Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 6
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१०६९. नलदवदंती चौपई, संपूर्ण, वि. १७४९, भाद्रपद कृष्ण, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३०, प्रले. बालकृष्ण (गुरु मु. धर्मदास ऋषि); पठ. मु. वारसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १४-१६x४६-५०). नलदमयंतीरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: चतुर माणस
चित्त वसी, खंड-६, ढाल ३९. २१०७०. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-५(३ से ५,११ से १२)=११, पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १५४४५-४९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय
चूलिका गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) २१०७२. केसीवचनात् परदेसी प्रतिबोध रास, संपूर्ण, वि. १७०१, कार्तिक शुक्ल, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. सूर्यपुर, प्रले. मु. जितसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १९-२०४५५-६२).
केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: पामे
शिवसुख सार, ढाल-४१, गाथा-५८६, ग्रं. ९००. २१०७३. (+) वीरजिन उपसर्ग विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, अन्य. मु. कान्हाजी मांडण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १२-१३४३४-४१).
महावीरजिन उपसर्ग विवरण, सं., गद्य, आदि: भगवान् मार्गशीर्ष; अंति: मकार्षीद भगवान्. २१०७४. सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, कार्तिक शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले.स्थल. लोटोती, प्रले. मु. सुजाण (गुरु मु. नरसिंघ ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११, ५४४४-४५).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अति: स जानाति जनाग्रतः, श्लोक-१००.
सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: केहवो छै नखद्युतिभरः; अंति: आगै जाणै उपदेश द्यइ. २१०७५. वईराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११, ११४४२-४६).
वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिओ सासयं ठाणं, श्लोक-१०३. २१०७६. (+) चतुर्विंशतिजिनानां स्तुतिः, संपूर्ण, वि. १६४४, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. तालध्वजपुर, प्रले. ग. जयसागर;
पठ. मु. पद्महर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-क्रियापद संकेत., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३७-४०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४,
श्लोक-९६. २१०७७. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, अन्य. ऋ. वेलजी, प्र.ले.पु. सामान्य,
प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १४-१७४५२-६३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः;
अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६.. २१०७८. (+) तीर्थमाला सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १५-१७X५४-६०).
तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहमूरि, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंतं भगवंतं; अंति: मुणिविंद थुय महिया, गाथा-१११.
तीर्थमाला स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अर्हतं पूजायोग्य; अंति: महिताः सत्कृताश्च. २१०७९. (+#) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. शवसी ऋषि (गुरु मु. नारायणजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ५४३९-४३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ,
गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन जे त्रणि; अंति: ते माहिथी उद्धर्यो.
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