ति बेमि, (२)पुवरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६, ग्रं. २०५१. २१३०८. विक्रमसेननरेश्वर चतुष्पदीका, संपूर्ण, वि. १८१३, फाल्गुन शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले.स्थल. मणीयारीग्राम, प्रले. मु. माणिकचंद्र (गुरु पं. फतैचंद्र गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १५-१६x४२-४३). For Private And Personal use only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकास; अंति: परमसागर आणंदारे, ढाल - ६४. २१३०९. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १ से ४, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., ( २६१२, १२-१४X३१-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २१३११. ढोलामारु चौपाई, संपूर्ण, वि. १७४९, भाद्रपद शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. पाटण, प्र. मु. खिमासागर (गुरुग. लाभसागर), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२५x११.५, १६x४६-५० ). ढोलामारु चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर सामिनी; अंति: नित फलह मनोरथमाल, गाथा ७०४. • Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१३१२. चौवीसदंडक छब्वीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १८८६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. साहाजिहानाबाद, पठ, श्राव, पुस्करदास, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १६४४३-४७). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण; अंतिः वचनजोग १ कायजोग २. २१३१३. चौवीसदंडक पच्चीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १८९४, पौष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल. हलसूरीग्राम, प्रले. पं. सालगचंद (बृहत्खरतरगच्छ); लिख. श्राव. सीवचंद ललवाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२५.५x११.५, १५-२०x४०-४२). २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरीरोगाहणा संघयण; अंति: सिद्धने जोग नथी. २१३१४. (+) जीवविचार सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-९ (१) =७, पू.वि. बीच के पत्र हैं, गाथा ४ से ४५ तक है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२६४११, ४x२९-३४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि; (-); अंति: (-), जीवविचार प्रकरण- टवार्थ ", मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). २१३१५. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८- १ (६) - ७, ले. स्थल राजनगर, प्रले. पं. जयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीचिन्तामणिजी प्रसादात्., दे., (२५.५X११.५, १०-११x२५-२७ ). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंतिः मयि विस्तरो गिराम्. २१३१६. चंद्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्रले. मु. कानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६११.५, , १२- १४X३०-३४). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरस्वति भगति नमी; अंति: त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल - २९, गाथा - ६२४. २१३१७. चित्रसेनपद्मावती रतनसारमंत्री रास, संपूर्ण, वि. १९१५, चैत्र कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल, खेडी, प्रले. ऋ. नेणसुखदास (गुरु ऋ. ख्यालीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X११.५, १५X३९-४७). चित्रसेनपद्मावती चौपाई, उपा. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पयकमल; अंतिः व्याल्यो सोभाग सवायौ. २१३१८. (+) गौतम कुलक सह वृत्ति + कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैये., (२५.५४११, १९x४६-४९). गौतम कुलक, प्रा., पच, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहंति, गाथा २०. - गौतम कुलक- टीका + कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि: नत्वा श्रीदेवगुरुन; अंति: भुवि चिरं जीयात्. २१३१९. (०) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १७८६, पीष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल छीमीआ, प्रले. मु. संघविमल (गुरु ग. राजविमल, कतुपुरागच्छ); पठ. मु. भाग्यविमल (गुरु मु. संघविमल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अजितशांति के बाद प्रतिलेखन पुष्पिका मिलती है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११.५, ११-१२x२८-३३). ラ नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम्, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.) For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २१३२०. नवतत्त्व विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ - १ ( २ ) = ५, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६X११.५, १५५३९-४४). नवतत्त्व विचार, मु. परमसौभाग्य, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यग्दृष्टिने जे; अंति: (-). २१३२१. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक सूचीमात्र, सामायिक ग्रहण व प्रतिक्रमणहेतु विचार, संपूर्ण, वि. १८६३, भाद्रपद कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. २२, कुल पे, ३, ले. स्थल, वल्लभीपुर, प्रले गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X११.५, १६x४५ - ४९ ) . १. पे नाम. प्रश्नोत्तरार्द्धशतक सूचीमात्र, पृ. १आ- १९आ, संपूर्ण. प्रश्नोत्तरार्द्धशतक - बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिले बोले तीर्थंकर; अंति: शास्त्रमै को छे, प्रश्न- १५१. २. पे नाम, सामायिकग्रहण विचार, पृ. १९आ- २१अ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: आत्मार्थी जीवे श्री; अंति: समकितिक प्रमाण नही. ३. पे. नाम. प्रतिक्रमणहेतु विचार, पृ. २१अ २२आ, संपूर्ण. संबद्ध, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, आदि: साधु अने श्रावक दोड़; अंतिः बीकानेरपुरे मुदा. २१३२२. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२४.५x११.५, १७२४६-४७). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवन- २४. २१३२३. ज्योतिषसार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२५.५४११.५, ५४३१-३६). " स्तवनचीवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८५, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम अंति: आनंदघन प्रभु जाग रे, ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक - ४१ तक लिखा है. ) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशब्द छई सुपुज्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक १० तक लिखा है.) २१३२४. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१७ फाल्गुन शुक्र, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले, वजेराम बेलजी शुक्र; लिख. श्राव. पुंजा देवचंद संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४११.५, ९४३४-४०). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल - ८. २१३२५. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७६, पू. वि. गाथा - ५१ तक लिखा है., ... (२६४११.५, ७X२७-३० ). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणं ध्रुवबंधोदय; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: रत्नत्रयोपदेष्टारं; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २१३२९. मलयसुंदरी चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, दे., (२७X११, १५-१७x४५-५०). २९ मलयसुंदरी कथा, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि जातो यः कमलाको शुचिः अंतिः कथितचेह तत्कृते, अध्याय- ४. २१३३०. संग्रहणीसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, ले. स्थल. अर्जुनपुर, प्रले. मु. ज्ञानमूर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११.५, १७४४-४९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: सन्नि गईरागई वेए, गाथा - २७८. बृहत्संग्रहणी - टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः आदी शास्त्रकाराभीष्ट; अंतिः वेदाश्च प्रागुक्ताः. २१३३२. पोसहसामायिकप्रतिक्रमण पाटी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२५x१२, १०x२५ - २९ ) . For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: सेसो संसारफलहेउ. २१३३४. प्रज्ञापनासूत्र तृतीयपदस्थ अल्पबहुत्त्वसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६७२, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. केकिंदनगर, प्रले. पं. प्रेमविजय (गुरु उपा. मुनिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतिलेखनपुष्पिका में कार्तिकशितेतर १५ गुरुपूर्णाया' का उल्लेख किया है., पंचपाठ., जैदे., (२६४११.५, ५-११४३४-४७). प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी, संबद्ध, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दिसि १ गइ २ इंदिअ ३; अंति: देवसूरीहिं संगहिय, गाथा-१३३. प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी की टीका, ग. कुलमंडन, सं., गद्य, वि. १४७१, आदि: दिसि० भासग० परित्त; अंति: मेकाब्धिभुवनाब्दे. २१३३५. (+) जंबूकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १५४४०). जंबूस्वामी चरित्र, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: शारद पाय प्रणमु; अंति: सयल संघ सुखकारो रे, ढाल-५८, गाथा-१४९०. २१३३६. (+) नवतत्त्व सूत्र व मुहपत्ति पडिलेहण बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)-५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १०४३१). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-६५, (पू.वि. गाथा-१ से ७ नहीं है.) २. पे. नाम. मुहपत्ति पडिलेहन बोल, पृ. ६आ, संपूर्ण... मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व; अति: त्रसकायनी रक्षा करु. २१३३७. (+) नेमिदूत सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७७५८-६४). नेमिदूत, श्राव. विक्रम, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्राणित्राणप्रवणहृदय; अंति: प्रीतये विक्रमाख्यः, श्लोक-१२६. नेमिदूत-टीका, पंडित. गुणविनयगणि, सं., गद्य, वि. १६४४, आदि: श्रीपार्श्व; अंति: शुभार्थदं स्यात्, ग्रं. ६००. २१३३८. (+) चौवीसदंडक स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ३४३६-४०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३९. दंडक प्रकरण-टबार्थ, ग. भाग्यविजय, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउंक० नमस्कार करी; अति: हित वांछवाने अर्थइ. २१३३९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, दे., (२६४११.५, १४४३४-३८). १. पे. नाम. नवतत्त्व स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर सद्गुरु; अंति: भावसुं भवियण भणो, गाथा-२९. २. पे. नाम. षद्रव्य विचार स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. षड्द्रव्य विचार स्तवन, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर पय; अंति: द्रव्यचर्चा द्वार, ढाल-२. ३. पे. नाम. मोहनी स्तवन, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरुसुं शिष नामि; अंति: जिनजी जाणै जोइजी, ढाल-२. ४. पे. नाम. जीवभेद स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु शब्द सुश्रवण; अंति: लक्ष्मी० लहतो रे, गाथा-१६. २१३४२. (+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १३-१५४३४-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-). कल्पसूत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: नमः नमस्कारोस्तु; अंति: (-). For Private And Personal use only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २१३४३. (+) इकवीसप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८७९, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. लखणेउ, प्रले. पं. रूपचंद (गुरु पंन्या. रूपकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित.. जैदे., (२६४१२, १४-१५४३५-४०). २१ प्रकारी पूजा, ग. शिवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८७८, आदि: मंगल हरिचंदन रूचिर; अंति: परमानंद वधावै. २१३४५. सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १८८९, चैत्र शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पाली, प्रले. पं. रूपचंद (गुरु पंन्या. रूपकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीनवलखापार्श्वनाथ प्रसादात्., दे., (२५४१२, ११४२८-२९). सौभाग्यपंचमी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: भवद्भिरद्भुतः. २१३४८.(+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. गोकलदास वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ८११८, दे., (२६४१२, ६४३१-३४). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु समणे; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, ग्रं. १६६५. समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: अवधार्यु ते, ग्रं. ६४५३. २१३४९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह लेशार्थ लघुटीका व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९६, आश्विन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १५७, ले.स्थल. मंगलपूर, प्रले. ग. प्रमोदकुशल (गुरु पं. पुण्यकुशल); अन्य. ग. मोतिचंद्रजी; ग. पद्मचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. नवपल्लव पार्श्वनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, ५४४२-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: संबुडे त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०६२, संपूर्ण. लेशार्थ लघुटीका, सं., गद्य, आदि: संजो० अर्हद्भिक्षोः; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-३६ गाथा-४ तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: संजो० संयोग बे; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-३६ गाथा-४ तक लिखा है.) २१३५०. ज्ञातधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०७, दे., (२६४१२, ६४३३-३८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २१३५१. चंदराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१९ कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२०, ले.स्थल. रौतासगढ, प्रले. मु. आत्माराम; पठ. मु. गंगाराम (गुरु मु. आत्माराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन मास की जगह "मासोत्तममासे का उल्लेख है., प्र.ले.श्लो. (८१७) जैसी आगैप्रति थी, दे., (२६४११.५, १२४४१-४२). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुण चंदना, उल्लास-४ ढाल १०८. २१३५२. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८५, श्रावण शुक्ल, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२४, ले.स्थल. सिंघाणानगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ६-७४३७-४४). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: सुपस्से पस्सवणा नमो. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार थाओ अरिहंत; अंति: तेह भणी नमस्कार थाओ. २१३५३. (+) कुमारपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४१). कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: सकल सिद्ध चरणे नमुं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१६१ गाथा-१९ (सर्वगाथा ४५८१) तक है.) For Private And Personal use only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२ www.kobatirth.org 2 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१३५४. (+४) उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. १३४, ले. स्थल. मलेर कोट्टला, प्रले. मु. दीपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (७५७) एसो गुण गहणिजो (७५८) अक्खर मत्ता बिंदू, जैवे. (२७४११.५, ६४४४). 19 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन- ३६, (वि. १८४८, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, बुधवार) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमो० कहतां नमस्कार; अंति: एह वचन भाष्यकारनउ, (वि. १८४८, कार्तिक कृष्ण, ३, शनिवार) २१३५५ (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सह टवार्थं, संपूर्ण, वि. १८३७-१९४३, श्रेष्ठ, पृ. १४२+२ (७७,७७) = १४४, प्रले. मु. लक्षजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्र क्रमांक ७७ दो बार है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १५०००, जैवे. (२७४१२, ८४६०-६८). " जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अति: उबदसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार- ७, ग्रं. ४१४६, (वि. १८३७, भाद्रपद कृष्ण, ८, बुधवार, ले. स्थल. हिंसारकोट) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीसिद्धार्थनराधिप; अंति: स्वामी प्रत क छइं, ग्रं. ११०००, (वि. १९४३, वैशाख कृष्ण, ८, सोमवार, ले. स्थल. सिंघाणा) २१३५६. (+) राजप्रनीवसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९९ - १९०१ श्रेष्ठ, पृ. १२१, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२६X१२, ७x४५ ). दे., " राजप्रनीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्सावणीए णमो सूत्र - १७५, ग्रं. २०७९, (वि. १८९९, आश्विन शुक्ल, ६, रविवार) राजप्रनीयसूत्र- टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: तेह भणी नमस्कार थाओ, (वि. १९०१, कार्तिक कृष्ण, १४, शनिवार) २१३५७. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९० प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., ( २४.५X१२, ४-१४x२७-३६). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि जयह जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. नंदीसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ से लिखा है.) नंदीसूत्र - कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे ज्ञाननुं स्वरुप; अंति: (-), पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २१३५८. (+) भवभावना प्रकरण सह टवार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८३६, चैत्र कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९७, ले. स्थल. वाराहीनगर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१२, ५X३२ - ४० ). भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण णमिरसुरवर मणि; अंतिः वलीइ कीरत अलंकारो, गाथा - ५३१. भवभावना- टवार्थ+कथा, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवती शिवशांति; अंति: आदरवें श्रेय कारणइ. २१३५९. (०) चंदराजा रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, वे. (२६.५x१२, १८४४६). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुण चंदना, उल्लास-४, डाल १०८, गाथा - २६७६, (वि. सभी उल्लासों की अलग-अलग कुल गाथा संख्या दी गई है.) २१३६०. (+) आचारांगसूत्र सह निर्बुक्ति व वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९९५, आषाढ़ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५५५-३० (४२७ से ४५६*)=५२५, ले.स्थल. झींझुवाडा, प्रले. बोघालाला कुंभार लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक ४२६ के बाद ४२७ देने की जगह ४५७ पत्रानुक्रम भूल से लिखा गया है, परन्तु पाठानुक्रम सही चल रहा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८x१२, १३X३०-३७). For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: विमुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-२५, ग्रं. २५५४. आचारांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसिद्धे; अंति: हुति अज्झयणा, गाथा-३४६. आचारांगसूत्र-टीका # , आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: जयति समस्तवस्तु; अंति: मार्गप्रवणोस्तु लोकः, ग्रं. १२०००. २१३६१. उत्तराध्ययनसूत्र व श्लोक सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ६१७+१(५९३)=६१८, कुल पे. २, ले.स्थल. अणहलपुरपट्टण, प्रले. पं. ऋषभविजय गणि (गुरु पं. रंगविजय गणि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६१८) जलाद क्षेत् स्थलाद् रक्षेत्, (६४७) मंगलं लेखकानांच, दे., (२७.५४१२, ५-८४३६-४२). १. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-६१७अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६, (वि. १८८०, भाद्रपद कृष्ण, २, सोमवार, वि. श्रीपोलिया उपाश्रये श्रीपंचास्वर पार्श्वनाथ प्रसादात्.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिनं; अंति: भाष्यकारर्नु जाणवू, ग्रं. ९०००, (वि. १८८०, आश्विन शुक्ल, ३, मंगलवार, वि. ग्रंथान के लिये नवसहस्रे किचिदन्यूनमिति लिखा हुआ है.) २. पे. नाम. धर्मोपदेश श्लोक, पृ. ६१६आ-६१७अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: धर्मो जगतः सार; अंति: एव तदहो विधीयतां, श्लोक-२. धर्मोपदेश श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एहवो जाणी धर्मने विष; अंति: शिववधुनी लीला वरस्ये. २१३६२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थव अध्ययनसूची, संपूर्ण, वि. १८५३, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५८६, ले.स्थल. मंगलपुर, प्रले. मु. रूपजी (गुरु मु. लीलाधर); पठ. मु. केशवजी (गुरु मु. रूपजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मंगलपुर के चौमासे में रहकर यह प्रत लिखी गयी है. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (६४३) अक्खरमत्ताहीनं जं, (६६९) भग्नपृष्टी कटिग्रीवा, (७५७) एसो गुण गहणिज्जो, (७५९) अदृष्टदोषान्मतिविभ्रमाच्च, (७६०) जलाद रक्षेत् तैलाद रक्षे, (७६१) जिंहा लगे मेरू महीधरा, (७६२) यत्किंचित् लिखितं कूट, जैदे., (२८x१२, ६-७४३९-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंति: राजचंद्रसूरि० टबार्थ. २१३६४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८४१, आश्विन शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १८८, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, ६४३९-५०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सं० संयोग बे प्रकारे; अंति: तुज प्रतइ कहुं छु. २१३६५. (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५३, आश्विन कृष्ण, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १२४, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. दीनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, (७७७) भग्नपृष्टी कटीग्रीवा, जैदे., (२६४१२, ३-१५४५२-५५). अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविह; अंति: दुक्खक्खयट्ठाए, गाथा-१६०४, ग्रं. २००५. अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिन; अंति: गोःपादानविधिकुशलैः. For Private And Personal use only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१३६६. उपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४६, ले.स्थल. घाणेडीनगर, प्रले. पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वदेवजिन प्रसादात्., प्र. ले. श्लो. (७६३) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२६४१२, १३-१५X३२-३८). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा - ५४३. उपदेशमाला - बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १४८५, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनवर; अंति भव्यजीवनोपकृत्यै, ग्रं. ५९००. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१३६८. (+#) नेमिप्रभुनो रास, संपूर्ण, वि. १८४४, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २०८, ले. स्थल. वढवाण, पठ. पंन्या. हेमविजय (गुरु पंन्या. गौतमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अन्त में चारो खंडों का गाथामान अलग से दिया गया है. श्रीगोडीजी प्रसादात्. प्रतिलेखन पुष्पिका में सं. १८३६ माघ मास का भी उल्लेख मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४-१५३९-४२). नेमिजिन रास, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य वि. १८२०, आदि उदधिसुतासुत चुन करे; अंति: होशे मंगलमाल रे, खंड- ४, ढाल १६९, गाथा - ५५०३. २१३६९. (+) शत्रुंजयमाहात्म्य सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७७३ भाद्रपद कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२८-४ (२५ से २८ ) - ४२४, पू.वि. गाथा ४५९ से द्वितीय सर्ग प्रारंभ तक नही है., ले. स्थल. प्रभासपत्तन, प्रले. पं. राजकुशल (गुरु मु. विद्याकुशल, तपागच्छ); अन्य. ग. मोतिचंद्रजी; ग. पद्मचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीगोडीपार्श्वनाथ प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैवे. (२६.५x११.५, ८४४५-४८). "" शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: सांभोनिधिं ग्रंथ एषः, ग्रं. १००३४. सर्ग - १४, शत्रुंजय माहात्म्य-टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., गद्य, वि. १७६७, आदि: नत्वा वीरं सुबोधाय; अंतिः लिखितं तु शास्त्रं, ग्रं. १२०००. २१३७०. (+) समवायांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७-१८५८, मध्यम, पू. १०२, प्रले. मु. मलुकचंद (गुरु मु. दयाराम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ९१२४, जैदे., ( २६.५X११.५, ५ - ८X३७-४७). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु समणे; अंतिः अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन- १०३ (वि. १८५७, फाल्गुन शुक्ल, ८, शनिवार, ले. स्थल, डीग ) समवायांगसूत्र- टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: विषई बहुमान देखाडीउ, (वि. १८५८, वैशाख शुक्ल, २, मंगलवार, ले. स्थल. हीडोणनगर ) २१३७२. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३३, पठ. सा. रुक्मणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १०X३२-४०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: सुयखंधो समत्तो, अध्ययन - १९, ग्रं. ५४००. २१३७३. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., वर्ग १० अपूर्ण तक है., दे., (२७४११.५, ९x४८-५१). For Private And Personal Use Only ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टवार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-), २१३७४. धर्मकल्पद्रुम, संपूर्ण, वि. १९६५, वैशाख कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १३७, ले. स्थल. बोरसद, प्र. वि. पत्रांक १२९ व १३० एक ही पत्र पर दिये हुए है., दे., (२५.५X११.५, १२X४६-५२). धर्मकल्पद्रुम, पंडित. उदयधर्म, सं., पद्य, आदिः श्रियं विशतु वो; अंतिः वैराग्यकारिणी, पल्लव ८. २९३०६. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२१, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे. (२६.५४११, १५४३३). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति, 9 अध्याय - १०, ग्रं. १२५०. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: संशोधिता चेयम्, ग्रं. ४६३०. २१३७७. धर्मकल्पद्रुम, संपूर्ण, वि. १८८४, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ११५, ले.स्थल. पालीयादा, प्रले. छगनलाल अविचलभाई लहिया; सम. मु. लक्ष्मीचंदजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. यह प्रत सं. १९८४ जेठ वद ७ को शेठ नानजी दामजीभाई की पुत्रियों के वरसीतप के पारणा प्रसंग पर अम्बा तथा संतोकबाई द्वारा लक्ष्मीचंदजी स्वामी को वहोरायी गयी है., दे., (२६.५४११.५, १६x४१-४६). धर्मकल्पद्रुम, पंडित. उदयधर्म, सं., पद्य, आदि: श्रियं दिशतु वो; अंति: वैराग्यकारिणी, पल्लव-८. २१३७८. (+) प्रतिष्ठाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३४३६-४८). प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मूल गुंभारेकुं आछीतर; अंति: पूजनं दीनमार्गणपोषणं. २१३७९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४७, दत्त. मु. हेमा; गृही. य. कल्याण जती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ६४३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बाह्य मातापिता; अंति: सद्दहवइ पालवइ करी. २१३८०. (+) त्रिषष्ठिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८१, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १५४४६). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २१३८१. योगदृष्टि सज्झाय सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९०६, चैत्र कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६९-५(१ से ५)=६४, पू.वि. प्रथम ढाल नही है., ले.स्थल. पाली, दे., (२५.५४११.५, २-१०४२०-२५). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जशने वयणेजी, ढाल-८, गाथा-७६. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भूरि सुखावबोधार्थः. २१३८३. श्राद्धविधिप्रकरण सह विधिकौमुदी वृत्ति व टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२४-४३८(१ से ४३८)=१८६, ले.स्थल. वर्द्धमाननगर, प्रले. पंन्या. गौतमविजय (गुरु पंन्या. धनविजय); पठ. पंन्या. हेमविजय (गुरु पंन्या. गौतमविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्र.पु.-श्रीगोडीजीने उपरें श्रीऋषभदेव प्रसादात्., जैदे., (२६.५४११.५, ५४३४-३७). श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सुहं लहुं लहति धुवं, प्रकाश-६. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदि: (-); अंति: जयदायिनी कृतिनाम्, प्रकाश-६, ग्रं. ६७६१. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका का टबार्थ #, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जिनशासनं सुखदं. २१३८५. शतक कर्मग्रंथ सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८०२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ११०, प्र.वि. कुल ग्रं. ३३२००, जैदे., (२६४११.५, १४४३९-४३). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनें श्रीभगवंत; अंति: संभारवाने निमित्ते. शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. जयसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७१२, आदि: ऍद्र श्रीकर पीडनविध; अति: भाषामात्मस्मृतौ शतके. For Private And Personal use only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१३८७. (+) भुवनभानुकेवली चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३२-१८३४, श्रेष्ठ, पृ. १२१, ले.स्थल. चांणस्मा, प्रले. ग. गुलालविजय (गुरु पंन्या. रामविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीभटेवाजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (६०८) जिहां लगे मेरू अडग हैं, जैदे., (२६४११.५, ६x४२-४३). भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदि: अस्तीह जंबूद्वीपे; अंति: नरेंद्रर्षिः केवली, (वि. १८३४, चैत्र कृष्ण, ४, शनिवार) भुवनभानुकेवली चरित्र-टबार्थ, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., गद्य, वि. १८०१, आदि: श्रीमद्देवगुरुं; अंति: तस्य तत्वहसेन धीमता, ग्रं. ५०००, (वि. १८३२, १, शनिवार) २१३८८. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध+कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३०, प्र.वि. कुल ग्रं. ६५००, जैदे., (२७४११.५, १३-१६४५१-५७). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभआरि नेमिकुमार; अंति: आराहिय लहह बोहिसुह, कथा-४३, गाथा-११५. शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेयश्रीसहि; अंति: वजिनवीरतीर्थमिदम्. २१३८९. (+) पार्श्वजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. १८१+२(७,१४०)=१८३, प्र.वि. अंत मे ग्रंथसूची दी हुई है., संशोधित. कुल ग्रं. ६११०, ., (२८x११.५, ११-१४४३७-४३). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: नाभेयाय नमस्तस्मै; अंति: सहस्राण्यनुष्टभाम, सर्ग-८,ग्रं. ६०७४.। २१३९०. (+) प्रवचनपरीक्षा सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६७४, भाद्रपद शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२२-२८६(१ से २८६)=१३६, पू.वि. विश्राम-८ गाथा-६६ तक नही है., ले.स्थल. अहिरोडा, प्रले. जोसी ठाकर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-त्रिपाठ-द्विपाठ., जैदे., (२७४११.५, १२-१५४३४-४३). प्रवचनपरीक्षा, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, वि. १६२९, आदि: (-); अंति: सहस्सकिरणो जयउ एसो, विश्राम-११, ग्रं. १२०५. प्रवचनपरीक्षा-स्वोपज्ञ सहस्रकिरणा वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२९, आदि: (-); अंति: (१)बोध्यमिति गाथार्थः, (२)विजयतां सपुत्रपौत्रा, विश्राम-११, ग्रं. १३३८७. २१३९१. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. १३१, ले.स्थल. नारनवल, प्रले. मु. शोभाराम ऋषि (गुरु मु. डालूराम), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ७०००, दे., (२७४११.५, ७४३६-३७). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताण० तेणं; अंति: पस्से पस्सावणीए णमो, (वि. १९०१, माघ कृष्ण, ९, शनिवार) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: सोधनीयं च धीधनैरिति, (वि. १९०१, माघ कृष्ण, ११, मंगलवार) २१३९२. (+) उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६७२, आश्विन अधिकमास कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ९६, ले.स्थल. कोडीनार सोरठदेशे, प्रले. मु. धना ऋषि; ऋ. जीवा; पठ. क्र. नारद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, ६-७७३४-३५). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अति: सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिन; अंति: सुख पाम्या थका. २१३९३. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६९५, माघ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १४१-२१(१९ से २०,३५ से ३९,११७ से १३०)+१(५८)=१२१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. ६५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ६४३५-४०). For Private And Personal use only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २२००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: साधु केहवा छइं जिणइ; अंति: तेहनइ इष्ट वल्लभ छइं, ग्रं. ४२५०. २१३९४. (#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६५२, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २८३, प्रले. श्राव. भोजा खीमा मुहता; लिख. ग. सूजाक (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४२६-३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: भवसिद्धिय संवुडे, अध्ययन-३६, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: भिक्षो विनयं प्रादुष; अंति: समंतान् इष्टान्, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भिक्षु महात्मानइ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बालावबोध अंतिम अध्ययन के गा. २५८ तक है.) २१३९७. (+) प्रज्ञापनासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पद-१३ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२, ६४३३-३७). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: (-). प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, वि. १७०५, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: (-). २१३९८. उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १७९५, भाद्रपद शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १११, ले.स्थल. सादडी, प्रले. ग. सुखविजय (गुरु पं. मानविजय गणि); विक्र. गुवचंद; क्रीत. मूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने "लिखितं बुनिपुरनगरात् सादडीमधे" इस तरह लिखा है. बाद की लिपि में "उपदेशमाला की पोथी मूलचंदनै दीनी २/ एलचपुरमै सं.१८९४ मिती आसोज सुदी५ गुवचंद दीनी।कोइ दावो करणपावै नहीं" का उल्लेख मिलता है., जैदे., (२६४१२, ७-१८४४०-४५). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४३. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: संजात इति भद्रं. उपदेशमाला-कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: एकदा समयने विषे; अंति: शोधनीयैव सुधीधनैश्च. २१३९९. श्रीपाल चरित्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८८७, फाल्गुन शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११८, ले.स्थल. स्याहजदानाबाद, प्रले. मु. प्रमोदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ६-७२३२-३७). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं झायित; अंति: वाइजंता कहा एसा, गाथा-१३४२, ग्रं. १५५०, संपूर्ण. सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, मु. हेमचंद्र, सं., गद्य, आदि: ध्यात्वा नवपदीं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१०१४ तक अवचूरि लिखी गई है.) २१४००. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६१-१८८२, श्रेष्ठ, पृ. १०६९+२(१९१,४३५)=१०७१, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, ६४४०-४२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: संति करितं नमस्सामि, शतक-४१, ग्रं. १६०००, (वि. १८६१, पौष कृष्ण, १४, प्रले. हीरानंद मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य) भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने माहरो; अंति: नमस्कार करुं छु, (वि. १८८२, माघ शुक्ल, ४, शुक्रवार, प्रले. ललितादास ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य) २१४०२. बासठ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. सा. लाछी; पठ. सा. रुपा (गुरु सा. लाछी),प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, २९-३०x१७). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ१ इंदिअर काए३ जोए४; अंति: जीव असंख्यातगुण. २१४०३. अजितशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२४४११.५, १२४२३-२७). For Private And Personal use only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जिय सव्वभवं; अंतिः निणवयणे आयरं कुणह गाथा- ४०. २१४०५. स्नात्रपूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५X१२, ११x२८-३०). स्नात्रपूजा, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: प्रथम हुंती निरसही; अंति: (-). २९४०६. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, दे., (२५x१२, १६x४३-४७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी, रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्ति; अंतिः भविआण विबोहणडाए, अध्ययन - १० चूलिका २. २१४०७. ब्रह्मचर्यनववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७३८, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल, ढीकोडा, प्रले. पं. कुंभजी; पठ. मु. राजसी (गुरु पं. कुंभजी), प्र.ले.पु. मध्यम जैदे., (२५.५x११.५, १३४३३-३४), ब्रह्मचर्यनववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमिसर चरणयुग; अंति: हो जुगत नववाडी, ढाल - ११, गाथा - ९७. २१४०८, (+) संतिकरं स्तोत्र, तिजयपहुत्त स्तोत्र, पार्श्वजिन स्तोत्र व अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४. प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२, ११-१२४३०-३३). १. पे नाम. संति स्तोत्र, प्र. १अ १आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: संतिकर संतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा - १२. २. पे नाम, तिजयपहुत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, तिजवहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपवासय अ अंतिः निब्धंतं निच्चमच्चेह, गाथा - १३. ३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण भयहरपार्श्वजिन स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंतिः नासइ तस्स दूरेण, गाथा - २४. ४. पे नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण, अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभय; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह गाथा- ४०. २१४०९ पौषधपच्चक्खाण विधि व मेणरयानी चोपि, संपूर्ण, वि. १९१४, कार्तिक कृष्ण, १ रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. रामकृष्ण ऋषि; पठ. सा. छोटा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २४.५X१२, १९ - २०x४५-४६). १. पे. नाम. दसमो पोसो पचखणे की विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषधपच्चखाण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: दसमो पोसो किणने कही; अंतिः उपवास के दिन टालनी २. पे. नाम. मेणरेहानी चोपि, पृ. १आ ५अ, संपूर्ण. मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: जुवा मांस दारू तणी; अंतिः साद्धां री संगत करजो, गाथा- १६२. २१४१०. नवपदजी की पूजा, संपूर्ण, वि. १८७२, करमुनिनागचंद्र, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल. आंबोरीनगर याम्यदेशे, प्रले. पं. न्यायविशाल, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२६४१२, १०४२५-२७). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (१) प्रथम बल बाकुल करी, (२) उपन्नसन्नाणमहोमयाणं: अंतिः सिद्धिचक्कं नमामि २१४१३. सुदर्शनसेठनी कथा कवित, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, वे. (२६४१२, १८-१९x३८-४१). 9 सुदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: वांदु श्रीजिन वीर; अंतिः त्रिभुवनमै तारक तिकी, गाथा - १२१. २१४१५. सौभाग्यपंचमी देववंदन विधि, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२५.५X१३, १५X३४-३५). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: (-). २९४१६. २४ ठाणा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३ ) + १ (४) -६, पू. वि. बीच के पत्र हैं. दे., ( २६४१३, १९४३२-३४). For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१४१८. नवग्रह, दसदिग्पाल व अष्टमंगलिक पूजन स्थापन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, ले.स्थल. राधिकापूर, प्रले. पं. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३.५, १६-१९४३१-३२). १. पे. नाम. नवग्रह पूजाविधि स्थापन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. नवग्रह पूजा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम दिवसे पाटला उप; अंति: तथा जमणे पासे थापिइ. २. पे. नाम. दसदिगपाल पूजाविधि, पृ. ५अ-८आ, संपूर्ण. दशदिग्पाल पूजाविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पेहले दिवसे सुकड; अंति: प्रतिमा पासे थापिइ. ३. पे. नाम. अष्टमंगलिकपूजन स्थापन विधि, पृ. ८आ, संपूर्ण. अष्टमंगलिक पूजाविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मुहूर्त दिवसे प्रभात; अंति: मंगलं पूजका अमी. २१४१९. योगचिंतामणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २४४, ले.स्थल. भरथपुर, प्रले. हीरा ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३.५, ५४३०-३३). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (१)श्रीसर्वज्ञ प्रणम्य, (२)यत्र वित्रासमायांति; अंति: योगचिंतामणिश्चिरम्, अध्याय-७, संपूर्ण. योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जिहां वित्राशन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पत्रांक-२३२ तक टबार्थ लिखा गया है.) २१४२१. पारसनाथनो विवाहलो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२६४१४, १३-१४४३६-३८). पार्श्वजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे वरघोडे वर; अंति: मुदित मनरंग भरताम, ढाल-६. २१४२२. प्रतिष्टा विधि, संपूर्ण, वि. १८९६, पौष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २६, ले.स्थल. राधनपूर, प्रले. मु. सुबुद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३.५, १८४३३-३६). प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (१)विजयदानसूरीश्वराग्रे, (२)इति आसनमुद्रा. २१४२५. (+) चौवीसदंडक यंत्र, पंचपरमेष्ठि १०८ गुण व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७.५४१३.५, ६४३८-३९). १.पे. नाम. चौवीसदंडक यंत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. पंचपरमेष्ठि १०८ गुण, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतना गुण बारा; अंति: परिषह सहै उपसर्ग सहै. ३. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अरति ध्यान का चार; अंति: नीत इकवीस गुणधारी है. २१४२७. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक का बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, दे., (२७४१३, १३४३६-३८). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बौलै तीर्थंकर; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रश्न बोल १४६ तक है.) २१४३२. सिद्धांतसारोद्धार विच्यार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२७.५४१३, १७-१८४५०-५१). सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जंबूद्वीपविचार; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २१४३३. भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२, दे., (२८x१४, ६४३८-४०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक ___द्वारा अपूर्ण., द्वितीय शतक अपूर्ण तक है.) २१४३४. गोम्मटसार सह जीवप्रदीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८४+५९(१ से ५७,१००,१०९)=२४३, पू.वि. कर्मकांड अधिकार १ से अधिकार ५ गाथा-१०१ तक है., जैदे., (२७४१३, ११४३७-३८). गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private And Personal use only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गोम्मटसार-जीवतत्त्वप्रदीपिका वृत्ति, केशववर्णी, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २१४३५. सेजय रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२६४१४, ११४२९-३१). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: ए सुणतां आणंद थाय, ढाल-६. २१४३८. ऋषिमंडल स्तोत्र साधन व यंत्रोद्धार क्रमविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२९x१६, १४४४१). १. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र साधनविधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र-यंत्रलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्थान पवित्र; अंति: एण रीते यंत्र लिखणो. २. पे. नाम. ऋषिमंडल यंत्रोद्धारक्रम, पृ. २अ-६आ, संपूर्ण.. ऋषिमंडल स्तोत्र-यंत्रोद्धार क्रम, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: स्मृत्वा तीर्थकृता; अंति: भव्यात्मनां वांछितं. २१४३९. (+) सम्यक्त्व कौमुदी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१४.५, ६-७४२६-३६). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-). सम्यक्त्वकौमुदी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमान चतुर्विंशत; अंति: (-). २१४४०. (+) गणधर संवाद, संपूर्ण, वि. १९४८, कार्तिक शुक्ल, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९,प्रले. श्राव. पोपट खीमचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२८x१४, १३४४६-५०). गणधर संवाद, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंतने केवल; अंति: एहवो अध्यवसाय छेइ. २१४४२. भाष्यत्रय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४७, पौष कृष्ण, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. अहमदाबाद, प्रले. केशवजी जादवजी; लिख. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. ९००, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२८x१४, ३-७४४०-५४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३. भाष्यत्रय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीआदिनाथ तीर्थेशं, (२)वंदित्तु० वांदवा; अंति: ते शास्त्रथी जाणवा. २१४४३. पार्श्वनाथ स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२७४१४, १५४४३). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की पार्श्वदेवीय टीका, ग. द्विजपार्श्वदेव, सं., गद्य, आदि: अर्ह आवश्यकादि; अंति: मिथ्यादुःकृतमिति. २१४४४. अंतरिक्ष व फलवर्द्धि पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२४.५४१४.५, १३४३०-३३). १. पे. नाम. अंतरीकजिन स्तवन, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: जयो पास जय जय करण. २. पे. नाम. फलवर्द्धिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवृद्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परतापूरण प्रणमीइ अरि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) २१४४७. शत्रुजयमाहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७९, पू.वि. सर्ग ६ श्लोक २५९ तक लिखा है., दे., (२८x१४.५, ४४२८-३४). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal use only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ __ ४१ शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., गद्य, वि. १७६७, आदि: नत्वा वीरं सुबोधाय; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २१४४९. संवरनिर्जराभेद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, दे., (२६.५४१३, १४४३७-४०). संवर-निर्जराभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पडिक्कमामि पंचहिं; अंति: एक शुद्ध चेतनभाव छई. २१४५८. तंदुलवेयालियं पन्नं सह टबार्थ व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०७, फाल्गुन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३५, कुल पे. २, पठ. मु. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (१८१) मंगलं लेखकस्यापि, (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६६१) मंगलं भगवान् वीरो, दे., (२९x१४.५, ६४३३-३५). १.पे. नाम. तंदुलवैयालियं पन्नं सहटबार्थ, पृ. १आ-३५अ, संपूर्ण. __ तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निजरिय जरामरणं; अंति: कारणं लहिइ शिवसुखं. तंदलवैचारिक प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)कल्याणवल्लीतती०, (२)अहं कहु० तंदुलपइन्नो; अंति: काढीनई धर्म करवो. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३५अ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. २१४६२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, आश्विन शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १८२, प्रले. मु. मोहनकुशल (गुरु पं. चतुरकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ९०००, प्र.ले.श्लो. (७६६) एसो गुण गहणिज्जो, (७६७) अक्खरमत्ताबिंदु, दे., (३०x१४.५, ५४२८-३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (१)त्ति बेमि, (२)पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वसंयोग मातादिकनो; अंति: छइ मे लेशमात्र थकी. २१४६९. नारचंद्र ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १९३५, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्रले. शिवनारायण जोशी; अन्य. भूरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२९४१४, ११४३८-४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: च मृत्युरेव न संशयः, श्लोक-४८१. २१४७१. (+) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू.वि. गाथा ८२ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२९.५४१४, ३४३८-४०). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधर साहिब; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा-बालावबोध, क. पद्मविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८३०, आदि: (१)पार्श्वनाथपदद्वंद्व, (२)ए स्तवनमा प्राये; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २१४७२. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५८, कार्तिक, श्रेष्ठ, पृ. ७३, ले.स्थल. जामनगर, प्र.वि. प्रतिलेखनपुष्पिका अधूरी लिखी गयी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८.५४१४, ४४३७-४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: निच्चला होसु, __ अध्ययन-१०, चूलिका २, गाथा-७००. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानमानम्य, (२)ध० श्रीजिनधर्मरूप; अंति: कीधु जे ए सत्य वचन. २१४८२. वृद्धस्नात्र विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-२(४,९)=२३, दे., (२८.५४१३, १२४४०-४१). बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १८१४, आदि: प्रणम्य पार्श्वपादा; अंति: शोध्यं हि बुधैः वरैः. २१४८३. गोतम रासो, पुन्यप्रकास रोस्तवन, महावीर स्तवन व सिद्धाचल स्तवन, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१-१(१)=२०, कुल पे. ४, दे., (२९x१३, ११४२६-२७). १. पे. नाम. गोतम रासो, पृ. २अ-६आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private And Personal use only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: वृद्धि सुख संपदा ए, गाथा-४८, ___ (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) । २. पे. नाम. सेजाजी रोरास, पृ. ६आ-१४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: ए सुणतां आणंद थाय, ढाल-६. ३. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १४आ-२१आ, संपूर्ण, वि. १९२३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८. ४. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धगिरी ध्यावो; अंति: ज्ञानविमल० गुण गावे, गाथा-४. २१४८४. बारसासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२८.५४१३, ७X२२-२३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहताणं नमो, (२)तेणं कालेण० समणे; अंति: (-). २१४८५. विचाररत्नसार, संपूर्ण, वि. १९०८, माघ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७७, ले.स्थल. लसकर, प्रले. पं. हुकमचंद; पठ. श्राव. बाघजी डागा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३.५, १३४३४-३८). विचाररत्नसार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: कारणभूतं मुणेयव्वं. २१४८६. (#) सिंदूरप्रकर सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४३, चैत्र कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५१, ले.स्थल. धणला, पठ. पं. मनोहरसागर; प्रले. पं. देवेंद्रसागर; अन्य. पंन्या. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.१, १६४५०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीशारदाचरणयुग्ममती; अंति: मयी मूर्खकृतकृपैः. २१४८७. भरहेसरसूत्र सह वृत्ति व वृत्ति का टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१५, दे., (२८.५४१३, ७X४२-४४). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: (-), पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदि: युगादौ व्यवहाराध्वा; अंति: (-), पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. भरहेसर सज्झाय-टीका का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: युगने आदे व्यवहार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,टबार्थ पत्र-११२अतक लिखा है.) २१४८८. (+) रायप्रश्नीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६६, चैत्र शुक्ल, ३, गुरुवार, जीर्ण, पृ. १३६, ले.स्थल. गुर्जरिपुर, प्रले. श्राव. काबलीमल्ल श्रमणोपासक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५५००, जैदे., (३०x१२, ६-७७३८-४०). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० आमलकप्प; अति: पास्स सुपासस्स णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१७९. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नत्वा वीरजिनेश्वरचरण, (२)जेणइ कालै भगवंत; अंति: राजप्रश्नीसूत्रनइ, ग्रं. ३२८१. २१४८९. चंद्रप्रभस्वामी चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९७, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०५, ले.स्थल. गोधावीनगर, प्रले. ग. जतनकुशल (गुरु ग. अमृतकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वर्द्धमानस्वामी प्रसादात्., कुल ग्रं. १४०१७, प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, (७५२) जब लग मेरु थिर रहि, दे., (२९x१२.५, ५४३२-३४). चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १२६४, आदि: दृष्टोपि हृष्टजन; अंति: व्यतीतेषु नवस्वभूत्, परिच्छेद-२. . For Private And Personal use only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ चंद्रप्रभजिन चरित्र-टबार्थ, पंन्या. रुपविजयजी, मा.गु., गद्य, वि. १८९०, आदिः (१)वंदे श्रीमत्पार्श्व, (२)जे चंद्रप्रभस्वामिने; अंति: स्वामी मोक्षे गया. २१४९३. (+) संबोधसीत्तरी, संपूर्ण, वि. १८७३, माघ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. राधनपूर, प्रले. मु. अमीविजय; पठ. मु. सरूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथ नमः., संशोधित., जैदे., (२८x१२, ६-१२४३५-३७). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-१२४. २१४९४. कथाग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४०, प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२८x१२, १०-१२४४०-४४). कथा संग्रह-इंद्रियादिविषयक, मा.गु., गद्य, आदि: अथ चक्षुरिद्रिय उपर; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २१४९५. (+) अध्यात्मसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रावण कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३३, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. कुल ग्रं. ३०१५६, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६१८) जलाद क्षेत् स्थलाद रक्षेत्, जैदे., (२८x१२, ४-३०४३३-३८). अध्यात्मसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणिनतः; अंति: मानंदावहं भवतु, प्रबंध-७. अध्यात्मसार-टबार्थ, पं. वीरविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८८१, आदि: इंद्र संबंधि जे; अंति: (१)वीरविजयगणिभि००श्रेयः, (२)सुखनु आपनार हज्यो. २१४९७. (+) सुदर्शना चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६३, माघ कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०४, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. रामकृष्णदास ललितराम वैष्णव; अन्य. मु. समयमाणिक्य (गुरु मु. सूरसुंदर, बृहत्तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वडतपागच्छीय सूरसुंदरजी के शिष्य समयमाणिक्य ने इस प्रति का संशोधन किया., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (६६६) अक्षरमात्रस्वरपदहीनं, (७६२) यत्किंचित् लिखितं कूटं, जैदे., (२८x१२.५, ५४५४-५५). सुदर्शना चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सुव्वयजिणं; अंति: विबुहस्सियासुइर, अध्याय-१६, गाथा-४०५३, ग्रं. ४५००. सुदर्शना चरित्र-टबार्थ, मु. वल्लभविजय, मा.गु., गद्य, आदि: मुनिसुव्रतस्वामीनें; अंति: थकी घणाकाल लगे. २१४९८. चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. पं. विनयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१२.५, ७४२०-२१). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: सांमलनु चैत्य रे. २१५०१. साधुआचार स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१३, ६x२३-२४). साधु आचार स्वाध्याय, मा.गु., पद्य, वि. १८३२-१८५९, आदि: अरिहंतने नमु; अंति: रयां गाम मझार रे, संपूर्ण. २१५०२. आर्यवसुधारा धारिणी, संपूर्ण, वि. १९०२, आश्विन शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२८x१३, ७-१०४२३-२६). आर्यवसुधारा, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. २१५०३. उत्तराध्ययनसूत्र सह लघुवृत्ति-सूत्रार्थदीपिकानाम्नी, संपूर्ण, वि. १९७३, कार्तिक कृष्ण, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०६, ले.स्थल. बोरसद खेडाजिल्लो, प्रले. प्राणजीवन इश्वरदास भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२८x१३, १२४४८-४९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, आदि: अर्हतो ज्ञानभाजः; अंति: बोधाय सुदीपिकेयम्, ग्रं. १५३००. २१५०४. वीरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२८x१३, १०४३२-३३). For Private And Personal use only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन-२७ भवगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति द्यो मति; अंति: वदे० धन मुज ए गुरु, ढाल-१०, गाथा-९५. २१५०६. (+) चंदराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१३, ११४३०-३२). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुण चंदना, उल्लास-४, ढाल १०८. २१५०८. (+) उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५४, ले.स्थल. गोधावि, प्रले. पं. जतनकुसल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवीरवर्धमानस्वामी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१३, ४४३३-३४). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: तिणी कालि चोथा आराने; अंति: सुख पाम्या थका. २१५०९. ज्योतिषसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. पाटण, पठ. श्राव. चुनीलाल सांकलचंद सुतार, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ५-७४३७-४१). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: न विद्या बुधसोमयोः, संपूर्ण. ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: घात चंद्रमा निषेधिवो, (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक ९ श्लोकों का टबार्थ नहीं लिखा गया है.) २१५११. (+) गुणस्थानसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५१, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. शैवलीया, प्रले. पं. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १०४३२). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६. २१५१२. सीमंधरजिन स्तवन, अढारनातरा व झांझरियामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६१, कार्तिक कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र.वि. कुल ग्रं. १३७, जैदे., (२७४१२.५, १२४३५-३६). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: विनती मारी रे सुणजो; अंति: वंदे नेह नजरथी निहाळ, गाथा-८. २. पे. नाम. अढारनातरा सज्झाय, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलो ते प्रणमुरे; अंति: गुण गाय रे मन रंगीला, ढाल-२, गाथा-३४. ३. पे. नाम. झांझरियामुनि सज्झाय, पृ. ३अ-६अ, संपूर्ण. मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: पासजिणेसर समरता; अंति: पभणे सांभलता मंगलमाल, ढाल-४, ग्रं. १३७. २१५१४. अंजनासती रास, संपूर्ण, वि. १९५२, वैशाख शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२७.५४१२.५, २०-२१४४२-४७). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: गणधर गौतम प्रमुख; अंति: सती ए शीरोमण गाई ए, खंड-३. २१५१५. (+) वासुपूज्यजिन चरित्र सह बीजक, संपूर्ण, वि. १९४६, आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १८६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७४१२.५, १२४४०-४५). वासपूज्यजिन चरित्र, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., पद्य, वि. १२९९, आदि: अर्हतं नौमि नाभेय; अंति: (१)जयिनः सुरेंद्राः, (२)वेदबाणानीतांकग्रंथ, ग्रं. ५९७८. वासुपूज्यजिन चरित्र-बीजक, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २१५१६. पार्श्वजिन चरित्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८७०, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५०-१(१)=४४९, पू.वि. गाथा १ से ८ नही है., ले.स्थल. चाणस्मा, प्रले. पं. नेमविजय गणि (गुरु ग. धर्मचंद्र); पठ. पं. चतुरविजय गणि (गुरु मु. खुशालविजय, तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीभटेवापार्श्वनाथ प्रसादात्., जैदे., (२७.५४१२.५, ६४३९-४०). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: (-); अंति: सहस्राण्यनुष्टुभाम्, सर्ग-८, ग्रं. ६०७४. पार्श्वजिन चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८००, आदि: (-); अंति: निर्णित श्लोकमानेन, ग्रं. १२१४७. २१५१७. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की अर्थदीपिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९७१, चैत्र कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २१५, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. लालजी कल्याणजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १३४४०-४१). वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: जयति सततोदयश्रीः; अंति: जीयादियं च चिरम्, अधिकार-५, ग्रं. ६६४०. २१५१९. (+) कर्मग्रंथ ५ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-६९ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ३४३५). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-). शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य वीरं सद्वीर; अंति: (-). २१५२०. (+) प्रेमगीता, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-६(१ से ४,७ से ८)=११, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १२४४१-४३). प्रेमगीता, आ. बुद्धिसागरसूरि, सं., पद्य, वि. १९७२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०१ से १५८ व २१६ से ४६६ तक है.) २१५२२. मृगापुत्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १७३०, माघ कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. अकबराबाद, पठ. श्रावि. मन्नो, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १४४४३). मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: परतक्षि प्रणमुं वीर; अंति: चरित्र जिनहरषै कीयो, ढाल-१०, गाथा-१२८, ग्रं. १९१. २१५२४. मृगापुत्र चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२७४१२, १४४४०-४२). मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: परतक्षि प्रणमुं वीर; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१० दूहा-३ तक लिखा है.) २१५२६. (+) ज्ञातधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २०८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ११४३८-३९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ, __अध्ययन-१९, ग्रं. ५६७५. २१५२७. (+#) योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५३-१(१)=१५२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रथम प्रकरण गाथा ६ से प्रकरण ४२ गाथा ८ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ७४३६-३७). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-). योगचिंतामणि-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१५२८. आचारांगसूत्र सह व्याख्या-प्रदीपिका नाम्नि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८६, प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, १३४४०-४२). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुर्य मे आउसं० इहमेगे; अंति: विमुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-२५. For Private And Personal use only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, आदि: भगवान् सुधर्मास्वामी; अंति: ब्रवीमीति पूर्ववत्, ग्रं. ९५५०. २१५२९. शांतिनाथ चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९१-२००(१ से २००)=३९१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रस्ताव ३ अपूर्ण से प्रस्ताव ६ गाथा १५२२ अपूर्ण तक है., जैदे., (२५.५४१२, ५४२६-२८). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: (-); अंति: (-). शांतिनाथ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१५३१. (+) नवस्मरण व लघुशांति स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६७५, शशिरसमुनिव्रत, चैत्र शुक्ल, ५, जीर्ण, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. दधालीआनगर, प्रले. पं. विवेकचंद्र (गुरु उपा. भानुचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पंचपाठ., जैदे., (२५४११, ७४३१-३२). १.पे. नाम. नवस्मरण सह टीका, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, पू.वि. मात्र नवकार, उवसग्गहरं, तिजयपहुत्त व संतिकरं स्तोत्र है. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. नवस्मरण-सप्तस्मरण टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. लघुशांति सह टीका, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१६. लघुशांति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६४४, आदि: सर्वंसर्व सिद्ध्यर्थ; अंति: यायात् प्राप्नुयात्. २१५३२. वरदत्तगुणमंजरी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३६-३७). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनाधि; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५१. २१५३५. (+) वास्तुसार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १४४४७-४८). वास्तुसार प्रकरण, ठक्कुर फेरु, प्रा., पद्य, वि. १३७२, आदि: सयलसुरासुरविंद दसण; अंति: गिहपडिमालक्खणाईणं, प्रकरण-३, ग्रं. ३००. २१५३६. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९३३, चैत्र कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १३-८(१ से ८)=५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १७-२२४५०-५१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-७ गाथा-५९ तक नहीं है.) २१५३७. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११.५, ९-१०x४०-४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. वर्ग ९ संपूर्ण तक है.) २१५३८. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८६-५(१ से ५)=१८१, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २१५३९. (+) उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३१, ले.स्थल. नाडूल, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५२०९, जैदे., (२६४१२, ४४३६-३८). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, ग्रं. १४०९. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा श्रीजिनं; अंति: छइं संक्रम्या थका, ग्रं. ३८००. २१५४०. उपमतिभवप्रपंचा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४४, जैदे., (२६.५४१२, १३४३६-३८). For Private And Personal use only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ उपमितिभवप्रपंचा रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: वाग्देवी वरदाइनी; अंति: कहे जिनहरष तसु सीस, ढाल-१२७, गाथा-२९७४. २१५४२. जांभवती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५५, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. मगनीराम ऋषि; पठ. सा. पेमाजी आर्या; सा. इमृता, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११, १४४४२-४६). जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली ढाल सोहामणी; अंति: समाणो दिधो पाट तो. २१५४३. (+) हंसराजवच्छराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १३४४५-४७). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: दिन दिन हुवइ जयकार, खंड-४ढाल ४७, ग्रं. १४१५. २१५४४. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-८ गाथा-२३ अपूर्ण तक है., जैदे., (२६४११, ६x४०-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-). दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म केवलीउ भाष्यउ; अंति: (-). २१५४५. नवस्मरण व लघुशांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३२, मध्यम, पृ. ३०, कुल पे. २, ले.स्थल. साहिपुर, प्रले. ग. कनकविजय (गुरु पं. वृद्धिविजय गणि); पठ. श्रावि. लाडकुंअरि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११, ४४३०-३२). १. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. १आ-२७आ, संपूर्ण, पू.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र व बडी शांति नहीं है. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , प्रतिपूर्ण. नवस्मरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुओ अरिहंत; अंति: संपदा समुपैति भजइ, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. लघुशांति सह टबार्थ, पृ. २७आ-३०आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशात; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शांतिनाथ प्रति शांत; अंति: जिनेश्वरनो महिमा छइं. २१५४६. (+) कल्पसूत्र सह अवचूरि व कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९-५४(१ से ३६,३८,४०,४२ से ४४,४९ से ६०,८८)=३५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ९४२९-३०). १. पे. नाम. कल्पसूत्र सह अवचूरि, पृ. ३७अ-८५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: पारतंत्र्यमभिहितम्. २. पे. नाम. कालिकाचार्य कथा, पृ. ८६अ-८९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: हयपडिणीयपयावो; अति: (-), (पू.वि. गाथा ५५ तक है.) २१५४७. क्षेत्रसंग्रहणी सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. दीव, जैदे., (२६४११, १५४३८-४०). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिण सव्वनुं जय; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-२९. लघुसंग्रहणी-टीका, आ. प्रभानंदसूरि, सं., गद्य, वि. १३९०, आदि: नत्वा श्रीवीरजिन; अंति: तद्बुधाः शोधयंतु. २१५४९. भाष्यत्रय सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १७६२, पौष कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१)=१९, पू.वि. गाथा १ से ६ नही है., ले.स्थल. पत्तन, प्रले. मु. विजयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४४४-४८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१५१. भाष्यत्रय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सौख्य० पामिसिइ. २१५५०. उत्तराध्ययनसूत्र सह लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २७९-२५३(१ से २४२,२४६ से २५६)=२६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४९-५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir जटाला कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१५५१. चैत्यवंदन महाभाष्य, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. जेसलमेरु, प्रले. मु. डालूजीशिष्य (गुरु मु. डालूजी), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. सं.१७५४ में युगप्रधान श्रीजिनरंगसूरि के विजयराज्य में ज्ञानसिंहगणि के शिष्य धर्मविशाल गणि अपने शिष्यपरिवार सहित यह प्रति कृष्णदुर्ग के भंडार में रखवायी., जैदे., (२६४११, १९-२०४४८-५३). चैत्यवंदन महाभाष्य, आ. शांतिसूरि वादि, प्रा., पद्य, आदि: पणमह पणमंतसुरासुरिंद; अंति: होउ सया मंगलं तुम्ह, श्लोक-९१०, ग्रं. ११८०. २१५५२. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२६४११, ११४३९-४५). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २१५५३. श्रीपाल चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४८, चैत्र कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १७६-३२(१ से ३२)=१४४, पू.वि. गाथा-२२६ तक नही है., प्रले. मु. कस्तुरसागर (गुरु मु. चैनसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ५४२९-३१). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: (-); अंति: वाइज्जता कहा एसा, गाथा-१३४१, ग्रं. १६७४. सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कथा या प्रवर्तो. २१५५४. रघुवंश सह शिशुहितैषिणी टीका, संपूर्ण, वि. १७१५, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १८६, ले.स्थल. रुद्रपूरी, प्रले. मु. राजसूरि शिष्य; राज्यकाल रा. अक्षयराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूलपाठ द्वितीय सर्ग से प्रतिकात्मक है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४११, १४-१५४४२-४४). रघुवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदि: वागर्थाविव संपृक्तौ; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम सर्ग है.) रघुवंश-शिशुहितैषिणी टीका, आ. चारित्रवर्धनसूरि, सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: यस्य भंगावलि कंठे; अंति: रणे रायवेष्टसहस्तिका, संपूर्ण. २१५५५. भगवतीसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२३-१२(१ से ३,९० से ९८)=४११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., शतक-३५ अपूर्ण तक है., जैदे., (२६४१२, १५४४०-४२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: (-); अंति: (-). २१५५६. (+) पन्नवणासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७७८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६३२-२९५(१ से २९५)=३३७, ले.स्थल. संग्रामपुर, प्रले. ग. चतुरविजय (गुरु पंन्या. हस्तिविजय, तपगच्छ); राज्यकाल रा. सवाई जेसिंघजी महाराजा, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ५४३३-३६). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, ग्रं. ७७८७. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, वि. १७०५, आदि: (-); अंति: (१)सुख पाम्या छइ, (२)चक्रे स्वबुद्धितः. २१५५९. (+#) शत्रुजयमहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२९-१(५०४*)+१(३२४)=६२९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६x४२-४४). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: रसांभोनिधि ग्रंथ एषः, सर्ग-१४. शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीयुगादीशं; अंति: थाओ घणा काल लगे. २१५६०. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९१-१५(१,५० से ६३)+४(७९ से ८२)=८०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, ६-७४३६-३८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). २१५६१. श्राद्धविधि प्रकरण सह वृत्ति व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८४, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४४९+१(३४०)=४५०, ले.स्थल. पाटण, जैदे., (२६४११, ६x४१-४३). For Private And Personal use only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं पणमिय; अंति: सुहं लहुं लहंति धुवं, प्रकाश - ६. (+) - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदि: अर्हत्सिद्धगणींद्र अंतिः जयदायिनी कृतिनाम्, प्रकाश-६ नं. ६७६१. ग्रं. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका का टवार्थ #, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध भगवान; अंति: देणहारी पुन्यवंतोन इ. २१५६२. (+) शत्रुंजयमाहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७१५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २१०००, जैदे., ( २६११, ६x४०-४१). शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: संघस्य सर्वेष्टदम्, सर्ग १४. शत्रुंजय माहात्म्य - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीयुगादीशं; अंति: वांछितनो देणहारो छ . २१५६३. (#) भगवतीसूत्र की विशेषवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५६, फाल्गुन कृष्ण, १२, शुक्रवार, वि. १६५७, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३३१, ले.स्थल. मेडतानगर, लिख. श्रावि. चतुरंगदे खेतसीभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६X११, १७ - १८५२ - ५३). भगवतीसूत्र - टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंत; अंति: (१) श्चेति न व्याख्याताः, (२) लोकमानेन निश्चितम् शतक- ४१, ग्रं. १८६१६. २१५६४. (+) आवश्यकसूत्र की नियुक्ति व वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८०, प्र. वि. पत्र सं. २२२-२२३ व २८७-२८८ एक-एक पत्र पर ही दिये गये है., त्रिपाठ संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५.५४११, १७-१८४५५-६५), आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू. आवश्यक सूत्र- नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंतिः (१) मिच्छंतीति गाथार्थः, (२) मस्या उद्देशतः कृतं, ग्रं. २२५००. २१५६५. () पण्णवणासूत्र सह टवार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३५६ - १ ( ४१ ) + १ (४३) = ३५६, प्र. वि. टिप्पण 'युक्त विशेष पाठ- संशोधित. कुल ग्रं. ६६९१७, जैदे., (२६X११.५, ८-९x४९-५६). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं० ववगय; अंतिः सुही सुहं पत्ता, पद- ३६. प्रज्ञापनासूत्र - टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, वि. १७०५, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंतिः बली धया सर्व १३९९८, ग्रं. ५७९८९. २१५६६. (+) रायपसेणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९९-५० (१ से ५० ) = ४९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, ५X३२-३५ ) . राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-). राजप्रश्रीयसूत्र - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), २१५६८. पुन्यसागर रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८- १(१) = ७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६x१०.५, १४४४५-४६). ४९ पुण्यसागर रास, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १ गाथा - ६ से ढाल - १५ के दोहा तक है.) २१५६९. (*) नमिऊण, भक्तामर स्तोत्र व साधारण पद, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे ३, पठ, मु. नित्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६x१०.५, ९X३०-३२). १. पे. नाम, भयहर स्तोत्र, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: अट्ठारस अक्खर मंतं, गाथा - २४. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २आ-७अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. साधारण पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१५७०. शत्रुजयउद्धार, संपूर्ण, वि. १८३१, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५४११, ११-१२४३४). श@जयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: दर्शन जय करो, ढाल-१२, गाथा-९३. २१५७४. (+) अंतगडदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४४१-४६). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२, ग्रं. ८००. २१५७६. कर्मग्रंथ ४ से ६ सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २९१-६५(१ से ६५)=२२६, कुल पे. ३, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११.५, १५-१६४३२-३४). १. पे. नाम. षडशीति कर्मग्रंथ सह टीका, पृ. ६६अ-१२३आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: यद्भाषितार्थलवमाप्य; अंति: विचारणाचतुरः, ग्रं. २८००. २. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ सह टीका, पृ. १२४अ-२१३आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: यो विश्वविश्वभविना; अंति: सर्वोपि तेन जनः, ग्रं. ४३४०. ३.पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टीका, पृ. २१४अ-२९१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-९० तक है. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: (-). सप्ततिका कर्मग्रंथ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: अशेषकर्मांशतमःसमूह; अंति: (-). २१५७७. (+) भयहर स्तोत्र व अजितशांति स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६९०, भाद्रपद शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, कुल पे. २, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. मु. भोजरत्न (गुरु पं. गजरत्न), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ५४३८-४०). १. पे. नाम. भयहर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१ से २१ नहीं है., वि. १६९०, भाद्रपद कृष्ण, ५. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: नासइ रोग पराभव न करइ. २.पे. नाम. अजितशांति स्तवन सह टबार्थ, पृ. ३अ-१०अ, संपूर्ण, वि. १६९०, भाद्रपद शुक्ल, ७. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: अजयसंतिनाहस्स, गाथा-४२, संपूर्ण. अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनाथ जीता छइ सर्व; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३९ तक टबार्थ लिखा गया है.) २१५७९. (#) स्तोत्र संग्रह व पंचपरमेष्ठि स्तुति, संपूर्ण, वि. १७८६, आषाढ़ शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ७, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. जसवंत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३५-३६). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. __ आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर महास्तोत्र, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ३. पे नाम. लघुशांति, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. लघुशांति स्तव, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ४. पे. नाम. वृद्धशांति, पृ. ५आ - ७अ, संपूर्ण. सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे. ५. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयास अ अंति: निब्धंतं निच्चमच्चेह, गाथा - १४. ६. पे. नाम. पार्श्वनाथ नवग्रहगर्भित स्तोत्र, पृ. ७आ, संपूर्ण. नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा न पीडंति, गाथा - १०. ७. पे नाम. स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., पद्य, आदि अर्हतो भगवंत इंद्र; अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम् श्लोक-१. २१५८१. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७११.५, ९-११x२८-३१). - कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: ( - ), ( पू. वि. स्थविरावली अपूर्ण तक है.) २१५८२. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६५, आषाढ़ कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५१, ले.स्थल. नारनवल, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X१२, ५x४८-५१). ५१ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि; अंति: (१) कहणा पविचालणा संघे, (२) निच्चला होसु, अध्ययन - १०, चूलिका २, गाथा - ७००. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मो० धर्म पिण किसउ; अंति: करी ए सत्य वात. २९५८४. (+) पंचज्ञान विचार, संपूर्ण, वि. १८१३ आषाढ़ शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैवे., (२७X११.५, २२x६२-६३). पंचज्ञान विचार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण जिणवारिदं; अंतिः उद्धरिया पहकरे वासे, ज्ञान- ५, गाथा- ४४२. २१५८८. योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६ ९ ( १ से ९) = ७, पू. वि. बीच के पत्र हैं, जैदे., (२७X११.५, कल्पिकासूत्र - टिप्पण, मा.गु., सं., गद्य, आदि: ( - ); अंति: (-). २. पे नाम, कल्पावर्तसिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. ८अ - ८आ, संपूर्ण, १७६७-६८ ) . योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-५ गाथा-७३ से प्रकाश-११ तक है. ) २१५८९. चौवीसदंडक त्रीसद्वार विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२ (१ से २) = २२, प्रले. मु. वेलजी ऋषि (गुरु ऋ. नानजी); मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुकागच्छ); पठ. मु. खीमजी ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२७११.५, १९ - २०x३७-४२). २४ दंडक ३० बोल विचार, आ. रूपजीवर्षी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अजरामर परमानंद छइ. २१५९० (+) निरियावलियादि पंचोपांगसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८२३, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. ५, प्रले. श्राव, दयाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ११०९, जैदे., (२७४११.५, १७५६०-७३). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः सव्वेसिं भणियव्वो, अध्ययन- १०. For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: कप्पवडिसियाणं, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टिप्पण", सं.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. ८आ-१५आ, संपूर्ण. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टिप्पण*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टिप्पण, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेण०; अंति: खलु जंबू निक्खेवउ, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टिप्पण, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टिप्पण, पृ. १६आ-१८अ, संपूर्ण. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. २१५९१. पुन्यसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५२, वैशाख कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. करौली, प्रले. मु. महताब ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११, १३-१४४३८-४२). पुण्यसेन चौपाई, मु. दीप, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: कारण सिवसंपतिकरण; अंति: सकल मनोरथ फलस्येजी, ढाल-१३. २१५९२. रत्नचूड चउपई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२८x११,८-१३४४८-५८). रत्नचूड चौपाई, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५०९, आदि: सरसति देवी पय नमी; अंति: श्रीसंघनइ ते जयजयकार, गाथा-३४०. २१५९३. चौवीसदंडकत्रीसद्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११, ३२-३३४१७-१८). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: (-). २१५९८.(+) कल्पसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. प्रतिलेखक ने आवश्यकतानुसार टिप्पण लिखा है. पीठिका १६ श्लोको में टबार्थसहित लिखी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (१२९) पद अक्षर मत्ताई, (३४१) लेखयंती नरा धन्या, (३६१) विद्यायाः अभ्यास कर्त्तव्यं, (३६९) जलं रक्षे स्थलं रक्षे, (४९६) स कोडीय करचरण, जैदे., (२९x१२, १८-१९४८०-८१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१५९९. (+) सोहमकुलरत्न पट्टावली रास, अपूर्ण, वि. १८७८, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७६-१५(१ से १५)+५(६५ से ६९)=६६, ले.स्थल. पूर्णाशहर दक्षिणदेश, प्रले. पं. धनविजय (चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत मे बीजक है., पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (७६५) ज्यां लग मेरु अडग रहे, जैदे., (२९x१२, १२४३२-३५). सोहमकुलरत्न पट्टावली रास, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नाम चतुर्थोल्लास, उल्लास-४, ढाल ६५, ग्रं. २०००, (पू.वि. ढाल-१० गाथा-३ तक नहीं है.) २१६००. (+) ठाणांगसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६०६, फाल्गुन कृष्ण, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २६५, ले.स्थल. अलवर मेवातदेशे, राज्यकाल रा. सलेम साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल का मात्र प्रतीक पाठ दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२९.५४११.५, १८४४८-५७). स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवीरं जिननाथ; अंति: (१)टीकाल्पधियोपि गम्या, (२)सहस्राणि चतुर्दशः, स्थान-१०, ग्रं. १४२५०. २१६०२. (+) जीवाभिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १५६-६(१ से ६)=१५०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x११.५, १३-१४४३८-४०). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ५३ २१६०३. (+) आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व मूल-नियुक्ति-भाष्य तीनों की संयुक्त लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x११.५, १७-१९४५३-६०). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहताण० सव्व; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ, अध्ययन-६, सूत्र-१०५. आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: (१)देवः श्रीनाभिसूनु, (२)अर्थाभिमुखोनियतोबोधो; अंति: (१)खेलतात्कृतिमानसे, (२)महोदयपदावाप्तिरिति. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: (-); अंति: (-). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: अवरविदेहे गामस्स; अंति: जम्हा विउ पमाणं. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१६०४. शांतिनाथ चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७-१८६८, श्रेष्ठ, पृ. ३२६, प्रले. पं. ज्ञानवर्द्धन (गुरु पं. राजवर्द्धन), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६.५४११.५, ६x४२-४५). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंति: स करोतु शांतिः, प्रस्ताव-६, ग्रं. ५०१२, (वि. १८६७, आश्विन कृष्ण, १० अधिकतिथि, ले.स्थल. दशरथपुर, वि. शांतिजिन प्रसादात्.) शांतिनाथ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलिकरूप समुद्र; अंति: सानिधना करनार थाओ, (वि. १८६८, चैत्र शुक्ल, ११, मंगलवार, ले.स्थल. वर्द्धमानपुर) २१६०५. (+) खेत्तसमास प्रकरण सह टबार्थ व जैन गाथा, संपूर्ण, वि. १६७१-१६९४, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २, ले.स्थल. पीपलीया, प्रले. मु. मेहा ऋषि; मु. नारायण ऋषि (गुरु मु. मेहा ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि. सं. १६७१ में ऋषि मेहा ने शिष्य नारायण के पठनार्थ प्रारंभ से जंबूद्वीप अधिकार तक लिखा है. इसकी पूर्ति इनके ही शिष्य के द्वारा वि. सं. १६९४ में की गयी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ६-७४४०-४३). १. पे. नाम. लघुक्षेत्रसमास सह टबार्थ, पृ. १अ-१४आ, संपूर्ण. लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभस्सण; अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, अध्याय-५, गाथा-१८८, संपूर्ण. लघुक्षेत्रसमास काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीने जे भगवंत सजल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., लवणसमुद्र अधिकार अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. जैन प्राकृत गाथा, पृ. १४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पीपाजननगर. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-२. २१६०६. (+) ढालसागर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १००, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५-१७४३९-४२). ढालसागर, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८७६ अपूर्ण तक है.) २१६११. आवश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६९, जैदे., (२६४११, ११-१३४५३-५७). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय का बालावबोध, आ. तरुणप्रभसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: सुरासुराधीशमहीश; अंति: तावदेषा सुवृत्तिः. २१६१२. स्थानांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९६+३(२७२,३२२,४५२)=५९९, जैदे., (२६४११, ३-४४२९-३२). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: अणंता पण्णत्ता, स्थान-१०. For Private And Personal use only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४ www.kobatirth.org २१६१६. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) नत्वा स्थानांग कतिपय, (२) सांभलिउ मइ हे आयु; अंति: अध्ययन परे जाणवुं (पू. वि. बीच में कहीं कहीं रचार्थं नहीं लिखा गया है.) २१६१३. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६ वैशाख शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पू. ६०९, प्रले. हरदेवजी छगनजी त्रवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १६५००, जैदे., ( २६.५X११, ५x२८ - ३०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चंपाए: अंति: जाव संपत्तेर्ण, अध्ययन - १९. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) ध्यात्वा वीरं जिनं०, (२) ते० तेणइं कालइं; अंतिः धर्मकथा परिपूर्ण थई. २१६१५. (+) प्रवचनसार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६६८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २९६, ले. स्थल. कर्मवाटी, प्र. वि. जेसलमेर में किसी के द्वारा कोई साधु भगवन्त को यह प्रति वहोरायी गयी है, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाये जाने से दोनो ही नाम अज्ञात है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., प्र.ले. श्लो. (७७३) अदृष्टिदोषान् मतिविभ्रमाद्वा, जैदे., ( २६x१०.५, १३X५०-५२). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाईजिणं; अंति: नंदउ बहु पढिज्जतो, द्वार - २७६, गाथा - १६३४. प्रवचनसारोद्धार-अर्थप्रदीप बालावबोध, ग. पद्ममंदिर, मा.गु., गद्य, वि. १६५१, आदि: श्रीमन्नाभेयादीन्; अंतिः पूर्णीकृतो ग्रंथः ग्रं. १२००८. । कल्पसूत्र सह कल्पकौमुदी टीका, संपूर्ण, वि. १७२८, पीष कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २७५, ले. स्थल. अहिमदनगर, प्रले. ग. कांतिसौभाग्य (गुरु पं. अमरसौभाग्य गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित द्विपाठ, जैदे., (२५x११, ४-११२७-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान - ९, ग्रं. १२९६. कल्पसूत्र - कल्पकौमुदी टीका, उपा. शांतिसागर, सं., गद्य, वि. १७०७, आदि: प्रणम्य परमानंदकंदकं; अंतिः (१) संवाच्यमाना चिरम्, (२) प्रति एवं ब्रूते, ग्रं. ३७०७. २१६१७. (+) उपदेशमाला सह बालावबोध+कथा, पूर्ण, वि. १९वी ९ रविवार श्रेष्ठ, पृ. २०३ - ३ ( ७१ से ७२, १५५ ) = २००, प्र. वि. बालावबोध बार्थ स्वरूप में लिखा गया है., संशोधित, जैवे., (२५.५x११.५, ३-१५४३२-३८). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा - ५४४. उपदेशमाला - बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, बि. १७१३, आदि (१) प्रणम्य श्रीमहावीर, ( २ ) वंदित्वा वीरजिनं; अंति: (१) संजात इति भद्रं, (२) वाणि श्रुतदेवता तेह. २१६१८. योगबिंदु प्रकरण सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९० प्र. वि. कुल ग्रं. ३५००, जैवे., (२७४११, १३-१४X३७-४३). योगबिंदु, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वाद्यंतविनिर्मुक; अंतिः तेन जनस्ताद्योगलोचनः. योगबिंदु स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः सद्योगचिंतामणितोनणीय; अंतिः करणांकप्रद्योतक इति. २१६१९. अध्यात्मकल्पद्रुम सह साम्यरहस्य टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९८ + १ (५७) = ९९, प्र. वि. द्विपाठ., दे., (२७४११, १-५२०-४३ ). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: अधायं श्रीमान् शांत; अंतिः जयश्रिया शिवश्रीः, अधिकार १६ श्लोक-२७८. - अध्यात्मकल्पद्रुम- साम्वरहस्य टीका, उपा. धनविजय, सं., गद्य, आदिः ॐ नमः परमाप्ताय; अंतिः (१) खलु विधेवेति, (२) समर्थितो भवतीति, २१६२१. (*) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३२ - १ (५७) १३१, पू. वि. समाचारी - २४ अपूर्ण तक है., प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, ६ १६३४-४० ). For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org ५५ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१) नमो अरिहंताणं नमो, (२) तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), पूर्ण, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र - टवार्थ में, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने माहरो नम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, स्थविरावली तक लिखा है.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति: (-), पूर्ण, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. २१६२४. (+) ज्ञातधर्मकथांगसूत्र अध्ययन १ से ९, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२४, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, १३x२९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चंपाए: अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २१६२५. (+) प्रज्ञापनासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७३२, फाल्गुन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३४२ - १२८ (१ से १२८) = २१४, ले. स्थल. सुद्धदंती, प्रले. पंन्या. रामचंद्र (गुरु वा. ज्ञानमूर्ति, बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ., प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६X११, ६-८X३७-५०). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: ( - ); अंति: सुही सुहं पत्ता, पद- ३६, सूत्र - २१७६, ग्रं. ७७८७. प्रज्ञापनासूत्र बार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, वि. १७०५, आदि: (-); अति: (१) चक्रे स्वबुद्धितः, (२) सुख - पाम्या छइ. २१६२६. (+) कल्पसूत्र सह अवचूरि, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८८-१ (१) - ८७, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११, ९४२६-३०). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९ नं. १२१६. कल्पसूत्र - अवचूरि *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: अपरीक्षा राजशिदिवत्. २१६२७. (+) ठाणांगसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३४३, ले. स्थल. अणहिलपाटक, प्रले. ग. धनपति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६x११, १५X४३-४६). स्थानांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवीरं जिननाथ; अंतिः टीकाल्पधियोपि गम्या, ग्रं. १४०००. २१६२८. (+४) उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६१ - १ ( १ ) - २६०, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १५X३८-४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययन सूत्र - बालावबोध", मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). २१६२९_ (+) कुमारपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, जैवे., (२६४११, १३x४१-४६). कुमारपाल प्रबंध, उपा. जिनमंडन, सं., प+ग., वि. १४९२, आदिः ॐ नमः श्रीमहावीरजिन; अंति: प्रमित वत्स रुचिरः. " २१६३०. (+) पन्नवणासूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११.५, ७ - १८x४३-५२). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगय; अंति: (-). प्रज्ञापनासूत्र बार्ध, मु. धनविमल, मा.गु., गद्य, वि. १७०५, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं ( २ ) श्री अरिहंतने - नमस्कार अंति: (-), (वि. टवार्थ आवश्यकतानुसार कहीं-कहीं लिखा गया है.) For Private And Personal Use Only - Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१६३१. (+) भगवतीसूत्र सह विशेषवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५९, श्रेष्ठ, पृ. ७७४, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. यह प्रति वि. १५५९ की प्रति पर से लिखी गयी है, उसी की १४ श्लोकमय पद्यबद्ध प्रतिलेखन पुष्पिका इस प्रति में भी है. इस प्रति की स्वयं की प्रतिलेखन पुष्पिका नहीं है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १-१५४३५-४४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: देव अविग्धं लिहतस्स, शतक-४१. भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: (१)सर्वज्ञमीश्वरमनंत, (२)तत्र नम इति नैपातिक; अंति: श्चेति न व्याख्याताः, ग्रं. १८६१६. २१६३२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ५४३१-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (१)पुव्वरिसी एव भासंति, (२)त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वर्द्धमानजिनं नत्वा, (२)पूर्वसंयोग ते मातादि; अंति: (१)एह वचन भाष्यकारनउं, (२)ते जंबू प्रते कहे छइ, (वि. कर्ता का नाम नहीं लिखा गया है.) २१६३३. (+) आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व मूल-नियुक्ति-भाष्य तीनों की संयुक्त शिष्यहिता टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११८-१(७७)=११७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १०x४०-४५). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहंताणं० सव्व; अंति: (-). आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: (-). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: (-). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: (-). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: अवरविदेहे गामस्स; अंति: (-). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २१६३४. (+) दसवीकालकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३०००, जैदे., (२६४११, ४४३०-३३). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. दशवकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म म० मंगलिक; अंति: तीर्थंकरनु प्ररुप्यु. २१६३५. पार्श्वनाथ चरित, पूर्ण, वि. १६३१, भाद्रपद कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १६८-८(१,७,४० से ४२,१३१ से १३३)=१६०, ले.स्थल. नारदपुरी, राज्ये गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. ग. सुखनिधान; मु. कमलतिलक; मु. चिचापसिंह; मु. श्रीपाल (गुरु मु. समयकलश, खरतरगच्छ); लिख. श्राव. पहिराज शाह, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, जैदे., (२७४११, १४-१५४४२-४५). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: (-); अंति: शुभभावलक्ष्मीम्, सर्ग-८, ग्रं. ६३००. २१६३८. (+) भुवनदीपक जोतिषशास्त्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, आषाढ़ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. बाधणवाडा, प्रले. मु. खुसवंतसागर; राज्ये आ. विजयधर्मसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ७४२९-३५). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१९१. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधी जे; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरि, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोकांक-१८४ से १८८ तक टबार्थ नहीं लिखा है.) For Private And Personal use only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २१६३९. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा ३ अपूर्ण से ४८ अपूर्ण तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, २-३४३५-४२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१६४०. रामयशोरसायन, संपूर्ण, वि. १८९१, भाद्रपद कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४१, ले.स्थल. चित्रकोट, प्रले. मु. प्रताप ऋषि (गुरु मु. लालचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, २७-२८४६२-६५). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: श्रीमुनिसुव्रतस्वामी; अंति: जपे सदा हरख वधामणी, अधिकार-४, ढाल ६२. २१६४१. आलोयण संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. स्वर्णगिरि, प्रले. ग. नरेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १०४३०-३४). १. पे. नाम. आलोयण विचार, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण. आलोयणा विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: हत्थुत्तर सवणतिग; अंति: वियडस्स पछिन्नं. २. पे. नाम. श्रावकनी मोटकाबोलनी आलोयण, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. श्रावक मोयकाबोल की आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: अगलित जल व्यापारे; अंति: उपवास १ एकासना दोय. २१६४२. (+) वसुधारा स्तोत्र विधियुक्त, संपूर्ण, वि. १८४४, युगाश्रिनागराजा, कार्तिक कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. सुद्धदंतीनगर, प्रले. मु. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४२७-३०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: सर्वसौख्यं करोति. २१६४४. उपधान आदि विधिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, १२-१८x२४-३५). उपधानादि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलइ नउकारनइ उपधानइ; अंति: (-). २१६४५. दानविषये रत्नचूड चोपई, अपूर्ण, वि. १८०४, चैत्र कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १०२-७६(१ से ७६)=२६, ले.स्थल. जिहानावाद, प्रले. पं. ऋद्धिविजय (गुरु ग. कुशलविजय); राज्यकाल रा. मदम्मदशाह; पठ. सा. रुपा, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२५४११, ११४३६-३९). रत्नचूड चौपाई-दानविषये, मु. अमरसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: (-); अंति: पुंहती मनह जगीस कि, ___ ढाल-६२, (पू.वि. ढाल-४९ गाथा-१ तक नहीं है.) २१६४६. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३२-१२१(१ से १२१)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१०.५, ४-५४३०-३६). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१६४७. (+) दीपालिकापर्व कल्प, संपूर्ण, वि. १८२४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. कोहिला ग्राम, प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १६४४४-५०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४३६. २१६४८. (+) बृहत्कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४२, ज्येष्ठ, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. मांदलगण खैराडदेशे, पठ. सा. राजकंवर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिल.पु.-अग्रजी महताराज व्रतमाने., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, १६x४२-४३). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई तिबेमि, उद्देशक-६. २१६४९. यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२७, पौष शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. राजैपुर, प्रले. ऋ. नगराज; लिख. मु. हीरसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११, ३-१५४४४-५३). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. For Private And Personal use only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पगाम सज्झायसूत्र-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७४९, आदि: ॐ नत्वा पार्श्वनाथ; अंति: तीर्थंकर जिन प्रति. २१६५०. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०३, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. फलवर्द्धिका, पठ. श्रावि. सुंदरी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४१०.५, ७X४१-४७). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (प्रले. पं. सौभाग्यरत्न गणि) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीक भणी पहिलउछए; अंति: छइ मोक्षना सुखनउ, (प्रले. पं. सामंत (बृहत्खरतरगच्छ); राज्यकालरा. जसवंतसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य) २१६५१. सील रास, संपूर्ण, वि. १८००, आश्विन शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, पठ. सा. सोनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४४२-४३). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ प्रणाम करूं; अंति: इम श्रीविजयदेवसूरि, गाथा-७६. २१६५२. दीपावली कल्प का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९०, आश्विन कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. ग. हस्तिविजय (गुरु ग. सुंदरविजय); अन्य. मु. नेमविजय (गुरु ग. हेमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११, १४४३४-३७). दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्धमानमांगल्य, (२)श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: करी स्वर्गे जस्ये. २१६५३. (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १७४९, श्रावण शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनरत्नसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १५४४८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिजे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५३, ग्रं. २२१. २१६५४. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८२५, कार्तिक कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३९-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: किल इति सत्ये अहमपि; अंति: वर्णविचित्रपुष्पाम्. २१६५५. (+) पाक्षिकसूत्र, खामणा, अतिचार व जीवविचारादि प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८७६, पौष शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१३)=१५, कुल पे. ७, ले.स्थल. रामसीण, प्रले. न्यालचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. महावीरजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४११, ११४३८-३९). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पक्खिखामणासूत्र, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. ३. पे. नाम. साधुअतिचार, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण. साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कड. ४. पे. नाम. चोवीस दंडकसूत्र, पृ. ९आ-१२अ, संपूर्ण. दंडक सूत्र, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४८. ५. पे. नाम. पांच इंद्रिय विषय, पृ. १२अ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय विषय, मा.गु., गद्य, आदि: जघन्यतो अंगलुनो; अंति: इंद्रियनो विषय जाणवो. For Private And Personal use only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ६. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १२अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४६, (पू.वि. गाथा १४ से ३४ तक नही ७. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १४आ-१६आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा नही है.) २१६५६. मयणरेहारास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७-१(३)=६, दे., (२५.५४११, १५-१६४३६-३७). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जोवो मास दारू थकी; अंति: परनारी चित्त न दीजे, गाथा-१७८, (पू.वि. गाथा-४९ से ७५ तक नहीं है.) २१६५७. श्राविकाना अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. दयालजी, प्र.वि. ००००००१००१३५, दे., (२५४१२.५, १०४३०). श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*,संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. २१६५८. भाष्यत्रय सह बालावबोध व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८०५, शराभ्रसप्तैकमितेब्दे, आश्विन कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, कुल पे. २, ले.स्थल. सादडी, प्रले. मु. सत्यसागर (गुरु मु. रत्नसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीचिन्तामणिपार्श्वदेव प्रसादतः. प्रतिलेखक ने पत्रांक ३४ के बाद सीधा ३६ दिया है, परंतु गाथानुक्रम क्रमशः है. अतः अंतिम पत्रांक ४० होने की जगह ४१ है. ले.सं. में सप्तैक की जगह अष्टैक होना चाहिये क्योंकि १७५८ बालावबोध र.सं. है., त्रिपाठ., प्र.ले.श्लो. (३७३) मंगलं लेखकानां च, (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, (५५१) चोरानलादुदकेभ्यो, (६१७) भग्नपृष्टि कटि ग्रीवा, (६६७) तैलाद्रक्षेजलाद्रक्षेद्, (७७२) यावन्मेरूमहीपीठे, जैदे., (२५४११, १-५४३२-४२). १.पे. नाम. भाष्यत्रय सह टबार्थ, पृ. १आ-४०अ, संपूर्ण. भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७५८, आदि: ऐंद्रश्रेणिनुतं; अंति: जनानामिति श्रेयः. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४०अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-१. २१६६०. अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. मेडता, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५.५४११, १८-२०x४८-५३). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहलै कडावैजी पाय; अंति: भार्या जगतनी मात तो, गाथा-१६३. २१६६१. (#) कुमारपाल रास, संपूर्ण, वि. १६८१, कार्तिक कृष्ण, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. ४६, ले.स्थल. नीजीमपुर, लिख. सा. हीरजी, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में स्थल व लिखापितं की सूचना बाद के समय में लिखी गयी है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३७-४०). कुमारपाल रास, मु. हीरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६४०, आदि: पयपंकय जस प्रणमतां; अंति: नृपनई करइं भांमणां, गाथा-८०४. २१६६२. क्षेत्रसमास सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११,३-१५४३५-४५). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: सिरिनिलयं केवलिणं; अंति: सोहेयव्वो सुअहरेहिं. बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनवरेंद्र; अंति: प्रमाणाश्च ज्ञेया, ___ ग्रं. ३३८८. २१६६३. चौमासी देववंदन विधि, पूर्ण, वि. १९४४, भाद्रपद, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २५-२(१ से २)=२३, लिख. सा. दोलतश्री; प्रले. मालजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ९४२९-३०). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: पास सामलनु चेई रे. For Private And Personal use only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१६६५. (+) वीरांगद चौपाई व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४४०-४५). १.पे. नाम. वीरंगद चौपाई, पृ. १आ-४५आ, संपूर्ण. वीरांगद चौपाई, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: ॐ विस्वनाथ जिनवर चरण; अंति: तत्त्व समजते जाण. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४६अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: हारे प्रभु पास; अंति: सब सिघ देखन जईये, गाथा-३. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: आज आनंद भयो मेरी माई; अंति: सबही सुख आयो जिनराई, गाथा-३. ४. पे. नाम. नेमिनाथजी स्तवन, पृ. ४६अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: घर घर आज वधाईरी माई; अंति: भयो सुखदाई माई, गाथा-३. २१६६६. (+) दान, शील, तप, भावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ५४४१-४७). १. पे. नाम. दान कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. दान कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिअरज्जसारो; अंति: सिवफलयमहो अणंतगुणं, गाथा-२०. दान कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: परिहरिउंछाडिउ; अंति: अनंत सुखदायकपणा थकी. २. पे. नाम. शील कुलक सह टबार्थ, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. शील कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सोहग्ग महानिहिणो; अंति: सालसीलस्स दुल्ललियं, गाथा-२०. शील कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सौभाग्यगुण-; अंति: पालित शीलनु जाणिवउं. ३. पे. नाम. तप कुलक सह टबार्थ, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. तप कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सो जयउ जुगाइजिणो; अंति: तत्थ तवो कारणं चेव, गाथा-२०. तप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते जयवंत हु; अंति: तेह ज एक हेतु जाणिवु. ४. पे. नाम. भाव कुलक सह टबार्थ, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण. भाव कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: कमठासुरेण रइयम्मि; अंति: सो लहइ सिद्धिसुह, गाथा-२१. भाव कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कमठ नामई जे असुर; अंति: सुख ते प्रतिइ. २१६६७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, जैदे., (२४४११, १४४२७-२८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चार गतमे भटकता; अंति: सतगुरु कहे समजाय, ढाल-२. २. पे. नाम. मेघरथराजा सज्झाय, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडा विनती, मा.गु., पद्य, आदि: दया बरोबर धर्म नहीं; अंति: संत सुखी अणगारो जी, गाथा-३२. ३. पे. नाम. औपदेशिक बारमासो, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: अनंत चौवीसी पाय नमु; अंति: आगला सुखा रे काज रे, गाथा-२७. ४. पे. नाम. नेमराजीमती सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: वीनवे राजुल नार हो; अंति: हुजो थारा नामथी जी, गाथा-२१. २१६६९. नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२, जैदे., (२५४११, १४४३५). नेमिजिन चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण सिद्धसिवं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २१६७०. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५१, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ४१, प्रले. मु. नगा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र १अ पर बालावबोध लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ९-१०४२७-३१). For Private And Personal use only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन - १०. २१६७२. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८५०, कार्तिक शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, ले. स्थल, नीतोडा, पठ, मु. मुक्तिविजय; प्रले. पं. ज्ञानविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४११, १५-१७x४१-४९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवि तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल ४१. - २१६७४. (+#) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठयुक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१०.५, १३४३६ -४० ). 2 भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३५, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, १. पे नाम. पाक्षिकसूत्र सह टवार्थ पू. १आ- २२अ, संपूर्ण. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्लोक-१६३. २१६७५ (+) पाक्षिकसूत्र व खामणा सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७७६, ज्येष्ठ शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २, ले. स्थल, राधनपूर, प्र. मु. कपूरसागर (गुरु मु. जीवसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीमाणिभद्र प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., ( २४.५X११, ५X४९-५२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्यंकरे अतित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति, पाक्षिकसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकरसिद्ध; अति: सागर उपर भक्ति छे. ६१ २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र सह टबार्थ, पृ. २२अ - २३अ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. क्षामणकसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे क्षमाक्षमण वांछु; अंति: मने करी वांदु छु. २१६७७. सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६९, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., ( २६x११, ११-१२x२७-३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदिः सुत सिद्धारध भूपनो; अंति: सकल भवि मंगल करे, डाल- ६. २१६७८. चौवीसदंडक छब्बीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १७६८, भाद्रपद कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल आदनपुर, प्रले. मु. जीवण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६x११, १४-१५X३८-४२). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चउवीस दंडकना नाम; अंति: शेष आठ भागनुं विचार. २१६७९. कार्तिकशुक्ल पंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे. (२४.५x१०.५, १४x२४-२८). , वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीमत्पार्थ, (२) कार्तिक शुक्ल पंचम्य; अंतिः मोटा सुखनो धणी हुवे. २१६८०. विवाहपडल व नागपास विचार सह यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैवे., (२५४१०.५, १०x३२-३३). १. पे. नाम. विवाहपडल, पृ. १अ - ५आ, संपूर्ण. विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद बंदी करी; अंतिः अभयकुशल वाचक ए कही, गाथा - ६१. २. पे नाम. नागपास विचार सह यंत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण. नागपास विचार, मा.गु., पद्य, आदि: वृषादौ तृतीयं भाणु; अंति: हारै कुसल चौथै ठाम. नागपास विचार-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २१६८२. श्रेणिकराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८०, फाल्गुन शुक्त, १५, सोमवार श्रेष्ठ, पृ. १९, दे., (२५x१०.५, 9 १७५२-५७). For Private And Personal Use Only श्रेणिकराजा चौपाई, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: जगनायक चउवीसजिण; अंति: गुणवति ते गुण गावे, ढाल - ३२, गाथा - ७३१. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१६८३. (+) अणुत्तरोववाईदशांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., (२४.५४१०.५, ५x२६-२७ ). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: जहा धम्मकहा णेयव्वा. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० ते कालन विषह ते; अंतिः कथानी परे णे० जाणवा २१६८९. चंद्रराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १७४३, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११४, ले. स्थल नागोर, प्रले. ग. चतुरसागर ( गुरु पं. प्रमोदसागर गणि); पठ. मु. केसरसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैवे. (२६४१०.५, १३४३५). अधिकार- ४, श्रीचंद्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८, आदिः ॐ ध्यात्वा; अंति: मोक्षेपि यास्यति, श्लोक- ९०४ नं. ३७००. २१६९०. (+) रघुवंश काव्य सह राघवी वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८१७, पौष शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १५५ - २५ (५१ से ७५)=१३०, ले.स्थल. धनोप, प्रले. पं. जसरूपसागर (गुरु पं. नरेंद्रसागर); पठ. पं. श्रीपतिसागर; पं. चंद्रसागर, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित - पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ- त्रिपाठ., जैदे., ( २४.५X१०.५, ५X४०). रघुवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदि: वागर्थाविव संपृक्ती अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्ग - ६ श्लोक - ३४ तक पाठ उपलब्ध है., वि. मध्यभाग से प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण एवं बीच के पत्र नहीं है.) रघुवंश - विशेषार्थबोधिका वृत्ति, पंडित. गुणविनयगणि, सं., गद्य, वि. १६४६, आदि: ध्यात्वा तां ब्रह्म; अंतिः (१) दोष: मंदाक्रांताछंदः, (२)वद्भिर्वाच्यमानेयं, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., सर्ग ६, श्लोक ३५ अपूर्ण से सर्ग ९, श्लोक ७ तक नहीं है.) २१६९१. (+) आचारांगसूत्र सह बालावबोध- प्रथम श्रुतस्कंध, संपूर्ण वि. १७४३, वैशाख शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ९४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११, १७x४५-४६). " आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति (-), प्रतिपूर्ण २१६९४. (+#) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२४.५x१०.५, १०- १३४३२- ३९ ). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: ( - ), ( पू. वि. गाथा - २५७ तक है.) २१६९५. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १७४७, चैत्र शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. हीरसागर; पठ. श्रावि. हांसबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१०.५, १२x१७-३५), साधुवंदना, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तुं जिनवदन कमलनी; अंति: वंदइ तं सकलचंद मुणी, गाथा - १५२. २१६९९ (+) सिंदुर प्रकरण व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७८१ श्रावण कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, ले. स्थल, नागोर, प्रले. सा. हरुश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२५x१०, ११४३२). १. पे नाम, सिंदूर प्रकीर्णक, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण, सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक १०० ग्रं. २०१. २. पे नाम, श्लोक संग्रह, पृ. १९आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह -, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २१७००. द्रौपदी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५ - ४ (१,३, १०, १२ ) = ११, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५x१०.५, १३-१६X३७-४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रौपदीसती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१७०१. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल, जालोर, प्रले, पं. जीवण, प्र. ले. पु. सामान्य, (२५X१०, १३X३८ - ४२ ). मानतुंग- मानवती रास, उपा. अभवसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमुं माता सरसती; अंति: भेद मतिमंदिर लहे, ढाल १४. २१७०२. एलाकुमार चौपाई, पूर्ण, वि. १८६०, माघ कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ९ - १ (१)=८, ले.स्थल. उणियारा, प्रले. मु. भक्तिसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन मास हेतु माहासुदी ३० का उल्लेख हुआ है., दे., ( २४.५X१०.५, १३X३३-३९). - इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: (-); अंति: ज्ञान दर्शन अजूआले, ढाल १६, (पू. वि. दाल १ गाथा ६ तक नहीं है.) २१७०३. संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पठ. मु. श्रीचंद वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०, १४४५१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३१७. २१७०५. नलदवदंती रास, पूर्ण, वि. १७१८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३० - १ (१) = २९, ले. स्थल. अजयगढ, प्रले. आ. राजकीर्ति पठ. पं. सवाईराम, प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे. (२८.५x११, ११-१६४४३-५४). "" नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि (-); अंति: चतुर माणस चित्त वसी, खंड-६ ढाल ३८, गाथा - ९१३, ग्रं. १३५०, ( पू.वि. ढाल - १ गाथा - ९ तक नहीं है . ) २१७०६ (+) भक्तामर स्तोत्र व मांगलिक लोक, संपूर्ण, वि. १८१९ फाल्गुन शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. मेहसीया, प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि; पठ. वा. अनोपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२.५x१०.५, १०-१२४२९-३५ ). १. पे नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक - ४८. २. पे. नाम. मांगलिक स्तुति संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंतिः कुर्वंतो वो मंगलं, गाथा - ९. २१७०७ प्रतिष्ठा कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल, जेसलमेरु, प्रले, मु. हरकरण (गुरु मु. पृथ्वीचंद ); पठ. ऋ. उदयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५५११, १३x४३-४५). प्रतिष्ठा कल्प, मा.गु.,सं., प+ग, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: नाम स्मर्यते वार १०८. २१७१०. राजप्रश्रीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२१ - ९३ (१ से ९३ ) = २८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५x१०.५, ५X३०-३३ ). ६३ राजप्रश्रीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: ( - ). राजप्रश्रीयसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). २१७११. चौवीसदंडक विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२ - १४ (१ से १२, १९ से २० ) = ८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३.५X१०.५, १५X३३). २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१७१२. धन्नाशालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८४, वैशाख शुक्ल, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १५, ले. स्थल. गोइंदगढ, प्रले. मु. प्रवीणसागर (गुरु ग. लाभसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे. (२६.५४११.५, १४४४७). " For Private And Personal Use Only धन्नाशालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: सारें० फल लहस्यें जी, ढाल - २७, ग्रं. ५००. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१७१३. दशवैकालीकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्रले. सा. लीछमा (गुरु सा. फतुजी आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x१०, १२x२८-३४). दशवेकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुकि अंतिः मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन १० चूलिका २. २१७१४. श्रेणिकराजारास, पूर्ण, वि. १७८०, चैत्र शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १९ - १ (१) = १८, ले. स्थल. मालपूर, प्रले. पं. दोदराज (गुरु आ. भुवनभूषण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्र. पु. श्रीपार्श्वनाथ चैत्याले टोडा. जैवे., (२५.५X१०, ११-१२X३३-३६). श्रेणिकराजा रास, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: आपस मही करै स्नेह, गाथा - ३०५, ( पू. वि. गाथा-१ से ८ नहीं है.) २१७१६. अढीद्वीप, मेरुपर्वत, नरकवेदना व लोकस्वरुप वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ४, जीवे., (२५x१०, १४४४५-४८). १. पे. नाम. अढीद्वीप वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तीर्छालोकमां असंख्य; अंति: पण तेटला ज बमणा छे. २. पे. नाम, मेरुपर्वत वर्णन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: मेरुपर्वत कनकमय; अंति: रक्त वर्णे कनकनो छे. ३. पे. नाम, नरकवेदना वर्णन दोहा, पृ. १आ-८अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तिहां प्रथम कयी नरक; अंतिः दलमा शोचे झूरे सदीव. ४. पे. नाम. लोकस्वरुप वर्णन, पृ. ८अ ९आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदिः आ चित्र मनुष्यने; अंति: मात्रथी लखी छे. २१७१७. (+) जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०८, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, ले. स्थल. सादडी, प्रले. मु. उद्योतसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५x१०, ५X३८-४१). १. पे नाम, जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१, (वि. १८०८, फाल्गुन कृष्ण, ११, शुक्रवार) जीवविचार - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि प्रदीप; अंति: सिद्धांतनउ लइ नेइ, (वि. १८०८, फाल्गुन कृष्ण, १२, शनिवार) २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ६आ - १२आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः तिन्निवि एए उवाएया, गाथा - ५९, (संपूर्ण, वि. १८०८, फाल्गुन कृष्ण, ५, मंगलवार ) नवतत्त्व प्रकरण टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति (-), (पूर्ण, वि. १८०८ फाल्गुन शुक्ल, ७. सोमवार, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ गाथा - ५६ तक ही लिखा है.) २१७१८. चौवीसजिन लेखो व नालंदापाडा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१५, चैत्र कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले. स्थल. लोहावट, प्रले. मु. रामकृष्ण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२५x१०, १५x५२). १. पे. नाम, २४ तीर्थंकरनो लेखो, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. २४ जिन लेखो, मा.गु., गद्य, आदि: पैहला वांदु श्रीऋषभ; अंतिः २पाट मोख पहुता. २. पे नाम, नालंदापाडा सज्झाय, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण क्र. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: मगध देशमांहि विराजे अंतिः सुणतां लीलविलासोजी, गाथा - २२. २१७२१. पद्मवती स्तोत्र सह जापमंत्र तथा पूजासामग्री सहित, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैवे. (२४४१०, ८X३८-४० ). For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावतीस्तोत्रं, श्लोक-२९. २१७२३. सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७९०, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. कर्मवाटी जोधपुर, प्रले. मु. नंदलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४९.५, ११४३१-३६). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: निशमेति नाशम्, श्लोक-९८. २१७२४. (+) सप्तस्मरण व लधुशांति, संपूर्ण, वि. १८३९, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २, ले.स्थल. सोझत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४९.५, ९४३२-३४). १. पे. नाम. सप्तस्मरण स्तव, पृ. १आ-१३आ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, ___ पू.वि. अंतिम उवसग्गहरं स्तोत्र सिवाय के ६ स्तोत्र हैं.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१७+२. २१७२७. (+) संग्रहणीसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १४८३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ., जैदे., (२३४९, ८x२८-३१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७६. बृहत्संग्रहणी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: समृद्धि प्राप्नोतु, (वि. पत्र की किनार फटी होने से आदिवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) २१७३१. नेमिचरित्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२०.५४९, १३४३२). नेमिजिन रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४६, आदि: स्मृत्वा सारदां नेमि; अंति: जयु जगत कल्याणकर, खंड-२. २१७३७. (+) श्लोक संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२४९.५, ८x२३-२५). श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-९. श्लोक संग्रह-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत भगवंत असरण; अंति: करता श्रेय हुवै. २१७४९. ऋषभजिन विवाहलो व वीरजिन निसालगमन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२३४१०.५, ११-१२४३२-३५). १. पे. नाम. आदिजिन विवाहलो, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: आदि धर्म जिणि उधों; अंति: कविता नर ऋषभदासो, गाथा-६८. २. पे. नाम. महावीरजिन निसालगमन, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-निशालगमन, मु. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सखी त्रिभूवन जिन; अंति: भगतिलाभ इम वांदीइ ए, गाथा-२३. २१७५८. नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, अन्य. मु. महिमाविजय, जैदे., (२३.५४१०.५, १०-१२४४०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , (प्रतिपूर्ण, पू.वि. तिजयपहुत्त, बडीशांति एवं कल्याणमंदिर स्तोत्र के अलावा स्मरण हैं.) २१७६४. जीवविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८७, फाल्गुन शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. वाल्हीनगर, प्रले. पं. सकलरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४२०.५, १४४३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भवन कहीइं त्रिभोवन; अंति: रत्न सरीखा छई. For Private And Personal use only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१७६५. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-१(३)=८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४१०.५, १७४५०-५३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३३२ तक है.) २१७७०. (#) सिंहलसुत चौपाई व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७५८, कार्तिक शुक्ल, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, ले.स्थल. राजपुर, प्रले. ग. विजयरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, ११-१२४३२-३७). १. पे. नाम. सिंहलसुत चउपई, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण. प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमु सद्गुरु पाय; अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२३०. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-२. २१७७५. समाधिमरण, संपूर्ण, वि. १८३६, पौष शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. श्राव. नाथुराम मुहुता; पठ. श्राव. डुंगरमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, १३-१४४३८-४१). समाधिमरण, पुहिं., पद्य, आदि: अथ अपना इष्टदेव; अंति: पिण अकाममरण न मरै. २१७७६. (+#) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८६६, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०.५, १२४२८-३१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. २१७८०. (+) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४११, १३-१४४३५-४०). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१८०. २१७८१. लीलावती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२.५४७.५, १२-१४४१८-२४). लीलावतीसुमतिविलास रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: परम पुरुष प्रभु पास; अंति: (-), (पू.वि. ढा-२० गाथा-११ तक है.) २१७८३. १४ गुणठाणा २१ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १८३६, पौष कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. श्राव. नाथुराम मुहुता; पठ. श्राव. डुंगरमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, ११-१५४३८-४१). १४ गुणस्थानक २१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अथ गुणस्थान १४ चवदै; अंति: जीव अनंता जाणवा. २१७८७. आठकर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, दे., (२१४११, ९४२१). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम आठ मूलप्रकृति; अंति: जीव मुक्ति पहुचै. २१७८८. सुदयवछ सावलिंगा वार्ता, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. मु. मनोहर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११, १३-१६x२८-३२). सदयवच्छ सावलिंगारी वार्ता, मा.गु., प+ग., आदि: न्यायसूतारा नरवहण; अंति: जिम आदमी चमोचम घसाइ. २१७९९. दानशीलतपभावना चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२०x१०.५, ११४२९-३१). दानशीलतपभाव चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-५, गाथा-१०१. २१८०२. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६६, भाद्रपद कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, ले.स्थल. बरग्राम, प्रले. मु. दानविजय (गुरु पं. हितविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमहावीरजी प्रसादात्., जैदे., (२१४११, ११-१३४१६-१८). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: धरम करम मन उलसै रे, ढाल-३०, गाथा-५५५. For Private And Personal use only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ६७ २१८०३. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, दे., (२१४११, ५-६x२०-२४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-९ गाथा-३० तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: उत्तराध्ययननो ए अर्थ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ अध्याय-८ गाथा-१४ तक लिखा है.) २१८०८. पचीसबोल थोकडा व वीनती, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(२)=५, कुल पे. २, ले.स्थल. वीवाणी, प्रले. रामजीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११, १३-१४४२२-२८). १.पे. नाम. पचीसबोल थोकडा, पृ. १आ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले गत च्यार; अंति: यथाख्यातचारित्र. २. पे. नाम. विनती, पृ. ६अ, संपूर्ण. यौवनगर्व पद, मीराबाई, मा.गु., पद्य, आदि: जोवन धन पाहुणो दीन; अंति: मीर० करम काट दो सारा, गाथा-४. २१८०९. वंगचूलिका प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४४, पौष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. नागोरनगर, प्र.वि. आदिनाथ प्रसादात्., दे., (२१४११, ६४३२-४२). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिब्भरनमियसुरवर; अंति: चित्तो होह पइ हियहं. वंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भत्तिभर कहतां भक्ति; अंति: सदाकाल जतन करता हुवा. २१८११. (+) धर्मोपदेश व यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२१.५४११, ९४२५-३२). १. पे. नाम. यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. यंत्र संग्रह , मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. धर्मोपदेश संग्रह, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. व्याख्यान संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: देवपूजा दया दानं; अंति: श्रेय मंगलमाला संपजै. २१८१३. अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. श्रावि. जमना, जैदे., (२१४११.५, ९x१९-२२). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. २१८१७. (+) सिंदूर प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६०, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि (गुरु मु. हुकमचंद मुनि); पठ. श्राव. गुलाबचंद्र लालचंद, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, ५-७४३३-३९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००, (वि. १९६०, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, गुरुवार) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनी समुह; अंति: संसार सदा नाश पामहि, (वि. १९६०, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, रविवार) २१८२०. पंचज्ञान पूजाविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२१.५४११.५, ११-१२४२६-२८). पंचज्ञान पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सकल कुशल कमलावली; अंति: (१)रूपविजय गुण गाया रे, (२)भेला ५१ साथिया. २१८२१. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. ग. चंद्रहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११.५, ५४२५-३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्ण पावा; अंति: तिन्निवि एए उवाएया, गाथा-५५. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भव्य प्राणीइं समकित; अंति: एया क० आदरवा योग्य. २१८२३. रतनसंग रतनावली चौपाई, अपूर्ण, वि. १९०४, फाल्गुन शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, ले.स्थल. उटाला, प्रले. सा. ग्यानाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, १०४२७-३०). For Private And Personal use only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रतनसंग - रतनावली चौपाई, मु. कविवण, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: (-); अंति: पाल्या भवनो पार, ढाल -८, ( पू. वि. ढाल - १ गाथा - १४ तक नहीं है . ) २१८२५. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९३७, मार्गशीर्ष, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२४X११, ९x२९-३४). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्म, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंतिः जयभद्रसूरि इम भणे ए, गाथा - ६६. २१८२९. आचारांगसूत्र लेशार्थ - द्वितीय श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १६१६, वैशाख शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदे., (२२.५X११, १९x५९-६४). आचारांगसूत्र - हिस्सा - द्वितीय श्रुतस्कंध-लेशार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: से० ते भिक्षु चारित; अंति: तेह थकी विप्पमूंका. २१८३०. चंद्रलेहा चरित, संपूर्ण, वि. १८वी, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. २९, ले. स्थल. नीलांबाग्राम, प्रले. मु. बुधविजय (गुरु ग. विनयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३४११, १३४३०-३४). चंद्रलेखा रास, मु.] मतिकुशल, मा.गु., पद्म, वि. १७२८, आदिः सरसति भगवति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल - २९, गाथा - ६२४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८३५. गोडीपार्श्वजिन, महावीरजिन स्तवन व वैराग्यपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे, ३, प्रले. पं. विद्याविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५X११.५, १२x१५-३९). १. पे नाम. श्रीगोडीपार्श्वनाथजी वृद्धिस्तवन, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन वृद्धस्तवन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंति: जिण नाम अभिराम ते, ढाल - ५, गाथा - ५५. २. पे. नाम. वैराग्यपचीसी, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण. वैराग्यपच्चीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मान म करिज्यो रे; अंति: मुक्तिपुरी सुखकार रे, गाथा - २५. १०x२५ - २८). १. पे नाम, प्रथम कर्मग्रंथ, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण. ३. पे नाम, महावीरजिनविनती स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण महावीरजिन विनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवनतिलो गाथा १९. २१८३६. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १८०२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. कर्मवाटी, जैदे., (२४.५X११, १२x३२-३५ ). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इहां सुशिष्य पूछे; अंतिः जीव सदा उद्यम करइ. २१८३८. पासाकेवली, अपूर्ण, वि. १८५०, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८ - ३ ( २ से ३, ५) = ५, ले. स्थल. जेतारण, प्रले. मु. हर्षचंद ( गुरु मु. गुलाबचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४१०.५, १३४३६). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंति: गुरु भक्ति करे सही. २९८४५ (+) कर्मग्रंथ १ से ४, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२x११, " आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६२. २. पे नाम. द्वितीय कर्मग्रंथ, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण. गाथा - २५. ४. पे नाम, चतुर्थ कर्मग्रंथ, पृ. १९अ, संपूर्ण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि; तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व तृतीय कर्मग्रंथ, पृ. ८आ - ११अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुखं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं, For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जियमगण अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ५ तक लिखा है. ) २१८६२. क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदे., ( २४x११, ७X३१-३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८५१. नेमिजिन चौवीसचोक, संपूर्ण, वि. १९२४, माघ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. लोटोती, प्रले. मु. शुक्लचंद ( गुजराती लुकागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में "का सुकलचंदजी गुजराती लुंकारी पुस्तकसुं उतारी छै" का उल्लेख मिलता है., जैवे., (२२x१०.५, ९-१०x२७ - २९). नेमराजुल संवाद चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसै नेमकुंवर; अंति: तस सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. २१८५७. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १७९३, पौष शुक्ल १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले. स्थल. मनराबिंदर, जैदे., ( २३X११, १५X४४-५० ) . मानतुंग- मानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंतिः होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल - ४७, गाथा - १०१५. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयनिय; अंतिः कुसलरंगमयं पसिद्धं, अधिकार - ६, गाथा - २६३, ग्रं. ३७७१, (पू.वि. गाथा- ४ तक टबार्थ दिया है.) २१८६३. (+) कान्हडकठियारा रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २० - २ (११, १३) = १८, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२३४११, ७-९x१८-२१ ). कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमं मुदा; अंति: (-), ( पू. वि. ढाल - ९ गाथा - ३ तक है. ) २१८६५. चौदनियम गाथा सह विवरण व सोलतिथि स्तुति संग्रह, पूर्ण, वि. १९३३, भाद्रपद शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २२- २ (३ से ४) = २०, कुल पे. २, जैदे., (२२.५x११.५, ६४३३). ६९ १. पे नाम, चौदनियम गाथा सह विवरण, पृ. १आ-११अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. चौदनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१, संपूर्ण. आवक १४ नियम गाथा- विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावके जावज्जीव पंच; अंतिः तो सामान्य करणा है, अपूर्ण, २. पे नाम. १६ तिथि स्तुतिसंग्रह, पृ. ११अ - २२आ, संपूर्ण. सोल तिथि स्तुतिसंग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि; एक मिध्यात असंयम; अंतिः नयविमल० नाम तो गुणी, स्तुति - १६, गाथा - ६४. २१८६६. युगादिदेव महिम्न स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२४, फाल्गुन कृष्ण, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२२.५X११.५, १०x३०). युगादिदेव महिम्नः स्तोत्र, मु. रत्नशेखर, सं., पद्य, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: रमा ब्रह्मैकतेजोमयी, श्लोक-३८. २१८७१. चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १८८६, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. पंन्या. भक्तिविजय (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४११.५, १२-१४x२९-३७). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पास सामलनु चेई रे. २१८७८. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. सारंगपूर, प्रले. पंन्या. दीपविजय; पठ. मु. मुनिचंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत मे बडी शांति की मात्र १० वी गाथा दी हुई है. लेखन स्थल - सारंगपुर पोसालनी पोल मध्ये., दे., (२२.५x११.५, ११-१२x२५-२९ ). युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २१x११.५, १३ - १४x२५-२९). १. पे. नाम. सूक्तमाला, पृ. १अ - १७आ, संपूर्ण. , भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४, २१८८२. (+) सूक्तमाला व काव्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२४, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची • केशरविमल, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृतवल्लिवृंद अंतिः केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४. २. पे. नाम. काव्य संग्रह, पृ. १७आ, संपूर्ण. मु. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१८८४. आठकर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. वालीपूर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२२.५x११.५, १०x२७-३१). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हवे बीजु दर्शनावरणी; अंतिः प्राणी उद्यम करवो, (पू. वि. प्रतिलेखक ने प्रथम ज्ञानावरणीय कर्म का विचार नहीं लिखा है.) २१८८६. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४७, कार्तिक कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. विद्युतनगर, प्रले. पं. सुमतिविमल पठ. श्राव. रामकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२२.५x१२, १४-१५X३४-३६). " सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल ११, गाथा - १२५. २१८९१. नेमिजिन विवाहलो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, दे., (२२.५x१२.५, ९-१२४३८-४२). नेमिजिन विवाहलो, श्राव. केवलदास अमीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९९९, आदि: सती सरस्वतीने शीर; अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ढाल २४ गाथा ९ तक है.) २१८९५. कर्मग्रंथ १ से २, संपूर्ण, वि. १९४१, चैत्र शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, ले. स्थल. फलोदी, प्रले. य. दीपसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २१.५४१२, ९४२५-३१). १. पे. नाम. प्रथम कर्मग्रंथ, पृ. १अ - ६अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय; अंतिः लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६०. २. पे. नाम. द्वितीय कर्मग्रंथ, पृ. ६अ - ९आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. २१८९७. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा - २९ तक है., जैदे., ( २४x१२, १५ - १८X३०-३४ ) . नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: यथास्थित साचु जे; अंति: (-). २१९००. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २३X१२, १०x२६-३० ). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्मरण, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि कल्याणमंदिरमुदार; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे. नाम श्लोक संग्रह, पृ. ६अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २१९०१. अंजणासती रो रास, संपूर्ण, वि. १९७५, पौष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. नागोर, प्र. वि. प्रतिलेखक ने कर्ता का नाम आदि रचना प्रशस्ति वाला भाग नहीं लिखा है., दे., ( २४४१२, १४X३७ - ४१ ). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: तोडे गया मुगत मझारकै, खंड - ३ ढाल २२. २१९०२. (+) दशवैकालीकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९८२ आश्विन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२४४१२, १६३५-३७). " दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन- १०. For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २१९०५. विचारपंचाशिका सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ.८,ले.स्थल. गोत्रकाग्राम, प्रले. पं. शुभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, ३-५४३१-३८). विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा; अंति: विमलसूरिवराणं विणएण, गाथा-५१. विचारपंचाशिका-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: वीर पय क० महावीरदेव; अंति: उद्धरवा भव्यजीवने. २१९०६. (+) द्वादशव्रत पूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १८८७, माघ कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. श्री शांतिनाथ प्रसादात्., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३.५४१२.५, १२-१३४३५-३८). १२ व्रत पूजाविधि, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंति: (१)जग जस पडह वजायो रे, (२)श्रीफल तेरतेर मुकीजे. २१९०७. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, प्र.वि. अंतिम पत्र का निचला भाग खंडित होने से अंतिमवाक्य अनुपलब्ध है., जैदे., (२३.५४१२.५, १७४४५-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (अपठनीय), अध्ययन-३६. २१९०८. गुणसुंदरशीलसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. रोहीडा, प्रले. मु. खीमाविजय (गुरु पं. मानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्.,प्र.ले.श्लो. (२३) जब लग मेरु अडग है, जैदे., (२४४१२.५, १६-१७४३८-४०). गुणसुंदरशीलसुंदरी रास, पंन्या. राजविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: त्रिहुं जगनो शंकर; अंति: जिम गगने ध्रुतारी जी, ढाल-३८, गाथा-८५६. २१९०९. वीसस्थानकनी पूज्या, संपूर्ण, वि. १९२१, आषाढ़ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. उगरचंद हरचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२.५, १०४३६-३९). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: पभणै सयल संघ जयकरू, ढाल-२०. २१९१०. मोक्षमार्ग की चर्चा व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्रले. पं. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२, २८-३०४४८-५०). १. पे. नाम. मोक्षमार्ग की चर्चा, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. __ मोक्षमार्ग की चर्चा- शाह सोमजी के साथ, मा.गु., गद्य, आदि: केइक भला शिष्य; अंति: तेमाहै फेर कोई नही. २. पे. नाम. रेखता, पृ. ५आ, संपूर्ण. जिनागमभक्ति पद, पुहिं., पद्य, आदि: ट्रक दिल ही चसम खोल; अंति: कहै पाय सिद्ध भोतगा, गाथा-६. ३. पे. नाम. पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, रामकिसन, पहिं., पद्य, आदि: मैहबूब तेरा तुझमै; अंति: भली वात जो यहीमै, गाथा-५. २१९११. (+) दंडकविचारगर्भित अर्हद्विज्ञप्तिषत्रिंशिका सह टबार्थ व जीवभेद, संपूर्ण, वि. १८४५, फाल्गुन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, पठ. श्रावि. खूबो बीबीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, ३४३०-३२). १. पे. नाम. दंडकविचारविज्ञप्ति सह टबार्थ, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४६. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी चौवीस; अंति: अपनै आत्महित काजई. २. पे. नाम. जीव के भेद, पृ. ११आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २१९१४. जीवभेद गतिआगति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२३४१२.५, १०x२८). जीवगतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नरके २५ जीवभेद; अंति: वासुदेव होय. २१९१८. (+) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. योधनगर, प्रले. पं. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, ५-९x४७-४९). For Private And Personal use only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिब; अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल-१७, गाथा-३५४. सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य पार्श्वदेव, (२)श्रीसीमंधरस्वामी; अंति: नावा बेडी समान छे. २१९१९. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२२४१२.५, १२-१४४२५-३२). स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंदा ऋषभ; अंति: मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन-२४. २१९२४. भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १८५०, माघ कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. भागनाडी, प्रले. श्रीकृष्ण गोपीनाथ व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४१२.५, १०४२५-२६). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७८. २१९२५. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४४, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १०,ले.स्थल. मीसाणा, प्रले. मु. गुलालविजय (गुरु ग. खिमाविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४१२.५, ५४३०-३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मंगलिक भणी; अंति: मोक्षना सुख पामइ. २१९२९. सामुद्रिकशास्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२०४१२.५, १०x२६-२९). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (पू.वि. स्त्री लक्षण श्लोक-६८ तक है.) २१९३३. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९०७, आश्विन शुक्ल, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६३-९(१ से ९)=५४, ले.स्थल. जोधाणपुर, प्रले. पं. गौतमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९.५४१२.५, २८x१४-१६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल ४१, (पू.वि. प्रथम खंड ढाल-९प्रारंभ तक नहीं है.) २१९३४. विमलमेंता श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा अंतिम गाथा नहीं लिखी गयी है., जैदे., (२१.५४१२, १३४३०-३३). विमलमंत्री श्लोक, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरूं बे करजोड; अंति: साह हमारो सहु सवायो, गाथा-१०९. २१९३६. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय; पठ. सा. पानाबाई (गुरु सा. हेजीबाई), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१२, १०-१२४२७). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसती रे वरसती; अंति: विजय भणइ ___ आणंदकारी, ढाल-९, गाथा-७९. २१९३७. पदमणी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२२४११, १२४३०-३५). गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: श्रीआदिसर प्रथम जिण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीय खंड की प्रथम ढाल अपूर्ण तक लिखा है.) २१९३९. साधुवंदेतु, संपूर्ण, वि. १९८३, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मीठालाल; पठ. मु. आदिकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. माणीभद्रजी प्रसादात्. सरस्वतीजी प्रसादात्. आदीनाथजी प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (७७४) यदस्यं पुस्तकं दृष्टं, दे., (२१.५४११.५, ९x१८-२०). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. २१९४०. दंडकविचार स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. राजगढ, प्रले. मु. अक्षयहंस; पठ. मु. नंदलाल (गुरु मु. अक्षयहस); राज्यकाल रा. वखतावरसींघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४११.५, ४४२५-२९). For Private And Personal use only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत देवनइ नमस्कार; अंति: आपणने हितकारी हुइ. २१९४१. (+) एकविंशतिस्थान प्रकरण व चउवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, पठ. श्रावि. रत्नाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४११.५, ९४३०-३३). १. पे. नाम. एकविंशतिस्थान प्रकरण, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: अवसेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. २. पे. नाम. चउवीसजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ऋषभजिनमजितनाथं; अंति: शिवपदमचिरादसौ लभते, श्लोक-४. २१९४५. अवंतीसूकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. ग. अमररत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१३, १४४२५). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरख सुख पावइ रे, ढाल-१३, गाथा-१०४. २१९४७. (+) आदिदेवादिजिन स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१३(१ से १३)=७, प्रले. ग. कल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., जैदे., गुटका, (२०.५४१३, १८x२५-३६). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीसी-टीका, मु. भोजसागर, सं., गद्य, वि. १७९५, आदि: नमस्कृत्य जिनं सार्व; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., रचनाप्रशस्ति वाली गाथाएँ नहीं हैं.) २१९४९. श्रीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७५, आषाढ़ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१x१२, १४-१५४२७-३०). सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: अनंत चोवीसी जिन नमुं; अंति: भविक जन मंगल करो, ढाल-७. २१९५३. (-) प्रज्ञाप्रकाशषत्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०१, माघ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. द्वारुका, प्रले. मु. जसवंत ऋषि; पठ. मकरंदगिरि गुसाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२०.५४१२, ५४२४). प्रज्ञाप्रकाशषत्रिंशिका, आ. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: मयकां प्रणीता, श्लोक-३७. प्रज्ञाप्रकाशपविशिका-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रज्ञा क० बुद्धि; अति: कीधी रूपसी नामकेन. २१९५४. माणिभद्र छंद, श्लोक संग्रह, औषध संग्रह व वशीकरण मंत्र, संपूर्ण, वि. १८७३, आषाढ़ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, जैदे., (२१.५४१२.५, १२-१३४३०). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. २.पे. नाम. माणीभद्रवीर छंद, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण.. माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती स्वामीने पाय; अंति: आपो मुज सुख संपदा, गाथा-४०. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २अ+५आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. वशीकरण मंत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण.. सं., गद्य, आदि: ऊँ ह्रीं क्लीं अमुका; अंति: वसी कुरु कुरु स्वाहा. २१९६१. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, ४५ आगमनाम व २० बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, कुल पे. ३, दे., गुटका, (१८x१३.५, १०४२७). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. २अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private And Personal use only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवक प्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति देहि मे देवि सारं. २. पे. नाम. ४५ आगम नाम, पृ. ९अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः आचारांग‍ सुयगडांगर अंतिः छेदसूत्र आवश्यकसूत्र. ३. पे. नाम. वीसबोल संग्रह, पृ. १०अ ११अ, संपूर्ण. २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले श्री अरिह; अंतिः तीर्थंकरगोत्र बांधे. २१९६२. (#) वंकचूल रास, संपूर्ण, वि. १७८०, वैशाख शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. बोसद्या, प्रले. पं. केसरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९x१२, १२x२१-२५). वंकचूल रास, मा.गु., पद्य, आदिः आदि जिनवर आदि जिनवर; अंतिः सयल संघनी पूरै आस, गाथा - १०५. २१९६४. वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १५८४, वैशाख शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, राज्ये आ. सौभाग्यहर्षसूरि (गुरु आ. हेमविमलसूरि, तपागच्छ); प्रले. मु. विनयप्रमोद शिष्य (गुरु ग. विनयप्रमोद, तपगच्छ); पठ. सा. आसा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले. लो. (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैवे. (१८.५x११.५, १३४२३-२६). " वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं; अंतिः फलमीप्सितम्, प्रकाश - २०. २१९६६. खंधककुमार चौढालियो, संपूर्ण, वि. १८८१, आश्विन शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. नागोर, प्र. मु. उदयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२०x११, ८-१०x१६-२० ). , खंधकमुनि चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: सावत्थी नगरी सोहामणी; अंति: हो करज्यो सहू कोय, ढाल -४. २१९६९ श्राद्ध पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (१९x११, १५-१८x२९-३० ). श्रावकपाक्षिक अतिचार- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम् २१९७२. ज्योतिषसार, पूर्ण, वि. १७८६, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २३ - १ (२१) २२, जैदे., (२०.५x११, ११-१२x२५-३० ). 9 ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्री अर्हताजिनं नत्वा; अंति: कुसल चउत्थं ठामि श्लोक-३४२. २१९७८. पच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (१९.५x१०, ९-१०x२०-२३). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ.. २१९८१ () जीवविचार व दिगंबरीयग्रंथ श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. मु.कीका ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२१x१०, ११४३१-३७). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ - ९अ, संपूर्ण. " आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१, ग्रं. २००. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-४. " २१९८५. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२१x१०, ६१७-२० ). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्म, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति (-), (पू.वि. गाथा- ६३ तक है.) २१९९१. रत्नपाल रास, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रतिलेखन पुष्पिका का भाग नहीं है., जैदे., ( २२x१०.५, १०-११x२४-३० ). रत्नपाल - रत्नावती रास - दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमु; अंतिः वत्यों जयजयकार रे, खंड ३ ढाल३४, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only २१९९८. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२०x१०.५, ११४२४-२५). पगाम सज्झायसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं सूत्र- २१. २२००२. (+) स्नात्र पूजा विधि, अष्टप्रकारी पूजा व समुद्धातमरण विचार, अपूर्ण, वि. १८८२, वैशाख शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १६-२ (३,६)-१४, कुल पे. ३, प्रले. पं. पुण्यसुंदर (उएशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये., (२१.५x१०.५, ९४२४- २७). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधि, पृ. १आ-११आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ७५ स्नात्रपूजा विधिसहित, पंन्या. रूपविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकारसार; अंति: संपदा निज पामे तेह. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १२अ-१६अ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुरसरि सिंधूपउमद्रह; अंति: यांति मोक्षं हि धीरा, पूजा-८. ३. पे. नाम. समुद्धातमरण विचार, पृ. १६अ, संपूर्ण. समुद्धात विचार, मा.गु., गद्य, आदि: समुद्धात करी मरै ते; अंति: जिम जीव जाय उपजै. २२००४. आराधना संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२३, फाल्गुन कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. मांघरोल बींदर, प्रले. मु. हीरजी (गुरु मु. हेमचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. चातुर्मास के अन्तराल में लिखी गयी प्रत., दे., (२१x१०.५, १२-१३४२१-२३). १. पे. नाम. आराधना, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. पर्यंत आराधना विधिसहित, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुमाणं; अंति: (१)अप्पसक्खियं वोसिरे, (२)खामणा कराववा. २. पे. नाम. जीवरास, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: मुज मिच्छामि दुक्कडं, ढाल-३, गाथा-३६. २२००६. एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२०४१०, १०४२३-२४). __ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लहे मंगल अतिघणो, ढाल-३. २२००८. साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८६५, फाल्गुन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. मेडता, प्रले. पं. विनयविजय; पठ. मु. भेरुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०, ११४२३-२५). साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. २२००९. कमलावती व चंदनबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. सिंघाणा, जैदे., (२०४१०.५, १६-१७४२३-३३). १. पे. नाम. कमलावती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहिं., पद्य, आदि: महलामे बेठीजी राणी; अंति: संजम लेइ होवै सासता, गाथा-२६. २. पे. नाम. चंदनबाला चौपाई, पृ. २अ-९अ, संपूर्ण. मु. ब्रह्म, पुहि., पद्य, आदि: मोह पिसाच वसकरणकुं; अंति: चहुंगत तणां फंदतो, गाथा-१६०. २२०१०. शत्रुजय रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१४१०, ११४२९-३०). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१५ तक है.) २२०१४. वसुधारा, संपूर्ण, वि. १९३६, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. खेमतग्राम, प्रले. पं. जयचंद्र; पठ. मु. खुशालचंद्र (गुरु पं. जयचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x१०.५, ९x१९-२३). आर्यवसुधारा, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. २२०१९. दानशीलतपभावना चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पालि, प्रले. मु. धनरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिजिन प्रसादात्., ., (२०x११, १२४३४-३५). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४. For Private And Personal use only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२०२२. सिंहलकुमार चौपाई, शीयल सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९२४, चैत्र शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ३, ले. स्थल. सिवगड, प्रले. पंन्या. ज्ञानवल्लभ; पठ. श्राव. झवेरचंद सुराणा, प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे. (२०.५x११, १२-१३x२८-३२). १. पे. नाम. सिंहलकुंवर की चौपाई, पृ. १अ - १२अ, संपूर्ण. सिंहलकुमार रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: समरुं सरसती सामिनी; अंति: कहइ० श्रावक दीजीइ रे, ढाल - ११. २. पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. १२-१२आ, संपूर्ण. शीलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सोल वरसरा जंबूकुमरजी; अंति: लाइ इज्जत पारजी, गाथा - ९. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: भमरा भुंजग नर डसकर; अंति: जाणके एह वडे की रीत, गाथा - ३. २२०२३. समयसार नाटक भाषा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैये., (२०.५x११, १२-१४X३२-३५). समयसार नाटक- पद्यानुवाद, आव, बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६३ तक है.) २२०२४. (+) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२०.५x११, ९-१०x२३-२७), " साधुपाक्षिक अतिचार .मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. २२०२९. (+) नव्वाणुप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ - १ (१) = ७, प्रले. पंन्या. गोपालार्णव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. वे. (२१x११ १२ १३x२७-३०). " " ९९ प्रकारी पूजा - शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: (-); अंति: आत ठरायो रे, डाल- ११, (पू. वि. ढाल १ गाथा ३ तक नहीं हैं.) - २२०३३. मौनएकादशी गणणुं, संपूर्ण, वि. १९६४, पौष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. फलोधी, प्रले. मीठीयो, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंक्त्यक्षर अनियमित है. दे. (२१.५x११.५). "" मौनएकादशी गणना, सं., गद्य, आदिः श्रीमहाजससर्वज्ञाय; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः . २२०३४. अमरकुमार सज्झाय व आषाढभूति चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. पं. रूगनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१X११.५, १३X३१ - ३६). १. पे. नाम. अमरकुमार सज्झाच, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: राजगरी नगरी भली तिहा; अंति: मनवंछित सुख पाया रे, गाथा - ५०. २. पे. नाम. आषाढाभूति चौपाई, पृ. ३आ - ९अ, संपूर्ण. मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: सासणनायक सुखकरू वांद; अंतिः मानसागर शुभ वाण रे, डाल- ७. २२०३७. (+) होलिका सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५+ १ (५) =६, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२१x११, १२x२०-२२ ). " १. पे. नाम. होलिकापर्व ढाल, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पुरुष राजा; अंति: विनयचंदजी कहे करजोडी, ढाल-४. २. पे. नाम. होली पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मान मनी का मटका सीर; अंतिः होजी वरती जय जयकार, गाथा - ३. २२०४२. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल पालिताणा, वे. (२०.५x११, १५x२६-३०). पाशाकेवली-भाषा *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: करी रूडु थास्यै. २२०४४. गजसुकमाल चौपाई, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७ - १ (१) = १६, जैदे., (१९.५x११.५, १८x२८). गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६९९, आदि: (-); अंतिः दुक्कडं दीजे, डाल- ३०. For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २२०४५. वीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५०, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. फलोघी, प्र. मु. करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २१.५x११, १२x२३-२४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन- पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण बंदु अंति: रामविजय० अधिक जगीसए, ढाल - ३. २२०४६. (+) गजसिंह रास, संपूर्ण, वि. १८२८, चैत्र शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले. स्थल. रामसिणनगर, प्र. वि. टिप्पण विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, जैवे. (२१x११.५, १८-२२४४२-४५ ). गजसिंह रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२८, आदि: प्रणमुं परमेश्वर; अंतिः कपूरविजय जयमालाजी, ढाल - २२. २२०५१. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र व श्रावक इकवीसगुण सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले. श्लो. (७२४) जलाद् रक्षे थलाद् रक्षे, दे., (१९.५x१२, १०x१८-२० ). १. पे नाम, कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १आ-८अ संपूर्ण. , आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे नाम. आवक के इकवीसगुणकथन सवैया, पृ. ८अ, संपूर्ण, श्रावक २१ गुण सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: लज्जावंत दयावंत; अंति: इकवीस गुणधारी है, पद- १. २२०५६. (+) सिंदूर प्रकरण रहस्य सह टबार्थ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२३१२.५, ६x२९-३४). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर के चयनित श्लोकसंग्रह सह टबार्थ, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर- चयनित श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: स जानाति जाग्रतः, श्लोक- ५६. सिंदूरप्रकर- चयनित लोकसंग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) क्रमयोर्नख० शोभे छे, (२) तपरुप करि जेहथी; अंतिः जाणें लोका आगलि, ७७ २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. १२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. २२०५७. स्नात्रपूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-२ (१ से २) ७, जैवे. (२३.५x१२.५, १०x२०-२१). , " स्नात्रपूजा, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (); अंतिः जयो जयो पास जयवंत जी. २२०५८. (+) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५x१२.५, १३-१५X३०-३२). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: पुण्यप्रकाश ए, ढाल - ७. - २२०५९. पाक्षिक अतिचार, पाक्षिकसूत्र व क्षामणासूत्र, संपूर्ण, वि. १९७२, वैशाख कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ३, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. कीसन लहिया, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २४x१२.५, १५x२९-३२ ). १. पे नाम, पाक्षिक अतिचार, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे नाम, पक्खिसुत्त, पृ. ३आ-१४, संपूर्ण, For Private And Personal Use Only पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ि ३. पे. नाम. क्षामणासूत्र, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पिय; अंतिः नित्यारग पारगा होह, आलाप ४. २२०६० (+) जीवविचार प्रकर्ण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९२४, वैशाख कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. कृष्णचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र. ले. श्लो. (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२३.५X१२.५, ७४२४- २८ ). Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनरइ विषइ दीवा; अंति: सूत्ररूप समुद्रासु. २२०६१. सुदर्शनशेठरा सवईया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२३४१२, १५-१६४३१-३५). सुदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिन महावीर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद-५२ अपूर्ण तक लिखा है.) २२०६२. समयसार नाटक भाषाबद्ध सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१(१८)=२०, जैदे., (२१.५४१२, ५४४७-५६). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद-७९ तक लिखा है.) समयसार नाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, ऋ. रूपचंद, पुहिं., गद्य, आदि: (१)श्रीजिनवचन समुद्रको, (२)श्रीपार्श्वनाथस्वामी; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद-५५ तक ही टबार्थ लिखा है.) २२०६३. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३९, भाद्रपद शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. जोधपूर, प्रले. शिवबगस जोसी; पठ. श्राव. पुनमचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१२, ९-१०x२३-२६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २२०६५. स्थुलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२२.५४१२.५, १४-१५४३१-३५). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ सघला फल्यारे, ढाल-९. २२०६६. छत्तीसां को थोकडो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२३४१२, १५४३२-४२). ३६ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: एक प्रकारनो आतम दोय; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-३६ पूर्णप्रायः तक लिखा है.) २२०६७. (+) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१२, १०४३०). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमि दसणमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २२०६८. पडिकमणा सूत्र व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८९७, कार्तिक कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १३४३७-३९). १. पे. नाम. पडिकमणा सूत्र, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: सा अम्ह सया पसत्था. २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: सन्नो देवीदेयादंबा, श्लोक-१. २२०७१. चोमासाना चोवीसजोडाना देवनी विधि, संपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. राधनपुर, पठ. ग. राजविजय (गुरु पं. चतुरविजय); प्रले. पं. गुमानविजय (गुरु पं. रूपविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२३.५४१२, १४-१५४२६-२९). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई र. २२०७४. (+) गुणवंत गजसुकमालनो चरित्र, संपूर्ण, वि. १९०१, आश्विन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. गोपाचल तट, राज्यकाल रा. सिंधीया महाराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१२, १५-१६४५२-६०). गजसुकुमाल रास, मा.गु., पद्य, आदि: तिन काले तिनही समे०; अंति: कहै भव्य सांभलो, ढाल-१८. २२०७७. साधुप्रतिक्रमणं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२४४११.५, १८४५०-५३). साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: तिखूत्तो आयाहिणं; अंति: वोसिरामि. For Private And Personal use only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २२०८०. आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, दे., (२१४११.५, ९४२८-३१). आलोयणा विचार, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध श्रीपरमातमा; अंति: किया उपजै आनंद है. २२०९४. बुधव गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, पठ. मु. हुकमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १०-१२४२५-३१). १. पे. नाम. बुध रासो, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. बुध रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देव अंबाई; अंति: सविटले कलेस तो, गाथा-६१. २. पे. नाम. गौत्मसामी रास, पृ. ५आ-१०अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-६०. २२०९६. अयवंतिसुकमाल, अरहना व जंबुस्वामी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४११, १४-१७४३५-४०). १. पे. नाम. अयवंतिसुकमाल चरित्र, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहर्ष सुखपावी रे, ढाल-१३. २. पे. नाम. अरहना सिझ्याय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. दयातिलक, मा.गु., पद्य, आदि: नगर तारापुर वहिरण; अंति: जग थाए जस वास हो, गाथा-१५. ३. पे. नाम. जंबुस्वामकस्य चोढालीयो, पृ. ६आ-११आ, संपूर्ण. जंबुस्वामी चौढालीयो, मु. दुर्गदास, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: पुरसादाणी परमप्रभु; अंति: आणंद होय अपारी जी, ढाल-५. २२०९७. पद्मावती दिव्यस्तोत्र मंत्रसंयुक्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२३.५४११, ९४३०-३३). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-२७. २२१०४. कानडकठीयारा रास व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८००, माघ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११,११४२९-३२). १. पे. नाम. काह्नडकठीयारा सज्झाय, पृ. १अ-११अ, संपूर्ण. कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा; अंति: दिन दिन वधते रंग, ढाल-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखो तुटानै सांधो; अंति: जालौरगढ मझार रे, गाथा-८. २२१०६. नवतत्त्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८०२, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १८-६(१ से ६)=१२, पू.वि. गाथा-१५ तक नही है., ले.स्थल. खजवाणा, पठ. मु. मनोहर (ओयसगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १७-१८४४१-५०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सिद्धा तेणेग सिद्धाय, गाथा-५७. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध *, रा., गद्य, आदिः (-); अंति: धर्मरागै सरीखो छे. २२१०८. आणंद संधि, संपूर्ण, वि. १७३७, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. पं. क्षमासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १३४३३-३६). आनंदश्रावक संधि, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणे मुनि श्रीसार, ढाल-१५. २२१०९. सुभद्रा को पंचढालियो, सम्यक्त्व श्लोक व पायायंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, ले.स्थल. लसकर, प्र.वि. यह प्रति रचना के समीपवर्ति काल में लिखी होने की संभावना है., दे., (२२४१०.५, १२-१३४३३-३५). For Private And Personal use only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. सुभद्रा को पंचढालीयो, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. सुभद्रासती पंचढालीयो, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: सिवदायक लायक सदा; अंति: अखंड चंद कला जिसी, ढाल-५. २. पे. नाम. सम्यक्त्व श्लोक, पृ. ६आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३. पे. नाम. पायायंत्र, पृ. ६आ, संपूर्ण. अज्ञा., को., आदि: (-); अंति: (-). २२११०. नंदीषेण चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५९, कार्तिक शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. जयमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १६-१८४४१-४४). नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सिद्धि नित गेहइ रे, ढाल-१६, ग्रं. ४२१. २२११३. भक्तामर स्तोत्र सह ऋद्धि व मंत्रविधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७-६(१ से २,५,७ से ९)=३१, प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., श्लोक-४७ तक है., जैदे., (२२४१०.५, ७४१२-१८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). भक्तामर स्तोत्र-ऋद्धि, सं., गद्य, आदिः (-); अति: (-). भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २२११४. धन्यकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदे., (२३.५४११, ५४२६-३०). धन्य चरित्र, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: स श्रेयस्त्रिजगद्; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्ग-३ गाथा-२३ तक लिखा है.) २२११७. पाक्षिकसूत्र व खामणा, पूर्ण, वि. १७९१, चैत्र शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(३)=९, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. ग. दयाकुशल; पठ. मु. ज्ञानकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १३-१४४३६). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. २२११९. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. पंन्या. ललितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, ४४२५-३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४५. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: १५ भेद सिद्धना जाणवा. २२१२४. गौतमस्वामी रास व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०, ११-१३४२३-३०). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्रसूरि भणे, गाथा-६६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलूणो हो मिलीयो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) २२१२६. षडावश्यकसूत्र, पार्श्वनाथ स्तवन व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८७३, फाल्गुन कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, पठ. श्राव. डुंगरमलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १२-१३४३०-३६). १.पे. नाम. षडावश्यकसूत्र, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: सन्नो देवी देयादंबा. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथ; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: सन्नो देवीदेयादंबा, श्लोक-१. २२१२७. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. देवकपत्तन, प्रले. ग. साधुविजय; पठ. मु. पुन्यसागर; सा. उजमश्रीजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, ५४३०-३६). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. पगाम सज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांछउ निवर्तवा कहिता; अंति: वांदु मंगलीक भणी. २२१२८. (+) कृष्णरूक्मणी वेली सह बालावबोध व सामान्य श्लोक, पूर्ण, वि. १७३२, आश्विन कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७३-१(३)=७२, कुल पे. २, प्रले. मु. नेमरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तक दृष्ट, जैदे., (२४.५४११, ११४२५-२९). १.पे. नाम. कृष्णरुक्मणी वेलि, पृ. १अ-७३अ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. रा. पृथ्वीराज राठोड, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: परमेसर प्रणमि; अंति: गोविंदराणी तणा गुण, गाथा-३०२, (वि. प्रतिलेखक ने अंतिम रचना प्रशस्ति श्लोक नहीं लिखा है.) कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६३८, आदि: प्रथम ही परमेश्वर कु; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२८९ तक ही टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. सामान्य श्लोक, पृ. ७३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. २२१३६. (+) चंदनमलयगिरी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०, ११४४३-४५). चंदनमलयागिरिरास, मु. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: फलसुवंछित भोग, अध्याय-५, गाथा-१८६. २२१३७. श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२३४१०, ११-१२x२८-३३). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणइ; अंति: पक्षदिवस माहि. २२१३८. सालभद्र चोपई, संपूर्ण, वि. १७९२, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. आगरा, प्रले. मु. श्रीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२२.५४१०, ११४२६-३०). शालिभद्रमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, ढाल-२९. २२१४६. श्लोक प्रस्तावना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६-१०(२० से २९)+१(३१)=२७, दे., (२२.५४१०.५, ८-१०४२३-३१). श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: ऊँकार बिंदु संयुक्तं; अंति: निस्पृहस्य जगत्तृणं. २२१४८. हिंगुल प्रकरण व श्लोक संग्रह, पूर्ण, वि. १८११, फाल्गुन शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, कुल पे. २, प्रले. मु. उत्तमचंद (गुरु मु. आसानंदजी, जिनमाणिक्यसूरिशाखा(गच्छ)), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२२.५४१०.५, ९-११४२८-३१). १.पे. नाम. हिंगुल प्रकरण, पृ. २अ-१४अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. उपा. विनयसागर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: नतांतं. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १४अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २२१५२. आर्द्रकुमार व कलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-३(१ से ३)=५, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. सुजाणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, १७-१८४५०-६२). १. पे. नाम. आर्द्रकुमार चौपाई, पृ. ४अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: रे नामे नवनिध थाय रे, ढाल-३, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-७ तक नहीं हैं.) २. पे. नाम. कलावती चौपाई, पृ. ५अ-८अ, संपूर्ण. कलावतीसती चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३५, आदि: कविजननी करजोडिनइ; अंति: नवमी ढाल __ भणीजै, ढाल-९. २२१५९. आत्मनिंदा, संपूर्ण, वि. १८८१, आषाढ़ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. ऋषभचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०, ९-१०४२७-३३). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, पुहि., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: सो नर सुगुण प्रवीन. २२१६०. व्याख्यान संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२४१०.५, १२-१६x२८-३०). व्याख्यान संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: देवपूजा गुरूपास्ति; अंति: (-). २२१६१. (+) शियलवेली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. सोझत, प्रले. मु. जिनविजय; पठ. श्रावि. अखुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेव प्रसादात्., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२२.५४१०.५, १२-१३४२६-३२). स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजी; अंति: सेला ___ वरस्यै रे, ढाल-१७. २२१६९. शीलोपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६०, भाद्रपद कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. पतननगर, प्रले. मु. दानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, ५४३०-३३). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभआरि नेमिकुमार; अंति: आराहिय लहह बोहिसुह, कथा-४३, गाथा-११५. शीलोपदेशमाला-टबार्थ+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: बालपणा लगइ ब्रह्मचार; अंति: भवांतरि बोधिफल. २२१७०. हेमी नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२१४१०, १३४३७). हैमीनाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कांड-१ गाथा-१३१ तक लिखा है.) २२१७१. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, औषध संग्रह व कामेश्वरी मंत्र, संपूर्ण, वि. १८७०, चैत्र कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २८, कुल पे. ३, ले.स्थल. अजयदुर्ग, प्रले. श्राव. चतुरदास; पठ. श्राव. पन्नालाल पंडित, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४१२, ६४३०). १. पे. नाम. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, पृ. १आ-२८अ, संपूर्ण. वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: (१)विनिर्मिता स्वयम्, (२)परोपकाराय विहितोयम्, विलास-८. वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशारदा प्रतै हीयै; अंति: मुरादसाहई आप कीधी. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ+२८अ+२८आ, संपूर्ण. __ औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. कामेश्वरी मंत्र, पृ. २८आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ऊँ कामिनी कामेश्वरी; अंति: ह्रीं कामेश्वरी नमः. २२१७२. जंभवती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. आणंदपूर, अन्य. सा. मगनी, दे., (२४४१०.५, १२-१३४२७-३२). For Private And Personal use only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ जांभवती चउपई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली ढाल सोहामणी; अंति: दीधो अविचल पाट तो. २२१७५. चतुःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७८५, चैत्र कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. गोप्रढगढ, प्रले. मु. प्रवीणसागर (गुरु ग. लाभसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कुल ग्रं. ७००, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४४६-४८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६४. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद; अंति: भवतीति गाथार्थः. २२१७६. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८८७, माघ शुक्ल, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. श्रीकृष्ण मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, ११४३३-३६). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, गाथा-७००. २२१७७. अजितसेनकनकावती रास, संपूर्ण, वि. १७६९, भाद्रपद शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदे., (२४.५४११, १४४३५-३९). अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति: थास्यै लाभ सवाई हो, ढाल-४३, गाथा-७५३, ग्रं. १०१४. २२१८१. संबप्रद्युम्न चौपाई, संपूर्ण, वि. १६८०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. खांडप, प्रले. मु. दामा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १५-१६४३७-४३). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: पभणइ संघ सुजस जगीस ए, खंड-२ ढाल २१. २२१८२. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-६(१ से ६)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२२४११, १४-१६४३२-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-). २२१८३. कामविनोद चौपाई, संपूर्ण, वि. १७४२, माघ कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. जयतारणनगर, प्रले. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०.५, १२-१४४२८-३२). कामविनोद चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: चोपई श्रावण मासइ रे. २२१८५. (+) लिंगानुशासन, अपूर्ण, वि. १६९६, फाल्गुन कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(३)=८, प्रले. वा. हर्षराज (गुरु वा. धनराज, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १२४३४-४५). हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: पुल्लिंग कटणथपभमयर; अंति: शासनानि लिंगानाम्, अध्याय-८. २२१९१. श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९०५, पौष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. पाली, जैदे., (२३.५४११.५, ८-११४२२-२४). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कड. २२१९२. चंदकुमर वार्ता, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२२.५४११, १५-१७४४४-४८). चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरसति माय गणपति; अंति: या गुण को गुणसार, गाथा-१०७. २२२०२. (+) सूक्तमाला, सुभाषित, श्रावक के १४ भेद व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ४, ले.स्थल. धूणी, प्र.वि. प्र.पु.-अचलगच्छे रत्नशाखायां., संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १४४३२-३४). १. पे. नाम. सुक्तमालायांबालावबोधकाव्य सुगमार्थ, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण. सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४. For Private And Personal use only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. सुभाषित, पृ. १२आ, संपूर्ण. ___ दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३. पे. नाम. श्रावक के १४ प्रकार, पृ. १२आ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: मृत चालनी महिष हंस; अंति: भवंति ज्ञेयाः, ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १२आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. २२२०३. सुबाहुकुमर की चउपइ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८३७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. मावदेवली, प्रले. पं. शिवदत्तसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १२-१६४३२). सुबाहकुमार चौपाई, आ. विजयरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर आदि दे चउवीसे; अंति: ग्रंथ संपूर्ण, ___ढाल-१७, गाथा-१९०. २२२१०. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८४३, माघ कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८१, ले.स्थल. हरसोला, प्रले. पं. खुशालविजय (गुरु मु. भक्तिविजय); पठ. मु. मुक्तिविजय (गुरु पं. खुशालविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११.५, १४-१६४३८-४६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. ३०००. २२२१२. स्नात्रपंचाशिका सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पृ.वि. २२ वी कथा अधूरी तक है., दे., (२४४११,११४३६-४१). स्नात्रपंचाशिका, ग. शुभशील, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनान्; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. स्नात्रपंचाशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य क० प्रणाम; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. स्नात्रपंचाशिका-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २२२१५. श्रावकना अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पठ. श्रावि. सोनकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १४४३२). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणइ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २२२१८. (+) सूक्तावली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४१, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. जावालनगर, प्रले. मु. मानविजय (गुरु मु. कपूरविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११.५, १५४३८-४०). जैनदुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २२२१९. पंचमीनो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२२४११, १०४३०). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पासजिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे थुण्यो, ढाल-६. २२२२१. बोल विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११.५, १३४३८-३९). बोल संग्रह-सिद्धांतसारोद्धारगत, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे कांईक जंबूदीव; अंति: (-). २२२२४. (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-३(१ से ३)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १३-१४४२७-३३). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पगामसज्झाय, अतिचार व पाक्षिकसूत्र (अपूर्ण) मात्र है.) २२२३७. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९१६, पौष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ४८-१८(१ से ४,१५,३३ से ४३,४६ से ४७)=३०, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. २१२५, जैदे., (२४४१२, १५-१७X४२-४८). १.पे. नाम. ३६ बोल का थोकडा, पृ. ५अ-२४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. For Private And Personal use only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ , ३६ बोल धोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति रयतनी रिक्खा करवी (वि. भाषा राजस्थानी ) २. पे. नाम. छवीसद्वार, पृ. २४अ - ३१आ, संपूर्ण. २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि शरीर अवगाहना संघयण; अंति: वंदना हुइज्यो (वि. भाषाराजस्थानी ) ३. पे, नाम, नवतत्व बालावबोध विवरण, पृ. ३१आ-४८आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व विचार, रा., गद्य, आदि: जीवाजीवापुण्णं; अंतिः माहरी वंदना हुयजो. " २२२४०. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३९, भाद्रपद शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, अन्य. शिवदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. इस प्रति का संशोधन शिवदत्त ने किया है., संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., (२३.५४१२, ९४२२-२५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २२२४४. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४४१२.५, ९४२७). १. पे. नाम. सामाइक सिज्झाय, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी गोतम गणधर; अंति: लहीयै अधिक जगीस, गाथा - १३. २. पे नाम. चवदेनियम सिज्झाय, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. १४ नियम सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: जस महिमा जगमांहि, गाथा-२०. ३. पे. नाम. दशपच्चकखाण री सिज्झाय, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. ८५ १० पच्चक्खाण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविह प्रह ऊठी ; अंति: तुम्है नित कल्याण, गाथा - १३. २२२४७. गर्गऋषि भाषित केवली, संपूर्ण, वि. १९०९ आश्विन शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. अजमेर, वे., (२३.५x१२, १०x१८ - २१ ). पाशाकेवली - भाषा *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवति; अंतिः सत्या पाशक केवली. २२२४८. स्थुलिभद्र चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९ - २ (१,१३ ) =२७, पू. वि. प्रथम एक, बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१x११.५, १२X३२ ). गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पच, वि. १५७२, आदि: (); अंति: ( ), ( पू. वि. प्रथम अधिकार गाथा - १४ से रचना प्रशस्ति अपूर्ण तक है. ) २२२४९. (+) सिंदूर प्रकरण व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३७, आश्विन कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, ले.स्थल. हुरडाग्राम, पठ. मु. मोतीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीचिंतामणिजी प्रसादात्., संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, जैदे., (२४X१३, १३X३०). १. पे. नाम. सिंदूर प्रकरण, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः स जानाति जनाग्रतः, श्लोक- ९८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १०अ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), श्लोक - २. २२२५५. होलीरजपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १८२९, फाल्गुन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. युक्तिलाभ, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., For Private And Personal Use Only (२३.५x१२.५, ७-८x२९-३२). होलीरजपर्व कथा, सं., पद्य, आदि: अथ श्रीचतुर्विंशति; अंतिः तत्र यत्नो विधीयतां. , २२२५७. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७३, प्र. ले. लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं (८१९) जला रक्ष शंथला रक्ष, जैवे., (२३.५X१२.५, १५४४१-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्कि अंतिः गई ति बेमि अध्ययन- १०. दशवैकालिकसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंतिः स्वमति करी नवी कहंत. Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२२५९. (+) सिंदर प्रकरण व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२२४१२.५, ९४२७-३०). १. पे. नाम. सिंदूर प्रकरण, पृ. १आ-१५अ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ+१५अ-१५आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २२२६४. वीरजिन सत्तावीसभव स्तवन, आतमहीत सज्झाय व पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६८, फाल्गुन शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, ले.स्थल. राधनपुर, दे., (२३४१३, ९-१०४२४-२९). १. पे. नाम. महावीरजिन सत्तावीसभव स्तवन, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन-२७ भव, पंडित. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९०१, आदि: शुभविजय सुगुरू नमी; अंति: सेवक वीरविजय जय करो, ढाल-५. २. पे. नाम. आतमहीत सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: किसके चेले किसके; अंति: विराजे सुख भरपूर, गाथा-७. ३. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तवन, पृ. ६अ-११आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६. २२२६८. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४४, फाल्गुन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. मंबादेवी, दे., (२१x१३.५, २२-२४४३०-३२). विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २२२७२. सत्तरभेदी पूजा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२४, चैत्र शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. इडरगढ, प्रले. मु. मोहनविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२३.५४१२.५, ५-६४३०-३५). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखकज वासिनी; अंति: चितवित सफल चुणीयो रे, ढाल-१७, गाथा-१०८, संपूर्ण.. १७ भेदी पूजा-टबार्थ, मु. सुखसागर, मा.गु., गद्य, आदि: हवइ स्नान कर्या पछी; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ ढाल-१५ तक लिखा है.) २२२७३. (+) श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, प्र.वि. प्रतिलेखक ने अंत में पाक्षिक विधि की शुरुआत मात्र कर के ही लिखना छोड दिया है., संशोधित., जैदे., (२३.५४१२.५, ११४२६). आवश्यकसूत्र-श्राद्धअतिचार *, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २२२७४. प्रश्नोत्तर संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(३)+१(६)=१५, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२.५४१२.५, १४-१५४२८-३२). प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: भवणपति व्यंतर; अंति: (-), (पू.वि. प्रश्नोत्तर-१६७ तक है.) २२२७६. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, दे., (२४.५४१२.५, ११-१२४२०-२५). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: थुण्यो जिन चौविसमो, ढाल-८, गाथा-१०२. २२२७८. लीलावती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२४४१२.५, १४-१५४३९). लीलावतीसुमतिविलास रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: परम पुरुष प्रभु पास; अंति: सुख संपति सुरसालजी, ढाल-२१. २२२७९. स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९१३, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. लाडणो, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय (गुरु मु. दोलतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२१.५४१२.५, १३४३२-३९). For Private And Personal use only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम अंग शुद्ध करी; अंति: सो नरनारी अमरपद पावे, ढाल-८. २२२८१. जीवविचार स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(१)=२९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२४४१३, ४-९४१३). जीवविचार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-२ से ढाल-६ गाथा-७ तक है.) २२२८२. विजयक्षमासूरि सलोको, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. मु. तेजा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१२, १५-१६४२५-२७). क्षमासूरि सलोको, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणी पाये हु; अंति: तस घर नीत लील करसे, गाथा-६४. २२२८४. पृथ्वीचंद्रमुनि सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२३४१२.५, १२४२३-२६). पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाय, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक सुखकरु वंदी; अंति: जीवविजय धरे ध्यान, ढाल-३, गाथा-६८, ग्रं. ९७. २२२८६. शत्रुजयतीर्थोद्धार रास, संपूर्ण, वि. १८४३, आश्विन कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२४.५४१२.५, १४४२८-३७). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: देहि दरसण जय करे, ढाल-१२, गाथा-१२२. २२२९१. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से ४)=५, जैदे., (२४४१२, १५४३५-३८). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्तवन-१-१४ व महावीरजिन स्तवन के बाद के स्तवन नहीं हैं.) २२२९२. नवपद विधि, सिद्धचक्र स्तवन व स्थापनाचार्य के १३ बोल, संपूर्ण, वि. १९२५, आश्विन शुक्ल, ४, शनिवार, जीर्ण, पृ. ६, कुल पे. ३, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. हरिलाल मालजी बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४१२, ११४२४-२६). १. पे. नाम. नवपद विधि, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र आराधना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम प्रभाते; अंति: संसार पार निस्तकं. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्रनी करुं भव; अंति: अविचल पद लहे जेह, गाथा-७. ३. पे. नाम. स्थापनाचार्य पडिलेहणा बोल, पृ. ६अ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, गु.,प्रा., गद्य, आदि: शुद्ध स्वरूपने ध्याउ; अंति: राखं कायगुप्ति धरूं. २२२९५. विवाहपडल भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१२, ७X२८-२९). विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी; अति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ तक है.) २२२९६. चौवीसदंडक त्रीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९४९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. वीठोडावडानगर, प्रले. पं. चतुरसौभाग्य; पठ. श्राव. उमेदमल साहा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४१२, १०x२८-३३). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजो; अंति: अधिका जाणिवा, ग्रं. ३१०. २२२९८. चूलिकाध्ययन का गीत - दशवैकालिकसूत्रे, संपूर्ण, वि. १९६९, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. कीरपाचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १३४२९-३१). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धर्ममंगल महिमा निलो; अंति: सदाजी जयतसी जयजय रंग, अध्याय-१०, ग्रं. १५०. २२२९९. (#) धर्मबावनी व सवैयाचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. खीवेल, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १५-१७४२९-३२). For Private And Personal use only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. मु. धर्मवर्धन, पुहि., पद्य, वि. १७२५, आदि: ॐकार उदार अगम अपार; अंति: नाम धर्मबावनी, गाथा-५७. २. पे. नाम. सवैयाचौवीसी, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण. क. अमरेस कवि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथमेश जिनेश नमे; अंति: बोलता मुख सदा वसे, गाथा-२७. २२३००. चउशरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. जयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११.५, १२४२८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्ययोग व्यापारने; अंति: सुखनु देणहार छे. २२३०१. अवंतिसुकुमाल सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. देभाव, प्रले. मु. भगतिचंद; पठ. मु. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पारश्वनाथ प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (७०१) जब लग मेरु अडग है, दे., (२१.५४११.५, ११-१५४२२-२८). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: संतहरख सुख पावे, ढाल-१३, गाथा-१०३. २२३०२. (+) पट्टावली, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१४१२, १०४२५-२८). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कल्याणकारणं शुद्धं; अंति: (-). २२३०५. आनंदसंधि व जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-२(१,६)=१५, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११.५, १२४३२-३४). १. पे. नाम. आनंदश्रावक संधि, पृ. २अ-१६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: (-); अंति: पभणे श्रीमुनिसार, ढाल-१५. २. पे. नाम. जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण. ___ रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ दूहा-६ तक २२३०७. दशलक्षण उद्यापन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८५, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. पंडित. देवकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२, ११४३२-३५). १. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. दशलक्षणउद्यापन पूजाविधि, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण. १० लक्षण उद्यापन पूजाविधि, मु. सुमतिसागर, सं., पद्य, आदि: विमलगुणसमृद्धं ज्ञान; अंति: विश्वजीवहितप्रदा. २२३०८. दशवैकालिकसूत्र व पच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८१३, माघ कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. मु. सांवलजी; पठ. मु. प्यारमदेजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १३४३१-३३). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-१ से ४ अध्ययन, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-१ से ४ तक है.) २.पे. नाम. पचक्खाणसूत्र संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सरे नमुकारसिय; अंति: गारेणं वोसिरामि. २२३१०. सिद्धाचलतीर्थमाला, संपूर्ण, वि. १८७६, आषाढ़ कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. वलाद, प्रले. मु. खुसालरत्न (गुरु मु. शिवरत्न, तपागच्छ); पठ. श्रावि. सोनबाई श्राविका, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अजीतनाथ प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७७५) मंगलं लेखकानां च, (७७६) जलात् रक्षेत् तैलात्र क्षेत्, (७७७) भग्नपृष्टी कटीग्रीवा, जैदे., (२२.५४१२, ११४२६-२७). For Private And Personal use only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir वस्वा हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: विमलाचल वाहला वारु; अंति: नित नमो गिरिराया रे, ढाल-१०. २२३११. वज्रस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२३४१२, १२४१७-२०). वज्रस्वामी रास, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: चोविसमा जे जिनवरु; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-४ अपूर्ण तक है.) २२३१२. सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. सांडेरा, प्रले. मु. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., जैदे., (२४४११.५, १३४३०-३५). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-९९. २२३१४. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२२.५४११.५, १३४२६). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५२. २२३२०. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. ११, लिख. मु. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, ४-५४३०). नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: लिहिओ मणिरयणसूरिहिं, गाथा-५८, (वि. १८६३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवनु स्वरूप ते जीव; अंति: मूल नवतत्त्व जाणवू, (वि. १८६३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५) २२३२१. अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२३.५४११.५, १३४२९-३२). अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहा पहिलं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २२३२२. चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदे., (२४४११.५, १२४३०-३६). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई रे, ग्रं. ३२५. २२३२४. रोहिणीतप वृद्धिस्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. *प्रत के पन्ने अबरख युक्त है., जैदे., (२३४११.५, ७४१७-२४). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: शासनदेवता सामणी ए; अंति: हिव सकल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. २२३२६. उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध- नमिराजर्षि अध्ययन, संपूर्ण, वि. २००९, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, दे., (२२४११.५, १०-१३४२५-३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २२३२७. योगदृष्टि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२३.५४११, १२-१३४३४-३९). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणेजी, ढाल-८, गाथा-७६, ग्रं. १२७. २२३३०. मेघकुमार चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२२४११.५, ११४२३-२६). मेघकुमार चौढालिया, रा., पद्य, आदि: रिषभादिक चोवीसने; अंति: लागा दीसे छे लार रे, ढाल-५. देवसीयप्रतिक्रमण विधि, अपर्ण, वि. १९१४, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १४, गरुवार, श्रेष्ठ, प. १०-२(४ से ५)=८. ले.स्थल. मांडल, प्रले. श्राव. नथु तलक; पठ. मु. सुंदरसागर (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४११, ११-१२४२६-३०). देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: त्रिकाल वंदणा. For Private And Personal use only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२३३९. (+) प्रेमविलास चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. प्रति रचना समीपवर्ति काल में लिखी होने की संभावना है., संशोधित., जैदे., (२४४११, १७४४१-५२). प्रेमविलास चौपाई, मु. जयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: पास जिणेसर मनधरी; अंति: ए पुत्र कलत्र परिवार, ढाल-६. २२३४०. सम्यक्त्व स्तवन सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, पू.वि. गाथा-२ तक नहीं है., जैदे., (२४४११, १२४३३-३६). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२६. सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: समकितनी प्राप्ति होउ. २२३४४. (+) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२४११.५, १०४२०-२२). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. २२३४८. (#) नवस्मरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १५, पू.वि. अजितशांति स्तव गाथा-२३ तक है., ले.स्थल. पनोता, प्रले. मु. जिणदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक व प्रतिलेखन स्थल सूचना उपसर्गहर स्तोत्र के अंत में उपलब्ध है., त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ४-१८४३९-४५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. नवस्मरण-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिन; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २२३५०. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२३४११, ८x२०). विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ हियडौ हे जालुअउ; अंति: विहरमाणजिन वीस, स्तवन-२०. २२३५१. कर्मप्रकृति विचार व नवकार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८६९, कार्तिक शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. लाभविजय; पठ. श्रावि. मूलाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११, १०-१२४२३-३२). १. पे. नाम. कर्मप्रकृति विचार, पृ. २अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ___ कर्मप्रकृति विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धांत मै कह्यो छे. २. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कहजो चतुरनर ते कुण; अंति: कहे बुद्धि सारी रे, गाथा-५. २२३५४. माधवानल चौपाई व श्लोक सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८७२, भाद्रपद शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(८)=२९, कुल पे. २, ले.स्थल. कानपूर, प्रले. मु. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथजी प्रसादात., जैदे., (२३४११, ११-१३४३२-३८). १.पे. नाम. माधवानल चौपाई, पृ. १अ-३०अ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवी सरसती देवी; अंति: त्यांहि मिले नवेनिध, गाथा-५५०, (पू.वि. गाथा-१३४ से १५४ तक नहीं हैं.) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. ३०आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-४. श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २२३५६. चौवीसदंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२२.५४१०.५, ९४२२-२६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४७. २२३५७. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२२४११,११-१३४२३-२७). For Private And Personal use only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org ११ आदिजिन स्तवन- आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः आदीसर पहिलो अरिहंत; अंति: सफल भव आपणो गिणी, ढाल - ४, गाथा - ५४. २२३६२. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८००, चैत्र कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले. स्थल. झंगि, पठ. मु. कुंवरविजय (गुरु मु. ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं (८२०) भङ्गपुष्टि कटिग्रीवा, जैवे. (२४.५x१०.५, १५-१६x४८-५३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंति: रत्नपाल-रत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; मोहनविजय विलासजी, खंड-४ ढाल ६८, ग्रं. १२९७. २२३६९. (+-#) मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. ज्ञानशील (गुरु ग. राजशील), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे, (२२४९.५, १०x२३-२४). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: पामीड मंगल घणो, दाल- ३. २२३७०. कल्याणमंदिर व भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., ( २१.५x१०.५, ८-११३१-३२). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १आ ५अ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. ५अ ९अ, संपूर्ण आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. २२३७१. पासाकेवली शुकनावली, संपूर्ण, वि. १८९९, वैशाख कृष्ण, ९, जीर्ण, पृ. ६, ले. स्थल. जेसलमेर, प्रले. पं. विजयसागर पठ. मु. हस्तसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंक्त्वक्षर अनियमित है. वे (२२.५x१०). पाशाकेवली - भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवति; अंति: लाभ वृषभपासो छे. २२३७२, (+) नमस्कारचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे २, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., ,जैदे., (२२.५x१०, १०-११X३७ - ४१). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि; ऋषभ जिणेसर केसर चरचि; अंतिः जय एम मंगल करयो माय. २. पे नाम चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण. नमस्कारचीवीसी, ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिन युगादिदेव; अंति: जिननां सरियां काज, गाथा - ७५. २२३७८. (+) प्रस्ताविक श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७४, माघ शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. दशनपुरनगर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५X१०, ८x४७-४९). प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, आदि: राज्य निःसचिवं; अंति: क्रियातत्परा, श्लोक - ११७. - प्रास्ताविक श्लोक -टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: राज प्रधान विना न; अंति: तत्पर न कहेवाय. २२३८३. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९-४ (१ से ४) = ७५, पू. वि. अध्याय-३ गावा- १२ तक नही है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २०००, जैदे., (२४X११.५, ५X३०-३१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि (-); अंति: कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन १० चूलिका २. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विचार कीधउ जे सत्य. २२३८७. चउशरण प्रकरण व ४ शरण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७९७, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. श्राव. खेमचंद्र वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४x१०, ८x२७ - २८). १. पे. नाम चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १अ - ६अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (वि. १७९७, भाद्रपद कृष्ण, ७, ले.स्थल. नागोर) २. पे. नाम. ४ शरण सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो मंगलिक कहुं; अंति: वास जीवडो नवि लहै, गाथा-६, (वि. १७९७, भाद्रपद शुक्ल, ९, मंगलवार, ले.स्थल. नागपुर) २२३८९. (+) पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, ८x१७-२१). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८. २२३९०. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७६०, कार्तिक शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. नडुलाई, प्रले. मु. उत्तमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०, ११४२८-३१). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २२३९३. विवाहपडल भाषा व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. दुजाणाग्राम, प्रले. पं. लालरुचि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गिरधारीजी द्वारा दी गयी प्रत पर से लिखी गयी है., जैदे., (२३४१०.५, १०-१३४३४-३९). १.पे. नाम. विवाहपडल भाषा, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. मु. गौतमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: ए करदन करिवर वदन कदन; अंति: गौतमे कीध रचना सरस, गाथा-९४. २. पे. नाम. सामान्य श्लोक, पृ. ६आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१. २२३९४. पासाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. *पंक्त्यक्षर अनियमित है., दे., (२२.५४१०). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम सांभल अहो; अंति: (-). २२३९६. रात्रिभोजन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, ९४२०-२२). रात्रिभोजन चौपाई, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८७, आदि: श्रीअरिहंतसुसिद्धजी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ दोहा-४ (कुलगाथा-१८०) तक है.) २२३९८. अवंतिसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४४१०.५, १२-१३४३२-३८). अवंतीसुकुमाल स्वाध्याय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: शांतिहरष सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०८. २२४०३. (+) शीलविषये सुरसुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९१२, माघ शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्रले. ग. जिनेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. जीरावला पार्श्वनाथजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १२-१६४३५-४०). सुरसुंदरीरास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: आदि धरमने करवा ए; अंति: इम भणि आणंदपुरी, ढाल-२१, गाथा-५१०. २२४०७. गुणकरंडकगुणावली चौपई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदे., (२३.५४१०.५, १४-१५४३७-३९). गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: ___हो दिनदिन आणंद, ढाल-२६, गाथा-४९२. २२४०८. मोहउदयस्थानगर्भित प्रथमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२३.५४११, ९४३२-३४). आदिजिन स्तवन-मोहउदयस्थानविचार गर्भित, मु. जीतविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: श्रीसिद्धाचल मंडणो; अंति: फलसिद्धि वहिली रे, ढाल-९, गाथा-६३. For Private And Personal use only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २२४११. स्नात्रपूजा व नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८९०, कार्तिक शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, ले.स्थल. माडोली, जैदे., (२३.५४११, ११-१३४३२-३८). १.पे. नाम. स्नात्रपूजा, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि: (१)पूर्वे बाजोठ उपरि, (२)मुक्तालंकारहारविकार; अंति: पूजा करो आनंद. २. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. ४अ-१४अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: पंचामृत सेवा कीजै. २२४१२. (+) नाटक समयसारभाषा कवितबंध, संपूर्ण, वि. १७६४, भाद्रपद कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. ग. विजयरत्न (गुरु ग. हेमरत्न), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४-१६४३७-४८). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर; अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, गाथा-७२८, ग्रं. १७०७.. २२४१५. (+) चौदगुणस्थान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १८-१९४५९-६०). १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीसर्वज्ञ जिनं, (२)मिथ्यात्व प्रमुख चउद; अंति: (-). २२४२२. (#) अवंतिसुकमाल सज्झाय तेरढालीया, अपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. १३-८(१ से ८)=५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, ११-१२४२३-२९). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: शांतिहरष सुख पावे रे, ढाल-१३, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-२ से है.) २२४२५. पंचज्ञान पूजा व बारव्रत पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९१८, माघ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. पं. गोपालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., दे., (२२.५४११, १२-१३४२२-२४). १. पे. नाम. पंचग्यान री पूजा विधिसहित, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सकल कुशल कमलावली; अंति: उपर भेला ५१ थापिइं. २. पे. नाम. नवाणुप्रकारने बारेव्रतनी पुजानी विधि, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. १२ व्रत पूजाविधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तो जिनभवन; अंति: आरती मंगलदीवो करवो. २२४२७. (+) संगहणीसुत्त सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६७८, कुलाचलर्षिरसनिशापति, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले.स्थल. राजलदेसर, प्रले. मु. ज्ञानमेरु (गुरु वा. महिमासुंदर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ज्ञानपंचमी तप उजमणा के लिए दी., संशोधित-त्रिपाठ., प्र.ले.श्लो. (६६७) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेद, जैदे., (२४.५४११, ५४४१-४५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७७. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउ० अरिहंतदेव; अंति: ग्रंथकर्तायइ कही, ग्रं. १०५७. २२४३०. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १०-१३४१६-२७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २२४३१. (+) उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १८२२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. इडरगढ, प्रले. आ. जिनदोलतसूरि (बृहत्खरतर पीपलीयागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. दादाजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२४४११, १२४३५-३७). उपधानतप विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: प्रथमं नंदीमुहूर्त; अंति: नियमो नास्ति.. २२४३३. (+) नववाड सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, ९४२७-३१). नववाड सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०. For Private And Personal use only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२४३४. (+) स्तवनचीवीसी सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १९-१ (१८) -१८, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., स्तवन- १९ गाथा - १० तक है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४४११, ५४३७-४० ). स्तवनचीवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: ( - ). स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) चिदानंदमय जिनवरु, (२) ऋषभदेव जिनेश्वरनइं; अंति: (-). २२४३६. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ - १ (४) = ५, कुल पे. ४, ले. स्थल. पाडीवनगर, प्र. वि. टिप्पण विशेष पाठ. दे., (२२x११, ११-१३x२५-२७ ). " १. पे. नाम शुक्ल पंचमी स्तवन, पृ. १आ-५अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है, ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय पासजिनेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुनि, ढाल - ६, (पू.वि. ढाल - ४ गाथा - ७ से ढाल - ६ गाथा - ३ तक नहीं है.) २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. सिद्धचक्रतप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: एक सरोज उद्धरीओ आगम; अंति: हरख पदम पद पावना, गाथा - ७. ३. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण, महावीरजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसमा जिनराजनुं; अंति: मानवि० अनुभव चाखे छे, गाथा - ६. ४. पे. नाम वीरजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ राजानो नंदन; अंति: नंदन जयजय श्रीमहावीर, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ७. " २२४३७. स्तवन, सझाय, पद आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (४) ६, कुल पे. १८, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं दिया है. पत्रों की गिनती करके अनुमानित नंबर दिया गया है. बीच के कुछ पत्र न होने से पत्रांक ४ अनुपलब्ध रूप में गया है., दे., (१९x१०.५, १५-१८x४०-५६). १. पे. नाम. तीर्थयात्रा स्तवन, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. तीर्थमाला स्तवन, मु. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६४८, आदि: पहिलुं प्रणमुं भाव; अंति: आणी नितनित सम तेह, गाथा- ४८. २. पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. ३अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चाखो नर समकित सुखडली; अंति: दर्शनने प्यारी रे, गाथा - ५. ३. पे नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. माणिक, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिणेसर प्राहुण; अंति: होइ शिवपुर साथ रे, गाथा - ५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. भावविजय, पु,ि पद्य, आदि: भला बूरा तो मे तेरा; अंतिः भवभव तुम पाए सेवा, गाथा-२. ५. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण मु. कीर्तिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: आतम चेतो चतुराई; अंतिः धर्म करो लब लाई रे, गाथा - ६. ६. पे. नाम. श्रेयांसजिन पद, प्र. ३आ, संपूर्ण. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि सहेर बडो संसार को अंति: करो आनंद को आधार रे, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन जब तुं ग्यान; अंति: मारग ते निश्चे साधे, गाथा - ८. ८. पे. नाम. काव्य / दुहा / कवित/ पद्य, पृ. ३आ + ५अ + आ + ६अ, संपूर्ण. काव्य / दुहा/कवित्त/पद्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पू. ५अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, लिंबो, मा.गु., पद्य, आदि: दीठो रे वामा को नंदन; अंति: हवे लाथो भवतरु रे, गाथा-३. १०. पे. नाम. सुमति स्वाध्याय, पृ. ५आ, संपूर्ण. सुमति सज्झाय, मु. विनयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सदा सुकलीणी; अंति: सुमति थकी सुखदाय, गाथा-१३. ११. पे. नाम. गोविंद पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. मावदास, मा.गु., पद्य, आदि: नानाह कुंअर नंदना रे; अंति: गुण गाता गोविंदना, गाथा-४. १२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: गिरिराज तेरे दरिसन; अंति: मे सदा तुम नेहा, गाथा-६. १३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब आंगी तुमारी; अंति: प्रभुस्यु भणीस हो, गाथा-१०. १४. पे. नाम. गुणस्थानक विचारबत्रीसी, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. पंडित. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: प्रणमी अरिहंत रे; अंति: कहे एह तत्त्व विचार, ढाल-३, गाथा-३२. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरो थे मानो हो; अंति: सेवक करी जाणो रे, गाथा-५. १६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-केसरीया, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: केसरीया जिनवर मुजरो; अंति: तेणी परे ए विधि जाणो, गाथा-५. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: अब तुंही मेरा साहि; अंति: वासा श्रीजिनचंदावो. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: नाटिक करे सुरदारा; अंति: एहीज धरम आधारा. २२४३८. (+) लावणी, पद, स्तवन, दुहा थुई संग्रह व चौवीसजिन नाम, संपूर्ण, वि. १९३८, आश्विन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. १८, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२०४११, १०-११x१९-२२). १. पे. नाम. नेमराजुल लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: पिया विन कैसे रह; अंति: लाभकुंचाहत है जगमें, गाथा-३. २. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. लाभधीरविजय, रा., पद्य, आदि: दरशन थारो प्यारो मोय; अंति: तुम सम जश जगकर जिनजी, गाथा-५. ३. पे. नाम. केसरिया आदिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-केसरीया, मु. लाभधीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केसरिया को ध्यान धर; अंति: विनती मानो हजूर, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. लाभधीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: अब कहा सोच करेसे; अंति: लाभ सुजस गवरावै, गाथा-६. ५. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. लाभधीरविजय, पुहि., पद्य, आदि: सखी जीवन प्राण आधारौ; अंति: लाभ जगत है प्यारो, गाथा-५. ६.पे. नाम. नेमराजीमती पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, म. लाभधीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: सांवलिया नेम हमारो; अंति: कर लाभ सदा जयकारो, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभू तेरो दरशन तारक; अंति: चरण शरण चित ठान्यौ, गाथा-७. ८. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: नेम विन कैसी करूं; अंति: कृपासे लाभ वसंत वसंत, गाथा-४. ९. पे. नाम. केसरिया आदिजिन पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-केसरीया, मु. लाभधीरविजय, पुहि., पद्य, आदि: अष्टकरम मेरो काई; अंति: शिवसंपत वश थाय रे, गाथा-४. १०. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. लाभधीरविजय, पुहि., पद्य, आदि: अरी मेरो नेम पियारो; अंति: नेमसुं लाभ मिल्यौ, गाथा-५. ११. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तौय देखत कुमति; अंति: लाभ सुजगमें गवैरी, गाथा-७. १२. पे. नाम. आगासीमंडन मुनिसुव्रतजिन पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन स्तवन-अगासी, मु. लाभधीरविजय, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुमुख देखन ते भव; अंति: लाभ वंदै नित पाय, गाथा-५. १३. पे. नाम. केसरिया आदिजिन पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-केसरीया, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., पद्य, वि. १९३९, आदि: मोय दीनो दरशन आज; अंति: कीनो दरशन आजरे, गाथा-७. १४. पे. नाम. दहा, पृ. ६आ+७आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. १५. पे. नाम. कुमतिखंडन वज्रचपेटका स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-कुमतिखंडन, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कुमति किम रे जिन; अंति: भज लाभ सदा आबाद, गाथा-७. १६. पे. नाम. चौवीसजिन नाम, पृ. ७आ, संपूर्ण. २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी अजित; अंति: पार्श्व वर्द्धमान. १७. पे. नाम. त्रिगडा स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., पद्य, आदि: मिलि चौविह सुरवर; अंति: पामै जयत० सुनाणी, गाथा-४. १८. पे. नाम. पार्श्वनाथजीनी थूई, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. २२४४०. सदयवच्छसावलिंगा चौपाई, भ्रमरबतीसी व दहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-२(१ से २)=१७, कुल पे. ५, दे., (१९.५४११, ८x१३-१७). १. पे. नाम. सदयवछसावलिंगा चौपई, पृ. ३अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सदयवत्ससावलिंगा चौपाई, मु. केशव, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: (-); अंति: करहुं कीजै दया दयाल, गाथा-४४४, (पू.वि. गाथा-१ से ६० अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. भमरबत्तीसी, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण. भ्रमरबत्रीसी, मु. केशवदास, मा.गु., पद्य, आदि: भमर उमाह्यो भेटवा; अंति: भमरबतीसी धार, गाथा-४७. ३. पे. नाम. बारमास दुहा, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १२ मास दहा, मु. जसराज, पुहिं., पद्य, आदि: पीउ चाल्या पदमणि कहै; अंति: गोरी तणा जसराज, गाथा-१२. ४. पे. नाम. पनरैतिथि दूहा, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. पंदरतिथि दूहा, मा.गु., पद्य, आदि: पडिवा पहेलो पेखणो; अंति: उगीयो नमन करै सब कोइ, गाथा-१५. ५. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १८अ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). २२४४२. (+) स्तवन, सज्झाय, पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५, कुल पे. ७५, प्रले. मु. खुबचंद (गुरु पं. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०.५, १०-१२४२८). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा शांति जिणंदनी; अंति: थापज्यो संघ मंगलकारी, गाथा-१६. २. पे. नाम. सिधाचल स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शजयतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: चालो सखी सिद्धाचल; अंति: रूप लक्ष्मी सुखमेवा, गाथा-१०. ३. पे. नाम. नेमगीता, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन गीता, मा.गु., पद्य, आदि: गगनमंडल मेहुलो गाजीय; अंति: मेह वलुबा मेहला, गाथा-५. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. वा. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र सुणो; अंति: भणे ए उत्तम अधिकार, गाथा-११. ५. पे. नाम. पंचमीतपस्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरुना प्रणमु; अंति: वाचक देवनी पूरो जगीश, गाथा-५. ६. पे. नाम. रहनेमिप्रतिबोधक राजीमति स्वाध्याय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. रथनेमिराजीमती सज्झाय, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरुना प्रणमु; अंति: उत्तम मति आणी रेलो, गाथा-१८. ७. पे. नाम. शेजेजय स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संघपति भरत नरेसरु; अंति: ज्ञानविमल० रे लोल, गाथा-१०. ८. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा-६. ९. पे. नाम. रोहीणी स्तवन, पृ. ५आ-९अ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज; अंति: रोहिणी गुण गाईया, ढाल-६. १०. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. ऋषभजिन स्तवन, पं. प्रेमविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तिर्थंकरा ऋषभ; अंति: तणा गुण देहरामि गाया, गाथा-१४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: निरमल होय भजले प्रभु; अंति: भवजल समरण पार उतारे, गाथा-५. १२. पे. नाम. माहावीरजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रुपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिननो वीसवास छै; अंति: रुपचंद रस माण्या, गाथा-८. १३. पे. नाम. पार्श्वदेवजी स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामणी राया शिवसुख; अंति: कुशलविजय गुण गावे जी, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. __पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: दिलरंजन जिनराजजी; अंति: ग्रही हवे हाथ रे, गाथा-७. १५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. मु. शिवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सफल घडी रे मोरी सफल; अंति: जोरी वंदना करी, गाथा-४. १६. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रुडीने रढीयाली रे; अंति: नित्य नित्य ध्याय, गाथा-५. १७. पे. नाम. वरकांणापासजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत-वरकाणा, रत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: श्रीवरकाणा पासजिणेसर; अंति: दोहग सवि मिट्या रे, गाथा-५. १८. पे. नाम. धर्मनाथजीरो स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हा रे मारे धरमजिणंद; अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-७. १९. पे. नाम. आबुजीरो स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. तीर्थयात्रावर्णन स्तवन-विमलमंत्रीकारापित, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपाटण में पांचासर; अंति: गरीब उपर मेरबानी थाय, गाथा-७. २०. पे. नाम. विरजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरकुंवरनी वातडी; अंति: भांगे सादि अनंत, गाथा-१०. २१. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ पद, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: विमलगिर क्युं न भए; अंति: धर्मसी करत अरज करजोड, गाथा-३. २२. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवना, पृ. १४अ, संपूर्ण. शQजयतीर्थस्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वनिता पीउने विनवे; अंति: पामीइं शिवपुर वास, गाथा-५. २३. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजीरोस्तवन, पृ. १४अ-१७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी; अंति: संपद सयल मंगल करो, ढाल-५, गाथा-५६.. २४. पे. नाम. वर्जधर्मस्वामीजिन स्तवन, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: मुगति मुझ आपज्यो, गाथा-७. २५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १८अ, संपूर्ण. मु. रुपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: समझ समझ जिया ग्यांन; अंति: निरंजन एक निरंजन आय, गाथा-३. २६. पे. नाम. करमविपाक सझाय, पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-२०. २७. पे. नाम. पांचपांडव स्वाध्याय, पृ. १९आ-२०आ, संपूर्ण. पंचपांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हसतनागपुर वर भलो; अंति: मुझ आवागमण निवार रे, गाथा-२०. २८. पे. नाम. ऋषभजीनुं स्तवन, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: तुम साथे नवि बोलु; अंति: ऋषभ कहे करजोडी जी, गाथा-५. २९. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. २१अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: फरसे जिनराज राजरीध; अंति: गावते हरखे लय लाइ, गाथा-३. ३०. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. २१अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: ए जिनके पइया लागरे; अंति: आनंदघन पाए लाग रे, गाथा-३. For Private And Personal use only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३१. पे. नाम. वासुपूज्य स्तवन, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिन; अंति: इम जीत वदे नीतमेव रे, गाथा-५. ३२. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: नरनारी नरनारी सिद्धा; अंति: भक्ति करुं एक तारी, गाथा-५. ३३. पे. नाम. पांचेइंद्रीने विषेत्रेविसविषययुक्त सझाय, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय २३ विषय सज्झाय, मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: उतपत मानव एह रे; अंति: सुंदर एम कहे सहि ए, गाथा-१५. ३४. पे. नाम. संवर सज्झाय, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. आ. सौभाग्यलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचम पदने गाइरे; अंति: लक्ष्मीसूरि सुखदाय, गाथा-७. ३५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २३आ, संपूर्ण. मु.रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जीव माहरु माहरु; अति: इम रूपचंद गुण गाय छे, गाथा-७. ३६. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. २४अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित दाता समकित; अंति: पभणे रसना पावन कीधी, गाथा-७. ३७. पे. नाम. सिधचक्र स्तवन, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वखाण्यौ; अंति: कांतिसा० सुख पाया रे, गाथा-१०. ३८. पे. नाम. सिधचक्र स्तवन, पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, उपा. वीरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनो रे ध्यान धरी; अंति: नही कोइ तोले हो, गाथा-१८. ३९. पे. नाम. वीरप्रभुजिन स्तवन, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, पंन्या. दिणयरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर वंदिये रे; अंति: दणीयर प्रभु ध्यान, गाथा-६. ४०. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. २६अ-२७अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिसला देवीनो नंद; अंति: वंदे नित नित रंग, गाथा-११. ४१. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी प्यारा हो वीर; अंति: नही कोई विरजीने तोले, गाथा-७. ४२. पे. नाम. बाहुस्वामी स्तवन, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: परणे रे बह रंग भरी; अंति: श्रीजिनचंदामाहि धररो, गाथा-९. ४३. पे. नाम. श्रीवीरजी री वीनति, पृ. २८आ-३०अ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवनतिलो, गाथा-१७. ४४. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन पद, पृ. ३०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. रंग, पुहिं., पद्य, आदि: तुम विना मेरी कुण; अंति: रंग सदा सुखकंदा, गाथा-६. ४५. पे. नाम. शीतल पद, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. शीतलजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: मुख नीको शीतलनाथ कौ; अंति: हुंसेवक जिनजी को, गाथा-३. ४६. पे. नाम. राजूल स्तवन, पृ. ३०आ-३१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा समजायो तोरे; अंति: वंदे नीतनीत रंगरे, गाथा-१४. ४७. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. गौतम, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन आज में नयणे; अंति: गौतमने भवदुख जाया, गाथा-११. For Private And Personal use only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३२अ-३३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. गौतम, मा.गु., पद्य, आदि: परमपुरुष जिनराजजी; अंति: करज्यो कोड कल्याण, गाथा-७. ४९. पे. नाम. अजित स्तवन, पृ. ३३अ, संपूर्ण. अजितजिन पद, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: अजितराय तुम दयाल मे; अंति: कीजई कहत कल्याण, गाथा-४. ५०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: घोर घटा करी आयोरी; अंति: सर तब परमारथ पायोरी, गाथा-५. ५१. पे. नाम. पद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, पंन्या. रत्नविजय, पुहिं., पद्य, आदि: पद्मप्रभुजिन साहिब; अंति: रत्नविजय गुण गाया, गाथा-५. ५२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण. मु. आसो, पुहिं., पद्य, आदि: सरसत सामण विनवू; अंति: आसो० शुभ करणी कर ले, गाथा-१०. ५३. पे. नाम. पार्सनाथ स्तवन, पृ. ३४आ-३५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रुपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज सफल दिन धन प्रते; अंति: प्रभुजी हो थे भाव, गाथा-९. ५४. पे. नाम. नेमराजेमती स्तवन, पृ. ३५आ-३६आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लूंबी झूबी रह्यो; अंति: दानविजय उल्लास, गाथा-९. ५५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल दिन माहरे; अंति: तिलक० विनवै बे करजोड, गाथा-१३. ५६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३८अ, संपूर्ण. मु. रुपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मनवा विसर मत जायरी; अंति: चरणां चित लायरी, गाथा-४. ५७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३८अ, संपूर्ण. केवलराम, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे मनमें रही रे; अंति: केवल० दुःख कारक की, गाथा-४. ५८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३८अ, संपूर्ण. मु. गुणविलास, मा.गु., पद्य, आदि: करो ऐसी बगसीस प्रभु; अंति: आस दूरे करो आपस रीस, गाथा-३. ५९. पे. नाम. आदिजिन पद-धुलेवानगरमंडन केशरीया, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-धुलेवानगरमंडन केसरीया, ऋ. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मारे तो केशरीयाबाबा; अंति: धुलैवेन० मोटो धाम छे, गाथा-४. ६०. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणि सम सह मंत्र; अंति: सदा अनुपम जस लीजे रे, गाथा-१४. ६१. पे. नाम. अध्यातम पद, पृ. ३९अ-३९आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन जो तुंग्यान; अंति: अंतरदृष्टि प्रकाशी, गाथा-८. ६२. पे. नाम. ऋषभ पद, पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-धुलेवा, ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: जगभूलो किउ भटके छै; अंति: ऋषभदास गुण रटके छै, गाथा-४. ६३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण. मु. तीर्थविजय, मा.गु., पद्य, आदिः जिनराजजी सेवा कुण; अंति: सीस तीर्थ प्रमाण मरै, गाथा-११. ६४. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ४०आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: भला सुख आपेगा ओ; अंति: प्रणमुंतारतार भवतीर, गाथा-४. For Private And Personal use only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १०१ ६५. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. ४०आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी अरज विसर मत; अंति: चाहे ज्युं तारो जी, गाथा-३. ६६. पे. नाम. केसीकुमर स्वाध्याय, पृ. ४०आ-४१आ, संपूर्ण. केशी गौतम स्वाध्याय, मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमीये; अंति: रुपविजय गुण गाय रे, गाथा-१६. ६७. पे. नाम. माया स्वाध्याय, पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण. माया सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि*, मा.गु., पद्य, आदि: माया कारमी रे माया; अंति: गुण मुनिवर जस गाए, गाथा-१०. ६८. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण. मु. नवल, हिं., पद्य, आदि: लगी लगन कहो कैसे; अंति: नायक नाभि दुलारा छै, गाथा-३. ६९. पे. नाम. पूजा स्तवन, पृ. ४२आ-४३अ, संपूर्ण. जिनपूजाफल स्तवन, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण समरी माय; अंति: ऋषभदास० तेह नर तरे, गाथा-१२. ७०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४४अ, संपूर्ण. मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: आछो रूप बन्यो वामा; अंति: दियो सुख परमाणंद को, गाथा-४. ७१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, पृ. ४४अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कृपा करो संखेसर; अंति: रंग० निज सीर नामी, गाथा-४. ७२. पे. नाम. नेम पद, पृ. ४४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती ख्याल, मा.गु., पद्य, आदि: नही करीयेजी नही; अंति: दिन अवटण किम करीएजी, गाथा-५. ७३. पे. नाम. धर्मजिन पद, पृ. ४४आ-४५अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इम करीएरेनेडो इम; अंति: अमृतसुख रंगे वरियेजी, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने दो-दो पद की एक गाथा गिनी है.) ७४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, पृ. ४५अ, संपूर्ण. मु. वल्लभकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवरजीसु लागु मारु; अंति: वल्लभ लहीई नाम, गाथा-४. ७५. पे. नाम. शांति फाग, पृ. ४५अ-४५आ, संपूर्ण. शांतिजिन फाग, म. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजी के दरबार चाल; अंति: जिन कहे जेजेकार, गाथा-९. २२४४४. सझाय, स्तवन, गीत आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, प्रले. मु. शिवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४१०.५, १२४२७-३३). १. पे. नाम. पांचमीनी सझाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्यजिणेसर; अंति: संघ सकल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. २. पे. नाम. पंचासरपार्श्व स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेश्वरु; अंति: अक्षय अविचल राज, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्व गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत-वरकाणा, रत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: श्रीवरकाणा पासजिणेसर; अंति: दोहग सवि मिट्या रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. मु. शिवसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर जिणेसर; अंति: शिवसागर इम उच्चरे रे, ढाल-३. ५. पे. नाम. सवैयौ, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची खेतलावीर सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: चामुंडासुत नमोय; अंति: बेल सुखसंपत वाई है, पद-१. २२४४५. स्तवन, सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, दे., (२०x१०.५, ८x१८-२३). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: म्हे तो नजरा रहस्यां; अंति: जय जय श्रीमहावीर, गाथा-७. २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभु; अंति: वंछित चढत परिणाम रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: तरन तरन तारन तारन; अंति: दीजे मोक्ष निसानी रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. परनारी सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. परनारीपरिहार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: नारी रूपे दिवडोजी; अंति: नारी रुपन जोय, गाथा-८. ५. पे. नाम. धना सज्झाय, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरबतीसी कामणी धना; अंति: धनाया जनही सुरकार, गाथा-१५. २२४४७. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५७, फाल्गुन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१ से २)=६, कुल पे. १२, जैदे., (२३४११, १२४२६-२८). १. पे. नाम. ऋषभदेव शेव्रुजय स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. आदिजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: इम मोहनविजय गुण गाया, गाथा-५, (पू.वि. अंतिम गाथा का अंतिम पद मात्र है.) २. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वहाला मेह बपियडा; अंति: सुपासने वंदो हो राज, गाथा-७. ३. पे. नाम. शीतलनाथ जिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सितलजिननी सेवना; अंति: तु प्राण आधार हो, गाथा-७. ४. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ जिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मुझ स्याने छेडे; अंति: जिनगुण स्तुति लटकाली, गाथा-७. ५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ मंडन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेश्वर सेवना; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. ६. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिन अंतरजामी; अंति: रस आनंदस्यु चाखे, गाथा-९. ७. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित दाता समकित; अंति: पभणे रसना पावन कीधी, गाथा-७. ८. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अकल कला अविरुद्ध; अंति: भूख्यो उमाहे घणोजी, गाथा-७. ९. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुथी बांधी प्रीत; अंति: मुजने वालो जिनवर एह, गाथा-७. १०. पे. नाम. पद्मजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम रस भीनो म्हारो; अंति: पूरे सकल जगीश हो, गाथा-७. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: आसरो एए संसार रे, गाथा-७. १२. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हा रे मारे धरमजिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ तक है.) २२४४८. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, ले.स्थल. सिरोही, प्रले. मु. गणपतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१०, ११४२९-३१). १.पे. नाम. आढारनातरारी सझाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलां ते समरूं पास; अंति: काई हेतविजय गुण गाय, ढाल-३, गाथा-३६. २. पे. नाम. मधुबिंदुआ सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. मधुबिंद सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसति मुझरे मात; अंति: परमसुख इम मांगीये, गाथा-१०. ३. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणीदंपती सिझाय, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच; अंति: कुशल नित घर अवतरे, ढाल-३, गाथा-२५. ४. पे. नाम. आत्म पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, मु. अखेमल, पुहिं., पद्य, आदि: हे जुग में खबर नही; अंति: जिनकु विनति अखेमल की, गाथा-८. २२४४९. सझाय, स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ६, प्र.वि. पत्रांक ५ के अंत में कृति के प्रथम गाथा का एक पाद ही उपलब्ध होने से कृति संकलन नहीं किया जा सका है., दे., (२१४१०, १५४३७-४१). १. पे. नाम. औपेदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: मत ताको नार बिरानी; अंति: रतन चिंतामणि जाणी, गाथा-६. २. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं तुमारा पाय; अंति: दीठा एह प्रत्यक्ष, गाथा-६. ३. पे. नाम. इक्षुकारराजाकमलावतीराणी संबंध, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: गरभ अवधि पूरण थई; अंति: खेम भणैः कोडि कल्याण, ढाल-४. ४. पे. नाम. श्रावक शिखामणइकवीसी, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ऐडा मारीने धडा उडावै; अंति: रत्न० सुणो नरनारी ते, गाथा-२१. ५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: इखागवंसना उपना सामी; अंति: मे मुडि लागु पाय, गाथा-१३. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ऋ. मूला, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: प्रथम जिणेसर स्वाम; अंति: ऋष मूला गुण गाई, ढाल-३, गाथा-१७. २२४५०. (+) स्तवन, पद, प्रभाति, चैत्यवंदन, स्तुति, सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२६, कार्तिक शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ८१, ले.स्थल. पोसालिया, प्रले. मु. दोलतरुचि (गुरु मु. लालरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १३-१४४३५-४२). १. पे. नाम. श्रीमिधर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलुडि महाविदेह; अंति: दीजो तुम पाय सेवो, गाथा-१०. २. पे. नाम. श्रीमिधर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: मनडु तुमारो मोकलुं; अंति: समय पुरे छे साख, गाथा-१५. ३. पे. नाम. सीमिधर स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी सीमंधर; अंति: वाधे मुज मन अतिनूरो, गाथा-७. ४. पे. नाम. सेत्रुजय स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धगिरी ध्यावो; अंति: ज्ञानविमल० गुण गावे, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने दो-दो पद की एक गाथा गिनी है.) ५. पे. नाम. सेत्रुजय स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल; अंति: श्रीसिद्धाचल गायो, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर; अंति: मुजने भवसागरथी तारो, गाथा-५. ७. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो वधाइ राजा नाभि; अंति: आदीश्वर दयालरे, गाथा-६. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिनेसर विनती; अंति: वीर नमे करजोडी रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: नित नित गुण गाय के, गाथा-५. १०. पे. नाम. प्रभाति पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठोरे मारा आतमराम; अंति: वरतां सिध वधाइरे, गाथा-५. ११. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: दरसण देख तुमारा; अंति: करम अरि कुंटारा, गाथा-३. १२. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात उठि समरियै; अंति: कहे चरणां कि सेवा, गाथा-५. १३. पे. नाम. विर पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो हमारे भाग वीर; अंति: जीतचंद आणंद वधाय हे, गाथा-४. १४. पे. नाम. पार्श्व पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. रुपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मे मुख देख्यो पारस; अंति: अबे राखो मेरि लाज, गाथा-३. १५. पे. नाम. पार्श्व पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. १६. पे. नाम. शीतलजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: भले मुख देख्यो; अंति: जनम जनम को सेहरो, गाथा-४. १७. पे. नाम. पार्श्व पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. वीरविजय, पुहि., पद्य, आदि: देखो माइ अजब जोत; अंति: स्या पुरो मेरा मन की, गाथा-३. १८. पे. नाम. पार्श्व पद, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कृपा करो गोडी पास; अंति: पुरण पदवी अब पांमी, गाथा-५. १९. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. गुणसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: मीटो व्यथा हमारी; अंति: नेयण चरण तुमारी, गाथा-३. For Private And Personal use only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org २०. पे. नाम ऋषभजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. आदिजिन पद- केसरीया, मु. मुलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: केसरिया वाला जो; अंति: भवभवमां सुख लेस्ये, गाथा- ४. २१. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पंथीडा पंथ चलेगो; अंति: आवत अब तेरो आधार, गाथा-५. २२. पे. नाम. शीतलजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. दोलतरुचि, मा.गु., पद्म, आदि: तेरी सुरत बलिहारि; अंतिः भवभव दुख निवारि रे, गाथा-४, २३. पे. नाम. नेमी पद, पू. ५आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिजिन पद, मु. दोलत, मा.गु., पद्म, आदि हां जी नेम नमो निस; अंतिः तोडो दुख निपासी, गाथा - ३. २४. पे. नाम. पार्श्व पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: मेरइ ए जिन चाहिए नित; अंतिः सजी में अवर न घ्याउं, गाथा- ३. २५. पे. नाम. चंद्रप्रभु पद, पृ. ५आ - ६अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: चंदलिया संदेशो रे; अंतिः ए तुम कुण आसार, श्लोक- ५. २६. पे नाम, विरजीन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- सिरोडी, मु. बुद्धिविशाल, पुहिं., पद्य, आदि: मे वंदु तोपे; अंति: करी अरज करे मुनिंद, गाथा - ५. २७. पे. नाम. विरजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: भवोभव तुम पाय सेव हो, गाथा - ५. २८. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदिः आदिश्वर सुखकारि हो; अंतिः प्रभु आवागमन निवार, गाथा - ५. २९. पे नाम सामान्यजिन पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि देव निरंजन भव भय अंतिः जे बेठा सो तरीया है, गाथा - ३. ३०. पे नाम प्रभाति पद, पृ. ७अ संपूर्ण, साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लोक चहुद के पार; अंति: चरणकमल का दासा है, गाथा - ५. ३१. पे नाम प्रभाति पद, पृ. ७अ, संपूर्ण, - सुविधिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: वांके गढ फोज चढ़ी है; अंतिः बांधी मगाउं आठे चोर, गाथा ५. ३२. पे. नाम. पार्श्व पद, पृ. ७अ - ७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- दीवबंदर, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि सचे साहिब हो डंका; अंतिः दीपे रूपचंद तुम बंदा, १०५ गाथा - ३. ३३. पे नाम, शांति पद, पृ. ७आ, संपूर्ण, शांतिजिन पद, मु. लाभसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि भले उग्यो छे दिन अंति: अनोपम काजनो रे, गाथा- ३. ३४. पे नाम प्रभाति पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मेरा रे; अंतिः निरंजन जिन तेरा रे, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने दो-दो पद की एक गाथा गिनी है . ) ३५. पे नाम, अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: प्रह उगमते सुर जो, गाथा-५. ३६. पे. नाम, शांति स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मेरे मन में तु; अंति: ज्युं देव सकल में, गाथा - ६, (वि. प्रतिलेखक ने दो-दो पद की एक गाथा गिनी है. ) ३७. पे. नाम. पार्श्व पद, पृ. ८अ संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासकि पासकि पासकि; अंतिः प्रभुसुं लागी आसकि, गाथा-५, ३८. पे. नाम. विर स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरुआ रे गुण तुम; अंतिः तुं जीवजीवन आधारो रे, गाथा - ५. ३९. पे. नाम. विरस्तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि श्रीमहावीर जिनेश्वर; अंतिः बाह्य ग्रह्यानी लाज, गाथा- १०. ४०. पे. नाम. सिधचक्र चैत्यवंदन, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण. नवपद चैत्यवंदन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र महामंत्र; अंति: भणी वंदु बे करजोडि, गाथा - ३. ४१. पे. नाम. सीमंधर चैत्यवंदन, पृ. ९अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: वि तुम ध्यान, गाथा - ३. ४२. पे. नाम. सिधचक्र चैत्यवंदन, पृ. ९अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि पहिले पद अरिहंतनो; अंतिः शिष्य कहे कर करजोड, गाथा-६. ४३. पे नाम, शत्रुजा चैत्यवंदन, पृ. ९अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजय सिद्ध; अंतिः जिनवर करु प्रणाम, गाथा- ३. ४४. पे. नाम. पंचमी चैत्यवंदन, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा वीर; अंति: रंगविजय लहो सार, गाथा - ९. ४५. पे. नाम. अष्टमी चैत्यवंदन, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण. अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आठम तप आराधनं भाव; अंति: शुभ फल पामे तेह, गाथा ११. ४६. पे. नाम. एकादशी चैत्यवंदन, पृ. १०अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक बीरजी प्रभु अंति: शासने सफल करो अवतार, गाथा - १०. ४७. पे. नाम. चतुरदशी चैत्यवंदन, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण. सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंतिः श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक १. ४८. पे. नाम. चेत्यवंदन, पृ. १०आ, संपूर्ण. जैन संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाधा- ७. ४९. पे नाम, पार्श्व चेत्यवंदन, पृ. १० आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. दोलतरुचि, मा.गु., पद्य, आदिः पार्श्व भजो चित लाय; अंति: देव बोलतरुचि ताहरो, गाथा - ३. ५०. पे. नाम. पार्श्व चेत्यवंदन, पृ. १०आ ११अ, संपूर्ण. साधारणजिन अतिशय चैत्यवंदन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: तेषां च देहोद्भुतरूप; अंतिः त्रिंशच्च मीलिताः, श्लोक - ८. ५१. पे नाम, सिधगिरि चेत्यवंदन, पृ. १९अ ११आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only आदिजिन स्तव - शत्रुंजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि आदिजिनं वंदे गुणसदनं; अंतिः वितनोतु सतां सुखानि श्लोक-६. Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org ५२. पे. नाम. नेमि चेत्यवंदन, पृ. ११आ, संपूर्ण. नेमिजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदि: नेमिर्विशालनयनो नयनो; अंति: जिनो वा नमस्तस्मै, श्लोक - ५. ५३. पे नाम श्रीमंधर स्तुति, पृ. ११-१२अ, संपूर्ण सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुझनै; अंतिः शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा- ४. ५४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १२अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामी; अंतिः मुजने आवागमन निवार, गाथा - १. ५५. पे. नाम बीज स्तुति, पृ. १२अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७ वीजतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि अजुवाळी बीज सोहावे; अंति नंदन चंद विख्याता रे, गाथा-४, ५६. पे नाम, पार्श्व स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तुति - वरकाणा, पंन्या. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणे वर मंडण पास अंति: कमलविजय० सुखसंपदा, गाथा- ४. ५७. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्म, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंतिः निवारो संघतणा निशदिश, गाथा-४. ५८. पे नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १२आ-१३अ संपूर्ण पंचमीतिथि स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल हुआ अवतार तो, For Private And Personal Use Only गाथा- ४. ५९. पे नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: पालता सुर सानिधि करे, गाथा- ४. ६०. पे नाम चतुर्दशी स्तुति, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण. चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ६१. पे नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. १३आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., प्रा., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, लोक-४. ६२. पे. नाम बीज स्तुति, पृ. १३-१४अ संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा- ४. ६३. पे. नाम. नेमि स्तुति, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: करौ अंबिका देवियें, गाथा-४. ६४. पे. नाम विर स्तुति, पृ. १४आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर मोटो जगनाथ; अंतिः पुन्यरुचि० दोलत करे, गाथा- ४. ६५. पे. नाम. शांति स्तुति, पृ. १४आ, संपूर्ण, प्र.ले. लो. (३११) लेखण मसी अरूड बडी, शांतिजिन स्तुति - जावरापुर, मु. पुन्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकर शांतिकर; अंति: पुन्य प्रभाविका, गाथा- ४. ६६. पे. नाम. बीजनी सझाय, पृ. १५अ, संपूर्ण. वीजतिथि सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज तणे दिन दाखवु अंतिः देवनां सर्वाँ काज रे, गाया- ९. ६७. पे नाम, पंचमी सजाय, पृ. १५-१५आ, संपूर्ण Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुना हु प्रणमु; अंति: वाचकदेवनी पुरो जगीश, गाथा-५. ६८. पे. नाम. अष्टमी सजाय, पृ. १५आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरस्वती चरणे नमी; अंति: वाचक देव सुसीस, गाथा-७. ६९. पे. नाम. एकादशी सजाय, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: अविचल लाहो लहेसे, गाथा-७. ७०. पे. नाम. नंदिषेण सजाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो रहो वालहा; अंति: रूपविजय जयकार लाल रे, गाथा-५. ७१. पे. नाम. रुषम सजाय, पृ. १६आ, संपूर्ण. रुक्मिणी सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामो गाम; अंति: जाय राजविजय रंगे भणे, गाथा-१४. ७२. पे. नाम. सिखामण सजाय, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परस्त्री त्याग, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नर चतुर सुजाण परनारी; अंति: तो चाखो अनुभव सुखडली, गाथा-५. ७३. पे. नाम. वनमाली सजाय, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. वनमाली सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: वनमाली घणिय करे माली; अंति: राखजो रखे खोड लगाई, गाथा-११. ७४. पे. नाम. पांचइद्रि सजाय, पृ. १७आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कामे अंध गजराज अगाज; अंति: प्रबंध लहो सुख सासता, गाथा-६. ७५. पे. नाम. सप्तवसन सजाय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु; अंति: जयरंग रंगे० जय कहे, गाथा-९. ७६. पे. नाम. बाहुबल सझाय, पृ. १८आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसु० प्रणमे पाय रे, गाथा-७. ७७. पे. नाम. हतोपदेस सीज्झाय, पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: सुधो धर्म मकिस विनय; अंति: सो चिरकाले नंदोरे, गाथा-९. ७८. पे. नाम. निद्या उपर सज्झाय, पृ. १९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: निद्या म किजे केहनी; अंति: समयसुंदर कहे इम रे, गाथा-५. ७९. पे. नाम. लोभ उपर सझाय, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: पामे सयल जगीस, गाथा-७. ८०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, पृ. १९आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड मत कर रे; अंति: ऋद्धि कोटानुकोटी पार, गाथा-३. ८१. पे. नाम. पुन्य कवित, पृ. १९आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १०९ पुण्य कवित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य थकि संपजे धवल; अंति: पुन्ये सहु पुगे रुलि, गाथा-२. २२४५१. (+) स्तवन, पद आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१०.५, १३-१६४३८-४८). १. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संखेसर पासजिणेसर भेट; अंति: जिनचंद सयलरिपु जीपतो, गाथा-५. २. पे. नाम. गोडीजीपार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, श्रीचंद, पुहि., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: म्हारी सफल फली मन आस, गाथा-९. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर मुझ विनती; अंति: इम जपे जिनराज रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनप्रतिमा हो जिन; अंति: जिनप्रतिमासु नेह, गाथा-७. ५. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. ६. पे. नाम. नाकोडापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: कहै गुण जोडो, गाथा-८. ७. पे. नाम. गउडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: गाजे गौडी राजीयो; अंति: तुठौ आपइ तुरतइ नामकि, गाथा-९. ८. पे. नाम. पार्श्वदेव स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. फलवर्धिपार्श्वजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: फलवर्द्धिमंडण पास; अंति: सुंदर जात्रा प्रमाण, गाथा-१०. ९. पे. नाम. गउडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ग. जसवंतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पारकरपुर में दीपतौ; अंति: जसवंत गणि प्रणमेव, गाथा-७. १०. पे. नाम. गउडीपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ग. जसवंतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोडीपुरवर सोभतो तिहा; अंति: हो भावना जसवंत कि, गाथा-७. ११. पे. नाम. फलवधीपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. सहजकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल अवतार मनोरथ; अंति: ए भवभयथी मुझ छोड, गाथा-५. १२. पे. नाम. दूहो, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. १३. पे. नाम. पार्श्वप्रभूस्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: मन मोहनगारो साम सहि; अंति: सफल आपणउ गिणे जी रे, गाथा-१०. १४. पे. नाम. अयवंतीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तवन, गच्छा. जिणचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल अवतार फली; अंति: जुहार्या गहगही, गाथा-८. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत-गोडीजी, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. धर्मसीह, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगउडी पार्श्वनाथ; अंति: धर्मसीह गोडीचौ जिणंद, गाथा-४. १६. पे. नाम. जिनदत्तसूरि सवैया, पृ. ४आ, संपूर्ण.. मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: बावन वीर कीए अपने वस; अंति: जिणदत्त की एक दुहाई, सवैया-१. १७. पे. नाम. जिनदत्तसूरि सवैया, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुरलोक त्रीया नरमंडल; अंति: किल्लीय दिल्लीय कि, सवैया-१. १८. पे. नाम. गिरनारमंडण नेमिनाथ स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-गिरनारतीर्थ, ग. जसवंतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि: नेमिसर अरिहंतना पद; अंति: विनय जसवंत कहत रे, ढाल-२. १९. पे. नाम. गौडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. वसता, रा., पद्य, आदि: जोर बन्यो बन्यो; अंति: राज मानज्यो नितमेव, गाथा-८. २०. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आदिजिन देव दीठे; अंति: तोने नमुंबे करजोड, गाथा-९. २१. पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: पासजिणेसर पूजीयैरे; अंति: उदय दिनदिन अतिइ हां, गाथा-८. २२. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जसवंत, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: भवियां वांदो भावसुं; अंति: है आदेस करंत कि, गाथा-९. २३. पे. नाम. पद्मप्रभजिन धमाल, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे रदय पदमप्रभु; अंति: लहत है अंखे निधान, गाथा-६. २४. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व लोद्रपुरातीर्थ स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन चिंतामणि, म. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उछरंग धर मनमाहि; अंति: दुखदोहग जाये टलीजी, गाथा-९. २५. पे. नाम. पार्श्वदेव स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभली साहीब विनती; अंति: चरणकमलनी सेव कि, गाथा-९. २६. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. सामान्यजिन स्तुति, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: जगन्नाथने ते नमै हाथ; अंति: नित्ये जपो जैनवाणी, गाथा-११. २७. पे. नाम. पुन्य स्तव, पृ. ७आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुंम कर; अंति: ऋद्धि कोटानुकोटी, गाथा-३. २८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: नीलकमल दल सामली रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) २२४५३. अष्टपाहुड-पाहुड संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदे., (२१.५४१०.५, ९४३०). For Private And Personal use only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टप्राभृत, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, , पू. वि. दर्शनपाहुड, चरणपाहुड, सुत्तपाहुड, बोहणत्थपाहुड व भावपाहुड है. ) ५, २२४५४. (+) विचार संग्रह व तपविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३१, पौष शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. ले. स्थल. मकसूदाबाद, प्रले. मु. हुकमिचंद (गुरु मु. विनवसागर, मलधारी पुनियमिया पक्ष बृहत् विजयगच्छे); राज्यकाल रा. धनपतसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित. वे. (२३४११, ११४२९-३२). " १. पे. नाम. १४ नेम सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. आवक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्म, आदि: सच्चित्त दव्व विगई अंतिः दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा १. श्रावक १४ नियम गाथा- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त सर्व वसन सचित; अंति: आहारादिक पाण आदि. २. पे. नाम. नववाडि सीलव्रत की पृ. १आ - २आ, संपूर्ण. शीयल नववाड विचार, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: वसहि कह निसिज्जेंदिय; अंति: तो मुक्ति सुख पामीजइ. ३. पे. नाम. श्रावक बारहव्रत, पृ. २आ, संपूर्ण श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात अतिचार; अंति: सो साधुकुं आहार दीजइ. ४. पे नाम, आवक की ११ प्रतिमा विधि, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दरसन प्रतिमा१ ज्ञान; अंति: अपणै निमित्त न करावइ. ५. पे नाम. तपविधिसंग्रह, पृ. ३अ-२०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नांदल मांडीजे; अंति: बैसी नमुत्थुणं कहीजै. २२४५५. स्तवन, सज्झाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. २४, दे., (२२.५X१०.५, ११- १५X३२-३७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सेरीमाहे रमतो दीठो; अंति: अमचो भाग्य उघडीयो रे, गाथा - ९. २. पे. नाम. पंचमीसौभाग्यनुं स्तवन, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पासजिणेसर अंति: गुणविजय रंगे गणि, दाल-६, ३. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म अंतिः कांति सुख पाये घणा, ढाल - २, १११ गाथा - २४. ४. पे नाम, मौनएकादसी स्तवन, पृ. ६अ ९आ, संपूर्ण मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि द्वारिकानवरी समोसर्य; अंतिः घणो पामी मंगल घणो, ढाल - ३. ५. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण, नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पिउजी रे पिउजी नाम; अंति: नेम भेटे आशा फली, गाथा - ७. ६. पे. नाम. चेलणानी सज्झाय, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा - ७. ७. पे. नाम. रुक्मिणी सज्झाय, पृ. १०आ - ११ अ, संपूर्ण. मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामो गाम नेमि; अंति: जाइ राजविजे रंगे भणे, गाथा - १४. ८. पे नाम, पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. ११-१२आ, संपूर्ण ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि सकल मनोरथ पूरवै रे; अंतिः कहे० धन अवतार रे, ढाल - ६. For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: करकंडुने करु वंदणा; अंति: प्रणम्या पातक जाय रे, गाथा-५. १०. पे. नाम. नंदिषेणऋषिनी सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगही नगरीनो वासी; अंति: नही कोई तोले हों, ढाल-३, गाथा-१३. ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव वारु छं मोरा; अंति: भणे जीव आवागमण निवार, गाथा-५. १२. पे. नाम. रहनेमि सज्झाय, पृ. १४अ, संपूर्ण. रथनेमि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि; अंति: निर्मल सुंदर देह रे, गाथा-८. १३. पे. नाम. झाझरियारषीनी सझाय, पृ. १४आ-१६आ, संपूर्ण. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: मानविजय जयकार रे, ढाल-४, (पू.वि. प्रतिलेखक ने रचनाप्रशस्ति की अंतिम कुछेक गाथाएँ नहीं लिखी है.) १४. पे. नाम. धनासालभद्रनी सझाय, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. शालिभद्रधन्ना सज्झाय, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: अजिया मुनि० वेभारगिर; अंति: पाम्या भवजल तीर रे, गाथा-७. १५. पे. नाम. स्त्रीने कागळ लखवाना दहा, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीसुरत वसे; अंति: धरो बाह ग्रहे की लाज, गाथा-४०. १६. पे. नाम. पुरुषने कागळ लखवाना दूहा, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीआनंदपुर; अंति: कर तपे कुच ग्रहे न, गाथा-२१. १७. पे. नाम. इग्यारसनी सझाय, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादसी रे नणदल; अंति: अविचल लीला वरसे, गाथा-७. १८. पे. नाम. पंचमीनुं स्तवन, पृ. १९आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. १९. पे. नाम. कर्मउपर सझाय, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा काई; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-१०. २०. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: विर कहे गौतम सुणो; अंति: भाख्या वयण रसाल, गाथा-२१, (वि. प्रतिलेखक ने कर्तानाम नहीं लिखा है.) २१. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २०आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मोहन वेलडीजी; अंति: ऋषभदास गुण गेलडीजी, गाथा-६. २२. पे. नाम. नेमजी स्तवन, पृ. २१अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय केरो कुमर; अंति: जपे मेघकुं आणंदकारी, गाथा-१०. २३. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. मु. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: नित्य होजो प्रणाम, गाथा-७. २४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, पृ. २१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आज तो बधाइ राजा नाभि; अंति: आदेसर दीनदयाल रे, गाथा-६. २२४५६. सज्झाय, स्तवन, सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ८, जैदे., (२२.५४१०.५, १०४२९-३३). For Private And Personal use only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. सीख सवासी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, औपदेशिक सवैया, उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरु उपदेश अंतिः श्रीधर्मसी उवज्झाय, गाथा- ३६. २. पे. नाम. श्रावकनी करणी विधि, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरो; अंति: धर्मसी० लहै श्रीकार, गाथा-२५. ३. पे. नाम, गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सामजी, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण देज्यो हो राज ; अंतिः शिष्य सामौ भणै, गाथा - ८. ४. पे. नाम. तिमरीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- तिमरी, मु. सामजी, मा.गु., पद्य, आदि: तिमरी पारस प्रभु; अंति: सामजी भावना भाइ जी, गाथा - ६. ५. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. ६अ - ७आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पा. धर्मसिंह, प्रा., पद्य, आदि: कामितसंपय करणं तिम; अंतिः धर्मसी उवज्झाय कहि, गाथा - ११. ६. पे. नाम. हितोपदेस सझाय, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन चेत रे चलि मां; अंति: धरम सीख चित्त धरज्यी, गाथा - १५. ७. पे. नाम. जिनदत्तसूरि सवैया, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि बावन वीर कीए अपने वस; अंतिः जिणदत्त की एक दुहाई, सवैया- १. ८. पे. नाम. जिनकुशलसूरि सवैया, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. धर्मसीह, पुहिं., पद्य, आदि: राजै थूभ ठौर ठौर ऐसौ; अंति: नाम युं कहायौ है, गाथा - २. २२४५८. पद व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. १३, दे., ( २४.५X१०.५, १२x२६-३१). १. पे. नाम. विर पद, पृ. १अ संपूर्ण वि. १९२४, मार्गशीर्ष शुरू, १०, ले. स्थल सीलोवर. महावीरजिन स्तवन- सिरोडी, मु. बुद्धिविशाल, पुहिं., पद्य, आदि: मे वंदु तोपे; अंति: करी अरज करे मुनिंद, गाथा - ५. २. पे. नाम, उपधान स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उपधान सज्झाय, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो भविका उपधान; अंति: लहस्ये शिवपुर ठाय जी, गाथा - ११. ३. पे. नाम औपदेशिक स्वाध्याय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मन भमरा कांड; अंति: लेखो अरिहंत हाथ, गाधा - ९. ४. पे. नाम. हीतशिख्या स्वाध्याय, प्र. २आ-३अ, संपूर्ण. कर्म सज्झाय, मु. दान, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदुःख सरज्यां पामी; अंति: धर्म सदा सुखकार रे, गाथा - ९. ५. पे. नाम. इलाची स्वाध्याय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः नाम इलापुत्र जाणीए; अंति; लब्धिविजय गुण गाय, गाथा - ९. ६. पे. नाम. जंबूस्वामी स्वाध्याय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसे; अंति: सिद्धिवि० सुपसाया रे, ११३ गाथा - १६. ७. पे. नाम. शालिभद्र स्वाध्याय, पृ. ४आ ५आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल तणे भवे; अंतिः सहजसुंदरनी वाणी, गाथा - १७. For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८. पे. नाम. कर्म उपरि स्वाध्याय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो नमो कर्म राजा रे, गाथा-१८. ९. पे. नाम. दान स्वाध्याय, पृ. ६आ, संपूर्ण. दान सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रसीया राचौ दान तणे; अंति: तिलकविजय जयकार, गाथा-५. १०. पे. नाम. थूलभद्र स्वाध्याय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही रे; अंति: तेजहर्षने तुं तार रे, गाथा-७. ११. पे. नाम. रहनेमजी स्वाध्याय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राजिमती नेम भणी चाली; अंति: कहे जिनहर्ष त्रिकाल, गाथा-९. १२. पे. नाम. दान उपरि स्वाध्याय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण, ले.स्थल. विंझोवा, प्रले. मु. विनीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. दान सज्झाय, मु. जगमाल, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीवदान जदीजीइं; अंति: भणे दान द्यो रे रसाल, गाथा-५. १३. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. ८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चोमासे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) २२४५९. (-) छंद, सज्झाय, पद, व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. १४-४(५ से ७,११)=१०, कुल पे. १०, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., गुटका, (२३४११.५, ३०x१२-१५). १.पे. नाम. वीसहथीभवानीजीरोसंद, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, वि. १८४८, पौष कृष्ण, ११, ले.स्थल. रांमसीण, प्रले. मु. रामचंद (गुरु पं. कपूरविजय); पठ. पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. भवानीदेवी छंद-वीसहथी, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार अथाह अपार बावन; अंति: उणत मेटे इश्वरी, गाथा-६५. २. पे. नाम. थूलिभद्र स्वाध्याय, पृ. ८अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८४८, आश्विन कृष्ण, २, ले.स्थल. कालंद्रीनगर, प्रले. मु. भुधर (गुरु पं. आणंदविजय); पठ. पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: मनोरथ सघला फल्या रे, ढाल-९, (पू.वि. ढाल-७ से है.) ३. पे. नाम. पुन्य सझाय, पृ. १०आ, संपूर्ण.. पुण्य पद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुम कर रे; अंति: रिद्धि कोटानुकोटी, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हक मरना हक जानां; अंति: तुमे साहिब जाना रे, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पद संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६. पे. नाम. जिनबल विचार पद, पृ. १२अ, संपूर्ण.. जिनबल विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वीर्य बोलु; अंति: अग्र की वीर्य हुतो, गाथा-१. ७. पे. नाम. दसानभद्र सजाय, पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण. दशार्णभद्रराजा सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: भणे लालविजय निशदिश, गाथा-९. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अब चलु देखे वामाजी; अंति: गोडी प्रभु दिनदयाला, गाथा-३. ९. पे. नाम. छ दर्शन प्रबोध स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ओरन से रंग न्यारा; अंति: तो प्रीत तुमारी है, गाथा-८. For Private And Personal use only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ११५ १०. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. कालंद्रीनगर, प्रले. पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीमहावीरजी प्रसादात्. दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २२४६२. (+) सज्झाय संग्रह, स्तोत्र, चौपाई व बीवीगहणाकथन, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१६)=१८, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १४४३७-३९). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना चौढालियो, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. क्र. सांवतराम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंतिकरण संतीसरू; अंति: पभणी ढाल आनंदो जी, ढाल-४. २. पे. नाम. कौरवपांडव पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. कौरव-पांडव पद, मा.गु., पद्य, आदि: मानो वचन हमारो हो; अंति: नही तुम्है नारो, गाथा-६. ३. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. कवित संग्रह , पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कवित-२.) ४. पे. नाम. चक्रेश्वरी स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रभीमे ललितवर; अंति: चक्रदेव्या स्तवंति, श्लोक-९. ५. पे. नाम. मदनसेनचित्रसेन चउपइ, पृ. ५अ-१२अ, संपूर्ण. मदनसेन-चित्रसेन चौपाई,ऋ. सांवतराम, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: वंदु आदि जिणंदने चरम; अंति: गाया पूरी मनरी आसे, ढाल-८. ६. पे. नाम. वंकचूल चोढालीयो, पृ. १२अ-१५अ, संपूर्ण. वंकचूल चौढालियो, मु. फतेचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: पुर हथिणापति वंदीयै; अंति: फतेचंद कहे इम __ वाण ए, ढाल-४. ७. पे. नाम. कामदेवश्रावकनी सिज्झाय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन इंद्र प्रसंसी; अंति: जी कुसालचंद प्रकाश, गाथा-१७. ८. पे. नाम. औपदेशिक होरी, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: जानत है जिनराज सकल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ९. पे. नाम. रामायणगत प्रसंग, पृ. १७अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. सीताजी को वापस करने के संदर्भ में विभीषण आदि द्वारा रावण को समझाने का प्रयास व युद्ध पूर्व का वर्णन. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०. पे. नाम. बीबीगहणाकथन, पृ. १७आ-१९अ, संपूर्ण. बीबीगहणाकथन सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: सहिर जिहानाबाद सिरै; अंति: कही सो मेरा सपना है, सवैया-८. २२४६३. (+) प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-४(१ से ४)=८, कुल पे. २३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४३०-३९). १. पे. नाम. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, पृ. ५अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: करेमि काउसगं. २. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी, श्लोक-४. ३. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तिअहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणे सुसया, गाथा-४. ४. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ५. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि सेत्तुंजै मंडण; अंति: सूरि तुम्ह पाय सेवता, गाथा-४. ६. पे. नाम. वीसविहरमान स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. ७. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ८. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंति: यच्छतात् वः सदा, श्लोक-४. ९. पे. नाम. शृंखलाबद्ध द्वितीया स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति-शृंखलाबद्ध, सं., पद्य, आदि: सेवा पुरुसनासीर; अंति: भारत्या यावत् प्रशतय, श्लोक-४. १०. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति , मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: तस विघन दूरे हरे, गाथा-४. ११. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलबंध, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: सद्बुद्धिं वैदुष्यं, श्लोक-४. १३. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. १४. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. १५. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. १६. पे. नाम. फलोद्धिपार्श्व स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तुति-फलवर्द्धि, आ. जिनसिंहसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: परतापूरण चिंताचूरण; अंति: विघन हरो नितमेव, गाथा-४. १७. पे. नाम. स्वयंभूपार्श्व स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-स्वयंभू, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: विंतर इंद बत्तीस भणी; अंति: कर घरिघरि सुख संतान, गाथा-४. १८. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: शार्दूलविक्रीडितं, श्लोक-४. १९. पे. नाम. नेमि स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: करो अंबिका देवीये, गाथा-४. २०. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: पमज्जनशस्तनिजाघः, श्लोक-४. २१. पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. २२. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-४. २३. पे. नाम. जिनदत्तसूरिस्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: दासानुदासा इव सर्व; अंति: प्रधानो जिणदत्तसूरि, श्लोक-१. For Private And Personal use only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २२४६४. स्तवन, सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-३ (१ से ३) -८, कुल पे. १६, वे., (२५.५x१०.५, १५X४४-४९). १. पे. नाम. सीलवती सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. शीलनववाड सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः रुडा पालज्यो जी साध, गाथा - ३२, (पू. वि. गाथा - २८ अपूर्ण तक नहीं है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम, मेघकुमर स्वाध्याय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: संजम लेई चित चिंतवे; अंति: त्रिविध सीस नमाय, गाथा - १४. ३. पे. नाम. रेवंती स्वाध्याय, पृ. ५अ, संपूर्ण. रेवतीश्राविका सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासण बैठी अंति: उचरै दानै जयजयकार रे, गाथा - १०. ४. पे. नाम. पार्श्व तवन, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीराय, मा.गु., पद्य, आदि पासजिनेसर पूरण आसा; अंतिः श्रीसंघकुं मंगल करो, गाथा- १३. ५. पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरिहंतदेवा; अंति: मनवंछित फल निहचे करो, गाथा- १४. ११० ६. पे नाम, संति तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण, शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीशांति जिणेसर अंति: सिद्ध श्रीसंघ घर, गाथा- १३. ७. पे नाम, उपदेस स्वाध्याय, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाब, मु. भुधर, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनगुरु स्वामी; अंति: निर्भय कीजीए जी, गाथा - १८. ८. पे. नाम. उपदेस स्वाध्याय, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि मनुष्य जन्म मिल्यो; अंतिः लीधो संजम भार रे, गाथा-३२. ९. पे. नाम. चोदावोल स्वाध्याय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. १४ बोल सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्र भगोती शतक दूसर; अंतिः रायचंद० कीधी जोड हो, गाथा - १६. १४. पे. नाम, उपदेस स्वाध्याय पू. १०-११अ, संपूर्ण. " गाथा - १७. १०. पे नाम, चतुवसती तवन, पृ. ८अ ९अ, संपूर्ण, २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ कीजे; अंति: भक्ति द्यो कंथ मेरे, गावा- ३१. ११. पे. नाम. थूलभद्र स्वाध्याय, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, आ. रत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि वेश्या उभी विनवै रे; अंतिः तुम भला कियो भवअंत, गाथा - ११. १२. पे. नाम. सुगुरुपचीसी, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण. सुगुरुपच्चीशी सज्झाव, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः सुगुर पिछाणो इण आचार; अंतिः चितमै हरष उरंग जी, गाथा - २५, (वि. कर्तानाम अशुद्ध दिया गया है.) १३. पे. नाम. नववाडि स्वाध्याय पु. १०अ १०आ, संपूर्ण. " शीलनववाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पशु पंडग तणी रे; अंतिः नववाडिसुं रंग के, जीवदया सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीवदया पालज्यो; अंति चाहो रे मोक्ष रे जी, गाथा - १३. १५. पे. नाम. राजुल स्वाध्याय, पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only मराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि जवि नकसि भवन सूंठाढी; अंतिः मनवंछित फल ही पावै, गाथा - २१. १६. पे. नाम. साहजहां केदवर्णन पद, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शाहजहां केद वर्णन पद, पुहिं., पद्य, आदि: ए सुनो वर आजि तेरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ८ तक है.) Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२४६५. स्तवन संग्रह व दशवैकालिकसूत्र सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८-२३ (१ से २२, २६) = ५, कुल पे. ५, दे., (२५X१०.५, १४४४७). १. पे नाम. जिनेश्वरदेवजी का पंचकल्याण, पृ. २३अ - २५आ, संपूर्ण, पंचकल्याणक स्तवन, मु. रूपचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: पणमवि पंच परम गुरु; अंति: जिनदेव चौ संघहि जयो, ढाल - ५, गाथा - २५. २. पे. नाम. शतिनाथ स्तवन, पृ. २७अ - २७आ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंतिः वंछित फल निच्चै पावै, गाथा - २२, (पू.वि. गाथा- ४ अपूर्ण तक नहीं है. ) ३. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. २७आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु अरज करी; अंति: अब तो उद्धार मोहि, ४. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. २७-२८अ संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात सुमति मोहि; अंति: करो दुख पामर कुं, गाथा - ७. ५. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र की सज्झाय, पृ. २८अ - २८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवेकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलिक महिमा निलो रे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - ४ गाथा- २ अपूर्ण तक है. ) गाथा - ११. २२४६६. स्नात्र विधि पदचौवीसी व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९उ, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ७, दे., ( २४४१०.५, ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: म्हारे गुरु म्हानुं अंति: सहजे व्याध टली, गाथा- ४. ४. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ९अ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११- १२४३३-३६). १. पे. नाम. स्नात्र विधि, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा सविधि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: जयो सयल सुरासुर नमिय; अंति: टीकी फूल चढावीजै. २. पे. नाम. पदचौवीसी, पृ. ५अ - ९अ, संपूर्ण, वि. १८८१ शुक्ल, १, रविवार, ले. स्थल. देसणोक. जनपदचौवीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: ऋषभ जिनंदा आणंदकंद; अंतिः चौवीसुं स्तुति कीधी, पद- २४. गाथा ७६. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: यूंही जनम गमायो भेख; अंति: ग्यानकौ मरम न पायो, गाथा- ४. ५. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि पंथीडा पंथ चलेगो; अंतिः मगसी अब तेरो आधार, गाथा ५. - " ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पं., पद्य, आदि देखो कुडी दुनियांदा अंतिः आनंदघन० लिया जगसारा, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, आदि: जगत में कोण किस को; अंतिः धन्यासी गायो आतमगीत, गाथा ४. २२४६७. बनारसी विलास, पद संग्रह, जन्मपत्री व पार्श्वजिन स्तव, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३- २(१ से २)=११, कुल पे. ११, ले. स्थल. योधनगर, प्रले. पं. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२x११, १९ - २०x३६-३९). १. पे, नाम, वर्ण विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण, औपदेशिक पद - ४ वर्ण, पुहिं., पद्य, आदि: जो निहचे मारग गहे; अंति: जो मिश्रित परिनाम, गाथा - ५. २. पे, नाम, दश बोल, पृ. ३अ, संपूर्ण. १० बोल पद, पुहिं., पद्य, आदि जिन की भांति कहो; अंति: कहीये जिनमत सोय, गाथा - १२. ३. पे. नाम. कर्मछतीसी, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण, कर्मछत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदिः परम निरंजन परमगुरु अंति: मूड बढावे श्रिष्टि, गाधा - ३७. For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ११९ ४. पे. नाम. ध्यानबतीसी, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. ध्यानबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यानसरूप अनंतगुन; अंति: मति यथाशक्ति परमान, गाथा-३४. ५.पे. नाम. अध्यातमबतीसी, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. अध्यात्मबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: शुद्ध वचन सदगुरु; अंति: परगाससौ आवागमन न होइ, गाथा-३२. ६. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिन भाषित भारती; अंति: बनारसी० अविचल मोक्ष, गाथा-३२. ७. पे. नाम. तेरहकाठिया, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. १३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जे वट पारे वाट मै; अंति: दसा कहीयै तेरह तिन, गाथा-१७, (वि. कर्तानाम वाली गाथा नहीं लिखी गई है.) ८. पे. नाम. बासठिमार्गना, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. ६२ मार्गणा विधान, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: वंदौ देव जुगादि जिण; अंति: वनारसी कीजै मोख उपाउ, गाथा-२८. ९. पे. नाम. कर्मप्रकृति, पृ. ८अ-१३अ, संपूर्ण. कर्मप्रकृति विधान, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७००, आदि: परमशंकर परमभगवान परम; अंति: तव यह भयो सिद्धत, गाथा-१७४. १०. पे. नाम. कल्कीराजा जन्मपत्री, पृ. १३आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तवन, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: शिवसुंदरसौख्यभरम्, श्लोक-७. २२४६८. गुहली, भास, स्तवन, चैत्यवंदन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. १९, पठ. श्रावि. घुनीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४११, १३४३८-४२). १.पे. नाम. गुणसागरसूरि गुंहली, पृ. १अ, संपूर्ण. गुणसागरसूरि गहुंली, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: सोल वरसें संयम लिओ; अंति: सुणि पामें शिवराज, गाथा-७. २. पे. नाम. महावीरजिन गुंहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुली, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चक्र चलें आकाशमा; अंति: पद्मविजय होय शुद्ध, गाथा-६. ३. पे. नाम. गौतमस्वामीगणधर गंहली. प. १आ-२अ. संपूर्ण. गौतमस्वामीगणधर गहंली, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तियाम वनखंड मझारि; अंति: पद पद्म वधावे तो, गाथा-७. ४. पे. नाम. सुधर्मास्वामीगणधर गुहली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामीगणधर गहुंली, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम गणधर वीरनारे; अंति: करता लहे शिवठाम रे, गाथा-७. ५. पे. नाम. श्राविका गुहली, पृ. २आ, संपूर्ण. श्राविका गहंली, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रूडीने रढियाली रे; अंति: पद्म कहे अमीअसींचाय, गाथा-७. ६. पे. नाम. महावीरजिन गुंहली, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुंली, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीतभय पाटण वीरजी; अंति: तस पद पद्म नमो नित, गाथा-५. ७. पे. नाम. साधु गुंहली, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुगुण गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: वीर पटोधर विचरता जी; अंति: जग कोडि कल्याण कि, गाथा-८. ८. पे. नाम. सुधर्मास्वामीगणधर गुंहली, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामीगणधर गहुंली, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: सोहमस्वामी समोसर्या; अंति: हंसथी मोहन मंगलमाल, गाथा-७. ९. पे. नाम. सुधर्मास्वामीगणधर गुंहली, पृ. ४अ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामीगणधर गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: चोनाणी चोखे चित्ते; अंति: लहे सुख श्रीकार हो, गाथा-७. १०. पे. नाम. केशीगौतमगणधर गुंहली, पृ. ४आ, संपूर्ण. केशी गौतमगणधर गहुँली, मा.गु., पद्य, आदि: सावथी नयरी उद्यानमा; अंति: करी गुहली रंगरसाल रे, गाथा-७. ११. पे. नाम. वासक्षेप भास, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: झमकारो रे मादल वाजै; अंति: जस विस्तरे परिमल खास, गाथा-३. १२. पे. नाम. आदिसरजीनी आरती, पृ. ५अ, संपूर्ण. नंदी भास, मा.गु., पद्य, आदि: वैशाख सुदि एकादशी; अंति: उछाह गीतारथ गाजे छ, गाथा-४. १३. पे. नाम. सिद्ध स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगत भूषण विगत दूषण; अंति: ध्यानथी सिद्धदर्शनं, गाथा-१३. १४. पे. नाम. शांतिनाथजीजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वसेन राय कुल; अंति: गुण गातां शिवसुख थाय, गाथा-७. १५. पे. नाम. वीशस्थानकतपचैत्यवंदन, पृ. ६अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: जगजन होय सुखकार, गाथा-३. १६. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेसर सोलमो; अंति: कीर्तिविजय गुण गाय, गाथा-६. १७. पे. नाम. सुधर्मास्वामीगणधर गहुंली, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी राजग्रहि उद्यान; अंति: कीर्ति नवनवी थाय, गाथा-७. १८. पे. नाम. महावीरजिन गुंहली, पृ. ७अ, संपूर्ण. महावीरजिन गहली, पंन्या. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयर मोरा हो वीर; अंति: ते पामे शिवपुर राज, गाथा-८. १९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ग्यानी ऐसो ग्यान; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक है.) २२४७१. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, स्तोत्र, स्तुति, रास, स्नात्रपूजा व पाक्षिकअतिचार, पूर्ण, वि. १५७४, आषाढ़ कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५४-१(१)=५३, कुल पे. १८, ले.स्थल. पत्तन, लिख. मु. धर्ममंदिर (गुरु ग. रत्नहर्ष, वडतपागच्छ); पठ. श्राव. सहसा सारिग शाह; राज्ये आ. धनरत्नसूरि (वडतपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४११.५, १२४२९-३३). १.पे. नाम. आवश्यकसूत्र-तपागच्छीय श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. २अ-११अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: देहि मे देवि सारं. २. पे. नाम. आदिनाथ प्रतिहार्याष्टक, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: नाभिरायकुल कुवलय चंद; अंति: मुक्खसुख अंगीकरई ए, गाथा-६. ३. पे. नाम. अजितनाथस्य सहजातिशय स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन-सहजातिशय, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: जियशत्तुवंस सर राय; अंति: गायइं ध्याय धन्नासाइ, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४. पे. नाम. संभवस्य कर्मक्षयजाति स्तवन, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन-कर्मक्षयजाति, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: रायजितारि मल्हारसेणा; अंतिः सव्वरोमं विय संपजइए, गाथा - ६. ५. पे. नाम. अभिनंदनस्य सुरजातातिशय स्तवन, पृ. १२-१३अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन- सुरजातातिशय, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: संवरकुल उज्जोयकर; अंतिः तिम करजे जगदीश, १२१ गाथा - ९. ६. पे. नाम, सुमतिनाथस्य वैरिनिरास स्तवन, पृ. १३अ - १३आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन- वैरीनिरसन, प्रा., मा.गु., पच, आदि: मेघराय कुलचंद सुमति; अंतिः देवपत्तं मणिदृढ आणी, गाथा - ७. ७. पे. नाम. पद्मप्रभस्य जयमाला स्तव, पृ. १३आ - १४अ, संपूर्ण. गाथा - ८. पद्मप्रभजिन स्तवन- जयमाला, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: जय धरणीधरधरवर वंश; अंति: लहु तास वरेइ, ८. पे. नाम. पार्श्वनाथ आज्ञामय स्तव, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन- आज्ञामय, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: सुपपुत्त मझ चित; अंति: आण लगइ शिवसुख फल, गाथा - ६. ९. पे. नाम. गुरु सज्झाय, पृ. १४-१५ अ, संपूर्ण. धनरत्नसूरि गीत, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि गोयमसामि पाय; अंतिः ते पामइ कल्याण सिउय गाथा - १२. १०. पे नाम. अष्टमीचतुर्दशी थुइ, पृ. १५अ - १५आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धं श्लोक-४. ११. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १५ - १६अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि समुद्रभूपालकुलप्रदीप; अंतिः तु देवी जगतः किलांबा, श्लोक-४. १२. पे नाम, आदिनाथ स्तुति, पृ. १६अ १६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंतिः शुभ्रामरीभासिता, श्लोक-४. १३. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १६आ-३२आ, संपूर्ण. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. भक्तामर स्तोत्र, अजितशांति स्तव, बृहत्शांति व नमिऊण स्तोत्र . ) १४. पे. नाम. स्नात्रपूजा संग्रह, पृ. २४अ - २९अ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंतिः कणया० पयाहिणंदितो, (वि. नवस्मरण स्तोत्र के बीच में यह कृति दी गयी है . ) १५. पे. नाम. जयतिहुयण स्तोत्र, पृ. ३२-३५आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परक्ख; अंतिः अभयदेव विन्न० आनंदिउ, गाथा-३०. १६. पे. नाम. श्राविका अतीचार, पृ. ३५आ-४२आ, संपूर्ण. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १७. पे. नाम. शीलोपदेशमाला, पृ. ४२आ - ४९अ, संपूर्ण. आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि आबालबंभवारिं नेमि; अंतिः आराहिय लहह बोहिसुहं, कथा-४३, गाथा - ११६. १८. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ४९अ - ५४अ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा - ५०. २२४७४. स्तवन, सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ७, दे., ( २२x११.५, १०x२४-२८). For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. मुनिइग्यारस गुणj, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन; अंति: जसविजय जयसिरि लही, ढाल-१२. २. पे. नाम. नववाड, पृ. ७अ-११अ, संपूर्ण. नववाड सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३. ३. पे. नाम. अढारनातरा स्वाध्याय, पृ. ११अ-१५आ, संपूर्ण. अढारनातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला ते समरूं रे; अंति: निधि होइ रे मनरंगीला, ढाल-३, (वि. इस कृति को पूर्ण किए बिना हीं दूसरी कृति प्रारंभ कर दी गयी है, बाद में इस कृति को भी अपूर्ण छोडकर पहली अपूर्ण कृति को पूर्ण की गयी है.) ४. पे. नाम. खंधकमुनि सज्झाय, पृ. १३आ-१५अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो खधक महामुनि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोत्रीस अतिशय सोहतो; अंति: लही पद्मविजय कहत, गाथा-७. ६. पे. नाम. वंशतिस्थानक नामगर्भित नम:, पृ. १५आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेले पद अरिहंत नमुं; अंति: नमतां होय सुख खाणी, गाथा-५. ७. पे. नाम. विंशतिस्थानकतप काउसग्गचैत्यवंदन, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप काउसग्ग चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस पन्नर; अंति: नमी निज कारज साधे, गाथा-५. २२४७६. १८ हजार शीलांगरथ सह यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. *पंक्त्यक्षर अनियमित है., दे., (२२४११). १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., पद्य, आदि: जे नो करंति मणसा; अंति: अहमे धमरा न परिहरेइ, गाथा-१८. १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २२४७७. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. ३३, प्रले. मु. गुमानविजय (गुरु ग. खतिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२३४११.५, १०४२६). १. पे. नाम. साधारण स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. २. पे. नाम. बीजशुक्ल स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरोमनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: विसलपुर वांदु; अंति: संघना विघन निवार, गाथा-४. ४. पे. नाम. शंतिजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-फलवर्द्धि, म. देवकुशल, रा., पद्य, आदि: फलवधीरो मंडण सांति; अंति: देवकुशलनी० सफल करे, गाथा-४. ५. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. For Private And Personal use only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १२३ ६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीई; अति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. ८. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ___ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल आठ करी जिन आगल; अंति: तपथी कोडि कल्याणजी, गाथा-४. ९. पे. नाम. कृष्णअष्टमीदिन स्तुति, पृ. ४-५अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति , मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: भय देवी दूरे हरे, गाथा-४. १०. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: करतु अंबिक देवीया, गाथा-४. ११. पे. नाम. दसमी स्तुति, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसरपास जिनेसर; अंति: धीरविजयने सुख थायजी, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिणेसर पुजा; अंति: सुखसंपत्ति हितकार, गाथा-४. १३. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: निवारो संघतणा निशदिश, गाथा-४. १४. पे. नाम. रोहिणी स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी जिनवर वासपूज; अंति: देवी लब्धिरूची जयकार, गाथा-४. १५. पे. नाम. पंचतिर्थी स्तुति, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: आदिहि आदिजिनेसर; अंति: जिनशासन कल्याणजी, गाथा-४. १६. पे. नाम. चतुर्दशीदिन स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम, श्लोक-४. १७. पे. नाम. महावीर दीवालीदिन स्तुति, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसति वर वाणी, __गाथा-४. १८. पे. नाम. शत्रुजाजीरी स्तुति, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेāजो तीरथ; अंति: पाया ऋषभदास गुणगाया, गाथा-४. १९. पे. नाम. शत्रुजय आदिजिन स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., पद्य, आदि: आगे पूरव वार निवाणुं; अंति: कारिज सिद्धि हमारीजी, गाथा-४. २०. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधर मुझनै; अंति: शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. २१. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सौधर्म देवलोक पहिलो; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. For Private And Personal use only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२. पे नाम, सास्वतीजिनप्रतिमा स्तुति, पृ. १३आ- १४अ, संपूर्ण. शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः ऋषभ चंद्रानन वंदन; अंतिः पद्मविजय नमे पायाजी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा- ४. २३. पे. नाम. शूकपंचमीदिन स्तुति, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २४. पे नाम. सुखडीडोयण आदेस्वर स्तुति, पृ. १४-१५आ, संपूर्ण आदिजिन-सुखडी ढोयण, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: तुसे देवी अंबाई, गाथा- ४. २५. पे. नाम. शूलअष्टमीदिन स्तुति, पृ. १५ आ १६अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., प्रा., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. २६. पे नाम. सवाकितदृष्टि री स्तुति, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण, आदिजिन स्तुति - नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवाजीवपुन्यपावा; अंति: चित्त धरज्यो जी, गाथा- ४. २७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १६-१७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - पौषदशमीतिथि, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जय पास देवा करु; अंति: पूरणी अ आस्या पूरणी, गाथा-४. २८. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १७ - १८आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि गौतम बोले ग्रंथ; अंतिः संघना विघन निवारी, गाथा- ४. २९. पे नाम, तीर्थमाला स्तुति, पृ. १८आ- १९अ, संपूर्ण, पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमोक्ष अंतिः संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ३०. पे नाम, सिधचक्र स्तुति, पृ. १९अ १९आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवीर जिनेसर अलबेल; अंति: न्यानविजय गुण गाय, गाथा- ४. ३१. पे नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १९आ- २०अ संपूर्ण. मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेशर अति अलवेसर; अंतिः सानिध करज्यो मायजी, गाथा-४, ३२. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २०अ - २१अ, संपूर्ण. मु. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंतिः वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा ४. ३३. पे, नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २१अ २१आ, संपूर्ण. मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि आसो चैत्र आंबिल ओली; अंतिः नितनित जयजयकारीजी, गाथा ४. २२४७९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे ८, दे., ( २४४११.५, ११x२७-३१). १. पे. नाम. जीवचार स्तवन, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण, वि. १९६०, आश्विन कृष्ण, ११, प्रले. मु. सुभागमल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य. जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि श्रीसरसती रे वरसती; अंतिः विजय पभणे आनंदकारी, ढाल ९. - २. पे. नाम, विहरमान स्तवन, पृ. ७आ-१०अ संपूर्ण विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वांदु मन सुद्ध; अंति: नेह धरी धमसी नमे, गाथा - ३६. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १०आ - ११ अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १२५ श्राव. गोरधन माली, मा.गु., पद्य, आदि: आज भलो दिन उग्यो हो; अंति: माहरी आवागमन निवार, गाथा-१०. ४. पे. नाम. आदिजिनविनती स्तवन, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण जिनवर शेजा; अंति: जिन० देजो परमानंद, गाथा-२०. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, पृ. १२आ-१५अ, संपूर्ण. उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: ए धन सासन वीर जिनवर; अंति: कीधो चउपने फलवधिपुरे, ढाल-४, गाथा-३०. ६. पे. नाम. चवदैगुणठाणा रोतवन, पृ. १५अ-१८अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: कहे एम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्वामीजी महाराज रोपंचकल्याणकरोतवन, पृ. १८अ-२२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३. ८. पे. नाम. दशपच्चखांण स्तवन, पृ. २२अ-२४आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथ नंदन नमु; अंति: रामचंद तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. २२४८०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. १५, दे., (२४४११.५, १३-१४४३६-३८). १. पे. नाम. राणपुरा को स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणपुर, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: राणपुरे मन मोहियो रे; अंति: कविजनने सुख थाय, गाथा-१५. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: मोनि संभवजिनसु; अंति: सुमति०सीस० धारीज्यै, गाथा-७. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिन सहज सुरंगा; अंति: कुशल गुण गाया रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन पास बडे धमचक्कु; अंति: विमल पसाई० वजाऊला, गाथा-६. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जगरुपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण विनवू; अंति: जपे इम जगरुप, गाथा-१२. ६. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वंछितपूरण आदि नमो; अंति: शांतिकुशल सुख थयो, गाथा-५. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी चालो; अंति: अरिहंत श्रीआदिनाथ है, गाथा-९. ८. पे. नाम. जिनप्रतिमास्थापन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनप्रतिमा हो जिन; अंति: जिनप्रतिमासु नेह, गाथा-७. ९. पे. नाम. सुपासजी रोस्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब हो साहिब मुझ; अंति: जिनहर्षने० लील विलास, गाथा-७. १०. पे. नाम. पार्श्वनाथजीस्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन १० भववर्णन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो पाय; अंति: सेवकने सुखिया करो, गाथा-१३. ११. पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो सिद्धाणं बीजे पद; अंति: सुखिया सघळा लोकरे, गाथा-८. १२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर अरिहंत महंत; अंति: देव थुण्यो जिन जगपति, गाथा-११. १३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. आ. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसर इकमनां; अंति: ज्युं सुरपति जोयके, गाथा-५. १४. पे. नाम. पद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. हितविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभुजीस्यु; अंति: भेट्या श्रीभगवंत, गाथा-१२. १५. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, पुहि., पद्य, आदि: सुजस तुमारो हो श्रवण; अंति: सफल फली मुझ आस रे, गाथा-७. २२४८१. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति संग्रह, सज्झायकरण व द्वादशावर्तवंदन विधि, संपूर्ण, वि. १८६७, पौष कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १०४३८-४०). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू., पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहताणं णमो; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल पास जिणेसर वंदिय; अंति: देव सदा सुख संपत्ति, गाथा-४. ३. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीप जिनप्रतिमा स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अनाद्यनंताघटितानि; अंति: दुरितीं श्रुतिधारिणी, श्लोक-४. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमंडण; अंति: सूरि तुम्ह पाय सेवता, गाथा-४. ५. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दया तणो सायर मुक्ति; अंति: तणै चित्त समाधि पुरै, गाथा-४. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: हुओ मे नाण धारा, गाथा-४. ८. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. आ. रत्नप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनस्य; अंति: लक्ष्मी स्वयं, श्लोक-४. ९. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. १०. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ११. पे. नाम. सप्ततीर्थ स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशेजयमुख्य; अंति: श्रीशांतिभद्रंकराः, श्लोक-४. १२. पे. नाम. सज्झायकरण विधि, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. कागज चिपकाए जाने के कारण आदिवाक्य दुर्वाच्य है. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: बोले अमुकघरे सिझातर. १३. पे. नाम. द्वादशावर्तवंदन विधि, पृ. १२आ, संपूर्ण, पे.वि. कागज चिपकाए जाने के कारण आदिवाक्य दुर्वाच्य है. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: पैसवू १ वार निकलवं. For Private And Personal use only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २२४८२. (+) गणधरअग्यारसि देववांदवानी विधि व अग्यारगणधर स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४११, १३४३७-४२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. ११ गणधर स्तुति, पृ. १अ + ६आ, संपूर्ण, पे. वि. मुख्य कृति १आ से प्रारंभ होकर ६अ में पूर्ण हुई है. इस के बाद १ अ व ६आ के खाली पत्र पर बाद में किसी लिपिकार ने यह कृति लिखी है. - सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूर्ति; अंतिः सत्वभूतां सुदेवा, स्तुति ११, श्लोक-४४ (वि. प्रथम गणधर के ४ श्लोक दिए गये हैं. बाकी के गणधर के २ से ४ श्लोक प्रतीकात्मक मात्र दिए गये हैं.) २. पे. नाम, एकादशगणधर नमस्कार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ११ गणधर नमस्कार, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर गोयम गणहर; अंति: सवे पुरउ संघ जगीस, गाथा- ११. ३. पे. नाम. एकादशिदिनसंबंधि एकादशगणधर स्तवन, पृ. २अ - ५आ, संपूर्ण. एकादशगणधर स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरजिणेसर पय पणमेवि; अंति: ते लहइ सुखसंपया, स्तवन- ११, गाथा - ५९. १२७ ४. पे, नाम, इग्यारगणधर स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. ११ गणधर स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: पुहविवसुभूइतणवं वंदे अंतिः सुहं मे भुवणमहिया, स्तुति ११, गाथा- ४४, (वि. अंतिम गणधर की ४ गाथा लिखी गयी है. बाकी के गणधर की फक्त प्रथम गाथा लिखकर २ से ४ गाथा हरएक गणधर की स्तुति में कहने के लिए बताया गया है.) २२४८३. सज्झाय, स्तुति, स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, दे., (२५.५X११, ९-११x२९-३३). १. पे. नाम. नेमराजिमती सझाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: इतरा दिन हुं जांणती; अंति: छिधुं उवीखमे रे, गाथा - २०. २. पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सीखामण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी आगल रही लेई; अंतिः वरस सोवनो जावे रे, गाथा - १४. ३. पे नाम, एकादसी स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: निवारो संघतणा निशदिश, गाथा-४. ४. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धगिरि ध्यायो; अंतिः ज्ञानविमल० गुण गावे, गाथा-८, (वि. दो-दो पद की एक गाथा गिनी गयी है. ) ५. पे. नाम. सीद्धगीरी स्तवन, पृ. ४आ-५अ संपूर्ण. पुंडरिकगणधर स्तवन, मु. ज्ञानविशाल, मा.गु., पद्य, आदि; एक दिन पुंडरीक गणधरु; अंतिः ज्ञानविशाल मनोहारीरे, गाथा - ५. २२४८४. स्तवन, सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६-२ (१५ से १६) २४, कुल पे. ३९, जैदे., (२५.५x११. १३x४२-४३ ) . १. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ कीजे; अंति: भक्ति द्यो कंघ मेरे, गाथा - ३०. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयुगमंधर धर्म; अंतिः प्रणमे लालचंद पायजी, गाथा - ५. ३. पे नाम, अनंतवीयंजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि; सुंदर रूप सुहामणो; अंतिः लालचंद री आ अरदास हो, गाथा-६, ४. पे. नाम विशालजिन स्तवन पू. ३अ संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि सामी सुहावो माहरो रे; अंतिः प्रहसम प्रणमै पाय, गाथा - ५. ५. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पृ. ३-३आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. समदविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: अरज सुनीजो जिनजी; अंति: मेडतै समदविजय जगदीस, गाथा-९. ६.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: चौदाजी कुलमें नाभिजी; अंति: कान्हजी० पार उतार, गाथा-११. ७. पे. नाम. चउदैस्वप्न रा कबित्त, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलो; अंति: दायक ए सुपनातर गाता, गाथा-१६. ८. पे. नाम. औपदेशिक कवितसंग्रह, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१६. ९. पे. नाम. मानछत्रीसी, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजे रे मानवी; अंति: एही जीतीनो डाण रे, गाथा-३७. १०. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरत मे; अंति: हुं प्रणमुं कृपानाथ, गाथा-१८. ११. पे. नाम. राम सज्झाय, पृ. ९अ-११आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: अन्य दिवस नारद रिषी; अंति: नगर अयोध्या राज, ढाल-३. १२. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. मु. पुण्यपाल, मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि: राजग्रही नगरी भली; अंति: तिण घर सदा कल्याण रे, गाथा-११. १३. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वैरागे संयम लिया हो; अंति: संयम द्यो मुझ आज, गाथा-८. १४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. सुण साहिब हो प्रभुजी; अंति: साहब सुखिया करोजी, गाथा-११. १५. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वैरागे संयम लीयो हो; अंति: हो पुरो मननी जगीस, गाथा-१३. १६. पे. नाम. सती सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सतीयांदा पेंडा निराल; अंति: मोक्ष रसाला है, गाथा-१५. १७. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. श्राव. महमद जैन, मा.गु., पद्य, आदि: तोसें कौन सरभर करइ; अंति: शरणि देवाधिदेवा, गाथा-५. १८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: लखचोरासी तुं भम्यो; अंति: करणी करो रे भाई, गाथा-१५. १९. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: पामीयो भवतणो पार, गाथा-६. २०. पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. १४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एक ही माइ तिण मुझ; अंति: अठारा नाता भा, गाथा-८. २१. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १४आ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिणराय मन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) २२. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. १७अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विमलकीरत गुण गाय, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर सोलमा; अति: स्वामी सुख अनंत, गाथा-१८. २४. पे. नाम. हरिश्चंद्रराजा सज्झाय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वचन इसा राणि प्रतें; अंति: नही सत सबल अधकार, गाथा-१८. For Private And Personal use only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org २५. पे. नाम. भक्ति पद, पृ. १८आ, संपूर्ण. कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा पिया वसइ हइ; अंति: दास कबीर० जिन सिरदार, गाथा - ७. २६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १८आ - १९अ, संपूर्ण. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदिः परमहंस कुं चेतना रे; अंति: साचो अरथ विचार, गाथा - १०. २७. पे नाम, द्रौपदीसती सज्झाय, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी वखाणीइजी; अंति: जिण भाख्यो ते सारजी, गाथा - २१. २८. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि वैद्य एक पडत अतिभारी अंति: जाइ अरु जुगजुग जीवो, गावा- ११. २९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २०आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम लोग मित्र सुत; अंति: तात चउरासी गति फिरना, गाथा - १३. ३०. पे. नाम. पांडव रास - ढाल - ४१ व ४४, पृ. २१अ - २२आ, संपूर्ण. पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण, ३१. पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. २३अ - २३आ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: कामसेना रा पुत्रसुं; अंति: लाल ते पामे भवपार रे, गाथा - १७. ३२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २३आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही राउ; अंतिः सेवे ने कर जोडी रे, गाथा - ५. ३३. पे नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. २३-२४अ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि तार किरतार संसार; अंतिः जे रहे नित्य पासे, गाधा-४. ३४. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. २४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवुं रे; अंति: रेसम विसमी महाराज रे, गाथा-५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि घर आंगण सुरतरु फल्यौ, अंतिः तुहि ज देव प्रमाण, गाथा ५. ३७. पे. नाम. अरजिन स्तवन, पृ. २४आ, संपूर्ण. ३५. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २४अ - २४आ, संपूर्ण. सुमतिजिन गीत, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कर तासुं तो प्रीत; अंति: बिरूद साचो वहे रे, गाथा-४. ३६. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. २४आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः आराधो अरनाथ अहोनिस; अंतिः जिनराज० करिस्यइ सेवा, गाथा ५. ३८. पे नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. २५अ- २६अ, संपूर्ण, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए; अंति: मेरुनंदण उवज्झाव ए, गाथा- ३२. ३९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २६अ - २६आ, संपूर्ण. मु. चारित्रसिंघ, मा.गु., पद्य, आदिः परमप्रमोद सुखाकरु; अंतिः शिवपद वास आप सासए, गाथा - १४. २२४८६. विचार व प्रकरण संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ८, ले. स्थल. वालिनगर, प्रले. मु. नित्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, ६-७X३३-३७). १. पे नाम, ३४ अतिशय गाथा सह टवार्थ, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण, ३४ अतिशय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: रय रोयसोयरहिओ हेहो; अंति: जिणंदा ण होइ इमा, गाथा - १०. ३४ अतिशय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जरारोगरहित शरीर; अंति: सगला तीर्थंकरने हुइ. २. पे नाम अष्टप्रतिहार्य गाथा सह टवार्थ, पृ. २अ, संपूर्ण १२९ ८ प्रातिहार्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: किंकिल्ले कुसमबुट्टी; अंति: जयंतु जिणपाडिहेराई, गाथा - १. ८ प्रातिहार्य गाथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अशोकवृक्ष १ कुसुम अंतिः जिन अष्टप्रतिहार्य, ३. पे. नाम. त्रयोदशकाष्टधारकावेत्रिण सह टबार्थ, पृ. २अ, संपूर्ण. १३ काठिया गाथा, प्रा., पद्य, आदि आलस मोह अवन्ना थंभा; अंतिः संसारूत्तारणं जीव, गाथा २. For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३ काठिया गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आलस १ मोह २ अवज्ञा; अंति: आगे संसार न उतरवउ. ४. पे. नाम. ३२ अनंतकाय गाथा सह टबार्थ, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सव्वाउ कंदजाई; अंति: तव्विवरीयं च पत्तेयं, गाथा- ६. ३२ अनंतकाय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वकंदनी जाति सूरण; अंति: प्रत्येक वनस्पति. ५. पे. नाम. ३२ दोष सामाइकना सह टबार्थ, पृ. २आ - ३आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पल्लत्थी अथिरासणं; अंति: वसे सव्व सुह लच्छी, गाथा - ६. सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पालखी मारी बेसे १; अंति: सर्वधन लक्ष्मी हुइ. ६. पे. नाम. गुणत्रीसभावना सह टवार्थ, पृ. ३आ - ६अ, संपूर्ण एगूणतीसी भावना, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: मुच्चह सव्व दुक्खाणं, गाथा - २९. एगूणतीसी भावना- टवार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जनममरणरूप संसार असार अंति: आपणो आपमे भावे, ७. पे. नाम. संबोधसत्तरी प्रकरण सह बालाबोध, पृ. ६अ - १२आ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा - ७२. संबोधसप्ततिका बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने तिनलोक अंतिः पामइ इहां संदेह नही. ८. पे. नाम. गौतम कुलक सह टबार्थ, पृ. १३अ १४आ, संपूर्ण. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: सुद्धा नरा अत्यपरा; अंतिः सुहं लहंति, गाधा - २०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., सं., गद्य, आदि: लुभिया मनुष्य अर्थ; अंति: भव्या सुखं लभते. २२४८७. (+) प्रकीर्णक संग्रह व भावना कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ५, प्रले. मु. तिलककीर्ति), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६.५X१०.५, १३X५३-५५). १. पे. नाम. बृहदातुरप्रत्याख्यान, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. मु. . मतिसोम (गुरु आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंतिः खयं सव्वदुक्खाणम्, For Private And Personal Use Only गाथा - ७१. २. पे नाम, भत्तपरिन्ना, पृ. ३आ-८आ, संपूर्ण, भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिकण महाइसवं महाणु; अंतिः सुक्खं लहइ मुक्खं, गाथा - १७२. ३. पे. नाम. गच्छाचार प्रकीर्णक, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. गच्छाचार प्रकीर्णक चयनित गाथासंग्रह, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीर तिअसंद अंतिः गच्छायारं स उत्तम, गाथा - ५०. ४. पे. नाम. गच्छायार, पू. १०अ १४अ, संपूर्ण. गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीर; अंति: इच्छंता हियमप्पणो, गाथा - १३७. ५. पे. नाम. भावना कुलक, पृ. १४- १४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: निसाविरामे परिभावयाम; अंतिः निव्वाणसुहं लहंति, गाथा - २२. २२४८८, (+) स्तवन, सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. १३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५X१०.५, १५४५०-५६). १. पे. नाम. १४ गुणस्थानकविचार स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- १४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: जगपसरत अनंतकंत गुण; अंति पद्मराजई० सुखसंपदा, गाथा-२१. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ बृहत्स्तवन, पृ. १आ - ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- बृहत्, मु. राजसोम, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी प्रणमी अरिहंत; अंतिः रंगविशाल सुपारसइ रे, गाथा - ३२. Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १३१ ३. पे. नाम. शांतिजिन बृहत्स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. शांतिजिन स्तवन-बृहत्, मु. हर्षनंदन, मा.गु., पद्य, आदि: समकित सुधउ पालिवा; अंति: तेहना फल जाणिस्यै, गाथा-२०. ४. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्थापना सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदन; अंति: किजै तास वखाण रे, गाथा-१५. ५. पे. नाम. शीलबत्रीसी, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सील रतन यतने करि; अंति: राजसमुद्र० विचार जी, गाथा-३२. ६. पे. नाम. आदीश्वर अष्टानवतिपुत्र संबंध, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तवन-९८ पुत्रोपदेशगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिनाथ जिण सोलमो; अंति: साधजीने त्रिकालो जी, गाथा-३१. ७. पे. नाम. आदिनाथ बृहत्स्तवन, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन बृहत्-शत्रुजय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीअसयल जिणंद; अंति: प्रेमविजय० मुझ सेवा, गाथा-४३, (वि. दो-दो पद की एक गाथा गिनी गई है.) ८. पे. नाम. श्रावकप्रतिमाविधि सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. लावण्यप्रिय, मा.गु., पद्य, आदि: दसण वय सामाईय पोसह; अंति: भाषइ० तेह घरि बारि, गाथा-१८. ९. पे. नाम. गौतमपृच्छा, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण. गौतमपृच्छा चौपाई, मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंदतणा पय वंदि; अंति: फले इम पभणे नयरंग, गाथा-४४. १०. पे. नाम. दशानभद्र सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. दशार्णभद्रराजा सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: लालविजय निसदीश, गाथा-९. ११. पे. नाम. मुनिमालिका, पृ. ९आ-११आ, संपूर्ण. ___ मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पय; अंति: फलै सदाइ सदा कल्याण, गाथा-३६. १२. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन वृद्धिस्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-बृहत्, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: पासप्रभु जग जाणीयइं; अंति: सेवता सुख संपदा, गाथा-१७. १३. पे. नाम. सीमंधरस्वामी बृहत्स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन-बृहत्, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: महियल महिमावतु ए; अंति: पद्मराज पभणै सुजगीस, गाथा-१९. २२४८९. प्रकरण संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८७-५८(१ से ५८)=२९, कुल पे. ६, जैदे., (२६.५४१०.५, ७४२३-२५). १. पे. नाम. यतिभावनाष्टक, पृ. ५९अ-६०आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. साधुभावनाष्टक, मु. पंकजनंदि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: तस्यात्र पुण्यात्मनः, श्लोक-९, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. उपाससंस्कार, पृ. ६०आ-६६आ, संपूर्ण. उपासकसंस्कार विचार, मु. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: आद्यो जिनो नृपः; अंति: तेषां धर्मोतिनिर्मलः, श्लोक-६१. ३. पे. नाम. देशव्रतोद्योतन, पृ. ६६आ-७२आ, संपूर्ण. देशव्रतोद्योतन विचार, मु. पंकजनंदि, सं., पद्य, आदि: बाह्याभ्यंतरसंगवर्जन; अंति: देशव्रतोद्योतनं, श्लोक-२७. For Private And Personal use only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. आलोचना, पृ. ७२आ-८०अ, संपूर्ण. मु. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: यद्यानंदनिधिं भवंत; अंति: मानानंद सद्मध्रुवं, श्लोक-३३. ५. पे. नाम. जिनवरदर्शन स्तव, पृ. ८०अ-८३आ, संपूर्ण. मु. पद्मनंदि, प्रा., पद्य, आदि: दिढेतुमम्मि जिणवर; अंति: णंदउ सुइरं धरावी, गाथा-३३. ६.पे. नाम. जिनगुणकीर्तन स्तव, पृ. ८३आ-८७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: जयत्यशेषामरमौलिलालित; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२९ तक है.) २२४९०. (+) स्वाध्याय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७२१, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४३९-४०). १.पे. नाम. ५ कुगुरु स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ५ कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो सदगुरु गुण; अंति: सीसेण जणाण बोहिटुं. ढाल-६, गाथा-३९. २. पे. नाम. सुगुरु स्वाध्याय, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. सुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु एहवा सेविइ; अंति: साहूण जसिंसिणं एण, ढाल-४, गाथा-४१. ३. पे. नाम. जिनप्रतिमास्थापना स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदन; अंति: किजै तास वखाण रे, गाथा-१५. ४. पे. नाम. १७ भेदी पूजा सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेद पूजा फल; अंति: तेह तर्या ने तारे रे, गाथा-९. ५.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४आ-९आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५. २२४९१. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे.. (२६४११, ११४२८-४०). १. पे. नाम. पार्श्वनाथस्य लघुस्त्वन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ए विनती करइ हो लाल, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., पद्य, आदि: आखंदा मै हुं तइंडी; अंति: अवतार जिणेसर, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामणी पासजी रे; अंति: वंछित विसवावीस, गाथा-७. ४. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर मूरति सूरति; अंति: विनतीक्रम वचमन साखै, गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीफलवधिपुर पासजी; अंति: समर्या देज्यो साद, गाथा-७. ६. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिववर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: नीलकमलदल सामलउ रे; अंति: रे अलवेसर अवधारि, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ७. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदि: कामारिदंता बलकुंजरा; अंति: रहिताः सततं संभवंति, श्लोक-१७. ८. पे. नाम. थूलभद्र सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वाट जोवंती निशदिनई; अंति: हो भावइ करीय प्रणाम, गाथा-९. ९. पे. नाम. राजीमती गीत, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. राजिमती गीत, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: तरसत अंखियाने हुइ; अंति: साची सति राजिमतीया, गाथा-९. १०. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-लघु, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदि: फलति कंदलतलदल स्फुट; अंति: भव्याः प्रणमतसुखकारं, श्लोक-५. २२४९२. विचार, प्रकरण संग्रह व सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५४११, १७४६५-६८). १. पे. नाम. सिद्धांतविचारसार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वंदिय वीरं धीर; अंति: खरकरहाणं तु पणवीसं, गाथा-६४. २. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. लोकनालि गाथा, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. लोकनालिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं गणियपयं; अंति: समकय लोयस्स गणियपयं, गाथा-३०. ४. पे. नाम. इगवीसठाणं, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन महाप्रभाव, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तव, सं., पद्य, आदि: देवं देवाधिदेवं परम; अंति: परमेष्टिपदैर्भयानि, श्लोक-३६. २२४९३. (+) स्तवन, सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. १५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४-१५४४३-५१). १. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: __ भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-१९. २. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल-२, गाथा-२४. ३. पे. नाम. सीतलनाथ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिनवर सहज सुरंग; अंति: कुशल गुण गाया रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. नवपदमहीमा स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सह नरनारी मली आवो; अंति: गावै विनीतसागर मुदा, गाथा-७. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. केशरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद माय प्रणमी; अंति: सीस केशर गुणगाय, गाथा-१६, (वि. दो-दो पद की एक गाथा गिनी गयी है.) ६. पे. नाम. गोडी स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वालेसर मुज विनति; अंति: इम जपे जिनराज हो, गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेश्वरु; अति: अक्षय अविचल राज, गाथा-७. ८. पे. नाम. धरमजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. गुणपतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेसर मनशुद्ध; अंति: तो सेवा भवभव दीजै रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. सीमंदरस्वामीजी स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. गुणपतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कलावती विजय; अंति: किरपा मौसुं किजो राज, गाथा-९. १०. पे. नाम. सातवीसन सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु; अंति: विजेरंग इम कहे, गाथा-९. ११. पे. नाम. पंचैद्री सझाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण, आश्विन शुक्ल, ७. ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कामांध गजराज अगाध; अंति: संबंध लहो सुख सासता, गाथा-६. १२. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. १३. पे. नाम. विजैसेठविजयावली शीलोपरि स्वध्याय, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण, वि. १८५२, आश्विन शुक्ल, ८, ले.स्थल. विनातट, प्रले. मु. उगरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रे रे; अंति: कुशल नित घर अवतरे, ढाल-३, गाथा-२३. १४. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिनेश्वर गाउं रंग; अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ७आ-८आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथलपति थलदेशें; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण तक है.) २२४९४. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६१, श्रावण शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. जोजावर, प्रले. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ९४३०-३६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीज्ञानविषै जे; अंति: गारेणं वोसिरामि. २२४९५. (+) कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, कुल पे. १५, ले.स्थल. वक्कासर ग्राम, प्रले. पंन्या. जीवकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५-१७४३०-३६). १. पे. नाम. वंचनाविषये अशोकदत्त कथा, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. अशोकदत्त कथा-वंचनाविषये, सं., गद्य, आदि: दक्षिणमथुरायां अशोक; अंति: व्रतं जग्राह. २.पे. नाम. प्रस्तावोक्तविषये यशोभद्र कथा, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. यशोभद्र कथा-प्रस्तावोक्तविषये, सं., गद्य, आदि: इहैव भरते साकेतनपुर; अंति: भवति कोटिफलप्रदः. ३. पे. नाम. तपोविषये राजर्षिसनत्कुमार कथा, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ सनत्कुमारचक्रवर्ति कथा-तपविषये, सं., गद्य, आदि: इहैव भरते कुरुदेशे; अंतिः तृतीयदेवलोके गतः, ४. पे नाम, भावनाविषये अमरचंद्र कथा, प्र. ६अ ८अ संपूर्ण. अमरचंद्र कथा- भावनाविषये, सं., गद्य, आदि: अत्रैव भरतक्षेत्रे; अंति: पालयित्वा मोक्षं गतः. ५. पे. नाम. साधारणदाने कुरुचंद्रराजा कथा, पृ. ८अ १०आ, संपूर्ण. कुरुचंद्रराजा कथा - साधारणदाने, सं., गद्य, आदि: जंबुद्वीपे अत्रैव; अंतिः स्वर्गं जग्मुः. ६. पे नाम. जीवदयावां मेतार्य कथानक, पृ. १० आ १२अ, संपूर्ण. मेतार्य कथा - जीवदयाविषये, सं., गद्य, आदि: अत्रैव भरते साकेतपुर; अंति: दीक्षा गृहीता. ७. पे. नाम, नमस्कारविषये रत्नशिखर कथानक, पृ. १२अ १८अ संपूर्ण. रत्नशेखरराजा कथा-नमस्कारविषये, सं., गद्य, आदि: (१) अन्नेवि इत्थधम्मे, (२) अत्रेव जंबूद्वीपे; अंति: गतो रत्नशेखरराजा. ८. पे. नाम. ललितांग कथा, पृ. १८अ - १९आ, संपूर्ण. ललितांगकुमार कथा, सं., गद्य, आदि: पक्षपातोपि जयाय अंतिः राज्यं पालयति, ९. पे नाम, जीवदयाविषये दामनक कथा, पृ. १९आ-२१आ, संपूर्ण. दामनक कथा - जीवदया विषये, सं., गद्य, आदि: अत्रैव भरतक्षेत्रे; अंतिः दीक्षा गृहिता. १०. पे नाम. गुरुविराधनायां कुलवालक दृष्टांत, पृ. २१आ-२३अ, संपूर्ण, कुलवालक कथा, सं., गद्य, आदि: अत्रैव भरतक्षेत्रे: अंति: स्वर्ग जगाम ११. पे नाम. सुपात्रदानविषये कनकरथ कथानक, पृ. २३आ-२५अ, संपूर्ण. कनकरथ कथा- सुपात्रदानविषये, सं., गद्य, आदि: अत्रैव भरते वैताढ्य अंति: द्वावपि स्वर्गे गती. १२. पे. नाम. माने बाहुबलि कथा, पृ. २५अ - २५आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बाहुबलि कथा मानविषये, सं., गद्य, आदि: (१) धम्मो मएण हुंतो, (२) विनीतायां नगवाँ अंतिः समवसरणे समागत. १३. पे. नाम. दूतविषये नल कथानक, पृ. २५आ - ३४अ, संपूर्ण. नल कथा - द्यूतविषये, सं., गद्य, आदि: अत्रेव भरते कोशलदेशे; अंतिः मोक्षं प्राप्स्यसि, १४. पे नाम. शीलविषये मदनरेखा कथानक, पृ. ३४-३५आ, संपूर्ण. मदनरेखासती कथा - शीलविषये, सं., गद्य, आदि: इहैव जंबुद्वीपे अत्र; अंति: मयणरेहा दिवं जगाम. १५. पे. नाम. अष्टाह्निकातपोविषये नागदत्त कथा, पृ. ३५आ- ३६आ, संपूर्ण. - नागदत्त कथा-अष्टाह्निकातपविषये, सं., गद्य, आदि: अत्रैव भरते कुसुमपुर; अंति: रचयति पुण्यं करोति. २२४९६. (+) भगवतीसूत्र आलावा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३७, प्रले. मु. भीमजी ऋषि (गुरु ऋ. लालजी); पठ, छीराम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पत्रांक ५ एवं ६ एक ही पत्र पर है., पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२६.५x११.५, १५-१९x४६-४९). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २२४९७. मानतुंगमानवती रास व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ६, जैदे., (२६X११, १५X४८-५४). १. पे. नाम. मानतुंगमानवती रास, पृ. १अ ८अ संपूर्ण. मानतुंग- मानवती रास, उपा. अभवसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमुं माता सरसती; अंति: भेद मतिमंदिर लहे, ढाल १४. १३५ २. पे नाम, औपदेशिक गीत, पृ. ८अ, संपूर्ण, औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं, पद्म, आदि: कहा अग्वानी जीवकुं; अंतिः कहा काको सहिज मिटावइ, गाथा - ३. ३. पे नाम औपदेशिक गीत, पृ. ८अ संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: कबहुं मे नीके नाथ; अंतिः युं ही जनम गमायो, गाथा - ३. ४. पे नाम, औपदेशिक गीत, पृ. ८आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: परदेसी मीत न करीयै; अंति: पेमके पंथ न परीयैरी, गाथा-५. ५. पे. नाम. च्यारविकथानिवारण गीत, पृ. ८आ, संपूर्ण... ४ विकथानिवारण गीत, मु. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: वृथा करम बांधत जीउ; अंति: करो भवभय विस्तारी, गाथा-३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन कवित, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: जानत बाल गुपाल सबै; अंति: पारसनाथ सदा सुख पुरै, पद-१. २२४९८. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५६, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३२, कुल पे. ४३, ले.स्थल. जावालनगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, ९-११४३२-३६). १. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, म. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद जयकारी हो; अंति: विनय नमे नितमेव, गाथा-९. २. पे. नाम. कर्मविपाक सज्झाय, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो नमो कर्म राजा रे, गाथा-१७. ३. पे. नाम. सिमीधर स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनति; अंति: जिम कमल निवास रे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. सिमंधर स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जिहां लगे आतमद्रव्य; अंति: बै किरिया लहीय, गाथा-१५. ५.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सांभलो विनति; अंति: तणी ए विनती विवेक, गाथा-८, (वि. कर्तानाम ___मानविजय को सुधारकर ज्ञानविजय किया गया है.) ६.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी; अंति: नवनिधि कोड कल्याण, गाथा-७. ७. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुथी बांधी प्रीत; अंति: मुजने वालो जिनवर एह, गाथा-७. ८. पे. नाम. कर्म तणो परमाण, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीयाजी; अंति: पुण्यतणे परमाण रे, गाथा-११. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेसरू जगदीश; अंति: अविचल अक्षय राज, गाथा-७. १०. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. शांतिनाथ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज; अंति: के पंडित रुपनो लाल, गाथा-७. ११. पे. नाम. पार्श्वस्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज सफल दिन माहरे रे; अंति: पाय पद्म सुखकार, गाथा-७. १२. पे. नाम. छट्ठाआरा रो स्तवन, पृ. ८आ-१२अ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरानु, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाय नमी; अंति: देवीदास० संघमंगल करो, ढाल-५, गाथा-६६. १३. पे. नाम. मौनएकादसी स्तवन, पृ. १२अ-१५आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १३७ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: घणो पामीये मंगल घणो, ढाल-३. १४. पे. नाम. नेमीनाथ स्तवन, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल छोडी नेमजी; अंति: तणो सीस जपे जिनेंद्र, गाथा-९. १५. पे. नाम. शेत्रुजाजी स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी चालो; अंति: अरिहंत श्रीआदीनाथ है, गाथा-१३. १६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १७अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमासार सांभलज; अंति: नवनिधि होय एहथी, गाथा-५. १७. पे. नाम. सिधचक्र स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम नाणी हो कहै; अंति: जपे हो बहु सुख पाया, गाथा-५. १८. पे. नाम. गोडीजीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: प्यारो पारसनाथ; अंति: संघ आवे बहु धसमसीया, गाथा-८. १९. पे. नाम. पार्श्वलीला स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-बाललीला, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुरगिरि शिखरे सुरपति; अंति: आस्या पोहचाडे रे, गाथा-१२. २०. पे. नाम. गोडीपारसनाथ स्तवन, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: सफल फली सहु आस, गाथा-९. २१. पे. नाम. भीडभंजनपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्या माटे साहिब सामु; अंति: न रह्यो लोभनो लासो, गाथा-९. २२. पे. नाम. पार्श्वनाथजीस्तवन, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विनतडी अवधारो हो; अंति: पासजी ताहरो परम आधार, गाथा-५. २३. पे. नाम. नाकोडाजिन स्तवन, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८.. २४. पे. नाम. माहावीरजीन स्तवन, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: जगपति तु तो देवाधि; अंति: भगवंत चोवीसमो भेटीओ, गाथा-९. २५. पे. नाम. माहावीरजीन स्तवन, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ राजानो नंदन; अंति: नंदन जयजय श्रीमहावीर, गाथा-७. २६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २१आ, संपूर्ण. मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिनेसर विनती; अंति: वीर नमे करजोडी रे, गाथा-५. २७. पे. नाम. पांचतीर्थी स्तवन, पृ. २१आ-२३अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचतीर्थी स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि आदि ए आदि ए आदिजिने; अंतिः आपदा पूरवे सुख संपदा, गाथा - ११. २८. पे. नाम, पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णगर्भित, पृ. २३अ २३आ, संपूर्ण. - पद्मप्रभजिन स्तवन- संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धनधन संप्रति साचो; अंति: भवि तुम्हने सेवे रे, गाथा - ९. २९. पे. नाम. शमतशिखरजिन स्तवन, पृ. २३-२४अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: तो नमोनमो समेतशिखर अंतिः भावशुं चैत्यवंदन करी, गाथा - ६. ३०. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. २४अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी; अंतिः जिनहर्ष० मुगते पोहती, गाथा- ९. ३१. पे. नाम. तीर्थराणकपूरजिन स्तवन, पृ. २४आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदिः राणपुरो रलीयामणौ रे; अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. ३२. पे. नाम. चौवीसजीन स्तवन, पृ. २४आ- २५अ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः शत्रुंजे ऋषभ समोसर्य; अंति: समयसुंदर क एम, गाथा - १८, (वि. दो-दो पद की एक गाथा गिनी है. ) ३३. पे. नाम. सीमंधरजी स्तवन, पृ. २५आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरजी सुणजो; अंति: लालचंद० एही अरदासोजी, गाथा- ७. ३४. पे नाम, माहावीरजिन स्तवन, पृ. २५-२६अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि प्रभुजी वीरजिणंदने; अंतिः भवोभव तुम पाय सेव हो, गाथा - ५. ३५. पे. नाम. गोडीजी स्तवन, पृ. २६अ २६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भावे वंदो रे श्रीगोड; अंति: गाए पद्म कहे लहे गाथा - १०. पार, ३६. पे. नाम. हीरविजयसूरि सज्झाच, पृ. २६आ- २७आ, संपूर्ण. मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि वे कर जोडीजी वीनवु; अंति भणे होज्यो मूल आणंद, गाथा - १८. ३७. पे. नाम. शेत्रुजाजीन स्तवन, पृ. २७आ- २८अ संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम कुपा दिन; अंतिः परमाणंद पद पास्युं, गाथा - ७. ३८. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. २८अ - २८आ, संपूर्ण. मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिन सहज सुरंगा; अंति: कुशल गुण गाया रे, गाथा - ७. ३९. पे. नाम. शेत्रुजाजीन स्तवन, पृ. २८आ - २९अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थं स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः यात्रा नवाणु करीए अंतिः पद्म कहै भव तरीये, गावा-५. ४०. पे. नाम. शांतिजिन गीत, पृ. २९अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे लाला शांति अंतिः सरीया काज रे लाला, गाथा ५. ४१. पे. नाम रोहिणीतप स्तवन, पृ. २९अ- ३१आ, संपूर्ण मु. श्रीसार, मा.गु., पद्म, वि. १७२०, आदि: शासनदेवता सामणी ए; अंतिः हिव सकल मन आसा फली, गाथा - २६. ४२. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. ३२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यी जिनद्वार; अंतिः मुख बोले जैजैकार, गाथा- ३. For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४३. पे. नाम. आदीसरजीन स्तवन, पृ. ३२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीउडा जिन चरणांरी; अंति: मोहन अनुभवि मांगै, गाथा-६. २२४९९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०९, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. १५, ले.स्थल. कुचोरा, प्रले. सा. जत्तना; पठ. श्रावि. नवला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२-१४४२९-३५). १. पे. नाम. आदनाथजी रोस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तवन, मु. हंसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिनाथ वांदु लाल; अंति: उपना लाल कुख उपना, गाथा-७. २. पे. नाम. श्रीमीदरजी रोतवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत देवी पायजी लागु; अंति: ते जी घर दोलत इधकेरी, गाथा-७. ३. पे. नाम. संभवनाथजी रोतवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. हर्षप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: संभवनाथ सुहावणारे; अंति: मुगत तणा सुख पामसी, गाथा-११. ४. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअभिनंदण शीतल; अंति: तार भवभव स्वामी, गाथा-१४. ५. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सुमतिनाथ सुमत फलदाता; अंति: कीधो तवन अवधारोजी, गाथा-१७. ६. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपद्मप्रभु नित; अंति: तणा प्रभु सुख लह्या, गाथा-१२. ७. पे. नाम. सुपारश्वजीरो तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समरु समरु स्वामी; अंति: मतसु सेवग ताहरी, गाथा-११. ८. पे. नाम. चंदाप्रभूजी रो त्वन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल कलागुण नीलउ; अंति: आवइ नवनिध तास घरे, गाथा-१३. ९. पे. नाम. नवमा जिनराजनोतवन, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिणसासण श्री रे; अंति: कुगत पडतो उधारगो, ढाल-२, गाथा-१६. १०. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिणवर राया; अंति: निरख नरह पाप नरेसरो, गाथा-१९. ११. पे. नाम. मुनइग्याव रोतान, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: कहै कहौ द्याहडी, गाथा-१४. १२. पे. नाम. १२ मा जिन स्तवन, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, वा. सोम, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीगुरु पायपंकज नमु; अंति: ए जाणो धरम आणो वासना, ढाल-२. १३. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १७७७, आदि: विमल जिनेश्वर देव; अंति: श्रीविमलनाथ वखाणीय, गाथा-१५. १४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: सिद्धारथना रे नंदन; अंति: विनयविजय गुण गाय, गाथा-५. १५. पे. नाम. वीरजिण तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नयर खतरीकुंड अति; अंति: मनरा मनोरथ सोफल्या, गाथा-१०. For Private And Personal use only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२५०१. (+) सज्झाय, स्तवन, पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. ४९, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १८४४७-५३). १. पे. नाम. विजेकुमरजी की सझाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: श्रीवीतराग जिणदेव; अंति: रिष लालचंद सिरनामी, गाथा-१६. २. पे. नाम. सुषम चोपनी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. सुषमछत्रीसी, मु. उदय ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: सुषमछतीसी सांभल; अंति: लीज्यो अरथ विचारजी, गाथा-५३. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पापपंथ परहर मोक्षपंथ; अंति: लोभ नाही धरै कदा, गाथा-१५. ४. पे. नाम. बाई सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. मोतीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: बेठे साधसाधवीया रे; अंति: कही मोतीचंद एह के, गाथा-२८. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जबरा होइ जगतमै डोलै; अंति: शिव भसत न पाती है, गाथा-१२. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. श्राव. देवब्रह्मचारी, पुहिं., पद्य, आदि: काशीदेश बनारसीनगरी; अंति: कोइ वरत्या जैजैकार, गाथा-१०. ७. पे. नाम. बुढ़ापा की ढाल, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, मा.गु., पद्य, आदि: बुढो हलवे हलवे चाले; अंति: हूं चरणां की बलिहारी, गाथा-१९. ८. पे. नाम. होली की ढाल, पृ. ५आ, संपूर्ण. नेमिजिन फाग, मु. कुशलचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: आवोजी देवर आपस मै आप; अंति: तपसी मासमै जोरी, गाथा-१७. ९. पे. नाम. सद्गुरुवाणी पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मीठी अमृत सारखी; अंति: कीधी आ ढाल रसाल, गाथा-९. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद-निंदाविषयक, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: निंद्या मारी कोइ करे; अंति: राखो सोनै काट न होय, गाथा-५. ११. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मानव को भव पायके मत; अंति: जु सकल फलै मन आशा, गाथा-७. १२. पे. नाम. माजीरी सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ऋ. विनयचंद्र, रा., पद्य, आदि: आतो नाम धरावे माजी; अंति: भवसागरसुं तरसी, गाथा-१९. १३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. सुखलाल, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा जिनजी शांतिनाथ; अंति: दीजो मुगति रो वासोजी, गाथा-११. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-ज्योतिष, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-ज्योतिष त्याग, मा.गु., पद्य, आदि: चाल्या लेई गुरु आदेश; अंति: भाखै किम साधु महंत. १५. पे. नाम. ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण.. मु. रायचंद, रा., पद्य, वि. १८४३, आदि: रिखभ राजा रे राणी; अंति: महिमामै कमी नही काइ, गाथा-२१. १६. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजयरा पुत; अंति: भार मुक्त पधार्याजी, गाथा-१९. १७. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org मा.गु., पद्य, आदि: रामलछमण दोन्यु अडसदा; अंति: मिलै न बीजी नारजी, गाथा - ११. २०. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-नारीत्याग, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: नाय ब्याह रचाय करी; अंतिः चखती समकित सेलडीया, गाथा - ९. १८. पे. नाम. नारी सज्झाय, पृ. ८आ - ९अ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली ल्याव घरमै; अंतिः विनयचंद पावै सुख धान, गाथा - १९. १९. पे. नाम. रामलक्ष्मणसीता पद, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण मु. कुसालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेत रे प्राणीया कहै; अंति: जीके लेसी आपमै ताणी, गाथा - १७. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७४, आदि: वामानंदन पासजिणंदजी; अंति: अठारे वरस चीमोतरे ए, गाथा-६. २२. पे. नाम. श्रीमंदरजी से तवन, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मुखडा क्या जोवै दरपण; अंतिः साधो आखर डेरा बनमै, गाथा ५. " २४. पे. नाम. १३ काठिया पद, पृ. १० आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि; ज्यं वट पाडै बाटमै अंतिः तन जब पावै निरवाण, गाथा - ३. सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धनधन क्षेत्रविदेह; अंति: किरपा आपरी रे लाल, गाथा- ७. २३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण. २५. पे. नाम क्षुधा सज्झाय, पृ. १०आ, संपूर्ण. मु.शिवलाल, पुहिं., पद्य, आदि: वेदना क्षुधा की भारी; अंति: ज्यांकी हूं बलिहारी, गाथा- १२. २६. पे. नाम. सासुवहुसंवाद सज्झाय, पृ. १०आ - ११अ, , संपूर्ण. मु. शिवलाल, मा.गु., पद्य, आदि: सासु कहे बहु सुण वाण; अति: शिवलाल सुणो नरनारी, गाथा- १८. २७. पे नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण. मु. रतनतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी; अति: करिज्यो ढगवाली, गाधा-८. २८. पे. नाम. धनानो तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवचनै वैरागीयो; अंति: अमां होवै जय जयकार, गाथा - ११. २९. पे नाम, शांतिजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. हरखचंद, पुहिं., पद्य, आदि: विश्वसेन अचिराजी के अंतिः पीड मीटीउ कर्मन की गाथा ४. ३०. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. १९आ-१२अ संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: सांवलिया साहेब; अंतिः हे० आई आज हमारी बारी, गाथा- ६. ३१. पे. नाम नेमिजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि देख्या दुनिया विचरैः अंति: फीटवा काज मवासा रे, गाथा ५. ३६. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय पु. १३अ - १३आ, संपूर्ण. · १४१ नेमराजिमती पद, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि; सावलीया साहिब है; अंतिः कहे नित नित० सवेरो, गाथा-५, ३२. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि रहो रहो सांवलीया; अंतिः कहे० प्रीत मंडाणी, गाथा ५. ३३. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: तुं धन तुं धन तु; अंति: तो हुं सहुं भर पामी, ३४. पे. नाम. श्रावक सज्झाय, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण. श्रावकइकवीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक नाम धरायनें; अंति: कहे सुणो नरनारो, गाथा - २१. ३५. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १२-१३अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only गाथा - ५. Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: प्राणी चाल्यो परणवा; अंति: रहा छोड दिया ग्रहफंद, गाथा-२७. ३७. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन मुझनै पार; अंति: माहरो करो निस्तारो, गाथा-७. ३८. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. १३आ, संपूर्ण.. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: तीर्थंकर गणधरनो रे; अंति: संजम जीत बजीजै रे, गाथा-११. ३९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: दया धर्म जग साचो; अंति: सुध जिणजी री वाचा रे, गाथा-३. ४०. पे. नाम. भीषणजीसंवाद सज्झाय, पृ. १४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आरै पांचमै निकल्यो; अंति: ते तो नरकामाही जावै. ४१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४अ, संपूर्ण. भरतरि, मा.गु., पद्य, आदि: बाग बगीचा जोवण जावै; अंति: मुक्त जावण री आशा, गाथा-४. ४२. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १४अ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४३. पे. नाम. रहनेमी राजमतीसती रोपांचढालीयो, पृ. १४आ-१६अ, संपूर्ण. राजिमतीरथनेमि पंचढालिया, मु. रायचंद, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धनें आयरी; अंति: रिष राचयंद गुण गाय, ढाल-५, (वि. रचनासंवत् व रचनास्थल की माहिती नहीं लिखी है.) ४४. पे. नाम. देवानंदा ढाल, पृ. १६अ-१७आ, संपूर्ण, वि. १८९२, आश्विन कृष्ण, ३, ले.स्थल. विक्रमपुर. ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: तिण काले तिण समे; अंति: सुख पाम्या रसालो, ढाल-७. ४५. पे. नाम. रतनकुंवर की सिज्झाय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. रतनकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण आगला रे; अंति: उपजै हरख रसाल, गाथा-४०. ४६. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: सामायिक सुखदाइजी चित; अंति: काइ वडवा सहिर मझार, गाथा-१०. ४७. पे. नाम. दवारकानगरीनी सझाय, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण. द्वारिकाऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमा श्रीनेमिजिण; अंति: दुक्कड थायज्यो मोय ए, गाथा-३२. ४८. पे. नाम. जेमालीनी सिझाय, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. जमाली सज्झाय, मु. चौथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: सासणनायक श्रीविर; अंति: मेडते कीयोजी चोमास, गाथा-११. ४९. पे. नाम. धना की सिझाय, पृ. २०आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नगर काकंदी हो मुनीसर; अंति: वस्यो रतन कहे करजोड, गाथा-१५. २२५०२. (+) गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. १६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४२८-३१). १. पे. नाम. गयसुकमाल गीत, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. गजसुकुमाल सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर तसु ध्यान, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. रहनेमि गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. रथनेमि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जदुपति वांदण जावता; अंति: सील अखंडित पाल्यो रे, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १४३ ३. पे. नाम. भवदेवनागिला गीत, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. भवदेव-नागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भवदत्तभाई घरे आवीओ; अंति: सुंदर वांदे पाय रे, गाथा-८. ४. पे. नाम. अनाथी गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: वंदे रे बे करजोडि, गाथा-९. ५. पे. नाम. थूलीभद्र गीत, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि गीत, उपा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रियडउ आव्यउरे; अंति: थूलिभद्र नको तोलइरे, गाथा-६. ६. पे. नाम. सुभद्रानारी गीत, पृ. ४अ, संपूर्ण. सुभद्रासती गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर आव्यई विहरवा; अंति: सती रे सुभद्रा नारी, गाथा-६. ७. पे. नाम. श्रावकायाप्रतिबोध गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जीव प्रति काया कहइं; अंति: कीजइ धरम सनेहोरे, गाथा-६. ८. पे. नाम. जीवप्रतिबोध गीत, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जाणे जिनधरम; अंति: लहीयइ लील विलास, गाथा-७. ९. पे. नाम. हरियाली गीत, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कहेज्यो पंडित ए; अंति: सरखा मात हुज्यो रे, गाथा-४. १०. पे. नाम. सीमंधर गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जउ तई रे दैव दीधी; अंति: भवसमुद्द तारो रे, गाथा-३. ११. पे. नाम. युगमंधरस्वामी गीत, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: तुं साहिब हुं सेवक; अंति: भविभवि देज्यो सेवजी, गाथा-५. १२. पे. नाम. शांतिकुंअर हुलरामण गीत, पृ. ६अ, संपूर्ण. शांतिजिन गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकुंवर सोहामणउ; अंति: समयसुंदर सुखकार, गाथा-४. १३. पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. ६आ, संपूर्ण.. नेमिजिन गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: चंपा ते रूपई रूयडी; अंति: समयसुंदर प्रभु पास, गाथा-६. १४. पे. नाम. पार्श्वदेव गीत, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण... पार्श्वजिनगीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: भलइ भेट्यउरेपासजिण; अंति: वाचक समयसुंदर गण रे, गाथा-३. १५. पे. नाम. महावीर गीत, पृ. ७अ, संपूर्ण. महावीरजिन गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सामी मुनिं तारओ भव; अंति: समयसुंदर वासीजी, गाथा-४. १६. पे. नाम. गौतमस्वामी विलाप गीत, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मुगति समउ जाणी करी; अति: समयसुंदर करजोडिरे, गाथा-७. २२५०३. (+) स्तवन, सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-२(१५ से १६)=१५, कुल पे. २४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११-१५४३०-४६). १. पे. नाम. बीजमाहात्म स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तवन, पंन्या. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: श्रीश्रुतदेवि पसाउले; अंति: गणेशरूचि० वंदु पाय, गाथा-१९. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा हु; अंति: होज्यो मुझ चित हो, गाथा-९. ३. पे. नाम. सीमंधर स्तवना, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. कनकसौभाग्य शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी सीमधरस्वामी; अंति: अमारी अवधारज्यौ, गाथा-६. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवना, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडन, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरति मंडण पास जिणंद; अंति: सुख धरी अविहड रंगो, गाथा-७. ५. पे. नाम. शेत्रुजा स्तवना, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण विनQरे; अंति: त्यां घर जय जयकार रे, गाथा-१०. ६. पे. नाम. सरवारथसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: पुन्य थकी फले आसो रे, गाथा-१५. ७. पे. नाम. पांचपांडव सध्याय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलुं; अंति: मुझ आवागमण निवार रे, गाथा-२०. ८. पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आज हमारे आंगणडे हुं; अंति: नित प्रणमुं पायाजी, गाथा-६. ९. पे. नाम. सालीभद्र सझाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शालिभद्र आज तमने; अंति: वीरचरणे जाई लागो रे, गाथा-५. १०. पे. नाम. आत्माहीतसिक्षार्थ सीझाय, पृ. ७१-७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एहनी गठ एह ज जाणो रे; अंति: रेहजो उदयरतन इम बोलै, गाथा-७. ११. पे. नाम. सियलमुद्ररी सीझाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: शीयल मुंद्रडी खरी रे; अंति: उतरीया भवपारजी, गाथा-१०. १२. पे. नाम. अनाथीऋषी गीत, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहि., पद्य, आदि: मगध देश को राज राजे; अंति: छोडेजो गर्भवास के, गाथा-२१. १३. पे. नाम. अयमता सजाय, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आघा आम पधारो पूज्य; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा-१८. १४. पे. नाम. अष्टमी सजाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठम कहे आठिम दिने; अंति: पुण्यनी रेह रे, गाथा-९. १५. पे. नाम. बीजरी सज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित विविध विनोद रे, गाथा-८. १६. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: भाख्या वयण रसाल, गाथा-२१. १७. पे. नाम. बाहुबल सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ___१४५ भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर गुणगाया रे, गाथा-७. १८. पे. नाम. नेमराजुल सझाय, पृ. ११आ, संपूर्ण. रथनेमि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग ध्याने मुनि; अंति: निर्मल सुंदर देह रे, गाथा-८. १९. पे. नाम. धनासालिभद्रनी सझाय, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. शालिभद्रधन्ना सज्झाय, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: अजिआ जोरावर जे जालमी; अंति: तरी पाम्या भवजल तीर, गाथा-७. २०. पे. नाम. अनाथी सज्झाय, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण. ___ अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिपति श्रेणिक; अंति: इम बोले मुनि राम के, गाथा-२९. २१. पे. नाम. रोहणी सिझाय, पृ. १३अ, संपूर्ण, वि. १८८२, कार्तिक कृष्ण, ११, ले.स्थल. कालद्री, पठ. मु. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य. रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद; अंति: विजयलक्ष्मीसूरि भूप, गाथा-९. २२. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. म. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीव नयर सुहामणो; अंति: होजो तास प्रणाम रे, गाथा-२४. २३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-शीयलेस्त्रीशिखामण, पृ. १४अ-१४आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. औपदेशिक सज्झाय-शीयलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम रे सीखामण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक है.) २४. पे. नाम. सचितअचितवीचार सझाय, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. असणादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम; अंति: सुणता ते सदा सुख लहै, गाथा-१४. २२५०४. भगवतीसूत्र व विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७२, वैशाख शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, कुल पे. २, ले.स्थल. खीरसरा, प्रले. मु. जेठा खीमजी ऋषि (गुरु मु. राजपाल ऋषि), प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६४११.५, ५-७४३४-४१). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र-शतक-२,३,१३, १८ सह टबार्थ, पृ. १आ-२४आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. भगवतीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. विपाकसूत्र-श्रुतस्कंध २ का अध्ययन १ सह टबार्थ, पृ. २४आ-३०अ, संपूर्ण. विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २२५०५. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. १७, जैदे., (२६४११, १६-१८४४०-४५). १. पे. नाम. षटभाइनी सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ___षटभाई सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहइ पुन्य भलो होइ, गाथा-११, (पू.वि. गाथा-४ तक नहीं है.) २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: होजो नवहा निधान, गाथा-५. ३. पे. नाम. ५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: कायाने पांजरे रे वसि; अंति: भणई रे आपो अचल ठाम, गाथा-१०. ४. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४६ www.kobatirth.org उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी बलतां थकां अंति: पामस्वह भवनो पार, गाथा - ६. ५. पे. नाम. गजसुकमाल डाल, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. गजसुकुमाल ढाल, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि प्रभू प्रणमी परि; अंतिः प्रणमइ चरण त्रिण काल, मा.गु., पद्य, आदि: इत्तर होइ ते आप वखाण; अंति: तो मनवंछित लहीयइ हो, गाथा - ५. ८. पे. नाम गौतमस्वामीविलाप सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - २५. ६. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचे इंद्री रे; अंति: इम भणइ विजयदेवसूरोजी, गाथा - १२. ७. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: तुम्ह आपो मइ वीर; अंति: चले वीर का तीरा रे, गाथा- ६. ९. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि गोयम गणहर प्रणमी पाय; अंतिः सेवकनइ तारइ संसार, गाथा- १६. १०. पे. नाम. तमाकुपरिहार सज्झाय, पृ. ४आ ५अ, संपूर्ण. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि प्रीतम सेती विनवे; अंति: होसि कोडि कल्याण, गाथा - २५. ११. पे. नाम. सुबाहुमुनि सज्झाय, पृ. ५अ - ५आ, , संपूर्ण. मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: धर्म जिणेसर चित्त; अंति: प्रेम मुनि सुखवास रे, गाथा - २१. १२. पे नाम श्रेणिकराजा गीत, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु नरग पडतो राखी अंति: समयसुंदर गुण गाइ रे, गाथा ४. १३. पे. नाम, मेघकुमार चौडालीयो, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गुणधर गुण निलो; अंतिः भणता रे सुख थाय, ढाल ४, - गाथा - २१. १४. पे. नाम. थावच्चामुनि सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. देव, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: जिन नेम समोसर्या रे; अंति: रे श्रीसंघनइ जयकार, गाथा-२३. १५. पे नाम, रेवती सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: कुन सुकृत तप कीयो रे; अंतिः पामी रेवतीयां वडभागी, गाथा - ५. १६. पे. नाम. अरिहंतसरण सज्झाय, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण अरिहंतशरण सज्झाय, मु. गजमुख, मा.गु., पद्य, आदि सरण करीजई श्रीजिन; अंतिः रे शरण करो निसदीस रे, For Private And Personal Use Only गाथा - ९. १७. पे. नाम, सीखामण सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही हो सांभले; अंति: नंद कहे करजोडि रे, गाथा - ११. २२५०६. चैत्यवंदन संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१) ८, कुल पे. १२, जैवे. (२६४११.५, ९४२८-३७). १. पे नाम. एकादशी चैत्यवंदन, पृ. २अ संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजी प्रभु अंति: जब लगे घट में सांस, गाथा - १०. २. पे. नाम. अनागतचीवीशीजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण, २४ जिन चैत्यवंदन- अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मनाभ पहेला जिणंद, अंतिः कहे ज्ञानविमलसूरीश, गाथा १५, (वि. प्रतिलेखक ने ३-३ गाथा को १ गाथा गिना है.) ३. पे. नाम. जिनपूजा चैत्यवंदन, पृ. ३अ - ४अ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुराज; अंति: प्रभु सेवना कोडी, गाथा- १४. ४. पे नाम, सिद्धपद स्तवन, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ मा.गु., पद्य, आदि: जगत भूषण विगत दूषण; अंति: ध्यानथी सिद्धदर्शनं, गाथा-१३. ५. पे. नाम. दोढसोकल्याणकर्नु चैत्यवंदन, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. १५० जिनकल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक जगजयो; अंति: शिवलक्ष्मी वरीजे, गाथा-१६. ६. पे. नाम. शाश्वताजिन नमस्कार, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. शाश्वताअशाश्वताजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर प्रमुख नमु; अंति: वंदीए महोदय पद दातार, गाथा-३. ७. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: तणो सिस कहे कर जोड, गाथा-१५, (वि. प्रतिलेखक ने ३-३ गाथा को १ गाथा गिनकर अंतिम गाथांक १५ देने की जगह ५ दिया है.) ८. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ७आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर नमुं; अंति: शुभ वंछितफल लीध, गाथा-३. ९. पे. नाम. भादरवावदि आठम चैत्यवंदन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महा सुदी आठमने दिने; अंति: सेव्याथी सिववास, गाथा-७. १०. पे. नाम. श्रीजन्म नमस्कार, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमंडणो; अंति: धीर करे गुणगान, गाथा-७. ११. पे. नाम. पंचजिन नमस्कार, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: जुगला धरमनिवारीओ; अंति: जगमा वाधे जगीस, गाथा-३. १२. पे. नाम. पंचमी नमस्कार, पृ. ९आ, संपूर्ण. पंचमीतप नमस्कार, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जन्म कल्याणक पंचरूप; अंति: खिमाविजय जिनचंद, गाथा-६. २२५०७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४२, वैशाख शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ६, ले.स्थल. सादरी, प्रले. पं. नित्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४३७-४२). १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: रिषभ जिनेसर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जागरे, स्तवन-२४. २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी तुमे कांइ; अंति: यश कहे हेजे हळशें, गाथा-५. ३. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: थास्युं प्रेम बन्यौ; अंति: जस० मान्या छै मेरा, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आवी रथ फेरी; अंति: ए दंपति दोइ सिद्ध, गाथा-६. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. ___ उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरुआरे गुण तुम; अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण, अन्य. मु. विजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: विजयनंदन जिनजी मुझ; अंति: अधिक महानंद पदवी थाय, गाथा-५. २२५०८. उपदेश पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २४, दे., (२६४११.५, १७-१८४४०-४७). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आया जमाना खोटा खोटा; अंति: मेट दीया सब धोका रे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. श्राव. हीराचंद अमुलक, मा.गु., पद्य, आदि: तुं तो ए नर भव नीफल; अंति: हे नरक उपाय उपायो, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. यौवनअस्थिरता पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. माणकचंद, पुहिं., पद्य, आदि: जोवन धन पावणो दीन; अंति: मत ले शीरपर भारो, गाथा-५. ४. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मीराबाई, मा.गु., पद्य, आदि: रमते राम अतीतजी कोइ; अंति: जोगीको कीसकी प्रीतजी, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: घेरी घेरी नदीया हो; अंति: बंधावे तेरे साथ, गाथा-७. ६. पे. नाम. श्रावकोपदेश लावणी, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक के घेर जन्म; अंति: बंदे क्यां शक्ति, गाथा-८. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. भवानी, मा.गु., पद्य, आदि: शुं रहया जगत पर राची; अंति: विनति भवानीनी वांची, गाथा-७. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. क. दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: जाय छे जगत चाल्यु; अंति: दलपतरामे रे, गाथा-१२. ९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. क. दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: चेत तो चेतावू तने; अंति: दलपते दी● कथी रे, गाथा-११. १०. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. जीवणदास, मा.गु., पद्य, आदि: बांधी कमर ने हंस; अंति: फरी वसाव्या गामडीया, गाथा-४. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. श्राव. फतेमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनंद का ध्यान धरो; अंति: सुनल्यो सहु नरनार, गाथा-७. १२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. श्राव. फतेमल, पुहिं., पद्य, आदि: धरम का काम हि नित; अंति: धर्म धरो तुमे उर, गाथा-६. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: भवसुमद्रमा जीव तूं; अंति: जनम सफल थाय छे, गाथा-८. १४. पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. गजसुकुमाल सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: गजसुकुमाल देवकीना; अंति: तो मुगतीमे डंका बजइए, गाथा-९. १५. पे. नाम. प्रहेलिका पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नगर मे से नीकली नारी; अंति: में कीनी छे सगाई, गाथा-४. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: देखी तोरी राजधानी; अंति: भक्ती करे दीन रेन, गाथा-३. १७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. म., पद्य, आदि: झाले रामराजे काये; अंति: येणे जाणे खूटले, गाथा-५. १८. पे. नाम. रामभजन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. हरिदास, म., पद्य, आदि: रामचंद्र नाही घरी; अंति: मनी पाय मी धरूं, गाथा-४. १९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आपन जतन बीछाना जब; अंति: खाली बाहर कफन निकले, गाथा-४. २०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. उ., पद्य, आदि: दिखलाये दाग दिलने; अंति: हे नीघेहबान येनये, पद-१. २१. पे. नाम. उर्दू गजल, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, उ., पद्य, आदि: ताब उसके दिखने कीन; अंति: हात दिखाये चले गये, पद-१. २२. पे. नाम. उर्दू गजल, पृ. ५अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ आध्यात्मिक पद, पु,ि पद्य, आदि: तगदीर अपनी इन दिनो; अंतिः हाथ से कैसी निकल गई, अध्याय- १. २३. पे. नाम. उर्दू गजल, पृ. ५अ, संपूर्ण औपदेशिक पद, उ., पद्य, आदि: क्या खीजा आइ चमन मे; अंति: जोबन का घर जाता रहा, पद- १. २४. पे. नाम. उर्दू लावणी, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. जीवदया लावणी, काशीराम ठाकरसी, उ., पद्य, आदिः नहि रंग नहि रूप खुदा; अंति: तूट गया तेरा अजमोदा, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ८. २२५०९ (+) स्तवनचीवीसी व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ५, प्रले. मु. भाणविजय (गुरु पंडित. प्रेमविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., ( २६११, १२X३८-४०). १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ - ९अ, संपूर्ण. मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि आदि जिनेश्वर सहिब, अंतिः प्रणमे तुम पाया है, स्तवन- २४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिन भजो जिन भजो; अंति: संपद पायि रे भायि, गाथा- ४. ३. पे. नाम जिनगीत, पृ. ९आ, संपूर्ण साधारणजिन स्तवन, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करे एह जिनु कोरी; अंति: प्रभूको री प्यारे, गाथा - ७. २. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गाथा - ५. ४. पे नाम, शंखेश्वरपार्श्वजिन गीत, पृ. ९आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. भाणविजय, मा.गु., पच, आदि: श्रीशंखेश्वर प्रभू अंतिः वीनती सूणो नीतमेव रे, गाथा - ५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजब सुरति दादा पासजी; अंतिः तथे सुरनर आइबो, गाथा-४. २२५१०. स्तवन, गीत, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०, कुल पे. १११, प्रले. पं. तिलकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१२, १५ - १७३७-४९). १. पे नाम, पंचासरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: छांजि छांजि छांजि; अंति: मोहनविजये ध्यायो, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेडुंजे शिखर; अंतिः जय० मोहन लहे अल्हाद, गाथा-७, ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. १४९ मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित अजित जिन; अंति: रस आनंदस्यु चाखे, गाथा - ९. ४. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ अरज सुणो प्रभुः अंतिः मोहन जिन बलिहारी रे, गाथा- ७. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि का रथ वाळो हो राज; अंतिः मोहन रूप अनुपनो, For Private And Personal Use Only गाथा- ७. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे रथ वालो; अंतिः मोहन कहेसायं बास, गाथा- ७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजिणंद; अंति: मोहन० छेजी राज्य, गाथा- ७. ८. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरो थे मानो हो; अंतिः सेवक करी जाणो रे, गाथा - ५. Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे धर्मजिण; अंति: मोहन० अति घणो रे लो, गाथा-७. १०. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणो एक सुविधि; अंति: मोहनविजय० सिरनामी, गाथा-७, (वि. हकीकत में यह स्तवन सुविधिजिन का है. लेकिन प्रतिलेखक ने आदिवाक्य में सुविधि की जगह शीतल लिखा है.) ११. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शेत्रुजानो वासी; अंति: बोले आ भव पार उतारइ, गाथा-६. १२. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउडा जिनचरणारी सेवा; अंति: मोहन अनु भव मांगे, गाथा-५. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु.ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: अंखीयां हरखण लागी; अंति: भव भय भावठ भागी, गाथा-४. १४. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजीगणि, पुहिं., पद्य, आदि: में कीनो नहीं तुम; अंति: तामें लीजे भक्तिपराग, गाथा-५. १५. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर विनये; अंति: करो सुपसाय जिणेसर, गाथा-५. १६. पे. नाम. पार्श्वजिनगीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चिंतामणिसामी साचा; अंति: करे बनारसी बंदा तेरा, गाथा-४. १७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरिक्ष, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, मु. आनंदवर्धन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुख देख्यो श्रीजिन; अंति: धन धन साधन वंछित आजो, गाथा-४. १८. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरख नर काहिकुं करत; अंति: धरि भगवंत को ध्यान, गाथा-३. १९. पे. नाम. ऋषभजिन गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. आदिजिन गीत, मा.गु., पद्य, आदि: जिन तेरो दरिसन है; अंति: लागत मिष्ट सुधारी, गाथा-४. २०. पे. नाम. त्रणचौवीसीजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. अतीतअनागतवर्तमानचौवीसीजिन स्तवन, मु. सिंहउदय, मा.गु., पद्य, आदि: आरती श्रीजिनराज की; अंति: उदय भव भव ज सुहाई, गाथा-७. २१. पे. नाम. अरीहंत बारगुण आरति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ___ अरिहंत बारगुण आरति, मु. तिलकउदय, मा.गु., पद्य, आदि: आरती श्रीजिनराज की; अंति: आरति ए तिलकोदय गाइ, गाथा-५. २२. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: पारकरो श्रवणे सुण्यो; अंति: मनवंछित फल पाय रे, गाथा-४. २३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात भयो प्रात भयो; अंति: शिवसुख कोन लहे रे, गाथा-३. २४. पे. नाम. श्रीसिद्धाचल स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आखडीय मे आज; अंति: ते श्रीआदेसर तुठारे, गाथा-७. २५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-जगवल्लभ, पृ. ६अ, संपूर्ण. म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पण छे पूज्यानु रे; अंति: कर्मनी कासल काढि, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १५१ २६. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जाणे रे प्रभु वाता; अंति: न जावत शोभा तन की, गाथा-७. २७. पे. नाम. साधारणजिनजन्म स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. वीरजन्मोत्सव स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनमुख देखण जावू; अंति: विमल प्रभु ध्याउरे, गाथा-५. २८. पे. नाम. संभवजिन गीत, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: लीनो रे मन संभवजिन; अंति: अधिक करी गिनसे, गाथा-४. २९. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. ६आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जीउ वखत लिख्या सुख; अंति: धरम साचो सरदहीदं रे, गाथा-३. ३०. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय, पृ. ७अ-११अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमी; अंति: ए गायो सफल जगीस रे, सज्झाय-११. ३१. पे. नाम. चौवीसजिन भवगाथा, पृ. ७आ, संपूर्ण. २४ जिन भव गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तेरस भवरीसह अठसय; अंति: वीर सगवीश सेस तीगं, गाथा-१. ३२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जागि जागिरे नगइ भोर; अंति: तो निरंजन पद पावे, गाथा-३. ३३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आज चित चेत प्यारे; अंति: जोर तुं यतन कर तसो, गाथा-२. ३४. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, पृ. ११आ-२१आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्तधरीजी; अंति: भणे० लीजे प्रवचन सार, सज्झाय-३६. ३५. पे. नाम. सप्तव्यसन सज्झाय, पृ. २१आ-२३अ, संपूर्ण. मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धारथ कुल तणो; अंति: आराधो जिन वाणी रे, सज्झाय-७. ३६. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २३अ-२४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६१०, आदि: सासना देवी मन धरीए; अंति: सुख लहे घणां, गाथा-४५. ३७. पे. नाम. मुहपत्तिपडिलेहण स्वाध्याय, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. मुहपत्तिपडिलेहण सज्झाय, संबद्ध, मु. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचन सदा अनुसरी; अंति: कुशल कहे मन उल्लास, गाथा-८. ३८. पे. नाम. शत्रुजयगिरि स्तवन, पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन बृहत्-शत्रुजय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीअसयल जिणंद; अंति: ते पामे भव पार ए, गाथा-२२, (वि. इस प्रति में कर्ता के गुरु का नाम विमलविजय मिलता हैं. जो वास्तव में विमलहर्ष हैं.) ३९. पे. नाम. शत्रुजयगिरि स्तवन, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इणे डुगरीये मन मोही; अंति: जनम सफल होइ तास हो, गाथा-१३. ४०. पे. नाम. चोवीसदंडक स्तवन, पृ. २६आ-२८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल-४, गाथा-३४. ४१. पे. नाम. महावीरस्वामि स्तवन, पृ. २८अ-२९अ, सपूर्ण. For Private And Personal use only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीर जिन विनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंतिः श्रुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा - १९. ४२. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. २९अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सामलीयाजी घरि आवकिं; अंति: सिवपद ते लहे हो, गाथा- ७. ४३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २९आ, संपूर्ण. नमिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पियुजी पियुजी रे; अंति: पाय भेटे आस्या फली, गाथा-७. ४४. पे. नाम. श्रीजीराउला पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २९आ - ३१अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीराउलि मंडण पास अंतिः भणे० नवनिद्ध आंगणे, गाथा-३४. ४५. पे नाम, अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ३१अ संपूर्ण - मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापदगिरि जात्रा; अंति: सुरनर नायक गावे, गाथा ८. ४६. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ३१-३१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे रहो रे यादव; गाथा - ७. ४७. पे. नाम. शत्रुंजय स्तवन, पृ. ३१आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराजको परम जस गावन; अंतिः परमानंद पद पाव रे, गाथा- ४. ४८. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर सारी बालकुंआरी; अंति: मनोरथ फलीया, गाथा-६. ४९. पे नाम. शांतिजिन गीत, प्र. ३२अ संपूर्ण. यादव; अंति: हरखित मेरी आंखडीयां, शांतिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा शांति जिणंद अंतिः शीश धर्यो उच्छंग छे जी, गाथा-४. ५०. पे. नाम. शत्रुंजय गीत, पृ. ३२अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थं गीत, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः शेत्रुंजो जोयानो; अंतिः कांति नमे करजोडि रे, गाथा-४, ५१. पे नाम, ऋषभ गीत, पृ. ३२अ - ३२आ, संपूर्ण. आदिजिन गीत, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी कौण करे री; अंति: भवजल सिंधु तरे री, गाथा-४. ५२. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. ३२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: माया कारमी रे माया; अंति: सुगति गया साखी, गाथा - ७. ५३. पे. नाम. स्थूलीभद्र गीत, पृ. ३२आ, संपूर्ण. - स्थूलभद्रमुनि गीत, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सखि तम्ह प्यारेकुं; अंतिः सेती प्रीति बनाई, गाथा ३. ५४. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन प्र. ३२-३३अ, संपूर्ण. 2 मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिन सहज सुरंगा; अंति; कुशल गुण गाया रे, गाथा-५, ५५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३३अ, संपूर्ण. वा. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि; होरे स्वामी होय; अंति: नेमिराजुल शिव संग, गाथा- ६. ५६. पे. नाम. आदिनाथवीनती नारकीविचारगर्भित स्तवन, पृ. ३३अ-३४अ, संपूर्ण. नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि : आदिजिणंद जुहारीयइ मन; अंति: स्वामी सुमिरण पाइये, ढाल- ४, गाथा - ३४. For Private And Personal Use Only ५७. पे. नाम. निश्चयव्यवहार सज्झाय, पृ. ३४अ - ३५अ, संपूर्ण. आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर रे देशना; अंतिः वीतराग एणि परे कहे, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा की एक गाथा गिनकर गाथांक १६ की जगह ८ दिया है.) Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १५३ ५८. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ राजगीता, पृ. ३५अ-३७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल तणी कल्प; अंति: जिन चरणतणी राजगीता, गाथा-३६. ५९. पे. नाम. निश्चयव्यवहारनयगर्भित स्तवन, पृ. ३७अ-३९अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिणेसर अरचित; अंति: जसविजय जयसीरी लहे, ढाल-६, गाथा-४८. ६०. पे. नाम. जीवविचार स्तवन, पृ. ३९अ-४२आ, संपूर्ण. मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसतीजी वरसति; अंति: विजय पभणे आनंदकारी, ढाल-८, गाथा-७८. ६१. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ४२आ, संपूर्ण. उपा. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन जो तुंग्यान; अंति: अंतरदृष्टि प्रकासि, गाथा-८. ६२. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. ४२आ-४३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार; अंति: तुंही ज अम्ह आधार, गाथा-७. ६३. पे. नाम. स्थूलिभद्र धमाल, पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण. मु. धनजी, मा.गु., पद्य, आदि: फागुण फाग मिली सब; अंति: हो सील वडो संसारि, गाथा-१०. ६४. पे. नाम. आत्मशिक्षा स्वाध्याय, पृ. ४३आ, संपूर्ण. आत्मशिक्षा सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: भवसायर तरवा भणी; अंति: मुगतिरमणी को अंत, गाथा-११. ६५. पे. नाम. तीर्थमाला स्तवन, पृ. ४३आ-४४अ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजे ऋषभ समोसर्य; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-१६. ६६. पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. ४४अ-४४आ, संपूर्ण. मु. सदारंग, मा.गु., पद्य, आदि: ए संसार अथिर करी; अंति: कहे इण से टलणा, गाथा-१२. ६७. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ४४आ-४५अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलग अजित जिणंदनी; अंति: मोहन० जिन अंतरजामी, गाथा-५. ६८. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वस्तवन, पृ. ४५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामणि पासजी नील; अंति: रूपनो दास सनाथ न किध, गाथा-७. ६९. पे. नाम. कुमतिउत्थापनसुमतिस्थापन महावीरजिन स्तवन, पृ. ४५अ-४६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. महावीरजिन स्तवन-कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: श्रीश्रुतदेवीने चरण; अंति: मुजने सदगुरू तूठो रे, गाथा-४०. ७०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४६आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी; अंति: नवनिधि कोड कल्याण, गाथा-७. ७१. पे. नाम, बाहुबली सज्झाय, पृ. ४६आ-४७अ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीराजी मानो वीनती; अंति: मुझ वंदन होजो तास, गाथा-९. ७२. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ति स्वाध्याय, पृ. ४७अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी C For Private And Personal use only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि सनतकुमार हो; अंति: कहे ऋषिजी समरंताजी, गाथा-७. ७३. पे. नाम. विजयप्रभसूरि स्वाध्याय, पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी वर सारद सूरी; अंति: इम मानविजय गुण गावे, गाथा-९. ७४. पे. नाम. भगवंतनी ८४ आशातना, पृ. ४७आ-४८अ, संपूर्ण. जिनभवने ८४ आशातना नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्लेष्म न नांखे १; अंति: नही व्यापार वात करे. ७५. पे. नाम. क्रोध स्वाध्याय, पृ. ४८अ-४८आ, संपूर्ण. क्रोध सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न कीजे रे भोला; अंति: उपसम आणी पासे रे, गाथा-९. ७६. पे. नाम. मान स्वाध्याय, पृ. ४८आ, संपूर्ण. मान सज्झाय, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान न करस्यो कोई; अंति: नवानगर रही चोमासे हो, गाथा-८. ७७. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. ४८आ-४९अ, संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: कहे० सुख निरवाण हो, गाथा-७. ७८. पे. नाम. लोभपरिहार स्वाध्याय, पृ. ४९अ, संपूर्ण. लोभ सज्झाय, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: पहोचे सयल जगीस रे, गाथा-७. ७९. पे. नाम. काया स्वाध्याय, पृ. ४९अ, संपूर्ण. काया सज्झाय, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हूं तो वारुं छु; अंति: भणे जीउ आवागम निवारी, गाथा-५. ८०. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४९अ-४९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलगी रहेने रहेने; अंति: जिनगुण स्तुति लटकाली, गाथा-५. ८१. पे. नाम. समस्या पदसंग्रह, पृ. ४९आ-५०अ, संपूर्ण. समस्या पद संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: श्याम सरोवर सफेद जल; अंति: पंडित जुओ विचारी, गाथा-१३. ८२. पे. नाम. प्रतिमास्थापनावीरजिन स्तवन, पृ. ५०अ-५४आ, संपूर्ण. प्रतिमास्थापनवीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा शिर वहस्ये जी, ढाल-६, गाथा-१४८. ८३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५४आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही राउ; अंति: सेवे बे कर जोडी रे, गाथा-५. ८४. पे. नाम. कुमति स्वाध्याय, पृ. ५५अ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेद पूजा फल; अंति: तेह तर्या ने तारे रे, गाथा-९. ८५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-कुमतिउत्थापनसुमतिस्थापन, पृ. ५५अ-५६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हई है. महावीरजिन स्तवन-कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: श्रीश्रुतदेवी तणे; अंति: मुजने सदगुरू तूठो रे, गाथा-४०. ८६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५६आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, रा., पद्य, आदि: था पर वारी मोटा नेम; अंति: लहे सतिया गुण गायो, गाथा-८. ८७. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५६आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, ग. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: जब मेरो साहिब तोरण; अंति: साची प्रीत लगाई, गाथा-५. ८८. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५६आ-५७अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी जाओ तो तुमने; अंति: रुपविजय जय जयकार जो, गाथा-७. ८९. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. ५७अ-५७आ, संपूर्ण.. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सावणमास स्वाम मेली; अंति: एह नवनिध पामि रे, गाथा-१३. ९०. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. ५७आ-५८आ, संपूर्ण. मु. सुमतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेशर केरो सीस; अंति: शीयल पाले शीवपूर लहे, गाथा-२४. ९१. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ति स्वाध्याय, पृ. ५८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि सनतकुमार हो; अंति: कहे ऋषिजी समरंताजी, गाथा-७. ९२. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ५८आ-५९अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: सुधो धर्म मकिस विनय; अंति: ते चिरकाले नंदोरे, गाथा-९. ९३. पे. नाम. ओगणीसदोष स्वाध्याय, पृ. ५९अ-५९आ, संपूर्ण. काउसग्ग १९ दोष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव समरी अरिहंत; अंति: नयविमल कहे सुजगीश, गाथा-१४. ९४. पे. नाम. अढारदोषरहित आरति, पृ. ५९आ, संपूर्ण. १८ दोषरहित आरती, मु. तिलकोदय, मा.गु., पद्य, आदि: आरती देव निरंजण की; अंति: ते ही करम निकंदन, गाथा-२. ९५. पे. नाम. आत्मशिक्षा स्वाध्याय, पृ. ५९आ-६०आ, संपूर्ण. आत्मशिक्षा सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: भविक जन भज ले रे भज; अंति: ज्यु पामो भव पार, गाथा-२५. ९६. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ६०आ-६२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पासजिणेसर; अंति: गुणविजय रंगि मुणी, ढाल-५, गाथा-४९. ९७. पे. नाम. थुलिभद्र स्वाध्याय, पृ. ६२अ-६२आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल दे मात मल्हार; अंति: लीला लखमी घणी जी, गाथा-१७. ९८. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६२आ-६३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुख पंकज; अंति: उदय सुसेवक तास तणो, गाथा-७. ९९. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ६३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. तिलक, मा.गु., पद्य, आदि: अली रे में पेखुं जई; अंति: तिलकने होजो तरन, गाथा-७. १००. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ६३अ-६३आ, संपूर्ण... आदिजिन स्तवन, मु. कांतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजानो सामी; अंति: कांतिविमल जय जयकार, गाथा-७. १०१. पे. नाम. रात्रीभोजन स्वाध्याय, पृ. ६३आ-६४अ, संपूर्ण.. रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितलि वारु वसेजी; अंति: सारिउ आपणुं काज, गाथा-१९. १०२. पे. नाम. जंबूकुमार स्वाध्याय, पृ. ६४अ-६४आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजिओ; अंति: पहुंता में दुवार, गाथा-१७. १०३. पे. नाम. अनाथीमुनि स्वाध्याय, पृ. ६४आ-६५अ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: वंदे रे बे करजोडि, गाथा-९. For Private And Personal use only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०४. पे नाम, नेमिजिन बारमासो, पृ. ६५अ-६८अ, संपूर्ण. नेमराजुल बारमासो, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: प्रणमुं विजया रे; अंति: गुण गाईया लाभ जाणी. १०५. पे नाम, आत्मशिक्षा स्वाध्याय, पृ. ६८-६९अ, संपूर्ण आत्मशिक्षा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शांति सुधारस कुंडमां ; अंति: सुख चित्त पूरि रे, गाथा - २०. १०६. पे. नाम. २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, पृ. ६९-७०अ, संपूर्ण. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा - २९. १०७. पे नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. ७०अ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थं मंडन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर सेवना; अंतिः मोहन जय जयकार, गाथा- ७. १०८. पे. नाम चेतना गीत, पृ. ७०आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि जब लगे आवे नही मन; अंतिः विलासी प्रगटे आतमराम, गाथा - ६. १०९. पे नाम श्रेणिकविनती पद, पृ. ७०आ, संपूर्ण उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी नरक पडतो; अंति: समयसुंदर गुण गाई रे, गाथा ४. ११०. पे नाम, साधारणजिन गीत, पृ. ७०आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हे जिनभजन को परिमाण; अंतिः शुद्ध जिनवर नाण, गाथा-५. १११. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ७०आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि पामी प्रभुजीना पाय अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ तक है.) २२५११. (०) सझाय, स्तवनादि संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३ - १ (१) १२, कुल पे. २८, ले. स्थल. मागरोल, " प्र. मु. नेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक ७आ पर जिनचैत्व का चित्र दिया गया है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., ( २४x११.५, २३ - ३६X१७-१९ ). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ - २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: (-); अंति: मुदा प्रसन्नः, श्लोक-३२, (पू.वि. गाथा - ७ तक नहीं है. ) २. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. २आ - ३अ, संपूर्ण. क. चतुरंग, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर महियल विचरे; अंतिः कवि इणि परे वीनवे, गाथा-६, ३. पे. नाम. नेमनाथस्वामिनो नवरसो, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: प्रभु उतारो भवपार, ढाल-९. ४. पे. नाम. आषाढाभूति सज्झाय, पृ. ५अ - ६आ, संपूर्ण. मु. भावरल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी हिह अंतिः कहे सुजगीसो रे, ढाल ५. ५. पे. नाम श्लोक संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - २. ८. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ८अ, संपूर्ण. ६. पे. नाम बाहुबली सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबली सुकल ध्यानें; अंति; तेह समकित सिंधुरा, गाथा-१२, (वि. २ गावा को एक गाथा गिनकर गाथांक ६ दिया है.) ७. पे नाम ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि ज्ञाताधर्मकथा छठु अंति: कहे० नीत भजीए हो लाल, गाथा ५. For Private And Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ९. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरुने लागु पाय; अंति: सेवकने मोक्ष देखाड, गाथा-११. १०. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-११. ११. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जलजलती बलती घणु रे; अंति: भावे प्रणमे पाय रे, गाथा-९. १२. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी सिद्धाचल; अंति: शीस वल्लभ गुण गायजी, गाथा-७. १३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी सीमंधर; अंति: वाधे मुज मुख अतिनूरो, गाथा-७. १४. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहजानंदी थयो; अंति: जिनविजय आनंद सोहावे, गाथा-५. १५. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १०१-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने इस कृति को पत्रांक १०आ से प्रारंभ कर के पत्रांक १०अपर समाप्त की है. महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: भवोभव तुम पाय सेव हो, गाथा-५. १६. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. १७. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साहिब; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-७. १८. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. वा. जस वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत जिनशुंकरो; अंति: मुज प्रेम अभंग रे, गाथा-५. १९. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण... वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणेसर चरणनी; अंति: हुओ मुज मन काम्यो. २०. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सांभलो विनति; अंति: तणी ए विनती विवेक, गाथा-८. २१. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपद्मप्रभुना नाम; अंति: मुको बीजो वाद, गाथा-५. २२. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: मुरत मोहन वेलडीजी; अंति: ऋषभदास गुण गेलडीजी, गाथा-४. २३. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: कुंथु जिणेसर सामी रे; अंति: अमृत सुख रंगने दीजे, गाथा-७. २४. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाति, पृ. १३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: मुगति तणा फल त्याह, गाथा-६. २५. पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. १३अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल; अंति: करी विमलाचल गायो, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६. पे. नाम. प्रभाती स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मे परदेसी दूरका दरसन; अंति: कहे. निरंजन गुण गाया, गाथा-४. २७. पे. नाम. प्रभाती स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिनगीत, म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे एही जचाहीइं; अंति: करो कछु ओर न चाहु, गाथा-३. २८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिन क्यारे आवशे; अंति: त्यारे निरमल थासुं, गाथा-८. २२५१२. स्तवन, सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, कुल पे. ११०, जैदे., (२४४१२, २१-२४४४४-४५). १. पे. नाम. सुमतिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: कोसलपुर रलीयामणु; अंति: चंद्रभाणजी विचार, गाथा-१३. २. पे. नाम. अनंतनाथजी स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अनंतजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतजिन अवतारी नित; अंति: गुणीया दुख नासे हो, गाथा-११. ३. पे. नाम. कुंथुनाथजी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. कुंथुजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: सुर नरेशर गजपुर; अंति: रिख चंद्रभाणजी रागी, गाथा-१७. ४. पे. नाम. अरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: भरतखंड नागपुर भारी; अंति: ध्यान अटल प्रभू तेरो, गाथा-१५. ५. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अभयदान छमछर देय; अंति: बहु छे अधकारो, गाथा-१७. ६. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: राजग्रही रलियामणीजी; अंति: पढीया रे तवन उदार, गाथा-१५. ७. पे. नाम. औपदेशकि सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: प्यारो मोहनगारो राज; अंति: मुक्ति ले जावै, गाथा-१२. ८. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतगुपतसुत संयमधारी; अंति: गुण गिणत नही गुरुराय, गाथा-९. ९. पे. नाम. अमरकुमार सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी भली; अंति: पाप तणां फल खोटा रे. १०. पे. नाम. ७ व्यसन सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: परउपगारी साध सुगुरु; अंति: रागी जिणरंग इम भणे, गाथा-१७, (वि. वास्तव में ९ गाथा होनी चाहिये. ऐसा लगता है कि एक गाथा को दो गाथा गिनकर १७ गाथाएँ लिखी गई हों.) ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. जयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सिखण सिखण मै समझो आप; अति: दानथी वंछित वीसवावीस, गाथा-२६. १२. पे. नाम. रोहिणी कथा, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण. मु. विनयचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर जेहने; अंति: दुक्कडं तेम ए, ढाल-६. १३. पे. नाम. राजिमती सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. ___ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरु प्रणमुजी पाय; अंति: सवपुर लीला भोगवीजी, गाथा-१४. १४. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करनी छे दुखहरनी एह गाथा - २२. १५. पे. नाम. ६ संवर सज्झाय, पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: पहेलो संवर जिनवर कहे; अंतिः मुक्ति लीला वेगा वरी, गाथा- ६. १६. पे. नाम. शांतिजिन छंद, पृ. ८आ - ९अ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शारद मात नमुं सिरनाम; अंति: नर मनवांछित फल पावै, गाथा- २३. १७. पे नाम, सासुबहु सज्झाय, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सामु कर बहु बाता; अंतिः कीजे कुलवंती नरनारि, गाथा- १६. १८. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे; अंति: गाया सुख लहे अपारो, गाथा - २०. १९. पे. नाम, नारी सज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - सतीकुसती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि; बात सुणो नारि तणी; अंति: काढ्या कर्मना साल हो, गाथा २०. २०. पे. नाम. स्त्री सज्झाय, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नारी, मा.गु., पद्य, आदि नारि नहिं कोई नागणी; अंतिः दसविकालकै माहि रे, गाथा- ११. २१. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. मु. रायचंद, रा., पद्य, वि. १८२५, आदि: पुरव माहाविदेह भलो; अंतिः थाने करूं त्रिकाल, गाथा - १०. २२. पे. नाम महावीरजिनविनती स्तवन, पृ. १०आ ११अ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती; अंति: सं त्रिभवनतिलो, गाथा - २०. २३. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. ११अ ११आ, संपूर्ण. मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: साध कठै तूं सांभल; अंतिः खासी जो नही करसी धरम, गाथा- ११. २४. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. खीमा, मा.गु., पद्य, आदिः कचा था सोई चल गया; अंतिः आयो जीण दिस जाय रे, गाथा - ११. २५. पे. नाम. आदिजिन सज्झाय, पृ. ११आ - १२अ, संपूर्ण. मु. रायचंद, रा., पद्य, आदि: भरत कहै करजोडि भलो; अंति: एम कब ले बात आगे घणी, गाथा - १४. २६. पे नाम, युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १२अ संपूर्ण, मु. रायचंद, रा., पद्य, बि. १८४४, आदि: जगगुरु जगमंदरस्वामी; अंतिः परि प्रीत रही भेला, गाथा - १०. २७. पे नाम, जुवटापरिहार सज्झाय, पृ. १२-१२आ, संपूर्ण सीखामण सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही हो सांभले; अंति: आणंदजी कहे करजोडि रे, गाथा - ११. २८. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: साधो भाई अब हम कीनी; अंति: मुक्त महानिध पाइ, गाथा - ७. २९. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १२-१३अ, संपूर्ण. १५९ क्र. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८२, आदि आदिजिन अरज सुणोजी; अंतिः तम भवदुख द्यो टाली, गाथा- ७. ३०. पे नाम, बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मासखमणने पारर्णे तपसी; अंति: चोथमल कहे० भाव रे, गाथा - १४. For Private And Personal Use Only ३१. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. १३अ - १३आ, संपूर्ण. अन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवीर वखाणी हो; अंतिः रतन कहै करजोडी, गाथा - १४. ३२. पे नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. हीरानंद, मा.गु., पद्य, आदि: बाल ब्रह्मचारी हो; अंति: विनतडी अवधार हो, गाथा - ५. Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३. पे. नाम. शांतिजिन प्रभाती, पृ. १३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात उठ श्रीसंतिजिण; अंति: पापी जाए करती टली, गाथा-९. ३४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: तुं धन तुं धन तुं; अंति: तो म सहु भर पामी, गाथा-५. ३५. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: लाभ नहि लियो जिणंद; अंति: भव दूर कुगुरु भजके, गाथा-५. ३६. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १४अ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रह उठी प्रभाते; अंति: हवा हरख हल्लास, गाथा-११. ३७. पे. नाम. तप सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. ऋ. आसकरण, रा., पद्य, आदि: तप बडो संसार मे जीवा; अंति: वरत्यो जे जेकारो रे, गाथा-१५. ३८. पे. नाम. पंचमंगल स्वाध्याय, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: असपलजी मंगल अरहंतदेव; अंति: एतो जी मंगल पांचमो, गाथा-५. ३९. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. १५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रह उठी; अंति: निश्चै पावो निरवाण, गाथा-८. ४०. पे. नाम. श्रावकधर्म सज्झाय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक धर्म करो; अंति: जे हुवा पडिमाधारीजी, गाथा-११. ४१. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. मु. सरूपजी, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर सीमंधर प्रभु; अंति: कहे सतगुरुनो उपगारो, गाथा-५. ४२. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. वसंत, रा., पद्य, वि. १८२६, आदि: सीमंधर स्वामीजी समरु; अंति: प्रभूजी का जस गाया, गाथा-८. ४३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी मे चरणा; अंति: तूम समरथ साहब मेरा, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा परिमाण ७ दिया है किंतु देखने पर प्रतीत होता है कि गाथा परिमाण ४ ही योग्य है.) ४४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: धर ध्यान भगवान का; अंति: गावोने संत सुजान रे, गाथा-१४. ४५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १६अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: चली जारी चली जारी; अंति: कोई संगीन साथी, गाथा-१०. ४६. पे. नाम. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, पृ. १६अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शुक्लपक्ष विजया व्रत; अंति: सेठ कथा हो मुख आणी, गाथा-१५. ४७. पे. नाम. सनत्कुमार सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. कुशलमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपत आप करे प्रसंसा; अंति: प्रणमुंसीस नमाय, गाथा-१५. ४८. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. देवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हां रे चतुरनर मनकुं; अंति: तुम चालो सावधान साना, गाथा-७. ४९. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. मु. अखेमल, पुहि., पद्य, आदि: खबर नहीं है जग में; अंति: जिणमे वीनती अखेमल की, गाथा-९. ५०. पे. नाम. नेमिजन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, क्र. सुंदर, पुहि., पद्य, आदि: जादूबंसी नेमजिणेसर; अंति: सरणा दोउ चरणांदा, गाथा-१७. ५१. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १७आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org मु. डुंगरमल, पुहिं., पद्य, आदि: जाके सिस उपर मुकट; अंति: फरसत वहंगे सव नार, गाथा - ६. ५२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १७आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. पुहिं., पद्य, आदि: काया का गढ कोट बणाया; अंति: कही मे राह लीनी तास, गाथा-४. ५३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १७आ - १८अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि समुद्रविजयजीरा लाडला; अंतिः कोई क्यों जय जयकार, गाथा - ११. ५४. पे. नाम राजीमती सज्झाय, पृ. १८अ संपूर्ण. , राजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि धन धन सीयल सिरोमणी; अंतिः हो चिंता सब जाय, गाथा - ९. ५५. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १८अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: किसके शरणे जाउं नेम; अंति: अजर अमर पद पाउं, गाथा - ६. ५६. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १८अ - १८आ, संपूर्ण. मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि धर्म पावे तो कोइ अंति: ज्युं पामो भवपारोजी, गाथा- ८. ५७. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कर्म गति काहू न; अंतिः दुख छिन में जाहि टरइ, गाथा - ७. ५८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १८आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समायक पूजा नही कीनी; अंतिः तई निज मैल न धोयो, गाथा- ४. ५९. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. १८आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे मुनिवर देखर वनमे; अंति: नित प्रत ध्यान जतनमै, गाथा-५. ६०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १८आ, संपूर्ण. मु. . देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: कर्म शत्रु मारो काइ; अंति: पालो सुखदाय हो, गाथा - ३. ६१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १८आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रामकृष्ण शिष्य, पुहिं., पद्य, आदिः करतलये कबु करते की; अंतिः रहट जेसै भर भर झरीया, गाथा-३, ६२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १८आ - १९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि छांडो मन चपलाह; अंतिः फिर पाछड़ पिछलाह, गाथा- ७. ६३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हाहाकार करत; अंतिः जाय कहीयो मोरा बीर, गाथा ४. ६४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १९अ, संपूर्ण. मु. रुपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरि करे तो तेरा जनम; अंति: मंडप सब छांडलो रे, गाथा - ३. ६५. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. १९अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सजन समझाओ अपने दाल; अंति: आवता नीत उठ दरसन कुं, गाथा- ४. ६६. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. १९अ - १९आ, संपूर्ण नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि: दरसन सिंध भए नो निध; अंति: ए जीवत वैर सोईजी, गाथा-७. ६७. पे नाम, नेमिजिन विवाहलो, पृ. १९आ, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि: काटा लगै दुख पैरु; अंति: मनवंछित फल पावैजी, ६८. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १९आ, संपूर्ण. गाथा - १३. ७०. पे नाम, देवानंदा सज्झाय, पृ. २०अ, संपूर्ण. गाथा - ६. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: परमहंस कुं चेतना रे; अंति: साचो अरथ विचार, गाथा - १०. ६९. पे. नाम. काल सज्झाय, पृ. १९आ - २०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: इण काल रो भरोसो भाई; अंतिः कहे० कीजो धर्म रसालो, For Private And Personal Use Only १६१ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: आचारांगमाहे वखाण्या, गाथा-१०. ७१. पे. नाम. वणजारा सज्झाय, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. छजमलजी, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर वणजारा हो सारद; अंति: शिवपुर लीला भोगवे, गाथा-२७. ७२. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. मु. गुलाबकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: गिरनारी की पहारी पर; अंति: गुलाबकिर्ति० बसरी, गाथा-१३. ७३. पे. नाम. आत्मा सज्झाय, पृ. २१अ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: एकाया अरु कामणी; अंति: स्वारथ का संसार, गाथा-५. ७४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २१अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जूठीप्रीत, मु. जिनतुलसी, पुहिं., पद्य, आदि: देसडो विराणो रे अपनु; अंति: पूगे मेरा मननी रे आस, गाथा-५. ७५. पे. नाम. देशविरतिव्रत सज्झाय, पृ. २१अ, संपूर्ण. मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: दो जोगी आयरी अमा जैन; अंति: सबही व्रत बतलावैरी, गाथा-१०. ७६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. मु. साधुजी ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: आउखो टुटाने साधो; अंति: होजो मुज निस्तार रे, गाथा-८. ७७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २१आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सब दुख टालेंगे; अंति: चिंतामणी तार भवतीर, गाथा-६. ७८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आय तलवदार छोडो नगरी; अंति: नरनारी० परपंच भरी, गाथा-६. ७९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिणराज चरण का ल्यो; अंति: जावै चौरासी फीरना, गाथा-५. ८०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जन्म बनारस ठाम मात; अंति: ऋद्ध सिद्ध मंगल करण, पद-१. ८१. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. २२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिणवर करूं; अंति: गुणुं प्रणमउं निसदीस, गाथा-५. ८२. पे. नाम. परनारी सज्झाय, पृ. २२अ, संपूर्ण. परनारीपरिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रावण मोटो राय कहावै; अंति: तावडौ ढलक जाय ढलको, गाथा-६. ८३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. मु. दयासागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुणी मुज प्राणी सीख; अंति: धर्मे चित लगायो रे, गाथा-९. ८४. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. २२आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: अजी तुम तजकर राजुल; अंति: जिनदास जोड दो कर रे, गाथा-४. ८५. पे. नाम. शीलोपदेश सज्झाय, पृ. २२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मत ताको नार वेराणी; अंति: रतन चिंतामणी जाणी, गाथा-६. ८६. पे. नाम. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं तुमारा पाय; अंति: दीठा एह प्रत्यक्ष, गाथा-६. ८७. पे. नाम. सोलतीर्थंकर स्तवन, पृ. २३अ, संपूर्ण. मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: ऋषभ अजित संभवस्वामी; अंति: आवागमण अलगी करणा, गाथा-११. ८८. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. ग. जीतसागर, पुहि., पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी; अंति: जिण घर नवनिध संपजे, गाथा-१७. For Private And Personal use only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ८९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कायाउपदेश, मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: चरखा भया पुराना रे; अंति: होगा भूदर चेत सवेरा, गाथा-५. ९०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. पुहिं., पद्य, आदि: काया का गढ कोट बणाया; अंति: कही मे राह लीनी तास, गाथा-४. ९१. पे. नाम. आतमध्यान सज्झाय, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. मु. कमलकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: करुंजी कसीदो ग्यानको; अंति: भावसुंसोइ आतमध्यानी, गाथा-९. ९२. पे. नाम. साधुलक्षण सज्झाय, पृ. २४अ, संपूर्ण. साधुलक्षण पद, मा.गु., पद्य, आदि: तारण तरण जिहाज समे; अंति: आदरेजी ते पावे भवपार, गाथा-११. ९३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २४अ, संपूर्ण. मु. भुधरदास ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: अहो जगत गुर एक सुणिय; अंति: प्रभुढील न कीज्यौ, गाथा-१२. ९४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: साहब सब कुछ देह देणा; अंति: करो राज दुरमत परिहरो. ९५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: गुरू का कह्या मान ले; अंति: तुं समजाया बहुतेरा, गाथा-६. ९६. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि; अंति: राणी राजल पुरी आसरे, गाथा-१२. ९७. पे. नाम. शीलमहिमा सज्झाय, पृ. २५अ, संपूर्ण. मु. अमरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरु पाय नमी करी; अंति: मुक्ति मझारी रे, गाथा-१३. ९८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणी रेहूं; अंति: प्रभव आवैरेलार, गाथा-११. ९९. पे. नाम. गौतमस्वामि छंद, पृ. २५आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभूति गौतमस्वामी; अंति: छती ऋद्धि न छटकावो, गाथा-१५. १००. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २५आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चित चाहत सेवा चरण; अंति: भीत मिटावो मरण की, गाथा-७. १०१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २५आ, संपूर्ण. मु. श्रीधर, पुहिं., पद्य, आदि: निकी मूर्ति वामानंदन; अंति: सेवा दाता परमानंद की, गाथा-५. १०२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव भ्रमवश तु; अंति: निरमल भज भगवंतारे, गाथा-१८. १०३. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी; अंति: जासी धन धन मुनिराई, गाथा-२५. १०४. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देश मझारि; अंति: गावे सरीजण राजीयउजी, गाथा-४९. १०५. पे. नाम. दीपावलीपर्व रास, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण. ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवंत को अंति: अवसर लाधो छे आज, गाथा-३२. १०६. पे. नाम. दीपावली सज्झाय, पृ. २८अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: दिवाली दुसमन दुखदाई; अंति: कुसल सदा मन धार, गाथा-११. १०७. पे. नाम. दीपावली पद, पृ. २८अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बिहारीदास, पुहिं., पद्य, आदि: आई ए दिवाली भैडी; अंति: गलाही परचावदा, गाथा-१. १०८. पे. नाम. होलीपर्व सज्झाय, पृ. २८अ, संपूर्ण. मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: होली रंड कहां ते आई; अंति: कुसल० कोण बडाई, गाथा-१०. १०९. पे. नाम. महावीरजिन पारणा स्तवन, पृ. २८अ-२९अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणा, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: तेहने नमे मुनि माल, गाथा-३०. ११०. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. २९आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लालचंदजी, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: श्रीवीतराग चरण नमुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) २२५१३. सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९५९, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(५)=६, कुल पे. ४८, ले.स्थल. जामखेड, प्रले. मु. अमी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११.५, १४-१५४३३-४७). १. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नना नगन होयने आयो; अंति: कहे० सदा सुख होवे रे, पद-१. २. पे. नाम. आध्यात्मिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हृदयमा रे महामोह की; अति: अवस्था होत प्रात की, पद-१. ३. पे. नाम. औपेदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, पुहि., पद्य, आदि: तेरा हैं सो कहीं नही; अंति: मुरख क्यों रोता है, पद-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: जैसे काच के महेल बीच; अंति: आप फंद पडा हैं, पद-१. ५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: नंना नाता नीसपद इतने; अंति: में भी तंगी हे, पद-१. ६. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: ठठा ए ठाठ निकम्मा; अंति: दवा से लाभ नहि, पद-१. ७. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीत सहे ताप सहे आप; अंति: भावें रहो वन में. पद-१. ८. पे. नाम. भक्ति सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: पवन प्रगट नहि देखवा; अंति: इम कही तो शकाय छे, पद-१. ९. पे. नाम. भक्ति सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण.. क. गिरधर, पुहिं., पद्य, आदि: पाणी बढीयो नाव मे; अंति: राखी अपना पाणी, पद-१. १०. पे. नाम. समस्या सवैया, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: लगे सींग कुं बोल लगे; अंति: नर कुं क्या लागे, पद-१. ११. पे. नाम. नेमिजिनविवाह सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन विवाह सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: वाजा वाजे नेम द्वारे; अंति: तो मुक्तक सोहे दुर, पद-१. १२. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. क. गिरधर, पुहिं., पद्य, आदि: केसर की क्यारी करूं; अंति: वास नहि छोडे कांदो, पद-१. १३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: मगन हंस दील बीच नीच; अंति: मौन कर मन में रीजे, पद-१. १४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. हिं., पद्य, आदि: दिल तो तुम कुं देते; अंति: आती हैं बरबाद करोगे, पद-१. १५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org हिं., पद्य, आदि: दान करो गरीबो से रे; अंति: क्या बेपरावा हैं, पद- १. १६. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि: जीन कुं हुवा कपखान; अंति: लुकमान के घर में नहि, पद- १. १७. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तकरीर कर लडते मीया; अंतिः आदर बयान नहि पावते, पद- १. १८. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. ३अ संपूर्ण. क. दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: खारा पाणी तणो प्राणी; अंतिः जीव साकरने शुं करे, पद- १. १९. पे नाम. आध्यात्मिक सवैया, पृ. ३अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मानुं ज्यारे वेदमत; अंति: तेनी तो लडाई छे, पद- १. २०. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण. दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: तारो वांक नही एमां; अंति: तेनी साथे लढीयो, पद- १. २१. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. केशवलाल, पुहिं., पद्य, आदि रोगी को इलाज कीजे; अंतिः इलाज नहि काल का पद- १. २२. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि: जुटा को वचन कहां; अंति: पर चित्त नहि दीजीए, पद- १. २३. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि; जेने पास फोज बहु; अंतिः सलगती आगमां सोड ताणी, पद- १. २४. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि: गीरी ओर छुवारा शेव; अंति: द्वादशी की दादी है, पद- १. २५. पे. नाम. दयादान सवैचा, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. सा. धनाश्री, मा.गु., पद्म, आदि रायप्रश्रेणी में अंतिः केइ पुन्यवान पीयो है, पद-१, २६. पे. नाम. आवकोपदेश सवैया, पृ. ४अ, संपूर्ण. सा. धनाश्री, रा., पद्य, आदिः श्रावकनो खाणो पीणो; अंतिः बोगाने मे खावे है, पद- १. २७. पे नाम श्रावकप्रतिमा सवैया, पृ. ४अ संपूर्ण, सा. धनाश्री, मा.गु., पद्य, आदि: पडमधारी श्रावकने दान; अंति: ताला रे नहि वहेनो, पद- १. २८. पे. नाम. भूखदुख सवैया, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: भुखत भीखु करे तकलीफ; अंति: पापणी भुख अभख भखावे, पद- १. २९. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कुप भरे और वाव भरे; अंति: खाडो परमेश्वर कीनो, पद- १. ३०. पे. नाम घडपण सवैया, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पद - १. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: मुख से टपके लार कान; अंति: जरा में ए दुख जागे, ३१. पे. नाम. घडपण सवैया, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: तुं बेठो रेवे घर में अंति: जरा में ए कमबख्ती, पद- १. ३२. पे. नाम. वृद्ध सवैया, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि घटी आंख की जोत शोच; अंति: जरा से काज नहि सरता, पद- १. ३३. पे. नाम. घडपण सवैया, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: डग डग हाले नाड पाव; अंतिः डोकरो पाछा ठेले, पद- १. ३४. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. ४आ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: आवती वखत में आश्रव; अंति: जद संसार को पार पावे, पद- १. ३५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ४आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only १६५ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहि., पद्य, आदि: अंधे कुं बेठके; अंति: आगे तंदुल बजाई, पद-१. ३६. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ___ औपदेशिक सवैया *, पुहिं., पद्य, आदि: देह अचेतन प्रेत धरी; अंति: (-). ३७. पे. नाम. पल्योपममाप सवैया, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुवो पल पुर एक जाणीए, गाथा-१, (पू.वि. प्रारंभिक कुछेक अंश नहीं हैं.) ३८. पे. नाम. जीवदया सवैया, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चंपो चमेली गुलदावदी; अंति: ताकुं वंदना हमारी है, पद-१. ३९. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मनोहर नगर कोट कांगरा; अंति: दयादान के दातार है, पद-१. ४०. पे. नाम. साधुगुण सवैया, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: महासंजम सुधीर तोडी; अंति: गुरूदेव जग तार है, पद-१. ४१. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वार वार में पुकार कर; अंति: जगदीस कुं विसार के, पद-१. ४२. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ६आ, संपूर्ण. फकीर दरस, मा.गु., पद्य, आदि: साइ दिन संसार विचार; अंति: जुग जीया तोय खपना है, पद-१. ४३. पे. नाम. साधुवंदना सवैया, पृ. ६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अकल बहोत उंडी साचो; अंति: ताकुं वंदना हमारी है, पद-१. ४४. पे. नाम. साधुसत्यावीसगुण सवैया, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नमु अणगार सब महाव्रत; अति: ताकुं वंदना हमारी है, पद-१. ४५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. रामचंद, पुहिं., पद्य, आदि: बंदी ज्यु संसारीनर; अंति: जैसी शेरी नहि आगे है, पद-१. ४६. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: छ वांकडी मुछवाला; अंति: रामा ए भमाडीया, पद-१. ४७. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. हर्षगीर, मा.गु., पद्य, आदि: जगतनी टाढने मटावा तु; अंति: ते तुं नजरे निहालजे, पद-१. ४८. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. हर्षगीर, मा.गु., पद्य, आदि: जगत तणाय ते तो; अंति: ते तुं नजरे निहालजे, पद-१. २२५१४. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ५, ले.स्थल. रीयां, प्रले. मु. दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १९x४९-५१). १. पे. नाम. नवतत्त्व विचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना१४ अजीवना१४; अंति: सिध्या संख्यातगुणा. २. पे. नाम. रूपीअरूपी बोल, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ८ कर्म १८ पाप २ मन; अंति: काल ए ६१ बोल अरुपी. ३. पे. नाम. लघुदंडक, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. लघुदंडकभेद बोल, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर ओगाहणा संघयण; अंति: जोग ३ मन वचन कायारो. ४. पे. नाम. अंगुल विचार, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: से किं तं अंगुले; अंति: आंगुल असंख्यातगुणा. ५. पे. नाम. नवतत्त्व बोल, पृ. ६आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: जीवद्रव्य थकी तो; अंति: कर्मोने मुकावणारो. For Private And Personal use only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १६७ २२५१५. नामनिर्णय विधान, १० दान दोहरा, वेदनिर्णयपंचाशिकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०१, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ६, जैदे., (२५४११.५, १५४३३-३८). १. पे. नाम. नामनिर्णय विधान, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: काहु दिन काहू समै; अंति: दाहे ते निरास निरलेप, गाथा-११. २. पे. नाम. १० दान दोहरा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: गो सुवर्ण दासी भवन; अंति: हित अहित आन की आन, गाथा-१४. ३. पे. नाम. मिथ्यात्व वाणी, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: नारायन देव कौ कहैं; अंति: वयणम्मि खवेई कप्पूर, गाथा-४. ४. पे. नाम. वेदनिर्णयपंचासिका, पृ. ३अ-६अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जगत विलोचन लोकहित; अंति: नर विवेक भुजबल रहित, गाथा-५१. ५. पे. नाम. सद्गुरुआलाप दोहरा, पृ. ६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ज्यौं दातार दयाल होइ; अंति: तूं चातक हु मेह, गाथा-६. ६. पे. नाम. परसंगतिदोष गाथा, पृ. ६अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: पर सुं संग कहा करौ; अंति: लागत है सब दोष, गाथा-२. २२५१६. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २७, जैदे., (२६४११, ११४४२-४३). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ जिनवर अनंत; अंति: मुनि मागइ तिन रत्न, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-शत्रजयमंडन, म.प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धप मप धोउं धोउं मादल; अंति: द्यं संपदा भरपुरजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. विजयसेनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिकुलगयण विभासण; अंति: प्रणमीय देव चक्केसरी, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-शत्रुजयमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शेजूंजमंडण रिसहदेव; अंति: मुगति रमणी ते मनरली, गाथा-४. ५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तपगच्छ नायक विजयसेन; अंति: प्रेमविजय गुण गाय, गाथा-४. ६. पे. नाम. आदीजिन स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजयमंडण रिसह; अंति: विजयनई चित्त धरो, गाथा-४. ७. पे. नाम. आदिनेमिजिन स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुज रिसह; अंति: प्रेमविजयनइ सुखकरु ए, गाथा-४. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-सुलतानपुरमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुलतानपुर ऋषभजी मोहण; अंति: बंधु प्रेम कहइ वली, गाथा-४. ९. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आवो भविजन पूजो भावइ; अंति: हरखी आस्या पुरोजी, गाथा-४. १०. पे. नाम. नेमराजीमती स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजीमती प्रिउं नेमि; अंति: प्रेमनइ चित्त धरु, गाथा-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-अंतरीक्ष, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु.प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनप्रतिमा पूज्या; अति: प्रेम० अंतरीक गुणगाय, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-मक्षीजी, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-मगसी, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मालवमंडण श्रीमगसीय; अंति: मुगति रमणी मन गहगही, गाथा-४. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण.. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संखेसर गोडी जाणीइ; अंति: श्रीसंघनी सानिधि करी, गाथा-४. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंचासरु कु तु सामलु; अंति: जे भणि ते सुख लहइ, गाथा-४. १५. पे. नाम. पंचतीर्थजिन स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ शांति नेमि जाणीइ; अंति: भणि गुणि ते सुख लहइ, गाथा-४. १६. पे. नाम. पंचतीर्थस्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुज समेतसिखर; अंति: प्रेम० पुरु मनह जगीस, गाथा-४. १७. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जयवंता विचरइ सीमंधर; अंति: सासना सानिधि करू घणी, गाथा-४. १८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरगिण नयरी वखाणीय; अंति: सासना सानिधि करु घणी, गाथा-४. १९. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकरण श्रीशांति; अंति: पुहंचाडु अतिघणी, गाथा-४. २०. पे. नाम. षट्पर्वतिथि स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पाखी पुनम बीज पंचमी; अंति: दुर्गति दुरि निवारी, गाथा-४. २१. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शुक्ल बीजनइ मास बारइ; अंति: प्रेमविजय मन तणी आस, गाथा-४. २२. पे. नाम. नवकार स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिध आचरज; अंति: नुकार थुई करी मनरली, गाथा-४. २३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-बुरहानपुरमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बरहानपुर नगरनो राजीय; अंति: बंधु प्रेमविजय कहइ, गाथा-४. २४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-बुरहानपुर, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशलानंदन वीरजी; अंति: हर्षबंधु प्रेम तारीइ, गाथा-४. २५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर जिणंद; अंति: पुहुचाडु अतिघणी, गाथा-४. २६. पे. नाम. मल्लिजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उगणीसमा स्वामी मल्लि; अंति: शिवपुरी तणुअठामि, गाथा-४. २७. पे. नाम. मल्लिजिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मल्लिनाथ पुथवी मनरली; अंति: विजयनई चित्त धरु, गाथा-४. २२५१७. सज्झाय, गीत, दूहादि संग्रह व नाम, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-१(१४)=३२, कुल पे. २७, जैदे., (२५४११.५, १५४३५). For Private And Personal use only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १. पे. नाम. प्रेमपत्री, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. प्रेम पत्री, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीप्रभु; अंति: लगि प्रीति हुसी जसी, गाथा-८८. २. पे. नाम. प्रस्तावीक कुंडलीयाबावनी, पृ. ४अ-९आ, संपूर्ण. __कुंडलियाबावनी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: ॐनमो कहि आदिथी अक्षर; अंति: आदि दे बावन आखर, गाथा-५७. ३. पे. नाम. दहादि संग्रह, पृ. ९आ-३३आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति अनेक अंश में विभक्त है. पत्रांक इस प्रकार है. पत्रांक-९आ-१०अ+११अ-११आ+१३आ+१५अ-१७आ+२२आ-२८आ+३०आ+३२अ-३३आ. काव्य/दहा/कवित्त/पद्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. महादेव गीत, पृ. १०अ, संपूर्ण.. रुघनाथ, पुहिं., पद्य, आदि: सिध थारी नमो अजोनी; अंति: साथ रमै तैत्रीस सुर, गाथा-७. ५. पे. नाम. रामरावणयुद्ध गीत, पृ. १०अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: लंक लगा रे लंक लगा; अंति: राम राजा रे राम राजा, गाथा-४. ६. पे. नाम. अजितसिंघराजा गीत, पृ. १०आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: महामंगला चार उछाह; अंति: आवीयो सुतन जसराज, गाथा-४. ७. पे. नाम. युद्धप्रसंगवर्णन गीत, पृ. १०आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: धरमोल मचे खुरसाण; अंति: फौज अपूठी फेरी, गाथा-४. ८. पे. नाम. स्त्रीसौंदर्यवर्णन पद, प्र. १०आ, संपूर्ण. शृंगारवर्णन गीत, मु. धर्मसिंह पाठक, पुहिं., पद्य, आदि: ठाढे कुच गाढे देखे; अंति: धर्मसीह० पौरीये ऐसे. ९. पे. नाम. जसवंतसिंहराजा गीत, पृ. १२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दल लूंबीया असुर; अंति: तखत ल्यै इसडा दोइ, गाथा-४. १०. पे. नाम. राठोडराजा गीत, पृ. १२अ, संपूर्ण. रूप, पुहिं., पद्य, आदि: चलविचल न हुती पृथवी; अंति: जाणत कुण कहै हुऔ मृत, गाथा-४. ११. पे. नाम. दुर्गादासराजा गीत, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. कर्तानाम नहीं है. दुर्गादासराजा कवित्त, मु. धर्मवर्धन, रा., पद्य, आदि: मोड मरुधर तणा खला; अंति: दूर्गदास राठौड राखी, गाथा-४. १२. पे. नाम. लोक गीत, पृ. १२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जणा घणा जाटणी घरे; अंति: माहोमै जठै रंगी, गाथा-४. १३. पे. नाम. खरतरगच्छीय गीत, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: खेध आगा लगौ बिहु; अंति: कीयो आछौ खास, गाथा-१३. १४. पे. नाम. भुंगरसाई दूहा, पृ. १३आ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: खलहल खलहल नदी वहै; अंति: ल्याई बाई छछि घाती ए, गाथा-५. १५. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमराजिमती गीत, मु. नयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वारूजी वारू करो छो, पद-१. १६. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १५अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, पुहिं., पद्य, आदि: वेगु नहै नांहि छंडि; अंति: ये दिल तइ गमाउंगी, पद-१. १७. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १५अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, पुहिं., पद्य, आदि: मुगति के महल माने; अंति: जैसे प्रीति सती की, पद-१. १८. पे. नाम. छिनालपचीसी, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. छिनालपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: परमुख देखी अपण मुख; अंति: क्या ढोल वजावै, गाथा-२६. १९. पे. नाम. लूकाबहुत्तरी, पृ. १८आ-२१आ, संपूर्ण. लूकाबहोत्तरी, मु. जीवंधर, मा.गु., पद्य, आदि: गुणीयण सुणहु कथा इक; अंति: सो इण विमुखो होइ, गाथा-७३. .. For Private And Personal use only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७० www.kobatirth.org २०. पे. नाम रामजनाकी वंसावली पृ. २१आ, संपूर्ण. , रामजनकी वंशावली, मा.गु., पद्य, आदि: जनकवंशी भाट त्रिलोचन; अंतिः चारण हीरावंशी रबारी. २१. पे. नाम. वाहन नाम, पृ. २२अ, संपूर्ण. २३. पे. नाम. रिपु नाम, पृ. २२अ - २२आ, संपूर्ण. परस्पर रिपु नाम, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रमा रिपु राहु; अंति: कर्ण रिपु शृंगाल. २४. पे. नाम. ईश्वर परिवारादि नाम पू. २२आ, संपूर्ण. अधिपति एवं वाहन नाम, मा.गु., पद्य, आदि: कुष्ण वाहन गरुड; अंति: शेषनाग भमर वाहन कमल. २२. पे. नाम. सुत नाम, पृ. २२अ, संपूर्ण. पिता व पुत्र नाम, मा.गु., पद्य, आदि: कृष्ण सुत कंदर्प अंतिः सुत मोर पवन सुत भीम. सामान्य कृति, प्रा.,मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २५. पे. नाम. पनरइतिथरा सवईया, पृ. २८आ - २९आ, संपूर्ण, ले. स्थल. खंभाइत बिंदर, प्रले. वंशीधर, प्र.ले.पु. सामान्य. १५ तिथि सवैया, जसराज, मा.गु., पद्म, आदिः आज चले मनमोहन कंत; अंति: जसराज सनेह वधार्यो, गाथा - १५. २६. पे. नाम. नेमराजुल बारमास, पृ. २९-३०आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: घनघोर घटा घन कीउनई; अंति: साहिब सिद्धज पौहर, गाथा - १२. २७. पे. नाम, आसिकपचीसी, पृ. ३१-३२अ संपूर्ण. आसीकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि आसिक मोह्यो तुझ रूप; अंतिः सौख्य घणुं लहेस्ये, गाथा - २५. २२५१८. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, प्रकरण, स्तोत्र, स्तवन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, कुल पे. ६७, प्रले. मु. दानोदय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५x१२, १४X३४-३८). १. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ १४अ, संपूर्ण, पे. वि. बीच-बीच में अन्य प्रस्थापित कृतियाँ भी इस में समाहित है. - आवश्यक सूत्र- तपागच्छीय साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंतिः वंदामि जिणे चउव्वीसं. २. पे. नाम वीर स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. ३. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ७अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तव स्तंभनतीर्थमंडन, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति नाथ श्रेयस्तु मे श्लोक-३. " ४. पे. नाम. २२ अभक्ष्य गाथा, पृ. ७अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पंचुंबर चउविगई हिम; अंति: विजुवज्जाणीबावीसं, गाथा - २. ५. पे नाम. ३२ अनंतकाय गाधा, पृ. ७अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: सव्वाउ कंदजाई; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६. पे. नाम. १८ हजारशीलांगरथ गाथा, पृ. ७आ, , संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जे नो करंति मणसा; अंति: खंतजुया ते मुणी वंदे, गाथा - १. ७. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ७आ + ४७अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह -, सं., प्रा., पद्य, आदि: ( - ); अंति: ( - ). ८. पे. नाम. पचक्खाणसूत्र संग्रह, पृ. ७आ- ९अ, संपूर्ण. दसप्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः उगए सुरे नमुकारसिय; अंतिः वत्तियागारेणं बोसिरह, ९. पे. नाम. प्रव्रज्या कुलक, पृ. १२अ १३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: संसार विसम सायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. १०. पे. नाम. सत्तरीसवठाणा यंत्र, पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १७१ तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भत निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ११. पे. नाम. नवग्रहपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा न पीडंति, गाथा-१०. १२. पे. नाम. महावीर चरित्र, पृ. १५अ-१७अ, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीर मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. १३. पे. नाम. भावारिवारणसमसंस्कृत स्तवन, पृ. १७अ-१९अ, संपूर्ण. भावारिवारण स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०, ग्रं. ३५७. १४. पे. नाम. प्रश्नोत्तररत्नमाला, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण. आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. १५. पे. नाम. गौतम कुलक, पृ. २०अ-२१अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सुहं लहंति, गाथा-२०. १६. पे. नाम. संबोधसत्तरी प्रकरण, पृ. २१अ-२४अ, संपूर्ण. संबोधसत्तरी, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-७७. १७. पे. नाम. वृद्धशांति स्तवन, पृ. २४अ-२६अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्या शृणुत; अंति: सुखी भवतु लोकः. १८. पे. नाम. पार्श्वनाथसमस्या स्तवन, पृ. २६अ-२७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं तमहं; अंति: भ्यर्चनोभीष्टलब्ध्यै, गाथा-१३. १९. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणी, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधबीजं ददातु, श्लोक-११. २०. पे. नाम. ऋषभ स्तव, पृ. २८अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अंति: भगवते ऋषभाय नमोनमः, श्लोक-५. २१. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: किं कल्पद्रुमसेवया; अंति: सेव्यतां शांतिरेष स, श्लोक-५. २२. पे. नाम. नेमिजिन स्तोत्र, पृ. २८आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: परमान्नं क्षुधार्तेन; अंति: कथं धन्यतमो नगण्यः, श्लोक-५. २३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २८आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: वासुराः पुण्यभासुरा, श्लोक-५. २४. पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. २९अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कनकाचलमिव धीर; अंति: बोधाः बोधिलाभाय संतु, श्लोक-६. २५. पे. नाम. गौडीपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २९अ-३०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, सं., पद्य, आदि: प्रणमति यः श्रीगौडी; अंति: सुस्वाददां स्तात्, श्लोक-११. २६. पे. नाम. सर्वजिन साधारण स्तोत्र, पृ. ३०अ-३१अ, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. २७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३१अ-३२आ, संपूर्ण. मु. नयरंग, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जयउ रिषभवर्द्धमानौ; अंति: भावइ तेहनी आस्या फले, गाथा-१२. २८. पे. नाम. अष्टोत्तरशतपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र, मु. क्षेमराज, सं., पद्य, आदि: सिद्धक्षेत्रगोपाचल; अंति: राप्नुयात्सुप्रतीतम्, श्लोक-१३. २९. पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-९. ३०. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तव, पृ. ३३आ-३४आ, संपूर्ण. मु. शांति कवि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य परंपरया; अंति: कैवल्यलक्ष्मीकरा, गाथा-१५. ३१. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भयवं; अंति: पढह कयं अभयसूरीहिं, गाथा-२२. ३२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., पद्य, आदि: आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण; अंति: मे हृदि मेरुधीरम्, श्लोक-५. ३३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण. मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथसारथिसारं; अंति: चंडं वंदत यूयमखंडम्, श्लोक-५. ३४. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. ३६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लघु, सं., पद्य, आदि: भजेश्वसेननंदनं मुहर; अंति: सुजैनधर्मवर्द्धनम्, श्लोक-५. ३५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३६अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जय वृषभ वृषभवृषविहित; अंति: शाश्वत शिवसौख्यलील, श्लोक-३. ३६. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: स्तुवंतु जिन; अंति: भवे भवेस्तु मे विभु, श्लोक-३. ३७. पे. नाम. अष्टमहाप्रातिहार्यगर्भित साधारणजिन स्तोत्र, पृ. ३६आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तोत्र-अष्टमहाप्रातिहार्यगर्भित, सं., पद्य, आदि: स्वर्ण सिंहासनं; अंति: श्रेणकस्येव शाखी, श्लोक-३. ३८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: त्रिभुवनजनतारणगुण; अंति: कुसलांबुजबोधनवासरेसु, श्लोक-७. ३९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, मु. जिनचंद्र, सं., पद्य, आदि: भुजंगलक्षणलक्षिण; अंति: सुंदरत्वं दिससत्समाज, श्लोक-७. ४०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: योगात्मनं यं मधुरं; अंति: यद्वान्यकस्य प्रियं, श्लोक-५. ४१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: सर्वदेवसेवितपदपद्म; अंति: मुक्तालतावन्मुदे, श्लोक-७. ४२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भलु आज भेट्यो प्रभु; अंति: चक्रे समयादिसुंदर, गाथा-८. ४३. पे. नाम. जिनदर्शन श्लोक संग्रह, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: जन्मार्जितं पुनः, श्लोक-१६. ४४. पे. नाम. सिद्धाचल स्तोत्र, पृ. ३९अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सुरसैलतीर्थराज; अंति: वै समुल्लसेत्, श्लोक-६. ४५. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी स्तुति, पृ. ३९अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ४६. पे. नाम. सुपात्रदानफल स्तोत्र, पृ. ३९अ-३९आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खुर; अंति: भरहे साहु न सीयंति, गाथा-६. ४७. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १७३ आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-१०. ४८. पे. नाम. गौतमस्वामि स्तुति, पृ. ४०अ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४९. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. ४०अ-४१अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमते देवता; अंति: भूयात्सदा शर्मदा, श्लोक-२०. ५०. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ४१अ-४२अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: हरति दुरितानि, श्लोक-१७. ५१. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ४२अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्वेतपद्मासना देवी; अंति: सर्वविद्या लभंति च, श्लोक-३. ५२. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमस्त्रिदशवंदित; अंति: नरौ विद्योघवंचत, श्लोक-१०. ५३. पे. नाम. अष्टोत्तरशतनामसरस्वती स्तोत्र, पृ. ४२आ-४३अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-१०८ नाम गर्भित, सं., पद्य, आदि: धिषणा धीर्मतिर्मेधा; अंति: दुखोच्छेदाय देहिनां, श्लोक-१६. ५४. पे. नाम. सरस्वतीअष्टक, पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: प्राग्वाग्देवि जगज्ज; अंति: साववश्य सा सरस्वती, श्लोक-९. ५५. पे. नाम. भैरवाष्टक, पृ. ४३आ-४४आ, संपूर्ण. आद्य शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: एक खट्वांगहस्तं; अंति: देव भैरवस्य प्रसादतः, श्लोक-११. ५६. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. ४४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: सुप्रीत तस्य जायते, श्लोक-५. ५७. पे. नाम. मंगल स्तोत्र, पृ. ४४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मंगलो भूमिपुत्रश्च; अंति: प्राप्नोति न शंसयः, श्लोक-४. ५८. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. ४४आ-४५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यत्पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: पीडा न भवति कदाचन, श्लोक-९. ५९. पे. नाम. सूर्य स्तोत्र, पृ. ४५अ-४५आ, संपूर्ण. सूर्याष्टक, सं., पद्य, आदि: सप्ताश्वसमारुढं अरूण; अंति: सूर्यलोकेषु गच्छति, श्लोक-९. ६०. पे. नाम. नवकारमहिमा स्तोत्र, पृ. ४५आ-४६आ, संपूर्ण. आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पत्तरू रे; अंति: सेवा दीयो नित्ति, गाथा-२६, (वि. दो गाथाओं को एक गिनने के कारण गाथांक २६ होने के जगह १३ हीं है.) ६१. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४६आ-४७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: सिरिपासनाथ चउसालो, गाथा-५. ६२. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ४७अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ६३. पे. नाम. गौतमस्वामी अष्टक, पृ. ४७आ, संपूर्ण. मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति गुरु; अंति: इणपरि मनरंग पदमराजै, गाथा-१०. ६४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४७आ-४८अ, संपूर्ण. मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ध्यावौ इक धवलौ; अंति: तुं भविकजिन प्राणी, गाथा-१०. ६५. पे. नाम. जिनकुशलसूरिजी गीतां, पृ. ४८अ-४९अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, उपा. जयसागर, मा.गु., पद्य, वि. १४८१, आदि: रिसह जिणेसर सो जयउ; अंति: वंछित फल तसु हुवो ए, गाथा-१९. For Private And Personal use only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. ४९अ-४९आ, संपूर्ण. पा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विलसे रिद्धि समृद्धि; अंति: साधुकिरति पाठक भाखै, गाथा-१५. ६७. पे. नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. ४९आ-५०अ, संपूर्ण. आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिरिसुयदेव पसाइ करो; अंति: करो पुण्य आणंद, गाथा-९. २२५१९. (+) विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पंन्या. भूधर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १९४५२-५९). विविध विचार संग्रह , गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). २२५२०. १८ हजार शीलांगरथ सह यंत्र, संपूर्ण, वि. १८१८, चैत्र शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. सूरतबिंदर, प्रले. पं. भूधर (गुरु उपा. भीमराज),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. *पंक्त्य क्षर अनियमित है., जैदे., (२६.५४११.५). १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., पद्य, आदि: जे नो करति मणसा; अंति: कं अद्धइयं दसहा, गाथा-३६, (वि. १८ रथों की कुल दो-दो गाथा क्रम से ३६ गाथाएँ हैं.) १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २२५२१. विविध स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ६, जैदे., (२६४१२.५, ९x४१). १. पे. नाम. मंगल स्तोत्र, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. ___ आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवना; अंति: मंगलं दद्युः, श्लोक-१६. २. पे. नाम. त्रैलोक्यचैत्य स्तव, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. त्रैलोक्य स्तव, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. चिंतामणिमंत्रगर्भित पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. ५. पे. नाम. गौतमाष्टक, प्र. ५आ-६अ, संपूर्ण. आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ६. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २२५२२. (+) जिनस्तोत्र रत्नकोश-१ से १९ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंचलगच्छीय काजल गोविंद चित्कोष की यह प्रति है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, १७७५७-६४). जिनस्तोत्र रत्नकोशः, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रियं ज्ञानतपस; अंति: लभे चाचिरात, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रथम प्रस्तावे 'जयश्री' शब्द से प्रारंभ होनेवाले १९ स्तोत्र.) २२५२३. सुसढ, अतरंग, मृगापुत्र कथा व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, प्रले. मु. सिद्धांतसंवेग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, २०-२३४५६-६२). १. पे. नाम. यतनाविषये सुसढ कथा, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. सुसढ कथानक-यतनाविषये, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुट्ट वि तवं कुणतो; अंति: जयणं चिय धम्मकामा, गाथा-५१९. २.पे. नाम. अतरंग द्रष्टांत-आदिजिन धर्मदेशनायां, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. अंतरंग दृष्टांत - आदिजिन धर्मदेशनायां, प्रा., प+ग., आदि: अह भणइ कुरुकुमारो; अंति: मोहजये होइ जईअव्वं. ३. पे. नाम. मृगापुत्र कथा, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: न हुतं जइ कम्मयं. २२५२४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५४११.५, २०-२२४५९-७३). १. पे. नाम. चेतन चरित्र, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ मु. भावसिंघ, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम जपत जिनराज; अंतिः सिद्धगति जाइ प्राणी, ढाल १४, गाथा - २५०. २. पे. नाम. ज्ञानचिंतामणी दोहा, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. मनोहरदास, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल बुद्धिवरदायीनी; अंति: उपगारकर कहे मनोहरदास, गाथा - १२८. ३. पे. नाम, चौपटखेल सज्झाय, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण. आ. रत्नसागरसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम अशुभ मल झाटिके; अंति: रतनसागर कहइ सूरि रे, गाथा - २३. ४. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूले मन भमरा रे कां; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा - ९. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. मनगुणतीसी सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि जीवडा म मेले रे ए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १५ अपूर्ण तक लिखा है.) २२५२५. उत्तराध्ययनसूत्र की कथा संग्रह - अध्ययन १ से ४, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२७X१२, १८-२१x६६-७७). उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण. २२५२६. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ६, ले.स्थल. फलोदी, प्रले. मु. सरूपचंद, पठ. मु. ताराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१३, ११X३४). १. पे. नाम. श्रावकलघुपाक्षिक अतिचार, पृ. १आ- ३अ, संपूर्ण. आवकपाक्षिक अतिचार- लघु, मा.गु., पद्य, आदि श्रीज्ञानने विषे जे; अंतिः आलोयते पडिक्कमिङ, २. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३अ - ६आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अ० करेमि अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं, सूत्र - २१. ३. पे नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: चोथो आरो जिनवर वारो; अंति: उल्लासे तेजसंग भासे, ४. पे. नाम संभवजिन स्तवन, पृ. ७अ ८अ संपूर्ण गाथा - ५. मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुजी संभव; अंतिः सुखे लीला से तिरु, गाथा- ८. ५. पे, नाम, चंदनवाला सज्झाय, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि आज अमारे आंगणीए कांइ; अंतिः मुझ तुठा वीरदयाल रे, गाथा ५. ६. पे. नाम. ककाबत्रीसी, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंतिः भवसायर हेला तरे, गाथा-३४. २२५२७. (+) पंचाशक प्रकरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४० + २ (२३,३५) = ४२, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. १४५०, जैदे., (२७.५४११.५, १३-१४X३४-३७). १. पे. नाम. पंचाशक प्रकरण, पृ. १आ - ३६आ, संपूर्ण. आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं सावग; अंति: जह विरहो होइ कम्माणं, पंचाशक - १९. २. पे नाम. चैत्यप्रभृतिसमवसरण स्तव, पृ. ३६आ-३८अ संपूर्ण. १७५ आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंताई पइवं नमिउण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ३७ तक लिखा है. ) ३. पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक, पृ. ३८अ - ४०आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंतिः सूरि खमउ तेणं, गाथा - ५०, (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभ की ३ गाधा नहीं लिखी हुई है.) २२५२८. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ - १ (१) = ६, कुल पे. ७, जैदे., (२७.५X११.५, २२×५८-६३). १. पे. नाम. पांचईद्रिय चौपाई, पृ. २अ - ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५ इंद्रिय चौपाई, पुहि., पद्य, वि. १७५१, आदिः (-); अंति: वसै सबकुं मंगल होई, ढाल-६, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१२ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. इलाचीकुमार चौपाई, पृ. ३अ-६आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा; अंति: सो शिवरमणी माल्हइ छे, ढाल-१६, ग्रं. २५९. ३. पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: कर्म थकी छूटे नही; अंति: धर्मतणे परिमाणजी, गाथा-३६. ४. पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: बंधव बोल मानो हो; अंति: जाकै भवथिति आई हो, गाथा-२०. ५. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी न जइए रे परघर; अंति: एकलो परघर गमण निवार, गाथा-१०. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. क. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: भरमति भरमति संसार; अंति: मुक्तिपुरी को वास, गाथा-९. ७. पे. नाम. रेवतीश्राविका सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासन रेवती; अंति: आनंद हरख अपार रे, गाथा-१०. २२५२९. विचार संग्रह, पार्श्वजिन स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-६(१ से ५,७)=५, कुल पे. ९, जैदे., (२५.५४१२, १७-२०४४६-५५). १. पे. नाम. १० प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा सह संक्षेपार्थ, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नमुक्कार पोरसीए; अंति: छप्पाणे चरमे चत्तारि, गाथा-३. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अन्नत्थणाभोगेण; अंति: रोटी लेतां भजे नही. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ६आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३. पे. नाम. जीवगमनागमन चतुर्भंगी, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: न जावै न आवै अलोक; अंति: आश्री आवै पिण न जावै. ४. पे. नाम. सामायिक विचार, पृ. ८अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: मरुदेवीनी परइ. ५. पे. नाम. २१ बोल, पृ. ९अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: हस्तकर्म करै तो सबल; अंति: इकवीस सबला दोष जाणवा. ६. पे. नाम. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र अध्ययननाम, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-अध्ययननाम, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मेघकुमारनो अध्ययन१; अंति: अध्ययन १९मो. ७. पे. नाम. असमाधि के २० बोल, पृ. ९आ, संपूर्ण. असमाधि २० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: उतावलो चालें तो; अंति: समाधिनु थानक जाणवु. ८. पे. नाम. उत्कृष्ट-जघन्य तीर्थंकर विचार, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: इदानीं उक्किट्ठ; अंति: अधिकानामुत्पत्तिरिति. ९. पे. नाम. वीसविहरमान एकवीसस्थानकसूत्र, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन २१ स्थानकसूत्र, आ. शीलदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: संपइ वट्टताणं नाम; अंति: रइयं सम्मत्तलाभाय, गाथा-३८. २२५३०. जीवविचार प्रकरण, गौतमपृच्छादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, पठ. पं. हर्षमेरु गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १५४४६-४९). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir " . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५०. २. पे. नाम. गौतमपृच्छा, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६४. ३. पे. नाम. प्रश्नोत्तररत्नमाला, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं विभूषयति, श्लोक-२९. ४. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टतो भवेसिद्धि, गाथा-३२. २२५३१. (+) त्रिभंगीआदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १५३२, चैत्र कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६५-२४(१ से २४)=४१, कुल पे. ८, ले.स्थल. नयनवाहपत्तन, सम. आ. जिनचंद्रदेव, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२, १०४३३). १.पे. नाम. पल्योपम विचार, पृ. २५अ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. ४ गाथा में व्यवहार पल्योपम एवं उद्धार पल्योपम का वर्णन किया गया है.) २. पे. नाम. आस्रवत्रिभंगी, पृ. २५आ-३३आ, संपूर्ण. मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: पणमिय सुरिंदपूजिय; अंति: बालिंदो चिरं जयऊ, गाथा-६२. ३. पे. नाम. बंधत्रिभंगी, पृ. ३३आ-४१आ, संपूर्ण. गोम्मटसार-बंधत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण णेमिचंद असहाय; अंति: बंधस्सं तो अणंतो य, त्रिभंगी-३, गाथा-४१. ४. पे. नाम. उदयत्रिभंगी, पृ. ४१आ-५३आ, संपूर्ण. गोम्मटसार-उदयत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: पंचणवदोणिअट्ठावीस; अंति: चंदच्चियणेमिचंदेण, त्रिभंगी-३, गाथा-७३. ५. पे. नाम. जीवगुणस्थानक विचार, पृ. ५४अ-५४आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: कार्मनवत् अणहारेपि; अंति: जिणाण. सव्वदरिसीहि, गाथा-६. ६. पे. नाम. सत्तात्रिभंगी, पृ. ५४आ-५९अ, संपूर्ण. गोम्मटसार-सत्तात्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: पंचणवदोणिअट्ठावीसं०; अंति: सिद्धिं समाहिं च, त्रिभंगी-३, गाथा-३२. ७. पे. नाम. विशेषसत्तात्रिभंगी, पृ. ५९अ-६३आ, संपूर्ण. __गोम्मटसार-विशेषसत्तात्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: णमिउण वड्डमाणं कणयणि; अंति: छक्खंड साहियं सम्मं, गाथा-३९. ८. पे. नाम. भावत्रिभंगी, पृ. ६४आ-६५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. पत्रांक-६४अको खाली रिक्त गया मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: खवियघणघाइकम्मे अरहंत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ तक है.) २२५३२. सवैया संग्रह, सातव्यसनफल सज्झाय व अक्षरबावनी, संपूर्ण, वि. १९०७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, ले.स्थल. छपरोली, प्रले. मु. सोभागचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, २०-२१४४१-५१). १.पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति को कई हिस्सों में लिखकर पूर्ण की गई है. पत्रांक माहिती इस प्रकार है. १अ+१आ-२आ+६अ-६आ. अनुभववाणी सवैया संग्रह, सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: बहुमान विना ए कथा न; अंति: ताहि वंदना हमारी है. २. पे. नाम. सप्तव्यसनफल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जूवै रमें नर जेह; अंति: सील जोखा करै जेम रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. केशवदास कृत बावनी, पृ. ३अ-६अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अक्षरबावनी, मु. केशवदास पुहिं, पद्य, वि. १७३६, आदिः ॐकार सदा सुख देत; अंतिः केसवदास सदा सुख पावै, गाथा - ६१. २२५३३. हीरविजयसूरि छंद, आदिजिन स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०९, माघ कृष्ण, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ५, ले. स्थल. गिरिपुर, प्रले. पंन्या रूपसुंदर (वृद्धतपागच्छ.), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री आदिनाथ चेताले., जैवे., . (२४x१२, १५ - १६x४५ - ४८). १. पे नाम हीरविजयसूरि छंद, पृ. १२-६अ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि जीवत मान मयंक मनोर; अंतिः उछर्यो धर्मतणो उपाय, गाधा - १८०. २. पे. नाम. औपदेशिक दूहा, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: भवसायर बहुदुख जल जनम; अंतिः खावे कुं हदगंम, गाथा-३, ३. पे. नाम ऋषभजिन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. प्रीति, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीरिसहेसर केरू; अंतिः घरि विमल मंगलमालाजी, गाथा-४, ४. पे. नाम. शत्रुंजयगीरनारतीर्थ स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमांहे तिरथ; अंति: जीव सुखसंपत्ति वरे, गाथा-४. ५. पे, नाम, श्लोक, प्र. ६आ, संपूर्ण श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), गाथा - १. २२५३४. प्रतिक्रमणविधि संग्रह व तीर्थमाला स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७७६, माघ कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. २, ले. स्थल. सोझित, प्रले. मु. उत्तमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७१२, ११-१३x३२-४१). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणविधि संग्रह, पृ. १अ - १७अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह - अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे नाम, तीर्थमाला स्तोत्र, पृ. १७अ २१आ, संपूर्ण. आ. महेंद्रसिंहसूर, प्रा., पद्य, आदि अरिहंत भगवंतं; अंति: मुणिविंद थुय महिया, गाथा - १११. २२५३५. सज्झाय, स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १६९२ श्रावण शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १६, ले. स्थल. नंद्रवार, मु. धर्मी ऋषि (गुरु मु. सिद्धराजजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X११.५, १७-१८x४७-५४). १. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रले. मु. चरण प्रमोद - शिष्य, मा.गु., पद्म, आदि: सरसति मुझने रे मात; अंतिः परमसुख इम मांगीइ, गाथा- १०. २. पे. नाम. धन्ना अणगार सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सिघो, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि वीनवु; अंतिः मुजने साधुनुं सरण, गाथा - १५. ३. पे. नाम. जिनपालजिनरक्षित सज्झाय, पृ. १आ - २अ, संपूर्ण. मु. समुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू चरण कमल मनि; अंतिः प्राणी परमसुख माणे, गाधा - २०. ४. पे. नाम. बलदेवमुनि सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण, प्रले. मु. धर्मसी ऋषि (गुरु मु. सिद्धराजजी ऋषि). मु. सकलमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: बलदेव महामुनि तप तपइ; अंति: सकल मुनि सुखकार, गाथा- ८. ५. पे नाम, नंदी स्तोत्राष्टक, पृ. २आ-३अ संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: छंडि सवि हथियार सार; अंति: टलइ देव देखाडो सो ए, गाथा - ८. ६. पे. नाम. काया गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नणंद रे से हुइ घाववी; अंतिः परि कुटुंब जोगवु, गाथा ५. ७. पे. नाम. गजसुकमाल भास, पृ. ३अ, संपूर्ण. गजसुकुमाल भास, मु. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि द्वारामती नगरी समोसर; अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा नहीं लिखी है.) ८. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण, कबीरदास संत, पुहिं., पद्य, आदि को नही तन राखणहारो; अंति: आपि आपसकुं तारो, गाथा-४. For Private And Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण रुवडउ; अति: सहजसुंदर उपदेश रे, गाथा-६. १०. पे. नाम. रहनेमी गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गिरिनार चडी वंदत; अंति: किम पापकरम कीजइ कतडा, गाथा-१४. ११. पे. नाम. चंद्रावली सप्तव्यसन सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम देवने पहेला; अंति: पीउ समरस साकरवाणी, गाथा-९. १२. पे. नाम. पंदरतिथि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. गंगादास, मा.गु., पद्य, आदि: सकल संसारमाही जीव; अंति: वीनवइ सेवक गंगादास, गाथा-२१. १३. पे. नाम. चोवीसजिन पांचबोल स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: बोधवीज साची जिन सेव, गाथा-२७. १४. पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समरथ नारि छे अतिसारी; अंति: तेह नारी कुण कही रे, गाथा-७. १५. पे. नाम. षट्दर्शन सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण, प्रले. मु. मुक्तिराज शिष्य (गुरु मु. मुक्तिराज, तपागच्छ). षड्दर्शन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देवना वंदी पाय; अंति: ते वहेलो मुगति संचरि, गाथा-८. १६. पे. नाम. इंद्रीय गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण. आत्मबोध सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: ते गिरूआ भाई ते गिरू; अंति: म राचो प्राणी रे, गाथा-७. २२५३६. (+) आलोयणा विधि संथारा विधि, आगम नाम व सिद्धांत बोल, संपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, प्रले. मु. जीवणचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, १४-१५४४८-५५). १. पे. नाम. आलोयणा विधि, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० नमो; अंति: विषे घणो उद्यम कीजे. २. पे. नाम. संथारापचक्खाण विधि, पृ. ५अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: गारेणं वोसिरामि. ३. पे. नाम. ३२ आगम नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग कालिक; अंति: कालक आवश्यक नोत्कालक. ४. पे. नाम. सिद्धांत बोल, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम साधु साध्वी; अंति: होय ते विचारज्यो. २२५३७. स्तवन, सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-४(१ से ४)=७, कुल पे. २०, जैदे., (२६.५४१२, १७-१९४३६-४५). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कान्हजी साहिब संभवा, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-५ तक नहीं है.) २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: तुं तो त्रीजो रे; अंति: कहे० सकल संघ सुख लहे, ढाल-२, गाथा-५. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ग. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: चोवीसजिन शासनराया; अंति: सब जिन सरखे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अजीया जोरावर करमी जे; अंति: उदय वंदे तेहने रे, गाथा-७. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिननो विसवास छ; अंति: रूपचंद रस माणे, गाथा-७. ६. पे. नाम. सप्तव्यसन सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. सातव्यसन सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साधु; अंति: लहो सुख शाश्वता, ढाल-४, गाथा-१७. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भलुं थयु रे माहरा; अंति: प्रभुथी प्रगटे रे, गाथा-१०. ८. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तुज दरिसण; अंति: रस माहल्यो एकताने, गाथा-७. ९. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्माणी वर हु; अंति: नामे संपति पाया रे, गाथा-१४. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: वादल दहदीस उनह्या; अंति: उदय भणे शुभ वाण रे, गाथा-८. ११. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, म. रुद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पेखी पसु रथ वालियो; अंति: मुनि हर्ष भले मनरे, गाथा-१२. १२. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: संभव नाम सोहामणो वर; अंति: कान्हांजी उल्लास रे, गाथा-८. १३. पे. नाम. पुण्यछत्रीसी, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण, वि. १८३२, वैशाख कृष्ण, २, ले.स्थल. धोराजी. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुण्यतणां फल परतखि; अंति: पुन्यना फल परतिख्यजी, गाथा-३६. १४. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. ग. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुंजिन पाया; अंति: केशव तुम गुण गावे हो, गाथा-९. १५. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन. प. १०अ. संपूर्ण. ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदन जिनराज प्रभु; अंति: कीजइ वांछित काजो रे, गाथा-३. १६. पे. नाम. रहनेमी सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. रहनेमिराजीमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग व्रत रहनेमि; अंति: सुख लहेस्ये रे, गाथा-१२. १७. पे. नाम. ५ इंद्रिय सज्झाय, पृ. १०आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कामांध गजराज अगाध; अंति: लहो सुख शाश्वता, गाथा-६. १८. पे. नाम. साधुसज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: पंच सुमति त्रिण; अंति: गणी काहान जिहाज तो, गाथा-१२. १९. पे. नाम. सोलस्वप्न सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.. चंद्रगुप्त १६ स्वपन सज्झाय, ऋ. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुने चरणे नमी; अंति: वंदु त्रिण कालो रे, ढाल-२, गाथा-२१. २०. पे. नाम. जिनआगमनाम स्तवन, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आगमनाम स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सासनपति रे चोवीसमो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) २२५३८. विधि संग्रह व असिज्झाय सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ६, जैदे., (२५४१२, ११४३४-३८). १. पे. नाम. ज्ञानपूजन विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: पूजै ए गाथा कहीजै. २. पे. नाम. लोचकरण विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पच्चइएण लोओ कायव्वो; अंति: सावण पवेयणा न करइ. For Private And Personal use only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १८१ ३. पे. नाम. चैत्रीपूनम देववंदनविधि, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम गोबररी गुहली; अंति: (१)प्रतिमाने दीजे, (२)कीजै पछे उजमीजै. ४. पे. नाम. कल्पत्रेप विधि, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. विधिमार्गप्रपा-कल्पत्रेप विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम आसु सुदि बीज; अंति: पगसुं आणीयै शांति. ५. पे. नाम. ज्ञानपंचमी तपग्रहण विधि, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीतिथि तपग्रहण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नंदि मांडियै; अंति: धर्मकर्तव्य करै. ६. पे. नाम. असज्झाय सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. हीर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रावण काती मिगसिर; अंति: नाम कहियो तु इण परै, गाथा-१५. २२५३९. चैत्यवंदन, स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ७, प्रले. पंन्या. कल्याणविजय; पठ. सा. खुशालश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२, १२४२२-२८). १.पे. नाम. पंचमी नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: युगला धर्म निवारिओ; अंति: श्रीखिमाविजय जिणचंद, गाथा-९. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि नमस्कार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पं. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदी आठम दिने; अंति: प्रगटे ज्ञान अनंत, गाथा-१४. ३. पे. नाम. एकादशी नमस्कार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीरजी बहु; अंति: शासने सफल करो __ अवतार, गाथा-८. ४. पे. नाम. साधारणजिनअवगाहना नमस्कार, पृ. २आ, संपूर्ण. जिनदेहमानगर्भित चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसया धनुषमान प्रथम; अंति: ज्ञानविमल कहे सीस, गाथा-३. ५. पे. नाम. वीसस्थानक स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. २० स्थानक स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुयदेवी समरी कहुं; अंति: भवी जिनपद सुजस सवाय, गाथा-१४. ६. पे. नाम. निंद्रा सझाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. निंद्रा सज्झाय, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: निंदरडी वेरण हुइ; अंति: मुनि कनकनिधान के, गाथा-७. ७. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीतिथि स्तवन, मु.ज्ञानविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरूपदकज; अंति: अधिक उदय होवै आज, ढाल-३. २२५४०. (+-) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. सल्हावास, प्रले. पं. जीतमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२.५४१२, ११-१३४२७-२९). १. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: दुर्लभ लाधो मनुष्य; अंति: क्रोध लोभ अहंकार नही, गाथा-२०. २. पे. नाम. सोलस्वपन सज्झाय, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. १६ स्वप्न सज्झाय, ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपूर नामे नगर; अंति: रिष जैमल करी जोडो रे, गाथा-३५. ३. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. रत्नचंद, मा.गु., पद्य, आदि: देवकीनंद शिरोमणि; अंति: मधुमास गुरुवारे, गाथा-११. २२५४१. पंचपरमेष्ठि स्तव, अवचूरि, आम्नाय व पद्मावतीपूजा सविधि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३९-४२). For Private And Personal use only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. पंचपरमेष्ठि विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभर अमर पणय; अंति: पुत्थय भरेहिं, गाथा-३५. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तव अवचूरि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र-अवचूरी, सं., गद्य, आदि: परमेष्ठीपंचकं; अंति: पठत पुस्तकभरेण. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिपद आम्नाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं; अंति: साधवः सदा स्मरंतः. ४. पे. नाम. पद्मावतीपूजा सविधि, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., प+ग., आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्रं; अंति: (-). २२५४२. भगवतीसूत्र का बालावबोध, पट्टावली आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ९, जैदे., (२६४११.५, १९४४३). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र बालावबोध-शतक २०, पृ. १अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. लोंकागच्छ उत्पत्ति विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. लुकागच्छ उत्पत्ति चर्चा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंत महावीरनइ; अंति: फाट्टमणकोजी रुपसीजी. ३. पे. नाम. पट्टावली, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अज्ज सुहम जंबु प्रभव; अंति: वचन सत करी मानइ. ४. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धुवक कही पांचसइं; अंति: कहइ मुझने तारिज्यउ, गाथा-२८. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: भाई कौन कहै घर मेरा; अंति: आवै सोई तेरौ मीते, गाथा-८. ६.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: काया तु चलि संग; अति: भववन डोलनहारा, गाथा-६. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण.. आध्यात्मिक पद, मु. द्यानत, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा ते मेरी सार न; अंति: करयो ध्यानत सिक्षा, गाथा-६. ८. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. द्यानत, मा.गु., पद्य, आदि: मेरी वार क्युं ढील; अंति: कर वैरागदशा हमरी, गाथा-६. ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. कस्तूर, मा.गु., पद्य, आदि: पदमणी चंचल रे धी; अंति: इम भणइ जपि जपो नवकार, गाथा-१२. २२५४३. (+) २३ बोल संग्रह, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८-२(१,२६)+१(२७)=४७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१२, १३४३८). २३ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: माहै वस्यो ते भणी, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., प्रथम बोल नहीं है.) २२५४४. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-२८(१ से २८)=७, कुल पे. ९, जैदे., गुटका, (२४४१३, २६४१३-१४). १.पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. २९अ-२९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: माणिभद्र जय जय करण, गाथा-१४, (पू.वि. मात्र अंतिम श्लोक है. अंत में माणिभद्रवीर का मंत्र भी दिया गया है .) २. पे. नाम. गणपती मंत्र संग्रह, पृ. २९आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १८३ मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो श्रीगणपति; अंति: साधना कीजे श्रेष्ठ. ३. पे. नाम. गणपतिपंचरत्न स्तोत्र, पृ. ३०अ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: हिमांगजासुतानुजं; अंति: सर्वव्याधिविनाशनः, श्लोक-६, (वि. अंत मे जापमंत्र भी दिया हुआ है.) ४. पे. नाम. सिद्धसारस्वत स्तोत्र, पृ. ३०अ-३१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रणवो मायाबीजं; अंति: भवंतु उत्तम संपदः, श्लोक-१०, (वि. कृति के अंतर्गत सरस्वती का जापमंत्र दिया हुआ है.) ५. पे. नाम. महालक्ष्मी स्तोत्र, पृ. ३१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमोस्तु लक्ष्मी: मम; अंति: काले यः पठेन्नराणं, श्लोक-८, (पू.वि. कृति के अंतर्गत लक्ष्मीजी का जापमंत्र दिया हुआ है.) ६.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. ३२अ-३४आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ॐ ॐकार बीज; अंति: पठेत् अमरपदमाश्ननं, श्लोक-२५, (वि. कृति के अंतर्गत जापमंत्र दिया हुआ है.) ७. पे. नाम. पचांगुली मंत्र, पृ. ३४आ, संपूर्ण. पंचांगुली मंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ पंचागुली २ परिसर; अंति: कुरु कुरु स्वाहा. ८. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, पृ. ३४आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ॐ ह्रीं श्रीं नमः, श्लोक-४. ९. पे. नाम. पद्मावतीदेवी पंचष्टिनाम, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी पंचषष्टिनाम, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पउमादेवी; अंति: अग्रले अग्रवतये नमः. २२५४५. चोवीसजिन स्तवन, आदिजिन विनती स्तवन, वैराग्यबावनीव अग्यारपाट भास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१२, १६-१७४३१-३५). १. पे. नाम. चोवीसतिर्थंकर स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: बोधवीज साची जिन सेव, गाथा-२७. २. पे. नाम. आदिजिन विनती स्तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंति: मनवैरागे इम भणीया, गाथा-४५. ३. पे. नाम. वैराग्यबावनी, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि: समझि समझिरे भोला; अंति: परभव सुख अपारजी, गाथा-५३. ४. पे. नाम. इग्यारै पाटरी भास, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. ११ पाट भास-लुंकागच्छीय, मु. सुखमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीजिन पास; अंति: सेव मिले सुख सासता, गाथा-७. २२५४६. पाक्षिकसूत्र, खामणा, पाक्षिकतप,प्रतिक्रमणविधि व आदिजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१२, १२४४२). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-१३आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ३. पे. नाम. पाक्षिकादितप विधान, पृ. १४अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चउत्थेण एक उपवास; अंति: काउसग्ग लोगस्स ४०नो. For Private And Personal use only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. पाक्षिक प्रतिक्रण की विधि दी हुई है.) ५. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीमद्युगादिदेवाय; अंति: प्रभवेस्तु नमोनमः, श्लोक-४. २२५४७. प्रतिक्रमण विधि व विविध स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ८, जैदे., (२७.५४१२.५, १४-१५४३३-४४). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणविधि संग्रह, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ३ नवकार गुणी; अंति: कही पछै लोगस्स कहीजे. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोड कल्याणोजी, गाथा-४. ५. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: सीस० संघतणा निशदिश, गाथा-४. ६. पे. नाम. चतुर्दशीतिथि स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.. आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. चैत्रीपूनम स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय; अंति: भाग्य द्यो सुखकंदाजी, गाथा-१. ८. पे. नाम. अमावस्यातिथि स्तुति, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अमावस्या तो थई उजली; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक अपूर्ण है.) २२५४८. इरियावही, पौषध कुलक व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ४, ले.स्थल. आमलनेर, प्रले. मु. भाग्यचंद (गुरु ग. माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीगीरुवा प्रसादात्., जैदे., (२६४१२.५, १२-१३४२३-२७). १.पे. नाम. इरियावही कुलक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडसत्ता तिसय; अंति: जीव निच्चंपि, गाथा-१२. २. पे. नाम. पौषध कुलक, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: छत्तीसदिवससहस्सा; अंति: धम्मम्मि उज्जमहो, गाथा-१६. ३. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष गाथा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पल्लत्थी अथिरासणं; अंति: वसे सव्व सुह लच्छी, गाथा-६. ४. पे. नाम. विविधविचार संग्रह, पृ. ३आ-१६अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वासासु सगदिण उवरि; अंति: लक्खणजुत्ती समयाए. २२५४९. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-४(१ से ४)=१०, कुल पे. ६, प्रले. य. वीरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १०-१२४२८-३४). १. पे. नाम. जंबुकुमार सज्झाय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. रूप, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पालो सीयल सुखकार, (पू.वि. प्रारंभ की २ गाथा नहीं है.) २. पे. नाम. ढंढणकुमार सज्झाय, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. प्रेममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथमजिनेशर वादिने; अंति: गातारे गातां जयकार, गाथा-२१. For Private And Personal use only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३. पे. नाम. लोक गीत, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पाल पूराणी हे; अंति: राज करै अगजीत होजी, गाथा-५. ४. पे. नाम. झांझरियामुनि चउढालियु, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण. झांझरियामुनि चोढालियुं, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: इम साभलता आणद के, ढाल-४, गाथा-४३. ५. पे. नाम. पंचप्रमाद सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सूमतास्थ ततखेव चेतन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक अपूर्ण है.) ६. पे. नाम. पंचभावना, पृ. ९आ-१४आ, संपूर्ण. साधुपंच भावना, उपा. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति सीमंधर परम; अंति: सुख संपति गृह थावोजी, ढाल-६, गाथा-९५. २२५५०. प्रकरण संग्रह, संपूर्ण, वि. १९८७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ४, ले.स्थल. खुडाला, प्रले. मु. मोहनलाल महात्मा; लिख. पंन्या. उमंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३२). १. पे. नाम. उपदेशरत्नकोश, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: विउलं उवएसमालमिणं, गाथा-२६. २. पे. नाम. संबोधसत्तरी, पृ. २अ-६आ, संपूर्ण. आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरु; अंति: चक्रुः संबोधसप्ततिम्, गाथा-१२५+२. ३. पे. नाम. वैराग्यशतक, पृ. ६आ-९आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, श्लोक-१०४. ४. पे. नाम. हृदयप्रदीपषट्विंशिका, पृ. ९आ-११अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शब्दादिपंचविषयेषु; अंति: शिष्यते किं वदान्यत्, श्लोक-३६. २२५५२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८३, ज्येष्ठ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २१, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. पं. कपूरविजय; पठ. सा. विजयश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२७४१२.५, ११४२७-२९). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. मणिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रवण कीर्तन सेवन ए; अंति: पदवी लहिस्यै तेह, गाथा-११. २. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जे देखं ते तुज नही; अंति: मणिचंद० सघला काज के, गाथा-७. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जेहने अनुभव आतम केरो; अंति: आप सभावमई रातो रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतम अनुभव जेहनइं; अंति: परमातम मे मन्न रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अनुभव सिद्ध आतम जे; अंति: श्रीहरिभद्र बुद्ध रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ग. मणिचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कोइ कीनहीकुंकाज न; अंति: दुःखादिकने प्रीछे रे, गाथा-६. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतना चेतनकुं संभलाव; अंति: मणीचंद्र गुण जाणो रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतन में धरि; अंति: मणीचंद होये भव अंता, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८६ www.kobatirth.org ९. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जग सरूप चेतन संभलावइ; अंतिः मणिचंद्र गुण आवइ रे, गाथा-९, १०. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदिः समकित तेह यथास्थित; अंतिः यथास्थिति जाणो, गाथा-५, ११. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आतमरामे रे मुनि रमे; अंति: मणिचंद आतम तारी रे, गाथा - ५. १२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन जब तुं ज्ञान; अंति: सुखसंपत्ति वाधे, गाथा - ८. १३. पे. नाम, आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अणविमास्युं करइ कांड; अंति: मणिचंद पामो ठकुराइ, गाथा- ६. १४. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण. ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन तुमही आपॅ; अंतिः जिम पामो आपणी ठकुराई, गाथा ५. १५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि जो चेते तो चेतने जो; अंतिः पूरे शिवपुर वास, गाथा-६, १६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शिवपुर वासना सुख; अंतिः पार किये नहि आवे, गाथा-४. १७. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण, ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि आदित जाइने आपणी; अंति: मणीचंद सुद्धी वाणी, गाथा ८. १८. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण, - मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: शुक्लपक्ष पडवेधी; अंति: मणीचंद्र एह लखाणी, गाथा - ९. १९. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मिच्छत्व कहीजे; अंति: मणिचंद परवस्तु न संच, गाथा - ७. २०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि आज का लाहा लीजीइ; अंतिः रहे परमानंद साधे, गाथा-८, २१. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. गयी है, दे., (२७x१२, १५ - १६x५८ ) . १. पे. नाम. २४ जिनगुण स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सट्ठी ते यथास्थिति; अंति: मणीचंद० सिद्ध पावे, गाथा - ८. २२५५३, (४) स्तवन, सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११ - १ (१) १०, कुल पे ३६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: वरतसी कूसलने खेम के, गाथा- ३२, (पू.वि. गाथा २१ तक नहीं है.) २. पे. नाम. सीमंधिरजिनविनती स्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिनविनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: त्रीभुवन साहिब अरज; अंति: चरने गरीबनवाज, गाथा - २१. ३. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. २आ-३अ संपूर्ण वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्म, आदि आदिनाथ आदि जिनवर अंतिः पावै सिवसुख गुनी ए, गाथा - १७. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सीमंधर वसे विदेहमे; अंतिः तारो भवजल वांह गया, गाथा- ६. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वली वली वंदुजी वीरजी; अंति: आपो स्वामी सुख घणा, गाथा - १०. पे, नाम, चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ महर करो; अंति: चंद तुम्हारो अनुरागी, गाथा - ७. ७. पे. नाम. सिद्धस्वरूप स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोतमसामी पूछा; अंतिः नय कहे सुख अधाग हो, गाथा - १६. ८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: सीमंधरजीने जूगदीसे; अंतिः शिवपुररी पदवी वरसी, गाथा - ६. ९. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. धनीदास, मा.गु, पच, वि. १९१९, आदि: वडा सीस श्रीवीरतणो; अंति: गुरुचरनां चित प्राणी, गाथा-८, १०. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तुम प्रभु मेरे मन अंतिः मरण मिटायाजी छिनक मे, गाथा - १२. ११. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. रायचंद, रा., पद्य, वि. १८४४, आदि: जगत गुरु जुगमंदर; अंतिः परि प्रीत रही भेला, गाथा- १०. १२. पे. नाम. आवकोपदेश सज्झाय, पृ. ४आ ५अ संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदिः श्रावकधर्म करो सुख; अंति: नारी होवे पडमाधारीजी, गाथा - ११. १३. पे. नाम महावीरजिन पारणा स्तवन, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- पारणा, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: तेहने नमे मुनि माल, गाथा - २९. १४. पे. नाम. आदिजिन भरतचक्रवर्ती स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. आशकरण, मा.गु., पद्म, वि. १८३५, आदि: प्रथम समरूं श्रीरीषभ; अंतिः वंदना भरतने होय ए. गाथा-२६. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. श्राव. देवब्रह्मचारी, पुहिं., पद्य, आदि: काशीदेश बनारस नगरी; अंति: मोख मारग दौखलाय, गाथा - ७. १६. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. ऋ. आशकरण, पुहिं., पद्य वि. १८३८, आदि: साधुजीने वंदना नीत; अंति: उत्तम साधूजी रो दास, गाथा - १०. 2 १७. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, बि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुल दीपक; अंति: प्रभूजी से पीर गाथा- ११. १८. पे. नाम. चारशरण सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: पो उठीनें समरीजै हौ; अंति: वर्त्यो जै जैकार, गाथा - ११. १९. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: सीमंधरजिनजी ने वंदु; अंति: जैपुरमें गुन गाय, गाथा-९. २०. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मा.गु., पच, आदि: चलो दरसन चलीये; अंति: मोखमारग दीखलाय, गाथा ६. २१. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि नगरी विनीता भली; अंतिः ते नर पामे साताजी, गाथा - १३. २२. पे. नाम, वैराग्य सज्झाच, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी खूब बनी छैजी; अंति: कटै न करमा को फंदो, गाथा - ११. २३. पे. नाम, नमस्कारमंत्र स्तोत्र, पृ. ८अ संपूर्ण, नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंग; अंति: महिमा जास अपार रे, गाथा - १०. २४. पे नाम, चौवीसजिन स्तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ अजीत संभव अंतिः महासुखां की खान है, गाथा - ९. For Private And Personal Use Only १८७ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५. पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., पद्य, आदि: समरू श्रीआदि जिणंद; अंति: प्रभु मुज दरसन दीजै, गाथा-२५. २६. पे. नाम. २४ जिन लावणी, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, रा., पद्य, आदि: समर समर जिनराज समर; अंति: विनयचंद वंदत चरना, गाथा-१३. २७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुल उपन्यो; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम ढाल है.) २८. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीरजिणंद; अंति: प्रभूजी की सेवा मीली, गाथा-१३. २९. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण. मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभु चितमोह; अंति: विनवै दासू चरनारो, गाथा-१२. ३०. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आज भलो दिन उग्योजी; अंति: म्हारी आवागमन निवार, गाथा-५. ३१. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि स्तवन, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पहले पद अरिहंत देव; अंति: चाहो तो धरम करो, गाथा-१३. ३२. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. १०आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दुंदुभि हवामां वाजे; अंति: प्रभूमोक्ख दूआरजी, गाथा-१५. ३३. पे. नाम. १६ जिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: ऋषभ अजित संभवस्वामी; अंति: कीया भवसागर तीरना, गाथा-१२. ३४. पे. नाम. ८ जिनवर्ण स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. राता-धोला-कालावरणजिन स्तवन, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: पौ उठी परभात ज समरुं; अंति: सफल फली मुज आस रे, गाथा-१०. ३५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: इख्याग वंसमें उपना; अंति: मै मुड मुड लागु पाय, गाथा-१३. ३६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर हो पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० तक है.) २२५५४. (+) स्तवन, सज्झाय संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, २९४५३-६३). १. पे. नाम. बयालीसदोष विवरण स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मु. रुघनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: शासनपति चौवीसमो; अंति: रचना अठारै अट्ठोतरै, गाथा-३६. २. पे. नाम. नवपद भाषामई गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र गीत, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणि सम सहू मंत्र; अंति: सदा अनुपम जस लीजे रे, गाथा-९, (वि. दो-दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, पुहि., पद्य, वि. १८१८, आदि: वामानंदन साहिबा; अंति: कृष्ण दुरंगामै, गाथा-१०. ४. पे. नाम. वरकाणांपार्श्वप्रभु स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रावण शुक्ल, २. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय श्रीजिनराय; अंति: शिवचंद० सार्या रे, गाथा-७. ५. पे. नाम. पूजनफल स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ मु. हितधीर, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: त्रिभुवनपति तेवीसमा; अंति: जयोजयो दिनकार ए, गाथा - १२. ६. पे. नाम. देवसीराईपाखीचीमासीसंवत्सरी पांचपडिकमणाविधि श्रीसुमतिनाथ वृद्धस्तवन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन- प्रतिक्रमणविधिगर्भित, संबद्ध, वा. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्म, वि. १६९०, आदि: सुमति कर सुमति जिन; अंति: कीधु हरख भर सुजगीस ए, ढाल - ६, गाथा - २१. ७. पे, नाम, गाथा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदि: ( - ); अंति: ( - ), गाथा - १. ८. पे. नाम. मल्लिनाथ वृद्धस्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंतिः कहै कहौ द्याहडी, गाथा - १३. ९. पे नाम, पंचमछठाआरानो वर्णन, पृ. ३अ, संपूर्ण, पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: भाख्या वयण रसाल, गाथा - २४. १०. पे. नाम. अढीदीप वीसविहरमान स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वांदु मन सुद्ध; अंतिः नेह घरी भ्रमसी नमे, गाथा - २६. ११. पे. नाम मुनिमालिका, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पय; अंतिः फलै सदाइ सदा कल्याण, गाथा - ३५. मु. विनयचंद, रा., पद्य, आदि: मल्लिजिन बाल; अंति: भगत प्रभू थारी, गाथा - १०. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १२. पे. नाम. चतुर्विंशति तीर्थंकराणामंतराल देहमान आयुस्थितिकथन वृद्धस्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- देहमान आयुस्थितिकथनादिगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: पंचपरमिट्ठ मन शुद्ध; अंति: धरमसीमुनि इम भणै, गाथा - २९. १३. पे. नाम. दसबोल स्यादवाद सिझाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्यादवादमत श्रीजिनवर; अंति: सिद्धांत रतन बहुमोल, गाथा - २१. २२५५५. स्तवन, सज्झाय, पद आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६ - १ (२२) = २५, कुल पे. १०४, दे., (२७X१२, १६५५४-५५). १. पे नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. धनीदास, पुहिं., पद्म, आदि: तु तोड करम जंजीर; अंतिः सुरज जिम जिम चंदा, गाथा - ८. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुहिं., पद्य, आदि दिनपत को न भांत; अंतिः आयो जनम मरन हरना, गाथा ५. ४. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. नवलराम, मा.गु., पद्य, आदि नेमकी जान बनी भारी; अंतिः हवा जे जैकारी, गाथा-८. ५. पे नाम, चतुर्भुजसाधु पद, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, मु. खेचलदास, पुहिं., पद्य, आदि: म्हाराज चतुरभूज; अंति: जिनकी अकथ कहानी, गाथा - १२. ६. पे नाम. १५ तिथि सज्झाय, प्र. २आ-३अ, संपूर्ण. १८९ मा.गु., पद्य, आदि: एकम कहै तू एकलो रे; अंति: तोसु धरगे किम कर्म, गाथा - १७. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि अछै नीके भोजन चहिये; अंतिः दूनिया वाहीमै भूलानी, गाथा ४. ८. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. जीव, मा.गु., पद्य, वि. १९३५, आदि: द्वारकानगर उद्यानमें; अंति: अविचल सुख मुझ दीजीये, गाथा-१०. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-अंतरीक्षजी, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु.जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: अंतरिक अंतरजामी मेरी; अंति: जिनदास की मेटोखामी, गाथा-४. १०. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नगर काकंदी हो मुनीसर; अंति: करम भरम कर दूर, गाथा-१४. ११. पे. नाम. नमिजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: विजयसेन नृप विजया; अंति: प्रभू भेट्यो रे, गाथा-७. १२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. जीव, पुहिं., पद्य, वि. १९३८, आदि: अपरे पद कुं समझरे; अंति: नगरहाथ रसमें कहीयै, गाथा-१०. १३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अपने पद कू छांड रे; अंति: जिनराज का गहीये, गाथा-५. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: काया नारी निज सीलें; अंति: पुरुष नारी सुख हुवै, गाथा-४. १५. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पीले रे बंदे हो मत; अंति: साध सती भगती रे, गाथा-७. १६. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: समकितधारी सुधमतीजी; अंति: सीमर्या पामै सिध, गाथा-१६. १७. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन वीर जिनेसरु; अंति: तुम नामथकी निस्तारि, गाथा-१८. १८. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. खीमा, मा.गु., पद्य, आदि: कचा था सोई चल गया; अंति: आयो जीण दिस जाय रे, गाथा-१२. १९. पे. नाम. कामदेवश्रावक सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: श्रावक श्रीवीरनो; अंति: खुस्याल० गुन ग्राम, गाथा-१६. २०. पे. नाम. ईलाचीकुमार सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे ईलापुत्र जाणीये; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-१६. २१. पे. नाम. प्रदेशीराजा सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जैसे लोहने पारस मीलै; अंति: उपज्या अमरविमानजी, गाथा-१५. २२. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसु० प्रणमे पाय रे, गाथा-७. २३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. चरणदास, पुहिं., पद्य, आदि: पिले रे अब तुं हो; अंति: शरीर भर्या विसका रे, गाथा-४. २४. पे. नाम. औपदेशिक बारमासो, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. मोतीराम, पुहिं., पद्य, आदि: चेत प्रीतम को देख; अंति: अंत खाकमें बासा है, गाथा-१२. २५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: देसतो विराना अपना; अंति: म्हारे मनकी प्यास, गाथा-६. २६. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. पुनो, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसर्याजी; अंति: पावे भवपार हो स्वामी, गाथा-२२. २७. पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org मा.गु., पद्य, आदि सतगुरु वचन विचार कर; अंतिः धनो पामसी केवलज्ञान, गाथा- १६. २८. पे. नाम. रत्नमुनि पद, पृ. ८आ - ९अ, संपूर्ण. मु. चंद्रभाण, पुहिं., पद्य, आदि: रतनमुनि पंडताड़ थारी; अंतिः मुझ राखो चरनमांही, गाथा - ११. २९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: हाकमने भेजा फरमानां; अंति: ठिकानां हुकम ले आया, ३०. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: होरी खेलन दे दिन; अंति: राजे इणविध खेलै फाग, गाथा - ९. ३१. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखकने दो-दो गाथा की एक गाथा गिनी है. नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: सखीरी चल गढ गिरनारी; अंति: भजन भजूंगी ढीग ठाडी, गाथा-३. ३२. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. हिं., पद्य, आदि: दुर्लभ लाघो मनुष्य; अंति: क्रोध लोभ अहंकार नही, गाथा - २०. ३३. पे. नाम. समता सज्झाय, पृ. १०अ - १०आ, संपूर्ण. गाथा - ६. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: समता रस का प्याला; अंति: पामे केवलज्ञान, गाथा-५. ३४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १०आ, संपूर्ण. मु. अखेमल, पुहिं., पद्य, आदि: खबर नही आ जगमे पल; अंति: जिणमे वीनती अखेमल की, गाथा - ९. ३५. पे. नाम, परनारी सज्झाय, पृ. १० आ, संपूर्ण. परनारीपरिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रावण मोटो राय कहावै; अंति: तावडौ ढलक जाय ढलको, गाथा-७. ३६. पे. नाम. धर्मरुचिअणगार सज्झाय, पृ. १० आ - ११अ, संपूर्ण. ऋ. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: चंपानगर अनोपम सुंदर; अंति: रतनचंद० लिया सिववासो, गाथा - १४. ३७. पे. नाम नेमिजिन स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. चौथमल रा., पद्य, आदि: श्रीनेमीसर साहिबा अंतिः अब पुरौ हमारी आस, गाथा - ७. मु. ३८. पे. नाम. ७ व्यसन सज्झाय, पृ. ११अ - ११आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद ऋषि, पुहिं., पद्म, वि. १८८५, आदि: सतगुरु संगत कीजे; अंतिः तौरवो गुरुप्रसादे, गाथा - ११. ३९. पे. नाम. साधुलक्षण सज्झाय, पृ. ११आ, , संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तारण तिरण जिहाज तुम; अंति: आदरेजी ते पावे भवपार, ४०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - काया, पृ. ११आ - १२अ, संपूर्ण. हिं., पद्य, आदि: कायारी तुं अब चल संग; अंतिः शुभ आनंद भए सारे, गाथा-७. ४१. पे नाम. सुमतिकुमति लावणी, पृ. १२अ संपूर्ण. जिनदास, पु,ि पद्य, आदि: तुं कुमत कलेसन नार; अंतिः तुं बात खोटी मत खेडे, गाथा-४. ४२. पे. नाम पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. गाथा - ११. . विनयचंद, पु,ि पद्म, आदि: पद्मप्रभु पावन नाम; अंतिः जीवन प्रांन हमारा, गाथा- ७. ४३. पे. नाम. शीलनववाड सज्झाय, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण. हिं., पद्य, वि. १९४२, आदि: अहो भव्य प्राणी रे; अंतिः कीनी नगर हाथरस गाइयो, गाथा - १०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. १२आ - १३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पु.ि, पद्य, आदिः समुद्रविजयजी रा कुमर अंतिः धनधन सती कर्म कसीया, गाथा- १३. ४५. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मत रहना भजन विन एक; अंति: पलपल में सीयाराम हरि, गाथा - ५. ४६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only पुहिं., पद्य, आदि: कमर कुं मोड कर चलते; अंतिः मनखा दे दोहिलि पाई, गाथा - १०. ४७. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १३-१३आ, संपूर्ण. १९१ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रा., पद्य, आदि: थाने आइ अनादि नींद; अंति: सुगन मन सोचो वो सही, गाथा-४. ४८. पे. नाम. १२ भावना बारमासो, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनपद पंकज नामो; अंति: ऋषि रतनचंदजी गाइयो, गाथा-१३. ४९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १४अ, संपूर्ण. चुनी, मा.गु., पद्य, आदि: तुम तजो रे मना विषया; अंति: करो जिनंदसुप्रीत, गाथा-७. ५०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: ते दिन कैसा कीनां तु; अंति: हम आए चरन तुम्हारी, गाथा-५. ५१. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १४अ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: लगीलो नाभिनंदनसुं; अंति: श्रीजिन समज भूदरयों, गाथा-४. ५२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जब लग तेल दीवे में; अंति: जीया मेरा है रे, गाथा-३. ५३. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. १४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. धनीदास, पुहि., पद्य, आदि: राजुल भाखै कान न; अंति: धनधन जन्म तीहारा, गाथा-६. ५४. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. चंदनलाल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम मनाउ श्रीनवकार; अंति: बलिहारी चरन परजाइ, गाथा-२५. ५५. पे. नाम. गुरुवाणी गीत, पृ. १५अ, संपूर्ण. मु. शंभुनाथ, पुहि., पद्य, आदि: पुज्यजीरी वाणी प्यार; अंति: शंभुनाथ पलपल वारी, गाथा-५. ५६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १५अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, पुहिं., पद्य, आदि: हाथी होय तो पकड; अंति: भाई साधो० मींचाउ रे, गाथा-५. ५७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. __ पुहिं., पद्य, आदि: दासी मेरी खरी रे; अंति: फकर अटल अखाडेदा, गाथा-८. ५८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर तुमसें मन मोह; अंति: दुष्ट करम दुरजन से, गाथा-६. ५९. पे. नाम. भवदेवनागीला सज्झाय, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. भवदेव-नागिला सज्झाय, ऋ. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: भवदेव जागी मोहनी तज; अंति: निज सीस नमाय, गाथा-११. ६०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १६अ, संपूर्ण. ऋ. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ए जग जाल सुपन की; अंति: पुद्गल भरम मिटाणा रे, गाथा-८. ६१. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १६अ, संपूर्ण.. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: वंदे रे बे कर जोड, गाथा-९. ६२. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि: थान भलो राजग्रही रे; अंति: घर सदा कल्याणो रे, गाथा-१०. ६३. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. गुलाबकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: गिरनारी की पहारी पर; अंति: व्याधि सबही विसरी, गाथा-१३. ६४. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १६आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: उग्रसेन की लली; अंति: मुकतमहलमै बेठा जाय, गाथा-८. ६५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखु तुट्याने सांधो; अंति: जालोर शहर मझार, गाथा-१३. ६६. पे. नाम. औपदेशिक बारमासो, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ पुहिं., पद्य, आदि: चैत कहे चितमाहि; अंति: बेडा पार हो जाता है, गाथा-१४. ६७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १७आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: पापमाही रात दिवस; अंति: भव दूर कुगुरु भजके, गाथा-४. ६८. पे. नाम. कमलावती सज्झाय, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण.. कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहिं., पद्य, आदि: महलामे बेठीजी राणी; अंति: मिच्छामिदक्कडं मोय, गाथा-२३. ६९. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन आया हो सोरठ; अंति: करजोडि रतन भणे ए, गाथा-१३. ७०. पे. नाम. बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १८आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मासखमणने पारणे तपसी; अंति: चोथमल कहे० भाव रे, गाथा-११. ७१. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. ऋ. खुशालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: मगध देश राजगृही नगरी; अंति: संजम लीनो शिव पामी, गाथा-१५. ७२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. मु. रतन, पुहिं., पद्य, आदि: सुन जीवलडा मानवभव; अंति: चौमासे कर भेट्या, गाथा-११. ७३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १९आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: धर्म पावे तो कोई: अंति: कहै पाछै पछतावै जी, गाथा-६. ७४. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १९आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी वंदनने जाउं हे; अंति: राजुल नैम प्रसादा है, गाथा-४. ७५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १९आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद ऋषि, पुहि., पद्य, वि. १९११, आदि: देखोजी आदिसर सामी; अंति: वीनोली मे गाया हेजी, गाथा-८. ७६. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २०अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: लील वसत पाटवी राजै; अंति: भवसागर दीजो त्यारी, गाथा-७. ७७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २०अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एजी कामकीरत का वनां; अंति: करसी पडसी नरक निसानी, गाथा-७. ७८. पे. नाम. सामान्यजिन स्तवन, पृ. २०अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: भवोदधि पार कीजो तुम; अंति: भवसागर से पार कीजोजी, गाथा-५. ७९. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह प्रति में रचना संवत् १८८८ बताया गया है. ऋ. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८२, आदि: आदिजिन अरज सूणोजी; अंति: धरम रागी सदा भगतकारी, गाथा-११. ८०. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. २०आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, पुहिं., पद्य, आदि: मातपीता से अनुमत; अंति: करुं शुद्ध परनाम से, गाथा-४. ८१. पे. नाम. मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडानी विनती, पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण. मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडा विनती, मा.गु., पद्य, आदि: दया बरोबर धर्म नहीं; अंति: संत सुखी अणगारो जी, गाथा-३१. ८२. पे. नाम. धन्नाऋषिगुण सज्झाय, पृ. २१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन स्वामी अंतरज; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ८३. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. २३अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमराजिमती सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: शिवपद वर लीयो, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) गा For Private And Personal use only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २३अ, संपूर्ण. मु. वखता, पुहि., पद्य, आदि: समझ मन आयु जावै जिम; अंति: मत करनां तु फैल रे, गाथा-८. ८५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कुव्यसन, पृ. २३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तजो रे जीव साचो तो; अंति: दरसनकुं सजन मन भाई, गाथा-५. ८६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: थारी फूलसी देह पलक; अंति: खरी अभिलाषा रे, गाथा-५. ८७. पे. नाम. सामान्यजिन स्तवन, पृ. २३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. सुंदरदास, पुहिं., पद्य, आदि: अब कांइ त्यार; अंति: आयो करो कुरनां आज, गाथा-५. ८८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २३आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: मुखडा क्या देखे दरपन; अंति: चेतो पलटै काया छीनमै, गाथा-५. ८९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २३आ, संपूर्ण. मु. धनीदास, पुहि., पद्य, आदि: दगा कोइ कीनसे नहीं; अंति: चौसरनां चित धरना, गाथा-७. ९०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. मु. रामकिसन, पुहिं., पद्य, आदि: महबूब तेरा तुझमें; अंति: रामकिसन० वात है इही, गाथा-५. ९१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अरज करत हूं नाथ मेरा; अंति: सरनागत कुंप्रत पारो, गाथा-८. ९२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २४अ, संपूर्ण. मु. पेम, पुहिं., पद्य, आदि: ममत मत कीज्यो राज; अंति: बधे सुख दिनदिन में, गाथा-४. ९३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत देवनें ओलखाव; अंति: गया वरत्या जयजयकार, गाथा-१०. ९४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २४आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: उहां से तौ आयो कोल; अंति: भार रहेगा काठ का रे, गाथा-४. ९५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २४आ, संपूर्ण. मु. भूदर, पुहिं., पद्य, आदि: मै तो आप रंगीली मत; अंति: ताह नमुकरजोडी रे, गाथा-४. ९६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: करम बली रे भाई; अंति: जनम मरन दुख मूल नहीं, गाथा-११. ९७. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. २५अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर स्याम संदेसो; अंति: पहला मुक्ति गई ललना, गाथा-१०. ९८. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. २५अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: सुध ग्यानीजी फागुणमे; अंति: मुक्तिवधु सोहत जोरी, गाथा-७. ९९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अए तलबदार छोडो नगरी; अंति: नरनारी० परपंच भरी, गाथा-७. १००. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २५अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: तुही तुही याद आवै; अंति: जिनका गुन गाया दरदमे, गाथा-६. १०१. पे. नाम. सोलैसुपना सज्झाय, पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण. १६ स्वप्न सज्झाय, ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलपुर नामे नगर चंद; अंति: ऋष जेमलजी कीधी जोडो, गाथा-३६. १०२.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र का कोना मूषकभक्षित होने से आदिवाक्य का मध्यभाग अनुपलब्ध है. पुहिं., पद्य, आदि: पांचौ तो० काया गइ; अंति: ते पंडतानी रीझाया हो, गाथा-७. For Private And Personal use only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १०३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २६आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. नाथुराम, पुहिं., पद्य, आदि: झूठा जगत संसार दया; अंति: प्रभू भवसागर देउ टाल, पद-४. १०४. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. २६आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) २२५५६. (+) स्तवन, सझाय, होली, लावणी आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १४-२०४३६-४१). १. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ११-१आ, संपूर्ण. मु. कीर्तिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन अरणक जाण; अंति: कीर्तिसूरि इण० कहै ए, गाथा-२४. २. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: जेणे मनवंछित लीधोजी, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नारी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मुरख के मन भावे नही; अंति: आगै इछा थारी रे, गाथा-१९. ४. पे. नाम. राजिमतीबावीसी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. राजिमतीसती इकवीसी, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: शासननायक समरिये; अंति: हो सावणमास मझार, गाथा-२२. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सौरीपुर नगर सुहामणो; अंति: मनरूप प्रणमई पाय, गाथा-१५. ६. पे. नाम. नेमिजिनहोरी, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी से होरी मचाई; अंति: गुराकुं सीस नमाइ, गाथा-११. ७. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी सै कइयो मोरी; अंति: मुझ पार उतारजो रे, गाथा-५. ८. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने अपूर्ण कृति को बीच में ही संपूर्ण कर दिया है.) ९. पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी आगल रही लेई; अंति: वरस सोदनो जावेरे, गाथा-१४. १०. पे. नाम. शंखेस्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. ११. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, पृ. ५अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. १२. पे. नाम. १४ नियम, पृ. ५अ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त दव्व विगइ; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. १३. पे. नाम. बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मासखमणने पारणे तपसी; अंति: तीनु सरिखा भाव रे, गाथा-१४. १४. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. ५आ, संपूर्ण पुहिं., पद्य, आदि: का संग खेलुंगी होरी; अंति: द्विरग संसार बुरोरी, गाथा-४. १५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: अब केसै घर रहुयरी; अंति: एह उपदेस बनाय किया, गाथा-११. १६. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी, पृ. ६अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रा., पद्य, आदि: होरी खेलनदे दिन; अंति: राजे इणविध खेलै फाग, गाथा-८. १७. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम भजो निरंजन नाम; अंति: जिनदास लावणी गाई, गाथा-४. १८. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: अजी तुम तजकर सुकरत; अंति: जोर तेरा नही रे, गाथा-४. १९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. क. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: भरमति भरमति संसार; अंति: मुक्तसुं बाधै प्रीत, गाथा-९. २०. पे. नाम. मेघकुमारजी की सिझाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: दुर्लभ लाधो मनुष्य; अंति: क्रोध लोभ अहंकार नही, गाथा-२०. २१. पे. नाम. सोलसुपना सज्झाय, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: रिष जैमल करी जोडो रे, गाथा-३५. २२. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनगर सुहामणों; अंति: ते पामै भवपार हो, गाथा-२८. २३. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. मु. पुनो, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसर्याजी; अंति: भणेजी ते पामे भवपार, गाथा-२२. २४. पे. नाम. रथनेमिराजिमती सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. मु. गुलाबकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: गिरनारी की पहारी पर; अंति: गुलाबकिर्ति० बसरी, गाथा-१३. २५. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: शिवरमणि जादु डार्या; अंति: धनधन जनम तुंहारा, गाथा-६. २६. पे. नाम. भक्ति पद, पृ. ११आ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: चरखा परै भगादेनी; अंति: लव लाई गावै मीराबाई, गाथा-६. २७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कायापिंड काचो राज; अंति: नटवा थइ मति नाचो, गाथा-४. २२५५७. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, प्रतिक्रमण विधि, स्तवन, सझाय संग्रह व लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १२४४३-४४). १. पे. नाम. श्रावक रो पडिकमणो, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. ___ आवश्यकसूत्र-स्थानकवासी श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: दयाधर्म रोसरणो. २. पे. नाम. पडिकमणारी विध, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आग्या मांगने पडिकमणो; अंति: पछै वंदणा करणी. ३. पे. नाम. चौवीसतीर्थंकरा रोस्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ अजित संभव; अंति: श्रीमुगत तणा दातार, गाथा-५. ४. पे. नाम. श्रीमिंदरस्वामी स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: श्रीसीमंधरस्वामी सुण; अंति: गंग मुनि० करै प्रणाम, गाथा-१३. ५. पे. नाम. संतनाथ स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात उठ श्रीसंतिजिण; अंति: पापैलायक काय टली, गाथा-५. ६.पे. नाम. ईग्यारे गणधरांरो स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ११ गणधर स्तवन, मु. आसकरण, मा.गु.,रा., पद्य, वि. १८४३, आदि: इंद्रभुतिजीरो लीजै; अंति: तवन कीयो पीपाड, गाथा-१२. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: विषयवस जनम गयो रे; अंति: भयोरी भयोरी भयोरी, गाथा-४. ८. पे. नाम. काकंदीधनौ सझाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. धन्ना सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी काकंदी हो मुनीस; अंति: रतनचंद कहै जौड, गाथा-७. ९. पे. नाम. धर्मरुचि स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. धर्मरुचिअणगार सज्झाय, ऋ. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: चंपानगरी निरुपम; अंति: रतनचंद० लिया सिववासो, गाथा-१५. १०. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मु.रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधोजी, गाथा-८. ११. पे. नाम. गजसुकुमाल ढाल, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. गजसुकुमाल सज्झाय, मु. चौथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: चोथमल. नित समरो भाई, गाथा-२२. १२. पे. नाम. सोलेतीर्थंकर स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: ऋषभ अजित संभवस्वामी; अंति: भगत कीयो जामण मरणा, गाथा-१२. १३. पे. नाम. आठोईजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. राता-धोला-कालावरणजिन स्तवन, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: पोह उठ प्रभाते वंदु; अंति: सहर चोमास रे माई, गाथा-१०. १४. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. मु. चौथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीसीमंधर साहिब हो; अंति: हो वद मिगसर मास, गाथा-१२. १५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुल दीपक; अंति: षट कायाना प्रभु पीर, गाथा-१२. १६. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ए आठौहि कामिणि जंबू; अंति: वरतीया जैजैकार, गाथा-१३. १७. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, रा., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. १८. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: कुमत कलेसण नार लगी; अंति: की वात खौब मत खेरै, गाथा-४. १९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: उंडोजी अर्थ विचारीयै; अंति: थको न रहे कोड उपाय, गाथा-२१. २०. पे. नाम. जीव सज्झाय, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीयाजी; ___अंति: पून्य तणा फल जाण रे, गाथा-११. २२५६०. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. ४, जैदे., (२८x१२.५, ११४२८-३३). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, पृ. १आ-१८अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: जैनं जयति शासनं. २. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा- ४. ३. पे. नाम. पांचमी स्तुति, पृ. १५ - १६अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १६अ १६आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंतिः निवारो संघतणा निशदिश, गाथा- ४. २२५६१. (+) स्तवन संग्रह व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ८, प्र. वि. यह प्रति रचना के समीपवर्ति काल में लिखी होने की संभावना है., संशोधित, जैदे., (२८१२, १२-१४४३५-३८ ) . १. पे. नाम. आदिजिन विनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, पृ. १आ - ३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर: अंति: मन वैरागे इम भणियं, गाथा- ४४. २. पे. नाम. ५६ दिक्कुमारी जन्ममहोत्सव स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. ५६ दिक्कुमारी जिनजन्ममहोत्सव स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि जिन जनम जाणी आवी; अंतिः सर्वे बेहु करजोडी, गाथा - ११. ३. पे. नाम. मल्लिजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: हवे दान संवछरि दिये; अंतिः अविचल सुख दातार, गाथा- १८. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन- नालंदापाडा, पृ. ४अ - ५अ, संपूर्ण. क्र. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: मगध देशमांहि विराजे अंति: हयडे हर्ष उलासोजी, गाथा - २१. ५. पे नाम. सुपात्रदान सज्झाय, पृ. ५अ ६अ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदिः संखराजा जसोमतीराणी; अंतिः दानधकी जयजय थाओ, गाथा - २१. ६. पे. नाम, विहरमानजिन स्तवन, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण. मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पूर्व महाविदेह विराज; अंति: एक कियो अरदासोजी, गाथा - ११. ७. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: देवतणा गुण वर्णवु; अंति: तुमे चरणे दोय वास, गाथा - १८. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन- त्रिलोकीपातसाह ऋद्धिवर्णन, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंन्या. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: भरतजी कहे सुणो मावडी अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ तक है.) २२५६२. (+) स्तवन संग्रह, हेमदंडक कवित व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे ८, प्रले. पं. जुहारमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८x१२.५, १४X४२-५३). १. पे. नाम. श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सामान्य लोक सं., पद्य, आदि: ( - ); अंति: (-), श्लोक १. २. पे नाम, जीवविचार का पद्यानुवाद, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: भुवन प्रदीपक वीर; अंतिः कीनो जैपुर नगर मझार, श्लोक - २९. ३. पे नाम, नवतत्त्व प्रकरण पद्यानुवाद, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: नमस्कार अरिहंतने; अंति: तत्वकथा भज नर फल लीध, गाथा-३३. ४. पे. नाम. चतुर्विंशतिदंडक स्तव, पृ. ४अ - ५अ, संपूर्ण, ले.स्थल. इंद्रपुरी. दंडक प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि ऋषभादिक चौविस नमी; अंतिः कर जैपुरनगर मझार, गाथा २६. - For Private And Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ५. पे. नाम. हेमदंडग, पृ. ५आ, संपूर्ण.. हेमदंडक, प्रा., पद्य, आदि: जीवभेया सरीराहार; अंति: अप्पाबहुदंडगम्मि, गाथा-५. ६. पे. नाम. हेमदंडक की भाषा, पृ. ५आ-१०आ, संपूर्ण. हेमदंडक-भाषाटीका, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: जो ध्रुव अलख अमूरती; अंति: कीनों हेमदंडग सुजगीस, गाथा-१०७. ७. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. १०आ, संपूर्ण. कवित संग्रह , पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कवित-२ प्रारंभ तक है.) ८. पे. नाम. ६२ मार्गणा स्तोत्र, पृ. ११अ-१६अ, संपूर्ण. ६२ मार्गणा स्तवन, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: शासननायक वीरने तिम; अंति: मुनि कीनो अति मतिमंद, गाथा-११२. २२५६३. (+) सिंदूर प्रकरण रास, सज्झाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. ९,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१२.५, १५४३३-४०). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकरण सुक्तिमुक्तावली, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९१, आदि: शोभत तप गजराज सीस; अंति: वानारसि० विस्तार, गाथा-१०१. २. पे. नाम. सवैया नाटक समेसार के, पृ. ११अ-२०आ, संपूर्ण, पे.वि. कुल पत्र ११अ-१३आ+१८आ-२०आ इस प्रकार दो भागो में विभक्त है. समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर; अंति: भावै रहो वनमै, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. संकलित कुछेक सवैया का संग्रह.) ३. पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. १३आ-१५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: परम निरंजन परमगुरु; अंति: करे मूढ वडावे सिष्ट, गाथा-३७. ४. पे. नाम. ध्यानवतीसी, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण. ध्यानबत्तीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान स्वरूप अनंत; अंति: अलपमति यथाशकति परमान, गाथा-३४. ५. पे. नाम. अध्यातमवतीसी, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण. अध्यात्मबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: शुद्ध वचन सदगुरु; अंति: एह तत लहि पावे भवपार, गाथा-३३. ६. पे. नाम. नवरत्नदोहा, पृ. १७आ-१८आ, संपूर्ण. काव्य/दहा/कवित्त/पद्य , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१०. ७. पे. नाम. कुगुरुवतीसी, पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण. कुगुरुबत्रीसी, मु. भीम, रा., पद्य, आदि: भांति भांति की टोपी; अंति: रहैउ नही ते न्यारा, गाथा-३१. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, पृ. २१आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चिंतामणिसामी साचा; अंति: करे बनारसी बंदा तेरा, गाथा-४. ९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: जीवते पितर कुंमारै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) २२५६४. (+) श्राद्धप्रतिक्रणसूत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. १३, प्रले. मु. दोलतविजय; पठ. मु. रूपचंद (गुरु मु. दोलतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १०४३०). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू., पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: सा अम्ह सया पसत्था. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ४. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: निवारो संघतणा निशदिश, गाथा-४. ५. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-चिंतामणि, पृ. १२अ, संपूर्ण. मु. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु नित्य पास; अंति: संघविघन हरो पउमावइ, गाथा-४. ७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमाहे तीरथ; अंति: दिनदिन दोलत वरे, गाथा-४. ८. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण.. मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय कर मंगलदीपक; अंति: कमला भालतिलक वर हीर, गाथा-१. ९. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: सीमधरस्वामी केवला; अंति: आवागमन निवार वार, गाथा-१. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: सन्नो देवीदेयादंबा, श्लोक-१. ११. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १२. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. १३. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.. मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक मन सुद्ध; अंति: व्रत पालो निसदिस, गाथा-५. २२५६५. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, पूर्ण, वि. १९३२, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१०)=१५, कुल पे. ८, ले.स्थल. पाटण, प्रले. नरभेराम अमुलख ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचासरा प्रसादात्., दे., (२७४१२, १२४३३-३५). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, पृ. १अ-१३अ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: देहि मे देवि सारं. २. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ४. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण.. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोडि कल्याणजी, गाथा-४. For Private And Personal use only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ५. पे. नाम. एकादसी स्तुति, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: निवारो संघतणा निशदिश, गाथा-४. ६. पे. नाम. चतुर्दशी स्तुति, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ७. पे. नाम. प्रत्याख्यान संग्रह, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: असित्थेण वा वोसिरामि. ८. पे. नाम. गौतमस्वामी स्वाध्याय, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो गणधर वीरनो रे; अंति: वीर नमे निसदिस, गाथा-७. २२५६७. कुलक संग्रह व बंधछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, दे., (२७.५४१२, ११४३६). १. पे. नाम. साहम्मिय कुलक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. साधर्मिक कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पासजिणं वुच्छं; अंति: कयपुन्ना जे महासत्ता, गाथा-२६. २. पे. नाम, पडिलेहणा विचार, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: पडिलेहणा विशेष; अंति: सीसेणं विजयविमलेणं, गाथा-२८. ३. पे. नाम. प्रमादपरिहार कुलक, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: दुक्खसुक्खे सयामोह; अंति: सम जिणपया सेवाफलं, गाथा-३१. ४. पे. नाम. बंधछत्रीसी, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: ओरालसव्वबंधा थोवा; अंति: आहारगलद्धिए मुत्तुं, गाथा-३३. २२५६९. (+) अष्टप्रकारी पूजा, आरती व एकादशी स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५४, पौष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ११, ले.स्थल. वासणा, प्रले. पं. उत्तमविजय; अन्य. भीमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२.५, १३-१९४३८-४६). १. पे. नाम. अष्टप्रकारी पुजा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख; अंति: दर्शनं च लभंते, ढाल-८. २. पे. नाम. अष्टप्रकार पुजा, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिजगनायक तु धणी; अंति: अमीयकुंवर कहे निवार, ढाल-८. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथजी आरती, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन आरती, पं. वीरविजय, पुहिं., पद्य, आदि: आरती कीजेपासकुंवरकी; अंति: शुभवीर ते शीश नमावे, गाथा-९. ४. पे. नाम. शांतिनाथ आरती, पृ. ३अ, संपूर्ण. शांतिजिन आरती, पुहि., पद्य, आदि: जय जय आरति शांति; अंति: नरनारी अमर पद पावे, गाथा-६. ५. पे. नाम. आदिजिन आरती, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. माणेकमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अपछरा करती आरती जिन; अंति: जाणी पोताना बाल, गाथा-६. ६. पे. नाम. च्यारमंगल आरती, पृ. ३आ, संपूर्ण. ४ मंगल पद, मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: च्यारो मंगल च्यार; अंति: आनंदघन उपगार, गाथा-७. ७. पे. नाम. नवअंगतिलकना दुहा, पृ. ४आ, संपूर्ण. नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुट पत्रमा; अंति: कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा-१०. ८. पे. नाम. एकादशीनो स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची एकादशीपर्व स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पहेले कोटे महाजस; अंति: दिनदिन वधते वान रे, ढाल-२. ९. पे. नाम. एकादशीनो तवन, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४. १०. पे. नाम. इकादशी स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: कहै कहौ द्याहडी, गाथा-१३. ११. पे. नाम. एकादशीजिन स्तवन, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लहे ते मंगल अति घणो, ढाल-३. २२५७०. पंचसंधि, स्तवन, सझाय, पद, चैत्यवंदन आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०, कुल पे. ५३, दे., (२७.५४१३, ९४२४-२८). १.पे. नाम. सारस्वत व्याकरण-पंचसंधिप्रक्रिया, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण. सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. संतिकर स्तव, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण.. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ३. पे. नाम. बाराक्षरी, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ; अंति: श्ल ष्ण श्क श्रेयं, (वि. अंत में १ से २१ तक अंक लिखे हैं.) ४. पे. नाम. अयमतानी सझाय, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा-१८. ५. पे. नाम. रोहणीतप सज्झाय, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य नमी; अंति: अमृतपदनो० स्वामी हो, गाथा-११. ६.पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक नय धारो चतुर; अंति: ग्यानवंत कि पासे, गाथा-८. ७. पे. नाम. मोरादेजी री सज्झाय, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: मरुदेवी माता रे एम; अंति: विनयविजय गुरुराय, गाथा-६. ८. पे. नाम. स्थूलभद्र सज्झाय, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. विजयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठ सखी उतावली सेर; अंति: मुनिस्युं लागो ध्यान, गाथा-७. ९. पे. नाम. गुरुगुण स्वाध्याय, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण. गुरुगुण गीत, मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीने नमुं सुखकार; अंति: राजहर्ष कोड कल्याण, गाथा-१५. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. मु. राजेंद्रहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: हा रे आज श्रीजिनराज; अंति: तोडै भवना फंद जी, गाथा-६. ११. पे. नाम. राणपुरजी रो तवन, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरो रलीयामणौ रे; अति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. १२. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २१अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: दया मीठाई अतिभली वरी; अंति: मुगतवधु चित लाव हो, गाथा-७. १३. पे. नाम. रोहणीतपमई जिन स्तवन, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. रोहिणीतप चैत्यवंदन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रोहिणी तप आराधीए; अंति: करो जिम होय भवनो छेद, गाथा-६. १४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर साहिब; अंति: मोहन जय जयकार, गाथा-६. १५. पे. नाम. गोडिपार्श्वनाथजीरो स्तवन, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु; अंति: अविचल पद निरधार, गाथा-७. १६. पे. नाम. श्रीमंदिरजीन स्तवन, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दधिसुत विनतडी सुणजो; अंति: जिनविजये गुण गायो रे, गाथा-८. १७. पे. नाम. आदिजिन गुहली, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. आदिजिन गहुली, मु. रंगविलास, मा.गु., पद्य, आदि: वनितानगरी सोभती; अंति: वंदननो बहु लाह रे, गाथा-८. १८. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १ से २, पृ. २४अ-२५आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९. पे. नाम. एकादशी नमस्कार, पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीरजी बहु; अंति: शासने सफल करो ___अवतार, गाथा-८. २०. पे. नाम. कका पांचजात, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण. संयुक्त वर्णमाला के ५ प्रकार, मा.गु., पद्य, आदि: क्क क्ख ग्ग ग्घ ङ; अंति: स्व हल्ल्व क्ष्वः. २१. पे. नाम. सिद्धिचक्र चैतवंदन, पृ. २६आ-२७आ, संपूर्ण, पे.वि. कर्तानाम अशुद्ध लिखा है. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधता; अंति: कहि शीश नमुकरजोडि, गाथा-१३. २२. पे. नाम. प्रथमजिन स्तुति, पृ. २७आ-२८आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत नमो भगवंत; अंति: ज्ञानविमलसूरिस नमो, गाथा-८. २३. पे. नाम. जिनदेहरानो फल, पृ. २८आ-२९आ, संपूर्ण. जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती देवी धरी मनरंग; अंति: इम कवि मान कहे करजोड, गाथा-१२. २४. पे. नाम. पंचमी नमस्कार, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: युगला धर्म निवारिओ; अंति: श्रीखिमाविजय जिणचंद, गाथा-९. २५. पे. नाम. अष्टमी नमस्कार, पृ. ३० अ-३१अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि नमस्कार, पं. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्र वदी आठम दिने; अंति: प्रगटे ज्ञान अनंत, गाथा-१४. २६. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ३१अ-३२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चोरासीलाख जुनमे रे; अंति: मुनिवर करह विचार, गाथा-११. २७. पे. नाम. बीजनी सज्झाय, पृ. ३२अ-३३अ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित विविध विनोद रे, गाथा-८. For Private And Personal use only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २८. पे. नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. ३३अ-३३आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुनरपि पांचम एम वदे; अति: सुखह अनंत सुलब्ध, गाथा-८. २९. पे. नाम. अष्टमी सज्झाय, पृ. ३३आ-३४आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठम कहे आठ मदनो प्रा; अंति: पुण्यनी रेह रे, गाथा-९. ३०. पे. नाम. खंडकऋषि स्वाध्याय, पृ. ३४आ-३६आ, संपूर्ण. खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो खंधक महामुनि; अंति: सेवक सुखीया कीजे, ढाल-२, गाथा-२०. ३१. पे. नाम. माहावीरजिन स्तवन, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: भवोभव तुम पाय सेव हो, गाथा-५. ३२. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ३७अ-३८अ, संपूर्ण. मु. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: नित होजो परिणाम, गाथा-८. ३३. पे. नाम. नवपद आराधना विधि, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: कहीने काउसग्ग करवो. ३४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३८आ-३९आ, संपूर्ण. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: भूल्यो मन भमरा; अंति: तो कांइ आवेजी साथ, गाथा-७. ३५. पे. नाम. आत्महितशिक्षा सज्झाय, पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी साथे जो; अंति: उदयरतन इम बोले रे, गाथा-७. ३६. पे. नाम. अभव्य सज्झाय, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण.. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: उपदेश न लागे अभव्यने; अंति: उत्तम संग निधान रे, गाथा-६. ३७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ४०आ-४१आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८८, आदि: सहु नरनारी मिल आवो; अंति: गाया विनीतसागर मुदा, गाथा-७. ३८. पे. नाम. गोतमस्वामीनी स्तूति, पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष; अंति: तूठा संपति कोडि, गाथा-९. ३९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण. मु. चतुरकुशल, रा., पद्य, आदि: विसरे मत नाम प्रभूजी; अंति: लहै रंग पतंग फीको, गाथा-३. ४०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४२आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होरी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: फागुन में फाग रमो; अंति: निगोदसुं रहो न्यारे, पद-३. ४१. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक सह बालावबोध, पृ. ४२आ-४६आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-१.. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ४२. पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. ४६आ-५१अ, संपूर्ण. नववाड सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०. ४३. पे. नाम. पंचमी तवन, पृ. ५१अ-५६अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पासजिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे गुणि, ढाल-६, गाथा-४९. ४४. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. ५६अ-५७आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २०५ पंचतीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदि ए आदि ए आदिजिने; अंति: मुनि लावण्यसमय भणे ए, गाथा-११. । ४५. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व स्तवन, पृ. ५७आ-६४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. गुणसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं भगवती; अंति: पूरीइं प्रभू वास ए, गाथा-६९. ४६. पे. नाम. महावीरजी वृद्धस्तवन, पृ. ६४अ-६६अ, संपूर्ण. महावीरजिन विनतीस्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-१९. ४७. पे. नाम. सीमंधरजी चैत्यवंदन, पृ. ६६अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन , उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा-३. ४८. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ६६आ-६८आ, संपूर्ण. नवपद चैत्यवंदन, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र महामंत्र; अंति: भणी वंदु बे करजोड, गाथा-३. ४९. पे. नाम. भीलभीलडीनी सिझाय, पृ. ६६आ-६८आ, संपूर्ण. भीलडी सज्झाय, मु. उदयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण विनवू; अंति: एहना गुण गाउं उदारो, गाथा-२५. ५०. पे. नाम. नेमनाथजीनो स्तवन, पृ. ६८आ-६९अ, संपूर्ण. नेमराजिमतीस्तवन, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आवी रथ फेरी; अंति: ए दंपति दोइ सिद्ध, गाथा-६. ५१. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ६९अ-६९आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरुआरे गुण तुम; अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, गाथा-५. ५२. पे. नाम. रामराजा सज्झाय, पृ. ६९आ-७०अ, संपूर्ण. मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: बलिहारी राम राजनकि; अंति: प्रमोदसागर सुख दानकि, गाथा-५. ५३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ७०अ-७०आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबनी सेवामे रहसु; अंति: जय जय श्रीमहावीर, गाथा-८. २२५७१. स्तवन, सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ५, जैदे., (२८x१२.५, १२४३८-४०). १. पे. नाम. उतपतिसत्तरी, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोय जीव आपणी; अंति: इम कहै श्रीसार ए, गाथा-६९. २. पे. नाम. करमछतीसी, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: कर्म थकी छूटे नही; अंति: धर्म तणो परमाणजी, गाथा-३६. ३. पे. नाम. वैराग्यमयी बारहमासो, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. वैराग्य बारमासा, मु. रंगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्यानीडा रे प्रणमी; अंति: एम धरम करो मननी रली, गाथा-१४. ४. पे. नाम. आलोयण वृद्धस्तवन, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: ए धन सासन वीर जिनवर; अंति: कीधो चउपने फलवधिपुरे, ढाल-४, गाथा-३०. ५. पे. नाम. मुनिमालिका, पृ. ८अ-१०आ, संपूर्ण. मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पय; अंति: सदा कल्याण कल्याण, गाथा-३६. For Private And Personal use only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२५७२. (+) स्तोत्र, स्तुति संग्रह व कर्पूर प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. १८, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८x१२.५, ११-१२४३७-३८). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं परमानंद; अंति: क्षमा०कल्याणविशारदेन, श्लोक-४९. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ३अ-८आ, संपूर्ण. स्तुतिचतुर्विंशतिका, वा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदि: सद्भक्त्या नतमौलि; अंति: देवता सा जयतादजस्रम्, स्तुति-२४, श्लोक-७७, ग्रं. १४८. ३. पे. नाम. शीतल स्तव, पृ. ८आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: सकलमंगलकेलिनिवेशन; अंति: शीतलः सौम्यमूर्तिः, श्लोक-५. ४. पे. नाम. पार्श्वस्तव, प्र. ८आ-९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: विशदगुणविचित्रं; अंति: भ्राजमानो जिनेंद्रः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. समस्यामयी शंखेश्वरपार्श्व स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, सं., पद्य, आदि: यस्य ज्ञानदयासिंधो; अंति: शंखेश्वरः प्रभुः, श्लोक-५. ६. पे. नाम. विविधयमकयुक्ता पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीनिदानं गुरु; अंति: भवांभोनिधि, श्लोक-७. ७. पे. नाम. शंखेश्वरजिन स्तव, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: गौडीग्रामे स्तंभने; अंति: दर्शनं यस्य तं च, श्लोक-५. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. __ आ. जिनलाभसूरि, सं., पद्य, आदि: विशदसद्गुणराजिविराजि; अंति: वाग्जिनलाभशुभार्थदा, श्लोक-४. ९. पे. नाम. गौडीपार्श्वस्तव, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिने; अंति: संसेव्यतां विश्वपाः, श्लोक-३. १०. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तव, पृ. १०आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यः श्रीऋषभस्ततो; अंति: सद्भक्तितः पत्यहं, श्लोक-३. ११. पे. नाम. अष्टापद स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थस्तुति, सं., पद्य, आदि: यत्र श्रीभरतेश्वरः; अंति: द्रष्टुं समीहे स्वयं, श्लोक-१. १२. पे. नाम. नंदीश्वर स्तव, पृ. १०आ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., पद्य, आदि: लसद्द्विपंचाशदधीश्वर; अंति: भवभीतिशांतये, श्लोक-१. १३. पे. नाम. जिनकुशलसूरीणां स्तोत्र, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरिस्तोत्र, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीमज्जिनाधीशमुख; अंति: गणैः संसेव्यमानः सदा, श्लोक-२२. १४. पे. नाम. पद्मावत्यष्टक, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी अष्टक, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: चिदानंदसंपद्विलासैक; अंति: ते शुद्धसमृद्धिभाजः, श्लोक-९. १५. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथस्य स्तवनं षड्भाषासमसंस्कृतादिचातुर्यमयं, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, सं., पद्य, आदि: प्रणमति यः श्रीगौडी; अंति: सुस्वाददां स्तात, श्लोक-११. १६. पे. नाम. जिनकुशलसूरिजी सद्गुरुणामष्टक, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवार्यदेव; अंति: भृतां मुदेस्तात्, श्लोक-९. १७. पे. नाम. जैनतीर्थावलीद्वात्रिंशिका, पृ. १४आ-१६आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: तीर्थेश्वर श्रीयुत; अंति: शुद्ध्यै भवतादजस्रं, श्लोक-३२. १८. पे. नाम. कर्पूरप्रकर, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. For Private And Personal use only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: ( ) ( पू. वि. लोक-३ अपूर्ण तक है.) २२५७४. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६ - २ (१ से २ ) = १४, कुल पे. १३, प्रले. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ५५०, दे. (२६४१२.५, १२४४४). १. पे. नाम. नागह्रदभूषण पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३अ -४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र नागहृदभूषण, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि जय श्रीमन्नागहदपुर अंतिः श्रेयोचिराच्छाश्वतम्, श्लोक-२४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. ईलदुर्गालंकार श्रीऋषभदेव स्तवन, पृ. ४अ - ५आ, संपूर्ण आदिजिन स्तव - ईलदुर्गमंडन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीविलासालयं अंतिः श्रियः शाश्वतीः, लोक-२४. ३. पे. नाम बर्द्धमानजिन स्तवन, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीनिलयं यस्य; अंतिः मम भवारिजयश्रीः, ४. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तव, पृ. ७अ - ९अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रियः श्रीमान् अंतिः ज्ञानश्रियं शाश्वतीः, श्लोक-२६. ५. पे. नाम. वीरपरमेश्वर स्तवन, पृ. ९अ - १०आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, आ. जयसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदिः सकलमंगलखेलनमंदिर; अंतिः सुखमनुभवंति मनोहरं, श्लोक-२४. - ६. पे. नाम. जिनस्तुतिप्रतिपादकानी काव्यः, पृ. १०-११अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः यो वेदानाननानां पठति; अंतिः मुक्तिमार्गाध्वनीनः श्लोक ८. ७. पे. नाम. संभवजिनस्याष्टक स्तोत्र, पृ. ११अ - ११आ, संपूर्ण. संभवजिन अष्टक, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, आदिः सकलविघ्नविघातकरस्वरः; अंतिः तस्व गेहांगणेस्ति, श्लोक- ९. श्लोक-२४. ८. पे. नाम. चतुर्विंशति स्तोत्र, पृ. ११आ - १२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः यं सततमक्षमालोपशोभित; अंतिः वः शंवरदो महेंद्रः, श्लोक-२९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, प्र. १३अ १३आ, संपूर्ण. २०७ आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि: विध्वस्ताखिलकर्मजाल; अंति: त्यस्मै मदीयं मनः, श्लोक १०. १०. पे. नाम. सर्वजिन स्तोत्र, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, सं., पद्य, आदि शांतो वेषः शमसुखफलाः; अंतिः माणगुणोसि नमोस्तु ते श्लोक ९. ११. पे. नाम, साधारणजिन स्तोत्र, पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण. साधारण जिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीवीतराग विगतस्मर; अंति: भावयन्न० वीतरागः, श्लोक- ९. For Private And Personal Use Only १२. पे. नाम. स्तंभानापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १४ - १६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - स्तंभन, मु. देवसुंदर, सं., पद्य, आदि: स्फुरत्केवलज्ञानचारु; अंति: देवसुंदर० संपदस्तं, श्लोक - २५. १३. पे. नाम. परमज्योतिपंचविंशतिका, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्र तत्परमं अंतिः स यशोविजय श्रियम्, श्लोक-२५. २२५७५. स्तवन, सज्झाय, स्तुति व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६ - ५ ( १ से ५ ) = ११, कुल पे. १८, दे., (२६.५x१२.५, १९२० - २२ ). १. पे. नाम. रांणपूरा रो स्तवन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., पे. वि. इस प्रत में उल्लिखित र.सं. पर पोत (१५७५) त्रुटियुक्त प्रतीत होता है क्योंकि प्रत नं. २२७८८ में १७पनोरोतरे एवं प्रत नं. ३०३७१ में सतरै पनरोतर पाठ मिलता है Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: (-); अंति लाल शिवसुंदर सुख दाय, गाथा-१६, (पू. वि. गाथा ११ अपूर्ण से है. ) २. पे. नाम. बारव्रतनी सिझाय, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, मु. अमीकुंअर, मा.गु., पद्य, आदि: जीवदया व्रत पेले; अंतिः अमरफल लेवा तो, गाथा- १३. ३. पे. नाम. सम्यक्त्व स्तवन, पृ. ८अ - ८आ, संपूर्ण. ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित द्वार गभारे; अंति: खीमाविजय० आगम रीत रे, गाथा - ६. ४. पे नाम दीपमाला स्तुति, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु वीर जिणंदनुचरी; अंति: लालविजय० संकट हरे, गाथा- ४. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत नमो वळी सिद्ध; अंति: नय विमलेसर वर आपो, गाथा-४. ६. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ९अ १०अ संपूर्ण. मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर साहिब मेरा अंतिः लाज हो जिनजी, गाथा - ११. ७. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १० आ-११अ, संपूर्ण, - आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धगिरि ध्यावो; अंतिः ज्ञानविमल० गुण गावड, गाथा ८. ८. पे. नाम वीरजिन स्तवन, पृ. १९अ ११आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि बलिहारी वीर जिणंद की अंति: लहे संपति शिवराज की, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ५. ९. पे. नाम. अनंतकायनी सज्झाय, पृ. ११आ- १२आ, संपूर्ण. अनंतकाय सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतकायना दोष अनंता; अंतिः भावसागर आनंदा रे, गाथा - १२. १०. पे. नाम. सामायिक ३२ दूषण, पृ. १२आ - १३अ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तो बारै दोषण; अंति: रोष करे अभक्ति करे. ११. पे. नाम. ९ नियाणा विचार, पृ. १३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि: पहिलो राजनियाणो तप अंतिः कह्या ते करवा नहीं, १२. पे. नाम. श्रावक २१ गुण नाम, पृ. १३आ - १४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रावनुं रूपिया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ५ गुण तक लिखा है.) १३. पे नाम, सिद्धगुण विचार, पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धना ज्ञानावरणादि; अंति: सिद्ध आठगुण उपना. १४. पे नाम, अजीवद्रव्य के भेद, पृ. १४आ, संपूर्ण. अजीवद्रव्य भेद, मा.गु., गद्य, आदि: पुदगल द्रव्य १; अंतिः ए द्रव्य ५ अजीवना छे. १५. पे. नाम. जीवअजीवलक्षण, मिथ्यात्व व अविरति भेद विचार, पृ. १५अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति”, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १६. पे. नाम. प्रमाद के १५ भेद, प्र. १५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: स्नेहबंध १ शब्द २ अंतिः कथा १५ ए १५ प्रमाद. १७. पे. नाम. रोहीणीतपमईजिन स्तवन, पृ. १५ अ - १५आ, संपूर्ण. रोहिणीतप चैत्यवंदन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रोहिणी तप आराधीए; अंति: करो जिम होय भवनो छेद, गाथा - ६. १८. पे. नाम सीतानी सज्झाय, पृ. १५ आ-१६आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, मु. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हूं नाम; अंतिः नित होजो परिणाम गाथा-८. For Private And Personal Use Only 9 Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २२५७६. चैत्यवंदन, स्तोत्र संग्रह व लघुअतिचार, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, ले.स्थल. मांडल, प्रले. ग. कनकराज (अंचलगच्छ); पठ. मु. देवा (गुरु ग. कनकराज, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ११-१२४३५-३८). १. पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. मांडल, पे.वि. श्रीगाडलीया पार्श्वनाथ प्रसादात्. सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-९. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजीनो स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. श्रीगाडलीया पार्श्वनाथ प्रसादात्. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकल भविकचेतः कल्पना; अंति: भवद्यार्णवः संस्तुत, गाथा-९. ३. पे. नाम. कनककुशलकृत गोडीपार्श्वनाथजीनो छंद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, वि. १८४५, वैशाख कृष्ण, १३. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कनककुशल, फा., पद्य, आदि: महिरवांन दरतुह बाकी; अंति: संघकु करत याकुनी, गाथा-६. ४. पे. नाम. लघुअतिचार, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. श्रावकलघुअतिचार-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छा० भगवन० अरिहंत; अंति: वत्तीयागारेणं वोसिरइ. ५. पे. नाम. चैत्यवंदन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, वि. १८४५, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, बुधवार. लघुचैत्यवंदनसूत्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: इच्छं जय महाप्रभु; अंति: तियलोए चेइए वंदे, गाथा-९. २२५७७. स्तवन, सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.५, कुल पे. ४, दे., (२६.५४१३, १८४४४-४६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. वा. विनयराज, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: पर उपगारी परम गुरु; अंति: विनव्यो त्रिभुवनधणी, ढाल-४, गाथा-२७. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चांदलिया संदेशो; अंति: जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-१५. ३. पे. नाम. गजसुकमालमुनि सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराज तणी; अंति: सहीने पोहता शिवपुरे, गाथा-४१. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ३आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी काजलमेघा, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंद निवासिनी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) २२५७८. (+) पूजा संग्रह व दोहा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१३, ३०-३७४५१-७१). १.पे. नाम. सिद्धचक्रजी री पूजा, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कोई नये न अधूरी रे. २. पे. नाम. स्नात्रपूजा, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८. ३. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८, (वि. अंतर्गत फूलमाला, वस्त्रपूजा आदि भी सम्मीलित है.) ४. पे. नाम. लघुसिद्धचक्रजीरी पूजा, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र लघुपूजा, मु. लालचंद, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम हुती निस्सिही; अंति: (१)महिमा नवपद सारो रे, (२)यजामहे स्वाहा. ५. पे. नाम. सतरभेदी पूजाविधि, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: सब लीला शिवसुख साजै, ढाल-१७. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र पूजा मे आदिरा दूहा, पृ. ७अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र पूजा में प्रारंभ के दोहे, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तो बलबाकुल करी; अंति: निर्मल धरीयै ध्यान, गाथा-९. ७. पे. नाम. ९९ प्रकारी पूजा, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. क. पद्मविजय, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८५१, आदि: उत्तम गुरु चरणे नमी; अंति: (-), (पू.वि. पूजा-३४ तक है.) २२५७९. (+) सिंदूर प्रकरण, उपदेश सुक्तावली, दोहा, चैत्यवंदन, स्तवन, स्तुति व श्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २८, कुल पे. १०, ले.स्थल. पालिताणा, प्रले. पं. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२.५४१२.५, ७-१६४३२-३९). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-१९आ, संपूर्ण, वि. २०वी. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: मानेति शमेति नाशम्, श्लोक-१०१, (वि. १९२८, चैत्र शुक्ल, ७) सिंदरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनी समूह तदरुप; अंति: संसार सदा नाश पमाडे, (वि. १९२७) २. पे. नाम. दुहो, पृ. १९आ, संपूर्ण.. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३. पे. नाम. उपदेश सुक्तावली सह टबार्थ, पृ. २०अ-२६अ, संपूर्ण, वि. १९२८, चैत्र शुक्ल, ११. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: साहिबा देदे ताली हथ, श्लोक-२७, (संपूर्ण, _ वि. अंतिम सुक्त देशी भाषामय है.) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ श्लोक-२४ तक टबार्थ लिखा है.) ४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. २६आ, संपूर्ण. नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुट पत्रमा; अंति: कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा-१०. ५. पे. नाम. सेत्रुज स्तवन, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. खीमारतन, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचल गिरि भेट्या; अंति: रतन प्रभु प्यारा रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. आदि स्तुति, पृ. २७अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थचैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान; अंति: पद्मविजय सुविहितकरम, श्लोक-८. ७. पे. नाम. शेत्रुजय स्तवन, पृ. २७आ, संपूर्ण. श@जयतीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचल विमला पाणी; अंति: शुभवीर विमलगिरि साचो, गाथा-७. ८. पे. नाम. जिनस्तुत्यादि संग्रह, पृ. २७आ, संपूर्ण. जिनस्तुत्यादि संग्रह*, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: सामान्य तुल्यं, श्लोक-४. ९. पे. नाम. १२ चक्रवर्तिसमय गाथा सह टबार्थ, पृ. २८अ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. जैन गाथा का टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २८अ, संपूर्ण, वि. १९२९, ज्येष्ठ शुक्ल, १३. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. २२५८०. (+) स्तोत्र, छंद, स्तुति, स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४११,११४२७-३९). राज For Private And Personal use only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २११ १.पे. नाम. पंचतीर्थीजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणतमानवदानवनायकः; अंति: द्रव्यदाने धनेंद्रा, श्लोक-६. २. पे. नाम. पार्थाष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन अष्टक, मु. मोटा ऋषि, सं., पद्य, आदि: श्रीमल्लिकाभ्रमर; अंति: निश्चितं सदा, श्लोक-९. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर पहिला नमु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कृति प्रारंभमात्र ही लिखी है.) ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रावण कृष्ण, ३. आ. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: अनंत कल्याणकर; अंति: तेषां वर साधुरूपा, श्लोक-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास ___ जिणचंद, गाथा-५. ६. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अहंकारोपि बोधाय राग; अंति: चित्रं श्रीगौतमप्रभो, श्लोक-१. ७. पे. नाम. आदित्य स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आदित्यः प्रथमं नाम; अंति: यस्य सर्वदुःखविनाशनं, श्लोक-४. ८. पे. नाम. मंगल स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मंगलो भूमिपुत्रश्च; अंति: प्राप्नोति सर्वदा, श्लोक-४. ९. पे. नाम. गुरु स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: बृहस्पतिः सुराचार्यो; अंति: सुप्रितस्तस्य जायते, श्लोक-५. १०. पे. नाम. शनैश्चर स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: य: पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-१०. ११. पे. नाम. नवानां ग्रहाणं स्तोत्र, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, वि. १८२४, कार्तिक कृष्ण, ५. नवग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकाशं; अंति: व्यासीभूतो न संशयः, श्लोक-१२. १२. पे. नाम. प्रभूजीना चउत्रीस अतिसय, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. ३४ अतिशय स्तवन, मु. गोविंद, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: शांति सुखकारणा; अंति: गोविंद० द्यौ शाश्वती, गाथा-१३. १३. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. १४. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. २४ जिननामगर्भित मंगलाष्टक, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र; अंति: मम मंगलम, श्लोक-९. १५. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. १६. पे. नाम. सरस्वत्या छंद, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धरा उद्धरणं वेद; अंति: करण वदे हेम इम वीनती, गाथा-११. १७. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: वीरः सर्वसुरासुरेंद; अंति: श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-१. १८. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण, ले.स्थल. दीवबंदर, प्रले. मु. सुजाण, प्र.ले.पु. सामान्य. मा.गु., पद्य, आदि: अंगुठै अमृत वसै; अंति: मनवंछित फल दातार, गाथा-१. १९. पे. नाम. पार्श्वनाथ मंगलीक स्तवन, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: सुमुदा प्रसन्नात्, गाथा-३२.. २०. पे. नाम. जिनभवानी स्तोत्र, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: जिनादेशजाता जिनेंद्र; अंति: लोका निरस्तानिदानीं, श्लोक-८. २१. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. १०आ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: जैनवानी सुनहिजै जीव; अंति: तजी संसार कलेश, गाथा-१. २२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण, प्रले. मु. मेघ, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पासजी ताहरूं; अंति: आणंदमुनि इम विनवे, गाथा-८, (वि. इस प्रति में कर्ता नाम आणंदमुनि दिया गया है.) २२५८२. पुष्पवती स्त्री सूतक विचार व सज्झाय संग्रह, पूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(३)=२२, कुल पे. ५, ले.स्थल. राणपुर, प्रले. नारणजी दयाल; अन्य. सा. चतुरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यह प्रति चतुरश्रीजी की है., दे., (२१४१२.५, ८x१८-२५). १.पे. नाम. पुष्पवती विचार, पृ. १आ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. ऋतुवंती स्त्री विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आ जगतमां समस्त; अंति: ए अशुचि अवश्य टालवी. २. पे. नाम. ऋतुवंती स्त्री सज्झाय, पृ. ७आ-१५अ, संपूर्ण. मु. खीमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: ऋतुवंती नारीओं परिहर; अंति: रेकरजो धर्म संभाली, गाथा-७०. ३. पे. नाम. छोति भास, पृ. १५अ-१७आ, संपूर्ण. ऋतुवंती स्त्री सज्झाय, मु. ब्रह्मशांतिदास, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेश्वर पाय; अंति: सांभलो० व्रत पालो रे, __गाथा-१८. ४. पे. नाम. सूतक सज्झाय, पृ. १७आ-२२अ, संपूर्ण. आ. पुण्यसिंधुसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९७७, आदि: सरस्वती देवी समरु; अंति: सुख लहेस्ये निरधार, गाथा-३३. ५.पे. नाम. रजस्वला स्त्री विचार सह अर्थ, पृ. २२अ-२३आ, संपूर्ण. रजस्वला स्त्री विचार, प्रा., पद्य, आदि: जा पुप्कुपवह जाणिउण; अंति: सिद्धांतविराहगो सोउ, गाथा-६. रजस्वला स्त्री विचार-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे पुरुष पुष्पवती; अंति: विराधक जाण. २२५८३. (+#) स्तोत्र व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १७५६, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(३,१०)=१०, कुल पे. ७, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्रले. पं. चतुरसागर (गुरु ग. सत्यसागर, विधिपक्षगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रानुक्रम न दिये जाने के कारण घटते पत्रवाले भाग को अनुमानित घटते पत्र दिया गया है., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., गुटका, (२१.५४१२.५, १९-२०x१२). १.पे. नाम. कल्याणसूरि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: स्याद्वादोदंडशंडो; अंति: इव स्तात् सदा मंगलाय, श्लोक-१. २. पे. नाम. पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. १अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथो जिनः; अंति: रेधते सौख्यदा वरा. ३. पे. नाम. पद्मावतीदेवीअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. मु. धर्ममूर्तिसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदि: स्तुमः पद्मावतीं; अंति: भवजलाशयकर्णधारः, श्लोक-१६. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. मानकुंवर वीरचंद, प्र.ले.पु. विस्तृत. सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: सुभगतामपि वांछितानि, श्लोक-९. ५. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. कर्ता द्वारा लिखित कृति. पं. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुखकर तुं परमेसर; अंति: चतुरसागर सुख पूरेजी, गाथा-१३. ६. पे. नाम. पद्मावती छंद, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण, पठ. श्राव. माणिकचंद वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, सं.,मा.गु., पद्य, आदि: ॐ कुरुकुंडं दंड; अंति: हर्ष पूजो सुखकारणी, गाथा-१०. सरिस्तुति, पृ इव स्तात् सदा बीच का एक For Private And Personal use only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ७. पे. नाम. पद संग्रह, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण. www.kobatirth.org ( २०x१२.५, २० - २६x११ - १५ ) . १. पे. नाम वीर स्तवन, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण. पदसंग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २२५८४. (+) स्तवन, सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०-१ (६) - ९, कुल पे. ७, प्र. वि. संशोधित, दे., गुटका, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन- २७ भवगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंतिः कहे धन मुझ एह गुरू, ढाल १०, गाथा- ७७, - २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- भटेवा, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: पद पूजो भटेवा पास के; अंति: ( - ), ( पू. वि. गाथा- ४ प्रारंभ तक है . ) ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: श्रीआदिश्वर साहिबा ; अंति: विनवै आपो शिवसुख कंद, गाथा - ११. ४. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण. २१३ शांतिजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ दयानिधि; अंति: मंगलमाल रसीयाजी, गाथा - ५. ५. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमलकलप उद्यानमा; अंति: दुखडा पाठी सरगगामी, गाथा - ९. ६. पे. नाम रहेनेमजीनी सीझाय, पृ. ९अ - १० अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सदगुरु पाय; अंति: पद राजुल लह्यो जी, गाथा - ११. ७. पे. नाम, अनाथीऋषि स्वाध्याय पू. १०अ १० आ, संपूर्ण. 2 अनाधीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रेणिक रववाडी चड्यो; अंतिः वंदे रे वे कर जोड, गाथा - ९. २२५८५. स्तवन, स्तोत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (३) -६, कुल पे. ५, जैवे. (१९x१२, १३×१९-२१). १. पे. नाम, सीध स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ४. पे नाम. जिनस्तुति संग्रह, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. जिनस्तुत्यादि संग्रह *, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), श्लोक-४, सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगत भूषण विगत दूषण; अंति: नमो सिद्ध निरंजनं, गाथा - १३. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन- हस्तिनापुरमंडन, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्म, आदि सारद मात नमु सिरनामी; अंति: (-), ( पू. वि. गाथा - १३ अपूर्ण तक है. ) ३. पे. नाम. चतुर्विंशती चैतवंदन, पृ. ४अ - ५आ, संपूर्ण. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः श्रीवीरजिननेत्रयोः श्लोक-२६. For Private And Personal Use Only ५. पे नाम, लघुशांति स्तवन, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक १७+२. २२५८६. (५) स्तोत्र, स्तवन संग्रह, सझाय, शुकनावली व औषध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११०१०१ (१ से ४६, ५० से ५४,५८ से १०७) - ९, कुल पे. १०, ले. स्थल. सूरत, प्र. वि. संशोधित. दे., गुटका, (१९.५x११.५ १८ २०x१४-१६). १. पे नाम, पार्श्वनाथ सहस्रनाम स्तोत्र, पृ. ४७अ ५५आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदिः पार्श्वनाथो जिनः; अंतिः रेधते सौख्यदा बरा. Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१४ www.kobatirth.org २. पे नाम. अष्टोतरनामानि श्रीपद्मावत्याः, पृ. ५५आ-५६आ, संपूर्ण पद्मावतीदेवी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र, मु. धर्ममूर्तिसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदि: स्तुमः पद्मावर्ती अंति भवजलाशयकर्णधारः, श्लोक - १६. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र मुक्तावली, पृ. ५६आ-५७अ संपूर्ण, वि. १८२१, पौष शुरू, ले. स्थल. सुरतबंदर, पठ. पं. हेमहंस, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवते; अंति: सुभगतामपि वांछितानि श्लोक - ९. ४. पे नाम, विहरमान २० जिन स्तोत्र, पृ. ५७आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. सं., पद्य, आदि: नरगंधसिंधुरं कंबुवर; अंति: (-), (पू. वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ५. पे नाम, शुकनावली, पृ. १०८अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. शुकनावली, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीँ ह्रीँ ॐ नमो; अंतिः गंभीरांजनी. ९. पे. नाम औषध संग्रह, पू. ११०अ, संपूर्ण. ६. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. १०८आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंतिः नित नित के, गाथा - ५. ७. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, पृ. १०९-१०९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन खेटकपुरमंडन, वा. उदयरत्न, मा.गु. सं., पद्य, आदिः भीडभंजन भवभयभीतिहरं; अंतिः मदनमोहमहारिपुमर्दनं, गाथा - ११. ८. पे. नाम. हनुमान स्तोत्र, पृ. ११०अ संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औषधवैद्यक संग्रह *, सं., प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०. पे नाम, गौतम स्वाध्याय, पृ. ११० आ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा - ९. २२५८७. (*) सिद्धचक्र चैत्यवंदन-स्तवन संग्रह व मुहपति पडिलेहन बोल, संपूर्ण, वि. १९९६, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ८, प्र. मु. नगविजय; पठ, श्राव, संतोष महताब, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२०.५X१२, १०X२४). १. पे नाम, सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, आदि उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंतिः सिद्धचक्कं नमामि गाथा - ६. २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. अप., पद्य, आदि जो धुरि सिरि अरिहंत; अंति: अम्ह मनवंछिय फल दियो, गाथा- ३. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत पद उज्जल नमुं; अंतिः पावै सुगुण सुधान, गाथा - ३. ४. पे नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २अ संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुखदायक श्रीसिद्धचक; अंति: एहनो परम आह्लाद, गाथा-३. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only मु. चेतनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय सिद्धचक्र सुर; अंतिः चेतन घरे तुम ध्यान, गाथा-३, ६. पे, नाम, सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सिद्धचक्र आराधता; अंतिः तणो शीश नमे करजोड, गाथा - १५. ७. पे नाम, सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वर सेवा; अंति: निज आतम हित साधे, गाथा - १३. Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org ८. पे. नाम. मुंहपति रा बोल, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सुत्रार्थ तत्वदृष्टि; अंति: भेलतां पचास बोल थाय. २२५८८. रत्नचूड चौपई व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६४, माघ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ४, प्रले. पं. कर्पूरविमल; पठ, मु. कृष्णविमल (गुरु पं. कर्पूरविमल), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २१x१४, १९४४५). १. पे नाम. रत्नचूडमुनि चौपाई, पृ. १अ - १५आ, संपूर्ण. रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (अपठनीय); अंति: संपद लील कल्याणो रे, ढाल - २४. २. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १५आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मीठी मनि लागी साहिबा ; अंति: मोहन अनुभव मांगी, गाथा- ४. ३. पे नाम. कृष्णभक्ति पद, पृ. १५आ, संपूर्ण. क. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: छोरो रे पाण घटवा; अंति: चित्त रह्य अटकी, गाथा - ३. ४. पे नाम, कृष्णभक्ति पद, पृ. १५आ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गन धरमो यम साध गुरु. २. पे नाम. शासनदेवता स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: तोरो मोरा नामसुं; अंतिः विना दुख कौन हरइ री, गाथा - ३. २२५८९. स्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) -५, कुल पे ५ वे. (२२x२०, १०-११x१७-१९). १. पे नाम. शासनदेवता गीत पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. " मा.गु., पद्य, आदि: डमडम डमरू वाजै वाजी; अंति: मंगल की माई ऐसी रे, गाथा - २. ३. पे. नाम. शासनदेवता स्तवन, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: शासनदेव तु रे सानिध; अंति: उदय कराय री माइ. ४. पे. नाम. शासनदेवता स्तवन, पृ. ४अ ५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: डुंगर उपर डुंगरी चढि अंति: म्हारी तनो शिणगार, ५. पे. नाम. तपस्या स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. तप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: काया काया हंसलडा; अंति: लहै लहै अमर विमान. २२५९०. (+) स्तवन, सझाय, पद, स्तोत्रादि संग्रह, पूर्ण, वि. १८५९, मध्यम, पृ. ६० - १ (२६) = ५९, कुल पे. १७६, ले.स्थल. खालड, प्रले. मु. लालचंद्र (गुरु मु. कल्याणचंद्र, पार्श्वचंद्र गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२१x१२, १५X३९-४३). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदिः सुखसंपतिकारी सुरनर; अंतिः राम सदा सुख पावैजी, गाथा- ८. २. पे. नाम. जीवहित सज्झाय, पृ. १अ - १आ, , संपूर्ण. २१५ मु. खिमा, पुहिं., पद्य, आदि: गरभावासे चिंतवे हिवै; अंतिः तो जइए मुगति मझार के, गाथा- ८. ३. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी सुणो मोरी विनत; अंतिः थण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा- १९. ४. पे, नाम, नवकारवाली री सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कहेजो चतुर नर ए कोण; अंतिः रुप भणे बुधी सारी रे, गाथा - ६. ५. पे. नाम. सीतलनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिन सहज सुरंगा अंति: ( - ), गाथा - ११, (वि. कर्ता नाम वाली अंतिम गाथा नहीं लिखी है. दो दो पद की एक गाथा है. ) For Private And Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१६ पाव कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधोजी, गाथा-८. ७. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन जगवंदन देव; अंति: बहु सुख केरि बगसिस, गाथा-६. ८. पे. नाम. नींदडलीनीसझाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: निंदरडी वेरण हुइ; अंति: मुनि कनकनिधान के, गाथा-८. ९. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग.जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर; अंति: मुजने भवसागरथी तारो, गाथा-५. १०. पे. नाम. मेघकुमर सिझाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसर्याजी; अंति: पामे भवपार स्वामीजी, गाथा-२०. ११. पे. नाम. वासपूज्य स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोह नचावीयो; अंति: एम जपे जिनराजो रे, गाथा-५. १२. पे. नाम. जंबूस्वामी स्वाध्याय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसै; अंति: सिद्धविजय सुपसाया रे, गाथा-१२. १३. पे. नाम. माहावीर स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: साहिबरी सेवामें; अंति: जै जै श्रीमहावीर, गाथा-६. १४. पे. नाम. वैराग सझाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, वा. श्रीकरण, मा.गु., पद्य, आदि: समवसरण सिहासनेजी वीर; अंति: प्रणमुंबे करजोड, गाथा-८. १५. पे. नाम. संभवनाथजी गीत, पृ. ६अ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: विणजारा रे नायक संभव; अंति: अरियण मूल नको कलै, गाथा-५. १६. पे. नाम. जिह्वानी सिझाय, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, मु. अमरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जीभडली सुणि बापडली; अंति: सिवगति पामे सोई रे, गाथा-१९. १७. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सौरीपुर नगर सुहामणो; अंति: मनरूप प्रणमई पाय, गाथा-१५. १८. पे. नाम. वैराग्य सिझाय, पृ. ७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हूं तो वारुं छु; अंति: धर्म करौ थिर थापो, गाथा-५. १९. पे. नाम. अमीझरापार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा, मु. जगरुपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण विनवू; अंति: जपे इम जगरुप, गाथा-१२. २०. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचे इंद्री रे; अंति: श्रीविजयदेवसूरिजी, गाथा-९. For Private And Personal use only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१७ २१. पे. नाम. नेमराजेमती स्तवन, पृ. ८आ - ९अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. सरूप, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजेत समरीये; अंतिः विनवे पंडित सरूपजी, गाथा - १०. २२. पे. नाम. पुन्यप्रकार सिझाय, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि एक घर घोडा हाथीयाजी; अंति: लावण्य० दानप्रमाण रे, गाथा - १२. २३. पे. नाम. नेमनाथजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: वयराग रंगीलो नेमजी; अंतिः पूरो वांछित आस रे, गाथा - ५. २४. पे. नाम. तृष्णाउपर स्वाध्याय, पृ. १०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-तृष्णापरिहार, मा.गु., पद्य, आदि: काम क्रोध मद मछर; अंति: विघन विना निरबाणै, गाथा - ११. २५. पे. नाम. ऋषभानन विहरमानजिन स्तवन, पृ. १०अ - १०आ, संपूर्ण. ऋषभाननजिन स्तवन, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभानन जिनराजीयो; अंति: पद्मचंद भणंत हो लाल, गाथा - ५. २६. पे. नाम. जीवकाया सझाय, पृ. १०आ - ११अ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. रतनतिलक, मा.गु, पच, आदिः काया रे वाडी कारमी; अंतिः जीवडो सुख पासी, गाथा - १०, २७. पे. नाम. सीमंधरस्वामी विहरमानजिन स्तवन, पृ. ११अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: चंदलीया जिनजीसुं; अंति: हर्षकुशल करजोड रे, गाथा - ५. २८. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १९अ - ११आ, संपूर्ण. महमद, मा.गु., पद्य, आदि भूलो मन भमरा कोई अंतिः लेखो साहिब हाथ, गाथा- ९. २९. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १९आ- १२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रुघपति, मा.गु., पद्य, आदि: वामासुत वरदाई पुन्य; अंतिः चरणे चित राखी रे, गाथा - २२. ३०. पे नाम आउखा सिझाय, पृ. १२अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्म, आदि आउखो तुटांने सांधो अंतिः जालोर सहर मझार रे, गाथा - ६. ३१. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२-१२आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू सारद पाय प्रणम; अंति: अभिनव दुखी छोड, गाथा-७. ३२. पे. नाम. इलायचीपुत्र सझाय, पृ. १२आ - १३अ, संपूर्ण, इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा - ९. ३३. पे नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुहंकर पासजी अरज; अंति: पालो प्रीत सुजाण रे, गाथा - ७. ३४. पे. नाम. गजसुकमाल सिझाय, पृ. १३अ - १३आ, संपूर्ण. राजसुकुमालमुनि सज्झाव, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि द्वारिकानगरी अति भली; अंतिः भावसुं वंदे बारंबार, For Private And Personal Use Only गाथा - १३. ३५. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १३आ - १४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण दो मति; अंतिः आपो स्वामी सुख घणा, गाथा - १०. ३६. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण. Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावशुं; अंतिः मुक्ति तणो ए निधान, गाथा- ६. ३७. पे. नाम. धर्मनाथजिन स्तवन, पृ. १४- १५अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे मारे धरमजिणंद; अंति: उलट अति घणु रे लो, गाथा - ७. ३८. पे. नाम. वैराग सझाय, पृ. १५अ - १५आ, संपूर्ण. मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजै रे मानवी; अंतिः थे तो पुनवंत जीव रे, गाथा - २०. ३९. पे. नाम आदीश्वरजिन स्तवन, पृ. १५-१६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. सिंहकुशल, मा.गु., पद्य, आदि; म्हे तो उदीयापुरसुं; अंति: हो साहिब सुख संपदा, गाथा - ९. ४०. पे नाम, ढंढणऋषिनी सिझाय, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण. खंडणऋषि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, रा., पद्य, आदि: खंडणऋषिने बंदणा; अंतिः कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा - ९. ४१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण. मु. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, आदि : आज मनोरथ मुझ फलीया; अंति: जिनलाभ सदाई है लो, गाथा-७. ४२. पे नाम, अनाथी सिझाय, पृ. १६आ १७अ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रेणिक रयवाडी चढ्यो; अंतिः वंदना रे बे करजोडि, गाथा - १०. ४३. पे नाम, सुविधजिन स्तवन, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण सुविधिजिन स्तवन, मु. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: सुविधि जिणेसर सुंदरु; अंति: संघ सहुने आणंद रे, गाथा -५. ४४. पे नाम, दुमहि पतेकबुद्ध सिझाय, पृ. १७आ, संपूर्ण दूमराय - प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर कपीलानो धणी रे; अंति: नित प्रणमुं पाय रे, गाथा-६. ४५. पे. नाम. नेमनाथ जिन स्तवन, पृ. १७आ १८अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि; मोह तणा दल मोडी रथ; अंति: दोलत सदागुण गावे रे, गाथा- ११. ४६. पे. नाम. करकंडू सिज्झाय, पृ. १८अ, संपूर्ण. करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हु; अंतिः प्रणम्या पाप पलाय रे, गाथा - ५. ४७. पे. नाम. शीतलनाथजिन स्तवन, पृ. १८अ - १८आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सदगुरुने चरणे नमी रे; अंति: रे लाल सतरै बास सार, गाथा- ७. ४८. पे. नाम. च्यारेप्रतेकबोध सिज्झाय, पृ. १८ - १९अ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दीसथी च्यारे; अंति: गावा पाटण परसिद्ध, गाथा - ५. ४९. पे. नाम. नेमनाथ जिन स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. नगजी, मा.गु., पद्य, आदि; नार मनावो है नेमने; अंतिः लुलि लुलि लागुं पाय, गाथा - ९. ५०. पे. नाम. नंदषेणऋषिनी सिझाय, पृ. १९अ - १९आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाव, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंतिः कमला कीरति पावै हो, ढाल - ३, गाथा - २६. ५१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १९आ - २०अ, संपूर्ण. मु. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तारक जिन तेवीसमा; अंतिः सरणाई साधार जी, गाथा ७. ५२. पे. नाम माचा सिज्झाय, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण. माया सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: इण जगमें माया प्यारी; अंति: जाउं वार हजारी रे, गाथा - १२. ५३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २०आ- २१अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ - मु. सुखदेव, मा.गु, पद्य, आदि: सीमंधर जिनरावजी अंतिः सुखदेव करे नित सेव, गाथा ५. ५४. पे. नाम कर्म सिझाय, पृ. २१अ २१आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्म, आदि देव दानव तीर्थंकर; अंतिः नमो कर्म महाराजा रे, गाथा - १८. ५५. पे नाम, नेमजीनो स्तवन, पृ. २९आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. हेमहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नवभव केरी प्रीत धरी; अंति: भवभवना मुझ बंधण तोड, गाथा - ९. ५६. पे. नाम. पांचपांडव सिज्झाय, पृ. २१आ- २२आ, संपूर्ण. ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हसतनागपुर वर भलो; अंति: मुज आवागमन निवार रे, गाथा - २०. ५७. पे. नाम. अजितनाथजिन स्तवन, पृ. २२आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: नित नित गुण गाय के, गाथा - ५. ५८. पे. नाम. मेतारिजऋष सिझाय, पृ. २२आ - २३अ, संपूर्ण. मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि धन धन मेतारज मुनि; अंति: लाहीये उत्तम ठाम रे, २१९ गाथा - १५. ५९. पे नाम सर्वजिन स्तवन, पृ. २३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. ब्रह्मदयाल शिष्य, रा., पद्य, आदि: जिनजी थांकीजी सुरत; अंति: जिनजी राखो चरणां पास, गाथा - ९. ६०. पे नाम, सीतासती सिझाय, पृ. २३-२४अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय - शीयलविषे, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: नीत प्रणम पाय रे, गाथा - ९. ६१. पे नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. २४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि सारद वदन अमृतनी वाणी; अंतिः भाग्यदिसा अब जागी रे, गाथा - ५. ६२. पे नाम, रेवतीरांणी की सिझाय, पृ. २४अ २४आ, संपूर्ण. रेवतीविका सज्झाय, आव. वनुजी, मा.गु., पद्य, वि. १२७३, आदि: सोवनसिंघासण रेवती; अंतिः लुलि लागू पायजी, गाथा-८. ६३. पे. नाम. सुमतजिन स्तवन, पृ. २४आ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदिः गाउं सुमति जिणंद जस; अंतिः जिननामे लील विलास हो, For Private And Personal Use Only गाथा - ५. ६४. पे. नाम. जीवकाया सिझाय, पृ. २४-२५अ, संपूर्ण. काया अनित्यता सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि सुण बहीनी प्रीउडो; अंतिः नारी वीण सोभागी रे, गाथा- ७. ६५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २५अ - २५आ, संपूर्ण. मु. सदासागर, मा.गु., पद्य, आदि शांति जिणंदसुं जी; अंतिः धरं दिनराति जी, गाथा- ६. ६६. पे. नाम साधगुण सिझाय, पृ. २५आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि मोटा पंचमहाव्रतधारी; अंतिः इम कहे ऋषिरायचंदो रे, गाथा - १०. ६७. पे नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २५आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., पद्य, आदि समुद्रविजय सुत नेम; अंति: (-), (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८. पे. नाम. शेजेजाजी को स्तवन, पृ. २७अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अतिम पत्र है. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राम सफल सुजगीस, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) ६९. पे. नाम. विनय सिझाय, पृ. २७अ, संपूर्ण. विनयअध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी चीत धरीजी; अंति: विनय सयल सुखकंद, गाथा-८. ७०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वयण हमारा लाला हीयडै; अंति: जीणहरषै० बंदा लाल, गाथा-७, (वि. दो-दो गाथा की एक गाथा गिनी है.) ७१. पे. नाम. सिज्या सिझाय, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण, वि. १८५९, अंकाक्षवसुश्चंद्र, आश्विन शुक्ल, १०, बुधवार. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: सिज्या भली रे संतोष; अति: फेर नावै गरभावासो जी, गाथा-५. ७२. पे. नाम. पंचपरमेष्टी मंत्र, पृ. २९अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. ७३. पे. नाम. शक्रस्तव, पृ. २९अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमुत्थुणं अरिहंताणं; अंति: नमो जिणाणं जियभयाणं. ७४. पे. नाम. ५ परमेष्ठी आरती, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एविधि मंगल आरती कीजै; अंति: मानवजन्म सफल कर लीजे, गाथा-८. ७५. पे. नाम. जिनपूजा काव्यसंग्रह, पृ. २९आ, संपूर्ण. जैनकाव्य संग्रह", मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७६. पे. नाम. सर्वजिन स्तवन, पृ. ३०अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. क्षेमकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव; अंति: विलसै खेमकल्याणो, गाथा-५. ७७. पे. नाम. विंशतिविहरमान स्तवन, पृ. ३०अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तव, सं., पद्य, आदि: द्वीपेत्र सीमंधर; अंति: कर्मणामष्टकं च, श्लोक-४. ७८. पे. नाम. सर्वसत्याभिधान काव्य, पृ. ३०अ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ७९. पे. नाम. १४५२ गणधर स्तुति, पृ. ३०आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिक गोयम पमुह; अंति: चवदैसै बावन्न, गाथा-१. ८०. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, पृ. ३०आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. ८१. पे. नाम. चउवीस तीर्थंकरपरिवारसंख्या स्तवन, पृ. ३०आ, संपूर्ण. २४ जिन परिवार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस तीर्थंकरनो; अंति: ऊठीने करो प्रणाम, गाथा-५. ८२. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, बृहस्पति, सं., पद्य, आदि: सरस्वत्यं नमस्यामि; अंति: करिस्यामि न संशयः, श्लोक-८. ८३. पे. नाम. वृद्धशांति स्तोत्र, पृ. ३१अ-३२आ, संपूर्ण, पे.वि. इस कृति को प्रतिलेखक ने अंत में मानतुंगसूरि रचित बताया बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैन जयति शासनम्. ८४. पे. नाम. जिनधर्मप्रभाती सिज्झाय, पृ. ३२आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव जिनधर्म; अंति: मुगति तणा फल त्याह, गाथा-६. For Private And Personal use only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सोयो तुं बोहोत काल; अंति: समान एह शिव मांग रे, गाथा-३. ८६. पे नाम, चतुर्विंशतिजिन यंत्र ६५ स्तोत्र, पृ. ३२-३३अ, संपूर्ण २४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंतिः मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक - ८. ८७. पे. नाम. विहरमान वीसजिन स्तवन, पृ. ३३अ - ३३आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान जिन वीस सीस; अंति: मुनि दीप वचन मन आसता, गाथा - ९. ८८. पे. नाम. सोलासतीयां सिझाय, पृ. ३३आ- ३४अ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांलि ओढी; अंति: प्रसन्न सदा पद्मावती, गाथा - ७. ८९. पे नाम, मांगलिक स्तुति, पृ. ३४अ, संपूर्ण, वि. १८५९, कार्तिक कृष्ण, ६, शनिवार, जिनस्तुत्यादि संग्रह, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), श्लोक १. ९०. पे नाम, ऋषभदेवजिन पद, पृ. ३४अ, संपूर्ण, आदिजिन स्तवन- जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदिः आज तो बधाइ राजा नाभि; अंति: निरंजन आदिसर दयाल रे, गाथा - ६. २२१ ९१. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ पद, पृ. ३४अ - ३४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि चिंतामणिसामी साचा; अंतिः करे बनारसी बंदा तेरा, गाथा- ४. ९२. पे. नाम. चंदाप्रभु पद, पृ. ३४आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, जैत, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीचंदाप्रभु जिनवर; अंति: भव तुम चरणां बलिहारी, गाथा - ६. ९३. पे नाम. सर्वजिन पद, पृ. ३४-३५अ संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रुपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु सुमरण कीवा; अंतिः धरो प्रभु केरा बे, गाथा ५. ९४. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ पद, पृ. ३५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- गोडीजी, मु. खुशाल, मा.गु., पद्य, आदि: गोडी पास आस पूरो; अंति: दररोज देखे चाहे गाथा - ५. ९५. पे. नाम. नेमनाथजिन पद, पृ. ३५अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, रा., पद्य, आदि: नेमकुमर थांरी वाटडी; अंति: दास अमरपद चरण खडी, गाथा-४. ९६. पे नाम, माहावीरजिन स्तुति पद, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि आज महोछव रंग रली री; अंति: आस्या सफल फली री, गाथा - ५. ९७. पे. नाम. वैराग्य पदम्, पृ. ३५आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या आतम के कोई; अंति: होय रह्यो भीखारी, गाथा-४. १८. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ३५आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: जिनचरणे चित ल्याव मन; अंति: कहै इम सेवो भगवान रे, गाथा- ४. ९९. पे नाम, नेमजिन पद, प्र. ३६अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only नेमिजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हेली गिरनार बोल्या; अंतिः इम भासे ऐसे नेम कठोर, गाथा ५. १००. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३६अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं, पद्य, आदि जीव जानत मेरी सफल; अंतिः वर मोह्यो माया ककरी, गाथा - ३. १०१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ३६अ, संपूर्ण, मु. राजसमुद्र, पुहिं., पद्य, आदि: कउण धरम कौ मरम लहरी; अंति: पुरुष कुण पावत है री, गाथा-३. १०२. पे नाम ऋषभजिन पद, प्र. ३६आ, संपूर्ण. Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन पद, मु. खूबचंद, मा.गु., पद्य, आदि: भज श्रीऋषभ जिनंद कुं; अंति: भजो हिरदै लिवलाई, गाथा-४. १०३. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. ३६आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. आनंद, पुहिं., पद्य, आदि: हो में बंदीयां जादव; अंति: कृपा करो बहुतेरीयां, गाथा-४. १०४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अरे भाई सदगुरु संत; अंति: अपने कुं रखवालैगा, गाथा-५. १०५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३६आ-३७अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: निरंजन यार वोरे तु; अंति: चलण मलण की जोर, गाथा-५. १०६. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. ३७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, टोडर, पुहिं., पद्य, आदि: उठ तेरो मुख देखु; अंति: दूर करो नाथन के फंदा, गाथा-५. १०७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या दुनियां बीचि; अंति: फिटति न काज तमासा, गाथा-४. १०८. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तुति पद, पृ. ३७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. खुशाल, पुहि., पद्य, आदि: गोडी पास गोर करीयै; अंति: दिन आखै खुस्याल दीजै, गाथा-५. १०९. पे. नाम. नेमनाथजिन स्तुति पद, पृ. ३७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पंन्या. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि:री माय विलम न लाय; अंति: पाल्यौ नेह करारो, गाथा-५. ११०. पे. नाम. जिनप्रतिमा एकादशी, पृ. ३८अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: इहविधि देव अदेव की; अंति: असुरनी नरदेह संसारी, गाथा-८. १११. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. ३८अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: आज सकल मंगल मिलै आज; अंति: अनुभव रस माने, गाथा-५. ११२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. मु. द्यानत, पुहि., पद्य, आदि: जिननाम सुमर मनवा वरे; अंति: सवै जाहि ज्यू कटकै, गाथा-४. ११३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३८आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: तेढी मुडि मुडि पघडी; अंति: जाणै साहिब कैसा है, गाथा-५. ११४. पे. नाम. नेमनाथजिन पद, पृ. ३८आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि: जब रथ दूर गयो तब; अंति: श्याम विषै० सिव सेती, गाथा-७. ११५. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३९अ, संपूर्ण. मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जे जगनायक जगगुरुजी; अंति: द्यो दरसण सुखकंद, गाथा-५. ११६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३९अ, संपूर्ण. नांएणदास, मा.गु., पद्य, आदि: परदेसीसुं प्रीत न; अंति: प्रीत निवाहैसु और रे, गाथा-५. ११७. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. ३९अ-३९आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: देखो माइ आज रिषभ घर; अंति: साधुकीर्ति गुण गावै, गाथा-३. ११८. पे. नाम. जिन पद, पृ. ३९आ, संपूर्ण... साधारणजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: साहिब तेरी बंदगी मै; अंति: भव करम मेटिये सही, गाथा-६. ११९. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ३९आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: उगत प्रभात नाम जिनजी; अंति: दंद सुख संपति दईयै, गाथा-३. १२०. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: माई रंगभर खेलेगे; अंति: रसै जिनवर सुहाय, गाथा-५. १२१. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. ४०अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे एही ज चाहीइं; अंति: करो कछु और न चाहु, गाथा-३. For Private And Personal use only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २२३ १२२. पे. नाम. गुरु पद, पृ. ४०अ, संपूर्ण. गुरुभक्ति पद, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: ऐसा साध नमुं सदा; अंति: एहवा वांदू वारंवार, गाथा-७. १२३. पे. नाम. धर्मजिन पद, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहि., पद्य, आदि: इक सुणलौ नाथ अरज; अंति: अनुपम कीरत जग तेरी, गाथा-५. १२४. पे. नाम. शेव्रुज पद, पृ. ४०आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: इण रे डुगरीयानी; अंति: उतारो मोरा राजिंदा, गाथा-६. १२५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ४०आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रत्नउमेद, रा., पद्य, आदि: परत न छांडां थारी; अंति: धिग धिग यो संसार, गाथा-५. १२६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण. मु.जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: छाया सुरतरु की, गाथा-७. १२७. पे. नाम. जिन पद, पृ. ४१अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: ये है महबूब हमारा; अंति: द्यानत देखि सयाना, गाथा-४. १२८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४१अ, संपूर्ण. मु. जगतराम, पुहिं., पद्य, आदि: कैसा ध्यान धर्या है; अंति: नमो नमो उचर्या है, गाथा-३. १२९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण. मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रात भजो भगवंत कु; अंति: मोहि काज संवारो, गाथा-७. १३०. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. ४१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: नाथ भयो वयरागी हमारो; अंति: व्यथा दूरै भागी है, गाथा-५. १३१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४१आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: भोली है मालणी तुं; अंति: कबीरो संता कै आधार, गाथा-६. १३२. पे. नाम. नवमाख्यान, पृ. ४१आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. मालदास, पुहिं., पद्य, आदि: भल मुख देख्यो; अंति: भवभव में प्रभु तेरो, गाथा-३. १३३. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. ४२अ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्य पद, मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: याली धनओ पीउ धनउ; अंति: नखशिख उपर में वारी, गाथा-३. १३४. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. ४२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. चारित्रसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: तुम योगी रे स्वारथी; अंति: चरतसुंदर कहै चित लाय, गाथा-७. १३५. पे. नाम. जिन पद, पृ. ४२अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. मनोहर, मा.गु., पद्य, आदि: उठि उठि जिनजी को; अंति: मनोहर भवसागर तरी रे, गाथा-४. १३६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुरत मुरत मोहनगारि; अंति: जिनहर्ष धरे इम ध्यान, गाथा-५. १३७. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ४२आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: हमारै आंगन कल्प; अंति: रहिस्युं सोहलोरी, गाथा-५. १३८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ४२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीरत्न, पुहिं., पद्य, आदि: लगन लगी मेरे पारसनाथ; अंति: जपै सुभ दी मुज जागी, गाथा-५. १३९. पे. नाम. सुविधजिन पद, पृ. ४२आ-४३अ, संपूर्ण. सुविधिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: वांके गढ फोज चढी है; अंति: बांधी मगाउं आठे चोर, गाथा-४. For Private And Personal use only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४०. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. ४३अ, संपूर्ण. मु. क्षमा, मा.गु., पद्य, आदि: मधुवन में जाय मची रे; अंति: क्षमा कहै करजोरी, गाथा-३. १४१. पे. नाम. चोविसजिनस्तवन पद, पृ. ४३अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, वा. देव, पुहिं., पद्य, आदि: ऋषभ अजित मुज स्वामी; अंति: चितलायक मनवच खोलेंगे, गाथा-५. १४२. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. ४३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., पद्य, आदि: आदि ऋषभ जिणेसर देव; अंति: सुख लहै नाम जिण तणै, गाथा-७. १४३. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. ४३आ-४४अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीसे विहरमाण जिणवर; अंति: भवभव तुम पाय सेवा, गाथा-४. १४४. पे. नाम. सोलसतीयांरी सिझाय, पृ. ४४अ-४४आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मु. निकम, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीऋषभ तणी ब्राह्मी; अंति: पुगी मननी कोड, गाथा-८. १४५. पे. नाम. गोतमसांमि सज्झाय, पृ. ४४आ-४५अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर केरो सीस; अंति: तूठां संपति कोडि, गाथा-९. १४६. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-प्रथम अध्ययन, पृ. ४५अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १४७. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. ४५अ-४५आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभुसुंदरसीस रसाल, गाथा-७, (वि. कर्ता नाम में तफावत है.) १४८. पे. नाम. आदीश्वरजिनवीनती, पृ. ४५आ-४७आ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंति: मनवैरागे इम भणीया, गाथा-४५. १४९. पे. नाम. श्रावकनी करणी सज्झाय, पृ. ४७आ-४८अ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२१. १५०. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ४८अ-४९अ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: वंछित फल निश्चै पावै, गाथा-२१. १५१. पे. नाम. उपशम सिज्झाय, पृ. ४९अ-४९आ, संपूर्ण. उपशम सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: भवभंजन रंजन जगदेव; अंति: ते वहिलो मुगते संचरै, गाथा-११. १५२. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. ४९आ-५०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: भगति पास जिणेसर गाईय; अंति: सोम पसाय करी नवी, गाथा-१३. १५३. पे. नाम. सामायकना बत्तीसदूषण सज्झाय, पृ. ५०अ-५०आ, संपूर्ण. सामायिक बत्रीसदोष सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुरि गौतममुं लीजै; अंति: मेरुविजय पभणै निसदीस, गाथा-९. १५४. पे. नाम. प्रथमविहरमाण श्रीसीमंधर स्तवन, पृ. ५०आ-५१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिनविनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: लाभै० पुरी आसा मनतणी, गाथा-१८. १५५. पे. नाम. साधसताईसगुण सज्झाय, पृ. ५१आ-५२अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org २२५ साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव जिणवर अरिहंत; अंतिः मोक्षसुख निश्चल करी, गाथा - १६. १५६. पे, नाम, संभवनाथजिन स्तवन, पृ. ५२अ ५२आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुजी संभव अंतिः सुखे ते लीलां तिरै गाथा - ८. १५७. पे नाम, सोले सत्यांनी सिझाय, पृ. ५२आ, संपूर्ण १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्म, आदि: शीतल जिणवर करी; अंतिः एह नाम समरो निसदीस, गाथा ५. १५८. पे. नाम. गुणठाण सिझाय, पृ. ५२आ-५३आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तवन १४ गुणस्थानकविचारगर्भित, ग. सहजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर जिनरायना पय; अंति: जंपर वीरजिन सेवो सदा, गाथा - १८. १५९. पे, नाम, दशारणभद्रमुनि सिझाय, पृ. ५३आ- ५४अ, संपूर्ण. दशार्णभद्रमुनि सज्झाय, उपा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: वंदि रे भविक तुं चरण; अंतिः पद्मराज उवज्झाय बोलै, गाथा - ९. १६०. पे. नाम. संखेसरपार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ५४अ - ५४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंतिः सयल रिपु जीपतो, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ५. १६१. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय पुण्योपरि, पृ. ५४आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पच, आदि पारकी होड तुं म कर; अंतिः ऋद्धि कोटानुकोटी, गाथा-३. १६२. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. ५४-५५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: आज भले दिन उगो हो; अंति: सीसनो राम सफल अरदास, गाथा - ५. १६३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ५५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु; अंति: पार्श्वजिनं शिवदम्, श्लोक - ७. १६४. पे नाम, ऋषभनाथजिन गीत, पृ. ५५अ - ५५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि मोरा आदिजिण देव आज; अंतिः तोने वांदु बे करजोड, गाथा - ८. १६५. पे नाम, गौतमस्वामी कोहाटकी छंद, पृ. ५५आ-५६अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीदाता गाता कवि; अंति: आणी आदरयो मतमांन, गाथा - ९. १६६. पे नाम, पार्श्वजिन छंद, पृ. ५६अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः क्षितिमंडलमुकुट; अंति: रम्यारम्यं सह रम्यं श्लोक-४. " १६७. पे नाम, पंचतीर्थीजिन स्तवन, पृ. ५६-५७अ, संपूर्ण पंचतीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि आदि ए आदि ए आदिजिने; अंतिः आप टाले दोहग आपदा, गाथा- १२. १६८. पे. नाम. सरस्वतीजी रो छंद, पृ. ५७अ ५७आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमल करणी; अंति: सुख संपति दायक सकल, गाथा - १०. १६९. पे. नाम. पार्श्वनाथजिन स्तवन, पृ. ५७आ-५८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पासजिणंद; अंति: पामइ कल्याणनी कोडी, गाथा - ११. १७०. पे नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. ५८अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि धरमजिनेश्वर गाउं रंग; अंतिः सांभलो ए सेवक अरदास गाथा ५. १७१. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५८अ संपूर्ण. For Private And Personal Use Only " Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: जे जे आदजणंद आज आणंद; अंति: दीपसौभाग्य कह्योरी, गाथा-१५. १७२. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. ५८आ-५९अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. १७३. पे. नाम. पार्श्वेशितु स्तुति, पृ. ५९अ-५९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: जयजय गोडीजी महाराजा; अंति: त्वं प्रणमामि सदैव, श्लोक-९. १७४. पे. नाम. मंगल स्तोत्र, पृ. ५९आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मंगलो भूमिपुत्रश्च; अंति: कथ्यते च महेश्वरः, श्लोक-५. १७५. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. ५९आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: बृहस्पतिः सुराचार्यो; अंति: शुभग्रह नमोस्तु ते, श्लोक-६. १७६. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. ५९आ-६०अ, संपूर्ण, वि. १८५९, अंकाक्षवसुइंदु, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, रविवार. क्र. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकासं; अंति: ब्रूयात् न संशयः, श्लोक-१२. २२५९२. (+) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८७१, आश्विन कृष्ण, ३०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. सुमतिसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४१२, ११४२२-२४). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणइ; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २२५९३. नवतत्त्व सह टबार्थ, आचार्यगुण स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १६६०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, जैदे., (२२४१२.५, ५४२६). १. पे. नाम. आचार्यगुण स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. प्रथम पंक्ति क्षतिग्रस्त होने से आदिवाक्य अवाच्य है.) २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४, (प्रले. मु. पंचायण; पठ. मु. मनजी (गुरु मु. पंचायण), प्र.ले.पु. मध्यम) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: तिम अनंता पुद्गलकाल, (प्रले. मु. राम, प्र.ले.पु. सामान्य) ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. २२५९४. (+) प्रकरण चतुष्क, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(३)=९, कुल पे. ४, ले.स्थल. पेढामली, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, १३४३०-३१). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४२ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. चौविसदंडक, पृ. ४अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४६, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम. नवतत्व, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पेढामली. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-६०. ४. पे. नाम. जंबूद्वीप संघयणी, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. जंबूद्वीप संग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्न; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३१. For Private And Personal use only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २२७ २२५९८. (+) स्तवन, चैत्यवंदन, स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६५, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ९, प्रले. पं. मनरूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, १२४३२). १. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: मुदा प्रसन्नः, गाथा-३२. २. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. __ पंचमीतिथि स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १४६६, आदि: पहिला समरं गोयम; अंति: शशिवासर बारस इम कहै, गाथा-१५. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. साधारणजिन गीत, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देवी मन रंग; अंति: कवि मान कहे करजोडि, गाथा-१२. ४. पे. नाम. कलिकुंडपासजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सदा फल चिंतामणि; अंति: जपइ पूरो संघ जगीस ए, गाथा-३, (वि. दो-दो गाथा की एक गाथा गिनी गई है.) ५. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमधर वीतराग; अंति: विनय धरे तुम ध्यान, गाथा-३. ६. पे. नाम. कुसुमिणदुसुमिणकाउसग्ग विचार, पृ. ५अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७. पे. नाम. देशावगाशिक पच्चक्खाण, पृ. ५अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ८. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, श्लोक-३. ९. पे. नाम. जैन दूहा संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-७. २२६००. (#) गोडीपार्श्वनाथ उतपतमहिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. हर्षसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२, १३४२९-३४). काजलमेघा चौढालिया-गोडीजीपार्श्व, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुं नित परमेश्वर; अंति: एम नेमविजय जयकार, ढाल-१५. २२६०२. साधुविधिप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, दे., (२४४१२, १२-१३४३४). साधुविधिप्रकाश, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर गणधर प्रते; अंति: सिज्झाय करुं कहीजै. २२६०४. जिनरस, संपूर्ण, वि. १८५९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. केकीद, प्रले. मु. सदारामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १४४३६-३८). जिनरस, मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: गणपत शारद पय नमि; अंति: कही० धरम धजादे धिंग, गाथा-१२८. २२६०५. दानशीलतपभावना चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १८७३, कार्तिक कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. टीदरी, प्रले. श्रावि. हरकवर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१२, १५-१६x२७-२९). दानशीलतपभाव चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४. २२६०९. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९५-४(४५,८९,९२,९४)+१(४४)=९२, पू.वि. पिंडेषणा अध्ययन उद्देशक-३ अपूर्ण तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१२, ४-१७४३५-३९). For Private And Personal use only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं ___ हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मइ एहवो साभल्यो हे; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २२६१४. (+) नवपद आराधना विधि, संपूर्ण, वि. १८९६, पौष शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१२, १०x१८-२२). नवपद आराधना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथमवर्ष मास दिन; अंति: प्रमुख कीजै. २२६१५. (#) स्थुलिभद्र शियलवेल व नेमराजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. श्राव. हरिचंद; पठ. श्राव. भोजा; श्राव. जेठो, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४२५-२६). १.पे. नाम. स्थूलिभद्र शीयलवेलि, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजी; अंति: विमला कमला वरशे रे, ढाल-१८. २. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: डुंगर घेर्यो वादले; अंति: त्रिविधे होज्यो तास, गाथा-५. २२६२२. (-) कलावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४४११.५, १४-१६४२७-३०). कलावतीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: जुगबाहु जिन जगत गुरु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१४ अपूर्ण तक है.) २२६२६. (+) श्राद्ध पाक्षिक अतिचार व अतिचार गाथाष्टक, संपूर्ण, वि. १८५०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, पठ. श्रावि. फूल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२२.५४१२.५, १२४३०). १. पे. नाम. पाक्षिक अतिचार, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, ग्रं. २०९. २. पे. नाम. पंचाचार अतिचार गाथा, पृ. ८आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मिअ; अंति: नायव्वो विरियायारो, गाथा-८. २२६२८. (+) वीरांगद चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३२, चैत्र कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३४१२, १४४३५-३६). वीरांगद चौपाई, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: ॐ विस्वनाथ जिनवर चरण; अंति: तत्त्व समजते जाण. २२६२९. मृगसुंदरी छंद चौपाई व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२२४११.५, ९-१२४२३-२९). १. पे. नाम. मृगसुंदरीमाहात्म्यगर्भित छंद चौपाई, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. छंद चौपाई-मृगसुंदरीमाहात्म्यगर्भित, मु. कृष्णविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: प्रणमी वीर जिणेसर; अंति: जयणा धर्म करो नीसदीस, गाथा-५६. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. २२६३१. सूक्तावली व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, ले.स्थल. उजेण, प्रले. मु. मोतीदत्त ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१२, ११-१२४२३-२६). १.पे. नाम. सूक्तमाला, पृ. १आ-२०अ, संपूर्ण. मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लिवृंद; अंति: संयम योग लीधो, वर्ग-४. For Private And Personal use only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. २२६३३. शालिभद्रधन्नामहामुनि चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदे., (२४४११, १०-११४३०-३६). धन्नाशालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: सारें० फल लहस्यें जी, ढाल-२९. २२६३४. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रावण कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४११.५, १०४३४-३७). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २२६३५. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९५९, कार्तिक कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. राजपुर, प्रले. मु. फूलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पंक्त्य क्षर अनियमित है., दे., (२१.५४११.५). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: पढकर पासो नाखजे. २२६३७. संबोधसत्तरी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८१५, आश्विन शुक्ल, १५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१-३(१ से २,२०)=२८, ले.स्थल. पादसंग्राम, प्रले. पंन्या. माणिक्यनंदन; पठ. पं. रामाजी (गुरु पंन्या. माणिक्यनंदन), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११.५, १८-२१४२६-३०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सोलहई नत्थि संदेहो. संबोधसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: परिणामे सुख पामीयै. २२६३८. प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., (२२.५४११.५, १२४२८-३२). प्रश्नोत्तर, सं., गद्य, आदि: अथ शंकापनोदाय शिष्यः; अति: मागध्या भाषया भाषते, प्रश्न-५०. २२६३९. (+) झांझरीया मुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५४, श्रावण कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. जैताणी, प्रले. पंडित. महेशजी; पठ. श्रावि. फूलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११.५, १२४२६-२८). झांझरियामुनि सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६००, आदि: सरस सकोमल सारदा वाणी; अंति: विशाखवदि एकादशी, गाथा-९५. २२६४०. सिंहलसुत चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. रासि, जैदे., (२२४११, १४-१५४३४-३७). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११. २२६४३. (+) जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, ले.स्थल. विसाला, प्रले. पं. पेमचंद (गुरु पं. रतनचंद, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४११, ४-५४२५-३६). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवन स्वर्ग; अंति: थकी उद्धर्यो आचार्ये. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ८अ-१५आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: पुत्रादिक ए १५ भेद. २२६४६. (+) चतुर्मासिक व होलिका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८६२, आषाढ़ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(३)=१२, कुल पे. २, ले.स्थल. महिमापूर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १४-१५४२७-४१). १.पे. नाम. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पृ. १आ-१३आ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: सर्वेष्टार्थसिद्धिः.. २. पे. नाम. फाल्गुणचतुर्मास व्याख्यान, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private And Personal use only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची फाल्गुणचातुर्मास व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: (-). २२६४८. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२३४११.५, १२x२७-३०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: कार्येषु सिद्धि. २२६५१. भक्तामरस्तोत्र सह टीका-सुखबोधिकानाम्नी, संपूर्ण, वि. १९२८, भाद्रपद शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., (२२.५४११, १५-१८४३१-३९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: किल इति सत्ये अहमपि; अंति: विबुधैः शोध्यतामियम्, ग्रं. ४००. २२६५३. (+) मार्गानुसारी ३५ गुण गाथा व विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४१०.५, १०४२३-३०). १. पे. नाम. मार्गानुसारी ३५ गुण गाथा, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: न्याय संपन्न विभवः; अंति: गृहधर्माय कल्पते, श्लोक-१०. २. पे. नाम. मार्गाणुसारी ३५ गुण बालावबोध, पृ. २अ-७आ, संपूर्ण. मार्गानुसारी ३५ गुण गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: स्वामीनो द्रोह करी; अंति: जीवने हैयामा धरवा. २२६५४. नवपद पूजा व शांतिजिन आरती, संपूर्ण, वि. १८८६-१८८७, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, ले.स्थल. घाणेरा, प्रले. मु. रविंद्रसागर (गुरु मु. जीतसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, ९-११x१८-२०). १. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १आ-१७अ, संपूर्ण, वि. १८८६, भाद्रपद शुक्ल, १०, ले.स्थल. घाणेरा, पे.वि. श्रीआदिश्वरजी प्रसादात्. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: कोई नये न अधूरी रे. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १७आ, संपूर्ण, वि. १८८७. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति; अंति: नरनारी अमर पद पावे, गाथा-६. २२६५७. वैद्यवल्लभ सह टबार्थव औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११, ६४३०-३५). १.पे. नाम. वैद्यवल्लभ सहटबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ-२७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., विलास-८ गाथा-४३ अपूर्ण तक है. वैद्यवल्लभ, म. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: (-). वैद्यवल्लभ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: शारदा जो सरस्वतीने; अंति: (-). २२६५९. ज्योतिषदूहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२३.५४११, १२४२७-३५). __ ज्योतिषसार, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, आदि: ग्रहणदिवस रवि भूम; अंति: (-). २२६६१. ज्योतिषसार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४११.५, १५४२८-३०). ज्योतिषसार संग्रह, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: तं नमामि जिनाधीश; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१८२ तक २२६६२. (+) सिंहलसुत चौपाई व कामदेव सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९१, कार्तिक शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. पोमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३४११.५, २०४५२). १. पे. नाम. सिंहलसुत चौपाई, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमु सद्गुरु पाय; अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११. For Private And Personal use only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २३१ २. पे. नाम. कामदेवश्रावक सज्झाय, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन इंद्र प्रसंसी; अंति: चंदजी कीधी अरदास, गाथा-१६. २२६६९. (+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रावण कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, अन्य. मु. भावहर्ष (खरतरगच्छ); प्रले. पं. अरजुन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४११, १२-१३४२७-३०). चंद्रप्रभजिन स्तवन, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८७, आदि: सरसति वरसति सकतिरूप; अंति: सकल मनवंछित फलइ, ढाल-१०, गाथा-७६. २२६७०. (+) विक्रमसेन रास, संपूर्ण, वि. १७८४, माघ शुक्ल, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ११-२१४४१-४६). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकाशकर; अंति: परमसागर आणंदा रे, ढाल-६४, गाथा-१३२६. २२६७२. श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९४०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२२४१२, १०x२२-२५). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २२६७५. कुमारपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८-१७(१ से १३,३७,४१,५०,५३)=४१, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४१०.५, १४४३२-३८). कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१८ अपूर्ण से ढाल-६५ गाथा-८ तक है.) २२६७६. (+) कुमतिउत्थापन चर्चा, संपूर्ण, वि. १८८८, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. घोणोराव, प्रले. पंन्या. क्षमाविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषभदेवजी प्रसादात्., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४४११, १२४३१-३६). कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहि.,प्रा., गद्य, वि. १८८४, आदि: मनोमती झूठी प्ररूपणा; अंति: वाणुप्पिया इत्यादिक. २२६७७. महावीरजिन २७भव स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. दीव, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि, लुंकागच्छ वृद्धपक्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ११-१२४३५-३९). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमलकमलदललोयणा दिसे; अंति: विजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८४. २२६८४. (+) जंबूद्वीपसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. शिवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४१०.५,१-५४२४-२६). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. लघुसंग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय क० प्रणमी करीनइ; अंति: श्रीहरिभद्रसूरीश्वरे. २२६८७. व्याख्यान पद्धति, संपूर्ण, वि. १८८८, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. आणंदपुर, जैदे., (२४४१०.५, १४४४०-४२). औपदेशिक व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० णमो; अंति: कल्याणमाला संपजै. २२६९०. (+) सुरसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १६७५, आश्विन शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. १३-४(१,६,८,१२)=९, ले.स्थल. अलवर, प्रले. मु. हरजी (गुरु ऋ. लक्ष्मणजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १९-२१४४४-४९). सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि: (-); अंति: एम भणे आनंदपूरि, ढाल-२१, ___गाथा-५११, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१६ तक नहीं है.) २२६९१. दानसीलतपभावना अधिकार, संपूर्ण, वि. १७९५, आश्विन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. देहोर, प्रले. मु. रणछोड ऋषि; पठ. मु. जीवण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०, १२-१३४३०-३४). For Private And Personal use only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: संघ सदा सुजगीस रे, ढाल-४, गाथा-१००. २२६९४. स्तवनचौवीसी, वीसी व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-४(१ से ४)=१२, कुल पे. ३, ले.स्थल. सादडी, प्रले. मु. बुधजी (गुरु मु. बुधरसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०, १३-१४४३०-३७). १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. ५अ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. स्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन-२४, (पू.वि. विमलजिन स्तवन तक नहीं है.) २. पे. नाम. स्तवनवीसी, पृ. ८अ-१६अ, संपूर्ण. वा. वाचक जस, मा.गु., पद्य, आदि: पुक्खलवई विजये जयो; अंति: वाचक जस इम बोले रे, स्तवन-२०. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १६आ, संपूर्ण. वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राग विना तुंरीजवे; अंति: हियडे धरी अतिआणंद हो, गाथा-८. २२६९६. (#) अभिधानचिंतामणि नाममाला-कांड १ से २, संपूर्ण, वि. १७५४, माघ शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. रुपनगर, प्रले. पं. विनोदसागर (गुरु मु. विनयसागर); पठ. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०, १४-१६४३७-४२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; __ अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. द्वितीय देवकांड तक है.) २२७०१. चतुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८७२, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदे., (२४४१०, ११४३८-४०). चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, आदि: सामायिकावश्यकपौषधानि; अंति: वाचना संपूर्ण थइ. २२७०३. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८९०, वैशाख शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२४१०, ६४१६-२०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २२७०४. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२२४१०.५, ८-९x१४-१८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २२७०५. चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९०६, वैशाख शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १०३-१(१)+१(९३)=१०३, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३४१०.५, १२-१३४३१). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ दोहा-१० से खंड-४ ढाल-१ दोहा-१० तक है.) २२७०६. (+) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह व चंद्रकुमर वार्ता, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४१०, १६४३९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन हाललं, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-बाललीला, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुरगिरि शिखरे सुरपति; अंति: आस्या पोंचावे रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. चंद्रकुमार वार्ता, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरसति माय गणपति; अंति: या गुण को गुणसार, गाथा-९३. ३. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: कहे सुख भरपुर, गाथा-७. २२७१६. नेमनाथ रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. दयालसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०, ९४३६). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी; अंति: सुप्रसन्न नेमजिणंद, गाथा-६४. For Private And Personal use only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २२७१८. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२३४१०.५, १२४३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: किल इति संभावनाया; अंति: भास्वरा देदीप्यमाना. २२७२६. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८२, जीर्ण, पृ. २०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १५४४२-४८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: एगते होई मिच्छत्तम्, गाथा-५३. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: जिनमती जीवाने पदार्थ; अंति: बिहु बराबरि पणे छै. २२७२७. कर्म, गुणस्थानक विचार व इरियावहि क्षमापनाभेद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ३, दे., (२२४११, १०-१४४३५-३६). १. पे. नाम. आठकर्म विचार, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीय दर्शनावर; अंति: बंधहेतु देखाड्या. २. पे. नाम. चौदगुणस्थानक विचार, पृ. ४आ-१२अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गुण ज्ञानादिक तेहर्नु; अंति: माटइ तेहनउ क्षय कहइं. ३. पे. नाम. इरियावहि क्षमापनाभेद, पृ. १२अ, संपूर्ण. इरियावही क्षमापनाभेद, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नारकीभेद १४ तिर्यंच; अंति: दुक्कडं जाणि. २२७२९. चंद्रकुमररी वार्ता, संपूर्ण, वि. १८६६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. श्राव. खसालचंद; पठ. श्राव. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, १०x२२-२७). चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरसति माय गणपति; अंति: या गुण को गुणसार, गाथा-९८. २२७३२. पुच्छिस्सणं अध्ययन, महावीरजिन स्तुति व उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-९,१०, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१०.५, १३४२७). १. पे. नाम. वीरजिन थुई, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणामाहणा; अंति: आगमेस्सतित्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पंच महवय सुहमूलं; अंति: दुकराय करंति ते, गाथा-६. ३. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ९-१०, पृ. ३आ-८आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. अध्ययन ९ से १०.) २२७३५. (#) पंचकल्याणक मंगल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, ९-१०४३०-३४). पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: पणमवी पंच परम गुरु; अंति: जिनदेव चउ संघह जयो, ढाल-५, गाथा-२५. २२७३९. पंचसमवायगर्भित वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. पं. गौतमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१०.५, ६-७X१७-२२). पांचसमवाय स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: परे विनय कहे आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५८. २२७४१. नवतत्त्व विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदे., (२२४११, १३-१५४२७-३०). नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: उच्छेदे आगलसुंछे. २२७४२. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदे., (२४४१०.५, ७४४३-४८). For Private And Personal use only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३४ . कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), अध्ययन-१०, (वि. अंतिम पत्र का आधा भाग खंडित व अनुपलब्ध होने से मू+टबा. का अंतिमवाक्य अप्राप्त है.) दशवकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मो० धर्म मंगलीक; अंति: (-), (वि. अंतिम पत्र का आधा भाग खंडित व अनुपलब्ध होने से मू+टबा. का अंतिमवाक्य अप्राप्त है.) २२७४६. (+) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९४०, पौष शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. लखनउ, प्रले. मु. धनसुख; पठ. मु. जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२४११, १०४२०-२६). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: स जानाति जनाग्रतः, श्लोक-१०१. २२७४७. (+) आदिजिन स्तवन, औषध संग्रह व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १०४२९-३१). १. पे. नाम. आदिजिन विनती स्तवन, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंति: लावण्यसमे इम भणइ, गाथा-४७. २. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह-, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २२७६१. नवस्मरण, नवतत्त्व,जीवविचार प्रकरण व चउशरण प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ४, जैदे., (२२४१०.५, १५-१६४३४-४०). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. संतिकरं व भक्तामर स्तोत्र नहीं है.) २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. ३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १०अ-१२अ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-४८. ४. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १२अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) २२७६२. रत्नचूड चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले.स्थल. चीठोरा, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १०-११४२७-३१). रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: स्वस्ति श्रीसोभा; अंति: संपद लील कल्याणो रे, ढाल-२४. २२७६४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४१०.५, ७-८x१८-२०). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नेमकुंवर वडवीद विराज; अंति: भावसुं चैतवंदण करीया, गाथा-९. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधरजी सुणजो; अंति: विनती० अरदासजी, गाथा-७. ३. पे. नाम. श्रीकाप्रेड स्तोत्र, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनिसि अविरल वाणी; अंति: वांक न किण ही वातरो, गाथा-४. For Private And Personal use only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २३५ २२७६७. (+#) भक्तामर स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७४५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. दिल्ली, प्रले. मु. भीमसागर (विधिपक्षगच्छ); राज्यकाल रा. अवरंगजेव; राज्ये आ. अमरसूरि (विधिपक्षगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (३७८) यावच्चंद्रस्य सूर्यस्य, (७८४) अज्ञानभावान्मतिविभ्रमाद्वा, जैदे., (२३४११, ११४३३-४०). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ५अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. २२७६८. पार्श्वजिन छंद व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. कुअर, प्रले. मु. गुमानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवीरजिन प्रसादात्., जैदे., (२३४१०.५, ११-१३४३१-३३). १. पे. नाम. अंतरीक्षपार्श्वजिन स्तंवन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: जयो पास जय जय करण, गाथा-५३. २. पे. नाम. प्रहेलिका गाथा, पृ. ५अ, संपूर्ण. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. २२७७०. सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. सूरपुरा, जैदे., (२३४१०.५, १०४३९-४२). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. उवसग्गहरं स्तोत्र नहीं है.) २२७७२. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक का बीजक, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२३.५४११, १०४२७-३३). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलै तीर्थंकर; अंति: (-), (पू.वि. बोल-१५१ अपूर्ण तक है.) २२७८०. पाशाकेवली की भाषा, संवेगबावीसी वढूंढकपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. गुदवसनगर, जैदे., (२४४१०.५, १५४३४-३९). १. पे. नाम. पाशाकेवली भाषा, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ___ पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: शकुन श्रीकार छे. २. पे. नाम. संवेगबावीसी, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शुध संवेगी करीआ पाले; अंति: लाजे नही वली टाले, गाथा-२२. ३. पे. नाम. ढुंढकपच्चीसी, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी प्रणमी; अंति: पयंपे हितकारी अधिकार, गाथा-२५. २२७८१. (+) सामायिक विधि, आरती, स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ६, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२२४१०, ११-१२४२२-२७). १. पे. नाम. सामायिक लेने की विधि, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.. सामायिक लेने की विधि-खरतरगच्छीय जिनपतिसूरि समाचारी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावक बेघडी पाछली; अंति: (१)करेइ एहवो कहै, (२)धर्मध्यान करै. २. पे. नाम. सामायिक पारने की विधि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. सामायिक पारने की विधि-खरतरगच्छीय जिनपतिसूरि समाचारी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खमासण० देई इच्छाका०; अंति: (१)समाचारी० इम कह्यो छै, (२)सुहदेवसी पूछै. ३. पे. नाम. दैवसिक अतिचार चिंतवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: काउसग्गमांहि आजूणा; अंति: आलोइणमांहे आलोइसुं. ४. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: जय जय आरति शांति; अंति: सुरनरनारी अमरपद पावे, गाथा-६. ५. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर युगमंधरस्वामी; अंति: नमे नित त्रिंहुकाल ए, गाथा-५. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: सासननायक सामी तूं तो; अंति: भावै भेट्या जगीस रे, गाथा-११. २२७८५. (+) स्तुति, स्तोत्र, स्तवन, नमस्कारादि संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-१(२)=२४, कुल पे. ३०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, ७४२५-२८). १. पे. नाम. सीमंघरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सं., पद्य, आदि: यदहिनमनादेव देहिन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कलत्र बहु वित्त, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ तक नही है.) ४. पे. नाम. पंचमीतप स्तुति, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. पंचमीतिथितप स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंच अनंत महंत गुणाकर; अंति: यै कहै जिणचंद मुणिंद, गाथा-४. ५. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: इम शासन सुरि सुह जाण, गाथा-४. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: मंगल करो अंबा देविये, गाथा-४. ७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. ८. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ जिनेश्वर; अति: देव करो कल्याण, गाथा-४. ९. पे. नाम. सिद्धचक्र नमस्कार, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत; अंति: निधि प्रगटै चेतन भूप, गाथा-६. १०. पे. नाम. ऋषभजिन नमस्कार, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निस दिन नमत कल्याण, गाथा-३. ११. पे. नाम. शांतिजिन स्तव, पृ. ८अ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर शांतिनाथ; अंति: लहिये कोड कल्याण, गाथा-३. १२. पे. नाम. नेमिजिन स्तव, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमों नेमि; अंति: अहनिश करै प्रणाम, गाथा-३. १३. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तव, पृ. ८आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २३७ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणीय पासनाह; अंति: प्रगटे परम कल्याण, गाथा-३. १४. पे. नाम. वीरजिन स्तव, पृ. ९अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जगदाधार सार सिव; अंति: आपौ करि सुपसाय, गाथा-३. १५. पे. नाम. स्थंभनपार्श्वजिन स्तव, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन नमस्कार-स्थंभनपुर, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेढी तट मेरुधाम; अंति: पावौ पद कल्याण, गाथा-३. १६. पे. नाम. सीमंधरस्वामि चैत्यवंदन, पृ. ९आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिणवर विहरमाण; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-३. १७. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. ९आ-११अ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: संभव जिनवर वीनती; अंति: करीये संघ कल्याण रे, गाथा-९. १८. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. ११अ-१६आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. १९. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १६आ-१८अ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. २०. पे. नाम. नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा न पीडति, गाथा-१०. २१. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमो बृहस्पतिः; अंति: सुप्रीत तस्य जायते, श्लोक-५. २२. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. २०अ-२१अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यः पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-१०. २३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: पमज्जन शस्तनिजाघ, श्लोक-४. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलबंध, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: सिद्धिं वैदुष्यं, श्लोक-४. २५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. २६. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २२आ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: ददतां शिवं वः, श्लोक-१. २७. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. २२आ-२३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अविरल कवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. २८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमंडण; अंति: सूरि तुम्ह पाय सेवता, गाथा-४. २९. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तुति, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. For Private And Personal use only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची .पे. नाम. अंबिकादेवी स्तुति, पृ. २४आ२५आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: माई जो तूंसे अंबाई, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा- ४. २२७८६ (-) स्तवन, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८- १ ( २ ) =७, कुल पे १४, ले. स्थल, फाग, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३X११, १४-१५X३४-३६). १. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्म, आदि सब दुख टालेंगे; अंति: तार तार भवतीर, गाथा-५, २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सोभाचंद, पुहिं., पद्य, आदि: भज श्रीऋषभ जिणंद; अंति: कहइ गावइ हीरदइ लाइ, गाथा-४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि मन तो मेरइ बस नही; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ३ तक है.) ४. पे नाम. तृष्णा सज्झाच, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. मा.गु., पद्य, आदि: तिसना तुरणी हेतु; अंति: ते नर सुखी ज नाहि, गाथा - ११. ५. पे नाम. सुगुरुपच्चीशी सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू पिछाणो एणे; अंति: चित्तमइ हरख उछरंगजी, गाथा - २५. ६. पे नाम. तृष्णा सज्झाच, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. वह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. मा.गु., पद्य, आदि: तिसना तुरणी हेतु अंतिः ते नर सुखी ज नाहि, गाथा - १२. ७. पे. नाम नरकदुख सज्झाच, पृ. ५अ, संपूर्ण मा.गु., पद्य, आदि: नरकतणा दुख दोहिला आप; अंतिः वाडीणा भाव रे प्राणी, गाथा-९, ८. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि भव जीवा करणी रे कीजो; अंतिः छांडजो जो उतरो भवपार, गाथा- ११. ९. पे नाम. हुसीडा सज्झाय, पृ. ५आ- ६आ, संपूर्ण. क. कानो, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिसामणी नित; अंतिः करम पाडोसी होसी रे, गाथा- १६. १०. पे. नाम. कर्महडोल सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. सु. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि दोब खंभ राग रे द्वेष; अंतिः जीवो मानवो पुरव आस, गाथा - ८. ११. पे नाम, भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि राज थकी अतिलोभियो अंति: बाहुबल प्रतिबुधोजी, गाथा - ७. १२. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पंदर तिथिमे प्राणीया; अंति: साधु तारणतीर्णा, गाथा - १५. १३. पे नाम. चौवीसजिन स्तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- मातापितानामगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिराजा मरुदेवीमाता; अंतिः चोवीसानइ करुं प्रणाम, गाथा - २४. १४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: चौदाजी कुलमें नाभिजी; अंतिः नीति वांदस्यांजी, गाथा - ११. २२७८७. पाक्षिक अतिचार, तप व स्तुति आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. १५, जैदे., ( २४४१०.५, १२४३०-३१). १. पे नाम. बृहन्नमस्कार, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण, सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: भावतोहं नमामि श्लोक - ४२. २. पे. नाम. साधु पाक्षिक अतिचार, पृ. ३अ - ५आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे नाम, पाक्षिकचीमासीसंवत्सरीतप आलापक, पृ. ५आ, संपूर्ण, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंतिः तप करी पहोंचाडवो. ४. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि कलाणकंदं पढमं अंतिः अम्ह सवा पसत्था, गाथा-४, ५. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ६अ - ६ आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ६. पे नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि जय जय कर मंगल दीपक; अंतिः कमला भालतिलक वर हीर, गाथा - १. ७. पे नाम, शांतिनाथ स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण, शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरी; अंतिः सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा- ४. ८. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, ९. पे नाम. अष्टमीमहावीर स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., प्रा., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. गाथा-४. २३९ १०. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पच, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंतिः निवारो संघतणा निशदिश, गाथा ४. ११. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धं श्लोक-४. " १२. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ८आ - ९अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी बंदु ऋषभदेव अंतिः ऋषभदास गुण गाइ, गाथा- ४. १३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. पंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. १४. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गीतम बोले ग्रंथ; अंतिः संघनां विघन निवारी, गाथा ४. १५. पे नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १०अ ११अ संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंतिः तुसे देवी अंबाई, गाथा- ४. २२७८८. (#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. २१, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X११, १३-१५x२८-४२). For Private And Personal Use Only १. पे. नाम महावीरजिन हमचडी, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण महावीरजिन हमचडी-पंचकल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्म, आदि: नंदनकुं त्रिशला; अंतिः चरमजिणेसर वीरो रे, डाल- ३, गाथा- ६८. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. ३आ- ५अ, संपूर्ण. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पासजिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे गुणि, डाल- ६. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्व स्तवन, पृ. ५अ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन वृद्धस्तवन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंति: सकल सिंघ मंगल करू, ढाल - ५, गाथा - ५६. ४. पे नाम, चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ८अ ९आ, संपूर्ण. Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमु; अंति: तासु सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: नेम वल्यो रथ मोरिने; अंति: पुगी मन जगीसरे, गाथा-१९. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सौरीपुर नगर सुहामणो; अंति: मनरूप प्रणमई पाय, गाथा-१५. ७. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सावणमास स्वाम मेली; अंति: एह नवनिध पामि रे, गाथा-१३. ८. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो लागुंलागुं; अंति: बहु सुकखरु हो लाल, गाथा-६. ९. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे लाल भगति; अंति: भणे सुखकार रे लाल, गाथा-७. १०. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता वीनवू; अंति: पुरजो वंछित काज रे, गाथा-१०. ११. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सामी सुणो मुज वीनती; अंति: दासने जे के अपणी आस, गाथा-८. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आणी सुहावो जिनजी; अंति: हीर चरणकमल सेवे केसर, गाथा-७. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु प्रणमी पाया गाउ; अंति: कांति० उवज्झाया रे, गाथा-७. १४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, पृ. १४अ, संपूर्ण. मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: काइ रे जीव मनमें; अंति: फली पास पसाये रंगरली, गाथा-८. १५. पे. नाम. स्तवन, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल रे सांवललीयां; अंति: कीम वरसे वरदाइ रे, गाथा-५. १६. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. १४आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घर आंगण सुरतरु फल्यौ; अंति: तुंहि ज देव प्रमाण, गाथा-५. १७. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. आगम, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: साहिबा तुं थलवटनो रे; अंति: करजोडी आगम नित नमै, गाथा-९. १८. पे. नाम. भीनमालपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५अ-१७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीनमालपुरमंडन, मु. पुण्यकमल, मा.गु., पद्य, वि. १६६१, आदि: सरसति भगवति नमीय पाय; अंति: पुण्यकमल भवभय हरो, गाथा-५३. १९. पे. नाम. राणकपुरआदिजिन स्तवन, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: राणपुर नमौ हियो रे; अंति: लाल सिवसुंदर सुख थाय, गाथा-१६. २०. पे. नाम. तीर्थमाला स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुजेसिखर समोसर; अंति: समय० तिरथ ते नमुरे, गाथा-१८. For Private And Personal use only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४१ २१. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि सहीयां सेवो यादव अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ९ तक है. ) २२७९२. संयमश्रेणीगर्भित वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२३.५x११, ९-१०x२८-२९). महावीरजिन स्तवन- संयमश्रेणिगर्भित, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: केवलज्ञान दिवाकरुजी; अंति: उत्तमविजय मल्हायो रे, दाल-३, गाथा ६१. २२७९३. नेमिजिन चौवीसचोक, अपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) -५, जैवे. (२३.५x११.५, १३४३०-३२). नेमगोपी संवाद- चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि (-); अंति: सीसे अमृत गुण गाया, चोक-२४, (पू.वि. चोक ४ तक नहीं है.) २२७९९. स्थुलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८११, माघ कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. मेदनीपूर, प्रले. मु. खुस्यालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२२.५x११.५, १४x२७ - ३० ). स्थूलभद्रमुनि नवरसो, वा उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत्ति दायक सदा; अंतिः मनोरथ वेगे फल्या, ढाल - ९. २२८०४. सूक्तावली, संपूर्ण, वि. १८६६, आषाढ़ कृष्ण ३ अधिकतिथि, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९, ले. स्थल. रांणावास ग्राम, प्र. मु. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४११.५, १३x२८-३२). सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: अर्हंतो भगवंत इंद्र; अंति: नर निश्चै मूर्ख रहे, श्लोक - ७७९, (वि. प्रतिलेखक ने अंतिम दो दूहे मारुगुर्जर भाषा में दिये हैं.) २२८०५. मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८५०, ज्येष्ठ शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६७, ले. स्थल. शोदीग्राम दक्षिणदेश, प्रले. पं. हेतशीयल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अंतिम वाक्य 'मंगलमाल' है किंतु प्रतिलेखक द्वारा अंत में गाथानुक्रम से प्रस्ताविक, सुभाषित व दुहे लिखे हुवे है. जैवे. (२१.५x१२, १२-१३x२५-२८ ) . मानतुंग- मानवती रास- मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल -४७, (वि. प्रथम पत्र खंडित होने से आदिवाक्य संपूर्ण नहीं पढा जा रहा है.) २२८०८. (+) सीमंधरस्वामी विज्ञप्ति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२४X११, १५९४६-४७). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन- ३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिब, अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल - १७, गाथा- ३५४, ग्रं. ४७५. २२८११. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८४, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२३.५X११, ३-४x२९-३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा - ५४. नवतत्त्व प्रकरण बार्थ " मा.गु., गद्य, आदि जे जीव दश प्राणने; अंतिः ते अनेकसिद्ध कहीये. " For Private And Personal Use Only २२८१२. गुणकरंडकगुणावली चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १८-१ (१७) १७, प्र. वि. अंतिम पत्र पर पत्रांक न होने से बीच के पत्र का अनुमान न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., दे., (२१.५X११.५, १०-११x२०-२३). गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पच, वि. १७५४, आदि: संपति सुखदायक सरस; अंति (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल - १० दोहा - ५ तक है.) २२८१३. वीतराग स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रकाश -९ श्लोक-१ तक है., जैदे., ( २४x११, १७ - २६x४४-५० ) . वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं; अंति: (-). वीतराग स्तोत्र - अवचूरि, मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं., गद्य, वि. (-). १५१२, आदि जयति श्रीजिनो वीरः; अंति Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२८१४. (+) क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १९२५, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले. स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. जीव; पठ. मु. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीनेमनाथजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२२.५x११.५, ९-१०x१८-२३). , लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपर्याय अंतिः कुसलरंगमयं पसिद्धं, अधिकार-६, गाथा-२६६. २२८१५. पर्युषण अष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९३४, आषाढ़ कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले. स्थल. नागपूर, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २२x११, ९-११x२०-३०). अष्टाहिकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंतिः पद्मबंध विलोक्य तत् 9 २२८२०. प्रतिक्रमणसूत्र सह विधि, संपूर्ण, वि. १९३९, संवतगणलोककलिप्रियचंद्रेणमिश्रितं, माघ शुक्ल, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. कर्पूरविजय (गुरु मु. वृद्धिविजयजी *, तपागच्छ); पठ. मु. वृद्धिचंदजी (गुरु मु. बुद्धिविजय*, तपागच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीनेमनाथ प्रसादात्., जैदे., ( २१.५X११.५, ११x२८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - धे. मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-). *, २२८२१. जंबूस्वामी गीता छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२३४११, ११-१३३१-३४). जंबूस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: शेठ रीखवदत्त राजगृह; अंति: काज सघलां जिम सरइ, गाथा-३०. २२८२५. (+) कर्मग्रंथ १ से ६, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २४.५X११.५, १३३५-४० ). १. पे. नाम कर्मविपाकसूत्र, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरजिणं बंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६०. २. पे. नाम. कर्मस्तवसूत्र, पृ. ३आ-५अ संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि; तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. ३. पे नाम, बंधस्वामित्वसूत्र, पृ. ५अ - ६अ, संपूर्ण, बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा - २५. ४. पे. नाम षडशीति चतुर्थ कर्मग्रंथ, पृ. ६अ १०अ संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा - ८६. ५. पे. नाम. शतकनाम पंचम कर्मग्रंथ, पृ. १०अ - १४अ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा, For Private And Personal Use Only गाथा - १००. ६. पे. नाम. षष्ट कर्मग्रंथ, पृ. १४अ - १७आ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्ध पएहिं महत्थं; अंति: त्तर० एगूणा होई नउईओ, श्लोक-१२. २२८२७. (+) प्रतिक्रमणसूत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैवे., (२२.५X११, ११४२७-३० ). १. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ ८अ, संपूर्ण. आवश्यक सूत्र- प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.सं., प+ग, आदि: णमो अरिहंताणं० जयउ; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी. Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org २. पे. नाम वीरजिन स्तुति, पृ. ८अ संपूर्ण. 9 महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. दीपावली स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: संस्तौमि वीरं विभुं श्लोक - १. २२८३०. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२२x११.५, १३४३०-३४), " पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपर्युषणा पर्वणि; अंति: धरणेंद्रसूरी वर्तमान. २२८३२. विक्रमराजा चौपाई व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७६९, ग्रहरसअब्धिइंदु, श्रावण शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कु पे. २, ले. स्थल वनग्राम, प्रले. पं. शांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२२.५x११, १४४३३४१). १. पे. नाम. विक्रमराजा श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: वीसलक्ष सामंत सुभट; अंतिः श्रीविक्रम जयवंत चुअ, गाथा - १. २. पे. नाम विक्रमादित्यक्षीपरा चौपाई, पृ. १अ - १२आ, संपूर्ण. खापराचोर चौपाई, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: सरसति माता समरिए नित; अंति: मतिमंदिर सुख थाइ, ढाल - १७. २२८३६. मयणरेहा रास, संपूर्ण, वि. १८८०, पौष कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले, मु. उमेदचंद ऋषि पठ, मु. मोतीचंद (गुरु मु. उमेदचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२३.५४११.५, १३-१४४२६-३० ). मदनरेखासती रास, मु. हीर ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि जोवो मांस दारु थकी; अंति हीरे सेवक चित्त लाए, गाथा - १५७. २२८३७. मेरुतेरस कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १३+१ (७) = १४, दे., (२२x११.५, १२-१३x२७). मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भारतीं; अंतिः समुक्तिसाधनं कृतः . २२८३८. सज्झाय, स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५x११.५, ९४२० ). १. पे. नाम पद्मावती आराधना, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सह गुरु पद प्रणमी; अंति: ए भणीया गुणीया एकवीस, गाथा - ७. ३. पे. नाम समेतशिखरगिरि स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, २४३ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हिवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटे तत्काळ, ढाल -३, गाथा - ३८. २. पे नाम. आवकइकवीसगुण सज्झाय, पृ. ४अ - ५अ, संपूर्ण सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्म, वि. १७४४, आदि: तोय नमो नमो समेतशिखर; अंति: ( - ), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है. ) २२८३९. सामायिक विधि सूत्रयुक्त, संपूर्ण, वि. १९२५, फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. खंतिविजय; पठ, श्राव, कस्तूरचंदजी मुहता, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २३१२, ११x२५). सामायिकादि विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं०; अंति: मिच्छामिदुक्कडं. २२८४०. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५३, चैत्र कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. सोजत, प्रले. मु. ताराचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२x११.५, १२x२१ - २५). पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंतिः श्रीसंघ मंगल करे, डाल-५, गाथा ५६. २२८४१. मयणरेहा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. सा. चंद्रमा (गुरु सा. गुमानाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२, १७-१८४३७-४१). For Private And Personal Use Only मदनरेखासती सज्झाव, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिय; अंतिः पोहचइ मोक्ष मझारि, गाथा - १६०. २२८४३. एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. मु. मनमोहनविजय; पठ. श्राव. कस्तूर माका, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२१.५x१२, ११x२९-३०), Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची एकादशीपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८१८, आदि: सकल सुरासुर नत चरण; अति: लक्ष्मीसूरि जयंकरो, ढाल-७. २२८४४. दीपावली कल्प व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९१५, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, कुल पे. २, ले.स्थल. योधपुर, प्रले. पं. तिलोकचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, जैदे., (२४४११.५, ६४२७-३७). १. पे. नाम. दीपोत्सव कल्प, पृ. १आ-२९आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व कल्प, प्रा.,सं., प+ग., आदि: उप्पायविगमधुवनयमसिस; अंति: सोहियव्वो सुयहरेहिं, गाथा-१३५. २. पे. नाम. सामान्य श्लोक, पृ. ३०अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. २२८४५. सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. मोलाग्राम वमाडदेश, प्रले. मु. भाग्यसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, १३४३६-३७). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: कृतिमहतां मंडनमिदं, श्लोक-१००. २२८४६. (-) पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११.५, १२-१४४३४-३८). पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: यत्सत्यं त्रिषु लोके; अंति: तस्या पासककेवली, श्लोक-२५०. २२८४९. (+) जिनपंजर व ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. देवकृष्ण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१.५४१२, ९४२३-२६). १.पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं कमलप; अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. २. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. ३आ-७आ, संपूर्ण. आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: ऊँ आद्यंताक्षरसंलिख; अंति: परमानंदसंपदं, श्लोक-८१, ग्रं. १५०. २२८५०. स्नात्र पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. राजेद्रेग, प्रले. पं. कांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१२, १०४३३). स्नात्रपूजा, आ. मंगलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १३वी, आदि: पूर्वे पंचतीर्थि; अंति: उच्छलंति सलिलधारा. २२८५१. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र व ज्योतिषश्लोक, संपूर्ण, वि. १८९६, फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, १०४२६-२८). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. ज्योतिषश्लोक, पृ. ५आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. २२८५३. धन्ना-शालीभद्र चउपड़, संपूर्ण, वि. १८२८, कार्तिक कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. पींडवाडा, प्रले. ग. कपूरविजय (गुरु पंन्या. केसरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीमाहावीरजीजिन प्रसादात्., जैदे., (२४४१२, १५४३२-३३). शालिभद्रमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, ढाल-२९, गाथा-५१४. २२८५६. भक्तामर की भाषा, पंचकल्याणक गीत व विवेक जकडी संग्रह, संपूर्ण, वि. १७४७, श्रावण कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ७, प्रले. मु. हेमराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४११.५, १४-१६४३०). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र भाषानुवाद, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: आदि पुरूष आदिस जिन; अंति: भावसु ते पामै सिवखेत, गाथा-४९. २. पे. नाम. पंचकल्याणक मंगल गीत, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, पुहिं., पद्म, आदि: पणमवि पंच परम गुरु; अंतिः जिनदेव चड संघह जयो, ढाल - ५, गाथा - २५. ३. पे, नाम, विवेक जकडीगीत, पृ. ८आ ९अ, संपूर्ण, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चिरु भूलिउ भमिउ; अंतिः इह संसार कुं वासते, गाथा - ५. ४. पे नाम, विवेक जकडी, पृ. ९अ ९आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वादि अनादि गवायौ जीव; अंतिः रत्नत्रय हि आराधि, गाथा - ५. ५. पे. नाम. विवेक झकडी, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण. विवेक जकडी, कविदास, मा.गु., पद्य, आदि: तुम्ह त्रिभुवनपति हो; अंतिः परम महासुख चाहहुं, गाथा ४. ६. पे. नाम. विवेक झकडी, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. विवेक जकडी, मु. रूपचंद, मा.गु., पच, आदि; चेतन तेरो दानौ चेतन; अंतिः अब चित्त चेति सवाने, गाथा - ५, ७. पे. नाम. औपदेशिक झकडी, पृ. ११अ - ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक जकडी, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जीव मिथ्यात उदै चिरु; अंति: जीव शिवसुख लहू लहै, गाथा - ५. २२८५८. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ५, प्र. वि. अंत में नवीन कृति का प्रारंभिक शब्द "सिद्धारथना" ही होने से कृति का पता नहीं चल रहा है. अतः उसे संकलित नहीं किया है., जैदे., (२३४१२, १५४२९). १. पे नाम. आठदृष्टिगर्भितवीरजिन स्तवन, पृ. १अ - ५आ, संपूर्ण. अष्टदृष्टिगर्भित वीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि मित्रा तारा बला; अंतिः वाचक जश इम बोलेजी, ढाल -८, गाथा - ७६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन अध्यात्म स्तवन, पृ. ५आ - ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पूजाविधि मांहे भावीय; अंति: वाचक जस क देव, गाथा - १७. ३. पे. नाम. दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: दृष्टि रागें नवि; अंतिः कहे हित शिख मन धरजो, गाथा - ११. ४. पे नाम, इरियावही सज्झाय, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदिः श्रुतदेवीना चरण नमी; अंति: विनयविजय उवझाय रे, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि जय जय श्रीअरिहंत; अंतिः कुशला कुं भासै रे. २. पे. नाम. नवपद स्तुति संग्रह, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. २४५ ढाल - २, गाथा- २३. ५. पे. नाम आयंबिलतप सज्झाय, पृ. ८अ - ८आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: समरी श्रुतदेवी शारदा; अंति: भाखे विनयविजय उवझाय, गाथा - ११. २२८६४. नवपद स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., ( २४x११.५, १३-१४x२८-३२). १. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १अ ५अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सकल द्रव्य पर्याय; अंति: इश्वरसे मुख भाखीजी, गाथा - ९. २२८६५ (+) ऋषिमंडल स्तोत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, श्लोक ७१ तक है, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैये. (२४४१२, ९x४५-४८). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयप्रमुखार्हता; अंति: (-). ऋषिमंडल स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: ऋषभादिजिनेंद्राणां; अंति: (-). २२८६९. नवस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, जैदे., (२३१२, १०x२६ - २९). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ - १६अ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: शिवं भवतु स्वाहा, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १६अ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण तक है.) २२८७१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, कुल पे. ३६, दे., (२४४१२, १३४२६-३२). १. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गोयम सूणो; अंति: भाख्या वयण रसालो रे, गाथा-२१. २. पे. नाम. १० बोल सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्यादवादमत श्रीजिनवर; अंति: सिद्धांत रतन बहुमोल, गाथा-२१. ३. पे. नाम. कुगुरुपच्चीसी, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु केरि परिक्षा; अंति: रत्नविजय इम बोलेजी, गाथा-२५. ४. पे. नाम. असज्झाय सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंति: वहेला वरसो सिद्धि, गाथा-११. ५. पे. नाम. नवपद सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुने सुरमण थकी; अंति: लहैजी अखय अमर जिनचंद, गाथा-७. ६. पे. नाम. कुमति सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अबके जोग मील्यो छे; अंति: मेडते आतम काज सुधारो, गाथा-१४. ७. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समदम गुणना आगरुजी; अंति: साधुतणी ए सज्झाय, गाथा-१४. ८. पे. नाम. सनतकुमार सज्झाय, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. सनत्कुमार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: सुरनर परसंशा करे; अंति: कहे गायो सांतिकुमारो, गाथा-१६. ९. पे. नाम. होली सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.. होलिकापर्व सज्झाय, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: नवगाटी नवल वर पाया; अंति: राखे सबसे वात अधुरी, गाथा-१६. १०. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. ९अ-११अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराज तणी; अंति: सहीने पोहता शिवपुरी, गाथा-४१. ११. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-तपवर्णन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कीयो छे मास पांच दिन; अंति: समयसुंदर सुखकार, गाथा-१०. १२. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: लही हे वीरजिणवर कही, गाथा-२१. १३. पे. नाम. पंचपांडव सज्झाय, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलु; अंति: मुज आवागमण निवार रे, गाथा-२०. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहिं., पद्य, आदि: मुरख कुंभावे नहि रे; अंति: आगे इच्छा थांरि रे, गाथा-१७. १५. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेवी माता कहे; अंति: वरत्या जय जयकारो रे, गाथा-१७. १६. पे. नाम. जंबुस्वामी सज्झाय, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संयम लेवा संचर्या; अंति: रे धन जगमा अवतारे, गाथा-१६. १७. पे. नाम. गर्भावासदुख सज्झाय, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: तने संसारी सुख किम; अंति: मलवो छे महामुसकिल जो, गाथा-९. १८. पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहे ब्रह्मराय; अंति: कहै ते सिवपद लेशे हो, गाथा-२०. १९. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: राणी राजील करजोडी; अंति: गुण गाय श्रीकार रे, गाथा-१६. २०. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: तस हरखे नामुंशीश हो, ढाल-३, गाथा-१२. २१. पे. नाम. कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. २०अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर गण; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) २२. पे. नाम. देवानंदा सज्झाय, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखो अति; अंति: पछेह प्रकासी वाणी, गाथा-१२. २३. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामीने वीनहु; अंति: धनाजी आज नही सुकाल, गाथा-१३. २४. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. २२अ-२३आ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवै रे; अंति: भणै ते सुख लहे, ढाल-५. २५. पे. नाम. रुक्मिणी सज्झाय, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामोगाम; अंति: जाय राजविजय रंगे भणे, गाथा-१४. २६. पे. नाम. आत्मोपदेश सज्झाय, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमुं; अंति: नीत आनंदघन सुख थाय, गाथा-१०. २७. पे. नाम. अढारनातरा सज्झाय, पृ. २५अ-२७अ, संपूर्ण. मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेला ते समरूं पास; अंति: गुण गायरे मन रंगीला, ढाल-३, गाथा-३६. २८. पे. नाम. पृथ्वीचंद्रमुनि सज्झाय, पृ. २७अ, संपूर्ण. पृथ्वीचंद्र अने गुणसागरनी सज्झाय, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक सुखकरु वंदी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम दूहा ही लिखा है.) २९. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण.. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीस्थूलिभद्र मुनि; अंति: तेहने करीए वंदना जो, गाथा-१७. ३०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: थारी फूलसीं देह पलक; अंति: इन से खरी आविलासा रे, गाथा-५. ३१. पे. नाम. मोक्षनगर सज्झाय, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, रा., पद्य, आदि: मोक्षमारग महारु; अंति: मुक्तिनो गुण जाण, गाथा-५. ३२. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत सामीने विनQ; अंति: नामे हो जय जयकार, गाथा-१५. ३३. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण. मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हलाहल कलजुग चल आयो; अंति: कहे धर्मध्यान कीजे, गाथा-१०. ३४. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: संयमथी सुख पामीये; अंति: जिनहर्ष० कठोर कुमरजी, गाथा-९. . २९अ-२९आतमुक्तिनो गणना विमलसूरि, मा For Private And Personal use only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३५. पे. नाम. सुगुरुपच्चीशी सज्झाय, पृ. ३०आ-३२अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू पिछाणो एणे; अंति: शांतिहर्ष उछरंगजी, गाथा-२५. ३६. पे. नाम. इलाचीकुमार सज्झाय, पृ. ३२अ-३३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीये; अंति: करे समयसुंदर गुण गाय, गाथा-२७. २२८७२. (+-) स्तुति संग्रह व मुहपत्ति के ५० बोल, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, कुल पे. ११, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४४१२.५, ९-१०x१४-२२). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: नंदसूरि पाय सेवता, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ तक नहीं है.) २. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दया तणो सायर मुक्ति; अंति: तणै चित्त समाधि पुरै, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार; अंति: हुओ मे नाण धारा, गाथा-४. ५. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनस्य; अंति: संघस्य भूयात्सदा, श्लोक-४. ६. पे. नाम. स्नातस्या स्तुति, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ७. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४.. ८. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: ते शांतिभद्रंकराः, श्लोक-४. ९. पे. नाम. मुहपत्ति के ५० बोल, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मुहपत्ति पडिलेहण के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्वमोहनीय१; अंति: निर्मलदृष्टि जोइये. १०. पे. नाम. उपकेशगच्छ स्तुति, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सप्तत्यावस्थराणां; अंति: सिद्धांतविचारदक्षाः, श्लोक-४. ११. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) २२८७३. वंगचूलीय पयन्ना, व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, ९x४५-४९). १. पे. नाम. वंगचूलिका प्रकीर्णक, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिब्भरनमियसुरनर; अंति: दढचित्तो होह पइदियहं. २. पे. नाम. विविध विचार संग्रह, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. विविध विचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २२८७४. सज्झाय व गुंहली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२६, कार्तिक कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ६, ले.स्थल. खेडा, प्रले. पं. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२.५, १४४३२-३८). १. पे. नाम. नयविचारमय शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिणेसर केसर; अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल-६. For Private And Personal use only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २. पे. नाम. अष्टादशपापस्थानकवर्जन सज्झाय, पृ. ३आ-११अ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलुं कहि; अंति: वाचक जस इम आखिंजी, सज्झाय-१८. ३. पे. नाम. समकितनिश्चयकरण स्वाध्याय, पृ. ११अ-१५अ, संपूर्ण. समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६७. ४. पे. नाम. सुधर्मस्वामी गुंहली, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामीगणधर गहुँली, मा.गु., पद्य, आदि: चोनाणी चोखे चित्ते; अंति: लहे सुख श्रीकार हो, गाथा-७. ५. पे. नाम. गौतमस्वामी गुंहली, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी गहली, मा.गु., पद्य, आदि: बिहनी अपापानयरी; अंति: सह जे जे भणो रे, गाथा-५. ६.पे. नाम. नामस्थापनाद्रव्यभाव गुंहली, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: आत्मरुचि गुणधारणी रे; अंति: कहि राम सदागम रीत रे, गाथा-७. २२८७५. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन अधिकमास कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. पं. विजयसागर; पठ. श्राव. हमीरमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२४१२.५, ३४२१-२२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जी० जीवतत्त्व१ अरुपी; अंति: सिद्ध ऋषभदेव प्रमुख. २२८७६. पाक्षिक अतिचार व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, दे., (२२.५४११.५, १६-१८४४४). १.पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणइ; अंति: पक्षदिवस माहि. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, क. चतुर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु चरण नमि सीस; अंति: कवि चतुरने लीलविलासी, गाथा-८. ३. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठीनें नित नमुं; अंति: चतुरने कोडकल्याण, गाथा-११. ४. पे. नाम. बीज स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरस वचनरस वरसती; अंति: तस घर लील विलास ए, ढाल-२, गाथा-१०. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ___ मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी मनरंगो; अंति: सुंदर वयण थारा, गाथा-९. २२८७८. स्तवन, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३-४(३,२० से २१,७२)+३(४,५७,६८)=७२, कुल पे. ३९, जैदे., (२१४११.५, १२४३१). १. पे. नाम. मुनिमालिका, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने गलती से पत्रांक ३ देने की जगह ४ दिया है. पाठ क्रमशः है. मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: रिषभ प्रमुख जिन पाय; अंति: सदा कल्याण कल्याण, गाथा-३७. २. पे. नाम. तीर्थावलीशाश्वतीचैत्यप्रतिमा स्तवन, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. तीर्थावली, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभानन वर्धमान चंद्र; अंति: सदा मुझ परिणाम ए, ढाल-५, गाथा-१८. For Private And Personal use only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम, चोवीसदंडकगतिआगति स्तवन, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण, २४ दंडक गतिआगति स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमहावीर नमुं; अंति: समयसुंदर० एह विचार, गाथा - १३. ४. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीप स्तवन, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि नंदीसर बावन जिनालये; अंतिः जिनचंद्र गुण गावै रे, गाथा-१५. ५. पे. नाम, असज्झाय कुलक, पृ. ९अ-१०अ संपूर्ण, , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir असज्झाय सज्झाय, मु. हीर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रावण काती मिगसिर; अंति: नाम कहे इण परे रे, गाथा - १५. ६. पे. नाम. २४ जिनदेहमान स्तवन, पृ. १०अ - १०आ, संपूर्ण. मु. रंगविनय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं ऋषभ जिनेसर; अंति: रंगविनय प्रणमे उछरंग, गाथा-१५. ७. पे. नाम. २४जिन स्तवन- आयुचतुर्विधसंघसंख्यागर्भित, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- आयुचतुर्विधसंघसंख्यागर्भित, मु. रंगविनय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव प्रणमं अंतिः रंग० प्रणमे हित घणे, गाथा- १३. ८. पे. नाम, काउसमा ओगणीसदोष सज्झाय, पृ. १२-१२आ, संपूर्ण. काउसण १९ दोष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव समरी अरिहंत; अंतिः नयविमल कहै निशिदीश, गाथा - १४. ९. पे. नाम. चौवीसजिन अंतरकाल देहायु स्तवन, पृ. १३अ - १५आ, संपूर्ण. २४ जिन अंतर काल देहायु स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्म, आदि: पंचपरमेष्ठि मन शुद्ध, अंतिः धरमसी मुनि इम भणे, गाथा - २९. १०. पे नाम. १७भेद जीवअल्पबहुत्व स्तवन, पृ. १६अ १८अ, संपूर्ण. १७ भेद जीवअल्पबहुत्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत केवलज्ञान; अंति: जिम देखु परतिखपणे, ढाल - ३, गाथा - १८. ११. पे. नाम. सामायिकव्रत स्तवन, पृ. १८अ - १९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर पय पंकज नमी; अंति: (), (पू.वि. गाथा २४ तक है.) १२. पे नाम, पुण्यछत्रीसी, पृ. २२अ २३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि (-); अंति: फल परतक्ष जी, गाथा- ३६, ( पू. वि. गाथा - १९ अपूर्ण तक नहीं है. ) १३. पे. नाम. कर्मबत्तीसी, पृ. २३अ - २५आ, संपूर्ण. कर्मवत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: करम तणी गति अलख; अंतिः थाये सुख अपारजी, गाथा - ३२. १४. पे. नाम बंधछत्रीसी, पृ. २५आ-२८अ संपूर्ण. बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण-सज्झाय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: सासन नायक वीर जिनेसर; अंतिः सुखसौभाग्य अपारजी, गाथा-३६. १५. पे नाम, उपदेशबत्तीसी, पृ. २८अ ३०आ, संपूर्ण. मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: आतमराम सयाना तुम तो; अंति: सदगुरु शीख सुणीजै, गाथा - ३२. १६. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ३०-३१अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीविमलाचल सिर तिलौ; अंतिः अविचल लील विलास, गाथा - ११. १७. पे नाम, शीतलजिन स्तवन, पृ. ३१अ - ३२आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा साहेब हो; अंति: समयसुंदर ० जनमन मोहए, गाथा - १५. १८. पे. नाम. रावाबत्तीसी, पृ. ३२-३४आ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org श्राव. राचो, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जागरे सोवे; अंति: रुडां कहै छे राचो, गाथा-३२. १९. पे. नाम. चोवीसदंडकगतिआगति स्तवन, पृ. ३४-३६अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ दंडक गतिआगति स्तवन, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., पद्य, आदिः आदीसर हो सोवन काय; अंति: त्रिभुवन सुरतरु तोले, डाल- २. २५१ २०. पे नाम. सचित्तअचित्तनी सज्झाय, पृ. ३६-३८अ संपूर्ण. सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि प्रवचन अमरी समरी; अंतिः नवविमल कहे सज्झाय, गाथा - २७. २१. पे. नाम गणधरसंख्यागर्भित चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ३८अ ३९आ, संपूर्ण चतुर्विंशतिजिन स्तवन- गणधरसंख्यागर्भित, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६५७, आदि: पासजिणेसर प्रणमु पाय; अंति: पभणे संघने संपति करे, ढाल - ५, गाथा - १७. २२. पे. नाम. जिनपूजा स्तवन, पृ. ३९आ - ४०आ, संपूर्ण. मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमुखे जिणसर अंतिः पुण्यसागर इम बोले रे, गाथा १५. २३. पे. नाम. ३४ अतिशय स्तवन, पृ. ४०आ - ४१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनरिंदमल्हार; अंति: अवर न कांइ इच्छिये ए, गाथा - २१. २४. पे. नाम. गणधरसाधुसाध्वीसंख्या स्तवन, पृ. ४९आ - ४५आ, संपूर्ण. - उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तीर्थंकर चडवीसां; अंतिः समयसुंदर कहे छे चउपई, ढाल ३, गाथा - ५७, २५. पे. नाम. आहारदोषछत्तीसी, पृ. ४५आ-४७आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: त्रिकरण सुद्ध नमुं; अंति: आण अखंडित वहो, गाथा - ३६. २६. पे. नाम. बीसस्थानक स्तवन, पृ. ४८अ ४९आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, मु. भक्तिरंग, मा.गु., पद्य, आदि: भले भाव मनरंग चंग वर; अंति: इण तप अवर न कोइ तोले, डाल-३, गाथा - १२. २७. पे. नाम ऋषभदेवजिनगर्भितविज्ञप्ति स्तवन, पृ. ४९अ ५१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु पणमिअ देव; अंतिः विजयतिलक निरंजणो, गाथा - २१. २८. पे. नाम. वीसविहरमानजिन मातपितानाम स्तवन, पृ. ५१आ - ५३ अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन- मातपितानामगर्भित, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम सीमंधरजिन; अंतिः तो दूर प्रमाद ए, गाथा - १८. २९. पे. नाम. चौवीसजिन स्तवन- आयुदेहमान अंतरकालगर्भित, पृ. ५३अ - ५६आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन- आयुदेहमान अंतरकालगर्भित, मु. कनकविलास, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पणमी परमानंदसु परतिख; अंतिः कनकविलासे शुभ मने, गाथा- ४३. ३०. पे. नाम. गतिआगति स्तवन, पृ. ५६आ - ५७अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चौवीस दंडग उपरे रे; अंति: ज्यारा कटे कर्मजाल, गाथा - १७. ३१. पे. नाम. चोवीसदंडक तेवीसपदवी स्तवन, पृ. ५७-५८अ, संपूर्ण. २४ दंडक २३ पदवी स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस दंडक उपरे पदवी; अंतिः दिन दिन सुख सवायोजी, For Private And Personal Use Only गाथा - १७. ३२. पे. नाम. ऋषभदेवजी आत्मआलोयण स्तवन, पृ. ५८अ - ६१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः आदीसर पहिलो अरिहंत; अंति: सुपरे सफल आपण गणि, ढाल - ४, गाथा - ५४. ३३. पे. नाम. चैत्रीपूनम स्तवन, पृ. ६१अ - ६३आ, संपूर्ण. Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चैत्री पूर्णिमापर्व स्तवन, मु. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय प्रणमी रे जिनवरना; अंतिः साधुकीरति इम कहै, गाथा - १३, (पू.वि. अंत मे चैत्रीपूनम की विधि दी हुई है. ) ३४. पे, नाम, नवकारवालीगुणन स्तवन, पृ. ६४अ - ६४आ, संपूर्ण नवकारवाली स्तवन, मु. रिषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार मन ध्याइये; अंतिः भणे धरु सिर जिनवर आण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १३. ३५. पे नाम, नंदीसरजिनालय स्तवन, पृ. ६४-६५आ, संपूर्ण. शाश्वतजिन स्तवन- नंदीश्वरद्वीप, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसरवर दीप मझारि; अंति: नमुं सवे बिंब, गाथा - ११. ३६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ६५आ - ६६आ, संपूर्ण. मु. नेमिरंग, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसमां प्रणमु; अंति: प्रभु तणो जस बाद ए. गाथा - १५. ३७. पे. नाम. पिस्तालीसआगम स्तवन, पृ. ६६आ - ६८अ, संपूर्ण. ४५ आगम स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचनमायना पाय नमी; अंति: इम नरभव लाहो लीजे रे, गाथा - १३. ३८. पे. नाम. बारभावना, पृ. ६८अ - ७१आ, संपूर्ण १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि आदिसर जिणवर तणा पदप; अंतिः एह भणता शिवसुख थाये, ढाल -१२, गाथा - ७२. ३९. पे, नाम, अज्ञात रास, पृ. ७३अ ७३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. अपूर्ण जैन काव्य / चैत्य / स्त / स्तु / सझाय / रास / चौपाई / छंद / स्तोत्रादि *, प्रा., मा.गु. सं., हिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). " २२८७९. दानशीलतपभाव सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे ५, जैदें. (२१.५X१०.५, १४X३२-३४). १. पे. नाम, दानशीलतपभावना चौडालियो, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल - ४. २. पे. नाम. जिन पद, प्र. ५अ ५आ, संपूर्ण साधारणजिन पद, पुहिं, पद्य, आदि: साहिब तेरी बंदगी मै; अंतिः भव करम मेटिये सही, गाथा-६, ३. पे. नाम. जिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. चानत, पुहिं., पद्य, आदिः ये है महबूब हमारा; अंतिः चानत देखि सवाना, गाथा ४. ४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रत्नउमेद, रा., पद्य, आदि: परत न छांडां थारी; अंति: धिग धिग यो संसार, गाथा - ५. ५. पे. नाम, नेमजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण, नेमराजिमती पद, मा.गु., पद्य, आदि: जब रथ दूर गयो तब, अंतिः श्याम विषै० सिव सेती, गाथा-७. २२८८०. स्तवन संग्रह, छंद, स्तोत्र व १६ सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ८, जैवे., (२३४१०.५, १२x२८-३२). १. पे. नाम. पंचमीतपफल स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण, ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-वृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमी श्रीगुरुपाय; अंतिः भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल - ३, गाथा - २४. २. पे. नाम, महावीरस्वामी स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: भग पसंसीयो, गाथा - १९. ३. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. ३आ-५अ संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २५३ मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत वचन द्यौ सरसिति; अंति: लाख लख रीझा लहै, गाथा-२६. ४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तार किरतार संसार; अंति: ते तरै जे रहै पासे, गाथा-४. ५. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. आ. तिलकसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद लागुंतोरै पाय; अंति: गुण गाता हर्ष अपार, गाथा-१९. ६. पे. नाम. छलेश्या स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. षड्लेश्या स्तवन, आ. तिलकसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: छ पंथी मिल दिसावर; अंति: ध्यानीने करो प्रणाम, गाथा-७. ७. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अह; अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ८. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. मु. त्रिकम, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीरिषभ तणी धुया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) २२८८१. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३०, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, ले.स्थल. बेन्नातट, प्रले. मु. लालचंद; पठ. श्राव. नंदलालजी काना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१०.५, १२४३३-३४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्राष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवेंद्रवंदा; अंति: तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक-९. २. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. शारदा स्तवाष्टक, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: कला काचित् कांता न; अंति: श्रीभारती सा मम, श्लोक-८, (वि. अंतिम गाथा अन्यकर्तृक प्रतीत हो रही है.) ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंत समस्तलोक; अंति: भवत्युत्तम संपदः, श्लोक-९. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, म. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: श्रेयो दधानं कमला; अंति: श्रेयसे श्रीविलासं, श्लोक-१७. २२८८२. गीत-भास-गुंहली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ८, दे., (२३.५४११, ११४३१). १. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनहर्षसूरि भास, मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु महिर करी अवधरी; अंति: नमे निज कर जोडी, गाथा-७. २. पे. नाम. शत्रुजयगिरि स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रंगवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सेर्बुजानो स्वामी; अंति: रंगवर्द्धन सुखकार, गाथा-७. ३. पे. नाम. से@जय गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ गीत, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि कंता हो; अंति: दोलत पाइ सिव तणीजी, गाथा-९. ४. पे. नाम. जिनहर्षसूरि गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: मारी सहीया हे; अंति: गावै सुंदर एम, गाथा-९. ५. पे. नाम. गुरुगुण गुंहली, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हारे म्हारै गुरूदेव; अंति: सुखसंपद परमानंदतारे, गाथा-५. ६. पे. नाम. जिनभक्तिसूरि भास, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गह महमाती चेहट्टे; अंति: भावे है गावे रुपचंद, गाथा-७. ७. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि भासस्तुति, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि भास, उपा. जयमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही सदगुरु; अंति: रहज्यो जिम रविचंद, गाथा-११. ८. पे. नाम. जिनहससूरि पद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. हितकमल, मा.गु., पद्य, वि. १९२८, आदि: श्रीजी पधार्या हो; अंति: हितमकमल कही ए ढाल, गाथा-६. २२८८३. चैत्यवंदन संग्रह व पार्श्वजिन स्तोत्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१)=११, कुल पे. १३, ले.स्थल. नवानगर, जैदे., (२२.५४१२.५, १३४२८-३०). १. पे. नाम. सीद्धाचल चैत्यवंदन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: निसदिन करु कल्याण, गाथा-३, (पू.वि. प्रथम गाथा नहीं है.) २. पे. नाम. शांतिनाथ चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमां जिनवर शांति; अंति: लहिये कोड कल्याण, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमनाथ चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह समे प्रणमुनेम; अंति: अहनिस कर प्रणाम, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणी पास० नील; अंति: प्रगटे परम कल्याण, गाथा-३. ५. पे. नाम. महावीरस्वामी चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जगदाधार सार सिव; अंति: आपौ करि सुपसाय, गाथा-३. ६. पे. नाम. नवपल्लव स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवपल्लव, ग. लक्ष्मीलाभ, सं., पद्य, आदि: उद्यत्फणामुकुटभूषित; अंति: नवपल्लवपार्श्वनाथ, श्लोक-५. ७. पे. नाम. चैत्यवंदन चोवीशी, पृ. ३अ-६आ, संपूर्ण. चैत्यवंदनचौवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पद्मविजय विख्यात, चैत्यवंदन-२४. ८. पे. नाम. शाश्वताजिन नमस्कार, पृ. ७अ, संपूर्ण. शाश्वताअशाश्वताजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कोडी सातने लाख बहोतर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक ही लिखा है.) ९. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. साधविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: तणो सीष्य कहे करजोडि, गाथा-५. १०. पे. नाम. पार्श्वनाथ चैत्यवंदन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐकाररूपं परमेष्ठी; अंति: कुर्वंते सदा सदेह, श्लोक-६. ११. पे. नाम. वीसविहरमान चैत्यवंदन, पृ. ८अ-११आ, संपूर्ण. चैत्यवंदनवीशी, म. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर आदिइना; अंति: मिच्छामि दुक्कडं तेह, चैत्यवंदन-२०. १२. पे. नाम. एकसोसित्तेरजिन चैत्यवंदन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सीमंधर तणा; अंति: जीवनी केसर लोक नमावे, गाथा-९. १३. पे. नाम. विहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. १२अ, संपूर्ण. मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: रीखभांकित सीमधरो गज; अंति: केसर कहे दुख भांजे, गाथा-६. २२८८४. अजितशांति स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. मुंबई, प्रले. मु. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदेश्वरजी प्रसादात्., दे., (२३४१२.५, ४४२५-२७). For Private And Personal use only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह गाथा- ४०. अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जीत्या जेणे सघलाई अंति: सुख प्रते पामे. २२८८६. सम्यक्त्वसत्तरी सह अवचूरि व पुद्गलपरावर्त विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ., जैवे. (२४४१२, ६- ९४५०-५५). " १. पे. नाम. सम्यक्त्वसप्ततिका सह अवचूरी, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दंसणसुद्धिपयासं; अंति: दंसणसुद्धि धुवं लहह, गाथा- ७०. सम्यक्त्वसप्ततिका - अवचूरि, मु. सोमप्रभसूरि-शिष्य, सं., गद्य, आदि: दृश्यते यथावत्पदार्थ; अंति: मंगलस्तवा कृता. २. पे. नाम. पुद्गलपरावर्त्तन विचार, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. पुलपरावर्त भेद, मा.गु., गद्य, आदि: औदारिक वैक्रिय तेजस अंतिः करी सुखे मोक्ष पामे. २२८८७. चेतन कर्म चरित्र व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, ले. स्थल. योधनगर, प्रले. पं. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५x१२, २८x४६-४९). १. पे. नाम. चेतनकर्म चरित्र, पृ. १अ - ५आ, संपूर्ण. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि सम्यक्ज्ञान नही उर अंतिः मेरे भावे मूढ है, गाथा-४. ३. पे. नाम. चौदविद्यानाम छप्पय, पृ. ५आ, संपूर्ण. २५५ चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: श्रीजिनचरण प्रणाम; अंति: भगवतीदास कही अनादि, गाथा २९६. १४ विद्यानाम छप्पय, पुहिं., पद्य, आदि: बह्मम्यान चातुरी बान; अंतिः वैदके विधान परवीनता, पद- १. २२८८८. जयदेव कथा व जिनगुणप्रशस्ति बोल, संपूर्ण, वि. १८५६, चैत्र शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, पठ. पं. वल्लभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २३x१२.५, १२-१३X२८-३६). १. पे. नाम. जयदेव कथा, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: वसंतपुर नगरे; अंतिः सुखं प्राप्स्यते. २. पे. नाम. जिनगुण प्रशस्ति, पृ. ५आ, संपूर्ण. जिनगुणप्रशस्ति बोल, मा.गु., गद्य, आदि: भगवान त्रिलोक्य तारण; अंतिः शुद्धिह करी सांभलो. २२८८९. स्तवनचौवीसी सह बालावबोध, जखडी व गीत, संपूर्ण, वि. १८७८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३८, कुल पे. ३, ले. स्थल. बोधनगर, प्रले. पं. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ, जैये. (२४४१२.५, १-५४४५-४९) " १. पे नाम. स्तवनचीवीसी सह बालावबोध, पृ. १आ-३८अ, संपूर्ण, स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिणंदशुं प्रीतडी; अंति: पूर्णानंद समाजोजी, For Private And Personal Use Only स्तवन- २४. स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथ प्रमुख; अंति: मोक्षनो परम उपाय छे. २. पे. नाम जखडी, पृ. ३८आ, संपूर्ण. औपदेशिक जकडी, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत चरणे चित्त; अंतिः कीये ही सुख पावहु, गाथा-८. ३. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन गीत, पृ. ३८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत- चिंतामणि, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि चिंतामणि पास चिंता; अंतिः सागर एम पभणे रंगे रे, गाथा - ७. २२८९३. समाधिशतक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, वोधपुर, प्रले. पं. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ, जैवे. (२३.५४१२ ३०-३१x४२-५०). Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५६ www.kobatirth.org - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ५वी, आदि: सिद्धं जिनेंद्रमलम; अंति: दधिगम्य समाधितंत्रम्, श्लोक-१०५. समाधिशतक टीका, आ. प्रभाचंद्र, सं., गद्य, आदिः अत्र च पूर्वार्द्धन, अंति: प्रभेदुः प्रभुः. २२८९४. नवाणुंप्रकारी पूजा व अरिहंत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१७, पौष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले. स्थल. वडनगर, प्रले. श्राव. वैद्य शिवराम मलुकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमहावीर प्रसादात्., जैवे. (२३.५x१२, १०-११५२६-२८). १. पे. नाम. ९९ प्रकारी पूजा, पृ. १आ - ११अ, संपूर्ण. ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४ आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंतिः आम आप ठरायो रे, ढाल - ११. २. पे. नाम. अरिहंत सज्झाय, पृ. ११अ - ११आ, संपूर्ण. मु. शुभवीर, मा.गु., पद्य, आदि धन धन श्रीअरिहंतने; अंतिः शिवकमला घर वास सलुणा, गाथा ५. २२८९६. धनंजय नाममाला, संपूर्ण, वि. १९०४, फाल्गुन शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल मेडता, प्रले. केवलराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१२.५, १४- १६x२८-३१). धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंतिः शब्दाः समुत्पीडिताः, श्लोक-२०७, (वि. "रामनारायणकुंभिवत" इस तरह की प्रथम गाथा किसी जैनेतर विद्वान कर्तृक प्रतीत हो रही है. ) २२८९७. सिंदूर प्रकरण व धर्मोपदेश काव्य, संपूर्ण, वि. १८७१, माघ कृष्ण, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, प्रले. पं. रीद्धिसोम गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२x१२.५, ११-१३४१९-२४). १. पे नाम. सिंदूर प्रकरण, पृ. १आ - १६आ, संपूर्ण, सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम् श्लोक- ९८. २. पे. नाम. धर्मोपदेश काव्य, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैन श्लोक सं., पद्म, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक ७. 9 २२८९८. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९६१ श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२२x१२.५, १२x२७-२९). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्याभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति - २४, श्लोक- ९६. २२८९९. अवंतीसुकमाल स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. गलोडा, प्रले. मु. हीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२, १३-१५X३०-३४ ). अवंतीसुकुमाल स्वाध्याय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंतिः शांतिहरख सुख पावे रे, ढाल - १३, गाथा - १०५. २२९००. गुणकरंडकगुणावली रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७ - ४ (१ से ४) = १३, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., ( २३१२, १७ - २१४३०-३२ ) . गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: (); अंति (-), (पू.वि. ढाल ६ से ढाल - २८ गाथा - ११ तक है. ) २२९०१. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८५७, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. हरिदुर्ग, प्रले. मु. जयकुशल, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२३.५x१२.५, १६३०-३३ ). For Private And Personal Use Only स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति - २४, श्लोक-१६. २२९०२. (+) श्रीपाल रास सह टबार्थ - खंड ४ व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५०, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३५, कुल पे. २, ले.स्थल. वर्द्धमाननगर, प्रले. पं. कनकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४x१२.५, ७- ८४३५-४२). Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २५७ १.पे. नाम. श्रीपाल रास सह टबार्थ-खंड ४, पृ. १आ-३५आ, संपूर्ण, पू.वि. खंड-३ गाथा-४६ से खंड-४ संपूर्ण है., पे.वि. अंतिम ढाल पत्रांक-३५आ पर मूलमात्र लिखी गई है. श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उत्कंठा संपूर्ण थई, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ३५अ+३५आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २२९०३. बारभावना, संपूर्ण, वि. १८७२, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. नोरंगाबाद, प्रले. मु. उदयचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१२.५, १५-१६४३२-३६). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिणेसर पाय नमी: अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२६.। २२९०४. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८९४, पौष कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले. पं. पुण्यसुंदर (उएशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२.५, १२४२९-३१). मौनएकादशीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामीने; अंति: मोक्षना सुख पामे. २२९०५. सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८२३, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२२४१२, १३४२६-३३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-९९. २२९०६. धर्मोपदेश श्लोक सग्रंह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२३४१२.५, ६x२३-२५). धर्मोपदेश श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: शिष्टे संगः श्रुतौ; अंति: धर्मस्यैतत्फलं विदुः, श्लोक-३९, संपूर्ण. धर्मोपदेश श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शिष्टे क० उत्तम आदमी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक ___द्वारा अपूर्ण., श्लोक-८ तक ही लिखा है.) २२९०७. (+) पूजा प्रकरण व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४१२.५, २०-२२४२८-४०). १. पे. नाम. पूजा प्रकरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदि: स्नानं पूर्वोन्मुखी; अंति: जिणपूया अट्टहा भणीया, श्लोक-२१. २. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २२९०९. स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२४४१२, १०-१३४२४-३९). स्नात्रपूजा, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पार्श्वजिन कलश तक लिखा है.) २२९१०. चौवीसदंडके तेवीसपदवी गतिआगति विचार, संपूर्ण, वि. १८७६, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२४४१२, १०x२२-२८). २४ दंडक २३ पदवी गतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: बार गुणे करी विराजमा; अंति: पांच दंडकमाहे उपजै. २२९११. वीसविहरमान स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. सा. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२.५, १४४५३-५५). विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: सुजस महोदय वृंदो रे, स्तवन-२०. २२९१८. (+) चंदनबाला चौपाई, संपूर्ण, वि. १९७९, वैशाख शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. प्रतापगढ, प्रले. मु. मुनिचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२४४१२, १४-१७४४०). चंदनबाला चौपाई, पं. गणेशलालजी, मा.गु., पद्य, वि. १९७७, आदि: सीलवंती चंदणबालाजी; अंति: वे मन हृदय की ढाल, गाथा-१३२. For Private And Personal use only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२९२०. पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-१(४)=११, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४१२, ११४२५). पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अति: (-). २२९२१. बालचंदबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६, जैदे., (२३.५४१२.५, १२४२८-३१). बालचंदबत्रीसी, मु. बालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसरकुं; अंति: बालचंद० छंद जाणीई, गाथा-३३. २२९२४. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, स्तोत्र व स्तुति आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५५-८(११ से १२,१४ से १५,२२,३५ से ३७)=४७, कुल पे. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१.५४१३, ११४३०). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० जयउ; अंति: (-). २. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १३अ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सप्ततिसयजिन स्तोत्र गाथा-११ से कल्याणमंदिर स्तोत्र श्लोक-३८ तक है.) ३. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. २३अ-३४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति स्तवन गाथा-५ से सिग्घमवहरउ स्तोत्र तक है.) ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ३८अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नित कविजन मुख वरणीजी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ तक नहीं है.) ५. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ६. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ३८आ-३९अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ७. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तुति, पृ. ३९अ-३९आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सुविलसच्छरदिंदुरामान; अंति: सुरासुरसंघनिषेविताम्, श्लोक-४. ८. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. ३९आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ९. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अविरहलकुवलगवलमुक्ता; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. १०. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. ११. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. १२. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: इम शासन देवी सुजाण, गाथा-४. १३. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ४२अ-४५अ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. १४. पे. नाम. जयतिहुयण स्तोत्र, पृ. ४५अ-४९अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २५९ जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ __ आणंदिय, गाथा-३०. १५. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ४९अ-५५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पृ.वि. चौथे महाव्रत तक है.) २२९२५. चौवीसठाणा भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, दे., (२३४१२.५, १२४३०). चौवीसठाणा भाषा, मा.गु., गद्य, आदि: गइ इंदिय काए; अंति: हेतु ४३ जोग १४ टल्या. २२९२८. सीलसंतोककथा चौपई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२३४१२, २०४४०). सीलसंतोककथा चौपई, रा., पद्य, आदि: आदिनाथ आदे करी चोवीस; अंति: कर कर सुभगति थही रे, ढाल-१०. २२९२९. श्रीपाल रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६-३(१,३,२४)+१(१५)=३४, दे., गुटका, (२३४१३, २४४२०). श्रीपाल चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: (-); अंति: पातकवन लुणिज्ये रे, ढाल-४९, (पू.वि. ढाल-३ तक नहीं है.) २२९३०. अभिधानचिंतामणि नाममाला व शिलोंछ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, जैदे., (२१.५४१३, १०x२२-२७). १. पे. नाम. अभिधानचिंतामणी नाममाला, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण. अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पृ.वि. कांड-२ से ६ में आनेवाली गाथाओं में से चयनित गाथा ही लिखी है.) २. पे. नाम. शिलोंछ, पृ. १६आ-२६आ, संपूर्ण. अभिधानचिंतामणि शिलोंछ, संबद्ध, आ. जिनदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १४३३, आदि: अर्ह बीजं नमस्कृत्य; अंति: जिनदेव मुनीश्वरैः, श्लोक-१४०. २२९३४. (+) अष्टक, स्तुति संग्रह व षट्पदी श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. १७, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१२.५, १२४३०-३२). १. पे. नाम. चतुषष्टिजिन अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदवल्लभ, सं., पद्य, वि. १८६९, आदि: शांके नृलोकं कलिभीम; अंति: स्तोत्रतो मुदा, श्लोक-११. २. पे. नाम. सिद्धाचलतीर्थाधिपति अष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन अष्टक-शत्रुजयतीर्थाधिपति, मु. आनंदवल्लभ, सं., पद्य, आदि: जगामयं श्रीवरनाभि; अंति: श्रीसंघेन सम मुदा, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. रैवतिकाचलमंडण नेमिनाथ अष्टक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन अष्टक-रैवतकाचलमंडण, मु. आनंदवल्लभ, सं., पद्य, आदि: वरौषधिभिस्सुतरा; अंति: श्रीसंघेन समं मुदा, श्लोक-१०. ४. पे. नाम. पार्श्वचिंतामणीजिन अष्टक, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक-लोद्रवपत्तनमंडन, म. आनंदवल्लभ, सं., पद्य, वि. १८६४, आदि: अश्वसेननरेंद्रस्य; अंति: स्तुतः पार्श्वनायकः, श्लोक-९. ५. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन अष्टक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. आनंदवल्लभ, सं., पद्य, वि. १८७४, आदि: सुमेरु सन्मौलिकृता; अंति: संस्तुतो जिननायकः, श्लोक-११. ६. पे. नाम. शिखरगिरी अष्टक, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ अष्टक, मु. उमेदचंद्र, सं., पद्य, वि. १८७९, आदि: नगाधिराज सुरराज; अंति: श्रीसंघेन समं मुदा, श्लोक-१०. ७. पे. नाम. शिखरगिरि स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदि: सद्विशतिः श्रीजिन; अंति: वेदयितुं क्षमः, श्लोक-३. ८. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. जिनसौभाग्यसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसम्मेतगिरौ; अंति: करोतु सुखमव्ययम्, श्लोक-४. ९. पे. नाम. सम्मेतशिखरगिरी स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदि: स्मृत्वाहं शिखरे जित; अंति: श्रेयस्करीं सर्वदा, श्लोक-२. १०. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: भव्योद्धारकरं गुणौघ; अंति: संपत्करं प्राणिनां, श्लोक-१. ११. पे. नाम. बटुक अष्टक, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शीर्षे फणींद्र; अंति: भूयात्सहायकारकः, श्लोक-९. १२. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: चंपापुर्यां वरेण्यं; अंति: वंदितं वंछिताप्त्यै, श्लोक-१. १३. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वासुपूज्यो जिनेंद्रो; अंति: कल्पवृक्ष समः प्रभूः, श्लोक-१. १४. पे. नाम. शिखरगिरी स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदि: ध्येयं योगिवरेः; अंति: रागादिनिर्णाशिकाम्, श्लोक-१. १५. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: गंजेजीममुखे सदा हित; अंति: श्रीनेमिनाथं जिनम्, श्लोक-१. १६. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. __ सं., पद्य, आदि: वर्णेषु रक्तं प्रवर; अंति: बीजं सुधियो वदंति, श्लोक-१. १७. पे. नाम. सीमंधरजिन षट्पदी, पृ. ५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कल्याणैकमयं सुवर्ण; अंति: संस्तौमि सद्भक्तितः, श्लोक-१. २२९३५. पंचपद वर्णन, स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ८, जैदे., (२४४१३, १५-१६४२७-३६). १. पे. नाम. पंचपद वंदना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पहेले पद श्रीसीमंदिर; अंति: मत्थएण वंदामि, पद-५. २. पे. नाम. स्तुति संग्रह, पृ. १आ-२अ+५आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: प्रभात उठी प्रणमीये; अंति: मरम लहौ इण ग्यान, गाथा-१७. ३. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, मु. सेवक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमो नित्य देवाधिदेवं; अंति: मुझ हीयै वसो, गाथा-१०. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक समरु सदा; अंति: महानंद पदवी पामे तेह, गाथा-१३. ५. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर केरोशीश; अंति: तूठां संपति कोडि, गाथा-९. ६. पे. नाम. सकलकुशलवल्लिसूत्र सह बालावबोध, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत अशरण; अंति: मंगलिकमाला संपजै. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि; अंति: प्रभु पारसनाथ कीयै, गाथा-१८, (वि. अंत में पार्श्वजिन महिमा दर्शक तीन गाथा दी हुई है.) ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. गंग, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पूरण आसा; अंति: प्रभु संघने मंगल करो, गाथा-१४. For Private And Personal use only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २६१ २२९३६. नेमिजिन बारमासो व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुलपे. ७, दे., (२४४१३, १३-१६४२७-२९). १. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजैजीरा पुत; अंति: भार मुक्त पधार्याजी, गाथा-१९. २. पे. नाम. नेमिजी का बारमासीया, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सावणमास स्वाम मेली; अंति: एह नवनिध पामिरे, गाथा-१३. ३. पे. नाम. बुढ़ापा सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. बुढापा सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: बुढा होलु होलु चालै; अंति: जयपुर० नगर गुण गाया, गाथा-१९. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मु. लालविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: एक बात सुणी मई होक; अंति: होक सवे विध जाणियो, गाथा-१८. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: मोहनदी की गरीधारा; अंति: भवसागरमें पार कीजोजी, गाथा-५. ६. पे. नाम. भरतबाहुबली संवाद, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता समरी3; अंति: प्रणमुं शिरनामी, गाथा-६४. ७. पे. नाम. धनामुनि सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. धन्नामुनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: नार बतीसुंतजी रे; अंति: थे परणी जीवराणी, गाथा-९. २२९४१. संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२४४१४, १२४२२-२४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६० तक लिखा है.) २२९४९. चंद्रप्रभ रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२२.५४१३, १७४३७-४३). चंद्रप्रभजिन रास, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिध आचार्यजी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२४ गाथा-१२ तक है.) २२९५४. मुनिएकादशी गणणुंढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२१४१२.५, ११४२२-२४). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन; अति: सेवक जसविजय सिरि लही, ढाल-१२. २२९५७. १०५ बोल बांसठीयो यंत्र-चौदगुणस्थानकोपरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. *पंक्त्यक्षर अनियमित है., दे., (२२.५४१२.५). १४ गुणस्थानके १०५ बोल विषये बासठीयो यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २२९५९. (#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२०, जीर्ण, पृ. ६४, ले.स्थल. विरमगाम, प्र.वि. प्रत पारिष्ठापनिका योग्य., पत्र नष्ट होने लगे हैं, जैदे., (२३.५४१३, ४-५४२४-२६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वः श्रेयसे शांतिनाथः, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ", मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत विहरमानइ; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ भरहेसर सज्झाय तक ही लिखा है.) २२९६१. वसुधारा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२२४१२.५, १३४३२-३६). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: गमयति आनंदं करोति. २२९६२. (+) चौवीसदंडक सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४१२.५, ३४१९-२०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४२. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चौवीश तीर्थंकर ऋषभा; अंति: एहवी लिखी आत्मार्थे. For Private And Personal use only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २२९६४. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२२४१२.५, १४४३५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. संतिकर, तिजयपहुत्त, नमिउण, अजितशांति, भक्तामर व बृहत्शांति अपूर्ण तक है.) २२९६६. (+) उदयस्वामित्व यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४१३, १७-२०७११-१५). उदयस्वामित्व यंत्र, अज्ञा., को., आदि: (-); अंति: (-). २२९७३. (+) स्तुतिचौवीशी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(७)=७, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५४१२, ११४३०). स्तुतिचौवीसी, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६५ से ७५ तक व श्लोक-८६ से नहीं है.) २२९७४. (+) चैत्य भक्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२१.५४१२.५, ८x२२-२४). चैत्यभक्ति, चंपाराम, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: वंदौ श्रीजिनराज; अंति: रचि पायो अति आनंद, गाथा-२५७. २२९७६. श्रावक पाक्षिक अतिचार व अजितशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१२.५, १०४२१-२३). १. पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. १अ-१३अ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. १३अ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) २२९८१. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व २० विहरमानजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२१४१२, १६४३५). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: समुन्नय निमित्त. २. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषय; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. २२९८४. शतक कर्मग्रंथ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१४, आश्विन अधिकमास कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२२४१२, १३४२४). १. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण. जैन गाथा", प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. २२९८५. संग्रहणी दूहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५७, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ४, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. जयकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, १४४३२). १. पे. नाम. संग्रहणीरत्न, पृ. १आ-१६अ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-४०८. २.पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १६आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह-, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. प्रात:कालीन सज्झाय आदेश, पृ. १६आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: भगवान लाभ कहलेसीय; अंति: वडो कहे सो तहत्ति. ४. पे. नाम. विधि संग्रह, पृ. १६आ, संपूर्ण. जैनविधि संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २२९८६. स्नात्र पूजा, अष्टप्रकारी पूजा व शांतिजिन आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ३, जैदे., (२३४१२.५, ९-१०४२६). १.पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम हुंती निस्सिही; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १२आ-१९आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुचि सुगंधवर कुसमयुत; अंति: सर्वद्रव्य चढाइजै, ढाल-८. ३. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १९आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरति शांति; अंति: नरनारी अमर पद पावे, गाथा-५. २२९८७. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६७, चैत्र कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. २, ले.स्थल. पडदानगर, जैदे., (२२४१२, १३-१५४२७). १. पे. नाम. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, पृ. १अ-२०अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ॐकार; अंति: सांभले महासुख द्वै. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. २२९९२. जिनसहस्रनाम स्तवन सह टीका व पार्श्वजिन स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रावण शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५५, कुल पे. ४, जैदे., (२३४१२, २०-३१४४८-५०). १. पे. नाम. जिनसहस्रनाम स्तोत्र सह टीका, पृ. १अ-५५अ, संपूर्ण. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, श्राव. आशाधर, सं., पद्य, वि. १२८७, आदि: प्रभो भवांगभोगेषु; अंति: जिनायते, श्लोक-१४३. जिनसहस्रनाम स्तोत्र-टीका, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., गद्य, आदि: ध्यात्वा विद्यानंद; अंति: टीका चिरं नंदतु. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. ५५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमत पार्श्व विमलमनसा; अंति: संस्तुतो जलधिचंद्रेण, श्लोक-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५५आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तव, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: अविचललक्ष्मीविमल; अंति: श्रीजैनचंद्रश्रियम, श्लोक-७. ४. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तुति, पृ. ५५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, ग. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: निशमय गवडीश्वर; अंति: पद नित भव्यचकोर, श्लोक-६. २२९९४. (+) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, संपर्ण, वि. १८०६. ज्येष्ठ शक्क. ८. श्रेष्ठ, प. १७. ले.स्थल. मेडता. प्रले. म. राजवल्लभ (गरु मु. हर्षलाभ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१४१२.५, ३-४४३३-३६). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-१००. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ऍनमस्ते जगन्नेत; अंति: संदेह नही निःसंदेह. २२९९८. ज्योतिषसार संग्रह सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. फलोदीनयर, पठ. मु. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (४५७) पोथी प्यारी प्राणथी, (८२१) भणज्यो शिखज्यो हितकर, जैदे., (२३.५४१२, १४४२८). For Private And Personal use only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रथम अध्याय ___श्लोक-१७० तक है.) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २२९९९. विमलमंत्रीरो सलोको, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२३.५४१२.५, १४४३५). विमलमंत्री सलोको, पंडित. शांतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामण बे करजोडी; अंति: शांतिविमल गुण गायो, गाथा-१११. २३००३. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९२, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पालिपुर, प्रले. मु. पेमचंद (चंद्रगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमाहामायाजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१२, ९४३७). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंद नंदितः, ___ श्लोक-८३. २३००४. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १५, पठ. श्राव. मुलजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, १०-११x१९-२२). काजलमेघा चौढालिया-गोडीजीपार्श्व, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भावधरी भजन करुं आपें; अंति: इम नेमविजय जयकार, ढाल-१५. २३००६. थुलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. आडपोदरा, पठ. श्राव. साकलचंद हरजीवन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४१२, ११४२८). स्थूलिभद्रमुनि नवरसोढाल व दहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ सर्वे फल्या रे, ढाल-९. २३००७. लीलावती रास, पूर्ण, वि. १९४२, भाद्रपद कृष्ण, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २३-२(२० से २१)=२१, ले.स्थल. अडपोदरा, प्रले. श्राव. साकलचंद हरजीवन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४१२.५, ११४३०-३३). लीलावती रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: परम पुरुष प्रभु पास; अंति: सुख संपति सुरसालजी, ढाल-२१, (पू.वि. ढाल-१९ गाथा-६ से ढाल-२१ गाथा-६ तक नहीं है.) २३०१०. भक्तामर स्तोत्र व दहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९४, श्रावण शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. कापरडानगर, प्रले. मु. विद्याविजय (गुरु ग. भीमविजय, तपागच्छ); पठ. सा. गुलाबश्री (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१२, १०४२७). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. साधारण दुहा, पृ. ६अ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. २३०१२. (+) क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. जावालग्राम, प्रले. मु. खुबचंद (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्रीसुमतिजिन प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ७००, जैदे., (२३.५४१२, ५४३१-३३). बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर निभस्सण; अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, अध्याय-५, गाथा-२३३. बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीने जेह भगवंत सजल; अंति: ध्यावउ सम्यग्दृष्टीइ. २३०१७. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४, पू.वि. पत्रांकहीन अस्तव्यस्त पत्र, बीच के पत्र नहीं है., प्र.वि. पत्र कटे होने के कारण पत्रों की गिनती करके अनुमानित नंबर दिया गया है., जैदे., (२३४१२, ८x१९-२१). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: जैनं जयति शासनम्. For Private And Personal use only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २६५ २३०१९. आणंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. १९५६, चैत्र कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल. नागौर, प्रले. जयनारायण पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५x१२, १३४३२). आनंदश्रावक संधि, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल - १५, ग्रं. ४००. २३०२० परमानंद स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., गुटका, (२०.५X१२, ९x११-१२). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदिः परमानंदसंयुक्त; अंति: यो जानाति सुपंडितः, श्लोक-२४. परमानंद स्तोत्र- बार्थ, पुहिं., गद्य, आदि महापुरुष आत्मा को अंति जानै सो पंडित कहीयइ. २३०२१. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. य. वखतसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X१२, ११X३४ ). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा - ७६. २३०२६. (+) अनुकंपाविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९८७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २९ + १ (२२) = ३०, ले. स्थल. भिनायनगर, प्रले. विहारिलाल शर्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., ( २३.५X१२, २२५०). अनुकंपा विचार संग्रह, मा.गु., पद्य, वि. १९८६, आदि: करुणा वरुणालय प्रभो; अंति: पामी ज्ञान प्रकाशोजी, ढाल - ९. २३०३३. कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिकानुसारी सूचनिका, पूर्ण, वि. १९३८, भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(४)=११, ले. स्थल, नागपुर, प्रले. पं. जुहारमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २३११.५, १९३७), कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिकानुसारी सूचनिका, पुहिं, गद्य, आदि मंगलाचरण काव्य तीन; अंति: बेर ऐसे प्ररूप्या है, (वि. अंत में भगवान महावीर के १४ चातुर्मास के नाम भी दिये हुवे है . ) २३०३६. दीक्षा विधि, अपूर्ण, वि. १९६६, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ८- २ (५ से ६) = ६, प्रले. मु. कर्मचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२२x१२, १०x२४). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथम दिनें सांझरी; अंतिः जयवीयराय कहीजे. २३०३७. प्रव्रज्या विधि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६- १ ( ४ ) - ५, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., ( २२x१२, १०x२२). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पूर्व शुभवेलायां; अंति: (-). २३०३८. चंदकुंअर वार्ता, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. लालजी, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२३१२, १८३०), चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरसती मात मनाय; अंति: कुंअर वात कही कविराय, गाथा - ९०. २३०४३. प्रतिमासिद्धि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७ - ८ (१ से ७,२६) = १९, जैदे., ( २२x१२, १३x३८). प्रतिमासिद्धि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंतिः समवा० अतिशय अधिकारे, २३०४५. संग्रहणीसूत्र व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८-७ (१ से ७) = २१, कुल पे. २, जैदे., (२३×११.५, १३-१४x२९ - ३६). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा - १५. २. पे. नाम संग्रहणीसूत्र, पृ. ८अ २८आ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३६०. २३०४६. श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. अहमदाबाद, प्रले. गोपीचंद; पठ. श्रावि. पसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२१x१२, १०x२७). For Private And Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंतिः पक्षदिवस मांहि. २३०५६. बंधतत्त्व स्वरूप, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., ( २४१२, १३x३९). बंधतत्त्व विचार, पुहिं., गद्य, आदि: आत्मप्रदेश और कर्म; अंतिः बंध का स्वरूप जानना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३०५९. कल्पसूत्र-दशअच्छेरा, पार्श्व व नेमि जिन भव वर्णन, संपूर्ण, वि. १७५६, आषाढ कृष्ण, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पू. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. मु. उदयरत्न; पठ. मु. लालरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (५१४) यादृशं सन्मुखं वृष्ट्वा, जैये. (२१x११.५, ११४२५ - २८ ) . , १. पे. नाम. १० अच्छेरा, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र - दशआश्चर्य वर्णन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि : उवसग्ग गब्भहरणं इत्थ; अंति: हवी बीजां ५ वीरशासने. २. पे नाम, पार्श्वनाथ १० भव व नेमिनाथ ९ भव वर्णन, पृ. २आ-६आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. कथासंग्रह संस्कृत भाषा में है.) २३०६१. (+) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. गौतमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे., , (२२x११.५, १४-१६४३४-३८). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो; अंति: रामविजय जयसिरी लहि, स्तवन- २४. २३०६७. (+) रोहिणीतपमहिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित., दे., (२२.५X११.५, ८x२४). रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: शासनदेवता सामणी ए; अंतिः हिव सकल मन आस्या फली, ढाल - ४. २३०६८. (+) चेलणां की चोपई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. लुधियाणा, प्रले. सा. प्रेमदे (गुरु सा. अमृताजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४४१२, १८-१९३६-३७ ). "" चेलणाराणी चौपाई, रा., पद्य, आदि: मगधदेसना अधिपति; अंतिः जाण्यो छे तंत सार रे, ढाल - ९. २३०७७. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६ वे. (२१x११.५, १०x२५-३० ). स्तवनचौवीसी, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ ऋषभ जिणंद निरखी; अंति: प्रतिदिन सयल जगीस, स्तवन- २४. २३०७८. (+) स्नात्र पूजा विधिसहित, अष्टप्रकारी पूजा व शांतिजिन आरती, अपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२२x११.५, ११४२८-३० ). १. पे. नाम. स्नात्र विधि, पृ. १अ - ११आ, संपूर्ण, वि. १८७१, कार्तिक कृष्ण, ७, शुक्रवार, ले. स्थल. खाचरोद, प्रले. पं. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य. स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: (१) सारखी कही सूत्र मझार, (२)यथाशक्ति दान दीजै, ढाल -८, (वि. अंत में वस्त्रपूजादि विधि भी सम्मीलित है.) २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजाविधि, पृ. १२-१७आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम हुंती निस्सही; अंतिः सर्वद्रव्य चढाइने, ३. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरति शांति; अंति: ( - ), ( पू. वि. गाथा - ४ तक है. ) २३०८३. (+) क्षेत्रसमास सह टीका व अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र. वि. संशोधित - पंचपाठ - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैदे., ( २४४११.५, ९-१९४४१). , बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंतिः (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा - १४५ अपूर्ण तक है. ) बृहत्क्षेत्रसमास- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, वि. १३वी आदिः रागद्वेषमोहोपसर्गघात; अंति: (-), ( पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - २१ तक टीका लिखी है. ) For Private And Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २६७ बृहत्क्षेत्रसमास-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: नत्वा कथंभूतं; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अवचूरि ___गाथा-५९ तक लिखी गयी है.) २३०८४. विक्रमादित्यलीलावती विवाहे चतुप्पदी लघु, संपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र शुक्ल, १, रविवार, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. लुणावा, प्रले. पं. लहेरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पद्मप्रभुजी प्रसादात्., दे., (२३४११, १३४२४). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति: मतिमंदिर काजे कही, ढाल-१७, ग्रं. ३०९. २३०८७. (+) संबोधसत्तरी प्रकरण सह टबार्थ व मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, संपूर्ण, वि. १७९०, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. कर्णपुरनगर, प्रले. पं. राजसागर (गुरु ग. लाभसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आदिश्वर प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११, ८४४२-४४). १. पे. नाम. संबोधसत्तरी प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहई नत्थि संदेहो, गाथा-७२. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तिन; अंति: पामइं ईहां संदेह नही. २. पे. नाम. मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (१)चुल्लग पासग धन्ने, (२)विप्रः प्राथितवान्; अंति: स चेत् पूर्ववत्, श्लोक-११. २३०८८. वीसस्थानक गुणन काउसग्ग प्रमुख विधि, संपूर्ण, वि. १९०५, आश्विन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. वसुदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११.५, ९-१०४२९-३२). २० स्थानकतप विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम थानकै; अंति: हजार दोय गुणनो करणो. २३०९१. कल्पसूत्रे महावीरस्वामी, पार्श्वनाथ व नेमिनाथ भववर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२२.५४१०.५, __२०४४१-४९). कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २३०९३. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..जैदे., (२३. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिह० सव्वसाहूण; अंति: (-). २३१०३. दीपमालिका कल्प, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. आसकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १४४३२-३६). दीपावलीपर्व कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: गुणनी धरणहार हुस्यै. २३११९. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२२४११, १२४२९). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-४७. २३१२०. अढीद्वीप रोधरोव चौवीसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, ले.स्थल. अणंदपुर, प्रले. मु. दयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११.५, १०x११-२६). १. पे. नाम. अढीद्वीपरो धरो, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण. ___ अढीद्वीप धरो, रा., गद्य, आदि: जंबुद्वीप १ लाख जोजन; अंति: मोख रा सुख पामसी. २. पे. नाम. चोवीसीतीर्थंकर स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्तमान चोवीसी वांदु; अंति: परमाणंद रे माइ, गाथा-३. २३१२१. प्रतिष्ठाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०२, भाद्रपद, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. वडेचानगर, प्रले. पं. मुक्तिविजय (गुरु मु. मोहनविजय); राज्ये आ. विजयनरेंद्रसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीवीरप्रभु प्रसादात्., जैदे., (२३.५४११.५, १३-१४४३७-३९). प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहा प्रथम एतला; अंति: राखीइ तो दोष लागे. For Private And Personal use only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६८ २३१२२. (+) आर्यवसुधारा धारिणी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३X११.५, १५X३२). आर्यवसुधारा, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयवैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. २३१२३. अवंतिसुकुमाल चोपाइ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, दे., (२२.५X११.५, ११३१ - ३५), , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनीवर आर्य सुहस्त; अंतिः शांतिहरष सुख पावे रे, ढाल - १२. २३१२४. बांसठियाबोल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. हरजी, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि; पठ, मु. खंतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २३११, ११x२४). ६२ बोल मार्गणा, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: श्रीगुरुवचन लही करी; अंति: सागर दी आशीस ए, ढाल - १३, गाथा - १८३. २३१२८. प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७२, भाद्रपद कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले, मु. चमनाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २१.५X११, ७-१२x२२ ). प्रतिक्रमणविधि संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्रावक आवे; अंति: इत्यादी गाथा कही. २३१३२. लोकनालिकाद्वात्रिंशिका सूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले. स्थल. कृष्णगढ, प्रले. श्राव. जसकरण मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५X११.५, १०X२७). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा - ३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका - बालावबोध, मु. सहजरत्न, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमदाप्तं प्रणम्या; अंतिः विशोध्यं श्रीधनैर्भृशं (#) २३१३३. स्तवन, सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४, ले. स्थल. शिवपूरी, प्रले. मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३x११, १५X४४). १. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: पुण्यप्रकाश ए, ढाल - ८. २. पे. नाम. मौनएकादशीतपमहात्म्य स्तवन, पृ. ३आ - ५आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: घणो पामीये मंगल घणो, दाल- ३. ३. पे. नाम. जीवदया सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. जीवदयाहितशिक्षा सज्झाय, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करु रे; अंति: कहे एह विचार, गाथा - २५. ४. पे. नाम. साधुसाध्वी कुलक, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्म, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पडहो तिहुयणे सयले, गाथा - १३. २३१३६. आखातीज रो वखाण, संपूर्ण, वि. १९६३, भाद्रपद कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मीठालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २३x११, १०x२२ ). अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य प्रभुं अंतिः क्षमाकल्याणपाठके. २३१३९. लघुक्षेत्र समास, संपूर्ण, वि. १८३९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल आउवानगर, जैदे., (२३x११.५, ११४३३-३५). बृहत्क्षेत्रसमास- चयन जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्म, आदि: नमिऊण सजलजलहर निभस्स; अंति: लोगो चउदसरज्जुओ, गाथा - ८८. २३१४५ तत्त्वार्थसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९ - १ (१) ८, दे., (२३.५x११, ८- ९३० ). For Private And Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २६९ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-१ सूत्र-१६ से अध्याय-७ सूत्र-३५ तक है.) २३१४६. अध्यात्मसार प्रश्नोत्तरग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२२.५४११, ११४२५). अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: (१)चेतः केवरा कौमुदि, (२)जय भगवान त्रिलोक्यता; अंति: (-), ___अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २३१५१. एकवीसप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९४९, आषाढ़ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. देपालपुर, प्रले. मु. सवाईसागर (गुरु मु. विजयसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., दे., (२३४११.५, १३-१४४३४-३९). २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुप्रथम जिणंद; अंति: हेमहीरो जेम जडियो रे, ढाल-२१, गाथा-१०५. २३१५४. शीखामण सज्झाय, रोहिणी कथा व जिनवंदन विधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. अरगलनगर, प्रले. सा. सुमतिलक्ष्मी (गुरु सा. लाला, अचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १२-१४४३२-४०). १. पे. नाम. शीखामण सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमी जिनचरण; अंति: ते नही अवतरइ, गाथा-२५. २. पे. नाम. रोहिणी कथा, पृ. २अ-५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चंपानगरीयै श्रीवासु; अंति: क्षय करी मुगति गया. ३. पे. नाम. जिनप्रतिमा वंदनफल स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनचउवीसी कर प्रणाम; अंति: तीर्थंकरने नमस्कार, गाथा-११. २३१५७. अंतरीकपार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८६८, पौष शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. पाटडी, प्रले. मु. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिजिन प्रसादे., दे., (२२४१०.५, ११४२२). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भणै जयो देव जय जयकरण, गाथा-५१. २३१५९. (+) बालचंदनी बत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. श्राव. वेलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४१०.५, ११४३१-३६). अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसरकुं; अंति: इंद रंग मन आणीई, गाथा-३३. २३१६३. स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८८२, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, जीर्ण, पृ.८, ले.स्थल. गौत्रका, प्रले. ग. उत्तमविजयः पठ. ग. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४१०.५, ११४३४-३५). स्नात्रपूजा संग्रह , मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)पूर्वदिसइ तथा उत्तरइ, (२)मुक्तालंकार विकार; अंति: समकित सुजस सवायो रे. २३१६८. चतुर्विंशति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२२.५४११.५, १३४३९). स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंदा ऋषभ; अंति: मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन-२४. २३१७२. (+) सेजा रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११.५, ८x२२). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: ए सुणतां आणंद थाय, ढाल-६. २३१७३. थूलभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९५२, भाद्रपद कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १६-४(२ से ५)=१२, दे., (२१.५४११, ८x२८). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगे फल्या रे, ढाल-९, गाथा-६७, ग्रं. २१०. For Private And Personal use only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २३१७४. (+) अमरकुमरसुरसंदरीनी चौपई, संपूर्ण, वि. १८७५, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. पं. वृद्धिचंद्र (गुरु पं. माणिक्यभद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११, १७४३३). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनउ सलहियइ; अंति: आनंद लील उमंगेजी, खंड-४ ढाल ४०, गाथा-६१९, ग्रं. ९००. २३१८१. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०५, भाद्रपद कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०६, ले.स्थल. एहमदनगर दक्षिणदेशे, प्रले. मु. मगनीराम (गुरु मु. मुगतराम, वृद्धलुकागच्छ-धनराज्य शाखा); पठ. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११.५, ९४२३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: व्याख्यान-९,ग्रं. १२१६. २३१८४. ऋषि कुल सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१०, भाद्रपद कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. ग. जीतविजय (गुरु ग. डुगरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४११, ४४२२). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया मनुष्य अर्थनइ; अंति: सुखप्रति पुण्य पामीइ. २३१९०. (+) नवपद पूजा, स्नात्रपूजा व द्वारसरखा विचार, संपूर्ण, वि. १८४७, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ३, प्र.वि. अन्त में प्रतिलेखक द्वारा "तपागच्छीय परंपरा ज्ञातव्या " का उल्लेख मिलता है., संशोधित., जैदे., (२१.५४११.५, १२४३८). १. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीगोडी पासजी नीति; अंति: उत्तमविजय जगीस रे, ढाल-९. २. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधि, पृ. ८आ-१२आ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: भिनत्तु भागवती. ३. पे. नाम. द्वारसरखा विचार, पृ. १२आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. किसी मारुगूर्जर कृति के बीच का कुछेक अंश.) २३१९२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७५८, पौष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ६९-५०(१ से ४७,५८ से ५९,६८)=१९, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. विमल मथेन; पठ. श्रावि. अजबीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१.५४११, १३४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६, (पू.वि. अध्ययन-२९ गाथा-५८ अपूर्ण से है.) २३१९३. (+) स्नातर पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. घाणेरानगर, प्रले. पं. रविंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मनमोहनजी प्रसादात्., संशोधित., दे., (२३.५४११, ११४२६). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्वबाजोट उपर पूजी; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६४. २३२००. (+) स्तवन, सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४११, ११-१२४२४-३४). १. पे. नाम. सीमंधरजिनविनती स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हु; अंति: पुरि आस्या मन तणी, गाथा-१८. २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा साहेब हो; अंति: समयसुंदर० जनमन मोहए, गाथा-१५. ३. पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. जा, सपूण. For Private And Personal use only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २७१ अभिनंदनजिन स्तवन, वा. जयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चोथो अभिनंदण जिन; अंति: कालकादेवी हाथ रे, गाथा-११. ४. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२०. ५. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, पृ. ६आ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करो रे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. उपा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर चरण नमी करी; अंति: तसु शिवसंपति थाय रे, ढाल-४, गाथा-१५. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: पार्श्वनाथ चौसालो, गाथा-८, (वि. दो-दो गाथाओं को एक गाथा गिनी गई है.) ८. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन; अंति: बीकानेर मझारो रे, गाथा-११. ९. पे. नाम. एकादशी स्तवन, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बेठा भगवंत; अंति: कहै कहौ द्याहडी, गाथा-१३. १०. पे. नाम. महावीर स्तव, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण. महावीरजिन विनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलउ, गाथा-१९. ११. पे. नाम. सीद्धाचल स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल सिर तिलौ; अंति: अविचल लील विलास, गाथा-११. १२. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२३. १३. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १३आ, संपूर्ण. मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सुरवर सीस रसाल, गाथा-१३. २३२०३. (+) संग्रहणी सूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, पू.वि. गाथा-७७ तक है., प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४११, १५४१७-३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीपार्श्वनाथं फल, (२)अरिहताइ के० अरिहता; ___अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २३२१३. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रावण कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि; पठ. श्राव. लालचंद वैरागी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४११, १३४२९-३४). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-७६. २३२१७. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अडपोदरा, प्रले. श्राव. साकलचंद हरजीवन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४११.५, ११४३२-३३). For Private And Personal use only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir तपााट" २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: कहे ध्यान ए ___मुज गुरो, ढाल-९. २३२१८. षट् अट्ठाइ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२२.५४११.५, १०४३०-३१). ६ अट्ठाइस्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्याद्वाद शुद्धो; अति: बहु संघ मंगल पाइया, ढाल-९. २३२१९. जलयात्रा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. ग. बुद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११.५, १०x११-२६). जलयात्रा विधि, सं.,मा.गु., पद्य, आदि: ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताण; अंति: भवंतु पुजा० स्वाहा. २३२२०. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८४७, आश्विन कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. पोसालीया, प्रले. मु. अमरचंद (गुरु मु. प्रसिद्धरुचि); पठ. मु. हितरूचि (गुरु मु. अमरचंद), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. शांतिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२३४११, ११४३२). तपागच्छीय पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: राजसूरिजी वरतमान हे, (वि. ६८ पाट तक का उल्लेख किया गया है.) २३२२४. शत्रुजयगिरिउद्धार, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रावण शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. भीनमालनगर, प्रले. मु. सुखसागर (गुरु क. दीपसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., जैदे., (२३४१२, ९४२६). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: देही सण जयकरो, ढाल-१२, गाथा-११६. २३२२६. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदे., (२३.५४१२, ११४२६-२७). साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच इरवत जाण; अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३. २३२२८. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४११.५, ६४३५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: पुद्गलपरावर्त करशे. २३२२९. स्तुति, श्लोक संग्रह व दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(६)=६, कुल पे. १०, जैदे., (२३४११.५, १३४३६). १. पे. नाम. १५ तिथि स्तुति संग्रह, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: लील करो नित नित्य, स्तुति-१६, गाथा-६४. २. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ३. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय तीरथसार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. पंचमीपर्व स्तुति, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कुसलने आपो मंगलमाल, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ तक नहीं है.) ६. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १, पृ. ७अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ७अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. प्रा.,मा.गु.,स., पद्य, आदि: (-); अति: (-), गाथा-१. ८. पे. नाम. सप्तअभव्य नाम, पृ. ७अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. For Private And Personal use only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-). ९. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि आगे पूर्व वार नवाणु अंतिः कारिज सिद्धि हमारीजी, गाथा-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७३ १०. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: मंगल करो अंबा देविये, गाथा-४. २३२३०. रात्रिभोजन चौपाई व दूहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८५, पौष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. पंडित. नेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३X११.५, १०X२७). १. पे. नाम रात्रिभोजन चौपाई, पृ. १अ ६आ, संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु भगत करूं मन; अंतिः केहसुं ते लवलेस, गाधा- ७९. २. पे. नाम, दोहा संग्रह, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २३२३४. (+) समकीतना सड़सठबोलनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे. (२१.५x११.५, १५४२५). समकितना सड़सठ बोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, आदिः सुकृतवलि कादंबिनी; अंति वाचक जस इम बोले रे, ढाल - १२, गाथा - ७२. २३२३७. (+) विवाहारसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८९६, ज्येष्ठ शुक्ल, ४ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले. स्थल, रामपुरा, प्रले. सीरुबाई, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., (२३.५X११.५, ८-११×३५). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि जे भिक्खु मासिवं; अंतिः भवति तिबेमि, उद्देशक- १०, संपूर्ण. व्यवहारसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने प्रारंभ व अंत में बार्थ नहीं लिखा है. ) २३२४०. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) -५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैवे. (२३४११, ११-१२४३३). विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). २३२४६. कवित्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, दे., (२३.५X११, १२X३७). १. पे. नाम कवित्त संग्रह, पृ. १अ २अ संपूर्ण क. गद्द, मा.गु., पद्य, आदि: पंडित वस्यौ कुं वास; अंति: कहे० सुबन के लछन एसै, गाथा - १२. २. पे. नाम. साडीबारे ज्यात रा कवित्त, प्र. २अ २आ, संपूर्ण - साढीवारे न्यात कवित्त, मु. रूपकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि देवल सात हजार जे नरा; अंतिः साढी बारे न्यात सही, गाथा - २. ३. पे नाम प्रस्ताविक दूहा संग्रह, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: जीभ तणे प्रसाद; अंति: अकज कीसान उपना, गाथा - २५. २३२४७. अयवंतिसुकमाल चोडालीयो, संपूर्ण, वि. १८१४, भाद्रपद शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, पाटण, पठ. मु. जसरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीरषभदेवजी प्रसादात्., जैवे. (२२.५x११.५, १३ - १५X३१ ). , अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंतिः शांतिहर्ष सुखपाव रे, ढाल - १३, गाथा - १०४. २३२४८, (+) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२३४११, ९४२४). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: श्रीगोडी पासजी नित; अंतिः कोई नये न अधूरी रे. For Private And Personal Use Only २३२५१. स्नात्र पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., ( २३x११.५, ९X३१). स्नात्रपूजा सविधि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदिः पूर्वे बाजोट उपर अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २३२५२. चौवीसदंडक आदि विचार संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे, ५, दे., ( २३४११.५, १३४१३- ४३ ). १. पे. नाम. चौवीसदंडक ओगणत्रीसद्वार विचार, पृ. १अ - १५आ, संपूर्ण. Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: साते नारकी थइ एक; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. २. पे. नाम. चक्रवर्तिनाम, पृ. १६अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भरह सगर मुखे तिय; अंति: दुवालसमं बंभदत्तस्स, गाथा-२. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १६अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पुक्खलवई विजये; अंति: अंतरे पावइ मुक्खं, गाथा-३. ४. पे. नाम. स्त्रीगर्भ विचार, पृ. १६अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: हिवे ठाणांग त्रीजा; अंति: तेहने संतान न हुइ. ५. पे. नाम. समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, पृ. १६आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उच्चारेसु वा क०; अंति: मुहुर्त २४ नो कह्यो. २३२५३. (+) जुगलीयां रोतवन, संपूर्ण, वि. १८६७, आषाढ़ कृष्ण, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. आऊआनगर, प्रले. ग. देवेंद्रसागर; पठ. श्राव. शिवकरणजी लोढा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पठनार्थे विद्वान साहजी शिवकरण लोढा के तत्कालीन संघनायक व संघमुख्य होने का उल्लेख मिलता है. श्रीआदिजिन प्रसादात्., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२३४११, ११४२६). युगलिकविचार स्तवन, ग. देवेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: श्रीजिनवर शासनतणो; अंति: सुणे ते हुवे खुसी, ढाल-४. २३२५४. युष्मदस्मद स्वरुप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२२४११, १०४२६). युष्मदस्मद्साधनिका विधि, सं., गद्य, आदि: तपोश्च वाच्य लिंगत्व; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २३२५६. (+) परदेशीराजारी चोपई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१.५४११.५, १५४३४). __ प्रदेशीराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: संधि प्रदेशी रायनी; अंति: देव हुवो छै जाय रे, ढाल-२३. २३२५७. (#) एगुणतीसीभावना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. ग. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, ५४२३). एगूणतीसी भावना, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: मुच्चह सव्व दुक्खाणं, गाथा-२९, संपूर्ण. एगूणतीसी भावना-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारनइ विषे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ तक लिखा है.) २३२६४. (+) नीतिशतक व वैराग्यशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-११(१ से ५,८ से १३)=१४, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१४११, ४४३१). १. पे. नाम. नीतिशतक सह टबार्थ, पृ. ६अ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., श्लोकांक १ से २९ अपूर्ण व ३८ से ६५ अपूर्ण तक नहीं है., वि. १९००, श्रावण शुक्ल, ३, ले.स्थल. पलिका, प्रले. पं. उदैचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: धीरः प्रमाणं स्यात्, श्लोक-१०५. नीतिशतक-टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रमाणिक पुरुष हुवइ. २. पे. नाम. शृंगारशतक सह टबार्थ, पृ. २२आ-२५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., श्लोकांक १९ अपूर्ण तक है. शृंगारशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: चूडोत्तंसितचारुचंद्र; अंति: (-). शृंगारशतक-टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, आदिः (१)सर्वदर्शिनमानम्य, (२)चूडा क० जटाजूट तिणरे; ____ अंति: (-). २३२६७. इकवीसठाणक, संपूर्ण, वि. १८६०, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, पठ. श्राव. डफोल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, ९४२२). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६८. For Private And Personal use only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २३२६८. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१७(१ से १७)=६, दे., (२१.५४११,११४२८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २३२७०. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-२०(१ से १८,२३ से २४)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२१४११,११४२८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २३२७१. स्तवन, सझाय व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-४(१,९ से ११)=९, कुल पे. ३३, जैदे., (२३४११.५, १३४२४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: जाकुं पारसनाथ सहाई, (पू.वि. अंतिमपद मात्र है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, पुहिं., पद्य, आदि: नीकी मूरति पास जिणंद; अंति: सेवा दाता परमानंद की, गाथा-६. ३. पे. नाम. धर्मजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहिं., पद्य, आदि: इक सुणलौ नाथ अरज; अंति: अनुपम कीरत जग तेरी, गाथा-५. ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आज दीठा सुगुरु मेरा; अंति: देखो नैनसु प्यारा वे, गाथा-६. ५. पे. नाम. सद्गुरु पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सबही पाप फुली ताहो; अंति: महीर नजर बहु कीता हो, गाथा-५. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या दरसण तिहारा; अंति: जाउं वारवार हजारा रे, गाथा-३. ७. पे. नाम. चिंतामणपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, म. करमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: अजब विराजै हो छाजै; अंति: सीसै करमचंदै सुभ मनै, गाथा-७. ८. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, ग. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मया करी दिल; अंति: करो प्रभु हेत धरी, गाथा-५. ९. पे. नाम. लोभ उपर सिझाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: पहोचे सयल जगीस रे, गाथा-८. १०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: प्यारो कौन वतावै रे; अंति: चरनां लग पौहचावैरे, गाथा-४. ११. पे. नाम. चौविसतीर्थंकर पद, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. २४ जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जीव जप जप जिनवर अंतर; अंति: मत समयसुंदर० सिरनामी, गाथा-५. १२. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. शोभाचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: आणी अधिक उमेदथी रे; अंति: केरी शोभाचंद भणै इसी, गाथा-१९. १३. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. जेसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १८१८, आदि: तुं जगजीवन तुं; अंति: प्रभू उलट अति घणे, गाथा-१०. For Private And Personal use only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४. पे. नाम. माहावीरजीतवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण दो मति; अंति: मुझ मुगति आपौ सामीया, गाथा-१०. १५. पे. नाम. कापैडामंडण पार्श्व स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-कापडहेडा, मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: कापडहेडा सै धणी रे; अंति: हर्षकुशले० विहंडणो, गाथा-१५. १६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: तुम देखो विराजत है; अंति: उनकै फीक पडै ततकाला, गाथा-३. १७. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ७आ+८आ+१३अ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. १८. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नेम मिले तो मे वारी; अंति: चरणकमल चित धारीयां, गाथा-४. १९. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि पद, मु. लालचंद, पुहि., पद्य, आदि: कुशल गुरु देखता; अंति: शरण मोहि दीज्यै, गाथा-३. २०. पे. नाम. सामान्यजिन पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: ए जिनके पइया लाग रे; अंति: आनंदघन पाए लागरे, गाथा-३. २१. पे. नाम. ४ कषाय पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: जैन धर्म नही कीतावो; अंति: भारी करम रस खीता, गाथा-४. २२. पे. नाम. जिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. सुयशजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज सुजससुं लग गई; अंति: हुं तिन की बलिहारी, गाथा-७. २३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, पृ. १२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आज तो वधाइ राजा नाभि; अंति: निरंजन आदिसर दयाल रे, गाथा-९. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण. मु. महिमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जिन तेरे नयन अनीयारे; अंति: महिमराज० सुखकारे, गाथा-३. २५. पे. नाम. ११ गणधर पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रात समै उठि प्रणमी; अंति: जिन हरेह त्रिकाला, गाथा-४. २६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहिं., पद्य, आदि: कहा अग्यानी जीवकुं; अंति: कहा वाको सहज मिटावै, गाथा-३. २७. पे. नाम. गोतम पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गौतम नाम जपो परभाते; अंति: समयसुंदर० गुण गाते, गाथा-३. २८. पे. नाम. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, पृ. १३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड तुंम कर; अंति: ऋद्धि कोटानुकोटी पार, गाथा-३. २९. पे. नाम. जिन ख्याल, पृ. १३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. आनंदराम, पुहि., पद्य, आदि: छोटीसी जान जरासा; अंति: सुख संपति बहु कर बे, पद-३. ३०. पे. नाम. गणेश द्रुपद, पृ. १३अ, संपूर्ण. गणेशजी द्रपद, तानसेन, पुहिं., पद्य, आदि: जै गणेश जै गणेश जै; अंति: तानसेन सफल वाकी सेवा, गाथा-३. ३१. पे. नाम. पारसनाथ स्तुति, पृ. १३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अर्हत भगवत वामानंदन; अंति: नित्यं रतिपतितेहम्, गाथा-३. For Private And Personal use only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org २३२७३. पासाकेवली व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., ( २४४११, १५४३३). १. पे. नाम. पासाकेवली सुकनावली, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण. ३२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दरस बिन तरसै दोय; अंतिः शरणागत मोहि रखीया, गाथा ५. ३३. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जीव जप जप जिनवर अंतर; अंति: ( - ), ( पू.वि. द्वितीय गाथा अपूर्ण है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाशाकेवली-भाषा *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: पामीस सही पुजा करे. २. पे. नाम, मंत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). २३२७४ वृद्धशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६८, माघ कृष्ण, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल, मंदसौर, पठ, श्राव, भेरुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्र. पु. गोडीजी का मंदर में. दे., (२२.५x११, ९४२२ ). बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः शृणुत; अंति जैनं जयति शासनम्, २३२७५. प्रतिक्रमणा आलोअणासुत्त, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., ( २३४११, १x२९). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं. २३२७७. " (+) पच्चक्खाणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित., दे., (२२.५X११, ५x२२). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पच, आदिः उगए सुरे नमकारसिय; अंतिः गारेणं बोसिरामि. प्रत्याख्यानसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यना उदय आरंभी; अंतिः तो टाली बोसिराबु छु. २३२७९. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पंक्त्यक्षर अनियमित है., दे.. (२३४११). विचार संग्रह में, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २३२८९. स्तवन व विचार संग्रह सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे ५, ले. स्थल, पाहलणपुर, प्र. मु. कृष्णविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५x१०, १७- २०x४१-५१). १. पे नाम, पार्श्वजिन दिग्भववर्णन स्तवन, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण, २७७ पार्श्वजिन स्तवन- १० भववर्णन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: जय जैनी जगदंबिका; अंति नवविमल कवि जयकरो, गाथा-८८. २. पे. नाम. पन्नवणा स्वाध्याय सह टबार्थ, पृ. ३अ - ४अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहजो रे पंडित ते; अंति: जस कहे ते सुख लहस्ये, गाथा १४. - ढाल - ६. ४. पे. नाम. रोगोत्पत्ति कारणदर्शक श्लोक, पृ. ५आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ५. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. जैन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (); अंति: (-), गाथा-४. प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कह्यो देखीय जाणीवइ; अंति: जसविजय० ते 'सुख 'पामशे. ३. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ४-५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय पासजिनेसर; अंति: गुणविजय रंगि मुणी, For Private And Personal Use Only २३२९३. चौदबोलनी स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८८९, पौष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. खूमचंद ( गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२x१०.५, १२३० ). Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनचौवीशी-१४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव नितु वंदिये; अंति: निज भुवनमां दास राखो, स्तवन-२४. २३२९५. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८७४, पौष कृष्ण, ३०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. ओघरी खेडा, प्रले. य. जगरूप; राज्यकाल रा. केसरीसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, १४४१४). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: उत्तम श्रीकार छे, ग्रं. २००. २३३०६. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, जैदे., (२२.५४१०, १६-१७४३९-४९). बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: स्थानके लेश्या जाणवी. २३३०७. (+) भुवनदीपक की टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, १४-१५४३८-४०). भुवनदीपक-टीका, सं., गद्य, आदि: सरस्वत्याः संबंधि; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम किंचित् अंश नहीं है.) २३३०९. जिनबिंबप्रवेश व जलयात्रा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१०.५, १४-१६x४५-४८). १.पे. नाम. जिनचैत्ये तथा जीर्णचैत्ये बिंबप्रवेश विधि, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण, वि. १८५४, माघ शुक्ल, ९. जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, आदि: हवें पूर्वोक्त शुभ; अंति: पूजा रात्रिजागरण करे. २. पे. नाम. जलयात्रा विधि, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सयवारक बेहडा ४ सिंहा; अंति: (-). २३३११. (+) जंबूस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८२१, ज्येष्ठ शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. धुनाडा, प्रले. मु. जीवण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४११, १४४३२). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सप्रभावं जिनं नत्वा, (२)श्रीमहावीर एकवार; अंति: भवंति भवता सदा. २३३१७. वसुधारा महाविद्या व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, दे., (२१.५४१०.५, १०४३०). १. पे. नाम. वसुधारा महाविद्या, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. २३३२३. (+) वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, नाडीपरीक्षा, मूत्रपरीक्षा व दशमूलक्वाथ नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-२०(१ से २०)=२०, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४११, ७४३३-३७). १. पे. नाम. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, पृ. २१अ-३८अ, संपूर्ण, वि. १८०४, ले.स्थल. हुरडा, प्रले. मु. प्रीतिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य. वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: परोपकाराय विहितोयम, विलास-९, श्लोक-३२६. वैद्यवल्लभ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वतीने नमस्कार; अंति: हेतई ए ग्रंथ कीधो. २. पे. नाम. दशमूलक्वाथ नाम, पृ. ३८अ, संपूर्ण.. औषधवैद्यक संग्रह*, सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. नाडीपरीक्षा, पृ. ३८आ-४०अ, संपूर्ण. नाडी परीक्षा, सं., पद्य, आदि: रोगाक्रांतशरीरस्य; अंति: विजानीया भिषग्वरः, श्लोक-४०. ४. पे. नाम. मूत्रपरीक्षा, पृ. ४०अ-४०आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मूत्र परीक्षा, सं., पद्य, आदि: पश्चिमे रजनियामे; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१९ अपूर्ण तक है.) For Private And Personal use only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २७९ २३३२४. (+) शुद्धविधिमार्ग, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७+१(८)=२८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११, १७४३५). शुद्धविधिमार्ग, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)श्रीहर्षसार सद्गुरु, (२)प्रथम सामायिक ग्रहण; अंति: (-), (पू.वि. उजमणा विधि प्रारंभ तक है.) २३३२५. चौदगुणठाणा के एकवीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, दे., (२३.५४१०.५, २२४३४). १४ गुणस्थानक २१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गुणस्थानक १४ तेहनां; अंति: जीव अनंता जाणवा. २३३२८. उपदेशीश्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२३४११, १०४३२). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २३३३९. गौतम रासो, संपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. वगडी, प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४१०, ११x१२-२७). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र मुनि० भणे ए, गाथा-४८. २३३४०. षटअष्टान्हिका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पठ. श्रावि. वाहलीबाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१०.५, ८-९४२३-२५). ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्यावाद शुद्धो; अंति: बहु संघ मंगल पाइया, ढाल-९. २३३४४. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, दे., (२३४११, ५४२८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २३३४७. अक्षरबावनीव वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, दे., (२१४११, ११४२९). १. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋलु; अंति: ल व श ष स ह ळ क्ष. २. पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण. ऋ. लालचंद, पुहि., पद्य, वि. १८७०, आदि: सरस वचन सरस्वति तणा; अंति: पंडित अतिगुणखान, गाथा-५५. २३३४९. (+) भाष्यत्रय सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६३, चैत्र कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४१, प्रले. पं. पुण्यविजय (गुरु ग. क्षमाविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने मास में गुर्जरी चैत्र माह का उल्लेख किया है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, ३४३२-३४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१४५. भाष्यत्रय-टबार्थ, मु. लावण्यविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्यतानंदकारकं, (२)वादिने योग्य छे; अंति: पीडाइ करी रहित छइ. २३३५०. (+) आलोयणा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रावण शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. मकसुदावाद, प्रले. मु. हुकमीचंद (बृहत्पुनमीया गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. धनपतबाबू के मकान में चातुर्मास करके यह प्रत लिखी गयी है., संशोधित., दे., (२३४१०.५, ११४३२-३४). १. पे. नाम. श्रावक आलोयणा, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: अणगल जल वावर्यै लाख; अंति: न पडै तो फरी लेवी. २. पे. नाम. श्रावक की आलोयणा, पृ. ६अ-११अ, संपूर्ण. श्रावक आलोयणा, रा.,सं., गद्य, आदि: शंकादिष्वष्टसु देसतो; अंति: कहो दान किणविधि करां. २३३५४. पाखीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(८)=१०, जैदे., (२२.५४१०.५, १०-११४२६-२८). For Private And Personal use only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २३३६०. पासाकेवली सुकनावली, संपूर्ण, वि. १९४१, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. मगनीराम (गुरु मु. मुगतराम, वृद्धलुंकागच्छ-धनराज्य शाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२१४१०, ११४४०). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: छे जी श्रीकार छे. २३३६२. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४९, कार्तिक कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पाली, प्रले. श्राव. फकीरदास मायाचंदाणी वीकानेरया; पठ. श्राव. संतोषचंद जेसलमेरीया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४१०.५, १०४३०-३२). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: स्तोत्रमुत्तमम्, श्लोक-१०१. २३३६४. (#) दानविषये कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १६५४, चैत्र शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १२-६(१ से ६)=६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०, १६४३८). कयवन्ना चौपाई-दानविषये, आ. पद्मसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: घरि अविचल ऋद्धि, ___ गाथा-३९२, (पू.वि. गाथा-१४९ तक नहीं है.) २३३६७. संबोधसत्तरि, संपूर्ण, वि. १९वी, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२२.५४१०, १४४२२). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-९३. २३३६८. श्लोक, प्रहेलिका संग्रह व स्थुलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४१०, १३४२७-२९). १. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १अ-२आ+६आ-७अ, संपूर्ण. दोहा संग्रह-, मा.गु., पद्य, आदि: सजन फलजो फूलजो; अंति: मानवी बोले जाणे मरता, गाथा-५८. २. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. ३अ-६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: खाट खटक नेलोनां कडा; अंति: राते नर करे भरतार, गाथा-६७. ३. पे. नाम. थूलिभद्र स्वाध्याय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पं. सोमविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वतीने चरणे नमी; अंति: तस घर नित रंगरोल, गाथा-१८. २३३७१. वरदत्तगुणमंजरी कथानक, संपूर्ण, वि. १७५२, आश्विन कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. इडरनगर, पठ. ग. मेघविजय (गुरु ग. अमरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०, १३४३५). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, ___ श्लोक-१५०. २३३७५. आगमिक प्रश्नोत्तरपत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११, ११४३३). आगमिक प्रश्नोत्तरपत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, रा., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीस्तभनक; अंति: (-). २३३८१. नमस्कारचोवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२२४११, १०-११४२३). चैत्यवंदन चौवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अशरीरी अजर अमर तुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अनंतजिन चैत्यवंदन तक लिखा है.) २३३८३. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. रोहीडा, दे., (२३४११, ९४३०). गौतमस्वामी रास, श्राव. शांतिदास, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सरस वचन दायक सरसती; अंति: गौतमरिषी आपो सुखवास, गाथा-६६. २३३८९. कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १९००, ज्येष्ठ कृष्ण, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. वडीहोलीपोसाल, प्रले. मु. हरखचंद (भट्टारकगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १०४२८). कालिकाचार्य कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमंत सांत महीवनाह, (२)कालिकाचार्य तीन हुआ; अंति: संघ जयवंतो प्रवर्तो. For Private And Personal use only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २३३९०. हंसराजवच्छराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६५, वैशाख कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले. स्थल खलचीपुरा, प्रले. पंन्या. चतुरधर्म, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (७८५) याद्रीसं पुस्तकं दृष्टा:, जैदे., (२२x११, १४x२७). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: सूरि हंस नै छराज, खंड-४ ढाल ४५. २३३९१. ढोलामारू चौपाई, पूर्ण, वि. १७५३ आश्विन शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २४- १ (१) - २३, प्रले. पं. लब्धिसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५X१०.५, १५x५०). ढोलामारु चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: (-); अंति: सांभलता पामै संपदा, गाथा - ७४५, (पू.वि. गाथा - १ से ९ नहीं है.) २३३९५. संबोधसत्तरी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७- २ (७ से ८) = १५, जैदे., (२२.५X१०.५, ११X३०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरु; अंतिः सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा - ७८. संबोधसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वंदिय पासजिणंदं तह; अंति: देवलोकइं जइ उपनी. २३३९७. अंजनासती रास, संपूर्ण, वि. १८५९, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. व्यापारी, जैदे., (२२x१०.५, १३X३७-४४). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि पहिले कडुवे हो पाय; अंतिः चालसे सीता संबंध के, गाथा- १५९. २३४००. गजसुकुमाल चोपाइ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदे., (२२.५X१०.५, १६ - १७३९). गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: नेमिसर जिनवरतणा चरण; अंति: जिणवर चरण नमीजे छे, ढाल - ३०. २३४०२. मानतुंगमानवती चऊपी, संपूर्ण, वि. १८२१, पौष शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५६, प्रले. पं. मनोज्ञसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२२.५x११.५, ११-१५४३०-३६). ·9 २८१ मानतुंग- मानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल - ४७. २३४०३. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३x१०, ५X३३-३५). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: से त्तं परोक्खणाणं, गाथा - ७००. २३४०६. मोक्षमार्गनी वचनका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१, दे., ( २१.५x१०, १०२९). मोक्षमार्ग वचनिका, मा.गु., गद्य, आदि: तिहा प्रथम जीव अनादि अंति: (-), पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २३४०९. (+) दंडक विचार, संपूर्ण, वि. १८५०, वैशाख कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. पं. धर्मविजय गणि (गुरु पं. रत्नविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे. (२२x१०.५, १६४३९-४१). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंतिः नो अपज्जत्ता. २३४१३. चतुर्विंशति स्तुति व माणिभद्रवीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२३१०.५, , १५-१६×३७-४५). १. पे. नाम. चतुर्विंशति स्तुति, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकः अंतिः हारताराबलक्षेमदा, स्तुति- २४, लोक-१६. २. पे. नाम. माणिभद्रवीर स्तोत्र, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: लाख लाख रीझा लहे, For Private And Personal Use Only गाथा - २६. २३४१८. नवतत्त्व विचार व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२२.५x९.५, १७X३०-३७). १. पे. नाम. नवतत्व विचार, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण. नवतत्त्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ चेतना; अंति: २० पुरुष १०८ सीझइ. Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. विचार संग्रह, पू. ६आ, संपूर्ण. विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). २३४१९. कल्याणमंदिर व तिजयपहुत स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, दे., (२२x९.५, ७४१९-२२). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे नाम. तिजबहुत स्तोत्र, पृ. ९आ- ११आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा - १४. २३४२०. पोसह प्रमुख विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२३.५X१०, १२X४०-४३). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरिआवहि; अंतिः अढाइजेसु की. २३४२३. चारित्रमनोरथमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२३.५x१०, ९३२-३४ ). चारित्रमनोरथमाला, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सह गुरुपय पणमउं निस; अंतिः मिली शिवसुखदायक होइ, गाथा - ४१. २३४२६. (+) वैद्यकसारोद्धार, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१ - १ ( १ ) = २०, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२२.५X१०, १६-१८X३९). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: सप्तमको मिश्रकाध्याय, अध्याय-७. २३४२७. योगचिंतामणि अध्याय ५ से ६, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (२) -६, जैवे. (२२.५x१०, १७४३६-४१). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २३४३५. (+) बारसैसूत्र व गाथा संपूर्ण, वि. १८६०, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५५, कुल पे. २, ले. स्थल. फलोधी, प्र. मु. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, दे. (२३४१०.५, १२३२ ). १. पे. नाम. बारसै सूत्र, पृ. १आ - ५५अ, संपूर्ण. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१) नमो अरिहंताणं नमो, (२) तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान - ९. २. पे नाम, जैन गाथा, पृ. ५५अ, संपूर्ण, जैन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), गाथा - १. २३४३९. जातकपद्धति सह टबार्थ, ग्रहदृष्टि यंत्र व ज्योतिषश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८८, आश्विन कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. ३, ले. स्थल. पोहकरण, प्रले. ऋषिराम दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५x१०.५, ४४२३). १. पे नाम, ग्रहदृष्टि यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, ज्योतिष, मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम जातकपद्धति सह टबार्थ, पृ. १आ- २३आ, संपूर्ण. जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंति: एषा जातकदीपिका, श्लोक- ९१. जातक पद्धति-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करीने पार्थ; अंति: जातिकदीपका रचिता. ३. पे. नाम. ज्योतिषश्लोक संग्रह, पृ. २४अ - २४आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal Use Only २३४४२. आत्मानी आत्मता, संपूर्ण, वि. १८८०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल, शिवपुरी, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतिलेखन मास हेतु पहले क्रम में कार्तिक शुक्ल १५ मंगलवार का तथा दूसरे क्रम में मृगसर कृष्णपक्ष १ बुधवार का उल्लेख किया है., दे., ( २३x११, १२X३४). आत्मा के ६५ गुण, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी अंतिः सदहतो पार पामस्ये. २३४५१. (+) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. दे., ( २१.५x१०.५, १३४३३). Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अंति: ( - ). २३४६७. सौभाग्यपंचमी स्तवन व अधिरसंसार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले. स्थल अरढवाडा, जैदे., (२३१०.५, १४४४३). १. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी महात्म्यगर्भित नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन- सौभाग्यपंचमी महात्म्यगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: प्रणमुं पवयणदेवी रे; अंतिः भणता पामिए मंगल घणो, ढाल ९. २. पे. नाम. अथिरसंसार सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- अबिरसंसार, मु. न्यायविजय, मा.गु., पद्म, आदि: अधीर संसार रे जीवडा; अंतिः कहि अथिरता बहु पेख, गाथा -८. २३४७१. सुभाषित काव्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६५, वैशाख कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., ( २१x१०.५, १३x२७). सुभाषित काव्य संग्रह, प्रा., सं., पद्य, आदि नित्यानंदपदप्रयाण; अंतिः निर्विवेकी विधाता, गाथा - १५७. २३४७३. स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १८७१, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. आगलोड, प्रले. पूंजा दवे; लिख. मु. कुंअरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसुमतिनाथ प्रसादात्., जैदे., (२२x१०.५, १०X२७). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: अनंत सुखनो सदा रे, स्तवन- २४. लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ३. पे नाम. लूणउतारण गाथा, पृ. ७अ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४७४. दादा जिनकुशलसूरिजी छंद, संपूर्ण, वि. १८९३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. राजनगर, पठ. मु. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२x१०, ८x२८). जिनकुशलसूरि छंद, मा.गु., पद्य, आदि: बदन कमल वाणी विमल; अंतिः धन हो धन खरतर धणी. २३४७८. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८१०, कार्तिक कृष्ण २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल, जालोर, प्रले. पं. ललितसागर (गुरु पं. भक्तिसागर); पठ. श्राव. मनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३४१०, ५४३१). " पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अ० करेमि; अंतिः वंदामि जिणे चडवी, सूत्र- २१. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ १२ गुणे करी; अंति: प्रतइ जाणवो सही. २३४९३. नवपद पूजा, श्लोक, लूण उतारण गाथा व सम्मेतशिखर गीत, संपूर्ण, वि. १८५५, चैत्र कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ४, ले.स्थल. पाटण, प्रले. ग. कृष्णविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपंचासरजी महाराजि प्रशादात्., जैदे., (२०.५४१०.५, १४-१५X३३). १. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १अ - ७अ संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदिः उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नये न अधूरी रे. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ७अ, संपूर्ण. लूण उतारण, मा.गु., पद्य, आदि: लूण उतारो जिनवर अंगे; अंति: पाप कर्म सवि छूटे, गाथा - १. ४. पे. नाम. सम्मेतशिखर गीत, पृ. ७आ, संपूर्ण. २८३ (+) सम्मेतशिखरतीर्थ गीत, मा.गु., पद्य, आदि: चलो जईये समेतशिखर; अंति: करो संघ के घरकुं, गाथा-८. " २३४९७. गजसुकमाल चौपाई, संपूर्ण वि. १८९९, भाद्रपद शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पु. १०, ले. स्थल सिंघाणा, प्रले. रामकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२१x१०, १५-१६४३५-३९). गजसुकुमाल चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: भदलपुर नामे नगर तिहा; अंतिः कहई भवि सांभलो, ढाल १८. २३५०५. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२६, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. ममोईबंदर, प्रले. मु. पनालाल महात्मा; अन्य. मु. मोतीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२०.५x९.५, ८- ९x१८). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंतिः परमानंदसंपदं, श्लोक - ८२. For Private And Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २३५१०. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९४८, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. वालूचर, प्रले. मु. करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४१०, १०४३५). चैत्यवंदनचौवीसी, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: जय जय जिनवर आदिदेव; अंति: गणि सीस क्षमाकल्याण, चैत्यवंदन-२४. २३५१६. (+) अट्ठाई व्याख्यान व संभवजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९४८, आषाढ़ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. २, ले.स्थल. बालूचर, प्रले. मु. करमचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१४१०, १२४४४). १. पे. नाम. अट्ठाई व्याख्यान, पृ. १आ-३१अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिसार, मा.गु., गद्य, वि. १९४८, आदि: चिदानंदस्वरूपाय; अंति: रचना सुख काजै. २. पे. नाम. संभवजिन चैत्यवंदन, पृ. ३१आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिसार, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय संभव शांतिधर; अंति: जय जय श्रीऋद्धसार, गाथा-७. २३५३९. नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२१४१०, ११४३४). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.. __प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४६. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २३५४३. आषाढभूति चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(५)=५, जैदे., (२०.५४१०, १५४२९). आषाढाभूति चौढालियो, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: सासणनायक सुखकरू वांद; अंति: मानसागर शुभ वाण रे, ढाल-७, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१० से ढाल-६ गाथा-६ तक नहीं है.) २३५४५. नलदमयंती चौपाई, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-१(१)=४०, पू.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका नहीं है., जैदे., (२१४१०, १३-१६४३४-३८). नलदमयंतीरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (-); अंति: चतुर माणस चित्तवसी, खंड-६, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रथम ढाल के दोहे नहीं हैं.) २३५५२. पर्यंताराधना, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२१४१०, १६-१८४३०-४०). पर्यंताराधना, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २३५५४. पासाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१.५४१०, ११४३०-३२). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: (-). २३५५९. (#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०x१०.५, ७-९x१९-३५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सामाइय वयजुत्तो; अंति: असित्थेण वा वोसिरे. २३५७७. विविधविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२०.५४१०.५, १-३४२८-३५). विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २३५९२. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र.वि. देवनागरी व गुजराती मिश्रित लिपि., दे., गुटका, (३९.५४१०.५, २७४२१-३०). विविध विचार संग्रह , गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २३६११. जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८६४, वैशाख शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. जीवसागर (गुरु मु. लक्ष्मीसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४११, १३४२८). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २८५ आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: तिन्निवि एए उवाएया, गाथा-५७. २३६१२. साधुपाक्षिकादिअतिचार, संपूर्ण, वि. १९३३, आश्विन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. पनालाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४११, ९४२१). साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: करी मिच्छामिदुक्कडं. २३६१६. पार्श्वजिन छंद संग्रह व दुर्गादेवी छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ३, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. मु. विवेकविजय; मु. माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४११, ७-९४११-१६). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-१५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. राम, मा.गु., पद्य, वि. १७७२, आदि: ॐकार लीला ललित कलित; अंति: पास गुण जय जयकरण, गाथा-६४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १५अ-१९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. नयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन सुखकारं सार; अंति: पावे मनवांछित सकल, गाथा-१३. ३. पे. नाम. दुर्गादेवी छंद, पृ. १९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सकल सरूप रूप कुण लखे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) २३६१९. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२१४११.५, ५४२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-). कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)अरीहंतनि नमस्कार, (२)ते काल जे अवसर्पिणी; अंति: (-). २३६२१. (+) रामयशोरसायन, अपूर्ण, वि. १९२२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १३२-३३(१,३,८६ से ११६)=९९, ले.स्थल. विक्रमपूर, प्रले. सा. चंदा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १ से लिखा है, वस्तुतः प्रत अपूर्ण है. अपूर्णता दर्शाने के लिए घटते पत्र में १ देकर २ को प्रथम पत्र के रुप में बताया गया है. प्रतिलेखन स्थल में सिंघाणा का भी उल्लेख है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१.५४११, १८-१९४२४-३३). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: जपे सदा हरष बधामणी, अधिकार-४ ढाल ६२, गाथा-३१८९, ग्रं. ४८००, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-६१ अपूर्ण तक नहीं है.) २३६२४. अनुभववाणी सवैयासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२१४११, ११-१५४३८-४१). अनुभववाणी सवैया संग्रह, सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने सवैया ६ से १२ प्रारंभ तक, १७ से २७ प्रारंभ तक, ३० अपूर्ण से ३४ तक व ३७ अपूर्ण से ८५ प्रारंभ तक लिखा है., वि. गाथाक्रम अव्यवस्थित है.) २३६२९. पासाकेवली, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(१)=१३, जैदे., (२१४११, ९४२३-२५). पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कुलीनाय जितात्मने. २३६३१. स्थुलिभद्र नवरसो व जैन गाथा, संपूर्ण, वि. १८६४, चैत्र शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. मु. वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१०.५, ९४२७). १.पे. नाम. स्थूलिभद्र नवरसो, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत्ति दायक सदा; अंति: मनना मनोरथ सवि फल्या, ढाल-९. २. पे. नाम. जैन गाथासंग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. २३६३५. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. श्राव. सालगराम, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (१९.५४११, १३४२९). For Private And Personal use only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. २३६३९. (#) आनंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०.५४१०.५, १४४३१). आनंदश्रावक संधि, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणे मुनि श्रीसार, ढाल-१३, (वि. अंतिम पत्र फटा होने के कारण अंतिमवाक्य संपूर्ण नहीं पढ़ा जा रहा है.) २३६४०. आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७२, आषाढ़ कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. उदयभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०x११, ५४२४-२८). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-६९. पर्यंताराधना-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करीनइ कल्याण कहइ; अंति: लहइ ते शाश्वता सुख. २३६५३. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, स्तुति व चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-९(१ से ८,१९)=१५, कुल पे. ४, दे., (२०.५४११, ७७२०). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, पृ. ९अ-२४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थमंडन, पृ. २०अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२, (पू.वि. अंतिम श्लोक मात्र है.) ४. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिणवर विहरमान; अंति: कारण परमकल्याण, गाथा-३. २३६६६. पक्खीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-५(१ से ५)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२०४११, १४४३१). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २३६७५. अंगुलसत्तरी व अंगुलसत्तरी की अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, दे., (२१४११.५, १२४२८). १. पे. नाम. अंगुलसप्ततिका, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभ समगमण मुसभं जिण; अंति: रइअमिणं सपरगुणहेडं, गाथा-६६. २. पे. नाम. अंगुलसत्तरी अवचूरी, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण. अंगुलसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: ऋषभसमगमनं अनिमिष; अंति: अरुपयितुं श्रीमत्. २३६७६. समस्यामहिम्न स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२१.५४११.५, ६४३४). आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, मु. जयकीर्तिसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: स्तोत्रमेतच्चकार, श्लोक-३३. २३६७९. सीलयवेल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२०.५४११.५, १०-१२x२३-२९). स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहकर पासजिन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१६ गाथा-२ तक है.) २३६८०. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१x११.५, १०४२५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५६. २३६८१. पांत्रीस बोल व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. घाणोराव, प्रले. मु. प्रतापसागर; काशीराम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६५४) जला रक्षे स्थलात् रक्षे, दे., (२१४११,११४२२). For Private And Personal use only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २८७ १. पे. नाम. पेंतीसबोल, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. पैंतीसबोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: पहेले बोले गति चार; अंति: डरे तप जे क्रिया करे. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, स., पद्य, आदि: (-); अति: (-), श्लोक-१. २३६८८. (+) अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२१४११, ९४२६-२८). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलैने कडवै हो पाय; अंति: भार्या जगतनी मात, गाथा-१५९. २३६९३. इलाकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८०४, पौष कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. छाणी, प्रले. पं. गोविंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१०, १२-१५४२८-३०). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा; अंति: न्यानसागर० अजुआलइ छे, ग्रं. २९९. २३७०६. साधुअतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२१.५४१०.५, ९४२६). साधपाक्षिकअतिचार श्वे.म.प., संबद्ध, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दक्कडम. २३७१२. चोमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९१५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले.स्थल. विलावस, प्रले. मु. खुमाणविजय (तपगच्छ); पठ. सा. ज्ञानश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमाणिभद्रजी प्रसादात्., दे., (२१४११, ९४२३). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई २३७१४. पचीसबोलरीचरचा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. *पंक्त्यक्षर अनियमित है., दे., (२१४११.५). पच्चीस बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले गति च्यार; अंति: चारित्र सजोगीमे पावै. २३७१८. जिनरस, संपूर्ण, वि. १९११, फाल्गुन कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. मु. गुलाबचंद; पठ. पं. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१.५४११, ९४२३-२७). जिनरास, मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: गणपद सारद पाय नमी; अंति: कही० धरम धजादे धिंग, गाथा-१९५, ग्रं. २००. २३७२५. वृत्तरत्नाकर सह सुगमा टीका व श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १ से लिखा है, वस्तुतः प्रत अपूर्ण है. अपूर्णता दर्शाने के लिए घटते पत्र में १ देकर २ से ७ बताया गया है., दे., (२१४१०.५, १५४२७). १. पे. नाम. वृत्तरत्नाकर सह सुगमावृत्ति, पृ. २अ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., तृतीय अध्याय के अंतिम कुछेक अंश से है. वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वृत्तरत्नाकराख्यम्, अध्याय-६. वृत्तरत्नाकर-सुगमा वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६९४, आदि: (-); अंति: (१)चक्रे प्रयत्नतः, (२)लक्षणसंयुतत्वात्. । २. पे. नाम. श्लोक, पृ. ७आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. २३७२७. श्रावकपाक्षिकअतिचार चोपई, संपूर्ण, वि. १९२३, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. कोटा(रामपुर), प्रले. य. हरखचंद; पठ. श्राव. हुकमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११, ११४२०-२८). श्रावकपाक्षिकअतिचार-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नाणे दंसण चरणे जाण; अंति: लहिजो शिवसुखनी संपदा, गाथा-१५५. २३७२९. (+) शांतिजिन स्तवन व श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३९ कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. तखतगढ जोधपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१.५४११, ११४२५). For Private And Personal use only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ૨૮૮ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: वंछित ____फल निश्चै पावै, गाथा-२१. २. पे. नाम. श्रावकरी करणी, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२२. २३७३६. (+) पडिकमणा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२०.५४११, ९४२०). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-४८, संपूर्ण. २३७३९. (+) श्रीपाल चरित्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१४१०.५, १२४३२). १. पे. नाम. श्रीपाल चरित्र, पृ. १अ-३१अ, संपूर्ण. मु. शुभविजय, सं., गद्य, वि. १७७४, आदि: ॐ नमः स्वर्द्धिशक्र; अंति: सावधानास्सम जायंतः, (वि. प्रतिलेखक ने कर्तानामादि रचनाप्रशस्ति नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. श्लोक, पृ. ३१अ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. २३७४२. छवीसदवार, संपूर्ण, वि. १९४३, पौष, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. भिवानी, प्रले. रामजीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४११, १३-१४४३५-३८). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात नारकीना नाम; अंति: जोग दो काया १ वचन २. २३७४३. नवतत्त्व का यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, दे., (२०.५४११, १२४२०). नवतत्त्व प्रकरण-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., को., आदि: जीवतत्व प्राणचेतना; अंति: एकसिद्ध अनेकसिद्ध. २३७५२. (+) महासतीद्रपदी चतुपदी, संपूर्ण, वि. १७५४, वेद भूत उदधि वाज्य, ?, कार्तिक शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ३३, ले.स्थल. सिवपुरी, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२१x११, १७X४३). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: कनककीरति सुखकार, ढाल-३९. २३७५३. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३२, फाल्गुन शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्रले. मु. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हासियावाले दोनो भाग कटे हुए है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०x१०, १४४३४-३५). १. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५. २. पे. नाम. गोतमप्रश्नोत्तर स्तवन, पृ. ७आ-११अ, संपूर्ण. १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सरसति भगवति भारती; अंति: रीषभ० कहे मंगल करु, ढाल-१२, गाथा-७६. २३७६१. (+) दानशीलतपभावना संवाद व दूहो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०.५४११, १२-१५४२८-३३). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१००. २. पे. नाम. दूहो, पृ. ६आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. For Private And Personal use only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २८९ २३७६३. अडदीट्ठी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२०.५४११.५, ११४२४-२७). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणेजी, ढाल-८, गाथा-७६. २३७६४. धर्मोपदेश श्लोक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, पू.वि. श्लोक-९ बालावबोध अपूर्ण तक लिखा है., दे., (२०.५४११.५, १४-१५४२९-३४). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २३७७६. (+) चोवीसीजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२६, आश्विन शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. मोहनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२१४११, ९४२३). स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदीश्वरस्वामी हो; अंति: बर महासुति पूर्ण करी, स्तवन-२४. २३७७७. (+) दीपावली कल्प का बालावबोध व संप्रतिराजा दानकरणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१४१२, १२-१४४२३-२८). १. पे. नाम. दीवाली कल्प का बालाविबोध, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानमांगल्य, (२)श्रीवर्धमानस्वामी; अंति: उपरि ए वार्तिक कीधो. २. पे. नाम. संप्रतिराजा दानकरणी, पृ. १२आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २३७८१. सामुद्रिकशास्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, दे., (१९.५४११.५, ११४२९). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: वृद्धिं भवेद्यत, अध्याय-३६, श्लोक-२७१. २३७८२. विवाह विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (१९.५४११.५, १२-१४४२७-३२). जैनविवाह विधि, सं., प+ग., आदि: स्वस्ति श्रीकरं नत्व; अंति: द्वारे प्रिये दीएलो. २३७८३. (#) भवनदीपक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(७)=७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, ८-९४२८-२९). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०१ अपूर्ण तक है.) २३७८४. (#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, ९४२४). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: (-), (पू.वि. नमिउण, तिजयपहुत्त स्तोत्र, अजितशांति स्तव, भक्तामर स्तोत्र संपूर्ण व बृहत्शांति स्तोत्र की प्रथम पंक्ति तक है) २३७८६. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रावण शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, पठ. मु. रूपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१९.५४११.५, ४४२४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अति: सिद्ध १५ भेद सिद्धना. २३७९०. (#) भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११.५, ६४२८). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत जे देवता; अंति: रूपणी लक्ष्मी पामे. For Private And Personal use only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ९अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२३ प्रारंभ तक कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-). कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वनाथनु स्तवन; अंति: (-). २३७९४. दानशीलतपभावना अधिकार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२०.५४११.५, ७४३१-३४). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: सूरि खमउ तेणं, गाथा-५०. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंति: खिमीयइ मुझ उपरइ. २३८००. सर्वज्ञ स्तोत्र व गोचरीदोष गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२१.५४११.५, ५-६४२७-२९). १. पे. नाम. सर्वज्ञ स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रे० मंगलिक तेहनी; अंति: प्रा० हुं मांगु छु. २. पे. नाम, गोचरीदोष गाथा सह टबार्थ, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-५ अपूर्ण तक है. गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मु १ देसिय २; अंति: (-). गोचरी के ४२ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० आधाकरमी ते कहीइ; अंति: (-). २३८०१. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९७०, कार्तिक शुक्ल, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. मु. ज्ञानचंद (गुरु मु. रघुनाथ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४१२, १८-१९४३६-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, गाथा-७००. २३८०५. पार्श्वजिन स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ६, दे., (१९.५४१२, ११४२७). १.पे. नाम. जिनमहिम्न स्तोत्र, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघनाथ, सं., पद्य, वि. १८५७, आदि: महिम्नः पार ते परम; अंति: (१)लिखितो मुमोद भरतः, (२)विशेष गुरुगम्य, श्लोक-४०+१. २. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व स्तोत्र, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु; अंति: प्राप्नोति स श्रियम्, श्लोक-३३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन मालामंत्रपद महास्तव, पृ. ९अ-११अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: धरणोरगेंद्र सुरपति; अंति: तस्यैतत् सफलं भवेत्, श्लोक-३९. ४. पे. नाम. अट्टेमट्टेमंत्राम्नायगर्भित श्रीपार्श्वजिनस्तव स्तोत्र, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि: ओं नमो भगवते; अंति: शुभगतामपि वांछितानि, श्लोक-९. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला-महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति: सुभगतामपि वांछितानि, श्लोक-९, (वि. कर्तानाम नहीं लिखा है.) ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: त्वत्पादरक्षां वहेत, श्लोक-३. २३८०६. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-९(१ से ९)=१०, ले.स्थल. अहिपुर, प्रले. मु. रंगोदय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२०.५४१२, ६४१५-१८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: तत्र प्रथमं जीव; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४४ तक लिखा है.) For Private And Personal use only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २३८०७. प्रतिक्रमणसूत्र, स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ४, जैदे., (२०.५४१२, ११-१२४१९). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-१३अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखकने प्रतिक्रमणसूत्र पत्रांक १असे लेकर १०आ तक लिखा है एवं शेष सूत्र पत्रांक १२असे १३अतक लिखा हुआ है. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहण; अंति: पडहो तिहयणे सयले. २. पे. नाम. नाकोडापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आपण घर बेठा लील करो; अंति: कहै गुण जोडो, गाथा-८. ३. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. ४. पे. नाम. गौतमस्वामी स्वाध्याय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: तूठा संपति कोडि, गाथा-९. २३८१७. स्तवन संग्रह सह जापमंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१०)=१०, कुल पे. ४, जैदे., (१९x१२, १०४२१-२४). १. पे. नाम. जिनरक्षा स्तोत्र भाषा, पृ. १आ-आ, संपूर्ण. जिनरक्षा स्तोत्र-भाषा, मा.गु., पद्य, आदि: गुरुचरण सदा नमो हाथ; अंति: ऊपजे बाधे मंगलमाल, गाथा-२१. २. पे. नाम. रोगहर स्तोत्रभाषा समंत्र, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-रोगहर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पारसनाथ परमसुख दाता; अंति: पार्श्वनाथ मंगल करन, गाथा-१९. ३. पे. नाम. नवपद छन्नुजिननाम स्तवन, पृ. ५आ-८आ, संपूर्ण. ९६ जिननाम स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत नमो सिरनाय; अंति: देवता सदा करै कल्याण, गाथा-३१. ४. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ८आ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: विघनहरन श्रीवीरजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ से १४ व २८ से ३३ तक है.) २३८१९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३५-१९३६, माघ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ५, प्रले. मु. यवेरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१x१०, ७-८४२२). १. पे. नाम. आत्मबोध सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हो सुण आत्मा मत पड; अंति: पामे शाश्वत सद्म, गाथा-६. २. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुँ; अंति: प्रणम्या पातक जाय रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पंदरतिथि सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलि तिथि इणपरि वदे; अंति: छंडि मिथ्या भरमो रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. त्रीजतिथि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. तृतीयातिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिज कहे मुज ओलखी; अंति: दिन दिन सुख समाधि, गाथा-६. ५. पे. नाम. द्वादशीतप सज्झाय, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वादशी कहे भवि भाव; अंति: ते नर पामसे भवनो ताग, गाथा-९. २३८२१. विवाहसार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १८, ले.स्थल. हुरडा, प्रले. मु. प्रीतिकुशल; पठ. मु. मयाकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणिप्रभुजी प्रसादात्., जैदे., (२१४१२.५, ११४२१). For Private And Personal use only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विवाहसार संग्रह, ग. नवनिधिकुशल, सं., पद्य, आदि: वीरं जगत्प्रभुं; अंतिः पितृगेहे शुभेप्सिता, श्लोक - १०३. २३८२३. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे. (२१.५x१२.५, १७- २४३९-४७). विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). " www.kobatirth.org २३८२७. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२० आश्विन शुक्ल, २ शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल, अजमेर, प्रले. पं. वल्लभविजय पठ. श्रावि. सौभाग्यकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., ( २१x११.५, ९x१८-२० ). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसतीजी वरसति; अंतिः पभणे आनंदकारी, ढाल ९. २३८२९. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१ - ८ ( ७ से १४) =१३, कुल पे. ३, जैवे. (२१x१२.५, १३-१५x२६-३१). " " १. पे नाम प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-१७अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह थे.मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंतिः शिवं भवंतु Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वाहा. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १७अ - १९अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा ४४. ३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, प्र. १९अ २१अ, संपूर्ण. १५x२३ - २८ ) . १. पे नाम. ध्यानविलास, पृ. १आ, संपूर्ण आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-४८. २३८३३. ध्यानविलास व ध्यानविलास का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, गु., (२०.५x१२.५, मु. हुकम, मा.गु., पद्म, आदि धुर नमुं परमात्मा; अंतिः होसे बांची गुणनो गेह, गाथा - ७. २. पे. नाम. ध्यानविलास बालावबोध, पू. १आ९आ, संपूर्ण. ध्यानविलास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवे ते ध्यानना चार; अंति: चोथो पायो जाणवो. २३८३६. (+) ऋषिमंडल व घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२१x१२.५, ९१७-२१). १. पे. नाम ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमुत्तमं श्लोक-६६, ग्रं. १५०. २. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, पृ. ६आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीरः अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. २३८४०. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०४, श्रावण शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले. स्थल. इंद्रपट्टन, प्रले. मु. चंदनकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५x१२.५, ४४१७- १९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि; तीन भुवन रे विषै; अंतिः श्रुतसमुद्र हुती. 2 २३८४७. शुकनावली अनुक्रमणिका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. "पंक्त्यक्षर अनियमित है. वे., (२१x१३.५). शुकनावली- अनुक्रमणिका, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), २३८४९. बंगचूलिका प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, दे., ( २१.५X१४, ११-१२x२३-२६). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिब्भरनमियसुरनर; अंति: दढचित्तो होह पइदिय... २३८५० (+) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५-९ (१ से ७,११ से १२ ) = ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे.. गुटका, (१९.५x१३.५, १४-१६४२४-२६ ) . For Private And Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir " . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २९३ नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: कोई नये न अधूरी रे, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. २३८५४. नवकार, तीनचौवीसी नाम, जिनदर्शन स्तोत्र, पूजा संग्रह व पंचमंगल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. ८, जैदे., (१८x१३, ९x१७). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताण; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. २. पे. नाम. तीनचौवीसी नाम, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. तीनचोवीसीजिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अतीत चौवीसी नाम; अंति: त्रिकाल नमस्कार छे. ३. पे. नाम. जिनदर्शन स्तोत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. प्रार्थना स्तुति , सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: हन्यते जिनदर्शनात्, श्लोक-१३. ४. पे. नाम. लघुरविव्रत कथा, पृ. ३आ-७आ, संपूर्ण. रविव्रत कथा-लघु, मु. मनोहरदास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम वंदि सब जिनवर; अंति: संकट रहै न कोय, गाथा-३५. ५. पे. नाम. सिद्धि पूजा, पृ. ७आ-११अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र पूजा, सं., पद्य, आदि: ऊर्ध्वाघोरयुत; अंति: सोभ्येति मुक्तिं. ६. पे. नाम. देव पूजा, पृ. ११अ-२०अ, संपूर्ण. २४ जिन पूजा, सं., प+ग., आदि: विघ्नौघाः प्रलयं; अंति: निवि अरिहंतावलिहं. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन पूजा, पृ. २०अ-२२आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जगद्गुरुं जगद्देवं; अंति: पार्श्वनाथ जिनेश्वरो. ८. पे. नाम. पंचमंगल, पृ. २२आ-२४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: पणमवि पंच परम गुरु; अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय कल्याणक गाथा-३ अपूर्ण तक है.) २३८५७. (+) गुणठाण गीत, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., गुटका, (१९४१३, ९-१२४१८-२४). गुणस्थानक गीत, मु. ब्रह्मवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाणी भवियण सुख करइ, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २३८६०. पंचकल्याणक पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-५(२ से ४,८ से ९)=८, दे., (१७.५४१२, ९४२६-२८). पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: वंछित दाय सुहायो रे. २३८६१. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. जामला, दे., (१७.५४१२, ९४२६). ८ प्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: सरस वचन रस वरसती; अंति: जई शिवमंदिर लील करो, ग्रं. ९१. २३८६७. श्रावक पाक्षिक अतिचार, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-११(१ से ११)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (१८.५४११.५, १०४२९). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ज्ञानाचार अपूर्ण से वीर्याचार अपूर्ण तक है.) २३८७०. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (१८x११.५, ८-९x१८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोकांक ५ अपूर्ण से ४३ तक है.) २३८७६. स्तोत्र संग्रह, स्तुति व दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३-९(१ से २,४१ से ४२,४५ से ४६,४९ से ५१)=४४, कुल पे. ६, दे., (१८x११.५, ७X१७). For Private And Personal use only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. ३अ ९आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंतिः अभयदेव विनवइ आणंदिय, गाथा - ३०, ( पू. वि. गाथा - ७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, पृ. ९आ - ३६आ, संपूर्ण, प्रले. पं. रत्नचंद (बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (७७८) कर कुंबड कर बेगडी. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अनिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः नमामि साहम्मिया तेवि, (प्रतिपूर्ण, पू. वि. उवसग्गहरं स्तोत्र नहीं है. ) ३. पे नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३७अ-४४आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १८-२७ अपूर्ण तक व ३६ अपूर्ण से नहीं हैं.) ४. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १, पृ. ४७अ - ४७आ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: ( - ), ( प्रतिअपूर्ण, पू. वि. गाथा - १ अपूर्ण से है.) ५. पे. नाम. दादाजी री स्तुति, पृ. ४७-४८आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिणचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः आयो सहूं श्रीसंघ आस; अंतिः आस्वां सफल फली, गाथा - ७. ६. पे. नाम. देवी स्तोत्र, पृ. ५२अ - ५३आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं. अपूर्ण जैन काव्य / चैत्य / स्त / स्तु / सझाव / रास / चौपाई / छंद / स्तोत्रादि *, प्रा., मा.गु., सं., हिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से १३ तक है.) श्रेष्ठ, पृ. १०- २ ( ३ से ४) = ८, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., २३८७९. सौभाग्यपंचमी माहात्म्य, अपूर्ण, वि. १९वी (१७.५X११.५, ६X१७). सौभाग्यपंचमीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (१) भव्यैरासाद्यते लक्ष, (२) संसारमांहे ज्ञान; अंति: (-). २३८८२. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९०९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले. स्थल. अजयदुर्ग, प्रले. पं. उदयविजय; पठ. श्रावि. सौभाग्यकुंवर, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., गुटका, (१८.५x११.५, १६x९ - १० ). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंतिः मंगलिकमाला विस्तरे ए, गाथा - ७०. २३८८७ (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि, २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, दे., ( १९x११, ११-१२x२२-२५). महावीर जिन स्तवन, मु. मुक्तिकमल, मा.गु., पद्म, वि. १९७३, आदि: त्रिशलानंदन प्रणमी; अंतिः जिन आणा चित्त लाई रे, ढाल - ७. २३८९१. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५०, प्र. वि. देवनागरी व गुजराती मिश्रित लिपि, बीच में से कुछेक पत्र फटे हुए है., वे., ( २४.५x१२, ४०-४५x२०-२२ ). विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २३८९३. नारचंद्रयोतीष सह टबो, संपूर्ण, वि. १८४७, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. ५४, ले. स्थल. शुद्धवंति, प्रले. मु. सिद्धमेरु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., गुटका, ( १७.५X११, ६x२२ - २६). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (१) शेषनागो विधियते, (२) कुसल चउत्थं ठामि श्रोक ५१९. ज्योतिषसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थंकरदेव; अंतिः शेषनाग घुरला गिणीजे. २३८९९ जैन संध्या, उवसग्गहर स्तोत्र व विंशोत्तरि पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४+१ (१४) - १५, कुल पे. ३, वे., ( १९x११, ५x१०-१३). For Private And Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १. पे. नाम. जैनसंध्या, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण, वि. १९२७, संवत् मुनिगुणांकेंदु, माघ शुक्ल, ३, मंगलवार, ले.स्थल. कुलाडी, प्रले. ग. हर्षकल्याण (खरतरगच्छ); पठ. मु. देवचंद्र यति, प्र.ले.पु. सामान्य, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., गद्य, आदि: (१)प्रथम शुद्धजलेन, (२)जिनं जिनं जिनं वाक्; अंति: आत्मने नमः जाप्य १०८. २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ; अंति: तेनाह सूरि भगवंत, गाथा-१३. ३. पे. नाम. विंशोतरि पूजा, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. विंशोत्तरि पूजा, सं., गद्य, आदि: स्नानकर अबोटवस्त्र; अंति: (-). २३९००. वेदरवीनी चोपाई, संपूर्ण, वि. १९२०, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. सीघाणा, प्रले. सा. चंद्रावली (गुरु सा. रामकुंवरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१७.५४११, १९४३४). वैदर्भी चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जिणधरमसुं जागता हुवो; अंति: चढई वली न आवई अवतार, ढाल-७. २३९०१. हंसराजवछराज चोपड़, संपूर्ण, वि. १९२१, कार्तिक कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३६, ले.स्थल. दादरी, प्रले. सा. चंदाजी (गुरु सा. रामकुंवरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१७.५४११, १८-२०x१८-२०). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: ए हंस अनै वच्छराज, खंड-४ ढाल ४८. २३९०२. हरबल चोपड़, संपूर्ण, वि. १९२०, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. सिघाणा, प्रले. सा. चंदाजी (गुरु सा. रामकुंवरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१८x११, १४४२४). हरिबल चौपाई, उपा. पुन्यहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: श्रीगुरु पाय प्रणमी; अंति: पाठक० घरघर मंगलमाल, ढाल-१७. २३९०६. (+) साधुअतीचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. ग. गौतमकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९४१०.५, १०४२३-२४). साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २३९०९. बूद्ध रास, अपूर्ण, वि. १९२४, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. मु. हीरजी (गुरु मु. हेमचंद); पठ. श्राव. चित्रभूज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१८x११, ९-१०x१५-१७). बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ते घरि टले क्लेश तो, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-१ से ८ नहीं है.) २३९२२. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७६४, मध्यम, पृ. १५-१(२)=१४, पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण से १२ अपूर्ण तक नहीं है., ले.स्थल. वाराही, प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९x१०.५, ५-६४२४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: लहिओ भव्वाण हिययकए, गाथा-८९, (संपूर्ण, वि. १७६४, फाल्गुन कृष्ण, १४) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व जीवनू; अंति: भव्यजीवने हित माटइ, (संपूर्ण, वि. १७६४, चैत्र शुक्ल, १०) २३९२७. भक्तामर स्तोत्र व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ३, दे., (१८x११, ८x११-१५). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-१४अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. बाहुबल स्वाध्याय, पृ. १४अ-१७आ, संपूर्ण. बाहुबलि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबल शुक्ल ध्याने; अंति: तेह समकित सिंधुरा, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने एक ही गाथा की दो-दो गाथा गिनी है.) For Private And Personal use only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. वैराग्य गीत, पृ. १७आ-१९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा काई; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-९. २३९३७. (+) उपदेशमाला प्रकरण, पूर्ण, वि. १५२९, ज्येष्ठ शुक्ल, २, गुरुवार, जीर्ण, पृ. ८०-४(१,४,७५,७९)=७६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (१७४१०,७४२०). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. २३९३९. (+) जंबूचरत सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०२-१९०४, श्रेष्ठ, पृ. ७१, प्रले. मु. महादेव (गुरु मु. तुलसीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (१९.५४१०, ६-७४२३-२९). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१, ग्रं. ७५१, (वि. १९०२, पौष शुक्ल, १, ले.स्थल. दादरी) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वर्द्धमानमानम्य, (२)त० तेणकाले चउथो आरो; अंति: ते आराधक कह्या, ग्रं. १२००, (वि. १९०४, आषाढ़ कृष्ण, ९, मंगलवार, ले.स्थल. सिंघाणानगर) २३९४२. मुक्तिनिसरणी व विवेकमंजरी, संपूर्ण, वि. १९८०, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, ले.स्थल. सिरदार, प्रले. मु. गणेशदास (गुरु मु. लछीराम, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०x१०.५, १२४३५-३८). १. पे. नाम. मुक्तिनिसरणी १४ गुणस्थानक वर्णन उपदेश, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक वर्णन गीत, मु. किशनलाल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम भव्य भवथिति; अंति: होत है अजरअमर शिवठाम, गाथा-८५. २. पे. नाम. विवेकमंजरी, पृ. ६अ-१६आ, संपूर्ण. किसनलाल, मा.गु., पद्य, आदि: नमो देव अरिहंतजी; अंति: पूरन ग्रंथ उदार, गाथा-२३८. २३९५७. चौमासी देववंदन, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (१८x१०.५, १२४१९). ___ चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: (-), (पू.वि. गिरनारतीर्थ स्तवन गाथा-३ तक है.) २३९७१. भक्तामर, कल्याणमंदिर व पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३, जैदे., (१८.५४१०, ११४२८). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. कल्याणमंदर स्तोत्र, पृ. ६अ-१०अ, संपूर्ण, प्रले. मु. पर्वत, प्र.ले.पु. सामान्य. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १०आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. २३९७८. षट्प-घटाघट विचार, संपूर्ण, वि. १८६४, फाल्गुन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. खेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९४१०.५, १०x१९-२०). तिथि विचार, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरान्नवशत; अंति: शंकाज्वरनाशौषधीति. २३९९४. सेनूंज रास, संपूर्ण, वि. १७८६, आश्विन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ६, पठ. सा. सरूपशोभा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८x१०.५, १३-१४४३४-३६). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: थकां ए पामीजै भवपार, ढाल-६, गाथा-१११. २३९९६. (+) प्रतिमादिस्थापन श्रीवीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९.५४११, १६-१७४३८-४०). For Private And Personal use only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २९७ महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा सिर वहेस्येजी, ढाल-७, गाथा-१४४. २३९९८. (-) अमरसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १९६६, आश्विन कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. १०,ले.स्थल. लोडीसाडीत्र, प्रले. सा. फुली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (१९४११.५, १८४३१-३२). अमरसेन चौपाई, ऋ. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: श्रीमद्जिन आददे विहर; अंति: दिन मन जोडी उछरंगरे, ढाल-२३. २४०१७. माणिभद्र छंद व नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (१७.५४१२.५, १३४१९). १. पे. नाम. माणिभद्र छंद, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण.. माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती स्वामीने पाय; अंति: आपो मुज सुख संपदा, गाथा-४०. २. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५ अपूर्ण तक लिखा है.) २४०२६. गोतम रासो, संपूर्ण, वि. १९०९, फाल्गुन शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. मढार, प्रले. श्राव. दलीचंद दरसणी; पठ. श्राव. अमीचंद; श्राव. मयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (७८६) एक पोथी दुजी पदमणी, दे., (१७४११.५, १०x१८-१९). १. पे. नाम. गोतम रासो, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-४८. २. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. १२आ, संपूर्ण. कवित संग्रह*, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कवित-२.) २४०३४. अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१९(१ से १७,२० से २१)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे., गुटका, (१७.५४१३, १२४२१). ___ अंजनासुंदरी रास*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६ से ९७ तक है.) २४०३६. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, भाद्रपद शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-२(२,१३)=१२, प्रले. श्यामदत्त; पठ. मु. उदयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., गुटका, (१९.५४१३,८-९४११). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४८. २४०६६. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९११, माघ शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. वडलू, प्रले. केवलराम; पठ. पं. तिलोकचंद (गुरु मु. भवानीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१x१०.१, ९४३४). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० जयउ; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी. २४०७०. (+) गुणठाणाद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१९.५४१२, १४४२५-२७). १४ गुणस्थानक २५ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार लक्षणद्वार; अंति: मिथ्यादृष्टि जाणवा. २४०७५. स्नात्र व अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, जैदे., गुटका, (१९.५४१५, १२४२३). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ८अ-१२अ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुचि सुगंधवर कुसमयुत; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८. For Private And Personal use only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४०९०. चैत्यवंदन, सज्झाय संग्रह व दोबत्तीसी जिननाम गरणु, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. १०, दे., (२०४१४, १९४२३). १. पे. नाम. अनागतचौवीशीजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मनाभ पहेला जिणंद; अंति: नय वंदे सुजगीस, गाथा-१३. २. पे. नाम. रोहिणीतप सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. __आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद; अंति: विजयलक्ष्मीसूरि भूप, गाथा-९. ३. पे. नाम. पर्युषण चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय शणगारहार; अंति: आगम वाणी विनीत, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषण चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. __ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीदेवाधिदेव; अंति: प्रवचन वाणी वनीत, गाथा-३. ५. पे. नाम. पर्युषण चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पतरुवर कल्पसूत्र; अंति: उपजे विनय विनीत, गाथा-३. ६. पे. नाम. पर्युषण चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुपन विधि कहे सुत; अंति: वाणी वनीत रसाल, गाथा-३. ७. पे. नाम. पर्युषण चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिननी बहिन सुदर्शना; अंति: धरे सुणज्यो एक चित्त, गाथा-३. ८. पे. नाम. पर्युषण चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर नेमनाथ; अंति: सरखी वंदु सदा वनीत, गाथा-३. ९.पे. नाम. पर्युषण चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परवराज संवत्सरी दिन; अंति: वीरने चरणे नमु शीस, गाथा-३. १०. पे. नाम. दोबत्तीसी जिननाम गरणु, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: श्रीजयदेवनाथाय नमः; अंति: श्रीतिरथनाथनाथाय नमः. २४०९६. मायाबीज विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२०४१३.५, १२४२६). मायाबीज विधि, सं., गद्य, आदि: विधिना ह्रींकार; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २४०९८. पोसदसमी कथा, संपूर्ण, वि. १९०७, पौष शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, दे., (२०.५४१३, १४-१५४२८). पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथा; अंति: श्रीवीरस्वामीनाकथयत्. २४११०. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२०४१३, १२४२४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४८. २४११८. ज्योतिषसार व पुस्तकमहात्म्य काव्य, संपूर्ण, वि. १८५५, भाद्रपद कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, ले.स्थल. फुलगीसी, प्रले. मु. जगरूप; दत्त. धरमचंदजी दरसणी; गृही. माणकचंद दरसणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यह प्रत दरसणी धरमचंदजी ने दरसणी माणकचंदजी को दी राजींदा वास्ते. सं.१८५६ मीगसर वद १२ दिनै., जैदे., (२१४१३, १२-१३४२३). For Private And Personal use only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १. पे. नाम. ज्योतिषसार, पृ. १अ-२२अ, संपूर्ण. आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअहंतजिनं नत्वा; अंति: कुसल चउत्थं ठामि, श्लोक-२५८. २. पे. नाम. पुस्तकमहात्म्य काव्य, पृ. २२आ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. २४१२१. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., गुटका, (२१.५४१२.५, २२४१४). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: सिद्ध भरतपुत्रादी. २४१३२. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२१४१२.५, ११४२७-२८). स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: तुह पास मंगल पईवो. २४१३५. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, जैदे., गुटका, (२१४१२.५, १२४१८-२१). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा-१ से ६ नहीं है.) २४१३७. धन्नाशालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं दिया है. पत्रों की गिनती करके अनुमानित नंबर दिया गया है., जैदे., (२०.५४१२.५, १०४२८-३०). शालिभद्रमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-). २४१४२. श्रावक पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९१३, श्रावण कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. १३-४(५ से ८)=९, जैदे., (२०४१२, ९-१०४२०). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणइ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २४१४३. (#) सामुद्रिकशास्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., गुटका, (१९४१२, १२४२१-२४). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: लक्षणमिक्ष्यते. २४१४५. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., गुटका, (१९.५४१२, २९-३०x१४-१६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-९ दोहा-१२ तक है.) २४१४९. सुदयवव्वस कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३९-१७(६,१०,१३ से १४,१६,१८ से २१,२३,२५ से २६,३० से ३३,३५)=२२, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१x१२, १३-१४४३०). सदयवत्स रास, मा.गु., पद्य, आदि: माई महामाई मज्झे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६८५ तक है.) २४१५०. नवपद विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४+१(९)=१५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२१.५४१२.५, १४-१९४३८-४३). नवपद विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: ऊँ ह्रीं नमो अरिहंत; अंति: (-), (पू.वि. तप पद अपूर्ण तक है.) २४१५९. विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, दे., (२१४११.५, २४-३०x१६-१९). विविध विचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २४१६७. सम्यक्त्व कौमुदी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४४-६(४,११ से १३,३५,४०)=३८, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२०.५४११, १६-१७४२९-३४). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-). २४१६९. रोहिणी कथा, संपूर्ण, वि. १९४९, भाद्रपद शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. सिरूरकसारारी, प्रले. पं. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१x१०.५, ११४२९-३०). For Private And Personal use only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रोहिणीतपफल कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)जे पुरुष उच्छिष्ट, (२)श्रीवासुपूज्यमानम्य; अंति: सदा बोले केवलनाणि. २४१७२. आनंदघन बहोत्तरी, पूर्ण, वि. १९२०, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३७-२(२ से ३)=३५, ले.स्थल. चाकणा, प्रले. मु. कस्तुरविजय; पठ. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०.५४११, ९४२०-२१). आनंदघन पद संग्रह, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: क्यारे मुनि मिलसे; अंति: आनंदघन मेरे आनंदघन, पद-८३, ___ ग्रं. ५००, (पू.वि. पद-३ से ८ तक नही है.) २४१७५. प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९१०, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. नगविजय; पठ. पं. चुनीविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०४११, २५४४८). प्रश्नोत्तर, मु. दोलतराय, मा.गु., गद्य, आदि: जे पडिकमणा मध्ये; अंति: गुल्माधिकारसूत्रम्. २४१८०.(+) श्लोक संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८६१, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से ४)=५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१.५४१०.५, १२४२३). श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). श्लोक संग्रह-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २४१८१. कल्याणमंदिर का भाषानुवाद, संपूर्ण, वि. १८७४, चैत्र कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. कोटडी, प्रले. मु. गुलाबचंद ऋषि; पठ. मु. भीमराज (गुरु मु. गुलाबचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९x१०.५, ९४२२). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: परमज्योति परमातमा; अंति: कारन समकित शुद्धि, गाथा-४५. २४१८८. बारव्रत टिप्पण व वस्तुनिर्धारण नियम, अपूर्ण, वि. १९११, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४२, कुल पे. २, प्रले. मु. केसरीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०x१०.५, ७४१७-२१). १. पे. नाम. द्वादशव्रत टिप्पनिका, पृ. १आ-३९अ, संपूर्ण. द्वादशव्रत टिप्पणक, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: त्याग कर छु. २. पे. नाम. वस्तुनिर्धारण नियम, पृ. ३९आ-४२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वस्तुनिर्धारण नियम-बारव्रते, मा.गु., गद्य, आदि: दिन में कुशील सेवानो; अंति: (-). २४१९१. नवकार मंत्र सह बालावबोध, गौतमस्वामी स्तवन व सर्पविषउतारण मंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४१०.५, ११४२६-३२). १. पे. नाम. सर्पविषउतारण मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २. पे. नाम. नवकार मंत्र सह बालावबोध, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने माहरो; अंति: जीवो भविआणिं ध्याओ. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी दीपालिका स्तवन, पृ. ५आ-१०आ, संपूर्ण.. गौतमस्वामी दीपालिका रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभूति गौतम भणइं; अंति: हीरगुरु गुण विचारी, ढाल-१३, गाथा-७५. २४२०६. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८७५, वाणरिषिवसुचंद्रमा, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १५, प्रले. त्रिपुरारि; पठ. सवाइराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४१०, ८-९४२७-३२). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: सत्योपाशक केवलं. २४२१०. हरिचंद्रराजा रास, त्रुटक, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-१७(२ से ४,६ से ८,१० से १९,२३) =८, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४१०.५, १०-१३४२५-३०). हरिश्चंद्रराजा रास, ग. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६७९, आदि: शुभ मति आपो सारदा; अंति: (-). For Private And Personal use only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३०१ २४२१५. जंबूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. ६०, ले.स्थल. बेला, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२३४१०.५, ६४३५-३८). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१, (वि. १८४१, फाल्गुन कृष्ण, ८, शुक्रवार) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालने विषई ते; अंति: ते सांभली सद्दहवो, (वि. १८४१, चैत्र शुक्ल, २, मंगलवार) २४२२१. प्रज्ञापनासूत्र-पदविचार बीजक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२३.५४११, ११४३०-३४). प्रज्ञापनासूत्र-पदविचार बीजक, सं., गद्य, आदि: (१)पणदणा ठाणाई, (२)प्रथमे पदे प्रथम; अंति: त्रिंशत्तमं समाप्तम्. २४२२५. (+) कल्पसूत्र की पीठिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. अंत में संघस्तुति टबार्थ सहित लिखी है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१०.५, ५४३३-३४). कल्पसूत्र-पीठिका*, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: श्रीकल्पः सहकार एष; अंति: धर्ममुदाहरंति. कल्पसूत्र-पीठिका का टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीकल्प सहिकार वखाण; अंति: ते गुरुनइ प्रसादइ. २४२२८. ज्योतिषसार व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४११, १२४३०-३१). १. पे. नाम. ज्योतिषसार, पृ. १आ-२२अ, संपूर्ण. आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: सोल पंच पणयाला, श्लोक-२८३. २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २४२२९. (+) कर्मग्रंथ सह टबार्थ, श्लोक संग्रह व बंधादि लक्षण, संपूर्ण, वि. १७४०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ४, अन्य. मु. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, ३४२५). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-१. २. पे. नाम. षट्दर्शन श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. षड्दर्शन श्लोक, सं., पद्य, आदि: जैन मीमांसकं बौद्ध; अंति: जानीयाद्दर्शनानि षट्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. कर्मविपाक कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १आ-१९आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरदेव प्रतइ; अंति: श्रीदेवेंद्रसूरीइं. ४. पे. नाम. बंधउदयउदीरणासत्ता लक्षण, पृ. १९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: बंध ते कहीइ मिथ्या; अंति: तेह सत्ता कहीइ. २४२३०. (+) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-३(१ से २,१२)=१८, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, १३४३२-३५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३९४ तक है.) २४२३१. (+) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२४१०.५, ११४२०-२१). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण तक है.) २४२३२. माधवानल चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११, १३-१४४३८-४२). For Private And Personal use only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची माधवानल चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्म, वि. १६१६, आदि: देव सरसति देव सरसति; अंतिः (-), (पू.वि. गाथा - १५९ तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२३५ (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, ले. स्थल, वालूचर, प्रले. मु. ऋद्धिसार ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. शंभवजिने, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. दे. (२१x११, १०४३४). १. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तवन, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नमिय पयकमल शुभ भाव; अंतिः पुण्यसाग० आराहउ मुदा, गाथा - २१. २. पे. नाम, सत्तिरिसोतीर्थंकर स्तवन, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण. १७०० जिन स्तवन, मु. कपूरचंदजी, मा.गु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीदायक; अंतिः श्रमण चंदकपूर ए. गाथा - ११. ३. पे. नाम. कर्मप्रकृति स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. कम्मपयडी स्तवन, उपा. तत्त्वप्रधान गणि, मा.गु., पद्य, वि. १९४१, आदि: सेना माता जितारि; अंत: नित चित बसी, गाथा- १४. २४२३८. कल्याणमंदिर स्तोत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-२ (१ से २ ) = ८, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५X११, १५X३५ -४१ ). कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - २ अपूर्ण से ३९ तक है.) २४२४०. पंचांगुली स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९११, पौष कृष्ण, ३०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले. स्थल. योधपुर, प्रले. पं. रविविजय पठ श्राव. रायमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४११, १२३२-३६). १. पे. नाम. पंचांगुलीकवच स्तोत्र, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मुक्ति च मंगलं नाम ॐ; अंतिः स्वयमेव शंकरोपमा, श्लोक - २७. २. पे. नाम. चौदपूर्वसारे पंचांगुली सहस्रनामपाठ, पृ. २आ- ९आ, संपूर्ण. १४ पूर्वसारे - पंचांगुलीसहस्रनाम पाठ, सं., पद्य, आदि: मेरुशिखरासीनं देवदेव; अंतिः नास्तिकस्य न दापयेत्, श्लोक-१५१. २४२४३. दशवैकालिक सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदे., (२३.५X१०, १५X४१-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन- १०. २४२४५. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८८४, पौष शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. वीघोदनगर, प्रले. मु. गुलाबचंद ऋषि; पठ. मु. दीपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X११, १२X३१). साधुवंदना बडी, मु. जेल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोवीसी अंति: जैमलजी एह तरणनो दाव, गाथा - १०५. २४२४७. अजितशांति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३७, आषाढ़ कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले. स्थल. हरजी, प्र. ग. खतिविजय (गुरु मु. उत्तमविजय); पठ. मु. गुमानविजय (गुरुग. खंतिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीआदेसरजी सुप्रसादात्., दे., (२३x११.५, १०x२८-३२). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा- ४०. अजितशांति स्तव - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अजियं क० अजितनाथ बीज; अंति: कल्याणमाला विस्तारे. २४२५०. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२२x११, १५x२७-३१). साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: शांतिनाथ जिन सोलमउ अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल - ४ गाथा - १३ तक लिखा है.) २४२५४. चंद्रलेहा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पू. ३१-१४ (१ से १४) - १७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैवे., (२१.५X११.५, १३X३०-३२). For Private And Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३०३ चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१३ गाथा-२ से ढाल-२८ गाथा-६ तक है.) २४२६४. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२, ४४२०). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पगाम सज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांछउ निवर्तवा कहिउं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक कुछेक अंश का ही टबार्थ लिखा गया है.) २४२६६. मेरुत्रयोदशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८८६, वैशाख शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२२४१२, १०४३३). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः. २४२६७. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अलग-अलग प्रत के पत्र मिल कर संपूर्ण है., दे., (१९.५४११.५, १७४३६). पाशाकेवली-भाषा", संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: फल पामसे सही कर जाणै. २४२६८. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७५, फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. कल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, ११-१२४२७-२९). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुं नित परमेश्वर; अंति: इम नेमविजय __ जयकारे, ढाल-१५. २४२७४. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. धोलेरा, पठ. श्राव. वीरचंद लाधा वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२, १२-१४४२९). स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: दीवो मंगलिक दीवो. २४२७७. त्रीसचौवीसी जिननाम गणणो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२३.५४१२.५, २६४१८). ३० चौवीसी जिननाम गणj, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: चावखा कवली इत्यादिक. २४२७९. (+) दानसीयल चोपी रास, संपूर्ण, वि. १८४३, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पंन्या. राजेंद्रविजय (गुरु पंन्या. फतेविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (५१७) यादृशं पत्रयो दृष्टं, जैदे., (२३.५४१२.५, १३४३०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: सकल संघ सुजगीसो रे, ढाल-४, गाथा-९७. २४२८६. सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-७(२ से ५,९,१२ से १३)=७, दे., (२४४१२, १०४३१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: कृतिमहतां मंडनमिदं, श्लोक-१००. २४२९०. (-) कथा व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. कथा व बोल पाठ मिश्रित हो गया है., अशुद्ध पाठ., दे., (२२.५४१२.५, १२-१३४२९-३१). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). २४२९२. हेमदंडक व भाषा, संपूर्ण, वि. १९०४, वैशाख कृष्ण, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, दे., (२३४१३, १३४३४). १. पे. नाम. हेमदंडक, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवभेया सरीराहार; अंति: अप्पाबहुदंडगम्मि, गाथा-५. २. पे. नाम. हेमदंडक की भाषा, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण. हेमदंडक-भाषाटीका, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: जो ध्रुव अलख अमूरती; अंति: कीनों हेमदंडग सुजगीस, गाथा-१०६. २४२९३. ढोलामारु रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., गुटका, (२३४१३, १०-१२४३०). For Private And Personal use only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ढोलामारु चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर सामिनी; अंति: (-), ( पू. वि. गाथा - ५९२ तक है. ) २४३०१ (४) स्तवनचौवीसी, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. अक्षर मिट गए हैं, दे., (२१.५X१२, १२x२६ - २८ ) . स्तवनचौवीसी, मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदिः उठत प्रभात नाम जिनजी; अंति: ( - ), ( पू.वि. मात्र रचना प्रशस्ति नहीं है.) (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४३०३. स्वात्मालोचनाय स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९७, फाल्गुन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. आगलोड, प्रले. पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२२.५४१३ ५४२६-२८). " रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मंगल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक २५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे भगवंत तु केहवो; अंति: निलय क० घर छई. २४३०६. । पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०-१ (१) ९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, दे., (२४४१३, ७-१२४१४- २४ ). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ से ६६ तक है.) २४३१३. गोतमस्वामीनो रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ ( २ ) = ६, दे., (२२.५x१३, ९४२८-३१). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: नितनित मंगल उदय करो, गाथा- ४७, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से १३ तक नहीं है.) २४३१७. होरी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ३, दे., गुटका, (२२.५X१३, १५-१६X३०). १. पे नाम. स्तवनचीवीसी, पृ. १अ ६आ, संपूर्ण. - चेतन, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो रे भविजन जिन; अंति: चेतन गायो मास वसंत, स्तवन- २४. २. पे. नाम. होरीचीवीसी, पृ. ६आ- १२अ संपूर्ण. चेतन, मा.गु., पद्य, आदि: आज ऋषभ जिन होरी खेले; अंति: तुम साहिब गुन खांन, गीत- २४. ३. पे. नाम. कर्मप्रकृति होरी, पृ. १२आ, संपूर्ण. चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: कर्म महाबलवान होरी; अंति कीजै दीजै अविचल दान, गाथा-६, २४३१८. अध्यात्म बाराखडी व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५ - १० ( १ से १० ) = ५, कुल पे. ३, दे., " ( २२x१३, २०x२७-३५). १. पे नाम, अध्यातम बारखडी, पृ. १९अ १५अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र है. अध्यात्म बाराखडी, चेतन, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: (); अंति: कारणे चेतन रचे सुरंग, डाल- ३६, गाथा - ४३७, (पू. वि. गाथा - ३२० से है.) २. पे नाम. जीवदया शिज्झाय, पृ. १५अ संपूर्ण. जीवदया सज्झाय, चेतन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवचन प्रमान है; अंतिः चेतन जीवदवा पहिचान, गाथा-७, ३. पे. नाम. आतमसिच्या स्वाध्याय, पृ. १५ अ- १५आ, संपूर्ण. पदेशिक सज्झाय- आत्मशिक्षा, चेतन, पुहिं., पद्य, आदि: अकल सरूपी आतमा; अंति: तेरे चरन निहार ललना, गाथा- ७. २४३२१. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ११, दे., (१९.५x१०.५, १०-१३x२२ - ३५). , १. पे नाम. १४ समूर्च्छिमपंचेंद्रिय उत्पत्तिस्थानक जीव सज्झाय, पृ. १अ २अ, संपूर्ण मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर प्रणमी पाय; अंतिः सुणे तस लील विलास, गाथा - १०. २. पे. नाम. सोलसती सझाय, पृ. २अ - ३आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि आदिनाथ आदि जिनवर; अंति: सोलमी सती पद्मावती ए, गाथा - १७. For Private And Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३०५ ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: फुल गंध अक्षत अरु; अंति: है सौभाग्य मुणिंद की, गाथा-५. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: इण रे डुंगरीयानी; अंति: उतारो मोरा राजिंदा, गाथा-६. ५. पे. नाम. इरीयावही सज्झाय, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अमे इरियावही पडिकमसु; अंति: मुक्तिफल अनुभवशे रे, गाथा-१८. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: धर्म म मुकीस विनय म; अंति: सो चिरकाले नंदोरे, गाथा-८. ७. पे. नाम. क्रोध री सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करिये भोला; अंति: उपशम आणो पासे रे, गाथा-९. ८. पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिणवर करी; अंति: एह नाम समरो निसदीस, गाथा-५. ९. पे. नाम. पचखांण री सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानफल सज्झाय-शत्रुजयतीर्थे, मु. प्रीति, मा.गु., पद्य, आदि: पचखि पचक्खाण परभाति; अंति: तीर्थ अभिध्यान धरता, गाथा-७. १०. पे. नाम. सर्वार्थ सिज्झाय, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: पुन्य थकी फले आसो रे, गाथा-१६. ११. पे. नाम. साधुपद सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति गुरु शुद्ध; अंति: हर्षविजय हितकारी रे, गाथा-५. २४३२२. अजितशांति व बृहद्शांति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२३.५४१३, ११-१२४२८-३४). १. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. २. पे. नाम. मोटिशांति, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. २४३३८. स्वाध्याय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, दे., गुटका, (२२४१३.५, १५४२९). १.पे. नाम, पैतीस अंक के स्वाध्याय, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. ३५ अक्षर स्वाध्याय, चेतन, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: कर लीजै शुभ काम जगत; अंति: भणे गुणे मंगलमाल रे, ढाल-३५. २. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: काया माया जगतमें; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) २४३४७. (-) बारहव्रत रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. दुर्वाच्य., दे., (२२४१४.५, १०-१२४१९-२२). श्रावक १२ व्रत रास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक रा व्रत बार; अंति: (-), (पू.वि. पौषधव्रत तक है.) २४३५४. ऋषभजिन व शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२४४१३.५, १६४३३-३६). १. पे. नाम. आदिजिनविनती स्तवन, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतीजी वरसती; अंति: जी रे दीजो परमानंद, ढाल-७. For Private And Personal use only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा शांतिजिणंद की; अंति: संघ मंगलकारी बेलो, गाथा-१५. २४३५७. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-२(१,४)=८, दे., (२४४१४, ११४२५-२८). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: कोई नये न अधूरी रे. २४३५८. सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२३४१४, ९-१२४१६-१९). सवैया संग्रह, मु. सुगन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कला परवीन; अंति: (-). २४३६४. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२३४१४, १०-११४२१-२५). काजलमेघा चौढालिया-गोडीजीपार्श्व, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भावधरी भजन करुं आपें; अंति: (-). २४३६६. पाशाकेवली का पद्यानुवाद, पूर्ण, वि. १८४०, पौष शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, दे., (२२.५४१४, ८-९४१६-२१). पाशाकेवली-पद्यानुवाद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लक्ष्मी घणी घरमाहि. २४३६८. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-२(१ से २)=३१, पू.वि. स्तोत्रहेतु कथा अपूर्ण है., दे., गुटका, (२३.५४१३, २३४१२-१४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: किल इसी संभावनाई; अंति: लक्ष्मी स्वयंवर वरइ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-कथा*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: कीधउ मोटि महिमा हुओ, कथा-२८, पूर्ण. २४३७७. प्रतिष्ठाविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२३४१४, प्रतिष्ठा विधि, सं.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम भूमिमंत्रे करी; अंति: (-). २४३७९. (+) प्रतिष्ठा कल्प, संपूर्ण, वि. १९९४, वैशाख कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७४, ले.स्थल. वीजापुर, प्रले. पं. पद्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंभव, रक्तवीरजिन प्रसादात्. अंत में अनुक्रमणिका दी गयी है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४१४, १५४३३). प्रतिष्ठा कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गामथी पूर्व अथवा; अंति: कही चैत्यवंदन करवू. २४३८१. पून्यसार चरित्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-२(१,१०)=१८, दे., (२३४१३.५, ६x२८-३२). पुण्यसारकुमार चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: च चार्य अजितप्रभेश्च, श्लोक-१९९. २४३८३. चंद्रलेहा चोपड़, त्रुटक, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-१६(४ से ६,१०,१३,१९ से २०,२२,२६,३० से ३२,३४,३६ से ३७,४२)=२९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१४१२.५, ११४२४). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: (-). २४३८५. जंबू चरित्र व पुण्य सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २, दे., गुटका, (२२४१३.५, १६-१७४२९). १. पे. नाम. जंबू चरित्र, पृ. १अ-२३आ, संपूर्ण. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-जंबू चरित्र, मु. चेतनविजय, मा.ग., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीअरिहंत नमो सदा; अंति: लायके सब जन करते सेव, गाथा-५२३. २. पे. नाम. पुन्य सिज्झाय, पृ. २३आ, संपूर्ण.. पुण्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्य कर भवि प्राणी; अंति: पुण्य को धर भावरे, गाथा-५. २४३९०. सप्तव्यसन कथासमुच्चय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२२.५४१३.५, ९४३६). सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५२६, आदि: प्रणम्य श्रीजिनान्; अंति: (-). २४३९७. कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, पृ.वि. चतुर्थ वाचना में सप्तम अच्छेरा के प्रारंभ तक लिखा है., जैदे., (२२.५४१४, १३-१५४१९-४०). For Private And Personal use only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org ३०७ बारसासूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा, मा.गु., गद्य, आदि: अज्ञानतिमिराधानां अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २४४०१. तीर्थमाला स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११ - २ (१,९) = ९, प्रले. मु. गौतमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१४.५, १२-१३x२३-२४). शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि (-); अंति: राजे अमृत० सुहंकरु, ढाल १०. २४४०७. औषध संग्रह व वैद्यवल्लभ सह टबार्थ - स्त्रीरोग प्रतिकार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२१.५X१३.५, ८X३१). १. पे. नाम औषध संग्रह, पृ. १अ ३अ + ६आ, संपूर्ण. औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. वैद्यवल्लभ सह टवार्थ स्त्रीरोग प्रतिकार, पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण, पू. वि. मात्र स्त्रीरोगप्रतिकार स्वरूप लिखा गया है. वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. वैद्यवल्लभ - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४०८. समयसारकलश टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२x१३.५, १३X३५). समयसारकलश टीका, हिस्सा, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदिः नमः समयसाराय स्वानु अंति: (-), ( पू. वि. श्लोक - ९१ अपूर्ण तक है.) प्रले. २४४०९. पन्नरतिथि स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९३४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६ - १ (३) = ५, ले. स्थल. सादडी, मु. अभेसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., दे., (२३.५x१२.५, १२-१३X२४-३०). १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम; अंति: नयविमल० नाम तो गुणी, स्तुति १५, (पू. वि. स्तुति ६ गाथा- २ से स्तुति ९ गाथा १ तक नहीं है.) २४४१२. आठकर्म विचार, विचार संग्रह व रामसीतेंद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४०-१८(१ से १८)=२२, कुल पे. ३, वे., ( २४४१३.५, १६-१८४४८-५१). १. पे. नाम. आठकर्मप्रकृति विचार, पृ. १९अ - ३६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (); अंति: (१) भोगवै बल वीर्य फोरवे, (२) इंद्रनी पदवी पामी. २. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ३६अ - ४० अ + ४० आ, संपूर्ण. विविध विचार संग्रह, गु., प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. रामसीतेंद्रप्रश्नोत्तर सज्झाय, पृ. ४०अ - ४०आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: एक दिवस आवी करी राम; अंतिः पहुतो निज ठामो रे, गाथा-२२. २४४१४. स्तंभनपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९९, जैदे., (२१X११, ११x२७). - पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८११, आदि: सरसतीनें समरु सदा; अंति: ( - ), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल - २३ गाथा - ८ तक लिखा है.) २४४१५. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९२२ ज्येष्ठ शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल धुनाडा, प्रले. जसरूप व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २२x१२.५, ९ - ११x२३). पाशाकेवली भाषा में, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंतिः थारें जागरे तिल छे. २४४१६. द्वारिकानगरी विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२३x१२.५, १९×३८). द्वारिकानगरी विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: शिष्य पूछें पूर्व; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४४२१. (+) चतुर्मासिकत्रय व्याख्यान व होलिका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से ४)=५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४१२.५, १९-२०४३०-३७). १. पे. नाम. चतुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पृ. ५अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सर्वेष्टार्थसिद्धिः. २. पे. नाम. होलिका व्याख्यान, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. होलिकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: (-). २४४२२. (+) वाग्भट्टालंकार सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१३, ८४३२-३३). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: सारस्वतध्यायिनः, परिच्छेद-५. वाग्भटालंकार-टीका, आ. जिनवर्द्धमानसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीमान श्रीआदिनाथः; अंति: अलंकारत्वेन ज्ञेयः, परिच्छेद-४. २४४२६. विवाहपडल, संपूर्ण, वि. १९६१, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. लूणकरणसर, प्रले. पं. क्षमाकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४१२, १२-१३४१५-२७). विवाहपडलभाषा, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी; अंति: धीर सुख पामे मुदा, गाथा-५६. २४४२७. सिद्धचक्र पूजा,१७ भेदी पूजा-कलशगाथा व शांतिजिन आरति, अपूर्ण, वि. १९४०, भाद्रपद शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७-७(१ से ७)=१०, कुल पे. ३, प्रले. मु. सरूपचंद्र (पीपलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२.५, १०x२८-३२). १. पे. नाम. सिद्धचक्रपद पूजा, पृ. ८अ-१७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. कडोदीया. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कोई नये न अधूरी रे. २. पे. नाम. १७ भेदी पूजा-कलश गाथा, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: (-); अंति: सब लीला सुख साजै, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र कलश की ४ गाथा लिखी है.) ३. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १७आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सेवाडी. श्राव. गोकुलभाई, गु., पद्य, आदि: जय जय आरति शांति; अंति: नर नारी अमर पद पावे, गाथा-३. २४४२९. नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-३(१ से ३)=१५, दे., (२४.५४१२.५, ४४२१-२५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: तिन्निवि एए उवाएया, गाथा-५५, (पू.वि. गाथा-१ से ७ नहीं है.) २४४३१. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १९०४, ज्येष्ठ, १, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ९, प्रले. मु. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२.५, १४४२९). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: सुखनो देनार सुकन छै. २४४३४. तेवीसपदवी विचार, पूर्ण, वि. १८७६, फाल्गुन कृष्ण, १२ अधिकतिथि, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदे., (२३.५४१२, १०४२८). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पांच दंडकमांहे उपजे. २४४३५. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. छावणी, प्रले. सा. राधा (नागोरीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, ११-१२४२५-३१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. २४४३८. आठप्रवचनमाता सझाय, संपूर्ण, वि. १९७५, माघ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. नागोर, जैदे., (२४.५४१२.५, १४४४१-४४). ८ प्रवचनमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: पांचसुमत तीनगुप्त आठ; अंति: चंद कहे जे जेकार हो, ढाल-८. For Private And Personal use only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३०९ २४४४१. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२४४१२, १३-१४४२८-३०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ गाथा-२० तक है.) २४४४२. (+) अक्षरबावनी, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११.५, १३-१४४२८-३१). अक्षरबावनी, मु. जसराजजी; मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, वि. १७३८, आदि: ॐकार अपार जगत आधार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५६ तक है.) २४४४४. (+) चैत्यवंदनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२३.५४१२, १०४३२-३८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, वा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदि: सद्भक्त्या नतमौलि; अंति: देवता सा ___ जयतादजस्रम्, स्तुति-२४, श्लोक-७७. २४४४८. प्रतिष्ठाविधि संग्रह व वर्धमानविद्या मंत्र, संपूर्ण, वि. १८९३, आषाढ़ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. मोरवाडा, प्रले. पं. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२, १३४३४-३६). १.पे. नाम. प्रतिष्ठाविधि संग्रह, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. पद्मावतीपार्श्वनाथ प्रसादात्. प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)सघलो देहरो धोवाय, (२)मूल गंभारे कुं अच्छी; अंति: भोजन सामीवच्छल दीजै. २. पे. नाम. वर्धमानविद्या जापमंत्र, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे.वि. परवर्ती कोई प्रतिलेखक द्वारा लिखित कृति. अन्त में "इति वर्द्धमानविद्या श्रीजिनउदयसूरजीमाहाराज प्रदत्तं. संवत १९९४ रा मीवि। वदा २" का उल्लेख है. वर्धमानविद्या, प्रा., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: (१)ऊँ ह्रीं स्वाहा, (२)कार्यः प्रतिमोपरि. २४४४९. नवतत्त्व का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१२, १५४३६-३७). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (-), (पू.वि. निर्जरातत्त्व तक है.) २४४५१. अंतरिकपार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १८७६, चैत्र शुक्ल, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पारकरनगर, प्रले. मु. कल्याणविजय (गुरु पंन्या. मोहनविजय),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आदेश्वरजिन प्रसादात्., जैदे., (२३४१२, ११४३०). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात मयाकरी आपो; अंति: भणे जयो पास जयजयकरण, गाथा-५१. २४४५९. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, दे., (२३.५४१२, १०४४०-४१). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्याभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. २४४६१. संबोधसप्ततिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पठ. मु. जसराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, १२४२६). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरु; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-८९. २४४६६. (+) चौमासा रोवखाण, दुहो व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. २७-४(१ से ४)=२३, कुल पे. ४, ले.स्थल. पुना, प्रले. पं. गुमानचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, १२x२५-२७). १.पे. नाम. चोतुर्मासक व्याख्यान, पृ. ५अ-२७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामिदुक्कडं देवो. २. पे. नाम. दुहो, पृ. २७आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३. पे. नाम. छप्पय, पृ. २७आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक पद, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आपे अवगु पूर पक्ष; अंति: ए पंचवरन सकरन द्यो, गाथा-१. ४. पे. नाम. छप्पय, पृ. २७आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक पद, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राव रंक को एक; अंति: सूको तरू निलो भयो, गाथा-१. २४४६८. अठाई वखांण, संपूर्ण, वि. १९५२, आश्विन कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. सिरदारशहर, प्रले. मु. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४११.५, ११४३४). अट्ठाईपर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: (१)शांतीशं शांतिकर्तारं, (२)अठै संपूर्ण खोटा; अंति: मनोवांछित सिद्ध हुवै. २४४७३. मौनएकादशीपर्व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२२.५४११, १३४२७). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गुरुः प्रणम्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१०० तक है.) २४४७७. (#) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-५(१ से ३,५ से६)=९, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११, १४४३४-३६). विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २४४८६. पडिक्कमणा सूत्र, अपूर्ण, वि. १८८१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १५-२(७ से ८)=१३, ___पठ. श्रावि. कंकु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२, ११४२७-३०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहताण पंचिद; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. २४४८८. प्रश्नोत्तरसार्धशतकनो बीज, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४११.५, ११-१३४२७-२८). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलै तीर्थंकर; अंति: (-), (पू.वि. ७२ बोल तक है.) १४४८९. वीसविहरमाण तीर्थंकरस्तवनरूप गीत, अपूर्ण, वि. १७७३, भाद्रपद कृष्ण, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८-३(१ से ३)=५, प्रले. मु. धनजी; पठ. श्रावि. रतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १०४३३). स्तवनवीसी, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति: अब मे मंगलमाल पाई, स्तवन-२०, (पू.वि. अनंतवीर्यजिन स्तवन से है.) २४४९२. (+) पासाकेवली, पूर्ण, वि. १८५५, मध्यम, पृ. २५-२(३ से ४)=२३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४११, ६४१८). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ ए सुकन घणो; अंति: लाभ छै ए निसाणी. २४४९६. (+) योगचिंतामणि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-९(१ से ९)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४११, १३-१४४४३-४६). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय अध्याय स्त्रीयोग्य ___ कसेलीपाक से तृतीय अध्याय प्रारंभ तक है.) २४५०३. अभिधानचिंतामणि नाममाला, पूर्ण, वि. १८४१, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ६७-६(१ से ४,३७ से ३८)=६१, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२४.५४११, १२४२९-३७). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. २४५०६. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८८१, भाद्रपद कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. पाटण, पठ. मु. कल्याणविजय; प्रले. वृजवल्लभदास महेता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. दो प्रतिलेखन स्थल का उल्लेख है. प्रथम पादलिप्तनगर श्री आदिनाथ प्रसादात् व द्वितीय पाटणमध्ये पाडेकसुमीयावाडामध्ये श्रीगोडीजी सत्य है., जैदे., (२३.५४११, ११-१२४२९-३२). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: मोक्षं हि वीराः, ढाल-९. For Private And Personal use only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३११ २४५०९. चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१६(६,१२ से २६)=१४, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११.५, १९४३५-३९). चंदराजा रास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुखदायक जिनवरु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४२ गाथा-१४ तक है.) २४५१०. विपाकसूत्र - द्वितीय श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १९७८, आषाढ़ कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२२४११, १२-१५४३५-४३). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: सेसं जहा आयारस्स, प्रतिपूर्ण. २४५११. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२२.५४११, ११४२८-३१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहताणं णमो; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २४५१८. बुढा रासो, संपूर्ण, वि. १९३५, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. रोहणी, प्रले. मु. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४११, ११४२७-३२). बुढ़ापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दयाज माता वीनवु गणधर; अंति: सुणौ कलियुग निसाणी, ढाल-२२. २४५१९. वृद्धशांति, संपूर्ण, वि. १८४२, कार्तिक शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. ऊधोद, प्रले. क्र. आसकर्ण (गुरु ऋ. चंपासिंह), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, ९४२५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैन जयति शासनम्. २४५२१. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१(१)=२०, पू.वि. श्लोक १ से ३२ तक है., जैदे., (२३४११, १२४३०-३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: किल इसी संभावनाई; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र-कथा*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. २४५२८. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८१०, माघ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १८-२(१ से २)=१६, कुल पे. ४, प्रले. मु. कुशलदत्त (गुरु पंन्या. ज्ञानवल्लभ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०.५, ८x२२-२५). १. पे. नाम. महावीरस्वामी गीत, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन विनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा-१६ तक नही है.) २.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. जिनभक्ति यति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडी प्रभु पास; अंति: जतिसर वंदेरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सोरीपुरवर सोभतो सखी; अंति: वंछित थाय विलासरे, गाथा-७. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ रास, पृ. ६अ-१८अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: थकां ए पामीजै भवपार, ढाल-६. २४५३४. (+) वियारपयन्ना सह टीका, पूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४११, ७-१३४२७-३०). विचारसार प्रकीर्णक, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५७३, आदि: (-); अंति: पढिज्जमाण सुहं देउ, गाथा-८७, (पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-९ तक नहीं है.) विचारसार प्रकीर्णक-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने बीच-बीच में ही टीका लिखी है.) For Private And Personal use only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४५३५.(+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६-४(१,२२ से २३,३५)=३२, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२.५४१०.५, ११४२९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ से चूलिका-२ अपूर्ण तक है.) २४५३६. दोषावली व पासाकेवली, अपूर्ण, वि. १९१४-१९१६, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१ से २)=६, कुल पे. २, प्रले. ऋ. अजबचंद (गुरु मु. अनोपचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, ९-११४३०-३१). १.पे. नाम. दोषावली, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १९१४, कार्तिक शुक्ल, १०, मंगलवार. ___मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. ३आ-८आ, संपूर्ण, वि. १९१६, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, शनिवार. पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: कल्याणना कोड थास्यै. २४५३८. अबयद शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. वा. मणिविजय (गुरु मु. सुरेंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १६x४५). अबयद शुकनावली, मु. सुजाणसिंह, पुहि., गद्य, वि. १७९४, आदि: महावीर को ध्याइके अंति: इस वातमें संदेह नाही. २४५४१. नेमिजिन चौवीसचोक, संपूर्ण, वि. १८६५, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. हेम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १२४४०-४४). नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: एक दिवस वसे नेमकुमर; अंति: तस सीस अमृत गुण गाया, चोक-२४. २४५४३. (#) पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८२३, आश्विन कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, ८x२३-२५). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: प्रजालाभ सुख होय. २४५४८. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२२.५४१०.५, ११४२७-२८). महावीरजिन स्तवन-२७ भवगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरस्वति द्यो मति; अंति: प्रभूए मुज गुरु, ढाल-१२, गाथा-८९. २४५५०. कर्मग्रंथ १ से ३, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, कुल पे. ३, दे., (२४४१०.५, ११४३४). १. पे. नाम. प्रथम कर्मग्रंथ, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-५८ तक नहीं है.) २. पे. नाम, द्वितीय कर्मग्रंथ, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. तृतीय कर्मग्रंथ, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. २४५५४. अनेकार्थध्वनिमंजरी, श्लोक संग्रह, गोशब्दनिरुपण, अपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन अधिकमास शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १४-३(११ से १३)=११, कुल पे. ३, दे., (२३४१०.५, ९-१०४२९). १. पे. नाम. अनेकार्थध्वनिमंजरी, पृ. १आ-१४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. ___ सं., पद्य, आदि: शब्दाभोधि यतोनंत; अंति: (-), अधिकार-३, (पू.वि. अधिकार-२ श्लोक-६४ से अधिकार-३ श्लोक-२६ तक नहीं है. प्रतिलेखक ने अंतिम गाथा कारणवशात् अनुपलब्ध होने से'---' इस तरह का निशान किया है.) For Private And Personal use only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३१३ २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. त्रिलिंगे गोशब्दनिरुपण, पृ. १४आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २४५५६. चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७४-६९(१ से ६८,७०)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१०.५, १५४३९). चंदराजा रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अति: (-). २४५६६. अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १७९९, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६९-६(१ से ६)=६३, ले.स्थल. तिहारी, प्रले. मु. तनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०, ९-११४३२-४४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, (पू.वि. कांड-२ श्लोक-३० तक नहीं है.) २४५७९. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०२, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. रामपुर, प्रले. मु. वीरदास (गुरु मु. जसवंत); पठ. मु. कर्मचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१०, ५४३४-३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मु. उत्तम ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: कल्या० ताहरा चरणकमल; अंति: (१)सिद्धसेनसुरुणा दत्तं, (२)ऋष्युत्तमेन कृतमस्ति, ग्रं. ३२५. २४५८८. नवतत्त्व विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-७(१ से ७)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३४१०, १५४३८-४०). नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बंधतत्त्व तक ही है.) २४५९३. (+) चैत्यवंदन व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., गुटका, (२२४१०.५, ९४३४). १. पे. नाम. शांतिनाथ चैत्यवंदन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शांतिजिन चैत्यवंदन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लहिये कोड कल्याण, गाथा-३, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण है.) २. पे. नाम. नेमिनाथ चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, म. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमों नेमि; अंति: अहनिस करु प्रणाम, गाथा-३. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणीय पासनाह; अंति: प्रगटे परम कल्याण, गाथा-३. ४. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जगदाधार सार सिव; अंति: कल्याण करी सुपसाय, गाथा-३. ५.पे. नाम. स्तंभनपार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन नमस्कार-स्थंभनपुर, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेढी तट मेरुधाम; अंति: पावौ पद कल्याण, गाथा-३. ६. पे. नाम. विहरमानजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिणवर विहरमाण; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-३. For Private And Personal use only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे नाम. सम्मेतशिखर स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण, सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिसे दीपतो; अंतिः तीरथ करण कल्याण, www.kobatirth.org गाथा - ३. ८. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनवर आदिदेव; अंति: करो संघ कल्याण, गाथा - ६. ९. पे नाम, पद्मनाभजिन नमस्कार, पृ. ३आ, संपूर्ण पद्मनाभजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम महेसर पद्मनाभ; अंति: कारण सदा कल्याण, गाथा - ३. १०. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: बीसे विहरमान जिनराया; अंति: क्षमाकल्याण में पाउ, गाथा-५. ११. पे नाम, चोवीसतीर्थंकर स्तुति, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि तीरथपति त्रिभुवन सुख; अंतिः शुद्ध अनुभव मानीये, गाथा - ३. १२. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनायक जिनवरुजी अंतिः प्रति नमति कल्याण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ५. १३. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदिः आदीसर जिनराज; अंति: आगे आ विनती करेजी, गाथा - ५. १४. पे. नाम. शत्रुंजयमंडणआदिजिन स्तवन, पृ. ६अ - ७अ, संपूर्ण. २४६०३. १५. पे नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामणि स्वामी में; अंतिः प्रभु दीजै नित (+) आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी आदिपुरुष; अंति: आप सुख अविकारक हो, गाथा ११. आधारा, गाथा - ५. २४५९५, (+४) नलदमयंती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८२२ आश्विन कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३३-४ (१ से ४ ) -२९, ले. स्थल. सरनाडि, प्रले. मु. उत्तमचंद (गुरु मु. आसानंदजी, जिनमाणिक्यसूरिशाखा ( गच्छ ) ); पठ. मु. गणपतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२४४१०.५, १४- १७४४४). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (); अंति: चतुर माणस चित्तवसी, खंड-६ डाल ३८, गाथा - ९१९, ग्रं. १३५० (पू.वि. खंड-१ ढाल ४ गाथा १९ तक नहीं है. ) ', २४५९७. (+) जीवविचार व युगप्रधान लक्षण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२x१०.५, ९४२३). १. पे. नाम जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५३. २. पे. नाम. युगप्रधान लक्षण, पृ. ५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः येषां च देहे न पतंति; अंतिः प्रधानं मुनयो वदंति, श्लोक - १. | कल्पसूत्र सह बालाववोध तृतीय वाचना, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जै... (२४१०.५, १३३७-४३ ). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु., रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, - For Private And Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३१५ २४६०९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६९, वैशाख कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, प्र. वि. लिखितंग मोज्ञात ऐसा पाठ है., जैदे., (२३.५x१०.५, ११-१२x४६-४९). १. पे. नाम. मनुष्यभव दुर्लभता सज्झाय, पृ. १आ - १६अ, संपूर्ण. मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि प्रेमे पास जिणंदना; अंति: मंगल कमला वरीये रे, ढाल - २२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. आध्यात्मिक गीत, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण. - मु. लब्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि; जबलगे विषय विषया न; अंतिः लब्धिविजय० वेलि कटि, गाथा ५. २४६२० (४) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २३१०, १७ - १८x४३ - ४४), बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदिः नमिउं अरिहंताई ठिइ अंति: ( ) ( पू. वि. गाथा - २२१ तक है.) २४६२१. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८६० भाद्रपद शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०५ -३ (२,१२,६८)-१०२, ले. स्थल, भुज, प्रले. खीमजी छगनजी त्रवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, कुल ग्रं. ३०००, जैदे., (२४x१०.५, ५x२७-३१ ). अंतकृदशांगसूत्र, आ. सुधमांस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेनं० चंपा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय - ९२. अंतकृदशांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अंतगड शब्दस्य कः; अंतिः ज्ञाताधर्मकथानी परे. २४६२७. (+) सिंदूर प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७- २ (१ से २) = ५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूच लकीरें., जैदे., (२३.५X११, १२x२५). सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. लोक-२३ से ७९ तक है.) २४६२८. मानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३३-६ (१ से ३, ७, २६, २८) = २७, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., (२३४१०.५, १७४३७-४०). मानतुंग- मानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पच, वि. १७६०, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल -४ गाथा- २ से ढाल - ४७ दोहा-४ तक है.) ,जैदे., २४६३२. नवतत्त्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, गाथा- १६ तक है., (२२.५x१०.५, १४-१५X४०-४३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व१ अजीवतत्व; अंति: (-). २४६३८. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, भाद्रपद कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १११, . ले. स्थल. भुजनगर, प्रले. खीमजी छगनजी त्रवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५X११, ४-५x२१-२८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गइं त्ति बेमि, अध्ययन- १०. दशवैकालिकसूत्र - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: ध० धर्म म० मंगलिक; अंतिः तीर्थंकरनु प्ररुयु, २४६३९. स्तोत्र संग्रह, प्रतिक्रमणसूत्र व जीवविचार, नवतत्त्व, दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४९, कार्तिक कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, कुल पे. ८, प्रले. क्रिश्ना पुरोहित; पठ, मु, खुशालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२१.५x१०, ११५३०). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ ५आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. २. पे. नाम. शांति स्तोत्र, पृ. ५आ - ६आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ६आ-१०आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ४. पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. १०आ-१३आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ५. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १३आ-२४आ, संपूर्ण. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: नमामि साहम्मिया तेवि, स्मरण-७. ६. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. २४आ-२७अ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. ७. पे. नाम. नवतत्त्व, पृ. २७अ-२९आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (१)अणंतभागो य सिद्धिगओ, (२)अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४७. ८. पे. नाम. विचारषट्विंशिका, पृ. ३०अ-३२अ, संपूर्ण. विचारषविंशिका प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. २४६४६. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२९-१८५(१ से १८५)+१(२२१)=४५, जैदे., (२३४११, ५-१३४२२-२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थविरावली तक ही लिखा है.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थविरावली तक ही लिखा है.) २४६५२. (#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८३१, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(२)=७, ले.स्थल. हरिदुर्ग, प्रले. मु. डुगरसी मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४३४-३९). स्तवनचौवीसी, उपा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन जगआधार; अंति: भावे मेघ वाचक जिनवरु, स्तवन-२४, (पू.वि. स्तवन-४ गाथा-५ से स्तवन-७ गाथा-५ तक नहीं है.) २४६५८. (+) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०३, वैशाख शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. हैदराबाद, पठ. श्राव. चतरु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४१०, १०४३२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१२. २४६५९. (#) जातकपद्धति सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रले. मु. ऋद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रारंभ के २ पत्र चिपके हुए है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१२.५४१०.५, ४४३२). जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य इष्टदेवेश; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. श्लोक-९२ तक है.) जातक पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम इष्टदेवता; अंति: शुक्र की दशा वर्ष २१, संपूर्ण. २४६६१. (+) अष्टाह्निका व ज्ञानपंचमी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४११, १५४४०). For Private And Personal use only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३१७ १. पे. नाम. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण. वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: पद्यबधं विलोक्य तत्. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी कथा, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (-). २४६६७. प्रास्ताविक दहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-२(१ से २)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२२.५४१०.५, १६x४४-४५). प्रास्ताविक दूहा संग्रह, मु. उदैराज, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ से २५८ तक है.) २४६७४. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-६(१ से ५,१९)+४(२४ से २७)=३६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३४११, १२-१४४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २४६७५. (+) जयंतिजी छंद, बुधि रासो व कागहंसरी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १२-१७४३१-३७). १. पे. नाम. जयंतीजी छंद, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. जयंतीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुपर भणता संकरी, गाथा-४१, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक नहीं २. पे. नाम. बुध रासो, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण. बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देव अंबाई; अंति: सुखि संसार उतरे ए, गाथा-५८. ३. पे. नाम. कागहंसरी कथा, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. कागहंस कथा, मु. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १६९२, आदि: वायस आयौ उडतो से; अंति: उपरइ शोभा तपइ सदीह, गाथा-४९. २४६८२. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२४४११.५, १६४३०). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २४६८३. मानतुंगमानवती रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७-२(६,६६)=६५, पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., दे., (२३.५४११.५, ११-१२४२५-३१). मानतुंग-मानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम कुछेक गाथा नहीं है.) २४६८७. पाशाकेवली, पूर्ण, वि. १८२१, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, ले.स्थल. नारदपुर, प्रले. पं. नरसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२.५४११, १३४३४). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सही सत्य करी माने. २४६९८. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, बारपर्षदा विचार व समोसरणविस्तार गाथा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१(१)=२१, कुल पे. ३, ले.स्थल. जंगली, प्रले. मु. जीतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं दिया है. पत्रों की गिनती करके अनुमानित नंबर दिया गया है. प्रारंभ के कुछ पत्र न होने से पत्रांक १ अनुपलब्ध रूप में माना गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४११, ३४२०-२१). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. २अ-२२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-९ तक नहीं है. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: तिन्निवि एए उवाएया, गाथा-५५. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: उवाएया क० आदरवायोग्य. २. पे. नाम. बारे परषदा विचार, पृ. २२आ, संपूर्ण. १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भवनपति व्यंतर; अंति: प्रथम समोसरणे मिलि. ३. पे. नाम. समोसरणविस्तार गाथा सह बालावबोध, पृ. २२आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैन गाथा , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैन गाथा का बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. बालावबोध प्रारंभिक कुछेक अंशमात्र तक ही है.) २४६९९. १४ गुणस्थानक व ५ भाव विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६-१(१)=४५, कुल पे. २, दे., (२३४११.५, १०४२९-३२). १.पे. नाम. चतुर्दसगुणस्थानक विचार, पृ. २अ-३३अ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८८३, पौष कृष्ण, १४, बुधवार, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मथेन जसकर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: एहवा वीरने नमोस्तु. २. पे. नाम. ५ भाव विचार, पृ. ३३अ-४६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: ते भाव ५ प्रकारना छे; अंति: (-). २४७०१. मेतारजमुनिरास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-३(१ से ३)=९, दे., (२३४११, १२४४२-५३). मेतारजमुनि चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: (-); अंति: कीयो आसोज मास अभ्यास, ढाल-२०, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-६ तक नहीं है.) २४७०३. चौढालिया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, दे., (२२.५४११, ११४२९-३३). १. पे. नाम. प्रियमदन चोढालीयो, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. प्रियमदन चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: माया पुन्य तणी सहु; अंति: ते इणविध दुखीया थाय, ढाल-४. २. पे. नाम. आषाढभूतजी रो चोढालीयो, पृ. ५अ-९अ, संपूर्ण. आषाढाभूति पंचढालिया, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दरशण परिसो वावीसमो; अंति: परिहार हो गुराजी, ढाल-५. ३. पे. नाम. जिनरिषजिनपाल रोचोढालीयो, पृ. ९अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: (-), (पृ.वि. ढाल-३ गाथा-७ तक है.) २४७०४. पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, प्रले. दीनानाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (७५९) अदृष्टदोषान्मतिविभ्रमाच्च, (७८७) मंगलं लेखकानां च, दे., (२२४११, ९४२३). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२७. २४७०५. (#) सिंदूर प्रकरण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८६२, वैशाख कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. खारीया, प्रले. मु. माणिक्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११, १७४३९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. २४७०६. (+) नवतत्त्व, जीवविचार व दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२.५४११, १०४२२-२९). १.पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ५आ-९अ, संपूर्ण. ___ आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ३. पे. नाम. चतुर्विंशतिदंडविचारसूत्र प्रकरण, पृ. ९आ-१२आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. २४७१३. (+) महावीरजिन २७ भव स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४११.५, १०४३३). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: पूरण प्रेमे प्रणमीइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७५ तक है.) For Private And Personal use only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २४७३०. (+#) बृहत्शांति व पंचपरमेष्टिनमस्कार स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(६)=८, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४११, १०४२०-२४). १.पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. १आ-५आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम कुछेक गाथा नहीं हैं.) २. पे. नाम. पंचपरमेष्टि नमस्कार, पृ. ७अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: तणी सेवा देज्यो नित, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-६ तक नहीं है., वि. दो-दो पद को एक गाथा गिनी गई है.) २४७३१. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२२.५४११.५, ८x२१-२३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-). २४७३२. (+) कल्पसूत्र सह बालावबोध - वाचना ११(साधुसमाचारी), संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. पं. लावण्यरंग; लिख. पं. गुणसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११.५, १५४३८-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: संघ जयवंतो प्रवर्तो, प्रतिपूर्ण. २४७३३. वसुधारा नामधारिणि महाविद्या, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, दत्त. ग. जीवराज; गृही. पं. दयाकमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यह प्रति वि.सं. १८१७ वैशाख वदि २ सांगानेर में जीवराजजीगणि ने पं. दयाकमल को दी., दे., (२२४११, १३४३५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: शृणोति भोगं च करोति. २४७३७. (+-) जंबूस्वामी कथा व जोवनबतीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३४१२, १७-१८४३३-३४). १. पे. नाम. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक की कथा, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण, वि. १८५६, ले.स्थल. बनाडा, प्रले. सा. रतुजी (गुरु सा. बुदजी), प्र.ले.पु. सामान्य. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सप्रभावं जिनं नत्वा; अंति: जणे दीक्षा लीधी. २. पे. नाम. जोबनबतीसी, पृ. १०अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: पुन जोग नरभव लेयो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ तक है.) २४७४२. जीवभेद विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से ४)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., गुटका, (२२४१२, २०x१९-२२). ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २४७४६. यादव रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६-१(७३)=७५, दे., (२३.५४१२, १३-१७४३२-३८). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: (-), (पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-६४ प्रारंभ (कुलगाथा-१८६४) तक लिखा है.) २४७५०. अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-२(१ से २)=१६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२२.५४१२, १२४३२-३४). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३७ तक है.) २४७५१. (+) कर्म सिज्झाय व खिमाछतीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२.५४१०.५, १२४२६). १. पे. नाम. कर्म सिज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१८. २. पे. नाम. खिमाछतीसी, पृ. २अ-५अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण; अंति: संघ जगीश जी, गाथा-३६. २४७५६. दशवैकालिकसूत्र की सज्झाय संग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४४१२, ७४२१). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धर्ममंगल महिमा निलो; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-९ गाथा-४ तक है.) २४७६६. (#) कुरगडुमुनि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्र का अगला हिस्सा कटा होने से आदिवाक्य नहीं पढ़ा जा रहा है., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२, २०४३०). कुरगडुमुनि रास, मा.गु., पद्य, आदि: ...पहलो खरो क्रोध; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१२ गाथा-७ तक है.) २४७६७. ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२२.५४११,११४२८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: विनमटेध्वासो. २४७६९. शीलोपदेशमाला की कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रले. पं. अभयरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२.५, १३४२९-३३). शीलोपदेशमाला-कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २४७७०. तीर्थमाला, अपूर्ण, वि. १८७३, आश्विन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१ से २)=६, जैदे., (२४४१२.५, १३-१४४३३). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: नित नमो गिरिराया रे, ___ढाल-१०, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-७ तक नहीं है.) २४७७६.(+) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९४७, पौष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. भीनासर, प्रले. पं. पद्मोदय मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१२.५, १४४३८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. २४७७७. श्रीपाल चरित्रभाषा, संपूर्ण, वि. १९५८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ८७, ले.स्थल. सिरदार, प्रले. मु. मेघराज महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२.५, १२-१४४१६-२९). श्रीपाल चरित्र-बालावबोध, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, वि. १९१७, आदि: श्रीअरिहंत सुसिद्धपद; अंति: मुनि कथा लिखी सुजगीस, प्रस्ताव-४, ग्रं. २०००. २४७७९. द्रव्य संग्रह सह बालावबोध व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९३१, माघ शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१,३)=५, कुल पे. २, ले.स्थल. नागपुर, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १ से लिखा है, वस्तुतः प्रत अपूर्ण है. अपूर्णता दर्शाने के लिए घटते पत्र में १ देकर २ से ७ बताया गया है., दे., (२२४११, १७४३९-४६). १.पे. नाम. द्रव्य संग्रह सह बालावबोध, पृ. २अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं., अधिकार-१ गाथा-२३ तक नहीं है. द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: मुणिणा भणियं जं, अधिकार-३. द्रव्य संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: निगर्वपणो देखाड्यो. २. पे. नाम. ध्यानादि विचार संग्रह, पृ. ७आ, संपूर्ण. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २४७८०. स्नात्र पूजा, शांतिजिन आरती व सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५९, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, ले.स्थल. लूणकरण, प्रले. पं. खेमचंद मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११, १२४२८-३०). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: मोक्षसौख्यं श्रयंति, ढाल-८. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति; अंति: नरनारी अमर पद पावे, गाथा-६. ३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यात्रा नवाणु करीए; अंति: पद्म कहै भव तरीयै, गाथा-५. For Private And Personal use only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३२१ २४७८३. चौमासी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४१२.५, १०-१२४३५-३७). चातुर्मासिक व्याख्यान*, रा., गद्य, आदि: भव्यबोधदायकं प्रभु; अंति: (-). २४७८८. सज्झाय व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, ले.स्थल. उभोई, पठ. श्रावि. मीठीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., गुटका, (२३४१३, २०-२४४१४-१८). १.पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. डभोइ. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटे तत्काळ, ढाल-३, गाथा-३५. २. पे. नाम. झांझरियामुनि सज्झाय, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: आतमकारज सिध्यु के, ढाल-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा; अंति: सुख संपद लहे चंगजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. वीसस्थानक स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तुति, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: वीसथानिक तप विश्वमा; अंति: सौभाग्य सुखकारीजी, गाथा-४. २४८०१. मयणरेहा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१२(१ से ४,९ से १४,१७ से १८)=९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२०.५४१२.५, ८x१८-२३). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ से १६७ तक है.) २४८०६. अक्षरबावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२१४११.५, १५४३०-३१). अक्षरबावनी, उपा. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार अपार अगम्य; अंति: स्वरुप है बावन्न, गाथा-५८. २४८०७. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १ से ४, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२०४११.५, १५४३०-३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २४८१३. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३५, श्रावण शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. बर्हानपूर, पठ. श्रावि. फूल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१२, ४४२५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० त्रिण भुवन; अंति: समुद्र थकी उद्धरिओ. २४८१४. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. रामविजय (गुरु आ. विशालसोमसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१२, १३४२१-२६). स्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन-२४. २४८१५. कालचक्रवर्णन स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., गुटका, (२१४१२, २५४१२-१५). कालचक्रवर्णन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिन गुरु वाणीय करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४६ तक है.) २४८१९. बृहत्शांति व चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रावण कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. लूणकरणसर, जैदे., (२१.५४११.५, ८-१०४२३-२८). १. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्या शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. २. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८. २४८३०. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ३, जैदे., (२१.५४११.५, १०-११४२५-२९). For Private And Personal use only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १अ १३आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखकने सप्तस्मरण पत्रांक १अ से१२अ तक एवं पत्रांक १२ आ से १३अ तक लिखा है. सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअं जिअ सव्वभयं; अतिः निब्त निच्चमच्चेह, स्मरण ७. २. पे. नाम. कलिकुंडपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि परमेष्ठिमंतसारं सारं; अंतिः आरुम्गं देह सुहपन्नो, गाथा-७, ३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दोसावहारदक्खो नालीया; अंति: (-), ( पू. वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) २४८४१. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२०.५X११, ११x२३-२६). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भाव धरी भजनां करूं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - ८ गाथा - ८ तक है. ) २४८५६. सीता लावणी, संपूर्ण, वि. १९८३, चैत्र कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. पाली, प्रले. सा. पनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२०x१०.५, १६x२८-३३). सीतासती लावणी, मु. चौथमलजी, पुहिं., पद्य, वि. १९७४, आदि: सीता है सतवंती नार; अंतिः जो देस मेवाडनारे, गाथा - १४१. २४८५९. छत्तीसठाणा बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६ - ३९ (१,११ से २१,३५ से ५२,५६ से ६३, ६५) = २७, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. दे. (२१x११, १२x२४-३० ). ३६ ठाणा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २४८६४. पच्चक्खाण भाष्य सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-६ (१ से ५,८) = ५, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., गाथा १९ से ४० तक है., जीवे. (२१.५x११, ४५२० ). ', प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). प्रत्याख्यान भाष्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). " २४८६६. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२१x११, १२x२६ - २८). काजलमेघा चौढालिया- गोडीजीपार्श्व, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भावधरी भजन करुं आपें; अंति: (-), (पू.वि., ढाल १५ गाथा ५ अपूर्ण तक है.) २४८६७. सिंदूर प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९ - १ (१) = ८, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२०.५X११, ११x२५-२६). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: (); अंति: (), (पू.वि, श्लोक ५ से ६७ तक है.) २४८७०. (+) जंबूगुणरत्नमाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, वे. (२१x११, १४X३४-३६). जंबुगुणरत्नमाला, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: शासनपति वर्धमाननो; अंतिः सेवो थाय छे कल्याण ए, ढाल - ३५. २४८८६. अल्पबहुत्त्वद्वार यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. * पंक्त्यक्षर अनियमित है., दे., (२१X१०.५). २० द्वार अल्पबहुत्व यंत्र, मा.गु., पं., आदि जीव गईदिय काए जोए; अंति: (-). २४८९१. विविध गाँव के आवकों की नामसूचि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३५ प्र. वि. पंक्त्यक्षर अनियमित है., दे., गुटका, (२१x१०.५). जैन सामान्यकृति", प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), For Private And Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३२३ दे... २४९०१. (+) द्रव्यगुणपर्याय रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२१x१०.५, ८x२६-२८ ) . द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीगुरू जीतविजय अंति: (-), ( पू. वि. गाथा - १०७ तक है. ) २४९०२. (+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. विषमस्थलों पर टिप्पण दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२०.५X१०.५, ५X१७-१९). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; अंति: कृतसपर्याः कृतधियः, श्लोक-३२. २४९०३. प्रतिष्ठा कल्पे दिवसानुसार क्रियासूचि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पंक्त्यक्षर अनियमित है. दे., (२०.५X१०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिष्ठा कल्प-दिवसानुसार क्रियासूचि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: प्रथमदिवसे जलयात्रा; अंति: (-), (पू.वि. अष्टमदिवस क्रियासूची तक है.) २४९०४. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६+१ (३) ७, वे. (२०.५x१०, ६x२२-३४). विचार संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), २४९०९. उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ३६, पूर्ण, वि. १८७२, फाल्गुन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ११ - १ ( १ ) = १०, प्रले. सा. जतु (गुरु सा. वधुजी); पठ. सा. रतुजी, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२२x१०, १५X३२-३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंतिः ति बेमि, ग्रं. २००, ( प्रतिअपूर्ण, पू. वि. गाथा १४ अपूर्ण तक नहीं है.) २४९३५. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१७, कार्तिक कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. पं. मुक्तिविशाल (गुरु उपा. हर्षविजय, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८४९.५, १२४२७). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: धारिणीमहाविद्या २४९४६. (+४) सीताराम रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३६-३१ (१ से ३१) -५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्रले. मु. गजसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (१७.५X११, १७x४७). • रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७४, आदि: (-); अंति (-), (पू.वि. खंड-६ ढाल ७ गाथा-४ से खंड-७ ढाल -३ गाथा - ८ अपूर्ण तक है.) २४९६०. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५ - ९ (१ से ४,८ से १०,१३ से १४) = ६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (१८.५X११, ११x१९-२० ). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वे. मू. पू. *, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २४९६७. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-६ (१ से २,७ से १०) = १३, जैदे., (१७X११, १२ - १३x२७-२८). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पच, वि. १५३१, आदि (-); अंति: जिम भूपति श्रीपाल, गाथा - २५५. २४९७३. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८७०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १४-९ (१ से ९) ५, जैवे. (१९x११.५, ११x२२). वंदित्तुसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं गाथा - ५०, संपूर्ण. २४९८१. (+) पाक्षिकसूत्र व खामणा, अपूर्ण, वि. १८१०, श्रावण शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १० -२ (१ से २) = ८, कुल पे. २, ले. स्थल. द्राफानगर, पठ. मु. नाथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (१९.५x१२, १९ - २३४३६). १. पे नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ३अ ९आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (१) जेसिं सुयसायरे भत्ति, (२) मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप - ४. For Private And Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४९८८. (+) दानशीयल रोचोढालीयो व दूहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९१७, आषाढ़ शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२-४७(१ से ४७)=५, कुल पे. २, प्रले. पं. अक्षयसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसत्यकाय प्रसादात्., संशोधित., दे., गुटका, (१८.५४१२.५, १६x२६). १. पे. नाम. दानसीयल रोचोढालीयो, पृ. ४८अ-५२आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. ५२आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. २४९९५. बासठ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. सिंघाणा, दे., (२०४१३, १५४१८). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गई ईदिय काए; अंति: तिर्यंच असंख्यातगुणा. २४९९७. ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १८९९, जीर्ण, पृ. १२, प्र.वि. अंतिम दो पत्रों का आधा भाग नहीं है., दे., (२८x१९, १६x४५-४८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-). २४९९८. षष्टिशतं, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, पू.वि. पत्रांकहीन अस्तव्यस्त पत्र, बीच के पत्र नहीं है., प्रले. मु. नयदेव (गुरु आ. शीलदेवसूरि, वडगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२७.५४१८.५, १७४४३-४८). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जिणंतु जंतु सिवं. २४९९९. पासाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-५(१,५ से ८)=९, दे., (१८.५४१४, १०४२०-२४). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जिमणि कुख तिल छै. २५००५. देवशास्त्रगुरु पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (१८x१३, ९x१७-२०). देवशास्त्रगुरु पूजा, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम देव अरिहंत सो; अंति: अजरअमर पद भोगवै. २५००९. (+) स्तोत्र, स्तवन, सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१८)=१९, कुल पे. १७, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित लिखे गए है., संशोधित., दे., गुटका, (१७.५४१२.५, ११४१९). १.पे. नाम. सारदाजीरोस्तोत्रम्, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पठ. मु. रत्नचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-१०८ नाम गर्भित, सं., पद्य, आदि: धिषणा धीर्मतिर्मेधा; अंति: भारती किल्विषं मे, श्लोक-१५. २. पे. नाम. परमानंदपचीसी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. __परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: परमानंदसंपन्नं; अंति: परमं पदमात्मनः, श्लोक-२५. ३. पे. नाम. सारदामाताजी रो छंद, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन; अंति: आस फलस्ये ताहरी, गाथा-३४. ४. पे. नाम. माणीभद्रजीरो छंद, पृ. ६आ-९अ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसती; अंति: लाख लोक रीझालावै, गाथा-२६. ५. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमाणिभद्र सदा; अंति: शिवकीर्ति० सुजस कहे, गाथा-९. ६.पे. नाम. शनीश्चरजीरो स्तोत्र, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण. शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जगजयो रवि; अंति: वली वली एम वखाणीए, गाथा-१६. ७. पे. नाम. शनीस्वर छंद, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: य: पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: वृद्धि जयं कुरु, श्लोक-१०. ८. पे. नाम. पुणीयांरी पाटी, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण.. पुणियाश्रावक की पाटी, अज्ञा., यं., आदि: (-); अति: (-). For Private And Personal use only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir गावा हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३२५ ९. पे. नाम. २४ जिन नाम, पृ. १३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी; अंति: पार्श्वनाथ० महावीरजी. १०. पे. नाम. शेत्रुजा रोचैत्यवंदन, पृ. १४अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय सिद्ध; अंति: जिनवर करुं प्रणाम, गाथा-३. ११. पे. नाम. शेत्रुजाजी स्तवन, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्री रे सिद्धाचल; अंति: करी विमलाचल गुण गाया, गाथा-५. १२. पे. नाम. सिद्धचक्रजी री थुई, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर अति अलवेस; अंति: सानिध करज्यो मायजी, गाथा-४. १३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामी; अंति: प्रभु आवागमण निवार, गाथा-१. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, पृ. १६अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड मत कर रे; अंति: ऋद्धि कोटानुकोटी पार, गाथा-३. १५. पे. नाम. वर्गमूल कवित, पृ. १६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आद ते विषम समलिक ते; अंति: भांत वर्गमुल करीयों, पद-१. १६. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोमासी पारणो आवे; अंति: शुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा-८. १७. पे. नाम. चाणक्यवृद्धराजनीति, पृ. १९अ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. कौटिल्य, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय अध्याय प्रारंभ से चतुर्थ अध्याय श्लोक-१ तक है.) २५०१८. गणधरसंवाद - कल्पसूत्र अंतर्वाच्ये, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. सा. सनूरा; पठ. सा. पांखडी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८x१२, १०-१२४१७-२३). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५०२०. २१ बोल निक्षेपाद्वार व त्रणवेद अल्पबहुत्व विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (१७४१२, १७-१८x२८-३२). १. पे. नाम. २१ बोल निक्षेपाद्वार विचार, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोल सातनय; अंति: जाणरणां ते श्रावक की. २.पे. नाम. त्रणवेद अल्पबहुत्व विचार, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५०३०. स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ४, दे., (१८x११.५, ११-१२४१९-२३). १. पे. नाम. चोईसतिर्थंकर रा मातापितालंछन रो स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जणेसर प्रणमुं; अंति: तास सीस प्रणमु आणंद, गाथा-२६. २. पे. नाम. श्रावकरी करणी, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: पामसी शिवपुर ठाम. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ४. पे. नाम. आतम सीझाय, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. For Private And Personal use only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२६ .. . कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमीजे चरण; अंति: गरभावास कबहु न अवतरै, गाथा-२५. २५०९९. (+) चंदराजा रास, पूर्ण, वि. १८३६, चैत्र शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १४१-८(१ से ८)=१३३, ले.स्थल. आउआ, प्रले. मु. क्षमासौभाग्य (गुरु ग. रामसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, जैदे., (२२४१०, १२-१३४३१-३७). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: वर्णव्या गुण चंदना, उल्लास-४, (पू.वि. प्रथम उल्लास ढाल-५ दोहा-१ तक नहीं है.) २५१००. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८४४, पौष कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १२०, ले.स्थल. सिरोही, प्रले. मु. भोज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२१.५४१०.५, ११४३३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: नतौ नमः, कांड-६. २५१०२. श्राद्धअतिचार व श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४१०, ९-१०४२५-२७). १. पे. नाम. श्राद्ध अतिचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: पहिला थूल प्राणातपात; अंति: मिच्छामि दुक्कड. २. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. २५११३. संग्रहणी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७९४, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदे., (२१४११, १३-१४४३०-३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३६९. २५११७. लघुदंडक व गोचरीदोष विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., (२१४११.५, १४४३६-३८). १. पे. नाम. २४ दंडक २६ द्वार विचार, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: शरीर अवगाहणा संघयण; अंति: प्राण नथी जोग नथी. २. पे. नाम. गोचरीदोष, पृ. ९आ, संपूर्ण. गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मं १ उदेसियं; अंति: कारणे भगवतीमध्ये. २५१२८. सुरसुंदरी चौपाई व चामुंडा छंद, अपूर्ण, वि. १८३५, पौष शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४१-१५(१ से १४,२३)=२६, कुल पे. २, ले.स्थल. कोटडी, प्रले. मु. यगतचंद्र (गुरु मु. कर्मचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०४१३, १५-१६x२२-२४). १. पे. नाम. सुरसुंदरी चौपाई, पृ. १५अ-४०अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: आनंद लील उमंगेजी, खंड-४. २. पे. नाम. चामुंडा छंद, पृ. ४०अ-४१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सा. सुखा, मा.गु., पद्य, आदि: सुंडालो नित समरीयै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ तक है.) २५१३०. श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. मोरार छावणी, प्रले. मु. भावविजय; पठ. श्रावि. तेजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४१३.५, १०-११४२३). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमि दंसणमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २५१३१. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६+१(९०)=९७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२०.५४१३, ११-१२४२१-२६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-४ ढाल-१२ दोहा-११ तक है.) For Private And Personal use only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३२७ २५१३५. सीमंधरजिन स्तवन व नवपद विधि, संपूर्ण, वि. १९३८, चैत्र शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. इलोल, प्रले. ग. विद्याविजय; पठ. श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२०.५४१३, १२-१४४२७-२९). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमधर विनती%3B अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५. २. पे. नाम. नवपद तपविधि, पृ. ९आ, संपूर्ण. नवपदतप आराधना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २५१३७. समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १९५१, आषाढ़ कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७४-४७(१ से ४७)=२७, ले.स्थल. वीर, दे., (२१.५४१३.५, १३-१६x२५-२६). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, गाथा-७२७, (पू.वि. पद-४२२ तक नहीं है.) २५१४४. द्वितीय कर्मग्रंथ का सूचीमात्र यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. *पंक्त्यक्षर अनियमित है., दे., (२२४१३.५). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). २५१४६. राईप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १८९४, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२०.५४१४, ७-८x१५-१८). प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५१४७. चंदकवर वार्ता व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८७९, पौष शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. उदेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४१३.५, १७-१८x२३-२६). १. पे. नाम. चंद्रकुमार वार्ता, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरसति माय गणपति; अंति: या गुण को गुणसार, गाथा-८८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस; अंति: विभवा विभवा विभवा, श्लोक-६. २५१४९. वीरजिन पंचकल्याणक स्तवन व सोलसुपन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, जैदे., गुटका, (२१४१४.५, ९x१८-२२). १. पे. नाम. महावीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३. २. पे. नाम. १६ सुपन सज्झाय, पृ. ९अ-११आ, संपूर्ण. १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि वीनवू; अंति: इम भणे सहु गुरु सार, गाथा-२७. २५१५०. उपदेशसत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२०.५४१२.५, ११४२१-२३). उपदेश बहोत्तरी, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोय जीव आपणी; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-६९. २५१५२. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह व स्तुति संग्रह, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-२(२,५)=१९, कुल पे. ९, जैदे., गुटका, (२०४१४, ११४२२). १. पे. नाम. प्रतिक्रणसूत्र संग्रह, पृ. १अ-१२आ, पूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० जयउ; अंति: सुखी भवतु लोकः. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुनसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच अंतिः सिद्धायिका नायिका श्लोक-४. ४. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण. आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमु; अंतिः इम जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४. ५. पे नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. १४-१५अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंतिः विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ६. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १५-१६अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रें दें कि धपमप; अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १६अ - १६आ, संपूर्ण. नवपद स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि निरुपम सुखदायक; अंतिः श्रीजिनलाभसूरिया जी, गाथा- ४. ८. पे नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १६आ- १७आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावु; अंतिः कहै जिनलाभसूद, गाधा - ४. ९. पे नाम श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १७-२१आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वंदित्सूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वंदामि जिणे चवीस, गाथा- ४८. २५१५६. स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०७, ज्येष्ठ शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५५, ले. स्थल. इंदोर, प्रले, पं. पुनमचंद्र, पठ, श्राव. कुंअरजी हिमतराजजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २१x१४, ४२५-२६). स्तवनचीवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८५, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम अंति: अनंत सुखनो सदा रे, स्तवन- २४. स्तवनचीवीसी टवार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदिः आनंदघनस्यास्याः गीत; अंति: गाता अखयसंपद अति घणी, (पू. वि. प्रतिलेखक ने आवश्यकतानुसार ही टबार्थ लिखा है.) २५१६३. (४) सीनात्रपुजा, संपूर्ण, वि. १९०९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., ( २२x१३.५, ८-११४३१-३६). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंतिः सारखी कही सूत्र मझार, ढाल - ८. २५१६४. रामविनोद, औषध संग्रह, मंत्र, श्लोक व स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८६, कुल पे. ७, दे., गुटका, ( २३१४.५, १४- १६x२७-३८). १. पे. नाम. रामविनोद, पृ. १अ ८४आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - १. ४. पे. नाम. बारिश लाने का मंत्र, पृ. ८५आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा., मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. सुभाषित संग्रह, पृ. ८६अ, संपूर्ण, श्लोक संग्रह *, प्रा.सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक - २. ६. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ८६अ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह *, सं., प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७. पे. नाम. महाकाल स्तोत्र, पृ. ८६आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. सं., पद्य, आदि: वामे पूर्णेदुबिंबं अंति (-), (पू.वि. श्लोक ५ अपूर्ण तक है. ) पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धदायक सलहीय; अंति: रच्यौ शास्त्र आनंद, समुद्देश- ७. २. पे नाम पात्रमंत्र लोक, पृ. ८४-८५अ संपूर्ण. पात्रमंत्र स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः श्रीमत् शंकरशेखर; अंतिः प्रौढा प्रसन्नं सदा, श्लोक ९. ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति श्लोक, पृ. ८५आ, संपूर्ण. For Private And Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३२९ २५१७५. ककाबावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२४४१५, १४-१५४२३-२७). ककाबावनी, मा.गु., पद्य, आदि: कका करम से आठ जीवने; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २५१७९. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९०२, भाद्रपद कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २६-२(१,३)=२४, ले.स्थल. ग्वालपाडा, प्रले. पं. रुघपति; पठ. मु. रूपचंद (पूनमीयागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रारंभ के पत्र अनुपलब्ध दर्शाने हेतु पत्रांक १ अनुपलब्ध माना गया है., प्र.ले.श्लो. (४९३) पय अक्खर मत्ताए, दे., (२२.५४१४.५, १३४३४-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. २५१८०. स्थुलिभद्र नवरसो, पूर्ण, वि. १९१४, आषाढ़ कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(३)=१५, ले.स्थल. संघपूर, प्रले. मु. गौतमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१४, १०-११४२१-२५). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: कहा भणतां मंगलमाल, ढाल-९, (पू.वि. द्वितीय ढाल के दोहे-५ से १९ नहीं है.) २५१८१. मणिविजय स्वाध्याय व अनागतचौवीशीजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९३८, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. वसंतराम पानाचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१४, ९४२७). १.पे. नाम. मणिविजय स्वाध्याय, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. मु. गुलाबविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संखेश्वरस्वामी रे; अंति: गाया गुलाबे जगीस हो, ढाल-५. २. पे. नाम. अनागतचौवीशीजिन चैत्यवंदन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मनाभ पहेला जिणंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ तक है.) २५१८९. मौनएकादशी माहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८००, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. नटपुर, प्रले. मु. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१३, ४४२७-२८). मौनएकादशीपर्व माहात्म्य, मु. धीरविजय, सं., पद्य, वि. १७७४, आदि: श्रीवर्द्धमानतीर्थेश; अंति: तावन्नंदतु चिरायैषा, श्लोक-१०९. मौनएकादशीपर्व माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीवर्द्धमा; अंति: समृद्धिवंत हो घणो का. २५१९०. नववाड सज्झाय व नवकार सवैया, अपूर्ण, वि. १८७६, फाल्गुन कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(२ से ३,५)=५, कुल पे. २, ले.स्थल. प्रांतिज, प्रले. पं. रूपसोम; पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१३.५, १०-१५४२४-२८). १. पे. नाम. नववाडी सज्झाय, पृ. १अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमिसर चरणयुग; अंति: हो जुगति नववाडी, ढाल-११. २. पे. नाम. नवकार सवैया, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: कुंन कहुं सब धातु मे; अंति: अक्षर जोने विचारी, गाथा-१. २५१९३. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५१, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. वीरग्राम, जैदे., (२२४१४, १५-१७४२३-२९). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २५१९४. स्नात्र पूजा, अष्टप्रकारी व ज्ञान पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३०, कुल पे. ३, दे., (२१.५४१३.५, ७X१५-१७). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १अ-१७आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १८अ-२९आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख; अंति: क्लेशक्षयाकांक्षया, ढाल-८. ३. पे. नाम. ज्ञानपूजा, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञान पूजा, प्रा., पद्य, आदि: नमंति सामंति महीवनाह; अंति: नाणस्स लाभाय भवखयाय, गाथा-२. २५२०२. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थव कथा, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०६, जैदे., (२३४१३.५,७-२०४२८-४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-३६ गाथा-२६६ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ अध्ययन-३१ गाथा-९ तक लिखा है., वि. प्रथम पत्र फटे होने से आदिवाक्य नहीं पढ़ा जा रहा २५२०५. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, कार्तिक शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. सूरत, जैदे., (२४४१४, ५४२२-२५). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, श्लोक-१०९. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वामेयं पार्श्वनाथ; अंति: प्राप्ति शीघ्र थाई. २५२०६. नवपद, सत्तरभेदी पूजा व शांतिजिन आरती आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५, कुल पे. ४, जैदे., (२२४१३.५, ७४१७-२०). १. पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. १अ-२७अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजीगणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: परम मंत्र प्रणमी करी; अंति: कोई नये न अधूरी रे. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति; अंति: नरनारी अमर पद पावे, गाथा-६. ३. पे. नाम. ४ मंगल पद, पृ. २८अ-२९अ, संपूर्ण. मु. सकलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज म्हारै च्यारु; अंति: आनंदघन उपगार, गाथा-७. ४. पे. नाम. १७ भेदी पूजा, पृ. २९अ-५५आ, संपूर्ण. वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: भाव भले भगवंतनी पूजा; अंति: सबलीला सवि सुख साजै, ढाल-१७. २५२१३. अंजनसलाका स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(१ से ४)=५, दे., (२२४१३, १०x१८). शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्रंक स्तवन- इतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे विरविजय महाराज, ढाल-७, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं दिया है.) । २५२१६. गौतम कुलक सह टबार्थव नवपद स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. २, दे., (२३४१३, १३४२८). १.पे. नाम. गौतम कुलक सह टबार्थ, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., मात्र अंतिम गाथा का अंतिम पद है. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सुहं लहंति. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इसा साधु भला मानस. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. २अ-६आ, संपूर्ण. मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीअरिहंत; अंति: कुशला कुंभासै रे. २५२१७. पासाकेवली, अपूर्ण, वि. १८०३, भाद्रपद कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, ले.स्थल. शुभट, प्रले. पं. देवेंद्रविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., गुटका, (१३.५४१२, २१४१७-१९). पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: यामेन तथैकदिवसेन तु, श्लोक-१८७. २५२१९. सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. खेरालु, प्र.वि. श्री आदिजिन प्रसादात्., जैदे., (२४४१३.५, ११४२६-३०). सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रीगुरु चरणे नमी; अंति: केसरकुशल जयकरो, ढाल-५, गाथा-७५. २५२२०. गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२४४१३, ४४२४-२६). For Private And Personal use only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३३१ गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नर लक्ष्मी; अंति: ते पणा प्रति पामइ. २५२२१. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, वैशाख कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, पठ. श्राव. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१३, ३४२४-३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: ते तीस अयरा आउस्स, गाथा-५९. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व प्राण धरे; अंति: उत्कृष्टी कही छे. २५२२२. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२१, फाल्गुन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पाली, प्रले. पं. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१३, १२४२२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकरण श्रीशांतिजी; अंति: पुरुषोत० गुण गायाजी, ढाल-५. २५२२४. सत्तावीस बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७४२३, १३४५-१२). २७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोले गति चार; अंति: नाम थापना द्रव्य भाव. २५२२५. आनंदघन पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदे., (२०.५४१४.५, ११४२४). आनंदघन पद संग्रह, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: क्या सोवे उठ जाग; अंति: प्रभु० जन रावरौ थकौ. २५२२८. षड्द्रव्य भाव, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रावण कृष्ण, ३०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि; पठ. श्राव. चतुरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१३, १२४३८-४४). षड्द्रव्य भाव, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी; अंति: सद्दहतो पार पामस्ये. २५२३१. ढोलामारु चउपइ, संपूर्ण, वि. १७५८, माघ शुक्ल, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, ले.स्थल. भरख, प्रले. मु. लालसागर (गुरु ग. कृष्णसागर); पठ. श्राव. हरिदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१३, १४४२८-३१). ढोलामारु चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सकल सुरासुर सामिनी; अंति: सुख पामै मुदा, गाथा-८०८. २५२३२. श्रीपालनरिंद्र कथा सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८३८, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १२०-१(१९)+३(२४ से २६)=१२२, प्रले. मु. मयाकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१३, ६x२४-३०). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: वाइजंता कहा एसा, गाथा-१३३८, ग्रं. १६७५, पूर्ण. सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, पं. ऋद्धिसागर मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतादिक नवपद; अंति: कहेवा जोग्य कथा या, (संपूर्ण, वि. कर्तानाम नहीं दिया गया है.) २५२३५. श्रीपाल रास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४६, कार्तिक शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. १११, ले.स्थल. पुना, प्रले. पं. धर्मकुशल (गुरु ग. गंभीरकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२३४१३.५, ५-१४४३०-३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल ४१. श्रीपाल रास-बालावबोध, पंन्या. गणेशरुचि, मा.गु., गद्य, आदि: हवे चरित्र थकी सोले; अंति: (१)करी कविश्वर कहिउँ छै, (२)विबुधैः संशोधनीयः, ग्रं. २४००, (वि. इस प्रति में कृति का प्रारंभ खंड-२ ढाल-३ से है व संपूर्ण रास का बालावबोध न करके आवश्यकतानुसार किया गया है.) २५२३६. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८४०, आषाढ़ शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२७-२(१ से २)=१२५, पू.वि. सूत्ररचना की भूमिकारूप पीठिका का भाग अपूर्ण है., ले.स्थल. मारुदेश, प्रले. श्राव. मोटामल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३.५, २-४४३२-३४). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०, गाथा-७००, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र- टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, वि. १६७३, आदि: ध० दुर्गति पडतां जीव; अंतिः (१) दक्षयस्तात् प्रमोद, (२) ग० गति तेहनइ, संपूर्ण. २५२४० (+) सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२३.५x१२, ११x२८). सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: कार्यो भवद्भिरद्भूतं. २५२४१. पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वे. (२४४१२, १४-१६४३१-३३). आनंदघन गीतवहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि क्यौ सोवै उठि जागिवा; अंति: (-), (पू.वि., पद- ६१ गाथा - २ अपूर्ण तक है. ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२४२. सप्तस्मरण, पूर्ण, वि. १८५०, फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २० - २ (१ से २ ) = १८, ले. स्थल. कर्मवाटी, प्रले. मु. आणंदसागर (गुरु पं. जीवसागर ); पठ. श्राव. मोतीचंद रुपचंद ; श्राव. दीपचंद रुपचंद, प्र.ले.पु. विस्तृत, दे., (२४x१२, ८-१०x२१ - २८ ) . नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि (-); अंति जैनं जयति शासनम्, (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. संतिकरं स्तोत्र गाथा १२ अपूर्ण से है. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.) २५२४३. (+) दीपोत्सव कल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८७७, आश्विन कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २२-४(१ से ४)=१८, पू. वि. गाथा - ३३ अपूर्ण तक नही है., ले. स्थल, पाडलीपुर, प्रले, मु. साहिवराम, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४X१२, ५X३५-३६). दीपावली पर्व कल्प, प्रा. सं., प+ग, आदि (-); अंति सोहेयव्वो सुअधरेहिं, गाथा- १३५. , दीपावली पर्व कल्प- टवार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (); अंति: शाखना धरणहार. २५२४६. पंचज्ञान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९- २ (७ से ८) =७, दे., ( २३४१२, २६४६१). पंचज्ञान विचार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण जिणवरिंदं; अंति (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पंचम अध्याय की गाथा - १२ तक लिखा है.) २५२४७. सीताजी की आलोयण, संपूर्ण, वि. १८७६, भाद्रपद कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले, सा. रीधुः पठ. अखु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४X१२, १३X३५-३९). सीतासती कृत आलोयणा, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सती न सीता सारिखी; अंति: शाश्वता केवलकुशल कहत, ढाल - ६. २५२४८. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७९-४८ (१ से ४८ ) = २३, पू. वि. बीच के पत्र हैं., तृतीय वाचना के अंतिम कुछेक अंश से चतुर्थवाचना के दशअच्छेरा अधिकार तक है., दे., ( २४x१२, १३x२५ - २९). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५२४९. नवस्मरण व सकलार्हत् स्तोत्र, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १० - १ (५) = ९, कुल पे. २, ले. स्थल, समीनगर, दे., (२३.५x१२, १६-१७४३२-३७ ). १. पे, नाम, नवस्मरण, पृ. १अ-८आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति जैनं जयति शासनम्, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अजितशांति स्तव गाथा - ३० अपूर्ण से भक्तामर स्तोत्र श्लोक - ९ अपूर्ण तक नहीं है. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं लिखा है.) २. पे नाम. सकलात् स्तोत्र, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: कल्पलतेव मूर्ति, श्लोक-५४. २५२५२. (+) आगमसारोद्धार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८६, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. ८०, ले. स्थल, कलकत्ता, प्रले. पं. जगतसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे., ( २४४१२.५, १२x२९-३३). आगमसारोद्धार- स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: तिहां प्रथम जीव; अंतिः (१) सफल फली मन आस, (२) ते समकिति जाणवो. For Private And Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३३३ २५२५५. (#) दानशीलतपभावना कुलक सह टीका, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३७-७(१,६६,१२० से १२४)+१(५६)=१३१, पू.वि. प्रथम एक, बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे.. (२४४१२.५, १३-२२४३२-४४). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). दानशीलतपभावना कुलक-टीका, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २५२५६. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८३७, आषाढ़ शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९४, प्रले. पं. खूबचंद (खरतर-भावहर्ष गच्छ); पठ. मु. जैमा (गुरु पं. खूबचंद, खरतर-भावहर्ष गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (३९०) मुख वरता माणक सबद, (७०४) जिंहा लगी मेरु अडिग हे, (७३२) मुरख कुंपोथी दीये, दे., (२२४१२.५, ११x१९-२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)णमो अरिहताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. २५२५७. (+) कुमारपालभूपाल रास, संपूर्ण, वि. १८५७, कार्तिक शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १७४, ले.स्थल. लींबडी, प्रले. पं. पद्मविजय (गुरु ग. गुमानविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. शांतिजिन व पार्श्वनाथजी प्रसादात्., संशोधित., दे., (२३.५४१२.५, १३४२६-२८). कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीसरसति भगवति नमु; अंति: ओगणत्रीस ढाळ गावो हो, ढाल-१२९, गाथा-२८७६. २५२६२. त्रिलोकसार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, दे., (२३४१२, १२४३६-३९). त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदि: सुमतिनाथ पंचमो जिन; अंति: रास भावि भगतइ भावोस, गाथा-२१८. २५२६३. विचारषविंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२२.५४१२, ६४२२-२४). विचारषट्त्रिंशिका प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३९. २५२६८. आचारांगसूत्र सह टबार्थ - प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन १ से ८, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६९, जैदे., (२४४१२, ६४३९-४५). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधर्मास्वामी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५२७०. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७९, आषाढ़ शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. मु. खुस्यालचंद; पठ. पं. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२, १०-१३४१८-२१). अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अर्हन्नामापि; अंति: सानंद महानंदैककारणं, प्रकाश-१०. २५२७१. भववैराग्यशतक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, पठ. श्रावि. पुजीबाई; प्रले. भइचंद पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ४२५, दे., (२४.५४११.५, ४४३१). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, श्लोक-१०५. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारनइ विषइ ए निरस; अंति: मोक्ष० स्थानक प्रतई. २५२७७. कल्पसूत्र सह बालावबोध - साधुसमाचारी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., समाचारी १६ अपूर्ण तक है., जैदे., (२३४११.५, १५४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २५२८७. (+) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२४११.५, १३-१८४३८). विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची , २५२९०. सिद्धांतचंद्रिका सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २३८- ९० (६ से १२, १०६ से १८८ ) - १४८, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. दे., ( २४४१२, १६-१८४३१-४४). सिद्धांतचंद्रिका, प्रक्रिया, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महेशानं अंति: (-). सिद्धांतचंद्रिका सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदिः पुराणपुरुषं ध्यात्वा; अंतिः (-), २५३०१. योगचिंतामणि सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२ कार्तिक शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १९६, ले. स्थल, कृष्णगढ, प्रले. अर्जुन ब्राह्मण; पठ. उमीरमल्लजी वैद्य, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २३x११.५, ६x२६-३२). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायांति; अंति: योगचिंतामणिश्चिरम्, अध्याय - ७, संपूर्ण. योगचिंतामणि- टबार्थ, मु. नरसिंह, मा.गु., गद्य, आदिः यत्रेति सुगम; अंति: वैद्यकग्रंथ समुद्रथी, ग्रं. ५८७८, (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, टवार्थ लेखन लोकांक ६ से प्रारंभ किया है.) २५३०४. (+) चंद चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७२ फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १३०+२ (६९, ८४ ) = १३२, ले. स्थल, अजमेर, प्रले. पं. वृद्धिचंद्र (गुरु पं. माणिक्यभद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२४x११, १३x३५-३६). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुण चंदना, उल्लास-४ ढाल १०८. २५३१०. सारस्वत व्याकरण सह दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९०-३५ (७, ६७ से ९१,१०३,११०,११२,११५ से ११७, १८१, १८५, १८८) +२ (१८७, १८९) - १५७, प्र. वि. त्रिपाठ, जैवे. (२४.५x११, १-६x२८-४७). सारस्वत व्याकरण, प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं अंति: नराकारमधुपापीतपत्कजः, ग्रं. १५००. सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (१) नमोस्तु सर्वकल्याणपद, (२) प्रणम्येत्यादि० अवैत; अंतिः प्रभुचंद्रकीर्त्तिः, वृत्ति - ३, प्र. ७२०० २५३१५. सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३८ - २० (४८, ११७ से १३५) = २१८, दे., (२१.५x११, ८- २१x२६-४० ). सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य वि. १६२३, आदि: (१) नमोस्तु सर्वकल्याणपद, (२) सरस्वती सदाभक्त; अंतिः बभूव सुमनोहरा, वृत्ति-३, ग्रं. ७१००, २५३१८. (+) शत्रुंजयमहातीर्थमाहात्म्य चतुपदी, संपूर्ण, वि. १७९५ आश्विन अधिकमास कृष्ण, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. १७२, ले. स्थल. यसोलनगर, प्रले. ग. लब्धिविजय (गुरु ग. शांतिविजय, तपागच्छ); राज्ये आ. विजयदयासूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांति प्रसादात्., संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., जैदे. (२३.५x११, १९४३८-४४ ). शत्रुंजयतीर्थ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: विश्वनाथ चरणे नमुं; अंतिः रचीयो रास रसाल, खंड-९, गाथा - ६४५७, ग्रं. ८५६८. २५३२२. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८२, आश्विन शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२४, ले. स्थल. आणंदपुर, प्र. सा. कसुंबा, पठ. सा. चंपा ( गुरु सा. कसुंबा ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ८९७५, जैवे. (२३.५x११, ६x४०-४७). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: अंतिः पएसे सुपस्स्ववणीए. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: (१) देवदेवं जिनं नत्वा, (२) राजप्रश्नीय उपांग, अंति: ह भणी नमस्कार थाओ. २५३३३. स्थुलिभद्र सीयलवेल, संपूर्ण, वि. १८७२, माघ शुक्ल १२, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५x११, ११-१२४३३-३८). For Private And Personal Use Only स्थूलभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदिः सयल सुहंकर पासजी; अंतिः विमला कमला वरस्ये रे, ढाल - १८. Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २५३३४. नवतत्त्व विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४ - १९ (१ से १९) = ५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४X१०.५, ११५२८-३२). - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवतत्त्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५३३८. शालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-४ (१ से ३, ९ ) = १७, प्रले. ग. सुंदरविजय; पठ. ग. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २३x१०.५, १२ - १३X३८-४१). शालिभद्रमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि (-); अंति: मनवंछित फल लहस्यइजी डाल २९, गाधा ५१५. २५३४२. डालसागर, संपूर्ण, वि. १७४८, कार्तिक शुक्ल, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०२, ले. स्थल, मंगलपूर, प्रले. पं. अमृतकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीनवपल्लवपार्श्वजिन प्रसादात्., जैदे., (२३x१०, १६-१७x४०-५१). ढालसागर, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: जंपइ संघ रंग धामणो, खंड - ९ ढाल १५१. २५३४६, (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल, वडू, पठ, श्राव. मगनमल, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२२x१०, ६X१७-१९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा-४४, २५३४७. श्रीपाल रास, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७४- ३ (१ से ३) = ७१, प्रले. श्राव. जोइता, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४x१०.५, ११-१४x२३ - ३३). प्रले. श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा - १२४०, ग्रं. १७५० (पू. वि. गाथा १ से ६५ नहीं है.) २५३५०. द्रुपदी चौपाई, पूर्ण, वि. १७३०, कार्तिक कृष्ण, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. ३२ - २ (१ से २) ३०, ले. स्थल, रामपुरा, प्रले. मु. वर्धमान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४१०.५, १५-१६४५३-६० ). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: कनककीरति सुखकार, दाल- ३९, ग्रं. १५०१, (पू.वि. ढाल २ गाथा- २ तक नहीं है.) २५३५३. जीवविचार सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७८५, पौष शुक्ल १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल, राजनगर, . रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X१०.५, ३-४X३७-३८). मु. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्म, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुयसमुदाओ, ३३५ गाथा - ५२. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण भुवनने विषे; अंति: जे जीव ते विचार समजे. २५३५५. (७) हरिबल चौपाई, पूर्ण, वि. १८४६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११८ - २ ( ९६ से ९७) - ११६, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३.५x१०.५, ११-१५४२८-३६). , हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधव जगधणी; अंति: लब्धिनी वाचा फलयो रे, उल्लास - ४ ढाल ५९, ग्रं. ३७५१. २५३५८. कल्पसूत्र सह टबार्थ व अंतर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १८२४ शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ११७, ले. स्थल. डबोक, प्रले. मु. .मयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन मास में मात्र "मासोत्तममास" का उल्लेख है., जैदे., (२३x१०, ६x४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहंताणं० पढमं अंति: उवदंसेड़ ति बेमि, व्याख्यान ९. कल्पसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने नमस्कार हुआ; अंतिः सुधर्मा गणधरे को. कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, वा. गुणविजय, मा.गु., सं., गद्य, वि. १६८७, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः For Private And Personal Use Only गुणविजयजयलक्ष्मै. २५३६० (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८५-६ (१ से ३,२९,६०,८४) = १७९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२२.५x११, ६ १२४२५). " Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहताणं० पढम; अंति: (-), पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो अरिहंतने; अंति: (-), पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. २५३६७. नंदीषणरिषि चौपाई, पूर्ण, वि. १७७९, फाल्गुन शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(१)=११, ले.स्थल. खेरवानगर, प्रले. ग. हस्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., जैदे., (२४.५४१०.५, १४-१६४३५-३७). नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: (-); अंति: सिद्धि नित गेहइ रे, ढाल-१६, ग्रं. ४२१, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-७ तक नहीं है.) । २५३६८. जिनप्रतिमापूजन हुंडी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५४१०, ४-७४३१-३४). जिनप्रतिमापूजन हुंडी, मा.गु., गद्य, आदि: पेंतालीस आगम नाम मूल; अंति: जिणा भाविजिण जीवा. २५३६९. (+) जीवविचार प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०, ३४२४-२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-). जीवविचार प्रकरण-सुबोधिनीटीका, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८५०, आदि: (१)ध्यात्वा जैन महः, (२)इह हि संसारसागरे; अंति: (-). २५३७०. (+) शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २१+१(१२)=२२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १५४३५-४०). __ शालिभद्रमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीयइ; अंति: मनवंछित ___फल लहिस्यइ, ढाल-२९. २५३७१. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२५, फाल्गुन कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. श्राव. पनालाल छांगाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११, ४४४१-४६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ग. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीहर्षसागर सद्गुरु; अंति: वारे ते अनेक सिद्ध. २५३७४. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३२+१(२७)=१३३, जैदे., (२६.५४११, १३-१५४५१-५५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: धम्मकहाओ सम्मत्ताउ, अध्ययन-१९, ग्रं. ६०००. २५३७५. (+) प्रवचनसारोद्धार, पांत्रीस वाणीगुण सह टबार्थ व २४ जिन गर्भकाल, संपूर्ण, वि. १७६०, कार्तिक शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३६, कुल पे. ३, ले.स्थल. रिणी, प्रले. पं. आणंदधीर (गुरु ग. ज्ञाननिधान, खरतरगच्छ-सागरचंद्रसूरिशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११, ६x४८-५१). १. पे. नाम. प्रवचनसारोद्धार सहटबार्थ, पृ. १आ-१३५अ, संपूर्ण. प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: नंदउ बहु पढिज्जतो, ___ द्वार-२७६, श्लोक-१६२६. प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी जुगादी; अंति: भव्ये भणी जतउ थकउ. २. पे. नाम. ३५ वाणीगुण सह टबार्थ, पृ. १३५अ-१३५आ, संपूर्ण.. ३५ वाणीगुण, सं., गद्य, आदि: संस्कारवत्वं१ औदात्य; अंति: अखेदत्वं. ३५ वाणीगुण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संस्कृतादिक लक्षणे; अंति: भगवंतना जाणिवा. ३. पे. नाम. चौवीसजिन गर्भस्थितिकाल, पृ. १३५आ-१३६अ, संपूर्ण. २४ जिन गर्भस्थितिकाल, प्रा., पद्य, आदि: दुचउत्थ नवम बारस; अंति: सत्त हुंति गब्भदिणा, गाथा-३. For Private And Personal use only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३३७ २५३७६. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७०, चैत्र कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. २० - १० (१ से १०) = १०, कुल पे. ४, ले. स्थल. सीरोही, प्रले. पं. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, ११x२६-३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. जिनस्तवनचौवीसी, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चढती दोलति पावौ जी, (पू.वि. अंतिम गाथा - ३ से ५ तक है.) २. पे. नाम. १४ गुणठाणागर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११अ - १४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- १४ गुणठाणागभिंत, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: नमिय सिरियासजिणराय; अति: मति निरमल सदा, ढाल - ५, गाथा- ४३. ३. पे. नाम. कर्मविचारगर्भित श्रीपार्श्वकुमर स्तवन, पृ. १४अ १७अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा., मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदिः नमिअ सिरिपासजिण सुजण अंति: दिणवर सयलअतिसयसंजुओ, ढाल ३, गावा- १९. ४. पे नाम, २४ दंडकविचार स्तवन, पृ. १७अ २०अ, संपूर्ण, - पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंति: गावै धरमसी सुजगीस ए, ढाल - ४, गाथा - ३४. २५३७८. (+) आचारांगसूत्र सह टिप्पण द्वितीय श्रुतस्कंध, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७४-२ (१ से २) = ७२, प्रले. मु. हाथी ऋषि (गुरु ऋ. मांडण), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., (२६x१०.५, ११x२९-३९). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: ( - ); अंति: विमुच्वंति तिबेमि, ग्रं. २६५४, प्रतिअपूर्ण. आचारांगसूत्र- टिप्पण में, मा.गु., गद्य, आदि: ( - ); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ,ले. स्थल. भागपुरनगर, फ़्ले भु. . मनोज्ञसागर (गुरु पं. प्रसिद्धसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५४१०.५, ११-१५x२१-२७). २५३८१. पासाकेवली शकुनावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पाशाकेवली भाषा * संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवति; अंतिः पामीश उत्तम फल छे. २५३८३. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह तात्पर्यार्थप्रकाशिका टीका, संपूर्ण, वि. १६७०, श्रावण शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १३७, प्रले. पं. विनयकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंतिम पत्र का ऊपरी भाग खंडित होने से टीका का अंतिमवाक्यादि नहीं भरा जा सका है., संशोधित - त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, ४-५X४६-४८ ) . अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. अभिधानचिंतामणि नाममाला - तात्पर्यार्थप्रकाशिका टीका, ग. चारित्रसिंह, सं., गद्य, आदिः (१) श्रीकल्याणप्रदीपनिधि, (२) अहं प्रथकृत् रूढ अंति: ( - ). २५३८४. (+) सूक्तमुक्तावली, संपूर्ण वि. १८४८, श्रावण शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५९, ले, स्थल, अटेर, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २५X११, ८X३७-४१). सूक्तावली, सं., पद्म, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंतिः मनुते हृदि वक्रता, श्लोक - ७७०, २५३८७. निरियावलियादि पंचोपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८४, कार्तिक कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ५७, कुल पे. ५, ले. स्थल, मेडतानगर, प्र. वि. श्रीखरतरगच्छे, जैदे., (२५.५x११, ७x४२ - ५६ ) . १. पे नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ २०अ, संपूर्ण. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः भणियव्वो तहा, अध्ययन - १०, कल्पिकासूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणइ कालई तिणइ समई; अंतिः सर्वनो जाणवो तथा तिम २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २०अ २२अ संपूर्ण. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जति णं भंते समणेणं०; अंतिः वा सेज्झिहिंति, अध्ययन- १०. कल्पावतंसिकासूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः ज० जड भं० हे पूज्य; अंतिः विदेह खेत्रे सीझस्वी. ३. पे नाम. पुष्पिकासूत्र सह टवार्थ, पृ. २२अ - ४७अ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ૩૩૮ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जदपि हे पूज्य श्रमण; अंति: जिम गाथायै तिम. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४७अ-५०आ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेण०; अंति: वासे सिज्झिहिति, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जदपि हे पूज्य श्रमण; अंति: महाविदेह० सीझस्यै. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५०आ-५७अ, संपूर्ण. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जइ भगवंत निखेवउ; अंति: वर्गि बारइ उदेसा. २५३९१. विक्रमादित्य चौपाई व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८४९, चैत्र शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ५६, कुल पे. २, प्रले. मु. विद्यासमुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४२९-३३). १. पे. नाम. विक्रमादित्य-विक्रमसेन चौपई, पृ. १आ-५६आ, संपूर्ण. विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो; अंति: दिन दिन दोलति पाईजी, ढाल-५२. २. पे. नाम. जैन श्लोक, पृ. ५६आ, संपूर्ण. जैन श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. २५३९२. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३०२५, प्र.ले.श्लो. (४८८) जलाद्रक्षेत्तैलाद्रक्षेत्, जैदे., (२५.५४११, ७-८४३६-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरो; अंति: भलइ गुरूक्त जणाविउ. २५३९३. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२७, श्रावण शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले.स्थल. नीबली, प्रले. मु. जीवण ऋषि (गुरु मु. समर्थजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ६-७४४६-५०). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: से तं परोक्खणाणं, गाथा-७००. नंदीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: विषइ कषायना जीपणहार; अंति: कह्यु परोक्षज्ञान. २५३९४. विचारसारोद्धार, पूर्ण, वि. १७३७, माघ कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६०-३(३० से ३२)=५७, ले.स्थल. बर्हानपुर, प्रले. ग. दानविमल (गुरु ग. कनकविमल), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११, १४-१६४१७-२३). सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: एक बोलनो विचार प्रथम; अंति: मिच्छामि दूक्कडं. २५३९५. (+) विचारषट्विंशिका सह स्वोपज्ञ अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७६२-१७६३, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. सुविधिसागर; पठ. ग. रविसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १६-१८४४४-४८). विचारषविंशिका प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, ___ गाथा-३८, (वि. १७६३, चैत्र कृष्ण, ७) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेयं; अंति: मत्वेदं बालचापल्यम्, ग्रं. २१६, (वि. १७६२, चैत्र कृष्ण, ५, गुरुवार) २५३९६. (+) ज्योतिषसार सह टबार्थ व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२६, मध्यम, पृ. ३६, कुल पे. २, ले.स्थल. रोहिणी, प्रले. पं. गुलाबचंद (गुरु वा. गंगाराम, खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनलाभसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११, ६४३७-३९). १. पे. नाम. ज्योतिषसार सह टबार्थ, पृ. १आ-३६अ, संपूर्ण. ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: करइ पुण नत्थि संदेहो, (वि. १८२६, पौष शुक्ल, २, शनिवार) For Private And Personal use only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org ३३९ ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो श्रीअरिहंत; अंति: सुख करइ संदेह रहै न, (वि. १८२६, माघ कृष्ण, ९, शनिवार) २. पे नाम ज्योतिष संग्रह, पृ. ३६आ, संपूर्ण. ज्योतिष संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). २५३९८. (+) पार्श्वजिन लघुचरित्र, संपूर्ण, वि. १७०८, चैत्र शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११९, प्रले. ग. कनकरत्न (गुरु आ. कल्याणरत्नसूरि, तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, १५X४६ - ५० ) . पार्श्वजिन चरित्र, ग. उदयवीर, सं., गद्य, वि. १६५४, आदि: प्रोद्यत्सूर्यसमं अंतिः यतो भवतु वांछितम्, सर्ग-८, ग्रं. ५५००. १२- १४४३४-३६). १. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - २५३९९. हरिचंदतारालोचनीसती सीयल चउपई, संपूर्ण, वि. १८६६ कार्तिक शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. वडोद, प्रले. मु. भीमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (४६९ ) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा, दे., (२५x११, १६ - १८४५२ - ५५ ) . हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: पास जिणेसर पाय नमु; अंति: नाम ति परिमाण रे, खंड-३, गाथा-४०४. २५४००. स्तवन, सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२९, नव कर कर्म परमेश्वर, चैत्र कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. कनीराम; पठ. सा. फतु (गुरु सा प्रेमाजी), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५x११, नेमराजिमती पद, मु. दया, रा., पद्य, आदि: नेमकुंवरजी थे सजी ; अंति: दास दया थांनै विनवै, गाथा-११. २. पे नाम, नेमराजुल पद, पृ. १अ, संपूर्ण नेमराजिमती पद, रा., पद्य, आदि: सोरठ थारा देसमै गढ; अंति: चढै नेमकुमार, गाथा-३. ३. पे. नाम. नववाडी सज्झाय, पृ. १आ ५अ संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्म, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीसर चरणयुग; अंति हो जुगति नववाडि, ढाल ११, गाथा- ९७. ४. पे. नाम. रिषभदेवजी स्तवन, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्म, आदिः श्रीविमलाचल सिर तिलौ; अंतिः अविचल लील विलास, गाथा - ११. रणधीर २५४०२. वेदरभीनी चोपी, संपूर्ण, वि. १७३५ आश्विन कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, जहानाबाद, दत्त, मु. साधु गृही. मु. चुनीलाल, प्र. ले. पु. सामान्य, जैये., ( २६४११, १४-१५x४४-४६). दमयंती चौपाई, क्र. प्रेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जिणधरमसुं जागता हुवो; अंति: चढै शरीर हुवइ पवित्र, गाथा - १९९. २५४०३. समयक्त्वकौमुदी कथाष्टक संबंध गीतरचना प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९११, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८, ले. स्थल. विक्रमनगर, प्रले. प्रमोद रताणी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २४.५४११, १५४३८-४० ). सम्यक्त्वकौमुदी कथाष्टक, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: विजयमान श्रीवीरजिन; अंति: रिद्धि ति पावीजी, ढाल ४२. - २५४०४. स्नात्र पूजा सविधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५X११, ९-१३x४३-४६). , स्नात्रपूजा, आ. मंगलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १३वी, आदि: (१) पूर्वे बाजोट उपरि, (२) मुक्तालंकारविकारसारस; अंतिः चैत्यवंदन पुरु करइ. २५४०६, (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८३, गुप्ति भय मद चंद्र, वैशाख, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे, ३, प्रले, मु. विनय, For Private And Personal Use Only प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५x११, १२-१३X३५-३७). Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. विषापहार स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. जै.क.धनंजय कवि, सं., पद्य, ई. ७वी, आदि: स्वात्मस्थितः सर्वगत; अंति: सुखानि यशोधनंजयंच, श्लोक-४०. २. पे. नाम. अंकगह्न षडारचक्र, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.. सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ६वी, आदि: सिद्धिप्रियैः प्रतिद; अंति: तातः सतामीशिताः, श्लोक-२५. ३. पे. नाम. भूपालचतुर्विंशतिका, पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., पद्य, आदि: श्रीलीलायतनं महीकुल; अंति: भूयात् पुनदर्शनम्, श्लोक-२५. २५४०७. तीर्थमाला सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. श्रीअंचलगछे., जैदे., (२५४११, ११४३५-३८). तीर्थमालास्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत भगवंत; अंति: मुणिविंद थुय महिया, गाथा-१०९. तीर्थमालास्तोत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरि वयरा हण्या परम; अंति: स्तवी छइ पूजी छइ. २५४०८. कल्याणमंदिर, विषापहार स्तोत्र व कवित, संपूर्ण, वि. १९२५, माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, दे., (२३४१०, ११४३२-३८). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. २.पे. नाम. कवित, पृ. ४आ, संपूर्ण. कवित संग्रह , पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१.. ३. पे. नाम. विषापहार स्तोत्र, पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण. जै.क. धनंजय कवि, सं., पद्य, ई.७वी, आदि: स्वात्मस्थितः सर्वगत; अंति: सुखानि यशोधनंजयं च, श्लोक-४०. २५४०९. (+) निरियावलिकादि पंचोपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३५, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ५३, कुल पे. ५, ले.स्थल. वडीसादडी, प्रले. मु. गुमान (गुरु मु. रोडीदास), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११, ८४४२-४५). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२०अ, संपूर्ण. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: भणियव्वो तहा, अध्ययन-१०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणै कालै चउथा; अंति: पूर्वपाठनी परे कहवो. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २०अ-२२अ, संपूर्ण. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति ण भंते समणेण०; अंति: वासे सिज्झिहिति, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: यद्यपि हे भगवन्; अंति: सकलार्थ सिद्ध होस्यइ. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २२अ-४५अ, संपूर्ण. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जजउ भं०हे पूज्य; अंति: गाथामाहे छे तिम. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४५अ-४८अ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जदपि हे पूज्य श्रमण; अंति: महाविदेह० सीझस्यै. ५.पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सहटबार्थ, पृ. ४८अ-५३अ, संपूर्ण. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो हे पूज्य श्रमण; अंति: इग्यारे ज अध्ययने. ४१०. (+) सिंघासणबत्रीसी बत्रीसपूतली रसिककथा सुखबोध चउपी, संपूर्ण, वि. १७४९, वैशाख शुक्ल, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६५, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५४११, १३४३९-४६). सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकल मंगल धर्म धुरि; अंति: लहि नर कोडि कल्याण, गाथा-१६५१. For Private And Personal use only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३४१ २५४११. (+) शत्रुंजय उद्धार रास, गौतमपृच्छा चौपाई व गिरनारतीर्थोद्धार प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५x११, १५ - १६X३२-३७). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, पृ. १आ ६आ, संपूर्ण. मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: देही दरीसण जय करूं, ढाल - १२, गाथा - १२४. २. पे. नाम. गौतमपृच्छा चौपाई, पृ. ६आ-११अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: मन जे जिनवचने वसिउ, गाथा - १२४. ३. पे. नाम. गिरनारि तीर्थोद्धारमहिमा प्रबंध, पृ. ११आ - १९अ, संपूर्ण. गिरनारतीर्थोद्धार रास, पंडित. नवसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि सबल वासव सवल वासव; अंतिः चल आपो सुख मंगळ मुदा, ढाल - १३, गाथा - १८४. २५४१३. (+) प्रश्नोत्तर संग्रह, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६ - १ (१) = २५, प्रले. उपा. विनयविजय * (गुरु उपा. कीर्तिविजय *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत, जैदे, (२५x११, ९३८-३९). प्रश्नोत्तर संग्रह, उपा. विनयविजय, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ( १ ) जयशिशु विनयविजयगणिना, - 2 (२) करता श्रेय कल्याण. २५४१४. (०) चेतन कर्म चरित्र, संपूर्ण वि. १८१० फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ. १२, ले. स्थल. भावनगर, प्रले. भवानजी ऋषि मु. ( गुरु मु. रणछोडजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११, ११-१६x३१-३४). चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: श्रीजिनचरण प्रणाम; अंति: भगवतीदास० कही अनादि, गाथा - २९६. २५४१५. (+) प्रियमेलक चडपई व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७०३, भाद्रपद शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१ (८) = ८, कुल पे २, प्रले, मु. वीरपाल (गुरु मु यादव ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., ( २६११, १३x४०-४२ ) . १. पे नाम. प्रियमेलक चउपई, पृ. १अ ९अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है, प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंतिः पुण्य अधिक परमोद, ढाल - ११, गाथा - २१८, ( पू. वि. गाथा - १७८ अपूर्ण से २०२ तक नहीं है. ) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: वाडी फूली अति भली; अंतिः सीख कहि कवि माल रे, गाथा - १८. २५४१६. बारभावना, संपूर्ण, वि. १८००, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ८, पठ. मु. मंगलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५X११, ११X३१-३४). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिनेश्वर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल - १३, गाथा - १२७. २५४१७. स्तवनचौवीसी व पदबहोत्तरी, संपूर्ण, वि. १९१८ - १९९९, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. २, ले. स्थल. मेडतापुर, प्रले. पं. गंभीरसागर (तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२५.५x११, १९-२०x४४ - ५४). १. पे. नाम. चतुर्विंसती स्तवन, पृ. १अ - ५आ, संपूर्ण, वि. १९९८, फाल्गुन कृष्ण, ३, सोमवार. स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: आनंदघन प्रभु जागे रे, स्तवन- २४. २. पे. नाम. द्रुपद ७२ तरी, पृ. ५आ- १६आ, संपूर्ण, वि. १९१९ कार्तिक कृष्ण, ४, शनिवार आनंदघन पद संग्रह, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: क्या सोवे उठ जाग; अंति: वार्यो परघर संग, पद- ११३. २५४१९ (+) कल्पसूत्र की मांडणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, वे. (२५.५x११, १२-१३४३७-३९). कल्पसूत्र - पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत उत्पन्न; अंतिः जयवंतो प्रवतों. For Private And Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५४२०. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५६, चैत्र कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. बालावबोध टबार्थ रूप में लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११,२-४४३१-३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)त्रिजगत्पूज्य, (२)त्रिभुवनने प्रकाश; अंति: प्रगट्यो अर्थ छे. २५४२१. (+) सिद्धांतविचार रास, संपूर्ण, वि. १६०९, श्रावण कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १२५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ९४३८-३९). सिद्धांतविचार रास, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाराक्षररूपाय; अंति: केवल तु पार न लहु, गाथा-१८२८. २५४२२. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, फाल्गुन कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. जालोर, प्रले. मु. रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. महावीर प्रसादात्., जैदे., (२५४११, ५-६४३२-३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: एक सिद्ध अनेक सिद्ध. २५४२३. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. खारिया, प्रले. मु. क्षमासौभाग्य (गुरु ग. रामसौभाग्य), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (१८१) मंगलं लेखकस्यापि, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११.५, ६४३४-३८). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० पंचिंदिय; अंति: इय सम्मत्तं मए गहियं, ___ (वि. १८३७, आश्विन शुक्ल, १) आवश्यकसूत्र-श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रतइ माहरु; अंति: सम्यक्त्व मई ग्रहिउ. २५४२४. नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले.स्थल. पाली, जैदे., (२५४११,८-९४२८-३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: ते अनेकसिद्ध जाणवा. २५४२५. (+) भाष्यत्रय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८४, कार्तिक शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६, ले.स्थल. गुंदवचनगर, प्रले. पं. प्रतापविजय (गुरु ग. तीर्थविजय); पठ. ग. कांतिविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (३७३) मंगलं लेखकानां च, (५५१) चोरानलादुदकेभ्यो, (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्ट, (६५३) भग्न पुष्टि कटि ग्रीवा, (६६७) तैलाद्रक्षेजलाद्रक्षेद्, जैदे., (२६४११,१-४४४१-४४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१४५. भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७५८, आदि: (१)ऐंद्रश्रेणिनुतं, (२)भव्यजीवनें मनोवांछित; अंति: जनानामिति श्रेयः. २५४२६. (+) संग्रहणीसूत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७४३, भुवनवेदाश्वचंद्र, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २, प्रले. पं. पद्मविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३-१४४३४-३६). १. पे. नाम. संग्रहणीसूत्र, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३२. २. पे. नाम. श्लोक, पृ. १६आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-२. २५४२७. नवतत्त्व, गाथा संग्रह सह टबार्थ व सिद्ध १५ भेद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, ४४३२-३६). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४९. For Private And Personal use only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३४३ नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: कालइ अनंतगुणा छइ. २. पे. नाम. गाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. जैन गाथा का टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. सिद्ध १५ भेद विचार, पृ. ९आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५४२८. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान+कथा १-२ व्याख्यान व गर्भपरावर्तन विचार, संपूर्ण, वि. १८१८, कार्तिक कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, ले.स्थल. तीवरी, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५-१३४४३-४८). १.पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा १-२ व्याख्यान, पृ. १अ-२०आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)णमो अरिहताणं पढम, (२)तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमस्कार हुवौ, (२)श्रमण भगवंत; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै श्रीमहावीरदेवना; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. गर्भपरावर्तन विचार, पृ. २०आ, संपूर्ण. गर्भपरावर्तन विचार-अन्यशास्त्रोक्त, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: अत्राह कोपि शिवशासनी; अंति: मांधाताराजोत्पत्ति. २५४२९. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२०, कार्तिक शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२+१(३७) =५३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६४३८-४३). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: भविआण विबोहणट्ठाए, अध्ययन-१० चूलिका २, गाथा-७००. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: करी ए सत्य वात. २५४३०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ-अध्ययन २६, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ५४४३-४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५४३१. उपदेशमाला सह टबार्थ व गाथा जोवानी विधि, संपूर्ण, वि. १६८६, श्रेष्ठ, पृ. ५६, कुल पे. २, पठ. श्राव. धर्माबाई शिवचंद, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६.५४११, ५४३९-४२). १. पे. नाम. उपदेशमाला सह टबार्थ, पृ. १आ-५६आ, संपूर्ण. उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने तीर्थं; अंति: वचन थकी नीकली वांणी. २. पे. नाम. गाथा जोवानी विधि, पृ. ५६आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५४३३. चमत्कारचिंतामणि व भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, दे., (२५४११, ११४२७-३१). १. पे. नाम. चमत्कारचिंतामणि, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदि: नचेत् खेचराः स्थापित; अंति: वस्तु गूह्ये सदैव. २. पे. नाम, भवनदीपक ज्योतिःशास्त्र, पृ. १०अ-१९अ, संपूर्ण.. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७३. २५४३४. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ६४३६-४०). For Private And Personal use only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेण कालेण० चपाए; अति: (-). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)तेणइ कालइ जे चउथइ; अंति: (-). २५४३५. (+) आचारांगसूत्र सह प्रदीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १८७७, भाद्रपद शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १३०, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १६-१९४५१-५४). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, अध्ययन-२५, ग्रं. २६४४. आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, आदि: (१)शासनाधीश्वरं नत्वा, (२)सुयं मे इत्यादि; अंति: ब्रवीमीति पूर्ववत्, ग्रं. १०५००. २५४३७. स्तोत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२३, वैशाख शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, कुल पे. ४, ले.स्थल. वडलुनगर, प्रले. पं. गंभीरसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, ३-५४२९-३३). १. पे. नाम. अजितशांतिनाथजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनाथ बीजा; अंति: वचननई विषई आदर करो. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ९आ-२२आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंतना चरणयुगल; अंति: समुपैति क० पामै. ३. पे. नाम. बृहत्शांति सह टबार्थ, पृ. २२आ-२७अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भो भो भव्य जीवो; अंति: श्रीजिनेश्वरदेवनो. ४. पे. नाम. लघुशांति सह टबार्थ, पृ. २७अ-२९आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: जैनंजयति शासनम, श्लोक-१७+२. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ शांतिना; अंति: श्रीजिनेश्वरदेवनो. २५४३८. (+) गजसिंघ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७-१८४४३-४४). गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., पद्य, वि. १५५६, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: चरित्र मननइ उच्छाहि, खंड-४, गाथा-४२७. २५४४०. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९२, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. जिनेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ५४३४-३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४, (वि. १७९२, फाल्गुन कृष्ण, ६, गुरुवार) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (१)पार्श्वदेवं नमस्कृत, (२)केहवा छै चरणकमल अनेक; अंति: मोक्ष मुक्ति पामई, (वि. १७९२, फाल्गुन कृष्ण, १३, गुरुवार) २५४४१. पृथ्वीराज वेलीसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५९, फाल्गुन शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. वीरपुर, प्रले. आ. भावरत्नसूरि (गुरु आ. जयरत्नसूरि, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ६x४३-४७). कृष्णरुक्मणी वेलि, रा. पृथ्वीराज राठोड , मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: परमेसर प्रणमि; अंति: अचल तैरोपी कल्याणतन, गाथा-३०६. कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६३८, आदिः (१)श्रीहर्षसारसद्गुरु, (२)पहिलो परमेश्वरने; अंति: पृथवी जेइ कही कीधी. For Private And Personal use only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३४५ २५४४४. (+) मृगावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १७१४ कृष्ण, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. मु. अमररत्न (गुरु ग. मेघरत्न, तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५-१७X४९-५१). मृगावती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३ ढाल ३८, गाथा-७४५, ग्रं. १००१. २५४४५. (+) कायस्थिति स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११, १७X४७-४९). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदसणरहिओ कायठि; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वंदे शांतिजिनाधीश; अंति: द्यउ आपउ मुझनई. २५४४६. अजितशांति स्तवन सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ३-६४२७-३३). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. अजितशांति स्तव-बोधदीपिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदि: ___ (१)अजितशांतिजिनाधिपयोः, (२)अजितं अक्षक्रीडायाम; अंति: तदा पूरितरांपयोभिः, ग्रं. ७४१. २५४४७. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. गाथा-३ तक नहीं है., जैदे., (२६४११, २-४४३०-३१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: हितनी करणहारी. २५४४८. अध्यात्मप्रबोधक ज्ञापक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२५४११, ७-११४३२-३३). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (१)मित्रा तारा बला, (२)शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणेजी, ढाल-८, गाथा-७६. २५४५०. गुणकरंडकगुणावली चोपी, अपूर्ण, वि. १८७९, आश्विन कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. २७-४(१८ से २१)=२३, ले.स्थल. खेडा, प्रले. मु. जसदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४-१५४३३-३७). गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: संपति सुखदायक सरस; अंति: थिर संपति जस थावैजी, ढाल-२७, (पू.वि. ढाल-१७ गाथा-११ से ढाल-२२ गाथा-२ तक नहीं है.) २५४५१. दशवैकालिकसूत्र की चूलिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२३, कार्तिक कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. आगरा, प्रले. मु. दयालदास (गुरु ऋ. ज्वालानाथ); पठ. सा. जीवाजी शिष्या (गुरु सा. जीवाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ५४४७-४९). दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: इह खलु भो पव्वईएण; अंति: भवियाण विबोहणट्ठाए. दशवकालिकसूत्र-हिस्सा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इ० इणइ प्रवचननइ विषइ; अंति: लोकने बूझवानै अर्थे. २५४५२. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा - ८ व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३-१५४४४-४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५४५५. (+) वैद्यविनोद भाषा, संपूर्ण, वि. १७५४, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११.५, २४-२७४६६-६८). वैद्यविनोद भाषा, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १७४५, आदि: उदित उदोत जगिमगि; अंति: मान० करियो विस्तार, खंड-७. For Private And Personal use only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५४५६. धरमसेन संबंध, संपूर्ण, वि. १७९२, चैत्र कृष्ण, १२, जीर्ण, पृ. १७, ले.स्थल. बीकानेर, जैदे., (२५.५४११, १७४५२-५५). धर्मसेन चौपाई-दानाधिकारे, मु. यशोलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: चरणकमल श्रीपासना; अंति: मंगलमाला जयकारी वे, ढाल-३६, ग्रं. ६४६+१२. २५४५७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३९, ले.स्थल. मेडता, प्रले. ग. विजयकुशल; राज्ये गच्छाधिपति विजयसेनसूरि (गुरु आ. हीरसूरि*, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५-१७४३३-३९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: (१)पूजाज्ञानवचोपायापगमा, (२)सम्यग् जिनपादयुग; अंति: (१)पमतिः० प्रायशः संति, (२)स्वधिया व्याख्येयः, ग्रं. १५७२. २५४५८. अढारस्थानक परिहार भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, दे., (२५.५४११, ९-१४४३३-३६). १८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदर रूप विचार चतुर; अंति: वंदियो भवियण प्राणी, ढाल-१८. २५४५९. (+) लिंगानुशासन की स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५७+१(३३)=५८, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंडित पद्मविजयजी गणि के शिष्य कर्णविजयजी गणि की प्रति है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, १७४५४-५८). हैमलिंगानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: श्रीसिद्धहेमचंद्र; अंति: (१)हेमचंद्र:० लिंगानाम्, (२)त्वाल्लिंगस्येति च. २५४६०. (+) प्रश्नोत्तरसमुच्चय, संपूर्ण, वि. १६५५, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४११.५, ११-१५४५३-५६). हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय , सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रियो निदान; अंति: तु तत्वविद्वेद्यमिति, प्रकाश-४. २५४६१. नवतत्त्व सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२६४११, ६-१३४४५-५०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२९. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)जयति श्रीमहावीर, (२)एतानि नवानां तत्वाना; अंति: शीघ्रं प्राप्नुवंति. २५४६३. दशवकालिकसूत्र व रहनेमी सझाय, संपूर्ण, वि. १८५१, आश्विन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. मगनीराम ऋषि; पठ. सा. अमृता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३५-४१). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र की सज्झाय, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धर्ममंगल महिमा निलो; अंति: सदाजी जयतसी जयजय रंग, अध्याय-१०. २. पे. नाम. रहनेमी गीत, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. राजिमतीसती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि चतुर सुजाण; अंति: सीस जपे इम जेतसी हो, गाथा-८. २५४६४. (+) सर्वसाधारणजिन स्तवन सह टीका व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १७७०, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(५)=५, कुल पे. २, ले.स्थल. अष्टादुर्ग, प्रले. ग. अमीचंद्र; राज्यकाल रा. फिरोजशाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४११, ११४२४-२६). १. पे. नाम. सर्वसाधारणजिन स्तवन सह वृत्ति, पृ. १आ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., श्लोक-४५ से ५६ तक नहीं है. साधारणजिन स्तोत्र, उपा. भानुचंद्र, सं., पद्य, आदि: स वोभिजातैरभिनंदित; अंति: भवे त्वं भवबोधिलाभदः, श्लोक-६२, (वि. १७७०, चैत्र शुक्ल, १४, रविवार) For Private And Personal use only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३४७ साधारणजिन स्तोत्र-टीका, उपा. सिद्धिचंद्र, सं., गद्य, आदि: श्रीमान् श्रीऋषभ; अंति: (१)चरणप्रकाशनं तस्मात्, (२)विरचिता समाप्तिमगात, (वि. १७७०, वैशाख कृष्ण, ७) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) २५४६५. नवतत्त्व व श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८६, कार्तिक शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. जसवंतविजय (गुरु ग. सत्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमहावीर प्रसादात्., जैदे., (२६४११, ३-४४३६). १. पे. नाम. गाथा संग्रह सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३, संपूर्ण. जैन गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ गाथा-२ तक ही लिखा है.) २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व जेह प्राण; अंति: भाग हजी साधु जाइ छै. २५४६७. (+) लघुशांति स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. पं. सुंदरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ३४२५-२६). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमानदेव शाकंभरी; अंति: ठाम प्रति पामइ. २५४६८. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ५४३४-३५). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१४५. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइं वांदवा; अंति: रहित एहवू स्थानक. २५४६९. पडकमणो सूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८६५, आश्विन शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, ले.स्थल. अकबराबाद, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४११.५, ४४४१-४६). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. पगाम सज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रतइ वादु छउं. २५४७०. उदाईराजा रास व पजूसण थुई, संपूर्ण, वि. १७५२, श्रावण कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, ले.स्थल. कोछर्ब, प्रले. पं. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, १८४४२-४८). १. पे. नाम. उदाइसाधु चरित चुपई, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण. उदाइराजा रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६४०, आदि: प्रथमनाथ दाता प्रथम; अंति: श्रीसंघ लहु संपद घणी, गाथा-३४२, ग्रं. ४०३. २. पे. नाम. पजूसणनी थूई, पृ. १०आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुण्यइ; अंति: संतोषी गुण गायजी, गाथा-४. २५४७१. संघयणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदे., (२५४११, ६४४०-४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, ___ गाथा-३७३. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनई; अंति: तीर्थ प्रवर्तइ ता. For Private And Personal use only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४८ २५४७२. (+) सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ - श्रुतस्कंध १, पूर्ण, वि. १८९०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, शुक्रवार; वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. १२५-१ (२) १२४, ले. स्थल. भुजनगर, प्रले. भाणजी सुंदरजी त्रवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ३५००, जैदे., (२५४१९, ४x२७-२९). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउलेज्ज; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रथम श्रीआचारांग, (२) श्रीजिन मार्गे ज्ञान; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २५४७३. (+) नीतिशतक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६X११.५, ४४४०-४२). नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: वां चिंतयामि सततं; अंतिः धीरः प्रमाणं स्यात्, श्लोक १०५. नीतिशतक - टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) सर्वदर्शिनमानम्य, (२) जिण प्रतई हुं चित्त; अंति: प्रमाणिक पुरुष हुवइ. २५४७४ (+) औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५२, प्र. वि. पंचपाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे., (२६x११.५, १०-११X३७-३९). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता, सूत्र - १८९, ग्रं. १३००, संपूर्ण. औपपातिकसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि रिध० भवनादिकडं करी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक कुछेक आवश्यक सूत्रों का टबार्थ लिखा गया है.) २५४७५. रायप्रसेणीसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७०, दे., (२५x११, ७- ८४५८-६५). राजप्रश्रीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० आमलकप्प; अंतिः पस्से परसावणीए णमो सूत्र - १७५. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: (१) देवदेवं जिनं नत्वा, (२) ते० तेणे काले चोथा; अंति: नमस्कार थाओ एहने. २५४७६. कयवना चोपड़, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८ - २ (१ से २ ) = १६, दे., (२५X११, १७-१९X३८-४०). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि (-); अंतिः धरम करण मन उलसेजी, ढाल - ३१, ( पू. वि. ढाल - ४ गाथा - ३ तक नहीं है . ) २५४७८. श्रीपालनरेंद्र कथा सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८३९, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ९८ - १ (८५)=९७, ले. स्थल. बीलाडा, प्रले. पं. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. कुल ग्रं. ३९१५ अक्षर १७, जैवे. (२६.५४११.५, ७X३७-३९). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: वाइज्जंता कहा एसा, गाथा - १३४७, ग्रं. १६७६. सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) स जयति सिद्धसमूहो, (२) अरिहंत प्रमुख नवपद; अंति: जाणतां थका कथा एह. २५४८०. ८ कर्म १५८ कर्मप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., ( २५.५X११.५, १३-१४x२८-३२). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मूल कर्म आठ तेहनी; अंति: विषइ उद्यम करिवउ. २५४८२. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, पूर्ण, वि. १८९८, चैत्र शुक्ल, ७, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ७२-२ (६ से ७) ७०, ले. स्थल. कांणणपुर, प्रले. पं. जैतसी ( भावहर्षसूरिगच्छ); पठ. श्राव. जुहारमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. प्र. ले. लो. (७८८) भग्गपुष्टि कटिप्रीवा, जैदे., (२५x११.५, १३४४५-४९). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: नतौ नमः, कांड-६. २५४८३. गजसिंघ चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल, आगरा, प्रले, मु. वीर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x११, १७४५८- ६०). गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., पद्य, वि. १५५६, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः चरित्र मननइ उच्छाहि, खंड- ४, गाथा- ४२५. For Private And Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २५४८४. वैदर्भी रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, दे., (२५X११, ८ - १३X३२-३४). वैदर्भी चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जिनधर्ममांहे दीपता; अंति: भणे मुगत गया ततकाल, २५४८६. रात्रिभोजन रास, संपूर्ण, वि. १८१०, कार्तिक कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. तोलीयासर प्रले. ग. जीवविजय (गुरु पं. सुंदरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६४११, १६-१८x४१-४६). रात्रिभोजन रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: जिनवर जग उद्धरण गमण; अंति: कहइ जिनहर सुजाण, ढाल - १८, गाथा - २७०, ग्रं. ३७९. २५४८७. सारसिखामण रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैवे. (२५x११.५, १२-१३४४३-४४). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५४८, आदि: श्रीजीराउलि पासनाह; अंति: नित्य मंगल जय करुए, गाथा - २४५. २५४९० पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३२, पीष कृष्ण २ शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. सूरति प्रले. पं. उत्तमचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x११, ४४३३-३५). " ३४९ गाथा - १५०. पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा - ७०. पताराधना-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ एवं; अंति: पामे शाश्वतां सुख, २५४९१. अणुत्तरोववादशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९८५, आश्विन कृष्ण, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. कुल ग्रं. २५०, दे., (२५.५४११.५, ६४३९-४१). अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः तहा णेयव्वं, अध्याय-३३. अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणइ कालइ चउधा; अंतिः परि तिमज जाणिवा. २५४९२. गजसिंघकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्रले. सा. रतना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x११.५, १२-१३४३५ - ३८ ) . गजसिंघ चौपाई, मु. सुंदरराज, मा.गु., पद्य, वि. १५५६, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: मिं कुमर ए रच्यउ उहि खंड- ४, गाथा ४३४. २५४९३ लघुशांति व वृहत्शांति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे २, जैदे., (२५x११, ११४३१-३२). १. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. २. पे नाम बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. २अ ५अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे. २५४९४. (+) संग्रहणीसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३५, चैत्र कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३१, ले. स्थल, अर्गलपुर, प्रले. पं. विमलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५x११.५, ५X४४-४६), दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि (-); अंति: (-). दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal Use Only बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्म, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहंताई ठिङ; अंतिः जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३३२. बृहत्संग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं क० नमस्कार करु; अंति: गुणतां वृद्धि पामो.. २५४९६. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७७०, पौष शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५X११, ७X३३-३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अनंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा - ५१. २५४९७. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८६ ३८ (१ से ३,८ से १०,१२,१८ से १९,२३,२६,२९ से ३२,३७ से ४७,४९,५९ से ६०, ६४ से ६९, ७३ से ७४,८१ ) - ४८, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, ४x२७-३०). - Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५४९८. अवंतिसुकमाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, १३४३१-३२). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१२ गाथा-९४ तक है.) २५४९९. प्रज्ञापनासूत्र भाषापद सह विवरण व एकमुखीरुद्राक्ष कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १३४३१-३३). १. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र भाषापद सह विवरण, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: भासाणं भंते किमादीया; अंति: वोयड अव्वोयडा चेव. प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद का विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपन्नवणा उपांगि; अंति: संक्षेप थकी लिख्यउ. २. पे. नाम. एकमुखीरुद्राक्ष कल्प, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यमुद्राक्षफलं भौमौ; अंति: स चैव फलदं भवेत, श्लोक-११. २५५०१. वीरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १३-१५४२५-२८). १. पे. नाम. महावीरजिन २७ भव स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमलकमलदललोयणा दिसे; अंति: विजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८३. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ४आ-९आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- २७ भवगर्भित, मु. हंसराज , मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति द्यो मति; अंति: स्तव्यो वीर जिनेसरो, ढाल-९, गाथा-७८. २५५०२. चौदगुणठाणा एकतालीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १८७७, माघ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२५.५४११.५, १८४५०-५३). १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार लक्षणद्वार; अंति: मिथ्यात्व० जाणवा. २५५०४. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९८६, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. नागोर, प्रले. वल्लभ जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १५४४७-४९). स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदिश्वर सामी हो; अंति: महास्तुत पुरण करी, स्तवन-२४. २५५०५. २४ दंडक २९ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२६-२८). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अति: अनंतगुणा अधिका जाणवा. २५५०६. (+) चंदनबाला रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १४-१७X४१-४७). चंदनबालासतीरास, आ. जवाहरलालजी, हिं., पद्य, वि. १९८९, आदि: प्रतिबोधित अर्जुन; अंति: हवो चरित्र प्रकाश, गाथा-३८६. २५५०७. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५५, भाद्रपद कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. सोजत, प्रले. मु. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११, २४x७१-७४). विविध विचार संग्रह , गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २५५०८. (#) स्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-५(१,५ से ६,११ से १२)=९, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, ढाल १ गाथा ५ से ढाल ६ गाथा १३ तक त्रुटक रूप में है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १५-१६x४२-४५). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: (-); अंति: (-). For Private And Personal use only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३५१ महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५५१०. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, चैत्र शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. पं. मोहनविजय; पठ. श्रावि. बेहनी बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ७२५, जैदे., ( २६x११, ३-१३X२७-२९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिकण; अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५२. जीवविचार प्रकरण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिजगत्पूज्य; अंतिः प्रगट्यो अर्थ छे. २५५११. षष्टिशत प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६×११, ११×३५-३७). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरहं देवो सुगुरु; अंति: जाणंति जंतु सिवं, ग्रं. २००. गाथा - १६१, २५५१२. विक्रमसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४४ + १ (२९)=४५, जैदे., (२५X११.५, १५X४३-४४). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकासकर; अंति: परमसागर आणंदा रे, ढाल - ६४, गाथा - १४७. २५५१३. सिद्धपंचाशिका प्रकरण सह अवचूर्णि संपूर्ण वि. १६८६ श्रावण कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. कासिमपुर, प्रले. मु. हरजी ऋषि ( गुरु मु. गंगदास ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५X११, १६-१८४४७-४८). , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा - ५०. सिद्धपंचाशिका प्रकरण-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि सिद्धपंचाशिकाद्य; अंति: सरसीरुहचंचरीकैरिति २५५१४. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७०, वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. नारदपूरी, लिख. पं. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६x१२, ७-८x२३-२४). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आद्यंताक्षरसंलक्ष्य अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक- ८३. २५५१६. आवश्यकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५x११.५, ९३०-३३). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: णमो अरहंताणं सव्व; अंति: गारेणं वोसिरामि, अध्ययन- ६. २५५१७. भक्तामर स्तोत्र की भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पठ. श्रावि. चंद्रावली, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२६४११.५, ११४३३-३५). भक्तामर स्तोत्र - भाषानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि आदि पुरूष आदिस जिन; अंति: ते पावहि सिवखेत, गाथा- ४९. २५५१८. (+) वैराग्यशतक, शृंगारशतक सह टबार्थ व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६३-२१(१ से २१)=४२, कुल पे. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. जैवे. (२६११.५, ४४४२-४६). १. पे. नाम. शृंगारशतक सह टवार्थ, पृ. २२अ - ४०आ, संपूर्ण. शृंगारशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: चूडोत्तंसितचारुचंद्र; अंति: भेदः परस्परं, श्लोक - १०३. शृंगारशतक - टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) सर्वदर्शिनमानम्य, (२) चूडा क० जटाजूट तिणरे; अंतिः रुचिरो ही भेद छे. २. पे. नाम, वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. ४०आ- ६३आ, संपूर्ण. वैराग्यशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: दिक्कालाद्यनवच्छिन्न; अंति: धर्म एको हि निश्चलः, श्लोक - १०८. वैराग्यशतक - टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: ही ज एक निश्चल छै. ३. पे. नाम. शकुन विचार, पृ. ६३आ, संपूर्ण. ज्योतिष, मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-). 15 For Private And Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५२ www.kobatirth.org ४. पे. नाम. महापापी के १० बोल, पृ. ६३आ, संपूर्ण सामान्य कृति, प्रा. मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. दान १० प्रकार लोकसंग्रह, पृ. ६३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: (); अंति: (), श्लोक १०. २५५२० (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६०, चैत्र कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, प्रले. पंन्या हितविजय (गुरु उपा. शुभविजय), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६.५x१२, ३x२६-२९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं; अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत विहरमानने; अंति: तीर्थंकरनइ वांदु छु. २५५२१. (+#) मेघदूत काव्य सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७८६, माघ कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. प्रेमधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ- पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४४-४८ ) . मेघदूत, कालिदास, सं., पद्य, आदि: कश्चित्कांताविरहगुरु; अंति: (१) सुखं भोजयामास शश्वत्, (२) युगलं कालिदासचकार, लोक-१२६, ग्रं. ३५०. मेघदूत - अवचूरी, सं., गद्य, आदि: स्वामिद्रोहं प्रकुर, अंतिः मेवं स्तुवन्नाह, २५५२२. (+) । बृहत्कल्पसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २१, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६.५x११, ६-७x४९-५१). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निमगंधाण; अंतिः कप्पट्टिई तिबेमि, अध्याय-६, ग्रं. ५००. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नो० क० न कल्पइ नि०; अंति: एम हुं कहुं छु. २५५२३. छत्तीसबोल थोकडो, संपूर्ण, वि. १८८४, फाल्गुन कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १० वे., ( २५x११.५, १५-१८x४६-४९). २. पे नाम, विचार संग्रह, पृ. ९आ-१२अ, संपूर्ण, पे. वि. बहुश्रुत व तपमार्ग अध्ययन विचार, विचार संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३६ बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: एगविहे असंयमे एगे; अंति: जीवाजीवविभत्ति रो. २५५२४. अचरचरमादिभाव, विचार संग्रह व रामचंद्रजी री मुंदरी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२-४ (१ से ४ ) = ८, कुल पे. ३, वे., (२५.५x११.५, १७- २०४६५-७०). १. पे, नाम, अचरम- चरमभाव वर्णन प्रज्ञापनाभगवती दशमपदे, पृ. ५अ ९आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं, प्रज्ञापनासूत्र - बोल", संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. रामचंद्रजी री मुंदडी, पृ. १२आ, संपूर्ण. रामचंद्रजी की मुंदरी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण वीनवु; अंति; वरते मंगलमालजी, गाथा- ३१. २५५२५. इक्षुकारी संधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., ( २५X११.५, ९-११×३२-३४). For Private And Personal Use Only इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: परम दयाल दयाकरु आसा; अंति: खेम भणै०क कल्याण, ढाल - ८. २५५२६. चंदराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १९२८, भाद्रपद कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७३, ले. स्थल. आगरा, प्रले. मु. लेखराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२५x१२, १६x४५-६०). चंदराजा चरित्र, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुण चंदना, उल्लास-४ ढाल १०८. २५५२७. प्रबोधचिंतामणि, संपूर्ण, वि. १७९८ फाल्गुन शुक्ल, ४ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल. खंभाति प्रले. पं. मेघविमल ( गुरु पं. भोजविमल गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५x११.५, ११-१५X३९-५० ). प्रबोधचिंतामणि, मा.गु., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं अरिहंत; अंतिः आनंद एहज परम इष्ट. Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २५५२८. सारस्वत प्रक्रिया की चंद्रकीर्ति टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, दे., (२५४१२, १४४३३-३८). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याणपद; ___ अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. २५५२९. जिनकल्पी स्थविरकल्पी विचार-सुयगडांगसूत्रे, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. पाली, प्रले. पोखरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२,११४३४-३६). तेरापंथ निरसन चर्चा, रा., गद्य, आदि: साखसूत्र सुगडां अंग; अंति: एक अवतारी भव जीवी छै. २५५३०. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०१, श्रावण शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदे., (२६४१२, ९४३२-३४). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २५५३१. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १७९९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. रानेर, प्रले. पंडित. श्रीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १५४३५-३८). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, श्लोक-२०३. २५५३३. दीपालीकाकल्प सूत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदे., (२५४१२, ६४३२-३९). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४२९. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: (१)अर्हतं बालबोधानां, (२)अष्टमहाप्रातिहार्यनी; अंति: तिवार लगें प्रतपो. २५५३४. (+) कालकाचार्य कथा व वृद्धतिथिमासे पर्युषणपर्व विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, १६४३८). १. पे. नाम. कालकाचार्य कथा, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण.. कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वि. १६६६, आदि: (१)प्रणम्य श्रीगुरुं, (२)अत्र पूर्वं स्थविराव; अंति: (१)चक्रे बालावबोधिकाम्, (२)संघः प्रवर्त्तताम्. २. पे. नाम. वृद्धतिथिमासे पर्युषणपर्व विचार, पृ. १५अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५५३५. (+) मौनएकादशी कथा सह टबार्थ व पोसदशमी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, ८४३३-३४). १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व कथा सह टबार्थ, पृ. ११-८अ, संपूर्ण, वि. १८७८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, बुधवार, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. पं. वखतचंद (वेगडगच्छ); राज्यकाल रा. गजसिंह रावल, प्र.ले.पु. सामान्य. मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंति: हम्मीरपुरसंश्रितैः, श्लोक-११३. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एकदा श्रीनेमिनाथजी; अंति: हमीरपुर० नगरने विषै. २. पे. नाम. पोसदशमी कथानक, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथां; अंति: (-). २५५३८. अभयकुमार पंचसाधुनां चतुपदी, संपूर्ण, वि. १९१३, फाल्गुन शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. किल्लाधार, प्रले. मु. दानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १७४३५-३९). पंचसाधु चौपाई-अभयकुमारसंबंधे, मु. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: जगगुरु प्रणमु वीर; अंति: कान्हजी० उदय सुखकार, ढाल-१२. For Private And Personal use only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५५३९. (+#) चंद रास, संपूर्ण, वि. १८१९, कार्तिक कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८०, प्रले. पं. वीररुचि (गुरु ग. हरिरुचि); पठ. मु. अमररुचि (गुरु पं. विनोदरुचि),प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५-१६x४८-५०). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुण चंदना, उल्लास-४ ढाल १०८. २५५४१. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०७, माघ कृष्ण, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. मु. सदासुख ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १०-१२४४२-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. २५५४२. महीपाल चरित्त सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१५, पौष शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८९, ले.स्थल. रायपुर, प्रले. पं. गंभीरसागर (गुरु मु. पुन्यसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ५-९x४२-४४). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंति: निययगुरूणं पसाएण, गाथा-१८३६. महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी श्रीऋषभ; अति: के प्रसाद करि सही. २५५४३. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, पौष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १३, दे., (२५.५४११, २-४४२६-२७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५४. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व चेतना सहित; अंति: भाग हजी सिद्ध गया. २५५४४. परदेशीनृप रास, संपूर्ण, वि. १७७१, कार्तिक कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्रले. ग. अमररत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५-१६४३१-३३). प्रदेशीराजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: सकल सिद्ध संपद करण; अंति: लहिये मंगलमालो रे, ढाल-३३, गाथा-७२१, ग्रं. ११००. २५५४५. संबोधसत्तरी सह टबार्थ व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, ५-६४३५-४५). १. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धर्मसीह, पुहि., पद्य, आदि: मन की त्रिस्ना नह; अंति: गुरु शीख भारी करमा, सवैया-४. २. पे. नाम. संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, पृ. १आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-७२ अपूर्ण तक है. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-). संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने ऋषभ; अंति: (-). २५५४६. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. नाहीनगर, जैदे., (२६.५४११, १५४३८-३९). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: भव्य जीवने प्रतिबोध; अंति: तिथि सफल फली मन आस. २५५४७. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९९, भाद्रपद कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४७, प्रले. मु. चुनिलाल; पठ. मु. फुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२५४१२, ६४३६-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० दुर्गत पडता जीवनइ; अंति: स्वमतिथकी नथी कहतो. २५५४८. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२५४१२, १२-१३४२५-३१). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमुं जिन; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., रचनाप्रशस्ति अपूर्ण तक है.) For Private And Personal use only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३५५ २५५४९. सामुद्रिकशास्त्र सह टबार्थ, बत्तीसलक्षण व नवग्रहघात श्लोक, संपूर्ण, वि. १७९६, पौष कृष्ण, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ३, ले.स्थल. आणंदपुर, जैदे., (२५.५४१२, ७४४६-४७). १. पे. नाम. सामुद्रिकशास्त्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१७अ, संपूर्ण. सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: कलहमिच्छति शंखिनी, अध्याय-३६, श्लोक-२६९. सामुद्रिकशास्त्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आदिदेव प्रतै प्रणमी; अंति: राड शंखिनी वांछइ. २. पे. नाम. बत्तीसलक्षण, पृ. १७अ, संपूर्ण. ३२ लक्षण श्लोक, सं., पद्य, आदि: छत्रं तामरसं धनु घवर; अंति: केकी पण्य पुण्यभाजां, श्लोक-१. ३. पे. नाम. नवग्रहघात श्लोक, पृ. १७आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अंतर्गत यंत्र भी दिया गया है. श्लोक-७.) २५५५१. विचारपंचाशिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२९ अपूर्ण तक है., दे., (२६४१२, २-४४३२-३६). विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा; अंति: (-). विचारपंचाशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीर पय क० महावीरदेव; अंति: (-). २५५५२. (+) कर्मग्रंथ १ से ५ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६८४, कार्तिक शुक्ल, ५, शनिवार, जीर्ण, पृ. ४७, कुल पे. ५, प्रले. श्राव. सदुआ श्रीपति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४१-५०). १. पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६२. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, ग. शांतिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १६६४, आदिः (१)श्रीमत्तपागणांभोधिं, (२)वीरजिन प्रति वंदित्व; अंति: अंतराई कर्म बांधइ. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ८अ-१२आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, ग. शांतिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १६६४, आदि: सामान्य प्रकारइ एकसो; अंति: आनुपूर्वि विना जाणवी. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. १२आ-१६अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, ग. शांतिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १६६४, आदि: प्रकृति ५५ नो विवरो; अंति: ७ शुक्ललेस्यानइ. ४. पे. नाम. षडशीति सह टबार्थ, पृ. १६आ-३०अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८८. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, ग. शांतिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १६६४, आदि: जिन प्रति नमीने दस; अंति: वारइ अनंतुकृष्ट थाइ. ५. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ३०अ-४७आ, संपूर्ण.. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. For Private And Personal use only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, ग. शांतिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १६६४, आदि: योगना भेद १५ भेद; अंति: (१)मंगलमाला भृशं भूयात्, (२)संजलनो लोभ उपशमावाई... २५५५३. (+) नमस्कारचौवीसी - चैत्यवंदन १ से १२, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११.५, ७-१०४२०-२२). नमस्कारचौवीसी, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८५६, आदि: जय जय जिनवर आदिदेव; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५५५४. जिनपूजा कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-४(१ से ३,७)=६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे., (२६४१२, १०-१२४३२-३८). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५५५५. गौतमगणधर रास, संपूर्ण, वि. १९०२, पौष शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्रले. मु. फतेविजय; पठ. श्रावि. जयकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, ८-९४२२-२३). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विजयभद्र० इम भणे ए, गाथा-४९. २५५५६. सिंहकुमर रास, संपूर्ण, वि. १९२९, भाद्रपद कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. रुपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १२-१५४४३-४५). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमु सद्गुरु पाय; अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२४०. २५५५८. मलयासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९-४१(१ से ४१)=३८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६४१२, १७-१९४३३-४२). मलयसुंदरीरास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-३ ढाल-१० गाथा-१७ से खंड-४ ढाल-३७ दोहा-१ तक है.) २५५५९. (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, कार्तिक शुक्ल, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ११८, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मेघदत्त पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, ७-८४३२-४१). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविह; अंति: (१)दुक्खक्खयट्ठाए, (२)जं चरणगुणट्ठिओ साहू, गाथा-१६०४, ग्रं. २०००. अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसिंह, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वंदितु जिणवरिंदे०, (२)ना० ज्ञान पं० पांच; अंति: साता सुहस्स हेतवे, ग्रं. ६०००. २५५६०. सिंदूर प्रकर्ण, संपूर्ण, वि. १९३६, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. कसवोकरी, प्रले. मु. रुपचंद (गुरु मु. अमरचंद); पठ. सा. जडाव (गुरु सा. रुपा), प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२५४१२, १२४३२-३३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: स जानाति जनाग्रतः, श्लोक-१०१. २५५६३. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१, वैशाख कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. भाडूंदा, प्रले. ग. मनोहरविजय (गुरु ग. जिनेंद्रविजय); पठ. मु. भानीदास (गुरु ग. मनोहरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१२, ४-५४३७-३८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१४५. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनें वांदवानई; अति: अणाबाह क० बाधारहित. २५५६५. नलदवदंती चउपई, संपूर्ण, वि. १८०७, आषाढ़ कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यह प्रति चनणां हीरचंद वांठीया की है., जैदे., (२५४१२, १५४३७-४१). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: चतुर माणस चित्त वसी, खंड-६ ढाल ३९. For Private And Personal use only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३५७ २५५६६. सैत्रूंजयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १९११, भाद्रपद कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. मेडता, प्रले. मु. गंभीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५X१२.५, ८-१२४३२-३४). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंतिः द्यो दरशन जयकरो, ढाल १२. गाथा १२५. , २५५६७. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, पूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २७-१ (७) +२ (१७,२१) -२८, वे., ( २६४१२, १५-१७x४०-४२). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तित्खनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा- ६४, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तीर्थ; अंति: (-), (पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम दो गाथा का टबार्थ नहीं लिखा है.) गौतमपृच्छा - कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: वसंतपुर नामा नगर; अंति: ग्रही मोक्ष जास्यइ, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. २५५६८. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९३४ आश्विन कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८६, ले. स्थल, साथसेण, प्रले. पं. कीर्तिसागर (तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमाणिभद्रजी प्रसादात्., . दे., (२६x२२, ५-८X३६-४० ). सम्यक्त्वकौमुदी कथा, उपा. विनीतसागर, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: क्षयं स्वर्गमनुते. सम्यक्त्वकौमुदी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: ते नर मोक्षसुख पावै. २५५६९. पर्यंताराधना सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९२३, आषाढ़ शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल, मेदनीपुर, प्रले. पं. गंभीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५X१२, ७ - ८X३६ -४० ) . " पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ एवं भयवं; अंतिः ते सासवं सुक्खं गाथा- ७१. पर्यंताराधना-टबार्थ”, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करीनइ कल्याण कहइ; अंति: ते शाश्वता सुख लाभै. २५५७०. व्यवहारसूत्र, पूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., ( २४४१२, १८४३५-३७ ). 9 व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि जे भिक्खु मासियं; अंतिः (-). २५५७१. ऋषिमंडल महास्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ वे., (२५x१२, १०x३१-३३). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, लोक- ८५. २५५७२. नलदवदंती चरित्र, संपूर्ण, वि. १९०९, वैशाख शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले. स्थल. मादलिया, प्र. मु. वृद्धिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५x१२, १३४४५-४९). अंति: नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; चित्त वसी, खंड-६ ढाल ३९. 'चतुर माणस " २५५७३. भाष्यत्रय सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, आषाढ़ कृष्ण, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले. स्थल, सीवपूरा, प्र. मु. किसनचंद (गुरु पं. नायक विजय ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्री आदिनाथाय नमः, जैवे. (२६४१२.५, ५x२९-३१). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा - १४५, भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीने वांदवा योग्य; अंति: सही तपना महिमा थकी २५५७४. नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९९, पौष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ११७, ले. स्थल. बिकानेर, पठ. मु. मानविजय; प्रले. रामचंद्र व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ४०००, प्र. ले. लो. (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैवे., (२५x१२.५, १२-१३X३५-३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिब इक्कणिकाय, गाथा - ५३. For Private And Personal Use Only नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, मु. देवचंद, मा.गु., गद्य, वि. १७६६, आदि: (१) ज्ञानं पंचविधं ( २ ) जिणे करी वस्तुनो; अंति: (१) सुलभ बुद्धि फुनी होय, (२) जगत्रनिं शिरोमणी छै. Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५५७६. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२५x१२, १३३०-३३), 2 भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा - १४५. २५५७७. अष्टाह्निकामहोत्सव ग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, दे., (२५.५x१२, १४४४१-४५) . पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: ( १ ) करगामिनी भवति, (२) हेतुः सकामान्, (वि. कर्तानामादि रचनाप्रशस्ति से संबंधित विगत नहीं मिल रही है.) २५५७८. (+) विशेष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३६, माघ शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. पाली, प्रले. ग. जैतसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५x१२, २२x६६-६८). विशेष संग्रह, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा. सं., पच, वि. १६८५, आदि: संवीक्ष्य सूत्रसिद्ध अंति: (१) श्रीफाल्गुने मासि च, (२) दिनप्रतिपादनं विशेषः, ग्रं. १३००. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५५७९. ऋषिमंडल स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३४, पौष शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. पं. कीर्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१२, ४-५X३१ - ३९). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: सर्वदोषाद्विमुच्यति, लोक- ८८. ऋषिमंडल स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि आदिको अक्षर अंतको; अंतिः फल की प्राप्ति होय, २५५८०. व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. ३, प्र. वि. कुल ग्रं. ७००, दे., (२६x१२, १३X३८-४०). १. पे नाम. पर्युषणाद्यष्टाहिका व्याख्यान, पृ. १आ- १४अ, संपूर्ण. अष्ठाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्त्ता; अंतिः श्रद्धावतां प्रीतये. २. पे. नाम. चैत्रीपूनिम व्याख्यान, पृ. १४अ १६अ, संपूर्ण. चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: सिद्धो विज्जाइ चक्की; अंति: स्मरणादानंदमाला भवतु. ३. पे नाम, अक्षतृतीया व्याख्यान, पृ. १६अ १८अ, संपूर्ण अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य प्रभु; अंतिः क्षमाकल्याणपाठकैः. २५५८१. स्थुलिभद्र शीयलवेलि, संपूर्ण, वि. १९२५, आश्विन शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. नागोर, प्रले. पं. गंभीरसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १२-१७x४३-४५). स्थूलभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदि: सयल सुहंकर पासजी; अंति कमला वरस्ये रे, ढाल - १८. २५५८२. शांतिप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक का नाम अस्पष्ट है., जैदे., , (२५.५X१२.५, १४X३४-३७ ). शांतिप्रकाश, पुर्हि, पद्म, आदि: प्रेम सहित बंदौ; अंति करो तब उत्तरी भवपार, गाथा- १२५. २५५८४. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदे., ( २४.५X१२.५, १४X३६-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदिः धम्मो मंगलमुकि; अंतिः गई ति बेमि, अध्ययन- १०. २५५८५. दशवैकालिकसूत्र सह अनुवाद, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१ - १ (१) - ६०, पू. वि. अध्ययन- २ गाथा-४ से अध्ययन-८ गाथा- २३ तक लिखा है, दे., (२५x१२.५, १५ १६५३१-४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदि (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं हैव प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र - अन्वय का अन्वयार्थ, हिं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २५५८६. श्रीपाल रास सह टबार्थ - खंड ४, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, पू. वि. अंतिम ढाल दूहा - २ तक लिखा है., जैदे., (२६१२.५, ५-६X३६-३८). For Private And Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (अपठनीय); ___अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २५५८७. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८७७, आश्विन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६४१२.५, ११-१२४३५-३८). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: गुरुनी भक्ति करे सही. २५५८८. मृगलेखा रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्रले. मु. वृद्धिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १४४५२-५५). मृगांकलेखा चौपाई, ऋ. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: आदेसर जिन आददे चोवीस; अंति: वरतै कोड कल्याण, ढाल-६२. २५५९०. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९११, आषाढ़ शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ९५, जैदे., (२५४१३, ११४२७-३२). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: समकित विना ज्ञान काम; अंति: कर्म के आधीन है. २५५९२. कल्पसूत्र सह बालावबोध - वाचना २, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदे., (२५४१२, १३४२५-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५५९३. (+) जीवविचार, नवतत्त्व व दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. ३, प्रले. मु. देवचंद; पठ. सा. जीता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१३, ५४३९-४१). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५०. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: ए १५ सिद्ध कह्या. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ६आ-१२अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० तीने; अंति: समुद्र थकी उद्धर्यो. ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १२अ-१५आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चौवीस तीर्थंकरने; अंति: हितनी करणहारी. २५५९४. ज्ञानपंचमी देववंदन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले.स्थल. खेरवा, प्रले. पं. उमेदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, ७-१५४३६-३७). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्यजिणेसर; अंति: संघ सयल सुखदाय रे, ढाल-५. २५५९६. मृगावती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदे., (२५४१२.५, ११-१५४३९-४०). मृगावती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३ ढाल ३८, गाथा-७४५, ग्रं. ११००. २५५९७. महाबलमलयसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१५, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. नागोर, प्रले. फतेचंद पुरोहित; पठ. सा. उमेदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (७९०) तेल रक्षं जले रक्षं, दे., (२५.५४१२.५, २०७४०-४४). महाबल-मलयसुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीपार्श्वनाथ; अंति: माहरी कोड रे, खंड-४. For Private And Personal use only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५५९९. द्रौपदी चरचा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदे., (२६४१३, १४४४३-४४). द्रौपदी चर्चा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ते तेणं ते धम्मघोसा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २५६००. जयतिहुअण स्तोत्र सह छाया, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-२९ तक है., जैदे., (२५४१२, ५४२७-३२). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयतिहयणवर कप्परुक्ख; अंति: (-). जयतिहुअण स्तोत्र-छाया, सं., पद्य, आदि: जयतात् हे त्रिभुवन; अंति: (-). २५६०१. भगवतीसूत्र का बालावबोध-शतक ३० उद्देशो ११, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदे., (२५४१३, ९४२१-२४). भगवतीसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५६०२. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३०, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. अमंदनगर, प्रले. मु. कीर्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, ११४३५-३९). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: च भोगं करोति. २५६०४. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१२.५, १८४३८-४०). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: से तं नंदी सम्मत्ता, गाथा-७००. २५६०५. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १९००, फाल्गुन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ३१, ले.स्थल. अजयदुर्ग, प्रले. मु. जवानकुशल; पठ. श्रावि. चायकवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१३, ५४२७-२८). विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: महोदय वृदो रे जिनवर, स्तवन-२० ढाल २१. २५६०६. श्रीपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१४, ज्येष्ठ शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, ले.स्थल. विक्रमपुर, जैदे., (२६४१२.५, १५४३५-३८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण भणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, ग्रं. १८००. २५६०८. पर्युषण अष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रावण शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले.स्थल. करमावस, प्रले. पं. जसविजय; पठ. मु. नवलविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, दे., (२६४१३, ७५३४-३६). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: (१)विलसितानंदहेतुसकामन्, (२)करगामिनी भवति. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: स्मरण करी; अंति: मुक्तिना सुख पामै. २५६१०. महानिशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४.५४१२.५, ७-१७X४७-५३). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. महानिशीथसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २५६११. चौवीसदंडक ओगणत्रीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९२८, फाल्गुन कृष्ण, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. खेडा, प्रले. श्राव. वरजलाल वेणीदास वकील, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१४, १६-१९४२८-३१). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: अनंतगुणा अधिका कहवा. २५६१३. स्थूलिभद्र नवरस दूहा, संपूर्ण, वि. १८६९, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. सूर्यबिंदर, प्रले. आ. राजेंद्रसागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१४, १०-१२४३२-३३). स्थूलिभद्रमुनि नवरस दूहा, ग. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: थूलिभद्र कहें सुण; अंति: थूलिभद्र तुं गुण धाम, ढाल-८. २५६१४. पीयूषवर्ष वदानमहात्म्य श्लोक, पूर्ण, वि. १६५२, आषाढ़ शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१२)=१९, कुल पे. २,प्रले. श्राव. लालू; पठ. श्राव. सवीराबाई, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.ले.श्लो. (५६२) भग्नि पृष्टि कटि ग्रीवा, (७९०) तेल रक्षं जले रक्षं, जैदे., (२६.५४१४, ९-१२४३३-३५). For Private And Personal use only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. पीयूषवर्ष, पृ. १आ - १९आ, पूर्ण, पू. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. धर्मोपदेशपीयूषवर्ष श्रावकाचार, मु. नेमिदत्त ब्रह्मचारी, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रणम्य; अंतिः शास्त्रमिदं शुभं, अधिकार - ५, ग्रं. ४६०, ( पू. वि. अधिकार- ४ श्लोक - ११८ से १२८ तक नहीं है.) २. पे नाम. दानमहात्म्य श्लोक, पृ. २०आ, संपूर्ण लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (); अंति: (-), गाधा - १. २५६१६. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४४, चैत्र शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ७४, प्रले. मु. मुक्तिविमल (गुरु पं. हर्षविमल गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७x९४, १०-११x२९-३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं अंतिः उबदसेइ ति बेमि, व्याख्यान - ९, ग्रं. १२१६. २५६१७. नवकार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, जैदे., (२७X१४, ११-१३X३१-३३). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: बारसगुण अरिहंता; अंति: सुश्रावक सुश्राविका. २५६१८. आलोयणा विधि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२६.५x१४, ८- १२x२१-२२ ). , आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि शंका कखादिक; अंतिः मैथुन देखीने. २५६१९. दशवैकालिकसूत्र की सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८८, आश्विन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. पाली, पठ. श्राव. भतीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीनवलखा प्रसादात्., जैदे., (२६.५X१३.५, ९-१०X२८-३०). दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमीजी; अंति: ग सफल जगीसरे, सज्झाय - ११. ३६१ २५६२०. गुणमालासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३४, चैत्र शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. मंगलसेन (गुरु मु. ख्यालीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५X१३, १४ - १५X४३-४५). गुणमाला रास, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: सरस्वती माता आदे; अंति: सतीगुण मुख भासीयै, ढाल - ८. २५६२२. प्रश्नोत्तरमाला वचनिका, संपूर्ण, वि. १९६४ फाल्गुन शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. मु. रूपनाथ (गुरु पं. मंगलसेन ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८४१३, १४-१६४३९-४३ ). प्रश्नोत्तरमाला, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., प+ग., वि. १९०७, आदि: श्रीजिन आदिजिनंदजी; अंति: समझै चतुर सुजान. २५६२३. (+) श्रीपाल रास सह टवार्थ खंड ४, संपूर्ण, वि. १९९४ आश्विन कृष्ण, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५७, ले. स्थल. मगरवाडा, पठ. मु. मोतिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६X१३.५, ५-६x२८-३२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय ; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: ( - ); अंति: लह ज्ञान विशाला जी, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: विशाल विस्तीर्ण, प्रतिपूर्ण, २५६२४. चौवीसठाणा विचार, संपूर्ण, वि. १८७०, आश्विन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले. स्थल. करोली, प्रले. श्राव. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१३, १४ - १६३७-४३). २४ ठाणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ इंद्रि काय जोग; अंतिः हेतु पावे जोग नथी. For Private And Personal Use Only २५६२६. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., ( २६x१३, १०-१३X३६-३८). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान तीर्थ; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २५६२७. (+) नवतत्त्व सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. जिनदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७X१३, ३-५X३४-४३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इकणिकाय, गाथा ५१. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: ए सिद्धना भेद १५. Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५६२९. भरहेसर स्तोत्र बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४४-६१(१ से ४४,८१ से ९७)+१(४५)=८४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४१३, १०-१२४२४-२८). __ भरहेसर सज्झाय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५६३०. सूक्तमुक्तावली सह बालावबोध- अर्थवर्ग, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ५२, प्रले. सा. सौभाग्यश्रीजी (गुरु सा. पुण्यश्रीजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३, १०४२७-३०). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूक्तमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५६३१. (+) अट्ठाई व्याख्यान बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३५, कार्तिक शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, १५-१७४३३-४०). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: शांति का करणेवाला; अंति: मनोवंछित सिद्ध थाइ. २५६३२. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. मकसुदाबाद (महाज, प्रले. मु. गंगा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२x२५-२९). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: अन्नाणमोह दलणी जणणी; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २५६३३. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२६.५४१३, २४२२-२४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ अपूर्ण तक लिखा है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, पं. मानविजय, मा.गु., गद्य, आदि: वीरजिनं नत्वा मत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ गाथा-७ तक लिखा है.) २५६३४. सूक्तमुक्तावलीसह बालावबोध-कामवर्ग, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १६, प्रले. सा. सौभाग्यश्रीजी (गुरु सा. पुण्यश्रीजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, १०४२८-३१). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूक्तमाला-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५६३५. मुनिपति चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१४, आषाढ़ शुक्ल, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, प्रले. कालूराम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१३, ९-१५४३८-४०). मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: श्रीशंखेसर सुख करू; अंति: नवेय निधानो रे, खंड-४ ढाल ६५. २५६३६. (+) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१३, १०-१५४३२-३३). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: मिच्छामि दुक्कड. २५६३७. बारभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७, जैदे., (२५.५४१२.५, ९-१०४३४-३६). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिणेसर पाय नमी; अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल-१३, गाथा-१२२. २५६३८. नवपद गुणणो, संपूर्ण, वि. १८९३, कार्तिक कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२४.५४११.५, १०४३१-३९). नवपद गुण, सं., गद्य, आदि: स्वर्णसिंघासणस्थिताय; अंति: उत्सर्गतपसे नमः. २५६४३. (+) मुनिपति चरित्र सारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९२६, वैशाख शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१३, ११४३५-३७). मनिपति चरित्र सारोद्धार, संक्षेप, सं., गद्य, आदिः (१)नमिऊण वद्धमाणं चौतीस, (२)मुनिपतिचरित्रसारोद्ध; अंति: रइयं हरिभद्दसूरीहिं. २५६४४. (+) कूर्मापुत्र चरित्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७७१३, ६-९४३२-३५). For Private And Personal use only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पा . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ कुम्मापुत्त चरिअं, मु. जिनमाणिक्य; उपा. अनन्तहंस, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं; अंति: वाइअंतं चिरं जयउ, गाथा-१९६. कुम्मापुत्त चरिअं-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: वर्द्धमानस्वामीने नम; अंति: ते घणा काल चिरंजय. २५६४६. जिनप्रतिमा चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६.५४१३, १०-१४४३८-४०). जिनप्रतिमा चर्चा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिणमारग माहे तो; अंति: ते विचार जोयज्यो. २५६४९. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. सिद्धक्षेत्र, प्रले. पंन्या. चंद्रदत्त (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१३, ५-६४३१-३३). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिजे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५२. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीने वांदवा जोग्य; अति: सुख प्रति अबाधा रहित. २५६५०. पोतियाबंधउपरि ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. गाथांक नहीं है., दे., (२५.५४१३, १४४४१-४५). पोतियाबंध रास, पुहिं., पद्य, आदि: केई जैनी नाम धराय कै; अंति: (-). २५६५२. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, दे., (२६.५४१२.५, ८-१५४५३-५६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (१)मुच्चइ त्ति बेमि, (२)कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन-१० चूलिका २. २५६५३. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९३८, पौष कृष्ण, ३, जीर्ण, पृ. ६, जैदे., (२६४१२.५, १०४३०-३१). स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: त्यार पछी आरती करवी. २५६५५. (+) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थव प्रायश्चित्त विधान, संपूर्ण, वि. १८०२, वैशाख कृष्ण, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २८, कुल पे. २, प्रले. सा. रतना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, ७-८४४१-५०). १.पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र सहटबार्थ, पृ. १आ-२७अ, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि, अध्याय-६, ग्रं. ४३७. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार वी० अपि; अंति: सुधर्मास्वामी कह्या. २. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र प्रायश्चित्तविधि, पृ. २८अ, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नीवी मास भिन्न; अंति: वृत्तिमाहे छई. २५६५६. (+) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थव प्रायश्चित्तविधि यंत्र, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. २, ले.स्थल. खेतडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ७४४५-५१). १. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२५अ, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि, अध्याय-६, (वि. १८८१, चैत्र कृष्ण, २, प्रले. मु. रतनचंद्र (गुरु मु. हरजीमल्ल)) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० नो०; अंति: इम हुं बे० कहुं छु, (वि. १८८१, चैत्र कृष्ण, ४, प्रले. मु. तुलसीराम (गुरु मु. लूणकरण)) २. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र की प्रायश्चित्तविधि, पृ. २५अ, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५६५७. २४ दंडक २९ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १८८०, कार्तिक कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि; पठ. सा. तेजश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२,६-११४२८-३०). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. २५६५९. (+) श्राद्धदिनकृत्य सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. पं. संतोषविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२, ५-७X४२-४५). For Private And Personal use only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमेऊण तिलोअभाणु; अंति: मिच्छामिह दुक्कडंति, श्लोक-३४२. श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामी; अंति: मिच्छामि दुक्कडं इति. २५६६०. एकल रो अधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६.५४१२, १४४४७-४९). एकल का अधिकार, मा.गु., पद्य, आदि: आरंभजीवी ग्रिसती; अंति: सरधे समदृष्टि रे, ढाल-१०. २५६६१. अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १७५३, फाल्गुन शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्रले. पं. भूपतिसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १४-१५४४५-४६). अंजनासुंदरी चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७०६, आदि: करतां सगली साधना; अंति: भुवनकीरति इण परि भणई, खंड-३ ढाल ४३, गाथा-२५३, ग्रं. ७०७. २५६६२. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८३, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८, ले.स्थल. वडलू, प्रले. पं. जीवणविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ४४४२-४५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३९३. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं क० वांदीनइ; अंति: सर्व सुख पामइ. २५६६३. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. १४७२, श्रेष्ठ, पृ. ३३-८(१ से ८)=२५, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२७४११.५, १७-२०४७२-७४). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वृत्तितोवरचूर्णितश्च, ग्रं. २७२०. २५६६४. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८८, आश्विन शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. मु. मनरूप (गुरु मु. समरथ, लूंकागच्छ); पठ. मु. हर्षविजय (गुरु मु. जयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ४-१५४३२-४५). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५२. भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७५८, आदि: ऐंद्रश्रेणिनुतं; अंति: सर्वलोक सुखी ___भवेत्. २५६६५. संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, ले.स्थल. बुरहानपुर, पठ. श्राव. मुंगासा शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३-१५४४२-४४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: सन्नि गईरागई वेए, गाथा-२८४. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: नत्वा श्रीवीरजिन; अंति: अर्थि हुई, ग्रं. १७५७. २५६६८. षडशीति कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२७४१२.५, १२-१५४४२-५०). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८८. २५६७१. गौतम कुलक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८६७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ८१, ले.स्थल. सूर्यपूरी, प्रले. मु. वीरजी (गुरु मु. सामजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १६-१७४३८-३९). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अति: सुह लहति, गाथा-२०. गौतम कुलक-वार्तिक, मु. जगराम, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: सुशिष्यैः सुखबोधिका. २५६७२. श्रीपाल रास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. १४१, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. जसविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कुल ग्रं. १९२३, प्र.ले.श्लो. (७९१) जब लग मेरु अडग है, दे., (२५.५४१२.५, ४-६४३४-३६). For Private And Personal use only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३६५ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४ ढाल ४१, (वि. १९३९, पौष शुक्ल, ८, मंगलवार) श्रीपाल रास-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सरसतीमाता केहवीक छे; अंति: धर्मशाला वधे, (वि. १९३९, फाल्गुन कृष्ण, ३, रविवार) २५६७३. मुनिपति चरित्र, अपूर्ण, वि. १९०७, भाद्रपद कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १६-६(२ से ७)=१०, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. पं. हंससुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १५४३६-३९). मुनिपति चरित्र सारोद्धार, संक्षेप, सं., गद्य, आदिः (१)नमिऊण वद्धमाणं, (२)मुनिपतिचरित्रसारोद्ध; अंति: हरिभद्दसूरिहिं. २५६७५. (+) कर्मग्रंथ १ से ३ सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८५४, पौष शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(१)=२२, कुल पे. ३, ले.स्थल. घाणोरा, प्रले. मु. शिवसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ४-५४३१-३४). १.पे. नाम. कर्मविपाक स्तवन, पृ. २अ-१०आ, पूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अर्थ जाण्यो छई. २. पे. नाम. कर्मस्तवसूत्र, पृ. १०आ-१८अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः तथा श्रीमहावीरनी; अंति: वीरनइ नमउ अहो प्राणी. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व स्तव, पृ. १८अ-२३आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउ, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधना कारणथी मूकाणा; अंति: कर्मस्तवथी सांभलीनइ. २५६७७. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१२, ११४२९-३२). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-९७. २५६७८. आदिनाथ, शांतिनाथ, नेमनाथ व पार्श्वनाथ चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, ले.स्थल. रायपुर, प्रले. पं. गंभीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, ५-९x४४-४५). १.पे. नाम. आदिनाथ चरित्र सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणमुसभमुभयं; अंति: देहि इम नेहि परमपयं, गाथा-२५. नाभेय स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी जिन; अंति: परमपद मोख्यनइ विषइ. २. पे. नाम. शांतिनाथ चरित्र सह टबार्थ, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. शांतिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अप्पडिहयधम्मचक्केण; अंति: गय जिणवल्लह पयं देसु, गाथा-३३. शांतिजिन चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अप्रतिहत अस्खलित; अंति: स्तोत्रकर्ता नाम. ३. पे. नाम. नेमिनाथ चरित्र सह टबार्थ, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. नेमिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: मयनाहिसरिस विलस देह; अंति: सुह पत्तह कुणसु सिवं, गाथा-१५. नेमिजिन चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मृगनाभि कस्तूरी; अंति: करउ मया द्यउ मोक्ष. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ चरित्र सहटबार्थ, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुणमणिनिहिणो जस्सु; अंति: सिवसुक्ख पत्त जय, गाथा - १५. पार्श्वजिन स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: गुणरुप रत्ननउ निधान; अंतिः पहुतउ जयवंत हुवउ. २५६७९. (+) मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैवे., " (२७१२, १८x४६-४७). मानतुंग- मानवती रास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: सरी संत जणेसरु नमतां; अंतिः प्रसादे० 'जयनगरे कही, ढाल ७. २५६८० (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह संसक भाषाटीका, अपूर्ण, वि. १९१५, भाद्रपद कृष्ण, २ गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(२)=८, पू.वि. श्लोक ४ से ८ नही है., ले. स्थल. रायपुर, प्रले. पं. गंभीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. दे. (२६४१२, १९- २०४५०-५१ ). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि कल्याणमंदिरमुदार; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - भाषाटीका, पं. गंभीरसागर, पुहिं., गद्य, आदि: (१) तस्य तीर्थेश्वरस्य, (२) तस्य कहीये तिस तीर्थ; अंति: लोक सुणो चित्त जोय. २५६८१. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९१६, चैत्र कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८४, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (७९२) ज्यां लगि मेरु अडिग है, (८१३) लघु दीरघ कलि मात फुनि, वे. (२६४१२.५, ९-१३x२४-२७). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: प्रथम भव्य जीवनै; अंतिः सफल फली मन आस, २५६८२. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४८, ले. स्थल. अहिनागोरपुर, दे., (२६x१२.५, ५-६x४१-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गइं त्ति बेमि, अध्ययन - १०. दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ, मु. श्रीपाल, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: तुज प्रतइ कहु छु, ग्रं. ५०००. २५६८३. आचारांगसूत्र सह टबार्थ - श्रुतस्कंध १, संपूर्ण, वि. १९७०, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदे., (२६X१२, ७-८X५०-५३). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउस० इहमेगे; अंति: ( - ), प्रतिपूर्ण आचारांगसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५६८४. नवतत्त्व बोल, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (५) -६, बे. (२६४१२, २२४३६-५१). नवतत्त्व बोल, मा.गु., गद्य, आदि : ५६३ भेद जीवना ते; अंति: एकसिद्ध अनेकसिद्ध. २५६८५. पंचमहाव्रत व समकितस्वरूप विचार, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रावण कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. उदेविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, १४-१६४३१-३३ ). जैन सामान्यकृति”, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५६८७. वैद्यजीवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३१, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले. स्थल. श्रीमालीया, , दे., (२६.५X१२, ५X३५-३७ ) . वैद्यजीवन, क. लोलिंबराज, सं., पद्य, आदि: प्रकृति सुभगगात्रं; अंति: लोलिम्मराजः कविः, विलास ५, संपूर्ण. वैद्यजीवन-टवार्थ, पंडित, ज्ञानतिलक गणि, मा.गु., गद्य, आदिः कथंभूतं धाम प्रकृत्य; अंति: (-), (पूर्ण, For Private And Personal Use Only पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम कुछेक श्लोकों का टबार्थ नहीं लिखा है. ) २५६८८. प्रायश्चित विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, दे., ( २६x१२, ११X३३-३५). श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं जिनें; अंतिः क्षमाकल्याणसाधुना. २५६८९. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८४, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल. घाणेरावनगर, प्रले. पं. देवसागर; पठ. श्रावि. चंदुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमहावीरजी प्रसादात्., जैवे. (२७४१२, ५४३०-३२). Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः भुवन क० तिन भुवन; ; अंतिः श्रुतसमुद्रहुति. २५६९०. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. पाली, जैये., ( २६.५x१२, १३४३८-३९). " स्नात्रपूजा विधिसहित, पंन्या. रूपविजय, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: मुक्तालंकार विकारसार; अंति: संपदा निज पामे तेह, प्र. १४५. २५६९२. जंबूकुमार रास, संपूर्ण, वि. १९२०, कार्तिक कृष्ण ७, श्रेष्ठ, पृ. ४१, ले. स्थल. अमदावाद, प्रले. मु. सौभाग्यविजय ( गुरु पं. मानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५X१२, ११x२९ - ३६ ). जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः प्रणमी पासजिणंदना; अंतिः नितु कोडि कल्याण, ढाल - ३५. २५६९३. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९३१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले. स्थल. बोरकुंड, प्र.वि. श्रीऋषभजिन प्रसादात्. तपागच्छीय साधु ने यह प्रति लिखी., प्र.ले. श्लो. (२३) जब लग मेरु अडग है, दे., (२६.५X१२, ६-१५X४२ - ४४), गौतमपृच्छा, प्रा., पद्म, आदि: नमिऊण तित्बनाहं अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गावा- ६४. गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार होजो; अंति: पुछ्या महावीरे कह्या. गौतमपृच्छा- कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: एक गाममांहि सेठ; अंतिः परै दुखीयो थाय २५६९४. सज्झाच संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०१ श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्रले. मु. शोभाराम ऋषि (गुरु मु. डालूराम ), " प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५x११, १५-१७४३९-४३), १. पे. नाम. दूषमकालवर्णन सज्झाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण. पंचमआरा ३० बोल दुढालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मकथा हिरदे धरो; अंति: विनय नमे नित पाय, ढाल - २, गाथा - ३१. २. पे. नाम. थूलभद्रजी का सवइया, पृ. २अ - ३अ, , संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सवैया, मु. भगोतीदास, पुहिं., पद्य, आदि: एक समें चारो शिष्य; अंति: थुलिभद्र सुप्रसन्नजी, गाथा - ९. ३. पे. नाम. सवैयावतीसी, पृ. ३अ ५आ, संपूर्ण. - साधुगुणबत्तीसी, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, आदि: पापपथ परहरे मोक्षपथ; अंति: आन भण्या दुख जात है, गाथा - ३२. २५६९५. नलदवदंती रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३० + १ (१६) = ३१, दे., (२६x१२, २०x३४-३७ ). ३६७ नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंतिः चतुर माणस चित बसी खंड ६ हाल ३९. , २५६९७. बावनी संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५१ श्रावण शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले, केसर डांगी शाह; पठ. मु. दयाधर्म (गुरु पंन्या. ज्ञानधर्म), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२७४१२, १३ - १७४५०-५४). १. पे. नाम. ध्रमसीकृत बावनी सवीयां की, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण कृष्ण, १३, गुरुवार. अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य वि. १७२५, आदिः ॐकार उदार अगम अपार; अंतिः नाम धर्मजावनी, " गाथा - ५६. २. पे. नाम. कुडलीया किवतां की वांवनी, पृ. ४अ - ७आ, संपूर्ण, वि. १८५१ श्रावण शुक्ल, ३, मंगलवार. कुंडलियाबावनी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदिः ॐनमो कहि आदिथी अक्षर; अंति: आदि आखर, गाथा - ५७. २५६९९ अमरकुमरसुरसुंदरी चतुपदी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९, वे., ( २६४१२, १६x४५-४७). For Private And Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनउ सलहियइ; अंति: आनंद लील उमंगेजी, खंड-४ ढाल ४०. २५७००. (+) सम्यक्त्वाधिकारवर्ण रास, अपूर्ण, वि. १७२१, माघ शुक्ल, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(२)=६, ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. मु. मनोहर (गुरु मु. तेजपाल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४६-४८). सम्यक्त्ववर्णन रास, ग. केशव, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: स्वस्तिश्री सुखकर; अंति: समकित भूषण सार. २५७०२. संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६४१२, ११४३८-४१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई थिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३२. २५७०३. पासाकेवली व हिनांशदिसा, संपूर्ण, वि. १७८४, फाल्गुन शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. वेलसागर (गुरु ग. मयासागर, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. नेमनाथजी प्रसादात्. गोडीजी सत्य छे., जैदे., (२७४१२, १७४३६-३८). १. पे. नाम. पाशककेवली होराज्ञान, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: महादेवं नमस्कृत्य; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१८७. २. पे. नाम. हिनांशदिसा, पृ. ७आ, संपूर्ण. ज्योतिष अपूर्ण ग्रंथ , सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २५७०४. विक्रम चरित्र, संपूर्ण, वि. १६६८, श्रावण शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. कालावड, प्रले. मु. हाथी ऋषि (गुरु मु. मांडण ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १५-१६४३७-३९). विक्रमराजा रास, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवरदायक सारदा गज; अंति: मंडलि तस जस विस्तरै, गाथा-४०४. २५७०५. चौवीसठाणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. *पंक्त्यक्षर अनियमित है., दे., (२६४१२, -१४-१). २४ स्थानक यंत्र*, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २५७०६. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४३, पौष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. नागोर, दे., (२६.५४१२, १५-१६x६०-६४). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: सेत्तं परोक्खणाणं, गाथा-७००. २५७०८. कल्पसूत्र सह कल्पवल्ली वृत्ति व टबार्थ, त्रुटक, वि. १८१०, आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १५१-१४६(१ से ७४,७६ से १४५,१४९ से १५०)=५, राज्ये आ. जिनलाभसूरि (गुरु आ. जिनभक्तिसूरि, खरतरगच्छ); प्रले. मु. विनयभक्ति (गुरु ग. भक्तिभद्र, खरतरगच्छ); लिख. श्रावि. किसनादे दलीचंदजी, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, जैदे., (२५.५४११, १५-१६४३९-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. कल्पसूत्र-टबार्थ *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: दिश्यते इति ब्रवीमि, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. २५७१०. (+) चंदनमलियागरीरी चोपई, संपूर्ण, वि. १८८७, फाल्गुन कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२७४१२, १५४२८-२९). चंदनमलयागिरी चौपाई, मु. शिवलाल, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: नाभिभूप पुत्राददे; अंति: कही ऋषि शिवलाल ए, ढाल-६. २५७११. (+) जंबूस्वामी पांचभवचरित्र चतुष्पादिका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. सादुल (गुरु मु. सहसकरण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ११-१५४३४-३८). For Private And Personal use only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३६९ जंबूस्वामी चौपाई-पंचभववर्णन, मा.गु., पद्य, वि. १५२२, आदि: आराहिसु अरिहंत हृदय; अंति: करसी काजि सरसि तेहना, गाथा-१७९. २५७१२. (+) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १७६९, चैत्र शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. मु. रूपचंद (राजविजयसूरिगच्छ); पठ. ग. तेजरत्न (राजविजयसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४४२-४४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४८. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)किल इसइ सत्यवचने हु; अंति: गुण तेहनइं प्रयुंजइ. भक्तामर स्तोत्र-कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीउझेणीनगरीइं; अंति: कीधो राज्य भोगव्यु, कथा-२८. २५७१३. (+) अंतकृद्दशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४५, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगौडीजी प्रसादात्., दे., (२७४१२, ७७३८-४२). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय-९२. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काले चोथे आरइ; अंति: धर्मकथानी परे कहिवो, ग्रं. ३७४०. २५७१४. नवस्मरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३८, पू.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है., ले.स्थल. जगाणा, प्रले. राघवजी गोर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ४४३१-३२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम, प्रतिपूर्ण. नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत विहरमाननइ; अंति: शासन जयवंतु प्रवर्तो, ग्रं. १२५०, प्रतिपूर्ण. २५७१५. अष्टप्रवचनमाता सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७४१२, १०४३०-३५). अष्टप्रवचनमाता सज्झाय, पा. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुकृत कल्पतरु श्रेणि; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) २५७१६. श्रावक पाक्षिक अतिचार, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, ९-१०४२५-२७). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमि दसणंमि०; अंति: (-), (प.वि. वीर्याचार अतिचार तक है.) । २५७१७. दाणसीलतपभावणा प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८३, वैशाख शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. आसकरण (गुरु मु. फकीरचंद); पठ. श्रावि. भूमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ५४२८-३०). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: सूरि खमउ तेणं, गाथा-५०. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेवने नमस्कार; अंति: पुरुष पावै सुख विशाल, (पू.वि. रचना प्रशस्ति वाली अंतिम गाथा का टबार्थ नहीं लिखा है.) २५७१८. शतकत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१९, पौष कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५६, कुल पे. ३, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. पं. गंभीरसागर (गुरु मु. पुन्यसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पार्श्वजिन प्रसादात्., प्र.ले.श्लो. (२५५) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५०७) जब लग मेर अडिग हे, दे., (२६४१२, ५-६४३६-४१). १. पे. नाम. नीतिशतक सह टबार्थ, पृ. १आ-१९आ, संपूर्ण. नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: या चिंतयामि सततं; अति: धीरः प्रमाणं स्यात्, श्लोक-१०५. नीतिशतक-टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सर्वदर्शिनमानम्य, (२)जिण प्रतइं हं चित्त; अंति: प्रमाणिक पुरुष हुवै. For Private And Personal use only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. शृंगारशतक सह टबार्थ, पृ. १९आ - ३६अ, संपूर्ण. शृंगारशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: चूडोत्तंसितचारुचंद्र अंति: भेदः परस्परं श्लोक-१०५. शृंगारशतक-टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) सर्वदर्शिनमानम्य, (२) चूडा क० जटाजूट तिणरे; अंतिः रुचिरो ही भेद छै. ३. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. ३६आ - ५६आ, संपूर्ण. वैराग्यशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: दिक्कालाद्यनवच्छिन्न; अंति: धर्म एको हि निश्चलः, श्लोक - १०८. वैराग्यशतक - टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) सर्वदर्शिनमान्नस्य, (२) दिशि काल क्षेत्र तिण; अंति: ही ज एक निश्चल छै. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५७१९. नवस्मरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है, अजितशांति स्तव गाथा - १८ तक " है. भक्तामर, कल्याणमंदिर व बृहत्शांति स्तोत्र नहीं है., दे., (२७x१२, ३x२८-३२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि; नमो अरिहंताणं हवइ अंति: (-). नवस्मरण - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीमत्शंखेश्वर, (२) नमस्कार हो इंद्रादि; अंति: (-). २५७२०. नेमिजिन विवाहलो, तपविधि संग्रह व पखवासा रो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, दे., (२६x१२, १२X४०-४२ ) . १. पे. नाम. नेमिजीराजमति रो व्यावलो, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण, वि. १९३९, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, मंगलवार, ले. स्थल. साण, प्रले. पं. कीर्तिसागर. नेमिजिन विवाहलो, मु. हीराचंद वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक जगपति; अंति: लाल हुवो साचनो कंथ, ढाल - ७. २. पे नाम, छूटक तपस्याकर्ण विधि, पृ. ५आ- १०आ, संपूर्ण. तपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुरिमड्ड १ एकासणो १; अंति: उपवास करे उजमणो करे. ३. पे. नाम. पखवासा रो स्तवन, पृ. ११अ - ११आ, संपूर्ण. पाक्षिकतपवृद्ध स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबुद्वीप सोहामणो; अंतिः पभणे पूरो मनह जगीस, ढाल - २, गाथा - १४. २५७२१. पयुषर्णाद्यष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल, फलवर्द्धिकापुर, प्रले, मु. मुक्तिसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६४१२, १८x४७-५२), अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्त्ता; अंति: पद्यबंध विलोक्य तत्. २५७२२. (+) मदनचरित्रै रास चतुप्पदी, पूर्ण, वि. १७६५, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३ -२ (११ से १२) = ३१, ले. स्थल. पडधरी, प्रले. ग. शुभसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६x१२, ११-१२X३४-३५). मदननरेश्वर चौपाई, मु. दामोदर, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि आदि जिणेसर अतुलबल; अंतिः परभवि सुर शिव लील, गाधा - ५६३, (पू. वि. गाथा १८० से २१२ तक नहीं है.) २५७२३. नवतत्त्व बोल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., ( २६१२, १२x१५-२६). , नवतत्त्व विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व प्राण चेतन; अंति: निश्चल जाणवो. प्रले. २५७२४. सिंदूरप्रकर सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८८२, कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ७८- १ ( २ ) - ७७, ले. स्थल. चंडावलनगर, मु. . वनेचंद ( गुरु मु. तिलोकचंद), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., ( २६.५X१२.५, १४X३३-३८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक १००. सिंदूरप्रकर- बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु., सं., गद्य, आदि: श्रीशारदाचरणयुग्ममती; अंतिः मयी मूर्खकृतकृपः २५७२५. पंचकारण स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., ( २६.५x११.५, १०x२९-३३), For Private And Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३७१ १.पे. नाम. पंचकारण स्तवन, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सुत सिद्धारथ वंदीइं; अंति: परे विनय कहे आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५९. २. पे. नाम. श्लोक, पृ. ५अ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. २५७२६. (+) दीपालीका कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०१, आश्विन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३८, ले.स्थल. पाडला, प्रले. ग. भक्तिविजय (गुरु ग. कातिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२७४१२, ६-७४३२-३४). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४३७. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: (१)अहँ नत्वा मंदबुद्ध, (२)अष्टमहाप्रातिहार्यनी; अंति: वोर्हद्धर्मदीपोत्सवः, ग्रं. १२००. २५७२७. लीलावती रास व गणेशाष्टक, संपूर्ण, वि. १७७१, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. २, ले.स्थल. उदैपुर, लिख. मु. दुर्गाजी (गुरु मु. दीपचंद, विजयगच्छ); प्रले. पीतांबर; राज्यकाल रा. संग्रामसिंघ, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२६४१२, १५-१८४४६-४७). १. पे. नाम. गणेशाष्टक स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. गणेशाष्टक, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: उमांग कर्णवक्र; अंति: दूर्वा नमो आदिनाथं, श्लोक-८. २. पे. नाम. नृपविक्रमादैत्य राज्ञीलीलावती री चोपई, पृ. १आ-३१आ, संपूर्ण. विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो; अंति: दिन दिन दोलति पाईजी, ढाल-५१, गाथा-१०४२. २५७२८. नवतत्त्व विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, दे., (२६.५४१२, ८-१३४२८-३४). नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व अजीवतत्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., निर्जरातत्व अपूर्ण तक है.) । २५७२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला का बालावबोध, दहा संग्रह व २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९७२, भाद्रपद कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. कुचेरानगर, प्रले. पं. आदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, ७-१०४३०-३५). १. पे. नाम. प्रश्नोत्तररत्नमाला का बालावबोध, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. प्रश्नोत्तररत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हे गुरु हे कृपानिधान; अंति: सुखां प्रते पांमै. २. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. ५अ, संपूर्ण. दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५. ३. पे. नाम. चतुर्विंसतिजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. कृपासागर, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुखदायक जिन चोवीस; अंति: भव के भाव विरामी रे, गाथा-५. २५७३०. (+) विचारषड्भ्रिंशिका सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७६१, माघ कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-३(१ से ३)=११, पू.वि. गाथा ७ तक नहीं है., ले.स्थल. सूरत, प्रले. ग. दानविमल (गुरु पं. चंद्रविमल गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, ३-१३४३२-४१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४३. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आत्माने हितनी करणहार. २५७३१. (+) सिद्धचक्रप्रभावे श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४३४). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: जिम भूपति श्रीपाल, गाथा-२७४. For Private And Personal use only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५७३३. अंतर कथा संग्रह, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१(२)=२३, जैदे., (२७४१२, २०-२३४७२-७३). अंतर्कथा संग्रह, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि: यन्नैकामपि कामिनीं; अंति: प्रक्रमाया तत्वात्, ग्रं. २४००. २५७३४. नवतत्त्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१८ तक है., जैदे., (२७४१२, १८-२०४४१-४३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: यथास्थित साचुं जे; अंति: (-). २५७३५. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, दे., (२७४१२, ३४२३-२५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५१. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जिणमाहे चेतना हुवे; अंति: जीव मुक्ति पोहता छे. २५७३६. लोकस्वरूप सह बालावबोध व श्लोक, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १०-१(२)=९, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, १६-१८४५१-५६). १.पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, पृ. १आ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., गाथा-२ से ७ तक नहीं है. लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मु. सहजरत्न, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमदाप्तं प्रणम्या; अंति: विशोध्यं धीधनै शं. २. पे. नाम. श्लोक, पृ. १०अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. २५७३७. शांत रस भावना, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(२ से ४)=५, जैदे., (२६.५४११.५, १४-१७४५३-५६). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: (१)अथायं श्रीमान् शांत, (२)जयश्रीरांतरारीणा; अंति: जयश्रिया शिवश्रीः, अधिकार-१६, श्लोक-२७८, (पू.वि. श्लोक-४१ से १४७ तक नहीं है.) २५७३९. दानशीलतपभावना कुलक व नवकार स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०९-१८१०, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. मु. महताबराय (गुरु मु. भवानजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ६४३७-३९). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: सूरि खमउ तेणं, गाथा-५०, (संपूर्ण, वि. १८०९, फाल्गुन कृष्ण, ४, बुधवार) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दे०देवाधिदेवने; अंति: (-), (पूर्ण, वि. १८१०, चैत्र कृष्ण, १३, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ गाथा-४९ तक लिखा है.) २. पे. नाम. नवकार स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: उक्कोसो सज्झाउ चउदस; अंति: परमपदं तेपि पावंति, गाथा-७, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उत्कृष्टि सज्झाय करउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) २५७४०. (+) प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१)=१५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४-२१४५३-६४). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं० आवस्स; अंति: गारेणं वोसिरामि, संपूर्ण. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: औषध करता भंग नही, (पूर्ण, वि. टबार्थका कुछेक अंश बालावबोध स्वरूप में दिया गया है.) २५७४२. पाक्षिकसूत्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६४११.५, १२४३३-३५). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-). For Private And Personal use only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३७३ २५७४३. (+) सूयगडांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३६-३७). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. २५७४४. ज्ञानपंचमी देववंदन विधि व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९२८, फाल्गुन कृष्ण, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. माणकचंद (पायचंदगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, १२४२४-२५). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्यजिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) २५७४५. (+) वाग्भट्टालंकार व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४११, ९४३१-३२). १. पे. नाम. वाग्भटालंकार, पृ. १अ-१९अ, संपूर्ण. जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: सारस्वतध्यायिनः, परिच्छेद-५. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ+१९अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. २५७४६. प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१९, भाद्रपद शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. उदेपुर, प्रले. मु. महताबराय (गुरु मु. भवानजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १८४४६-४८). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणम सद्गुरु पाय; अंति: संपजै पुन्यै परमानंद, ढाल-११. २५७४७. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९२, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. जंबुसर, प्रले. श्राव. राघवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ३-४४३२-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनने विषइ दिवा; अंति: समुद्र तेह थकी. २५७४८. नेमराजुल बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६.५४११.५, १०४३७-३९). नेमराजिमती बारमासो, मु. माणिक्य, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: प्रणमुं प्रेमे रे; अंति: ते सांभलो चित्त आणी, गाथा-५७. २५७४९. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६१३, भाद्रपद कृष्ण, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. कुल ग्रं. ३००, जैदे., (२७४१२, ५-६४३२-३३). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, श्लोक-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: लहइ जीव शाश्वतुं ठाम. २५७५०. (+) नवतत्त्व सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१० तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, २४१५-३५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-). नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ग. मानविजय पं., मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनं नत्वा; अंति: (-). २५७५१. सिद्धांतोक्त विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. ग. ज्ञानशील, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १५-१७X४९-५४). सिद्धांतोक्त विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथमं तावत्जिना; अंति: भक्तपयन्नामांहि छइ, अधिकार-३६. For Private And Personal use only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५७५२. प्रज्ञाप्रकाश सह टबार्थव श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७३३, आश्विन कृष्ण, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. हरखाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ६-७४३२-३९). १. पे. नाम. प्रज्ञाप्रकाशषत्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. प्रज्ञाप्रकाशपत्रिंशिका, आ. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३७. प्रज्ञाप्रकाशपत्रिंशिका-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बुद्धि प्रकाशनइ अर्थ; अंति: कीधी रूपसी नामकेन. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. २५७५३. चौवीसदंडक त्रीसबोल, संपूर्ण, वि. १६४१, कार्तिक शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. सीसाग, प्रले. सा. मंगा; पठ. सा. पकु (गुरु सा. मंगा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३-१५४३८-४३). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: मास ६ नुं आंतरं. २५७५५. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र व वीसस्थानक गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ६-७४३५-३६). १. पे. नाम. पगामसज्झायसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. पगाम सज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांछउ निवर्तवा कहिउं; अंति: जिन वांदउ मंगलीक भणी. २. पे. नाम. २० स्थानक गाथा सह टबार्थ, पृ. ७आ, संपूर्ण. २० स्थानक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: तित्थयरत्तं लहइ जीवो, गाथा-३. २० स्थानक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतभक्ति सिद्ध; अंति: कर्म उपार्जइ. २५७५६. द्रौपदी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८३३, चैत्र कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८-२९(१ से २९)=१९, ले.स्थल. पीही, प्रले. मु. फतेचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३६-३९). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदिः (-); अंति: कनककीरति सुखकार, ढाल-३९, (पू.वि. ढाल-२५ गाथा-६ तक नहीं है.) २५७५७. सूयगडांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-२(१ से २)=४२, जैदे., (२६४११.५, ७-९४३६-३८). सूयगडांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २५७५८. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९५, कार्तिक कृष्ण, ५, जीर्ण, पृ. १०, ले.स्थल. अजमेर, पठ. श्रावि. वाल्हाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ५४३०-३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४, (प्रले. पं. कल्याण) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वनाथजीनइ; अंति: कालमाहि मोक्ष पामइ, (प्रले. मु. जसराज) २५७६०. लघु श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८४२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२६४११.५, १२४३६-३७). श्रीपाल रास-लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: चउवीसे प्रणमु जिनराय; अंति: सुणतां सदा कल्याण, ढाल-२०, गाथा-३०७. २५७६१. (+) विपाकसूत्र - द्वितीय श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, ८x२३-२५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सेसं जहा आयारस्स, प्रतिपूर्ण. २५७६३. बारव्रत चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. मु. वीरदास; पठ. मु. हाथी ऋषि (गुरु ऋ. मांडण), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १३-१४४४१-४३). For Private And Personal use only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३७५ १२ व्रत चौपाई, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १५३४, आदि: वीरजिणेसर प्रणम; अंति: काज सरिसिइं तेहनां, गाथा-३४१. २५७६४. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १६०८, फाल्गुन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २६, पठ. श्रावि. पोहताबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, १३४३९-४०). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: अंतगडदसाउ सम्मत्ताउ, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९.. अंतकृद्दशांगसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५७६५. कर्मग्रंथ १ से ६ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, कुल पे. ६, प्र.वि. प्रथम व अंत के दो पत्र नये है., जैदे., (२६.५४१२, ४४४०-४६). १. पे. नाम. कर्मविपाकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर क० महावीर; अंति: लिखी देवेंद्रसूरिइ. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. १०आ-१५आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३५. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तथा क० तिम स्तवउं; अंति: ते श्रीमहावीर प्रति. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. १५आ-१९अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: बंधविधान कर्मबंधना; अंति: स्तव प्रति सांभलीनइ. ४. पे. नाम. चतुर्थ कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १९आ-३१अ, संपूर्ण. चतुर्थ कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइ तीर्थंकर; अंति: श्रीदेवेंद्रसूरि. ५. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ३१अ-४४अ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीनइ जिन प्रति; अंति: संभारवाने अर्थि. ६.पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. ४४अ-५७अ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगुणा होइ नउइओ, गाथा-९४, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध निश्चल पद जेह; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ गाथा-८४ अपूर्ण तक लिखा है.) २५७६७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ६४४८-५३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य प्रथमं देवं; अंति: आवइ ज कुण लक्ष्मी. २५७६८. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-४२ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२, २-३४३७-४३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-). नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व प्राण धरे; अंति: (-). For Private And Personal use only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३७६ २५७६९. चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५x११.५, ५४३६-४०). - चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्य व्यापार त्याग; अंतिः ए चउसरण नित्य करवउ. २५७७०. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०+१ (२६) - ९१, प्र. वि. अंत मे शव्यंभवसूरि की चरित्र गाथा दी हुई है., पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६११.५, ३-४x२६-३१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुकि अंति: (१) मुच्चइ ति बेमि, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रले. मु. . खीमा (गुरु मु. अमरतिलक), कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२) निच्चला होसु, अध्ययन १० चूलिका २ गाथा ७००, दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म उत्कृष्टु मोटुं; अंति: इम हुं कहुं छं. २५७७२. गजसुकमाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले. स्थल, लुंहारा, प्रले. मु. नेणसुखदास, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे. (२६११, १५X३५-३७ ). गजसुकुमाल चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: भदलपुर नामे नगर तिहा; अंतिः कहदं भवि सांभलो, ढाल १८, ग्रं. २०० २५७७३. चित्रसेनपद्मावती कथा, संपूर्ण, वि. १७६६, भाद्रपद शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल. कोडा, प्रले, पं. धन्यसागर पठ, ग. क्षेमेंद्रसागर गणि, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११, १७४४४-४६). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः संभूषितं पातु वः, लोक- ५०७. २५७७५. भीललीलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८१७, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. १६ - ४ (१,४ से ६) = १२, प्रले. श्रावि देवुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११, १६-१७x४३-४५ ). लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: ऋद्धि वृद्धि सुखकार, ढाल - २९, गाथा - ६१९. २५७७६. द्रव्यसंग्रह सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २७, जैदे., ( २६.५X११, १५X४०-४४). २५७७९. तत्त्वार्थसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., ( २६.५X१२, १३x४४-५० ). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि जीवमजीवं दव्वं जिणवर अंति: मुणिणा भणियं जं, अधिकार-३, गाथा ५८. द्रव्य संग्रह - बालावबोध, मु. रामचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वचंद्रसूरि अंति: द्रव्यसंग्रहः. २५७७८. योगशास्त्र प्रकाश १ से ४, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-३ (१,११,१५ ) = १३, ले. स्थल, अहम्मदाबाद, लिख. ग. विजयविमल (गुरु आ आनंदविमलसूरि तपा० विमलशाखा); पठ. श्रावि कीकीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, (२६.५४११, १३x४१-४३). .जी., योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रकाश- १ श्लोक-३० तक नहीं है.) २५७८०. पुष्पमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२७११.५, १७-१९x६८-७४). For Private And Personal Use Only - तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: त्रैकाल्यं द्रव्य; अंति: बहुत्वत्तः साध्याः, अध्याय- १०, ( पू. वि. अंत में सूत्र महात्म्यदर्शक गाथाएँ दी हुई है.) पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं कम्ममविगह; अंति: सवा सुहत्थिहिं, गाथा - ५०५. २५७८१. संघयणी सह वालावबोध व सामान्य गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, कुल पे. २, जैदे, (२७४११, १५×५७-५८), १. पे. नाम. संघयणी सह बालावबोध, पृ. १आ-३५अ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ; अंतिः सन्नि गईरागई वेए, गाथा - २७६. Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३७७ बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: नत्वा श्रीवीरजिनं; अंति: मांगलिकनइ अर्थि हो, ग्रं. १७५७. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ३५आ, संपूर्ण. जैन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. २५७८२. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२६.५४११, ३४३३-३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्ति सेवा तत्पर जे; अंति: नाम पिण मानतुंग छे. २५७८३. इंद्रियपराजयशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, दे., (२७४११, ६४३२-३४). इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिअसूरो सो; अंति: संवेग रसायणं निच्चं, गाथा-१००. इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेहिज सूर तेहिज; अंति: संवेग रसायन नित्यं. २५७८४. षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-३(१ से ३)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., आवश्यक ४ से आवश्यक ६ सूत्र ३ तक है., जैदे., (२६.५४११, ४-६x४१-४६). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). आवश्यकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५७८५. (+) पंचनिग्रंथी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७७११, ७-८४५३-६६). पंचनिग्रंथीप्रकरण, हिस्सा, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११२८, आदि: पन्नवण वेय रागे कप्प; अंति: रइया भावत्थसरणत्थं, गाथा-१०७. पंचनिग्रंथीप्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (१)नमिय श्रीवर्द्धमानं, (२)पण्णवणसुं कही; अंति: पृथक् प्रमाण भणी. २५७८६. व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५, जैदे., (२६.५४११, ६-७X४२-४६). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खूमासियं; अंति: महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक-१०. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे. जे कोइ भि० साधु; अंति: करवारुप फल भ० हुई. २५७८७. गौतमपृच्छा सह टबार्थ, बालावबोध व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२४, माघ शुक्ल, ४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, ले.स्थल. फतेपुर, प्रले. मु. दोलतराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२७४११, १८-२२४४४-५४). १.पे. नाम. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. १आ-२०आ, संपूर्ण. गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: पावए पुरिसो, गाथा-६१, संपूर्ण. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमि०नमस्कार करी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ गाथा-२७ तक लिखा है.) गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा वीरं जिनं; अंति: ते इण माहिजि जाणिवा, संपूर्ण. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. २०आ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. २५७८८. चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७, चैत्र शुक्ल, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११९, ले.स्थल. बीजापुर, प्रले. पंन्या. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ५-६४३१-३३). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्य; अंति: चारूनिर्मितं, श्लोक-१२१५. चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: अद्य क० पहेला युगला; अंति: अर्थे मनोहर सुंदर. For Private And Personal use only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५७८९. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७८, मध्यम, पृ. ३८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ७X४७-४९). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्याय-१०, ग्रं. ८८६, (ज्येष्ठ शुक्ल, १०) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणं का० ते कालनइ; अंति: महावीरइ अर्थ काउ, ग्रं. ११००, (आषाढ़ शुक्ल, ५, रविवार) २५७९० (+) गोम्मटसार सह जीवप्रदीपिका टीका-कर्मकांडे अधिकार १ से६, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १००-३८(१ से ३८)=६२, पू.वि. कर्मकांड के अधिकार-२ गाथा-१७५ से अधिकार-६ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, २०-२५४५४-६०). गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. गोम्मटसार-जीवतत्त्वप्रदीपिका वृत्ति, केशववर्णी, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २५७९१. (+) त्रैलोक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, १७४५६-५९). त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्थाभिध; अंति: दर्शिता स्वयं, श्लोक-११५१. २५७९२. (+) दशवकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१९, श्रावण शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्रले. मु. ज्वालानाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, ७X५३-५७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० श्रीजिणधर्मरुप; अंति: तुज प्रति कहु छु. २५७९३. अढारपापस्थानक कुलक व वर्द्धमानविद्या मंत्र, अपूर्ण, वि. १६४७, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से २,७)=५, कुल पे. २, ले.स्थल. लाडुलि, प्रले. मु. जयशेखर (पूर्णिमागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीसुमतिनाथ प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११, १५-१६x४८-५५). १. पे. नाम. अढारपापस्थानक कुलक, पृ. ३अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. १८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदियो भवियण प्राणी, ढाल-१८, (पू.वि. परिग्रहपरिहार कुलक गाथा-११ तक नहीं है.) २. पे. नाम. वर्द्धमानविद्या मंत्र, पृ. ८आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २५७९४. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह कठिनपद टिप्पण, संपूर्ण, वि. १५६९, माघ शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, १३४४४-४७). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं० तेणं, (२)तेणं कालेणं० आमलकप्प; अंति: पस्से पस्सावणीए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २०७९. राजप्रश्नीयसूत्र-टिप्पण", मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५७९५. (+) प्रकीर्णक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(४)=७, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२७४११, १३-१८४६१-६२). १. पे. नाम. चउसरण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २. पे. नाम. आउरपच्चक्खाण, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुरियाणं, गाथा-६७. ३. पे. नाम. भत्तपरिण्णा पइण्णं, पृ. ३आ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. For Private And Personal use only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३७९ भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महाइसयं महाणु; अंति: सोक्खं लहइ मोक्खं, गाथा-१७२, (पू.वि. गाथा-१८ से ७२ तक नहीं है.) ४. पे. नाम. संथारा पइण्णं, पृ. ६आ-८आ, संपूर्ण. संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: सुहसंकमणं सया दिंतु, गाथा-१२२. २५७९६. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, जैदे., (२६.५४११, ४-५४२८-२९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: मोक्ष पोहचइ सही करी, (वि. पत्र का ऊपरी भाग टूटा होने से आदिवाक्य नहीं भरा जा सका है.) २५७९७. सवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६४११, १०-११४२८-३१). जैनकाव्य संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५७९८. शीलोपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६४११, ५४३२-३३). शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आबाल बंभयारि नेमि; अंति: जयवल्लहा० बोहि फलं, गाथा-११५. शीलोपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बालपणा लगई ब्रह्मचा; अंति: पामइ भवांतरि बोधि फल. २५७९९. उत्तराध्ययनसूत्र के गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदे., (२६.५४११, ११४४१-४४). उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति अति निरमली; अंति: विजय लहइ हवइ जयजयकार, गीत-३६. २५८००. (+) कर्पूरप्रकर व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ९-१५४५०-५२). १. पे. नाम. कर्पूराभिध सुभाषितकोश, पृ. १आ-९अ, संपूर्ण. कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: नेमिचरित्रका, श्लोक-१७२. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). २५८०१. (+) दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३-१४४४४-४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-). २५८०२. प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदे., (२६४११, १३४३९-४७). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय-१०, ग्रं. १२५०. २५८०३. विशेषावश्यकभाष्य, संपूर्ण, वि. १६७८, श्रेष्ठ, पृ. ९१, ले.स्थल. अहम्मदपुर, प्र.वि. मूल प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाकर बाद में किसी ने नयी प्रतिलेखन पुष्पिका लिखी है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १५४५३-५६). विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: कयपवयणप्पणामो वोच्छं; अंति: जोग्गो सेसाणुओगस्स, गाथा-३६०२, ग्रं. ३६७२. २५८०४. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६४११, १५४३८-४३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम अध्ययन अपूर्ण तक है.) For Private And Personal use only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५८०५. कल्पसूत्र सह टबार्थव व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४४-२६(१ से २५,८६)=११८, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ग्रंथाग्र-१२०० तक है., जैदे., (२७४१२, ५-११४३४-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). २५८०७. (+) सिद्धचक्र रास, संपूर्ण, वि. १६८५, माघ शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. बरहानपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ७-११४४२-४३). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: जिम भूपति श्रीपाल, गाथा-२८०. २५८०८. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-८ अपूर्ण तक है., जैदे., (२६४११, ८४३३-५२). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेण चंपा नाम नयरी; अंति: (-). उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणि कालिइं; अंति: (-). २५८१०. (#) हैमविभ्रम सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. श्लोक-११ तक लिखा है.,प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११-१३४३४-४०). हैमविभ्रम, सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्तिवादीनाम; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. हैमविभ्रम-अवचूरि, ग. चारित्रसिंह, सं., गद्य, वि. १६२५, आदि: नत्वा जिनेंद्र; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २५८१२. नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा ८ से ४१ तक है., जैदे., (२६.५४११, ४४३५-३७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५८१३. संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १५५२, फाल्गुन शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. लाललाई, प्रले. ग. कमलरुचि (गुरु ग. हीररुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ९४४५-४७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२८०. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार अरिहंत सिद्ध; अंति: वीरनुं तीर्थ वर्तइ. २५८१४. (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. अवंतीनगर, प्रले. य. फतैचंद्र (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीअवंतिपार्श्वनाथ प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ४-५४३१-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, ___ गाथा-५२, (वि. १८४९, आश्विन शुक्ल, १०) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनरइ विषइ दीवा; अंति: समुद्र थकी उद्धरिओ, __(वि. १८४९, आश्विन शुक्ल, १२) २५८१५. अधिकारबद्ध सूक्तानि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०, प्र.वि. अंत में श्लोक संग्रह के विषयानुसार अनुक्रमणिका दी गयी है., जैदे., (२६.५४११, १७-१८४६३-७०). सुभाषित संग्रह, सं., पद्य, आदि: वीरं विश्वगुरुं नत्व; अंति: स्फूर्तिमियर्ति चेतः, श्लोक-१९५३. २५८१७. नवस्मरण, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-१(९)=११, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११, १३४३८-४०). For Private And Personal use only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३८१ नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (पू.वि. भक्तामर स्तोत्र श्लोकांक-४२ से कल्याणमंदिर स्तोत्र श्लोक-१६ अपूर्ण तक व बृहत्शांति स्तव की अंतिम दो गाथाएँ नहीं २५८१८. (+) शीलप्रबंध सीता चउपई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-३(१,३,५)=७, प्रले. मु. गांगा (गुरु मु. कान्हा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४१-४५). सीतासती चौपई, मा.गु., पद्य, वि. १६२८, आदिः (-); अंति: जन सिद्धि शिवपुर दीओ, गाथा-२७१. २५८१९. विपाकसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६४११.५, १३४४३-४५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय श्रुतस्कंध के दशम अध्ययन अपूर्ण तक है.) २५८२०. हरिचंद चोपई, संपूर्ण, वि. १८१९, भाद्रपद कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. उदेपुर, प्रले. मु. रतन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १७४४७-४८). हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: पास जिणेसर पाय नमु; अंति: भाजैइ भवजंजाल रे, ढाल-२६, गाथा-४६३. २५८२१. कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. ४, प्र.वि. कुल ग्रं. १६३२, जैदे., (२७४११.५, १७४५६-५९). १. पे. नाम. श्रावकधर्मप्रभावे चंद्रवीरशुभा कथा, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. चंद्रवीरशुभा कथा, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८४, आदि: जयश्री प्रापितोद्वेध; अंति: मुनिसुंदरसूरिणा, श्लोक-२४८. २. पे. नाम. दानादिपुण्यफले धनधर्म कथा, पृ. ५अ-१३अ, संपूर्ण. धनधर्म कथा, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८४, आदि: जय श्रीमान् परब्रह्म; अंति: श्री तस्ते लभंते, श्लोक-४४१. ३. पे. नाम. अदत्तादानपरिहारादि श्राद्धधर्माराधनविराधनयो: सिद्धदत्तकपिल कथा, पृ. १३अ-१५अ, संपूर्ण. सिद्धदत्तकपिला कथा, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८४, आदि: जयश्रीणां निवासाय; अंति: मुनिसुंदरसूरि० चक्रे, श्लोक-१३८. ४. पे. नाम. जिनमुनिनमन नमस्कारगुणन स्वदारसंतोषफल सुमुखनृपादि मित्रचतुष्क कथा, पृ. १५अ-२०अ, संपूर्ण. सुमुखनृपादि मित्रचतुष्क कथा, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८४, आदि: जयश्रीः सर्वतो यस्य; अंति: गुरुभक्तेरशोधयत्, श्लोक-५१४. २५८२४. (+) निशीथसूत्र सह टबार्थव प्रायश्चित विचार, संपूर्ण, वि. १८०४, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ५७, कुल पे. २, प्रले. मु. तेजपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ५४४८-५०). १. पे. नाम. निशीथसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-५७अ, संपूर्ण. निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थ कम्म; अंति: पसिस्सो भवोज्ज च, उद्देशक-२०, ग्रं. ८५०. निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार श्रुतदेवत; अंति: शिष्यनइ भणवानइ अर्थइ. २. पे. नाम. प्रायश्चित विचार-बृहत्कल्पे, पृ. ५७आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५८२६. चंद चरित्र ढालबंध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदे., (२६४११, १५४३९-४६). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: वर्णव्या गुण चंदना, उल्लास-४ ढाल १०८, ग्रं. ३७००. २५८२८. बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२७४११, ११-१३४३७-४०). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग., आदि: नत्वा जिन महावीर; अंति: प्रतिपालन कार्या. For Private And Personal use only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५८२९. (+) प्रकरण संग्रह व पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६५-५२ (१ से ५२) - १३, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५x११, १३x५२-५६). १. पे. नाम. भाष्यत्रय, पू. ५३-५८अ संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासवसुक्खं अणाचाहं, भाष्य-३. २. पे. नाम. साठिसय, पृ. ५८अ - ६२आ, संपूर्ण. षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जाणंतु जंतु सिवं, गाथा - १६१. ३. पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक, पृ. ६२आ - ६५अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्म, आदिः परिहरिय रज्जसारो; अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं, वक्षस्कार-४, गाथा- ८१. ४. पे. नाम. श्राद्ध पाक्षिक अतिचार, पृ. ६५अ - ६५आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. आवकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: (-), ( पू. वि. सम्यक्त्वव्रत अतिचार प्रारंभ तक है.) २५८३०. मृगांकलेखा रास, पूर्ण, वि. १५९१, चैत्र शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १९ - २ (१७ से १८) = १७, पठ. सा. लक्ष्मी (गुरु सा. लावण्यलक्ष्मी); लिख. सा. लावण्यलक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५४११, ११४४४-४५) मृगांकलेखा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: गोवम गुणहर पय नमेवि; अंतिः सवि हुं करु प्रणाम गाथा - ४११, (पू.वि. गाथा- ३५८ से ४०१ तक नहीं है.) , २५८३१. प्रश्नव्याकरणसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९८, जैदे. (२६.५x११.५, १४-१६४५०-५२), प्रश्नव्याकरणसूत्र - टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (१) श्रीवर्द्धमानमानम्य, ( २ ) अथ प्रश्नव्याकरणाख्य; अंति: (१) संशोधिता चेयम्, (२) माप्तानीति ब्रवीमीति, २५८३२. इकवीसठाणा प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२७४११, ५-८x४०-४५ ). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा- ६६, संपूर्ण. , एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: विमान नयरी जणणी माता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाधा ३६ तक लिखा है.) २५८३४. (+) जिनजन्ममहोत्सव अधिकार, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैवे. (२६x११, ९ - १०x३१-३४). For Private And Personal Use Only जिनजन्ममहोत्सव अधिकार, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए: अंति: (-). २५८३५. (०) जंबू प्रबंध, पूर्ण, वि. १६७५, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. १५ - १ ( १ ) = १४, ले. स्थल, धानपुर, प्र. मु. हर्षविमल (गुरु ग. सहजविमल); पठ. मु. धनविमल (गुरु मु. हर्षविमल), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र. ले. श्लो. (७४५) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेत्, जैदे. (२६.५X११, १९-२०५३-५५). जंबूस्वामी रास, मु. राजपाल, मा.गु., पद्य, वि. १६२२, आदि: (-); अंति: घरि विलसई इंदिरा, गाथा - ५२७, ग्रं. ९५५, (पू. वि. गाथा-१ से ३० तक नहीं है.) २५८३६. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह अवचूरि व श्लोक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९ - ३ (१४, १६ से १७ ) - १६, कुल पे. २, प्र. मु. विमलदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११, ५X३९-४२). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह अवचूरि, पृ. १आ-१९आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: निच्चलं तस्स. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरिहंत; अंतिः निश्चल जाणिवउ, ग्रं. ८५०. २. पे. नाम. श्लोक, पृ. १९आ, संपूर्ण. जैन श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३८३ २५८३७. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ६-७७३८-३९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीपार्श्वजिनमानम्य, (२)कल्या० यस्य० रागादि; अंति: सुगुरुप्रसादात्. २५८३८. आवश्यकसूत्र की हारिभद्रीय टीका का प्रदेशव्याख्या टिप्पणक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७१, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२६.५४११.५, १८-२१४४७-५३). आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका का टिप्पणक, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, आदि: जगत्रयमतिक्रम्य; __ अंति: (१)शेषतो मद्विधासुमताम्, (२)प्रत्या० समाप्तेति, ग्रं. ४६४०. २५८३९. संघयणि प्रकरण सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८२५, कार्तिक शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८३-२(४१,७५)+१(४७)=८२, ले.स्थल. आंतरोली, प्रले. ग. माणेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवासुपूज्य प्रसादात्., दे., (२६४११, ५-६४२६-३३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३७३, पूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक टबार्थ लिखा गया है.) २५८४०. विचारसार संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. गेरीता, प्रले. मु. लाभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ७४३३-३६). विचारसार संग्रह, प्रा., गद्य, आदि: कहनं भंते जीवाः; अंति: मोक्ख वा गच्छंति. विचारसार संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्राविका जयंति; अंति: मुक्ति पामै सही. २५८४१. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध व सिद्धभेद, संपूर्ण, वि. १६४८, फाल्गुन कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. २, ले.स्थल. कडी, प्रले. मु. संतोष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७४११, २-४४४१-४२). १. पे. नाम. तपागच्छीय श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध, पृ. १अ-२१आ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: छत्तीसगुणो गुरु मज्झ. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि: (१)श्रेयांसि श्रीमहावीर, (२)नमो अर्हद्भ्यः ; अंति: ते गुरु मुझनइ हुओ. २. पे. नाम. सिद्धभेद, पृ. २१आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५८४२. (-) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२७४११.५, १३-१५४४५-४६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंति: संशोधिता चेयम्, ग्रं. ४२००. २५८४३. सूयगडांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८-३३(१ से ३३)=५५, जैदे., (२६४११, ११४४०-४२). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, (पू.वि. प्रथम श्रुतस्कंध नहीं २५८४४. सिंदूर प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५१, चैत्र शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्रले. पं. गुलाबचंद्र (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ५४३४-४०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनो प्रकर कहीइ; अंति: सुक्त वर्णवी छइ. For Private And Personal use only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५८४५. उपासकदशांगसूत्र व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १६२७, आषाढ़ शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, कुल पे. २, प्रले. मु. जोगा ऋषि (लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १३४४९-५४). १. पे. नाम. उपासकदशांगसूत्र, पृ. १आ-२३अ, संपूर्ण. आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेण० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अंग तहेव, अध्याय-१०, ग्रं. ८१२. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २३अ, संपूर्ण. जैनगाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५. २५८४७. (+) संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, देवलोक विवरण व पर्याप्ता भेद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ३, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११४३९-४१). १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, पृ. १आ-१६अ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहताइ ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१२, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि: श्रीवीरजिन चउवीसमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,प्रारंभ व बीच-बीच की गाथाओं का बालावबोध लिखा है.) २. पे. नाम. देवलोक विवरण, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्मेइ अनइ ईशानि; अंति: च्यारि भाग ढंकाइ. ३. पे. नाम. पर्याप्ता भेद, पृ. १६आ, संपूर्ण. __पर्याप्ताभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पर्याप्तो बिहु; अंति: करणपर्याप्तिउ कहीइ. २५८४९. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्रले. मु. नरपाल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १४४४२-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (१)मुच्चइ त्ति बेमि, (२)कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन-१० चूलिका २. २५८५०. विपाकसत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२, जैदे., (२६४११, १३४४५-५२). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेवं भंते सुहविवागा, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन २०. २५८५१. भगवतीसूत्र सह टबार्थ-सिद्धस्वरूप वर्णन, पूर्ण, वि. १७२३, फाल्गुन शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, जैदे., (२६४११, ५-६४३१-३६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पत्रांक-१२आ प्रारंभ तक ही टबार्थ लिखा है.) २५८५२. (+) सीअलप्रकाश रास, पूर्ण, वि. १७१५, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४१-४(४ से ५,१३ से १४)=३७, ले.स्थल. जेसंगपुर, प्रले. मु. पद्मविजय (गुरु ग. शुभविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४११, १५-१८४३८-४४). शीयलप्रकाश रास, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१५, आदि: शंखेश्वरपुर मंडणो; अंति: नवखडि सूरतरु फलीउजी, खंड-९. २५८५३. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५५, संवद्वाणेंद्रियेंदुकलामिते, कार्तिक शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ८१, लिख. श्राव. वर्द्धमान श्रीचंद; राज्ये गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५-४९४५२-६३). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७. २५८५४. (+) जंबूस्वामी चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५-१६x४२-४८). For Private And Personal use only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३८५ जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-छायानुवाद, मु. मानसिंघ, सं., गद्य, आदि: महावीरं जिनं नत्वा; अंति: (-). २५८५५. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति व स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १७४६२-६५). १. पे. नाम. थेरावली, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणस्सपरूवणं वुच्छं, गाथा-५०. २. पे. नाम. आवश्यकसूत्र नियुक्ति, पृ. २अ-५२अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, ग्रं. २९००. २५८५६. ओधनियुक्ति की अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदे., (२६.५४११, २१-२२४६३-६४). ओघनियुक्ति-अवचूर्णि#, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३९, आदि: प्रक्रांतोयमावश्यकान; अंति: स्फुटा जयतात्. २५८५७. प्रबंध कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६४११, १३४४४-४७). प्रबंध कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: संडेरगच्छे पंचशतीयती; अंति: निजदेशाक्षमेण समासत्. २५८६०. (+) पुराणहुंडी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०९, फाल्गुन, जीर्ण, पृ. १९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ६x४३-४७). पुराणहुंडी, सं., पद्य, आदि: श्रूयतां धर्मसर्वस्व; अंति: स्मरणेनापि तत्फलं, श्लोक-२८०. पुराणहुंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म सघलाइ सांभलीइ; अंति: स्मरण थकी ते फल होइ, (पू.वि. श्लोकांक-१२६ से १७७ तक टबार्थ नहीं लिखा है.) २५८६१. नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२८, वैशाख शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. खीमेल, जैदे., (२६.५४११, २-३४२५-२८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४३, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक __द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक ही लिखा है.) २५८६३. विक्रमादित्य पंचदंड प्रबंध, अपूर्ण, वि. १५०७, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, जैदे., (२७४११, १५-१८४५३-५४). विक्रमादित्य पंचदंड प्रबंध, आ. पूर्णचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: धर्म एव कार्यः, आदेश-५, ग्रं. ४००. २५८६४. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, १३-१४४३९-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: एह संसारमांहि अनेक; अंति: (-). २५८६५. अनुत्तरोववायदशांगसूत्र वटीका, संपूर्ण, वि. १७०४, कार्तिक शुक्ल, ११, जीर्ण, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. मु. कल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२७४११, १६-१९४४१-४७). १. पे. नाम. अनुत्तरौपपातिकसूत्र टीका, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथानुत्तरौपपातिकदशा; __अंति: शेषमंतकृद्दशांगवदिति, ग्रं. १३०. २. पे. नाम. अनुत्तरौपपातिकसूत्र, पृ. ३अ-६आ, संपूर्ण. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: जहा धम्मकहा __णेयव्वा, अध्याय-३३, ग्रं. १९९. २५८६७. निरयावलिकादि पंचोपांगसूत्र कीटीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ५, प्र.वि. कुल ग्रं. ६३७, जैदे., (२७४११, १९-२०४५३-५४). For Private And Personal use only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र टीका, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. कल्पिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रायोन्यग्रंथ; अंति: भीम रौद्र. २.पे. नाम. कल्पावतंसिका टीका, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. कल्पावतंसिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रेणिकनप्तृणां; अंति: द्वितीयवर्गश्च. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र टीका, पृ. ७आ-११आ, संपूर्ण. पुष्पिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ तृतीयवर्गोपि दशाध; अंति: देवस्य व्यक्तव्यता. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र टीका, पृ. ११आ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: चतुर्थवर्गोपि दशाध्य; अंति: चतुर्थवर्गसमाप्तिः. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र टीका, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. वृष्णिदशासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: पंचमवर्गे वन्हिदसाभि; अंति: दुःखानामंतं कुर्वंति. २५८६८. सूयगडांगसूत्र व नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, कुल पे. २, जैदे., (२७४११, १५४४७-५२). १. पे. नाम. सूयगडांगसूत्र, पृ. १आ-४७अ, संपूर्ण.. सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३. २. पे. नाम. सूयगडांगसूत्र नियुक्ति, पृ. ४७अ-५२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तित्थयरे य जिणवरे: अंति: सोउं कहियम्मि उवसंता. गाथा-२०८. २५८६९. विक्रमसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदे., (२६४११, १३-१५४४८-५२). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेश्वरो; अंति: दिन दिन दोलति पाईजी, ढाल-५२, ग्रं. १५००. २५८७०. (+) कर्मग्रंथ १ से ५ का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, कुल पे. ५, प्रले. आ. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३४४४-४८). १. पे. नाम. कर्मविपाकसूत्र बालावबोध, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमान प्रति; अंति: देवेंद्रसूरि काउं. २.पे. नाम. कर्मस्तव बालावबोध, पृ. १०आ-१३आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: तिम श्रीमहावीर प्रति; अंति: ते महावीर प्रति नमु. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व बालावबोध, पृ. १३आ-१८अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: सामान्यइ सविह जीवा; अंति: स्वामित्व विचार कहिउ. ४. पे. नाम. षडशीति बालावबोध, पृ. १८अ-२७अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हवइ संक्षेपइ० गुणठाण; अंति: लिखि देवेंद्रसूरिहिं. ५. पे. नाम. शतक बालावबोध, पृ. २७अ-४७आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतराग नमस्करीनइ; अंति: कहिउ परोपकारनइ काजि. २५८७१. प्रतिष्ठाविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८-१३(१ से १२,५७)=४५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४११, १०x२८-२९). प्रतिष्ठाविधि कल्प, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५८७३. (+) रतनपाल रास, संपूर्ण, वि. १८३३, वैशाख शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ५५, ले.स्थल. बरानपुर, प्रले. पं. देवविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, १२-१४४३४-३७). For Private And Personal use only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३८७ रत्नपाल-रत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: मोहनविजय विलासजी, खंड-४ ढाल ६६, गाथा-१३३०. २५८७४. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३१, भाद्रपद शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १४८, ले.स्थल. पुरबंदिर, प्रले. ग. नयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ५४२४-२८). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय-१०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबू ए प्रत्यक्ष; अंति: अनंता सुख पामी. २५८७५. अणुत्तरोववायदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२७४११,११४४१-४३). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-३३,ग्रं. १९२. २५८७६. (+) संघपट्टक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ६x४०-४२). संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: वह्निज्वालावलीढं; अंति: यापीत्थं कदर्थ्यामहे, श्लोक-४०. संघपट्टक-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञशासनोत्तम; अंति: उपहस्यामहे इत्यर्थः. २५८७७. चतुर्विंशतिजिन गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. मु. ऋषभकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४०-४१). २४ जिन स्तवन, मु. नेत, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव राजा लही ओलग; अंति: हुयो सदा सुखदाइन रे, गीत-२४. २५८७८. आचारांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदे., (२६४११,१०-११४३५-३६). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५८७९. महीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १६७६, भाद्रपद कृष्ण, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५३, ले.स्थल. लीबाहड, प्रले. ग. तेजोरत्न (गुरु ग. गुणविजय, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६६७) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेद्, जैदे., (२६४११, ९-१३४५३-५६). महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अति: वुति करतेहिं, गाथा-१८१६. २५८८०.(+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१७, कार्तिक कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. ६२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ७४५४-५७). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय-१०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रश्नव्याकरण स्यु; अंति: स्वामीये काउ, (पू.वि. बालावबोध टबार्थ स्वरुप में लिखा गया है.) २५८८१. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१०.५, १६-१७४५१-५४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: पण्णत्ते त्तिबेमि, वर्ग-१०. २५८८२. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदे., (२७७११, १५४४९-५१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर; अंति: ग्रं. ४२००. २५८८४. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टीका व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १४८१, भाद्रपद कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १५५-१०४(१ से १०४)=५१, कुल पे. २, ले.स्थल. कोट, प्रले. मु. धर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ., प्र.ले.श्लो. (४९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२७४१०.५, ९४२८-३०). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टीका, पृ. १०५आ-१५५आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१० चूलिका २, गाथा-७००, (पू.वि. अंत में ग्रंथकर्ता की स्तुति रूप गाथाएँ दी हुई है.) दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका की विवरणोद्धार संक्षेपटीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति विजितान्यतेजाः; अंति: ब्रवीमीति पूर्ववदिति. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १५५आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. २५८८५. (#) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४०६) मूषकानलचौरेभ्यः, (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२६४११, १०-१३४४७-५०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, ___ अध्ययन-१० चूलिका २. २५८८६. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२५, पौष शुक्ल, १०, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. ११५+१(३२)=११६, ले.स्थल. रायधणु, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१०.५, ६x४२-४५). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेण; अंति: पस्से सुपस्सवणईए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २२२०. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: सोधनीयं च धीधनैरिति, ग्रं. ३३८१. २५८८७. (+) निरयावलियादि पंचोपांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७-१३(१ से १३)=३४, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १०-११४३३-३५). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १४अ-१९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सव्वेसिं भणियव्वो, अध्ययन-१०. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १९अ-२१अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: कप्पवडिंसियाउ, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. २१अ-४१अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते समणेण०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ४१अ-४४अ, संपूर्ण.. प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिज्झिहंति, अध्ययन-१०. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ४४आ-४७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., गद्य, आदि: जइणं भंते० पंचमस्स; अंति: (-). २५८८८. (+#) भक्तामर स्तोत्र की कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. गुणवर्द्धन (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २७-३३४६४-७३). भक्तामर स्तोत्र-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य चरणाभोज; अति: (अपठनीय). २५८८९. कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८०९, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. गुढा, प्रले. पं. पासदत्त (गुरु मु. विनयभक्ति), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४१०.५, १२४३२-३४). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वि. १६६६, आदि: प्रणम्य श्रीगुरुं; अंति: कालिकसूरि० बालबोधिका, ग्रं. ४५१. २५८९०. विक्रमराजालीलीवती चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६३, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. पोरबिंदर, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि, लुंकागच्छ वृद्धपक्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १३४४५-५३). विक्रमनृप-लीलावती चौपाई, मु. रंग, मा.गु., पद्य, वि. १४९६, आदि: सरसति माता प्रणमु; अंति: मनचिंतव्या मनोरथ फलइ, गाथा-२०५. For Private And Personal use only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३८९ २५८९१. भक्तामर स्तोत्र की टीका व पद्मावतीदेवी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. २, जैदे., (२७४१०.५, १०४२९-३२). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र की सुखबोधिका टीका, पृ. १अ-१७आ, संपूर्ण.. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिकाटीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: किलेति सत्ये अहमपि; अंति: विबुधैः शोध्यतामियम. २. पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तव, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) २५८९२. (+) संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १५४५९-६२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: सन्नि गईरागई वेए, ____ गाथा-२७५. २५८९३. राजसिंहरत्नावती कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. आऊवा, जैदे., (२६४१०.५, १५४४३-४७). राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: सारद शुभमतिदायिनी; अंति: भणे सकल संघ मंगल करु, ढाल-२४, ग्रं. ८८५. २५८९४. (+) समवायांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६३२, पौष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३६, प्रले. पं. दयाकलश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १४-१६x४७-५६). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु समणे; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि. २५८९५. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६७८, कार्तिक कृष्ण, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ११६+१(५१)=११७, ले.स्थल. माहरुढ, प्रले. मु. झांझण (गुरु ऋ. लीलाजी स्थविर, गुजराती लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, ३-७४३९-४३). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय-१०, ग्रं. १२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: जाइं अनंतासुख पामइ. २५८९६. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६८४, भाद्रपद कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २६६+२(३९,१३८)=२६८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रतिलेखन पुष्पिका अधूरी है., ले.स्थल. वामज, प्रले. मु. जसवंत, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ७X४०-४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: सुयखंधो समत्तो, अध्ययन-१९, ग्रं. ५०००, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: संतैः समर्थनीयाः, ग्रं. ९०००, संपूर्ण. २५८९७. (+) सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १६६०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १५९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४४९-५२). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (१)नमोस्तु सर्वकल्याणपद, (२)प्रणम्येत्यादि० अथैत; अंति: (१)प्रभुचंद्रकीर्त्तिः, (२)चरणकमले यस्य स, वृत्ति-३, ग्रं. ७१००. २५८९८. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३०५-५(१,४४ से ४६,१२१)=३००, पू.वि. अध्ययन-३६ पूर्णप्रायः तक है.,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १५४४६-४९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम एक, बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. For Private And Personal use only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. २५८९९. (+) अभिधानचिंतामणि नाममालासह स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४३६-४९). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-). अभिधानचिंतामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, _ वि. १२१६, आदि: धर्मतीर्थकृतां वाचा; अंति: (-). २५९००. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७६०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. २६६-१(१)=२६५, ले.स्थल. बीकानेर, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ७X४२-४४). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सीहेणं जाव संपत्तेणं, अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मु. त्रिविक्रम, मा.गु., गद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (१)वाचनायै पुनः पुनः, (२)मुक्ति पहुंता तेणई, ग्रं. ११२०९. २५९०१. (+) सेनप्रश्नोत्तर व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५३, चैत्र कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २१२, कुल पे. २, ले.स्थल. आउवानगर, प्रले. पं. पद्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिजिन प्रसादात., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., दे., (२६४११.५, १०४३२-३४). १. पे. नाम. सैनप्रश्न, पृ. १आ-२१२अ, संपूर्ण. प्रश्नोत्तररत्नाकर, मु. शुभविजय, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य परं ज्योति; अंति: प्रघोषः श्रुतोस्तीति, (वि. प्रतिलेखक ने प्रशस्ति श्लोक नहीं लिखे हैं.) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २१२अ, संपूर्ण. जैन श्लोक*,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-५. २५९०२. भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५०-११४(२१७ से ३२६,३३५ से ३३८)=२३६, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, १३-१५४४७-५२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: (-), (पू.वि. शतक-२४ अपूर्ण तक है.) २५९०४. आचारांगसूत्र सह टबार्थ - द्वितीय श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७६+१(११७) = १७७, प्र.वि. कुल ग्रं. ८५००, दे., (२६४११, ४-५४२८-३३). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीजंबुने कह्यो, प्रतिपूर्ण. २५९०५.(+) ऋषिमंडल स्तोत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३५१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १८३ तक है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५-१७४४६-५२). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंति: (-). ऋषिमंडल प्रकरण-टीका, ग. शुभवर्धन, सं., गद्य, आदि: (१)योभूधुगादौशिवशुद्ध, (२)ऋषभादिजिनवरेंद्राणां; अंति: (-). २५९०६. (+) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध कथा, संपूर्ण, वि. १६०७, आश्विन शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४१, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ९४३७-३८). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहह बोहिसुहं, कथा-४३, गाथा-११५. For Private And Personal use only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: (१)श्रीवामेयममेयश्रीसहि, (२)आबाल ब्रह्मचारी आजन; अंति: मोक्षफल पणि पामउ. २५९०७. (#) आचारांगसूत्र की टीका व नियुक्ति की टीका, संपूर्ण, वि. १६८७, श्रेष्ठ, पृ. २५५, प्रले. ग. वृद्धिविजय (गुरु ग. संघविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२६४११, १५४५१-५३). आचारांगसूत्र-टीका # , आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: जयति समस्तवस्तु; अंति: (१)मार्गप्रवणोस्तु लोकः, (२)मिति तात्पर्यार्थः, ग्रं. १२०००. आचारांगसूत्र-नियुक्ति की टीका #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: तत्र वंदित्वा सर्व; अंति: (-). २५९०८. उपदेशपद सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रावण शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३५४, प्रले. कृष्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १४५००, दे., (२७४११, १३४४७-६०). उपदेशपद, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महाभागं तिलोग; अंति: भवविरह इच्छमाणेणं, __गाथा-१०४०. उपदेशपद-सुखबोधिनीवृत्ति, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११७४, आदि: (१)यस्योपदेशपदसंपदमापदं, (२)इह खल्वार्यमंडलमध्यो; अंति: (१)धनादिकं शेषशिष्यैश्च, (२)परमेच्छताभिलषता. २५९०९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५४, आश्विन कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १८१, प्रले. मु. सुंदरकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११, ५-६४३३-३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बे प्रकारे; अंति: पालै इति ब्रवीमि. २५९१०. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह टीका, पूर्ण, वि. १६७६, आश्विन शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२३-३(१ से ३)=३२०, पू.वि. श्लोक-८ तक नहीं है., प्रले. मु. लब्धिसागर (खरतरगच्छ); राज्ये गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५.५४१०.५, १३-१४४२८-३०). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. अभिधानचिंतामणि नाममाला-वृत्ति, वा. वल्लभ वाचक, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: (-); अंति: च शास्त्राणि __ भवंतीति. २५९११. (+) वृद्धशत्रुजय माहात्म्य सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७८५, आश्विन शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८०१-६(१ से ६)+१(३३)=७९६, पू.वि. प्रथम सर्ग की गाथा १ से ५३ तक नही है., ले.स्थल. गोलाग्राम, प्रले. पं. अमीचंद्र (गुरु ग. भक्तिचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २५०००, प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (७४५) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेत्, जैदे., (२६.५४११.५, ५४३२-३८). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सांभोनिधिं ग्रंथ एषः, सर्ग-१४. शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: थाओ घणा काल लगे. २५९१३. (+) विचारामृतसंग्रहनामा विंशतिस्थानक ग्रंथ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९८, फाल्गुन कृष्ण, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २९२+१(१९०)=२९३, ले.स्थल. गोधावी, प्रले. ग. जतनकुशल (गुरु ग. अमृतकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवीर वर्द्धमानस्वामीन प्रसादेन., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, (७५२) जब लग मेरु थिर रहि, जैदे., (२९x१२, ५४३५-३८). विचारामृतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १५०२, आदि: श्रीभूर्भुवः स्व; अंति: वाच्यमानो निरंतर, कथा-२०, ग्रं. २९९५. विचारामृतसार संग्रह-टबार्थ, पंन्या. रुपविजयजी, मा.गु., गद्य, वि. १८९३, आदि: (१)नूतनजलधररुचये देववधू, (२)श्रीलक्ष्मी भूपाताल; अंति: (१)विचारामृतसंग्रहे, (२)वंचातो थको निरंतर, ग्रं. ८१४२उभय. For Private And Personal use only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५९१६. आचारदिनकर, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४४६, प्र. वि. जिस प्रति पर से यह प्रति लिखी गयी उसकी प्रतिलेखन पुष्पिका भी लिखी है., दे., (२८x१३, १३४३६ - ४१). आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग, आदि: तत्त्वज्ञानमयो लोके; अंतिः कृतीनां प्रमोदं, उदय-३६. २५९१७. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८९१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १८०, ले. स्थल. शांतलपुर, प्रले. पं. रंगविजय (गुरुग. तेजविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२८x१२.५, ६- १६x३३- ४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१) नमो अरिहंताणं नमो, (२) तेणं कालेणं० समणे; अंति: उबदसेह त्ति बेमि, व्याख्यान - ९, (वि. १८९१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, गुरुवार) कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि (१) श्रीपार्श्व जिनं, (२) नमो अ० आठकर्म रहित; अंतिः वली गुरुतर जाणवो, (वि. १८९१, पौष शुक्ल, ८, बुधवार, ले. स्थल. शांतलपुरनगर, वि. श्री सोलमा शांतिजिन प्रसादात्.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: (-), (वि. १८९१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, रविवार, ले. स्थल. शांतलपुरनगर) २५९२०. गुरुतत्त्वनिश्चय सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०८, प्र. वि. त्रिपाठ., दे., (२७.५X१३, ११-१२x४६-५२). गुरुतत्त्वविनिश्चय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय पासजिणिंद; अंति: परगुणगहणे पव्वंता, उल्लास - ४, गाथा - ९०३. गुरुतत्त्वविनिश्चयस्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: (१) ऐंद्रश्रेणिनतं नत्वा, (२) अहं गुरुतत्वविनिश्चय; अंतिः न दोष इति सर्वमवदातं, (वि. कृति की प्रशस्ति नहीं लिखी गयी है. ) २५९२३. शत्रुंजयमाहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, कार्तिक शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२८, ले. स्थल. आणंदपुर, प्रले. ग. कांतिविजय (गुरु ग. ज्ञानविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. श्रीगोडिरायजी प्रसादात्, श्रीशंखेश्वरजी प्रसादात्, श्री ऋषभदेवजी प्रसादात्, श्रीवीरपरमात्मा परमेश्वरजी प्रसादात्., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट, (२८३) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (४०७) शुभं भवतु सर्वेषां (६६७) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेद्, जैवे. (२९x१३.५, ७- ८४३९-४०). शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः रसांभोनिधि ग्रंथ एषः, ग्रं. ९०००. शत्रुंजय माहात्म्य-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य श्रीयुगादीशं, (२) नमस्कार हो विश्वनो; अंतिः सिद्ध उदयाचले रखा. २५९२५. आवश्यकसूत्र सह निर्युक्ति, भाष्य व मूल-निर्युक्ति- भाष्य तीनों की संयुक्त लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, प्र. २६४, जीवे., (२९४१३ १६४४५-४९). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: णमो अरहंताणं० सव्व; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ, अध्ययन-६. आवश्यकसूत्र - लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: (१) देवः श्रीनाभिसूनु, (२) अर्थाभिमुखोनियतोबोधो; अंति: (१) खेलतात्कृतिमानसे, (२) महोदयपदावाप्तिरिति, - सर्ग- १४, आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू. आवश्यकसूत्र नियुक्ति की लघुटीका #. आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य वि. १२९६ आदि (-); अंति: (-). आवश्यक सूत्र- नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: अवरविदेहे गामस्स; अंति: जम्हा विउ पमाणं. आवश्यक सूत्र- नियुक्ति के भाग्य की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २५९२६. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे., (२७.५x१३, ४- १५४३६-४१). For Private And Personal Use Only श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० पंचिद अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org ३९३ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० नमस्कार होवो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. किंचित् पाठ टवार्थ रूप में भी लिखा है.) - २५९२८. भवभावना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६३, फाल्गुन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १८७, पठ. सा. गंगाश्री; अन्य. श्राव. मगनलाल मलुकचंद शा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१२, ३-११x२७-४५), भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण णमिरसुरवर मणि; अंतिः वलीइ कीरड अलंकारो, गाथा - ५३१. भवभावना- टबार्थ, पंन्या. शांतिविजय गणि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणिपत्य जिनवरेंद्र, (२) नमस्कार करीने नमनशील; अंतिः करवो अलंकार आभरण, प्र. ९०००, २५९२९ (+) त्रिशष्टिलक्षणमहापुराण संग्रह पर्व १ से ४७, संपूर्ण, वि. १६८९ श्रावण शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४८१, ले. स्थल, नागपूर, प्रले. मु. सुरज (गुरुग. सुखनिधान, खरतरगच्छ); लिख श्राव. जगजीवन घडसी; सम. मु. यशस्कीर्ति, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न टिप्पण युक्त विशेष पाठ- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (७४५) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेत्, जैदे., (२८१२, ११४३५-३७). त्रिषष्टिलक्षणमहापुराण संग्रह, आ. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमते सकलज्ञान; अंति: (-), ग्रं. १२०००, प्रतिपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir = २५९३०. (+) - उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ विस्तृत, संपूर्ण, वि. १८९१७ - १८१८, श्रेष्ठ, पृ. १३५+१ (३५) १३६, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५५१२, ५-६४४४-५० ). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुकस्स अंतिः ति बेमि, अध्ययन- ३६, (वि. १८९७ आश्विन शुरू, ३, रविवार, ले. स्थल, भिलाड) उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१) न० नमस्कार थाओ, ( २ ) संयोग बे प्रकारे; अंति: तुज प्रते कहुं छु, (वि. १८१८ आषाढ़ शुक्र १२, रविवार, ले. स्थल, जोधपुर) २५९३१. (+) धर्मरत्न प्रकरण सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रावण शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, " पृ. २९५+२(१६५,२०६ ) = २९७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले. श्लो. (५९५) यदक्षर परिभ्रष्टं, दे., (२७.५X१२, १४४३६-३९). धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सयलगुणरयणकुलहर; अंति: निव्वाणसुह० पावेंति, गाथा - १४५. धर्मरत्न प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, वि. १२७१, आदि (१) सिद्धं सर्वज्ञमानम्य, ( २ ) इह पूर्वार्धनेष्ट, अंति: (१) रत्न० गतोपि तेनास्तु, (२) र्येणापवर्गप्राप्तिः, ग्रं. ९६८२. २५९३२. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३१, कार्तिक कृष्ण, ९, मंगलवार, जीर्ण, पृ. २९२, ले. स्थल. सालडा, प्रले. पं. दानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १३९१०, जैये. (२७x१०.५, ७X३९-४३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: पुरिससिहेणं, अध्ययन - १९. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: ( १ ) प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२) तेणइ कालइ जे चउथइ; अंतिः धर्मकथा संपूर्ण, ग्रं. ९०००. " २५९३३. (+) श्राद्धविधि प्रकरण सह विधिकौमुदी टीका, मूल व टीका का टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४३८-१(१)=४३७, पू. वि. श्लोक - ४३० तक है., जैदे., (२६X११.५, ५X३४-३८). श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरजिणं पणमिय; अंति: (-), पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदि: (-); अंति (-), पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. For Private And Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्राद्धविधि प्रकरण-टबार्थ #, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८२४, आदि: शोभावंत श्रीवीरजिननइ; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका काटबार्थ #, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. २५९३४. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७१, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ५४३९-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (१)पुव्वरिसी एव भासंति, (२)त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानजिनं, (२)पूर्वसंजोग मातापिता; अंति: (१)भाष्यकार-जाणवू, (२)जंबूप्रतई कहइं छइ, (वि. प्रतिलेखक ने कथाएँ नहीं लिखी है.) २५९३५. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थव व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १७७८, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २०१+१(१०४)=२०२, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. ग. चतुरविजय (गुरु ग. मेघविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीपार्श्वदेव प्रसादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-द्विपाठ. कुल ग्रं. ५३५१, जैदे., (२६.५४११.५, ५-१६४३४-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९,ग्रं. १२१६, संपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वर्द्धमानं जिनं नत्व, (२)अरिहंतनइ माहरो; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., साधुसमाचारी गाथा-९ तक टबार्थ लिखा है.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), संपूर्ण. २५९३६. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थव बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१४, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १६३, ले.स्थल. ब्रानपुर, प्रले. मु. रुपविजय (गुरु मु. अमरविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., संशोधित. कुल ग्रं. ७५००, जैदे., (२६४१२, ५-१२४३०-३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीअढार दोषे रहित, (२)ते काल चउथो आरोते; अंति: आगले इम देखाडि. कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७०७, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)इहा क्षेत्रे चोमासू; अंति: यः कर्ता तस्य मंगलं. २५९३७. अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२३, जैदे., (२६४११, ११४३८-४१). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; ___अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६... २५९४१. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, पूर्ण, वि. १८१२, आश्विन शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११३-६(७५ से ८०)=१०७, पू.वि. गाथा ४४९ से ४८३ तक अपूर्ण नहीं है., ले.स्थल. वणोद, प्रले. ग. ज्ञानविजय (गुरु ग. प्रमोदविजय); पठ. ग. रविविजय (गुरु ग. ज्ञानविजय), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्. आसाढ वदि ९ शुक्रवार से प्रत लेखन प्रारंभ व आसो सुदि १ सोमवार को प्रत लेखन संपूर्ण हुआ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ५-१८४४१-५२). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)नमस्कार करीनइ जिण; अंति: (१)संजात इति भद्रं, (२)देवता ते पण सांभले. For Private And Personal use only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २५९४२. शांतिजिन रास, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रावण शुक्ल, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२८, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. कृष्णजी वेलजी दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथ प्रसादात्., जैदे., (२६.५४१२, ११-१२४३५-४०). शांतिजिन रास, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८५, आदि: सकल श्रेय वरदायिनी; अंति: केरी आणंद अधिक उपाया, खंड-६, गाथा-६९५१. २५९४३. उपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९६२-१९६३, श्रेष्ठ, पृ. २६१+१(१६८)=२६२, दे., (२७४१२, ३-११४३८-४१). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, ___ (वि. १९६२, आश्विन शुक्ल, १३) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)नमस्कार करीनइ जिण; अंति: वाणि श्रुतदेवता तेह, (वि. १९६३, आश्विन शुक्ल, १३) २५९४६. (+#) आनंदमंदिर रास, पूर्ण, वि. १८०१, ज्येष्ठ कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३९-२(१ से २)=१३७, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. पंन्या. धनविजय (गुरु पंन्या. माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, जैदे., (२७४१२, १७-१८४५२-५८). श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: (-); अंति: थइ भणतां मंगलमालाजी, उल्लास-४ ढाल १११, गाथा-२३९४, ग्रं. ७६४९, (पू.वि. गाथा-१ से ६२ तक नहीं है.) २५९४७. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. १९७, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. मु. कांतिविजय (गुरु ग. कपूरविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १३-१४४३५-३७). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, (वि. १८५७, चैत्र शुक्ल, ३) उपदेशमाला-टबार्थ, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अति: वाणी श्रुतदेवता ते, (वि. १८५७, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ४, रविवार) २५९४८. (+) श्रीपालनरेंद्र कथा सह टबार्थ व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५४, वैशाख शुक्ल, ३, जीर्ण, पृ. १३६, कुल पे. २, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. पं. राजविजय; पठ. मु. सुरतिराम (गुरु मु. चंद्रभाण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२.५, ६x२७-३२). १. पे. नाम. सिरिसिरिवाल कहा सह टबार्थ, पृ. १आ-१३६अ, संपूर्ण. सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: वाइजता कहा एसा, गाथा-१३४०, ग्रं. १६७५. सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, उपा. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतादिक नवपद; अंति: कहवा योग्य या कथा, ग्रं. ५०७५. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १३६आ, संपूर्ण. जैन गाथासंग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. २५९४९. दानकल्पद्रुम, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रावण शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २३३, ले.स्थल. राहेण, प्रले. रामदास वैष्णव, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२.५, १४४३९-४५). दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: स श्रेयस्त्रिजगद्; अंति: श्रीदानकल्पद्रुमः, पल्लव-९, ग्रं. १००००. २५९५०. (+) पण्णवणासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०७, पौष शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १९३, ले.स्थल. रावलपिंडी, प्रले. अमरदास गुसाई; पठ. मु. गुलाबराय (गुरु मु. तुलसीराम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट, (७९३) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेद, जैदे., (२६.५४१२, १०-१२४४७-५०). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. नेमचंद्रसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागं नमस्कृत्य; अंति: सुखनो प्राप्त हुए है. For Private And Personal use only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५९५१. हरिविक्रम चरित्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६५-२(१ से २)=१६३, जैदे., (२७४१२, ११४४२-४७). हरिविक्रम चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रविशोध्य सर्वम्, सर्ग-१२, (पू.वि. सर्ग-१ गाथा-४३ तक नहीं है.) २५९५२. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९१-१(७९)=१९०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ६x४०-४५). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीसिद्धार्थनराधिप; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २५९५३. शत्रुजयमाहात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सर्ग-३ श्लोक-७४६ तक है.,प्र.वि. यह प्रति कृति रचना के समीपवर्ति काल में लिखी होने की संभावना है., जैदे., (२७४१२.५, ७-८x२९-३५). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: (-). शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., गद्य, वि. १७६७, आदि: नत्वा वीरं सुबोधाय; अंति: (-). २५९५४. संग्रहणी सह स्तबूकार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदे., (२७४१२, १-४४१४-४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४१. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा गुरुपदयुग्म; अंति: जयवंत हुए त्यां लगी. २५९५५. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७७६, पौष शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २१३-२०(१८१ से २००)=१९३, ले.स्थल. मांडवीबंदर, प्रले. मु. विद्याविमल (गुरु वा. ज्ञाननिधान); पठ. मु. महिमासुख (गुरु मु. विद्याविमल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ५-७४३४-३७). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: विमुच्चंति त्तिबेमि, अध्ययन-२५ उद्देश ८५. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर; अंति: गतिनां पंथ थकी मुकाइ. २५९५६. (+) वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१२.५, १४-१५४३९-४०). वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंति: शोधयंतु गतमत्सराः, उल्लास-१०. २५९५७. (+) वस्तुपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६१, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १२५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२.५, १४-१५४४७-५०). वस्तुपालमंत्री चरित्र, ग. जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १४९७, आदि: श्रीमानहन शिवः; अंति: वृत्तमिदं व्यधात्, प्रस्ताव-८. २५९५८. सम्यक्त्वकौमुदी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, पौष कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६५, प्रले. पंन्या. तिलोकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, ५४३५-४१). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: कथां सम्यक्त्वकौमुदी. सम्यक्त्वकौमुदी-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वजिन; अंति: सम्यक्त्वनी चांदणी. २५९५९. सेनप्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३५, दे., (२७४१३, १३-१४४३७-३८). प्रश्नोत्तररत्नाकर, म. शभविजय, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य परं ज्योति; अंति: शुभविजय गणि संगृहीते, उल्लास-४. २५९६०. (+#) कुमारपाल रास, संपूर्ण, वि. १९००, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ११६, ले.स्थल. संखलपूर, प्रले. पं. सुबुद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १५-१९x४३-४७). For Private And Personal use only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org ३९७ कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: सकल सिद्ध सुपरि नमुं; अंति: नामी वे निध पामु, गाथा- ४४६३, ग्रं. ५९००. २५९६२. (+) | कल्पसूत्र का व्याख्यान + कथा- २ से ८ व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८५४, आश्विन शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पू. १७३, प्रले. पं. उवैचंद्र, पठ. सा. विजश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैये. (२६४१३, १३४३१-३३). कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंतिः श्रीसंघने मंगलीक भणी, प्रतिपूर्ण. २५९६६. (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ व अंतवांच्य, संपूर्ण, वि. १८५७, चैत्र शुक्र १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २१९, " ले. स्थल. सांडेरानगर, प्रले. ग. चतुरविजय (गुरु ग. ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X१३, १०- १३४२८-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहंताणं पढमं अंतिः उबदसेड़ त्ति बेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२२६. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: चोंसठि इंद्रने; अंति: भद्रबाहुस्वामीए. कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः अंतिः मिथ्यादुः कृतमस्ति. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५९६७. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१६, चैत्र कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६४१, ले स्थल. हरिदुर्ग, प्रले. गोपीनाथ ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दे., ( २६४१३, ६- १०x४४-५२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंतिः संति करितं नमस्सामि शतक - ४१. भगवतीसूत्र - टबार्थ, ग. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: (१) सर्वज्ञ केवली छे वली, (२) देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: प्रत नमस्कार करुं. २५९६९. स्थानांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २४८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६x१२.५, ४-७X३७-३९). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसे तेणं; अंति: ( - ). स्थानांगसूत्र- टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: (-). २५९७०. (+) त्रिशष्टिशलाकापुरुष चरित्र सह बालावबोध परिशिष्टपर्व, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २६७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५X१३, १५ - १८४३७-३९). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: - - (-). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र परिशिष्टपर्व का बालावबोध, मु. केशरविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८०१, आदि: प्रणिपत्य गिरिं; अंति: मयि निजसेवा प्रदानेन. २५९७१. (+) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र की बृहत्वृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३७ - ११ (१ से ११) = २२६, ले. स्थल. विक्रमपुर, जैदे., (२५.५४१२, १६४३३-३८ ) . चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: धुजनस्तेन भवतु कृती, ग्रं. ९४००. २५९७२. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रावण शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २४२+२ (६८, २३७ ) = २४४, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. चैनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १७०००, दे., (२६X१२, ६-८x४५-४६), ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंतिः सुयखंधो समत्तो, अध्ययन - १९, ग्रं. ७०००. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंतिः धर्मकथा कही. For Private And Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५९७३. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १५०, ले.स्थल. कालद्री, प्रले. ग. शांतिविजय (गुरु पं. कपूरविजय); राज्ये ग. न्यायकविजय, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३१८०, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (४८१) य्यां लगे मेरु अडग हे, जैदे., (२६४१२, ६-१३४३७-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, मु. धीरविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: सकलार्थ सिद्धिजननी; अंति: भूयात् बालबोधविधानतः. २५९७४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १४००५, जैदे., (२५४१२, ६-२०४३४-४७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (१)त्ति बेमि, (२)पावइ सासयं ठाणं, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वर्द्धमानजिनं नत्वा०, (२)पूर्वइ संयोग मातापित; अंति: (१)जंबू प्रते कहइ छइ, (२)शाश्वतासुख मोक्षना. २५९७६. (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०६, माघ शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १६५, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. लाभचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (२०६) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (२०७) उदकानलचोरेभ्यो, दे., (२४४१२, ५-६४३८-४०). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविह; अंति: दुक्खक्खयट्ठाए, गाथा-१६०४. अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, क्र. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं; अंति: गोःपादानविधिकुशलैः. २५९७७. विपाकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३१-५(५९ से ६३)=१२६, जैदे., (२५.५४१२.५, ५४३३-३५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेवं भंते सेवं भंते, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन २०. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शुभाशुभ कर्म जे फल; अंति: अर्थ थया सुखविपाके. २५९७८. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थव व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५२-१(१)=३५१, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, ४-१०४२७-३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बारे गुणे करी सहित; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रावक श्राविका कहिइ, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. २५९७९. (+) वृंदारूवृत्ति टीका सह टबार्थ व भोजराजा प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. २११, कुल पे. २, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. मु. हर्षसुंदर (गुरु पं. फतेसुंदर, पूर्णिमागच्छ); राज्यकाल रा. भावसिंघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (८१४) जिंहा लगि मेरु अडिग है, जैदे., (२६४१२, ६४३४-३६). १.पे. नाम. आवश्यकसूत्र सहटीका वटबार्थ, पृ. १आ-२०९आ, संपूर्ण, पे.वि. मूल का मात्र प्रतीकपाठ दिया हुआ है. आवश्यकसूत्र-श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चोविसं, (वि. वंदित्तुसूत्र संपूर्ण व बाकी सूत्रों के मात्र प्रतीकपाठ दिये गये हैं.)। श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: वृंदारुवृंदारकवृंदवं; अंति: वृत्तितोवरचूर्णितश्च, ग्रं. २७२०, (वि. १८१४, आश्विन अधिकमास शुक्ल, १०, शनिवार) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका का टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., गद्य, वि. १७६१, आदि: बालानां सुहितार्थाय०; अंति: वस्यकनो विधि कहिउ छे. २. पे. नाम. मुंजभोजप्रबंध श्लोक, पृ. २१०अ-२११अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ३९९ मुंजभोजप्रबंध श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: काका कृष्णा शुका; अंति: अजेस कुटीजै मुंज, गाथा-१३. २५९८०. भगवतीसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०५-१(२)=४०४, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १३४४२-५०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहताणं० सव्व; अंति: (-), (पू.वि. अंतभागीय किंचित् अंश नहीं हैं.) २५९८१. पण्णवणासूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७६, जैदे., (२६४११.५, १४४३९-४४). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगय; अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, ग्रं. ७७८५. २५९८२. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३३-४(८८ से ९१)=१२९, पू.वि. ऋषभजिन चरित्र तक लिखा है., प्रले. मु. मोहनवर्द्धन (गुरु ग. रामवर्द्धन), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ६-१८४३३-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रति नमस्कार; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २५९८३. चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१२, १३४३५-३७). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-४ ढाल-३० गाथा-९ तक है.) २५९८५. (+) श्रीपाल कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ६४३७-३९). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं झायित; अंति: वाइजता कहा एसा, गाथा-१३४३. सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., गद्य, वि. १८०६, आदि: अरिहंतादिक नवपदनई; अंति: जाणता थका कथा एह. २५९८६. उपदेशमाला सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. १३३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्रतिलेखन पुष्पिका का भाग नहीं है., जैदे., (२५.५४१२, ४-२१४४२-४५). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, संपूर्ण. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: वाणी श्रुतदेवता ते, संपूर्ण. २५९८७. (+) जीवभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, पौष शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २६२, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. कपूरचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. २४०२१, जैदे., (२५४११.५, ६-८४४४-५२). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चउवीस; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, ग्रं. ४८००. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाभिगम कहतां स्यु; अंति: सर्वजीव कह्या छइ, ग्रं. २००००. २५९८८. (+) प्रवचनसारोद्धार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ८२२५, दे., (२५४११.५, ५४३६-३८). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: नंदउ बहु पढिज्जतो, द्वार-२७६, श्लोक-१६१८. प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनई ऋषभ; अंति: पंडित भणी जतउ थकउ. For Private And Personal use only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २५९९०. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १९६३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १८७-६(३६ से ४१)+१(१७६)=१८२, ले.स्थल. पाली, प्रले. अंबादत्त ब्राह्मण; पठ. पंन्या. सुंदरविजय; लिख. पं. रत्नचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. द्विपाठ-त्रिपाठ. कुल ग्रं. १६१४६, दे., (२५४११,५-१५४५५-६२). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, वक्षस्कार-७, ग्रं. ४१४६. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-प्रमेयरत्नमंजूषा टीका, उपा. शांतिचंद्र, सं., गद्य, वि. १६५१, आदि: जयति जिनः सिद्धार्थः; अंति: विवेचने चतुरः, ग्रं. १२०००. २५९९१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८१-११(२ से ८,१० से १३)=१७०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ९०००, जैदे., (२६४११, ५४३७-३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बे प्रकारे; अंति: तुज प्रतइ कहुं छु. २५९९३. (+) गौतमपृच्छा सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १९७२, पौष शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २०६-२(९२,१४१)+१(१७२)=२०५, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. लालजी कल्याणजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १३४३६-३८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टीका, मु. तिलक, सं., गद्य, आदि: माधुर्यधुर्यगुणतः; अंति: श्रीसंघकल्पद्रुमः. २५९९४. (+) श्राद्धविधि प्रकरण की वृत्ति, पूर्ण, वि. १८३५, श्रावण शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३६३-१(१)+१(३५१)=३६३, ले.स्थल. मकसूदाबाद, पठ. मु. रुपविजय (गुरु पं. भूपविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ७४४०-४५). श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदि: (-); अंति: जयदायिनी कृतिनाम्, प्रकाश-५, ग्रं. ४८५०. २५९९५. (+) चंदराजा चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६६, आश्विन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २७७+१(२३१)=२७८, ले.स्थल. पाटण, प्रले. पं. गौतमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १०५५०, जैदे., (२५४११, ६४३१-३५). श्रीचंद्रकेवलि चरित्र, म. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८, आदि: ॐ ध्यात्वा; अंति: संघश्चिरं नंदतात, अधिकार-४, __ श्लोक-९५९. श्रीचंद्रकेवलि चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध्यात्वा श्रीमन्महाव; अंति: काल सुधी चिरंजीव रहो. २५९९६. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१९-५१(१२,५१ से ९९,१५४)=१६८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ७०००, जैदे., (२६४११, ५४३१-३३). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताण० तेणं; अंति: पस्से सुपस्सवणीए णमो, सूत्र-१७५. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: तेहने नमस्कार होउ. २५९९८. सम्यक्त्वारोपण विधि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४०-४२). सम्यक्त्वारोपण विधि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: अष्टवर्षिकत्वादि; अंति: मिच्छे विवज्जेह. २५९९९. दानशीलतपभावना चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५३, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. पद्मशेखर (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १३-१४४३६-३७). दानशीलतपभाव चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुखकारो रे, ढाल-४, गाथा-१०१. २६०००. (+) संथार पइन्नाग्रंथ प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२१, फाल्गुन शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. ईसरदा, प्रले. मु. दयालदास (गुरु ऋ. ज्वालानाथ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ., जैदे., (२४.५४११, २-८४४६-५५). For Private And Personal use only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४०१ संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमोक्कारं जिणवर; अंति: सुहसंकमणं मम दिंतु, गाथा-१२२. संस्तारक प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमः शमितनिश्शेषकर्म, (२)इहां सघलाइ शास्त्रना; अंति: प्रीति दान द्यउ. २६००१. (+) सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १३४३६-४३). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: (-), (पू.वि. गणधरदेव स्तुति तक के स्तोत्र हैं.) । २६००२. अरणिकमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. सा. नाथी (गुरु सा. अमरादे), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १०-१२४३२-३५). अरणिकमुनिरास, ग. महिमासागर, मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि: सरसति सामिणि वीनवू; अंति: भेट्यो रे गुरुराय, ढाल-८. २६००४. (+) मौनएकादशीमाहात्म्य कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, प्रले. मु. महिमासुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १३४४१-४५). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: (-); अंति: सागरशररसशशिप्रमिते, (पू.वि. श्लोक-१ से ३३ नहीं है.) २६००८. नेमिजिन व गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०.५, १३-१४४४१-४३). १.पे. नाम. नेमराजिमती रास, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. नेमजिन रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: पुन्यरतन० जिणंदकै, गाथा-७२. २. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-६८. २६०१२. ज्योतिषसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदे., (२४४१०.५, ५४२९-३८). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१४७ तक लिखा है.) ज्योतिषसार-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशब्द छई सुपुज्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., श्लोक-२० तक लिखा है.) २६०१४. इकवीसठाणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५.५४१०, ७४२२-२९). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: अद्धतेरसवास छउमत्थ, गाथा-७०. २६०१६. (#) हंसराजवछराज चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२४४१०, ९-११४३७-४३). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१० गाथा-३ तक लिखा है.) २६०१७. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२-४९(१ से ४६,५४ से ५५,६०)=१३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१०, ८४३३-३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २६०१८. स्थुलिभद्र नवरसोव सुभद्रा चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १८२१, चैत्र शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १३-१५४३४-४०). १. पे. नाम. स्थूलिभद्र नवरसो, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ सवि फल्या रे, ढाल-९. २. पे. नाम. सुभद्रासती चौढालीयो, पृ. ६आ-१०अ, संपूर्ण. सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (१)पारस प्रभु नित, (२)सरसति सामणि वीनवू; अंति: फलीया मनोरथ माल, ढाल-४. २६०१९. विक्रमसेनलीलावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-१७(१ से २,४ से १०,१७ से २१,२३,२५,२७)=११, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१०, १३-१४४५०-५२). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४६ गाथा-६ तक है.) २६०२२. (+) बारसे सूत्र - व्याख्यान १ से ८, संपूर्ण, वि. १८१२, पौष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ११४२६-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पृ.वि. स्थविरावली तक लिखा है.) २६०२५. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-३(१ से ३)=६, कुल पे. ३, पठ. सा. देवकी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १३-१४४४२-४७). १. पे. नाम. थावच्चाऋषि सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, पूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: होयो तुझ पाय वास, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-१ नहीं है.) २. पे. नाम. सुरप्रियऋषि सज्झाय, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. सुरप्रियसाधु रास, मु. लक्ष्मीरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देवि सदा मनि; अंति: ते निश्चइ भवसायर तरइ. ३. पे. नाम. आषाढाभूति चरित्र, पृ. ६आ-९आ, संपूर्ण. वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: श्रीसंघकुं सुखकारा, गाथा-६६. २६०२६. विक्रमसेन चतुर्पदी, संपूर्ण, वि. १७८५, आश्विन कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५३, ले.स्थल. खेडनगर, प्रले. ग. भाणसागर (गुरु ग. सुविधिसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १२-१३४२५-४५). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकाशकर; अंति: परमसागर आणंदा रे, ढाल-६४. २६०२७. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका व नेमराजुल लावणी, संपूर्ण, वि. १७४२, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, ले.स्थल. साहजिबाद, प्रले. मु. शुभसागर (गुरु पंन्या. सुजाणसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-द्विपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १-३४३६-४०). १.पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: तुम तजीय कर राजुल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक ही लिखा है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, पृ. १आ-१८आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मूलपाठ श्लोक-२६ तक संपूर्ण एवं श्लोक-२७ से प्रतीक रूप में लिखा है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य पार्श्व; अंति: श्लोकानामिह मंगलम्, संपूर्ण. २६०२८. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८०५, पौष शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(२)=५, ले.स्थल. पातस्याहपुर, प्रले. मु. द्रेण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १४-१६४३७-४२). For Private And Personal use only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४०३ स्तवनचौवीशी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आदिकरण अरिहंतजी ओलगड; अंति: अनंतसुख पावे, स्तवन-२४, (पू.वि. स्तवन-५ से स्तवन-१० गाथा-१ तक नहीं है.) २६०२९. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व पार्श्वजिन स्तोत्रादि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ४, दे., (२५४११, ९४३३-३७). १. पे. नाम. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. २. पे. नाम. अतिचार आलोयणा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजूणा चौपहुर दिवसमा; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तवन, पृ. ४आ-८अ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ अणिंदिय, गाथा-३०. ४. पे. नाम. श्राद्ध पाक्षिक अतिचार, पृ. ८अ-१७आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २६०३०. उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदे., (२५४११,९-१०x४२-४३). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथमनंदी द्वितीयो; अंति: सेनसूरिनी आज्ञाथी. २६०३३. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, ६-७४४५-५०). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चपाए; अंति: (-). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (वि. पत्र खंडित होने के कारण आदिवाक्य पढा नहीं जा रहा है.) २६०३४. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, कार्तिक कृष्ण, १, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ५३, ले.स्थल. सेरपुरा, प्रले. सा. जगीसा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ७४३६-३८). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-९२. अंतकृद्दशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ कालइ चउथउ आरो; अंति: दशांगना ए अर्थ कह्या. २६०३७. उववाईसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८२-४७(१ से २३,२६ से ४९)=३५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ७-१२४३२-३३). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६०३८. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५.५४१०.५, ९x४०-४२). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: समुन्नइ निमित्तं. २६०३९. अनुयोगद्वारसूत्रे साधुउपमाअधिकार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१०, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. श्राव. हीरालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, ६-८४३९-४४). अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा साधु उपमा अधिकार, आ. रक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: उरग१ सेतं सत्तविहं; अंति: कोहं उवसमती सेतपणं. अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा साधु उपमा अधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अनुयोगद्वार मध्ये; अंति: ए उपमाथी गुरु ओलखीयै. २६०४०. (+) जंबूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ७४३५-३८). For Private And Personal use only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेनं० रायगिहे अंतिः से आराहगा भणिया, उदेशक- २१. १४- १५४३६-४३). जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनि विषइ तेणइ; अंति: ते आराधक कह्या. २६०४१. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. ग. नयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., जैवे. (२६११, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पदार्थ संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६०४२. योगशास्त्र की स्वोपज्ञ वृत्ति प्रकाश १० से १२, संपूर्ण वि. १८७२ फाल्गुन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. योधपुर, प्रले. पं. मोहनदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १२९४, जैवे. (२४.५x११, २० - २२X४० - ४४ ) . योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, वि. १३वी, आदि (-); अंति: श्रीहेमचंद्रेण सा, प्रतिपूर्ण, योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भव्यो जनो भवतु, प्रतिपूर्ण, २६०४३. चोर-लीलावती संबंध, संपूर्ण वि. १७९३, चैत्र शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. प्रह्लादनपुर, प्रले. पं. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४- १७४३८-४४). लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: तेवीसमो त्रिभुवन; अंतिः वृद्धि सदा सुखकार, ढाल - २९. २६०४५. सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्याय-२ पाद- १ सूत्र- १०० तक है, जैदे., ( २६४११, १५४४८-४९). सिद्धहेमचंद्रशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अहं सिद्धिः स्याद; अंति: (-). सिद्धहेमशब्दानुशासन- स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-). २६०४९. (+) तर्कसंग्रहफक्किका, पूर्ण, वि. १८५८, माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २९- १ ( ८ ) - २८, प्रले. मु. कस्तुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५X११, ९ - ११x४२-४३). तर्कसंग्रह - तर्कसंग्रहफक्किका, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८२४, आदि: प्रणिपत्य जिनं पार्श; अंति: इष्टसाधनत्वान्न दोष:, (वि. प्रतिलेखक ने रचनाप्रशस्ति नहीं लिखी है.) २६०५० (+) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५x११, ३x२९-३३ ). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण टवार्थ ", मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० स्वर्ग; अंतिः रूप समुद्र सेंती. २६०५१. (#) बूढला री ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५x११, ११-१४४३३-३६). बुढ़ापा रास *, रा., पद्य, आदि: दया माता वीनवु गणधर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल -२२ गाथा-१ तक है.) २६०५२. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दे., (२५४१९, ४X३२- ४० ). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंतिः हारताराबलक्षेमदा, स्तुति- २४, श्लोक- ९६. स्तुतिचतुर्विंशतिका बालावबोध, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: हे भव्यांभोजविबोधनैक; अंतिः अमदा० मद रहित छै. २६०५४. सूयगडांगसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१ (१२) २९, जैदे, (२५.५x११.५, १४४३३-३६). For Private And Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३. २६०५५. (+) शीलोपरि पद्मावती चरित्र, अपूर्ण, वि. १६९९, निधिनंदरसेंदु, श्रेष्ठ, पृ. १९-४(१ से ४)=१५, प्रले. मु. सिद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३-१५४३७-४२). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: (-); अंति: कथां पाठकराजवल्लभः, श्लोक-५१३, (पू.वि. श्लोक-१०२ तक नहीं है.) २६०५६. (#) दानशीलतपभावनासंवाद शतक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४४०-४२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४. २६०६१. पाक्षिकसूत्र, खामणा व श्रुतदेवी स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १६-१७४२९-३८). १. पे. नाम. श्रुतदेवी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. २. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (१)जेसिं सुयसायरे भत्ति, (२)मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक कुछेक अंशमात्र. है.) २६०६३. (+) लग्नशुद्धि प्रकरण सह टबार्थव श्लोक, संपूर्ण, वि. १९१४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५४११.५, ७४३६-४४). १. पे. नाम. लग्नशुद्धि प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण. लग्नशुद्धि, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अविहतसव्वाएसं नमिउं; अंति: सोहिंतु तं विउसा, गाथा-१३३. लग्नशुद्धि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नही है असत्य सर्व; अंति: ते सर्वशुद्धि जाणवू. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १२अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. २६०६६. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. वीरपूर, प्रले. ग. नायकविजय; पठ. मु. मानचंद (गुरु ग. नायकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ९४२७-३०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. २६०६७. महादंडक, अपूर्ण, वि. १७८८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, प्रले. मु. जयसिंघ (गुरु मु. जगजीवणदास); पठ. श्रावि. वैजाजी, प्र.ले.पू. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४३७-४०). २४ दंडक २३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: बोल अधिक अधिक जाणवा. २६०६९. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५८, माघ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. मयासागर (गुरु पं. सुमतिसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ४४३७-३९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्ष प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, पा. रूपचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, वि. १८११, आदि: (१)जिनेश्वरस्य अंहिपद, (२)कल्याणमंदिर क०; अंति: (१)शिष्ययोराग्रहादसौ, (२)अल्पकाल० मोक्ष पामै. For Private And Personal use only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६०७०. (+) कर्मग्रंथ १ से६ सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १६६२, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५६, कुल पे. ६, ले.स्थल. वटप्रदनगर, राज्ये गच्छाधिपति विजयसेनसूरि (गुरु आ. हीरसूरि*, तपागच्छ); प्रले. लालजी वैश्य; पठ. ग. कुशलसागर (गुरु ग. पद्मसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४१७५, जैदे., (२६४११, २-७४४८-५०). १. पे. नाम. कर्मविपाक सूत्र सह अवचूर्णि, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि#, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि: सिरि० श्रियाष्टप्रात; अंति: येत्यादि कुदेशनाभिः. २. पे. नाम. कर्मस्तव सूत्र सह अवचूर्णि, पृ. ६आ-१०आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि: तह० गुणस्थानेषु मिथ; अंति: चरमसमये व्यवच्छेदः. ३. पे. नाम. बंधसामित्त कर्मग्रंथ सह अवचूर्णि, पृ. ११अ-१३आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि: अथ अस्यैव शास्त्रस्य; अंति: अयोगिनोलेश्यत्वात्. ४. पे. नाम. षडशीतिक कर्मग्रंथ सह अवचूर्णि, पृ. १४अ-२०अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि: नमि० इह० सुगमौ; अंति: तु केवलिनो विदंति. ५. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ सह अवचूर्णि, पृ. २०अ-३८अ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि: घातिन्यस्त्रिधा सर्व; अंति: केवलज्ञानी भवति. ६. पे. नाम. सत्तरी कर्मग्रंथ सह अवचूर्णि, पृ. ३८अ-५६अ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नउईउ, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: सिद्ध० सिद्धान्यविचल; अंति: माह दुर० जो० स्पष्टे. २६०७१. (+) चंदराजा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १७-१८४४४-४५). श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: सुखकर साहेब सेवीयें; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१८ की गाथा-२ (कुल गाथा-७३७) तक लिखा है.) २६०७२. (+) स्तुतिचौवीसी, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२-१३४३२-३५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक नहीं है.) For Private And Personal use only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २६०७३. (+४) चउशरणपयन्ना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पठ. श्राव. वीरजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, ५X४० - ४३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुः शरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्य व्यापरनइ विषय; अंति: मोक्षना सुख पामी. २६०७४. चित्रेसनपद्मावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२५x१०.५, १४-१५४४२ - ४८ ) . चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक - १७० तक लिखा है. ) २६०७५. आराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. पं. नेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५x११, ४-६४३६-३८), पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा - ७०. पर्यंताराधना-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने कहिस्य; अंतिः ते पामै शाश्वता सुख. २६०७६. गर्भवेलि चतुःपदी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६X११, ९-१३X३६-३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गर्भवेलि, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: ब्रह्माणी वर आलि मझ; अंति: धर धर्म थकी मुज जोडि गाथा- ११४. २६०७८. (+) मुनिगुणमाला, चतुर्विंशतिजिन स्तवन, अनाथीऋषि सज्झाव व दुहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७५, चैत्र शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ४, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४००, दे., (२५X११, १७ - १८४६). १. पे नाम. मुनिगुणमाला, पृ. १अ - ८अ संपूर्ण. ४०७ साधुगुणमाला, आव. हरजसराय जैन, पुहिं., पद्य, वि. १८६४, आदि: श्रीत्रैलोकाधीस को; अंति: गाया नाथजी आस पूरे, गाथा - १२५. २. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ८अ - ८आ, संपूर्ण. २४ जिन लावणी, मु. विनयचंद, रा., पद्य, आदि: समर समर जिनराज समर; अंति: विनयचंद वंदत चरना, गाथा - ९. ४. पे नाम. दुहा, कवित, छप्पय, पृ. ८अ + ८आ, संपूर्ण. काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. गाथा - १३. ३. पे नाम, अनाथीऋषि सिज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण, अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंतिः वंदे रे बे कर जोड, २६०७९. (+) इकवीसगुणठाणा सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७५२, पौष कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८ - १ ( १ ) = ७, पू. वि. गाथा १ से ५ तक नही है., ले. स्थल. बीलाडा, प्रले. ग. अमरविजय (गुरु ग. गजेंद्रविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. श्लो. (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६X११.५, ५- ७३२-३८). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति असेस साहारणा भणिया, गाथा- ६९. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: भणिवा क० कड्या. लोकसागर (गुरु For Private And Personal Use Only .प्र. मु. २६०८०. शोभन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८७५, आषाढ़ शुक्ल, २ गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. व्यालपूर, - पं. विवेकसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५४११, १३३३ ४० ). शोभन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति - २४, श्लोक- ९६. २६०८१. सूदर्सणसेठ रा कवित, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९ - २ (१ से २) - ७, प्रले. पं. ज्ञानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२५x११, १७x४५-५१), Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: कहै एम दीपो कवित्त, गाथा-१२४, ___ (पू.वि. गाथा-१ से २८ तक नहीं है.) २६०८५. (#) जिनचैत्य तथा जीर्णचैत्य बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १८६६, भाद्रपद कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. पादलिप्तनगर, प्रले. मु. धनसागर; पठ. श्राव. खिमाशाह जेठाशाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १०x२८-३०). जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, आदि: हवें पूर्वोक्त शुभ; अंति: पूजा रात्रिजागरण करे. २६०८७. श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, दे., (२५४११.५, ९x४४). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कुलश्लोक-८१ तक है.) २६०८९. मेणरेहासती रोरास, संपूर्ण, वि. १८७५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. पं. लालरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४११.५, १३४३६-३८). मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: विसन सातमो परनारिनो; अंति: समत बांध्यो प्राणी, गाथा-१६१. २६०९२. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. मु. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ३-४४४७-५०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदिः (१)प्रणम्य परमानंददायकं, (२)भक्ता० यः संस्तुत०; अंति: (१)संख्या निवेदिता, (२)मायातीति मंगलम्, ग्रं. ६१६. २६०९३. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१-१५(१,१२ से १७,३१ से ३८)=३६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., गाथा-३०५ अपूर्ण तक है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५४११.५, ३-४४३२-३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-). बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६०९४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७६०, मुनिचंद्ररसशतमिति, ?, माघ शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २१५-२३(१,५७,६४,१७१ से १९०)+१(५३)=१९३, पू.वि. प्रथम अध्ययन गाथा-५ अपूर्ण व अध्ययन-३३ गाथा १८ से अध्ययन-३६ गाथा ५८ अपूर्ण तक नहीं है., प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ५४३५-३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (१)पुवरिसी एव भासंति, (२)त्ति बेमि, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एह वचन भाष्यकारनउ. २६१००. (+) सप्ततिशतस्थान प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-५(६ से १०)=७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४५०-५२). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदि: सिरिरिसहाइ जिणिंदे; अंति: जाइ सो सिद्धिठाणे, गाथा-३५८, ग्रं. ५००, (पू.वि. गाथा-१५२ से ३०३ तक नहीं है.) २६१०२. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, दे., (२४.५४११, २२-२३४४७-४९). बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६१०५. पंचाशक प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, ११४३३-३४). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाण सावग; अति: (-), (पू.वि. प्रकरण-१७ गाथा-३९ तक है.) २६१०६. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०२, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. विक्रमपूर, प्रले. मु. केसरीचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, ५-६४३४-३९). For Private And Personal use only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: आवस्सही इच्छाकारेण; अंति: खमामि सव्वस्स अहयंपि. साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: आ० सावधआन थयो; अंतिः स० सर्वने अ० हूं पिण. २६१०८. ज्योतिषसार- प्रथम प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०, जैये. (२४४११.५, ८- ९४३८-४१). ज्योतिषसार आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति (-), प्रतिपूर्ण, २६११०. विमल सलोको, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैवे. (२४.५x११, १२-१६x२७-३९). " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विमलमंत्री श्लोक, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरूं बे करजोड; अंति: विनीतविमल गुण गायो, गाथा- १११. २६११२. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४x११.५, २१ - २२x५०-५१ ). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंतिः (-), ( पू. वि. अध्ययन - ९ उद्देश - २ गाथा - १९ तक है.) " २६११५. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ३६, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२६११.५, १५४५२ - ५४). उत्तराध्ययन सूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंतिः ति बेमि, प्रतिपूर्ण, २६११६. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ + कथा व मंत्र, अपूर्ण, वि. १८३८, पौष शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १७-११ (१ से ११)=६, पू.वि. श्लोक २९ तक नही है., ले. स्थल. नाडोल, प्रले. मु. खुस्यालचंद (गुरु पं. अनोपरत्न, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, ७-१२X४०-४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ+कथा, मु. विनयसुंदर, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंतिः प्रगट जणाव्यो. भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४०९ २६११७. (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९४२, कार्तिक शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दे., ( २४.५x११.५, १३४३२-३५), श्रीपाल चरित्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं; अंति: श्रीसद्गुरु प्रसादतः, प्रस्ताव - ४. २६११८. नयचक्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६५, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल. वैराट, जैवे., (२५x१२, १५४४९-५२). नयचक्र-भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: स्यात्कारमुद्रिता; अंति: लोह सुवर्ण न थाइ, प्र. ६०९. २६११९. बंभणवाडनीसांणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., ( २४.५X११.५, ११-१२X३०-३१). महावीरजिन निसाणी- वामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसत्ती सेवग; अंति: हुइ हर्षमाणिक्य मुनि, गाथा- ३७. २६१२०. पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२४x१०, ९X३८-४७). पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंतिः प्रीत्यपलापने किं श्लोक-१३५. २६१२३, (+) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-२ (१ से २) ९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., - (२५.५x११.५, १२४३०-३३ ). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२७ से १२७ तक है.) २६१२४. (+) धर्मजिन स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७६३ श्रावण कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. आऊआ, प्रले. पं. भूपतिसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- त्रिपाठ., प्र. ले. श्लो. (५०६) वादुशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५x११, १५-१६४५५-६५). साधारणजिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमन् धर्म श्रय; अंतिः श्रियं देहि मे श्लोक - ८. साधारणजिन स्तव अवचूरि, मु. रूपचंद्र, सं., गद्य, आदि: नत्वा जिनेंद्रचरणं; अंतिः विशोध्यं मनीषिभिः, ग्रं. ३००, For Private And Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६१२५. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६४११.५, १०४३८-४०). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखकज वासिनी; अंति: फल चुंणीयो रे, ढाल-१७, गाथा-१०८. २६१२८. नवपद पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९२१, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. मु. अजबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, ८x२९-३०). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: प्रथम बल बाकुल करी; अंति: सिद्धिचक्क नमामि. २६१३०. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. अजबचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, ५-९४३५-३८). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम भूमि शुद्धि; अंति: सारखी कही सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०. २६१३१. शिखरगिरि रास, संपूर्ण, वि. १९२३, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २०, ले.स्थल. जोधपूर, प्रले. पं. चोथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, ९-१०४२१-२४). सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. सत्यरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: अजितादिक प्रभु पाय; अंति: करु ए भवपार उतार, ढाल-७. २६१३२. (+) श्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ३४३१-३२). औपदेशिक श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्मे रागः श्रुतौ; अंति: स्वस्वक्रिया तत्पराः, श्लोक-६५. औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत असरणसरण; अंति: एकली क्रिया निफल छे. २६१३३. (+) दीपावली कल्पसह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-१(२२)=२८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३०९ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ६x२९-३३).. दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: (-). दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी; अंति: (-). २६१३४. (+) स्नात्र पूजा सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८०६, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१)=१७, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. ग. विनीतविजय (गुरु मु. नेमविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ४४२८-३१). स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पयाहिणं दितो. स्नात्रपूजा सविधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सूर्यसमान ए भाव छे. २६१३५. भंगरत्नावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५४११.५, १७४५१-५७). भंगरत्नावली, मु. गांगेय, मा.गु., गद्य, आदि: छेहला लघुने गुरु करो; अंति: सर्व भांगा हुवै. २६१३६. नवकलश पूजा व औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७२, फाल्गुन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, ले.स्थल. द्रोणपुर, प्रले. मु. जुक्तसागर; पठ. मु. फतिंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १२४३३-३७). १. पे. नाम. नवकलश पूजा, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (१)कोई नये न अधूरी रे, (२)अम तणा नाथ चिरंजीवो. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. जिनपद्म, मा.गु., पद्य, आदि: मान तज आत्म दिल हंदी; अंति: कहे जिनपद्म ससनेही, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. जिनपद्म, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन जिन ध्यान धरम; अंति: कहे जिनपद्म कर जोडी, गाथा-३. For Private And Personal use only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २६१३७. स्तवनवीसी व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १० - ४ (१ से ४) = ६, कुल पे. २, ले. स्थल. पाली, प्रले. पंडित, नयविजय पठ, श्राव, दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११.५, १०x२८-३३ ). १. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. ५अ १० आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वाचक जश इम बोले रे, स्तवन- २०, ( पू. वि. स्तवन-१ से ८ नहीं है. ) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १०आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह -, सं., प्रा., पद्य, आदि: ( - ); अंति: (-). २६१४४. (#) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १८६५, कार्तिक शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले. स्थल. बांता, प्रले. मु. तिलोकहंस; पठ. मु. दीपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५x११.५, १४४३२-३५ ). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ: अंति: जैनं जयति शासनं, (प्रतिपूर्ण, पू. वि. मात्र कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.) २६१४५. (+) संबोधसत्तरी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८०४ माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, रोझडा, प्रले. पं. सकलरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, ७X३७-३८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरु; अंतिः सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा - ७२. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तीन; अंति: पामइ इहां संदेह नही. २६१४६. (*) नववाडि सज्झाय व गृहबिंब लक्षण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११.५, १४-१५X३०-३२). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १अ - ७अ, संपूर्ण. मु. पद्म, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि अनंत चोविसी जिन नमः अंतिः पद्म कहे ए सज्झाय रे. २. पे नाम, गृहविंव लक्षण, पृ. ७आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथातः संप्रवक्ष्यामि; अंति: चारित्रे० नमः स्वाहा. २६१४७. रत्नचूड चौपाई व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६९, माघ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, ले. स्थल. तारापुर, प्रले. मु. नित्यलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५.५४११.५, १५४३८-४७). १. पे. नाम. रत्नचूड चौपाई, पृ. १आ-२०अ, संपूर्ण. मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: स्वस्ति श्रीसोभा; अंति: संपद लील कल्याणो रे, ढाल - २४. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २०आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, सं., प्रा., पद्य, आदि: (); अंति: (-). २६१५०. तपफल व षट्आरास्वरूप वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८, कुल पे. २, दे., (२५x१२, १०x२२-२४). १. पे. नाम. तपफल, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भगवती शास्त्रोक्तं; अंतिः तपनो उद्यम करवो. २. पे. नाम. षट् आरास्वरूप कथक, पृ. ३अ -८आ, संपूर्ण. ४११ महावीरजिन स्तवन- छट्टाआरानुं, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाए नमी; अंतिः देवीदास०] संघमंगल करो, ढाल ५, गाथा - ६४. For Private And Personal Use Only २६१५१. शाश्वता जिनप्रासाद जिनपडिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदे., (२५.५x१२, ८-१०x२२-२७), शाश्वतजिन स्तवन, मु. माणिकविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: वीर जिणेसर पाय नमी; अंतिः माणिकविमल संपति घणी, दाल-७, गाथा- ८५. Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६१५३. नारचंद्रसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रावण कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. रीयां, प्रले. मु. सेवा (गुरु मु. रत्नचंद्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२५.५४१२, १५४४३-४९). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: कुसल चउत्थं ठामि, श्लोक-३०७. २६१५४. (+) खंडाजोयण बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, १४४४०-४५). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: लाख जोयणनो जंबूद्वीप; अंति: (-). २६१५६. (+) द्वादशव्रत टिप्पणक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११.५, १०४३१-३४). द्वादशव्रत टिप्पणक, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: त्याग करु छु. २६१५७. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१२, २०-२३४६९-७५). विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६१५८. पट्टावली सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६०, माघ कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. वेडनगर, प्रले. ग. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. द्विपाठ., दे., (२६४१२, १२४४३-४७). तपागच्छ पट्टावली, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतो सुहहेउ; अंति: संपइ तह विजयरयणगुरु, गाथा-२०. पट्टावली तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ए श्रीपजूसणकल्प गुरु; अंति: पोते बिराजमान छे जी. २६१५९. २४ द्वारे अल्पबहुत्वद्वार कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२५४११.५, १७-२१४३०). २४ द्वारे अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंदिय काए जोग; अंति: आहार० संख्यात गुणा. २६१६०. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला - कांड १ से २, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, प्रले. मु. भाणचंद (गुरु पं. देवचंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११.५, १३-१५४२८-३३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २६१६१. सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, दे., (२५४१२, ८x२५-२९). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: नमामि साहम्मिया तेवि, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. नमिऊण व उवसग्गहरं स्तोत्र नहीं है.) २६१६२. (+) षद्रव्यपरिणाम विचार, गाथा संग्रह व गत्यादि २४ द्वार कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, २५४२७). १. पे. नाम. षद्रव्य विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ६द्रव्यपरिणाम विचार, प्रा., पद्य, आदि: परिणामि जीव मुत्ता; अंति: सुद्धबुद्धिहि, गाथा-३. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३. पे. नाम. गति आदि २४ द्वार कोष्ठक, पृ. २अ-९अ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). २६१६३. नववाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, लिख. मु. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ९-१०४२०-२३). नववाड सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: नमुरे नमुं सो वार, ढाल-१०. २६१६५. चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, दे., (२४४१२, १०-११४२३-२७). For Private And Personal use only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई २६१६६. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, दे., (२४.५४१२, ११७२१-२३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २६१६७. (#) जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३९-४०). १.पे. नाम. जीवविचारसूत्र प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २.पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. ३अ-६आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-९८. २६१६८. पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, दे., (२५.५४११.५, ९-१०४२५-२६). आवश्यकसुत्र-प्रत्याख्यानसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सुरेनमुकारसिय; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. २६१६९. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७, कार्तिक कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. आगरा, प्रले. मु. हुकमीचंद (गुरु मु. हुलासराय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, ४-५४३२-३४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, श्लोक-१०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार कडुयावृक्षना; अंति: ते कुण सो मोक्षनउ. २६१७०. वसुदेवहींडि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२४.५४११.५, १८-२०४३८-४२). वसुदेवहींडी, मा.गु., गद्य, आदि: देशविरति सर्वविरति; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २६१७१. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ (स्थानकवासी), संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ४-११४३१-३८). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (१)पहिला तो बिछावणा, (२)इच्छाकारेण संदिसह; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इ० पोतानी इच्छाई; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम कुछेक अंश का टबार्थ नहीं लिखा है.) २६१७२. ध्यानद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १८५८, भाद्रपद शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. मु. गुणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२, ११-१२४३०-३३). ध्यानद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम चार प्रकारना; अंति: ध्याननां बे भेद लाभे. २६१७५. बालचंदबत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १०-११४२७-३५). अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर पद परमेसरकुं; अति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ तक है.) २६१७७. सिंदूरप्रकरसह टीका, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र कृष्ण, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, दे., (२५.५४१२, १४४३९-४०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्, श्लोक-१००. सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: (१)श्रीमत्पार्श्वजिनं, (२)पार्श्वप्रभोः श्री; अंति: च समाप्तोयं सोमशतकः. २६१७८. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८४९, वैशाख कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. कूयर, प्रले. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, १३४३०-३४). स्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन-२४. For Private And Personal use only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६१७९. उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ३६, संपूर्ण, वि. १९०४, वैशाख शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. सोजत, प्रले. सा. लछमा; पठ. सा. रंभा (गुरु सा. केसरश्रीजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, २०-२१४३८-४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. २६१८०. (+) वसुधारा विधि, संपूर्ण, वि. १८७३, गुणाद्रि सिद्धि पृथ्वी, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. हिदराबाद, राज्ये गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि प्रले. पं. न्यायविशाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (४१०) लेखक पाठक वाचकानां, (८००) तैलाद्रक्षेत् जलाद्रक्षेत्, दे., (२५४१२, १०x२७-३४). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: सर्वसौख्यं करोति. २६१८२. शोभन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८५४, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४१२, १३४४६-५०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. २६१८३. (+) विवेकविलास सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२९, श्रेष्ठ, पृ. ७४, ले.स्थल. समीनगर, प्रले. पं. माणिक्यविजय (गुरु ग. वनीतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवीर प्रसादात्. श्रीसामला पार्श्वनाथजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ८४३९-४१). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस; अंति: लोकोत्तरं शाश्वतम्, उल्लास-१२, ग्रं. ११९३, (वि. १८२९ कृष्ण, ८, रविवार) विवेकविलास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ग्रंथकर्ता कहे छइ; अंति: उंचं निरंतर पद, (वि. १८२९ शुक्ल, ७, रविवार) २६१८४. मत्सोदर रास व यंत्र, संपूर्ण, वि. १८३७, चैत्र कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. २, ले.स्थल. कोराल, प्रले. भगवानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४१२, ११४३०-३१). १. पे. नाम. मत्सोदर रास, पृ. १आ-३१अ, संपूर्ण. मत्स्योदर रास, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर जाणी योग्यता; अंति: भला जे राखे आधार हो, खंड-२. २. पे. नाम. यंत्र, पृ. ३१आ, संपूर्ण. __ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २६१८७. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, प्रले. ग. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १४-१५४४२-४४). १.पे. नाम. आठदृष्टि स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणेजी, ढाल-८. २.पे. नाम. प्रथमजिनवीनती, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: जोग न मांड्यो मै घर; अंति: देज्यो श्रीजिनराज, गाथा-२६. ३. पे. नाम. गुरुसद्दहणा स्वाध्याय, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चड्या पड्यानो अंतर; अंति: मति नवी काची रे, गाथा-४१. २६१९२. अक्षरबावनी व दूहो, संपूर्ण, वि. १९३६, कार्तिक शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. करीकसवो, प्रले. मु. रूपचंद्र; पठ. सा. जडाव (गुरु सा. रुपा), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १४-१५४४१-४४). १. पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: ॐकार अपार अलख्य; अंति: बावन अक्षर बावनी गाई, गाथा-५७. २. पे. नाम. दुहो, पृ. ५आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. For Private And Personal use only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४१५ २६१९३. पजंताराहणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. रंगसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमाणिभद्रजी प्रसादात्., दे., (२४.५४१२.५, ५-६४२४-३४). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. २६१९५. सिंदूरप्रकर की भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, दे., (२३.५४१२, २६-२७४३९-४५). सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १६९१, आदि: सोभित तप गजराज सीस; अंति: वानारसि० विस्तार, गाथा-१०४, ग्रं. ३७५. २६१९७. अणुत्तरोववाईदसांगसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२४४१२, १८-२०४३३-३८). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-३३. २६१९८. विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं दिया है. पत्रों की गिनती करके अनुमानित नंबर दिया गया है. प्रारंभ के कुछ पत्र न होने से पत्रांक १ अनुपलब्ध रूप में माना गया है., दे., (२६.५४१२, १३४३५-३७). विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६२०१. उपदेशबावनी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. हासी, प्रले. मु. मोतीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२.५, ८४५०-५४). अक्षरबावनी, वा. किशन, पुहिं., पद्य, वि. १७६७, आदि: ॐकार अमर अमार अविकार; अंति: किसन कीनी उपदेशबावनी, गाथा-६२. अक्षरबावनी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ॐकार पद पांचने समवाय; अंति: उपदेस बावनी कीधी. २६२०२.(+) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रावण शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. पाली, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (७९१) जब लग मेरु अडग है, जैदे., (२५४१२.५, ४-५४२६-२८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५०. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: अनेकसिद्ध ऋषभदेव १५. २६२०३. आत्मप्रबोध सह अनुक्रमणिका, संपूर्ण, वि. १९२५, भाद्रपद शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २११, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. आ. जोरा; पठ. पं. कुशलनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२.५, १४४३१-३७). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदि: अनंतविज्ञानविशुद्ध; अंति: सद्बोधभक्तिभृता, प्रकाश-४. आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, आदि: तत्राद्य प्रकाशे; अंति: गमोद्भवा अष्टौ गुणाः. २६२०५. ग्यानपंचमी देवंदनविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्रले. मु. दीपसागर (गुरु ग. गुणसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, ९-१२४३२-३३). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: संघ सयल सुखदाइ रे. २६२०६. (+) ज्ञानपंचमी देववंदन व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. केशरीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२.५, ९-१२४२४-२६). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन, पृ. १आ-१५अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्यजिनेश; अंति: संघ सयल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. For Private And Personal use only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४१६ २६२०८. (+) अंतगडदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३९, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६६, ले. स्थल. आगरा, प्रले. सा. लक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४x१२.५, ७X२५-३३). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं, अध्याय - ९२. अंतकृद्दशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेइ चउथा काल तिसही; अंति: कही त्यो ते जाणनी. २६२०९. (+) पंचदंड रास, संपूर्ण, वि. १९४०, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ७८, ले. स्थल. मक्सूदाबाद, प्रले. मु. छत्रचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र. ले. श्लो. (१६८) अधौ मुखी कटी ग्रीवा, ( ७९४ ) कडि कूबड टेढा करी, (७९५) जिह्यध्रुवसावरचंद, दे., (२५, ५x१२.५, १९३२ - ३७ ), विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदिः प्रणमु पासजिणंद पय; अंतिः अहनिस उत्सव रंग वधाई, खंड - ६ ढाल ७४, गाथा - २२४७, ग्रं. ३५९७. २६२१०. जंबूकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, वे (२४४१२, ७-१२४३३-३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - " जंबूस्वामी चरित्र, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: शारद मायने प्रणमुं अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल -५ गाथा - ५ तक लिखा है.) २६२१२. धनाशालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल. रांणावस, प्रले. मु. हुकमचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. ले. लो. (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा, जैवे. (२५.५४१२.५, १५४३८-४२). " शालिभद्रमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंतिः मनवंछित फल लहस्येजी, ढाल २६. २६२१५. पच्चीस बोल, संपूर्ण, वि. १९३६, माघ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. मंबइ, प्रले. उपा. कल्याणनिधान; पठ. पं. गुणपद्य, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२४.५x१२.५, १३४३४-३८). " २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले गत ४ नारकी; अंति: पाणी देवा की मरजाद. २६२१७. भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ९० - २५ (१ से २५) = ६५, पू. वि. चैत्यवन्दन भाष्य गाथा-४२ तक नहीं है., ले. स्थल. पाली, प्रले. मु. हर्षचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४x१३, २x१९-२४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य - ३, गाथा - १०९. भाष्यत्रय - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पामइ बाधा पीडारहित. २६२१८. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, दे., ( २४x२२.५, १३x२६-३० ). स्तवनचीवीसी, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि ऋषभ जिणंदा ऋषभ अंतिः मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन- २४. २६२२०. मृगावती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदे., ( २४.५x१३, १२X३१-३७). मृगावती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड ३ डाल ३७, ग्रं. ११५०. २६२२१. आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३२, भाद्रपद शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०९, ले. स्थल. मेडता, प्रले. पं. गंभीरनिधि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१३, ६- १५X३८-४२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं; अंतिः दुक्कडं तस्स, , श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय का बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य वि. १७५१, आदि: बार गुणे करि सहित; अंति: योंतेवासी मुख्यसुधीः. २६२२३. चतुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९३७, वैशाख शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. उंडरी, प्रले. मु. अभयसागर ( गुरु पंन्या. रूपसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २४x१२.५, ११-१२x२४-२६). चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: चोमासा तीन जाणवा; अंतिः मिच्छामिदुक्कडं देवो. २६२२४. गोडीपार्श्वनाथ वृद्धस्तवन व शत्रुंजयउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., (२५x१३, १२X३०). १. पे नाम, गोडीपार्श्वनाथजी वृद्धस्तवन, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org ४१७ पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी ब्रह्मावादिनी; अंति: जिणनाम अभिराम मंतैः, ढाल - ५, गाथा - ५५. २. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ रास, पृ. ४अ - ९आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी अंतिः ए सुणतां आनंद धाय, ढाल - ६. २६२२५. दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५X१३, १२X३०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति भ० सुप्रसादो रे, बाल ५. " २६२२७. (+) प्रज्ञापनासूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें त्रिपाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२६१३, १५-१९४४५-४७). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञापनासूत्र टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति नमदमरमुकुटप्रति अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २६२३८. जीवविचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, दे. (२६.५x१४, ६१८-२२). - जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिकण; अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. २६२४१. नवकार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९६३, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्रले. मु. अनोपचंद ( गुरु मु. हुकमचंद ), प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२७४१४, १५-१६x४२-४३), नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद - ९. नमस्कार महामंत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: एसो पंच क० ए पांच अंतिः मोक्षनगरे जावो. २६२४५. जातकपद्धत्ति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, दे., ( २६.५X१३.५, ८- १३x२१ - २८). जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक - १०० अपूर्ण तक है. ) जातक पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करीने; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-६ अपूर्ण तक लिखा है.) २६२४६. शत्रुंजय उद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. एवला, प्रले. य. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३, ७-८x२२-२४), शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नवसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: बिमल गिरिवर विमल अंतिः करेवी देहि दंसण जौ, ढाल - १२, गाथा - १२५. २६२४७. वर्णमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. अहमदाबाद, प्रले. रूपचंद वैश्य, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३.५, ६४१४-१६ ). वर्णमाला, मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ; अंतिः श्श ह्ह ल्लं क्ष्क्ष. २६२४८. चैत्रीपूर्णिमा व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९५६, भाद्रपद कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., ( २६४१३, १५x५०). चैत्री पूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., गद्य, वि. १८६९, आदि: तीर्थराजं नमस्कृत्य; अंतिः च सदा श्रेवो भवतु. For Private And Personal Use Only २६२५५. वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, जैदे., ( २६.५X११, १३४४५-५१). वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित संभव जिनो; अंतिः सिरि संघ सुखविजय लहो, डाल-५६. Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६२५६. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८७८, कार्तिक कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. फलोधि, प्रले. मु. हुकमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३७-४१). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: भलो होसी सत्य माने. २६२५८. (+) श्रीपाल रास, पूर्ण, वि. १८८१, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ७५-३(१,६३ से ६४)=७२, ले.स्थल. बीजापूर, प्रले. ग. गुलाबविजय (गुरु ग. निधानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (६१) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, (६५५) जलात् रक्षेत् स्थलात् रक्षेत्, जैदे., (२७७१३.५, ६-७४३५-४०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (१)लहसे ज्ञान विशाला जी, (२)च्यार खंड सुहायाजी, खंड-४ ढाल ४१. श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्ष पदवी पामसे, (पू.वि. टबार्थलेखन प्रारंभ पत्रांक २५ से किया है.) २६२५९. रघुवंश काव्य की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७४१३, १५-१८४३६-४१). रघुवंश-सुबोधिका टीका, ग. श्रीविजय, सं., गद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपार्श्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक ___ द्वारा अपूर्ण., मूल श्लोक-२२ तक टीका लिखी है.) २६२६०. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२६४१३, १२४३४-३७). __गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: संपजै कुरला करै कपूर, गाथा-५५. २६२६३. वीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२७४१३, ११४३१). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: नामे लहे अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५५. २६२६५. श्रावक बारव्रत व चौदअतिचार ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, कुल पे. २, दे., (२७७१३, ६४१८-२३). १. पे. नाम. श्रावक बारव्रत ढाल, पृ. १अ-७०अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: पांच अणुव्रत परवरया; अंति: व्रत दीधो उलखायजी, ढाल-१२. २.पे. नाम. १४ अतिचार ढाल, पृ. ७०अ-७६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चवदै अतिचार ग्यानरा; अंति: तो आराधक थाय हो, गाथा-३१. २६२६६. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५८, ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, पृ. ८८, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मोतिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (७९७) जलात् रक्षे थलात् रक्षे, जैदे., (२६४१३, २-४४३०-३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-४२०. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने अरिहत; अंति: जयवंति प्रवर्तो. २६२६९. ज्योतिषसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८३, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४१, ले.स्थल. ऐमंदा, प्रले. मु. नरसिंघ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ३-६४३२-३३). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: भवत्सिद्धिकरस्तदा, श्लोक-३८१, संपूर्ण. ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशब्द छई सुपुज्य; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___टबार्थ श्लोक-३५८ तक लिखा है.) २६२७०. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९०९, फाल्गुन शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ.८, प्रले. मु. सुयश, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२, -१४-१). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: भो भद्र कए सुकन; अंति: शुकन उत्तम छे फलस्ये. २६२७१. सम्यक्त्व विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२५.५४१२.५, १७४४७-५०). सम्यक्त्वविचार, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै जीवनें; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal use only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २६२७३. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३२-३६). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: ज्योति सकल जग जागती; अंति: लीला सवि सुख साजई, ढाल-१७. २६२७४. नयप्रदीप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४३८-४३). सप्तभंगीनयप्रदीप प्रकरण, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: नानास्वभावेभ्यो; अंति: सौख्यकृते सततं सताम्. २६२७६. सत्ता[बोल व बासठीयो विचार, संपूर्ण, वि. १९२४, वैशाख कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. देपालपुर, दे., (२६४१२.५, १४४३८-४०). १. पे. नाम. सत्ताणुं बोल, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आगमीया कालरा केवलीया; अंति: साखसूत्र भगवती. २. पे. नाम. बांसठियो विचार, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण.. ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गई इंदिय काए जोए वेए; अंति: अज्ञान ३ लेश्या ६. २६२७७. नवपद खामणा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६४१२, ११-१५४३०-३६). नवपद खमासणा विधि, सं., गद्य, आदि: स्वर्ण सिंघासन स्थित; अंति: (-), (पू.वि. चारित्र पद तक ही है.) २६२७८. अष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्रले. पोकरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १२४४९-५१). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदिः स्मृत्वा पार्श्व; अंति: परंपरा करगामिनि भवति. २६२८०. षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२०, माघ शुक्ल, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. कुचेरा, प्रले. पं. गंभीरसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ५-६४३८-३९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिह० पंचिंदिय; अंति: उहवंति सेससु चत्तारि. आवश्यकसूत्र-श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभोजसागरगुरुणा; अंति: मिथ्यात फोकट होज्यो. २६२८१. प्रतिष्ठाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदे., (२७४१२, १३-१४४४२-४५). प्रतिष्ठा विधि संग्रह, सं.,मा.गु., पद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्व; अंति: अर्धे विसर्जन कीजे. २६२८२. मयणरेहा रास, संपूर्ण, वि. १९०३, फाल्गुन शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. आगरा, दे., (२६४१२, १८-१९४३२-३७). मदनरेखासती रास, मु. हीर ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: जुवा दारू मास तणा कर; अंति: दुक्कडामोईयो, गाथा-१७१. २६२८३. (-) गजसुकमाल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, कार्तिक कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. जालोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पाठ अशुद्ध और अक्षर अस्पष्ट होने से प्रतिलेखक का नाम नही पढा जा रहा है., अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१२, १७२३२-३३). गजसुकुमाल रास, मु. कानजी, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: भदलपुर पधारीया बावीस; अंति: सुभग्यान० कान हरे, ढाल-१४. २६२८४. स्थूलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४१२.५, १३४४३-४९). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ सवि फल्या रे, ढाल-९. २६२८५. (+) नंदीश्वरद्वीप पूजनअर्चन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४१२.५, ११-१३४४२-४८). For Private And Personal use only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदीश्वरद्वीप ५२ जिनप्रसाद स्तवन, ग. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: स्वस्ति श्रीसुखकरण; अंतिः शिवचंद ०० पूजा मनरंग. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६२८७ दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९९८, माघ कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल, आनंदपुर, प्रले, सा. मकुजी (गुरु सा चीमनाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६४१२.५, २०-२२X४०-४८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन- १०. २६२८८. कर्मविपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, पू. वि. प्रतिलेखकने मात्र प्रथम गाथा का टबार्थ लिखा है., भु. . हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२, ३-५X३१-४३). प्रले. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरजिणं बंदिय; अंतिः लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६०. २६२९० अदार पापस्थानक सज्झाय व वासठवोल गाथा संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, जैदे., ( २६५१२.५, १३X३१-३३). १. पे. नाम. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, पृ. १अ - १०अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलुं कहि; अंति: सेवक वाचकजस इम आखेजी, सज्झाय - १८, ग्रं. २२५. २. पे. नाम. बासठ बोल गाथा, पृ. १०अ, संपूर्ण. ६२ बोल गाथा, प्रा., पद्य, आदि: गइ इंदिए काए जोए वेए; अंति: भवसम्मे सन्नि आहारे, गाथा - १. २६२९१. (+) दीपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, मध्यम, पृ. २७, ले. स्थल. सांगर्या, राज्यकाल रा. गोविंदसींघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४१२.५, ७४२८-३१), दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: संतु श्रीवर्द्धमान; अंतिः याण वल्लि फलदा भवंतु, श्लोक - ३१३, (वि. १८९५, पौष शुक्ल, ७, रविवार) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्धमान स्वामीनइ; अंति: वेलि फल को देणहार, (वि. १८९५, माघ कृष्ण, २) २६२९२. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदे., (२७x१२, ११३६-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स; अंतिः भवसिद्धिय संबुडे, अध्ययन- ३६, ग्रं. २०९५. , २६२९४. (+) पाक्षिकसूत्र, खामणा व अतिचार गाथा संपूर्ण, वि. १९४५, पौष शुक्ल १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. ३, प्रले. छबील वीरचंदजी व्यास लिख, मु. वृद्धिचंदजी (गुरु मु. बुद्धिविजय", तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५X१२, १२X३७ - ४२ ). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ- १२आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: तित्यंकरे अ तित्थे; अंति: जेसिं सुवसायरे भत्ति. २. पे नाम, पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १३अ - १३आ, संपूर्ण क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंतिः नित्वारग पारगा होह, आलाप ४. ३. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण अतिचारचिंतवन गाथा, पृ. १३आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंतिः वितहायरणे अईयारो, गाथा- १. २६२९५ (+) चतुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., ( २६४१२, १६४३३-३८). " चातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वसुखमागारं अंतिः कर्तव्यमिति श्रेयः, २६२९६. पृथ्वीचंद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६० माघ कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल, पेधापूर, प्रले. जेठालाल चुनीलाल भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७x१२, ११X३४-३६). For Private And Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२१ पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाय, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक सुखकर बंदी; अंतिः जीवविजय घरे ध्यान, ढाल - ३. २६२९७. आत्मआलोचना व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२६x१२, १२X४४-४७). १. पे. नाम. अढारपापस्थानक आलोचना, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. अढारपापस्थानक आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: कोई भव्यजीव कोई; अंतिः सदा अविहड हज्यो. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पू. ६अ ६आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, क. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः परम अध्यात्म जे लखे; अंति: कहे निज आतिम थिर थाय, गाथा- ४. २६२९८. रूपसेन चरित्र, संपूर्ण, वि. १८०७, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले. स्थल महीमापूर, प्रले. मु. आनंदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७९८) जलं रक्षेत् स्थलं रक्षेत्, (७९९) भग्नपृष्टी कटिग्रीवा, जैदे., (२५x१२.५, १२४३४-३६ ). कनकावतीरूपसेन चरित्र, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमतं विदूरं शातं; अंतिः येन सदा सुखं स्यात्. २६३००. महावीरजी चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. सा. सिणगारश्रीजी, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १०x२४-२९). महावीरजिन स्तवन- चौढालीयो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुल उपन्यो; अंतिः कीयो दिवाली दिने, ढाल - ४. २६३०१, (+) पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन गीता, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल, पादलिप्त, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२६४१२, ९-१४४४०-४२ ). पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन गीता, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पच, आदिः प्रणमीइं प्रेमस्युं अंतिः परमेष्टि गीता, गाथा - १३१. २६३०२. बासठमार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. *पंक्त्यक्षर अनियमित है., जैदे., (२७X१२.५). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २६३०३. पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९१२, पौष कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. सादडी, प्रले. पं. क्षमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६४१२, १०-११४३५-३७). पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: छ दाय सहायो रे. २६३०४. सप्ततिकासूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८-१ (१) - १७, पू. वि. गाथा १ से ६ नहीं है., जी., (२६.५x१२, ३-४४३३-३५). सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: ( - ); अंति: एगूणा होइ नउईउ, गाथा - ९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: उणी नेठ गाथा होइ. २६३०५. तपागच्छ पट्टावली सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल. गोत्रका, प्रले. मु. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X१२, १३ - १५X४०-४१). तपागच्छ पट्टावली, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतो सुहहेड; अंतिः संपइ तह विजयरयणागुरु, गाथा - २०. पट्टावली तपागच्छीय बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि ए श्रीपजूसणकल्प गुरु; अंतिः पोते बिराजमान छे जी. २६३०६. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. मु. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १४४५२). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्धमान तीर्थंकर; अंति: ६६ श्रीजिणंदसूरि थया. २६३१०. संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४१ श्रेष्ठ, पृ. ५३ ले स्थल. वेंड, प्रले. पं. माणिक्यविजय (गुरु ग. वनीतविजय); पठ. पं. ज्ञानविजय, मु. गलाबविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६X१२, ५X३८-४१). For Private And Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४४, (वि. १८४१, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ७) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने अरिहंत; अंति: संघयणी जयवंती वर्तो, (वि. १८४१, चैत्र अधिकमास कृष्ण, १०) २६३११. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८६९, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. कोलीवाडा, दे., (२५४१२, १४-१५४३२-३५). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति: गाता अखय संपद धरणी, स्तवन-२४. २६३१२. शांतिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२१, दे., (२६४१२, १३-१६४२८-३३). शांतिनाथ चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्व; अंति: स करोतु शांतिः, प्रस्ताव-६, ग्रं. ८०००. २६३१४. परमात्मप्रकाश सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२६.५४१२, १३४४३). परमात्मप्रकाश, मु. योगींद्रदेव, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जे जाया झाणग्गियए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक ही लिखा है.) । परमात्मप्रकाश-टीका, आ. ब्रह्मदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: चिदानंदैकरूपाय जिनाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टीका गाथा-४ तक ही लिखी है.) २६३१५. (+) विचारसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१२, ५-६४३५-४२). विचारसार प्रकीर्णक, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५७३, आदि: नमिऊण वद्धमाणं धम्म; अंति: पढिज्जमाण सुह देउ, गाथा-८८. विचारसार प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ केहनि; अंति: थकाने सुखने दिउ. २६३१७. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (२६४१२, ९४२३-२५). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, ग्रं. १३१.। २६३१८. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७९२, वैशाख शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. पं. खुशालविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १३४३६-३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं श्रीसिद्धसेन; अंति: स्फेटितपापसमूहाः. २६३१९. श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. ग. खेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १४-१५४३१-३७). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २६३२१. सुखबोधार्थमालापपद्धति, संपूर्ण, वि. १७६३, चैत्र शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. जिनविजय (गुरु पंडित. यशोविजय गणि, तपागच्छ); पठ. पं. सौभाग्यविजय (गुरु मु. जिनविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १३४४७-५०). सुखबोधार्थमालापपद्धति, आ. देवसेन, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तर; अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति. २६३२२. नवतत्त्व की भाषा, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२६४१२, १५४४४-४५). नवतत्त्व प्रकरण-भाषा, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी मनमैं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६३ तक है.) For Private And Personal use only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २६३२३. अजितशांति सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. श्रीविजयगच्छ., कुल ग्रं. ५००, जैदे., (२६.५४१२, ५-६४४२-४३). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: कित्तणे अजियसंतीणं, गाथा-४२. अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनाम दूजउ तीर्थं; अंति: करता अमितं शांतिनउ. २६३२४. चौवीसदंडक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१२, १३४३९-४०). २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो दंडक नरगतणा; अंति: (-). २६३२६. बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०३, माघ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२६.५४१२, १०४२३-२५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: स्तुयमाने जिनेस्वरे. २६३२७. तत्वार्थाधिगमसूत्र सह अवचूरि व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्रले. मु. नाथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२७४१२, ११४३३-३६). १. पे. नाम. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह अवचूरी, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुत्वत्तः साध्याः, अध्याय-१०, संपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यदा सम्यग्दर्शन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम अध्याय की अवचूरि लिखी है.) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६३३०. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४५, मध्यम, पृ. ७, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. २६३३१. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९६६, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. मुंबइ, प्रले. लक्ष्मीराम अंबाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, ११४३५-३७). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो जीवतत्त्व बीजो; अंति: अजीव ते मिश्र कहिइं. २६३३३. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र.वि. आवश्यकतानुसार कुछेक सूत्रों का मा.गु. भाषा में विवरण दिया गया है., जैदे., (२६४१२, ५४४०-४२). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २६३३७. (+) वछराजहंसराज चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६६, फाल्गुन कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. वासड, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १६-१९४४५-४९). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदि करी चोऊवीस; अंति: दिन दिन हुवइ जयकार, खंड-४. २६३३८. भक्तामर स्तोत्र का मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. भावनगर, पठ. श्राव. नथुसा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल श्लोक प्रतिपाठात्मक ही है., जैदे., (२६४१२, ११-१२४३४-३६). भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहणमो; अंति: नमः स्वाहा, मंत्र-४८. २६३३९. (+) भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८६१, भाद्रपद शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ., जैदे., (२६४१२, २-३४३८-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य परमानंददायकं; अंति: संख्या निवेदिता, ग्रं. ६९३. २६३४१. शत्रुजय रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६४१२, ११-१२४३२-३४). For Private And Personal use only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: ए सुणतां आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-१०२. २६३४२. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६३, भाद्रपद कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. नाडोल, प्रले. मु. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ४-५४३७-३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४४, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा का टबार्थ नहीं लिखा है.) २६३४३. हैमी नाममाला का शिलोंछ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४१२, १२-१३४३५-३९). ___ अभिधानचिंतामणि नाममाला-शिलोंछ, संबद्ध, आ. जिनदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १४३३, आदि: अर्ह बीज नमस्कृत्य; अंति: जिनदेव मुनीश्वरैः, श्लोक-१३९. २६३४४. विविध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १३४४२-४६). विविध विचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २६३४५. चारमंगल रास, संपूर्ण, वि. १९३२ शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, पठ. मु. खुबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, ११४३८-४२). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जे नमु; अंति: ए पामीये सुख श्रीकार, ढाल-४. २६३४८. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८५७, माघ कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पाटण, प्र.वि. श्रीपंचासरप्रभूजी प्रसादात्., जैदे., (२६.५४१२, १५-१६x४६-५२). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो; अंति: रामविजय जयसिरी लहि, स्तवन-२४. २६३५०. पंचमी व अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९४, भाद्रपद कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. पेथापूर, प्रले. श्राव. वर्धमान, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १२४३३). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भवि मंगल करे, ढाल-६. २. पे. नाम. जिनकल्याणकगर्भित अष्टमी स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. दीपकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो रे भविका जिनराज; अंति: ए आराधी शिववासरे, गाथा-१७. २६३५१. जंबूपयन्ना सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१(१)=२३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रथम उद्देश अपूर्ण से अष्टम उद्देश प्रारंभ तक है., दे., (२६४१२, ७४३४-३७). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).. २६३५२. (+) चौवीसदंडक गमाविचार यंत्र-भगवतीसूत्रे, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. *अक्षर अनियमित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२, १८x-१). भगवतीसूत्र-विचार संग्रह*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६३५४. प्रतिमादिस्थापन श्रीवीरजिन स्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-४(८ से ११)=११, पू.वि. ढाल ३ गाथा ११ से ढाल ५ गाथा १८ तक नहीं है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११.५, ५-१३४३५-४१). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा शिर वहस्ये जी, ढाल-६. महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जत्छय जं जाणिज्जा; अंति: समान छे ते सत्य छइं. . . For Private And Personal use only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४२५ २६३५५, (+) आवकाराधना, चउसरणा गीत, आलोयणछत्तीसी व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X१२, १७ - १८३७-४५). १. पे. नाम. श्रावकाराधना, पृ. १अ - ४आ, संपूर्ण. श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रपंणम; अंति: मुनिषडरसचंद्रवर्षे, अधिकार ५. २. पे नाम. चउसरणा गीत, प्र. ४आ-५अ, संपूर्ण. चउसरण गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमने चार सरणा हुज्य; अंति: कल्याण मंगलकारो जी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ३. ३. पे. नाम. आलोयणछतीसी, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि हिव राणी पदमावती; अंतिः पापथी छुटे तत्काळ, " ढाल - ३, गाथा - ३५. ४. पे. नाम. जीववैराग्य सिज्झाय, पृ. ५आ - ६आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर इम उपदिसै; अंति: इम पभणै रूपचंद रे, गाथा - २१. २६,३५७. भक्तामर स्तोत्र की भाषा कवित्तबद्ध, संपूर्ण, वि. १९९६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. अकबराबाद, प्रले. मु. रणधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५. ५४१२, १६५३८-४३). भक्तामर स्तोत्र - भाषा, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमत भगत अमर वर; अंतिः पावै सुख संपति सुथिर, गाथा- ४८. २६३५८. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९९८, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्रले. मु. रणधीर; पठ. मु. चुनिलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६X११.५, १६x३९-४३). १. पे नाम. विषापहार स्तोत्र, पृ. १अ २अ संपूर्ण, ले. स्थल. अकबराबाद. जै.क. धनंजय कवि सं., पद्य, ई. ७वी, आदि: स्वात्मस्थितः सर्वगत; अंतिः सुखानि यशोधनंजयं च श्लोक - ४०. 7 " २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण, ले. स्थल. अर्गलपुर. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंतिः मोक्षं प्रपद्यते श्लोक-४४. देन कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु., रा., गद्य, आदि: आंबिलकप्पेमाणं अट्ठम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आदिजिन १३ भववर्णन तक है.) २६३६०. (-) दशमीकालकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८३३, कार्तिक कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल, पीपाड, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., (२६४११.५, २२-२३४५३-५७). ३. पे नाम. एकीभाव स्तोत्र की भाषा, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण, ले. स्थल, भरथपुर, एकीभाव स्तोत्र-भाषा, मु. भूधर, मा.गु., पद्य, आदि: नमो आदि आदिस जिन नमो; अंति: ग्रही करौ कंठ सुखकार, गाथा - २६. २६३५९. कल्पसूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९, जैवे. (२६४१२, २७४६०-६४ ). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गइं त्ति बेमि, अध्ययन - १०. २६३६२. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, दे., (२५.५x११.५, १२-१३४३७-३८), पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: उदयापुरनगरे सूरिपदं. २६३६४. शत्रुंजयउद्धार व पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले. स्थल. पाटडीनगर, प्रले. पं. माणिक्यविजय (गुरु ग. वनीतविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, दे., ( २६११.५, १५X३७-३८). १. पे. नाम. शत्रुंजउद्धार, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आवि: ( अपठनीय); अंतिः द्यो दरिशन जयकरो, ढाल - १२, गाथा - १२४. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन- बृहत्, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-वृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमी श्रीगुरुपाय; अंतिः (-), (पू.वि. गाथा - ८ तक है.) २६३६६. (+) सातेस्मरण सह टवार्थ व गौतमस्वामी मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे २, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले. श्रो. (७२४) जलाद् रक्षे बलाद् रक्षे, जैये. (२६.५x११.५, ७- ८४३७-४०). १. पे नाम, सातेस्मरण स्तोत्र, पृ. १आ-१९अ, संपूर्ण, पू.वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है. " नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदिः नमो अरिहंताणं हवइ; अंति: जैनं जयति शासनम्, प्रतिपूर्ण, नवस्मरण-टबार्थ में, मा.गु., गद्य, आदि: जे त्रिभुवनमांहि पूज; अंतिः ए मंत्राक्षर जाणवो, प्रतिपूर्ण २. पे. नाम. गौतमस्वामीमंत्र संग्रह, पृ. १९आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह", प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). २६३६७. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पार्श्वजिन स्तोत्र सह छाया व सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १९०२ श्रेष्ठ, पृ. १७-८ (१ से ८) -९, कुल पे. ३, ले. स्थल. झाब, राज्ये आ. जिनपद्मसूरि ( भावहर्षगच्छ); पठ. मु. जुहारमल (गुरु मु. जेतसी, भावहर्षगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमत् पार्श्व प्रसादात्., प्र.ले. श्लो. (४१४) मंगलं कारका ग्रंथ, (७२४) जलाद् रक्षे थलाद् रक्षे, जैदे., (२६.५x११.५, १२४४५-५१). १. पे. नाम. खरतरगच्छीय श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है., वि. १९०२, भाद्रपद शुक्ल, १५, सोमवार. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: पयच्छउ वंछिउ २. पे. नाम, स्थंभणकपार्श्वनाथद्वात्रिंशिका स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. ९आ-११अ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णव अणिदिय, गाथा - ३०. जयतिहुअण स्तोत्र- छाया, सं., पद्य, आदि जयतात् हे त्रिभुवन; अंति: त्रिलोकलोक श्लाघित. ३. पे, नाम, सप्तस्मरण, पृ. ११आ-१७आ, संपूर्ण, वि. १९०२, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, गुरुवार, सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअ सव्वभवं; अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण - ७. २६३६९. (*) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८४४, श्रावण शुक्ल, २ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११-६ (१ से ४, ६ से ७) = ५, ले. स्थल. दासलाणा, प्रले. मु. जीतहंस ( गुरु ग. तिलकहंस); पठ. मु. रणछोड (गुरु मु. जीतहंस), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित. दे., (२५.५x११.५, १३४३८). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, स्मरण - ९. २६३७०. संख्यातादिभाव व पुद्रलपरावर्त विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., ( २६५११.५, १७४०-४२). १. पे. नाम संख्यातादिभेद विचार, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. मु. पार्धचंद्र, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि से किंतं गणण संखा: अंतिः शोधनीयमिति विज्ञप्ति. २. पे नाम, पुलपरावर्त विचार, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण, पुलपरावर्तन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: च्यार प्रकारि पुगल; अंतिः सूक्ष्मपुद्रलपरावर्त. २६३७१. सम्यक्त्वसार प्रश्नोत्तर संपूर्ण, वि. १९०३, फाल्गुन कृष्ण, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल, भरथपुर, जैदे., (२६x११.५, २३ - २५X४८-६४ ) . सम्यक्त्वसार प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: भस्मग्रह उतर्यानो; अंति: वाई ते मध्ये जाणज्यो. For Private And Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ , २६३७२. शोभन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८७४, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवे. (२६४११.५, १५४४१-४३). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति - २४, श्लोक-१६. २६३७३. बृहत्क्षेत्रसमास, पूर्ण, वि. १५९७, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २२ - १ (१) - २१, ले. स्थल. देवासनगर, प्रले. पं. पद्माकर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११.५, १२X४० - ४५) . बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: (-); अंति: सोहेबब्बो सुअरेहिं, गाथा - ३९१, ग्रं. ६००, ( पू. वि. गाथा - १८ अपूर्ण तक नहीं है. ) २६३७४. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८३७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १७६-८३ (१ से ८३ ) -९३, ले. स्थल, आगरा, प्रले. मु, महताचराय (गुरु मु. भवानजी); पठ, मु, दोलतराम ( गुरु मु. महताचराय), प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२७११.५, ९-११X५५-५६). ४२७ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंतिः सीहेणं जाव संपत्तेणं, अध्ययन-१९, ग्रं. ६०००, ( पू. वि. प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन-८ अपूर्ण से है.) २६३७५. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, प्रले. मु. धनविमल (गुरू आ. आणंदविमलसूरि); पठ. सा. कीकाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११.५, १३x४४-४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन - ३६. २६३७७, (+) ओघनियुक्ति की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २८-२३ (१ से २३ ) = ५, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६.५X११.५, २१४७२-७४). , ओपनियुक्ति- अवचूर्णि #, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३९, आदि (-); अंति: (१) भक्त्या स्वपरहेतोः, (२) पष्टा एसाअण० स्पष्टा, (पू.वि. गाथा - ८०८ तक नहीं है.) २६३७८. (*) योगशास्त्र सह टवार्थ १ से ४ प्रकाश, संपूर्ण, वि. १७६८-१७६९, श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले. स्थल, दीव, प्रले. उपा. शांतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X१२, ६×३९-४५). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. १७६९, चैत्र शुक्ल, ४, रविवार) " योगशास्त्र-वार्थ, पं. दयालसागर, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार धाउं दुधिवार; अंतिः विषे उजमाल थायइ, प्रकाश-४, (संपूर्ण, वि. १७६८, चैत्र शुक्त, ४) २६३७९. (*) नवतत्त्व सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१७, भाद्रपद शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८, ले. स्थल, आगरा, प्रले. मु. दयालदास (गुरु ऋ. ज्वालानाथ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, प्र. ले. श्लो. (१२५) अदृष्टदोषान् मतिविभ्रमाद् वा, (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., ( २६.५x१२, २०५४-६८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिकाय, गाथा - ५३. नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, मु. देवचंद, मा.गु., गद्य, वि. १७६६, आदि: (१) ज्ञानं पंचविधं, (२) जिणे करी वस्तुनो; अंति: (१) करे सुलभबोध फुनि होय, (२) जगत्रनिं शिरोमणी . २६३८१. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७६१ वैशाख कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ९-१ (३) ८, पू. वि. गाथा १४ से २२ नहीं है., प्रले. मु. दीपविजय पठ. श्रावि भागां उच्छरंगदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११.५, ४४३४-३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा- ६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, आदि: ( १ ) प्रणिपत्य जिनं गणींद, (२) ग्रंथारंभइ ग्रंथकारइ; अंतिः (१)बालजणविबोहणट्ठाए, (२) अमोघकारण मोक्षसुखनं. For Private And Personal Use Only २६३८२. (+) मुनिपति चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १८४४, भाद्रपद शुक्ल, ११, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ३३, ले. स्थल. आगरा, प्रले. मु. महताबराय (गुरु मु. भवानजी); पठ. मु. दोलतराम (गुरु मु. महताबराय ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७X१२, १७x४८- ५० ). Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: श्रीशंखेसर सुख करू; अंति: नवेय निधानो रे, खंड-४ ढाल ६५. २६३८६. कैवंनो चोपई, संपूर्ण, वि. १८३८, वैशाख कृष्ण, ३०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. आगरा, प्रले. सा. वखता, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, २१४४२-४६). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: धरम करण मन उलसेजी, ढाल-३१. २६३८७. आत्मानुशासन की अवचूरि व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. मूल पाठ प्रतिकात्मक दिया गया है., जैदे., (२७४११.५, १३४५३-५४). आत्मानुशासन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सकलत्रिभु० अहं सकल; अंति: आत्मानुशासनं कृतं. आत्मानुशासन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहं० हूं सकल समस्त; अंति: ए आत्मानुशासन कीधुं. २६३८८. बासठियाबोल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२६४११.५, १३-१४४३७-३८). ६२ बोल मार्गणा, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: श्रीगुरुवचन लही करी; अंति: सागर दीयै इम आशीस ए, ढाल-१३, गाथा-२००. २६३८९. गुणस्थानके बंधोदयोदीरणासत्ताप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १६०७, पौष कृष्ण, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मंना, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, २५-३४४१५-२०). गुणस्थानके बंधोदयोदीरणासत्ताप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ओघे वीसासउ प्रकृति; अंति: शरीर कार्मणबंधन. २६३९०. (+) संघणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६४४, फाल्गुन शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्रले. श्राव. जोगीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, ९४२८-३३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३२. २६३९१. नवतत्त्व सह टबार्थ व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५२, ज्येष्ठ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. २, ले.स्थल. अगस्तपुर, प्रले. मु. गुलाबचंद (गुरु ग. कल्याणसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुमतिनाथ प्रसादात्., द्विपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ३-१५४३०-३४). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-२०आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: लिहिओ मणिरयणसूरिहिं, गाथा-५५. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीशंखेश्वरपार्श्व, (२)जीवनुं स्वरूप ते जीव; अंति: करी वली अधिकपणे छइ. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २१अ, संपूर्ण. जैन गाथा", प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. २६३९२. (+) सूयगडांगसूत्र-श्रुतस्कंध १, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-१(२)=२८, पठ. सा. सुजाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२, १२-१६४३३-३८). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २६३९४. गोडीजी रो सोलढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२५.५४११.५, ९-१०४२९-३०). काजलमेघा चौढालिया-गोडीजीपार्श्व, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भाव धरी भजनां करूं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-९ गाथा-२ तक लिखा है.) २६३९५. (+) प्रकरण संग्रह सह टीका, संपूर्ण, वि. १६३५, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (२७४११.५, ५-१२४४६-५६). For Private And Personal use only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १.पे. नाम. वीतराग स्तोत्र सह पंजिकाटीका, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण, वि. १६३५, पौष शुक्ल, ३, गुरुवार, ले.स्थल. पत्तननगर. वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं; अंति: फलमीप्सितम्, प्रकाश-२०. वीतराग स्तोत्र-अवचूरि, मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं., गद्य, वि. १५१२, आदि: जयति श्रीजिनो वीरः; अंति: (१)तपसि गुरुपुष्ये, (२)व्याख्यात एवेति, ग्रं. ६२५अक्षर२५. २. पे. नाम. विदग्धमुखमंडन काव्य सह अवचूरि, पृ. १०अ-२०अ, संपूर्ण. विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदि: सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति: मेकांत मदनोत्तरम्, परिच्छेद-४. विदग्धमुखमंडन काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: ग्रंथादौ धर्मदासनामा; अंति: निर्मलाकाशा च. ३. पे. नाम. वाक्यप्रकाश सह टीका, पृ. २०अ-२७आ, संपूर्ण. वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं; अंति: हितो वाक्यप्रकाशोयम्, श्लोक-१२३. वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८०, आदि: (१)श्रीमजिनेंद्रमानम्, (२)प्रणम्येति० स्पष्टः; अंति: (१)हर्षकुलपंडितेन कृता, (२)सुगम मुनिगगन० सुगम. ४. पे. नाम. भिक्षुपानक अधिकार सह टीका, पृ. २७आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). जैन सामान्यकृति-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६३९६. (+) पट्टावलीसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. त्रिपाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२७४१२, १२-१४४४३-४९). तपागच्छ पट्टावली, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमंतो सुहहेउ; अंति: दिंतु सिद्धिसुह, गाथा-२१. पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: सिरिमंतोत्ति यत्तदो; अंति: शिवविजयगणिरलिखत्. २६३९९. योगशास्त्र की अवचूरि - प्रकाश १ से४, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. श्रीपत्तन, प्रले. हरखा माधव, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, २५४७४-८३). योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अत्र महावीरायेति; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २६४००. कार्तिकसौभाग्यपंचमीमाहात्म्य विषये वरदत्तगुणमंजरी कथानक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४०). वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, __ श्लोक-१४८. २६४०१. षडावश्यकसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सिद्धाणंबुद्धाणं सूत्र अपूर्ण तक है., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११.५, २-४४५२-५६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: इह तावच्छ्राद्धेनापि; अंति: (-). २६४०४. (+) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७१२, वैशाख कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. आगरा, प्रले. ग. ऋद्धिसुंदर; पठ. श्रावि. लालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३४-३८). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. २६४०५. (+) व्याश्रयमहाकाव्य सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-४२ तक है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२७४११.५, १६-१७४५६-५९). For Private And Personal use only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अर्हमित्यक्षरं ब्रह; अंति: (-). व्याश्रयमहाकाव्य-टीका, ग. अभयतिलकगणि, सं., गद्य, वि. १३१२, आदि: श्रीभूर्भुवः स्व; अंति: (-). २६४०६. भक्तामर स्तोत्र व शेषकाव्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ६-७४४२-४४). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्ता क० रागी अमर; अंति: उत्तम लक्ष्मी पामइ. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र शेषकाव्य सह टबार्थ, पृ. ५आ, संपूर्ण... भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररवपुरिदिग्वि; अंति: गुणैः प्रयोज्यः, श्लोक-४. भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: गंभीर क० गुहिर एहवो; अंति: प्रयो० क० प्रयुंजवो. २६४०७. वीरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२६, भाद्रपद शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. दलसुख रावल; पठ. श्रावि. दोलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १०४३६-३८). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-२७ भवगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: धनि कहि मुज सहि गुरु, ढाल-१०, गाथा-७७. २. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, आ. पुन्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिन मुनिवरू वांदु; अंति: पुन्नसू० गाई यशोकंत, गाथा-११. २६४०८. भाष्यत्रय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, प्र.वि. पंचपाठ. कुल ग्रं. ९५०, जैदे., (२५.५४११.५, ५-९४३१-३५). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, गाथा-१५१. भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: वंदि० वंदनीयान सर्व; अंति: पच्चक्खाणम० सुगमा. २६४०९. (+) पुण्य व कर्म छत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. मुलताणनगर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ११४३६-४१). १. पे. नाम. पुण्यछत्रीसी, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: पुण्यतणां फल परतखि; अंति: फल परतक्ष जी, गाथा-३६. २. पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करमथी को छटइं नहि; अंति: धर्म तणइ परमाणि जी. गाथा-३६. २६४१०. (+) दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५-६४३७-४१). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: सूरि खमउ तेणं, गाथा-४९. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेवने नमस्कार; अंति: हीनादि रच्यो जेणे. २६४११. भक्तामर स्तोत्र के मंत्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., दे., (२६४११.५, ११-१४४४३-४४). भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: भक्तामरप्रणत० ॐ ह्री; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम मंत्र नहीं है.) For Private And Personal use only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४३१ २६४१२. (+) जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९२८-१९२९, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, कुल पे. २, ले.स्थल. राजपुर, प्रले. मु. दोलतरुचि (गुरु मु. लालरुचि); पठ. मु. पूनमचंद (गुरु मु. दोलतरुचि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (८१८) पोथी प्यारी प्राणथी, दे., (२६४११.५, २-५४३७-३८). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १९२८, फाल्गुन शुक्ल, १३. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-२३ तक नहीं है.) २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ३अ-९आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४९, (वि. १९२८, फाल्गुन शुक्ल, १५) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलुं जीवतत्त्व जीव; अंति: ते अनेकसिद्ध कहीयेइ, (वि. १९२९, चैत्र शुक्ल, १, सोमवार) २६४१३. (+) मृषावादविरमणाधिकारे मानतुंगमानवती चरित्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३२, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. २, ले.स्थल. कोणांणा, प्रले. मु. मतिसागर (गुरु पं. उदयसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वनाथजी प्रसादात्ा, टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (६८०) भग्नपृष्टी कटिग्रीवा, (८०३) जिंहा द्रुसायरचंदरवि, जैदे., (२६४११.५, १६-१७X४८-५०). १. पे. नाम. मानतुंगमानवती रास, पृ. १अ-२७अ, संपूर्ण. मानतुंग-मानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: घरिघरि मंगलमाला हे, ढाल-४७. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २७अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६४१४. (+) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, वैशाख शुक्ल, १, रविवार, जीर्ण, पृ. ९०, ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. मु. दयालदास (गुरु ऋ. ज्वालानाथ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४११.५, १०-१७४५८-६४). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चउवीस; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, संपूर्ण. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनं नत्वा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २६४१५. (+) पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १४९५, जैदे., (२७४१२, ३४३३-३६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: एमब्भखमियव्वं. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर प्रते वादउ; अंति: अपराध खमावउ. २६४१६. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७८१, श्रेष्ठ, पृ. १४६-१(११३)=१४५, प्रले. मु. प्रतापविजय (गुरु पं. अमीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४-६४३४-४६). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० आमलकप्प; अंति: पस्से सुपस्सवणईए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २२२०, (वि. १७८१, चैत्र शुक्ल, ५) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: सोधनीयं च धीधनैरिति, ग्रं. ३२८१, (वि. १७८१, चैत्र कृष्ण, ७, गुरुवार) २६४१८. (#) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०९-५४(१ से ५४)=५५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १४४३९-४९). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-३ ढाल-९ गाथा-८ से उल्लास-४ ढाल-३२ गाथा-४ तक है.) २६४१९. सुदर्शनश्रेष्ठि रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२६४११, १५४५२-५७). For Private And Personal use only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५०१, आदि: पहिलउ प्रणमिसु; अंति: चतुर्विध संघ प्रसन्न, गाथा-२५६. २६४२०. (+) सिद्धांतचंद्रिका की वृत्ति-पूर्वार्द्ध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १३-१५४४४-४७). सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुष ध्यात्वा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २६४२१. सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञ लघवृत्ति, संपूर्ण, वि. १४७४, पौष शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. पू.वि. अध्याय-२, पाद-२ तक है., जैदे., (२६.५४११.५, १९४५८-६२). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अहँ सिद्धिः स्याद; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २६४२२. विमलमंत्री रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२६४११.५, १५-१६x४७-५०). विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८, आदि: आदिजिनवर आदिजिनवर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-३, गाथा-२४ तक है.) २६४२३. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६४, संवदेंदुद्वीपरसवैः, माघ शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६६, ले.स्थल. योगिनीपूर, प्रले. मु. घनश्याम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ७X४२-४८). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंब इणमो अण्हयसंवर; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय-१०, संपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबू ए प्रत्यक्ष; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने अंतिम सूत्र का टबार्थ नहीं लिखा है.) २६४२५. अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, दे., (२५.५४११.५, १३-१५४३६-३९). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २६४२६. (+) विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १५८२, चैत्र शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ५२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४११.५, ११४३८-४०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन २०, ग्रं. १३१६. २६४३०. (#) पाक्षिकसूत्र, खामणा व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८४३, चैत्र शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १८, कुल पे. ३, ले.स्थल. विद्युतपुर, प्रले. ग. उमेदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ९-११४२९-३४). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-१५आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ३. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १६आ-१८आ, संपूर्ण. पाक्षिक चैत्यवंदन, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: वीसं परिनिव्वुए वंदे, श्लोक-४४. For Private And Personal use only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २६४३१. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८८०, वैशाख कृष्ण, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. पीपाड, प्रले. मु. रुपसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६५११.५, १४X३९-४५), पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंतिः कुलीनाय जितात्मने, ग्रं. १७९. २६४३२. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पठ. श्रावि. रतनबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., ( २६x११.५, ८x२३-२४), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः विसेसाहिआ दुवेणंता, गाथा - ५५. २६४३३. (+) सिद्धांतचंद्रिका की वृत्ति- उत्तरार्द्ध, संपूर्ण, वि. १८२८, भूमिखंडभुजकुंभेभेश्वरे संमिते, फाल्गुन शुक्त, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८४, प्रले. मु. नंदलाल (लुकागच्छ); पठ. मु. रत्नचंद्र ( लुकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५X११.५, १७x४५-५२). सिद्धांतचंद्रिका सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: सदानंदेन निर्मिता, प्रतिपूर्ण, २६४३५. इरियावही व पौषध कुलक, सामायिक दोष व विविधविचार संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९०, माघ शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३३, कुल पे. ४, ले. स्थल. रणोझ, प्रले. मु. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११.५, ७-१६X३८-३९). १. पे. नाम. इरियावही कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिसय; अंति: जीव निच्वंपि, गाथा - १२. इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जीव ताहरो उद्धार थाइ, (पू.वि. प्रतिलेखक ने प्रथम गाथा का टबार्थ नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. पौषध कुलक सह टबार्थ, पृ. २आ - ३आ, संपूर्ण. पौषध कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: छत्तीसदिवससहस्सा; अंतिः धम्मम्मि उज्जमहो, श्लोक-१६. पुण्यफल कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवै सो वर्षना दिन: अंति: विषे उद्यम करो. ३. पे. नाम. सामायिक बत्रीसदोष सह टवार्थ, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. १०x१४ - २१ ) . ४३३ सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पल्लत्थी अथिरासणं; अंति: वसे सव्व सुह लच्छी, गाथा-४. सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पालखीइं न बेसीइं; अंति: सुखलक्ष्मी होइ सही. ४. पे. नाम. विविध विचार संग्रह सह टबार्थ, पृ. ४आ-३३अ संपूर्ण विविध विचार संग्रह, गु., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). विविधविचार संग्रह बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). - २६४३६. पाशा ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-२ (१,१४ ) -२१, पू. वि. बीच के पत्र हैं. वे., ( २६.५x११.५, , पाशा ज्योतिष, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). " २६४३७. महानिशीथसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १० -५ (१ से ५) = ५, दे. (२६.५x११.५, १७९५०-५१ ). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: इत्तिए पय विसेसे, अध्ययन - ६ चूलिका २, ( पू. वि. अध्ययन-५ अपूर्ण तक नहीं है.) २६४३८. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ व पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. मु. सुमतिचंद्र, " प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६४११.५, ५X३९-४७). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्म, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य प्रथमं देवं; अंति: आवइ ज कुण लक्ष्मी. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन, पृ. ७आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि बारसगुण अरिहंता; अंतिः मरणांत उपसर्ग सहेवु. For Private And Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६४३९. स्तुतिचौवीसी व शांतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८०७, वैशाख कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. व्यापि, प्रले. मु. जेठा (गुरु पंन्या. धनविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११.५, १३-१४४४०-४३). १. पे. नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: भव्यलोके बिंब्बौके, स्तुति-२४, श्लोक-९६. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तोत्र, पृ. ६आ, संपूर्ण. आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: विनयनम्रनरामरराज्ये; अंति: सुंदरसंपदमाप्नुयात्, श्लोक-९. २६४४०. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३३). सीमंधरजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां कीधा; अंति: प्रभु उगतइ सुर तो, गाथा-५६. २६४४१. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५१३, माघ शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. घवाग्राम, प्रले. ग. विजयकीर्ति (गुरु आ. रत्नशेखरसूरि$, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १७X४४-५३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: तियागारेणं वोसिरामि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरिहंत; अंति: करिवा सदैव नित्यमेव. २६४४२. (+) शत्रुजयउद्धार रास व कुरगडुमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१२, आषाढ़ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, पठ. श्रावि. मानकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८-३९). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: देही दसण जयकरो, ढाल-१२, गाथा-१२२. २. पे. नाम. कुरगडुमुनि सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. धन्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उपसम आणोजी उपसम आणो; अंति: धन्यविजय गुण गाया रे, गाथा-१२. २६४४३. मृगावती रास, संपूर्ण, वि. १६७९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२७.५४११.५, ११४४०-४६). मृगावती रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ नरपति कुलिं; अंति: भरू पुण्य तणा घडा, गाथा-४१७. २६४४६. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-७(१ से ६,८)=७, दे., (२६४११, ११४३७-४१). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: जैन जयति शासनम्, स्मरण-९, (पू.वि. भक्तामर स्तोत्र, कल्याणमंदिर स्तोत्र व बृहत शांतिस्तोत्र है.) २६४४७. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टीका व षद्रव्य नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ., ., (२६४११, १४-१५४५३-५४). १. पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टीका, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टीका, सं., गद्य, आदि: जिणदसण गाथा जिन; अंति: अत्यर्थं न भ्रमत. २. पे. नाम. षद्रव्य नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण. षड्द्रव्य नाम, सं., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय अधर्मा; अंति: जीवास्तिकाय काल. २६४४८. (+) दीपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ६४३५-३८). For Private And Personal use only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४३५ दीपावलीपर्वकल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४३६. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी; अंति: प्रतपज्यो चारित्र. २६४४९. स्थूलिभद्र नवरसोव जैनकाव्य संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४२, कार्तिक कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. बुसी, दे., (२६४११.५, १५४४८-५०). १. पे. नाम. स्थूलिभद्र नवरसो, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगै फल्या रे, ढाल-९. २. पे. नाम. जैनकाव्य संग्रह, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैनकाव्य संग्रह , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६४५०. पंचोतेर बोल व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, १४४२६-४२). १. पे. नाम. पंचोतेर बोल, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. ७५ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागदेवे पांच; अंति: छउमगंधालाइ नयोयउ. २. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण. बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २६४५२. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२५४११.५, ६-११४३३-३६). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: मन जे जिनवचने वस्यो, गाथा-११८. २६४५३. साठसय प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४११.५, १५४५३-५४). षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरहं देवो सुगुरु; अंति: वायतु जंति सिवं, गाथा-१६१. २६४५४. दीपावली स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. हीरसार (गुरु ग. सुमतिसार), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११-१२४३०-३२). गौतमस्वामी दीपालिका रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रभूति गौतम भणइं; अंति: हीरगुरु गुण विचारी, ढाल-१३, गाथा-७६. २६४५६. मानवती रास व घंटाकर्ण मंत्र, पूर्ण, वि. १८१०, आश्विन शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७-२(१ से २)=३५, कुल पे. २, ले.स्थल. प्रहलादपुर, प्रले. मु. हर्षचंद; पठ. पं. मनोज्ञविजय (गुरु मु. भाणविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११.५, १५-१६४३४-४४). १.पे. नाम. मानतुंगमानवती रास, पृ. ३अ-३७आ, पूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मानतुंग-मानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: होजो घरघर मंगलमाल हे, ढाल-४७, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-८ तक नहीं है.) २. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीर स्तोत्र, पृ. ३७आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो घंटाकरणो महा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २६४५७. (+) कल्पसूत्र का अक्षरार्थ - व्याख्यान १ से ८, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, प्र.वि. मूल सूत्र प्रतीक पाठात्मक है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १७-१९४५३-५८). कल्पसूत्र-अक्षरार्थ, सं., गद्य, आदि: अनल्पकल्पना कल्पपादप; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीय शाखा की किंचित् माहिती दी गयी है.) २६४५८. हैमी नाममाला व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १५-१७४३७-५३). १. पे. नाम. अभिधानचिंतामणि नाममाला, पृ. १अ-४९आ, संपूर्ण. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: नतौ नमः, कांड-६. For Private And Personal use only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. श्लोक, पृ. ४९आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१. २६४५९. पाक्षिकसूत्र व खामणां, अपूर्ण, वि. १६५६, कार्तिक, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१ से २)=५, कुल पे. २, ले.स्थल. कोरटा, पठ. मु. प्रीतिरूचि (गुरु पंडित. उदयरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४४७-५४). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ३अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ७आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. २६४६०. (+) संग्रहणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-२८(१ से २७,३२)=२१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४११.५, १-४४३८-३९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३०८, (पू.वि. गाथा-१ से १७३ व २०२ से २०५ तक नहीं है.) २६४६१. (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (५६२) भग्नि पृष्टि कटि ग्रीवा, (८०४) जलेन रक्षे थलेन रक्षे, दे., (२६.५४११, ७४४८-५०). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासिय; अंति: महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक-१०, संपूर्ण. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे जे कोइ भि० साधु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने बीच-बीच व अंत का टबार्थ नहीं लिखा है.) २६४६२. श्रीपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८२१, आषाढ़ शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२, ले.स्थल. आगरा, प्रले. पं. रंगविजय; पठ. मु. किष्णोविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, ११-१६४३१-३६). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: सहुं चित चंगै रे, ढाल-४०, ग्रं. ११००. २६४६३. सुसढ कथानक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदे., (२६४११.५, ११४४२-४४). सुसढ कथानक-यतनाविषये, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुट्ट वि तवं कुणतो; अंति: जयणं चिय धम्मकामा, गाथा-५५१. २६४६४. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२-४६). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: जयंमि थिर थावरा होउ, गाथा-५४३. २६४६५. अजितशांति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ६-७४२५-३०). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिय जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. अजितशांति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भगवति गर्भस्थे; अंति: संजाता अपि नश्यति. २६४६६. सूर्यप्रज्ञप्ति की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११५, दे., (२६४१२, १३-१७४३९-४४). सूर्यप्रज्ञप्ति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: यथास्थितं जगत्सर्वमी; अंति: (-), पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २६४६७. सिद्धहेमशब्दानुशासन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-३(२,४,१२)=१२, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, १३-१४४४३-४४). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-). २६४६८. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, दे., (२६४११.५, ८x२५-२७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private And Personal use only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४३७ २६४७०. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला - कांड २, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६११, १७-१९५९-६१ ). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २६४७१. भक्तामर स्तोत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, दे., (२६X११.५, १५X४२-४५). भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य परमानंददायकं; अंति: संख्या निवेदिता, ग्रं. ६९३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४७४. २४ दंडक विचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३० - २३ (१ से २३) = ७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६X११, २१x६२-६८). २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६४७५. (+) निशीथसूत्र - उद्देश २ से ११, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६x११.५, १९४६०-६३). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. जैदे., २६४७६. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक व अतिचारचिंतवन गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६३ १७६५, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, पठ, मु. आणंदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२५X११, ५X३१ - ३२). १. पे नाम, चतुः शरण प्रकीर्णक सह टवार्थ, पृ. १आ-१०अ संपूर्ण, वि. १७६३, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, सोमवार, ले. स्थल समीनगर. चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि; सावज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा- ६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य वि. १७३२, आदिः नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंतिः नामभृताक्षिगुणर्षिभे २. पे. नाम. साधु अतिचारचिंतवन गाथा सह टबार्थ, पृ. १०अ, संपूर्ण, वि. १७६५, ले. स्थल. स्थंभतीर्थ. साधुअतिचारचिंतवन गाधा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंतिः वितहायरणे अईयारो, गाथा- १. साधुअतिचारचितवन गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः शयन क० शय्या अंतिः मिच्छामि दुक्कडं थाओ. २६४७७. (+) विपाकसूत्र - द्वितीय श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६x११, १२x५२-५३). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंतिः सेवं भंते सेवं भंते, प्रतिपूर्ण. २६४७८. पाक्षिक विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., ( २६.५४११.५, १७४६-४९). पाक्षिक विचार, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: जिनमार्गमांहि आठमि; अंति: वशान्नोत्पद्यंत इति . २६४८० चित्रसंभूति रास, संपूर्ण, वि. १८२५, भाद्रपद कृष्ण, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल, मेसाणा नगर, प्रले. पं. विमलविजय (गुरु ग. विनीतविजय, तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. ले. श्लो. (८०३) जिंहा द्रुसायरचंदरवि, दे., ( २६x११, १८ - २०५५ - ५७ ) . चित्रसंभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: प्रथम नमुं परमेसर अंतिः दीइं बोलति दीवारु रे, ढाल -३८, ग्रं. ११००. २६४८५. (+) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६X११, १५X४२-५१). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३५, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक ६२ तक लिखा है.) , २६४८७. (+) वज्जालय व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २०-५ (२ से ५, १९)-१५, कुल पे. २, प्र. वि. पंचपाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२७४११, १५४५४-५८). 2 १. पे. नाम. वज्जालय, पृ. १अ - २०आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. For Private And Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वज्जालग्ग, क. जयवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: सव्वण्ण वयण पंकयणि; अंति: लहइ सो पुरिसो. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २०आ, संपूर्ण. जैन गाथा", प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-५. २६४८८. (+) प्रवचनसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, २०-२१४६३-७०). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: नंदउ बहु पढिज्जतो, द्वार-२७६, गाथा-१६०५. २६४८९. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, दे., (२६४११.५, ९४३१-३३). साधुवंदना, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तुं जिनवदन कमलनी; अंति: वंदइ तं सकलचंद मुणी, गाथा-१४५. २६४९१. हंसराजवच्छराज चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-१(१)=३२, दे., (२७४११, १५४३५-३७). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: (-); अंति: ए हंस अनै वच्छराज, खंड-४ ढाल ४६, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१४ तक व प्रतिलेखन पुष्पिका का भाग नहीं है.) २६४९२. उपदेशमाला उत्कृष्ट-मध्यम गाथा व अक्षरसंख्या यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. आग्रा, दे., (२६.५४११.५, ८x२७). उपदेशमाला-उत्कृष्ट-मध्यम गाथा व अक्षरसंख्या यंत्र, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). २६४९३. वाक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १६९५, माघ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११, १३४४५-४६). वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविद; अंति: मुदितमुदयधर्मसिंहेन. २६४९४. संयोगबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२६४११, ११-१२४४०-४१). संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: बुद्धिवचन वरदायनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उन्माद-२ गाथा-५४ तक है.) २६४९६. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७६-२५६(१ से २४८,२५९,२६२ से २६८)+१(२५६)=२१, दे., (२५.५४११.५, ४-१३४२७-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८. २६४९७. भगवतीसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६०८, वैशाख शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७०-३५२(१ से ३५२)+१(३५६)=१९, ले.स्थल. अणहिलपुरपट्टण, प्रले. श्राव. बलभद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४११, १५४५४-५६). भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः (-); अंति: श्लोकमानेन निश्चितम्, शतक-४,ग्रं. १८६१६. २६४९८. उत्तराध्ययनसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९, प्र.वि. कुल ग्रं. ५००५, जैदे., (२६४११.५, १५४४७-५५). उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिकाटीका, सं., गद्य, आदि: भिक्षो विनयं प्रादुष; अंति: समंतान् इष्टान्. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिकाटीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भिक्षु महात्मानइ; अंति: समंतात् इष्टान्. २६५०३. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध+कथा, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६२+१(१३९)=१६३, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२६.५४११, १३४४८-५६). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभआरि नेमिकुमार; अंति: आराहिय ___ लहह बोहिसुहं, कथा-४३, गाथा-११५, संपूर्ण. शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेयश्रीसहि; अंति: (-), पूर्ण. For Private And Personal use only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४३९ २६५०५. (+) अजितशांति सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१३(१ से १३)=७, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ७-९४२८-३०). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: अजिअसंति जिणनाहस्स, गाथा-४२, संपूर्ण. अजितशांति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं द्वावपि जिणवरौ; अंति: संपूर्णचंद्रवदनस्य, संपूर्ण. २६५०६. आदिनाथ विवाहलो, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदे., (२६४११, १०-१३४३९-४५). आदिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: सासनदेवीय पाय प्रणमे; अंति: बोलेइ सेवक इम मुदा, ढाल-४५, गाथा-२४५. २६५०९. नेमिजिन रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पठ. श्रावि. केसरदे भीखु साहा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १३-१५४३४-३७). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ प्रणाम करूं; अंति: इम श्रीविजयदेवसूरि, गाथा-७०. २६५१०.(+) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११,११४३९-४३). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धमकम्ममविग्गह; अंति: सया सुहत्थिहिं, गाथा-५०५. २६५११. (+) आरंभसिद्धि, संपूर्ण, वि. १६७४, आश्विन शुक्ल, १५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. मंगलपुर, प्रले. शामलिया विप्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १५-१६४४४-५५). आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: ॐ नमः सकलारंभसिद्धि; अंति: प्रथयंति लक्ष्मीम, विमर्श-५. २६५१२. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्रारंभिक पीठिका तक है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११, १९४५५-६०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-). कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ते. ते काल जे; अंति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*.मा.ग., गद्य, आदि: ईहा कल्पसूत्रने आदे; अंति: (-). २६५१५. (+) कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७४-१(१)+१(६२)=७४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ९४३०-३३). ___ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: उवदसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६. २६५१६. (+) अमरकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७२९, भाद्रपद शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. सरसापाटण, प्रले. पं. शिववर्द्धन (गुरु ग. लक्ष्मीवल्लभ, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १८४६३). अमरकुमार रास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर प्रथम जिन शांत; अंति: दिन दान भणी मति दीपइ. ढाल-१८. २६५१७. (+) दशपदी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४४१-४५). दशपद विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: नमः अष्टप्रातिहार्यो; अंति: ते मिच्छामि दुक्कडं, ग्रं. ४३५. २६५१८. चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२६.५४११, ६४३४-३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६४. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावध व्यापार त्याग; अंति: ए चउसरण अध्ययन गणीवउ. For Private And Personal use only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६५१९. भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १८४३, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. सांडेरा, प्रले. श्राव. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, १२-१३४३४-३६). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक-१७५. २६५२०. अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८२२, आश्विन कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, ले.स्थल. कीरावला, प्रले. मु. महताब ऋषि; पठ. सा. वखतीजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १७४४६-४९). अंजनासुंदरीरास-बृहद, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलैनइ कडवइ पय नमु; अति: भार्या जगतनी मात तो, गाथा-३१८. २६५२१. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८०६-१८३३, आषाढ़ कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. २७-१(१)=२६, पू.वि. गाथा-५ तक नही है., ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. मु. दयालदास (गुरु ऋ. ज्वालानाथ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११, २-७४५१-५३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३८०. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गुणइ इणइ संग्रहणीनइ. २६५२२. तत्त्वतरंगिणी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, दे., (२५.५४११, १३-१५४४४-५३). तत्त्वतरंगिणी, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, वि. १६१५, आदि: नमिऊण वद्धमाणं तित्थ; अंति: तत्ततरंगिणी जयउ, गाथा-२६. तत्त्वतरंगिणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीसिद्धार्थमहीपाल, (२)नमिऊण क० नमस्कार करी; अंति: चिरकाल जयवंती वर्तो. २६५२४. चउशरण की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६५२, भाद्रपद कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. मु. वर्द्धमान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११४४१-४४). चतुःशरण अवचूर्णि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद; अंति: भवतीति गाथार्थः. २६५२५. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०६, श्रेष्ठ, पृ. ४४, ले.स्थल. आगरा, प्र.वि. कुल ग्रं. ३०००, जैदे., (२६४११, ५-६४४१-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: भविआण विबोहणट्ठाए, अध्ययन-१० चूलिका २. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म केवलीउ भाष्यउ; अंति: (अपठनीय), (वि. अंतिम पत्र फटा __ होने के कारण अंतिमवाक्य नहीं पढ़ा जा रहा है.) २६५२६. जीवविचार प्रकरण की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११,११-१३x-१). जीवविचार प्रकरण-अर्थलेश अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भुवनदीपसमं श्रीवीर; अंति: समुद्धृतोस्ति. २६५२७. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७०६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. निवाह, प्रले. मु. राजाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११.५, ३-४४३५-४३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४८. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: किल अहमपि तं प्रथमं; अंति: अवश्यमेव निश्चय सौ. २६५३१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०९, कार्तिक शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०३, ले.स्थल. अलवर, प्रले. मु. ज्वालानाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११, ३-७X४८-५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (१)त्ति बेमि, (२)पावइ सासयं ठाणं, अध्ययन-३६, ग्रं. २१००. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: उत्तराध्ययननो शब्दा; अंति: हं तुजने कहं छु. २६५३३. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७२१, कार्तिक कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, पू.वि. श्लोक १ से ६ नहीं है., ले.स्थल. नागपूर, प्रले. अमरसी मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४११, ५४३८-३९). For Private And Personal use only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: वांछित संपदा पामइ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४१ २६५३४. शाश्वतजिन गृहप्रतिमा संख्या व मानयंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२६X११, ७-८X२६-३३). शाश्वतजिन गृहप्रतिमा संख्या व मानयंत्र, अज्ञा., को., आदि: (-); अंति: (-). २६५३६. अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, दे., (२५.५४११, " १७-१८४३८-४२). " अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदिः प्रणिपत्वार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. कांड - ३ श्लो-४० तक है.) २६५३७. दशवैकालिकसूत्र की लघुटीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदे., ( २६११, १५४४९-५०), दशवैकालिकसूत्र-लघुटीका, आ. सुमतिसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति विजतान्यतेजाः०; अंतिः धर्मसुरद्रुमस्य, ग्रं. २५००. २६५३८. (४) शतपदीप्रक्रिया प्रश्नोत्तरपद्धत्ति, संपूर्ण, वि. १५८९, मार्गशीर्ष शुरू, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १५१, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११, १३x४९ - ५२ ) . बृहत्शतपदी, प्रक्रिया, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., गद्य वि. १२९४, आदि: त्रिभुवनगृह प्रदीपः अंतिः सदा विबुधैः, " यं. ५३४३. २६५४० (+) भक्तामर चतुर्थपाद समस्यापूर्ति स्तोत्र सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२६४१९, २- २२x६० ). " सरस्वतीभक्तामर स्तोत्र, आ. धर्मसिंहसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरभ्रमरविभ्रमवै; अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. सरस्वतीभक्तामर स्तोत्र - वृत्ति, आ. धर्मसिंहसूरि, सं., गद्य, आदि: स्वस्तिकर्तुरभिवंद्य अंति: (१) सेवते इति भावः, (२) तच्च सर्वमवसेयं, श्लोक-४४. २६५४१. (+) रत्नसमुच्चय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९६, जीर्ण, पृ. २२, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११, ६-७x४४-५०), विचारसार प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: बारस गुण अरिहंत सिद; अंति: पियाए सालहि पियाइए, गाथा - ५४८, (वि. १७९६, श्रावण शुक्र १०, प्रले. पं. लावण्यहर्ष) विचारसार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वामेयं सुखदं नत्वा; अंति: पाठांतर ए १० जाणवा, (वि. १७९६, भाद्रपद कृष्ण, १, बुधवार, प्रले. पं. लद्धा गणि) २६५४२. परदेसीराजा रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पठ. श्रावि. सुपियादे, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६×११.५, १३-१४x५२-५४). केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: पामियइ सिवसुख सार, ढाल-४१, गाथा - ५८८, ग्रं. ८५०. २६५४३. सुकोसलमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल काप्रेडा, प्रले. मु. जगनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६X११, १५X४४-४७). For Private And Personal Use Only सुकोशलमुनि चौपाई, श्राव. जगन, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: श्रीवर्धमान चौवीसमा; अंति: लहिसी होस बंध रसाल, ढाल - २१, गाथा - २७५, ग्रं. २७९. २६५४४. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, पूर्ण, वि. १७८२, संवद्विनागात्यष्टिवर्षे, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५१-४(१९ से २२)= ४७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२६.५x११.५, १३ - १४४३९ - ४६ ) . जै... 2 अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदिः प्रणिपत्वार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६, (पू. वि. कांड - ३ श्लोक - १९८ से २२६ तक नहीं हैं.) Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६५४७. आनंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, दे., (२७४११,६-९४३०-३२). आनंदश्रावक संधि, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: प्रणमइ मुनि श्रीसार, __ ढाल-१५, गाथा-२५०. २६५४८. २४ दंडक ३० द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, दे., (२६.५४११, १६-२२४५४-६४). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठित्ति; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २६५४९. (+) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १६४२, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. लक्ष्मीसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १४४४१-४३). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरादन ६० वर्षे अंति: विजयमानीयः वर्तते. २६५५०. (+) गुणस्थानक्रमारोह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. ग. हसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, १३४४१-४२). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोहहत; अंति: रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३५. २६५५२. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र का विवरण-प्रथम श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११४३३-३५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रथमश्रुतस्कंध-ज्ञातविवरण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीज्ञाताना हेत; अंति: महारिसिव्व जहा. २६५५५. चंदराजा रास, संपूर्ण, वि. १७८३, वैशाख कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ५५, प्रले. मु. खरथाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १८४४४-५६). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक समरीइं; अंति: लाभेलील विलासारे, खंड-६ ढाल १०३. २६५५६. (#) वाग्भट्टालंकार की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-१(६)=१४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११, १७४४१-४८). वाग्भटालंकार-टीका, आ. जिनवर्द्धमानसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीमान् श्रीआदिनाथः; अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-५ श्लोक-२१ तक है.) २६५५७. उवसग्गहर स्तोत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४११, ११४४१-४४). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की प्रियंकरनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, प्रा.,सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: वंशाब्जश्रीकरो हंसो; अंति: (-). २६५६०. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१०.५, १५४४५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१७८ तक है.) २६५६१. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२६४११, ७-१०x१५-१७). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: महार्थइ गौतमपृच्छा. २६५६३. औपपातिकसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, १-१३४१८-३३). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: (-). औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-). २६५६४. नवस्मरण की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-२(१३,२९)=३३, प्र.ले.श्लो. (६३६) यादृशं पुस्तके दृष्टा, जैदे., (२५.५४११, १३४३८-४४). नवस्मरण-सप्तस्मरण टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं; अंति: प्रसादाच्चिरं जयतु. For Private And Personal use only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४४३ २६५६६. शांतिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १७२३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, जीर्ण, पृ. १४०, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४११, १५४४१-५०). शांतिनाथ चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्व; अंति: स करोतु शांतिः, प्रस्ताव-६. २६५६७. प्रश्नोत्तर संग्रह, षद्रव्य वर्णन व पदवी अधिकार, संपूर्ण, वि. १९१६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, ले.स्थल. अकबराबाद, प्रले. मु. रणधीर (गुरु मु. मलुकचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१०.५, १५-१९४४९-५०). १. पे. नाम. प्रश्नोत्तर संग्रह, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रश्न २१ की विगतवार; अंति: सरधारी धारणा करज्यो, प्रश्न-२१. २. पे. नाम. षद्रव्य वर्णन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. षड्द्रव्य वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: चेतनवंत अनंतगुण; अंति: और एक आतमा ही राम है. ३. पे. नाम. पदवी अधिकार, पृ. ६आ, संपूर्ण. __ पदवी विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्र में पदवी; अंति: मंडलिक ६ एवं ६ पामे. २६५६८. (+) एकीभाव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८१९, फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५४१०.५, ७४३५-३६). एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: एकीभावं गत इव मया; अंति: वादिराजमनुभव्य सहाय, श्लोक-२६. २६५७०. (+) पच्चक्खाण सह टबार्थ, पच्चक्खाण पारणसूत्र व अणाहारी वस्तुनाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, पठ. ग. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१०.५, ४-१०४३९-४१). १. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सुरे नमुकारसिय; अंति: गारेणं वोसिरामि. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यना उदयथी मांडी; अंति: करीने वोसिरावुछु. २. पे. नाम. पच्चक्खाण पारने का सूत्र, पृ. ६आ, संपूर्ण. ___ संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमुक्कारसी मुठसी; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. अणाहारी वस्तुनाम, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: हरडै १ बहेडा २ आंवला; अंति: तिण वस्तुसुं भंग नही. २६५७१. कर्मग्रंथ ५ से ६ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, १८४५१-६३). १. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १आ-६६आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: दृष्ट्वा येन भृशं; अंति: आत्मस्मरणनै अर्थे. २. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. ६७अ-६८अ, संपूर्ण, पू.वि. गाथा-४ तक लिखा है. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: अभिनम्य जगद्वीर; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २६५७२. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३४-३६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: खमामि सव्वस्स अहयंपि. २६५७४. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१०.५, ६४३४-४२). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु.,प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पढम; अंति: (-). For Private And Personal use only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचप्रतिक्रमणसूत्र-अंचलगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरु नमस्कार अरिहंत; अंति: (-). २६५७५. उपदेशमालासह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५१-१(१)=१५०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., गाथा ४ से ११० तक है., दे., (२६४१०.५, १३४५२-५५). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). उपदेशमाला-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). उपदेशमाला-कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). २६५७८. कयवन्न चौपाई, संपूर्ण, वि. १७२४, कार्तिक शुक्ल, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. झीडोतरी, प्रले. मु. रुपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १७४५९-६६). कयवन्ना चौपाई, आ. पद्मसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५६३, आदि: पहिलउ प्रणमी पयकमल; अंति: पामइ ते बहुला भोग, गाथा-३८६. २६५८०. नववाडी सज्झाय व आषाढभूति धमाल, संपूर्ण, वि. १७५९, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५३-५६). १. पे. नाम. नववाडी सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमिसर चरणयुग; अंति: हो जुगति नववाडी, ढाल-११, गाथा-९७. २. पे. नाम. आषाढाभूति धमाल, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. आषाढभूति रास, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: श्रीसंघकुं सुखकारा, गाथा-६४. २६५८१. (+) संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४१०.५, ८-९४२४-२८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरु; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-८१. २६५८३. खरतरगच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, दे., (२६४११, ९-१५४३८-४२). पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: गुब्बरग्रामवासी; अंति: चिरं नदतात्. २६५८५. कल्याणमंदिर स्तोत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. मूल का मात्र प्रतीकपाठ ही दिया हुआ है., कुल ग्रं. ७२७, जैदे., (२६४११, १८४५७-६४). कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदि: प्रणम्य पार्श्व; अंति: श्लोकानामिह ___मंगलम्, ग्रं. ६५०. २६५८६. स्थूलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८, दे., (२६४१०.५, ९-१०४२०-२१). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत्ति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगि ___फल्या रे, ढाल-९, ग्रं. ६६. २६५८८. उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन १३ से ३६, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदे., (२७४११, ११४३३-३४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: त्ति बेमि, ग्रं. २१००, प्रतिपूर्ण. २६५९०. आचारांगसूत्र सह टबार्थ-प्रथम श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १७५७, पौष कृष्ण, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६३, ले.स्थल. हिंसारनगर, प्रले. मु. इंद्राजजी; राज्यकाल रा. अवरंग पातसाह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११, ५४४२-४४). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत श्रीसुधर्मा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २६५९२. कथा संग्रह- उत्तराध्ययनस्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५, दे., (२८x११, १५४५४-५८). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा संदर्भपरक यत्र-तत्र मूल गाथाएँ भी दी गयी है.) For Private And Personal use only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir आ, संपूर्ण. .. टोचेव संसारो, गावागाथार्थः. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४४५ २६५९३. संग्रहणीसूत्र की अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. मूल सूत्र का प्रतीक पाठ दिया गया है., जैदे., (२८x११.५, १७४६४-७१). बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: आदौ शास्त्रकाराभीष्ट; अंति: वेदाश्च प्रागुक्ताः, ग्रं. १५१०. २६५९५. स्नात्र पूजा व नवतत्त्व प्रकरण सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-४(१ से ४)=१३, कुल पे. २, दे., (२८x११.५, ९-११४५०-५३). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सारखी कही सूत्र मझार. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, पृ. ५अ-१३आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२७. नवतत्त्व प्रकरण-टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनपति; अंति: स्यादिति गाथार्थः. २६५९८. (+) हैममाला शिलोंछ, संपूर्ण, वि. १७३२, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ.६, अन्य. उपा. यशोविजयजी गणि** (गुरु मु. नयविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११, १७४३९-४१). अभिधानचिंतामणि नाममाला-शिलोंछ, संबद्ध, आ. जिनदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १४३३, आदि: रुपभेदात्साहचर्यात्; अंति: जिनदेव मुनीश्वरः, श्लोक-१३८. २६५९९. पद्मचरित्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-४(१२ से १५)=३१, जैदे., (२९x११, १५४५४-६२). पद्मचरित्र चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: पवर सुहकर जिण नमी; अंति: पूरवउ आसस दामन तणी, गाथा-१२७२, (पू.वि. गाथा-४१८ से ५६९ तक नहीं हैं.) २६६००. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२५ तक है., दे., (२८x१२, १०x२३-२५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचंद, मा.गु., गद्य, वि. १७६६, आदि: ज्ञानं पंचविध; अंति: (-). २६६०१. प्रश्नशतक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२७४११.५, १४-१५४५२-५६). प्रश्नोत्तरैकषष्ठीशतक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: क्रमनखदशकोटीदीप्रदीप; अंति: लभेन० प्रसादलवं मयि, श्लोक-१६१. प्रश्नशतक-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिनत् हानि गच्छत; अंति: नैव जिनवल्लभेन. २६६०२. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२, १७४५१-५४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. २६६०३. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टीका, संपूर्ण, वि. १७०९, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४२, प्रले. मु. सौवर्णपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १९४५४-५९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: वृंदारुबंदारकवृंदवं; अंति: वृत्तितोवरचूर्णितश्च, ग्रं. २७२०. २६६०४. आठकर्म १४८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १८१७, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १६, दे., (२७४११.५, ७-८x२०-२५). ८ कर्म १४८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ज्ञानावरणी; अंति: आठ करमनो विचार जाणवो. For Private And Personal use only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६६०५ (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १७१०, चैत्र कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पू. ५२-१८ (१ से १७,३७) = ३४, लिख नरहरिदास बारट, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५X११.५, ११-१३x४०-४३). ११x४१-४२). १. पे. नाम. उपदेशमाला प्रकरण, पृ. २३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: ( - ); अंति रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. २६६०७. (*) गौतमपृच्छा सह टीका, संपूर्ण, वि. १४७६, आषाढ़ कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६९, ले. स्थल स्तंभतीर्थ, राज्यकाल रा. अहिमद पातसाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. बृहत्तपागच्छे., कुल ग्रं. ५२५०, जैदे., (२८.५X११.५, १८- २१४५८-६०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा - ६४. गौतमपृच्छा- टीका, मु. तिलक, सं., गद्य, आदि माधुर्यधुर्यगुणतः अंति: मवगंतव्यमितिगाथार्थः, २६६०८. शारदी नाममाला, संपूर्ण, वि. १९३२, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २२, पठ. मु. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४११.५, ११३५-४० ). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं अंति: कीर्ति० अत नाममाला, कांड-३, श्लोक-४६१. २६६०९ सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९३२ ज्येष्ठ कृष्ण, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, पठ. श्राव. हीराचंद श्राव. खुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (४१५) पोथी प्यारी प्राणथी, (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (६५४) जला रक्षे स्थलात् रक्षे, दे., (२७४११.५, ११४४० ). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः स जानाति जाग्रतः, श्लोक ९७, २६६११. (+) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदे., (२८x११.५, ९X३४-३५). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी, गाथा - ५४४. २६६१६. उपदेशमाला व भवभावना, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६-२२ (१ से २२ ) = २४, कुल पे. २, जैदे., (२८.५x१२, पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंतिः सया सुहत्थिहिं, ( पू. वि. मात्र अंतिम दो गाथाएँ है . ) २. पे. नाम. भवभावना, पृ. २३अ - ४६आ, संपूर्ण. आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण णमिरसुरवर मणि; अंति: वलीइ कीरउ अलंकारो, गाथा - ५३१. २६६१७. नवतत्त्व सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. ६ वे., (२७४१२, ७x४३-५३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-९६. नवतत्त्व प्रकरण- टवार्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (); अंति: अनेकसिद्ध ऋषभदेवादिक, (वि. प्रतिलेखक ने आवश्यकतानुसार ही टबार्थ लिखा है.) २६६२१. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८१९ कार्तिक कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४४, ले. स्थल, मकसूदाबाद, प्र. म. जैत मु. ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५X११.५, ८-११४३१-३३). श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुण; अंति: पातिकवन लुणिज्यौ रे, ढाल - ४९. For Private And Personal Use Only २६६२२. नयचक्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४६ - २ (११ से १२) =४४, ले.स्थल. सीहारी, प्रले. मु. रंगसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीजिरावला पार्श्वनाथजी प्रसादात्., दे., (२८x१२, ११- १६x४२-४८). नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणम्यपरमब्रह्म; अंतिः परममंगलता लभंतीति. Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४४७ नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: जे कारणे श्रीजिनागम; अंति: कृति भणता परमानंद, ग्रं. १९००. २६६२६. संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२७४१२, १३-१७४५०-५२). बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७पू, आदि: निट्ठवियअट्ठकम्म; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५७ तक लिखा है.) २६६२७. नवतत्त्व चौभंगी स्वरूप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२७४१२, ११४२७-३०). नवतत्त्व चौभंगी स्वरूप, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य थकी जीवद्रव्य; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २६६३२. विक्रमसेन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२८.५४१२, १०-१३४२९-३५). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकास; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-८ दोहा-४ तक है.) २६६३३. श्रीपाल कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, माघ शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९१, ले.स्थल. वेरावल बंदर, प्रले. श्राव. गुलालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१२, ७X४२-४७). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: वाइजंता कहा एसा, गाथा-१३४१. सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., गद्य, वि. १८०६, आदि: स जयति सिद्धसमूहो; अंति: जाणतां थकां कथा एह. २६६३४. (+) नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१८ तक है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२, १५-१७४३६-५१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-). नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम जीवतत्त्वस्युं; अंति: (-). २६६३६. (+) जातकदीपकापद्धति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रावण शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. राणावास, प्रले. पं. रत्नहंस (गुरु ग. माणिक्यहंस), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., दे., (२८x१२, ६x४१-५१). जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंति: एषा जातकदीपिका, श्लोक-९४. जातक पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करीने; अंति: पद्धति दीवा समान छे. २६६३७. (+) भगवतीसूत्र आलापक व अनागतचौवीसी आलापक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१२, १५४४४-४६). १. पे. नाम. तामलीतापस आलापक-भगवतीसूत्रे, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. २. पे. नाम. तुंगीयानगरी आलापक-भगवतीसूत्रे, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह*, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. अनागतचौवीसी आलापक, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: इहेव जंबूदीवे भारह; अंति: तु पुव्वभवा. २६६३८. धन्नानी चौपाई, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-१(१)=२४, दे., (२८x१२.५, १४-१५४३७-५०). धन्यकुमार चौपाई, मु. गंग, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: (-); अंति: अधिक सवाया हो, ढाल-२३, गाथा-६५२, (पू.वि. गाथा-१७ तक नहीं है.) For Private And Personal use only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६६३९. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., उपधानश्रुत अध्ययन उद्देश -४ गाथा - १६ तक है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे., (२७X१२, ५-६x४७-५०), आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-). आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सु० एहवउ सांभलउ मे०; अंति: (-). २६६४०. धनगिरी रास, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. वे., (२७.५x१२, १०-११x२८-३६). " " धनगिरी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: (-), ( पू. वि. रचनाप्रशस्ति अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६४९. चौवीसदंडक श्रीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५, वे., (२७४१२, ९४२८ - ३० ). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः जीव अनंतगुणा अधिक, २६६४२. नवतत्त्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१४, वैशाख कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. कोडा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२८x१२, १०x४२-४३). नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो जीवतत्त्व बीजो; अंतिः अजीवने मिश्र कहिये. २६६४३. नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्रले. सा. हस्तिश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५X१२, ११४३७-३८ ). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: दुसय उसत नवतत्ते, गाथा - ६९. २. पे नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. ४अ ६आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुदाओ सुवसमुदाओ, गाथा-५३. २६६४६. प्रदेशीराजा चीपाई व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७० श्रावण शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २८, कुल पे. ३, दे., (२७.५X१२, २०X३८ - ४२ ). १. पे. नाम. प्रदेशीराजा चौपाई, पृ. १अ - २२अ, संपूर्ण. ऋ. जेमल, रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिआ; अंति: पालसी ते उतरसी भवपार, ढाल - ३८. २. पे. नाम. सम्यग्दृष्टि सज्झाय, पृ. २२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जे समदीष्टी जगतमै; अंति: करकरया को नेह, ३. पे. नाम. २२ परिसह सज्झाय, पृ. २२अ - २८आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीआदिसर आदवे चौवीस; अंति: मिच्छामिदुक्कड मोयजी, ढाल - २२. २६६४७. आत्मशिक्षा, संपूर्ण, वि. १९०४ वैशाख कृष्ण, ३ रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, दे., (२८x१२.५, १२४३६-३९). आत्मशिक्षा, मा.गु., गद्य, आदि: अपरंच बीजुं श्रीजिन; अंति: वार्ता धारज्योजी. गाथा - ५. २६६४८. श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. अगस्तपुर, प्रले. मु. खुशाल (गुरु पंन्या. मुक्तिविजय); पठ. श्रावि. दुधीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५X१२.५, १०-११x२८-३१). श्रावक पाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम् २६६४९. अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १८७७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. खुशाल (गुरु पंन्या. मुक्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२७.५x१२.५, १०x२७-३०). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा- ४०. २६६५१. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १९००, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., (२८x१२.५, ११४३०-३१). For Private And Personal Use Only भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य - ३, गाथा - १५३, ग्रं. २२५. Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४४९ २६६५२. सौभाग्यपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. आगलोड, प्रले. मु. खुशाल (गुरु पंन्या. मुक्तिविजय); पठ. श्रावि. दुधीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२.५, ९-१०४२७-२९). सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: श्रीगुरु चरणे नमी; अंति: केसरकुशल जयकरो, ढाल-५, गाथा-७५. २६६५६. महावीरजिन चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १८४६, फाल्गुन शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. परवदासर, प्रले. सा. फतु आर्या (गुरु सा. अखुजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, ७-८x२२-२५). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धारथ कुल उपना; अंति: कियो दिवाली रे दिन, ढाल-४. २६६५८. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८४-१८८५, श्रेष्ठ, पृ. ८५, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. मु. खुबचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१२.५, ३-६४३२-४०). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाइं नामाई, (वि. १८८४, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, रविवार) नंदीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ तीर्थंकर; अंति: अनुज्ञाना नाम जाणवा, (वि. १८८५, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ५, गुरुवार) २६६६२. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोधव कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. नथोसणा, प्रले. सा. विनाजी (गुरु सा. खेमाजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बालावबोध का किंचित् अंश टबार्थ रूप में लिखा गया है., जैदे., (२८x१२.५, १-५४५७-५८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४८. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: लक्ष्मी स्वयंवर वरै. भक्तामर स्तोत्र-कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: उजेणीनगरीइंवृद्ध; अंति: हुओ सुखे राज भोगवइ, कथा-२८. २६६६५. (+) धन्य चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३७, मध्यम, पृ. १०३, ले.स्थल. सोइग्राम, प्र.वि. श्रीआदिनाथ प्रासादात., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२८x१२.५, ६४३६-४०). दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: स श्रेयस्त्रिजगद; अंति: श्रीदानकल्पद्रुमः, पल्लव-९, ग्रं. १२९२अक्.१७, (वि. १८३७, कार्तिक शुक्ल, १३, शुक्रवार, प्रले. पंन्या. धनविजय (गुरु पंन्या. माणिक्यविजय); पठ. मु. हीरा (गुरु पंन्या. धनविजय), प्र.ले.पु. मध्यम) दानकल्पद्रुम-टबार्थ, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८३३, आदि: श्रीऋषभस्वामी केहवा; अंति: (१)प्रति जीयात्, (२)सुधी जयवंतो वर्तो, (वि. १८३७, कार्तिक शुक्ल, १५, रविवार, प्रले. पंन्या. गौतमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) २६६६८. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदे., (२८.५४१२.५, १४-१५४३९-४५). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, गाथा-६५. गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नत्वा वीरं जिनं, (२)नत्वा कहतां नमिनइ; अंति: (१)भगवंते सूत्रमांहि, (२)ते एहमांहि जाणवा. गौतमपृच्छा-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: वसंतपुर नगरने विषे; अंति: वली घणो उदय थाइ. २६६६९. (+) कुलध्वज चोपई, संपूर्ण, वि. १८५०, पौष कृष्ण, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. सिरसी, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १३-१४४३५-४२). कुलध्वज चौपाई-शीलविषये, मु. उदयसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुतदेवी समरु सदा; अंति: चढती रे पदवी श्रीकार, ढाल-२९. For Private And Personal use only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६६७०. सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६६-४८(१,४ से ५०)=१८, पू.वि. गाथा ३ से १४ व गाथा २२८ से ३१४ तक है., जैदे., (२७.५४१२.५, ३-४४३९-४२). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २६६७१. षोडशक प्रकरण सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९५९, फाल्गुन कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४९, ले.स्थल. नागोर, प्रले. पुनमचंद व्यास (नागोरवाला), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२७७१३, १३-१४४४४-४७). षोडशकाधिकार प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं वीरं; अंति: ननु हारिभद्रमिदम्, __ अध्याय-१६, श्लोक-२५६. षोडशक प्रकरण-सुगमार्थकल्पना वृत्ति, आ. यशोभद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११वी, आदि: अमृतमिवामृतमनघं जगाद; अंति: (१)द्वारेण संस्तौति, (२)मंडलभास्वरं स्थानम्. २६६७४. कुलक, गाथा व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ५, जैदे., (२८x१३, ७-१७X४०-४४). १. पे. नाम. इरियावही कुलक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिगह; अंति: जीव निच्चंपि, गाथा-१२, (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा का टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. पोषध कुलक, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. पौषध कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: छत्तीसदिवससहस्सा; अंति: धम्मम्मि उज्जमहो, गाथा-१६. ३. पे. नाम. सामायक ३२ दोष, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पल्लत्थी अथिरासणं; अंति: वसे सव्व सुह लच्छी, गाथा-६. ४. पे. नाम. विविधविषये गाथा संग्रह, पृ. ४अ-१७आ, संपूर्ण, पे.वि. विविध विषयों की गाथा संग्रह नामक कृति दो अंश में विभक्त है. प्रथम अंश ४अ-५आ व द्वितीय अंश १२अ-१७आ तक है. जैन गाथा*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ६अ-११आ, संपूर्ण. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६६७५. दिवालिपर्वनो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. सरसपुर, प्रले. मु. मोतीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४३५). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, म. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमणसंघ तिलकोपम; अंति: श्रीगुणहर्ष वधामणां, ढाल-१०, गाथा-१२५. २६६७६. जीवविचार सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२८x१३, ५४३१-३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन त्रिभुवनतणो; अंति: समुद्रमांहि थकी, संपूर्ण. २६६७७. वीसथानिकस्तवन पूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. कुल ग्रं. ३५०, दे., (२८x१३, १२४३९-४२). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: २० तवन कहीने पूजे, ढाल-२०. २६६७८. वीसस्थानक पूजा व स्नातस्या स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, प्रले. पं. गौतमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८.५४१३, १०x२९-३१). For Private And Personal use only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १. पे. नाम. २० स्थानक पूजा, पृ. १आ-१५अ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: पभणै सयल संघ जयकरू, ढाल-२०. २. पे. नाम. स्नातस्या स्तुति, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. २६६७९. अणुत्तरोववाईदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७८, कार्तिक शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १५, दे., (२७७१३, ८४३८-४३). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: तहा णेयव्वं, __ अध्याय-३३. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आठमां अंतगडदशांगने; अंति: त० तिमज ने० जाणीवा. २६६८२. चौमासी देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-२(१ से २)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२७४१३, ११४३३-३५). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. आदिजिन स्तवन अपूर्ण से शाश्वतजिन स्तुति तक है.) २६६८६. इकवीसठाणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२७.५४१३, ३-५४३५-३६). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिंहाथी आवी उपना ते; अंति: बोल साधारणपणे कहिया. २६६८७. निशीथसूत्र-अपवाद विचार व पच्चीसबोल, संपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, ले.स्थल. अजमेरगढ, प्र.वि. कुल ग्रं. ७५३, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२८x१३, १९४४३-४५). १. पे. नाम. निशीथसूत्र अपवाद विचार, पृ. १अ-१३आ, संपूर्ण. निशीथसूत्र-अपवाद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: निशीथसूत्र महाउत्सूत; अंति: वली प्रस्तावि जाणीसइ. २. पे. नाम. निशीथसूत्रे पच्चीसबोल विचार, पृ. १३आ, संपूर्ण. निशीथसूत्र-२५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्रवादी इम कहइ जे; अंति: सेवा करइ तो निर्दोष. २६६९०. वसुधारा स्तोत्र विधियुक्त, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे., (२८x१३, ७-१२४३१-३२). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भोगयोगं च विधत्ते. २६६९१. (+) पंचज्ञान पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२८x१३, १०-११४३६-३८). ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८७, आदि: सकल कुशल कमलावली; अंति: रूपविजय गुण गाया रे, ढाल-११. २६६९३. सगरराय व ४ गोला चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, दे., (२८x१२.५, १०-१२४३१-३२). १. पे. नाम. सागरराजा चौढालीयो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सागरचंद्र चौढालिया, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: सागररायनी वारता कह; अंति: धर्म विरत सेवज्यो, ढाल-४. २.पे. नाम. ४ गोला चौढालीयो, पृ. ३अ-७आ, संपूर्ण. ४ गोलेयादि चौढालीयो, मु. धनदास, रा., पद्य, आदि: संतनाथजी सोलमा सांति; अंति: सुभ भाव तुम राखो, ढाल-४. २६६९४. योगोद्वहन विधि व उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ४, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, कुल पे. २, दे., (२८x१३, १३४३८-३९). १. पे. नाम. योगोद्वहन विधि, पृ. १आ-४०अ, संपूर्ण. योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीआवश्यक सुअक्खधो; अंति: जाव सुट्ट इत्थं. For Private And Personal use only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ४, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २६६९५. पुण्यपाप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. रचना के समीपवर्ति काल में प्रति लिखी होने की संभावना है.. जैदे., (२७.५४१३, १२-१३४२८-३१). पुण्यपाप स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: सरसतिनैं प्रणमु सदा; अंति: विवेक लहे आणंद ए, ढाल-११. २६६९६. मौनएकादशी देववंदन सविधि, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(४)=१०, दे., (२८x१३, १०४३३-३४). मौनएकादशीपर्व देववंदन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल नयर सिणगार हार; अंति: दान नमी धरि जेह. २६६९८. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(५ से ६)=७, दे., (२८x१३, १०४३२-३३). स्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंति: जीवन प्राण आधारो रे, स्तवन-२४, (पू.वि. स्तवन-१० गाथा ६ से स्तवन-१८ गाथा-२ तक नहीं है.) २६७००. द्विजवदन चपेटा व वीतराग स्तोत्र-प्रकाश ७, संपूर्ण, वि. १९५२, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, दे., (२८x१३, १४४४१-४५). १. पे. नाम. द्विजवदन चपेटा, पृ. १आ-१४अ, संपूर्ण. द्विजमुखचपेटा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: सद्भूत भाव्यर्थविकास; अंति: हारितं ताम्रभाजनं, श्लोक-४२१. २. पे. नाम. वीतराग स्तोत्र-प्रकाश ७, पृ. १४आ, संपूर्ण. वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २६७०४. सूक्तमुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८५१, चैत्र शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. भोपावर, प्रले. मु. राजाराम मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९x१३.५, १७४३७-३९). सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: कीदृशो यज्ञः धर्म, श्लोक-७७७. २६७०५. सूयगडांगसूत्र सह टबार्थ-द्वितीय श्रुतस्कंध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. दे., (२७.५४१३, ६-७४४०-४५). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २६७०६. योग विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, दे., (२७.५४१३, १०-१३४२७-३१). अनुयोग विधि, मा.गु.,प्रा.,सं., गद्य, आदि: मुहपत्ती पडिलेही; अंति: मास १९ दिन १८. २६७०७. योग विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७७१३.५, १३४३१-३३). योग विधि-खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हर्षसार गुरुचरणद्वय; अंति: (-). २६७०८. षट्पुरुष स्वरूप विचार व आत्मनिंदा श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, जैदे., (२९x१३.५, १५४४०-४१). १. पे. नाम. षट्पुरुष स्वरूप विचार, पृ. १आ-२०अ, संपूर्ण. षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमकर, सं., प+ग., आदि: श्रीअर्हतश्चतुस; अंति: (१)श्रीमत्तीर्थंकरा, (२)श्रयिणं विचारम्. २. पे. नाम. आत्मनिंदा श्लोक, पृ. २०अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अति: (-), गाथा-१. २६७११. पर्युषणाशतक सह स्वोपज्ञ व्याख्या , अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा-१९ तक है., प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२८.५४१३, १४-१६x४६-४९). पर्युषणाशतक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं वीरजिणिद; अंति: (-). पर्युषणाशतक-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. धर्मसागर, सं., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)नमिउं० श्रीवीरजिनेंद; अंति: (-). For Private And Personal use only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४५३ २६७१६. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. कलोल, प्रले. त्रिभोवन मोहनलाल बारोट, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१३.५, ५-११४२९-३१). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५. २६७१७. नवतत्त्व सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-४८ तक है., जैदे., (२७७१३, ४४२४-२९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-). नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व जेह प्राण; अंति: (-). २६७१९. मोहनविजैजीकृत चोवीसी, संपूर्ण, वि. १९०३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. रतलाम, जैदे., (२८x१४, १२-१६x४१-४६). स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर सेवना; अंति: वसीयो तु विसवावीस रे, स्तवन-२४. २६७२१. वाग्भट्टालंकार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, दे., (२७.५४१४, ९-१९x४५-५१). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: सारस्वताध्यायिनः, परिच्छेद-५. २६७२४. विचार संग्रह व गाथा, अपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(३)=५, कुल पे. २, ले.स्थल. भृगुपूर, प्रले. पं. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन संवत् पत्रांक १आ पर एवं प्र.ले. स्थल २आ पर दिया गया है. श्री पार्श्वनाथजी सत छै जी., जैदे., (२९४१५, २०-२१४३९-४६). १. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ६अ, संपूर्ण. जैन गाथा*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. २६७२५. दंडकना २९ द्वार, संपूर्ण, वि. १८९३, आश्विन कृष्ण, ११, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. राधनपुर, पठ. सा. तेजश्रीजी; प्रले. सा. वीरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१५, १४४२७-३२). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. २६७२८. दिवाली कल्प का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९५, भाद्रपद कृष्ण, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले.स्थल. साइला, प्रले. ग. जतनकुशल (गुरु ग. अमृतकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री अजितनाथजी प्रसादात्., दे., (२८x१४.५, १४४४२). दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: लगे जगतने विषेइ रहो, ग्रं. ५७२. २६७३३. (+) सीमंधरस्वामी स्तवन, विशस्थानकतप स्तवन व महावीरस्वामीनु हालरडु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२२.५४१३, १४४३१-३५). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामि स्तवन, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. कृति का प्रक्षिप्त अंश पत्रांक-९आ पर है. सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५. २. पे. नाम. वीशस्थानकतप स्तवन, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीशस्थानक तप सेवीयै; अंति: वखतचंद्र मुनिवरो, ढाल-३, गाथा-१८. ३. पे. नाम. महावीरजिन हालरडु, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण. आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला झुलावे; अंति: होजो दीपविजय कविराज, गाथा-१७. For Private And Personal use only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६७३४. (#) श्रीपाल रास - खंड १ से ३, संपूर्ण, वि. १९१७, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३४, ले.स्थल. आवलकोटी, प्रले. ग. भाग्यविजय (गुरु पंन्या. जयविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, ११-१३४४०-४८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २६७३५. विविधतपविधि संग्रह व चक्रवर्ति आदि के नाम, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४-७(१ से ७) =७, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, १२४३३). १.पे. नाम. विविधतपविधि संग्रह, पृ. ८अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भव मुक्तिपद पावै. २. पे. नाम. चक्रवर्ति, वासुदेव, बलदेव, प्रतिवासुदेव नाम, पृ. १४आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६७३६. आणंदश्रावकरी संधि, संपूर्ण, वि. १९५०, आश्विन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. मु. सुजाणमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१३, १४४३५). आनंदश्रावक संधि, पा. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणे मुनि श्रीसार, ढाल-१५. २६७३७. खेचरमंजरी की ग्रहगतिकरणी सारणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. अहिपुर(नागपुर), प्रले. मु. रत्नचंद्र (कमलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *पंक्त्य क्षर अनियमित है., दे., (२७४१३, ९-१०४३३-४०). खेचरमंजरी-ग्रहगतिकरणी की सारणी, संबद्ध, रा., यं., आदि: वक्रीमार्गी रो चार; अंति: दीयो० स्पष्ट गति हुइ. २६७३८. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन अधिकमास कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. यस्तर, प्रले. नानूराम; पठ. श्रावि. दीवालीबाई; लिख. मु. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १२५०, दे., (३०x१५, २-१०४२७-४३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-९७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ग. मानविजय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनं नत्वा; अंति: अतीतकाले थया तेह थकी. २६७३९. पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकक्षमासमण, संपूर्ण, वि. १९३७, पौष शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. सिवगंज, प्रले. मु. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री पार्श्वनाथाय नमः., दे., (२५४१३.५, १३४३७). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण. __ हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: (१)जेसिं सुयसायरे भत्ति, (२)मिच्छामि दुक्कड. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षमासमण, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: इच्छामो अणुसट्ठिअं, आलाप-४. २६७४३. (+) पजोसवणा कप्पो, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रावण कृष्ण, ८, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ.७०, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. अमरदत्त ब्राह्मण; पठ. सा. सौभाग्यश्रीजी (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२९x१४, ९४३१-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. २६७४६. धर्मनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. श्राव. माणकचंद मयाराम भोजक; पठ. श्राव. शंकर माणकचंद भोजक (पिता श्राव. माणकचंद मयाराम भोजक), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.१x१३, १३४३२-३४). धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंतवू; अंति: विनयविजय रसपूर, गाथा-१३७. २६७४७. अकबरपातसाह अने हीरसूरिनी कथा, संपूर्ण, वि. १९६१, कार्तिक कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. राजनगर, लिख. सा. मुक्तिश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, १२४३२-३७). For Private And Personal use only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४५५ अकबर पातिशाह व हीरविजयसूरि की कथा, मा.गु., गद्य, आदि: संवत पनर आसिये १५८३; अंति: लेशमात्र लिख्यो छे. २६७४८. (+) प्रतिष्टा विधि, संपूर्ण, वि. १८६२, वैशाख शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. रतलाम, प्रले. मु. रूपसागर; पठ. पं. दीपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, १५४३७-४१). प्रतिष्ठा विधि, सं.,मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वोक्त शुभ दिवसे; अंति: गृहमध्ये पण छांटq. २६७५०. (+) विसस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९४०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. नागोर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२६४१३, १४४३४-४५). २० स्थानक पूजा, आ. विजयानंदसूरि, गु., पद्य, वि. १९४०, आदि: समर सरसभर अघहर; अंति: मनत होय एक रंगी, पूजा-२०. २६७५१. पुन्यप्रकाश स्तवन व जीव रास, संपूर्ण, वि. १९३९, आषाढ़ शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. वाल्हीनगर, प्रले. पं. तिलोकविजय (गुरु पं. नित्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री धरमनाथजी प्रसादात्., दे., (२५.५४१२.५, १३४३३). १. पे. नाम. पुन्यप्रकास स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-९६. २. पे. नाम. जीव रास, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: पापथी छुटे तत्काळ, ढाल-३, गाथा-३५. २६७५३. दसमीकालकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८, प्रले. मु. तोलाराम महात्मा; मु. केसरीचंद महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२.५-१४.०, ७४३९-४९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: धम्मो० धर्म श्रीजिन; अंति: स्वमति करी नथी कहतउ. २६७५४. योगशास्त्र - प्रकाश १ से ४, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, दे., (२६४१२, १२४३५). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २६७५५. माहावीरस्वामीजीनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, दे., (२६.५४१२, १२४२२). महावीरजिन स्तवन-पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३. २६७५६. विक्रमादित्य रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-१९(१ से १९)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५.५४१२, १३४२८). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१९ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-२८ गाथा-१५ तक है.) २६७५७. बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६-८(३ से ४,६ से ७,१८ से २०,२२)=१८, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्र के दोनों भाग कटे व फटे होने से कुछेक पत्रांक नहीं मिल रहे है. जिसे अंतिम पत्र के रूप में गिनकर हल किया गया है., जैदे., (२८x११.५, १७४४५-५०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-). बृहत्संग्रहणी-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं० श्री वीतराग; अंति: (-). २६७६०. गांगेयभांगा की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (३०x१४, ११-१४४३६-४२). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतकए उद्देश ३३गत गांगेयभांगा की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वंदित्वा वर्द्धमानं; अंति: बाहुल्यात् न लिखिता. For Private And Personal use only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६७७०. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्र.ले.श्लो. (७९) एक पोथी और एक पद्मनी, दे., (३०x१४, ७७२१-२५). प्रतिक्रमणसूत्र-उपकेशगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम स्थापना; अंति: तीननोकार गुणकै उठै. २६७७१. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९१, आश्विन कृष्ण, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. थिरादनगर, प्रले. श्राव. मयाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.१४१२.१, ११४४०). महावीरजिन हुंडी स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना पय; अंति: आणा सिर वहेस्येजी, ढाल-६. २६७७६. विविध गाथा व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१०(१ से ७,१३ से १५)=९, कुल पे. १४, दे., (२७.१४१२.१, ९४२६-२९). १. पे. नाम. प्रतिक्रमण संबंधितसूत्र, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. चौदनियम गाथा, पृ. ८अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ३. पे. नाम. दसपच्चक्खाणसूत्र, पृ. ८अ-११अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ४. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: प्राणभाजां श्रुतांगी, श्लोक-४. ५. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. द्वितीयातिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ६. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ७. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४, (पू.वि. मात्र अंतिम श्लोक है.) ८. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तिअहार सुतारगण; अंति: सुहाणि कुणे सुसया, गाथा-४. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापण; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: मज्जन शस्तिनिजाघ, श्लोक-४. ११. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. १२. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिमधिपं; अंति: मंगल सिद्धये स्तात्, श्लोक-४. १३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: मंगल सदा अंबा देवियै, गाथा-४. १४. पे. नाम. वर्धमानजिन स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: नवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. For Private And Personal use only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २६७७९. हुतासनी कथा व धुलाडीपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १८५४, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. त्रंबावतिबिंदिर, प्रले. ग. केसरविजय; पठ. मु. दीपविजय (गुरु ग. केसरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीजीरावल्लीपार्श्व प्रसादात्., दे., ( २९x१२.५, १३X३१-३२). १. पे. नाम. हुताशनीपर्व कथा, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. होलीपर्व कथा - अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) श्रीवर्द्धमानजिनं, ( २ ) श्रीवीर वर्द्धमान; अंति: उत्पत्ति थइ छे. २. पे. नाम. धूलेटीप्रतिपदा कथा, पृ. ४अ - ५अ, संपूर्ण. धूलाडी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: हवें धुलाडी परव कीम; अंति: सर्वक्रिया सफल थाय. २६७८२. नंदीश्वरद्वीपगत द्वापंचाशजिनप्रासाद पूजा, संपूर्ण, वि. १९१५ श्रावण कृष्ण, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. भेरवचंद मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. २००, दे., ( २६.१X१२.१, ११x४३). नंदीश्वरदीप जिनालयपूजा सविधि, पंन्या. रुपविजयजी मा.गु., पच, वि. १८७९, आदि: चिदानंद पूरणकला विघन; अंति: (१) नवनिधि ऋद्धि पावे रे, (२) सुंदर होय ते चढाविइ, ढाल ८. " " २६७८५. भगवतीसूत्रगत संजया नियंट्ठा आलापक सह विवरण- उद्देश ६-७, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२७.१४१३, २०४८-५४). भगवतीसूत्र - नियंडा - संजया आलापक, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: पनवणा १ वेय २ रागे ३; अंतिः बहु ३६ निर्वाणं. भगवतीसूत्र - नियंट्ठा - संजया आलापक- बोल, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै पनवणा द्वार; अंति: एक मिथ्यादिष्टी दालि. २६७८७. (+) स्तोत्र संग्रह सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ४, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (३०x१२.५, ५x२८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन सह टिप्पण, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्यसत; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक - ९. पार्श्वजिन स्तोत्र - लक्ष्मी-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: ( - ); अंति: (-). २. पे. नाम, नेमिजिन द्विअक्षरस्तोत्र सह टिप्पण, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, मिजिन द्विअक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनानून मानेनानोन्; अंति: वध्वाः परिभोगयोग्याः, श्रोक- ९. ४५७ For Private And Personal Use Only नेमिजिन द्विअक्षर स्तोत्र - टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र सह टिप्पण, पृ. ३आ - ४आ, संपूर्ण. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, आ. जिनचंद्र, सं., पद्य, आदि; श्रीनाभिराजतनुजः; अंतिः भिदजिरं भवहारभावं श्लोक-१०. २४ जिन स्तोत्र - टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे नाम, यमकाष्टक स्तोत्र सह टिप्पण, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण. यमकाष्टक स्तोत्र, आ. अमरकीर्ति, सं., पद्य, आदि: विधास्यदाहत्य पर्व अंतिः भव्यो भारतीमुखदर्पणः, श्लोक १०. यमकाष्टक स्तोत्र - टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६७८९, (+) उपदेशमाला सह टीका+कथा, संपूर्ण, वि. १९५९-१९६० आश्विन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १५४+१ (७९) = १५५, ले.स्थल. अणहिल्लपत्तन, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - त्रिपाठ., दे., (२९.५X१३, १३-१४×५५-५७). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंतिः ववण विणिग्गया वाणी, गाथा - ५४४. उपदेशमाला-वृत्ति, ग. रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदिः श्रेयस्करं कामितदान; अंति: वाणी श्रुतदेवी. २६७९०. गौतम कुलक सह बालावबोध+कथा, संपूर्ण, वि. १९४३, फाल्गुन कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३१२+१(१४३)=३१३, ले. स्थल. पाली, प्रले. सूरजमल ब्राह्मण; पठ. सा. गुलाबश्री (गुरु सा. चंपा ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कुल ग्रं. ११२५०, दे., (२९.५X१३, ११x४३-४४). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्यपरा; अंतिः सुहं लहंति, गाथा - २०. Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतम कुलक-बालावबोध+कथा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८४६, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर; अंति: तिष्ठत्शुद्धवासनः. २६७९२. दुषमप्राभृत सह यंत्र, संपूर्ण, वि. १७०५, कार्तिक कृष्ण, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २९, ले.स्थल. पाटण, उप. आ. विजयदेवसूरि (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि*, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९.५४१२.५, १२४२७-६१). युगप्रधान स्वरूप, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा.,सं., पद्य, आदि: बीइ तेवीस तीइ अड नवइ; अंति: होइ तउ सिज्झहि भरहे. दुषमप्राभृत-यंत्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., को., आदि: (-); अंति: (-). २६७९३. श्रावक पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९१४, वैशाख शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. वटपद्र, प्रले. अमरचंद माणिकचंद भोजक; लिख. श्रावि. मुलीबाई भाइचंदभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२.५, ११-१२४३२-३४). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमि दसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २६७९६. पुण्यपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२६.१४११, २७X७५-७७). पुण्यपाल चौपाई, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: आदेसर आदे करी चौवीस; अति: कमुना न रही काय, ढाल-१९. २६७९७. (+) आवश्यकसूत्र की सामायिकअध्ययन नियुक्ति सह विशेषावश्यकभाष्य व बृहद्वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८००, माघ शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६७६, ले.स्थल. सूरतबंदर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २८२००, प्र.ले.श्लो. (३२१) भग्ननेत्रं कटि ग्रीवा, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (६५४) जला रक्षे स्थलाक्षे, जैदे., (३०x१३, १५४४३-४७). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा सामायिकअध्ययन नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं सुयना; अंति: जंचरणगुणट्ठिओ साहू. विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: कयपवयणप्पणामो वोच्छं; अंति: जोग्गो सेसाणुओगस्स, गाथा-३६२२. विशेषावश्यकभाष्य-शिष्यहिता बृहट्टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. ११७५, आदि: श्रीसिद्धार्थनरेंद्र; अंति: त्तिर्निष्पत्तिमागता. २६८००. वज्जालग्ग, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८, पृ.वि. पत्रांकहीन अस्तव्यस्त पत्र, प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं है, जैदे., (३०x१२, १४४४५). वज्जालग्ग, क. जयवल्लभ, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). २६८०१. (#) सिद्धहेमशब्दानुशासन की लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १४६३, फाल्गुन कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८३-५४(१ से ४१,६७ से ७६,७८ से ८०)=२९, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्रले. वैजनाथ ब्राह्मण; पठ. पं. धर्मानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१२, १५-१७४४०-४५). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: वपेक्षैव सामर्थ्यम्. २६८०३. विविध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७-३३(१ से ३०,५६ से ५८)=३४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे., (३०x१२, १२-१३४४२-४८). विविध विचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २६८०४. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५६, वैशाख कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८३, दे., (३०x१२, ३-४४४३-४८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, __ अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. श्रीपाल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: तुज प्रतइ कहु छु. २६८११. (+) वर्द्धमानविद्या कल्प, वर्द्धमानविद्या यंत्रविधि स्तव व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६७५७-६५). १. पे. नाम. वर्द्धमानविद्या कल्प, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ आ. वज्रस्वामि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ हीं अहँ हूं; अंति: ोत्तरोत्तरा. २. पे. नाम. वर्द्धमानविद्या कल्प, पृ. ५अ, संपूर्ण. वर्द्धमानविद्या यंत्रविधि स्तव, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: जिनबीजांतः प्रणव; अंति: सिंहतिलकसूरिरिमां, श्लोक-१९. ३. पे. नाम. मंत्र, पृ. ५अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २६८१३. (+) सारस्वत व्याकरण-भ्वादि प्रकरण सह धातुप्रत्ययार्थ विवृति व सुभाषित, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (३०x११.५, ८-९४३८-४१). १. पे. नाम. सुभाषित, पृ. १अ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. २. पे. नाम. सारस्वत व्याकरण का हिस्सा भ्वादिप्रकरण सह धातुप्रत्ययार्थ विवृति, पृ. १आ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., भ्वादि प्रकरण से प्रारंभ होकर परस्मैपद के 'अनद्यतनेतीते' सूत्र तक है. सारस्वत व्याकरण-हिस्सा भ्वादिप्रकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). सारस्वत व्याकरण-हिस्सा भ्वादि प्रकरण की धातुप्रत्ययार्थ विवृति, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीसर्वज्ञमुखांभोज, (२)अधिकारोयमित्याह इदम्; अंति: (-), (वि. प्रत की हुंडी में चं. टी.' अर्थात् चंद्रकीर्ति टीका होने की संभावना है, परन्तु चन्द्रकीर्ति टीका से पाठ मिलाने पर यह प्रतीत होता है कि चंद्रकीर्ति टीका पर से कोई दूसरी टीका होनी चाहिये.) २६८१६. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२०+१(१५६)=२२१, जैदे., (३०४११.५, १७४६८-७०). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका, मु. ब्रह्मर्षि, सं., गद्य, आदि: अपारे किल संसारे; अंति: पारतंत्र्यमभिहितम्. २६८१७. (+) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य व श्लोक, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०८+१(७७)=१०९, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२९४११.५, ९४३५-३८). १. पे. नाम. कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, पृ. १आ-१०८आ, संपूर्ण. ____ कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जयति जगदेकचक्षुः कमल; अंति: श्रीसंघभट्टारकः. २. पे. नाम. श्लोक, पृ. १०८आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम श्लोक अपूर्ण तक है.) २६८१८. सुबाहुकुमार संधि, मेघकुमार चौढाल्या वैराग्यछत्तीसी व संयती चौढाल्या, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ४, दे., (२६४११.५, २१४५६-५८). १. पे. नाम. सुबाहुरिषि संधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सुबाहुकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६०४, आदि: पणमि पास जिणेसर केरा; अंति: थायउ नितु भणतां, ढाल-७, गाथा-९९. २.पे. नाम. मेघकुमाररिषि गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: देस मगधमाहे जाणीयइ; अंति: कवि कनक भणइ निशदीश, ढाल-४. ३. पे. नाम. बयराग्यछत्तीसी, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. वैराग्यछत्तीसी, मु. ज्ञानसमुद्र, रा., पद्य, वि. १७७३, आदि: समझि समझि मन गति; अंति: दोशीवंश उदारो जी, गाथा-३६. ४. पे. नाम. संयतीरोचौढाल्यो, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. संयती चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: चरम जिणेसर प्रणमी; अंति: अठारमा अध्ययनमांहि, ढाल-४. २६८१९. अंजनासुंदरीपवनकुमार संबंध व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१९, चैत्र कृष्ण, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. २२, कुल पे. २, दे., (२६४१२, १४४३९). For Private And Personal use only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. अंजनासुंदरीपवनकुमार संबंध, पृ. १अ-२२आ, संपूर्ण. अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: ऋद्धि वृद्धि मंगलमाल, खंड-३ ढाल २२, गाथा-६२२, ग्रं. ९०५. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २२आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-४. २६८२१. उपदेश संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२७.५४११.५, १२४३८). जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६८२२. (+) स्थानांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९.५४११, १३४४७-५०). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेण; अंति: अणता पण्णत्ता, स्थान-१०, ग्रं. ४०९९. २६८२३. (#) दशआश्चर्य वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ९-१३४३५-३७). कल्पसूत्र-दशआश्चर्य वर्णन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: उवसग्ग गब्भहरणं इत्थ; अंति: प्रकारा० अछेरा जाणवा. २६८२४. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार - पन्नवणा पद-२३ द्वितीय उद्देशे, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२६.५४११, १८४५३-६०). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कर्म आठनी प्रकृतिनी; अंति: बांधे ते संखेजगुणा. २६८२५. विक्रमादित्य चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१२, माघ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. गढबोरग्राम, प्रले. मु. हर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, २१४४६-५१). विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंति: तेहने सदा हुइ कल्याण, ढाल-२७, गाथा-६०५. २६८२८. पांचकारणसंवादवर्णन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. नारायण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, ११४३१). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: परे विनय कहे आणंद ए, ढाल-६, ग्रं. ८६.। २६८२९. पासाकेवली सुकनावली, संपूर्ण, वि. १८१३, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. हेमचंद कलाजी वाणारस; राज्यकाल रा. खानजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, ११४३२). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अति: श्रीकार छ सही सत्यं. २६८३०. जिणरास, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३७-४२). जिणरस, मु. वेणीराम, मा.गु., पद्य, वि. १७९९, आदि: गणपद सारद पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. रचनाप्रशस्ति अपूर्ण तक है.) २६८३१. (+) लोगस्ससूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, १५४५५-६९). लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चउद राजलोकमाहि; अंति: प्रते मुझने द्यो. २६८३२. (+) शेव॑जयमंडण महातीर्थोद्धार व अरहन्नामुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४११.५, १२४३९). १. पे. नाम. शेव्रुजयमंडण महातीर्थोद्धार, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल: अंति: द्यो दरिशन जयकरो, ढाल-१२, गाथा-१२१. २. पे. नाम. अरहनामुनि चौपाई, पृ. ६अ, संपूर्ण. For Private And Personal use only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ www.kobatirth.org ४६१ अरणिकमुनि रास, ग. महिमासागर, मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि: सरसति सामिणि वीनवुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ६ तक लिखा है. ) २६८३३. . (+) श्राद्धातीचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., १३x४२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विशेष पाठ, जैदे. (२६४११, , श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २६८३४. कल्याणमंदिर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३१, आषाढ़ कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५, वे. (२६४११.५, १३x२६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २६८३५. (+) च्यारप्रत्येकबुद्ध चोपई, संपूर्ण, वि. १८२२ फाल्गुन कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले. स्थल. पुष्पावतीनगरी, प्र. ग. चतुरविजय (गुरुग ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२७.५x११.५, १४४६०). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंति: उदय० आणंद लीलविलास, खंड-४ डाल४४, पं. १२१९. २६८३६. विक्रमचरित्र लीलावतिचोबोलि चरित्र, संपूर्ण, वि. १८०२, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. ग. विनयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमहावीर प्रसादात्., जैदे., (२६X११.५, १७x४४). विक्रमचौबोली रास - पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंतिः मतिसुंदर काजे कही, डाल- १७. २६८३७. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., ( २६११.५, ९x१९-२४). 9 जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपाईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ४३ तक लिखा है. ) २६८३८. घग्घरपार्श्वजिन निसाणी, दादाजी रो छंद, जिनकुशलसूरि सवैया व लेश्या विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ४, दे., (२५.५X११.५, १०X३०-३५ ). १. पे. नाम. लेश्या विचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. जैन गाथा *, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), गाथा - १०. २. पे. नाम. दादाजी रो छंद, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, उपा. अभवसोम, मा.गु., पद्य, आदिः समरं माता सरसती; अंतिः विजेसंघ लीला बरी, २६८४०. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, वे. (२६४११.५, ११४३३). " गाथा - ३१. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि कवित, पृ. ३आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि सवैया, रा., पद्य, आदि कला किलोल काम मन; अंति; कीरतन श्रीजिनकुशल रा, सवैया- १. ४. पे. नाम. घुघर णीसांणी, पृ. ४अ-७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी - घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदिः सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: जिनहरष० कहंदा है, (वि. गाथा क्रमांक नहीं दिया गया है.) For Private And Personal Use Only " विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६८४१ (+) शोभन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७६३, माघ कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. ग. जयविजय (गुरु ग. नित्यविजय); पठ. श्रावि. पांखडीबाई; श्रावि. लालबाई, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६१२, १३X३४). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकः अंतिः हारताराबलक्षेमदा, स्तुति- २४, श्लोक-१६. २६८४३. कल्याणमंदिर स्तवन सह बालाविबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. पंचपाठ., जैदे., (२७X११, ९X२५-३६). Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमंदिरमुदार; अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) कल्याणमंदिर स्तवननुं, (२) जिनेश्वर तीर्थंकरनुं अंतिः आपणउं नाम जणाविउ, 9 पद्मप्रमोद; २६८४४. (+#) गौतमपृच्छा चुपड़, संपूर्ण, वि. १६६२, माघ शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. पठ. श्रावि. वल्हादे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १५X४४). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: मन जे जिनवचने वसिउ, गाथा - १२१. २६८४५ (+) कर्मग्रंथषट्कं संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे., ( २६५११, १७X६७). १. पे नाम, कर्मविपाक, प्र. १अ २अ, संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि सिरिवीरजिणं बंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६०. २. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि; तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ३४. ३. पे, नाम, बंधस्वामित्व, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: बंधविहाणविमुक्कं अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा - २५. ४. पे. नाम षडशीति कर्मग्रंथ, पृ. ३अ ५अ संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा -८६. ५. पे. नाम. शतक, पृ. ५अ - ७अ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणं ध्रुवबंधोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणड्डा, गाथा - १००. ६. पे. नाम. सप्ततिका, पृ. ७अ - ८आ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, आदि सिद्धपएहिं महत्वं; अंति: एगुणा होइ नउईउ, गाथा - ९०. २६८४६. (#) शब्दसाधनिका, संपूर्ण, वि. १५४५, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. लासनगर, प्रले. ग. माणिक्यशुभ ( गुरु ग. शांतिक्षेम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, २१X५४). सिद्धमशब्दानुशासन- शब्दसाधनिका, संबद्ध, सं., गद्य, आदि; ध्यात्वा वाग्देवता; अंतिः शेषं स्पष्टं. २६८४८. आर्यवसुधारा धारिणी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, वे., (२५.५X१२, ११४३७) वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. २६८४९. (-) साधवदणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. सा. पारवती (गुरु सा. लालजी); पठ. सा. सरुपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७.५X१२, १४x२५-३०). साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि नमुं अनंत चोवीसी; अंतिः जेमलजी एह तरणनो दाब, गाथा ५४ (वि. दो-दो गाथाओं को एक गाथा गिनी गयी है.) २६८५३. संग्रहणी प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५ - १७ (१ से १७ ) = ८, दे., ( २६.५x१२, १०X३०-३४ ). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३१२, ( पू. वि. गाथा - १९९ से है . ) For Private And Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४६३ २६८५४. नंदीश्वरपूजा विधान, संपूर्ण, वि. १९०८, आश्विन शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ६९, ले.स्थल. ईसरदा, प्रले. शिवनारायण जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, ७४३२). पंचमेरु पूजा विधान, जै.क. टेकचंद, पुहि., पद्य, आदि: वानी पूजौ देवां केरी; अंति: (१)शास्त्र० समझि लेना, (२)समुच्चै आरति अधैं. २६८५५. अठाईपर्व व्याख्यांन, संपूर्ण, वि. १९११, फाल्गुन शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.७, १२४४३). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: (१)शांतीशं शांतिकर्तार, (२)इहां समस्त खोटै कर्म; अंति: मनोवांछित सिद्ध हुवै. २६८५७. हरिबल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०, दे., (२५.५४१२, १४४३३). हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधर जगधणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उल्लास-२ ढाल-१३ गाथा-१ तक है.) २६८५९. अष्टोतरी स्नात्र विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२६४१२.५, १२४३१). अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम उपगरण मेलवा ते; अंति: पणासेउ स्वाहा. २६८६४. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १७८६, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मानसंग जेठा भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.१x१२, १०४३७). मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरस्वामी चरम; अंति: सांभलीने प्रमाण कीधी. २६८६५. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (३१.५४१३, १३४४२). महावीरजिन स्तवन-ज्ञानादिनयमतविवरणगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: श्रीइंद्रादिक भावथी; अंति: पभणे संघने जयकार ए, ढाल-७. २६८६७. (+) सिंदूरप्रकर कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-२३(१ से २३)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.१x१२, १८४२७). सिंदूरप्रकर-कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६८६८. हरिबलमच्छी रास, संपूर्ण, वि. १८७४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८७, प्रले. मूलजी जगजीवन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.१x११, १४४३९-४२). हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१०, आदि: प्रथम धराधव जगधणी; अंति: ए वाचा फलजो रे, उल्लास-४ ढाल ५८, ग्रं. ३७५१. २६८७०. स्थूलिभद्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, दे., (३१.५४१३.५, १४-१६x४०-४७). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगि फल्या रे, ढाल-९. २६८७१. अणुत्तरोववाईसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२५४११.१, १६x४७-४९). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-३३. २६८७२. भक्तामर, कल्याणमंदिर व लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १०, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.१, ११४२९). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ५आ-९आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्ष प्रपद्यते, श्लोक-४५. ३. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. For Private And Personal use only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६८७३, (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७३०, पौष शुक्ल १५, सोमवार, मध्यम, पृ. २१, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैसे., (२५x११.१, २x२६ ). 19 नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा - ५४. नवतत्त्व प्रकरण - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व जेह प्राण; अंति: हजी सिद्धि गयो छे. २६८७४ अंजनासुंदरी चतुपदी, अपूर्ण, वि. १८२३, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ३३ - ९ (१ से ९ ) = २४, ले. स्थल. खीवसर, दे., (२५X११, १२x३३). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि (-); अंतिः ऋद्धि वृद्धि मंगलमाल, खंड ३ ढाल २२. २६८७५. दानादिक संवाद व वीरजी रो तवन, संपूर्ण, वि. १८८२, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले. स्थल. पादरु, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५x११.१, १४४२९-३१). १. पे. नाम. दानादिक संवाद, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि प्रथम जिनेसर पाय; अंति समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल ४, गाथा - १०१, ग्रं. १३५. २. पे नाम वीरजी से तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण, महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: शा माटे सायबा सामो; अंति: आवे संग प्रभातोजी, गाथा - ५. २६८७६. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१ (१) = २६, जैदे., (२६X११.१, ५X३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., अध्ययन-२ से अध्ययन - ५ गाथा - ९३ तक है. ) दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अध्ययन-४ अपूर्ण तक लिखा है.) २६८७७. (४) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७४ पौष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल. राधनपूर, प्रले. ऋ. रत्नचंद पठ. श्रावि. वजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X११.१, १०x४१-४४). सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल - ११, गाथा - १२५. २६८८०. लघुशांति व विवाहपटल, संपूर्ण, वि. १९३३, आषाढ़ शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, ले. स्थल. खीवसर, प्रले. मु. रायचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २१.९x१०.१, १०२८). १. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत; अंतिः जैनं जयति शासनम्, श्लोक १९. २. पे नाम, विवाहपडल, प्र. ३अ-८आ, संपूर्ण. विवाहपटल, सं., पद्य, आदि: धनाढ्य माघे सुभगा च; अंति: गुरुर्लग्नं विपोहंति, श्लोक - ९७. २६८८२. पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, पूर्ण, वि. १९३८ माघ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १२-१ ( २ ) =११, कुल पे. २, ले.स्थल. जैबनपूर, प्रले. मु. सवाईसागर (गुरु मु. विजयसागर, तपागच्छ); पठ. मु. सुंदरलाल (गुरु मु. सवाईसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६११.१, १२x४४). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. २अ - १२अ, पूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि: (); अंति: जेसिं सुयसावरे भत्ति. २. पे. नाम. खामणासूत्र, पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण. - हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंतिः नित्थारग पारगा होह, आलाप ४. २६८८४. जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२६४११.१, १४४१५). जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीऋद्धिः; अंति: ( - ). 2 For Private And Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ २६८८५. लोकनालिकाद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७३, फाल्गुन कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १०, ले. स्थल, एमदावाद अमदावाद, दे., (२५४१२, ३३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. २४वी, आदि: जिणदंसणं विणा जं; अंतिः जहा भ्रमह न इह भिसं, गाथा - ३३. ', लोकनालिद्वात्रिंशिका - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे वीतराग देव ताहरु; अंतिः विषइ भिसं वारंवार, २६८८६. बृहत्संग्रहणी का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९ - २ (१ से २) = ७, पू. वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६१२.१, १३४३८ - ४० ). बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६८८७. (#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०९, पौष कृष्ण, ५, रविवार, जीर्ण, पृ. ९, कुल पे. २७, प्रले. मु. गुमानविजय; पठ. मु. जयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२६. १x१२.१, १४४३३). १. पे नाम. असज्झाइ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, कलाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंद पडमं अति अम्ह सया पसत्था, गाथा ४. २. पे नाम बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. . लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा- ४. ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचमी तिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचरुपकरी मेरुशिखर; अंति: हरयो विघन अमाराजी, गाथा- ४. ४. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १आ- २अ संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्म, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंतिः सफल थयो अवतार तो, गाथा- ४. ५. पे नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: कल्याणजी, गाथा- ४. ६. पे. नाम. एकदशी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: सीस० संघ निशदिश, गाधा-४. ७. पे. नाम. पक्खी स्तुति, पृ. २आ - ३अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ८. पे. नाम. दीवाली स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु वीर जिणंदनुचरी; अंति: कहे सदाइ संकट हरे, ४६५ गाथा -४. ९. पे नाम भीलडीपार्थ स्तुति, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति-भीलडीपुरमंडन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भीलडीपुर मंडण सोहिए; अंति: सुख संपत्तिदातार, गाथा ४. १०. पे नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण, गाथा- ४. १२. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी केवला; अंतिः आवागमण निवार निवार, गाथा - १. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा -४. ११. पे नाम, ऋषभदेव स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, For Private And Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६६ www.kobatirth.org १३. पे नाम, नेमजिन स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदिः अबीली छबीली रंगली; अंतिः सानिध करजो हमारी, गाथा- १. १४. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत नमुं वलि सिद; अंतिः नय विमलेसर वर आपो गाथा-४. १५. पे. नाम. शत्रुंजय स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि आगे पूर्व वार नवाणु अंतिः सिद्ध अम्हाराजी, गाथा- ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. १८. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. ५- ६अ, संपूर्ण. १६. पे. नाम. पजुसणपर्व स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि पर्व पजोसण पुन्ये; अंतिः निसदिन देजो बधाईजी, गाथा ४. १७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर अति अलवेस; अंति: सानिध करजो मायाजी, गाथा-४. शांतिजिन स्तुति, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर केसर; अंतिः देजो सुख संभालीजी, गाथा ४. १९. पे. नाम. पजुसणपर्व स्तुति, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदिः परव पजुसण पुन्यै; अंति: संतीकुसल गुण गायजी, गाथा- ४. २०. पे नाम. सुमतिनाथ स्तुति, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण सुमतिजिन स्तुति, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: मोटा ते मेघरथ राय; अंति: ऋषभ कहे रक्षा करो ए, गाथा-४. २१. पे. नाम. जीरावलापार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ७अ - ७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति- जीरावला, मु. वीरमुनि, मा.गु., पद्य, आदि पास जीराउलो पूजो; अंतिः शासन नायक दीपती, गाथा- ४. २२. पे नाम, नेमजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदित पाय; अंति: धरो अंबिक देवीइ, गाथा-४. २३. पे नाम ऋषभदेव स्तुति, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण, आदिजिन स्तुति, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुधर्म देवलोक पहिलो; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा- ४. २४. पे. नाम. संभवजिन स्तुति, पृ. ८अ - ८आ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: निर्भिन्नशत्रुभवभय; अंतिः समानमानमानवमहिताम्, श्लोक-४. २५. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-गंधार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारे महावीर जिणंदा; अंति: सवि जयकारी, गाथा-४. २६. पे. नाम. चोथदिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. चतुर्थीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सरवारथसिद्धथी चवी; अंति: नय धरी नेह निहालतो, गाथा-४. २७. पे नाम, पंचमीदिन स्तुति, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, लोक-४. २६८८९. पन्नवणासूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४६० + १ (४३०) = ४६१, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे., (३०X१४, १४-१५४४७-५०% For Private And Personal Use Only प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: ववगयजरामरणभये सिद्धे; अंतिः सुही सुहं पत्ता, पद- ३६, ग्रं. ७७८७. Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४६७ प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: जयति नमदमरमुकुटप्रति; अंति: लभतां जिनवचनसद्बोधम्, ग्रं. १६०००. २६८९०. योगचिंतामणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८४, फाल्गुन शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १३५, ले.स्थल. रीयानगर, प्रले. मु. कर्मचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ६४५७, जैदे., (२७.१x१४, ७X४०-४२). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: सप्तमको मिश्रकाध्याय, अध्याय-७. योगचिंतामणि-टबार्थ+बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणम्य; अंति: मिश्राध्याय संपूर्ण. २६८९१. प्रश्नोत्तररत्नाकर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२९, दे., (३०x१४, १४४४१-४२). प्रश्नोत्तररत्नाकर, मु. शुभविजय, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य परं ज्योति; अंति: शुभविजय गणि संगृहीते, उल्लास-४. २६८९३. कल्पसूत्र सह प्रवचन+कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२५, पू.वि. आदिजिन चरित्र तक है., दे., (२७.१x१३, १२-१६४३०-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताण पढम; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: सकल मंगलमाला विधायक; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २६८९५. हरिवंशपुराण की भाषा, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रावण शुक्ल, १, मध्यम, पृ. २३२, ले.स्थल. तक्षिकपुर, प्रले. अर्जुन ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१४, ११४४३-४५). हरिवंशपुराण-भाषा, श्राव. खुशालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: महावीर वंदौ जिनदेव; अंति: (१)कह्यौ भविक सुखकार, (२)भव्यानां सुखशर्मदा. २६८९७. नवकार कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. वाणारसी, प्रले. आ. विजयधर्मसूरि; प्रे. श्राव. भगवानदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमद् यशोविजय संस्कृत पाठशाला., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२९x१४, १३४३०-३३). नमस्कार महामंत्र-कल्प, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अथ कतिपय पंचपरमेष्ठि; अंति: स्मरजे आकाश में उडे. २६८९९. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८८०, कार्तिक शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०, प्रले. ग. रामविजय (गुरु पं. धनविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमुनिसुव्रतजिन तथा श्रीसुविधिजिन प्रसादात्., जैदे., (३१.५४१४.५, २०-२१४६०-६६). रत्नपाल रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: मोहनविजय विलासजी, खंड-४ ढाल ६६, गाथा-१३००. २६९०३. (+) नयचक्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. ३४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५४१३.५, ४४३४-३६). नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: (-). नयचक्रसार-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: (-). २६९१४. (+) कार्तिकपूनम रो व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (३१४१४, १३४४७-५९). कार्तिकपूर्णिमापर्व व्याख्यान, ग. जयसार, सं., गद्य, वि. १८७३, आदि: श्रीसिद्धाचलतीर्थेशं; अंति: व्यलेखि शिष्यहेतवे. २६९१५. दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २२-२(८,१६)=२०, दे., (३१x१४, ३-८४३४-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि, __ अध्ययन-१०. २६९१८. पांचकारण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, भाद्रपद कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२७७१३.१, ९४३०). For Private And Personal use only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: परे विनय कहे आणंद ए, ढाल-६. २६९१९. गुणावली लेख, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. सा. सौभाग्यश्रीजी (गुरु सा. पुण्यश्रीजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.१x१३, १२४३३). चंद्रराजागणावलीराणी लेख, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमरुदेवीन; अंति: हवे फळशे सह आश रे, गाथा-७०. २६९२५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१७, फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. १४, प्रले. गौरीशंकर गोविंदजी भट्ट; पठ. मु. वीरभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १९५, दे., (२७४१३.१, १२४३१). १. पे. नाम. रोहिणी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद; अंति: विजयलक्ष्मीसूरि भूप, गाथा-९. २. पे. नाम. शीयल सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. शीयलव्रत सज्झाय, मु. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी हो भवियण; अंति: परभवे जीव लहे बहुमान. ३. पे. नाम. सीतासती सज्झाय-शीयलोपरि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, मु. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: नित्य होजो प्रणाम, गाथा-८. ४. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेहेजानंदिरे आतिमा; अंति: भवजल तरीया अनेक रे, गाथा-११. ५. पे. नाम. आत्मबोध सज्झाय-१, पृ. ४अ, संपूर्ण. आत्मबोध सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हो सुण आत्मा मत पड; अंति: पामे शाश्वत सद्म, गाथा-६. ६. पे. नाम. आत्मबोध सज्झाय-२, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. आत्मबोध सज्झाय, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल सयणांसाची सुण; अंति: भवजल तरीये रे भाई, गाथा-५. ७. पे. नाम. आत्मबोध सज्झाय-३, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. ___ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारु मारुं मम कर; अंति: वलावे तस संग रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. गोयम-केसी सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. गौतमकेशीगणधर सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीस जिणेसरपासना केशी; अंति: सीस उदय रसरंग रे, गाथा-८. ९. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा-८. १०. पे. नाम. उपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. अभव्य उपदेश सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: उपदेश नलागे अभव्यने; अंति: उदय० संग निदान रे, गाथा-७. ११. पे. नाम. आत्मबोध सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जीउ वीनती एक छे मेरी; अंति: तो सुख लीजे हो लाल, गाथा-७. १२. पे. नाम. विसन सात सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. सप्तविसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु; अंति: सीस समे जयरंग कहे, गाथा-९. १३. पे. नाम. सातव्यसन स्वाध्याय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. सप्तव्यसन सज्झाय, पं. रत्नकुशल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ नृप कुल; अंति: केहेजी सफल फले तस आस, गाथा-११. For Private And Personal use only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ १४. पे. नाम. पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानफल सज्झाय-शत्रुजयतीर्थे, मु. प्रीति, मा.गु., पद्य, आदि: पचखि पचक्खाण परभाति; अंति: तीर्थ अभिधान धरतां, गाथा-७. २६९२६. पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६.१x१४, ९x१९). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ तक है.) २६९२७. (#) विविध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८०-६३(१ से ६३)=१७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (३२४१४, ९४३९-४०). विविध विचार संग्रह , गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २६९२८. अष्टाह्निका व्याख्यान सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. ३२, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, ७४३५-३७). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: करगामिनी भवति, (वि. १९४२, माघ शुक्ल, ४, शनिवार) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमन्नाभेयमानम्य; अंति: कल्याणनी परंपरा थाइ, (वि. १९४२, वैशाख शुक्ल, १५, सोमवार) २६९२९. सम्यक्त्वादिव्रत आरोपण विधि, संपूर्ण, वि. १९२४, वैशाख शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. पचेवर, प्रले. पं. चतुरसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.१, ११४३७-४०). सम्यक्त्वादि व्रत आरोपण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नांदि मांडिइ; अंति: नित्थार पारगा होह. २६९३१. श्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदे., (२५.१x१२.१, १४४४६). पगाम सज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. पगाम सज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि क० वाछु छु; अंति: तीर्थंकर चौवीस प्रतै. २६९३३. रामसीतारास, संपूर्ण, वि. १८५३, आश्विन शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. हीवरा, प्रले. मु. मोतीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.१, १६४३१-४१). रामसीता रास, मा.गु., पद्य, आदि: दशरथनंदन प्राण; अंति: वृद्धि नवनिधान तो, गाथा-१०१. २६९३४. वीसस्थानकतप विधि व स्तवन, अपूर्ण, वि. १८४५, फाल्गुन शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. २२-२(१५ से १६)=२०, कुल पे. २, ले.स्थल. लखलेउ, प्रले. मु. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३, १२४२६-२८). १. पे. नाम. वीसस्थानकतप विधि, पृ. १अ-२१आ, पूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. २० स्थानकतप विधि, सं., गद्य, आदि: अशोकवृक्षप्रातिहार्य; अंति: नोकारवाली २० गुणनी. २. पे. नाम. वीसस्थानक स्तवन, पृ. २१आ-२२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: श्रीजिनमुखकजवासनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ तक है.) २६९३५. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७, जैदे., (२६४१२.१, १२४२५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: भक्तामर रच्यु. २६९३६. (+) सप्तस्मरण व नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२२, माघ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. ५, ले.स्थल. जेसाणपुर, प्रले. मु. मूलचंद, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंकयुक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १२४३८). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने हुंडी में 'साते सिमरण' प्रतनाम लिखा है, किंतु वास्तव में नवस्मरण है. नक है) For Private And Personal use only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: मोक्ष प्रतिपद्यते, स्मरण-९, (वि. उपसर्गहर स्तोत्र १० गाथावाला है.) २. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशात; अंति: जैन जयति शासनम्, श्लोक-१९. ३. पे. नाम. संखेश्वर पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ४. पे. नाम. शनि स्तोत्र, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. शनिग्रह स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: य: पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-९. ५. पे. नाम. गुरु स्तोत्र, पृ. १४आ, संपूर्ण. गुरुग्रह स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंतिः सततं मम मंगलं, श्लोक-५. २६९३७. (+) शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९४४, आषाढ़ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. मु. खीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.१४१२.१, ९४३९). शुकनावली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: महादेवं नमस्कृत्य; अंति: हाथ लागै धर्मे जस. २६९३८. चौमासी देववंदन सविधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-२(१,४)=२१, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, दे., (२६.१x१२.१, ९४३०). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २६९३९. षट्पर्ववीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२६४१२.१, १३४२९). महावीरजिन स्तवन-षट्पर्वी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: गुरु पद पंकज नमी रे; अंति: नाम षट्पर्वी धर्यो, ढाल-८. २६९४०. अष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९५५, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.१४१२.१, १३४३५-३८). अष्टाह्निका व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमानंदा; अंति: ए आठ पदनो अर्थ जाणवो. २६९४१. साधुपाक्षिकअतिचार व जंबूस्वामी दीक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२६.१x१२.१, १४४४३). १. पे. नाम. साधुपाक्षिक अतिचार, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: अनेरो जे कोई अतिचार. २. पे. नाम. जंबू-प्रभवकुमार सज्झाय, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.. जंबूस्वामी दीक्षा सज्झाय, मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: निज वाहनथी उतरी; अंति: पण आदरी आपो अमने दीख, ढाल-१, गाथा-२३. २६९४२. अष्टाह्निका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.१x१२.१, १३४४४). अष्टाह्निका व्याख्यान, मु. शांतिसागरसूरि शिष्य, सं.,हिं., गद्य, आदि: श्रीमद्वीरं जिन; अंति: (-). २६९४३.) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८३०, कार्तिक शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले.स्थल. कोटा, प्रले. शंकर जढाण्या जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१३, १२४३७). पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: यत्सत्यं त्रिषु लोके; अंति: तया पाशकढालनम्. २६९४४. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. गाथा-३६ तक लिखा है., प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रारंभिक अंश लिखकर पूर्णाहुति कर दी है. जो वस्तुतः अपूर्ण है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१३, ४४३४). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private And Personal use only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४७१ २६९४५. श्रीपाल रास-खंड १ से ३, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४-५(२१ से २२,२५ से २७)=४९, जैदे., (२६४१२.१, ११४३२-३४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २६९५०. मौनएकादशीना देववंदन, संपूर्ण, वि. १९५१, भाद्रपद शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. लश्कर, प्रले. भगवतीलाल मिश्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८.५४१५, ११४३३). मौनएकादशीपर्व देववंदन, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नगर गजपूर पुरंदर; अंति: रूपविजय० लिजिइ ललना. २६९५४. भुवनदीपकनाम ज्योतिषशास्त्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४८, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. मु. रतनचंद (गुरु मु. भेरचंद), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६४१४, ६-१०४२९-३०). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७३. भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वति सबंधियो मह; अंति: इस्ये आचार्य कह्यो. २६९५८. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १११, दे., (२७४१४, ३४३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: निच्चला होसु, अध्ययन-१० चूलिका २. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)ध० दुर्गत पडता जीवनइ; अंति: नथी इम कहता हवा. २६९५९. अट्ठाई व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४+१(७)=१५, दे., (२४४१३.५, १३-१५४३७-४२). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, आदि: शांतिनाथ जिन सोलमो; अंति: मनोवांछित सिद्ध हुवै. २६९६३. श्रीपाल चरित्र सह बालावबोध-खंड ४, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४७, प्र.वि. जीर्ण पत्र पर अन्य पत्र चीपकाने के कारण प्रति. पुष्पिका अंदर दबी हुई है., जैदे., (२६४१२, ३४३९-४४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास-बालावबोध, पंन्या. गणेशरुचि, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: पूर्ण उत्कंठित थाओ, प्रतिपूर्ण. २६९६४. से@जयउद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अमदावाद, दे., (२६४१३.५, १२४४०). शजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: द्यो दरिशन जयकरो, ढाल-१२. २६९६६. मुनिपति चरित्र व शंखेश्वरपार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९४४, भाद्रपद कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, कुल पे. २, ले.स्थल. लिंबडी, प्रले. श्राव. अमृतलाल हंसराज सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१३, १३४३२). १. पे. नाम. मुनिपतिराजरुषि तथा कुंचकशेठकथागर्भित चरित्र, पृ. १आ-४७अ, संपूर्ण. मुनिपति चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणिपत्य पार्श्वनाथ, (२)इहां त्रेवीसमा; अंति: सुख शाश्वता पामस्ये. २. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरजी, मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल भविजन चमत्कारी; अंति: रुप कहे प्रभुता वरो, गाथा-९. २६९६८. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१३, ४४२३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: सह परभवगान सेस?, गाथा-१४५. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: भव में नहीं जाते है. For Private And Personal use only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६९७४. समयसार नाटक का पद्यानुवाद सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८२६ फाल्गुन कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४०, ले. स्थल. पुष्पावतीनगर, प्रले. मु. चतुरविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५X१२, ५X४०-४६). समयसार नाटक- पद्यानुवाद, आव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर अंतिः नाममइ परमारथ विरतंत, गाथा- ७२७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयसार नाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, ऋ. रूपचंद, पुहिं., गद्य, आदि: (१) श्रीजिनवचन समुद्रको, (२)श्रीपार्श्वनाथस्वामी; अंति: (१) सिद्ध साख हम दीन, (२) पातसाहसौ मुजरौ कीनौ. २६९७६. पगाम सज्झायसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८२ - ७६ (१ से ७६) =६, पू. वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२८.५x१३.५, ८x२६ ). पगाम सज्झायसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). २६९७७. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६४, चैत्र अधिकमास श्रेष्ठ, पृ. १०९, ले. स्थल राजनगर, प्रले. मोतिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५x१२.५, ३४३०-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्कि; अंतिः गई त्ति बेमि अध्ययन- १०. दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ #, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२) ध० जीवन दुर्गति; अंति: मे तुझ प्रते कह्यो. २६९७८. दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९३४, भाद्रपद शुक्ल, २, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ९२, ले. स्थल जोधपुर, प्रले. गिरधरलाल बोहरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६x१३, ४३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: ( १ ) भवि विबोहडाए, (२) मुच्च ति बेमि, अध्ययन १० चूलिका २. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य पार्श्व, (२) धर्म केवलीउ भाष्यउ; अंति: जीव प्रतिबोधनइ अर्थइ. २६९८०. प्रतिक्रमणहेतुगर्भ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३४, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल घांणीराव, प्रले. पं. खुस्यालसौभाग्य, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२, १९ - २१x४३). प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी; अंति: देजो मंगलकोडी, ढाल १९. २६९८१. सतरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६X१२.५, १३४३३-३८). १७ भेदी पूजा, आ. विजयानंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणंद मुणिंदनी अंति: निजात्मरूप हुं पावो, पूजा-१७, २६९८२. एकविंशतिस्थान प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्रले. य. अचलदास (ओसवाल गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७X१२.५, ६X३० - ३३). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारा भणिया, गाथा ७२. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे विमानथकी चव्या ते; अंति: सर्वसंख्या कही. २६९८५. वैराग्यशतक व दानशीलतपभावना कुलक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. भीमसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२८.५x१५, ७-९४३१-३८). १. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहड़ जिओ सासयं ठाणं, गाथा - १०४. वैराग्यशतक - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: शाश्वतु ठाम उत्तम पद. २. पे नाम, दानशीलतपभावना कुलक सह टवार्थ, पृ. ७आ - १२अ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६ ४७३ दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रजसारो; अंति: सो लहइ सिद्धिसुह, वक्षस्कार-४, गाथा-८१. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: परिहरिउंछांडिउं; अंति: मोक्षना सुखां प्रति. २६९८६. विविधतपविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. विठोरानगर, प्रले. पं. चतुरसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२.५, १०-१२४३४-३७). विविधतपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गुरु कने अथवा थापना; अंति: खमासमण देईने कहीजै. २६९८९. (+) श्रुतबोध सह टीका व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९३, पौष शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. मु. मूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, १२४३८-३९). १. पे. नाम. श्रुतबोध सह मनोरमा टीका, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. श्रुतबोध, कालिदास, सं., पद्य, आदि: छंदसा लक्षणं येन; अंति: रग्धरा सा प्रसिद्धा, श्लोक-४१. श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीमत्सारस्वतं धाम, (२)अहं तत् श्रुतबोधनाम; अंति: मकरोद बालावबोधाय वै. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-४. २६९९०. स्तवन, स्तुति, सज्झाय आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६७-५९(१ से ५९)=८, कुल पे. १८, जैदे., गुटका, (२५.५४१३, २०४४१). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ६०अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सामान्य श्लोक*, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अंतिम ६ श्लोक है.) २. पे. नाम. नवग्रहदान विधि, पृ. ६०अ, संपूर्ण. नवग्रहदान श्लोक, सं., पद्य, आदि: सवत्सालंकृताधेनु; अंति: पीडा निघ्नंति केतव, श्लोक-९. ३. पे. नाम. देवीरहस्यत्रय स्तव, पृ. ६०आ-६२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: भगवन् भवता रामे; अंति: सर्वं प्रयच्छति, अध्याय-३. ४. पे. नाम. शत्रुजयमुखमंडण श्रीयुगादिदैव स्तवन, पृ. ६२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनरिंदमल्हार; अंति: अवर न काइ वांछीइ ए, गाथा-२१. ५. पे. नाम. धर्माधर्मविचार सज्झाय, पृ. ६३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चउदपूरवमाहे सार; अंति: कर्म जीव सुख हलंति, गाथा-१८. ६. पे. नाम. गौतमस्वामी विनती, पृ. ६३अ-६३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम आव्या वाद करेवा; अंति: गणे तिहां अविहड रंग, गाथा-७. ७. पे. नाम. दसश्रावक सज्झाय, पृ. ६३आ-६४अ, संपूर्ण. १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: जिण चुवीसी करूं; अंति: कोरंटगछि पभणइ ननसूरि, गाथा-३०. ८. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ६४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: नवफण सोहि छत्राकारि; अंति: वरीय सविलछी सहिय, गाथा-६. ९.पे. नाम. नेमनाथ विनती, पृ. ६४आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: भली भावना भेटिवा नेम; अंति: शुद्धि जगनाथ पूजइ, गाथा-६. १०. पे. नाम. क्षमाकुल सज्झाय, पृ. ६४आ-६५अ, संपूर्ण. उपशम सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भवभंजण रंजण जगदेव; अंति: गर्भवासि० नही अवतरि, गाथा-१३. For Private And Personal use only Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११. पे. नाम. पार्श्वनाथ वीनती, पृ. ६५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुजयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: करुं ध्यान जिणेसर; अंति: सुजयसागर धर्म वधारीइ, गाथा-७. १२. पे. नाम. स्तंभनक स्तोत्र, पृ. ६५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मूरति सामी थंभणो; अंति: पसायइ तत्व परिछीइ, गाथा-५. १३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ६५आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: सुहाणि कुणे सुसया, गाथा-४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सिर्फ चतुर्थ गाथा ही लिखी है.) १४. पे. नाम. नंदीसर स्तोत्र, पृ. ६५आ, संपूर्ण. शाश्वतजिन स्तवन-नंदीश्वरद्वीप, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसरवर दीप मझारि; अंति: तुम्ह पामउ सयलसुह, गाथा-११. १५. पे. नाम. सध्याय, पृ. ६५आ-६६अ, संपूर्ण. जीवदया सज्झाय, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: गोयम गणहर पय पणमेवि; अंति: सासणि साचउ धर्म, गाथा-१५. १६. पे. नाम. दसपचखांण, पृ. ६६अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविह प्रह उठी; अंति: पामोने हवे निरवाण, गाथा-८. १७. पे. नाम. बुध रास, पृ. ६६अ-६७आ, संपूर्ण. बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देव अंबाई; अंति: ते घरि टले क्लेश तो. गाथा-५३. १८. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ६७आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: दया तणो सायर मुक्ति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) For Private And Personal use only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: - परिशिष्टः कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या यद्यपि भविष्य में कृति की विस्तृत सूचनाओं के साथ इस तरह के परिशिष्टों के स्वतंत्र खंड २.१ आदि प्रकाशित करने का आयोजन है, तथापि विद्वानों की मांग तथा उपयोगिता को दृष्टि में रखकर, कैलासश्रुतसागर - जैन हस्तलिखित साहित्य के द्वितीय खंड से सूची के अंत में कृतिपरिवार अनुसार हस्तप्रतों की अनुक्रम संख्या दर्शानेवाले दो परिशिष्ट प्रकाशित किए जा रहे हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट-१ में संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं के इस सूचीपत्र की प्रतों में उपलब्ध कृतिपरिवार के अनुसार प्रत क्रमांक दिए गए हैं. परिवार की मुख्य कृति की भाषा के अनुसार पूरा परिवार इस परिशिष्ट में समाविष्ट कर लिया गया है. मुख्यकृति के पुत्र-पौत्र-प्रपौत्रादि स्तर की देशी भाषाओं की कृतियों को भी यहीं सम्मिलित कर लिया गया है. ध्यान रहे कि ऐसी कृतियों को परिशिष्ट - २ में पुनः सम्मिलित नहीं किया गया है. इसी तरह एकाधिक भाषावाली कृतियों में संस्कृत आदि व देशी दोनों भाषाएँ हों, वैसी कृतियाँ मात्र इस परिशिष्ट में सम्मिलित की गई हैं. परिशिष्ट -२ में मात्र देशी भाषाओं वाली मूल कृतिपरिवार के अनुसार प्रत क्रमांक दिए गए हैं. इनके संस्कृत आदि भाषा के पुत्र-पौत्रादि का समावेश भी यहीं कर लिया गया है. " इन परिशिष्टों में कृति की कृति का मुख्य नाम कर्त्तानाम, भाषा, अध्याय - ढाल आदि संख्या, गाथा / श्लोक संख्या, ग्रंथाग्र, रचना संवत, गद्य-पद्य आदि कृति प्रकार, धर्मसंकेत व मुख्य आदिवाक्य इतनी सूचनाओं का समावेश किया गया है. १. इन परिशिष्टों में मूल आदि स्व-स्व स्तर के अकारादि क्रम से कृति परिवार को क्रमशः प्रथम स्तर पर मूल, मूल के ऊपर रचित उसकी टीकादि संतति स्वरूप कृतियों को द्वितीय स्तर पर तृतीय स्तर पर पौत्र, चतुर्थ स्तर पर प्रपौत्र, इत्यादि प्रकार से सदस्यों को समाविष्ट करती वंशवृक्ष शैली में प्रकाशित किया जा रहा है. २. प्रथम स्तर के बाद द्वितीय, तृतीय आदि प्रत्येक स्तर का सूचक अंक (२), (३) इत्यादि कृति नाम के प्रारम्भ में ही दे दिया गया है. यथा कल्पसूत्र (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका (३) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका का टबार्थ ३. कृतियाँ परिवारानुसार दी गई हैं. यथा लोगस्स, शक्रस्तव, चैत्यवन्दन, प्रतिक्रमण, पच्चक्खाण आदि स्वतन्त्र तत्-तत् अक्षर पर न मिलकर आवश्यकसूत्र के परिवार में स्व-स्व स्तर पर मिलेंगे. ४. कृतियाँ निम्न तरह के अकारादि क्रम में दी गई हैं. अ. सभी स्तरों पर कृतियाँ कृतिनाम, कर्त्तानाम व आदिवाक्य इस तरह त्रिस्तरीय अकारादि क्रम से दी गई हैं. यानि, प्रथम अकारादिक्रम से समान नामवाली कृतियाँ एक साथ दी गई हैं. उनमें भी समान कर्ता नामवाली कृतियाँ एक साथ कर्त्तानाम के अकारादि अनुक्रम से दी गई है और उन समान कर्ता नामवाली कृतियों को भी आदिवाक्य के अकारादिक्रम से रखा गया है. आ. मूल कृति के परिवार की पुत्र-पौत्रादि कृतियाँ स्व-स्व द्वितीय, तृतीय आदि स्तरों पर स्व-स्व परिवार के साथ अपने निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका आदि कृति स्वरूपों के अनुसार दी गई हैं. यह क्रम कृति स्वरूप के अकारादि क्रम का न होकर, कृति स्वरूप की महत्ता के अनुसार निम्न क्रम से रखा गया है. i. कृति स्वरूप क्रम मूल निर्युक्ति, भाष्य चूर्णि टीका, वृत्ति, व्याख्या, वार्तिक, अवचूर्णि अवचूरि, टिप्पण, बालावबोध, " ४७५ For Private And Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: टबार्थ, अनुवाद, भाषा, विवरण, प्रवचन, अन्वय, अर्थ, भावार्थ, कथा, हिस्सा, संक्षेप, चयन, संबद्ध, प्रक्रिया, अंतर्वाच्य, अनुक्रमणिका, बीजक व यंत्र. ii. इस क्रम में समान स्वरूप की एक साथ आनेवाली टीका आदि कृतियों को पुनः उपरोक्त कृतिनाम, कर्त्तानाम व आदिवाक्य के अकारादि क्रम से दिया गया है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आशा है कि क्रम विन्यास 'आवश्यक सूत्र' 'कल्पसूत्र' आदि बड़े कृति परिवारों में एवं २४ जिन स्तुति' जैसी समान नामवाली अनेक कृतियों के समूह में से इच्छित कृति को ढूंढने में विशेष उपयोगी सिद्ध होगा. ५. कृति को उसके पर्यायवाची नामों से भी खोजें यथा नमस्कार हेतु नवकार, पंचपरमेष्ठि, नवपद हेतु सिद्धचक्र आदि. चूंकि अनेक कृतियों के एकाधिक प्रचलितनाम भी मिलते हैं, इनमें से यहाँ पर सूचीपत्र का कद बढ़ने के भय से, मात्र एक मुख्य नाम ही दिया गया है. यथा बारसासूत्र आदि के लिए कल्पसूत्र ही दिया गया है. इन नामों से अभिहित कर, बाद में - ६. सामान्य पद, सज्झाय, लघुकाव्यों आदि को 'औपदेशिक' एवं 'आध्यात्मिक विषयानुसार नामाभिधान करने का प्रयत्न किया गया है. ७. कृतिनाम में यदि कोई संख्यावाचक शब्द है, तो एकरूपता लाने के लिए वह संख्या यथासम्भव अंकों में ही दी गई है. इससे अष्टकर्म व आठकर्म की जगह ८ कर्म लिखा होने से वे अलग-अलग से न मिलकर, एक ही जगह मिलेंगे. जहाँ तक हो सका है, संख्याओं को नाम के प्रारम्भ में ही ले लिया गया है. ८. मूल सूची में प्रत व पेटाकृति नाम के रूप में प्रतिलेखक द्वारा प्रत में उल्लिखित कृति नाम को ही रखकर, कृति नाम के रूप में, कृति का यथार्थ व बहुमान्य नाम रखने का नियम अपनाया गया है. इस वजह से प्रत, पेटाकृति नाम व उसके नीचे आने वाली कृति नाम में उल्लेखनीय भिन्नता मिल सकती है. इससे एक ही कृति के अनेकविध प्रचलित नामों का भी पता चल जाता है. यथा प्रत नाम - बारसासूत्र या पज्जोसणा कप्पो या दशाश्रुतस्कंध अष्टम अध्ययन कृति नाम कल्पसूत्र ९. जिन कृतियों के अंत में प्रत क्रमांक की जगह प्रतहीन ऐसा लिखा हो, वहीं यह समझना होगा कि प्रस्तुत कृति मात्र उसके नीचे दिए गये पुत्रादि कृतियों का संबंध बताने हेतु है. १०. यथावश्यक कृति नामों में विशेषण अंत में दिए गए हैं, ताकि मूल नामों में एकरूपता बनी रहे और अकारादि क्रम में वे एक साथ आएँ. यथा - २४ अनागत जिन स्तवन के स्थान पर २४ जिन स्तवन- अनागत लिखा गया है. इसी तरह शंखेश्वरमंडन पार्श्वजिन स्तवन की जगह पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरमंडन दिया गया है. ११. प्रत की अपूर्णता आदि कारणों से जिन कृतियों के आदिवाक्य नहीं मिल सके हैं, वहाँ आदिवाक्य में (-) ऐसा चिह्न दिया गया है. १२. गाथा आदि छोटे परिमाणवाली मारूगुर्जर आदि देशी भाषा की कृतियों में भाषा क्वचित्, वास्तव में राजस्थानी, गुजराती या प्राचीन हिन्दी हो सकती है. कई बार कालांतर व क्षेत्रांतर की वजह से 'गुजराती, राजस्थानी' आदि देशी भाषा की एक ही कृति हेतु विभिन्न प्रतों में भाषा के स्वरूपों में इतना परिवर्तन मिलता है कि यथार्थ भाषा का निर्धारण दुरुह हो जाता है. ऐसी स्थिति में सुविधा की दृष्टि से उस कृति की भाषा के रूप में पश्चिमोत्तर भारत की प्राचीन भाषा , , 'मारुगुर्जर' लिखने का नियम रखा है. १३. संभावित अप्रकाशित कृतियों का नाम ( आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की कम्प्यूटर आधारित सूचना प्रणाली में अब तक उपलब्ध माहिती के अनुसार ) italics में मुद्रित किया गया है. यथा- अजितशांति स्तव-बोधदीपिका टीका. अनेक प्रकाशनों की विस्तृत सूचना अभी भी कम्प्युटर में प्रविष्ट करनी बाकी है एवं बहुत-सी प्रविष्ट कृतिगत सूचनाओं ४७६ For Private And Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir का अंतिम पुष्टिकरण भी बाकी है; ऐसे अनेक कारणों से कुछ एक प्रकाशित कृतियाँ भी सम्भवतया अप्रकाशित के रूप में यहाँ आ गई हैं. खासकर लघुकृतियों के विषय में यह सम्भावना अधिक है. अतः, कृपया इसे मात्र एक संकेत के ही रूप में देखा जाय. १४. इन परिशिष्टों हेतु यद्यपि कृति-एकीकरण का शक्य प्रयत्न किया गया है, तथापि यह सम्भव है कि एक ही कृति भिन्न-भिन्न नामों से एकाधिक जगहों पर भिन्न-भिन्न प्रतों के साथ मिल सकती है. इस कार्य में सांगोपांगता तो भविष्य में सुसंपादित होकर प्रकाशित होनेवाले-कृति पर से प्रत माहिती वाले खंडों के प्रकाशन के समय ही आ सकेगी. यह एक सतत जारी रहनेवाली प्रक्रिया है. अतः पूर्व पूर्व खंडों की तुलना में उत्तर उत्तर खंडों में इन सूचनाओं में फर्क देखने को मिल सकता है. १५. क्वचित् ऐसा भी हुआ है कि एक ही कृति के लिए भिन्न-भिन्न प्रतों में भिन्न-भिन्न कर्ताओं के नाम मिले हैं. कृति का प्रायः सब कुछ एक समान होते हुए भी, मात्र रचना प्रशस्ति में अन्तर मिलता है. ऐसी स्थिति में सामान्यतः प्रत्येक कर्ता के अनुसार, उस कृति की एकाधिक स्वतंत्र प्रविष्टियाँ दी गई हैं. १६. इसी प्रकार, कृतियों के सामान्य या विशेष फर्क के साथ एकाधिक आदिवाक्य भी मिलते हैं. उन सब की प्रविष्टि कम्प्यूटर पर तो कर दी जाती है; परंतु इनमें से यहाँ मात्र एक ही आदिवाक्य दिया गया है. जबकि, सूचीपत्र में तो तत्-तत् प्रतगत प्रथम स्तर व क्वचित् कृति के ज्यादा सही निर्धारण हेतु, मंगल आदि के बाद के द्वितीय स्तर के आदिवाक्य भी दिए गए हैं; जो कि, सम्भवतः यहाँ दिए गए आदिवाक्य से मेल न भी खाते हों; ऐसा ज्यादातर, टबार्थ व बालावबोधों में पाया गया है. १७. कृति के आदिवाक्य के पहले दिए गए कृति का धार्मिक स्रोत चिह्नित करने हेतु मूपू., स्था., ते., श्वे., दि., जै., वै., बौ., मु. इन संकेतों का प्रयोग क्रमशः जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक, जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी, जैन श्वेतांबर, जैन दिगंबर, जैन, वैदिक, बौद्ध व मुस्लिम के लिए किया गया है. जहाँ पर ये संकेत नहीं हैं; वे सामान्य कृतियाँ हैं. इन संकेतों को यथोपलब्ध सूचनाओं के आधार पर दिया गया है। फिर भी इनकी कहीं-कहीं अंतिम रूप से पुष्टि होनी बाकी है. कहीं पर धर्मस्रोत की निःशंक परिपुष्टि न हो, पाई हो तो उन धर्म संकेतों के साथ प्रश्नार्थ चिह्न दिया गया है. यथा - बौ?, जै?. यहाँ एक स्पष्टता जरूरी है कि उपरोक्त धर्म संकेत पूर्णतः धार्मिक कृति हेतु ही न होकर कृति किस धर्मक्षेत्र से है, यह दर्शाने हेतु भी है. व्याकरण, ज्योतिष आदि विषयों की कृतियों हेतु यह बात विशेष तौर पर लागू होती है. १८.एक ही कृति हेतु भिन्न-भिन्न हस्तप्रतों में सामान्य फर्क के साथ न्यूनाधिक गाथा आदि परिमाण भी मिलता है. अतः कृति का यहां दिया गया अध्याय, गाथा, ग्रंथाग्रंथ आदि परिमाण सूचीपत्र में हस्तप्रत के साथ की कृति के परिमाण से भिन्न हो सकता है. १९. वाचकों की सुविधा एवं उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए कृति के साथ दिए हुए प्रत क्रमांक, क्रमशः प्रत की शुद्धि आदि महत्ता, संपूर्णता, दशा, अपूर्णता व अशुद्धि की वरीयता से दिए गए हैं. शुद्धता सूचक निशानी (+) वाले प्रत क्रमांकों को सर्वाधिक महत्व दिया गया है, उसके बाद संपूर्ण, पूर्ण व प्रतिपूर्ण प्रत-क्रमांकों को तथा अंत में (+) (#) (-) निशानी वाले प्रत क्रमांकों को रखा गया है. अतः प्रत क्रमांक अपने स्वाभाविक अनुक्रम से नहीं मिलेंगे. २०. प्रत में प्रस्तुत कृति यदि प्रतिपूर्ण है अर्थात् - प्रतिलेखक ने कृति को संपूर्ण न लिखकर, प्रति में उपलब्ध अंश मात्र को ही लिखा है; ऐसे में प्रत क्रमांक टेढ़े Italic अंकों में दिखाए गए हैं. यथा-५८१६. २१. कृति माहिती के सामने प्रत क्रमांक के साथ साथ यदि प्रत में एकाधिक पेटा कृतियाँ हैं, तो प्रस्तुत कृति प्रत में किस क्रमांक की पेटाकृति है - वह पेटांक भी दिया गया है. यथा - प्रत क्रमांक १०२०७ के तीसरे पेटांक में महावीरजिनस्तवन है. अतः, इसका क्रमांक इस प्रकार लिखा गया है - १०२०७-३. भूल सुधार : खंड ४ व ५ में प्रतक्रमांक के बाद यह पेटाकृति क्रमांक तकनीकी कारणों से कहीं कहीं गलत छप गया है. यद्यपि पत्रक्रमांक तो सही है. ४७७ For Private And Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ६ द्रव्यपरिणाम विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (परिणामि जीव मुत्ता), २६१६२-१(+) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, श्लो. ८, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), २२५६९-१(+), २२५७८-३(+), २२९८६-२,२४०७५-२, २५१९४-२ ८ प्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., पूजा. ८, पद्य, मूपू., (सुरसरि सिंधू पउमद्रह), २२००२-२(+) ८ प्रातिहार्य गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (किंकिल्ले कुसमवुट्ठी), २२४८६-२ (२) ८ प्रातिहार्य गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष १ कुसुम), २२४८६-२ १० लक्षण उद्यापन पूजाविधि, मु. सुमतिसागर, सं., पद्य, दि., (विमलगुणसमृद्धं ज्ञान), २२३०७-२ ११ गणधर देववंदन, प्रा.,मा.गु., स्त. ११, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर गोयम गणहर), २२४८२-२(+) ११ गणधर स्तुति, प्रा., स्तु. ११, गा. ४४, पद्य, मूपू., (पुहविवसुभूइतणयं वंदे), २२४८२-४(+) ११ गणधर स्तुति, सं., स्तु. ११, श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूति), २२४८२-१(+) १३ काठिया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (आलस मोह अवन्ना थंभा), २२४८६-३ (२) १३ काठिया गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आलस मोह अवर्णवाद), २२४८६-३ १४ पूर्वसारे-पंचांगुलीसहस्रनाम पाठ, सं., श्लो. १५१, पद्य, मूपू., (मेरुशिखरासीनं देवदेव), २४२४०-२ १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), २२५९०-७८(+) १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., (जे नो करंति मणसा), २२४७६, २२५२० (२) १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), २२४७६, २२५२० १८ हजारशीलांगरथ गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जे नो करति मणसा), २२५१८-६(+-) २० स्थानक गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), २५७५५-२(+) (२) २० स्थानक गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतभक्ति सिद्ध), २५७५५-२(+) २० स्थानकतप विधि, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो अरिहंताणं), २६९३४-१ २० स्थानकतप विधि, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (तिहां प्रथम थानकै), २३०८८ २१ प्रकारी पूजा, ग. शिवचंद्र, मा.गु.,सं., वि. १८७८, पद्य, मूपू., (मंगल हरिचंदन रूचिर), २१३४३(+) २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचुंबर चउविगई हिम), २२५१८-४(+-) २४ जिन गर्भस्थितिकाल, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दुचउत्थ नवम बारस), २५३७५-३(+) २४ जिननामगर्भित मंगलाष्टक, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नतसुरेंद्रजिनेंद्र), २२५८०-१४(+) २४ जिन पूजा, सं., प+ग., दि., (विघ्नौघाः प्रलयं), २३८५४-६ २४ जिन भव गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (तेरस भव रीसह अठसय), २२५१०-३१ २४ जिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ३०, पद्य, भूपू., (यं सततमक्षमालोपशोभित), २२५७४-८ २४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., दि., (श्रीलीलायतनं महीकुल), २५४०६-३(+) २४ जिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (श्रियः श्रीमान्), २२५७४-४ २४ जिन स्तव, मु. शांति कवि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य परंपरया), २२५१८-३०(+-) २४ जिन स्तव, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (आद्यः श्रीऋषभस्ततो), २२५७२-१०(+) २४ जिन स्तुति, मु. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ४९, पद्य, मूपू., (श्रीमंतं परमानंद), २२५७२-१(+) २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनचंद्र, सं., श्लो. १०, पद्य, दि., (श्रीनाभिराजतनुजः), २६७८७-३(+) (२) २४ जिन स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, दि., (--), २६७८७-३(+) । २४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), २२५९०-८६(+), २४८१९-२ २४ जिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभजिनमजितनाथं), २१९४१-२(+) २४ दंडकशतक, मु. जयमल्ल, प्रा., गा. १०४, वि. १६२९, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं अमरिं), २११८५(+) For Private And Personal use only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ २४ स्थानक प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, श्वे., (गइ इंदिय च काए जोए), प्रतहीन. (२) २४ स्थानक प्रकरण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपु. ( गइ इंदिय काए), २२९२५ २४ स्थानक यंत्र, प्रा., मा.गु., को, मूपू., (--), २५७०५ ३० चौवीसी जिननाम गणणुं, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपे भरते अतीत), २४२७७ ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, वे., (सव्वाउ कंदजाई), २२५१८-५ (+३), २२४८६-४ (२) ३२ अनंतकाय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वे., (सर्व कंदजाति अणंतकाय), २२४८६-४ ३२ लक्षण श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, (छत्रं तामरसं धनु घवर), २५५४९-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ अतिशय गाधा, प्रा., गा. १०, पद्य, भूपू., (रव रोयसोवरहिओ हेहो), २२४८६-१ (२) ३४ अतिशय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (जरारोगरहित शरीर), २२४८६ - १ ३५ वाणीगुण, सं., गद्य, भूपू., (संस्कारवत्वंर औदात्य), २५३७५-२(+) (२) ३५ वाणीगुण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (संस्कृताविक लक्षणे), २५३७५ - २(०) ३६ बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू., ( एगविहे असंयमे एगे), २५५२३ ६२ बोल गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., ( गइ इंदिए काए जोए वेए), २६२९०-२ ६४ जिन अष्टक, मु. आनंदवल्लभ, सं., श्लो. ११, वि. १८६९, पद्य, मूपू., (शांके नृलोकं कलिभीम), २२९३४-१(+) , ९९ प्रकारी पूजा, क, पद्मविजय, मा.गु., सं., गा. १११, वि. १८५१, पद्य, भूपू (उत्तम गुरु चरणे नमी), २२५७८-७(+5) अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (उसभसमगमणमुसभजिणमणि), २३६७५-१ (२) अंगुलसप्ततिका- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (ऋषभगामिनं अनिमिष), २३६७५-२ अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ९२, ग्रं. ८९९, गद्य, मूपू., ( तेणं कालेणं० चंपा० ), २१२५२(+), २१५७४(+), २४६२१(+), २५७१३(+), २५७६४(+), २६०३४(+), २६२०८(+), २११०६ (२) अंतकृद्दशांगसूत्र - टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २५७६४(०) (२) अंतकृद्दशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंतगड शब्दस्य कः ), २४६२१ (+), २५७१३ (+), २६०३४(+), २६२०८(+) अंतरंग दृष्टांत आदिजिन धर्मदेशनायां, प्रा., प+ग, मूपू., (अह भणइ कुरुकुमारो), २२५२३-२ अंतर्कथा संग्रह, आ. राजशेखरसूरि सं., कथा. ८१, प्र. २४००, गद्य, मृपू., (यन्नैकामपि कामिनीं), २५७३३ (२) अजितशांति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भगवति गर्भस्थे), २६४६५ (२) अजितशांति स्तव - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू., (अजियं क० अजितनाथ बीज), २४२४७ अंबड चरित्र, पं. अमरसुंदर, सं., गद्य, मूपु., (धर्मात् संपद्यते), २११६२-१ अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. ७०, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य प्रभु), २३१३६, २५५८०-३ अगडदत्त चरियं, ग. देवेंद्र, प्रा., ग्रं. ३२८, ई. ११वी, पद्य, मूपू., (अत्थि जए सुपसिद्धं), २१२६१(+) अजितजिन स्तवन- सहजातिशय, प्रा. मा. गु, गा. ५, पद्य, मूपु, (जिवशक्त्तुवंस सर राय), २२४७१ - ३(५) शांतिस्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (अजियं जिय सव्वभयं), २१०३६ - २(+), २१४०८-४(+), २१५७७-२(+), २६५०५ (+), २१४०३, २१८१३, २२८८४, २३६३५, २४२४७, २४३२२-१, २५४३७–१, २५४४६, २६३२३, २६४६५, २६६४९, २२९७६- २(5) , (२) अजितशांति स्तव बोधदीपिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं. ग्रं. ७४०, वि. १३६५, गद्य, मूपु., (अजितशांतिजिनाधिपयोः), २५४४६ (२) अजितशांति स्तव वृत्ति, आ, हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १७वी, गद्य, मूपु., ( प्रणिपत्य जिनवरे), २१०३६-२ (+) (२) अजितशांति स्तव - अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., ( अहं द्वावपि जिणवरी), २६५०५(१) ४७९ (२) अजितशांति स्तव - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ जीता छइ सर्व), २१५७७ -२ (+), २५४३७-१ (२) अजितशांति स्तव टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (अजितनाथ बीजा तीर्थकर ), २२८८४, २६३२३ For Private And Personal Use Only (२) अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (मंगल कमलाकंद ए), २२४८४-३८ अजैन श्लोक, सं., पद्य, वै., (--), २११७३-४ Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ " अतीत अनागतवर्तमान २४ जिन नाम, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (अथ जंबूद्वीपे दक्षिण), २३८५४-२ अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि सं., अधि. १६, श्लो. २७२, पद्य, भूपू (जयश्रीरांतरारीणां ), २१६१९, २५७३७/३) (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-अधिरोहिणी वृत्ति, उपा. धनविजय, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमः परमाप्ताय), २१६१९ अध्यात्ममतपरीक्षा, उपा, यशोविजयजी गणि, प्रा., गा. १८४, पद्य, भूपू (पणमिय पासजिणिंद), २१२९० (२) अध्यात्ममतपरीक्षा बालावबोध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्व कल्याणसिद्धिने), २१२९० अध्यात्मसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., प्रबं. ७, श्लो. ९४९, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनतः), २१४९५(+) (२) अध्यात्मसार - टवार्थ, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८८१, गद्य, भूपू (इंद्र संबंधि जे), २१४९५(*) अनागतचीवीसी आलापक, प्रा., गद्य, म्पू., ( इहेब जंबूदीवे भारह), २६६३७-३(+) अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग, मूपु., (तेणं कालेणं नवमस्स), २१०४० (+), २११०३(+), २११५०(+), २१६८३(+), २५४९१, २५८६५-२, २५८७५, २६१९७,२६६७९, २६८७१ (२) अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि सं. वि. १२वी, गद्य, भूपू., (अवानुत्तरौपपातिकदशा), " " " २५८६५-१ (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथाआराने), २११५० (+), २१६८३(+), २५४९१, २६६७९ " अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि प्रा. गा. १६०४, प+ग, मूपु. ( नाणं पंचविहं), २१३६५ (०), २५५५९), २५९७६(*) (२) अनुयोगद्वारसूत्र - बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रणिपत्य जिनं), २१३६५ (+), २५९७६(+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसिंह, मा.गु., गद्य, मूपू., ( वंदितु जिणवरिंदे०), २५५५९ (+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा साधु उपमा अधिकार, आ. रक्षितसूरि, प्रा., प+ग, भूपू., ( उरगर सेतं सत्तविहं), २६०३९ (३) अनुयोगद्वारसूत्र - हिस्सा साधु उपमा अधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनुयोगद्वार मध्ये), २६०३९ अनुयोग विधि, मा.गु., प्रा., सं., गद्य, मूपू., (मुहपत्ती पडिलेही), २६७०६ अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., अधि. ३, श्लो. २१९, पद्य, म्पू., (शुद्धवर्णमनेकार्थ), २४५५४ - १(३) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानमतीत), २४९०२(+) अपूर्ण जैन काव्य / चैत्य / स्त/ स्तु / सझाय / रास / चौपाई / छंद / स्तोत्रादि, प्रा., मा.गु. सं., हिं., पद्य, वे., (--), २२८७८-३९($), २३८७६-६ ($) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः ), २१०७७(+), २२२१०(+), २५१००(+), २५३८३(+), २५४८२(+), २५८९९(+४), २५९१० (+), २६१६० (+), २६४७०(+), २६५४४(+), २६६०२ (+), २६६०५ (+$), २४५०३, २५९३७, २६४५८-१, २२९३०-१, २६४२५, २२६९६ (#), २१२९८ (३), २२१७०(३) २४५६६ (३) २६५३६(३) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला तात्पर्यार्थप्रकाशिका टीका, ग. चारित्रसिंह, सं., गद्य, म्पू., (श्रीकल्याणप्रदीपनिधि), २५३८३ (+) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२१६, गद्य, मूपू., (धर्मतीर्थंकृतां वाचा), २५८९९ (७) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-शिलोंछ, संबद्ध, आ. जिनदेवसूरि, सं., श्लो. १३९, वि. १४३३, पद्य, मूपू., (अहं बीजं नमस्कृत्य), २६५९८ २२९३०२, २६३४३ (३) अभिधानचिंतामणि नाममाला - वृत्ति, वा. वल्लभ वाचक, सं., वि. १६६७, गद्य, मूपू., ( श्रीमदर्हतमानम्य), २५९१० (+) अभिनंदनजिन स्तवन- सुरजातातिशय, प्रा., मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपु, (संवरकुल उज्जोयकर), २२४७१-५(१) अमरचंद्र कथा - भावनाविषये, सं., गद्य, वे., (अत्रैव भरतक्षेत्रे), २२४९५-४११ अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामापि ), २५२७० अशोकदत्त कथा - बंधनाविषये, सं., गद्य, वे., (दक्षिणमथुरायां अशोक), २२४९५-१०) अष्टप्राभृत, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., प्राभृ. ८, पद्य, दि., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), २२४५३ For Private And Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८१ अष्टमंगलिक पूजाविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (मुहूर्त दिवसे प्रभात), २१४१८-३ अष्टापदतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (यत्र श्रीभरतेश्वरः), २२५७२-११(+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्ता), २४६६१-१(+), २२८१५, २५५८०-१, २५७२१, २१५५२(६) । अष्टाह्निका व्याख्यान, मु. शांतिसागरसूरि शिष्य, सं.,हिं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरं जिन), २६९४२($) अष्टाह्निका व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंदा), २६९४० अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपु., (ते माहिली शांतिकविध), २६८५९, २२३२१(६) आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ३६, प+ग., मूपू., (तत्त्वज्ञानमयो लोके), २५९१६ आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), २१०५४(+), २१३६०(+9), २१६९१(+), २२६०९(+$), २५३७८(+$), २५४३५(+), २५९५५(+$), २६६३९(+$), २१५२८, २५२६८, २५६८३, २५८७८, २५९०४, २६५९०, २१०१२($) (२) आचारांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ३४६, पद्य, मूपू., (वंदितु सव्वसिद्धे), २१३६०(+$) (३) आचारांगसूत्र-नियुक्ति की टीका #, आ. शीलांकाचार्य, सं., वि. ९१८, गद्य, मूपू., (तत्र वंदित्वा सर्व), २५९०७(#) (२) आचारांगसूत्र-टीका # , आ. शीलांकाचार्य, सं., ग्रं. १२०००, वि. ९१८, गद्य, मूपू., (जयति समस्तवस्तु), २१३६०(+$), २५९०७(#) (२) आचारांगसूत्र-प्रदीपिकाटीका, गच्छा. जिनहससूरि, सं., ग्रं. ९५००, वि. १५७३, गद्य, मपू., (शासनाधीश्वरं नत्वा), २५४३५(+), २१५२८ (२) आचारांगसूत्र-टिप्पण*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २५३७८(+$) (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशं), २१६९१(+), २५६८३, २१०१२($) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ३००१, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमहावीरं), २५९५५(+$) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागने नमस्कार), २२६०९(+$), २६६३९(+$), २५२६८, २५९०४, २६५९० (२) आचारांगसूत्र-हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., श्वे., (--), प्रतहीन. (३) आचारांगसूत्र-हिस्सा-द्वितीय श्रुतस्कंध-लेशार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (से० ते भिक्षु चारित), २१८२९ आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, प+ग., मूपू., (देसिक्कदेसविरओ), २२४८७-१(+), २५७९५-२(+), २१०३९ आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प्रका. ४, श्लो. १८१, वि. १८३३, प+ग., मूपू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध), २६२०३ (२) आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (तत्राद्य प्रकाशे), २६२०३ आत्मानुशासन, ग. पार्श्वनाग, सं., श्लो. ७७, वि. १०४२, पद्य, दि., (सकलत्रिभुवनतिलक), प्रतहीन. (२) आत्मानुशासन-अवचूरि, सं., गद्य, दि., (सकलत्रिभु० अहं सकल), २६३८७ (२) आत्मानुशासन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, दि., (अह० हूं सकल समस्त), २६३८७ आदिजिन अष्टक-शत्रुजयतीर्थाधिपति, मु. आनंदवल्लभ, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जगामयं श्रीवरनाभि), २२९३४-२(+) आदिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीमयुगादिदेवाय), २२५४६-५ आदिजिनमहिम्न स्तोत्र, मु. जयकीर्तिसूरि शिष्य, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (महिम्नः पारं ते परम), २३६७६ आदिजिन स्तव-ईलदुर्गमंडन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (जयश्रीविलासालय), २२५७४-२ आदिजिन स्तवन, प्रा.,मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नाभिरायकुल कुवलय चंद), २२४७१-२(+) आदिजिन स्तव-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (आदिजिनं वंदे गुणसदन), २२४५०-५१(+) आदिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), २२४७१-१२(+) For Private And Personal use only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जय जय जगदानंदन जय), २२५१८-२०(+-) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (जय वृषभ वृषभवृषविहित), २२५१८-३५(+-) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (युगादिपुरुषंद्राय), २२४६३-१५(+) आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरमुक्तियहार सुतार), २२४६३-३(+), २६७७६-८, २६९९०-१३(६) आदित्य स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (आदित्यः प्रथमं नाम), २२५८०-७(+) आदिदेवमहिम्न स्तोत्र, मु. रत्नशेखर, सं., श्लो. ३८, पद्य, म्पू., (महिम्नः पारं ते परम), २१८६६ आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., विम. ५, ग्रं. ४६०, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमः सकलारंभसिद्धि), २६५११(+) आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., सूत्र. २२८, वि. १०वी, गद्य, दि., (गुणानां विस्तर), २६३२१ आलोचना, मु. पद्मनंदि, सं., श्लो. ३३, पद्य, दि.?, (यद्यानंदनिधिं भवंत), २२४८९-४ आलोयणा तपोदान संग्रह-खरतरगच्छीय, आ. भुवनरत्नसूरि, प्रा.,सं., वि. १५वी, प+ग., मूपू., (नामलिवियावत्ती दाणं), २११९५(+) आलोयणा विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (हत्थुत्तर सवणतिगं), २१६४१-१ आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, स्था., (नमो अरिहंताणं० नमो), २२५३६-१(+) आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम मुहूर्त), २१२९६-१(+) आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहताणं० सव्व), २१६०३(+), २१६३३(+$), २५५१६, २५९२५, २५७८४($) (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), २१५६४(+), २१६०३(+), २१६३३(+$), २५८५५-२, २५९२५ (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., गा. २५३, पद्य, मूपू., (अवरविदेहे गामस्स), २१६०३(+), २१६३३(+$), २५९२५ (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), २१६३३(+$) (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, मूपू., (--), २१६०३(+), २५९२५ (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., वि. १२९६, गद्य, मूपू., (--), २१६०३(+), २५९२५ (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), २१५६४(+), २१६३३(+$) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा सामायिकअध्ययन नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अ. प्रथमअध्ययन, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं सुयना), २६७९७(+) (४) विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. प्रथम अध्ययन, गा. ३६०३, पद्य, मूपू., (कयपवयणप्पणामो वोच्छं), २६७९७(+), २५८०३ (५) विशेषावश्यकभाष्य-शिष्यहिता बृहट्टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., ग्रं. २८०००, वि. ११७५, गद्य, पू., (श्रीसिद्धार्थनरेंद्र), २६७९७(+) (२) आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं. १२३२५, वि. १२९६, गद्य, मूपू., (देवः श्रीनाभिसूनु), २१६०३(+), २५९२५ (२) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), २१६३३(+$) (३) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिताटीका का टिप्पणक, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., ग्रं. ४६००, गद्य, मूपू., (जगत्रयमतिक्रम्य), २५८३८ (२) आवश्यकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), २५७८४($) (२) लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (लोगस्स उज्जोअगरे), प्रतहीन. (३) लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउद राजलोकमाहि), २६८३१(+) (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमुत्थुणं अरिहंताणं), २२५९०-७३(+) For Private And Personal use only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मृपू., (सकलकुशलवल्ली), २२४५०-४७०), २२९३५-६ (३) सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हत भगवंत अशरण), २२९३५-६ (२) अतिचार आलोयणा - रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( आजुणा चौपहुर दिवसमाह), २६०२९-२ (२) इरियावही क्षमापनाभेद, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकीभेद १४ तिर्यंच), २२७२७-३ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १८, पद्य, म्पू, (इरियावाही पडिक्रमशुं), २४३२१-५ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवीना चरण नमी), २२८५८ - ४ (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढमं), २२४८१-५ (+), २२८७२ - २ (+), २२४७७-१, २२७८७-४, २३२२९-२, २६८८७-१(१) ४८३ (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मृपू., ( नमो अरिहंताणं), २३०१७ (३) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु., प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., ( नमो अरिहंताणं० पढमं ), २२३३८($) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - अंचलगच्छीय बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजीराउलिपुरवरनायक), २१०८२ (३) श्रावकलघुअतिचार-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, भूपू., (इच्छा० भगवन्० अरिहंत), २२५७६-४ (२) द्वादशावर्त वंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २२४८१-१३(०) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र - अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु., प्रा., सं., प+ग., म्पू, (प्रथम संध्या समये), २६५७४ ६) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र - अंचलगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरु नमस्कार अरिहंत), २६५७४($) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, भूपू., (णमो अरिहंताणं० जयउ), २२९२४- १ (+३), २५१५२-१ (२) पगाम सज्झायसूत्र संबद्ध, प्रा. सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०) २११३३ (+), २२१२७(+), २४२६४(७), " २५७५५-१(+), २१६४९, २१९३९, २१९९८, २२५२६-२, २३२७५, २३४७८, २५४६९, २६९३१ (३) पगाम सज्झायसूत्र- अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., वि. १३६४, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवीरजिनं), २१०६४(३) (३) पगाम सज्झायसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (निवर्तवा वांछुउ प्रक), २६९७६(३) (३) पगाम सज्झायसूत्र - टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १७४९, गद्य, मूपू., (ऐं नत्वा पार्श्वनाथ), २१६४९ (३) पगाम सज्झायसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (चार बोल तेम मंगलिक), २११३३(+), २२१२७/+), २४२६४(+), , २५७५५- १(०), २५४६९, २६९३१ (२) पच्चक्खाण पारने का सूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., ( नमुक्कारसी मुठसी), २६५७० - २ (+) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपु. ( इच्छाकारेण संदिसह), २२५४६-३, २२७८७-३ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपु., ( इरियावहि चार नवकारनो), २३४२० , (२) प्रतिक्रमणगर्भहेतु संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.सं., वि. १५०६, पद्य, मूपु. ( श्रीवर्द्धमानमानम्य), २१३०१ (२) प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रवचनसारोद्धार), २२५५७ - २(०), २२५४६-४, २५१४६ (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह- अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, (), २२५३४-१ (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपु, (देवसिय आलोय पडिकंत्त), २२५४७- १, २३१२८ (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कर पडिकमणुं भावशुं), २२५९०-३६ (+) (२) प्रतिक्रमणसूत्र उपकेशगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., (प्रथम स्थापना), २६७७० (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खे.मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मूपू., ( नमो अरिहंताणं नमो ), २२४८१ - १(०), २२५६४-१(+), २२४९४, २२८२०, २२९५९(#), २२७०४ ($), २३२६८($), २३२७० ($), २३३४४($), २३८२९-१($), २४९६०(३) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-वे. मू. पू. - टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतरागदेव तुमे), २२९५९(७) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वेतांबर", संबद्ध, प्रा., सं., प+ग., मूपू., ( नमो अरिहंताणं० करेमि ), २२८२७ - १(+), २४०६६ For Private And Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ (२) प्रतिक्रमणहेतुगर्भित स्वाध्याय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १९, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर प्रणमी), २६९८० (२) प्रतिक्रमणहेतु विचार, संबद्ध, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधु अने श्रावक दोइ), २१३२१-३ (२) प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, भूपू (उगए सुरे नमुकारसिय), २२५१८-८(+), २२५९८-७(+), २३२७७(+), " - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६५७० - १ (+), २१२८३३, २१९७८, २२३०८-२, २२५६५-७, २६१६८, २६७७६-३ (३) प्रत्याख्यानसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( उ० सूर्य उग्याथी), २३२७७(+) (३) प्रत्याख्यानसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यना उदयथी मांडी), २६५७० - १(+) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दो चेव नम्मोकारे), २२५२९-१ (४) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा- अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अन्नत्थणाभोगेणं), २२५२९-१ (२) प्रातः कालीन सज्झाय आदेश, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (भगवान लाभ कहलेसीय), २२९८५-३ (२) महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (विशाललोचनदलं), २२५९८-८(+) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, भूपू, (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), २१३३६-२(+), २२५८७-८(+), २२८७२ - ९(+), २११०५-५ " (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाब, संबद्ध, मु. दयाकुशल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जिन वचन सदा अणुसरी), २२५१०३७ (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., ( नमो अरिहंताणं नमो ), प्रतहीन. (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपु., (भरहेसर बाहुबली अभय), २१४८७, २३१३३-४(A) (४) भरहेसर सज्झाय वृत्ति, ग. शुभशील, सं., अ. २, वि. १५०९, गद्य, मूपू., ( युगादी व्यवहाराध्वा), २१४८७ (५) भरहेसर सज्झाय-टीका का टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( युगने आदे व्यवहार), २१४८७(5) (४) भरहेसर सज्झाय- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २५६२९(३) (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), २२९२४ - १३ (+), २३७३६ (+), २४६३९-४, २४९७३, २५१०२-२, २५१५२-९, २६०२९-१ (३) वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., अधि. ५, ग्रं. ६६४४, वि. १४९६, गद्य, मूपू., (जयति सततोदयश्रीः), २१५१७ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो ), २२९८१-१, २४५११, २३६५३-१६) २६३६७-१६) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, भूपू., ( नमो अरिहंताणं० पंचिद), २१०४५- १(+), २१२०७(+), २२४३० (+), २२४७१-१(०), २५५२० (+), २५८३६- १ (०३), २५९२६ (+३), २१३३२, २२५६०-१, २२५६५-१, २२६४८, २५५३०, २५८४१-१, २६२२१, २६४४१, २६५७२, २१०२८ (#$), २११४६($), २१३१५ (७), २१९६१ - १($), २४४८६ ($) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मु, जिनविजय, मा.गु., वि. १७५१, गद्य, म्पू, (बार गुणे करि सहित), २६२२१, २११४६ (३) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., वि. १५०१, गद्य, मूपु - , श्रीमहावीर), २५८४१-१ ( श्रेयांसि (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनई नमस्कार), २५९२६(+$), २१०२८(#$) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरउ नमस्कार अरिहंत), २६४४१ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (माहरउ नमस्कार अरिहंत), २१०४५-१(१), २१२०७(+), २५५२० (+), २५८३६ - १ (+$) For Private And Personal Use Only (२) आवकप्रतिक्रमणसूत्र- पायचंदगच्छीय, संबद्ध, प्रा.सं., मा.गु., प+ग, भूपू., ( णमो अरिहंताणं णमो ), प्रतहीन, (३) श्रावकपाक्षिक अतिचार- पायचंदगच्छीय, संबद्ध, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १५५, पद्य, मूपू., (नाणे दंसण चरणे जाण), २३७२७ Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir सासूचा पाराशष्ट- १ ४८५ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (श्वे.मू.पू.), संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), २५९७९-१(+), २६६०३(+), २३८०७-१, २५४२३, २६२८०, २३५५९(#), २३०९३६), २५६६३(5), २६४०१(६) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. २७२०, गद्य, मूपू., (वृंदारुवृंदारकवृंदवं), २५९७९-१(+), २६६०३(+), २५६६३() (४) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका का टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., वि. १७६१, गद्य, मूपू., (बालानां सुहितार्थाय०), २५९७९-१(+) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (इह तावत् श्राद्धेनाप), २६४०१(६) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ नमस्कार हुओ), २३४७८, २५४२३, २६२८० (३) पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मिअ), २२६२६-२(+) (३) श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमि दंसणंमि०), २२०६७(+), २२४७१-१६(+), २२५९२(+), २२६२६-१(+), २५८२९-४(+$), २६८३३(+), २१९६९, २२१३७, २२१९१, २२२१५, २२६७२, २२८७६-१, २२९७६-१, २३०४६, २३८६७, २५१३०, २५७१६, २६०२९-४, २६३१९, २६६४८, २६७९३, २४१४२($) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं० तिखुत), २१२७३(+), २२५५७-१(+), २६१७१(+), २१२४८ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., स्था., (नमस्कार हो कर्मरूप), २१२७३(+), २६१७१(+), २१२४८ (२) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., मूपू., (पण संलेहणा पनरस), २२२७३(+), २१६५७, २५१०२-१ (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहताणं नमो), २१११६ (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० आवस्स), २२६३४(+), २५७४०(+), २६१०६, २६७७६-१(६) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), २५७४०(+), २६१०६ (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), २२२२४(#$) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), २१०६०-२(+), २१६५५-२(+), २१६७५-२(+), २४९८१-२(+), २६२९४-२(+), २११९७-२, २२०५९-३, २२११७-२, २२५४६-२, २६४५९-२, २६७३९-२, २६८८२-२, २६४३०-२(#), २६०६१-३($) (४) क्षामणकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छु छु वांछु), २१६७५-२(+) (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), २१०६०-१(+), २११७१(+$), २१६५५-१(+), २१६७५-१(+), २२९२४-१५(+$), २४९८१-१(+$), २५६३२(+), २५६३६(+), २६२९४-१(+), २६४१५(+), २११२०, २२०५९-२,२२३९०, २२५४६-१, २५१९३, २५७४२, २६०६१-२, २६७३९-१, २६८८२-१, २६४३०-१(#), २११९७-१(६), २२११७-१(६), २३३५४(६), २३६६६(), २६४५९-१(६) (४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर प्रते वांदउ), २१६७५-१(+), २६४१५(+) (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सयणासणन्नपाणे), २६२९४-३(+), २६४७६-२(+) (४) साधुअतिचारचिंतवन गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (शयन क० शय्या), २६४७६-२(+) (३) साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दसणम्मि०), २१६५५-३(+), २२०२४(+), २३९०६(+), २२००८, २२०५९-१, २२७८७-२, २३६१२, २३७०६, २६९४१-१ (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं० तिखूत), २२०७७ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), २२५१८-१(+-), २११०५-१, २२०६८-१, २२१२६-१ For Private And Personal use only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहताणं णमो), २२४६३-१(+६), २१६११, २६०३८ (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय का बालावबोध, आ. तरुणप्रभसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुरासुराधीशमहीश), २१६११ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहंताणं०), २४६८२($) (२) सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम १० मन संबंधी), २२५७५-१० (२) सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पालद्धी अथिरासण दिसि), २२४८६-५, २२५४८-३, २६४३५-३, २६६७४-३ (३) सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पालखीइं न बेसीई), २२४८६-५, २६४३५-३ (२) सामायिक पारने की विधि-खरतरगच्छीय जिनपतिसूरि समाचारी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (खमासण० देई इच्छाका०), २२७८१-२(+) (२) सामायिक लेने की विधि-खरतरगच्छीय जिनपतिसूरि समाचारी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावक बेघडी पाछली), २२७८१-१(+) (२) सामायिकादि विधि-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पंचिंदिअसंवरणो तह), २२८३९ (२) सुमतिजिन स्तवन-प्रतिक्रमणविधिगर्भित, संबद्ध, वा. विमलकीर्ति, मा.गु., ढा. ६, गा. २०, वि. १६९०, पद्य, मूपू., (सुमति कर सुमति जिन), २२५५४-६(+) आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वसुखमागारं), २६२९५(+) आस्रवत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., गा. ६२, वि. १४वी, पद्य, दि., (पणमिय सुरिंदपूजिय), २२५३१-२(+) इंद्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपू., (सुच्चिअसूरो सो), २५७८३ (२) इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेहिज सूर तेहिज), २५७८३ इरियावही कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (चउदस पय अडचत्ता तिगह), २२५४८-१, २६४३५-१, २६६७४-१ (२) इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चौदह नारकी ४८ तीर्यच), २६४३५-१ उत्कृष्ट-जघन्य तीर्थंकर विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (इदानीं उक्किट्ठ), २२५२९-८ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), २१२३५ (+$), २१३०६(+), २१३४९(+), २१३५४(+#), २१३६२(+), २१३६४(+), २१३७९(+), २१३९३(+#$), २१४६२(+), २१६२८(+#$), २१६३२(+), २३१९२(+$), २५४३०(+), २५८९८(+), २५९०९(+), २५९३०(+), २५९३४(+#), २५९७४(+), २५९९१(+), २६०९४(+), २६५३१(+), २१३६१-१,२१५०३, २१९०७, २५२०२, २६२९२,२६३७५, २११११, २२३२६, २२७३२-३, २६११५, २६१७९, २६३३०, २६५८८,२६६९४-२, २११९९(#$), २१३९४(#), २१५५०(६), २१८०३($), २४४४१(६), २४९०९(s), २६०१७) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, मूपू., (भिक्षो विनयं प्रादुष), २१३४९(+), २६४९८, २१३९४(#) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भिक्षु महात्मानइ), २६४९८, २१३९४(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., ग्रं. १२०००, वि. ११२९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य विघ्नसंघात), २५८९८(+), २१५५०(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. १५३००, वि. १८पू, गद्य, मूपू., (अर्हतो ज्ञानभाजः), २१५०३ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), २१६२८(+#$), २२३२६ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), २१३६२(+), २१६३२(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग बे प्रकारे), २१२३५(+$), २१३४९(+), २१३५४(+#), २१३६४(+), २१३७९(+), २१३९३(+#$), २१४६२(+), २५४३०(+), २५९०९(+), २५९३०(+), २५९९१(+), २६०९४(+), २६५३१(+), २११९९(#s), २१८०३($) For Private And Personal use only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट १ (२) उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ + कथा *, मा.गु., गद्य, श्वे., (उत्तराध्ययनो स्यु), २५२०२ ($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र - टबार्थ + कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मृपू., (पूर्वसंजोग मातापिता), २५९३४(+), २१३६१-१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र- टबार्थ+कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, म्पू., (कर्द्धमानजिनं नत्त्वा० ), २५९७४ (०) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, म्पू., (एक आचार्यनई एक चेलो), २१६२८(+S) (२) उत्तराध्ययनसूत्र - कथा संग्रह *, सं., पद्य, मूपू., (--), २६५९२, २२५२५, २११३० ($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-गीत, संबद्ध, उपा. राजशील, मा.गु., गी. ३६, पद्य, म्पू, (सरसति मति अति निरमली), २५७९९ (२) उत्तराध्ययनसूत्र - विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा, उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मृपू., (पववणदेवी चित्तधरीजी), २२५१०-३४, २१०४४ (S) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपु., (धुवक कही पांचसई), २२५४२-४ (२) विनयअध्ययन सज्झाय, संबद्ध, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पवयण देवी चीत धरीजी), २२५९० ६९ (+) उपकेशगच्छ स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सप्तत्यावस्थराणां), २२८७२ - १० (+) उपदेशपद, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १०३९, पद्य, मूपू., (नमिऊण महाभागं तिलोग), २५९०८ (२) उपदेशपद- सुखबोधिनीवृत्ति, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं. ग्रं. १४५००, वि. ११७४, गद्य, मूपु., (यस्योपवेशपदसंपदमापदं), २५९०८ उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), २१००३ (+), २१६१७(+), २३९३७(+), २५९४१(+), २५९४७(+), २६४०४(+), २६६११(+), २६७८९ (+), २६९४४ (+$), २१०१३, २११२२, २१३६६, २१३९८, २५४३१-१, २५९४३, २५९८६, २६४६४, २१२३७३) २६५७५(३) (२) उपदेशमाला - वृत्ति, ग. रामविजय, सं., ग्रं. ७६००, वि. १७८१, गद्य, मूपू., (श्रेयस्करं कामितदान), २६७८९(+) (२) उपदेशमाला - हेयोपादेया वृत्ति, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., ग्रं. ९५००, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (हेयोपादेयार्थोपदेश), २१२३७ ($) (२) उपदेशमाला - बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., वि. १७१३, गद्य, म्पू., ( नमस्कार करीनइ जिण), २१६१७(+), , (२) उपदेशमाला - कथा, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा वीरजिनं), २१३९८, २६५७५ ($) (२) उपदेशमाला - उत्कृष्ट-मध्यम गाथा व अक्षरसंख्या यंत्र, मा.गु., को. मूपू., (--), २६४९२ उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., ( उवएसरयणकोसं नासिअ), २२५५०-१ उपधानतप विधि, प्रा., सं., गद्य, श्वे., (प्रथमः द्वितीयोपधानय), २२४३१(+) ४८७ २५९४१ (+), २५९४७(+), २१३९८, २५९४३, २५९८६ (२) उपदेशमाला वालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., ग्रं. ५९००, वि. १४८५, गद्य, मूपु., (श्रीवर्द्धमानजिनवर ), २१३६६ (२) उपदेशमाला - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमस्कार करीने तीर्थ), २६५७५(5) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), २६९४४ (+$), २५४३१-१ (२) उपदेशमाला-कथा, आ. वर्धमानसूरि, प्रा., गद्य, मूपु., (तेणं कालेणं तेणं), २१२३७ (३) उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (प्रथम शुभदिवसे पोषध), २६०३० उपधानादि विधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (पहिलइ नउकारनइ उपधाना), २१६४४ (६) 9 , उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १० नं. ८१२, प+ग, मूपु. ( तेणं० चंपा नामं नवरी), २५७८९(+), २५८४५-१, २५८०८(४), २१००१) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), २५७८९ (+), २५८०८ ($), २१००१) उपासक संस्कार विचार, मु. पद्मनंदि, सं., श्लो. ६१, पद्य, दि. ?, ( आद्यो जिनो नृपः ), २२४८९-२ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., ( उवसग्गहरं पासं० ॐ), २३८९९-२ उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपु. ( उवसग्गहरं पासं पासं), २२५५६-११(०), २२५८०-५(+), २२५९०-१७२(+), २१४४३, २३९७१-३ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की पार्श्वदेवीय टीका, ग. द्विजपार्श्वदेव, सं., गद्य, मूपू., (अह आवश्यकादि), २१४४३ For Private And Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की प्रियंकरनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, प्रा.,सं., वि. १६वी, गद्य, मूपू., (वंशाब्जश्रीकरोहसो), २१२५५(5), २६५५७() ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २०९, ग्रं. २५९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), २५९०५(+$) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-टीका, ग. शुभवर्धन, सं., गद्य, मूपू., (योभूयुगादौशिवशुद्ध), २५९०५(+$) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यताक्षरसंलक्ष्य), २२८४९-२(+), २३००३(+), २३५०५(+), २३८३६-१(+), २५५१४(+), २१०९९, २३३६२, २५५७१, २५५७९, २५६७७ (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (आदिको अक्षर अंतको), २५५७९ (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-यंत्रलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम स्थान पवित्र), २१४३८-१ (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-यंत्रोद्धार क्रम, संबद्ध, सं., पद्य, मूपू., (स्मृत्वा तीर्थकृता), २१४३८-२ ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. ७६, पद्य, मूपू., (नाभेयप्रमुखार्हता), २२८६५(+$) (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नाभेरपत्य नाभेयः), २२८६५(+$) एकमुखीरुद्राक्ष कल्प, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (यद्रुद्राक्षफलं भौमौ), २५४९९-२ एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), २१०६८-१(+), २१९४१-१(+), २६०७९(+), २२४९२-४, २३२६७, २५८३२,२६०१४, २६६८६, २६९८२ (२) एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गद्य, मूपू., (केहा विमानेथी चव्या), २१०६८-१(+) (२) एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरना २१), २६०७९(+), २६६८६, २६९८२, २५८३२() एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., श्लो. २६, ई. ११वी, पद्य, दि., (एकीभावं गत इव मया), २६५६८(+) (२) एकीभाव स्तोत्र-भाषा, मु. भूधर, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., दि., (नमो आदि आदिस जिन नमो), २६३५८-३ एगूणतीसी भावना, प्रा., गा. ३०, पद्य, श्वे., (संसारम्मि असारे), २२४८६-६, २३२५७(#) (२) एगूणतीसी भावना-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, श्वे., (संसार असाररूप छइ), २२४८६-६, २३२५७(#$) ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ११६४, पद्य, मूपू., (अरहते वंदित्ता चउदस), प्रतहीन. (२) ओघनियुक्ति-अवचूर्णि#, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., ग्रं. ३३००, वि. १४३९, गद्य, मूपू., (प्रक्रांतोयमावश्यकान), २६३७७(+$), २५८५६ औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरु), २११२५-१ (२) औपदेशिक श्लोक-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेव परम), २११२५-१ औपदेशिक श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), २६१३२(+) (२) औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अहँत भगवंत असरणसरण), २६१३२(+) औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. १८९, ग्रं. १६००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), २१३९२(+), २१५०८(+), २१५३९(+), २५४७४(+), २६०३७(६), २६५६३($) (२) औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ३१२५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), २६०३७(s), २६५६३(5) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मपू., (वंदित्वा श्रीजिन), २१३९२(+), २१५०८(+) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा श्रीजिन), २१५३९(+) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (चउथा आरानइ विषइ वरस), २५४७४(+$) औषधवैद्यक संग्रह, सं.,प्रा.,मा.गु., गद्य, वै., (--), २२५८६-९(+), २३३२३-२(+), २५१६४-६ कथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानु नाम), २५५५४(६), २४२९०(२) कनकरथ कथा-सुपात्रदानविषये, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरते वैताढ्य), २२४९५-११(+) कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., श्लो. १७९, पद्य, मूपू., (कर्पूरप्रकरः शमामृत), २२५७२-१८(+), २५८००-१(+) For Private And Personal use only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८९ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), २१०१५-१(+#S), २१०९०-१(+), २११८६-१(+), २१८४५-१(+), २२८२५-१(+), २४२२९-३(+), २५५५२-१(+), २५६७५-१(+), २६०७०-१(+), २६८४५-१(+), २१०९४, २१२२४-१, २१८९५-१, २५७६५-१, २६२८८, २४५५०-१($) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि #, आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं. ३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपू., (सिरि० श्रियाष्टप्रात), २६०७०-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, ग. शांतिविजय, मा.गु., वि. १६६४, गद्य, मूपू., (वीरजिन प्रति वंदित्व), २५५५२-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान प्रति), २५८७०-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन वांदी), २१०९०-१(+), २४२२९-३(+), २५६७५-१(+), २१२२४-१, २५७६५-१ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (तह थुणिमो वीरजिणं), २१०१५-२(+#s), २१०९०-२(+), २११८६-२(+), २१८४५-२(+), २२८२५-२(+), २५५५२-२(+), २५६७५-२(+), २६०७०-२(+), २६८४५-२(+), २१२२४-२, २१८९५-२, २४५५०-२, २५७६५-२ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., वि. १४५९, गद्य, मूपू., (तह० गुणस्थानेषु मिथ), २६०७०-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, ग. शांतिविजय, मा.गु., वि. १६६४, गद्य, मूपू., (सामान्य प्रकारइ एकसो), २५५५२-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिम श्रीमहावीर प्रति), २५८७०-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तह क० तिम हवे बिजा), २१२२४-२, २५७६५-२ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (बंध ते स्यु कहीयइ), २१०९०-२(+), २५६७५-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., यं., मूपू., (बंध प्रकृतिओ छे), २५१४४ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मूपू., (तेणं कालेण० समणे), २१३४२(+$), २१५४६-१(+$), २१५८१(+$), २१५९८(+), २१६१६(+), २१६२१(+), २१६२६(+#), २३४३५-१(+), २४६०३(+), २४७३१(+$), २४७३२(+), २५३६०(+$), २५३९२(+), २५४२८-१(+#), २५४५२(+), २५९१७(+), २५९३५(+), २५९३६(+), २५९६६(+), २५९७३(+), २५९७८(+), २६०२२(+), २६५१२(+$), २६५१५(+), २६७४३(+), २३१८१, २५२५६, २५३५८, २५६१६, २५५९२, २१२८७-२(s), २१४८४(६), २१५३८(s), २३६१९(६), २४३९७(5), २४६४६(६), २४६७४(६), २५१७९(), २५२४८(s), २५२७७(६), २५७०८(), २५८०५(६), २५८६४(६), २५९८२(क), २६४९६(), २६८९३(६) (२) कल्पसूत्र-कल्पकौमुदी टीका, उपा. शांतिसागर, सं., ग्रं. ३७०७, वि. १७०७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंदकंदकं), २१६१६(+) (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), २५७०८(६) (२) कल्पसूत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (नमः नमस्कारोस्तु), २१३४२(+$) (२) कल्पसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (अत्राध्ययने त्रयं), २१५४६-१(+$), २१६२६(+#) (२) कल्पसूत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २१५९८(+) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु., वि. १७०७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), २५९३६(+) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं), २१०१९(+$), २४६०३(+), २४७३२(+), २५५९२, २१५३८($), २५२४८($), २५२७७(s), २५८६४(s), २६३५९($) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ माहरो), २१६२१(+६), २५३६०(+5), २५३९२(+), २५४२८-१(+#), २५४५२(+), २५९१७(+), २५९३५(+), २५९३६(+), २५९६६(+), २५९७८(+), २६५१२(+$), २५३५८, २३६१९(६), २४६४६(६), २५८०५(६), २५९८२(६) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ *, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरचरित्रबीज), २५७०८(६) For Private And Personal use only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ (२) कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, मु. धीरविजय, मा.गु., वि. १७६३, गद्य, मूपू., (सकलार्थ सिद्धिजननी), २५९७३(+) (२) कल्पसूत्र-अक्षरार्थ, सं., गद्य, मूपू., (अनल्पकल्पना कल्पपादप), २६४५७(+$) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, मूपू., (तत्रादौ श्रीऋषभदेव), २५९३५(+) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्धमानाय), २१६२१(+), २५३६०(+$), २५४२८-१(+#), २५४५२(+), २५९१७(+), २५९६२(+), २५९७८(+), २६५१२(+s), २१२८७-२($), २४३९७(s), २४६४६(s), २५८०५(६), २५९८२(१), २६८९३(६) (२) कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (बलदेव बलिदेव वासुदेव), २३०५९-२, २३०९१ (२) कल्पसूत्र-दशआश्चर्य वर्णन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (उवसग्ग गब्भहरणं इत्थ), २३०५९-१, २६८२३(#) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अल्त भगवंत उत्पन्न), २५४१९(+) (२) कल्पसूत्र-पीठिका*, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (श्रीकल्पः सहकार एष), २४२२५(+) (३) कल्पसूत्र-पीठिका काटबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीकल्पसूत्र आम्र), २४२२५(+) (२) गर्भपरावर्तन विचार-अन्यशास्त्रोक्त, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (अत्राह कोपि शिवशासनी), २५४२८-२(+#) (२) कल्पसूत्र- अंतर्वाच्य, वा. गुणविजय, मा.गु.,सं., वि. १६८७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), २५३५८ (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तराफाल्गुनी नक्षत), २५०१८ (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, सं., गद्य, मूपू., (कल्याणांपुरिम इह), २५९६६(+) (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जयति जगदेकचक्षुः कमल), २६८१७-१(+) (२) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिकानुसारी सूचनिका, पुहिं., गद्य, मूपू., (मंगलाचरण काव्य तीन), २३०३३ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), २१५९०-२(+), २५४०९-२(+), २५८८७-२(+), २५३८७-२ (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रेणिकनप्तृणां), २५८६७-२ (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टिप्पण", सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २१५९०-२(+) (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे भगवंत समण०), २५४०९-२(+), २५३८७-२ कल्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेण०), २१५९०-१(+), २५४०९-१(+), २५८८७-१(+$), २५३८७-१ (२) कल्पिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथं नमस्कृत), २५८६७-१ (२) कल्पिकासूत्र-टिप्पण", मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), २१५९०-१(+) (२) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस), २५४०९-१(+), २५३८७-१ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदार), २१९००-१(+), २१९२५(+), २२०५१-१(+), २२२४०(+), २२८५१-१(+), २४५७९(+), २५६८०(+$), २६०२७-२(+$), २६०६९(+), २१२४१, २२३७०-१, २२७१८, २३४१९-१, २३९७१-२, २४६३९-३, २५४०८-१, २५४४०, २५७५८, २५७९६, २५८३७, २६३१८, २६३५८-२, २६८३४, २६८४३, २६८७२-२, २१५७९-२(#), २३७९०-२(#$) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. ६५०, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्व), २६०२७-२(+), २६५८५ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मपू., (सर्वज्ञं जिनमानम्य), २५८३७ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (अस्यैव काव्ययुगल), २४२३८($) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (किल इति संभावनायां), २२७१८ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं श्रीसिद्धसेन), २६३१८ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (किल इति संभावनाया), २१२४१, २६८४३ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मु. उत्तम ऋषि, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (कल्या० ताहरा चरणकमल), २४५७९(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, पा. रूपचंद्र गणि, मा.गु., वि. १८११, गद्य, मूपू., (जिनेश्वरस्य अंहिपद), २६०६९(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीनइ), २५७५८ For Private And Personal use only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir - ४९१ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), २१९२५(+), २५४४०, २५७९६, २३७९०-२(#$) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४४, पद्य, मूपू., दि., (परमज्योति परमातमा), २४१८१ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-भाषाटीका, पं. गंभीरसागर, पुहिं., गद्य, मूपू., (तस्य कहीयै तिस तीर्थ), २५६८०(+$) कल्याणसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (स्याद्वादोइंडशुंडो), २२५८३-१(+#) कामेश्वरी मंत्र, सं., गद्य, (ऊँ कामिनी कामेश्वरी), २२१७१-३ कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुहदसणरहिओ कायठि), २५४४५(+) (२) कायस्थिति प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदे शांतिजिनाधीशं), २५४४५(+) कार्तिकपूर्णिमापर्व व्याख्यान, ग. जयसार, सं., वि. १८७३, गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलतीर्थेशं), २६९१४(+) कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., ग्रं. ४४१, वि. १६६६, प+ग., मूपू., (प्रणम्य श्रीगुरुं), २५५३४-१(+), २५८८९ । कालिकाचार्य कथा, प्रा., गा. १२०, पद्य, मूपू., (हयपडिणीयपयावो), २१५४६-२(+$) काव्य संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (--), २१८८२-२(+) कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहिं.,प्रा., वि. १८८४, गद्य, मूपू., (मनोमती झूठी प्ररूपणा), २२६७६(+) कुमारपाल प्रबंध, उपा. जिनमंडन, सं., वि. १४९२, प+ग., मूपू., (ॐ नमः श्रीमहावीरजिन), २१६२९(+) कुम्मापुत्त चरिअं, मु. जिनमाणिक्य; उपा. अनन्तहस, प्रा., गा. १९८, ग्रं. १०००, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं असुर), २५६४४(+), २१२४९-१ (२) कुम्मापुत्त चरिअं-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामीने नम), २५६४४(+) कुरुचंद्रराजा कथा-साधारणदाने, सं., गद्य, श्वे., (जंबुद्वीपे अत्रैव), २२४९५-५(+) कुलवालक कथा, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरतक्षेत्रे), २२४९५-१०(+) खेचरमंजरी, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमत्तीर्थपति पुनर), प्रतहीन. (२) खेचरमंजरी-ग्रहगतिकरणी की सारणी, संबद्ध, रा., यं., मूपू., (वक्रीमार्गी रो चार), २६७३७ गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., गा. १३७, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीर), २२४८७-४(+) (२) गच्छाचार प्रकीर्णक-चयनित गाथासंग्रह, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं तिअसंद), २२४८७-३(+) गणपतिपंचरत्न स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (हिमांगजासुतानुज), २२५४४-३ गणेशाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (उमांगजं कर्णवक्र), २५७२७-१ गायत्री मंत्र, सं., पद्य, वै., (ॐ भुर्भुवः स्वः ॐ तत), २१०३८-२(+) गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक्रमारोहहत), २१५११(+), २६५५०(+), २१०४३ (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. १४४७, गद्य, मूपू., (अर्ह पदं हृदि), २१०४३ गुरुतत्त्वविनिश्चय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., उल्ला. ४, गा. ९०३, ग्रं. ७५२५, पद्य, मूपू., (पणमिय पासजिणिद), २५९२० (२) गुरुतत्त्वविनिश्चय-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., उल्ला. ४, गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनतं नत्वा), २५९२० गृहबिंब लक्षण, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथातः संप्रवक्ष्यामि), २६१४६-२(+) गोचरी दोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अहाकम्मं १ उदेसियं), २५११७-२, २३८००-२($) (२) गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आ० आधाकरमी ते कहीइ), २३८००-२(5) गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., कां. २ अधिकार ३१, गा. १७०५, पद्य, दि., (सिद्धं सुद्धं पणमिय), २५७९०(+$), २१४३४ (२) गोम्मटसार-जीवतत्त्वप्रदीपिका वृत्ति, केशववर्णी, सं., गद्य, दि., (यः सर्वकालविषयार्थ), २५७९० (+$), २१४३४ (२) गोम्मटसार-उदयत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ७३, पद्य, दि., (पंचणवदोणिअट्ठावीस), २२५३१-४(+) For Private And Personal use only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ (२) गोम्मटसार-बंधत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ४१, पद्य, दि., (णमिऊण णेमिचंद असहाय), २२५३१-३(+) (२) गोम्मटसार-विशेषसत्तात्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., गा. ३७, पद्य, दि., (णमिऊण वद्धमाण कणयणि), २२५३१-७(+) (२) गोम्मटसार-सत्तात्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ३५, पद्य, दि., (पंचणवदोणिअट्ठावीसं०), २२५३१-६(+) गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), २१३१८(+), २२५१८-१५(+-), २२४८६-८, २३१८४, २५२२०, २५६७१, २६७९०, २५२१६-१(६) (२) गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., कथा. ६९, वि. १६६०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीदेवगुरुन), २१३१८(+) (२) गौतम कुलक-बालावबोध+कथा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., वि. १८४६, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमन्महावीर), २६७९० (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (लुभिया मनुष्य अर्थ), २२४८६-८ (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), २३१८४, २५२२०, २५२१६-१(६) (२) गौतम कुलक-वार्तिक, मु. जगराम, मा.गु., गद्य, मूपू., स्था., (प्रणम्य परया भक्त्या ), २५६७१ गौतमपृच्छा , प्रा., गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाह), २५९९३(+), २६६०७(+), २२५३०-२, २५५६७, २५६९३, २५७८७-१, २६५६१, २६६६८ । (२) गौतमपृच्छा-टीका, मु. तिलक, सं., गद्य, मूपू., (माधुर्यधुर्यगुणतः), २५९९३(+), २६६०७(+) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा कहता नमीने), २५७८७-१ (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), २६५६१ (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), २५५६७, २५६९३, २६६६८, २५७८७-१($) (२) गौतमपृच्छा-कथा संग्रह *, मा.गु., कथा. ३५, गद्य, मूपू., (वसंतपुर नगरने विषे), २५५६७, २५६९३, २६६६८ गौतमस्वामी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अहंकारोपि बोधाय राग), २२५८०-६(+) गौतमस्वामी स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूतिमधिपं), २६७७६-१२ गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), २१२१४-१(+), २२५१८-४७(+-), २२५८०-१३(+), २२५२१-५ ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), २४०१७-२(5) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), २२५९०-८०(+), २३८३६-२(+), २२५४४-८, २६४५६-२($) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. १८५४, पद्य, मूपू., (नमो अरि० जयति नवणलिण), २१०९५(+) (२) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ९४००, गद्य, मूपू., (मुक्ताफलमिव करतलकलित), २५९७१(+) (३) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टीका का टबार्थ#, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां अविघ्नपणे इष्ट), २१०९५(+) चंद्रप्रभजिन अष्टक, मु. आनंदवल्लभ, सं., श्लो. ११, वि. १८७४, पद्य, मूपू., (सुमेरु सन्मौलिकृता), २२९३४-५(+) चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., परि. २, ग्रं. ५३२५, वि. १२६४, गद्य, मूपू., (दृष्टोपि हृष्टजन), २१४८९ (२) चंद्रप्रभजिन चरित्र-टबार्थ, पंन्या. रुपविजयजी , मा.गु., वि. १८९०, गद्य, मूपू., (वंदे श्रीमत्पार्श्व), २१४८९ चंद्रप्रभजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सुविलसच्छरदिंदुरामान), २२९२४-७(+) । चंद्रवीरशुभा कथा, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. २४८, वि. १४८४, पद्य, मूपू., (जयश्री प्रापितोद्वेध), २५८२१-१ चक्रवर्तिनाम, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (भरह सगर मुखे तिय), २३२५२-२ चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू., (श्रीचक्रे चक्रभीमे), २२४६२-४(+) चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., (सावज जोग विरई), २२७०३(+), २५७९५-१(+), २६०७३(+#), २६४७६-१(+), २१६५०, २२१७५, २२३००, २२३८७-१, २५७६९, २६५१८, २२७६१-४(६), २६३८१(६) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (इदमध्ययनं परमपद), २११८४(+), २२१७५, २६५२४ For Private And Personal use only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९३ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सावद्य योग विरति ते), २५७६९ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १७३२, गद्य, मूपू., (सावद्य योगनी विरति), २६४७६-१(+) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मु. धनविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं गणींद), २६३८१(६) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), २१६५०, २६५१८ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ३४१, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य महावीर), २६०७३(+#), २२३०० चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., श्लो. १११, पद्य, वै., (क्वणत्किंकिणी जालकोल), २५४३३-१ चाणक्यवृद्धराजनीति, कौटिल्य, सं., अ. ८, पद्य, वै., (प्रणम्य शिरसा विष्णु), २५००९-१७(+$) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. ४०१, गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं स्फुरद), २२६४६-१(+), २४४२१-१(+६) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंद), २१२५४ चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, मूपू., (सामायिकावश्यकपौषधानि), २२७०१ चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., श्लो. १२३२, वि. १५२४, पद्य, मूपू., (नत्वा जिनपतिमाद्य), २६०५५ (+$), २५७७३, २५७८८, २६०७४(६) (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (अद्य क० पहेला युगला), २५७८८ चैत्यप्रभृतिसमवसरण स्तव, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ४५, पद्य, मूपू., (अरिहंताई पइवं नमिउण), २२५२७-२(+$) चैत्यवंदन महाभाष्य, आ. शांतिसूरि वादि, प्रा., श्लो. ९१०, पद्य, मूपू., (पणमह पणमंतसुरासुरिंद), २१५५१ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम गोबररी गुंहली), २२५३८-३ चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, मु. जीवराज, सं., वि. १८६९, गद्य, मूपू., (तीर्थराजं नमस्कृत्य), २६२४८ चैत्रीपूर्णिमापर्व व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धो विज्जाइ चक्की), २५५८०-२ जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० रायगिहे), २३९३९(+), २६०४०(+), २४२१५, २६३५१(६) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथो आरो तेवा), २३९३९(+), २६०४०(+), २४२१५, २६३५१(६) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-छायानुवाद, मु. मानसिंघ, सं., गद्य, मूपू., (महावीरं जिनं नत्वा), २५८५४(+$) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुप्रभावं जिनं नत्वा), २३३११(+), २४७३७-१(+), २१०२५ (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-जंबू चरित्र, मु. चेतनविजय, मा.गु., गा. ५२३, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत नमो सदा), २४३८५-१ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष. ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), २१३५५(+), २५८५३(+), २५९५२(+$), २५९९० (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका, मु. ब्रह्मर्षि, सं., ग्रं. १४५००, गद्य, श्वे., (अपारे किल संसारे), २६८१६ (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-प्रमेयरत्नमंजूषा टीका, उपा. शांतिचंद्र, सं., ग्रं. १२०००, वि. १६५१, गद्य, मूपू., (जयति जिनः सिद्धार्थः), २५९९० (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., ग्रं. १५०००, वि. १७७०, गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धार्थनराधिप), २१३५५(+), २५९५२(+S) जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, मूपू., (नीचोनितास्पष्टतरा), २६८८४($) जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जयतिहुयणवर कप्परुक्ख), २२४७१-१५(+), २२९२४-१४(+), २५६००, २६०२९-३,२६३६७-२, २३८७६-१(६) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-छाया, सं., पद्य, मूपू., (जयतात् हे त्रिभुवन), २५६००, २६३६७-२ जयदेव कथा, स., गद्य, मूपू., (वसंतपुर नगरे), २२८८८-१ जलयात्रा विधि, सं.,मा.गु., पद्य, मूपू., (जलयात्रा योग्य उपगरण), २३२१९ जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सयवारक बेहडा ४ सिंहा), २३३०९-२(5) For Private And Personal use only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ जातक पद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लो. ९३, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वदेवेश), २६६३६(+), २३४३९-२, २४६५९(#), २६२४५(६) (२) जातक पद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रणाम करीने), २६६३६(+), २३४३९-२, २४६५९(#), २६२४५(६) जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमद्देवार्यदेव), २२५७२-१६(+) जिनकुशलसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, पू., (भव्योद्धारकर गुणौघ), २२९३४-१०(+) जिनकुशलसूरि स्तोत्र, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. २२, पद्य, मूपू., (श्रीमज्जिनाधीशमुख), २२५७२-१३(+) जिनगुणकीर्तन स्तव, सं., पद्य, दि., (जयत्यशेषामरमौलिलालित), २२४८९-६($) जिनजन्ममहोत्सव अधिकार, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समए), २५८३४(+$) जिनदत्तसूरिस्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (दासानुदासा इव सर्व), २२४६३-२३(+) जिनदर्शन श्लोक संग्रह, सं., पद्य, मूपू., (दर्शनं देवदेवस्य), २२५१८-४३(+-) जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मपू., (ॐ ह्रीँ श्रीँ अह), २२८४९-१(+), २२८८०-७ जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग., मूपू., (नत्वा जिनं महावीरं), २५८२८ जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, म्पू., (श्रीजिनं भक्तितो), प्रतहीन. (२) जिनरक्षा स्तोत्र-भाषा, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (गुरुचरण सदा नमो हाथ), २३८१७-१ जिनवरदर्शन स्तव, मु. पद्मनंदि, प्रा., गा. ३३, पद्य, दि.?, (दिद्वैतुमम्मि जिणवर), २२४८९-५ जिनसहस्रनाम स्तोत्र, श्राव. आशाधर, सं., श्लो. १४३, वि. १२८७, पद्य, दि., (प्रभो भवांगभोगेषु), २२९९२-१ (२) जिनसहस्रनाम स्तोत्र-टीका, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., गद्य, दि., (ध्यात्वा विद्यानंद), २२९९२-१ जिनस्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), २१७०६-२(+) जिनस्तुत्यादि संग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतो भगवंत), २२५७९-८(+), २२५९०-८९(+), २२५८५-४ जिनस्तोत्र रत्नकोशः, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, मूपू., (जयश्रियं ज्ञानतपस्), २२५२२(+) जीवगुणस्थानक विचार, प्रा.,सं., गा. ६, पद्य, श्वे., (कार्मनवत् अणहारेपि), २२५३१-५(+) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, पद्य, मूपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), २१०७९(+#), २१२७६-१(+), २१३१४(+$), २१६५५-७(+), २१७१७-१(+), २२०६०(+), २२५९४-१(+$), २२६४३-१(+), २३६८०(+), २४५९७-१(+), २४७०६-२(+), २५३६९(+$), २५४२०(+), २५५९३-२(+), २५७४७(+), २५८१४(+), २६०५०(+), २६४१२-१(+६), २१२५१, २१७६४, २२५३०-१, २२७६१-३, २३५३९-२, २३६११-१, २३८२९-३, २३८४०, २४६३९-६, २४८१३, २५३५३, २५५१०, २५६८९, २६२३८, २६६४३-२, २६६७६, २१९८१-१(२), २६१६७-१(२), २१०९१(६), २६८३७() (२) जीवविचार प्रकरण-सुबोधिनी टीका, मु. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८५०, गद्य, मूपू., (इह हि संसारसागरे), २५३६९(+$), २१२५१ (२) जीवविचार प्रकरण-अर्थलेश अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भुवनदीपसमं श्रीवीर), २६५२६ (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भवन कहीइं त्रिभोवन), २१७६४ (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवनमाहि मिथ्यात्व), २५४२०(+), २५५१० (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रै विषै), २१०७९(+#), २१२७६-१(+), २१३१४(+$), २१७१७-१(+), २२०६०(+), २२६४३-१(+), २५५९३-२(+), २५७४७(+), २५८१४(+), २६०५०(+), २३८४०, २४८१३, २५३५३, २५६८९, २६६७६, २१०९१(६) (२) जीवविचार प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., श्लो. २९, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (भुवन प्रदीपक वीर), २२५६२-२(+) जीवानुशासन, आ. देवसूरि, प्रा., गा. ३२३, ग्रं. २२०, वि. ११६२, पद्य, मूपू., (निम्महियरायरोसं वीर), २११८३(+) (२) जीवानुशासन-वृत्ति, आ. देवसूरि, सं., गद्य, मूपू., (अल्पश्रुतमतिसम्मत), २११८३(+) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), २१६०२(+$), २५९८७(+), २६४१४(+) For Private And Personal use only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९५ (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. २००००, गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), २५९८७(+), २६४१४(+$) जैन गाथा, प्रा., पद्य, श्वे., (--), २१०६८-२(+), २१२९६-३(+), २१६०५-२(+), २२५३१-१(+), २२५५४-७(+), २२५७९-९(+), २३४३५-२(+), २४६९८-३(+), २६१६२-२(+), २६४८७-२(+), २२९८४-२, २३२८९-५, २५४२७-२, २५४६५-१, २५७८१-२, २५८४५-२,२६०६१-१, २६३९१-२ जैन गाथा, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (--), २६६७४-४, २६८३८-१ (२) जैन गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पचास आंगुल लांबो), २४६९८-३(+$) (२) जैन गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (३ दिसिठि ४ दर्शन), २१०६८-२(+), २२५७९-९(+), २५४२७-२, २५४६५-१(६) जैन गाथासंग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), २२५१८-४८(+-), २५९४८-२(+), २३६३१-२, २४११८-२ जैनतीर्थावलीद्वात्रिंशिका, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (तीर्थेश्वर श्रीयुत), २२५७२-१७(+) जैनदहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (--), २२२१८(+), २२४५०-४८(+), २२५९८-९(+), २१४५८-२, २५७८७-२ जैनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), २२९८५-४ जैनविवाह विधि, सं., प+ग., मूपू., (स्वस्ति श्रीकरं नत्व), २३७८२ जैन श्लोक, सं., पद्य, मूपू., (--), २१०३८-३(+), २५८३६-२(+), २५९०१-२(+), २१२८१-२, २२८९७-२, २५३९१-२ जैनसंध्या, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., गद्य, भूपू., (प्रथम शुद्धजलेन), २३८९९-१ जैन सामान्यकृति, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (--), २१९११-२(+), २२४६२-९(+$), २२५९८-६(+), २३१९०-३(+), २३७७७-२(+), २५५३४-२(+), २५८२४-२(+), २६३९५-४(+), २२५७५-१५, २४८९१, २५०२०-२, २५४२७-३, २५४३१-२, २५६८५, २५८४१-२, २६७३५-२, २६८२१(६) (२) जैन सामान्यकृति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), २६३९५-४(+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० चपाए), २१३७२(+), २१५२६(+), २१६१३(+), २१६२४(+), २५४३४(+$), २५८८१(+), २५८९६(+), २५९००(+), २५९७२(+), २१३५०, २५३७४, २५८०४, २५९३२, २१३७३(६), २१५३७(६), २१५६०(), २६०३३(६), २६३७४(६) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ३८००, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमन्महावीरं), २५८८२, २५८४२(-) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुंदर, मा.गु., ग्रं. ८५००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), २५४३४(+$), २५८९६(+), २५९७२(+), २५९३२, २१३७३(), २६०३३($) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मु. त्रिविक्रम, मा.गु., ग्रं. ११२०९, वि. १७६०, गद्य, मूपू., (--), २५९००(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. १०५००, गद्य, मूपू., (ध्यात्वा वीरं जिनं०), २१६१३(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार श्रीमहावीरने), २१५६०() (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रथमश्रुतस्कंध-ज्ञातविवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीज्ञाताना हेत), २६५५२(+) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-अध्ययननाम, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मेघकुमारनो अध्ययन१), २२५२९-६ (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ज्ञाताधर्मकथा छर्छ), २२५११-७(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतक सुप्रपंच), २२४६३-७(+), २२९२४-६(+), २५१५२-३, २६७७६-६() ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), २२४८१-१०(+), २२५६४-३(+), २२८७२-७(+-), २२४७७-२३, २२५४७-३, २२५६०-३, २२७८७-१३, २६८८७-२७(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (समुद्रभूपालकुलप्रदीप), २२४७१-११(+) ज्ञानपूजन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम इरियावही), २२५३८-१ For Private And Personal use only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ ज्ञान पूजा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (नमंति सामंति महीवनाह), २५१९४-३ ज्योतिष, मा.गु.,सं., पद्य, वै., (--), २२५०१-४२(+), २५५१८-३(+), २२४६७-१०, २३४३९-१, २५५४९-३ ज्योतिष अपूर्ण ग्रंथ, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., ?, (--), २५७०३-२(६) ज्योतिष श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, (--), २२८५१-२(+) ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, वै., (इष्टस्यावधिसंस्थितौ), २२०५६-२(+), २४२२८-२ ज्योतिष संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., ?, (--), २१०२६-२(+), २५३९६-२(+), २३४३९-३ ज्योतिष संग्रह *, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (--), २११४५-१ ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), २४२३०(+5), २५३९६-१(+), २६१२३(+$), २१४६९, २१५०९, २१९७२, २३८९३, २४११८-१, २४२२८-१, २४७६७, २४९९७,२६१५३, २६२६९, २२९९८, २६१०८, २१३२३(६), २१७६५(६), २१९८५(६), २६०१२(६), २६५६०($) (२) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सरस्वतीं नमस्कृत्य), २२९९८ (२) ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतभगवानने), २५३९६-१(+), २१५०९, २३८९३, २६२६९, २१३२३(७), २६०१२(5) ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ३, श्लो. ३३७, ग्रं. ५००, पद्य, मूपू., (तं नमामि जिनाधीशं), २२६६१(६) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., मूपू., (निजरिय जरामरणं), २१४५८-१ (२) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (कल्याणवल्लीतती०), २१४५८-१ तत्त्वतरंगिणी, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. ६२, वि. १६१५, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं तित्थ), २६५२२ (२) तत्त्वतरंगिणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धार्थमहीपाल), २६५२२ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ. १०, गद्य, मूपू., (सम्यग्दर्शनशुद्धं), २५७७९, २६३२७-१, २३१४५($) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यदा सम्यग्दर्शन), २६३२७-१($) तप कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (सो जयउ जुगाइजिणो), २१६६६-३(+) (२) तप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते जयवंत हु), २१६६६-३(+) तपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अनागत चोवीसी कल्याणक), २५७२०-२ तर्कसंग्रह, अन्नं भट्ट, सं., गद्य, वै., (निधाय हृदि विश्वेशं), प्रतहीन. (२) तर्कसंग्रह-स्वोपज्ञ तर्कदीपिकाटीका, अन्नं भट्ट, सं., गद्य, वै., (विश्वेश्वरं सांबमूर), प्रतहीन. (३) तर्कसंग्रह-दीपिका व्याख्या की फक्किका, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८२४, गद्य, मूपू., वै., (प्रणिपत्य जिनं पार्श), २६०४९(+) ताजिकसार, हरिभट्ट, सं., अ. ४४द्वार, श्लो. ४००, श. ११०५, पद्य, वै., (श्रीरामस्य पदारविंद), प्रतहीन. (२) ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., वि. १६७७, गद्य, मूपू., वै., (श्रीसूर्यचंद्रारबुधे), २१०२६-१(+) तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ), २१४०८-२(+), २२५१८-१०(+-), २३४१९-२, २१५७९-५(#) तिथि विचार, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरान्नवशत), २३९७८ तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., गा. १११, पद्य, मूपू., (अरिहंतं भगवंत), २१०७८(+), २२५३४-२, २५४०७ (२) तीर्थमाला स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अर्हतं पूजायोग्य), २१०७८(+) (२) तीर्थमाला स्तोत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरि वयरा हण्या परम), २५४०७ तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या देवलोके), २२५१८-२९(+-), २२५२१-२, २२५७६-१ त्रिलिंगे गोशब्दनिरुपण, सं., गद्य, श्वे., (--), २४५५४-३ त्रिषष्टिलक्षणमहापुराण संग्रह, आ. गुणभद्र, सं., पर्व. ७७, पद्य, दि., (श्रीमते सकलज्ञान), २५९२९(+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०+परिशिष्ट, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), २१३८०(+) For Private And Personal use only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९७ (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. १३, पद्य, मूपू., (श्रीमते वीरनाथाय), २५९७०(+) (३) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व का बालावबोध, मु. केशरविजय, मा.गु., वि. १८०१, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य गिरि), २५९७०(+) (२) सकलाहत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), २२५८५-३, २२७८७-१, २५२४९-२, २६४३०-३(#) त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., श्लो. १२५०, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्धाभिधं), २५७९१(+) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, पद्य, मूपू., (नमिउंचउवीस जिणे), २१३३८(+), २१६५५-४(+), २१९११-१(+), २२५९४-२(+$), २२९६२(+), २४७०६-३(+), २५३९५(+), २५५९३-३(+), २५७३०(+$), २१९४०, २२३५६, २४६३९-८, २५२६३, २५४४७ (२) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, पू., (श्रीवामेयं महिमामय), २५३९५(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, ग. भाग्यविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं क० नमस्कार करी), २१३३८(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), २५४४७ (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चौवीश तीर्थंकर ऋषभा), २२९६२(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी चउवीस), २१९११-१(+), २५५९३-३(+), २५७३०(+S), २१९४० (२) दंडक प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. २६, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक चौविस नमी), २२५६२-४(+) दशदिग्पाल पूजाविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (हवे वलि सहाय दानना), २१४१८-२ दशपद विचार, प्रा.,सं., ग्रं. ४३५, गद्य, मूपू., (नमः अष्टप्रातिहार्यो), २६५१७(+) दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, गा. ७००, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), २१२३४(+), २१४७२(+), २१५३६(+$), २१५८२(+), २१६३४(+), २१६७०(+), २१९०२(+), २२१७६(+), २२३८३(+$), २२५९०-१४६(+), २४५३५ (+5), २४६३८(+), २५४२९(+), २५४९७(+5), २५७७०(+), २५७९२(+), २५८०१(+), २५८४९(+), २५८८४-१(+), २६११२(+$), २६९५८(+), २१०३१, २१०८६, २१४०६, २१७१३, २२२५७, २२७४२, २३८०१, २४२४३, २५२३६, २५५४१, २५५४७, २५५८४, २५६५२, २५६८२, २६२८७, २६५२५, २६७५३, २६८०४, २६९१५, २६९७७, २६९७८, २१११२, २१३०९, २२३०८-१, २२५७०-१८, २३२२९-६, २४८०७, २६४६८, २५८८५(#), २१०७०(5), २१५४४(६), २२१८२(७), २३८७६-४(s), २५५८५(६), २६८७६(६), २६३६०(-) (२) दशवैकालिकसूत्र-लघुटीका, आ. सुमतिसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., (जयति विजितान्यतेजाः०), २६५३७ (२) दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. ६८५०, गद्य, मूपू., (जयति विजितान्यतेजाः), प्रतहीन. (३) दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका की विवरणोद्धार संक्षेपटीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयति विजितान्यतेजाः), २५८८४-१(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., वि. १६७३, गद्य, मूपू., (ध० दुर्गति पडतां जीव), २५२३६ (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. श्रीपाल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट), २५६८२, २६८०४ (२) दशवकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ध० जीवनइ दुर्गति), २१४७२(+), २१५८२(+), २१६३४(+), २२३८३(+$), २४६३८(+), २५४२९(+), २५४९७(+), २५७७०(+), २५७९२(+), २६९५८(+), २१०३१, २२२५७, २२७४२, २५५४७, २६५२५, २६७५३, २६९७७, २६९७८, २१५४४($), २६८७६($) (२) दशवकालिकसूत्र-अन्वय, प्रा., गद्य, जै., (अहिंसा संजमो तवो), प्रतहीन. (३) दशवैकालिकसूत्र-अन्वय का अन्वयार्थ, हिं., गद्य, मूपू., (प्राण व्यपरोपणका), २५५८५($) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (धम्मोमंगल मुक्किट्ठ), २५४५१ For Private And Personal use only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ (३) दशवकालिकसूत्र-हिस्सा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्विलइ अध्ययनि साध), २५४५१ (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. कमलहर्ष, मा.गु., अ. १०, पद्य, मूपू., (मंगलिक महिमा निलो रे), २२४६५-५(६) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो), २२२९८, २४७५६, २५४६३-१ (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), २२५१०-३०, २५६१९ दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पल्ल. ९, पद्य, मूपू., (स श्रेयस्त्रिजगद्), २६६६५(+), २५९४९, २२११४(5) (२) दानकल्पद्रुम-टबार्थ, पंन्या. रामविजय, मा.गु., वि. १८३३, गद्य, मूपू., (श्रीऋषभस्वामी केहवा), २६६६५(+) दान कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (परिहरिअरज्जसारो), २१६६६-१(+) (२) दान कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परिहरिउं छांडिउ), २१६६६-१(+) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (देवाहिदेवं नमिऊण), २२५२७-३(+), २६४१०(+), २३७९४, २५७१७, २५७३९-१ (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (देवाधिदेवनइं नमस्कार), २६४१०(+), २३७९४, २५७१७, २५७३९-१ दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, मूपू., (परिहरिय रज्जसारो), २५८२९-३(+), २६९८५-२, २५२५५(#) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (महावीरं नमस्कृत्य), २५२५५(#) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परिहरिउंछाडिउ स ग), २६९८५-२ दामनक कथा-जीवदया विषये, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरतक्षेत्रे), २२४९५-९(+) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्व शुभवेलायां), २३०३७($) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम दिने सांझरी), २३०३६ (६) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानमांगल्य), २१६४७(+), २५७२६(+), २६१३३(+$), २६४४८(+), २५५३३ (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मंगलिक दीवा सरीखी), २३७७७-१(+), २१६५२, २६७२८ (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. सुखसागर, मा.गु., ग्रं. १२००, वि. १७६३, गद्य, मूपू., (अहँत बालबोधानां), २५७२६(+), २५५३३ (२) दीपावलीपर्वकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अष्ट माहाप्रातिहार्य), २६१३३(+$), २६४४८(+) दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २७८, पद्य, मूपू., (संतु श्रीवर्धमान), २६२९१(+) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (छई श्रीपदावीरसांवा), २६२९१(+) दीपावलीपर्व कल्प, प्रा.,सं., गा. १३७, प+ग., मूपू., (उप्पायविगमधुवमयमसेस), २५२४३(+$), २२८४४-१ (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपजै १ विनाशया मैं), २५२४३(+$) दीपावलीपर्व कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), २३१०३ दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पापायां पुरि चारु), २२४६३-१८(+) दीपावलीपर्व स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (पापायां पुरि चारु), २२८२७-३(+) दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू., (दुरिअरयसमीर मोहपंको), २२५१८-१२(+-) दुषमप्राभृत, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (बीइ तेवीस तीइ अड नवइ), २६७९२ (२) दुषमप्राभृत-यंत्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., को., मूपू., (--), २६७९२ दुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, ?, (--), २२२०२-२(+), २२४३८-१४(+), २२५७९-२(+), २३७६१-२(+), २४९८८-२(+), २५७२९-२, २२४४०-५(s), २२४५९-१०(-) देवीरहस्यत्रय स्तव, सं., अ. ३, पद्य, वै., (भगवन भवता रामे), २६९९०-३ For Private And Personal use only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ देशव्रतोद्योतन विचार, मु. पंकजनंदि, सं., श्लो. २७, पद्य, दि. १, (बाह्याभ्यंतरसंगवर्जन), २२४८९-३ दोबत्तीसी जिननाम गरणु, सं., गद्य, श्वे., (श्रीजयदेवनाथाय नमः), २४०९०-१० द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवर), २१२८१-१, २५७७६, २४७७९-१(३) (२) द्रव्य संग्रह - बालावबोध, मु. रामचंद्र, मा.गु., गद्य, भूपू., दि., (श्रीपार्थचंद्रसूरि), २१२८१-१, २५७७६ (२) द्रव्य संग्रह - बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू. वि., (--), २४७७९-१(S) " द्रौपदी चर्चा, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (ते तेणं ते धम्मघोसा), २५५९९(s) द्विजमुखचपेटा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४२१, पद्य, मूपू., (सद्भूत भाव्यर्थविकास), २६७००-१ द्व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. २०, पद्य, मूपू., (अर्हमित्यक्षरं ब्रह), २६४०५ (+$) (२) द्व्याश्रयमहाकाव्य - टीका, ग. अभयतिलकगणि, सं., वि. १३१२, गद्य, मूपू., (श्रीभूर्भुवः स्व), २६४०५ (ख) धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., श्लो. २११, पद्य, दि., (तन्नमामि परं ज्योति), २२८९६ १४८४, पद्य, मूपू, (जय श्रीमान् परब्रह्म) २५८२१-२ (श्रियं दिशतु वो), २१३७४, २१३७७ धनधर्मकथा, आ. मुनिसुंदरसूरि सं., श्लो. ४४१, वि. धर्मकल्पद्रुम, पंडित. उदवधर्म, सं., पल्लु. ८, पद्य, मूपू धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. १४५, पद्य, भूपू., (नमिऊण सयलगुणरयणकुलर), २५९३१(+) (२) धर्मरत्न प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. शांतिसूरि, सं., वि. १२७१, गद्य, मूपू., (सिद्धं सर्वज्ञमानम्य), २५९३१(+) धर्मोपदेशपीयूषवर्ष श्रावकाचार, मु. नेमिदत्त ब्रह्मचारी, सं., अधि. ५, ग्रं. ४६०, पद्य, दि., (श्रीसर्वज्ञं प्रणम्य), २५६१४-१ धर्मोपदेश श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (धर्मो जगतः सार), २१३६१ - २ (२) धर्मोपदेश लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (एहवो जाणी धर्मने विष), २१३६१-२ धर्मोपदेश लोक संग्रह, सं., श्रो, ३९, पद्य, मु., (शिष्टे संग: श्रुतौ), २२९०६ ४९९ (२) धर्मोपदेश लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (शिष्टे क० उत्तम आदमी), २२९०६ (5) नंदीश्वरद्वीप जिनप्रतिमा स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू., (अनाद्यनंताघटितानि), २२४८१-३ (+) नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (लसद्द्विपंचाशदधीश्वर), २२५७२-१२(+) नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गा. ७००, प+ग, भूपू., (जयइ जगजीवजोणीविवाणओ), २१००७(+), २१२४२(+), २१३५७(+), २३४०३(+), २५३९३(*), २५६०४(*), २६६५८ (+), २११३८, २११५६, २११६०, २५७०६, २१०६३(७), २६३३३(३) (२) नंदीसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नंदी ते आनंदनी देण), २१३५७(+), २५३९३ (+), २६६५८ (+) (२) नंदीसूत्र - कथा संग्रह, मा.गु., कथा. ८९, गद्य, मूपू., (नंदनं नंदि प्रमोदोहर), २१३५७ (+) (२) नंदीसूत्र - मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १०, पद्य, म्पू., (जयह जग जीवजोणी), २११०५-२ (२) नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, म्पू., (जवइ जगजीवजोणी वियाणओ), २५८५५-१ नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं), २२५९०-७२ (+), २३८५४ - १, २४१९१ - २, २६२४१ (२) नमस्कार महामंत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (बारसगुण अरिहंता), २४१९१२, २५६१७, २६२४१ (२) नमस्कार महामंत्र - कल्प, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपु., (अथ कतिपय पंचपरमेष्ठि), २६८९७ नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पा. धर्मसिंह, प्रा., गा. ११, पद्य, भूपू., (कामितसंपय करणं तिम), २२४५६-५ नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, प्रा., गा. ७, पद्य, म्पू., (उकोसो सज्झाउ चउदस), २५७३९-२ (२) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्कृष्टि सज्झाय करउ), २५७३९-२($) नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (नमिऊण पणयसुरगण), २१४०८ - ३(+), २१५६९-१(+), २१५७७-१ (०७) (२) नमिऊण स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (नमस्कार करी चरण कमल), २१५७७-१ (+३) नयचक्र, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., गा. ४५३, पद्य, दि., (दव्वाविस्स सहावा), प्रतहीन.. (२) नवचक्र - भाषावचनिका, श्राव. हेमराज शाह, पुहिं., वि. १७२६, गद्य, दि., (वंदो श्रीजिनके वचन), प्रतहीन. (३) नयचक्र - भाषावचनिका का बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, म्पू, दि., ( स्यात्कारमुद्रिता), २६११८ For Private And Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्यपरमब्रह्म), २६९०३(+$), २६६२२ (२) नयचक्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनुजोगद्वार सूत्रे), २११५२(६) (२) नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमब्रह्म), २६६२२ (२) नयचक्रसार-टबार्थ, पुहिं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), २६९०३(+$) नल कथा-द्यूतविषये, सं., गद्य, मूपू., (अत्रेव भरते कोशलदेशे), २२४९५-१३(+) नवग्रहदान श्लोक, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (सवत्सालंकृताधेनु), २६९९०-२ नवग्रह पूजा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम दिवस्ये सुखड), २१४१८-१ नवग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (जपाकुसुमसंकास), २२५८०-११(+), २२५९०-१७६(+) नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), २२५३०-४ नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., गा. ५५, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), २२३२०, २६३९१-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा देवार्यदेवेश), २२३२० (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), २६३९१-१ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), २१०४२(+), २१२७६-२(+), २१३३६-१(+$), २१६३९(+$), २१६५५-६(+$), २१७१७-२(+), २१८२१(+), २२५९४-३(+), २२६४३-२(+), २२७२६(+), २२८७५(+), २३७८६(+), २३८०६(+), २४६९८-१(+$), २४७०६-१(+), २५२२१(+), २५३४६(+), २५३७१(+), २५५९३-१(+), २५६२७(+), २५७५०(+$), २५७६८(+$), २६२०२(+), २६३७९(+), २६४१२-२(+), २६६३४(+$), २६८७३(+), २२११९, २२५९३-२, २२७६१-२, २२८११, २३२२८, २३५३९-१, २३६११-२, २३८२९-२, २४६३९-७, २५४२२, २५४२४, २५४२७-१, २५४६१, २५४६५-२, २५४९६, २५५४३, २५५७४, २५७३५, २५८६१, २६३४२, २६४३२, २६५९५-२, २६६१७, २६६४३-१, २१८९७($), २२१०६(s), २४४२९(5), २४६३२(६), २५६३३($), २५७३४(६), २५८१२(१), २६६००(s), २६७१७(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४७७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानजिनपति), २६५९५-२ (२) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयति श्रीमहावीर), २५४६१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचंद, मा.गु., वि. १७६६, गद्य, मूपू., (ज्ञानं पंचविधं), २६३७९(+), २५५७४, २६६००() (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिनमती जीवाने पदार्थ), २२७२६(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व१ अजीवतत्व), २४६३२($) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), २१०९८, २४१२१, २५४२४, २५५९०, २६३३१, २६६४२, २४४४९($), २५७३४(s), २५८६१(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*, रा., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा० जीवतत्त्व), २२१०६($) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (साची वस्तूनुं जाणिवु), २१८९७(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ग. मानविजय पं., मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), २५७५०(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, पं. मानविजय, मा.गु., ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (वीरजिनं नत्वा मत्वा), २५६३३(5) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ग. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेह नमुंजे माहिलो), २५३७१(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतां च्यार), २१०४२(+), २१२७६-२(+), २१६३९(+$), २१७१७-२(+), २२६४३-२(+), २२८७५(+), २३७८६(+), २४६९८-१(+$), २५२२१(+), २५५९३-१(+), २५६२७(+), २५७६८(+$), २६२०२(+), २६४१२-२(+), २६६३४(+$), २६८७३(+), २२११९, २२५९३-२, २२८११, २३२२८, २५४२२, २५४२७-१, २५४६५-२, २५५४३, २५७३५, २६३४२, २६६१७, २५८१२(६), २६७१७($) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, सं., गद्य, म्पू., (तत्र प्रथमं जीव), २३८०६(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भव्य प्राणीइं समकित), २१८२१(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ३३, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंतने), २२५६२-३(+) For Private And Personal use only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir तराट र८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-भाषा, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी मनमैं), २६३२२ (२) नवतत्त्व प्रकरण-विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नवतत्त्व नाम जीव), २२७४१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-यंत्र, मु.सुमतिवर्द्धन, मा.गु., को., मूपू., (नवतत्त्व नामस्वरूप), २३७४३ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), २६७३८(+), २६९६८(+), २३९२२, २६१६७-२(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, पुहि., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), २६९६८(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, ग. मानविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व चेतना सहित), २६७३८(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व जे प्राणनइ), २३९२२ नवपद खमासणा विधि, सं., गद्य, मूपू., (स्वर्ण सिंघासन स्थित), २६२७७ नवपद गुण, सं., गद्य, मूपू., (अरिहंत के १२ गुण), २५६३८ नवपदतप आराधना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., तप. ९, प+ग., मूपू., (--), २५१३५-२ नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), २२५७८-१(+६), २३२४८(+), २३८५०(+$), २११०८, २१४१०, २२४११-२, २२६५४-१, २३४९३-१, २५२०६-१, २६१२८, २६१३६-१, २४३५७(६), २४४२७-१(६) नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ), २१५३१-१(+), २२४७१-१३(+), २२९२४-२(+$), २६३६६-१(+), २६३६९(+$), २६९३६-१(+), २११०५-३, २५८१७, २१५४५-१, २१७५८, २२७६११, २२८६९-१, २५७१४, २१३१९(#), २२३४८(#$), २३७८४(#s), २६१४४(#), २१०१८-२(६), २२९६४($), २५२४२($), २५२४९-१(s), २५७१९(s), २६४४६ (5) (२) नवस्मरण-सप्तस्मरण टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिन), २१५३१-१(+), २२३४८(#$), २६५६४() (२) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनई माहरो), २६३६६-१(+), २१५४५-१, २५७१४, २५७१९(६) नागदत्त कथा-अष्टाह्निकातपविषये, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरते कुसुमपुर), २२४९५-१५(+) नाडी परीक्षा, सं., श्लो. ४०, पद्य, (रोगाक्रांतशरीरस्य), २३३२३-३(+) नाभेय स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (नमिय जिणमुसभमुभयं), २५६७८-१ (२) नाभेय स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्करी जिन ऋषभ विहु), २५६७८-१ निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मूपू., (जे भिखु हत्थ कम्म), २५८२४-१(+), २६४७५(+) (२) निशीथसूत्र-२५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्रवादी इम कहइ जे), २६६८७-२ (२) निशीथसूत्र-अपवाद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (निशीथसूत्र महाउत्सूत), २६६८७-१ (२) निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवो सु०), २५८२४-१(+) नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. १०९, पद्य, वै., (दिक्कालाद्यनवच्छिन्न), २३२६४-१(+$), २५४७३(+), २५७१८-१ (२) नीतिशतक-टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (सर्वदर्शिनमानम्य), २३२६४-१(+S), २५४७३(+), २५७१८-१ नेमिजिन अष्टक-रैवतकाचलमंडण, मु. आनंदवल्लभ, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (वरौषधिभिस्सुतरां), २२९३४-३(+) नेमिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (मयनाहसरिस विलसिर), २५६७८-३ (२) नेमिजिन चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कसतूरी सरिखी प्रसरती), २५६७८-३ नेमिजिन चरित्र, प्रा., पद्य, श्वे., (नमिउण सिद्धसिव), २१६६९) नेमिजिन द्विअक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (मानेनानून मानेनानोन), २६७८७-२(+) (२) नेमिजिन द्विअक्षर स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, दि., (--), २६७८७-२(+) नेमिजिन नमस्कार, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (नेमिर्विशालनयनो नयनो), २२४५०-५२(+) नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (गंजेजीममुखे सदा हित), २२९३४-१५(+) नेमिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (परमान्नं क्षुधार्तेन), २२५१८-२२(+-) For Private And Personal use only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org " ५०२ नेमिदूत, श्राव विक्रम, सं., श्लो. १२६, वि. १३वी, पद्य, म्पू, (प्राणित्राणप्रवणहृदय), २१३३७(+) (२) नेमिदूत टीका, पंडित. गुणविनयगणि, सं., वि. १६४४, गद्य, मूपु., (श्रीपार्श्व), २१३३७ (*) न्यायप्रवेशसूत्र, दिङ्नाग, सं., गद्य, बी., (साधनं दूषणं चैव), २११७३ - १ (२) न्यायप्रवेशसूत्र-शिष्यहिता वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., बौ., (सम्यग्ज्ञानस्य), २११७३-३ पंचज्ञान विचार, प्रा., अ. ५, गा. ४४२, पद्य, मूपू., (नमिउण जिणवरिंदं), २१५८४(+), २५२४६ (३) पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मृपू., (श्रीशत्रुंजयमुख्य) २२४८१ - ११(+), २२८७२-८(+), २२४७७-२९ पंचतीर्थंजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, भूप, (प्रणतमानवदानवनायकः), २२५८०-१ (+) पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन, सं., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), २६४३८-२ पंचपरमेष्ठि चैत्यवंदन, सं., श्लो. १, पद्य, मृपू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), २२५१८-४५(क) पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. ३५, पद्य, म्पू., (भत्तिभर अमर पणयं), २२५४१-१ (२) पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तोत्र- अवचूरी, सं., गद्य, म्पू, (परमेष्ठीपंचकं), २२५४१-२ पंचपरमेष्ठिपद आम्नाय, सं., गद्य, मृपू., (ॐ नमो अरिहंताणं), २२५४१-३ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (कल्याणकारणं शुद्धं), २२३०२(+$) पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, मूपु., (श्रीवीरादनु ६० वर्षे), २६५४९(+) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), २१५७९-७(०) पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमेष्ठिमंतसारं सारं), २४८३०-२ पंचांगुली कवच स्तोत्र, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (मुक्ति च मंगलं नाम ॐ), २४२४०-१ पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पंचा. १९ गा. ९४०, ग्रं. ११८७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं सावग), २२५२७ - १ (+), २६१०५ ($) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर्धमानाय ), २१२८७-१ पट्टावली तपागच्छीय, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (सिरिमंतो सुहहेउ), २६३९६ (+), २६१५८, २६३०५ (२) पट्टावली तपागच्छीय-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, मूपू., (सिरिमंतोत्ति यत्तदो), २६३९६ (+) (२) पट्टावली तपागच्छीय- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए श्रीपजूसणकल्प गुरु), २६१५८, २६३०५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., ( पडिलेहणा विशेषं), २२५६७-२ पदार्थ संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, वे., (--), २२९०२ - २ (+), २६०४१ पद्मप्रभजिन स्तवन- जयमाला, प्रा., मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जय धरणीधरधरवर वंश), २२४७१ - ७(+) पद्मावतीदेवी अष्टक, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (चिदानंदसंपद्विलासैक), २२५७२-१४(+) पद्मावतीदेवी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र, मु. धर्ममूर्तिसूरि शिष्य, सं., श्लो. १६, पद्य, म्पू., (स्तुमः पद्मावती), २२५८३-३(+), २२५८६-२०) पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, सं., मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ कलिकुंड), २२५८३-६(+#) पद्मावतीदेवी पंचषहिनाम, सं., गद्य, मृपू., (प्रणम्य पउमादेवी), २२५४४-९ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), २१७२१, २२०९७, २४७०४ (६), २५८९१ - २ ($) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. २६, पद्य, भूप., (ॐ ॐ ॐकार बीजं), २२५४४-६ पद्मावतीपूजा सविधि, सं., प+ग, भूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्रं ) २२५४१-४६) 9 For Private And Personal Use Only पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., . १३५, पद्य, म्पू., (प्रणम्य परया भक्त्या), २६१२० परमज्योतिपंचविंशतिका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ऐंद्रं तत्परमं), २२५७४- १३ परमात्मप्रकाश, मु. योगींद्रदेव, प्रा., गा. ३४५, वि. १२वी, पद्य, दि., (जे जाया झाणग्गियए), २६३१४($) (२) परमात्मप्रकाश - टीका, आ. ब्रह्मदेवसूरि, सं. ग्रं. ४०००, वि. १६वी, गद्य, दि., (चिदानंदैकरूपाय जिनाय), २६३९४ (३) परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २५, पद्य, मृपू., (परमानंदसंपन्नं), २५००९-२ (+), २३०२० (२) परमानंद स्तोत्र - टबार्थ, पुहिं., गद्य, मूपू., ( महापुरुष आत्मा कौं), २३०२० Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०३ पर्यंत आराधना विधिसहित, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुमाणं), २२००४-१ पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), २३६४०, २५४९०, २५५६९, २६०७५, २६१९३ (२) पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करिने), २३६४०, २५४९०, २५५६९, २६०७५ पर्यंताराधना, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २३५५२($) पर्युषणाशतक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. ११०, पद्य, मूपू., (नमिउं वीरजिणिद), २६७११($) (२) पर्युषणाशतक-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. धर्मसागर, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), २६७११(६) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा पार्श्व), २१२३६(+$), २५५७७, २५६०८, २६२७८, २६९२८ । (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्मृ० श्रीपार्श्वनाथ), २१२३६(+६), २५६०८, २६९२८ पाक्षिक विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जिनमार्गमाहि आठमि), २६४७८ पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्याप्रतिमस्य), २२४५०-६०(+), २२४७१-१०(+), २२४८१-९(+), २२५६४-५(+), २२८७२-६(+-), २२४७७-१६, २२५४७-६, २२५६५-६, २२७८७-११, २६६७८-२, २६८८७-७(#) पात्रमंत्र स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (श्रीमत् शंकरशेखर), २५१६४-२ पार्श्वजिन अष्टक, मु. मोटा ऋषि, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (श्रीमल्लिकाभ्रमर), २२५८०-२(+) पार्श्वजिन अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्री पार), २२५८३-४(+#), २२५८६-३(+), २३८०५-४ पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्देवेंद्रवृंदा), २२८८१-१ पार्श्वजिन अष्टक-लोद्रवपत्तनमंडन, मु. आनंदवल्लभ, सं., श्लो. ९, वि. १८६४, पद्य, मूपू., (अश्वसेननरेंद्रस्य), २२९३४-४(+) पार्श्वजिन अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र, मु. क्षेमराज, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (सिद्धक्षेत्रगोपाचल), २२५१८-२८(+-) पार्श्वजिन चरित्र, ग. उदयवीर, सं., स. ८, ग्रं. ५५००, वि. १६५४, गद्य, मूपू., (प्रोद्यत्सूर्यसम), २५३९८(+) पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., स. ८, ग्रं. ६४००, वि. १३१२, पद्य, मूपू., (नाभेयाय नमस्तस्मै), २१३८९(+), २१५१६, २१६३५ (२) पार्श्वजिन चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., ग्रं. १२१४७, वि. १८००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनान्), २१५१६ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (वरसं वरसं वरसं वरसं), २२४६७-११, २५१४७-२ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (ॐकाररूपं परमेष्ठी), २२८८३-१० पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), २६९३६-३(+), २१०१८-३, २२१२६-२, २२५२९-२ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गौडीग्रामे स्तंभने), २२५७२-७(+) पार्श्वजिन पूजा, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (जगद्गुरुं जगद्देव), २३८५४-७ पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वः पातु), २३८०५-२ पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., श्लो. ४०+१, वि. १८५७, पद्य, स्था., (महिम्नः पारं ते परम), २३८०५-१ पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथो जिनः), २२५८३-२(+#$), २२५८६-१(+$) पार्श्वजिन स्तव, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (योगात्मनां यं मधुरं), २२५१८-४०(+-) पार्श्वजिन स्तव, मु. जिनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (भुजंगलक्षणलक्षिण), २२५१८-३९(+-) पार्श्वजिन स्तव, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (अविचललक्ष्मीविमल), २२९९२-३ पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (नमत पार्श्व विमलमनसा), २२९९२-२ पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (लक्ष्मीनिदानं गुरु), २२५७२-६(+) पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विशदगुणविचित्र), २२५७२-४(+) पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण), २२५१८-३२(+-) पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमति यः श्रीगौडी), २२५१८-२५(+-), २२५७२-१५(+) For Private And Personal use only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिने), २२५७२-९(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. नयरंग, मा.गु.,सं., गा. १२, पद्य, मूपू., (जयउ रिषभवर्द्धमानौ), २२५१८-२७(+-) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, मु. आनंदवर्धन, प्रा.,मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुख देख्यो श्रीजिन), २२५१०-१७ पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा.,मा.गु., ढा. ३, गा. १९, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (नमिअ सिरिपासजिण सुजण), २५३७६-३ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन खेटकपुरमंडन, वा. उदयरत्न, मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (भीडभंजन भवभयभीतिहर), २२५८६-७(+) पार्श्वजिन स्तवन-रोगहर, मा.गु.,सं., गा. १९, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ अरिहंत सिद्ध), २३८१७-२ पार्श्वजिन स्तवन-लघु, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (भजेश्वसेननंदनं मुहुर), २२५१८-३४(+-) पार्श्वजिन स्तव-लघु, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (फलति कंदलतलदल स्फुट), २२४९१-१०(+) पार्श्वजिन स्तव-शंखेश्वर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (यस्य ज्ञानदयासिंधो), २२५७२-५(+) पार्श्वजिन स्तव-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (सर्वदेवसेवितपदपा), २२५१८-४१(+-) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (श्रीसेढीतटिनीतटे), २२५१८-३(+-), २३६५३-३($) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनजनतारणगुण), २२५१८-३८(+-) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विशदसद्गुणराजिविराजि), २२५७२-८(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (अभिनवमंगलमालाकरणं), २२५१८-२३(+-) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (देवदेवाधिपैः सर्वतो), २२४६३-८(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), २२४६३-२०(+) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नै दें कि धप), २५१५२-६ पार्श्वजिन स्तुति-पलबंध, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ ज्योति), २२४६३-१२(+), २२७८५-२४(+) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), २२४३८-१८(+), २२४६३-१३(+), २६७७६-९ पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोक), २२७८५-२३(+), २६७७६-१० पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (धर्ममहारथसारथिसारं), २२५१८-३३(+-) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (गुणमणिनिहिणो जस्सु), २५६७८-४ (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुणरूप रतननउ निधान), २५६७८-४ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (श्रेयो दधानं कमला), २२८८१-४ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. धर्मघोषसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (विध्वस्ताखिलकर्मजाल), २२५७४-९ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (कामारिदंता बलकुंजरा), २२४९१-७(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.,सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (भलु आज भेट्यो प्रभु), २२५१८-४२(+-) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते), २३८०५-६ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (क्षितिमंडलमुकुट), २२५९०-१६६(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जयजय गोडीजी महाराजा), २२५९०-१७३(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ३९, पद्य, मूपू., (धरणोरगेंद्र सुरपति), २३८०५-३ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमामि सदा प्रभु), २२५९०-१६३(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मा.गु.,सं., गा. ९, पद्य, मूपू., (सकल भविकचेतः कल्पना), २२५७६-२ पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), २२५१८-१९(+-), २२५२१-३ पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला-महामंत्रमय, आ. मेरुतुगसूरि, सं., श्लो. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमो देवदेवाय नित्य), २३८०५-५ For Private And Personal use only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०५ पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (दोसावहारदक्खो नालिया), २२५१८-११(+-), २२७८५-२०(+), २१५७९-६(#), २४८३०-३($) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवपल्लव, ग. लक्ष्मीलाभ, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (उद्यत्फणामुकुटभूषित), २२८८३-६ पार्श्वजिन स्तोत्र-नागह्रदभूषण, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (जय श्रीमन्नागह्रदपुर), २२५७४-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (लक्ष्मीर्महस्तुल्यसत), २६७८७-१(+) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी-टिप्पण, सं., गद्य, दि., (--), २६७८७-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), २२५८०-१९(+), २२५९८-१(+), २२५११-१(#$) पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं तमह), २२५१८-१८(+-) पार्श्वजिन स्तोत्र-स्तंभन, मु. देवसुंदर, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (स्फुरत्केवलज्ञानचारु), २२५७४-१२ पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., (महादेवं नमस्कृत्य), २६९३७(+), २१०१६, २१२६५, २३३६०, २३६२९, २४२०६, २५७०३-१, २६४३१, २१८३८($), २२९२०(5), २५२१७(5), २२८४६(-), २६९४३(-) (२) पाशाकेवली-पद्यानुवाद, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), २४३६६ (२) पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ उत्तम थानक लाभ), २४४९२(+), २२०४२, २२२४७, २२३७१, २२६३५, २२७८०-१, २३२७३-१, २३२९५, २४२६७, २४४१५, २४४३१, २४५३६-२, २४६८७, २५३८१, २५५८७, २६२५६, २६२७०, २६८२९, २४५४३(#), २२३९४($), २३५५४(s), २४९९९(5) पाशा ज्योतिष, सं., गद्य, मूपू., (--), २६४३६($) पुण्यफल कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवससहस्सा), २२५४८-२, २६४३५-२, २६६७४-२ (२) पुण्यफल कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवै सो वर्षना दिन), २६४३५-२ पुण्यसारकुमार चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., श्लो. २०१, पद्य, मूपू., (कुलं रूपं कलाभ्यासो), २४३८१ पुद्गलपरावर्त स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (श्रीवीतराग भगवंस्तव), २१०५१-२ पुराणहंडी, सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः), २५८६०(+) (२) पुराणहंडी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (ध० धर्म सघलाइं सांभल), २५८६०(+) पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते समणेण०), २१५९०-४(+), २५४०९-४(+), २५८८७-४(+), २५३८७-४ (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (चतुर्थवर्गोपि दशाध्य), २५८६७-४ (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टिप्पण", मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), २१५९०-४(+) (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस), २५४०९-४(+), २५३८७-४ पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गा. ५०५, पद्य, मूपू., (सिद्धं कम्ममविग्गह), २६५१०(+), २५७८०, २६६१६-१(६) पुष्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू., (जति णं भंते समणेणं०), २१५९०-३(+), २५४०९-३(+), २५८८७-३(+), २५३८७-३ (२) पुष्पिकासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (अथ तृतीयवर्गोपि दशाध), २५८६७-३ (२) पुष्पिकासूत्र-टिप्पण", मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), २१५९०-३(+) (२) पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य०), २५४०९-३(+), २५३८७-३ पूजा प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (स्नानं पूर्वोन्मुखी), २२९०७-१(+) पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथां), २५५३५-२(+$), २४०९८ प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० ववगय), २१३९७(+$), २१५५६(+$), २१५६५(+), २१६२५ (+$), २१६३०(+$), २५९५०(+), २६२२७(+$), २५९८१, २६८८९ (२) प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. १६०००, गद्य, मूपू., (जयति नमदमरमुकुटप्रति), २६२२७(+$), २६८८९ For Private And Personal use only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मा.गु., वि. १७०५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), २१३९७(+$), २१५५६(+$), २१५६५(+), २१६२५(+s), २१६३०(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. नेमचंद्रसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतरागं नमस्कृत्य), २५९५०(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद, वा. श्यामाचार्य, प्रा., अ. पद ११वां, गद्य, मूपू., (भासाणं भंते किमादीया), २५४९९-१ (३) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा भाषापद का विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपन्नवणा उपांगि), २५४९९-१ (२) प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी, संबद्ध, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. १३३, पद्य, मूपू., (दिसि १ गइ २ इंदिअ ३), २१३३४ (३) प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी की टीका, ग. कुलमंडन, सं., वि. १४७१, गद्य, मूपू., (दिसि० भासग० परित्त), २१३३४ (२) प्रज्ञापनासूत्र-बोल , सबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २५५२४-१(क) (२) प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहजो रे पंडित ते), २३२८९-२ (३) प्रज्ञापनासूत्र-सज्झाय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कह्यो देखीयइं जाणीयइ), २३२८९-२ (२) प्रज्ञापनासूत्र-पदविचार बीजक, सं., गद्य, मूपू., (प्रथमे पदे प्रथम), २४२२१ प्रज्ञाप्रकाशषविंशिका, आ. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), २५७५२-१, २१९५३(-) (२) प्रज्ञाप्रकाशषविंशिका-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रज्ञा क० बुद्धि), २५७५२-१, २१९५३(-) प्रतिमासिद्धि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २३०४३(5) प्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), २१४२२ (२) प्रतिष्ठा कल्प-दिवसानुसार क्रियासूचि, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (प्रथमदिवसे जलयात्रा), २४९०३() प्रतिष्ठा कल्प, मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (तद्यथा सह वारक बहेंड), २५८७१(६) प्रतिष्ठा कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (शुभ दिनै विद्यावंत ज), २४३७९(+) प्रतिष्ठा कल्प, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), २१७०७ प्रतिष्ठा विधि, सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), २६७४८(+), २४३७७($) प्रतिष्ठा विधि संग्रह, सं.,मा.गु., पद्य, म्पू., (प्रणम्य पार्श्व पादा), २६२८१ प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य स्वस्ति), २३१२१ प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (मूल गुंभारेकुं आछीतर), २१३७८(+), २४४४८-१ प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ४८, पद्य, मूपू., (दस पच्चक्खाण चउविहि), २४८६४($) (२) प्रत्याख्यान भाष्य-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (दस प्रकारे पच्चखाण), २४८६४(5) प्रबंध कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (संडेरगच्छे पंचशतीयती), २५८५७ प्रमाणप्रमेय स्वरुप, सं., गद्य, श्वे., वै., (सर्वदर्शनेषु प्रमाण), २११७३-२ प्रमादपरिहार कुलक, प्रा., गा. ३१, पद्य, मूपू., (दुक्खे सुक्खे सयामोह), २२५६७-३३ प्रवचनपरीक्षा, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., विश्रा. ११, ग्रं. १२०५, वि. १६२९, पद्य, मूपू., (पणमिअणाणनिहाणं वीर), २१३९०(+$) (२) प्रवचनपरीक्षा-स्वोपज्ञ सहस्रकिरणा वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., विश्रा. ११, ग्रं. १३३८७, वि. १६२९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), २१३९०(+$) । प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., द्वा. २७६, गा. १५९९, ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगाइजिणं), २१०८३(+), २१६१५(+), २५३७५-१(+), २५९८८(+), २६४८८(+) (२) प्रवचनसारोद्धार-अर्थप्रदीप बालावबोध, ग. पद्ममंदिर, मा.गु., ग्रं. १२००८, वि. १६५१, गद्य, मूपू., (श्रीमन्नाभेयादीन्), २१६१५(+) (२) प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनई ऋषभ), २५३७५-१(+), २५९८८(+) प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसार विसम सायर भवजल), २२५१८-९(+-) For Private And Personal use only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - ५०७ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), २५८७४(+), २५८८० (+), २५८९५(+), २६४२३ (+), २१३७६, २५८०२ (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र टीका, आ. अभवदेवसूरि, सं., नं. ५६३०, वि. १२वी, गद्य, भूपू (श्रीवर्द्धमानमानम्य), २१३७६, २५८३१ (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र - बालावबोध, आ. पाचंचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो जंबू इणमो कहतां), २५८८०१०), २५८९५(०) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु. ( हे जंबू एह प्रत्यक्ष), २५८७४(+), २६४२३(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रश्नोत्तर, सं., प्रश्न. ५०, गद्य, मूपू., (अथ शंकापनोदाय शिष्यः), २२६३८ प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., ( प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), २२५१८-१४०, २२५३०-३ (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू., (जिनवरेंद्र नागनरामर), २५७२९-१ प्रश्नोत्तररत्नाकर, मु. शुभविजय, सं., उल्ला. ४, गद्य, मूपू., ( प्रणिपत्य परं ज्योति), २५९०१ - १(+), २५९५९, २६८९१ प्रश्नोत्तर संग्रह, उपा. विनयविजय, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू., (नत्वा श्रुतज्ञानमनंत), २५४१३(+) प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू., ( भवणपति व्यंतर), २२२७४(३) प्रश्नोत्तरार्द्धशतक, वा. क्षमाकल्याण, सं., प्रश्न. १५१, वि. १८५१, गद्य, भूपू., (श्रीसर्वशं नत्वा), प्रतहीन (२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक - बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., प्रश्न. १५१, वि. १८५३, गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै तीर्थंकर), २१३२१-१, २१४२७, २२७७२, २४४८८(क) प्रश्नोत्तरकषष्ठीशतक, आ, जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. १६१, पद्य, मृपू., (क्रमनखदशकोटीदीप्रदीप), २६६०१ (२) प्रश्नोत्तरैकषष्ठीशतक-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिनत् हानिं गच्छत), २६६०१ प्रार्थना स्तुति, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (दर्शनं देवदेवस्य), २३८५४-३ प्रास्ताविक लोक सं., श्लो. १८१, पद्य, मूपु (नमोस्तु देवदेवाय), २२३७८ (+) 9 " (२) प्रास्ताविक श्लोक - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (राज प्रधान विना न), २२३७८ (+) प्रेमगीता, आ. बुद्धिसागरसूरि, सं., . ६८१, वि. १९७२, पद्य, भूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), २१५२० (+) फाल्गुणचातुर्मास व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), २२६४६ - २ (०३) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुकं ), २१०१५- ३(+०), २१०९०- ३(+), २११८६- ३ (+), २१८४५- ३(+), २२८२५-३(०), २५५५२ - ३ (०), २५६७५-३(+), २६०७०- ३ (+), २६८४५- ३(०), २१२२४-३, २४५५०-३, २५७६५-३ (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं. ग्रं. ३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपू., (अथ अस्यैव शास्त्रस्य), "" २६०७० - ३ (+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ - बालावबोध, ग. शांतिविजय, मा.गु., वि. १६६४, गद्य, मूपू., (प्रकृति ५५ नो विवरो), २५५५२ - ३ (+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपु., (बंध सामित विचार), २५८७० - ३ (+) - (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (कर्म बंधना प्रकारथी), २१०९०-३(+), २५६७५-३(+), २१२२४-३, २५७६५-३ बटुक अष्टक, सं., श्रो. ९, पद्य, भूपू (शीर्षे फर्णीद्र), २२९३४-११(+) बाराक्षरी, सं., गद्य, (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ), २२५७०-३ बाहुबलि कथा मानविषये, सं., गद्य, म्पू., (धम्मो मएण हुतो), २२४९५ - १२(+) बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, म्पू., (महीमंडणं पुन्नसोवन), २२४६३-४(+), २२७८५- १(+), २२९२४- ५१, २५१५२-२, २६७७६-५ बीजतिथि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वर्णेषु रक्तं प्रवरं), २२९३४-१६(+) बीजतिथि स्तुति - शृंखलाबद्ध, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपु. ( सेवा पुरुसनासीर), २२४६३-९(०) , For Private And Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), २१६४८(+), २५५२२(+), २५६५५-१(+), २५६५६-१(+) (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (कव० कश्चित नगर), २५५२२(+), २५६५५-१(+), २५६५६-१(+) (२) बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नीवी मास भिन्न), २५६५५-२(+) (२) बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २५६५६-२(+) बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. ५ अधिकार, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), २३०८३(+$) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., अ. ५, वि. १३वी, गद्य, मूपू., (जयति जिनवचनमवितथममित), २३०८३(+$) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा कथंभूतं), २३०८३(+$) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-विचार, मा.गु., वि. १५उ-१९पू, गद्य, मूपू., (--), २११४९ (२) बृहत्क्षेत्रसमास-चयन जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, मपू., (नमिऊण सजलजलहर निभस्स), २३१३९ (३) बृहत्क्षेत्रसमास-संक्षेप जंबूद्वीप प्रकरण का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपमाहे छ), २१२०४ (२) लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अ. ५, पद्य, मूपू., (नमिऊणसजलजलहर निभस्सण), २१६०५-१(+), २३०१२(+), २१०५६, २११९६(#) (३) लघुक्षेत्रसमास-अवचूरि, सं., ग्रं. ६००, गद्य, मूपू., (नत्त्वा प्रणम्य सहज), २१०५६ (३) लघुक्षेत्रसमास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीने जे भगवंत सजल), २१६०५-१(+$), २३०१२(+) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३८७, वि. १३७३, पद्य, मूपू., (सिरिनिलयं केवलिणं), २१६६२, २६३७३ (२) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरजिनवरेंद्र सर्वे), २१६६२ बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्या शृणुत), २२५१८-१७(+-), २४८१९-१ बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., म्पू., (भो भो भव्याः शृणुत), २२३४४(+), २२५९०-८३(+), २२७८५-१८(+), २४७३०-१(+#), २३२७४, २४३२२-२, २४५१९, २५४३७-३, २५४९३-२, २६३२६, २१५७९-४(#) (२) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भो भो भव्य जीवो), २५४३७-३ बृहत्शांतिस्नात्र विधि संग्रह, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, मा.गु.,सं., वि. १८१४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वपादा), २१४८२($) बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), २१०२३(+), २१६९४(+#$), २१७२७(+), २२४२७(+), २३२०३(+$), २४६५८(+), २५४२६-१(+), २५४९४(+), २५६६२(+), २५८४७-१(+), २५८९२(+), २६०९३(+$), २६२६६(+), २६३९०(+), २६४६०(+5), २६५२१(+), २१३३०, २१७०३, २२९८५-१, २३०४५-२, २५११३, २५४७१, २५६६५, २५७०२, २५७८१-१, २५८१३, २५८३९, २५९५४, २६३१०, २४६२०(#s), २२९४१(६), २६७५७(), २६८५३() (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मूपू., (अत्यद्भुतं योगिभि), २१३३०, २६५९३ (२) बृहत्संग्रहणी-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा प्रणम्य), २१७२७(+) । (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., ग्रं. १७५७, वि. १४९७, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवीरजिन), २५८४७-१(+$), २५६६५, २५७८१-१ (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं कहतां नमस्कार), २६८८६(६) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं फल), २३२०३(+$) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), २२४२७(+), २६७५७(5) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा गुरुपदयुग्म), २५९५४ (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मु. धर्ममेरु, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीने अरिहंत), २६२६६(+), २६३१० For Private And Personal use only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०९ (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंता), २५४९४(+), २५६६२(+), २६०९३(+६), २६५२१(+), २५४७१, २५८१३, २५८३९(६) (२) बृहत्संग्रहणी-छाया, सं., पद्य, मूपू., (नत्वा अर्हदादीन), २१०२३(+) बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ३५३, वि. ७पू, पद्य, मूपू., (निट्ठवियअट्ठकम्म), २६६२६($) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा), २२५१८-५६(+-), २२५८०-९(+), २२५९०-१७५(+), २२७८५-२१(+), २६९३६-५(+) । बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछै), २१४२५-३(+), २३३०६($) बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (--), २६१०२, २६४५०-२($) भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महाइसयं महाणु), २२४८७-२(+), २५७९५-३(+$) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, पू., (भक्तामरप्रणतमौलि), २१०३६-१(+), २११९१(+), २१५६९-२(+), २१७०६-१(+), २२०६३(+), २२७६७-१(+#), २५४५७(+), २५७१२(+), २५७६७(+), २६०९२(+#), २६३३९(+), २११९२, २१६५४, २१८७८, २२३७०-२, २२६५१, २३०१०-१, २३९२७-१, २३९७१-१, २४११०, २४३६८, २४४३५, २४६३९-१, २५४३७-२, २५७८२, २६१६६, २६४०६-१, २६४३८-१, २६५२७, २६६६२, २६८७२-१, २६९३५, २१५७९-१(#), २३७९०-१(१), २२११३(६), २३८७०(5), २३८७६-३(s), २४०३६ (६), २४५२१(६), २६११६(s), २६५३३(६) (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., ग्रं. १५७२, वि. १४२६, गद्य, मूपू., (पूजाज्ञानवचोपायापगमा), २५४५७(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, उपा. रत्नचंद्र, सं., ग्रं. ४८१, गद्य, मूपू., (प्रणतसुरासुरनरवर), २११९१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६८३, गद्य, मूपू., (नत्वा वृषोपदेष्टार), २१०३६-१(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. ६९३, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंददायक), २६०९२(+#), २६३३९(+), २६४७१ (२) भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, मपू., (किल इति निश्चये अहम), २१६५४, २२६५१, २५८९१-१ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., वि. १५२७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), २५७१२(+), २६६६२, २६९३५ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये), २६५२७, २४५२१($) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (किल इसी संभावनाई), २४३६८ । (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिवंत जे देवता), २५७६७(+), २११९२, २५४३७-२, २५७८२, २६४०६-१, २६४३८-१, २३७९०-१(#), २६५३३($) (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ+कथा, मु. विनयसुंदर, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), २६११६(१) (२) भक्तामर स्तोत्र-ऋद्धि, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ अहणमो), २२११३($) (२) भक्तामर स्तोत्र-भाषा, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (प्रणमत भगत अमर वर), २६३५७ (२) भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मा.गु., गा. ४८, पद्य, मूपू., (आदि पुरूष आदिस जिन), २२८५६-१, २५५१७ (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., कथा. २८, गद्य, मूपू., (एकदा जिनमतना द्वेषी), २५७१२(+), २६६६२ (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, मा.गु., कथा. २८, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), २५८८८(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमालवदेशमाहि), २४३६८, २४५२१(६) (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (गंभीरताररवपुरिदिग्वि), २६४०६-२ (३) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (गंभीर क० गुहिर एहवो), २६४०६-२ (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., मंत्र. ४८, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं अहणमो), २६३३८, २६४११, २२११३($), २६११६($) For Private And Personal use only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपू., (नमो अरहताणं० सव्व), २१४००(+), २१६३१(+), २२४९६(+), २५९६७(+), २५९८०, २२५०४-१, २१०८८(s), २१४३३(७), २१५५५(), २५८५१(६), २५९०२(६) (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., शत. ४, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), २१६३१(+), २१५६३(#), २१५५५(s), २६४९७() (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. १०६, वि. ११२८, पद्य, मूपू., (पन्नवण वेय रागे कप्प), २५७८५(+) (४) पंचनिग्रंथी प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिय श्रीवर्द्धमानं), २५७८५(+) (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा बंधषट्विंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मपू., (ओरालसव्वबंधा थोवा), २२५६७-४ (४) भगवतीसूत्र- टीका का हिस्सा बंधषत्रिंशिका प्रकरण की सज्झाय, संबद्ध, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सासन नायक वीर जिनेसर), २२८७८-१४ (२) भगवतीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २२५४२-१, २५६०१, २१०८८($) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ, ग. मेघराज, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), २५९६७(+) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते कालनइ विषइ ते), २१४००(+), २२५०४-१, २५८५१(६) (२) भगवतीसूत्र-नियंढा-संजया आलापक, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (पनवणा १ वेय २ रागे ३), २६७८५ (३) भगवतीसूत्र-नियंट्ठा-संजया आलापक-बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवै पनवणा द्वार), २६७८५ (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक९ उद्देश ३३गत गांगेयभांगा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक९ उद्देश ३३गत गांगेयभांगा की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदित्वा वर्द्धमान), २६७६० (२) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (कहण्णं भंते जीवा गुर), २६६३७-१(+), २६६३७-२(+) (२) भगवतीसूत्र-विचार संग्रह , संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २६३५२(+$) भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गा. ५३१, पद्य, मूपू., (णमिऊण णमिरसुरवर मणि), २१३५८(+), २५९२८, २६६१६-२ (२) भवभावना-टबार्थ, पंन्या. शांतिविजय गणि, मा.गु., ग्रं. ३४२५, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), २५९२८ (२) भवभावना-टबार्थ+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐनमो भगवती शिवशांति), २१३५८(+) भाव कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (कमठासुरेण रइयम्मि), २१६६६-४(+) (२) भाव कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कमठ नामई जे असुर), २१६६६-४(+) भावत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., गा. ११६, वि. १४वी, पद्य, दि., (खवियघणघाइकम्मे अरहत), २२५३१-८(+$) भावना कुलक, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (निसाविरामे परिभावयाम), २२४८७-५(+) भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, गा. १४५, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिजे), २१०१७(+), २१२१४-३(+), २१६५३(+), २३३४९(+), २५४२५(+), २५४६८(+), २५८२९-१(+), २१४४२, २१५४९, २१६५८-१, २२३१४, २५५६३, २५५७३, २५५७६, २५६४९, २५६६४, २६४०८, २६६५१, २१०६७, २६२१७($) (२) भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदि० वंदनीयान् सर्व), २१०१७(+), २६४०८ (२) भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. ३५०, वि. १७५८, गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनुत), २५४२५(+), २१६५८-१, २५६६४ (२) भाष्यत्रय-बालावबोध, मा.गु., भाष्य. ३, गद्य, मूपू., (तस्या प्रसादमासाद्य), २१४४२, २१५४९ (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मु. लावण्यविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्यतानंदकारकं), २३३४९(+) (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तु क० वांदीने), २५४६८(+), २५५६३, २५५७३, २५६४९, २१०६७, २६२१७() भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३पू, पद्य, मूपू., (सारस्वतं नमस्कृत्य), २१६३८(+), २१६७४(+#), २१७८०(+), २६४८५(+$), २१२५३, २१९२४, २५४३३-२, २६५१९, २६९५४, २३७८३(#$) (२) भुवनदीपक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (सरस्वत्याः संबंधि), २३३०७(+) For Private And Personal use only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५११ (२) भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरस्वती संबंधीओ मह), २१६३८(+), २१२५३, २६९५४ भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., ग्रं. १८००, गद्य, मूपू., (अस्तीह जंबूद्वीपे), २१३८७(+) (२) भुवनभानुकेवली चरित्र-टबार्थ, मु. तत्त्वहस, मा.गु., ग्रं. ५०००, वि. १८०१, गद्य, मूपू., (एहीज जंबूद्वीपने), २१३८७(+) भैरवाष्टक, आद्य शंकराचार्य, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (एकं खड्गागहस्तं पुनः), २२५१८-५५(+-) भोजराजा चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., प्र. ५, ग्रं. १८१६, पद्य, मूपू., (अश्वसेन जिनं नत्वा), २१०३४(+) मंगल स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (मंगलो भूमिपुत्रश्च), २२५१८-५७(+-), २२५८०-८(+), २२५९०-१७४(+) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., (--), २६३६६-२(+), २६८११-३(+), २३२७३-२, २५१६४-४, २५७९३-२, २६१८४-२ मदनरेखासती कथा-शीलविषये, सं., गद्य, मूपू., (इहैव जंबुद्वीपे अत्र), २२४९५-१४(+) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (चुल्लग पासग धन्ने), २३०८७-२(+) मलयसुंदरी कथा, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., उल्ला. ४, गद्य, मूपू., (जातो यः कमलाकरे शुचि), २१३२९ महाकाल स्तोत्र, सं., पद्य, वै., (ॐ वामे पूर्णेदूबिंब), २५१६४-७($) । महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), २५६१०, २६४३७($) (२) महानिशीथसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २५६१०($) महालक्ष्मी स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (नमोस्तु लक्ष्मी: मम), २२५४४-५ महावीरजिन उपसर्ग विवरण, सं., गद्य, पू., (भगवान् मार्गशीर्ष), २१०७३(+) महावीरजिन स्तव, आ. जयसुंदरसूरि, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (सकलमंगलखेलनमंदिरं), २२५७४-५ महावीरजिन स्तव, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ३०, ग्रं. ३५७, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), २२५१८-१३(+-) महावीरजिन स्तव, मु. सेवक, मा.गु.,सं., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमो नित्य देवाधिदेव), २२९३५-३ महावीरजिन स्तव, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (कनकाचलमिव धीर), २२५१८-२४(+-) महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइ जासमणे भगवं), २१२१४-४(+), २२५१८-३१(+-) महावीरजिन स्तुति, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनस्य), २२४८१-८(+), २२८७२-५(+-) महावीरजिन स्तुति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरः सर्वसुरासुरेंद), २२५८०-१७(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमोस्तु वर्द्धमानाय), २२४६३-२(+), २६७७६-४ महावीरजिन स्तुति, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), २२७३२-२ महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (परसमयतिमिरतरणिं भव), २२४६३-२१(+), २२५१८-२(+-), २३६५३-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदह्रिनमनादेव देहिन), २२७८५-२(+$), २६७७६-१४ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), २२४६३-२२(+), २२५६४-१०(+), २२७८५-२५(+), २२८२७-२(+), २२०६८-२, २२१२६-३ महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (जयश्रीनिलयं यस्य), २२५७४-३ महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., गा. १८०९, ग्रं. २५००, पद्य, मूपू., (नमिऊण रिसहनाह केवल), २५५४२, २५८७९ (२) महीपालराजा कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी श्रीऋषभ), २५५४२ मायाबीज विधि, सं., गद्य, मूपू., (विधिना ह्रींकार), २४०९६(६) मार्गानुसारी ३५ गुण गाथा, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (न्याय संपन्न विभवः), २२६५३-१(+) (२) मार्गानुसारी ३५ गुण गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वामीनो द्रोह करी), २२६५३-२(+) मुंजभोजप्रबंध श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १३, पद्य, मूपू., (काका कृष्णा शुका), २५९७९-२(+) मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ६४६, वि. ११७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं चउ), २१०८४ (२) मुनिपति चरित्र सारोद्धार, संक्षेप, सं., गद्य, मूपू., (मुनिपतिचरित्रसारोद्ध), २५६४३(+), २५६७३(5) मुनिपति चरित्र, प्रा., गा. १२५८, पद्य, मूपू., (मणिवइ रायरिसी विय जल), २११४३(+) मूत्र परीक्षा, सं., पद्य, (पश्चिमे रजनियामे), २३३२३-४(+$) For Private And Personal use only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ मृगापुत्र कथा, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), २२५२३-३ मृगावती चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., अ. ५, गद्य, मूपू., (जयंति वर्धमानस्य), २१०५३ मेघदूत, कालिदास, सं., श्लो. ११५, ग्रं. ३५०, पद्य, वै., (कश्चित्कांताविरहगुरु), २५५२१(+#) (२) मेघदूत-शिष्यहितैषिणी टीका, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., गद्य, मूपू., वै., (कश्चित् अनिर्दिष्ट), २१०८१(+) (२) मेघदूत-अवचूरी, सं., गद्य, मूपू., वै., (स्वामिद्रोहं प्रकुर), २५५२१(+#) मेतार्य कथा-जीवदयाविषये, सं., गद्य, श्वे., (अत्रैव भरते साकेतपुर), २२४९५-६(+) मेरुत्रयोदशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य भारती), २२८३७ मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पा. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), २४२६६ मौनएकादशी गणना, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहाजससर्वज्ञाय), २२०३३ मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋषभदेव), २६००४(+s), २५५३१ मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), २५५३५-१(+) (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकदा श्रीनेमिनाथजी), २५५३५-१(+) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., पद्य, मूपू., (श्रीमद्गुरुः प्रणम्य), २४४७३($) मौनएकादशीपर्व माहात्म्य, मु. धीरविजय, सं., श्लो. १०९, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानतीर्थेश), २५१८९ (२) मौनएकादशीपर्व माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानस्वामि), २५१८९ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), २२४६३-१४(+), २२९२४-८(+), २५१५२-५ यंत्र संग्रह , मा.गु.,सं., को., जै., वै., (--), २१८११-१(+) यमकाष्टक स्तोत्र, आ. अमरकीर्ति, सं., श्लो. १०, पद्य, दि., (विधास्यदाहँत्य पदं), २६७८७-४(+) (२) यमकाष्टक स्तोत्र-टिप्पण, सं., गद्य, दि., (--), २६७८७-४(+) । यशोभद्र कथा-प्रस्तावोक्तविषये, सं., गद्य, श्वे., (इहैव भरते साकेतनपुर), २२४९५-२(+) युगप्रधान लक्षण, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (येषां च देहे न पतंति), २४५९७-२(+) युष्मदस्मदसाधनिका विधि, सं., गद्य, श्वे., (तपोश्च वाच्य लिंगत्व), २३२५४($) योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (यत्र वित्रासमायांति), २१५२७(+#$), २३४२६(+), २४४९६(+$), २१४१९, २५३०१, २६८९०, २३४२७($) (२) योगचिंतामणि-टबार्थ, मु. नरसिंह, मा.गु., गद्य, मूपू., (योति सुगम), २५३०१ (२) योगचिंतामणि-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २१५२७(+#$), २१४१९($) (२) योगचिंतामणि-टबार्थ+बीजक, मा.गु., गद्य, श्वे., (सर्वज्ञ प्रणम्यादौ), २६८९० योगबिंदु, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. ५२६, पद्य, मूपू., (नत्वाद्यतविनिर्मुक), २१६१८ (२) योगबिंदु-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सद्योगचिंतामणितोनणीय), २१६१८ योग विधि-खरतरगच्छीय, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हर्षसार गुरुचरणद्वय), २६७०७($) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (नमो दुर्वाररागादि), २६३७८(+), २६०४२, २६७५४, २१५८८(६), २५७७८९६) (२) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (अत्र महावीरायेति), २६०४२, २६३९९ (२) योगशास्त्र-टबार्थ, पं. दयालसागर, मा.गु., प्रका. ४, गद्य, मूपू., (नमस्कार थाउं दुषिवार), २६३७८(+) योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., गा. १०८, पद्य, दि., (णिम्मलझाणपरिट्ठया), २१११७ (२) योगसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (निर्मल ध्यानने विषइ), २१११७ योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअक्खंधो), २६६९४-१ रघुवंश, कालिदास, सं., स. १९, पद्य, वै., (वागर्थाविव संपृक्तौ), २१६९०(+$), २१५५४ (२) रघुवंश-विशेषार्थबोधिका वृत्ति, पंडित. गुणविनयगणि, सं., स. १९, वि. १६४६, गद्य, मूपू., (ध्यात्वा तां ब्रह्म), २१६९०(+) For Private And Personal use only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१३ (२) रघुवंश-शिशुहितैषिणी टीका, आ. चारित्रवर्धनसूरि, सं., वि. १६वी, गद्य, मूपू., (यस्य भुंगावलि कंठे), २१५५४ (२) रघुवंश-सुबोधिका टीका, ग. श्रीविजय, सं., ग्रं. ८०००, गद्य, भूपू., (अहं कालिदासनामाकविता), २६२५९(६) रजस्वला स्त्री विचार, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जा पुष्कुपवहं जाणिउण), २२५८२-५ (२) रजस्वला स्त्री विचार-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे पुरुष पुष्पवती), २२५८२-५ रत्नशेखरराजा कथा-नमस्कारविषये, सं., गद्य, मूपू., (अन्नेवि इत्थधम्मे), २२४९५-७(+) रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), २१९४७(+), २२५१८-२६(+-), २३८००-१, २४३०३ (२) रत्नाकरपच्चीसी-टीका, मु. भोजसागर, सं., वि. १७९५, गद्य, मूपू., (नमस्कृत्य जिनं सार्व), २१९४७(+) (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो कल्याणक लक्ष्मी), २३८००-१, २४३०३ राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, पू., (नमो अरिहताणं० तेणं), २१०३८-१(+), २१३०४(+$), २१३५२(+), २१३५६(+), २१३९१(+), २१४८८(+), २१५६६(+s), २५७९४(+), २५८८६(+), २५९९६(+$), २६४१६(+), २५३२२, २५४७५, २१६४६(s), २१७१०६) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टिप्पण", मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २५७९४(+) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. ५५००, गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), २१३५२(+), २१३५६(+), २१३९१(+), २५८८६(+), २५९९६(+$), २६४१६(+), २५३२२, २५४७५ (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ३२८१, गद्य, मूपू., (नत्वा वीरजिनेश्वरचरण), २१४८८(+), २१७१०($) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवउ० चउथा), २१०३८-१(+), २१३०४(+$), २१५६६(+$), २१६४६(5) रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., श्लो. २२४, ग्रं. १५३०, पद्य, मूपू., (श्रीमंतं विदुरं शांत), २६२९८ रोहिणीतपफल कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्यमानम्य), २४१६९ लग्नशुद्धि, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १३३, पद्य, मूपू., (अविहतसव्वाएसं नमिउं), २६०६३-१(+) (२) लग्नशुद्धि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नही है असत्य सर्व), २६०६३-१(+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपट्ठिय), २२८१४(+), २११५४, २१८६२ ।। लघुचैत्यवंदनसूत्र, प्रा.,मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (इच्छं जय२ महाप्रभु), २२५७६-५ लघुजातक, वराहमिहिर, सं., अ. १६, पद्य, वै., (यस्योदयास्तसमये सुरम), २११७९ (२) लघुजातक-अवचूरि, उपा. भक्तिलाभ, सं., वि. १७१५, गद्य, मूपू., वै., (यस्येति यस्य सूर्य), २११७९ लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., कां. ३, श्लो. ४६१, ग्रं. ५५०, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), २६६०८ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७+२, पद्य, मूपू., (शांति शांतिनिशांतं), २१५३१-२(+), २१७२४-२(+), २२५८०-१५(+), २२७८५-१९(+), २५४६७(+), २६९३६-२(+), २१०१८-१, २११०५-४, २१५४५-२, २२५८५-५, २४६३९-२, २५४३७-४, २५४९३-१, २६८७२-३, २६८८०-१, २१५७९-३(#), २२८६९-२($) (२) लघुशांति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६४४, गद्य, मूपू., (सर्वसर्व सिद्ध्यर्थ), २१५३१-२(+) (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ शांति), २५४६७(+), २१५४५-२, २५४३७-४ लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), २२५९४-४(+), २२६८४(+), २१५४७ (२) लघुसंग्रहणी-टीका, आ. प्रभानंदसूरि, सं., वि. १३९०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवीरजिन), २१५४७ (२) लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिय क० नमस्कार करी), २२६८४(+) (२) लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), २६१५४(+$) ललितांगकुमार कथा, सं., गद्य, श्वे., (पक्षपातोपि जयाय), २२४९५-८(+) लोकनालिका प्रकरण, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं गणियपयं), २२४९२-३ For Private And Personal use only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणदसणं विणा जं), २३१३२, २६४४७-१, २६८८५, २५७३६-१(६) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टीका, सं., गद्य, म्पू., (जिणदसणं गाथा जिन), २६४४७-१ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मु. सहजरत्न, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमदाप्तौ प्रणम्या), २३१३२, २५७३६-१(६) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतराग देव ताहरु), २६८८५ लोचकरण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पच्चइएण लोओ कायव्वो), २२५३८-२ । वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमियसुरवर), २१८०९, २२८७३-१, २३८४९ (२) वंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिना समुहे करीने), २१८०९ वजालग्ग, क. जयवल्लभ, प्रा., गा. ७९५, ग्रं. १२३०, पद्य, मूपू., (सव्वन्नुवयण पंकयनिव), २६४८७-१(+$), २६८००($) वरदत्तगुणमंजरी कथा, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), २१२१७(+), २४६६१-२(+$), २१३०३, २१३४५, २१५३२, २३३७१, २६४०० वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., उल्ला. १०, ग्रं. ४३००, गद्य, मूपू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), २५९५६(+) वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. वज्रस्वामि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं अहँ हूँ), २६८११-१(+) वर्द्धमानविद्या यंत्रविधि स्तव, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., श्लो. १९, पद्य, मूपू., (जिनबीजांतः प्रणव), २६८११-२(+) वर्धमानविद्या, प्रा., पद्य, मूपू., (ॐ नमो अरिहंताणं), २४४४८-२ वशीकरण मंत्र, सं., गद्य, श्वे., (ऊँ ह्रीं क्लीं अमुका), २१९५४-४ वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य), २१६४२(+), २३१२२(+), २६१८०(+), २१११९, २११२३, २१५०२, २२०१४, २२९६१, २३३१७-१, २४७३३, २४९३५, २५६०२, २६६९०, २६८४८ वस्तुपालमंत्री चरित्र, ग. जिनहर्ष, सं., प्र. ८, वि. १४९७, पद्य, मूपू., (श्रीमानहन शिवः), २५९५७(+) वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., श्लो. १२५, वि. १५०७, पद्य, मूपू., (प्रणम्यात्मविद), २६३९५-३(+), २६४९३ (२) वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., वि. १५८०, गद्य, मूपू., (श्रीमज्जिनेंद्रमानम्), २६३९५-३(+) वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., परि. ५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (श्रियं दिशतु), २१२२७(+$), २४४२२(+), २५७४५-१(+), २६७२१ (२) वाग्भटालंकार-टीका, आ. जिनवर्द्धमानसूरि, सं., परि. ४, गद्य, मूपू., (श्रीमान् श्रीआदिनाथः), २४४२२(+), २६५५६(#S) वासुपूज्यजिन चरित्र, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., स. ४, ग्रं. ५४९४, वि. १२९९, पद्य, मूपू., (अर्हत नौमि नाभेयं), २१५१५(+) (२) वासुपूज्यजिन चरित्र-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (--), २१५१५(+) वासुपूज्यजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (चंपापुर्यां वरेण्यं), २२९३४-१२(+) वासुपूज्यजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वासुपूज्यो जिनेंद्रो), २२९३४-१३(+) वास्तुसार प्रकरण, ठक्कुर फेरु, प्रा., प्रक. ३, वि. १३७२, पद्य, मूपू., (सयलसुरासुरविंदं दंसण), २१५३५(+) विंशोत्तरि पूजा, सं., गद्य, मूपू., (स्नानकर अबोटवस्त्र), २३८९९-३($) विक्रमादित्य पंचदंड प्रबंध, आ. पूर्णचंद्रसूरि, सं., आदेश ५, ग्रं. ४००, गद्य, मूपू., (--), २५८६३() विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ५१, पद्य, मूपू., (वीरपयकयं नमिउं देवा), २१९०५, २५५५१(६) (२) विचारपंचाशिका-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीर पय क० महावीरदेव), २१९०५, २५५५१(६) विचार संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (जोअणसयं तु गंता अणहा), २११६८(#) विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), २३४५१(+), २५२८७(+), २१२०३, २२४९२-२, २३४१८-२, २३८९१, २४७७९-२, २४९०४, २५५२४-२, २६६७४-५, २६८४०, २४४७७(#$), २३२७९(5), २३५७७(६), २३८२३(६), २६१५७(s), २६१९८(5), २६७२४-१(६) विचारसार प्रकरण, प्रा., गा. ५७६, पद्य, मूपू., (बारस गुण अरिहंत सिद), २६५४१(+) (२) विचारसार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वामेयं सुखदं नत्वा), २६५४१(+) विचारसार प्रकीर्णक, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., गा. ८८, वि. १५७३, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं धम्म), २४५३४(+), २६३१५(+) For Private And Personal use only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१५ (२) विचारसार प्रकीर्णक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), २४५३४(+$) (२) विचारसार प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ केहनि), २६३१५(+) विचारसार संग्रह, प्रा., गद्य, मूपू., (कहन्नं भंते जीवाः), २५८४० (२) विचारसार संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्राविका जयंति), २५८४० विचारामृतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., कथा. २०, ग्रं. २८००, वि. १५०२, पद्य, मूपू., (श्रीभूर्भुवः स्व), २५९१३(+) (२) विचारामृतसार संग्रह-टबार्थ, पंन्या. रुपविजयजी , मा.गु., वि. १८९३, गद्य, मूपू., (नूतनजलधररुचये देववधू), २५९१३(+) विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., परि. ४, श्लो. २७६, पद्य, बौ., (सिद्धौषधानि भवदुःख), २६३९५-२(+) (२) विदग्धमुखमंडन काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., बी., (ग्रंथादौ धर्मदासनामा), २६३९५-२(+) विधि मार्गप्रपा, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) विधिमार्गप्रपा-कल्पत्रेप विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आसु सुदि बीज), २२५३८-४ विधि संग्रह, मु. शिवनिधान, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (प्रथम सामायिक ग्रहण), २३३२४(+$), २१२९५ विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), २५७६१(+), २६४२६(+), २६४७७(+), २५८१९, २५८५०, २५९७७, २२५०४-२,२४५१०, २११०२($) (२) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ विपाकश्रुत किसउ), २५९७७, २२५०४-२, २११०२(६) विवाहपटल, सं., श्लो. ९७, पद्य, मूपू., (धनाढ्य माघे सुभगा च), २६८८०-२ विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., (जंभाराति पुरोहिते), प्रतहीन. (२) विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., (वाणी पद वांदी करी), २१६८०-१, २४४२६, २२२९५(३) विवाहसार संग्रह, ग. नवनिधिकुशल, सं., श्लो. १०३, पद्य, मूपू., (वीरं जगत्प्रभु), २३८२१ विविधतपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथ पिस्तालिस आगमनो), २६९८६, २६७३५-१(६) विविधविचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (अयंसां भंते जीवे), २१२८०($) विविधविचार संग्रह, प्रा., पद्य, मूपू., (वासासु सगदिण उवरि), २२५४८-४ विविध विचार संग्रह", गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), २२५१९(+), २५५०७(+), २१२४९-३, २२८७३-२, २३५९२, २४१५९, २४४१२-२, २६४३५-४, २६९२७(#s), २६३४४(६), २६८०३($) (२) विविधविचार संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २६४३५-४ विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., उल्ला. १२, पद्य, मूपू., (शाश्वतानंदरूपाय तमस), २११३६(+$), २६१८३(+) (२) विवेकविलास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते को एक परमात्मानइ), २११३६(+$) (२) विवेकविलास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ग्रंथकर्ता कहे छइ), २६१८३(+) विशेष संग्रह, उपा. समयसुंदर गणि, प्रा.,सं., वि. १६८५, पद्य, मूपू., (संवीक्ष्य सूत्रसिद्ध), २५५७८(+) विषापहार स्तोत्र, जै.क. धनंजय कवि, सं., श्लो. ४०, ई. ७वी, पद्य, दि., (स्वात्मस्थितः सर्वगत), २५४०६-१(+), २५४०८-३, २६३५८-१ विहरमान २० जिन २१ स्थानकसूत्र, आ. शीलदेवसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (संपइ वट्टताणं नाम), २२५२९-९ विहरमान २० जिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (द्वीपेत्र सीमंधर), २२५९०-७७(+) विहरमान २० जिन स्तोत्र, सं., पद्य, मूपू., (नरगंधसिंधुरं कंबुवर), २२५८६-४(+$) वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, पद्य, मूपू., (यः परात्मा परं), २६३९५-१(+), २१९६४, २६७००-२, २२८१३() (२) वीतराग स्तोत्र-अवचूरि , मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं., प्रका. २०, ग्रं. ६२५, वि. १५१२, गद्य, मूपू., (जयति श्रीजिनो वीरः), २६३९५-१(+), २२८१३(5) वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., अ. ६, ग्रं. १८९, पद्य, वै., (सुख संतान सिध्यर्थं), २३७२५-१($) (२) वृत्तरत्नाकर-सुगमा वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६९४, गद्य, मूपू., वै., (पव्वेको द्विजोत्तमः), २३७२५-१(६) For Private And Personal use only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., अध्य. १२, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते० पंचमस्स), २१५९०-५(+), २५४०९-५(+), २५८८७-५(+$), २५३८७-५ (२) वृष्णिदशासूत्र-टीका, आ. चंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (पंचमवर्गे वन्हिदसाभि), २५८६७-५ (२) वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य० पांचमान), २५४०९-५(+), २५३८७-५ वैद्यजीवन, क. लोलिंबराज, सं., विला. ५, पद्य, वै., (प्रकृति सुभगगात्रं), २५६८७ (२) वैद्यजीवन-टबार्थ, पंडित. ज्ञानतिलक गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (श्रीपार्श्वेशं जिन), २५६८७ वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सरस्वतीं हृदि), २३३२३-१(+), २२१७१-१, २४४०७-२, २२६५७-२(s) (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसरस्वती देवता), २३३२३-१(+), २२१७१-१, २४४०७-२, २२६५७-२($) वैराग्यशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. ११६, पद्य, वै., (चूडोत्तसितचंद्रचारु), २५५१८-२(+), २५७१८-३ (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (सर्वदर्शिनमान्नस्य), २५५१८-२(+), २५७१८-३ वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०५, पद्य, मूपू., (संसारंमि असारे नत्थि), २६१६९(+), २१००२, २१००९, २१०७५, २२५५०-३, २५२०५, २५२७१, २५७४९, २६९८५-१ (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वामेयं पार्श्वनाथं), २५२०५ (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स० चार गतिरूप संसार), २१००२ (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसार असारमाहि नथी), २६१६९(+), २५२७१, २५७४९, २६९८५-१ व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. १०, ग्रं. ३७३, गद्य, मूपू., (जे भिक्खूमासिय), २३२३७(+), २६४६१(+), २५५७०, २५७८६ (२) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (जे. जे कोइ भि० साधु), २३२३७(+), २६४६१(+S) (२) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), २५७८६ व्याख्यान संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (देवपूजा दया दानं), २१८११-२(+), २२१६०($) व्रतउच्चारसूत्र संग्रह, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताण० अहं), २१२९३ शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), २१०१५-५(+#$), २११८६-५(+), २१५१९(+$), २२८२५-५(+), २५५५२-५(+), २६०७०-५(+), २६८४५-५(+), २१३८५, २१५७६-२, २२९८४-१, २५७६५-५, २६५७१-१, २१३२५($) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४३४०, गद्य, मूपू., (यो विश्वविश्वभविनां), २१५७६-२ (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं. ३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपू., (घातिन्यस्त्रिधा सर्व), २६०७०-५(+) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. जयसोम, मा.गु., वि. १७१२, गद्य, मूपू., (ऍद्र श्रीकर पीडनविध), २१३८५ (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (रत्नत्रयोपदेष्टार), २६५७१-१, २१३२५(६) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, ग. शांतिविजय, मा.गु., वि. १६६४, गद्य, मूपू., (योगना भेद १५ भेद), २५५५२-५(+) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतराग नमस्करीनइ), २५८७०-५(+) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमात्मानइं भव्य), २१५१९(+$), २१३८५, २५७६५-५ शतपदी, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., वि. १२६३, म्पू., (--), प्रतहीन. (२) बृहत्शतपदी, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., ग्रं. ५३४३, वि. १२९४, गद्य, मूपू., (त्रिभुवनगृहप्रदीपः), २६५३८(#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (विमलकेवलज्ञान), २२५७९-६(+) शत्रुजयतीर्थ स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (सुरसैलतीर्थराज), २२५१८-४४(+-) । शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., स. १४, ग्रं. १००००, पद्य, मूपू., (ॐ नमो विश्वनाथाय), २१३६९(+), २१५५९(+#), २१५६२(+), २५९११(+), २५९२३, २१४४७(६), २५९५३($) For Private And Personal use only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१७ (२) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मु. देवकुशल, मा.गु., ग्रं. १२०००, वि. १७६७, गद्य, मूपू., (नत्वा वीरं सुबोधाय), २१३६९(+), २१४४७(s), २५९५३() (२) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीयुगादीशं), २१५५९(+#), २१५६२(+), २५९११(+), २५९२३ शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टा), २२५१८-५८(+), २२५८०-१०(+), २२७८५-२२(+), २५००९-७(+), २६९३६-४(+) शांतिजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (अप्पडिहयधम्मचक्केण), २५६७८-२ (२) शांतिजिन चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अप्रतिहत अस्खलित), २५६७८-२ शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., प्र. ६, वि. १५३५, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः सर्व), २६३१२, २६५६६ शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (किंकल्पद्रुमसेवया), २२५१८-२१(+-) शांतिजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विनयनम्रनरामरराज्ये), २६४३९-२ शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., प्र. ६, श्लो. १६३२, ग्रं. ५०००, वि. १३०७, पद्य, मूपू., (श्रेयोरत्नकरोद्भता), २१६०४, २१५२९(5) (२) शांतिनाथ चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मंगलिकरूप समुद्र), २१६०४, २१५२९(5) शारदा स्तवाष्टक, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (कला काचित् कांता न), २२८८१-२ शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (नित्ये श्रीभुवना), २२५२१-१ शीतलजिन स्तव, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (सकलमंगलकेलिनिवेशन), २२५७२-३(+) शीयल नववाड विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (वसहि कह निसिज्जेंदिय), २२४५४-२(+) शील कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (सोहग्ग महानिहिणो), २१६६६-२(+) (२) शील कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सौभाग्यगुणर्नु), २१६६६-२(+) शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मूपू., (आबालबंभयारिं नेमि), २१०६१(+), २२४७१-१७(+), २५९०६(+), २१३८८, २२१६९, २६५०३ ।। (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., ग्रं. ६२५०, वि. १५५१, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयममेयश्रीसहि), २५९०६(+), २१३८८, २६५०३ (२) शीलोपदेशमाला-टबार्थ+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (आबाल ब्रह्मचारी), २२१६९ (२) शीलोपदेशमाला-कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोअण प्रमाण जंबू), २४७६९($) शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., गा. ११६, पद्य, मूपू., (आबाल बंभयारि नेमि), २५७९८ (२) शीलोपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बालपणा लगई ब्रह्मचा), २५७९८ शृंगारशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. १००, पद्य, वै., (शंभुस्वयंभुहरयो हरिण), २३२६४-२(+$), २५५१८-१(+), २५७१८-२ (२) शृंगारशतक-टबार्थ, य. रूपचंद्र कवि, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (सर्वदर्शिनमानम्य), २३२६४-२(+$), २५५१८-१(+), २५७१८-२ श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., श्लो. ३४१, ग्रं. ३९०, पद्य, मूपू., (वीरं नमिऊण तिलोयभाणु), २१०५०(+), २५६५९(+) (२) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं कहीइ श्रीमहावीर), २५६५९(+) श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., प्रका. ६, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं पणमिय), २५९३३(+$), २१५६१, २१३८३($) (२) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., प्रका. ६, ग्रं. ६७६१, वि. १५०६, गद्य, मूपू., (अर्हत्सिद्धगणींद्र), २५९३३(+$), २५९९४(+), २१५६१, २१३८३($) (३) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका का टबार्थ #, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध भगवान), २५९३३(+$), २१५६१, २१३८३(5) (२) श्राद्धविधि प्रकरण-टबार्थ #, मु. उत्तमविजय, मा.गु., वि. १८२४, गद्य, मूपू., (शोभावंत श्रीवीरजिननइ), २५९३३(+$) For Private And Personal use only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई), २२४५४-१(+), २२५५६-१२(+), २१८६५-१, २६७७६-२ (२) श्रावक १४ नियम गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (सचित्त सर्व वसन सचित), २२४५४-१(+) (२) श्रावक १४ नियम गाथा-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (किनहीक श्रावक पांच), २१८६५-१(६) श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ प्रणिपत), २६३५५-१(+) श्रावक आलोयणा, रा.,सं., गद्य, मूपू., (शंकादिष्वष्टसु देसतो), २३३५०-२(+) श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं जिनें), २५६८८ श्रावक के १४ प्रकार, सं., प+ग., स्पू., (मृत् चालनी महिष हंस), २२२०२-३(+) श्रीचंद्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., अधि. ४, श्लो. ९६६, वि. ५९८, पद्य, मूपू., (ॐ ध्यात्वा श्रीजिन), २५९९५(+), २१६८९ (२) श्रीचंद्रकेवलि चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐकार सिद्धनो ध्यान), २५९९५(+) श्रीपाल चरित्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., प्र. ४, ग्रं. १२५७, वि. १८६८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य सिद्धचक्र), २६११७(+) (२) श्रीपाल चरित्र-बालावबोध, मु. देवमुनि, मा.गु., प्र. ४, ग्रं. १८००, वि. १९१७, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत सुसिद्धपद), २४७७७ श्रीपाल चरित्र, आ. लब्धिसागरसूरि, सं., व्याख. ९, श्लो. ५०८, वि. १५५७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीवर्धमानो), २११२६(+) श्रीपाल चरित्र, मु. शुभविजय, सं., वि. १७७४, गद्य, मपू., (ॐ नमः स्वर्द्धिशक्र), २३७३९-१(+) श्रुतबोध, कालिदास, सं., श्लो. ४१, पद्य, वै., (छंदसां लक्षणं येन), २६९८९-१(+) (२) श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., (श्रीमत्सारस्वतं धाम), २६९८९-१(+) श्लोक संग्रह-,प्रा., पद्य, जै., वै., (उसहाइजिणवरिंदे), २६४१३-२(+) श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता), २२५७९-१०(+), २१९५४-१ श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, जै., वै., (जिनेंद्र पूजा गुरु), २१६९९-२(+), २१९००-२(+$), २२२५९-२(+$), २२७६७-२(+#), २४२२९-१(+), २११६२-२, २१२४९-२, २१६५८-२, २२३५४-२, २२८४४-२, २२९८७-२, २३४९३-२, २३६८१-२, २५७३६-२, २१७७०-२(#), २२१४६($) (२) श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., (--), २२३५४-२ श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २, पद्य, (तीनि कलकरिकयतिरी), २१९८१-२(#) श्लोक संग्रह-, सं.,प्रा., पद्य, (--), २२५१८-७(+-), २६१३७-२, २६१४७-२ श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, (--), २२२०२-४(+), २६०६३-२(+), २५१६४-५ श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (--), २१७३७(+), २२१२८-२(+), २२५१८-६२(+-), २४१८०(+$), २५७४५-२(+), २५८८४-२(+), २२१०९-२, २२३९३-२, २२५३३-५, २२६२९-२, २३२२९-७, २३२२९-८, २४५५४-२, २५६१४-२, २५७५२-२,२६३२७-२,२६४५८-२,२६७०८-२, २२५११-५(३), २२१४८-२(5), २२५२१-६(), २३०४५-१(६) (२) श्लोक संग्रह-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत भगवंत असरण), २१७३७(+), २४१८०(+$) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), २१२१४-२(+), २२५७९-३(+), २५४६४-२(+$), २५५१८-५(+), २५८००-२(+), २२५७०-४१, २२५९३-३, २३३२८, २३७६४(६), २६०८७($) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २२५७०-४१, २३३२८, २३७६४(६) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २२५७९-३(+) षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमकर, सं., प+ग., मूपू., (श्रीअर्हतश्चतुस्), २६७०८-१ षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, पद्य, पू., (नमिय जिणं जियमग्गण), २१०१५-४(+#s), २१०९०-४(+), २११८६-४(+), २१८४५-४(+S), २२८२५-४(+), २५५५२-४(+), २६०७०-४(+), २६८४५-४(+), २१५७६-१, २५६६८, २५७६५-४ For Private And Personal use only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१९ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. २८००, गद्य, मूपू., (यद्भाषितार्थलवमाप्य), २१५७६-१ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं. ३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपू., (नव्यषडशीतिकस्य किंचि), २६०७०-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, ग. शांतिविजय, मा.गु., वि. १६६४, गद्य, मूपू., (जिन प्रति नमीने दस), २५५५२-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतरागदेव नमस्कार), २५८७०-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवइं चउथा कर्मग्रंथ), २१०९०-४(+), २५७६५-४ षड्दर्शन श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (जैनं मीमांसकं बौद्ध), २४२२९-२(+) षड्द्रव्य नाम, सं., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय अधर्मा), २६४४७-२ षष्टिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा. १६१+४, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो सुगुरू), २१२१९(+), २५८२९-२(+), २५५११, २६४५३, २४९९८(६) । (२) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (राग अनइ द्वेषरुप), २१२१९(+) षोडशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अ. १६, श्लो. २५६, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनं वीरं), २६६७१ (२) षोडशक प्रकरण-सुगमार्थकल्पना वृत्ति, आ. यशोभद्रसूरि, सं., ग्रं. १५००, वि. ११वी, गद्य, मूपू., (अमृतमिवामृतमनघं जगाद), २६६७१ संख्यातादिभेद विचार, मु. पार्श्वचंद्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (से किंतं गणण संखा), २६३७०-१ संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (वह्निज्वालावलीढं), २५८७६(+) (२) संघपट्टक-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञशासनोत्तम), २५८७६(+) संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं), २१४०८-१(+), २२५७०-२ संथारापचक्खाण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, स्था., (प्रथम इरियावही), २२५३६-२(+) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५+२, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरुं), २१४९३(+), २२५१८-१६(+-), २२९९४(+), २३०८७-१(+), २६१४५(+), २६५८१(+), २१०१०, २१०५१-१, २२४८६-७, २२५५०-२, २३३६७, २४४६१, २२६३७(६), २३३९५ ($), २५५४५-२(६) (२) संबोधसप्ततिका-वृत्ति, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा तं श्रीमहावीर), २१०५१-१ (२) संबोधसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (नमिऊण क० मनवचनकायाई), २२६३७(5) (२) संबोधसप्ततिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदिय पासजिणंदं तह), २३३९५(5) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमस्कार करीनइ तिन), २२९९४(+), २३०८७-१(+), २६१४५(+), २२४८६-७, २५५४५-२($) संभवजिन अष्टक, आ. विबुधविमलसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सकलविघ्नविघातकरस्वरः), २२५७४-७ संभवजिन स्तवन-कर्मक्षयजाति, प्रा.,मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रायजितारि मल्हारसेणा), २२४७१-४(+) संभवजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (निर्भिन्नशत्रुभवभय), २६८८७-२४(#) संवादसुंदर, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीसोमसुंदरगुणं), २११७८ संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीरं), २२४५०-६१(+), २२४७७-२५, २२७८७-९ संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मूपू., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), २५७९५-४(+), २६०००(+), २१०५५(#) (२) संस्तारक प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहां सघलाइ शास्त्रना), २६०००(+), २१०५५(2) सज्झायकरण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २२४८१-१२(+) सनत्कुमारचक्रवर्ति कथा-तपविषये, सं., गद्य, श्वे., (इहैव भरते कुरुदेशे), २२४९५-३(+) सप्ततिका कर्मग्रंथ, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., श्लो. ९१, पद्य, मूपू., (सिद्ध पएहिं महत्थं), २२८२५-६(+) For Private And Personal use only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ७२, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं महत्थं), २१०१५-६(+#), २११८६-६(+), २६०७०-६(+), २६८४५-६(+), २५७६५-६, २६३०४, २१५७६-३(s), २६५७१-२(६) । (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ३८८०, गद्य, मूपू., (अशेषकर्मांशतमःसमूह), २१५७६-३(5) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सिद्ध० सिद्धान्यविचल), २६०७०-६(+) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध कहता प्रतिष्ठि), २६५७१-२(६) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध निश्चल पद छइ), २५७६५-६, २६३०४ सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., गा. ३६०, वि. १३८७, पद्य, मूपू., (सिरिरिसहाइ जिणिंदे), २६१००(+$) सप्तभंगीनयप्रदीप प्रकरण, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, मूपू., (ऐंद्रादिप्रणतं देवं), २६२७४ सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., स. ७, श्लो. ६७७, ग्रं. २०६७, वि. १५२६, पद्य, दि., (प्रणम्य श्रीजिनान), २४३९०(5) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं० हवइ), २१०५२(+), २१७२४ १(+), २२९२४-३(+६), २६००१(+$), २४६३९-५, २४८३०-१, २६३६७-३, २२७७०, २३८७६-२, २६१६१ (२) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ जीता छइ सर्व), २१०५२(+) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. १०, गा. ४१५, पद्य, दि., (वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन. (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ११, प+ग., दि., (नमः समयसाराय स्वानुभ), प्रतहीन. (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलशटीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., श्लो. २७८, पद्य, दि., (नमः समयसाराय स्वानु), २४४०८(5) (४) समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर), २२४१२(+), २२५६३-२(+), २६९७४, २२०२३($), २२०६२($), २५१३७(5) (५) समयसार नाटक-पद्यानुवाद का टबार्थ, ऋ. रूपचंद, पुहिं., गद्य, मूपू., दि., (जिन वचन समुद्रको), २६९७४, २२०६२($) समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), २१३४८(+), २१३७०(+), २५८९४(+) (२) समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., ग्रं. ४४७४, वि. १७उ, गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), २१३४८(+), २१३७०(+) समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., श्लो. १०६, ई. ५वी, पद्य, दि., (येनात्माबुध्यतात्मै), २२८९३ (२) समाधिशतक-टीका, आ. प्रभाचंद्र, सं., गद्य, दि., (सिद्धं जिनेंद्रमलमप), २२८९३ समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (उच्चारेसु वा क०), २३२५२-५ सम्मेतशिखरतीर्थ अष्टक, मु. उमेदचंद्र, सं., श्लो. १०, वि. १८७९, पद्य, मूपू., (नगाधिराजं सुरराज), २२९३४-६(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तुति, आ. जिनसौभाग्यसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसम्मेतगिरौ), २२९३४-८(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ध्येयं योगिवरेः), २२९३४-१४(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (सविंशतिः श्रीजिन), २२९३४-७(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (स्मृत्वाहं शिखरे जित), २२९३४-९(+) सम्यक्त्व कौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद. ४४४, ग्रं. १६७५, वि. १४५७, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), २१४३९(+$), २५९५८, २४१६७(६) (२) सम्यक्त्व कौमुदी-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमान चतुर्व), २१४३९(+$), २५९५८ सम्यक्त्वकौमुदी कथा, उपा. विनीतसागर, सं., ग्रं. १५८७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), २५५६८ (२) सम्यक्त्वकौमुदी कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), २५५६८ सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्तसरूवं), २२३४० (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोवांछितदातारं), २२३४० सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (दसणसुद्धिपयासं), २१२०१, २२८८६-१ For Private And Personal use only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५२१ (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-अवचूरि, मु. सोमप्रभसूरि-शिष्य, सं., गद्य, मूपू., (दृश्यते यथावत्पदार्थ), २२८८६-१ (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सम्यक निर्मलाईनइ), २१२०१ सम्यक्त्वादि व्रत आरोपण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नांदि मांडिइ), २६९२९ सम्यक्त्वारोपण विधि, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (अष्टवर्षिकत्वादि), २५९९८ सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (जिनादेशजाता जिनेंद्र), २२५८०-२०(+) सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (प्राग्वाग्देवि जगज्ज), २२५१८-५४(+-) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, बृहस्पति, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (बृहस्पतिरुवाच सरस्वत), २२५९०-८२(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. २०, पद्य, वै., (राजते श्रीमते देवता), २२५१८-४९(+-) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (व्याप्तानंत समस्तलोक), २२८८१-३ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (श्वेतपद्मासना देवी), २२५१८-५१(+-) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-१०८ नाम गर्भित, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (धिषणा धीर्मतिर्मेधा), २२५१८-५३(+-), २५००९-१(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमस्त्रिदशवंदित), २२५१८-५२(+-) सरस्वतीभक्तामर स्तोत्र, आ. धर्मसिंहसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (भक्तामरभ्रमरविभ्रमवै), २६५४०(+) (२) सरस्वतीभक्तामर स्तोत्र-वृत्ति, आ. धर्मसिंहसूरि, सं., श्लो. ४४, गद्य, मूपू., (किलेपि सत्ये अहमपि), २६५४०(+) सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (प्रणम्य परमात्मानं), २१०४१(+$), २२५७०-१, २५३१०(६) (३) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., वृ. ३, ग्रं. ७५००, वि. १६२३, गद्य, मूपू., वै., (नमोस्तु सर्वकल्याणपद), २१०४१(+$), २५८९७(+), २५३१५, २५३१०($), २५५२८($) (३) सारस्वत व्याकरण-हिस्सा भ्वादि प्रकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (--), २६८१३-२(+$) (४) सारस्वत व्याकरण-हिस्सा भ्वादिप्रकरण की धातुप्रत्ययार्थ विवृति, सं., गद्य, मूपू., वै., (श्रीसर्वज्ञमुखांभोज), २६८१३-२(+8) (२) सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., (नमस्कृत्य महेशानं), २५२९०($) (३) सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., प्रक. १९, वि. १७९९, गद्य, मूपू., वै., (पुराणपुरुषं ध्यात्वा), २६४२०(+), २६४३३(+), २१२७४(६), २५२९०() साधर्मिक कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (नमिऊण पासजिणं वुच्छं), २२५६७-१ साधारणजिन अतिशय चैत्यवंदन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (तेषां च देहोद्भुतरूप), २२४५०-५०(+) साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवाः प्रभो यं), २२५२१-४ साधारणजिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (वीतरागविगत्स्मरकोपमा), २२५७४-११ साधारणजिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमन् धर्म श्रय), २६१२४(+) (२) साधारणजिन स्तव-अवचूरि, मु. रूपचंद्र, सं., ग्रं. ३००, गद्य, मूपू., (नत्वा जिनेंद्रचरणं), २६१२४(+) साधारणजिन स्तव, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (शांतो वेषः शमसुखफलाः), २२५७४-१० साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराजः पदपद्म), २२७८५-२६(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरलकमलगवल), २२७८५-२७(+), २२९२४-९(+), २६७७६-७($) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (यो वेदानाननानां पठति), २२५७४-६ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (स्तुवंतु जिन), २२५१८-३६(+-) साधारणजिन स्तोत्र, उपा. भानुचंद्र, सं., श्लो. ६२, पद्य, मूपू., (स वोभिजातैरभिनंदित), २५४६४-१(+$) (२) साधारणजिन स्तोत्र-टीका, उपा. सिद्धिचंद्र, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमान् श्रीऋषभ), २५४६४-१(+$) साधारणजिन स्तोत्र-अष्टमहाप्रातिहार्यगर्भित, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (स्वर्ण सिंहासन), २२५१८-३७(+-) साधुभावनाष्टक, मु. पंकजनंदि, सं., श्लो. ९, पद्य, दि.?, (--), २२४८९-१ For Private And Personal use only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२२ www.kobatirth.org साधुविधिप्रकाश, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू, (तीर्थंकर गणधर प्रते), २२६०२ सामान्य कृति, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., १, (--), २५५१८- ४(+), २२५१७-२४ सामान्य लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (), २१०४५ - २(+), २२२४९ - २ (+), २२५६२-१ (+), २३७३९ - २ (+), २५४२६-२(+), कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ २६८१३-१(+), २६८१७-२ (+), २६९८९ -२ (+), २३२७१-१७, २३२८९-४, २३३१७- २, २३७२५-२, २५१६४-३, २५७२५-२, २६८१९-२, २६९९०- १(5) सामायिकग्रहण विचार, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., ( आत्मार्थी जीवे श्री), २१३२१-२ सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मृपू., (आदिदेवं प्रणम्यादी), २३७८१, २५५४९ १ २४१४३(५), २१९२९(३) (२) सामुद्रिकशास्त्र टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु, ( आदिनाथ जे चतुर्विंशत), २५५४९-१ सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. १००, पद्य, मूपू., (सिंदूरप्रकरस्तपः), २१२०९ (+), २१६९९ - १(+), २१७७६(+#), २१८१७(+), २२२४९- १ (+), २२२५९-१(+), २२५७९ - १ (+), २२७४६ (+), २४६२७(०३), २४७७६ (+), २१०७४, २१२७९, २१३००, २१७२३, २२३१२, २२८४५, २२८९७-१, २२९०५, २५५६०, २५७२४, २५८४४, २६१७७, २६६०९, २१४८६(#), २४७०५ (#), २४२८६ ($), २४८६७ ($) (२) सिंदूरप्रकर- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५ गद्य, म्पू., ( श्रीमत्पार्श्वजिनं), २६१७७ (२) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनउ समूह तापरूप), २२५७९-१(+), २१०७४ (२) सिंदूरकर - टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (सिंदूरनो प्रकर कहीइ), २१८१७ +), २५८४४ (२) सिंदूरप्रकर- पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. १०१, वि. १६९१, पद्य, मूपू., दि., (सोभित सीस), २२५६३-१(+), २६१९५ (२) सिंदूरकर - बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु., सं., गद्य, मूपु., (शारदाचरणयुग्ममतीतपाप), २५७२४, २१४८६ (५) (२) सिंदूरप्रकर-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., ( यतः येषां न विद्या), २६८६७(+) (२) सिंदूरप्रकर- चयनित लोकसंग्रह, सं., श्लो. ५६, पद्य, म्पू., (सिंदूरप्रकरस्तपः), २२०५६-१(+) , (३) सिंदूरप्रकर- चयनित लोकसंग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तपरुप करि जेहथी), २२०५६ - १(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धचक्र आराधना विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (प्रथमवर्ष मास दिन), २२६१४ (+), २२२९२ - १, २२५७०-३३ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., गा. ६, पद्य, भूपू (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), २२५८७ - १(ख) " सिद्धचक्र चैत्यवंदन, अप., गा. ३, पद्य, मूपू., (जो धुरि सिरि अरिहंत), २२५८७-२ (+) सिद्धचक्र पूजा, सं., पद्य, मूपू., (ऊर्ध्वाघोरयुतं), २३८५४-५ सिद्धचक्र लघुपूजा, मु. लालचंद, मा.गु., सं., प+ग., ., ( प्रथम हुती निस्सिही), २२५७८-४२०) सिद्धचक्र स्तव, सं., श्लो. ३७, पद्य, मूपू., (देवं देवाधिदेवं परम ) २२४९२-५ " सिद्धदत्तकपिला कथा, आ. मुनिसुंदरसूरि सं, श्लो. १३८, वि. १४८४, पद्य, मूपू., (जयश्रीणां निवासाय ), २५८२१-३ सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, म्पू, (सिद्धं सिद्धत्धसुअं), २५५१३, २११०१(३) (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धपंचाशिकाद्य), २५५१३ (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध कहतां मोक्ष), २११०१(5) सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), २२५१८ - ५०(+) सिद्धसारस्वत स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपु (प्रणवो मायाबीजं), २२५४४-४ ラ - सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. १९९३, गद्य, मूपू., (अ सिद्धि: स्याद), २६४२१, २६०४५ (६) २६४६७/६) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०००, गद्य, म्पू., (अर्हमित्येतदक्षर), २६४२१, २६८०१(#$), २६०४५ ($) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन- शब्दसाधनिका, संबद्ध, सं., गद्य, मृपू., ( ध्यात्वा वाग्देवता), २६८४६ (०) सिद्धांतविचार गाथा संग्रह, प्रा., गा. २२२, पद्य, मूपू., (कंचणगिरि पव्वेसुं), २१२७८ (०३) (२) सिद्धांतविचार गाथा संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कंचनगिरि पर्वतनइ), २१२७८(+#$) For Private And Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सिद्धांतविचारसार, प्रा., गा. ६४, पद्य, मूपू., (वंदिय वीरं धीरं), २२४९२-१ सिद्धांतषट्त्रिंशिका, प्रा., मा.गु. सं., अधि. ३६, प+ग, मूपु. ( प्रथमं तावत्जिनाशे), २५७५१ सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनंदी, सं., श्लो. २६, ई. ६वी, पद्य, दि., (सिद्धिप्रियैः प्रतिद), २५४०६ - २ (+) 9 सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, प्र. १६७५ वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवपयाई झायित), २१२०५ (+) २५९४८- १(०), २५९८५ (+), २१३९९, २५२३२, २५४७८, २६६३३, २१५५३(३) (२) सिरिसिरिवाल कहा अवचूरि, मु. हेमचंद्र, सं. ग्रं. ४०२२, गद्य, मूपू., ( ध्यात्वा नवपद), २१३९९(5) , (२) सिरिसिरिवाल कहा- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतादिक नवपद), २१५५३ (s) सीमंधरजिन षट्पदी, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कल्याणैकमयं सुवर्ण), २२९३४-१७(+) सीमंधरजिन स्तुति, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पुक्खलवई विजये), २३२५२-३ सीमंधरजिन स्तोत्र, आ. रूपसिंह, सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (अनंत कल्याणकरं), २२५८०-४(+) (२) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, उपा, ऋद्धिविजय, मा.गु., गद्य, मूपु., (अरिहंतादिक नवपद ), २५९४८ - १(१) (२) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, पं. ऋद्धिसागर मुनि, मा.गु., पद्य, भूपू., (अरिहंतादिक नवपद), २५२३२ (२) सिरिसिरिवाल कहा-टवार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., वि. १८०६, गद्य, मूपू., ( स जयति सिद्धसमूहो), २५९८५ (+), २६६३३ (२) सिरिसिरिवाल कहा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (अरिहंत प्रमुख नवपद), २५४७८ सुदर्शना चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. उ. १६ गा. ४०५३, प्र. ४५००, पद्य, मूपू., (वंदितु सुव्वयजिणं), २१४९७(+) " (२) सुदर्शना चरित्र - टबार्थ, मु. वल्लभविजय, मा.गु., गद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतस्वामीने), २१४९७(+) सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., गा. ६, पद्य, भूपू. (उसभस्सय पारणए इक्खुर), २२५१८-४६ (+) सुपार्श्वजिन स्तवन- आज्ञामय, प्रा., मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपु., (सुपट्टपुत मझ चित), २२४७१-८(+) सुभाषित काव्य संग्रह, प्रा.सं., गा. १५७, पद्य, मूपू., (नित्यानंदपदप्रयाण), २३४७१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुभाषित संग्रह, सं., श्लो. १९५३, पद्य, वे (वीरं विश्वगुरुं नत्व), २५८१५ " ५२३ सुमतिजिन स्तवन- वैरीनिरसन, प्रा., मा.गु, गा. ७, पद्य, म्पू., (मेघराव कुलचंद सुमति), २२४७१-६ (+) सुमुखनृपादि मित्रचतुष्क कथा, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ५१४, वि. १४८४, पद्य, मूपू., (जयश्रीः सर्वतो यस्य), २५८२१-४ सुसढ कथानक-यतनाविषये, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५१८, पद्य, मूपू., ( रायगिहे गुणसिलए), २२५२३-१, २६४६३ सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., वर्ग. ४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), २१८८२-१(+), २२२०२-१(+), २२६३१-१, २५६३०, २५६३४ (२) सूक्तमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल सर्व जे शुभ करणी), २५६३०, २५६३४ सूक्तावली, सं., श्लो. ७७८, पद्य, मूपू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), २५३८४ (+), २२८०४, २६७०४ सूक्तावली संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गा. ५६१, पद्य, मूप, ( नास्त्यहिंसा समो), २१२९१ (+३) सूक्ति संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, म्पू, (धर्मतः सकलमंगलावली), २१०९७/+S) , " सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अ. २३, प्र. २१००, प+ग. मूपु. ( बुज्झिज्ज तिउद्वेज), २१२०६(+), २५४७२(०६), २५७४३(+), २६३९२(+३), २५८६८-१, २६०५४, २१०२२, २१०६६ २११५१, २११५९१०) २५७५७), २५८४३(३), २६७०५ ($) सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., प्राभृ. २०, अं. २२००, गद्य, म्पू., ( नमो अरि० तेणं० मिथिल), प्रतहीन. (२) सूर्यप्रज्ञप्ति - टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., ग्रं. ९०००, गद्य, मूपू., (यथास्थितं जगत्सर्वमी), २६४६६ सूर्याष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., ( सप्ताश्वसमारुढं अरूण), २२५१८-५९(+) (२) सूत्रकृतांगसूत्र- नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २०५, पद्य, भूपू., (तित्ववरे व जिणवरे), २५८६८-२ (२) सूत्रकृतांगसूत्र - बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य सद्गुरुन), २१०२२, २११५९(m) (२) सूत्रकृतांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुज्झि० छकाय जीवना), २१२०६ (+), २५४७२ (+), २११५१, २६७०५ ($) (२) सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., ( पुच्छिणं समणा माहण), २२७३२-१ For Private And Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, मपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), २५२४०(+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, वा. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ७७, वि. १८०१-१८४१, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या नतमौलि), २२५७२-२(+), २४४४४(+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), २१०७६(+), २११७०(+), २२९०१(+), २२९७३(+$), २६०५२(+), २६०७२(+), २६८४१(+), २१०६५, २२८९८, २३४१३-१, २४४५९, २६०६६, २६०८०, २६१८२, २६३७२, २६४३९-१ । (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (धनपालपंडितबांधवेन०), २११७०(+) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-बालावबोध, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे भव्यांभोजविबोधनैक), २६०५२(+) स्तुति संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, श्वे., (प्रभात उठी प्रणमीये), २२९३५-२ स्थविरावली, सं., गद्य, मूपू., (अथैतेषां पंचाना), २११६४(+) स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं तेणं), २६८२२(+), २१६१२, २५९६९(६) (२) स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., स्था. १०, ग्रं. १४२५०, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं जिननाथं), २१६००(+), २१६२७(+) (२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. १३५००, गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा), २५९६९($) (२) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा स्थानांग कतिपय), २१६१२ स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, गु.,प्रा., गद्य, पू., (शुद्ध स्वरूपने ध्याउ), २२२९२-३ स्नात्रपंचाशिका, ग. शुभशील, सं., कथा. ५०, श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनान), २२२१२(६) (२) स्नात्रपंचाशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य क० प्रणाम), २२२१२($) (२) स्नात्रपंचाशिका-कथा, मा.गु., अ. ५० कथा, गद्य, मूपू., (श्रीपुर नगरने विषे), २२२१२($) स्नात्रपूजा, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (मुक्तालंकार विकार), २२९०९ स्नात्रपूजा विधिसहित, पंन्या. रूपविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (मुक्तालंकार विकारसार), २२००२-१(+$), २५६९० स्नात्रपूजा संग्रह*, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), २२४७१-१४(+), २३१६३, २१४०५(s), २२०५७(5) स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (पूर्वे तथा उत्तरदिसे), २३१९०-२(+), २६१३४(+), २२४६६-१, २४१३२, २४२७४, २५६५३, २३२५१($) । (२) स्नात्रपूजा सविधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २६१३४(+) हनुमान स्तोत्र, सं., गद्य, वै., (ॐ ह्रीं ह्रीं ॐ नमो), २२५८६-८(+) हरिवंशपुराण, मु. ब्रह्मजिनदास, सं., स. ३९, पद्य, दि., (सिद्धं संपूर्णभव्यार), प्रतहीन. (२) हरिवंशपुराण-भाषा, श्राव. खुशालचंद्र, मा.गु., वि. १७८०, पद्य, दि., (महावीर वंदौ जिनदेव), २६८९५ हरिविक्रम चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., स. १२, श्लो. ४७५०, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थाय नमस्तस्म), २५९५१ हिंगुल प्रकरण, उपा. विनयसागर, सं., श्लो. १८०, पद्य, मूपू., (श्रीमच्छ्रीवासुपूज्य), २२१४८-१ हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय , सं., प्रका. ४, गद्य, म्पू., (स्वस्ति श्रियो निदान), २५४६०(+) हृदयप्रदीपषविंशिका, सं., श्लो. ३६, पद्य, मूपू., (शब्दादिपंचविषयेषु), २२५५०-४ हेमदंडक, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीवभेया सरीराहार), २२५६२-५(+), २४२९२-१ (२) हेमदंडक-भाषाटीका, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. १०७, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (जो ध्रुव अलख अमूरती), २२५६२-६(+), २४२९२-२ हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रक.८, श्लो. १३९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (पुल्लिंगं कटणथपभमयर), २२१८५(+$), २११८२ (२) हैमलिंगानुशासन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमः सर्वविदेकादयोदंत), २११८२ For Private And Personal use only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५२५ (२) हैमलिंगानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ३३००, गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धहेमचंद्र), २५४५९(+) हैमविभ्रम, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (कस्य धातोस्तिवादीनाम), २५८१० (#$) (२) हैमविभ्रम-अवचूरि, ग. चारित्रसिंह, सं., वि. १६२५, गद्य, मूपू., (नत्वा जिनेंद्र), २५८१०(#$) होलिकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), २४४२१-२(+$) होलीपर्व कथा, सं., श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान जिनं नत्व), २२२५५ (२) होलीपर्व कथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, पू., (श्रीवर्द्धमानजिन), २६७७९-१ For Private And Personal use only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ४ कषाय पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जैन धर्म नही कीतावो), २३२७१-२१ ४ गति वेलि, मा.गु., गा. १३५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (आदि देव अरिहंतजी आदि), २१०८५(-) ४ गोलेयादि चौढालीयो, मु. धनदास, रा., ढा. ४, पद्य, श्वे., (संतनाथजी सोलमा सांति), २६६९३-२ ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ शशिकुलतिलो), २१२१३(+), २६८३५(+) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चिहुं दीसथी च्यारे), २२५९०-४८(+) ४ मंगल पद, मु. सकलचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज म्हारै च्यारु), २२५६९-६(+), २५२०६-३ ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी जे नमु), २६३४५ ४ मंगल शरण, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (पो उठीनें समरीजै हौ), २२५५३-१८(#) ४ विकथानिवारण गीत, मु. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वृथा करम बांधत जीउ), २२४९७-५ ४ शरण सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहिलो मंगलिक कह), २२३८७-२ ५ इंद्रिय २३ विषय सज्झाय, मु. सुंदर, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (उतपत मानव एह रे), २२४४२-३३(+) ५ इंद्रिय चौपाई, पुहि., ढा. ६, गा. १५४, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमी जिनदेव), २२५२८-१(६) ५ इंद्रिय विषय, मा.गु., गद्य, मूपू., (जघन्यतो अंगलुनो), २१६५५-५(+) ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काम अंध गजराज अगाज), २२४५०-७४(+), २२४९३-११(+), २२५३७-१७ ५ इंद्रिय सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (कायाने पांजरे रे वसि), २२५०५-३ ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), २२७३९, २५७२५-१, २६८२८, २६९१८ ५ कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३९, पद्य, मूपू., (सेवो सदगुरु गुण), २२४९०-१(+) ५ परमेष्ठी आरती, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (इहविधि मंगल आरती), २२५९०-७४(+) ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), २२४४२-२७(+), २२५०३-७(+), २२५९०-५६(+), २२८७१-१३ ५ भाव विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते भाव ५ प्रकारना छे), २४६९९-२(5) ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवैरे), २२४५५-८, २२८७१-२४ ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (श्रीस्याद्वाद शुद्धो), २३२१८, २३३४० ६ संवर सज्झाय, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (पहिलो संवर जिनवर इम), २२५१२-१५ ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), २२४५०-७५(+), २२४९३-१०(+), २२५१२-१०, २६९२५-१२ ७ व्यसन सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, पुहि., गा. ११, वि. १८८५, पद्य, श्वे., (सतगुरु संगत कीजै), २२५५५-३८ ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), २१७८७, २१८३६, २१८८४, २५४८०, २६६०४, २६८२४, २४४१२-१(६) । ८ कर्म विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणीय दर्शनावर), २२७२७-१ ८ प्रकारी पूजा, मु. कुंअरविजय, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (त्रिजगनायक तु धणी), २२५६९-२(+) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर निकलंक जे), २४५०६ ८ प्रकारी पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८५८, पद्य, मूपू., (सरस वचन रस वरसती), २३८६१ ८ प्रवचनमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ८, वि. १८२१, पद्य, श्वे., (पांचसुमत तीनगुप्त आठ), २४४३८ ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), २१३८१, २२३२७, २२८५८-१, २३७६३, २५४४८, २६१८७-१ (२) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनतं), २१३८१ For Private And Personal use only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ९नियाणा विचार, मा.गु., पद्य, मूपू., (पहिलो राजनियाणो तप), २२५७५-११ १० दान दोहरा, पुहिं., गा. १४, पद्य, श्वे., (गो सुवर्ण दासी भवन), २२५१५-२ १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी), २२२४४-३(+), २२५१२-३९, २६९९०-१६ १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ नंदन नमु), २२४७९-८ १० बोल पद, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (जिन की बात कहुं), २२४६७-२ १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्यादवादमत श्रीजिनवर), २२५५४-१३(+), २२८७१-२ १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ३२, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (जिण चुवीसी करु), २६९९०-७ ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्वा. ११, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (आचारांग पहेलुका ), २१२८८ ११ गणधर पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रात समै उठि प्रणमी), २३२७१-२५ ११ गणधर स्तवन, मु. आसकरण, मा.गु.,रा., गा. १२, वि. १८४३, पद्य, स्था., (इंद्रभुतिना लीजे), २२५५७-६(+) ११ गणधर स्तवन, मा.गु., स्त. ११, गा. ६०, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर पय पणमेवि), २२४८२-३(+) ११ पाट भास-लुंकागच्छीय, मु. सुखमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (प्रणमु श्रीजिन पास), २२५४५-४ १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. १२, गा. ७७, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति भारती), २३७५३-२(#) १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (भवनपति व्यंतर), २४६९८-२(+) १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२, गा. ७२, वि. १६४६, पद्य, मूपू., (आदिसर जिणवर तणा पदप), २२८७८-३८ १२ भावना बारमासो, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीजिनपद पंकज नामो), २२५५५-४८ १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर पाय नमी), २२९०३, २५४१६, २५६३७ १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. १४, पद्य, मूपू., (विमल कुल कमलना हंस), २११०९, २१२६६(#) १२ मास दूहा, मु. जसराज, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (पीउ चाल्यौ पदमण कहे), २२४४०-३ १२ व्रत चौपाई, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ३४१, वि. १५३४, पद्य, म्पू., (वीरजिणेसर प्रणमुं), २५७६३ १२ व्रत पूजाविधि, मु. वीरविजय, मा.गु.,गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), २१९०६(+) १२ व्रत पूजाविधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (विशाल जिनभुवने अथवा), २२४२५-२ १२ व्रत सज्झाय, मु. अमीकुंअर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जीवदया व्रत पेले), २२५७५-२ १३ काठिया दोहरा, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. १८, पद्य, दि., (जे वट पारे वाट मै), २२४६७-७ १३ काठिया पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (ज्यु वट पाडै बाटमै), २२५०१-२४(+) १३ काठिया सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर प्रणमी पाय), २२५०५-९ १४ अतिचार ढाल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, श्वे., (चवदै अतिचार ग्यानरा), २६२६५-२ १४ गुणस्थानक २१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुणस्थानक १४ तेहनां), २१७८३, २३३२५ १४ गुणस्थानक २५ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार लक्षणद्वार), २४०७०(+), २१२३१-१ १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामद्वार लक्षणद्वार), २५५०२ १४ गुणस्थानक वर्णन गीत, मु. किशनलाल, मा.गु., गा. ८५, पद्य, श्वे., (प्रथम भव्य भवथिति), २३९४२-१ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासां), २२७२७-२ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ जिन), २२४१५(+$) १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), २४६९९-१ १४ गुणस्थानके १०५ बोल विषये बासठीयो यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), २२९५७ १४ नियम सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सारदाय प्रणमि करीजी), २२२४४-२(+) १४ बोल सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (सूत्र भगोती शतक दूसर), २२४६४-९ १४ विद्यानाम छप्पय, पुहि., पद. १, पद्य, वै., (बह्मग्यान चातुरी बान), २२८८७-३ For Private And Personal use only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ १४ समूर्च्छिमपंचेंद्रिय उत्पत्तिस्थानक जीव सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., ( गौतम गणधर प्रणमी पाय), २४३२१-१ १५ तिथि दूहा, मा.गु., गा. १५, पद्य, (पडिबा पहेलो पेखणो), २२४४०-४ १५ तिथि सज्झाय, गंगादास, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (सकल संसारमाही जीव), २२५३५-१२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५ तिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पहिलि तिथि इणपरि वदे), २३८१९-३ १५ तिथि सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (एकम कहै तू एकलो रे), २२५५५-६ १५ तिथि सवैया, जसराज, मा.गु., गा. १५, पद्य, ( आज चले मनमोहन कंत), २२५१७ - २५ १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्तु. १६, गा. ६४, पद्य, मूपू., (एक मिध्यात असंयम), २१८६५-२, २३२२९-१, २४४०९ (5) १६ जिन स्तवन, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १२, वि. १८३६, पद्य, ओ., (ऋषभ अजित संभवस्वामी), २२५५७-१२(५), २२५१२-८७, २२५५३ - ३३ (#) १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), २४३२१ - २, २२५५३-३(#) १६ सती सज्झाय, मु. त्रिकम, मा.गु., गा. १६, वि. १७७०, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभ तणी धुया), २२५९० - १४४(+), २२८८०-८($) १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., गा. १४, पद्य, श्वे., (सील सुरंगी भांलि ओढी), २२५९०-८८(+) १६ सती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतल जिणवर करी), २२५९०-१५७(+), २२५१२ -८१, २४३२१-८ १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीनवुं), २५१४९-२ १७ भेद जीवअल्पबहुत्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (अरिहंत केवलज्ञान), २२८७८-१० १७ भेदी पूजा, आ. विजयानंदसूरि, मा.गु., पूजा. १७, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद मुणिंदनी), २६९८१ १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. १०८, पद्य, मूपु., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), २२२७२, २६१२५, " २११९४(१) (२) १७ भेदी पूजा-टबार्थ, मु. सुखसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे स्नान कर्या पछी), २२२७२ १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., डा. १७, वि. १६१८, पद्य, म्पू., (भाव भले भगवंतनी पूजा), २२५७८-५(+), २५२०६-४, २६२७३, २४४२७-२ १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सत्तरभेद पूजा फल), २२४९०-४(+), २२५१०-८४ १८ दोषरहित आरती, मु. तिलकोदय, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., ( आरती देव निरंजण की), २२५१०-९४ १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू., (पहिलो प्रणमुं पास), २१५१२-२, २२४७४-३ १८ नातरा सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (कामसेना रा पुत्रसुं), २२४८४-३१ १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेला ते समरूं पास), २२४४८-१(+), २२८७१-२७ १८ नातरा सज्झाय, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (एक ही माइ तिण मुझ), २२४८४-२० १८ पापस्थानक आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोई भव्यजीव कोई), २६२९७-१ १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि), २२८७४ - २, २६२९०-१ १८ पापस्थानकपरिहार कुलक, मु. ब्रह्म, मा.गु., डा. १८, ग्रं. ३५०, पद्य, खे, (सुंदर रूप विचार चतुर), २५४५८, २५७९३ - १ ($) २० द्वार अल्पबहुत्व यंत्र, मा.गु., यं., मूपू., (जीव गईदिय काए जोए), २४८८६ ($) २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, वे., (पहिले बोले श्री अरिह), २१९६१-३ २० विहरमानजिन स्तवन, मु. चौथमल, मा.गु., गा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (श्रीसीमंधर साहिब हो), २२५५७ - १४ (+) २० स्थानकतप काउसग्ग चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चोवीस पन्नर), २२४७४-७ २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पहेले पद अरिहंत नमुं), २२४७४-६ २० स्थानकतप चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), २२४६८-१५ " For Private And Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir (S) देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५२९ २० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ८१, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (जिनमुखपंकजवासिनी), २६९३४-२(१) २० स्थानकतप स्तवन, मु. भक्तिरंग, मा.गु., ढा. ३, गा. १२, पद्य, मूपू., (भले भाव मनरंग चंग वर), २२८७८-२६ २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू., (वीशस्थानक तप सेवीयै), २६७३३-२(+) २० स्थानकतप स्तुति, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीसथानक विश्वमा), २४७८८-४ २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), २१९०९, २६६७७, २६६७८-१ २० स्थानक पूजा, आ. विजयानंदसूरि, गु., पूजा. २०, वि. १९४०, पद्य, मूपू., (समर सरसभर अघहर), २६७५०(+) २० स्थानक स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुअदेवी समरी कहूं), २२५३९-५ २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. २१, गा. १०५, पद्य, मूपू., (प्रणमुप्रथम जिणंद), २३१५१ २१ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (हस्तकर्म करै तो सबल), २२५२९-५ । २१ बोल निक्षेपाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहले बोल सातनय), २५०२०-१ २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (श्रीआदेसर आद दै चौवी), २६६४६-३ २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), २४४३४ २३ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), २२५४३(+) २४ जिन अंतर काल देहायु स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (पंचपरमेष्ठि मन शुद्ध), २२८७८-९ २४ जिनगुण स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (--), २२५५३-१(#$) २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पद्मनाभ पहेला जिणंद), २२५०६-२, २४०९०-१,२५१८१-२(5) २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुजे ऋषभ समोसर्य), २२४९८-३२(+), २२५१०-६५, २२७८८-२०(#) २४ जिनदेहमान स्तवन, मु. रंगविनय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमुंऋषभ जिनेसर), २२८७८-६ २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेवजी अजित), २२४३८-१६(+), २५००९-९(+) २४ जिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८८९, पद्य, श्वे., (तीर्थंकर गणधरनो रे), २२५०१-३८(+) २४ जिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीजिन मुजने पार), २२५०१-३७(+) । २४ जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीउ जपिजपि जिनवर), २३२७१-११, २३२७१-३३(६) २४ जिन परिवार स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरनो), २२५९०-८१(+) २४ जिन लावणी, मु. विनयचंद, रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (समर समर जिनराज समर), २६०७८-२(+), २२५५३-२६(#) २४ जिन लेखो, मा.गु., गद्य, मूपू., (पैहला वांदु श्रीऋषभ), २१७१८-१ २४ जिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देवतणा गुण वर्णवू), २२५६१-७(+) २४ जिन स्तवन, मु. कृपासागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शिवसुखदायक जिन चोवीस), २५७२९-३ २४ जिन स्तवन, मु. क्षेमकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित संभव), २२५९०-७६(+) २४ जिन स्तवन, वा. देव, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित मुज स्वामी), २२५९०-१४१(+) २४ जिन स्तवन, मु. नेत, मा.गु., गी. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव राजा लही ओलग), २५८७७ २४ जिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आदि ऋषभ जिणेसर देव), २२५९०-१४२(+) २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (श्रीआदिनाथ अजीत संभव), २२५५३-२४(#) २४ जिन स्तवन, मु. रिखजी, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (समरू श्रीआदि जिणंद), २२५५३-२५(#) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वर्तमान चोवीसी वांदु), २३१२०-२ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ कीजे), २२४६४-१०, २२४८४-१ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभ अजित संभव), २२५५७-३(+) २४ जिन स्तवन-आयुचतुर्विधसंघसंख्यागर्भित, मु. रंगविनय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव प्रणमु), २२८७८-७ For Private And Personal use only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ ५३० २४ जिन स्तवन- आयुदेहमान अंतरकालगर्भित, मु. कनकविलास, मा.गु., गा. ४३, वि. १७४६, पद्य, म्पू., (पणमी परमानंदसु परतिख), २२८७८२९ २४ जिन स्तवन- गणधरसंख्यागर्भित, उपा. जयसोम, मा.गु., डा. ५, गा. १७, वि. १६५७, पद्य, म्पू.. (पासजिणेसर प्रणमु पाय), २२८७८-२१ २४ जिन स्तवन- गणधरसाधुसाध्वीसंख्यागर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ५७, पद्य, मूपू., (तीर्थंकर चवीसां), २२८७८-२४ २४ जिन स्तवन- देहमान आयुस्थितिकधनादिगर्भित, पा, धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ५, गा. २९, वि. १७२५, पद्य, मूपु., (पंचपरमिट्ठ मन शुद्ध), २२५५४- १२(+) २४ जिन स्तवन- मातापितानामगर्भित, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., ( नाभिराजा मरुदेवीमाता), २२७८६-१३ () २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मृपू., (सयल जिणेसर प्रणमुं), २२५१०-१०६, २२५३५-१३, २२५४५-१, २५०३०-१, २२७८८-४१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन स्तुति, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तीरथपति त्रिभुवन सुख), २४५९३ - ११(+) २४ जिन स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर केसर चरचि), २२३७२ - १(+) २४ ठाणा विचार, मा.गु., गद्य, मृपू., (गइ इंद्रि काय जोग), २५६२४ २४ दंडक २३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकीमाहे शरीर ३) २६०६७(5) २४ दंडक २३ पदवी गतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., ( बार गुणे करी विराजमा), २२९१० २४ दंडक २३ पदवी स्तवन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (चोवीस दंडक उपरे पदवी), २२८७८-३१ २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., ( सरीरोगाहणा संघयण), २१३१३ २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपु., (शरीर अवगाहणा संघयण), २१२२९, २१३१२, २१६७८, २२२३७-२, २३७४२, २५११७-१ २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम नामद्वार बीजु), २३२५२ - १, २५५०५, २५६११, २५६५७, २६७२५ २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक लेश्या ठित्ति), २३४०९ (+), २२२९६, २५७५३, २६६४१, २१५९३($), २६५४८ ($) २४ दंडक ३० बोल विचार, आ. रूपजीवर्षी, मा.गु., पद्य, श्वे., (दंडक१ लेसा२ ठिति३), २१५८९($) २४ दंडक गतिआगति स्तवन, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., ढा. २, गा. २६, पद्य, मूपू., ( आदीसर हो सोवन काय), २२८७८-१९ २४ दंडक गतिआगति स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., ( श्रीमहावीर नमुं), २२८७८-३ २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को. भूपू., (--), २१४२५-१(+) " २४ दंडक विचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (प्रथवीकायनो १ दंडक), २१७११(३) २६३२४(३), २६४७४(३) २४ द्वारे अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, मूपु., (जीव गइ इंदिय काए जोग), २६१५९ २५ बोल, मा.गु., गद्य, खे, (नरकगति १ तिर्यंचगति), २३७१४, २६२१५, २१८०८- १(३) २७ बोल, मा.गु., गद्य, भूपू (पहिले बोले गति च्यार), २५२२४ " ३२ आगम नाम, मा.गु., गद्य, स्था., (आचारांग कालिक), २२५३६-३+१ ३४ अतिशय स्तवन, मु. गोविंद, मा.गु., गा. १३, वि. १७७२, पद्य, श्वे., (शांति सुखकारणा), २२५८०- १२(+) ३५ अक्षर स्वाध्याय, चेतन, मा.गु., डा. ३५, वि. १८४५, पद्य, वे., ( कर लीजे शुभ काम जगात), २४३३८-१ ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मृपू., (पहेले बोले गति चार), २३६८१-१ ३६ ठाणा बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), २४८५९ ($) ३६ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, वे., (एक प्रकारनो आतम दोष), २२०६६ ३६ बोल थोकडो, मा.गु., गद्य, भूपू., ( एगे असंजमे १ एगे), २२२३७ - १(३) ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., ( आचारांग १ सुयगडांग२), २१९६१-२ ४५ आगम स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (प्रवचनमायना पाय नमी), २२८७८- ३७ ५६ दिकुमारी जिनजन्ममहोत्सव स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिन जनम जाणी आवी), २२५६१-२(१ For Private And Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५३१ ६२ बोल मार्गणा, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. १३, गा. १८३, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (गुरुवचन लही करी आगम), २३१२४, २६३८८ ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई बोले), २१४०२, २४९९५, २६२७६-२ ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), २६३०२ ६२ मार्गणा विधान, जै.क. बनारसीदास, पुहि.,गा. २८, पद्य, श्वे., (वंदौ देव जुगादि जिण), २२४६७-८ ६२ मार्गणा स्तवन, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ११२, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरने तिम), २२५६२-८(+) ७५ बोल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीवीतरागदेवे पांच), २६४५०-१ ९६ जिननाम स्तवन, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो सिरनाय), २३८१७-३ ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), २२०२९(+$), २२८९४-१ १५० जिनकल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (शासननायक जगजयो), २२५०६-५ १७० जिन चैत्यवंदन, मु. केसर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रणमी सीमधर तणा), २२८८३-१२ ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उंचा लोक में ५६३), २४७४२(६) १४५२ गणधर स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिक गोयम पमुह), २२५९०-७९(+) १७०० जिन स्तवन, मु. कपूरचंदजी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीदायक), २४२३५-२(+) अंगुल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (से किं तं अंगुले), २२५१४-४ अंजनासुंदरी चौपाई, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., खं. ३ ढाल ४३, गा. २५३, ग्रं. ७०७, वि. १७०६, पद्य, मूपू., (करतां सगली साधना), २५६६१ अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., खं. ३ ढाल २२, गा. ६३२, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (गणधर गौतम प्रमुख), २१५१४, २१९०१, २६८१९-१, २६८७४(६) अंजनासुंदरीरास, मा.गु., गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड को नही), २३६८८(+), २११४५-२, २१६६०, २३३९७, २४७५०(६) अंजनासुंदरी रास*, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), २४०३४(६) अंजनासुंदरी रास-बृहद, मा.गु., गा. ३१८, पद्य, मूपू., (पहिलैनइ कडवइ पय नमु), २६५२० अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद वांदीने), २२५०३-१३(+), २२५५६-८(+), २२५७०-४ अकबर पातिशाह व हीरविजयसूरि की कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (संवत पनर आसिये १५८३), २६७४७ अक्षरबावनी, वा. किशन, पुहि., गा. ६१, वि. १७६७, पद्य, श्वे., (ॐकार अमर अमार अज), २६२०१ (२) अक्षरबावनी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐकार पद पंचने समवेय), २६२०१ अक्षरबावनी, मु. केशवदास, पुहिं., गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (ॐकार सदा सुख देत), २२५३२-३ अक्षरबावनी, मु. जसराजजी; मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ५६, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (ॐकार अपार जगत आधार), २४४४२(+) अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., गा. ५७, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (ॐकार उदार अगम अपार), २५६९७-१, २२२९९-१(#) अक्षरबावनी, मु. मान, पुहि., गा. ५७, पद्य, श्वे., (ॐकार अपार अलख्य), २६१९२-१ अक्षरबावनी, उपा. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ५८, पद्य, मूपू., (ॐकार अपार अगम्य), २४८०६ अक्षरबावनी, ऋ. लालचंद, पुहि., गा. ५८, वि. १८७०, पद्य, स्था., (सरस वचन सरस्वति तणा), २३३४७-२ अजितजिन पद, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजितराय तुम दयाल मे), २२४४२-४९(+) अजितजिन स्तवन, आ. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजित जिनेसर इकमना), २२४८०-१३ अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तार किरतार संसार), २२४८४-३३, २२८८०-४ अजितजिन स्तवन, मु. तेजसिंह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चोथो आरो जिनवर वारो), २२५२६-३ अजितजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अजित जिणेसर चरणनी), २२५११-१९(#) अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अजित अजित जिन), २२४४७-६, २२५१०-३ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ओलग अजित जिणंदनी), २२५१०-६७ For Private And Personal use only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजित जिणंदस्यु प्रीत), २२४५०-९(+), २२५८६-६(+), २२५९०-५७(+) अजितजिन स्तवन, ऋ. रायचंद, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (जंबूदीपना भरत मे), २२४८४-१० अजितजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विजयनंदन जिनजी मुझ), २२५०७-६ अजितसिंघराजा गीत, पुहिं., गा. ४, पद्य, (महामंगला चार उछाह), २२५१७-६ अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४३, गा. ७५८, ग्रं. १०१४, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी), २२१७७ अजीवद्रव्य भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुदगल द्रव्य १), २२५७५-१४ अट्ठाई व्याख्यान, मु. ऋद्धिसार, मा.गु., वि. १९४८, गद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीशांति), २३५१६-१(+) अढीद्वीप धरो, रा., गद्य, श्वे., (जंबुद्वीप १ लाख जोजन), २३१२०-१ अढीद्वीप वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थोलोकमां असंख्य), २१७१६-१ अणाहारी वस्तुनाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (हरडै १ बहेडा २ आंवला), २६५७०-३(+) अतीतअनागतवर्तमानचौवीसीजिन स्तवन, मु. सिंहउदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आरती श्रीजिनराज की), २२५१०-२० अधिपति एवं वाहन नाम, मा.गु., पद्य, वै., (कुष्ण वाहन गरुड), २२५१७-२१ अध्यात्म गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रात भयो प्रात भयो), २२५१०-२३ अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमियै विश्वहित), २११६९ अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद, पुहिं., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, श्वे., (अजर अमर पद परमेसरकुं), २३१५९(+), २२९२१, २६१७५(६) अध्यात्मबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, पद्य, दि., (सुध वचन सदगुरु कहें), २२५६३-५(+), २२४६७-५ अध्यात्म बाराखडी, चेतन, मा.गु., ढा. ३६, गा. ४३७, वि. १८५३, पद्य, श्वे., (--), २४३१८-१(६) अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, श्वे., (चेतः केवरा कौमुदि), २३१४६($) अनंतकाय सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (अनंतकायना दोष अनंता), २२५७५-९ अनंतजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अनंतजिन अवतारी नित), २२५१२-२ अनंतजिन स्तवन, वा. जस वाचक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनंत जिनशुंकरो), २२५११-१८(2) अनंतवीर्यजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (सुंदर रूप सुहामणो), २२४८४-३ अनाथीमुनि सज्झाय, मु. पुण्यपाल, मा.गु., गा.११, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी भली), २२४८४-१२ अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (मगधाधिप श्रेणिक), २२५०३-२०(+) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), २२५०२-४(+), २२५८४-७(+), २२५९०-४२(+), २६०७८-३(+), २२५१०-१०३, २२५५५-६१ अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहि., गा. १९, पद्य, मूपू., (मगध देश को राज राजे), २२५०३-१२(+) अनाथीमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १०, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (थान भलो राजग्रही रे), २२५५५-६२ अनुकंपा विचार संग्रह, मा.गु., ढा. ९, वि. १९८६, पद्य, श्वे., (करुणा वरुणालय प्रभो), २३०२६(+) अनुभववाणी सवैया संग्रह, सुंदर, मा.गु., पद्य, जै.?, (मोज करी गुरुदेव दया), २२५३२-१, २३६२४($) अबयद शुकनावली, मु. सुजाणसिंह, पुहि., वि. १७९४, गद्य, श्वे., (महावीर कौ ध्याइके), २४५३८ अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (उपदेश न लागे अभव्यने), २२५७०-३६, २६९२५-१० अभिनंदनजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (अभिनंदन जिनराज प्रभु), २२५३७-१५ अभिनंदनजिन स्तवन, वा. जयविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चोथो अभिनंदण जिन), २३२००-३(+) अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु तुम दर्सण मलिय), २२५३७-८ अभिनंदनजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अकल कला अविरुद्ध), २२४४७-८ अभिनंदनजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवुरे), २२४८४-३४ अभिनंदनजिन स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (श्रीअभिनंदण शीतल), २२४९९-४ । अमरकुमार रास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. १८, पद्य, मूपू., (आदीसर प्रथम जिन शांत), २६५१६(+) For Private And Personal use only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अमरकुमार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (पुरव कृत करमा तणो), २२०३४-१ अमरकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी भली), २२५१२-९ अमरसेन चौपाई, ऋ. खुशालचंद, मा.गु., ढा. २३, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (श्रीमद्जिन आददे विहर), २३९९८(-) अमावस्यातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अमावस्या तो थई उजली), २२५४७-८(5) अरजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (भरतखंड नागपुर भारी), २२५१२-४ अरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आराधो अरनाथ अहोनिस), २२४८४-३७ अरणिकमुनि रास, ग. महिमासागर, मा.गु., ढा. ८, वि. १७७४, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीन), २६८३२-२(+$), २६००२ अरणिकमुनिसज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (इक दिन अरणक जाम), २२५५६-१(+) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. खीमा, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (कचा था सोई चल गया), २२५१२-२४, २२५५५-१८ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. दयातिलक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नगर तारापुर वहिरण), २२०९६-२ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), २२५५६-२(+), २२५५७-१०(+), २२५९०-६(+) अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), २२५५५-१०४(६) अरिहंत बारगुण आरति, मु. तिलकउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आरती श्रीजिनराज की), २२५१०-२१ अरिहंतशरण सज्झाय, मु. गजमुख, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरण करीजइं श्रीजिन), २२५०५-१६ अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), २१२१०, २१९४५, २२०९६-१, २२३०१, २२३९८, २२८९९, २३१२३, २३२४७, २२४२२(#$), २५४९८(६) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (ए संसार असार छे साचो), २२८७१-३४ अष्टप्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम हुती सगली), २३०७८-२(+) अष्टप्रवचनमाता सज्झाय, पा. देवचंद्रजी, मा.गु., ढा. ९, गा. १३०, पद्य, मूपू., (सुकृत कल्पतरु श्रेणि), २५७१५(६) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (महा सुदी आठमने दिने), २२५०६-९ अष्टमीतिथि नमस्कार, पं. खिमाविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चैत्र वदी आठम दिने), २२५३९-२, २२५७०-२५ अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (आठिम तप आराधिइं भाव), २२४५०-४५(+) अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसतिने चरणे), २२४५०-६८(+) अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आठम कहे आठिम दिने), २२५०३-१४(+), २२५७०-२९ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांति, मा.गु., ढा. २, गा. २४, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), २२४९३-२(+), २२४५५-३ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. दीपकविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (वंदो रे भविका जिनराज), २६३५०-२ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमु), २२७८५-५(+), २२९२४-१२(+), २५१५२-४ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मंगल आठ करी जिन आगल), २२४७७-८, २२५४७-४, २२५६५-४, २६८८७-५(#) अष्टमीतिथि स्तुति , मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), २२४५०-५९(+), २२४६३-१०(+), २२४७७-९ अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), २२४६३-११(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिरि जात्रा), २२५१०-४५ अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. पद्मराज, मा.गु., ढा. ४, गा. १५, पद्य, मूपू., (जिनवर चरण नमी करी), २३२००-६(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), २२४५०-३५(+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, रा., गद्य, मपू., (शांतीशं शांतिकर्तारं), २४४६८, २६८५५, २६९५९ (२) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (शांति का करणेवाला), २५६३१(+) असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति माता आदे नमीई), २२८७१-४ असज्झाय सज्झाय, मु. हीर, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रावण काती मिगसिर), २२५३८-६, २२८७८-५ असणादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगौतम), २२५०३-२४(+) असमाधि २० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (उतावलो चालें तो), २२५२९-७ For Private And Personal use only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ आगमनाम स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (सासनपति रे चोवीसमो), २२५३७-२०१६) आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (हिवै भव्यजीवने), २११४४, २५५४६, २५६८१ (२) आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम जीव), २५२५२(+), २१२१५ आगमिक प्रश्नोत्तरपत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, रा., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीस्तभनक), २३३७५ (5) आचार्यगुण स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), २२५९३-१ आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, पुहि., गद्य, श्वे., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), २२१५९ आत्मशिक्षा, मा.गु., गद्य, श्वे., (अपरंच बीजं श्रीजिन), २६६४७ आत्महितशिक्षा सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु संघाते प्रीत), २२५७०-३५ आत्मा के ६५ गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (असंख्यात प्रदेशी), २३४४२, २५२२८ आदिजिन आरती, मु. माणेकमुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अपछरा करती आरती जिन), २२५६९-५(+) आदिजिन गहुली, मु. रंगविलास, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वनितानगरी सोभती), २२५७०-१७ आदिजिन गीत, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ओलगडी कौण करे री), २२५१०-५१ आदिजिन गीत, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (सरस्वती माता द्यो), २१२८३-१ आदिजिन गीत, मा.गु.,गा. ४, पद्य, श्वे., (जिन तेरो दरिसन है), २२५१०-१९ आदिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय जिनवर आदिदेव), २४५९३-८(+) आदिजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकर नमुं), २२५०६-८ आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो भगवंत), २२५७०-२२ आदिजिन पद, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रात उठि समरियै), २२४५०-१२(+) आदिजिन पद, मु. खूबचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (भज श्रीऋषभ जिनंद कुं), २२५९०-१०२(+) आदिजिन पद, मु. चतुरकुशल, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (विसरे मत नाम प्रभूजी), २२५७०-३९ आदिजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (दया मीठाई अतिभली वरी), २२५७०-१२ आदिजिन पद, मु. जिनराज, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज सकल मंगल मिलै आज), २२५९०-१११(+) आदिजिन पद, मु. नवल, हिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (लगी लगन कहो कैसे), २२४४२-६८(+) आदिजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (लगीलो नाभिनंदनसुं), २२५५५-५१ आदिजिन पद, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मीठी मनि लागी साहिबा), २२५८८-२ आदिजिन पद, मु. शिवचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (सफल घडी रे मोरी सफल), २२४४२-१५(+) आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), २२५९०-११७(+) आदिजिन पद, मु. सोभाचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (भज श्रीऋषभ जिणंद), २२७८६-२(-) आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (उगत प्रभात नाम जिनजी), २२५९०-११९(+) आदिजिन पद, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (इखागवंसना उपना सामी), २२४४९-५ आदिजिन पद-केसरीया, मु. मुलचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (केसरिया वाला जो), २२४५०-२०(+) आदिजिन पद-केसरीया, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टकरम मेरो काई), २२४३८-९(+) आदिजिन पद-केसरीया, मु. लाभधीरविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (केसरिया को ध्यान धर), २२४३८-३(+) आदिजिन पद-केसरीया, मु. लाभधीरविजय, पुहि., गा. ७, वि. १९३९, पद्य, मूपू., (मोय दीनो दरशन आज), २२४३८-१३(+) आदिजिन पद-धुलेवा, ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जगभूलो किउ भटके छै), २२४४२-६२(+) आदिजिन पद-धुलेवानगरमंडन केसरीया, ऋ. मूलचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (मारे तो केशरीयाबाबा), २२४४२-५९(+) आदिजिन भरतचक्रवर्ती स्तवन, मु. आशकरण, मा.गु., गा. २७, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (प्रथम जिनेसर ऋषभजिणं), २२५५३-१४(#) आदिजिनविनती स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसतीजी वरसती), २४३५४-१ आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सुण जिनवर शेव्रुजा), २२४७९-४ For Private And Personal use only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ ५३५ आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिणेसर), २२५६१-१(०), २२५९०- १४८(०), २२७४७-१(०), २२५४५-२ आदिजिन विवाहलो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ६७, पद्य, मूपू., (आदि धर्म जिणि उधर्यो), २१७४९-१ आदिजिन विवाहलो, मा.गु., ढा. ४४, गा. २४३, पद्य, मूपू., (सासनदेवीय पाय प्रणमे), २६५०६ आदिजिन सज्झाय, मु. रायचंद, रा., गा. १४, पद्य, थे., (भरत कहै करजोडि भलो), २२५१२-२५ आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज आनंद भयो मेरी माई), २१६६५ - ३ (+) आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम ), २२४९३ - १२(+), २२६३१-२, २२५११-१६(१) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( मोरा आदिजिन देव दीठे), २२४५१-२० (+), २२५९०-१६४ (+) आदिजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुम साथे नवि बोलुं), २२४४२-२८(+) आदिजिन स्तवन, श्राव, ऋषभदास, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुरति मोहन वेलडीजी), २२४५५२१, २२५११-२२(१) आदिजिन स्तवन, मु. कपूर, मा.गु., गा. ११, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (श्रीआदिश्वर साहिबा ) २२५८४- ३(५) आदिजिन स्तवन, मु. कांतिविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शेत्रुंजानो सामी), २२५१०-१०० आदिजिन स्तवन, मु. कान्हजी, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (चौदाजी कुलमें नाभिजी), २२४८४-६, २२७८६-१४(-) आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक जगगुरुजी), २२५९०-११५ (+) आदिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदीसर जिनराज), २४५९३-१३(+) आदिजिन स्तवन, ग. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु मया करी दिल), २३२७१-८ आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (मन मधुकर मोही राउ), २२४८४-३२, २२५१०-८३ आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., ( आविसर सुखकारी हो), २२४५०-२८(१) आदिजिन स्तवन, मु. जेसिंघ, मा.गु., गा. १०, वि. १८१८, पद्य, मूपू., (तुं जगजीवन तुं), २३२७१-१३ आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गिरिराज तेरे दरिसन), २२४३७-१२ आदिजिन स्तवन, टोडर, पुहिं., गा. ६, पद्य, खे, ( उठ तेरो मुख देखें), २२५९०- १०६(+) " आदिजिन स्तवन, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू, ( आज सफल दिन माहरे), २२४४२-५६ाका आदिजिन स्तवन, मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपु. ( जय जय आदि जिनंद आज ), २२५९०-१७१(+) आदिजिन स्तवन, पं. प्रेमविजय गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., ( प्रथम तिर्थंकरा ऋषभ), २२४४२-१० (+) आदिजिन स्तवन, मु. माणिक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( प्रथम जिणेसर प्राहुण ), २२४३७-३ " आदिजिन स्तवन, ऋ. मूला, मा.गु., डा. ३, गा. १७, वि. १७५९, पद्य, ओ., ( प्रथम जिणेसर स्वाम), २२४४९-६ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रीउडा जिन चरणां री), २२४९८-४३(+) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेतुंजे शिखर), २२५१०-२ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु. ( - ), २२४४७-१(३) " आदिजिन स्तवन, ऋ. रतनचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १८८२, पद्य, श्वे., (आदिजिन अरज सुणोजी), २२५१२ - २९, २२५५५ - ७९ आदिजिन स्तवन, मु. रतनचंद ऋषि, पुहिं., गा. ८, वि. १९११, पद्य, श्वे., (देखोजी आदिसर सामी), २२५५५-७५ आदिजिन स्तवन, मु, राम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु, ( आज भले दिन उगो हो), २२५९० - १६२ (+) आदिजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( सुखसंपतिकारी सुरनर), २२५९०-१ (+) आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन), २३२००-८(+) आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, वे., (नगरी विनीता भली), २२५५३ - २१(१) आदिजिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (एक बात सुणी मई होक), २२९३६-४ आदिजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (जोग न मांड्यो मै घर), २६१८७-२ आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (आविजिनेसर विनती), २२४५०-८+ ), २२४९८-२६(+) आदिजिन स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हां रे लाल भगति), २२७८८-९(#) , आदिजिन स्तवन, मु. समदविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (अरज सुनीजो जिनजी), २२४८४-५ आदिजिन स्तवन, मु. सिंहकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., ( म्हे तो उदीयापुरसुं), २२५९०-३९(+) For Private And Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ आदिजिन स्तवन, आ. सुबुद्धिसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुण साहिब हो प्रभुजी), २२४८४-१४ आदिजिन स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नाभिनंदन जगवंदन देव), २२५९०-७(+) आदिजिन स्तवन, मु. सौभाग्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (फुल गंध अक्षत अरु), २४३२१-३ आदिजिन स्तवन, मु. हंसविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आदिनाथ वांदु लाल), २२४९९-१ आदिजिन स्तवन, पुहिं., गा. १३, पद्य, मूपू., (अंस बंस का उपना सामी), २२५५३-३५(#) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदिसर अरिहंत महत), २२४८०-१२ आदिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जगपसरंत अनंतकंत गुण), २२४८८-१(+) आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नाभिनरिंदमल्हार), २२८७८-२३, २६९९०-४ आदिजिन स्तवन-९८ पुत्रोपदेशगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिण सोलमो), २२४८८-६(+) आदिजिन स्तवन-आत्मनिंदागर्भित, वा. कमलहर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ५२, पद्य, मूपू., (आदीसर पहिलो अरिहंत), २२३५७, २२८७८-३२ आदिजिन स्तवन-केसरीया, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (केसरीया जिनवर मुजरो), २२४३७-१६ आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), २२४५०-७(+), २२५९०-९०(+), २२४५५-२४, २३२७१-२३ आदिजिन स्तवन-त्रिलोकीपातसाह ऋद्धिवर्णन, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, मूपू., (भरतजी कहे सुणो मावडी), २२५६१-८(+s) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पहिलु पणमिअ देव), २२८७८-२७ आदिजिन स्तवन बृहत्-शत्रुजय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमविसयल जिणंद), २२४८८-७(+), २२५१०-३८ आदिजिन स्तवन-मोहउदयस्थानविचार गर्भित, मु. जीतविमल, मा.गु., ढा. ९, गा. ६३, वि. १८५७, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचल मंडणो), २२४०८ आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १६, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (राणपुर नमौ हियो रे), २२७८८-१९(१), २२५७५-१(६) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणो रे), २२४९८-३१(+), २२५७०-११ आदिजिन स्तवन-राणपुर, मु. कवियण, मा.गु., गा. १५, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (राणपुरे मन मोहियो रे), २२४८०-१ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिनजी आदिपुरुष), २४५९३-१४(+) आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), २२५६४-११(+), २२४७७-६, २२७८७-१२, २६८८७-११(#) आदिजिन स्तुति, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुधर्म देवलोक पहिलो), २२४७७-२१, २६८८७-२३(#) आदिजिन स्तुति, मु. प्रीति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर केरू), २२५३३-३ आदिजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तपगच्छ नायक विजयसेन), २२५१६-५ आदिजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शत्रुजयमंडण रिसह), २२५१६-६ आदिजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीऋषभ जिनवर अनंत), २२५१६-१ आदिजिन स्तुति, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कनक तिलक भाले हार), २२४८१-७(+), २२८७२-४(+-) आदिजिन स्तुति, आ. विजयसेनसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नाभिकुलगयण विभासण), २२५१६-३ आदिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, मूपू., (आदिसर पहिला नमु), २२५८०-३(+$) आदिजिन स्तुति- नवतत्त्वगर्भित, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्यने पाव), २२४७७-२६ आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विसलपुर वांदु), २२४७७-३ For Private And Personal use only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तुति-शत्रुजयमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (धप मप धोउं धोउं मादल), २२५१६-२ आदिजिन स्तुति-शत्रुजयमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शेजूंजमंडण रिसहदेव), २२५१६-४ आदिजिन स्तुति-सुलतानपुरमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुलतानपुर ऋषभजी मोहण), २२५१६-८ आदिनेमिजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशज रिसह), २२५१६-७ आध्यात्मिक गीत, मु. लब्धिविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जबलगे विषय घटा न घटी), २१२८१-३, २४६०९-२ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिया जानै मेरी सफल), २२५९०-१००(+) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पं., गा. ४, पद्य, मूपू., (देखो कुडी दुनियांदा), २२४६६-६ आध्यात्मिक पद, मु. जगतराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (कैसा ध्यान धर्या है), २२५९०-१२८(+) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहि.,गा. ४, पद्य, मूपू., (यूही जनम गमायो भेख), २२४६६-४ आध्यात्मिक पद, क. दलपतराम, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे.?, (चेत तो चेतावू तुं), २२५०८-९ आध्यात्मिक पद, क. दलपतराम, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे.?, (जाय छे जगत चाल्यु), २२५०८-८ आध्यात्मिक पद, मु.द्यानत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जीवा ते मेरी सार न), २२५४२-७ आध्यात्मिक पद, मु. भूदर, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मै तो आप रंगीली मत), २२५५५-९५ आध्यात्मिक पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (देख्या दुनियां बीचि), २२५०१-३५(+), २२५९०-१०७(+) आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (जब लगे आवे नही मन), २२५१०-१०८ आध्यात्मिक पद, मु. राम, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरिहंत देवनें ओलखाव), २२५५५-९३ आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (किसके बे चेले किसके), २२२६४-२ आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (अरज करत हूं नाथ मेरा), २२५५५-९१ आध्यात्मिक पद, पुहि., अ. १, पद्य, (तगदीर अपनी इन दिनो), २२५०८-२२ आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ५, पद्य, जै.?, (तेढी मुडि मुडि पघडी), २२५९०-११३(+) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (पंथीडा पंथ चलेगो), २२४५०-२१(+), २२४६६-५ आध्यात्मिक पद, मा.गु., पद्य, श्वे., (मन तो मेरइ वस नही), २२७८६-३(-) आध्यात्मिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोयो तुं बोहोत काल), २२५९०-८५(+) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. केसर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीउ वीनती एक छे मेरी), २६९२५-११ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भवसायर तरवा भणी), २२५१०-६४ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सिज्या भली रे संतोष), २२५९०-७१(+) आध्यात्मिक सज्झाय, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांभल सयणां साची सुण), २६९२५-६ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अणविमास्युं करइ काइ), २२५५२-१३ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनुभव सिद्ध आतम जे), २२५५२-५ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आतम अनुभव जेहनई), २२५५२-४ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आतमरामे रे मुनि रमे), २२५५२-११ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन चेतन में धरि), २२५५२-८ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चेतन तुमही आपें), २२५५२-१४ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेतना चेतनकुं), २२५५२-७ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जग सरूप चेतन संभलावइ), २२५५२-९ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जे देखं ते तुज नही), २२५५२-२ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जेहनई अनुभव आतम), २२५५२-३ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समकित तेह यथास्थित), २२५५२-१० आध्यात्मिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सम्मदीट्ठी ते यथा), २२५५२-२१ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), २२५१०-१२ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हो सुण आत्मा मत पड), २३८१९-१, २६९२५-५ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (ते गिरूआ भाई ते गिरू), २२५३५-१६ For Private And Personal use only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. सदारंग, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (एससार अथिर करी), २२५१०-६६ आध्यात्मिक सज्झाय, उपा. सुजस, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चेतन जो तुंग्यान), २२४४२-६१(+), २२५१०-६१ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मारुं माझं मकर जीवत), २६९२५-७ आध्यात्मिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, मूपू., (काया माया जगतमें), २४३३८-२(5) आध्यात्मिक सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (तुंही तुंही याद आवै), २२५५५-१०० आध्यात्मिक सज्झाय, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (पीले रे बंदे हो मत), २२५५५-१५ आध्यात्मिक सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (मानुं ज्यारे वेदमत), २२५१३-१९ आध्यात्मिक सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (हृदयमां रे महामोह की), २२५१३-२ आध्यात्मिक होरी, मु. चतुरकुशल, पुहिं., पद. ३, पद्य, मूपू., (फागुन में फाग रमो), २२५७०-४० आध्यात्मिक होरी, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (सुध ग्यानीजी फागुणमे), २२५५५-९८ आध्यात्मिक होरी, रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (होरी खेलण दे दिन), २२५५६-१६(+), २२५५५-३० आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ७८, पद्य, मूपू., (क्या सोवेउठि जाग), २५२४१(६) आनंदघन पद संग्रह, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. १०८, पद्य, मूपू., (क्या सोवे उठ जाग), २४१७२, २५२२५, २५४१७-२ आनंदश्रावक संधि, पा. श्रीसार, मा.गु., ढा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनवर चरण), २१११०, २१२४०, २२१०८, २३०१९, २६५४७, २६७३६, २३६३९(#), २१२४३(६), २२३०५-१(६) आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय , मा.गु., गा. ११, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (समरी श्रुतदेवी सारदा), २२८५८-५ आर्द्रकुमार चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (संतिकरण संतीसरु), २२१५२-१($) आलोयणविनती स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५६, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (आज अनंता भवतणां कीधा), २१०५८-२, २६४४० आलोयणा विचार, मु. चंद्रभाण, मा.गु., पद्य, श्वे., (सिद्ध श्रीपरमातमा), २२०८० आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (अतीत काल अठार पाप), २५६१८ आषाढाभूति चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ६७, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवदन निवासिनी), २६०२५-३, २६५८०-२ आषाढाभूति चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ७, गा. ४१४, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (सासणनायक सुरवरूं वंद), २२०३४-२, २११५८-२(६), २३५४३($) आषाढाभूति पंचढालिया, ऋ. रायचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (दरसण परिसोह बावीसमो), २४७०३-२ आषाढाभूति सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ५, गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी हिइ), २२५११-४(#) आसीकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (आसिक मोह्यो तुझ रूप), २२५१७-२७ आहारदोषछत्तीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३६, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (त्रिकरण सुद्ध नमु), २२८७८-२५ इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., ढा. ४, वि. १७४७, पद्य, मूपू., (परम दयाल दयाकरु आसा), २२४४९-३, २५५२५ इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धदायक सदा), २१०५७-१, २१७०२, २२५२८-२, २३६९३ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीए), २२५९०-३२(+), २२४५८-५, २२५११-१०(#) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नामे ईलापुत्र जाणीये), २२५५५-२० इलापुत्र सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीये), २२८७१-३६ उदयस्वामित्व यंत्र, अज्ञा., को., मूपू., (--), २२९६६(+) उदाइराजा रास, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., गा. ३४२, वि. १६४०, पद्य, मूपू., (प्रथमनाथ दाता प्रथम), २५४७०-१ उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहि., गा. ३०, पद्य, मूपू., (आतमराम सयाने ते), २२८७८-१५ उपधान सज्झाय, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुणो भविका उपधान), २२४५८-२ उपमितिभवप्रपंचा रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १२७, गा. २९७४, वि. १७४५, पद्य, म्पू., (वाग्देवी वरदाइनी), २१५४० उपशम सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (सारदमात नमु सिरनामी), २२५९०-१५१(+) For Private And Personal use only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ उपशम सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (भयभंजण रंजण जगदेव), २६९९०-१० ऋतुवंती स्त्री विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (आ जगतमा समस्त), २२५८२-१(३) ऋतुवंती स्त्री सज्झाय, मु. खीमचंद, मा.गु., गा. ७०, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (ऋतुवंती नारीओं परिहर), २२५८२-२ ऋतुवंती स्त्री सज्झाय, मु. ब्रह्मशांतिदास, मा.गु., गा. १८, पद्य, दि., (वीरजिणेश्वर पाय), २२५८२-३ ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (तिण काले तिण समे), २२५०१-४४(+) ऋषभाननजिन स्तवन, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभानन जिनराजीयो), २२५९०-२५ ( का एकल का अधिकार, मा.गु., ढा. १०, पद्य, मूपु. ( आरंभजीवी ग्रिसती), २५६६० एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपु., (शासननायक वीरजी प्रभु), २२४५०-४६(+), २२५३९ - ३, २२५७० - १९ एकादशी तिथि चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरजी प्रभु), २२५०६ - १ एकादशीतिथि सज्झाय, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू. (आज एकादसी रे नणवल), २२४५०-६९ (+), २२४५५- १७ एकादशीपर्व स्तवन, मु. न्वायसागर, मा.गु., ढा. २, पद्य, म्पू., (पहेले कोटे महाजस), २२५६९-८ (+) " " एकादशीपर्व स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८१८, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर नत चरण), २२८४३ औपदेशिक कवित, श्राव. बनारसीदास, पुहिं. गा. १, पद्य, दि., (जैनवानी सुनहिजे जीव) २२५८०-२१ (५) औपदेशिक गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (परदेसी मीत न करीयै), २२४९७-४ औपदेशिक गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू., (कहेज्यो पंडित ए), २२५०२ - ९(१) औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (जीउ वखत लिख्या सुख), २२५१०-२९ औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुरख नर काहिकुं करत), २२५१०-१८ औपदेशिक गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीवडा जाणे जिनधरम), २२५०२-८(+) औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जीव प्रति काया कहइं), २२५०२-७(+) औपदेशिक गीत, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (हाथी होय तो पकड), २२५५५-५६ " औपदेशिक जकडी, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (जीव मिथ्यात उदै चिरु), २२८५६-७ औपदेशिक जकडी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अरिहंत चरणे चित्त), २२८८९-२ औपदेशिक दूहा, मा.गु., गा. ३, पद्य, वे., (भवसावर बहुदुख जल जनम), २२५३३-२ " 19 औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ए जिनके पइया लाग रे), २२४४२-३० (+), २३२७१-२० औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, पद्य, म्पू., (जिनचरणे चित ल्याव मन), २२५९०-९८(+) औपदेशिक पद, मु. आनंदराम पुहिं. पद ३, पद्य, भूपू (छोटीसी जान जरासा), २३२७१-२९ औपदेशिक पद, कबीरदास संत, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., ( को नही तन राखणहारो), २२५३५-८ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं, गा, ६, पद्य, वै., (भोली है मालणी तुं), २२५९०-१३१(*) औपदेशिक पद, चरणदास, पुहिं., गा. ८, पद्य, वै., (पिले रे अब तुं हो), २२५५५-२३ औपदेशिक पद, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दया धर्म जग साचो), २२५०१-३९(+) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (पापमांडी रात दिवस), २२५५५-६७ औपदेशिक पद, मु. जिनपद्म, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चेतन जिन ध्यान धरम), २६१३६-३ औपदेशिक पद, मु. जिनपद्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मान तज आत्म दिल हंदी), २६१३६-२ औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( कहा रे अग्यानी जीवकु), २२४९७ - २, २३२७१ - २६ औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, मा.गु., गा. ४, पद्य, थे., (जगत में कोण किस को), २२४६६-७ औपदेशिक पद, मु. तिलोकसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे, (प्रात भजो भगवंत कुं), २२५९० - १२९(+) औपदेशिक पद, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (आपे अवगु पूर पक्ष), २४४६६- ३(०) औपदेशिक पद, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मृपू., ( राव रंक को एक), २४४६६-४(+) औपदेशिक पद, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., ( कर्म शत्रु मारो काइ), २२५१२-६० औपदेशिक पद, क. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परम अध्यात्म ने लखे), २६२९७-२ औपदेशिक पद, मु. धानत, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिननाम सुमर मनवा वरे), २२५९०-११२(+) For Private And Personal Use Only ५३९ Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ औपदेशिक पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (देख्या आतम के कोई), २२५९०-९७(+) औपदेशिक पद, नांएणदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, जै.?, (परदेसीसुं प्रीत न), २२५९०-११६(+) औपदेशिक पद, मु. नाथुराम, पुहिं., पद. ४, पद्य, श्वे., (झूठा जगत संसार दया), २२५५५-१०३ औपदेशिक पद, मु. पेम, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (ममत मत कीज्यो राज), २२५५५-९२ औपदेशिक पद, श्राव. फतेमल, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जिनंद का ध्यान धरो), २२५०८-११ औपदेशिक पद, श्राव. फतेमल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (धरम का काम हि नित), २२५०८-१२ औपदेशिक पद, भरतरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, जै.?, (बाग बगीचा जोवण जावै), २२५०१-४१(+) औपदेशिक पद, भवानी, मा.गु., गा.७, पद्य, वै., (शुरहया जगत पर राची), २२५०८-७ औपदेशिक पद, मु. भावविजय, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (भला बूरा तो मे तेरा), २२४३७-४ औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मारै गुरां दीनो माने), २२४६६-३ औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मानव को भव पायके मत), २२५०१-११(+) औपदेशिक पद, मु. राजसमुद्र, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कउण धरम कौ मरम लहैरी), २२५९०-१०१(+) औपदेशिक पद, मु. राजसमुद्र, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (निकै नाथनै कवहु न), २२४९७-३ औपदेशिक पद, रामकिसन, पुहि., गा. ५, पद्य, वै., (मैहबूब तेरा तुझमै), २१९१०-३ औपदेशिक पद, मु. रामकृष्ण शिष्य, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (करतलये कबु करते की), २२५१२-६१ औपदेशिक पद, मु. रुपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मनवा विसर मत जायरी), २२४४२-५६(+) औपदेशिक पद, मु. रुपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरि करे तो तेरा जनम), २२५१२-६४ औपदेशिक पद, मु. रुपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (समझ समझ जिया ग्यान), २२४४२-२५(+) औपदेशिक पद, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (अब कहा सोच करेसे), २२४३८-४(+) औपदेशिक पद, श्राव. हीराचंद अमुलक, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (तु तो ए नर भवनीफल), २२५०८-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (अछै नीके भोजन चहिये), २२५५५-७ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज चेत चेत प्यारे), २२५१०-३३ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (आपन जतन बीछाना जब), २२५०८-१९ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (आया जमाना खोटा खोटा), २२५०८-१ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (उहां से तौ आयो कोल), २२५५५-९४ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (काया का गढ़ कोट बणाया), २२५१२-५२, २२५१२-९० औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कायापिंड काचो राज), २२५५६-२७(+) औपदेशिक पद, उ., पद. १, पद्य, (क्या खीजां आइ चमन मे), २२५०८-२३ औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, म्पू., (ग्यानी ऐसो ग्यान), २२४६८-१९($) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (घेरी घेरी नदीया हो), २२५०८-५ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (चेतन जब तुंग्यान), २२४३७-७ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (छांडो मन चपलाइ), २२५१२-६२ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जब लग तेल दीवे में), २२५५५-५२ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (जागि जागिरे नगइ भोर), २२५१०-३२ औपदेशिक पद, पुहि., गा.५, पद्य, श्वे., (जिणराज चरण का ल्यो), २२५१२-७९ औपदेशिक पद, मा.गु., पद्य, श्वे., (जीवते पितर कुं मारै), २२५६३-९(+$) औपदेशिक पद, म., गा. ५, पद्य, वै., (झाले रामराजे काये), २२५०८-१७ औपदेशिक पद, उ., पद. १, पद्य, (ताब उसके दिखने कीन), २२५०८-२१ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (ते दिन कैसा कीनां तु), २२५५५-५० औपदेशिक पद, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (थाने आइ अनादि नींद), २२५५५-४७ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (दासी मेरी खरी रे), २२५५५-५७ औपदेशिक पद, उ., पद. १, पद्य, (दिखलाये दाग दिलने), २२५०८-२० For Private And Personal use only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५४१ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (देखी तोरी राजधानी), २२५०८-१६ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (भमरा भुजग नर डसकर), २२०२२-३ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (मत रहना भजन विन एक), २२५५५-४५ औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (विषयवस जनम गयो रे), २२५५७-७(+) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (समायक पूजा नही कीनी), २२५१२-५८ औपदेशिक पद, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (साधो भाई अब हम कीनी), २२५१२-२८ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (हाहाकार करत), २२५१२-६३ औपदेशिक पद- ४ वर्ण, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (जो निहचे मारग गहे), २२४६७-१ औपदेशिक पद-कायाउपदेश, मु. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (चरखा भया पुराना रे), २२५१२-८९ औपदेशिक पद-जूठीप्रीत, मु. जिनतुलसी, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (देसडो विराणोरे अपनु), २२५१२-७४ औपदेशिक पद-निंदाविषयक, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (निंद्या मारी कोइ करे), २२५०१-१०(+) औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (निंदरडी वेरण हुइ), २२५९०-८(+), २२५३९-६ औपदेशिक बारमासो, मु. मोतीराम, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (चेत प्रीतम को देख), २२५५५-२४ औपदेशिक बारमासो, रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (अनंत चौवीसी पाय नमु), २१६६७-३ औपदेशिक बारमासो, पुहिं., गा. १४, पद्य, श्वे., (चैत कहे चितमांहि), २२५५५-६६ औपदेशिक लावणी, मु. अखेमल, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (खबर नही आ जगमे पल), २२४४८-४(+), २२५१२-४९, २२५५५-३४ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (कुमत कलेसण नार लगी), २२५५७-१८(+) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (तुम तजीय कर राजुल), २६०२७-१(+), २२५१२-८४ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम भजो निरंजन नाम), २२५५६-१७(+) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (लाभ नहि लियो जिणंद), २२५१२-३५ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (सुकृत की बात तेरे हा), २२५५६-१८(+) औपदेशिक लावणी, मु. जीवणदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बांधी कमर ने हंस), २२५०८-१० औपदेशिक लावणी, मु. देवचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (चतुर नर मनकुंरे समज), २२५१२-४८ औपदेशिक व्याख्यान, मा.गु., गद्य, श्वे., (णमो अरिहंताणं णमो), २२६८७ ।। औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हुं तो प्रणमुं सदगुर), २२८७१-२६ औपदेशिक सज्झाय, मु. आसो, पुहि., गा. १०, पद्य, श्वे., (सरसत सामण विनवू), २२४४२-५२(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भूल्यो मन भमरा), २२५७०-३४ औपदेशिक सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एहनी गठ एह ज जाणो रे), २२५०३-१०(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. कमलकीर्ति, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (करुंजी कसीदो ग्यानको), २२५१२-९१ औपदेशिक सज्झाय, मु. कस्तूर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पदमणी चंचल रे धी), २२५४२-९ औपदेशिक सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (आतम चेतो चतुराई), २२४३७-५ औपदेशिक सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (परमहंस कुं चेतना रे), २२४८४-२६, २२५१२-६८ औपदेशिक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (साध कहै तूं सांभल), २२५१२-२३ औपदेशिक सज्झाय, चुनी, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (तुम तजो रे मना विषया), २२५५५-४९ औपदेशिक सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (आउखु तुट्याने सांधो), २२५९०-३०(+), २२१०४-२, २२५५५-६५ औपदेशिक सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सिखण सिखण मै समझो आप), २२५१२-११ औपदेशिक सज्झाय, जिनदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तने संसारी सुख किम), २२८७१-१७ औपदेशिक सज्झाय, मु. जीव, पुहिं., गा. १०, वि. १९३८, पद्य, श्वे., (अपरे पद कुं समझरे), २२५५५-१२ औपदेशिक सज्झाय, मु. दयासागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुणी मुज प्राणी सीख), २२५१२-८३ औपदेशिक सज्झाय, मु. द्यानत, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (भाई कौन कहै घर मेरा), २२५४२-५ For Private And Personal use only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (तु तोड करम जंजीर), २२५५५-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहि., गा.७, पद्य, श्वे., (दगा कोइ कीनसे नहीं), २२५५५-८९ औपदेशिक सज्झाय, मु. धर्मसी, पुहिं., गा. १५, पद्य, मूपू., (चेतन चेतरे चलि मां), २२४५६-६ औपदेशिक सज्झाय, मु. भुधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (त्रिभुवनगुरु स्वामी), २२४६४-७ औपदेशिक सज्झाय, मु. भुधरदास ऋषि, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (अहो जगत गुर एक सुणिय), २२५१२-९३ औपदेशिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आज का लाहा लीजीइ), २२५५२-२० औपदेशिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आदित जाइने आपणी), २२५५२-१७ औपदेशिक सज्झाय, ग. मणिचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (कोइ कीनहीकोउ काज न), २२५५२-६ औपदेशिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चेतन जब तुं ज्ञान), २२५५२-१२ औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जो चेते तो चेतजे जो), २२५५२-१५ औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मिच्छत्व कहिजे), २२५५२-१९ औपदेशिक सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शिवपुर वासना सुख), २२५५२-१६ औपदेशिक सज्झाय, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (शुक्लपक्ष पडवेथी), २२५५२-१८ औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै.?, (भूलो ज्ञान भमरा काई), २२५९०-२८(+), २२४५५-१९, २२४५८-३, २२५२४-४, २३९२७-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. माणकचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (जोवन धन पावनडा दिन), २२५०८-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वाडी फूली अति भली), २५४१५-२(+) औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (चड्या पड्यानो अंतर), २६१८७-३ औपदेशिक सज्झाय , मु. रतनचंद, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (इण कालरो भरोसो भाई), २२५१२-६९ औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (थारी फूलसीं देह पलक), २२५५५-८६, २२८७१-३० औपदेशिक सज्झाय, ऋ. रतनचंद, पुहिं., गा. ८, पद्य, स्था., (हां रे ए जग जाल सुपन), २२५५५-६० औपदेशिक सज्झाय, मु. रतन, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (सुन जीवलडा मानवभव), २२५५५-७२ औपदेशिक सज्झाय, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ए काया अरु कामणी), २२५१२-७३ औपदेशिक सज्झाय, मु. रामकिसन, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (महबूब तेरा तुझमें), २२५५५-९० औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (प्यारो मोहनगारो राज), २२५१२-७ औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (धर्म पावै तो कोइ), २२५१२-५६ औपदेशिक सज्झाय, क. रूपचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जिणवर इम उपदिसै आगै), २६३५५-४(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जीव माहरु माहरु), २२४४२-३५(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (जबरा होइ जगतमै डोलै), २२५०१-५(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (भजि भजि भगवंत भविक), २२५१०-९५ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), २२४५०-७७(+), २२५१०-९२, २४३२१-६ औपदेशिक सज्झाय, मु. वखता, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (समझ मन आयु जावै जिम), २२५५५-८४ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजे चरण), २३१५४-१, २५०३०-४, २५०३०-३(s) औपदेशिक सज्झाय, वा. श्रीकरण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (समवसरण सिहासनेजी वीर), २२५९०-१४(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया पुर पाटण मोकलौ), २२५३५-९ औपदेशिक सज्झाय, मु. साधुजी ऋषि, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (आउखो टुटाने साधो), २२५१२-७६ औपदेशिक सज्झाय, क. सुंदर, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (भरमति भरमति संसार), २२५५६-१९(+), २२५२८-६ औपदेशिक सज्झाय, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (अपने पद कू छांड रे), २२५५५-१३ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (आय तलवदार छोडो नगरी), २२५१२-७८, २२५५५-९९ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (इत्तर होइ ते आप वखाण), २२५०५-७ For Private And Personal use only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ औपदेशिक सज्झाब, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (उंडोजी अर्थ विचारीये), २२५५७-१९११ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (एजी कामकीरत का वनां), २२५५५-७७ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ८, पद्य, म्पू., (कमर कुं मोड़ कर चलते), २२५५५-४६ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ११, पद्य, भूपू., (करम बली रे भाई), २२५५५-९६ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., (काया तुं चलि संग), २२५४२-६ औपदेशिक सज्झाव, मा.गु., गा. ४, पद्य, खे, (काया नारी निज सीलें), २२५५५-१४ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (गुरू का कह्या मान ले ), २२५१२-९५ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (चली जा चली जा रे ), २२५१२-४५ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., डा. २, पद्य, भूपू., (चार गतमे भटकता ), २१६६७-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चोरासीलाख जुंनमे रे), २२५७० - २६ औपदेशिक सज्झाब, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे. (देसतो विराना अपना ), २२५५५-२५ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १४, पद्य, वे, (धर ध्यान भगवान का), २२५१२-४४ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (धर्म पावे तो कोई), २२५५५-७३ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ७, पद्य, खे, औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १५, पद्य, मृपू., औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, वे, औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपु. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुखडा क्या देखे दरपन), २२५०१ -२३(+), २२५५५-८८ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मृपू. (रे जीव भ्रमवश तु), २२५१२-१०२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (लखचोरासी तुं भम्यो), २२४८४-१८ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपु. ( वैद्य एक पडत अतिभारी), २२४८४-२८ औपदेशिक सज्झाब, मा.गु., गा. ११, पद्य, वे., (सरसति सामणी रे हु), २२५१२-९८ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (साहब सब कुछ देह देणा), २२५१२-९४ औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, वे., (हाकमने भेजा फरमानां), २२५५५-२९ (पांची तो० काया गइ), २२५५५-१०२ (पापपंथ परहर मोक्षपंथ), २२५०१-३(+) (प्राणी चाल्यो परणवा), २२५०१-३६(+) प्रीतम लोग मित्र सुत), २२४८४-२९ (मनुष्य जन्म मिल्यो ), २२४६४-८ ( Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय- अधिरसंसार, मु. न्यायविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अधीर संसार रे जीवडा), २३४६७-२ औपदेशिक सज्झाय-आत्मशिक्षा, चेतन, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (अकल सरूपी आतमा), २४३१८-३ औपदेशिक सज्झाय काया, पुहिं, गा. ७, पद्य, मूपु., (कायारी तुं अब चल संग), २२५५५-४० औपदेशिक सज्झाय- कुव्यसन, पुहिं., गा. ५, पद्य, थे., (तजो रे जीव साचो तो), २२५५५-८५ ५४३ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधोपरि, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्रोध न करिये भोला), २२५१०-७५, २४३२१-७ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पा. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), २२५७१ - १, २५१५० औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, मु. अमरचंद, मा.गु., गा. १९, पद्य, वे., (जीभडली सुणि बापडली), २२५९०-१६(+) औपदेशिक सज्झाय- ज्योतिष त्याग, मा.गु., पद्य, वे., (चाल्या लेई गुरु आदेश), २२५०१-१४१०) औपदेशिक सज्झाय-तृष्णापरिहार, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( काम क्रोध मद मछर), २२५९० - २४(+) औपदेशिक सज्झाय - दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीयाजी), २२४९८ - ८(+), २२५५७-२० (+), २२५९०-२२ (+) For Private And Personal Use Only औपदेशिक सज्झाय-नारी, मा.गु., गा. ११, पद्य, वे., (नारि नहिं कोई नागणी), २२५१२-२० औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहिं., गा. १७, पद्य, वे., (मुरख के मन भावे नहीं), २२५५६-३ (+), २२८७१-१४ औपदेशिक सज्झाय-नारीत्याग, मु. कुसालचंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, म्पू., (चेत रे प्राणीया कहै), २२५०१-२० (+) औपदेशिक सज्झाय - निंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (निंदा म करजो कोईनी), २२४५० - ७८ (+) औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( जीव वारु छं मोरा), २२५९०-१८(+), २२४५५-११, २२५१०- ७९ Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ औपदेशिक सज्झाय-परस्त्री त्याग, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नर चतुर सुजाण परनारी), २२४५०-७२(+) औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), २२४५०-८०(+), २२४५१-२७(+), २२५९०-१६१(+), २५००९-१४(+), २३२७१-२८ औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (बुढो हलवे हलवे चाले), २२५०१-७(+) औपदेशिक सज्झाय-मानोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अभिमान न करस्यो कोई), २२५१०-७६ औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (लोभ न करीये प्राणीया), २२४५०-७९(+), २२५१०-७८, २३२७१-९ औपदेशिक सज्झाय-शीयलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु.,गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम शिखामण कही), २२५०३-२३(+) औपदेशिक सज्झाय-षट्दर्शन प्रबोध, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (ओरन से रंग न्यारा), २२४५९-९०) औपदेशिक सवैया, केशवलाल, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., (रोगी को इलाज कीजे), २२५१३-२१ औपदेशिक सवैया, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (छ वांकडी मुछवाला), २२५१३-४६ औपदेशिक सवैया, क. गिरधर, पुहि., पद. १, पद्य, वै., (केसर की क्यारी करूं), २२५१३-१२ औपदेशिक सवैया, मु. जिनदास, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (मगन हंस दील बीच नीच), २२५१३-१३ औपदेशिक सवैया, क. दलपतराम, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (खारा पाणी तणो प्राणी), २२५१३-१८ औपदेशिक सवैया, दलपतराम, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (तारो वांक नही एमां), २२५१३-२० औपदेशिक सवैया, उपा. धर्मसी, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरु उपदेश), २२४५६-१ औपदेशिक सवैया, फकीर दरस, मा.गु., पद. १, पद्य, वै., (साइ दिन संसार विचार), २२५१३-४२ औपदेशिक सवैया, मु. रामचंद, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (बंदी ज्यु संसारीनर), २२५१३-४५ औपदेशिक सवैया, मु. लालचंद, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (नना नगन होयने आयो), २२५१३-१ औपदेशिक सवैया, मु. हर्षगीर, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (जगत तणाय ते तो), २२५१३-४८ औपदेशिक सवैया, मु. हर्षगीर, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (जगतनी टाढने मटावा तु), २२५१३-४७ औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., (अंधे कुं बेठके), २२५१३-३५ औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (आवती वखत में आश्रव), २२५१३-३४ औपदेशिक सवैया, पुहि., पद. १, पद्य, वै., (कुप भरे और वाव भरे), २२५१३-२९ औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (गीरी ओर छुवारा शेव), २२५१३-२४ औपदेशिक सवैया, पुहि., पद. १, पद्य, वै., (जीन कुं हुवा कपखान), २२५१३-१६ औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., (जुटा को वचन कहां), २२५१३-२२ औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (जेने पास फोज बहु), २२५१३-२३ औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (जैसे काच के महेल बीच), २२५१३-४ औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (ठठा ए ठाठ निकम्मा), २२५१३-६ औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, (तकरीर कर लढते मीया), २२५१३-१७ औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (तेरा हैं सो कहीं नही), २२५१३-३ औपदेशिक सवैया, हिं., पद. १, पद्य, वै., (दान करो गरीबो से रे), २२५१३-१५ औपदेशिक सवैया, हिं., पद. १, पद्य, वै., (दिल तो तुम कुं देते), २२५१३-१४ औपदेशिक सवैया *, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (देह अचेतन प्रेत धरी), २२५१३-३६($) औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (नंना नाता नीसपद इतने), २२५१३-५ औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, वै., (मनोहर नगर कोट कांगरा), २२५१३-३९ औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, वै., (वार वार में पुकार कर), २२५१३-४१ औपदेशिक सवैया, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (सम्यक्ज्ञान नही उर), २२८८७-२ औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (सीत सहे ताप सहे आप), २२५१३-७ औपदेशिक होरी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (जानत है जिनराज सकल), २२४६२-८(+$) For Private And Personal use only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५४५ औपेदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (मत ताक हो नार बिराणी), २२४४९-१ औषध संग्रह , मा.गु., गद्य, वै., (--), २२७४७-२(+), २१९५४-३, २२१७१-२, २२३०७-१, २२६५७-१, २४४०७-१, २२५११-८(#) ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कका करमनी वात करी), २२५२६-६ ककाबावनी, मा.गु., पद्य, श्वे., (कका करम से आठ जीवने), २५१७५ कथा संग्रह-इंद्रियादिविषयक, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ चक्षुरिंद्रिय उपर), २१४९४($) कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहिं., गा. २९, पद्य, श्वे., (महिला में बेठी राणी), २२००९-१, २२५५५-६८ कम्मपयडीस्तवन, उपा. तत्त्वप्रधान गणि, मा.गु., ढा. २, गा. २७, वि. १९४१, पद्य, मूपू., (सेना माता जितारि), २४२३५-३(+) कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), २१८०२, २६३८६, २५४७६(६) कयवन्ना चौपाई, आ. पद्मसुंदरसूरि, मा.गु., गा. ३९२, वि. १५६३, पद्य, मूपू., (पहिलउ प्रणमी पयकमल), २६५७८ कयवन्ना चौपाई-दानविषये, आ. पद्मसागरसूरि, मा.गु., गा. ३९२, पद्य, मूपू., (--), २३३६४(#$) करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपानगरी अतिभली हु), २२५९०-४६(+), २२४५५-९, २३८१९-२ कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी छूटे नही), २६४०९-२(+), २२५२८-३, २२५७१-२ कर्मछत्रीसी, मा.गु., गा. ३७, पद्य, श्वे., (परम निरंजन परमगुरु), २२५६३-३(+), २२४६७-३ कर्मप्रकृति विचार *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), २२३५१-१(६) कर्मप्रकृति विधान, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. १७५, वि. १७००, पद्य, दि., (परमशंकर परमभगवान परम), २२४६७-९ कर्मप्रकृति होरी, चेतन, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (कर्म महाबलवान होरी), २४३१७-३ कर्मबत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (करम तणी गति अलख), २२८७८-१३ कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देव दाणव तीर्थंकर), २२४४२-२६(+), २२४९८-२(+), २२५९०-५४(+), २४७५१-१(+), २२४५८-८, २२८७१-२१ कर्म सज्झाय, मु. दान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुखदुःख सरज्यां पामी), २२४५८-४ कर्म सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (कर्म गति काहसुन), २२५१२-५७ कर्महींडोल सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कर्म हींडोल नामाई), २२७८६-१०-) कलावतीसती चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७३५, पद्य, मूपू., (कविजननी करजोडिनइ), २२१५२-२ कलावतीसती चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १६, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (जुगमंद्र जिन जगतगुरु), २२६२२(-$) कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (हलाहल कलजुग चल आयो), २२८७१-३३ कवित संग्रह, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, (आसराज पोरवार तणै कर), २२४६२-३(+), २२५६२-७(+$), २४०२६-२, २५४०८-२ कवित्त संग्रह, क. गद्द, मा.गु., पद्य, जै.?, (पंडित वस्यौ कुं वास), २३२४६-१ काउसग्ग १९ दोष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सकल देव समरी अरिहंत), २२५१०-९३, २२८७८-८ कागहंस कथा, मु. कान्हजी, मा.गु., गा. ४९, वि. १६९२, पद्य, श्वे., (वायस आयौ उडतो से), २४६७५-३(+) कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुंसदा), २१८६३(+5), २२१०४-१ कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, श्वे., (एक दिन इंद्रे), २२४६२-७(+), २२६६२-२(+), २२५५५-१९ कामविनोद चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सरसती), २२१८३ कायाअनित्यता सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुण बहीनी प्रीउडो), २२५९०-६४(+) काया गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (नणंद रेबे हुइ घाववी), २२५३५-६ कालचक्रवर्णन सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (जिन गुरु वाणीय करी), २४८१५(६) कालिकाचार्य कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (कालिकाचार्य तीन हुआ), २३३८९ For Private And Personal use only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य, मा.गु., पद्य, ?, (--), २२५६३-६(+), २४४६६-२(+), २६०७८-४(+), २२४३७-८, २२४८४-८, २२५१७-३ कुंडलियाबावनी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ५७, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (ॐनमो कहि आदिथी अक्षर), २२५१७-२, २५६९७-२ कुंथुजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुंथु जिणेसर सामी रे), २२५११-२३(2) कुंथुजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुर नरेशर गजपुर), २२५१२-३ कुंथुजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुज अरज सुणो मुज), २२५१०-४ कुगुरुपच्चीसी, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सद्गुरु केरि परिक्षा), २२८७१-३ कुगुरुबत्रीसी, मु. भीम, रा., गा. ३१, पद्य, श्वे., (भांति भांति की टोपी), २२५६३-७(+) कुमति सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (अबके जोग मील्यो छे), २२८७१-६ कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४९४९, ग्रं. ५८००, वि. १६७०, पद्य, मूपू., (सकल सिद्ध सुपरि नमु), २१३५३(+$), २५९६०(+#) कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १२९, गा. २८७६, ग्रं. ४१६०, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति भगवति नमुं), २५२५७(+), २२६७५($) कुमारपाल रास, मु. हीरकुशल, मा.गु., गा. ८०४, वि. १६४०, पद्य, मूपू., (पयपंकय जस प्रणमता), २१६६१(#) कुरगडुमुनि रास, मा.गु., पद्य, श्वे., (......पहलो खरो क्रोध), २४७६६(#$) कुरगडुमुनि सज्झाय, मु. धन्यविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (उपसम आणोजी उपसम आणो), २६४४२-२(+) कुलध्वज चौपाई-शीलविषये, मु. उदयसमुद्र, मा.गु., ढा. २९, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवी समरु सदा), २६६६९(+) कृष्णभक्ति पद, क. मोहन, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (छोरो रे पाण घटवा), २२५८८-३ कृष्णभक्ति पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (तोरो मोरा नामसुं), २२५८८-४ कृष्णरुक्मणी वेलि, रा. पृथ्वीराज राठोड , मा.गु., गा. ३०४, वि. १६३७, पद्य, वै., (परमेसर प्रणमि), २२१२८-१(+), २५४४१ (२) कृष्णरुक्मणी वेलि-टबार्थ, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६३८, गद्य, मूपू., वै., (श्रीहर्षसारसद्गुरु), २२१२८-१(+), २५४४१ केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीअरिहंत), २१०७२, २६५४२ केशी गौतमगणधर गहुंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सावथी उद्यानमा रे), २२४६८-१० केशी गौतमगणधर संवाद सज्झाय, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सीस जिणेसरपासना केशी), २६९२५-८ केशी गौतम स्वाध्याय, मु. रुपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ए दोय गणधर प्रणमीये), २२४४२-६६(+) कौरव-पांडव पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, (मानो वचन हमारो हो), २२४६२-२(+) क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), २४७५१-२(+) क्षमासूरि सलोको, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (सरसति सामणी पाए हु), २२२८२ क्षुधा सज्झाय, मु. शिवलाल, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (वेदना क्षुधा की भारी), २२५०१-२५(+) खंधकमुनि चौढालीयो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (सावत्थी नगरी सोहामणी), २१९६६ खंधकमुनि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, पद्य, मूपू., (नमो नमो खंधक महामुनि), २२५७०-३०, २२४७४-४(s) खरतरगच्छीय गीत, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (खेध आगा लगौ बिहु), २२५१७-१३ खापराचोर चौपाई, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (सरसति माता समरिए नित), २२८३२-२ खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं अरिहंतने), २१२८३-४(5) खेतलावीर सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, वै., (चामुंडासुत नमोय), २२४४४-५ गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., खं. ४, गा. ४३४, वि. १५५६, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), २५४३८(+), २५४८३, २५४९२ गजसिंह रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., ढा. २२, वि. १८२८, पद्य, मूपू., (प्रणमुं परमेश्वर), २२०४६(+) For Private And Personal use only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., डा. ३०, गा. ५००, वि. १६९९, पद्य, भूपू (नेमिसर जिनवरतणा चरण), "" २२०४४, २३४०० गजसुकुमाल चौपाई, मा.गु., ढा. १८, पद्य, मूपू., (भदलपुर नामे नगर तिहा), २३४९७ (+), २५७७२ गजसुकुमाल भास, मु. लींबो, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (द्वारामती नवरी समोसर), २२५३५-७ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (द्वारिकानगरी अति भली), २२५९०-३४०) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, म्पू., (वाणी श्रीजिनराज तणी) २२५७७-३ २२८७१-१० गजसुकुमाल रास, मु. कानजी, मा.गु., ढा. १४, वि. १७०३, पद्य, श्वे., (भदलपुर पधारीया बावीस), २६२८३ () गजसुकुमाल रास, मा.गु., ढा. १८, पद्य, वे., (तिन काले तिनही समे०), २२०७४ (*) गजसुकुमाल सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू, (प्रभू प्रणमी घरि ), २२५०५-५ गजसुकुमाल सज्झाच, मु. चौथमल, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, थे., (गजसुखमाल देवकीनंदन), २२५५७-११(०) गजसुकुमाल सज्झाय, मु. जीव, मा.गु., गा. १०, वि. १९३५, पद्य, खे, (द्वारकानगर उद्यानमें), २२५५५-८ गजसुकुमाल सज्झाय, मु. रतन, मा.गु., गा. १३, पद्य, थे., (श्रीजिन आया हो सोरठ), २२५५५ ६९ गजसुकुमाल सज्झाय, मु. रत्नचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, वे., (देवकीनंद शिरोमणि), २२५४०-३(+) गजसुकुमाल सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., (नयरी द्वारामती जाणिव ), २२५०२ - १(+5) गजसुकुमाल सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), २२५१२-१०४ गजसुकुमाल सज्झाब, मा.गु., गा. ९, वि. १८५९, पद्य, वे., (गजसुकुमाल देवकीना), २२५०८-१४ " गणधर संवाद, मा.गु., गद्य, भूपू., (श्रीभगवंतने केवल ), २१४४०(०) गणपती मंत्र संग्रह, मा.गु., गद्य, वै., (ॐ नमो श्रीगणपति), २२५४४-२ " गणेशजी द्रुपद, तानसेन, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (जे गणेश जे गणेश जे), २३२७१-३० गतिआगति स्तवन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (चौवीस दंडग उपरे रे), २२८७८-३० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुण), २२४०७ गुणमाला रास, मु. विनयचंद, मा.गु., डा. ७, वि. १८८५, पद्य, म्पू, (सरस्वती माता आदे), २५६२० गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., अ. ४, वि. १५७२, पद्य, मूपू., (शशिकरनिकर समुज्वल), २२२४८ गुणसागरसूरि गहुंली, मु. पद्म, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., (सोल वरसें संयम लिओ), २२४६८-१ गर्भवेलि, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (ब्रह्माणी वर आलि मझ), २६०७६ गिरनारतीर्थोद्धार रास, पंडित नयसुंदर, मा.गु., डा. १३, गा. १८४, पद्य, मूपू., (सयल बासव सबल वासव), २५४११-३(+) गुणकरंडक गुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., डा. २७, गा. १६०३, वि. १७५४, पद्य, वे., (संपत्ति सुखदायक सरस), २२८१२(३) २५४५० 8) गुणकरंडकगुणावली रास - बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २६, गा. ४९३, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुणसुंदरशीलसुंदरी रास, पंन्या. राजविजय, मा.गु., ढा. ३८, गा. ८५६, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (त्रिहुं जगनो शंकर), २१९०८ गुणस्थानक गीत, मु. ब्रह्मवर्द्धन, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (--), २३८५७ (+$) गुणस्थानक विचारवत्रीसी, पंडित, मानविजय, मा.गु., डा. ३, गा. ३२, वि. १७३४, पद्य, भूपू (प्रणमी अरिहंत रे), २२४३७-१४ गुणस्थानके बंधोदयोदीरणासत्ताप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपु., (ओधे वीसास प्रकृति), २६३८९ गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१९, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), २२९०० ($) गुरुगुण गीत, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसतीने नमुं सुखकार), २२५७०-९ गुरुगुण गुंहली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (हारे म्हारे गुरूदेव), २२८८२-५ गुरुभक्ति पद, मु. मान, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., (ऐसा साध नमुं सदा), २२५९०-१२२(५) ५४७ गुरुवाणी गीत, मु. शंभुनाथ, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (पुज्यजीरी वाणी प्यार), २२५५५-५५ गोचरी ४२ दोष वर्जन सज्झाय, मु. रुघनाथ, मा.गु., गा. ३६, पद्य, श्वे. (शासनपति चीवीसमो) २२५५४-११०) " For Private And Personal Use Only गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३९, गा. ८१६, ग्रं. ११५७, वि. १७०७, पद्य, मूपू., (श्रीआदिर प्रथम जिण), २१९३७($) Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ गोविंद पद, मावदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (साइयां रे हमकुं तार), २२४३७-११ गौतमपृच्छा चौपाई, मु. नयरंग, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (वीरजिणंदतणा पय वंदि), २२४८८-९(+) गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२४, वि. १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), २११९०(+), २५४११-२(+), २६८४४(+#), २१२१८-२,२६४५२ ।। गौतमस्वामी अष्टक, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूति गुरु), २२५१८-६३(+-) गौतमस्वामीगणधर गहुंली, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हस्तियाम वनखंड मझारि), २२४६८-३ गौतमस्वामी गहुंली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बिंहनी अपापानयरी), २२८७४-५ गौतमस्वामी गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (गौतम नाम जपो परभाते), २३२७१-२७ गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मात पृथ्वी सुत प्रात), २२५८६-१०(+) गौतमस्वामी छंद, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (इंद्रभूति गौतमस्वामी), २२५१२-९९ गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), २२५९०-१४५(+), २२५७०-३८, २२९३५-५, २३८०७-४ गौतमस्वामी छंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गौतम आव्या वाद करेवा), २६९९०-६ गौतमस्वामी छंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीदाता गाता कवि), २२५९०-१६५(+) गौतमस्वामी दीपालिका रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. १३, गा. ७६, पद्य, मूपू., (इंद्रभूति गौतम भणइं), २४१९१-३, २६४५४ गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), २१८२५, २२१२४-१ गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), २२४७१-१८(+), २१२३९-१, २१४८३-१, २२०९४-२, २३०२१, २३११९, २३२१३, २३३३९, २३८८२, २४०२६-१,२५५५५, २६००८-२, २६२६०, २४१३५(६), २४३१३(६) । गौतमस्वामी रास, श्राव. शांतिदास, मा.गु., गा. ६६, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सरस वचन दायक सरसती), २३३८३ गौतमस्वामी विलापगीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुगति समउ जाणी करी), २२५०२-१६(+) गौतमस्वामीविलाप सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तुम्ह आपो मइ वीर), २२५०५-८ गौतमस्वामी स्तवन, पं. चतुरसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सकल सुखकर तुं परमेसर), २२५८३-५(+#) गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभाते गोतम प्रणमी), २१२३९-२ गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पहेलो गणधर वीरनो रे), २२५६५-८ गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अंगुठै अमृत वसै), २२५८०-१८(+) घडपण सवैया, मु. जिनदास, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (डग डग हाले नाड पाव), २२५१३-३३ घडपण सवैया, मु. जिनदास, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (तुं बेठो रेवे घर में), २२५१३-३१ घडपण सवैया, मु. जिनदास, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (मुख से टपके लार कान), २२५१३-३० चंदनबाला चौपाई, पं. गणेशलालजी, मा.गु., गा. १३२, वि. १९७७, पद्य, श्वे., (सीलवंती चंदणबालाजी), २२९१८(+) चंदनबाला चौपाई, मु. ब्रह्म, पुहिं., गा. १६०, पद्य, मूपू., (मोह पिसाच वसकरणकुं), २२००९-२ चंदनबाला सज्झाय, मु. नारायण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज अमारे आंगनडे सुकृ), २२५२६-५ चंदनबाला सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज हमारे आंगणडे हुं), २२५०३-८(+) चंदनबालासती रास, आ. जवाहरलालजी, हिं., गा. ३८६, वि. १९८९, पद्य, स्था., (प्रतिबोधित अर्जुन), २५५०६(+) चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहि., अ.५, गा. १९९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीविक्रम), २२१३६(+) चंदनमलयागिरी चौपाई, मु. शिवलाल, मा.गु., ढा. ६, वि. १८७८, पद्य, श्वे., (नाभिभूप पुत्राददे), २५७१०(+) चंदराजा रास, मा.गु., ढा. ४३, पद्य, मूपू., (सुखदायक जिनवरु नामे), २४५०९(5), २४५५६(5) चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., गा. १२५, पद्य, मूपू., (समरु सरसती मात मनाय), २२७०६-२(+), २२१९२, २२७२९, २३०३८, २५१४७-१ चंद्रगुप्त १६ स्वपन सज्झाय, ऋ. तेजसिंघ, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, श्वे., (सद्गुरुने चरणे नमी), २२५३७-१९ For Private And Personal use only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५४९ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, ऋ. जैमल, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), २२५४०-२(+-), २२५५६-२१(+), २२५५५-१०१ चंद्रप्रभजिन पद, मा.गु., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (चंदलिया संदेशो रे), २२४५०-२५(+) चंद्रप्रभजिन रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (अरिहंत सिध आचार्यजी), २२९४९(5) चंद्रप्रभजिन स्तवन, जैत, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीचंदाप्रभु जिनवर), २२५९०-९२(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (चंद्रप्रभु चितमोह), २२५५३-२९(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुझ महर करो), २२५५३-६(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, पा. श्रीसार, मा.गु., ढा. १०, गा. ७६, वि. १६८७, पद्य, मूपू., (सरसति वरसति सकतिरूप), २२६६९(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचंद्रप्रभु), २२४४५-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मंगल कलागुण नीलउ), २२४९९-८ चंद्रराजागुणावलीराणी लेख, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ७४, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीमरुदेवीन), २६९१९ चंद्रराजारास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), २१३५९(+), २१५०६(+), २५०९९(+), २५३०४(+), २५५३९(+#), २१३५१, २५५२६, २५८२६, २६४१८(#$), २२७०५(s), २५९८३() चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (श्रीजिननायक समरीई), २६५५५ चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमी करी), २१३१६, २१८३०, २४२५४(६), २४३८३(६) चंद्रावली सप्तव्यसन सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रथम देवने पहेला), २२५३५-११ चउसरण गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुमने चार सरणा हुज्य), २६३५५-२(+) चतुर्थीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सर्वारथ सिद्धथी चवी), २६८८७-२६(#) चतुर्भुजसाधुपद, मु. खेचलदास, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (म्हाराज चतुरभूज), २२५५५-५ चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोमासा तीन जाणवा), २४४६६-१(+5), २६२२३ चातुर्मासिक व्याख्यान*, रा., गद्य, मूपू., (पंचापि परमेष्टिन), २४७८३($) चामुंडा छंद, सा. सुखा, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सुंडालो नित समरीयै), २५१२८-२($) चारित्रमनोरथमाला, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४१, ग्रं. ८८, पद्य, मूपू., (सुह गुरुपय प्रणमउं), २३४२३ चित्रसंभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३९, ग्रं. ११००, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं परमेसरु), २६४८० चित्रसंभूति प्रबंध, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., खं. ३, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (आदिपुरुष जगि आदिगुरु), २१३०२ चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), २२८७१-१८ चित्रसंभूति सज्झाय, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (बांधव बोल मानोजी), २२५२८-४ चित्रसेनपद्मावती चौपाई, उपा. रामविजय, मा.गु., गा. ४९१, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (रिसहेसर पायकमल पणमिय), २१३१७ चेतन चरित्र, क. चितानंद, मा.गु., ढा. १६, वि. १७८२, पद्य, श्वे., (प्रथम जगत जिनराज सकल), २१२६८ चेतन चरित्र, मु. भावसिंघ, पुहिं., ढा. १४, गा. २५०, पद्य, मूपू., (प्रथम जपत जिनराज), २२५२४-१ चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास, पुहिं., गा. २९८, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (जिनचरण प्रणाम करि), २२८८७-१, २५४१४(#) चेलणाराणी चौपाई, रा., ढा. ९, पद्य, श्वे., (मगधदेसना अधिपति), २३०६८(+) चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरे वखाणी राणी), २२४४२-८(+), २२४५५-६, २२४८४-१९, २२५०५-४ । चैत्यभक्ति, चंपाराम, मा.गु., गा. २५७, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (वंदौ श्रीजिनराज), २२९७४(+) चैत्यवंदनचौवीसी, ग. जिनविजय, मा.गु., चैत्यव. २४, गा. ७५, पद्य, मूपू., (प्रथम जिन युगादिदेव), २२३७२-२(+) चैत्यवंदनचौवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., चैत्यव. २४, पद्य, मूपू., (आदिदेव अलवेसरू विनीत), २२८८३-७ चैत्यवंदनवीशी, मु. केसर, मा.गु., चैत्यव. २०, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर आदिइना), २२८८३-११ चैत्रीपूर्णिमापर्व स्तवन, मु. साधुकीर्ति, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पय प्रणमी रे जिनवरना), २२८७८-३३ For Private And Personal use only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ चौपटखेल सज्झाय, आ. रत्नसागरसूरि, पुहि., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रथम अशुभ मल झाटिके), २२५२४-३ चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), २१४९८, २१६६३, २१८७१, २२०७१, २२३२२, २३७१२, २३९५७, २६१६५, २६६८२(s), २६९३८($) छंद चौपाई-मृगसुंदरीमाहात्म्यगर्भित, मु. कृष्णविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ५६, वि. १८८५, पद्य, मूपू., (प्रणमी वीर जिणेसर), २२६२९-१ छिनालपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (परमुख देखी अपण मुख), २२५१७-१८ जंबुकुमार सज्झाय, मु. रूप, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (--), २२५४९-१(६) जंबुस्वामी चौढालीयो, मु. दुर्गदास, मा.गु., ढा. ५, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (पुरसादाणी परमप्रभु), २२०९६-३ जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., ढा. १३, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सकल पदारथ सर्वदा), २१२१८-१ जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (पहिली ढाल सोहामणी), २१५४२, २२१७२ जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., ढा. ३५, वि. १९२०, पद्य, मूपू., (शासनपति वर्धमाननो), २४८७०(+), २१२४५ जंबूस्वामी चरित्र, मु. पद्मचंद्र, मा.गु., ढा. ५८, गा. १५००, ग्रं. १५११, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (शारद पाय प्रणमुं), २१३३५(+), २६२१०(६) जंबूस्वामी चौपाई-पंचभववर्णन, मा.गु., गा. १७९, वि. १५२२, पद्य, मूपू., (आराहिसुं अरिहंत हृदय), २५७११(+) जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ३५, गा. ६०८, ग्रं. १०३५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (प्रणमी पासजिणंदना), २११८८, २५६९२ जंबूस्वामी रास, ग. भुवनकीर्ति, मा.गु., अधि. ४ ढाल ५५, गा. १३५३, वि. १७०५, पद्य, मूपू., (जोति पुरातन मन धरइ), २१२१६(+) जंबूस्वामी रास, मु. राजपाल, मा.गु., गा. ५२५, वि. १६२२, पद्य, मूपू., (सकल जिनवर सकल जिनवर), २५८३५(+) जंबूस्वामी रास, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (शेठ रीखवदत्त राजगृह), २२८२१ जंबूस्वामी सज्झाय, ऋ. खुशालचंद्र, मा.गु., गा. १४, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (मगध देश राजगृही नगरी), २२५५५-७१ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (संयम लेवा संचर्या), २२८७१-१६ जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (सरसत सामीने विनवू), २२८७१-३२ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे), २२५९०-१२(+), २२४५८-६ जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ए आठौहि कामिणि जंबू), २२५५७-१६(+) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नरवर राजिओ), २२५१०-१०२ जमाली सज्झाय, मु. चौथमल, मा.गु., गा. ११, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (सासणनायक श्रीविर), २२५०१-४८(+) जयंतीदेवी छंद, मा.गु., गा. ४१, पद्य, वै., (--), २४६७५-१(+$) जसवंतसिंहराजा गीत, पुहिं., गा. ४, पद्य, (दल लूंबीया असुर), २२५१७-९ जिणरस, मु. वेणीराम, मा.गु., गा. १९५, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (गणपद सारद पाय नमी), २२६०४, २३७१८, २६८३० जिनकुशलसूरि गीत, उपा. जयसागर, मा.गु., गा. ७०, वि. १४८१, पद्य, मूपू., (रिसह जिणेसर सो जयउ), २२५१८-६५(+-) जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिणचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आयो सहूं श्रीसंघ आस), २३८७६-५ जिनकुशलसूरि गीत, पा. साधुकीर्ति, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (विलसे रिद्धि समृद्धि), २२५१८-६६(+-) जिनकुशलसूरि छंद, मा.गु., पद्य, मूपू., (वदन कमल वाणी विमल), २३४७४ जिनकुशलसूरि पद, मु. लालचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु देखता), २३२७१-१९ जिनकुशलसूरि पद, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज दीठा सुगुरु मेरा), २३२७१-४ जिनकुशलसूरि सवैया, मु. धर्मसीह, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (राजै थूभ ठौर ठौर ऐसौ), २२४५६-८ जिनकुशलसूरि सवैया, रा., सवै. १, पद्य, मूपू., (कला किलोल काम मन), २६८३८-३ जिनकुशलसूरि स्तवन, उपा. अभयसोम, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (समरु माता सरसती), २६८३८-२ जिनगुणप्रशस्ति बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (भगवान त्रिलोक्य तारण), २२८८८-२ जिनचंद्रसूरि भास, उपा. जयमाणिक्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही सदगुरु), २२८८२-७ जिनदत्तसूरि गीत, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिरिसुयदेव पसाइ करो), २२५१८-६७(+-) जिलसूरि सवैया, म..६, पद्य, मूपू., (आ For Private And Personal use only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५५१ जिनदत्तसूरि सवैया, मु. धर्मसी, पुहि., सवै. १, पद्य, मूपू., (बावन वीर कीए अपने वस), २२४५१-१६(+), २२४५६-७ जिनदत्तसूरि सवैया, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (सुरलोक त्रीया नरमंडल), २२४५१-१७(+) जिनदर्शन पूजनफल स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसती देवी धरी मनरंग), २२५७०-२३ जिनदेहमानगर्भित चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पंचसया धनुमान जाण), २२५३९-४ जिन नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडणो), २२५०६-१० जिनपदचौवीसी, मु. ज्ञानसार, मा.गु., पद. २४, गा. ७६, वि. १८६४, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा आणंदकंद), २२४६६-२ जिनपालजिनरक्षित सज्झाय, मु. समुद्र, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सुगुरू चरण कमल मनि), २२५३५-३ जिनपूजाफल स्तवन, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसति सामण समरी माय), २२४४२-६९(+) जिनपूजा स्तवन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीमुखे जिणसर), २२८७८-२२ जिनप्रतिमा एकादशी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., (इहविधि देव अदेव की), २२५९०-११०(+) जिनप्रतिमा चर्चा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिणमारग माहे तो), २५६४६ जिनप्रतिमापूजन हुंडी, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेंतालीस आगम नाम मूल), २५३६८ जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदन), २२४८८-४(+), २२४९०-३(+) जिनबल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२ पुरुषोनो बल १), २१२९६-२(+) जिनबल विचार, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सुणो वीर्य बोलु), २२४५९-६(-) जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवें पूर्वोक्त शुभ), २३३०९-१, २६०८५(2) जिनभक्तिसूरि भास, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गह महमाती चेहट्टे), २२८८२-६ जिनभवने ८४ आशातना नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्म न नांखे १), २२५१०-७४ जिनरक्षितजिनपाल चौढालिया, रा., ढा. ४, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), २२३०५-२, २४७०३-३(5) जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु), २३१५४-३ जिनहससूरि पद, मु. हितकमल, मा.गु., गा. ६, वि. १९२८, पद्य, मूपू., (श्रीजी पधार्या हो), २२८८२-८ जिनहर्षसूरि गीत, मु. सुंदर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मारी सहीयां हे), २२८८२-४ जिनहर्षसूरि भास, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गुरु महिर करी अवधरी), २२८८२-१ जिनागमभक्ति पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (टुक दिल ही चसम खोल), २१९१०-२ जीवगतिआगति विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम नरके २५ जीवभेद), २१९१४ जीवगमनागमन चतुर्भंगी, मा.गु., गद्य, मूपू., (न जावै न आवै अलोक), २२५२९-३ जीवदया लावणी, काशीराम ठाकरसी, उ., गा. ८, पद्य, वै., (नहि रंग नहि रूप खुदा), २२५०८-२४ जीवदया सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रे जीवदया पालज्यो), २२४६४-१४ जीवदया सज्झाय, चेतन, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवचन प्रमान है), २४३१८-२ जीवदया सज्झाय, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पय पणमेवि), २६९९०-१५ जीवदया सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (चंपो चमेली गुलदावदी), २२५१३-३८ जीवभेद स्तवन, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सदगुरु शब्द सुश्रवण), २१३३९-४ जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ८३, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती रे वरसती), २१९३६, २२४७९-१, २२५१०-६०, २३८२७ जीवविचार स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), २२२८१(६) जीवहित सज्झाय, मु. खिमा, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (गरभावासमे चिंतवइहै), २२५९०-२(+) जैनकाव्य संग्रह, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), २२५९०-७५(+5), २५७९७, २६४४९-२(६) जैन गाथा, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), २१५६९-३(+), २२४५१-१२(+), २२७६८-२, २६१९२-२, २६७२४-२ जैनयंत्र संग्रह(कोष्ठक), मा.गु., यं., मूपू., (--), २६१६२-३(+) जोबनबतीसी, मा.गु., गा. ३०, पद्य, श्वे., (पुन जोग नर भव पायो), २४७३७-२(+-$) ज्ञानचिंतामणी दोहा, मनोहरदास, मा.गु., गा. १२८, वि. १७२८, पद्य, स्था., (सकल विद्या वरदायनी), २२५२४-२ For Private And Personal use only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ ज्ञानपंचमीतिथि तपग्रहण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नंदि मांडियै), २२५३८-५ ज्ञानपंचमीतिथि स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरूपदकज), २२५३९-७ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (युगला धर्म निवारिओ), २२५३९-१, २२५७०-२४ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा वीर), २२४५०-४४(+) । ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), २६२०६-१(+), २१४१५, २५५९४-१, २५७४४-१, २६२०५ ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलावली), २६६९१(+), २१८२०, २२४२५-१ ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीगुरुपाय), २२४९३-१(+), २३२००-४(+), २२८८०-१, २६३६४-२(६) । ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सद्गुरुना प्रणमु), २२४४२-५(+), २२४५०-६७(+) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्यजिणेसर), २६२०६-२(+), २२४४४-१, २५५९४-२, २५७४४-२() ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पासजिणेसर), २२४३६-१(+), २२२१९, २२४५५-२, २२५१०-९६, २२५७०-४३, २३२८९-३, २२७८८-२(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), २१६७७, २६३५०-१ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), २३२००-५(+), २२४५५-१८ ज्योतिष संग्रह-, मा.गु., गद्य, (--), २२७४७-३(+) ज्योतिषसार, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., गा. ९१६, पद्य, मूपू., (सहगुरु सांनिधि सरस्व), २२६५९(5) झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति चरणे शीश नमावी), २१५१२-३, २२४५५-१३, २२५४९-४, २४७८८-२ झांझरियामुनि सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ७८, वि. १६००, पद्य, मूपू., (सरस सकोमल सारदा वाणी), २२६३९(+) ढंढणऋषि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), २२५५७-१७(+), २२५९०-४०(+) ढंढणऋषि सज्झाय, मु. प्रेममुनि, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (प्रथमजिनेशर वादिने), २२५४९-२ ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी प्रणमी), २२७८०-३ ढोलामारु चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ७००, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सामिनी), २१३११, २३३९१, २५२३१, २४२९३($) तपफल, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवती शास्त्रोक्तं), २६१५०-१ तपविधि संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (नांदल मांडीजे), २२४५४-५(+) तप सज्झाय, ऋ. आसकरण, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (तप बडो रे संसार मे), २२५१२-३७ तप स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (काया काया हंसलडा), २२५८९-५ तमाकुपरिहार सज्झाय, मु. आणंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती विनवे), २२५०५-१० तीर्थमाला स्तवन, मु. दयाकुशल, मा.गु., गा. ४८, वि. १६४८, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणमुंभाव), २२४३७-१ तीर्थयात्रावर्णन स्तवन-विमलमंत्रीकारापित, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीपाटण में पांचासर), २२४४२-१९(+) तृतीयातिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (त्रिज कहे मुज ओलखी), २३८१९-४ तृष्णा सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (तिसना तुरणी हेतु), २२७८६-४०), २२७८६-६) तेरापंथ निरसन चर्चा, रा., गद्य, मूपू., (साखसूत्र सुगडां अंग), २५५२९ त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., गा. २०५, वि. १६२७, पद्य, दि., (सरसति सद्गुरू सेवु), २५२६२ थावच्चाऋषि सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (--), २६०२५-१ थावच्चामुनि सज्झाय, मु. देव, मा.गु., गा. २३, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (जिन नेम समोसर्या रे), २२५०५-१४ दमयंती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मा.गु., गा. २०९, पद्य, श्वे., (जिणधरमसुं जागता हुवो), २३९००, २५४०२, २५४८४ For Private And Personal use only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ दयादान सवैया, सा. धनाश्री, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (रायप्रश्रेणी में), २२५१३-२५ दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, भूपू., (सयल तीर्थंकर करू रे), २३१३३-३(४) दशार्णभद्रमुनि सज्झाय, उपा. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वंदि रे भविक तुं चरण), २२५९० - १५९(+) दशार्णभद्रराजा सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, भूपू., (सारव बुधदाइ सेवक), २२४८८-१०१+), २२४५९-७/-) दानशीलतपभावना चौढालियो, ऋ. सांवतराम, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (श्रीसंतिकरण संतीसरू), २२४६२-१(+) दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा, समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (रे जीव जिन धरम कीजीय), २२५९० - ८४(+), |२२५११-२४००१ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मृपू., ( प्रथम जिनेसर पाय), २३७६१-१(+), २४२७९ (+), २४९८८ - १ (+), २१७९९, २२०१९, २२६०५, २२६९१, २२८७९-१, २५९९९, २६२२५, २६८७५-१, २६०५६०१ दानशीलतपभावना सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, खे, (दुंदुभि हवामां वाजे), २२५५३- ३२(५) दान सज्झाय, मु. जगमाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रे जीव दान ज दीजीइं), २२४५८-१२ दान सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रसीया राचौ दान तणे), २२४५८-९ दीपावली पद, बिहारीदास, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., (आई ए दिवाली भैडी), २२५१२-१०७ दीपावलीपर्व रास, ऋ. जेमल, मा.गु., गा. ४३, पद्य, श्वे., ( भजन करो श्रीभगवंतरो), २२५१२-१०५ दीपावलीपर्व सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (दिवाली दुसमन दुखदाई), २२५१२-१०६ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु, गा. १, पद्य, मूपु. ( जयजय कर मंगलदीपक), २२५६४-८(+), २२७८७-६ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (सासननायक श्रीमहावीर), २२४७७-१७ दीपावलीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बंदु वीर जिणंदनुचरी), २२५७५-४, २६८८७-८(१) दुर्गादासराजा कवित्त, मु. धर्मवर्धन, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महा मौड मुरधर तणा खल), २२५१७-११ दुर्गादेवी छंद, मा.गु., पद्य, वै., (सकल सरूप रूप कुण लखे), २३६१६ - ३($) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दूमराय - प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नगर कपीलानो धणी रे), २२५९०-४४(+) दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., (दृष्टि राग विरागीड), २२८५८-३ देवलोक विवरण, मा.गु., गद्य, मूपु., (सौधर्मेइ अनइ ईशानि), २५८४७ -२ (०) देवशास्त्रगुरु पूजा, मा.गु., पद्य, दि. ?, (प्रथम देव अरिहंत सो), २५००५ देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवर रूप देखी मन), २२५१२ - ७०, २२८७१-२२ देशविरतिव्रत सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (दो जोगी आवरी अमा जैन), २२५१२-७५ देवसिक अतिचार चितवन, मा.गु., गद्य, मूपू., (काउसम्ममांहि आजूणा), २२७८१ - ३(+) दोषावली, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), २४५३६-१($) द्रौपदीसती चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (), २१७०० (5) द्रौपदीसती सज्झाव, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपु., (चंपानगरी वखाणीइजी), २२४८४-२७ द्वादशव्रत टिप्पणक, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रणम्य श्रीमहावीर), २६१५६ (+), २४१८८-१ दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, (सजन तोरा गुण घणा), २२९८५ - २, २३३६८-१, २३२३०-२(5) दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, ओ., (), २३०१०-२ द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३८४, वि. १७२९, पद्य, मृपू., (श्रीगुरु जितविजय मन), २४९०१(०३) द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., डा. ३९ गा. १९१७, वि. १६९३, पद्य, म्पू., (पुरिसादाणी पासजिण), २३७५२ (+), २५३५०, २५७५६(8) द्वादशीतप सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( द्वादशी कहे भवि भाव), २३८१९-५ द्वारिकाऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. जयमल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, खे, ( बाबीसमा श्रीनेमिजिण), २२५०१ - ४७ (+) द्वारिकानगरी विवरण, मा.गु., गद्य, वे., (शिष्य पूछें पूर्व ), २४४१६ ($) धनरत्नसूरि गीत, मा.गु., गा. १२, पद्य, भूपू. (पणमवि गोवमसामि पाव), २२४७१-९ (+) " ५५३ For Private And Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. रत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (नगर काकंदी हो मुनीसर), २२५०१-४९(+), २२५५५-१० धन्नाअणगार सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, स्था., (जिनशासन स्वामी अंतरज), २२५५५-८२($) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवचने वयरागी हो), २२५०१-२८(+) धन्नाअणगार सज्झाय, सिघो, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनि वीनवु), २२५३५-२ धन्नाअणगार सज्झाय, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (नार बतीसुंतजी रे), २२९३६-७ धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वीरबतीसी कामणी धना), २२४४५-५ धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसती सामीने वीनहु), २२८७१-२३ धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (जिनवाणी रे धना अमीय), २२८७१-१२ धन्नाकाकंदी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (सतगुरु वचन विचार कर), २२५५५-२७ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजीया जोरावर कारमी), २२५३७-४ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (श्रीवीर वखाणी हो), २२५५७-८(+), २२५१२-३१ धन्यकुमार चौपाई, मु. गंग, मा.गु., ढा. २३, गा. ६५२, वि. १७६१, पद्य, स्था., (--), २६६३८ धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), २२४९३-१४(+), २२५९०-१७०(+) धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (इक सुणलौ नाथ अरज), २२५९०-१२३(+), २३२७१-३ धर्मजिन स्तवन, मु. गुणपतिसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धरमजिणेसर मनशुद्ध), २२४९३-८(+) धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हां रे मारे धरमजिणंद), २२४४२-१८(+), २२५९०-३७(+), २२५१०-९, २२४४७-१२($) धर्मजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (थास्युं प्रेम बन्यौ), २२५०७-३ धर्मजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (एम करीये रे नेहडो), २२४४२-७३(+) धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय , मा.गु., गा. १३८, वि. १७१६, पद्य, मूपू., (चिदानंद चित चिंतवू), २६७४६ धर्मरुचिअणगार सज्झाय, ऋ. रतनचंद, रा., गा. १५, वि. १८६५, पद्य, स्था., (चंपानगरनी रुप सुंदर), २२५५७-९(+), २२५५५-३६ धर्मसेन चौपाई-दानाधिकारे, मु. यशोलाभ, मा.गु., ढा. ३६, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (चरणकमल श्रीपासना), २५४५६ धर्माधर्मविचार सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (चउदपूरवमाहे सार), २६९९०-५ धूलाडी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवें धुलाडी परव कीम), २६७७९-२ ध्यानद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम चार प्रकारना), २६१७२ ध्यानबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ३६, पद्य, दि., (ग्यानसरूप अनंतगुन), २२५६३-४(+), २२४६७-४ ध्यानविलास, मु. हुकम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (धुर नमुं परमात्मा), २३८३३-१ (२) ध्यानविलास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे ते ध्यानना चार), २३८३३-२ नंदबत्रीसी चौपाई, मु. सिंहकुशल, मा.गु., गा. १५४, वि. १५६०, पद्य, मूपू., (आगम वेद पुराण जाणता), २१२७५ नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १६, ग्रं. ४२१, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), २२११०, २५३६७ नंदिषेणमुनि सज्झाय, क. चतुरंग, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुनिवर महियल विचरे), २२५११-२(#) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजी न जइए रे परघर), २२५२८-५ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), २२५९०-५०(+), २२४५५-१०, २२८७१-२० नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रहो रहो रहो वालहा), २२४५०-७०(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वैरागे संयम लीयो हो), २२४८४-१५ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (वैरागे संयम लिया हो), २२४८४-१३ नंदी भास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वेशाख सुदि एकादसी), २२४६८-१२ नंदीश्वरद्वीप ५२ जिनप्रसाद स्तवन, ग. शिवचंद्र, मा.गु., वि. १८७७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखकरण), २६२८५(+) नंदीश्वरद्वीप जिनालयपूजा, पंन्या. रुपविजयजी , मा.गु., ढा. ८, वि. १८७९, पद्य, मूपू., (चिदानंद पूरणकला विघन), २६७८२ For Private And Personal use only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नंदीसर बावन जिनालये), २२८७८-४ नंदी स्तोत्राष्टक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (छंडि सवि हथियार सार), २२५३५-५ नमस्कारचीवीसी, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., अ. २४, गा. १४४, वि. १८५६, पद्य, मूपू., ( जय जय जिनवर आदिदेव), , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५५५३(+), २३५१० नमस्कारचौवीसी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (अशरीरी अजर अमर तुं), २३३८१ ($) नमस्कार महामंत्र चौपाई, मु. जिनलब्धि, मा.गु., अधि. ६, वि. १७८५, पद्य, मूपू., (--), २११६५ (०९) नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), २२५९०-१४७(+), २३२०० १३(०) नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), २२५१८-६० (+), २४७३० - २ (+#$) नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (प्रथम श्रीअरिहंतदेवा), २२४६४-५ नमस्कार महामंत्र स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिध आचरज), २२५१६-२२ नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., गा, ९, पद्म, मूपु. ( श्रीनवकार जपो मनरंग), २२५५३- २३(१) नमिजिन स्तवन, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, से., (विजयसेन नृप विजया), २२५५५-११ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. द्यानत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेरी वार क्युं ढील), २२५४२-८ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रुपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कहेजो चतुर नर ए कोण), २२५९०-४(+), २२३५१-२ नमस्कार महामंत्र सवैया, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (कुंन कहुं सब धातु मे), २५१९०-२ ५५५ नरक चौढालिया, मु. गुणसागर, मा.गु., डा. ४, गा. ३१, पद्य, मूपू., (आदिजिनंद जुहारीय मन), २२५१०-५६ नरकदुख सज्झाब, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (नरकतणा दुख दोहिला आप), २२७८६-७(-) नरकवेदना वर्णन दोहा, मा.गु., पद्य, मूपू., ( तिहां प्रथम कयी नरक), २१७१६-३ नलदमयंती रास, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६ हाल ३९, गा. ९३१, प्र. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी प्रमुख), २४५९५ (+), २१०६९, २१७०५, २३५४५, २५५६५, २५५७२, २५६९५ नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू, (जल भरी संपुट पत्रमा), २२५६९-७०), २२५७९-४(०) नवकारवाली सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., (समरथ नारि छे अतिसारी), २२५३५-१४ नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३०, पद्य, मूपु., (श्रीगोडी पासजी नीति), २३१९०-१(०) नवपद विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऊँ ह्रीं नमो अरिहंत), २४१५० ३) नवकारवाली स्तवन, मु. रिषभदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार मन ध्याइये), २२८७८ - ३४ नवतत्त्व चौभंगी स्वरूप, मा.गु., गद्य, वे., (द्रव्य थकी जीवद्रव्य), २६६२७/३) नवतत्त्व बोल, मा.गु., गद्य, भूपू., (५६३ भेद जीवना ते), २५६८४(३) नवतत्त्व बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना रागी समकीत), २२५१४-५ नवतत्त्व विचार, मु. परमसौभाग्य, मा.गु., गद्य, वे., (सम्यग्दृष्टिने जे), २१३२०(४) नवतत्त्व विचार, रा., गद्य, मूपू., (जीवाजीवापुण्णं), २२२३७-३ ($) नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुन्नं पावा), २२५१४-१, २३४१८-१, २५७२३, २४५८८($), २५३३४(७), २५७२८(६) नवतत्त्व स्तवन, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपु., (शांतिजिनेसर सद्गुरु), २१३३९-१ नवपद चैत्यवंदन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (सिद्धचक्र महामंत्र), २२४५०४० (+), २२५७०-४८ नवपद सज्झाब, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (सुरतरुने सुरमण थकी), २२८७१-५ नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोवम नाणी हो कहैं), २२४९८-१७(क) नवपद स्तवन, मु. कुशल, मा.गु., पथ, मूप, (जय जय श्रीअरिहंत), २२८६४-१, २५२१६-२ नवपद स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तीरथनायक जिनवरू रे), २४५९३-१२(+) नवपद स्तवन, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १७८८, पद्य, मूपू., (सहु नरनारी मली आवो), २२४९३–४(+), २२५७० - ३७ For Private And Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ नवपद स्तुति संग्रह, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सकल द्रव्य पर्याय), २२८६४-२ नववाड सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), २२४३३(+), २२४७४-२, २२५७०-४२,२६१६३ नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), २१४०७, २५४००-३, २६५८०-१, २५१९०-१(६) नववाड सज्झाय, मु. पद्म, मा.गु., वि. १७९९, पद्य, मूपू., (अनंत चोविसी जिन नमु), २६१४६-१(+) नागपास विचार, मा.गु., गा. २, पद्य, वै., (वृषादौ तृतीय भाणु), २१६८०-२ (२) नागपास विचार-यंत्र, मा.गु., को., वै., (--), २१६८०-२ नामनिर्णय विधान, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (काहु दिन काहू समै), २२५१५-१ नाममाला भाषा, श्राव. बनारसीदास, मा.गु., गा. १७५, वि. १६१७, पद्य, दि., (ॐकार परनाम कर भनु), २११४७ नामस्थापनाद्रव्यभाव गुंहली, मु. राम, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (आत्मरुचि गुणधारणी रे), २२८७४-६ नारी सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (पहिली ल्याव घरमै), २२५०१-१८(+) निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीय जिनवर रे देशना), २२५१०-५७ नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (एक दिवस वसै नेमकुंवर), २१२६७, २१८५१, २४५४१, २२७९३($) । नेमराजिमती ख्याल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नही करीयेजी नही), २२४४२-७२(+) नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आया हे सखी कहे), २२५१२-८८ नेमराजिमती गीत, मु. नयप्रमोद, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (--), २२५१७-१५(६) नेमराजिमती गीत, ऋ. सुंदर, पुहि., गा. १६, पद्य, श्वे., (जादूबंसी नेमजिणेसर), २२५१२-५० नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमजी वंदनने जाउंहे), २२५५५-७४ नेमराजिमती गीत, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मातपीता में अनुमत), २२५५५-८० नेमराजिमती गीत, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (मुगति के महल माने), २२५१७-१७ नेमराजिमती गीत, पुहि., पद. १, पद्य, मूपू., (वेगु नहै नाहि छंडि), २२५१७-१६ नेमराजिमती तेरमासा, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२८, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं विजया रे), २२५१०-१०४ नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., ढा. ९, गा. ४०, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), २२५११-३(#) नेमराजिमती पद, मु. चारित्रसुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुम योगी रे स्वारथी), २२५९०-१३४(+) नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम तजीय राजुल नारि), २२५१२-६५ नेमराजिमती पद, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नाय ब्याह रचाय करी), २२५०१-१७(+) नेमराजिमती पद, मु. दया, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (नेमकुंवरजी थे सजी), २५४००-१ नेमराजिमती पद, मु. धनीदास, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (राजुल भाखै कान न), २२५५५-५३ नेमराजिमती पद, पंन्या. भूधर, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (री माय विलम न लाय), २२५९०-१०९(+) नेमराजिमती पद, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (रहो रहो सांवलीया), २२५०१-३२(+) नेमराजिमती पद, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सावलीया साहिब है), २२५०१-३१(+) नेमराजिमती पद, मु. रत्नउमेद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (परत न छांडां थारी), २२५९०-१२५(+), २२८७९-४ नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (नेम मिलै तो मे वारी), २३२७१-१८ नेमराजिमती पद, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरी मेरो नेम पियारौ), २२४३८-१०(+) नेमराजिमती पद, मु. लाभधीरविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेम विन कैसी करूं), २२४३८-८(+) नेमराजिमती पद, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (सखी जीवन प्राण आधारौ), २२४३८-५(+) नेमराजिमती पद, मु. लाभधीरविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांवलिया नेम हमारो), २२४३८-६(+) नेमराजिमती पद, मु. लालविनोद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (नाथ भयो वयरागी हमारो), २२५९०-१३०(+) नेमराजिमती पद, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (अब केसै घर रहुयरी), २२५५६-१५(+) नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जब रथ दूर गयो तब), २२५९०-११४(+), २२८७९-५ For Private And Personal use only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५५७ नेमराजिमती पद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (दरसन सिंध भए नो निध), २२५१२-६६ नेमराजिमती पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (सखीरी चल गढ गिरनारी), २२५५५-३१ नेमराजिमती पद, पुहि., गा. १३, पद्य, श्वे., (समुद्रविजयजी रा कुमर), २२५५५-४४ नेमराजिमती पद, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (सोरठ थारा देसमै गढ), २५४००-२ नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सांवण मासे स्वाम), २२५१०-८९, २२९३६-२, २२७८८-७(#) नेमराजिमती बारमासो, मु. जसराज, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (घनघोर घटा घन कीउनई), २२५१७-२६ नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राणी राजुल इण परि), २२५१२-९६ नेमराजिमती बारमासो, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ब्रह्माणी वर हुँ), २२५३७-९ नेमराजिमती बारमासो, मु. माणिक्य, मा.गु., गा. ५७, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्रेमे रे), २५७४८ नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (सारद पय पणमी करी), २२७१६, २६००८-१ नेमराजिमती लावणी, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, पू., (पिया विन कैसे रहूं), २२४३८-१(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (डुगर घेर्यो वादले), २२६१५-२(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १५, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (राणी राजील करजोडी), २२८७१-१९ नेमराजिमती सज्झाय, मु. चंदनलाल, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (प्रथम मनाउ श्रीनवकार), २२५५५-५४ नेमराजिमती सज्झाय, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुंदर सारी बालकुंआरी), २१२५६-३, २२५१०-४८ नेमराजिमती सज्झाय, मु. नवलराम, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (नेमजी की जान ववी), २२५५५-४ नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पियुजी पियुजी रे), २२५१०-४३ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (इतरा दिन हूं जाणती), २२४८३-१ नेमराजिमती सज्झाय, पुहि., गा. ८, पद्य, श्वे., (उग्रसेन की लली), २२५५५-६४ नेमराजिमती सज्झाय, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (किसके शरणे जाउं नेम), २२५१२-५५ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (जवि नकसि भवन सुंठाढी), २२४६४-१५ नेमराजिमती सज्झाय, रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीनवे राजुल नार हो), २१६६७-४ नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (शिवरमणि जादु डार्या), २२५५६-२५(+) नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुंदर स्याम संदेसो), २२५५५-९७ नेमराजिमती सज्झाय, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (--), २२५५५-८३ नेमराजिमतीस्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांवलीया घरि आवकि), २२५१०-४२ नेमराजिमती स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांभल रे सांवलीया), २२७८८-१५(#) नेमराजिमतीस्तवन, ग. जिनहर्ष, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब मेरो साहिब तोरण), २२५१०-८७ नेमराजिमती स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (तुमे रहो रे यादव), २२५१०-४६ नेमराजिमतीस्तवन, मु. तिलक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अली रे में पेखु जई), २२५१०-९९ नेमराजिमती स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (लूंबी झूबी रह्यो), २२४४२-५४(+) नेमराजिमतीस्तवन, मु. नगजी, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (नार मनावो है नेमने), २२५९०-४९(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. मानसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नेमकुंवर वडवीद विराज), २२७६४-१ नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे रथ वालो), २२५१०-६ नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (कां रथ वाळो हो राज), २२५१०-५ नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पिउजी रे पिउजी नाम), २२४५५-५ नेमराजिमती स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तोरणथी रथफेरी गया), २२५०७-४, २२५७०-५० नेमराजिमतीस्तवन, मु. रंग, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (मोरा समजायो तोरे), २२४४२-४६(+) नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजी), २२४९८-६(+), २२५१०-७० नेमराजिमती स्तवन, मु. रुद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पेखी पसु रथ वालियो), २२५३७-११ नेमराजिमतीस्तवन, मु. हेमहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नवभव केरी प्रीत धरी), २२५९०-५५(+) For Private And Personal use only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ नेमराजिमती स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (राजीमती प्रिउं नेमि), २२५१६-१० नेमिजिन गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपा ते रूपइं रूयडी), २२५०२-१३(+) नेमिजिन गीता, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गगनमंडल मेहुलो गाजीय), २२४४२-३(+) नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रह सम प्रणमू नेम), २२७८५-१२(+), २४५९३-२(+), २२८८३-३ नेमिजिन पद, मु. आनंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (हो में बंदीयां जादव), २२५९०-१०३(+) नेमिजिन पद, मु. दोलत, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हां जी नेम नमो निस), २२४५०-२३(+) नेमिजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हेली गिरनारै बोल्या), २२५९०-९९(+) नेमिजिन पद, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमकुमर थारी वाटडी), २२५९०-९५(+) । नेमिजिन फाग, मु. कुशलचंद, मा.गु., गा. १७, वि. १८७५, पद्य, श्वे., (आवोजी देवर आपस मै आप), २२५०१-८(+) नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (समुद्रविजयरा पुत), २२५०१-१६(+), २२९३६-१ नेमिजिन रागमाला, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. २८, गा. ५९, वि. १७०२, पद्य, मूपू., (--), २१०२० नेमिजिन रास, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल १६९, गा. ५४२५, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (उदधिसुतासुत चुन करे), ___ २१३६८(+#) नेमिजिन रास, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. २, वि. १५४६, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा श्रीशारदौ), २१७३१ नेमिजिन विवाहलो, श्राव. केवलदास अमीचंद, मा.गु., ढा. ४३, वि. १९१९, पद्य, मूपू., (सती सरस्वतीने शीर), २१८९१(६) नेमिजिन विवाहलो, मु. हीराचंद वाचक, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (शासननायक जगपति), २५७२०-१ नेमिजिन विवाहलो, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (काटा लगै दुख पैरु), २२५१२-६७ नेमिजिन विवाह सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (वाजा वाजे नेम द्वारे), २२५१३-११ नेमिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (घर घर आज वधाईरी माई), २१६६५-४(+) नेमिजिन स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा.७, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (सोरीपुरवर सोभतो सखी), २४५२८-३ नेमिजिन स्तवन, मु. चौथमल, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीनेमीसर साहिबा), २२५५५-३७ नेमिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजी), २२४९८-३०(+) नेमिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (राजुल छोडी नेमजी), २२४९८-१४(+) नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, रा., गा.८, पद्य, मूपू., (थां पर वारी मोटा नेम), २२५१०-८६ नेमिजिन स्तवन, मु. डुंगरमल, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (जाके सिस उपर मुकट), २२५१२-५१ नेमिजिन स्तवन, मु. दोलत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मोह तणा दल मोडी रथ), २२५९०-४५(+) नेमिजिन स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (होरे स्वामी होय), २२५१०-५५ नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नगर सुहामणो), २२५५६-५(+), २२५९०-१७(+), २२७८८-६(#) नेमिजिन स्तवन, श्राव. महमद जैन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तासु कौन सरवर करै), २२४८४-१७ नेमिजिन स्तवन, मु. मानसागर, मा.गु., गा. १९, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (नेम वल्यो रथ मोरिने), २२७८८-५(#) नेमिजिन स्तवन, मु. मेघ, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय केरो कुमर), २२४५५-२२ नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (नेमजी सै कइयो मोरी), २२५५६-७(+) नेमिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (सांवलिया साहेब), २२५०१-३०(+) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (नेमजी चालोतो तुमने), २२५१०-८८ नेमिजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वयराग रंगीलो नेमजी), २२५९०-२३(+) नेमिजिन स्तवन, मु. सरूप, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (समुद्रविजैसुत समरीयै), २२५९०-२१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. हीरानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (बाल ब्रह्मचारी हो), २२५१२-३२ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (भली भावना भेटिवा नेम), २६९९०-९ नेमिजिन स्तवन, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (समुद्रविजयजीरा लाडला), २२५१२-५३ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेम), २२५९०-६७(+$) For Private And Personal use only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (सहीयां सेवो यादव), २२७८८-२१(#$) नेमिजिन स्तवन- गिरनारतीर्थ, ग, जसवंतविजय, मा.गु., डा. २, वि. १७९७, पद्य, मूपू., ( नेमिसर अरिहंतना पद), २२४५१-१८) नेमिजिन स्तवन-सौभाग्यपंचमी महात्म्यगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पवयणदेवी रे), २३४६७-१ नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु, (श्रावण सुदि दिन), २२४५०-५८ (५) २२४७७-५, २२५६५-३, २२७८७-८, २६८८७-४१० नेमिजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू., (आवो भविजन पूजो भावइ), २२५१६-९ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अचीली छबीली रंगली), २६८८७-१३(०) मिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय), २२४५०-६३ (+), २२४६३-१९(+), २२७८५-६(+), २२८७२-११(+$), २२४७७ - १०, २३२२९-१०, २६७७६ - १३, २६८८७-२२ (#) नेमिजिन होरी, पुहिं, गा. ४, पद्य, वे., ( का संग खेलुंगी होरी), २२५५६-१४(+) मिजिन होरी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नेमजी से होरी मचाई), २२५५६-६(+) पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, पुहिं., डा. ५, गा. २५, पद्य, ओ., (पणमवि पंच परम गुरु ), २२४६५-१, २२८५६-२, २२७३५१०१, २३८५४-८) पंचकल्याणक स्तवन, मु, पुण्यसागर, मा.गु, गा. २१, पद्य, मूषू, (नमिय पयकमल सुभ भावि), २४२३५-१(०) पंचजिन नमस्कार, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जुगला धरमनिवारीओ), २२५०६-११ पंचतीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( आदि हे आदिजिणेसरु ए), २२४९८-२७(+), २२५९०-१६७(+), २२५७०-४४ पंचतीर्थजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभ शांति नेमि जाणीइ), २२५१६-१५ पंचतीर्थजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शेत्रुंज समेतसिखर), २२५१६-१६ पंचतीर्थंजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (आदि आदिजिनेसर सुंदर), २२४७७-१५ पंचपद वंदना, मा.गु., पद. ५, पद्य, स्था., (पहेले पद श्रीसीमंदिर) २२९३५-१ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचपरमेष्ठि १०८ गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतना गुण बारा), २१४२५ - २(+) पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन गीता, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १३१, पद्य, मूपु. ( प्रणमीई प्रेमस्युं), २६३०१(०) , पंचपरमेष्ठि स्तवन क्र. रावचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे. (पहले पद अरिहंत देव), २२५५३-३१(१) 9 19 पंचप्रमाद सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू, (सूमतास्थ ततखेव चेतन) २२५४९-५) पंचमंगल स्वाध्याय, मा.गु., गा. ५, पद्य, क्षे., (असपलजी मंगल अरहंतदेव), २२५१२-३८ पंचमआरा ३० बोल दुडालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., डा. २, गा. ३०, पद्य, म्पू, (धर्मकथा हिरदे धरो), २५६९४-१ पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहे गौतम सुणो ), २२५०३ - १६ (+), २२५५४-९ (+), For Private And Personal Use Only २२४५५ - २० पंचमआरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहै गोयम सूणो), २२८७१-१ पंचमीतप नमस्कार, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू., (जन्म कल्याणक पंचरूप), २२५०६-१२ पंचमीतिथितप स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू, (पंच अनंत महंत गुणाकर), २२७८५-४११ पंचमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पुनयी पांचम एम वदे), २२५७०-२८ पंचमीतिथि स्तवन, मा.गु., गा. १५, वि. १४६६, पद्य, मूपू., ( पहिला समरु गोयम) २२५९८- २(१) पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचरूप करि मेरुशिखर), २६८८७-३(४) पंचमीपर्व सज्झाय, मु. शुभवीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु, (धन धन श्रीअरिहंतने) २२८९४-२ पंचमीपर्व स्तुति, मु. कुसल, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (--), २३२२९-५(5) पंचमेरु पूजा विधान, जे. क. टेकचंद, पुहिं., पूजा. ५, पद्य, दि., (वानी पूजी देवां केरी), २६८५४ पंचसाधु चौपाई - अभयकुमारसंबंधे, मु. कान्हजी, मा.गु., ढा. १२, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (जगगुरु प्रणमुं वीर), २५५३८ पंचांगुली मंत्र, मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐ पंचागुली २ परिसर), २२५४४-७ " ५५९ Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ पट्टावली, मा.गु., गद्य, श्वे., (अज्ज सुहम जंबु प्रभव), २२५४२-३ पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुबरग्रामवासी वसुभूत), २६५८३ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य त्रिविधं), २३२२०, २६३६२ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानस्वामि शिष), २२८३० पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान तीर्थं), २५६२६($) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानसामी), २६३०६ पदवी विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (भरतक्षेत्र मांहि जघन), २६५६७-३ पद संग्रह, मा.गु., पद्य, जै., वै.?, (--), २२५८३-७(+#), २२४५९-५(-$) पद्मचरित्र चौपाई, मा.गु., गा. १२७२, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (पवर सुहंकर जिण नमी), २६५९९($) पद्मनाभजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम महेसर पद्मनाभ), २४५९३-९(+) पद्मप्रभजिन धमाल, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेरे रदय पदमप्रभु), २२४५१-२३(+) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपद्मप्रभुना नाम), २२५११-२१(#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परम रस भीनो म्हारो), २२४४७-१० पद्मप्रभजिन स्तवन, पंन्या. रत्नविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभुजिन साहिब), २२४४२-५१(+) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा.११, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (प्रह उठी प्रभाते), २२५१२-३६ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. विनयचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (पद्मप्रभु पावन नाम), २२५५५-४२ पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. हितविजय शिष्य, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभुजीस्यु), २२४८०-१४ पद्मप्रभजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीपद्मप्रभु नित), २२४९९-६ पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धनधन संप्रति साचो), २२४९८-२८(+) पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), २६३५५-३(+), २२००४-२, २२८३८-१, २४७८८-१, २६७५१-२ परनारीपरिहार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (नारी रूपे दिवडोजी), २२४४५-४ परनारीपरिहार सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (रावण मोटो राय कहावै), २२५१२-८२, २२५५५-३५ परसंगतिदोष गाथा, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (पर सुं संग कहा करौ), २२५१५-६ परस्पर रिपु नाम, मा.गु., पद्य, (चंद्रमा रिपु राहु), २२५१७-२३ पर्याप्ताभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पर्याप्तो बिहु), २५८४७-३(+) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (परवराज संवत्सरी दिन), २४०९०-९ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनितविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कल्पतरुवर कल्पसूत्र), २४०९०-५ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनितविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिननी बहिन सुदर्शना), २४०९०-७ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनितविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर नेमनाथ), २४०९०-८ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनितविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीदेवाधिदेव), २४०९०-४ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनितविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय शृंगार), २४०९०-३ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनितविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुपन विधि कहे सुत), २४०९०-६ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुण्ये), २६८८७-१६(#) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुं ध्यावू), २२९२४-१०(+), २५१५२-८ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), २५४७०-२ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुन्य), २६८८७-१९(#) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० ॐकार), २२९८७-१ पल्योपममाप सवैया, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (--), २२५१३-३७($) पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., ख. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), २१६०६(+$), २५३४२, २२४८४-३०, २४७४६($) । पाक्षिकतपवृद्ध स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. २, गा. १४, पद्य, मूपू., (जंबुद्वीप सोहामणो), २५७२०-३ For Private And Personal use only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६१ पायायंत्र, अज्ञा., को., श्वे., (--), २२१०९-३ पार्श्वजिन १० भववर्णन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीसारद हो पाय), २२४८०-१० पार्श्वजिन आरती, पं. वीरविजय, पुहिं., गा. ९, पद्य, मपू., (आरती कीजे पासकुंवरकी), २२५६९-३(+) पार्श्वजिन कवित, मु. धर्मसी, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (जानत बाल गुपाल सबै), २२४९७-६ पार्श्वजिनगीत, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरे एही ज चाहीइं), २२५९०-१२१(+), २२५११-२७(#) पार्श्वजिन गीत, मु. रत्नसागर, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (रंग मच्यौ जिनद्वार), २२४९८-४२(+) पार्श्वजिनगीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भलइ भेट्यउरे पासजिण), २२५०२-१४(+) पार्श्वजिन गीत, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भवसुमद्रमा जीव तूं), २२५०८-१३ पार्श्वजिन गीत-गोडीजी, मु. धर्मसीह, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीगउडी पार्श्वनाथ), २२४५१-१५(+) पार्श्वजिन गीत-चिंतामणि, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चिंतामणि पास चिंता), २२८८९-३ पार्श्वजिन गीत-वरकाणा, रत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८५४, पद्य, मूपू., (श्रीवरकाणा पासजिणेसर), २२४४२-१७(+), २२४४४-३ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. दोलतरुचि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पार्श्व भजो चित लाय), २२४५०-४९(+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पुरसादाणीय पासनाह), २२७८५-१३(+), २४५९३-३(+), २२८८३-४ पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरजी, मु. रुपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सकल भविजन चमत्कारी), २६९६६-२ पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (सरसत मात मना करी), २१४४४-१, २२७६८-१, २३१५७, २४४५१ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. कनककुशल, फा., गा. ६, पद्य, मूपू., (महिरवान दरतुह बाकी), २२५७६-३ छंद-गोडीजी, म.राम, मा.ग.,गा. ६४. वि. १७७२, पद्य, मप.. (ॐकार लीला ललित कलित), २३६१६-१ पार्श्वजिन छंद-नाकोडा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), २२४५१-६(+), २२४९८-२३(+), २३८०७-२ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), २२५५६-१०(+) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. नयप्रमोद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरस वदन सुखकारसारं), २३६१६-२ पार्श्वजिन नमस्कार-स्थंभनपुर, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीसेढी तट मेरुधाम), २२७८५-१५(+), २४५९३-५(+) पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), २६८३८-४ पार्श्वजिन पंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., वि. १८८९, पद्य, मूपू., (संखेश्वर साहेब सुर), २६३०३, २३८६०() पार्श्वजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरइ एतौ चाहियै नित), २२४५०-२४(+) पार्श्वजिन पद, मु. उदयरत्न, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ), २२४९८-१८(+) पार्श्वजिन पद, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पासकि पासकि पासकि), २२४५०-३७(+) पार्श्वजिन पद, केवलराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (मेरे मनमें रही रे), २२४४२-५७(+) पार्श्वजिन पद, मु. गुणविलास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (करो ऐसी बगसीस प्रभु), २२४४२-५८(+) पार्श्वजिन पद, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अर्हत भगवत वामानंदन), २३२७१-३१ पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (माई रंगभर खेलेगे), २२५९०-१२०(+) पार्श्वजिन पद, मु. जेतसी, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (आछो रूप बन्यो वामा), २२४४२-७०(+) पार्श्वजिन पद, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, मूपू., (अब तुंही मेरा साहि), २२४३७-१७ पार्श्वजिन पद, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, मूपू., (नाटिक करे सुरदारा), २२४३७-१८ पार्श्वजिन पद, श्राव. देवब्रह्मचारी, पुहिं., गा. ७, पद्य, दि., (काशीदेश बनारस नगरी), २२५०१-६(+), २२५५३-१५(#) पार्श्वजिन पद, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजब सुरति दादा पासजी), २२५०९-५(+) पार्श्वजिन पद, मु. महिमराज, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (जिन तेरे नयन अनीयारे), २३२७१-२४ पार्श्वजिन पद, मु. रतनचंद, रा., गा. ६, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (वामानंदन पासजिणंदजी), २२५०१-२१(+) पार्श्वजिन पद, मु. रुपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मे मुख देख्यो पारस), २२४५०-१४(+) For Private And Personal use only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ पार्श्वजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), २३२७१-१(६) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अरे भाई सदगुरु संत), २२५९०-१०४(+) पार्श्वजिन पद, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (जन्म बनारस ठाम मात), २२५१२-८० पार्श्वजिन पद-अंतरीक्षजी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंतरिक अंतरजामी मेरी), २२५५५-९ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. खुशाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोडी पास आस पूरो), २२५९०-९४(+) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. खुशाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (गोडी पास गोर करीयै), २२५९०-१०८(+) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अब चलु देखे वामाजी), २२४५९-८(-) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. रंग, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (तुम विना मेरी कुण), २२४४२-४४(+) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा), २२५६३-८(+), २२५९०-९१(+), २२५१०-१६ पार्श्वजिन पद-दीवबंदर, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (सचा साई हो डंका), २२४५०-३२(+) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (कृपा करो संखेसर), २२४४२-७१(+) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, लिंबो, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (दीठो रेवामा को नंदन), २२४३७-९ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. वल्लभकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनवरजीसुंलागु मारु), २२४४२-७४(+) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. वीरविजय, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (देखो माइ अजब जोत), २२४५०-१७(+) पार्श्वजिन विवाहलो, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (जी रे वरघोडे वर), २१४२१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (घोर घटा करी आयोरी), २२४४२-५०(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वादल दहदीस उनह्या), २२५३७-१० पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तारक जिन तेवीसमा), २२५९०-५१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहज सलूणो हो मिलीयो), २२१२४-२(5) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गुरु प्रणमी पाया गाउ), २२७८८-१३(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीसुगुरु चिंतामणि), २२९३५-७ । पार्श्वजिन स्तवन, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चिंतामणी राया शिवसुख), २२४४२-१३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (पासजिणेसर पूरण आसा), २२९३५-८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. गौतम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वामानंदन आज में नयणे), २२४४२-४७(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चालो सखी मनरंगो), २२८७६-५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विनतडी अवधारो हो), २२४९८-२२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. चारित्रसिंघ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (परमप्रमोद सुखाकरु), २२४८४-३९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जसवर्द्धन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मन मोहनगारो साम सहि), २२४५१-१३(+) पार्श्वजिन स्तवन, गच्छा. जिणचंदसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आज सफल अवतार फली), २२४५१-१४(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय बोलो पास जिनेसर), २२५९०-१२६(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनलाभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज मनोरथ मुझ फलीया), २२५९०-४१(+) पार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर वाल्हा अरज), २२५९०-७०(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुरत मुरत मोहनगारि), २२५९०-१३६(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंखीया हरखण लागी), २२५१०-१३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिन पास बडे धमचक्कु), २२४८०-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. तीर्थविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिनराजजी सेवा कुण), २२४४२-६३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नवफण सोहि छत्राकारि), २६९९०-८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल सुहकर पासजी अरज), २२५९०-३३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमुंपासजिणंद), २२५९०-१६९(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु पासजिणंद), २२५१०-७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्राण थकी प्यारो), २२४४७-११ For Private And Personal use only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुजरो थे मानो हो), २२४३७-१५, २२५१०-८ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (पूजाविधि माहे भावीय), २२८५८-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. राजेंद्रहर्ष, मा.गु., गा. ६, वि. १८६८, पद्य, मूपू., (हारे आज श्रीजिनराज), २२५७०-१० पार्श्वजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभूसारद पाय प्रणम), २२५९०-३१(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रुपचंद, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन धन प्रते), २२४४२-५३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लक्ष्मीरत्न, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (लगन लगी मेरे पारसनाथ), २२५९०-१३८(+) पार्श्वजिन स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (आखंदा मै हुँ तइंडी), २२४९१-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिववर्द्धन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नीलकमलदल सामलउरे), २२४९१-६(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. शिवसुंदर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भगति पास जिणेसर गाईय), २२५९०-१५२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (नीकी मूरति पास जिणंद), २२५१२-१०१, २३२७१-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीराय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (पासजिनेसर पूरण आसा), २२४६४-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. सुजयसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (करुं ध्यान जिणेसर), २६९९०-११ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हरखचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (निरमल होय भजले प्रभु), २२४४२-११(+) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर हो पाय), २२५५३-३६(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सेरीमाहे रमतो दीठो), २२४५५-१ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हारे प्रभु पास), २१६६५-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (जय जैनी जगदंबिका), २३२८९-१ पार्श्वजिन स्तवन-१४ गुणठाणागर्भित, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. ५, गा. ४३, पद्य, मूपू., (नमिय सिरिपासजिणराय), २५३७६-२ पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, पा. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (पूर मनोरथ पासजिणेसर), २२५१०-४०, २५३७६-४ पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु पासजी ताहरो), २२५८०-२२(+) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्ष, वा. विनयराज, मा.गु., ढा. ४, गा. २७, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (पर उपगारी परम गुरु), २२५७७-१ पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), २२४४२-२३(+), २१८३५-१, २२८४०, २६२२४-१, २२७८८-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा, मु. जगरुपसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति सामण विनवू), २२५९०-१९(+), २२४८०-५ पार्श्वजिन स्तवन-कापडहेडा, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (कापडहेडा सै धणी रे), २३२७१-१५ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. आगम, मा.गु., गा. ९, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (साहिबा तुं थलवटनो रे), २२७८८-१७(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीथलपति थलदेशे), २२४९३-१५(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आणी सुहावो जिनजी), २२७८८-१२(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. गौतम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमपुरुष जिनराजजी), २२४४२-४८(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुजस तुमारो हो श्रवण), २२४८०-१५ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जसवंत, मा.गु., गा. ९, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (भवियां वांदो भावसु), २२४५१-२२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ग. जसवंतविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (गोडीपुरवर सोभतो तिहा), २२४५१-१०(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ग. जसवंतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पारकरपुर में दीपतौ), २२४५१-९(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति यति, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीगोडी प्रभु पास), २४५२८-२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हेसर मुझ विनती), २२४५१-३(+), २२४९३-६(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसती माता वीनवु), २२७८८-१०(#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १५, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं नित परमेश्वर), २३००४, २४२६८, २४८६६, २२६००(#), २४३६४(६), २४८४१(६), २६३९४($) For Private And Personal use only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भावे वंदो रे श्रीगोड), २२४९८-३५(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गाजे गौडी राजीयो), २२४५१-७(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रुघपति, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (वामासुत वरदाई पुन्यै), २२५९०-२९(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कृपा करो गोडी पास), २२४५०-१८(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वसता, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (जोर बन्यो जोर बन्यो), २२४५१-१९(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सांभली साहीब विनती), २२४५१-२५(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, श्रीचंद, पुहि., गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (अमल कमल जिम धवल), २२४५१-२(+), २२४९८-२०(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सामजी, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (दरसण देज्यो हो राज), २२४५६-३ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पारकरो श्रवणे सुण्यो), २२५१०-२२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी काजलमेघा, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीजिनचंद निवासिनी), २२५७७-४($) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. करमचंद, मा.गु., गा. ७, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (अजब विराजै हो छाजै), २३२७१-७ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चिंतामणि स्वामी में), २४५९३-१५(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. गुणसुंदर, मा.गु., गा. ६९, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं भगवती), २२५७०-४५ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चिंतामणि पासजी नील), २२५१०-६८ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चिंतामणि पासजी रे), २२४९१-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु.शोभाचंद, मा.गु., गा. १९, वि. १७२१, पद्य, श्वे., (आणी अधिक उमेदथी रे), २३२७१-१२ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव), २२४५०-१५(+), २२४५१-५(+), २२७०६-३(+), २३८०७-३ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीलकमल दल सामली रे), २२४५१-२८(+$) पार्श्वजिन स्तवन-जगवल्लभ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पण छे पूज्यानु रे), २२५१०-२५ पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनप्रतिमा हो जिन), २२४५१-४(+), २२४८०-८ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (जीराउलि मंडण श्रीपास), २२५१०-४४ पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुंदर मूरति सूरति), २२४९१-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-तिमरी, मु. सामजी, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (तिमरी पारस प्रभु), २२४५६-४ पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, क. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (परमातम परमेश्वरु), २२४९३-७(+), २२४९८-९(+), २२४४४-२ पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (छांजि छांजि छांजी), २२५१०-१ पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमेसरु), २२५७०-१५ पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, पुहि., गा.१०, वि. १८१८, पद्य, मूपू., (वामानंदन साहिबा), २२५५४-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारद वदन अमृतनी वाणी), २२५९०-६१(+) पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उठो रे मारा आतमराम), २२४५०-१०(+) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीफलवधिपुर पासजी), २२४९१-५(+) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (फलवर्द्धिमंडण पास), २२४५१-८(+) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, मु. सहजकीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज सफल अवतार मनोरथ), २२४५१-११(+) पार्श्वजिन स्तवन-फलवृद्धि, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (परतापूरण प्रणमीइ अरि), २१४४४-२६) पार्श्वजिन स्तवन-बाललीला, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सुरगिरि शिखरे सुरपति), २२४९८-१९(+), २२७०६-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-बृहत्, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., गा. १७, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (पासप्रभु जग जाणीयई), २२४८८-१२(+) पार्श्वजिन स्तवन-बृहत्, मु. राजसोम, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (प्रणमी प्रणमी अरिहंत), २२४८८-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-भटेवा, मा.गु., पद्य, मूपू., (पद पूजो भटेवा पास के), २२५८४-२(+$) For Private And Personal use only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६५ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्या माटे साहिब सामु), २२४९८-२१(+) पार्श्वजिन स्तवन-भीनमालपुरमंडन, मु. पुण्यकमल, मा.गु., गा. ५३, वि. १६६१, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमीय पाय), २२७८८-१८(#) पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (--), २२४९१-१(+$) पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर पूजीयै रे), २२४५१-२१(+) पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन चिंतामणि, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (उछरंग धर मनमाहि), २२४५१-२४(+) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. शिवचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जयजय श्रीजिनराय), २२५५४-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (काइ रे जीव मनमें), २२७८८-१४(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ३६, पद्य, पू., (सकल मंगल तणी कल्प), २२५१०-५८ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सामी सुणो मुज वीनती), २२७८८-११(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. चतुरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रह उठीनें नित नमु), २२८७६-३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, क. चतुर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु चरण नमि सीस), २२८७६-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), २२४५१-१(+), २२५९०-१६०(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), २२४५०-६(+), २२५९०-९(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन माहरे रे), २२४९८-११(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर प्रभू), २२५०९-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रहिने रहिने रहिने), २२४४७-४, २२५१०-८० पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (दिलरंजन जिनराजजी), २२४४२-१४(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. ४६, वि. १६१०, पद्य, मूपू., (सासना देवी मन धरीए), २२५१०-३६ पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुरति मंडण पास जिणंद), २२५०३-४(+) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. २८, गा. ३२३, वि. १८११, पद्य, मूपू., (सरसतीने समरु सदा), २४४१४(६) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपुर श्रीपास जिणं), २२५१८-६१(+-), २३२००-७(+) पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मूरति सामी थंभणो), २६९९०-१२ पार्श्वजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अहिनिसि अविरल वाणी), २२७६४-३ पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अश्वसेन नरेसर वामा), २२७८५-३(+$) पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपास जिणेसर पुजा), २२४७७-१२ पार्श्वजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचासरु कु तु सामलु), २२५१६-१४ पार्श्वजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (संखेसर गोडी जाणीइ), २२५१६-१३ पार्श्वजिन स्तुति, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल पास जिणेसर वंदिय), २२४८१-२(+) पार्श्वजिन स्तुति-अंतरीक्ष, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनप्रतिमा पूज्या), २२५१६-११ पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, ग. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (निशमय गवडीश्वर), २२९९२-४ । पार्श्वजिन स्तुति-चिंतामणि, मु. दयाकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमु नित्य पास), २२५६४-६(+) पार्श्वजिन स्तुति-जीरावला, मु. वीरमुनि, मा.गु., गा.४, पद्य, मूपू., (पास जीरावलो पुजी), २६८८७-२१(#) पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमीतिथि, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जय पास देवा करूं), २२४७७-२७ पार्श्वजिन स्तुति-फलवर्द्धि, आ. जिनसिंहसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परतापूरण चिंताचूरण), २२४६३-१६(+) पार्श्वजिन स्तुति-भीलडीपुरमंडन, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भीलडीपुर मंडण सोहिए), २६८८७-९(#) पार्श्वजिन स्तुति-मगसी, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मालवमंडण श्रीमगसीय), २२५१६-१२ पार्श्वजिन स्तुति-वरकाणा, पंन्या. कमलविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरकाणइ वर मंडण पास), २२४५०-५६(+) पार्श्वजिन स्तुति-स्वयंभू, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विंतर इंद बत्तीस भणी), २२४६३-१७(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सकल सदा फल चिंतामणि), २२५९८-४(+) For Private And Personal use only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जसविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (ध्यावौ इक धवलौ), २२५१८-६४(+-) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनमुख पंकज), २२५१०-९८ पार्श्वजिन स्तोत्र-जीराऊला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (महानंद कल्याणवल्ली), २१२५६-२ पार्श्वजिन होरी, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (रंग मच्यो जिनद्वार), २२५१०-६२ पिता व पुत्र नाम, मा.गु., पद्य, (कुष्ण सुत कंदर्प), २२५१७-२२ पुंडरिकगणधर स्तवन, मु. ज्ञानविशाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक दिन पुंडरीक गणधरु), २२४८३-५ पुणियाश्रावक की पाटी, अज्ञा., यं., मूपू., (--), २५००९-८(+) पुण्य कवित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (पुन्य थकि संपजे धवल), २२४५०-८१(+) पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (पुण्यतणां फल परतखि), २६४०९-१(+), २२५३७-१३, २२८७८-१२(६) पुण्य पद, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड तुम कर रे), २२४५९-३०) पुण्यपाप स्तवन, मु. विवेकविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८७२, पद्य, मूपू., (सरसतिनैं प्रणमु सदा), २६६९५ पुण्यपाल चौपाई, मु. केसर, मा.गु., ढा. १९, पद्य, मूपू., (आदेसर आदे करी चौवीस), २६७९६ पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), २२०५८(+), २२३८९(+), २४३०६(+$), २१३२४, २१४८३-३, २२२७६, २६३१७, २६७५१-१, २३१३३-१(#), २६९२६(६) पुण्य सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पुण्य कर भवि प्राणी), २४३८५-२ पुण्यसागर रास, मु. हीर, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), २१५६८(+$) पुण्यसार चौपाई, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ५१, वि. १९७९, पद्य, स्था., (--), २११३४(+$) पुण्यसेन चौपाई, मु. दीप, मा.गु., ढा. १३, वि. १७७६, पद्य, श्वे., (कारण सिवसंपतिकरण), २१५९१ पुद्गलपरावर्तन विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य क्षेत्र काल), २६३७०-२ पुद्गलपरावर्त भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (औदारिक वैक्रिय तेजस), २२८८६-२ पुरुषने कागळ लखवाना दूहा, मा.गु., गा. २१, पद्य, (स्वस्ति श्रीआनंदपुर), २२४५५-१६ पूजनफल स्तवन, मु. हितधीर, मा.गु., गा. १२, वि. १८३२, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनपति तेवीसमा), २२५५४-५(+) पृथ्वीचंद्र अने गुणसागरनी सज्झाय, मु. जीवविजय, मा.गु., ढा. ३, पद्य, पू., (शासननायक सुखकरु वंदी), २२२८४, २६२९६, २२८७१-२८($) पोतियाबंध रास, पुहिं., पद्य, श्वे., (केई जैनी नाम धराय कै), २५६५०($) पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर पास), २२४७७-११ पौषधपच्चक्खाण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (दसमो पोसो किणने कही), २१४०९-१ प्रत्याख्यानफल सज्झाय-शत्रुजयतीर्थे, मु. प्रीति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पचखि पचक्खाण परभाति), २४३२१-९, २६९२५-१४ प्रदेशीराजा चौपाई, ऋ. जेमल, रा., ढा. ३८, गा. ७००, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धने आयरिआ), २६६४६-१ प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल, मा.गु., ढा. २७, वि. १८०७, पद्य, मूपू., (रायप्रसेणीसूत्रमे), २११३१ प्रदेशीराजा चौपाई, मा.गु., ढा. २३, पद्य, मूपू., (संधि प्रदेशी रायनी), २३२५६(+) प्रदेशीराजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३३, ग्रं. ११००, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (सकल सिद्ध संपद करण), २५५४४ प्रदेशीराजा सज्झाय, पुहिं., गा. १५, पद्य, श्वे., (जैसे लोहने पारस मील), २२५५५-२१ प्रबोधचिंतामणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), २५५२७ प्रभुदर्शन पूजन फल चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगुरूराज), २२५०६-३ प्रमाद के १५ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नेहबंध १शब्द २), २२५७५-१६ प्रमाद सज्झाय, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (दस दृष्टांते दोहिलो), २१२५८-२ प्रश्नोत्तर, मु. दोलतराय, मा.गु., गद्य, श्वे., (जे पडिकमणा मध्ये), २४१७५ ।। प्रश्नोत्तरमाला, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., वि. १९०७, प+ग., श्वे., (श्रीजिण आदिजिणंदजी), २५६२२ For Private And Personal use only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ प्रश्नोत्तर संग्रह, मा.गु., प्रश्न. २१, गद्य, म्पू., ( नवकारमांहि पहिलापदना), २६५६७-१ प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( प्रणमुं तुमारा पाय), २२४४९-२, २२५१२-८६ प्रहेलिका पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., ( नगर मे से नीकली नारी), २२५०८-१५ प्रहेलिका संग्रह, मा.गु., पद्य, (खाट खटक नेंलोना कडा), २३३६८-२ प्रास्ताविक दूहा संग्रह, मु. उदैराज, पुहिं., पद्य, श्वे., (जो जीय मै जाणै नही), २४६६७(S) प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ७१, पद्य, श्वे., (पडिवन्नइ माछा भला बग), २३२४६-३ प्रियमदन चौडालियो, मा.गु., डा. ४, पद्य, से., (माया पुन्य तणी सह ), २४७०३-१ प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), २२६६२-१(+), २५४१५- १ (+$), २२०२२ -१, २२६४०, २५५५६, २५७४६, २१७७०-१(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रेम पत्री, मा.गु., गा. ८६, पद्य, (स्वस्ति श्रीप्रभु), २२५१७-१ प्रेमविलास चौपाई, मु. जयविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १७७५, पद्य, मूपू., ( पास जिणेसर मनधरी), २२३३९(+) बंधउदयउदीरणासत्ता लक्षण, मा.गु., गद्य, भूपू., (बंध ते कही मिथ्या), २४२२९-४(+) बंधतत्त्व विचार, पुहिं., गद्य, मूपू., (आत्मप्रदेश और कर्म ), २३०५६ बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकलमुनि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपु, (बलदेव महामुनि तप तपइ), २२५३५-४ बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (मासखमणने पारणें तपसी), २२५५६ -१३(+), २२५१२-३०, २२५५५-७० " बाई सज्झाय, मु, मोतीचंद, मा.गु., गा. ३२, वि. १८५३, पद्य, श्वे. (बेठे साधसाधवीया रे), २२५०१-४का बाहुजिन फाग, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपु., (परणे रे बाहू रंग), २२४४२-४२(०) बाहुबली सज्झाय, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीराजी मानो वीनती), २२५१०-७१ बाहुबली स्वाध्याय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., ( बाहूबली वन काउसग ), २३९२७ - २, २२५११-६(#) बीजतिथि सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( बीज तणे दिन दाखवु), २२४५० - ६६(+) बुढ़ापा रास, मु. चंद, रा., ढा. २२, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (दयाज माता वीनवु गणधर), २४५१८ बुढ़ापा रास में, रा., पद्य, भूपू (दया माता चीनवु गणधर ), २६०५१(०३) बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बीज कहे भव्य जीवने), २२५०३ - १५ (+), २२५७०-२७ बीजतिथि स्तवन, पंन्या. गणेशरुचि, मा.गु., गा. १९, वि. १८१९, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवि पसाउले), २२५०३-१(+) बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, वि. १८७८, पद्य, मूपू., ( सरस वचन रस वरसती), २२८७६-४ बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), २२४५० - ६२(+), २२५६४-२(+), २२४७७-२, २२५४७-२, २२५६०-२, २२५६५-२, २२७८७-५, २३२२९-३, २६८८७ -२(#) बीजतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अजुवाळी बीज सोहावे), २२४५०-५५ (+) बीबीगणाकथन सवैया, मा.गु., सवै ८, पद्य, (सहिर जिहानाबाद सिरे), २२४६२-१०(०) ५६७ , बुढापा सज्झाय, मा.गु., गा. १९, वि. १८२१, पद्य, श्वे., (बुढा होलु होलु चालै), २२९३६-३ बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपु., (प्रणमुं देवी अंबाई), २४६७५-२(+), २२०९४-१, २६९९० १७, २३९०९ (३) बोल संग्रह, मा.गु, गद्य थे. (-), २१२३० (+), २१०३७/३), २१४१६(३) १ बोल संग्रह-सिद्धांतसारोद्धारगत, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे कांईक जंबूदीव), २२२२१($) ब्रह्मचर्य पद, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू., (वाली धनओ पीठ धनउ), २२५९० - १३३(०) ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, मु. रायचंद, रा., गा. २१, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (रिखभ राजा रे राणी), २२५०१-१५(+) भंगरत्नावली, मु. गांगेय, मा.गु., गद्य, मूपु (तिहां प्रथम पद करवार), २६१३५ 9 भक्ति पद, कबीरदास संत, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., (मेरा पिया वसइ हइ), २२४८४-२५ , भक्ति पद, पुहिं, गा. ६, पद्य, वै., (चरखा परै भगादेनी), २२५५६ - २६ (+) भक्ति सवैया, क. गिरधर, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., ( पाणी बडीयो नाव मे), २२५१३-९ भक्ति सवैया, दलपतराम, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., ( पवन प्रगट नहि देखवा), २२५१३-८ For Private And Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ भरतबाहुबली संवाद, मु. कुशल, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (सारद माता समरी), २२९३६-६ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (बाहुबल चारित लीयो), २२४८४-२२(5) भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया), २२४५०-७६(+), २२५०३-१७(+), २२५५५-२२, २२७८६-११(-) भवदेव-नागिला सज्झाय, ऋ. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८७२, पद्य, स्था., (भवदेव जागी मोहनी तज), २२५५५-५९ भवदेव-नागिला सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घरे आवीयो), २२५०२-३(+) भवानीदेवी छंद-वीसहथी, मा.गु., गा. ६५, पद्य, वै., (ॐकार अथाह अपार बावन), २२४५९-१(-) भविष्यदत्त चौपाई, मु. रायमल्ल ब्रह्म, मा.गु., गा. ९२४, वि. १६३३, पद्य, दि., (श्रीस्वामीचंद्रप्रभ), २११२८ भीलडी सज्झाय, मु. उदयचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसति सामण विनवू), २२५७०-४९ भीषणजीसंवाद सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (आरै पांचमै निकल्यो), २२५०१-४०(+) भुंगरसाई दूहा, पुहिं., गा. ५, पद्य, (खलहल खलहल नदी वहै), २२५१७-१४ भूखप्रभावदर्शक सवैया, पुहि., पद. १, पद्य, वै., (भुख कुलीन करें), २२५१३-२८ भ्रमरबत्रीसी, मु. केशवदास, मा.गु., गा. ४७, पद्य, श्वे., (भमर उमाह्यो भेटवा), २२४४०-२ मंगलकलश चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २१, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (पास जिनेसर पय कमल), २११५८-१ मणिविजय स्वाध्याय, मु. गुलाबविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (संखेश्वरस्वामी रे), २५१८१-१ मत्स्योदर रास, मु. रामविजय, मा.गु., खं. २, पद्य, मूपू., (मुनिवर जाणी योग्यता), २६१८४-१ मदननरेश्वर चौपाई, मु. दामोदर, मा.गु., गा. ५५७, ग्रं. ९३८, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (आदि जिणेसर अतुलबल), २५७२२(+), २१२६९) मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., गा. १७९, पद्य, मूपू., (वापै सु आपै धनन्नी), २१४०९-२, २६०८९ मदनरेखासती रास, मु. हीर ऋषि, मा.गु., गा. १५७, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (जोवो मांस दारु थकी), २२८३६, २६२८२ मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १८८, पद्य, मूपू., (जूआ मांस दारु तणी), २१६५६(६), २४८०१(६) मदनरेखासती सज्झाय, मा.गु., गा. १६३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्धने आयरिय), २२८४१ मदनसेन-चित्रसेन चौपाई, ऋ. सांवतराम, मा.गु., ढा. ८, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (वंदु आदि जिणंदने चरम), २२४६२-५(+) मधुबिंदुसज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), २२४४८-२(+), २२५३५-१ मनगुणतीसी सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (जीवडा म मेले रे ए), २२५२४-५(5) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. २२, पद्य, मूपू., (प्रेमे पास जिणंदना), २४६०९-१ मरुदेवीमाता सज्झाय , मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (मरुदेवी माता रे एम), २२५७०-७ मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (मरुदेवी माता कहे), २२८७१-१५ मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल९१, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), २५५५८($) मल्लिजिन स्तवन, मु. धर्मसिंह, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (हवे दान संवछरि दिये), २२५६१-३(+) मल्लिजिन स्तवन, मु. विनयचंद, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (मल्लिजिन बाल), २२५५५-१ मल्लिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (अभयदान छमछर देय), २२५१२-५ मल्लिजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उगणीसमा स्वामी मल्लि), २२५१६-२६ मल्लिजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मल्लिनाथ पुथवी मनरली), २२५१६-२७ महादेव गीत, रुघनाथ, पुहिं., गा. ७, पद्य, वै., (सिध थारी नमो अजोनी), २२५१७-४ महाबल-मलयसुंदरी चौपाई, मु. भक्तविमल, मा.गु., खं. ४, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ), २५५९७ महावीरजिन गहुंली, पंन्या. अमीविजय , मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सहीयर मोरा हो वीर), २२४६८-१८ महावीरजिन गहुली, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चक्र चलें आकाशमां), २२४६८-२ महावीरजिन गहुंली, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीतभय पाटण वीरजी), २२४६८-६ महावीरजिन गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सामी मुनिं तारओ भव), २२५०२-१५(+) महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंद जगदाधार सार सिव), २२७८५-१४(+), २४५९३-४(+), २२८८३-५ For Private And Personal use only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६९ महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (सिद्धार्थकुलमई जी), २६३००, २६६५६, २२५५३-२७(#) महावीरजिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीमाता सरसती सेवक), २६११९ महावीरजिन पद, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज तो हमारे भाग वीर), २२४५०-१३(+) महावीरजिन पद, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., गा.४, पद्य, मूपू., (भला सुख आपेगा ओ), २२४४२-६४(+) महावीरजिन विनती स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती), २२४४२-४३(+), २३२००-१०(+), २१८३५-३, २२५१०-४१, २२५१२-२२, २२५७०-४६, २२८८०-२, २४५२८-१(६) महावीरजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (त्रिसला देवीनो नंद), २२४४२-४०(+) महावीरजिन स्तवन, मु. उदय, मा.गु., गा. ९, वि. १७९०, पद्य, मूपू., (जगपति तु तो देवाधि), २२४९८-२४(+) महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीजरां रहस्यांजी), २२५९०-१३(+), २२४४५-१, २२५७०-५३ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ राजानो नंदन), २२४३६-४(+), २२४९८-२५(+) महावीरजिन स्तवन, वा. उदयविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (राग विना तुरीजवे), २२६९४-३ महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर साहिब मेरा), २२४५०-३९(+), २२५७५-६ महावीरजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ११, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (सासननायक सामी तूं तो), २२७८१-६(+) महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनमुख देखण जावू), २२५१०-२७ महावीरजिन स्तवन, पंन्या. दिणयरसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर वंदिये रे), २२४४२-३९(+) महावीरजिन स्तवन, मु. धनीदास, मा.गु., गा.८, वि. १९१९, पद्य, श्वे., (वडा सीस श्रीवीरतणो), २२५५३-९(#) महावीरजिन स्तवन, मु. नेमिरंग, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (चोवीसमां प्रणमु), २२८७८-३६ महावीरजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रुडीने रढीयाली रे), २२४४२-१६(+) महावीरजिन स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बलीहारी वीरजिणंद की), २२५७५-८ महावीरजिन स्तवन, आ. पूनसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वीरजिन मुनिवरू वांदु), २६४०७-२ महावीरजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चोवीसमा जिनराजनुं), २२४३६-३(+) महावीरजिन स्तवन, मु. मुक्तिकमल, मा.गु., ढा. ७, गा. ८५, वि. १९७३, पद्य, मूपू., (त्रिशलानंदन प्रणमी), २३८८७(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गिरुआ रे गुण तुम), २२४५०-३८(+), २२५०७-५, २२५७०-५१ महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (वीरजी प्यारा हो वीर), २२४४२-४१(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी वीरजिणंदने), २२४५०-२७(+), २२४९८-३४(+), २२५७०-३१, २२५११-१५(२) महावीरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (सवि दुख टालेगे महावी), २२५१२-७७, २२७८६-१(-) महावीरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अमलकलप उद्यानमां), २२५८४-५(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर विनये), २२५१०-१५ महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सासन नायक वीरजिणंद), २२५५३-२८(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १२, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (सिद्धारथ कुल दीपक), २२५५७-१५(+), २२५५३-१७(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रुपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मने ते दिननो विसवास), २२४४२-१२(+) महावीरजिन स्तवन, मु.रूपचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ते दिननो विसवास छे), २२५३७-५ महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय , मा.गु., गा. ५, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (सिद्धारथना रे नंदन), २२४९९-१४ महावीरजिन स्तवन, मु. विनय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद जयकारी हौ), २२४९८-१(+) महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू., (वीरकुंवरनी वातडी), २२४४२-२०(+) महावीरजिन स्तवन, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीरजी सुणो मोरी विनत), २२५९०-३(+) महावीरजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, पू., (आज महोछव रंग रली री), २२५९०-९६(+) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं क्ली), २३८१७-४(६) For Private And Personal use only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ " " महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., ( चलो दरसन चलीये), २२५५३-२० (#) महावीरजिन स्तवन, पुहिं. गा. १२, पद्य, मूपू., (तुम प्रभु मेरे मन), २२५५३ - १०१०१ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू., (नयर खतरीकुंड अति), २२४९९-१५ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू., ( प्रभु अरज करी), २२४६५-३ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपु, (बंदु श्रीजिणराय मन), २२४८४-२१ (३) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वली वली वंदुजी वीरजी), २२५५३-५(१) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शा माटे सायबा सामो), २६८७५-२ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (शासननायक समरुं सदा), २२९३५-४ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु., (सारद मात सुमति मोहि), २२४६५-४ महावीर जिन स्तवन- १४ गुणस्थानकविचारगर्भित, ग. सहजरत्न, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (महावीर जिनरावना पय), २२५९०-१५८+१ महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, मु. नंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, वे., (श्रीसिद्धारथ कुलतिलो), २२४८४-७ महावीरजिन स्तवन- २७ भव, पंन्या. ज्ञानकुशल, मा.गु., डा. ११, गा. ८७, वि. १७३१, पद्य, मूपु. ( पूरण प्रेमे प्रणमीइ), २४७१३ (+) , महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ८१, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (विमलकमलदललोयणा दिसे), २२६७७, २५५०१-१ महावीरजिन स्तवन- २७ भव, पंडित वीरविजय, मा.गु., डा. ५, गा. ५२, वि. १९०१, पद्य, मूपू., (श्रीशुभविजय सुगुरू), २२२६४-१ ', महावीरजिन स्तवन- २७ भवगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, भूपू (सरसति भगवति दिओ मति), २२५८४-१ (+), २१५०४, २३२१७, २४५४८, २५५०१-२, २६४०७-१ महावीरजिन स्तवन- अतिचारगर्भित, उपा धर्मसी, मा.गु., डा. ४, गा. ३०, पद्य, म्पू., (ए धन सासन वीर जिनवर), २२४७९-५, २२५७१-४ महावीरजिन स्तवन- कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., गा. ४०, वि. १७२६, पद्य, म्पू, (श्रीश्रुतदेवीनें चरण), २२५१०-६९, २२५१०-८५ महावीरजिन स्तवन-छट्टाआरानुं, श्राव. देवीदास, मा.गु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद पाय नमी), २२४९८- १२(+), २६१५०-२ महावीर जिन स्तवन- छमासीतप वर्णनगर्भित, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., ( सरसति सामण दो मति), २२५९०-३५ (+), २३२७१-१४ महावीरजिन स्तवन- ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूप नयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., डा. ८, गा. ८१, वि. १८२७, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रादिक भावथी), २६८६५ ', महावीरजिन स्तवन- तपवर्णन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (कीयो छे मास पांच दिन), २२८७१-११ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२५, पद्य, मूपू., ( श्रमणसंघतिलकोपमं), २६६७५ महावीरजिन स्तवन- नालंदापाडा, ऋ. रायचंद, मा.गु., गा. २२, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (मगध देशमांहि विराजै), २२५६१-४(+), २१७१८-२ ', महावीरजिन स्तवन- निशालगमन, मु. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपु. ( सखी त्रिभूवन जिन), २१७४९-२ महावीरजिन स्तवन- पंचकल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण बंदु), २२०४५, २२२६४-३, २२४७९-७, २५१४९-१, २६२६३, २६७५५, २११२५- २(क) For Private And Personal Use Only महावीरजिन स्तवन- पारणा, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूप, (श्रीअरिहंत अनंत गुण), २२५१२-१०९, २२५५३-१३(०) महावीरजिन स्तवन- पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चोमासी पारणो आवे), २५००९-१६ (+) महावीरजिन स्तवन- षट्पर्वी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७१, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (गुरु पद पंकज नमी रे ), २६९३९ Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७१ महावीरजिन स्तवन-संयमश्रेणिगर्भित, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., ढा. ३, गा. ६१, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (केवलज्ञान दिवाकरुजी), २२७९२ महावीरजिन स्तवन-सिरोडी, मु. बुद्धिविशाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मे वंदु तोपे), २२४५०-२६(+), २२४५८-१ महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. १४८, ग्रं. २२८, वि. १७३३, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना पय), २३९९६(+), २६७७१(+), २२५१०-८२, २५५०८(#$), २६३५४($) (२) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पंचांगीगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए स्तवनमा प्राइ पद), २५५०८(#$), २६३५४(६) महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मनमोहन कंचन), २६७७६-११ महावीरजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महावीर मोटो जगनाथ), २२४५०-६४(+) महावीरजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर जिणंद), २२५१६-२५ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दया तणो सायर मुक्ति), २२४८१-६(+), २२८७२-३(+-), २६९९०-१८ महावीरजिन स्तुति-गंधार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गंधारें श्रीवीरजिणंद), २६८८७-२५(2) महावीरजिन स्तुति-बुरहानपुर, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिशलानंदन वीरजी), २२५१६-२४ महावीरजिन स्तुति-बुरहानपुरमंडन, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बरहानपुर नगरनो राजीय), २२५१६-२३ महावीरजिन हमचडी-पंचकल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ६८, पद्य, मूपू., (नंदनकुं त्रिशला), २२७८८-१(#) महावीरजिन हालरडु, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला झुलावे), २६७३३-३(+) माजीरी सज्झाय, ऋ. विनयचंद्र, रा., गा. १९, पद्य, श्वे., (आतो नाम धरावे माजी), २२५०१-१२(+) माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सरसती), २५००९-४(+), २२८८०-३, २३४१३-२ माणिभद्रवीर छंद, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), २२५४४-१(६) माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (सरस्वती स्वामीने पाय), २१९५४-२, २४०१७-१ माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमाणिभद्र सदा), २५००९-५(+) माधवानल चौपाई, वा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ५५२, वि. १६१६, पद्य, मूपू., (देवि सरसति देवि), २२३५४-१, २४२३२(5) मानतुंग-मानवतीरास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., ढा. ८, वि. १८७०, पद्य, मूपू., (सरी संत जणेसरु नमतां), २५६७९(+) मानतुंग-मानवती रास, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १४, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं माता सरसती), २१७०१, २२४९७-१ मानतुंग-मानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), २६४१३-१(+), २१८५७, २२८०५, २३४०२, २४६८३, २६४५६-१, २४६२८($) मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (मान न कीजे रे मानवी), २२४८४-९ मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (मान न कीजै रे मानवी), २२५९०-३८(+) माया सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (इण जगमें माया प्यारी), २२५९०-५२(+) माया सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (माया मूल ससारनो), २२५१०-७७ माया सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि*, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (माया कारमी रे माया), २२४४२-६७(+) माया सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया कारमी रे माया), २२५१०-५२ मिथ्यात्व वानी, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (नारायन देव कौ कहैं), २२५१५-३ मुनिपति चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य पार्श्वनाथ), २६९६६-१ मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., खं. ४ ढाल ६५, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (शंखेसर सुखकरू नमतां), २६३८२(+), २५६३५ मुनिपति चौपाई, मु. सिंहकुल, मा.गु., ढा. २७, गा. ६०६, वि. १५५०, पद्य, मपू., (गोयम गणहर गोयम गणहर), २११८० मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रमुख जिन पय), २२४८८-११(+), २२५५४-११(+), २२५७१-५, २२८७८-१ For Private And Personal use only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ , मुनिशिक्षा स्वाध्याय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपु, (शांति सुधारस कुंडमां ), २२५१०-१०५ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. १५, वि. १८५३, पद्य, भूपू (राजग्रही रलियामणीजी), २२५१२-६ मुनिसुव्रतजिन स्तवन- अगासी, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( प्रभुमुख देखन ते भव), २२४३८-१३(+) मृगांकलेखा चौपाई, क्र. रायचंद, मा.गु., डा. ६२, वि. १८३८, पद्य, ओ., (आदेसर जिन आददे चोवीस ), २५५८८ मृगांकलेखा चौपाई, मा.गु., गा. ३८८, पद्य, म्पू., ( गोयम गुणहर पय नमेवि), २५८३० मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२८, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (परतक्षि प्रणमुं वीर), २१५२२, २१५२४ मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपु. ( सुग्रीव नयर सुहामणो ), २२५०३ - २२(+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनगर सुहामणों), २२५५६ - २२ (+) मृगावती चौपाई, उपा, समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ३ ढाल ३७, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १६६८, पद्य, भूपू., ( समरु सरसति सामिणी), २५४४४(+), २५५९६, २६२२० मृगावती रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. ४२१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ नरपति कुलिं), २६४४३ मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, मूपू., (देस मगधमाहे जाणीयइ), २६८१८-२ मेघकुमार चौढालिया, रा., ढा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक चौवीसनै वांद), २२३३० मेघकुमार चौढालियो, मु. जादव, मा.गु., डा. ४, गा. २३, पद्य, वे., (प्रथम गणधर गुण नीलो), २२५०५-१३ मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, मा.गु., गा. २२, पद्य, खे, (वीर जिणंद समोसर्वांजी), २२५५६ - २३(+), २२५९०-१०(१), २२५५५ - २६ मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( धारणी मनावे रे मेघ ), २२५०५-२ मेघकुमार सज्झाय, पुहिं., गा. २०, पद्य, मृपू., (दुर्लभ लाधो मनुष्य), २२५४० - १(+), २२५५६-२०(+), २२५५५-३२ मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी), २२५१२ - १०३ मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, भूपू., (संजम लेई चित चिंतवे), २२४६४-२ मेघरथराजा सज्झाय- पारेवडा विनती, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (दया बरोबर धर्म नहीं), २१६६७-२ २२५५५-८१ मेतारजमुनि चौपाई, क्र. रायचंद, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४९, पद्य, ओ., (सासणनायक समरीये), २४७०१ (४) मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरुजी), २२८७१-७ मेतारजमुनि सज्झाय, पन्या. रामविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (धन धन मेतारज मुनि), २२५९० -५८(+) मेरुपर्वत वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (मेरुपर्वत कनकमय), २१७१६-२ मोक्षमार्ग की चर्चा शाह सोमजी के साथ, मा.गु., गद्य, वे., (केइक भला शिष्य), २१९१०-१ मोक्षमार्ग वचनिका, मा.गु., गद्य, दि., ( तिहा प्रथम जीव अनादि), २३४०६ मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोक्षनगर माहरु सासरु), २२८७१-३१ मोह स्तवन, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., ढा. २, पद्य, मूपू., (सतगुरुसुं शिष नामि), २१३३९-३ मौनएकादशीपर्व कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्री महावीरस्वामीने), २२९०४ मौनएकादशीपर्व देववंदन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, मृपू., (सकल नयर सिणगार हार), २६६९६ मौनएकादशीपर्व देववंदन, पन्या, रूपविजय, मा.गु., पद्य, मूपु., (नगर गजपूर पुरंदर), २६९५० मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण), २६८६४ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., ( द्वारिकानयरी समोसर्य), २२३६९(+#), २२४९८ - १३ (+), २२५६९-११ (+), २२००६, २२४५५-४, २३१३३-२(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद), २२५६९-९(+) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ४२, पद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीशांतिजी), २५२२२ मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), २२५५४-८(+), २२५६९-१०(०), २३२००-९(+), २२४९९-११ मौनएकादशीपर्व स्तवन- १५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (धुरि प्रणमुं जिन), २२४७४-१, २२९५४, २५५४८ For Private And Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७३ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), २२४५०-५७(+), २२५६४-४(+), २२४७७-१३, २२४८३-३, २२५४७-५, २२५६०-४, २२५६५-५, २२७८७-१०, २६८८७-६(2) मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरनाथ जिनेश्वर), २२७८५-८(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ), २२४७७-२८, २२७८७-१४ युगमंधरजिन गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुं साहिब हु सेवक), २२५०२-११(+) युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काया रे पामी अति), २२५७०-१६ युगमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद, रा., गा. १०, वि. १८४४, पद्य, श्वे., (जगत गुरु जुगमंदर), २२५१२-२६, २२५५३-११(#) युगमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीयुगमंधर धर्म), २२४८४-२ युगलिकविचार स्तवन, ग. देवेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ४, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर शासनतणो), २३२५३(+) युद्धप्रसंगवर्णन गीत, पुहिं., गा. ४, पद्य, (धरमोल मचे खुरसाण), २२५१७-७ योगरत्नाकर, वा. नयनशेखर, मा.गु., ग्रं. ९०००, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सरसति सुखदायक सदा), २१०८७ यौवनगर्व पद, मीराबाई, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (जोवन धन पाहुणो दीन), २१८०८-२ रतनकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण आगला रे), २२५०१-४५(+) रतनसंग-रतनावली चौपाई, मु. कवियण, मा.गु., ढा. ८, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (--), २१८२३(5) रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसोभा), २२५८८-१, २२७६२, २६१४७-१ रत्नचूड चौपाई, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ३४५, वि. १५०९, पद्य, मूपू., (सरसति देवी पाय नमी), २१५९२ रत्नचूड चौपाई-दानविषये, मु. अमरसागर, मा.गु., ढा. ६२, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (सरसति मात मया करी), २१६४५(६) रत्नपाल-रत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ६६, गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (सकल श्रेणि में दुर), २५८७३(+), २२३६२, २६८९९ रत्नपाल-रत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., खं. ३ ढाल३२, गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (रीषभादिक जिनवर नमु), २१९९१ रत्नमुनि पद, मु. चंद्रभाण, पुहि., गा. ११, पद्य, श्वे., (रतनमुनि पंडताइ थारी), २२५५५-२८ रत्नसारकुमार रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २९९, वि. १५८२, पद्य, मपू., (सरसति हंसगमनि पय), २१०३३ रथनेमि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जदुपति वांदण जावतां), २२५०२-२(+) रथनेमिराजिमतीसज्झाय, मु. गुलाबकीर्ति, पुहिं., गा. १३, पद्य, मूपू., (गिरनारी की पहारी पर), २२५५६-२४(+), २२५१२-७२, २२५५५-६३ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजिमती नेम भणी चाली), २२४५८-११ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (काउसग व्रत रहनेम), २२५३७-१६ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमी सदगुरु पाय), २२५८४-६(+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (गिरिनार चडी वंदत), २२५३५-१० रथनेमिराजीमती सज्झाय, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरुना प्रणमु), २२४४२-६(+) रथनेमि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (काउसग्ग ध्याने मुनि), २२५०३-१८(+), २२४५५-१२ रविव्रत कथा-लघु, मु. मनोहरदास, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (प्रथम वंदि सब जिनवर), २३८५४-४ राचाबत्तीसी, श्राव. राचो, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (जीवडा जागरे सोवे), २२८७८-१८ राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मा.गु., ढा. २४, गा. ६०५, ग्रं. ८८५, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (सारद शुभमतिदायिनी), २५८९३ राजिमती गीत, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तरसत अंखियाने हुइ), २२४९१-९(+) राजिमतीरथनेमि पंचढालिया, मु. रायचंद, रा., ढा. ५, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी), २२५०१-४३(+) राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सतगुरु प्रणमुजी पाय), २२५१२-१३ राजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन सीयल सिरोमणी), २२५१२-५४ राजिमतीसतीइकवीसी, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (सासननायक सुमरिय), २२५५६-४(+) For Private And Personal use only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ राजिमतीसती गीत, मु. जयतसी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि चतुर सुजाण ), २५४६३-२ राठोडराजा गीत, रूप, पुहिं., गा. ४, पद्य, (चलविचल न हुंती पृथवी), २२५१७-१० राता-धोला-कालावरणजिन स्तवन, ऋ. रायचंद, मा.गु., गा. १०, वि. १८३६, पद्य, श्वे. (प्रभातें उठीनें), २२५५७-१३(+), २२५५३-३४८० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रात्रिभोजन चौपाई, मु. अमरविजय, मा.गु., ढा. २३, वि. १७८७, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतसुसिद्धजी), २२३९६($) रात्रिभोजन चौपाई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. २६, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनवर तणा), २११७४ रात्रिभोजन चौपाई, मा.गु., गा. ७९, पद्य, वे., (श्रीगुरु भगत करुं मन), २३२३०-१ रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी), २२५१०-१०१ रात्रिभोजन रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., डा. १८, गा. २७०, वि. १७३८, पद्य, म्पू, (जिनवर जग उद्धरण गामण), २५४८६ रामचंद्रजी की मुंदरी, मा.गु., गा. ३१, पद्य, वे., ( सरसत सामण विनडं), २५५२४-३ रामजनकी वंशावली, मा.गु., पद्य, (जनकवंशी भाट त्रिलोचन), २२५१७-२० रामभजन पद, हरिदास, म., गा. ४, पद्य, वै., (रामचंद्र नाही घरी), २२५०८ - १८ रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., अधि. ४ ढाल ६२, गा. ३१९१, ग्रं. ४३७५, वि. १६८०, पद्य, म्पू., ( मुनिसुव्रतस्वामीजी), २३६२१ (+), २१६४० रामराजा सज्झाय, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बलिहारी राम राजनकि), २२५७०-५२ रामरावणयुद्ध गीत, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (लंक लगा रे लंक लगा), २२५१७-५ रामलक्ष्मणसीता पद, मा.गु., गा. ११, पद्य, वै., (रामलछमण दोन्यु अडसदा), २२५०१-१९ (+) रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., समु. ७, गा. १६१७, ग्रं. ३३२५, वि. १७२०, पद्य, मूपू (सिद्धबुद्धदायक सलहीय), २५१६४-१ राम सज्झाय, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मूपू., (अन्य दिवस नारद रिषी), २२४८४ - ११ रामसीता रास, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., खं. ९, गा. २४१२, ग्रं. ३७०४, वि. १७उ, पद्य, मूपू (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), २४९४६(+१६) रामसीता राम, मा.गु., गा. १०१, पद्य, मृपू., (दशरथनंदन प्राण), २६९३३ रामसीतेंद्रप्रक्षोत्तर सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मृपू., (एक दिवस आवी करी राम ), २४४१२ ३ रुक्मिणी सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विचरता गामो गाम नेमि ), २२४५०-७१(+), २२४५५-७, २२८७१ - २५ रूपसेन रास, मु. ज्ञानमूर्ति, मा.गु., ढा. ५७, गा. १२९६, ग्रं. १८५६, वि. १६९४, पद्य, मूपू., (तीर्थंकर त्रेवीसमो), २११२१ रूपीअरूपी बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (कर्म ८ पाप १८ मन), २२५१४-२ रेवतीश्राविका सज्झाय, श्राव. वनुजी, मा.गु., गा. ८, वि. १२७३, पद्य, ओ., (सोवनसिंघासण रेवती), २२५९०-६२०१ रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सोवन सिहासन रेवति), २२५२८-७ रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कुन सुकृत तप कीयो रे), २२५०५-१५ रेवतीश्राविका सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू., (सोवन संघासन रेवती), २२४६४-३ रोहिणी कथा, मु. विनयचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ६, पद्य, श्वे., (सकल सुरासुर जेहने), २२५१२-१२ रोहिणी कथा, मा.गु., गद्य, मूपु., (चंपानगरीय श्रीवासु), २३१५४-२ रोहिणीतप चैत्यवंदन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रोहिणी तप आराधीए), २२५७० - १३, २२५७५-१७ रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( श्रीवासुपूज्य नमी), २२५७०-५ रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( श्रीवासुपूज्य जिणंद), २२५०३-२१(+), २४०९०-२, २६९२५ - १ रोहिणीतप स्तवन, क, दीपविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१+१, वि. १८५९, पद्य, मूपु., (हां रे मारे वासुपूज), २२४४२ - ९(+) रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु, ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपु., (सासणदेवता सामणीए मुझ), २२४९८-४१ (+), २३०६७(+), २२३२४ रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( जयकारी जिनवर वासपूज), २२४७७-१४ For Private And Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ लघुदंडकभेद बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर ओगाहणा संघयण), २२५१४-३ लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., ढा. २९, गा. ६१९, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (त्रेवीसमो त्रिभुवन), २६०४३, २५७७५ ($) लीलावतीसुमतिविलास रास, वा. उदयरत्न, मा.गु., डा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष प्रभु पास), २२२७८, २३००७, २१७८१ (६) लुंकागच्छ उत्पत्ति चर्चा, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीभगवंत महावीरनइ), २२५४२-२ लुंकाप्रश्न चर्चा, मा.गु., गद्य, वे., (उत्सूत्र घणाई बोलई), २१२९२ , लूंका बहोत्तरी, मु. जीवंधर, मा.गु., गा. ७३, पद्य, मूपू., (गुणीयण सुणहु कथा इक), २२५१७-१९ लूण उतारण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( लूण उतारो जिनवर अंगे), २३४९३-३ लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामाई पणरसगंधफरस), २१२३१-२ लोक गीत, पुहिं. गा. ४, पद्य, (जणा घणा जाटणी घरे), २२५१७-१२ लोक गीत, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (पाल पूराणी हे), २२५४९ - ३ लोकस्वरुप वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., ( आ चित्र मनुष्यने), २१७१६-४ वंकचूल चौढालियो, मु. फतेचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८८१, पद्य, स्था., (पुर हथिणापति वंदीयै ), २२४६२-६(+) वंकचूल रास, मा.गु., गा. ९४, पद्य, श्वे., (आदि जिनवर आदि जिनवर), २१९६२(#) वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विहरमान भगवान सुणो), २२४४२-२४(+) वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १५, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (अरध भरतमांहि शोभतो), २६६४० वज्रस्वामी रास, क. पद्मविजय, मा.गु., डा. ९, गा. ९६, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (चोविसमा जे जिनवर ), २२३११ वणजारा सज्झाय, छजमलजी, मा.गु., गा. २७, पद्य, श्वे., (चतुर वणजारा हो सारद), २२५१२-७१ वनमाली सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (काया रे वाडी कारमी), २२४५०-७३(+) वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू, (शुक्लकार्तिकपंचम्यां), २१६७९ वर्गमूल कवित, मा.गु., पद, १, पद्य, (आदर्थे विषम संमलिक), २५००९-१५) वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे. (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ लू), २३३४७-१, २६२४७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ܕ वसुदेव रास, मु. हर्षकुल, मा.गु., गा. ३५६, वि. १५५७, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ सिद्धि), २११९८ ($) वसुदेवहींडी, मा.गु., गद्य, भूपू., (देशविरति सर्वविरति), २६१७० (5) वस्तुनिर्धारण नियम- बारव्रते, मा.गु., गद्य, मूपू., (दिन में कुशील सेवानो), २४१८८-२ ($) वासक्षेप भास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( झमकारो रे मादल वाजे), २२४६८-११ वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., डा. ६१, गा. ४५६, पद्य, म्पू, (ऋषभ अजित संभव जिनो), २६२०९(+) विक्रमराजा रास, मु. कविवण, मा.गु., गा. ४०४, पद्य, मूपु. ( श्रीवरदायक सारदा गज), २५७०४ विक्रमराजा श्लोक, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (वीसलक्ष सामंत सुभट), २२८३२-१ " ५७५ २६२५५ " वासुपूज्यजिन स्तवन, ग. केशव, मा.गु., गा. ९, पद्य, वे (प्रथम नमुं जिन पाया), २२५३७-१४ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( नायक मोह नचावीयो) २२५९०-११ (१) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( वासुपूज्य जिन बारमा ), २२४४२-३१(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (स्वामि तुमे कांइ), २२५०७-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, वा. सोम, मा.गु., ढा. २, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पायपंकज नमु), २२४९९-१२ वासुपूज्यजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मो मन लागो वासपूज्य), २१०५७-२ विक्रमचौबोली रास - पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी), २३०८४, २६८३६ विक्रमनृप - लीलावती चौपाई, मु. रंग, मा.गु., गा. २०५, वि. १४९६, पद्य, म्पू., ( सरसति माता प्रणमुं), २५८९० विक्रमराजा चौपई, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., खं. ६ डाल ७५, गा. ३१६८, वि. १७२८, पद्य, मूपु (प्रणमु पासजिणंद पय), " For Private And Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ ७ विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., डा. ६४, वि. १७२४, पद्य, मूपू (परम ज्योति प्रकास), २२६७० (+), २१३०८, २५५१२, २६०२६, २६६३२७) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ५२, गा. ११६२, ग्रं. १६२४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सुखदाता संखेश्वरो), २५३९१-१, २५७२७-२२५८६९ २६०१९(३) २६७५६ (३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., ढा. २७, गा. ५८५, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी प्रणमीइं), २६८२५ विचाररत्नसार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रणम्य श्रीमहावीरं), २१४८५ विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिं त्रीजे), २२९०७ - २ (+), २२२६८, २३२४० ($) विजयप्रभसूरि स्वाध्याय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी वर सारद सूरी), २२५१०-७३ विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., डा. ३, गा. २८, पद्य, म्पू., ( भरतक्षेत्रे रे), २२४९३-१३(+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, वे., (शुक्लपक्ष विजया व्रत ), २२५१२-४६ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. लालचंद, मा.गु., गा. १७, वि. १८६९, पद्य, स्था., ( प्रथम नमु श्रीअरिहंत), २२५०१-१(+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मूपु, (प्रह उठी रे पंच), २२४४८-३(+) विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( घर आंगण सुरतरु फल्बी) २२४८४३६, २२७८८-१६(५) विमलजिन स्तवन, मा.गु., गा. १५, वि. १७७७, पद्य, मूपू., (विमल जिनेश्वर देव), २२४९९-१३ विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. ९ + चूलिका, गा. ३८७, ग्रं. १७००, वि. १५६८, पद्य, मूपू., (आदिजिनवर आदिजिनवर), २६४२२ (६) " विमलमंत्री श्लोक, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. १०९, पद्य, मूपू., ( सरसति समरूं वे करजोड), २१९३४, २६११० विमलमंत्री सलोको, पंडित. शांतिविमल, मा.गु., गा. १११, पद्य, मूपू., (सरसती सामण बे करजोडी), २२९९९ विवाहपडल भाषा, मु. गौतमविजय, मा.गु., गा. ९४, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (ए करदन करिवर वदन कदन), २२३९३-१ विवेक जकडी, कविदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (तुम्ह त्रिभुवनपति हो), २२८५६-५ विवेक जकडी, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चेतन तेरो दानौ चेतन), २२८५६-६ विवेक जकडी, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, से., (बादि अनादि गवायी जीव ), २२८५६-४ विवेक जकडीगीत, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, चे., (चेतन चिरु भूलिङ भमिठ), २२८५६-३ विवेकमंजरी, किसनलाल, मा.गु., गा. २४०, पद्य, श्वे., ( नमो देव अरिहंतजी), २११३९, २३९४२-२ विशालजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सामी सुहावो माहरो रे), २२४८४-४ विहरमान २० जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (वीसे विहरमाण जिणवर), २२५९०-१४३(+) विहरमान २० जिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीसे विहरमान जिनराया), २४५९१३ - १०+) विहरमान २० जिन स्तवन, गं, जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (सीमंधर युगमंधरस्वामी), २२७८१-५ विहरमान २० जिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (विहरमान जिन वीस सीस), २२५९०-८७(+) विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., ( वंदु मन सुध विहरणमाण), 29 २२५५४-१०१०), २२४७९-२ विहरमान २० जिन स्तवन, मु. वसंत, रा., गा. ८, वि. १८२६, पद्य, श्वे., (सीमंधर स्वामीजी समरु), २२५१२-४२ विहरमान २० जिन स्तवन- मातपितानामगर्भित, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. १८, पद्य, भूपू (प्रथम सीमंधरजिन), २२८७८ - २८ विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचविदेह विषय), २२४६३-६(+), २२७८५ - २९(+), २२९८१-२ विहरमानजिन चैत्यवंदन, मु. केसर, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (रौखभांकित सीमधरो गज), २२८८३-१३ , विहरमानजिन स्तवन, मु. रायचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (पूर्व महाविदेह विराज), २२५६१-६ (+) विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त, २०, पद्य, मूपू., (मुज हीवडी हेजालूवी), २२३५० विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवर), २२९११, २५६०५ विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुखलवई विजये जयो रे), २६१३७-१($) वीरांगद चौपाई, मु. पद्मविजय, मा.गु., वि. १८२९, पद्य, मूपू., (विश्वनाथ जिनवर चरण), २१६६५ - १ (+), २२६२८(+) For Private And Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७७ वृद्ध सवैया, मु. जिनदास, पुहि., पद. १, पद्य, श्वे., (घटि आंख कि जोत सोच), २२५१३-३२ वेदनिर्णयपंचासिका, श्राव. बनारसीदास, पुहि., गा. ५१, पद्य, दि., (जगत विलोचन जगतहित), २२५१५-४ वैद्यविनोद भाषा, मु. मान, मा.गु., खं. ७, वि. १७४५, पद्य, मूपू., (उदित उदोत जगिमगि), २५४५५(+) वैराग्यछत्तीसी, मु. ज्ञानसमुद्र, रा., गा. ३६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (समझि समझि मन गति), २६८१८-३ वैराग्यपच्चीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मान म करिज्यो रे), २१८३५-२ वैराग्य पद, मीराबाई, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (रमते राम अतीतजी कोइ), २२५०८-४ वैराग्य पद, मु. रामविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऐसे मुनिवर देखे बनमै), २२५१२-५९ वैराग्य बारमासा, मु. रंगवल्लभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सुग्यानीडा रे प्रणमी), २२५७१-३ वैराग्यबावनी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ५१, वि. १६९५, पद्य, मूपू., (समज समज रे भोला प्रा), २२५४५-३ वैराग्य सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (नगरी खूब बनी छैजी), २२५५३-२२(#) वैराग्य सज्झाय, मु. रतनतिलक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (काया रे वाडी कारमी), २२५०१-२७(+), २२५९०-२६(+) वैराग्य सज्झाय, रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (हक मरना हक जानां), २२४५९-४(-) वैराग्य सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (पंदर तिथिमे प्राणीया), २२७८६-१२(-) वैराग्य सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (भव जीवा करणी रे कीजो), २२७८६-८(-) शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमाहे तिरथ), २२५३३-४ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), २५४११-१(+), २६४४२-१(+), २६८३२-१(+), २१५७०, २२२८६, २३२२४, २५५६६, २६२४६, २६३६४-१, २६९६४ श@जयतीर्थगीत, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शेव॒जो जोयानो), २२५१०-५० शत्रुजयतीर्थ गीत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि कंता हो), २२८८२-३ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय नाभिनरिंदनंद), २२७८५-१०(+), २२८८३-१(६) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (शत्रुजय सिद्ध), २२४५०-४३(+), २५००९-१०(+) शत्रुजयतीर्थ पद, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विमलगिर क्युन भए), २२४४२-२१(+) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाहला वारु), २२३१०, २४७७०(६) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (जगजीवन जालम जादवा), २४४०१(६) शत्रुजयतीर्थ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., खं. ९, गा. ६४५२, ग्रं. ८९९४, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (विश्वनाथ चरणे नमुं), २५३१८(+) शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), २३१७२(+), २१४३५, २१४८३-२, २३९९४, २४५२८-४, २६२२४-२, २६३४१, २२०१०(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरतन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (ते दिन क्यारे आवसी), २२५११-२८(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आंखडीये रे में आज), २२५१०-२४ श@जयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सहीयां मोरी चालो), २२४९८-१५(+), २२४८०-७ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्री रे सिद्धाचल), २२४५०-५(+), २५००९-११(+), २२५११-२५(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. खीमारतन, मा.गु., गा. ५, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल गिरि भेट्या), २२५७९-५(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल वंदो रे), २२४४२-३२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संघपति भरत नरेसरु), २२४४२-७(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (इण डुंगरीयानी झिणी), २२५९०-१२४(+), २४३२१-४ शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनराजको परम जस गावन), २२५१०-४७ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मोरा आतमराम कुण दिन), २२४९८-३७(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शेव्रुजानो वासी), २२५१०-११ For Private And Personal use only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ शत्रुजयतीर्थस्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरि ध्यायो), २२४५०-४(+), २१४८३-४, २२४८३-४, २२५७५-७ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (यात्रा नवाणु करीए), २२४९८-३९(+), २४७८०-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेश्वर सेवना), २२४४७-५, २२५१०-१०७ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रंगवर्द्धन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेव॒जानो स्वामी), २२८८२-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (विमलाचल सिर तिलो), २३२००-११(+), २२८७८-१६, २५४००-४ शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (--), २२५९०-६८(+$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (चालो सखी सिद्धाचल), २२४४२-२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. वल्लभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चालो सखी सिद्धाचल), २२५११-१२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विमलाचल विमला पाणी), २२५७९-७(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मारु डुंगरिये मन), २२५१०-३९ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वनिता पीउने विनवे), २२४४२-२२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति सामण विनवूरे), २२५०३-५(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (श्रीशत्रुजय तीरथसार), २२४७७-१८, २३२२९-४(६) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडण), २२४६३-५(+), २२४८१-४(+), २२७८५-२८(+), २२८७२-१(+-5) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमाहे तीरथ), २२५६४-७(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिकमंडण पाय), २२५४७-७ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), २२४७७-१९, २३२२९-९, २६८८७-१५(#) शत्रुजयतीर्थे मोतीशालूंक स्तवन- इतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (उठी प्रभाते प्रभु), २५२१३($) शनिश्चर छंद, मा.गु., गा.१६, पद्य, मूपू., वै., (छायानंदन जगजयो रवि), २५००९-६(+) शांतिजिन आरती, श्राव. गोकुलभाई, गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (जय जय आरति शांति), २४४२७-३ शांतिजिन आरती, सेवक, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (जय जय आरती शांति), २२६५४-२, २४७८०-२, २५२०६-२ शांतिजिन आरती, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति तुमारी तोरा), २२५६९-४(+), २२७८१-४(+), २३०७८-३(+६), २२९८६-३ शांतिजिन गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांतिकुंवर सोहामणउ), २२५०२-१२(+) शांतिजिन चैत्यवंदन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोलम जिनवर शांतिनाथ), २२७८५-११(+), २४५९३-१(+$), २२८८३-२ शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), २२५९०-१५०(+), २३७२९-१(+), २२४६५-२, २२५१२-१६, २२५८५-२($) शांतिजिन पद, मु. लाभसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (भले उग्यो छे दिन), २२४५०-३३(+) शांतिजिन पद, मु. हरखचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (विश्वसेन अचिराजी के), २२५०१-२९(+) शांतिजिन फाग, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (शांतिजी के दरबार चाल), २२४४२-७५(+) शांतिजिन रास, मु. रामविजय, मा.गु., खं. ६, गा. ६९५१, वि. १७८५, पद्य, मूपू., (सकल श्रेय वरदायिनी), २५९४२ शांतिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मोरा शांति जिणंद), २२५१०-४९ शांतिजिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शांति जिनेसर सोलमो), २२४६८-१६ शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., गा. १३, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (श्रीशांति जिणेसर), २२४६४-६ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तु मेरे मन में तु), २२४५०-३६(+) शांतिजिन स्तवन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ दयानिधि), २२५८४-४(+) शांतिजिन स्तवन, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हारे लाला शांति), २२४९८-४०(+) शांतिजिन स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सेवा शांतिजिणेसर की), २४३५४-२ For Private And Personal use only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विश्वसेन राय कुल), २२४६८-१४ शांतिजिन स्तवन, मु, मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), २२५७० १४, २२५११-१७) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( सोलमा श्रीजिनराज), २२४९८-१० (+) शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (तुं धन तुं धन तुं), २२५०१ - ३३ (+), २२५१२-३४ शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रात उठ श्रीसंतिजिण), २२५५७-५ (+), २२५१२-३३ शांतिजिन स्तवन, मु, शांतिकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूषू., (वंछितपूरण आदि नमो ), २२४८०-६ शांतिजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सेवा शांति जिणंदनी), २२४४२-१(+) शांतिजिन स्तवन, मु. सदासागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति जिणंदसुं जी), २२५९०-६५(+) शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो ), २२५९०-१३७(+) शांतिजिन स्तवन, मु. सुखलाल, मा.गु., गा. ११, पद्य, वे., (सोलमा जिनजी शांतिनाथ), २२५०१-१३(+) शांतिजिन स्तवन, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., ( चित चाहत सेवा चरण), २२५१२-१०० शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १८, पद्य, मृपू., (शांति जिणेसर सोलमा ), २२४८४-२३ शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर केसर), २१२८३-२, २२५१० ५९, २२८७४-१ शांतिजिन स्तवन- बृहत्, मु. हर्षनंदन, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (समकित सुधर पालिवा), २२४८८-३(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर समरीइं), २२५६४-१२(+), २२४७७-७, २२७८७-७, २६८८७-१०० " शासनदेवता स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (डुंगर उपर डुंगरी चढि), २२५८९-४ शासनदेवता स्तवन, मा.गु., पद्य, मृपू., (शासनदेव तु रे सानिध), २२५८९ - ३ शांतिजिन स्तुति, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर केसर), २६८८७-१८(#) शांतिजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू, (शांतिकरण श्रीशांति), २२५१६-१९ शांतिजिन स्तुति- जावरापुर, मु. पुन्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (शांतिकर शांतिकर), २२४५०-६५(१) शांतिजिन स्तुति-फलवर्द्धि, मु. देवकुशल, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (फलवधीरो मंडण सांति), २२४७७-४ शांतिप्रकाश, पुहिं., गा. १२५, पद्य, श्वे., (प्रेम सहित वंदौ ), २५५८२ शालिभद्रधन्ना सज्झाय, वा. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., (अजिया मुनि० वैभारगिर) २२५०३ - १९(०), २२४५५-१४ शालिभद्रमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., डा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मृपू., (सासननायक समरियै ), २१०२९(+), २५३७०(+), २१७१२, २२१३८, २२६३३, २२८५३, २६२१२, २४१३७ (६), २५३३८($) शालिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शालिभद्र आज तमने), २२५०३-९(+) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., ( प्रथम गोवाल तणे भवे), २२४५८-७ शालिभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, भूपू., (करजोडी आगल रही लेई), २२५५६-९ (+), २२४८३-२ शाश्वतजिन गृहप्रतिमा संख्या व मानयंत्र, अज्ञा., को. मूपू., (), २६५३४ शाश्वतजिन स्तवन, मु. माणिकविमल, मा.गु., ढा. ७, गा. ८४, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पाय नमी), २६१५१ शाश्वतजिन स्तवन- नंदीश्वरद्वीप, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपु. ( नंदीसरवर दीप मझारि), २२८७८-३५, २६९९० १४ शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु., (ऋषभ चंद्रानन वंदन), २२४७७-२२ " शाश्वताअशाश्वताजिन चैत्यवंदन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (कोडी सातने लाख बहोतर), २२८८३-८($) शाश्वताचैत्यनमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ५, गा. २०, पद्य, मूपू., ( रिषभानन बधमान चंद), २२८७८-२ शासनदेवता गीत मा.गु., पद्य, भूपू (-), २२५८९ - १(३) ५७९ शासनदेवता स्तुति, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपु. ( डमडम डमरू वाजे वाजी), २२५८९-२ , शाहजहां केद वर्णन पद, पुडिं., पद्य, (ए सुनो वर आजि तेरी), २२४६४-१६ ) शीतलजिन पद, मु. दोलतरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (तेरी सुरत बलिहारि), २२४५०-२२ (०) शीतलजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुख नीको शीतलनाथ कौ), २२४४२-४५ (+) शीतलजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भले मुख देख्यो), २२४५० - १६(+) For Private And Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ शीतलजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा.७, वि. १७६२, पद्य, श्वे., (सदगुरुने चरणे नमी रे), २२५९०-४७(+) शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (शीतलजिन सहजानंदी थयो), २२५११-१४(2) शीतलजिन स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हुं तो लागुं लागुं), २२७८८-८(#) शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सितलजिननी सेवना), २२४४७-३ शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), २२४९३-३(+), २२४९८-३८(+), २२५९०-५(+), २२४८०-३,२२५१०-५४ शीतलजिन स्तवन, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (शीतल जिणवर राया), २२४९९-१०।। शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (मोरा साहेब हो), २३२००-२(+), २२८७८-१७ शीयलप्रकाश रास, मु. पद्मविजय, मा.गु., खं. ९, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (शंखेश्वरपुर मंडणो), २५८५२(+) शीयलव्रत सज्झाय, मु. जीवविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाणी हो भवियण), २६९२५-२ शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (शीयल मुंद्रडी खरी रे), २२५०३-११(+) शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सोल वरसरा जंबुकुमरजी), २२०२२-२ शीलनववाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (रमणी पशुपंडग तणी रे), २२४६४-१३ शीलनववाड सज्झाय, पुहि., गा.१०, वि. १९४२, पद्य, श्वे., (अहो भव्य प्राणी रे), २२५५५-४३ शीलनववाड सज्झाय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (--), २२४६४-१(६) शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), २१६५१, २६५०९ शीलबत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (सील रतन यतने करि), २२४८८-५(+) शीलमहिमा सज्झाय, मु. अमरचंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (सतगुण य नमीने जपु), २२५१२-९७ शीलसंतोककथा चौपई, रा., ढा. १०, पद्य, श्वे., (आदिनाथ आदे करी चोवीस), २२९२८ शीलोपदेश सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (मत ताको नार वेराणी), २२५१२-८५ शुकनावली*, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), २२५८६-५(+$) (२) शुकनावली-अनुक्रमणिका, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), २३८४७ शृंगारवर्णन गीत, मु. धर्मसिंह पाठक, पुहिं., पद्य, मूपू., (ठाढे कुच गाढे देखे), २२५१७-८ श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दरसन प्रतिमा१ ज्ञान), २२४५४-४(+) श्रावक १२ व्रत रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रावकरा व्रत बार), २४३४७(-5) श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपात अतिचार), २२४५४-३(+) श्रावक २१ गुण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्म रत्ने व्यवहारे), २२५७५-१२($) श्रावक २१ गुण सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (लज्जावंत दयावंत), २२०५१-२(+) श्रावक आलोयणा, रा., गद्य, मूपू., (अणगल जल वावर्यै लाख), २३३५०-१(+) श्रावकइकवीसगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सह गुरु पद प्रणमी), २२८३८-२ श्रावकइकवीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (श्रावक नाम धरायनें), २२५०१-३४(+) श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), २२५९०-१४९(+), २३२००-१२(+), २३७२९-२(+), २२५१२-१४, २५०३०-२ श्रावककरणी सज्झाय, मु. धर्मसी, पुहि., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन सेहरो), २२४५६-२ श्रावककरणी सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रावक धर्म करो), २२५१२-४० श्रावकपाक्षिक अतिचार-लघु, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीज्ञाननइ विषइ), २२५२६-१ श्रावकप्रतिमाविधि सज्झाय, मु. लावण्यप्रिय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (दसण वय सामाईय पोसह), २२४८८-८(+) श्रावकप्रतिमा सवैया, सा. धनाश्री, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (पडमधारी श्रावकने दान), २२५१३-२७ श्रावक बारहव्रत, मा.गु., ढा. ११, वि. १८३२, पद्य, मूपू., (पांच अणुव्रत परवरया), २६२६५-१ श्रावक मोयकाबोल की आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (अगलित जल व्यापारे), २१६४१-२ श्रावक शिखामणइकवीसी, मु. रत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (ऐडा मारीने धडा उडावै), २२४४९-४ For Private And Personal use only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ श्रावकोपदेश लावणी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रावक के घेर जन्म), २२५०८-६ आवकोपदेश सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू., ( श्रावकधर्म करो सुख), २२५५३ - १२(१) श्रावकोपदेश सवैया, सा. धनाश्री, रा., पद. १, पद्य, श्वे., (श्रावकनो खाणो पीणो), २२५१३ - २६ श्राविका गहुली, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( रूडीने रहियाली रे), २२४६८-५ श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., उल्ला. ४ डाल १११, गा. २३९५ ग्रं. ६९३९, वि. १७७०, पद्य, मूपु. ( सुखकर 19 साहिब सेवी), २५९४६ (५०), २६०७१ (६) श्रीपाल चौपाई, मु. परमल्ल, मा.गु., खं. ४, वि. १९३०, पद्य, स्था., (श्रीशांतिनाथ सिमरु ), २११३७ श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३२३, वि. १५३१, पा, भूपू., ( करकमल जोडि करि सिद्ध), २५७३१(+), २५८०७(क), २४९६७३) श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ४०, गा. ७५६, ग्रं. ११३१, वि. १७२६, पद्य, मूषू, (सकल सुरासुर जेहना ), २६४६२ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ हाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, पू., ; ( कल्पवेल कवियण तणी) २२९०२-१ (+), २५६२३(+), २६२५८(+), २१६७२, २५२३५, २५३४७, २५६०६, २५६७२, २६९६३, २६७३४(५), २१९३३ (६), २४१४५(३), २५१३१(३), २५५८६ाङ), २६९४५ १४) , (२) श्रीपाल रास- बालावबोध, पंन्या. गणेशरुचि, मा.गु. ग्रं. २४००, गद्य, म्पू., (ते गुणसुंदरी कुमरी), २५२३५, २६९६३ (२) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रीजो खंड पूरो थयो ), २२९०२ - १(+), २५६२३ (+), २६२५८(+), २५६७२, २५५८६ ($) श्रीपाल रास- बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., डा. ४९ गा. ८६१, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (अरिहंत अनंतगुण धरीये), २२९२९, ५८१ २६६२१ श्रीपाल रास - लघु, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २०, गा. २७१, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (चउवीसे प्रणमु जिनराय), २५७६० श्रेणिकराजा गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु नरग पडतो राखीइ), २२५०५ - १२, २२५१०-१०९ श्रेणिकराजा चौपाई, मु. धर्मसी, मा.गु., डा. ३२, गा. ७३१, वि. १७१९, पद्य, म्पू., ( जगनायक चडवीसजिण), २१६८२ श्रेणिकराजा रास, मु. भीमजी, मा.गु., खं. ३, गा. ७१८, वि. १६२१, पद्य, स्था., (गोतिमनइ सिर नमिय), २१०५८-१ श्रेणिकराजा रास, मा.गु., गा. ३०५, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (--), २१७१४ श्रेयांसजिन पद, मु. आणंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू., ( सहेर बडो संसार को), २२४३७-६ षटभाई सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू, (सीबल शिरोमणि नेमजिणं), २२५०५ - १(३) षट्पतिथि स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., ( पाखी पुनम बीज पंचमी), २२५१६-२० षड्दर्शन सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू., (सकल देवना बंदी पाय), २२५३५-१५ द्रव्य वर्णन, मा.गु., गद्य, थे., (चेतनवंत अनंतगुण), २६५६७-२ " षड्द्रव्य विचार स्तवन, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., ढा. २, पद्य, मूपू., ( प्रथम जिणेसर पय), २१३३९-२ पड्लेश्या स्तवन, आ. तिलकसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (छ पंथी मिल दिसावर), २२८८०-६ संभवजिन गीत, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु. ( लीनो रे मन संभवजिन), २२५१०-२८ संभवजिन चैत्यवंदन, मु. ऋद्धिसार, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( जय जय संभव शांतिधर), २३५१६ - २ (+) संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपु. ( प्रभु प्रणमुजी संभव), २२५९०-१५६(+), २२५२६-४ संभवजिन स्तवन, गं. कान्हजी, मा.गु., ढा. २, गा. ५, वि. १७६२, पद्य, वे., (तुं तो त्रीजो रे), २२५३७-२ संभवजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ८, वि. १७५१, पद्य, श्वे., (संभव नाम सोहामणो वर), २२५३७-१२ संभवजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. ८, पद्य, ओ., (), २२५३७-१(३) संभवजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपु. ( संभव जिनवर विनति), २२७८५-१७(+) संभवजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (साहिब सांभलो विनति), २२४९८-५ (+), २२५११-२०(#) संभवजिन स्तवन, मु, मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूषू., (समकित दाता समकित ), २२४४२-३६ (५), २२४४७-७ संभवजिन स्तवन, मु. सुमतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुने संभव जिनशुं), २२४८० - २ संभवजिन स्तवन, मु. हर्षप्रमोद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मृपू., ( संभवनाथ सुहावणा रे), २२४९९-३ संभवजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विणजारा रे नायक संभव), २२५९०-१५ (+) For Private And Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ संयती चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (चरम जिणेसर प्रणमी), २६८१८-४ संयुक्त वर्णमाला के ५ प्रकार, मा.गु., पद्य, (क्क क्ख ग्ग ग्घ ङ), २२५७०-२० संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., अध्य. ४ उन्माद, गा. ७४, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (बुद्धिवचन वरदायनी), २६४९४(5) संवर-निर्जराभेद विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पडिक्कमामि पंचहिं), २१४४९ संवर सज्झाय, आ. सौभाग्यलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पांचम पदने गाइरे), २२४४२-३४(+) संवेगबावीसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (शुध संवेगी करीआ पाले), २२७८०-२ सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रवचन अमरी समरी), २२८७८-२० सतीकुसती सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (वात सुणो नारि तणी), २२५१२-१९ सती सज्झाय, पुहिं., गा. १४, पद्य, श्वे., (सतीयांदा पेंडा निराल), २२४८४-१६ सत्ताणुं बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (आगमीया कालरा केवलीया), २६२७६-१ सदयवत्स रास, मा.गु., गा. ६६१, पद्य, श्वे., (माई महामाई मज्झे), २४१४९($) सदयवत्ससावलिंगा कथा, मा.गु., प+ग., मूपू., (न्यायसूतारा नरवहण), २१७८८ सदयवत्ससावलिंगा चौपाई, मु. केशव, मा.गु., गा. ४४४, वि. १६९७, पद्य, श्वे., (--), २२४४०-१(६) सद्गुरुआलाप दोहरा, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (ज्यौं दातार दयाल होइ), २२५१५-५ सद्गुरु पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सबही पाप फुली ताहो), २३२७१-५ सद्गुरुवाणी पद, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (मीठी अमृत सारखी), २२५०१-९(+) सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. कुशलमुनि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुरपत आप करे प्रसंसा), २२५१२-४७ सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु.खेम, मा.गु., गा. १७, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (सुरपति प्रशंसा करे), २२५१२-१८ सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांभलि सनतकुमार हो), २२५१०-७२, २२५१०-९१ सनत्कुमार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १६, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (सुरनर परसंशा करे), २२८७१-८ सप्तव्यसनफल सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (जूवै रमें नर जेह), २२५३२-२ सप्तव्यसन सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., सज्झा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धारथ कुल तणो), २२५१०-३५ सप्तव्यसन सज्झाय, पं. रत्नकुशल गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धारथ कुल), २६९२५-१३ समकितना सडसठबोलनी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), २३२३४(+), २२८७४-३ । समता सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (समता रस का प्याला), २२५५५-३३ समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मिलि चौविह सुरवर), २२४३८-१७(+) समस्या पद संग्रह, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (श्याम सरोवर सफेद जल), २२५१०-८१ समस्या सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, (लगे सींग कुं बोल लगे), २२५१३-१० समाधिमरण, पुहि., पद्य, श्वे., (अथ अपना इष्टदेव), २१७७५ समुद्धात विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (समुद्धात करी मरै ते), २२००२-३(+) सम्मेतशिखरतीर्थगीत, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चलो जईये समेतशिखर), २३४९३-४ सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पूरव दिसे दीपतो), २४५९३-७(+) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. क्षमा, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मधुवन में जाय मची रे), २२५९०-१४०(+) सम्मेतशिखरतीर्थरास, मु. सत्यरत्न, मा.गु., ढा. ७, वि. १८८०, पद्य, मूपू., (अजितादिक प्रभु पाय), २६१३१ सम्मेतशिखरतीर्थस्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (तुंही नमो नमो समेतशि), २२४९८-२९(+), २२८३८-३() सम्यक्त्वकौमुदी कथाष्टक, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४२, ग्रं. १८००, वि. १८८५, पद्य, स्था., (विज समान श्रीवीरजिन), २५४०३ सम्यक्त्ववर्णन रास, ग. केशव, मा.गु., वि. १७१३, पद्य, श्वे., (स्वस्तिश्री सुखकर), २५७००(+$) सम्यक्त्व विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवै जीवनें), २६२७१(६) For Private And Personal use only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८३ सम्यक्त्वसार प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, मूपू., (भस्मग्रह उतर्यानो), २६३७१ सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चाखो नर समकित सुखडली), २२४३७-२ सम्यक्त्व स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकित द्वार गभारे), २२५७५-३ सम्यग्दृष्टि सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे समदीष्टी जगतमै), २६६४६-२ सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बुद्धि विमल करणी), २२५९०-१६८(+) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरस वचन समता मन), २५००९-३(+) सरस्वतीदेवी छंद, मु. हेम, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (ॐकार धुरा उच्चरणं), २२५८०-१६(+) सर्पविषउतारण मंत्र, मा.गु., गद्य, (--), २४१९१-१ सर्वजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सीमंधर प्रमुख नमुं), २२५०६-६ सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), २२५०३-६(+), २४३२१-१० सवैयाचौवीसी, क. अमरेस कवि, मा.गु., गा. २७, पद्य, श्वे.?, (प्रथमेश जिनेश नमे), २२२९९-२(2) सवैया संग्रह, मु. धर्मसीह, पुहिं., सवै. ४, पद्य, मूपू., (मन की त्रिस्ना नह), २५५४५-१ सवैया संग्रह, मु. सुगन, मा.गु., पद्य, श्वे., (सकल कला परवीन), २४३५८($) सहजानंदी सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (सहजानंदी रे आतीमा), २६९२५-४ सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ ढाल २२, गा. ५३५, ग्रं. ८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर गुणनिलउ), २२१८१ सागरचंद्र चौढालिया, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, वि. १८९८, पद्य, श्वे., (सागररायनी वारता कह), २६६९३-१ साढीबारे न्यात कवित्त, मु.रूपकीर्ति, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (देवल सात हजार जे नरा), २३२४६-२ सातव्यसन सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. १७, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साधु), २२५३७-६ सातव्यसन सज्झाय, मु. नंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुगण सनेही हो सांभले), २२५०५-१७, २२५१२-२७ साधारणजिन गीत, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हे जिनभजन को परिमाण), २२५१०-११० साधारणजिन गीत, मु. मान, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति देवी मनरंग), २२५९८-३(+) साधारणजिन चैत्यवंदन, मु. राम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जगन्नाथने ते नमै हाथ), २२४५१-२६(+) साधारणजिन जन्ममहोत्सव, मा.गु., गद्य, मूपू., (अत्रांतरे प्रथम छपन), २१२५९ साधारणजिन पद, मु. गुणसमुद्र, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मीटो व्यथा हमारी), २२४५०-१९(+) साधारणजिन पद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ये है महबूब हमारा), २२५९०-१२७(+), २२८७९-३ साधारणजिन पद, मु. मनोहर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (उठि उठि जिनजी को), २२५९०-१३५(+) साधारणजिन पद, मु. मालदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (भलै मुख देख्यौ), २२५९०-१३२(+) साधारणजिन पद, मु. रुपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु सुमरण कीया), २२५९०-९३(+) साधारणजिन पद, मु.रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (देख्या दरसण तिहारा), २३२७१-६ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (देव निरंजन भव भय), २२४५०-२९(+) साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (लोक चहुद के पार), २२४५०-३०(+) साधारणजिन पद, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुम देखो विराजत है), २३२७१-१६ साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तरन तरन तारन तारन), २२४४५-३ साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (दरसण देख तुमारा), २२४५०-११(+) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (दरस बिन तरसै दोय), २३२७१-३२ साधारणजिन पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (निरंजन यार वोरे तु), २२५९०-१०५(+) साधारणजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (प्यारो कौन वतावैरे), २३२७१-१० साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (फरसे जिनराज राजरीध), २२४४२-२९(+) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (मेरी अरज विसर मत), २२४४२-६५(+) साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (मोहनदी की गरीधारा), २२९३६-५ For Private And Personal use only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ साधारणजिन पद, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (साहिब तेरी बंदगी मै), २२५९०-११८(+), २२८७९-२ साधारणजिन स्तवन, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पामी प्रभुजीना पाय), २२५१०-१११(६) साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मिल जाज्यो रे साहिब), २१२८१-४ साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जाणे रे प्रभु वाता), २२५१०-२६ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भलुं थयु रे माहरा), २२५३७-७ साधारणजिन स्तवन, मु. ब्रह्मदयाल शिष्य, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (जिनजी थांकीजी सुरत), २२५९०-५९(+) साधारणजिन स्तवन, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिन भजो जिन भजो), २२५०९-२(+) साधारणजिन स्तवन, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भजन करे एह जिनु कोरी), २२५०९-३(+) साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मे परदेसी दूरका दरसन), २२५११-२६(2) साधारणजिन स्तवन, मु. लाभधीरविजय, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (दरशन थारो प्यारो मोय), २२४३८-२(+) साधारणजिन स्तवन, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु तौय देखत कुमति), २२४३८-११(+) साधारणजिन स्तवन, मु. लाभधीरविजय, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभू तेरो दरशन तारक), २२४३८-७(+) साधारणजिन स्तवन, मु. सुंदरदास, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (अब कांइ त्यार), २२५५५-८७ साधारणजिन स्तवन, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (दिनपत को न भांत), २२५५५-३ साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भवोदधि पार कीजो तुम), २२५५५-७८ साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सदगुरुने लागुपाय), २२५११-९(#) साधारणजिन स्तवन-कुमतिखंडन, मु. लाभधीरविजय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुमति किम रे जिन), २२४३८-१५(+) साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), २२७८५-३०(+), २२४७७-२४, २२७८७-१५ साधु आचार स्वाध्याय, मा.गु., वि. १८३२-१८५९, पद्य, मूपू., (अरिहंतने नमु), २१५०१ साधुगुण गहुँली, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वीर पटोधर विचरता जी), २२४६८-७ साधुगुणबत्तीसी, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (पापपथ परहरै मोक्षपथ), २५६९४-३ साधुगुणमाला, श्राव. हरजसराय जैन, पुहि., गा. १२५, वि. १८६४, पद्य, मूपू., (श्रीत्रैलोकाधीस को), २६०७८-१(+) साधुगुण सज्झाय, ऋ. आशकरण, पुहिं., गा. १०, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (साधुजीने वंदना नीत), २२५५३-१६(#) साधुगुण सज्झाय, ग. कान्हजी, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (पंच सुमति त्रिण), २२५३७-१८ साधुगुण सज्झाय, मु. कुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुमतगुपतसुत संयमधारी), २२५१२-८ साधुगुण सज्झाय, ग. मणिचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रवण कीर्तन सेवन ए), २२५५२-१ साधुगुण सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (मोटा पंचमहाव्रतधारी), २२५९०-६६(+) साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सकल देव जिणवर अरिहंत), २२५९०-१५५(+) साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पांचे इंद्री रे), २२५९०-२०(+), २२५०५-६ साधुगुण सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (महासंजम सुधीर तोडी), २२५१३-४० साधुपंच भावना, उपा. देवचंद, मा.गु., ढा. ६, गा. ९५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति सीमंधर परम), २२५४९-६ साधुपद सज्झाय, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. १६, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (समकितधारी सुधमतीजी), २२५५५-१६ साधुपद सज्झाय, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुमति गुरु शुद्ध), २४३२१-११ साधुलक्षण सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (तारण तिरण जिहाज तुम), २२५१२-९२, २२५५५-३९ साधुवंदना, आ. तिलकसूरि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सारद लागुंतोरै पाय), २२८८०-५ साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ७, गा. ८८, पद्य, मूपू., (रिसहजिण पमुह चउवीस), २११०४-१(+), २४२३१(+६), २१२५७, २१२५८-१ साधुवंदना, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ३२, पद्य, दि., (श्रीजिनभाषित भारती), २२४६७-६ साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., (पंच भरत पंच एरवय), २३२२६ साधुवंदना, मु. श्रीधर, मा.गु., ढा. १३, गा. १६३, पद्य, मूपू., (पढम नाह सिरी रिसह), २११०७, २११२४, २१२५६-१ साधुवंदना, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. १४४, पद्य, मूपू., (तुं जिनवदन कमलनी), २१६९५, २६४८९ For Private And Personal use only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८५ साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. १८, गा. ५१९, ग्रं. ७५०, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिन सोलमउ), २४२५०() साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, श्वे., (नमुं अनंत चोवीसी), २४२४५, २६८४९(-) साधुवंदना सवैया, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (अकल बहोत उंडी साचो), २२५१३-४३ साधुशिखामण सज्झाय, मु. नयविमल, मा.गु., ढा. १, गा. २२, पद्य, मूपू., (निज वाहनथी उतरी), २६९४१-२ साधुसत्यावीसगुण सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (नमु अणगार सब महाव्रत), २२५१३-४४ सामायिक बत्रीसदोष सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धुरि गौतममुं लीजै), २२५९०-१५३(+) सामायिक विचार, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), २२५२९-४($) सामायिक सज्झाय, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. १०, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (सामायिक सुखदाइजी चित), २२५०१-४६(+) सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन सुधे करो), २२५६४-१३(+) सामायिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चतुर नर साय नायक), २२५७०-६ सामायिक सज्झाय , मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमी गोतम गणधर), २२२४४-१(+) सामायिक स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (जिनवर पय पंकज नमी), २२८७८-११(६) । सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुंदर, मा.गु., गा. २३७, वि. १५४८, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ सुमरन), २५४८७ सासुवहुसंवाद सज्झाय, मु. शिवलाल, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सासु कहै बहु सुण वाण), २२५०१-२६(+) सासुवहु सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सासु कर बहुसुं वात), २२५१२-१७ सिंहासनबत्रीसी, ग. संघविजय, मा.गु., गा. १५४७, ग्रं. १६००, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सकल मंगल धर्म धुरि), २५४१०(+) सिद्धगुण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्धना ज्ञानावरणादि), २२५७५-१३ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. चेतनविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय सिद्धचक्र सुर), २२५८७-५(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत पद उज्जल नमुं), २२५८७-३(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुखदायक श्रीसिद्धचक), २२५८७-४(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधतां), २२५८७-६(+), २२५०६-७, २२५७०-२१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहेले दिन अरिहंतनु), २२४५०-४२(+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधविजय-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधता), २२८८३-९ सिद्धचक्र नमस्कार, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत उदार कांत), २२७८५-९(+) सिद्धचक्र पूजा में प्रारंभ के दोहे, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रथम तो बलबाकुल करी), २२५७८-६(+) सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवपदमहिमासार सांभलज), २२४९८-१६(+) सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक सरोज उद्धरीओ आगम), २२४३६-२(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्रनी करं भव), २२२९२-२ । सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वखाण्यौ), २२४४२-३७(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. केशरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सारद माय प्रणमी), २२४९३-५(+) सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुरमणि सम सहू मंत्र), २२४४२-६०(+), २२५५४-२(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चोत्रीस अतिशय सोहतो), २२४७४-५ सिद्धचक्र स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र वर सेवा), २२५८७-७(+) सिद्धचक्र स्तवन, वा. भोजसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र सुहामणो), २२४४२-४(+) सिद्धचक्र स्तवन, उपा. वीरसुंदर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (नवपदनो रे ध्यान धरी), २२४४२-३८(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. शिवसागर, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर जिणेसर), २२४४४-४ सिद्धचक्र स्तुति, मु. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र सेवो), २२४७७-३२ सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक), २२७८५-७(+), २२९२४-११(+), २५१५२-७ सिद्धचक्र स्तुति, मु. ज्ञानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवीर जिनेसर अलबेल), २२४७७-३० For Private And Personal use only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो वळी सिद्ध), २२५७५-५, २६८८७-१४(2) सिद्धचक्र स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा), २४७८८-३ सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अति अलवेस), २५००९-१२(+), २६८८७-१७(#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेशर अति अलवेसर), २२४७७-३१ सिद्धचक्र स्तुति, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आसो चैत्र आंबिल ओली), २२४७७-३३ सिद्धपद स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (नमो सिद्धाणं बीजे पद), २२४८०-११ सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम पृच्छा करे), २२५५३-७(#) सिद्धपद स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जगत भूषण विगत दूषण), २२४६८-१३, २२५०६-४, २२५८५-१ सिद्धांत बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम साधु साध्वी), २२५३६-४(+) सिद्धांतविचार रास, मा.गु., गा. १८२८, पद्य, मूपू., (ॐकाराक्षररूपाय), २५४२१(+) सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम जंबूद्वीपविचार), २५३९४, २१४३२($) सीतासती कृत आलोयणा, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (सती न सीता सारिखी), २५२४७ सीतासती चौपई, मा.गु., गा. २७१, वि. १६२८, पद्य, श्वे., (--), २५८१८(+$) सीतासती वनवास, मु. चौथमलजी, पुहि., गा. १४१, वि. १९७४, पद्य, स्था., (सीता है सतवंती नार), २४८५६ सीतासती सज्झाय, मु. उदयरतन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुं नाम), २२४५५-२३, २२५७०-३२, २२५७५-१८, २६९२५-३ सीतासती सज्झाय-शीयलविषे, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), २२५९०-६०(+), २६९२५-९, २२५११-११(२) सीमंधरजिन गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जउ तई रे दैव दीधी), २२५०२-१०(+) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वदु जिणवर विहरमाण), २२७८५-१६(+), २४५९३-६(+) सीमंधरजिन चैत्यवंदन , उपा. विनयविजय , मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर वीतराग), २२४५०-४१(+), २२५९८-५(+), २२५७०-४७ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, स्पू., (वंद जिणवर विहरमान), २३६५३-४ सीमंधरजिन पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (सीमंधरस्वामी मे चरनन), २२५१२-४३ सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३५०, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिब), २१४७१(+$), २१९१८(+), २२८०८(+), २६६७०(६) (२) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा-बालावबोध, क. पद्मविजय, मा.गु., ढा. १७, वि. १८३०, गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथपदद्वंद्व), २१४७१(+$) (२) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. १२०१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीपार्श्व), २१९१८(+) (२) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (--),२६६७०($) सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनस्वामी अरज), २२५५३-२(#) सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हुँ), २२५९०-१५४(+), २३२००-१(+) सीमंधरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, पद्य, मूपू., (स्वामी सीमंधर विनती), २२४९०-५(+), २६७३३-१(+), २१८८६, २५१३५-१, २६७१६, २३७५३-१(२), २६८७७(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (विनती मारी रे सुणजो), २१५१२-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कनकसौभाग्य शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभुजी सीमंधरस्वामी), २२५०३-३(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. खुसालचंद, मा.गु., गा. ६, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (सीमधरजीने जूगदीसै), २२५५३-८(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. गंग, मा.गु., गा. १३, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरस्वामी सुण), २२५५७-४(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. गुणपतिसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पुष्कलावती विजय), २२४९३-९(+) सीमंधरजिन स्तवन, श्राव. गोरधन माली, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (आज भलो दिन उग्यो हो), २२४७९-३ For Private And Personal use only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ सीमंधरजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (चांदलिया संदेशो), २२५७७-२ सीमंधरजिन स्तवन, ग. तेजसिंघ, मा.गु., गा. १०, वि. १७४८, पद्य, वे., (चोवीसजिन शासनराया), २२५३७-३ सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणो चंदाजी सीमंधर), २२४५० - ३ (+), २२५११-१३ (#) सीमंधरजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (ओलुडि महाविदेह), २२४५० - १(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (साहिब आंगी तुमारी), २२४३७-१३ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (धनधन क्षेत्रविदेह), २२५०१-२२ (+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (लील वसत पाटवी राजै), २२५५५-७६ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीमंधर तुमसें मन मोह), २२५५५-५८ सीमंधरजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिबा हु), २२५०३ - २(+) सीमंधर जिन स्तवन, मु. रायचंद, रा. गा. १०, वि. १८२५, पद्य, वे, (पुरव माहाविदेह भलो), २२५१२-२१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे (श्रीसीमंधरजी सुणजो), २२४९८-३३(०), २२७६४-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. सरूपजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, वे., (सीमंधर सीमंधर प्रभु), २२५१२-४१ " सीमंधरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. ११५, वि. १७१३, पद्य, मूपु., (अनंत चोवीसी जिन नमुं), २१९४९ सीमंधरजिन स्तवन, मु, सुखदेव, मा.गु, गा. ५, पद्य, वे., (सीमंधर जिनरावजी), २२५९०-५३(०) सीमंधरजिन स्तवन, मु. हर्षकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चंदलीया जिनजीसुं), २२५९०-२७(+) " सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे. (आज भलो दिन उम्योजी), २२५५३- ३०(०) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १५, पद्य, भूपू., (जिहां लगे आतमद्रव्य), २२४९८-४(+) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १५, पद्य, भूपू., (मनडु तुमारो मोकलुं), २२४५० - २(०) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (सरसत देवी पायजी लागु), २२४९९-२ , सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, वि. १८६३, पद्य, ओ., (सीमंधरजिनजी ने वंदु ), २२५५३ - १९(०) सीमंधरजिन स्तवन, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (सीमंधर वसे विदेहमे), २२५५३-४(#) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू., (स्वामी सीमंधर विनति), २२४९८- ३ (०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 9 सीमंधरजिन स्तवन- बृहत् वा. पद्मराज, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (महिबल महिमावंतु ए), २२४८८-१३०) सीमंधरजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपु. ( जयवंता विचरइ सीमंधर), २२५१६-१७ सीमंधरजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुंडरगिण नयरी वखाणीय), २२५१६-१८ सीमंधरजिन स्तुति, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शुक्ल बीजनइ मास बारइ), २२५१६- २१ सीमंधर जिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू, (श्रीसीमंधर मुझने), २२४५०-५३(+), २२४७७-२० सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, म्पू, (सीमंधरस्वामी केवला), २२४५०-५४(+), २२५६४-९(+), २५००९-१३(०), २६८८७- १२(१ सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (--), २२९२४-४(+$) सुकोशलमुनि चौपाई, श्राव. जगन, मा.गु., डा. २१, गा. २७५, ग्रं. २७९, वि. १७६१, पद्य, वे. (श्रीवर्धमान चौवीसमा), २६५४३ सुगुरुपच्चीशी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुगुरू पिछाणो एणे), २२४६४ - १२, २२८७१-३५, २२७८६-५११ सुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सद्गुरु एहवा सेविइ), २२४९०-२(+) सुदर्शनशेठ रास, मु. दीपचंद ऋषि, रा., गा. १२१, पद्य, श्वे., (वंदु श्रीजिन महावीर), २१४१३, २२०६१ ($), २६०८१($) सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुंदरसूरि - शिष्य, मा.गु., गा. २५५, वि. १५०१, पद्य, मूपू., (पहिलउ प्रणमिसु), २६४१९ सुधर्मास्वामीगणधर गहुली, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सखी राजग्रहि उद्यान), २२४६८-१७ सुधर्मास्वामीगणधर गहुली, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु, (पंचम गणधर वीरनारे), २२४६८-४ सुधर्मास्वामीगणधर गहुली, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोहमस्वामी समोसर्या), २२४६८-८ सुधर्मास्वामीगणधर गहुँली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चोनाणी चोखे चित्ते), २२४६८- ९, २२८७४-४ सुपात्रदान सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., ( संखराजा जसोमतीराणी), २२५६१-५ (+) For Private And Personal Use Only ५८७ Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ सुपार्श्वजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साहिब हो साहिब मुझ), २२४८०-९ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वाल्हा मेह बवीयडा), २२४४७-२ सुपार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (समरु समरु स्वामी), २२४९९-७ सुबाहुकुमार चौपाई, आ. विजयरत्नसूरि, मा.गु., ढा. १७, गा. १९०, पद्य, मूपू., (आदीसर आदि दे चउवीसे), २२२०३ सुबाहुकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., गा. ८९, ग्रं. १४०, वि. १६०४, पद्य, मूपू., (पणमि पास जिणेसर केरा), २६८१८-१ सुबाहुमुनि सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., गा. २१, वि. १७२८, पद्य, श्वे., (धर्म जिणेसर चित्त), २२५०५-११ सुभद्रासती गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मुनिवर आव्यइं विहरवा), २२५०२-६(+) सुभद्रासती पंचढालीयो, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७०, पद्य, स्था., (सिवदायक लायक सदा), २२१०९-१ सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीन), २६०१८-२ सुभद्रासती सज्झाय, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेशर केरो सीस), २२५१०-९० सुमतिकुमति लावणी, जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (हारे तुंकुमति कलेस), २२५५५-४१ सुमतिजिन गीत, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कर तासुं तो प्रीत), २२४८४-३५ सुमतिजिन स्तवन, मु. चंद्रभाण, मा.गु., गा. १३, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (कोसलपुर रलीयामगुं), २२५१२-१ सुमतिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वैस ईक्ष्यागइ राजीओ), २११०४-२(+) सुमतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुस्युं तो बांधी), २२४९८-७(+), २२४४७-९ सुमतिजिन स्तवन, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (गाउं सुमति जिणंद जस), २२५९०-६३(+) सुमतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १७, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ सुमत फलदाता), २२४९९-५ सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सुमतिजिणंद सुमति), २२४७९-६ सुमतिजिन स्तुति, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मोटा ते मेघरथ राय), २६८८७-२०(#) सुमति सज्झाय, मु. विनयविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुमति सदा सुकलीणी), २२४३७-१० सुयशजिन पद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनराज सुजससुं लग गई), २३२७१-२२ सुरप्रियसाधुरास, मु. लक्ष्मीरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ६८, पद्य, मूपू., (सरसति देवि सदा मनि), २६०२५-२ सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., खं. ४ ढाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, पू., (सासण जेहनउ सलहियइ), २३१७४(+), २११२९, २५६९९, २५१२८-१(६) सुरसुंदरी रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. २१, गा. ५१७, वि. १६४४, पद्य, मूपू., (आदि धरमने करवा ए), २२४०३(+), २२६९०(+$) सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (मुजरा साहिब मेरा रे), २२४५०-३४(+) सुविधिजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वांके गढ फोज चढी है), २२४५०-३१(+), २२५९०-१३९(+) सुविधिजिन स्तवन, मु. तेजसिंह, मा.गु.,गा. ५, पद्य, श्वे., (सुविधि जिणेसर सुंदरु), २२५९०-४३(+) सुविधिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अरज सुणो एक सुविधि), २२५१०-१० सुविधिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (में कीनो नहीं तुम), २२५१०-१४ सुविधिजिन स्तवन, मा.गु., ढा. २, गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिणसासण श्री रे), २२४९९-९ सुषमछत्रीसी, मु. उदय ऋषि, मा.गु., गा. ५३, वि. १८४१, पद्य, श्वे., (सुषमछतीसी सांभल), २२५०१-२(+) सूतक सज्झाय, आ. पुण्यसिंधुसूरि, मा.गु., गा. ३३, वि. १९७७, पद्य, मूपू., (सरस्वती देवी समरु), २२५८२-४ सोहमकुलरत्न पट्टावली रास, पंन्या. दीपविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल ६५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीत्रिसला), २१५९९(+$) सौभाग्यपंचमीपर्व चतुःपदी, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., ढा. २७, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (जिनवर चउवीसे नमी), २१२२६(+) सौभाग्यपंचमीपर्व व्याख्यान, मा.गु., गद्य, पू., (भव्यैरासाद्यते लक्ष), २३८७९($) सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., ढा. ५, गा. ७५, ग्रं. ११०, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु चरणे नमी), २५२१९, २६६५२ स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, भूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), २२४३४(+#s), २१३२२, २२५०७-१, २३४७३, २५१५६, २५४१७-१, २६३११, २२२९१(६) For Private And Personal use only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८९ (२) स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. ८२८, गद्य, मूपू., (आनंदघनस्यास्या गीत), २२४३४(+#$), २५१५६ स्तवनचौवीसी, चेतन, मा.गु., स्त. २४, पद्य, श्वे., (सेवो रे भविजन जिन), २४३१७-१ स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (मनमधुकर मोही रह्यो), २५३७६-१(६) स्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदिकरण अरिहंतजी ओलगड), २६०२८($) स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी), २२८८९-१ (२) स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., स्त. २४, गद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ प्रमुख), २२८८९-१ स्तवनचौवीसी, मु. भाणविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदि जिनेश्वर सहिब), २२५०९-१(+) स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ), २१९१९, २३१६८, २६२१८ स्तवनचौवीसी, उपा. मेघविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (श्रीजिन जगआधार), २४६५२(#$) स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकर सेवना), २६७१९ स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवाल्हो), २४८१४, २६१७८, २२६९४-१(६), २६६९८($) स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), २३०६१(+), २६३४८ स्तवनचौवीसी, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभ ऋषभ जिणंद निरखी), २३०७७ स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र कुमट, मा.गु., स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, श्वे., (श्रीआदिश्वर सामी हो), २३७७६(+), २५५०४ स्तवनचौवीसी, मु. हरखचंद, मा.गु., स्त. २४, पद्य, श्वे., (उठत प्रभात नाम जिनजी), २४३०१(२) स्तवनचौवीसी-१४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव नितु वंदिये), २३२९३ स्तवनवीसी, मु. केशरकुशल, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (--), २४४८९(६) स्तवनवीसी, वा. वाचक जस, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुक्खलवई विजये जयो), २२६९४-२ स्त्रीगर्भ विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (हिवे ठाणांग त्रीजा), २३२५२-४ स्त्रीने कागळ लखवाना दहा, मा.गु., गा. ४०, पद्य, (स्वस्ति श्रीसुरत वसे), २२४५५-१५ स्थूलिभद्रमुनि गीत, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सखि तम्ह प्यारेकुं), २२५१०-५३ स्थूलिभद्रमुनि गीत, उपा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रियडउ आव्यउरे), २२५०२-५(+) स्थूलिभद्रमुनि नवरस दूहा, ग. दीपविजय, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (थूलिभद्र कहें सुण), २५६१३ स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, वा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्ति दायक सदा), २२७९९, २३६३१-१, २६५८६ स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, वा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपति दायक सदा), २२०६५, २३००६, २५१८०, २६०१८-१, २६२८४, २६४४९-१, २६८७०, २३१७३(६), २२४५९-२९-६) स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६२, पद्य, मूपू., (सयल सुहकर पासजिन), २२१६१(+), २५३३३, २५५८१, २२६१५-१(#), २३६७९(६) । स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीजिन वीर जिनेसरु), २२५५५-१७ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (श्रीस्थूलिभद्र मुनि), २२८७१-२९ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही रे), २२४५८-१० स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. धनजी, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (फागुनि फाग सबई मीली), २२५१०-६३ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. रत्नसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वेश्या उभी विनवैरे), २२४६४-११ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वाट जोवंती निशदिनई), २२४९१-८(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (लाछल दे मात मल्हार), २२५१०-९७ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मुनिवर रहण चोमासे), २२४५८-१३($) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लालचंदजी, मा.गु., वि. १८६४, पद्य, श्वे., (श्रीवीतराग चरण नमु), २२५१२-११०(६) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, आ. विजयप्रभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (उठ सखी उतावली सेर), २२५७०-८ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पं. सोमविमल, मा.गु., गा. २+१५, पद्य, मूपू., (सरस्वतीने चरणे नमी), २३३६८-३ For Private And Personal use only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.६ स्थूलिभद्रमुनि सवैया, मु. भगोतीदास, पुहिं., गा. ९, पद्य, श्वे., (एकसमें चारो शिष्य), २५६९४-२ स्नात्रपूजा, आ. मंगलसूरि, मा.गु., वि. १३वी, पद्य, मूपू., (मुक्तालंकारविकारसारस), २२८५०, २५४०४ स्नात्रपूजा, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (पवित्र धोती पेरी रे), २२४११-१ स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), २२५७८-२(+), २३०७८-१(+), २३१९३(+), २२२७९, २२९८६-१, २४०७५-१, २४७८०-१, २५१९४-१, २६१३०, २५१६३(#), २६५९५-१(६) हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदिसर आदे करी चोवीसे), २१५४३(+), २६३३७(+), २३३९०, २३९०१, २६४९१, २१२९७(#S), २६०१६(#$) हरिबल चौपाई, उपा. पुन्यहर्ष, मा.गु., ढा. १७, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पाय प्रणमी), २३९०२ हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल ५९, ग्रं. ३७५१, वि. १८१०, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधर जगधणी), २६८६८, २५३५५(#), २६८५७($) हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. कनकसुंदर, मा.गु., खं. ३ ढाल ३९, गा. ७८१, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमु), २५३९९, २५८२० हरिश्चंद्रराजा रास, ग. लालचंद, मा.गु., ढा. ३८, गा. ८९४, वि. १६७९, पद्य, मूपू., (शुभ मति आपो सारदा), २४२१०(5) हरिश्चंद्रराजा सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (वचन इसा राणि प्रतें), २२४८४-२४ हीरविजयसूरि छंद, मा.गु., गा. १८०, पद्य, मपू., (जीवत मान मयंक मनोर), २२५३३-१ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीजी वीन), २२४९८-३६(+) हुसीडा सज्झाय, क. कानो, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (सरसतिसामणी नित), २२७८६-९(-) होरीचौवीसी, चेतन, मा.गु., गी. २४, पद्य, श्वे., (आज ऋषभ जिन होरी खैले), २४३१७-२ होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (प्रथम पुरुष राजा), २२०३७-१(+) होलिकापर्व सज्झाय, मु. वीर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (नवगाटी नवल वर पाया), २२८७१-९ होली पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मान मनी का मटका सीर), २२०३७-२(+) होलीपर्व सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (होली रंड कहां ते आई), २२५१२-१०८ For Private And Personal use only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana kendra www.kobatirth.oro Acharya Shri Kailassataustivammander व आराधर राधना क पहावीर जैन श्री कोबा. 4 卐 असतं त तु विद्या Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org 'Website : www.kobatirth.org ISBN: 81-89177-10-9 Set. 81-89177-00-1 P rivate Andersomuseonly