Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 4
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मारूगुर्जर आदि देशी भाषा - फुटकर कृतियाँ, २.१.२.१ से ४ धर्मेतर शेष - उपरोक्त चारों प्रकार की स्थिर व फुटकर कृतियाँ, २.१.३.१ से ४ वैदिक - इसी तरह की चारों प्रकार की कृतियाँ एवं २.१.४.१ से ४ अन्य धर्म - चारों प्रकार की कृतियाँ. २.२ आदिवाक्य से कृति माहिती, २.३ अंतिमवाक्य से कृति माहिती, २.४ विद्वान नाम से कृति माहिती, २.५ रचना वर्ष ___ से कृति माहिती, २.६ रचना स्थल से कृति माहिती, २.७ भाषा से कृति माहिती, २.८ विषय विभाग से कृति माहिती. ३. विद्वान/व्यक्ति व गच्छ माहिती विभाग इस विभाग में कृति व हस्तप्रतों से संबंधित विद्वान/व्यक्तियों एवं गच्छों की विविध प्रकार से सूचनाएँ देने का आयोजन है. ३.१ विद्वान/व्यक्ति माहिती : यह वर्ग विद्वान/व्यक्तियों से संबद्ध विस्तृत माहिती का होगा व विद्वान नाम/ उपनाम के अकारादि क्रम से यह सूची होगी. यह सूची अनेक उपवर्गों में विभक्त होगी. ३.१.१ जैन साधुओं की सूची, ३.१.२ जैन साध्वियों की सूची, ३.१.३ जैन श्रावकों की सूची, ३.१.४ जैन श्राविकाओं की सूची, ३.१.५ शेष विद्वान/व्यक्तियों की सूची. ३.२ विद्वान शिष्य/संतति माहिती, ३.३ विद्वान शिष्य परम्परा वंशवृक्ष. ३.४ विद्वान-गच्छ माहिती वर्ग : गच्छ को केन्द्र में रखते हुए निम्नोक्त वर्गों की सूचियाँ बनेंगी. ३.४.१ गच्छ माहिती, ३.४.२ गच्छ शाखा-प्रशाखा वंशवृक्ष, ३.४.३ गच्छानुसार विद्वान माहिती. सूची प्रकाशन की यह एक संभावित संक्षिप्त रूपरेखा है. अनुभवों, उपयोगिता एवं व्यावहारिक मर्यादाओं के आधार पर इसमें यथासमय योग्य परिवर्तन भी किया जाएगा. प्रस्तुत हस्तप्रत सूचीगत सूचनाओं का स्पष्टीकरण जैन हस्तप्रतों का समावेश करनेवाली हस्तप्रत आधारित इस सूची में सूचनाएँ तीन स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर (२) पेटाकृति माहिती स्तर. (३) प्रत व पेटाकृतिगत कृति माहिती स्तर. पूर्व खंडों की तुलना में इस खंड से सूचनाओं में काफी बढ़ोत्तरी की गई है एवं सूचनाओं के क्रम में भी पर्याप्त फेरफार किया गया है. 'पेटाकृति माहिती स्तर' बढाया जाना यहाँ उल्लेखनीय है. यद्यपि मुख्यतः क्रम में फेरफार हुआ है, तथापि खंड १.१.१ के पृष्ठ ३३ से ३८ पर दिया गया इन सूचनाओं का परिचय विस्ताररुचि वालों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा. यहाँ पर मात्र संक्षिप्त रूप से व प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद परिवर्तित व परिवर्द्धित सूचनाओं का ही परिचय दिया गया है. प्रत माहिती स्तर इस स्तर पर प्रत सम्बन्धी उपलब्ध सूचनाएँ विविध अनुच्छेदों में निम्नोक्त क्रम से शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. यद्यपि कम्प्यूटर पर ये सूचनाएँ और भी विस्तार से उपलब्ध हैं. १. प्रत क्रमांक : प्रत्येक प्रत का यह स्वतंत्र क्रमांक है. ग्रंथसूची के इस विभाग में मात्र जैन कृतियोंवाली प्रतों का ही समावेश होने से व बीच-बीच में जैनेतर आदि अन्य वर्गों की प्रतें भी अनुक्रम में होने से वे क्रमांक यहाँ नहीं मिलेंगे. यह क्रमांक अनुच्छेद-Paragraph की बायीं ओर निकला हुआ गाढ़े अक्षरों - Bold type में छपा है. २. प्रत महत्तादि सूचक चिह्न : प्रत की महत्ता का स्तर बताने के लिए क्रमांक के बाद कोष्ठक के अंदर इस तरह (+), (-), (#) चिह्न दिए गये हैं. २.१. प्रत संशोधित होने, टिप्पणक आदि से युक्त होने व कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित होने पर प्रत की महत्ता को बताने के लिए प्रत क्रमांक के बाद (+) का चिह्न लगाया गया है. यह चिह्न न होने का मतलब यह नहीं होता कि प्रत शुद्ध नहीं है या अल्प महत्व की ही है. सूची में इनका उल्लेख 'प्र.वि.' के तहत प्राप्त होगा. २.२ प्रत दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ वाली होने पर प्रत क्रमांक के बाद (.) का चिह्न लगाया गया है. इनका उल्लेख 'प्र.वि.' में प्राप्त होगा. २.३ कट, फट जाने आदि के कारण हुई प्रत व पाठ की विविध अवदशाओं की जानकारी कराने के लिए प्रत क्रमांक के For Private And Personal Use Only

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