Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 4
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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१७०३२.
सूक्तमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण.
१७०३१. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९११, पौष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, अजमेर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२५x१३, १०x२५-३१).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक - ४४. गणधरवाद सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५X१३.५, ६-७X२८-३४).
गणधरवाद, सं., गद्य, आदि: अत्रान्तरे भगवन्; अंतिः जानातीति गणधरवादः,
गणधरवाद - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इण अवसरे केवलज्ञान; अंति: नें अनुज्ञा कर ई.
१७०३३. सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., ( २६x१२, ११-१२x१९-२८).
सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः ज्ञानगुणास्तनोति, श्लोक १००. १७०३४. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७X१३, ४x२२-२८).
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: (-), अपूर्ण.
श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरिहंत; अंति: (-), अपूर्ण. १७०३५. नवग्रहपूजा व दसदिग्पालपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८९५, माघ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. पं. मनरूपसागर; पठ. मु. भगवान (गुरु पं. मनरूपसागर), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २६१२.५, १४४३२-३५). १. पे. नाम. नवग्रहथापन विधि, पृ. १अ-४आ.
नवग्रहपूजा विधि, मा.गु. सं., पद्य, आदिः सवन नो पाटलो शुद्ध; अंतिः अथवा दक्षणांग थापीई.
२. पे नाम, दशदिग्पालपूजा विधि, पृ. ४आ-७आ
दशदिग्पाल पूजाविधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: हवे बलि सहाय दानना; अंतिः पूजा ए ऋण पदक जाण. १७०३६. (+४) जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८२, वैशाख शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १०-१ (५) - ९, कुल पे. २, ले. स्थल. पोरबंदर, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१२.५, ६X३९-४३).
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१. पे नाम, जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, पृ. १आ ४आ, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है, गाथा ४३ अर्धपाद तक तथा ११वी गाथा का चार्थं प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण तक है,
जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), अपूर्ण.
जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण कहता त्रन लोक; अंति: (-), अपूर्ण.
२. पे नाम, नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, पृ. ६अ १०आ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रारंभिक दो गाथाएँ नहीं है. नवतत्त्व प्रकरण, आ. धर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: सिरिधम्मसूरीहिं, गाथा ६०, अपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण.
१७०३८. नवतत्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८४, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. वेराउलबिंदर, प्रले. पंन्या. गणेशरुचि (गुरु मु. हरिरुचि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५x१२, ४४३९).

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