Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 6
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६
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॥ श्री महावीराय नमः ॥
॥ श्री बुद्धि-कीर्ति - कैलास - सुबोध - कल्याण- पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.६
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२१००१. () उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, अन्य. श्राव. मांगीलाल, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, दे., (२५.५X१०.५, ६५३४ ).
उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव,
अध्याय- १०.
उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल चउथा० तेणे; अंति: अनुगार जी छइ तिमज छइ. २१००२. वैरागसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२५.५X१०.५, ४-५X३१-४०). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, श्लोक - १०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स० चार गतिरूप संसार; अंति: अजरामर पद पां. २१००३. (+) उपदेशमाला प्रकरण, पूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २६ - १ (१७) = २५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६x१०.५, १३४३३-३५ ).
उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः सोहिवव्वं पयत्तेण, गाथा - ५४३, ( पू. वि. गाथा ३९ से ६० तक नहीं है.)
२१००७. (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२६, आश्विन कृष्ण, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले. स्थल. लोलीयाणा, प्रले. मु. रीडा ऋषि; पठ. सा. नामलदे; दत्त. ऋ. लालजी; गृही. मु. शवजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१०.५, ११X३०-३५ ).
नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि जगह जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: वीसमणुन्नाई नामाई,
गाथा - ७००.
२१००९ वैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १७७७, वैशाख कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. सा. सुखा (गुरु सा. रूपाजी),
प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०.५, १०-११X३३-४०).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीओ सासयठाणं, श्लोक-१०४.
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२१०१०. संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७४१०.५, ९३३ - ४० ).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोयगुरुं; अंतिः सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा - ७६. २१०१२. आचारांगसूत्र सह बालावबोध- प्रथम श्रुतस्कंध, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२३ - १ ( २ ) = १२२, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे., (२६X१०.५, ३-९X२३- ४१).
आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण.
आचारांगसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं अंतिः (-), प्रतिअपूर्ण. २१०१३. उपदेशमाला, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २९, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैवे., (२६x१०.५, १०- १२४३०-४१). उपदेशमाला, ग. धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति (-), (पू. वि. गाथा ५४३ तक है.) २१०१५. (+#) कर्मग्रंथ १ से ६, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८ - ६ ( ४,७,१५ से १८)=२२, कुल पे. ६,
प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैदे., ( २६४१०.५, ९x३३-३६).
१. पे नाम, कर्मविपाक कर्मग्रंथ, पृ. १अ ५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.
कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा - ६१, (पू. वि. गाथा - ३६ से ४९ तक नहीं है. )

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